मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका कानपुर की हैं. विज्ञापनों में काम करते हुए उन्हें कई भूमिकाएं मिलीं जिन में फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’, ‘पद्मावत’ और ‘वार’ में उन की भूमिका को लोगों ने सराहा. विनम्र और हंसमुख स्वभाव की अनुप्रिया जो भी काम मिले उसे अच्छी तरह करना पसंद करती हैं. उन की जर्नी शुरू हुई ही है और अभी उन्हें कई फिल्मों और वैब सीरीज के औफर भी मिल रहे हैं.
फिल्म ‘वार’ की सफलता आप के लिए कितनी माने रखती है? पूछने पर अनुप्रिया कहती हैं, ‘‘इस का फायदा मिला है, क्योंकि यह एक बड़ी फिल्म है. इसे बहुत लोगों ने देखा और मेरी भूमिका बहुत अच्छी रही. बड़ा रोल 2 हीरो के बीच में मिलना आसान नहीं होता. मेरे लिए एक ऐक्शन फिल्म में काम करना सब से बड़ी उपलब्धि है. मेरे लिए एक एजेंट की भूमिका निभाना आसान नहीं था. लुक अलग था. मैं ने इंटैंस रोल किया है. यह रोल अलग था इसलिए मु झे काम करने में अच्छा लगा. मेरी भूमिका स्ट्रौंग थी जो मेरे लिए बड़ी बात रही.’’
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आप ने अबतक अच्छे चरित्र निभाए हैं, उस हिसाब से देखें तो आप के पास फिल्मों की संख्या कम है. इस सवाल पर उन का मानना है, ‘‘मैं हमेशा से क्वालिटी वर्क करने के पक्ष में रही हूं. भूमिका छोटी हो या बड़ी, इस बात पर मैं ने कभी अधिक जोर नहीं दिया. मेरे लिए चरित्र और जिन के साथ काम कर रही हूं उन का अच्छा होना बहुत जरूरी है. जहां मुझे लगता है कि मैं कुछ उन से सीखूंगी, नया चरित्र है, काम करने में मजा आएगा, वहां मैं काम करना पसंद करती हूं. मैं रोमांटिक, ग्रामीण और कौमेडी फिल्में करना चाहती हूं. इस के अलावा मु झे पीरियड फिल्में बहुत पसंद हैं. मेरे पास जो स्क्रिप्ट आती है उन में से मैं अच्छी भूमिका को खोज कर काम करती हूं.’’
जब भी आप को कुछ नया करने का मौका मिलता है तो आप उसे कैसे करती हैं. इस पर अपनी राय देते हुए अनुप्रिया कहती हैं, ‘‘हर फिल्म की एक खास जरूरत होती है जैसे फिल्म ‘वार’ के लिए शारीरिक रूप से फिट महिला चाहिए थी, तो उस के लिए मैं ने काफी वर्कआउट किया, कई क्लासेज भी लीं. अगर फिल्म ऐक्शन वाली हो, तो उस के लिए फिटनैस की जरूरत होती है. ‘पद्मावत’ फिल्म में मैं ने रानी नागमती की भूमिका के लिए बहुत रिसर्च की थी.
‘‘मैं खुद भी राजस्थान से हूं इसलिए वहां के रीतिरिवाज से परिचित थी. फिर भी मैं ने संवाद बोलने के तरीके को अच्छी तरह से सीखा. इस तरह से मैं ने हर किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है. इस के लिए जो भी जरूरी हो उसे अवश्य करती हूं ताकि भूमिका सजीव लगे.’’
सफलता पाने के लिए हर कोई संघर्ष करता है. आप भी संघर्ष कर रही हैं. इस पर आप क्या सोचती हैं. इस सवाल के जवाब में वे कहती हैं, ‘‘मु झे यहां इंडस्ट्री में कोई जानने वाला नहीं है, ऐसे में मेरे लिए कोई कहानी लिखी नहीं जाएगी. मु झे काम ढूंढ़ना पड़ा और सबकुछ सीखना पड़ा. ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘पद्मावत’ फिल्म के बाद औडिशन देने की संख्या कम हो गई है. यह मेरे लिए सब से अधिक राहत है. इस के अलावा अभी भी आगे काम के लिए निर्देशकों से मिलना पड़ता है. मैं फिल्मों के अलावा विज्ञापनों में भी काम करती हूं. आउटसाइडर कलाकार का लर्निंग पीरियड हमेशा चलता ही रहता है.’’
आगे क्या कर रही हैं, के जवाब में वे कहती हैं, ‘‘अभी मैं निर्मातानिर्देशक प्रकाश झा के साथ एक वैब सीरीज कर रही हूं. उस का अनुभव बहुत अच्छा रहा.
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इस के अलावा अरशद वारसी के साथ एक साइकोलौजिकल थ्रिलर वैब पर काम चल रहा है.’’
वैब सीरीज की आजादी को ले कर आप का क्या मानना है, इस सवाल पर वे गंभीर होते हुए कहती हैं, ‘‘कोई भी चीज जब दबी हो तो एकदम से उसे आजादी मिलने पर बहुतकुछ बाहर निकल कर आता है, जो ठीक नहीं होता लेकिन समय के साथ उस में बदलाव होता है. आज कई नई और अच्छी कहानियां वैब सीरीज के द्वारा कही जा रही हैं जिन में क्राइम, गैंग्स्टर जैसी कहानियां मुख्य नहीं हैं. यह आगे धीरेधीरे दर्शकों की पसंद के अनुसार बदलने की उम्मीद है.’’
