27 वर्षीया कोमल एक बड़ी कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर है. मुंबई की लोकल ट्रेन में प्रतिदिन सफर करती है. ड्रैस कोड पर उस के विचार पूछने पर कहती है, ‘‘हमारी जनरेशन फैशन ट्रैंड्स फौलो करना चाहती है, कपड़ों का चयन निजी फ्रीडम व निजी सोच पर निर्भर करता है. कितना बोरिंग हो जाएगा जब सब पूरे दिन रोज एक ही तरह के कपड़ों में दिखेंगे. अपने दोस्तों से कोई लुकिंग गुड नहीं सुन पाएगा.
‘‘अपनी पसंद के कपड़ों को न पहनने से हमारी असली पसंद दिखेगी नहीं. कलीग्स को जानना, सम झना जरा मुश्किल होगा. यह मैं नहीं हूं, यह मेरा स्टाइल नहीं है, लोग कैसे मु झे सम झेंगे जब मैं अपनी पसंद के कपड़े पहन कर खुद को ऐक्सप्रैस कर ही नहीं पा रही हूं.’’
जो पीढ़ी सत्यता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, राइट टू सैल्फ ऐक्सप्रैशन पर चल रही है, उस का पर्सनल स्टाइल उस के लिए खासा माने रखता है. आज की पीढ़ी ओवरनाइट स्टार्टअप की सफलता, मनपसंद कपड़े पहने बड़ी हुई है. उस ने साबित किया है कि फायदेमंद बिजनैस के लिए आप को कल के किसी सीईओ की तरह दिखना जरूरी नहीं है. यह पीढ़ी यह मानती है कि जो आप पहनते हो और जो आप करते हो, दोनों चीजें जुड़ी नहीं हैं. क्रौप टौप पहने कोई लड़की आप की बौस हो, यह भी हो सकता है.
26 वर्षीया आर्किटैक्ट उलरा का कहना है, ‘‘हमारी लाइफ पर सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक मूवमैंट्स हावी होने की कोशिश करते आए हैं. पर सफलता हमारे लिए कुछ और है. चाहे हमारे पास कम पैसे हों, चिंता ज्यादा हो, धुंधला भविष्य हो, पर लगातार कनैक्टिविटी के इस समय में जहां औफिस हर जगह हो सकता है, हम अपने कपड़ों पर किसी भी तरह का नियम लागू नहीं करना चाहते. 8-9 घंटे काम करना होता है, सो, हमें आरामदायक, मनपसंद कपड़े पहन कर खुद का भी अस्तित्व महसूस करने का हक है.
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