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अपराधिनी : भाग 1

लेखिका-  रेणु खत्री

पुरानी यादों के पन्ने समेटे आज  बरस बीत गए, फिर भी उस तसवीर को देखते ही पता नहीं क्यों मेरा मन अतीत में लौट जाता है. जब से शैली को टीवी पर देखा है, उस से मिलने की चाहत और भी बलवती हो गई. वह कैसे समाजसेविका बन गई? उसे क्या जरूरत थी यह सब करने की? उस का पति तो उसी की भांति समझदार ही नहीं, बल्कि कार की एक बड़ी कंपनी का मालिक भी था. ऐसे में वह इस क्षेत्र में कैसे आ गई?

मेरे अंतर्मन में ढेरों प्रश्न उमड़घुमड़ रहे थे. मैं उस से मिलने को बेताब हो उठी. पर न पता, न ठिकाना. कहां खोजूं उसे? यही सब सोचतेसोचते 4 दिन बीत गए. और फिर मेरे घर की चौखट पर जब मेरी प्रिय पत्रिका ने दस्तक दी तो उस में छपी उस की समाजसेवा की कुछ विशेष जानकारी से उस की संस्था का पता चला. उसी से उस का फोन नंबर मालूम हुआ. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.

मैं ने फोन लगाया. वही चिरपरिचित मधुर आवाज में वह ‘‘हैलो, हैलो…’’ बोले जा रही थी. और मेरे शब्द मुख के बजाय आंखों से झर रहे थे. मुझ से कुछ भी कहते नहीं बन रहा था. आखिर अपमान भी तो मैं ने ही किया था उस का. अब कैसे अपने किए की माफी मांगूं? फोन कट गया. मैं ने फिर मिलाया. अब भी बात करने की हिम्मत मैं नहीं कर पाई.

अब की बार वहीं से फोन आया. मैं ने घबराते हुए फोन उठाया. आवाज आई, ‘‘हैलो जी, कौन? लगता है आप तक मेरी आवाज नहीं पहुंच पा रही है.’’ उस का इतना कहना भर था कि मैं एकाएक बोल उठी, ‘‘शैली.’’

‘‘हांहां, मैं शैली ही हूं. आप कौन हैं?’’

‘‘मैं, मैं, प्रिया, तुम्हारी बचपन की सहेली.’’

वह चौंकी, ‘‘प्रिया, तुम, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि मैं अभी भी तुम्हें याद हूं.’’

‘‘प्लीज शैली, मुझे माफ कर दो. उस दिन मैं ने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया. सच मानो तो आज तक अपनेआप से नजरें मिलाते हुए आत्मग्लानि होती है. उस दिन के बाद से कितना तड़पी हूं तुम से माफी मांगने के लिए,’’ मैं लगातार बोले जा रही थी.

वह थोड़ा रोब में बोली, ‘‘बस, बहुत हुआ. और हां, तुम किस बात की माफी मांग रही हो? माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने तुम्हारे सपनों को तोड़ा. अगर तुम सचमुच मुझ से नाराज नहीं हो, तो मैं हैदराबाद में हूं. क्या तुम मुझ से मिलने आओगी? अपना पता मैं मोबाइल पर अभी मैसेज किए देती हूं. और प्रिया, तुम कहां हो?’’

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‘‘मैं यहीं दिल्ली में ही हूं. आज तो तुम से बात करने से भी ज्यादा खुशी की बात यह है कि अगले महीने ही मेरे पति की औफिस की मीटिंग हैदराबाद में ही है. अब की बार मैं भी उन के साथ ही आऊंगी,’’ मैं ने कहा.

हम दोनों ही खुशी से खिलखिला उठे व जल्द ही एकदूसरे से मिलने की चाहत लिए अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए.