इंटीमेट सींस के लिए आप कितनी कंफर्टेबल महसूस करती हैं. इस सवाल के जवाब में अनुप्रिया का मानना है, ‘‘मैं बहुत सहज हूं, लेकिन सींस के उस कहानी के साथ जाने की जरूरत होनी चाहिए. महिलाओं की कामुकता को, उस की गहराई को दिखाए बिना छोटेपन के लिहाज से दिखाया जाए, तो उस में मैं सहज नहीं. ऐसे सीन करना भी नहीं चाहूंगी. ऐसे दृश्य को बहुत ही मर्यादित तरीके से दिखाए जाने की जरूरत है.’’
किस तरह के सामाजिक कार्य और अभिनय करना पसंद करती हैं. इस पर उन का कहना है, ‘‘मैं ने अभिनय से पहले गरीब बच्चों की शिक्षा को ले कर कुछ काम किया है, पर अब ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर काम करना चाहती हूं जो हमारे देश में बहुत जरूरी है. वक्त मिलता है तो डांसिंग, सिंगिंग के साथसाथ पेंटिंग और गाने सुनती हूं. इस के अलावा मैं अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हूं.’’
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कई हिट फिल्में देने के बाद उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की अनुप्रिया गोयनका बौलीवुड में फेमस चेहरा बन चुकी हैं. फिल्मों का सफल होना और उन में काम की सराहना होना कितना जरूरी है, इस पर उन्होंने एक बातचीत में अपनी बेबाक राय रखी.
बौलीवुड की एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण इन दिनों काफी चर्चा में है कभी अपनी अपकमिंग फिल्म ‘छपाक’ को लेकर तो कभी इसी फिल्म के प्रमोशन में पहने गए अपने आउटफिट को लेकर खूब चर्चा बटोर रही है. इन सबके अलावा अब वह अपने बर्थडे को लेकर भी चर्चा में छाई हुई है कि वो अपना बर्थडे कहां सेलिब्रेट करेंगी जो 5 जनवरी को है.
आपको बता दे दीपिका पादुकोण अपना 34 वां जन्म दिन का प्लान बहुत खास और यादगार होगा क्योंकि दीपिका 5 जनवरी को अपना 34वां बर्थडे लखनऊ नगरी में एसिड अटैक विक्टिम्स के साथ मनाएंगी. इसके लिए वह लखनऊ के शीरोज कैफे में वक्त बिताएंगी. शीरोज कैफे एक बेहद खास कैफे है जिसे एसिड अटैक सर्वाइवर द्वारा चलाया जाता है. दीपिका के प्लान शीरोज कैफे में वक्त बिताने के बाद कुछ और लोगों से भी मिलने की है, लखनऊ के बाद वह दिल्ली पहुंचेंगी और रविवार की शाम से ही फिल्म के प्रचार का काम शुरू कर देंगी.
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सभी को पता है कि दीपिका पादुकोण एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की बायोपिक कर रही हैं. फिल्म में वह खुद एसिड सर्वाइवर का किरदार करने के साथ ही उनके हक की लड़ाई लड़ती नजर आएंगी. वो अपना पूरा दिन उन्हीं के साथ बिताएंगी. आस-पास के शहरों के एसिड अटैक विक्टिम इसका हिस्सा होंगे.’
‘छपाक’ फिल्म को मेघना गुलजार ने डायरेक्ट किया है. जो 10 जनवरी को रिलीज होगी. इस फिल्म में दीपिका पादुकोण के अलावा एक्टर विक्रांत मैसी खास रोल में हैं. ‘छपाक’ के पहले दीपिका आखिरी बार फिल्म ‘पद्मावत’ में नजर आई थीं. इस फिल्म में रणवीर सिंह और शाहिद कपूर भी अहम रोल में थे.
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शादी के बाद ‘छपाक’ दीपिका की पहली फिल्म है. इस फ़िल्म का दीपिका जम कर प्रमोशन कर रही है. दीपिका फिल्म छपाक के बाद मार्च में अपनी नई फिल्म की शूटिंग शुरू करने वाली है, जिसमें वह गली बौय के मशहूर कलाकार सिद्धांत चतुर्वेदी के साथ दिखेंगी. इस फिल्म में अनन्या पांडे भी खास किरदार निभा रही हैं.
‘सुना है यह जेलर रिटायर होने वाला है और इसकी जगह कोई लेडी जेलर आने वाली है’ मृणालिनी ने यूं ही बातों-बातों में बैरक के पास से गुजरते जेल अधिकारी से पूछ लिया.
‘हां, नई मैडम सर आने वाली हैं. परसों इनका विदायी समारोह है जेल नंबर चार में… शाम को तुम लोगों को भी उधर बुलाया जाएगा.’ जेल अधिकारी ने मृणालिनी के धुले-चमकीले जिस्म पर गहरी नजरें जमाते हुए कहा, ‘कुछ रंगारंग कार्यक्रम भी होगा… तुम लोग कुछ करना चाहो तो बताना’ जेल अधिकारी कामुक नजरों से देखता हुआ आगे बढ़ गया.
