रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः प्राची नितिन मनमोहन

निर्देशकः करण विश्वनाथ कश्यप

कलाकारः अक्षय खन्ना, रीना किशन, प्रियांक शर्मा, सतीश कौशिक, सुप्रिया पाठक, राकेश बेदी, श्रिया शरण व अन्य.

अवधिः दो घंटे 14 मिनट

बिहार व झारखंड के प्रचलित पकड़वा विवाह पर गत वर्ष फिल्म ‘‘जबरिया जोड़ी’’ आयी थी, जिसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था. इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा व परिणीति चोपड़ा की जोड़ी थी.‘पकड़वा विवाह’ में शादी योग्य लड़के का अपहरण कर जबरन अपने घर ले जाकर लड़की से उस अपह्रत लड़के की शादी कर दी जाती है. और अब उसी विषय पर प्राची नितिन मनमोहन और करण विश्वनाथ कश्यप फिल्म‘‘सब कुशल मंगल है’’ लेकर आए हैं.

कहानीः

झारखंड के कर्नलगंज इलाके में  बाबा भंडारी (अक्षय खन्ना) राजनीति और अपराध में एक बड़ा नाम हैं. वह शादी योग्य लड़कों को जबरन पकड़कर या यूं कहें अपहरण कर उनका विवाह उन लड़कियों से करवाते हैं, जिनके माता पिता दहेज देने में असमर्थ हैं. इसके लिए वह खुद को परोपकारी मानते हैं. बाबा भंडारी के इस काम को गलत बताते हुए पत्रकार और एक टीवी रियालिटी शो ‘‘मुसीबत ओढ़ ली मैंने’’ के संचालक पप्पू मिश्रा (प्रियांक शर्मा) पूरा प्रकरण दिखा देते हैं. पप्पू मिश्रा जो कुछ अपने रियालिटी शो में दिखाते हैं, उससे बाबा भंडारी नाराज हो जाते हैं. तो वहीं इससे पप्पू मिश्रा के पिता मिश्रा (सतीश कौशिक) और मां इमरती देवी (सुप्रिया पाठक) परेशान हो जाती हैं. क्योकि संयोग से दोनों कर्नलगंज के ही निवासी हैं.

अब बाबा भंडारी, पप्पू मिश्रा को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगते हैं. उधर तेज तर्रार मंदिरा शुक्ला उर्फ मंदा के पिता (राकेश बेदी) और भाई विष्णु, मंदा की शादी के लिए परेशान हैं. हारकर मंदा के पिता व भाई बाबा भंडारी के पास मदद मांगने जाते हैं. बाबा भंडारी हामी भर देते हैं. और जब पप्पू अपने माता पिता के साथ दिवाली मनाने दिल्ली से अपने घर आते हैं, तो भंडारी उसका अपहरण कर लेते हैं. मंदा के घर शादी की तैयारी शुरू हो जाती है. मगर मंदिरा ( रीवा किशन) खुद ही पप्पू को नाटकीय तरीके से भगा देती हैं. अपनी हार कबूल करने बाबा भंडारी मंदिरा के माता पिता से मिलने उनके घर जाते हैं और मंदिरा को देखते पहली ही नजर में प्यार कर बैठते हैं. अब वह मंदिरा से खुद ही विवाह करना चाहते हैं. तो वहीं वापस दिल्ली जाते समय मंदिरा व पप्पू मिलते हैं ओर दोनों प्यार का इजहार कर देते हैं. इसके बाद पप्पू दिल्ली जाने की बजाय वापस कर्नलगंज पहुंच जाते हैं. फिर कहानी कई मोड़ो से होकर गुजरती है.

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