शशांक के औफिस से लौटते ही मैं ने उन के आगे अपनी बात रख दी, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वैसे भी याशिका और देव तो होस्टल में हैं. याशिका का इसी वर्ष आईआईटी में चयन हो गया है. वह कानपुर में है. और देव कोटा में अपने मैडिकल प्रवेश टैस्ट की तैयारी में व्यस्त है.

अब शैली से मिलने की मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. यों लगने लगा मानो दुख व नफरत के काले मेघ छंट गए और खुशियों की छांव फिर से हमारे दिलों पर दस्तक देने को तैयार है. शायद आंसू और खुशी के इस सामंजस्य का नाम ही जिंदगी है.

अब तो मेरा पूरा ध्यान ही शैली पर केंद्रित होने लगा. फिर फोन मिलाया. यह जानने के लिए कि उस के पति कैसे हैं, बच्चे कितने हैं, कितने बड़े हो गए.

पर शैली ने फोन पर कुछ भी बताने से मना कर दिया. मात्र इतना कहा, ‘‘अभी इसे राज ही रहने दो. मिलने पर सब बताऊंगी.’’

अपनी कल्पना में खोई मैं 2 बच्चों के हिसाब से उन के लिए कुछ उपहार आदि खरीद लाई.

अगले दिन शशांक के औफिस जाने के बाद मैं ने अपना पुराना वह अलबम निकाला जो शादी के समय दादी ने मेरे कपड़ों के साथ रख दिया था. इस में शैली और मेरी बचपन की कई तसवीरें थीं. उन्हें देखते ही मुझे वर्षों पुराने उन रंगों की स्मृति हो आई जो कभी मेरे जीवन में गहरे थे व कभी उन रंगों की चमक फीकी पड़ गई थी. उन यादों के अलगअलग रूप मेरे सामने चलचित्र की भांति आते जा रहे थे.

कितना प्यारा था वह बचपन, जो कभी तो मां की साड़ी के आंचल में छिप जाता था और कभी झांकने लगता था दादी की प्रेरणादायक कहानियों के माध्यम से.

शैली और प्रिया की जोड़ी पूरे स्कूल में मशहूर थी. हमारे तमाम रिश्तों में हमारी दोस्ती का रिश्ता ही इतना प्रगाढ़ और अनमोल था कि स्कूल में, चाहे अध्यापिका हो अथवा सहेलियां, हम दोनों का नाम जोड़ कर ही बोला जाता था -शैलप्रिया.

शैली, जितनी बाहर से खूबसूरत सी, उस से कहीं अधिक वह दिल से भी सौंदर्य की धनी थी. हमारा बचपन ढेर सारे अनुभवों और किस्सों से भरा था. वह अपने मातापिता की इकलौती लाड़ली थी और मेरे दोनों छोटे भाइयों को वह राखी बांधती थी.

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हमारा घर भी पासपास ही था. उस के पापा यहीं दिल्ली में ही किसी गैरसरकारी कंपनी में कार्यरत थे व उस की मां गृहिणी थीं, जबकि मेरे पापा का अपना कारोबार था और मम्मी अध्यापिका थीं. कालेज में भी हमारे विषय समान थे और कालेज भी हम दोनों का एक ही था. हम ने बीए किया था. उस के बाद हमारी दोस्ती पर पता नहीं किस की बुरी नजर लग गई जो हम एकदूसरे से 20 सालों से जुदा हैं. सोचतेसोचते ही मेरी आंखें नम हो आईं, फिर भी विचारों की झड़ी दिलोदिमाग में गोते खाती रही.

कुदरत व समय का हमारे जीवन से गहरा नाता है. हम तो इस मायावी दुनिया में मात्र माध्यम बनते हैं. जबकि कुदरत बड़ी करामाती है जो किस का समय, किस का काम, कहां, कैसे बांट दे, कोई नहीं जानता. फिर भी हम बुनते हैं सपनों के महल.

उस दिन भी जिंदगी ने एक रास्ता तय किया था जिस की सुखद फूलोंभरी राह पर मैं ने चलने के सपने देखे. लेकिन कुदरत ने उस दिन मेरा समय यों पलट दिया मानो मेरे अहं पर किसी ने भयानक प्रहार किया हो.