‘हां, हां… हम भी कुछ जरूर करेंगे…’ मृणालिनी ने पीछे से तेज आवाज में जवाब दिया. उसने पलट कर देखा तो मृणालिनी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मृणालिनी को मुस्कुराते देख जेल अधिकारी अचम्भित हो गया. अब तक तो उसने मृणालिनी को सिर्फ गालियां बकते और लड़ते-झगड़ते ही देखा था. उसको मुस्कुराता देख वह भी मुस्कुरा दिया. मछली जाल में फंस गयी थी. अब बस तार खींचने की जरूरत है. मृणालिनी सोच कर हंस पड़ी और नोरा के बेटे को हवा में उछालते हुए खिलाने लगी.
दूसरे दिन मौका पाते ही वह उसी जेल अधिकारी के पास पहुंच गयी. दिसम्बर की 22 तारीख थी. ठंडी हवाएं जिस्म को काट रही थीं. वह अपने ऑफिस के बाहर कुर्सी डाले मजे से बैठा धूप सेंक रहा था.
‘उधर कल क्या-क्या होना है साहब?’ मृणालिनी सीधा सवाल दागते हुए उसके पास ही जमीन पर बिछी हरी-हरी घास पर पसर गयी. जेल अधिकारी ने उसके सुन्दर मुखड़े पर छायी लाली को निहारा. आज पहली बार मृणालिनी को इस तरह अपने पास देख उसे भयमिश्रित खुशी महसूस हो रही थी. वरना वह तो किसी अधिकारी को भाव ही नहीं देती थी. उसके सवाल पर वह जल्दी से बोला, ‘अधिकारी लोग भाषण-वाषण देंगे, कुछ नाचगाना होगा, एक छोटी सी नाटिका खेली जा रही है. चार नंबर वालों ने तैयार की है. फिर चाय-नाश्ता होगा.’
‘तो क्या हमारी जेल के सारे कैदी उधर जाएंगे?’ मृणालिनी ने दूसरा सवाल दागा.
‘नहीं, सब नहीं, दस-पंद्रह औरतें और कुछ सेवादार जाएंगी, जिन्हें हम चुनेंगे. तू चलेगी क्या?’ जेल अधिकारी ने जिज्ञासा जतायी.
‘हां, जरूर चलूंगी, मैं भी तो देखूं नई मैडम सर कैसी हैं. इसी बहाने मिल लूंगी, वरना जेलर तक हम कहां पहुंच पाते हैं, हमें तो आप जैसों के भरोसे ही रहना पड़ता है.’ उसने खींसे निपोरते हुए ताना मारा.
‘हां, हां, जरूर मिल लेना… बस हमारी शिकायत-विकायत न कर देना… तेरे गुस्से का भरोसा नहीं है, कब कहां निकल पड़े.’ जेल अधिकारी सशंकित सा होता हुआ बोला. सोच रहा था कि मृणालिनी को चलने को बोले या न बोले. आखिर पंद्रह-बीस कैदी चुन कर उधर भीड़ बढ़ाने के लिए उसे ही ले जाने थे. वह चाहता था कि कुछ पढ़ी-लिखी, साफ-सुथरी महिला कैदियों को छांट ले. ऐसी जो ज्यादा बक-बक न करती हों, या किसी अधिकारी के खिलाफ नई जेलर से कोई शिकायत-चुगली न लगाएं.
उसके डर को देखकर मृणालिनी खिलखिला कर हंस पड़ी. बोली, ‘क्या साहब, आप मुझे पागल समझते हैं क्या? यूं ही शिकायतें करती फिरती हूं? कोई बड़ी बात होती है तभी शिकायत करती हूं. वरना आप बताओ, मुझसे अच्छी कैदी कोई है इस जेल में? कैसे अनुशासन में रखती हूं सबको, ढीठ से ढीठ कैदियों के हेकड़ी मिनटों में गायब हो जाती है. आपको कोई मेहनत करनी पड़ती है क्या?’
‘हां, हां वह तो है… तेरा ही राज चलता है यहां…’ वह हंसने लगा. मृणालिनी की बातों से वह कुछ सहज हो गया. बोला, ‘अच्छा बता, किस-किस को ले चलूं… लिस्ट मुझे ही देनी है. जिसे तू कहेगी उसे गाड़ी में बिठा देंगे. बस साफ-सुथरी और ठीक-ठाक बात करने वाली होनी चाहिएं.’
‘उसकी चिंता मेरे पर छोड़ दो साहब, शाम तक आपको बता दूंगी. एक गाने का कार्यक्रम हमारी तरफ से भी होगा नई जेलर के स्वागत में. ढोलकी मंगवा देना, हम रिहर्सल करके कल सुबह सुना देंगे.’
‘ठीक है. तुमने तो मेरी चिन्ता दूर कर दी. कुछ और काम हो तो बताना.’ जेल अधिकारी खुश होकर बोला.
‘काम तो है, पर तुमसे होगा नहीं साहब…’ मृणालिनी ने धीमे स्वर में चुनौती सी दी.
‘ऐसा क्या काम है…?’ जेल अधिकारी ने फुसफुसाते स्वर में पूछा.
‘है कुछ…’ मृणालिनी कहते हुए उठने को हुई तो अधिकारी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया. हाथ तो पकड़ लिया मगर फिर मारे डर के झटके से छोड़ भी दिया. बोला, ‘बता न, क्या बात है?’ वह घिघियाया.
