जब शारीरिक रूप से व्यक्ति की तकलीफ बढ़ जाती है तब वह निदान के लिए पूरे विश्वास के साथ अस्पताल की ओर रुख करता है. लेकिन, पैसे बनाने के चक्कर में डाक्टर ही मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे तो? चिकित्सा के बाजारीकरण में आज ऐसा ही हो रहा है.

रमा को बहुत दिनों से कमरदर्द हो रहा था. पेनकिलर खा कर वह काम करती रहती. जब औफिस आनाजाना भी दूभर होने लगा और सीढि़यां चढ़नाउतरना मुश्किल हो गया तो एक अस्पताल में दिखाने गई. डाक्टर ने तुरंत ऐडमिट होने की सलाह दी. एक्सरे किया गया. डाक्टर ने कहा कि कुछ डाउट्स हैं और उन्हें क्लीयर करने के लिए एमआरआई कराना जरूरी है. इस के लिए दूसरी पैथोलौजी लैब में जाना था जहां ले जाने और ले आने की जिम्मेदारी अस्पताल की थी. एमआरआई के लिए 17 हजार रुपए वसूले गए.

रिपोर्ट आने पर डाक्टर तरहतरह के सवाल करने लगे. वे बोले, ‘‘कुछ गांठें दिख रही हैं. सीरियस मामला है. अभी हम कुछ नहीं कह सकते. पैट स्कैन करवाना पड़ेगा.’’ यह 23 हजार रुपए में होता था.

रमा बुरी तरह से डर गई थी. अस्पताल से तो छुट्टी दे दी गई. पैट स्कैन करवाया गया तो वहीं के डाक्टर ने कहा कि आप किसी औनकोलौजिस्ट से जा कर मिलें. कैंसर के लक्षण हैं और पूरे शरीर में गांठें हैं.

रमा और उस के पति व बेटा, व नातेरिश्तेदार, जिन्होंने भी यह बात सुनी, सकते में आ गए. इस बीच यह भी पता चला कि जिस अस्पताल ने उस पैथ लैब में भेजा था, उस के साथ कमीशन तय था और वह भी बड़ी मात्रा में. लगभग 10-12 हजार रुपए.

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