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जिम जाने वाली महिलाएं आकर्षक हैं या नहीं

स्त्रीत्व को परिभाषित करने के लिए शब्द काफी नहीं हो सकते. स्त्री होना तो खुद में एक अनोखा अनुभव है जिस का सिर्फ एहसास ही किया जा सकता है. पुरुष ने हमेशा से ही स्त्री को कमजोर के रूप में ही चित्रित किया है. एक मजबूत शरीर और भारी आवाज वाली स्त्री में वे सौंदर्य बोध नहीं देख पाते. पर, यह बात पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त दिखती है.

दरअसल, स्त्री को हमेशा से ही एक भोग्या की तरह ही देखा गया है. समाज में उसे दोयम दर्जा दिया गया है. नारी कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारों के अंदर ही बनाया गया. क्रमिक रूप से नारी के मन में नाजुकता, कोमलता और सेवापरायणता जैसे शब्द बोए गए हैं. स्त्री को सिर्फ बच्चों को जन्म देना है, इसी में उस का जीवन पूर्ण होना है, ऐसी बातें उसे धर्म और सेवा के नाम पर बताई गई हैं.

पुरुष अपने मन ही मन में यह जानता रहा है कि स्त्री उस से हर क्षेत्र में श्रेष्ठ है. पुरुष को हमेशा ही मन में यह डर सताता रहता है कि कहीं स्त्री उस से आगे न बढ़ जाए और इसलिए पुरुष ने स्त्री को ममता की मूरत और घर की लक्ष्मी जैसे शब्दों से विभूषित किया है. उसे नख से ले कर शिख तक तरहतरह के आभूषणों से लाद दिया ताकि स्त्री को भी उस के विशेष होने का खयाल लगातार बना रहे और उस के साए में पुरुष अपना मिथ्या अहंकार पोषित करता रहे.

यह एक मनोविज्ञान है कि पुरुष का मिथ्या अहंकार ही है कि वह स्त्री को मात्र देह की तरह ही देखता है जिस का प्रमाण पौर्न फिल्में तथा महिलाओं के प्रति अश्लील चुटकुलों का प्रचार होना है. पुरुष का मिथ्या अहंकार तब चकनाचूर हो जाता है जब स्त्री उस को पछाड़ कर सामाजिक दौड़ में आगे निकलने लगती है.

आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां महिलाएं पुरुषों से पीछे हों. यहां तक कि बौडीबिल्ंिडग और बौक्ंिसग जैसे दमखम वाले खेलों में भी महिलाओं का बोलबाला बढ़ता जा रहा है. निश्चित रूप से इन खेलों को खेलने से और जिम में जा कर कसरत व सिक्स पैक बनाने से महिलाओं के शरीर में बाहरी रूप से तो परिवर्तन होता ही है, वे पहले से अधिक शक्तिशाली भी हो जाती हैं.

बहुत से रूढि़वादी पुरुष इन स्त्रियों को स्त्री मानने से ही इनकार कर देते हैं और अपने पक्ष में उन का कहना होता है कि कसरत करने से महिलाओं का नारी सुलभ सौंदर्य खो जाता है. जबकि सच यह है कि ऐसी महिलाएं जो जिम में कसरत करती हैं और अपने शरीर का ध्यान रखती हैं, उन का सौंदर्य तो और भी निखर आता है. साथ ही साथ, उन में गजब का आत्मविश्वास भी होता है. डब्लूडब्लूई में लड़ने वाली महिलाओं का आकर्षण देखते ही बनता है.

एक शोध के अनुसार, जो महिलाएं नियमित कसरत करती हैं, उन का स्वास्थ्य तो अच्छा रहता ही है, वे गृहस्थी से जुड़े फैसले भी बेहतर ढंग से ले पाती हैं.