उसकी लपलपाहट को मृणालिनी खूब समझ रही थी. वह क्यों मरा जा रहा था उसका काम करने के लिए यह वह बहुत अच्छी तरह जानती थी. ‘है तो साला मर्द जात ही… अपनी हवस से बाहर कैसे निकले’ उसने सोचा, ‘पर अभी इसे थोड़ा और तपाना पड़ेगा. जब पूरे ताप पर होगा तभी चोट देना ठीक रहेगा’, उसने मन ही मन सोचा और उठ खड़ी हुई. बोली, ‘कल बताऊंगी साहब…’
मृणालिनी झटके से खड़ी हुई और कमर मटकाती चल पड़ी. जेल अधिकारी हक्का-बक्का सा उसे जाते देखता रहा. शाम को उसने कई मर्तबा उसके बैरक की तरफ चक्कर लगाये, मगर वहां मृणालिनी ने उस पर नजर भी नहीं डाली. शाम को मृणालिनी ने जेल के एक सेवादार के हाथों उन महिला कैदियों की लिस्ट जेल अधिकारी को भिजवा दी, जिन्हें कल के कार्यक्रम में शामिल करने के लिए उसने चुना था. उनमें एक नाम नोरा और उसके बच्चे का भी था.
इस पूरे मामले में दिखने को तो यही दिलचस्प है कि कट्टरवादी हिन्दू नेता वीर सावरकर समलैंगिक थे और अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी भगवा खेमे द्वारा समलैंगिक करार दिये जा चुके हैं. जिसे सियासी पंडित घटियापन करार दे रहे हैं वह दरअसल में समलैंगिकता को लेकर जिज्ञासा, भड़ास और पूर्वाग्रह ज्यादा है, जो सावरकर और राहुल गांधी के बहाने व्यक्त हो रहे हैं. इसे अगर सार्थक बहस की शक्ल में लिया जाये बजाय दिमागी दिवालियेपन के तो एक बेहतर निष्कर्ष पर पहुंचना आसान हो जाएगा .
संक्षेप में विवाद इतना भर है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस सेवादल के भोपाल शिविर में एक बुकलेट शीर्षक, वीर सावरकर कितने वीर बांटी गई जिसमें एक जगह लिखा था कि वीर सावरकर एक समलैंगिक थे और इसमें उनके पार्टनर महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूरम गोडसे थे. इस बुकलेट में सावरकर पर और भी गंभीर आरोप लगाए हैं. मसलन वे अल्पसंख्यक यानि मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार के लिए लोगों को उकसाते थे और अंग्रेजों से माफी मांगते रहते थे वगैरह वगैरह.
भगवा पर बवाल : पीछे छोड़ गये मूल सवाल
बात भगवा खेमे के लिए स्वभाविक तौर पर अपाच्य थी सो उन्होंने इसे कांग्रेसी साजिश करार दिया. लेकिन हिन्दू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि कुछ ज्यादा ही आहत हो गए और उन्होंने कहा, सुना है राहुल गांधी समलैंगिक हैं और उनके पार्टनर ज्यातिरादित्य सिंधिया हैं . बौखलाए स्वामी जी ने राहुल गांधी के वर्जिनिटी टेस्ट की भी सलाह दे डाली.
देहाती लिहाज से तो हिसाब यहीं बराबर हो गया. माना जाना चाहिए कि तुमने हमारे आदर्श को समलैंगिक कहा तो हमने भी तुम्हारे नायक को भी उसी श्रेणी में ला खड़ा कर दिया . सावरकर और गोडसे को लेकर 2 साल से कुछ ज्यादा ही हल्ला ही मचा हुआ है. भगवा खेमे की कोशिश यह है कि गांधी की हत्या की उन वजहों से लोग सहमत हो जाएं जो उन्होंने और उनके भाई गोपाल गोडसे ने गांधी वध क्यों में लिखी हैं. ज्यादा तो नहीं एकाध लोग सहमत हो भी रहे थे कि भोपाल में कांग्रेस ने बहस और मुद्दा समलैंगिकता को बनाने में सफलता हासिल कर ली .
कांग्रेस चालाकी दिखाते यह दलील दे रही है कि ऐसा वह अपनी तरफ से नहीं कह रही कि सावरकर और गोडसे के बीच शारीरिक संबंध थे बल्कि यह बात तो डामिनिक लेपियर और लैरी कालिन की चर्चित किताब फ्रीडम एट मिड नाइट में कुछ इस तरह लिखी है कि ब्रह्मचर्य धारण करने से पहले नाथूरम गोडसे के एक ही शारीरिक संबंध का ब्योरा मिलता है. यह समलैंगिक संबंध थे. उनका पार्टनर था उनका राजनैतिक गुरु वीर सावरकर .
लेकिन चक्रपाणि यह नहीं बता पा रहे कि राहुल गांधी के बारे में ऐसा कहां उन्होंने पढ़ लिया इसलिए कांग्रेस जैसा कोई उद्धरण वे दे भी नहीं पाये. गौरतलब है कि भगवा खेमा आजादी के बाद से यह प्रचार लगातार पूरी निष्ठा से करता रहा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू हिन्दू नहीं बल्कि मुसलमान थे, इस नाते पूरा नेहरू गांधी खानदान आधा मुस्लिम और आधा ईसाई है. सोनिया गांधी एक बार डांसर थीं जिनसे राजीव गांधी ने शादी कर ली. चूंकि राजीव के पिता फिरोज मुसलमान थे इसलिए यह पूरा परिवार ही गैर हिन्दू और वर्ण संकर है.
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अगर यह प्रचार जायज है तो हक तो कांग्रेस का भी बनता है कि वह हिंदूवादी नेताओं के बारे में कुछ भी कहे अब तो इसमें समलैंगिकता जैसे वर्जित विषय का भी तड़का लग गया है लेकिन पूरा भगवा खेमा एकजुट होकर कांग्रेस को नहीं घेर पा रहा क्योंकि महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुवाई बाली सरकार में कांग्रेसी हिस्सेदारी है. शिवसेना कांग्रेस का विरोध जरूर सावरकर को लेकर कर रही है लेकिन उसके तेवर बेहद औपचारिक हैं.
