भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है. देश में रोजगार की कमी होना ही बेरोजगारी की समस्या नहीं है, बल्कि युवाओं में असफलताओं और उम्मीदों में आशा की किरण न दिखाई देना भी समस्या है. यहां केवल शिक्षक व क्लर्क भरतियों की बात की जा रही है.
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संस्था, जिस के स्कूल चल रहे हैं, लाखों बेरोजगारों की उम्मीदों पर पानी फेर रही है.
आर्मी पब्लिक स्कूल की संस्था आर्मी वैलफेयर एजुकेशन सोसाइटी यानी (एडब्लूईएस) हर साल आवेदन आमंत्रित करती है, ‘शिक्षकों के लिए आर्मी स्कूल में शिक्षक बनने का सुनहरा मौका.’
सवाल है कि क्या वास्तव में शिक्षक नौकरी पाते हैं? क्या वे अपने सपनों को साकार कर पाते हैं? जवाब है, जी नहीं, यह संस्था पहले अनुबंध पर भरती की सीटें निकालती है, फिर स्थायी. लेकिन, क्या वास्तव में स्थायी भरती होती है?
देशभर में हर आर्मी क्षेत्र में एक स्कूल बना है जो कि आर्मी पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. इन स्कूलों का सारा खर्च सरकार उठाती है. ये स्कूल ज्यादातर 12वीं कक्षा तक होते हैं. इन स्कूलों में हर कक्षा के कुछ सैक्शन होते हैं. बड़ी (हायर सैकंडरी) कक्षा में विज्ञान का भी विभाग होता है. कला संकाय में एक भी सैक्शन नहीं होता, अगर कहीं होता भी है तो सिर्फ एक सैक्शन होता है.
एडब्लूईएस का गठन 1983 में हुआ था. पूरे देश में 137 उच्चतर माध्यमिक व 249 प्राथमिक स्कूल हैं. 500 से भी कम शिक्षक वाले ये स्कूल शिक्षक भरती के लिए विज्ञापन निकालते हैं-‘आर्मी स्कूलों में निकली हजारों शिक्षकों की भरती’ यूट्यूब चैनलों, रोजगार समाचार व दैनिक अखबारों में यही छपता है.
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लाखों बेरोजगार शिक्षक आवेदन करते हैं. वे सपने संजोते हैं कि भारत के सैनिक बन कर देश की सेवा न कर सके तो क्या, शिक्षक बन कर भावी सैनिकों को ज्ञान तो देंगे. हर आवेदन के लिए शुल्क 1,500 रुपए होता है. चयन प्रक्रिया त्रिस्तरीय होती है. लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और फिर व्यावहारिक परीक्षा होती है.
पूरी प्रक्रिया के 2 स्तरों को पूरा करने के लिए 2 माह लगते हैं. तीसरे स्तर तक पहुंचने में कितना समय लगेगा, कोई बता नहीं सकता क्योंकि यह संस्था नौकरी नहीं देती सिर्फ पैनल तैयार करती है. यह एक स्कोर कार्ड थमा देती है जोकि एक निश्चित अवधि तक ही मान्य होता है.
पूरी प्रक्रिया को सम झते हैं. पहले शिक्षक आवेदन करते हैं, फिर स्क्रीनिंग परीक्षा के बाद लिखित परीक्षा देते हैं. लिखित परीक्षा की कटऔफ लिस्ट तैयार होती है, जिस में ज्यादातर पास होते हैं, मैरिट में भी होते हैं. फिर इंतजार होता है साक्षात्कार का. यह प्रक्रिया तो लगता है शुरू होने से पहले ही समाप्त हो जाती है.
लिखित परीक्षा के 3 या 4 माह बाद स्कोरकार्ड अभ्यर्थी को सौंप दिया जाता है. अभ्यर्थी अपने पद के लिए चक्कर काटकाट कर थक जाता है इन औफिसों के. लेकिन उसे नौकरी नहीं मिलती.
क्यों नहीं मिलती नौकरी? दरअसल अभ्यर्थियों की संख्या स्कूलों के सैक्शनों से कई गुना ज्यादा होती है. दूसरा कारण, आर्मी में काम करने वाले कर्मचारियों के जानकारों या उन की विवाहितों या अविवाहिताओं को वहां नौकरी मिल जाना. तीसरा कारण, स्कूलों में सैक्शनों का अभाव है जिस के चलते शिक्षकों के द्वारा प्राप्त किए गए स्कोरकार्ड उन की फाइलों में ही रह जाते हैं. एक समय बाद अभ्यर्थियों की आयुसीमा खत्म हो जाती है और उन का ख्वाब पानी में बह जाता है.
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साफ है कि एडब्लूईएस का मकसद भरती प्रक्रिया के जरिए केवल पैसा कमाना है. सो, शिक्षकों की भरती के पीछे यह पूरी प्रक्रिया एक कालाबाजारी है. धन इकट्ठा करने का एक जरिया है. जबकि, शिक्षा तो यह सिखाती है कि भावनाओं को ठेस पहुंचा कर धन कमाना एक अपराध है.
कमलेश गुप्ता