दरअसल, पुरुष यह सहन ही नहीं कर पाते कि जिन खेलों में पुरुषों का एकाधिकार था उन खेलों में भी महिलाएं भागीदार बनने लगी हैं. अब इन पुरुषों को कैसे समझाया जाए कि भला सिक्स पैक बना लेने से कोई महिला खतरनाक कैसे बन जाएगी.

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कसरत करने और जिम जाने के अनेक फायदे हैं. बौलीवुड स्टार्स ने कसरत को अपने जीवन का एक हिस्सा बना रखा है. चूंकि महिलाओं के शरीर की प्रकृति कुछ इस प्रकार की है कि उन्हें फैट जल्दी बढ़ने का खतरा रहता है, ऐसे में यदि कोई महिला सिक्स पैक बनाती है तो किसी पुरुष को इस से घबराने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि पुरुष को तो और खुश होना चाहिए क्योंकि स्त्री या पुरुष कोई भी यदि अपनेआप को फिट रखता है तो वह जीवन के हर रूप का आनंद ले सकता है.

एक तरफ तो पुरुष लगातार यह कहते पाए जाते हैं कि समाज में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए बचपन से ही लड़कियों को ट्रेनिंग देनी चाहिए और दूसरी तरफ उन्हें महिलाओं का जिम जाना स्त्रीत्व का विनाश लगता है. यह दोगलापन पुरुषों की दोतरफा सोच और दोहरे व्यक्तित्व को दर्शाता है.

मैरी कौम, जिन्होंने बौक्सिंग के क्षेत्र में अपना और अपने देश का नाम रोशन किया है, ने भी स्त्री हो कर बौक्ंिसग जैसा खेल अपनाया. हालांकि, जब उन्होंने इस खेल को अपनाने की बात की तो उन के पिता और घरवाले इस खेल के खिलाफ थे, फिर भी उन्होंने अपने घरवालों की मरजी के खिलाफ जा कर इस खेल को अपनाया और अपने घर की आर्थिक हालत को बेहतर भी बनाया.

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इसी प्रकार, गीता फोगाट की कहानी भी अत्यंत प्रेरणा देती है. जिन लोगों को स्त्री के कसरती होने में सुंदरता नहीं दिखती है उन्हें गीता के जीवन को देखना चाहिए. गीता फोगाट का जन्म हरियाणा के एक गांव में हुआ. उन के गांव में लड़कियों को एक अभिशाप के रूप में देखा जाता था. गीता के पिताजी कर्णम मल्लेश्वरी से प्रेरित थे और इसीलिए उन्होंने गीता को पहलवानी के कुछ गुर सिखाने शुरू किए. इस का उन के गांव वालों ने विरोध किया. फिर भी उन्होंने गीता को सिखाना जारी रखा. आगे चल कर गीता ने सिर्फ अपने गांव का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया.

गीता फोगाट हों, पी टी उषा हों या कर्णम मल्लेश्वरी हों, सभी ने अपने क्षेत्र में भारत का नाम ऊंचा किया. फिर भी कुछ मतांध पुरुष कहते हैं कि जिम में जाने वाली स्त्रियां सुंदर नहीं होतीं. दरअसल, ऐसे लोगों को अपना इलाज कराने की जरूरत है.

कोर्ट में वृद्ध

केंद्र व राज्य सरकारों ने अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण संबंधी कानून बनाए हैं परंतु इन कानूनों तथा अपने अधिकारों की ज्यादा जानकारी बुजुर्गों को नहीं है. जरूरत है इन कानूनों के व्यापक प्रचार की ताकि अपने अधिकारों को जानते हुए वृद्ध अपनी संतानों की उपेक्षा का शिकार न बनें.