बहरहाल हो हल्ले के बाद लोगों की दिलचस्पी गोडसे, सावरकर और राहुल गांधी से हटकर समलैंगिक सम्बन्धों में फिर से बढ़ रही है कि ये कैसे और क्यों होते हैं. इसके पहले 6 सितंबर 2018 को जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखते समलैंगिकों के सम्मान और स्वाभिमान की बात कही तो थी तो पहली बार लोगों को महसूस हुआ था कि वे अब तक किस आधार पर समलैंगिकों और समलैंगिकता से घृणा करते रहे थे. तब कोई स्पष्ट जवब उन्हें नहीं सूझा था और न ही आज सूझ रहा.
सभी धर्म समलैंगिक संबंधो के विरोधी हैं क्योंकि ये संबंध व्यक्तिगत स्वतन्त्रता वाले होते हैं और धर्म गुरुओं की दुकानदारी खराब करते हैं. एक कड़वा सच यह भी है कि इन्हीं लोगों के बीच इस तरह के संबंध ज्यादा पनपते हैं. इस लंबी चौड़ी बहस में न पड़ा जाये तो भी दो टूक कहा जा सकता है कि अगर सावरकर समलैंगिक थे तो क्या और राहुल गांधी भी हैं तो भी क्या.
जानबूझ कर इस व्यक्तिगत आनंददायक संबंध को शर्मनाक और गंदा बताने का मौका नेताओं को मिल गया है तो वे इसे चूक भी नहीं रहे. उल्टे इन्हें तो अब कहना यह चाहिए कि समलैंगिक संबंध शारीरिक होने के साथ साथ भावनात्मक भी होते हैं और ये शर्म की नहीं बल्कि फख्र की बात है.
कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला विवादित शो ‘बिग बौस 13’ वीकेंड का वार इस हफ्ते बेहद धमाकेदार होने वाला है. सलमान खान कंटेस्टेंट की क्लास लगाने वाले हैं, तो वहीं एक कंटेस्टेंट घर से बेघर भी होगा. खबरों के अनुसार, शेफाली बग्गा इस हफ्ते घर से बाहर होंगी. लेकिन इसकी कोई औफिशियल जानकारी नहीं मिली है.
इस हफ्ते ‘बिग बौस 13’ वीकेंड का वार देखने से ही पता चलेगा कि कौन- से कंटेस्टेंट घर से बेघर होंगे. आपको बता दें कि इस बार 6 कंटेस्टेंट नौमिनेट हुए थे. इनमें रश्मि देसाई, शेफाली जरीवाला, मधुरिमा तुली, विशाल आदित्य सिंह, माहिरा शर्मा, शेफाली बग्गा का नाम शामिल था. शहनाज गिल ने खुद को मिले स्पेशल पावर का इस्तेमाल करते हुए रश्मि देसाई को नौमिनेट किया था.
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इस शो में शेफाली बग्गा ने वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट के तौर पर एंट्री ली थी. इससे पहले भी वो एक बार घर में आई थीं. लेकिन एक महीने बाद ही वो घर से बाहर हो गई. फिर दोबारा मधुरिमा तुली संग शेफाली ने एंट्री ली. आपको बता दें, इस वीकेंड का वार में सलमान खान रश्मि को घर से बाहर जाने के लिए भी कहेंगे. इसके साथ ही सिद्धार्थ और असीम को भी जमकर खरी खोटी सुनाएंगे.
“बच्चे मन के सच्चे”, ये हम सब कहते सुनते आए हैं .अपनी निश्छल मुस्कान और मासूमियत से सबका मन मोह लेने वाले बच्चे सभी को भाते हैं लेकिन कभी कभी यही बच्चे कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि हम सब सोचते रह जाते हैं कि बालमन में ऐसी आपराधिक मानसिकता कैसे जन्मी पता ही नहीं चला .
बदलते समय के साथ अब बहुत जरूरी हो गया है कि माता पिता और परिवार के बुजुर्ग सभी बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखे.. बच्चे का सामान्य से हटकर कुछ अलग व्यवहार आने वाली परेशानी का संकेत हो सकता है .
बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए पारिवारिक वातावरण का अच्छा और सुमधुर होना बहुत जरूरी होता है. बड़ों की आपस की बातें भी कभी कभी बच्चों को परेशान कर सकती है जिसका असर उनके विकास पर पड़ सकता है जैसे कि माता पिता या बड़े बुजुर्गों के बीच कोई मतभेद है तो उस पर बच्चों के सामने कहा सुनी न करें, साथ ही आपस में बात करते समय भी शब्दों का चुनाव भी बेहतर करें . क्यू कि बच्चें जो देखते सुनते हैं वैसा ही आचरण करते हैं केवल स्कूल का बेहतर माहौल उनके व्यक्तित्व का निमार्ण नहीं कर सकता है.
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बच्चें जहां और जिनके बीच खेलते और बातचीत करते हैं उनके संबध में भी जानकारी रखे और खुद बच्चों से सीधे पूछताछ भी करते रहे . केवल बातचीत करके आप आराम से बच्चों के बारें में जानकारी जुटा सकती है, बच्चों का दोस्त बनकर बात करना, उनकी समस्या हल करना बहुत जरूरी हो गया है .
