रामकिशोर दयाराम पंवार
मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल बैतूल के यों तो अलगअलग नाम हैं, लेकिन ज्यादातर नाम उस के भौगोलिक पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं. बैतूल का मतलब कपासरहित इलाका, लेकिन अंगरेजी वर्णमाला के 5 अक्षरों से बने बैतूल शब्द यानी नाम को एक अलग ही पहचान दी गई है.
बैतूल की यही पहचान जिले में कौफी के बाद काजू के उत्पादन के नाम पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का केंद्र बन गई. बी से बैस्ट यानी सर्वश्रेष्ठ, ई से ऐनवायरमैंट यानी पर्यावरण, टी से टैंपरेचर मतलब तापमान, यू से यूनिक यानी बेजोड़, एल से लैंड यानी जमीन, इसलिए यहां पर राष्ट्रीय कृषि योजना के तहत बड़े पैमाने पर साल 2015 से काजू की खेतीबारी की बातें होने लगीं.
जब सरकारी पै्रस नोट में गांव निशाना के किसानों के अच्छे दिन के आने की खबरें सुर्खियों में छपीं तो लोग काजू कतली का स्वाद लेने के लिए इस गांव की ओर निकल पड़े.
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निशाने पर तरकश से सामने आया सच
आदिवासी बहुल शाहपुर ब्लौक के कुछ गांवों में बीते साल बाड़ी परियोजना के तहत काजू के पौधों को लगाया गया था. जिला उद्यानिकी विभाग ने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कामयाबी की एक अलग ही कहानी बना ली.
सरकारी प्रैस विज्ञप्ति के जरीए काजू के किसानों के लखपति बनने की एक दर्जन कहानियां परोस दीं. इस में हितग्राही वे किसान बताए गए, जो दूसरी परियोजनाओं के लाभार्थी हैं. नागपुरभोपाल फोर लेन से निशाना डैम से लगे गांवों में एक गांव निशाना भी है, जो नैशनल हाईवे के सामने बसा है.