पिता उंगली थाम कर बच्चों को सहारा देते हैं. उन का पालनपोषण करते हैं. पिता से ही बच्चों के सारे सपने पूरे होते हैं. पिता के कारण ही बाजार के सारे खिलौने बच्चों के होते हैं. लेकिन जब वही पिता अपने ही बच्चों से प्रताड़ित होते हैं, तो जरा सोचिए उन के दिल पर क्या बीतती होगी? जीवन की सांझ में सहारा देने की जगह बच्चे अगर जख्म देने लगें, तो कहां जाएं ये वृद्ध?

लाल सिंह की उम्र 65 साल है. कैंसर से 3 साल पहले उन की पत्नी की मौत हो चुकी है. बड़ा बेटा गाड़ी चलाता है. छोटा बेटा विकलांग है. लाल सिंह का आरोप है कि उन का बड़ा बेटा उन से मकान हथियाना चाहता है. रातदिन उन्हें परेशान करता है. शराब के नशे में देररात उठ कर उन्हें जलाने की धौंस देता है. 6 महीने तक उन्होंने भरपेट खाना नहीं खाया. हालात बद से बदतर हो गए. बेटे ने खाना देने से इनकार कर दिया. मजबूरन टिफिन के सहारे जिंदगी काट रहे हैं. उन्हें कभी मंदिर तो कभी किसी रिश्तेदार की चौखट पर दिन गुजारने पड़ रहे हैं. एएसपी के सामने बोलतेबोलते उन की आंखें डबडबा गईं. फिर वे कहने लगे, ‘‘बेटों से उन्हें बहुत प्रेम था. जिंदगीभर उन्हें मातापिता की सेवा करने की शिक्षा दी है, लेकिन अब एक बेटा उन की जान का दुश्मन हो गया.’’

भले ही सरकार ने असहाय बुजुर्ग मातापिता के लिए सुरक्षा कानून बनाए हैं लेकिन अभी तक कई ऐसे वृद्ध हैं जो अपनी संतान से प्रताडि़त हो कर या तो घर छोड़ देते हैं या उन की प्रताड़ना झेलते हैं.

एक ऐसा ही मामला देवकीनंदन चौधरी का है. 85 वर्षीय देवकीनंदन चौधरी बिहार के बेगूसराय के निवासी हैं. 6 वर्षों पहले इन की संतान ने इन्हें और इन की पत्नी को घर से बेदखल कर दिया. इस बात को ले कर देवकीनंदन ने तमाम अधिकारियों के पास न्याय की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने इन की बात नहीं सुनी. न्याय की आस में देवकीनंदन ने आखिरकार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने उन्हें उन के घर पर हक दिलाने का भरोसा दिलाया. लेकिन रसूखदार बेटे के कारण वे अभी तक अपने घर में दाखिल नहीं हो सके हैं. हालत यह है कि बीते 6 वर्षों से वे किराए के मकान में रह रहे हैं. बीते साल उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. अब वे अकेले किराए के मकान में रह रहे हैं.

65 वर्षीया सविता देवी (बदला हुआ नाम) का कहना है कि बेटा उन्हें बोझ समझता है. वह कहता है कि घर में नौकरों की तरह काम करो. इसी तरह एक और वृद्ध महिला का कहना है कि जब घर में कोई नहीं होता, तो बहू उन्हें पीटती है. लेकिन बदनामी के डर से वे किसी से शिकायत नहीं करतीं.

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कानून से अनजान

वृद्धजन सुरक्षा कानून बनने के बाद भी वृद्धों को पूरी तरह सुरक्षा नहीं मिल पा रही है. हालांकि, जिला स्तरीय फोरम के सदस्यों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून से कई लोगों को न्याय मिला है, ज्यादातर मामलों का भी निबटारा किया गया है. जो वृद्धजन सुरक्षा और मेंटिनैंस के लिए आवेदन देते हैं, उन के बच्चों को बुला कर काउंसलिंग की जाती है और बच्चों को वृद्ध मातापिता के साथ रहने के लिए राजी किया जाता है.