2017 में गुरुग्राम के रेयान पब्लिक स्कूल में जिस अबोध बच्चे की हत्या हुई थी उसके पीछे का कारण जानकर तो हम सबको बहुत हैरानी हुई थी.. केवल एक्जाम, PTM टालने के लिए एक बच्चे ने दूसरे की हत्या का सहारा लिया . जिस बच्चे को एक्जाम का डर था वो अपनी मां और टीचर से भी बात कर सकता था, अपनी परेशानी कह सकता था अगर उससे टीचर और माता पिता का दोस्ताना व्यवहार होता तो . साथ ही सोचने वाली बात ये भी थी कि उसके मन में हत्या का विचार और प्लान कैसे आया..? ऐसी सोच और विचार एक दो दिन में नहीं पनपते हैं.. घर, स्कूल के दोस्त या कोई TV सीरियल से सम्भवतः प्रेरित हुआ हो . उसके व्यवहार में परिवर्तन भी दिखने लगा होगा अगर घर से कोई भी नोटिस करता तो बच्चा अपराधी बनने से बच जाता है और दूसरा बच्चा जीवित होता.
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ऐसी छोटी छोटी बातों का बालमन पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है.. पहले के समय में झाड़ फूक, टोना टोटका से लोग इलाज़ की कोशिश करते थे, लेकिन अब चाइल्ड psycho.ogy के लिए अलग से स्टडी की जाती है और बच्चे को समझ कर उन्हें counse.ing द्वारा बेहतर करने का प्रयास किया जाता है . अगर बच्चों में कभी भी कोई बदलाव या चिड़चिड़ापन दिखे तो उनसे बात करें और समस्या न समझ आये तो डौक्टर की मदद ले.
बच्चों में स्वस्थ आदतों का विकास करें, उन्हें पौष्टिक खाना की आदत डाले, पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद के लिए भी समय दे . कुछ समय खुद भी उनके साथ बिताए और उस समय उनके बारें में, दोस्त, टीचर, स्कूल और पसंद नापसंद पर उन्हें बिना टोके उनकी बात सुनें.
‘यह घटना तो सोच के बाहर की है. पढ़ने, सुनने और देखने में यही आता है कि बहू को घर से निकाला गया है पर पत्नी को घर में रख कर पति घर छोड़ गया, ऐसी घटना तो कभी देखी या सुनी नहीं.’ जशोदा चाय का पानी रखते हुए बड़बड़ा रही थी, ‘बेचारा करेगा भी क्या? यह औरत है ही पूरी मर्दमार.’
कावेरी ने डांटा, ‘‘चुप कर. यह मर्दमार हो या न हो पर वह पूरा शैतान है.’’
‘‘यह उस का घर है, वह क्यों जाएगा घर छोड़ कर. तुम इसे निकालो घर से तब भैया लौटेगा. न रंग, न रूप, न अदब न कायदा…आसमान पर पैर धर कर चलती है.’’
‘‘अब तू चुप भी करेगी या नहीं? कुछ खाया इन लोगों ने?’’
‘‘नहीं, पहले लड़ते रहे फिर भइया चला गया.’’
‘‘चाय बना कर खाना तैयार कर. 11 बजने को हैं. चाय 2 कप बनाना.’’
टे्र में 2 प्याली चाय ले कर कावेरी अंदर आई और स्टूल पर टे्र रख दी. कावेरी को देखते ही रीटा ने सिर झुका लिया. आज कावेरी ने इतने दिनों में पहली बार बहू को नजर भर देखा. इतने दिन मन में इतना विराग था कि मुंह देखने की इच्छा ही नहीं हुई. आज मैक्सी पहने, सिर झुका कर बैठी बहू बड़ी असहाय और मासूम लग रही थी. कावेरी के मन में टीस उठी. कुछ भी हो, कैसे भी घर की बेटी हो पर उस का बेटा इसे पत्नी का दर्जा दे कर घर लाया है, उस की पुत्रवधू है और यह परिचय समाज ने स्वीकार भी कर लिया है तो कितनी भी अलगथलग रहे, है तो उस के परिवार का हिस्सा ही…और चूंकि वह इस परिवार की मुखिया है तो परिवार के हर सदस्य के सुखदुख का दायित्व उस का ही है.
कावेरी ने पहली बार बहू के सिर पर अपना हाथ रखा और नरम स्वर में बोली, ‘‘चाय पी लो, बेटी.’’
उस की आंखें डबडबा गईं. रुलाई रोकने के लिए दांतों तले होंठ दबाया, पर चाय उठा ली और धीरेधीरे पीने लगी. कावेरी ने अपना कप उठा लिया और उस के पास बिस्तर पर बैठ गई और बहू की तरह पैर लटका कर वह भी चाय पीने लगी. चाय समाप्त कर दोनों ने कप टे्र में रख दिए. तब कावेरी बोली, ‘‘बताओगी कि तुम दोनों का झगड़ा क्या है?’’
यह सुन कर उस का सिर और झुक गया.
‘‘चिंता मत करो,’’ कावेरी ने बहू को समझाते हुए कहा, ‘‘ऐसा कभीकभी हो जाता है. बिल्लू को गुस्सा जल्दी आता है तो उतर भी जल्दी जाता है. देखना कल ही आ जाएगा.’’
वह इतना सुन कर सुबक उठी और बोली, ‘‘अब वह नहीं आएगा.’’
‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’ चौंकी कावेरी, ‘‘लौटेगा क्यों नहीं?’’
‘‘झगड़ा तलाक को ले कर हो रहा था.’’
‘‘तलाक, पर क्यों?’’
‘‘वह मांग रहा था और मैं दे नहीं रही थी इसलिए.’’
‘‘क्या कह रही हो? तुम दोनों ने तो अपनी पसंद से शादी की थी. क्या तुम्हारे बीच प्यार नहीं था?’’
‘‘प्यार तो था तभी तो भरोसा किया था. पर उस के आफिस में एक नई रिसेप्शनिस्ट आई है और अब बिल्लू उसे पसंद करने लगा है. कह रहा था कि मुझ से तलाक ले कर उस से शादी करेगा.’’
यह सुन कर जलभुन गई कावेरी.
‘‘शादी मजाक है क्या और मेरा घर भी होटल नहीं कि जब जिसे चाहे ले कर आ जाए. अब गया कहां है.’’
‘‘तलाक नहीं मिला तो किराए पर एक फ्लैट लिया है. वे दोनों वहीं लिव टू गेदर करेंगे.’’
कावेरी के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई.
‘‘बिना विवाह किए ही साथ रहेंगे?’’
‘‘आजकल बहुत से युवकयुवतियां इस तरह साथ रह रहे हैं.’’
दोनों देर तक चुप रहीं. फिर रीटा बोली, ‘‘आप से एक प्रार्थना है.’’
‘‘बोलो.’’
‘‘आप मां हैं पर मैं ने आप को कभी सम्मान नहीं दिया. मां कहने का अधिकार भी नहीं लिया पर आप से विनती है कि कुछ दिन मुझे अपने घर रहने देंगी?’’
‘‘यह…यह तुम क्या कह रही हो?’’
‘‘मांजी, मेरे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है. खोजने में थोड़ा समय लगेगा…तब तक…’’
‘‘तुम्हारे मातापिता?’’ कावेरी ने बीच में उस की बात काटते हुए पूछा.
‘‘मैं अनाथ आश्रम में पली हूं. मातापिता कौन हैं? हैं भी या नहीं, मुझे नहीं पता. आश्रम अच्छे स्तर का था. मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी तो ट्रस्ट ने मुझे पढ़ाया. स्कालरशिप भी मिलती थी. बी.एससी. के बाद कंप्यूटर की डिगरी ली. चाहती थी डाक्टर बनना पर ट्रस्ट ने इतनी लंबी पढ़ाई की जिम्मेदारी नहीं ली. इस के बाद मुझे यह नौकरी मिल गई. मुझे 20 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है सो कहीं भी किराए पर घर ले सकती हूं पर डर लगता है सुरक्षा कौन देगा. मैं लड़कियों के किसी होस्टल की तलाश में हूं, मिलते ही चली जाऊंगी. बस, तब तक…’’
‘‘कैसी बातें कर रही हो. तुम इस घर में ब्याह कर आई हो. इस घर की बहू हो तो मेरे रहते तुम अकेले किराए के घर में रहोगी?’’
इतनी देर में झरझर रो पड़ी रीटा. कावेरी का मन ममता से भर उठा. उसे लगा कि वह उस की अपनी बेटी है. उस ने रीटा को स्नेह से सीने से लगा लिया और बोली, ‘‘रोना नहीं. कभी मत रोना. आंसू औरत को कमजोर करते हैं और कमजोर पर पूरी दुनिया हावी हो जाती है, चाहे वह पति हो या बेटा. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम मेरे पास ही रहोगी, कहीं नहीं जाओगी.’’
रीटा ने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘अगर बिल्लू लौट आया और घर छोड़ने को बोला तो?’’
‘‘बेटी, यह घर मेरा है, उस का नहीं. इस में कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा इस का फैसला मैं करूंगी. हां, शराफत के साथ लौटे और हमारे साथ समझौता कर के रहना चाहे तो वह भी रहे.’’
‘‘मांजी, मैं उसे कभी तलाक नहीं दूंगी, यह तो तय है.’’
‘‘कभी मत देना. देखो, उस ने मेरा बहुत अपमान, अनादर किया है पर मैं ने उसे घर से नहीं निकाला. जानती हो क्यों? वह इसलिए कि 2 प्राणियों का परिवार, एक गया तो बचेगा क्या? अब वह खुद घर छोड़ गया है. अब लौटना है तो हमारी शर्तों पर लौटेगा नहीं तो जाए.’’
‘‘पर वह जबरदस्ती…’’
‘‘घर में फोन है और पुलिस थाना भी दो कदम पर है. चलो उठो, नहाधो कर खाना खाओ.’’
रीटा अपनी सास से लिपट गई. आज उसे पहली बार महसूस हुआ कि मां का प्यार व स्नेह क्या होता है.
सासबहू दोनों उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के निवासी हैं तो निकटता आएगी कहां से? जो भी हो समय रुकता नहीं, हर रात के बाद तारीख बदलती है और हर महीने के बाद पन्ना पलट जाता है. कलर बदल कर दूसरा लगा और उस के भी कई पन्ने बदल गए. तभी अचानक एक दिन कावेरी को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है. जो गाड़ी सीधी सपाट पटरी पर दौड़ रही थी वह अब झटके खाने लगी है.