एसडीएम संजीव चौधरी का कहना है कि दरदर ठोकरें खाने पर मजबूर वृद्धजनों के लिए सरकार ने कानून बना दिया और उसे अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिले में पदस्थापित अधिकारियों को सौंप दिया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ही राज्य सरकार को पलीता लगा रही है. वहां मातापिता दरदर की ठोकरें खा रहे हैं. लखनऊ के गोमती नगर के विशाल खंड की निवासी उर्मिला बाजपेयी और उन के पति उमाकांत बाजपेयी को उन के दोनों बेटों और बहुओं ने घर से लातघूंसे मारमार कर बाहर निकाल दिया. चलनेफिरने से लाचार वृद्ध मातापिता ने स्थानीय पुलिस के दरवाजे पर माथा टेका. जब पुलिस ने उन्हें वापस घर भेजा तो बेटेबहुओं ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी और फिर घर से बाहर निकाल दिया.

वृद्ध मातापिता ने बेटेबहुओं पर मारपीट व प्रताड़ना की प्राथमिकी दर्ज कराई. लेकिन दोनों बेटों के आगे स्थानीय पुलिस ने मदद नहीं की. लाचार मातापिता ने एसएसपी के दरवाजे पर अपना माथा टेका और प्रार्थनापत्र में संपत्ति की खातिर वृद्ध व बीमार मातापिता को घर से बाहर निकालने का हवाला दिया. लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. इस के बाद वृद्ध मां ने मुख्यमंत्री के दरबार में अपना प्रार्थनापत्र दिया. वहां से भी अभी तक कोई राहत नहीं मिली.

दोनों बेटों को जब पता चला कि उन के मातापिता अधिकारियों के दरवाजे पर जा रहे हैं तो उन्होंने उन्हें जान से मारने की धमकी दे कर गंभीररूप से प्रताडि़त कर जानमाल का नुकसान पहुंचाया. आखिरकार मांबाप ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उन्हें राहत मिली और कोर्ट ने जिलाधिकारियों को बेटों के कब्जे से मकान खाली कराने का आदेश दिया. लेकिन वहां से फाइल निकल कर यहांवहां भटक रही है. बहरहाल, आज भी लाचार मातापिता को कोई भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. मांबाप ने अपने दोनों बेटों को बीटैक करवाया. तिनकातिनका बटोर कर परिवार को एक अच्छी स्थिति में खड़ा कर देने के बाद, आज मातापिता को ही बड़ी बेरहमी से मारपीट कर उन के ही घर से निकाल दिया गया.

परिवारों में वृद्ध मातापिता को अब बच्चे बोझ समझने लगे हैं. संपन्नता की सीढि़यों पर आगे बढ़ रहे बेटेबेटियों के खराब आचरण के कारण आज घर की चारदीवारी के भीतर के विवाद अदालतों में पहुंचने लगे हैं. कोर्ट में पहुंच रहे विवादों में अकसर यही देखा जा रहा है कि बच्चे मातापिता की संपत्ति पर कब्जा करने के बाद उन्हें दरदर की ठोकरें खाने या फिर असहाय हो कर परिस्थिति से समझौता कर के खुद ही किसी तरह जीने को मजबूर कर देते हैं.

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मातापिता का परित्याग

परिवारों में मातापिता और वरिष्ठ नागरिकों की अवहेलना, उन के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर ही सरकार ने 2007 में ‘मातापिता और वरिष्ठ नागरिक भरणपोषण व कल्याण कानून’ बनाया था. इस कानून के बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है और यह सिर्फ कानून की किताबों या संतानों से सताए जाने के कारण वकीलों की शरण लेने वाले वृद्धजनों तक ही सीमित रह गया है. इस कानून के तहत वरिष्ठ नागरिक का परित्याग दंडनीय अपराध है. इस अपराध के लिए 3 माह की कैद व 5 हजार रुपए जुर्माना हो सकता है. बावजूद, देश में वृद्ध मातापिता का परित्याग करने की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं.