जशोदा कमरे में थाली दे आती है. बेटा तो अब भी घूमने निकल कर जाता तो रात में खा कर आता है पर बहू घर में ही रहती है. कभीकभार गई तो जशोदा से बोल जाती है कि उस का खाना न रखे. बहू में कोई भी अच्छाई नहीं थी, औरतों में जो सहज गुण होते हैं वह भी उस में नहीं थे पर एक बात अच्छी थी जो कावेरी को पसंद थी. वह यह कि बहू बहुत मीठा बोलती थी. एक तो वह बोलती ही कम थी, कभी पति या जशोदा से बोली भी तो इतनी धीमी आवाज में कि अगले को सुनने में कठिनाई हो. पर अब कभीकभी बंद दरवाजे के उस पार से उस की आवाज बाहर आ कर कावेरी के कानों से टकराती. शब्द तो समझ में नहीं आते पर वह उत्तेजित है, गुस्से में है यह समझ में आता है. यह झल्लाहट भरा स्वर सीधेसीधे मनमुटाव का संकेत है. कावेरी इतना अवश्य जान जाती.
कावेरी चिंता में पड़ गई. शादी को थोड़े दिन ही हुए हैं और अभी से आपसी झगड़ा. यह कोई अच्छी बात तो नहीं है. बेटा बदमिजाज के साथ स्वार्थी भी है यह तो जानती है पर मां के साथ जैसा किया वैसा पत्नी के साथ नहीं चल सकता, इतनी सी बात वह न समझे इतना तो मूर्ख नहीं.
अरे, मां से जन्म का बंधन है, हजार अपमान सह कर भी बेटे को छोड़ कर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठेंगे लेकिन पत्नी तो औपचारिकता के बीच बंधा रिश्ता है, जब चाहे तोड़ लो. उस पर अपना रौबदाव चलाने का प्रयास करेगा तो वह क्यों सहेगी, उस पर बराबर की कमाने वाली पत्नी.
गलती बहू की ही है यह कौन जाने? और जान कर होगा भी क्या? उन का जीवन वे जी रहे हैं, अपना जीवन कावेरी जी रही है. यही तर्क दे कर अपने मन को शांत करती. पर यह एक कांटा उस के मन को चुभता रहता कि पल्ला झाड़ लेने से समस्या का समाधान नहीं होता…बहू सुंदर एकदम नहीं, उसे पसंद भी नहीं, चेहरामोहरा जैसा भी हो कावेरी को उस की आंखें पसंद थीं. बड़ीबड़ी 2 उजली आंखों में जीवन का सपना भरा रहता था. अब वह आंखें बुझीबुझी सी हो गई हैं. ऐसा क्यों हुआ? यह तो प्रेमविवाह है. एकदूसरे को जांचपरख, समझबूझ कर दोनों विवाह तक पहुंचे हैं. थोपी हुई शादी नहीं थी कि एकदूसरे को समझने का अवसर नहीं मिला. फिर ऐसा क्यों हुआ? 2 साल भी नहीं हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षण ही समाप्त हो गया. अभी तो सामने पूरा जीवन पड़ा है. ऐसे क्या ये सारा जीवन काटेंगे. अपनीअपनी धुन पर चलने लगे तो जीवन की गाड़ी चलेगी कैसे? विराग, विद्वेष का कारण क्या है पता चले तो समझाया भी जा सकता है पर अंधेरे में वह तीर चलाएगी किधर?
जशोदा से कुछ कहना बेकार है. वह तो पहले से ही जलीभुनी बैठी है. रोज एक बार यह जरूर कहती है कि आंटी, इन को अपने घर से भगाओ. इन से तो किराएदार भले जो किराया भी देंगे, देखभाल भी करेंगे.
पहले ही दिन से उस ने बहू से एक दूरी बना ली थी और उसे बराबर बना कर रखा था. सोचा था नई बहू है, दूरी को मिटाने के लिए पहल करेगी पर नहीं, अब तक उस ने दूरी मिटाने की पहल करना तो दूर उस दूरी की दीवार पर पक्के पलस्तर की परत चढ़ा दी. लेकिन हालात ने करवट ली, बहू की दूरी मिटाने के लिए उसी को पहल करनी पड़ी. वह रोज सुबह पार्क से घंटे भर में टहल कर लौट आती है पर उस दिन पार्क के लिए श्रमदान का कार्यक्रम चल रहा था इसलिए लौटने में 3 घंटे लग गए. घर के अंदर पैर रखते ही मन धक्क सा कर उठा, एक अनजान आशंका से पीडि़त हो उठी वह. वैसे तो उस का घर शांत ही रहता है पर आज उसे घर के अंदर अजीब सा सन्नाटा लगा.
बेटे के कमरे का दरवाजा पूर्व की भांति बंद है पर जशोदा का पता नहीं कि वह कहां है.
पहले कावेरी ने कमरे में जा कर कपड़े बदले फिर चाय के लिए जशोदा को खोजती हुई पीछे के बरामदे में आई तो देखा जशोदा वहां छोटी चौकी पर सिर पकड़े बैठी थी. उसे देखते ही वह रो पड़ी, ‘‘घर बरबाद हो गया, मांजी.’’
सन्न रह गई कावेरी.
‘‘क्या हुआ? रो क्यों रही है?’’
‘‘भैया घर छोड़ गया.’’
‘‘क्या? क्या दोनों चले गए?’’
‘‘नहीं…केवल भैया गया है. वह रानीजी तो कमरे में सो रही हैं. आंटी, आप के जाने के बाद दोनों में खूब झगड़ा हुआ. भैया अपने कपड़े 2 अटैचियों में भर कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया.’’
अब कावेरी भी उसी चौकी पर बैठ गई.