वृद्धजनों के हितों की रक्षा के लिए 2007 में बने इस कानून में भरणपोषण न्यायाधिकरण और अपीली न्यायाधिकरण बनाने की व्यवस्था है. ऐसे न्यायाधिकरण को वरिष्ठ नागरिक की शिकायत मिलने के 90 दिनों के भीतर उस का निबटारा करना होता है. एकदम अपरिहार्य परिस्थिति में यह अवधि 30 दिन के लिए बढ़ाई जा सकती है. भरणपोषण न्यायाधिकरण ऐसे वरिष्ठ नागरिक को उस के बच्चे या संबंधी को भरणपोषण के रूप में 10 हजार रुपए तक प्रतिमाह का भुगतान करने का आदेश दे सकता है.

कानून के तहत वृद्ध मातापिता की मदद के लिए राज्यों के हर उपमंडल में

एक या इस से अधिक भरणपोषण न्यायाधिकरण गठित करने का प्रावधान है. लेकिन यह अफसोस ही है कि आज भी कई राज्यों में इस कानून के तहत मातापिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण के मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त संख्या में न्यायाधिकरण नहीं हैं.

प्रताड़ना के प्रमुख कारण

25 फीसदी बच्चे बुजुर्गों से अलग रहना चाहते हैं.

23 फीसदी बुजुर्गों को परिवार पर बोझ समझा जाता है.

22 फीसदी वृद्ध प्रौपर्टी के कारण बच्चों से प्रताडि़त हो रहे हैं.

22 फीसदी वृद्धों को रहनसहन के कारण फटकार सुननी पड़ती है.

वृद्धाश्रमों पर जोर

देश में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 11 करोड़ से अधिक है और अगले 2 वर्षों में इस के बढ़ कर 14 करोड़ 30 लाख हो जाने की उम्मीद है. तेजी से बदल रहे सामाजिक तानेबाने और इस में बुजुर्गों की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय भी चाहता है कि देश के प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रमों का निर्माण हो जहां परिवार से त्याग दिए गए वरिष्ठ नागरिक सम्मान के साथ जिंदगी गुजार सकें.

भारत के गैरसरकारी संगठन हैल्प एज इंडिया के सर्वे के अनुसार, 23 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हैं. ज्यादातर मामलों में बुजुर्ग को उन की बहू सताती है. 39 फीसदी मामलों में बुजुर्गों ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना. हैल्प एज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू चेरियन का कहना है कि सताने के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं हैं. 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि मांबाप को तंग करने के मामले में खुद की बेटियां भी पीछे नहीं हैं. छोटे महानगरों में 17 फीसदी बेटियां अपने मांबाप पर जुल्म ढा रही हैं.

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हैल्प एज इंडिया की सोनाली शर्मा कहती हैं कि अध्ययन में सामने आई कुछ सचाई काफी कड़वी है. परिस्थिति इस कदर बदल गई है कि बुजुर्गों की दर्दभरी दास्तान सुन कर कानों को यकीन नहीं होता. ताना मारना, उलाहना देना और गाली देना तो आम बात है. सर्वे में 39 फीसदी बुजुर्गों को परिवार वालों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है.

अत्याचार के शिकार होने वाले बुजुर्गों में 35 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें लगभग रोजाना ही परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है. डा. सुनंदा ईनामदार कहती हैं कि घरेलू हिंसा के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग तनाव के शिकार हो जाते हैं.

अत्याचार के शिकार होने वालों में से 79 फीसदी के मुताबिक उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है.

76 फीसदी को अकसर बिना बात के गालियां और उलाहना सुनने को मिलती हैं. सर्वे में शामिल 69 फीसदी बुजुर्गों का कहना था कि उन की अवहेलना की जाती है, उन की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता.

डा. सुनंदा को लगता है कि तेजी से आगे बढ़ते युवाओं के लिए परंपरा, मूल्य या संस्कृति निर्जीव शब्द हैं और बाधक भी. लेकिन अगर मांबाप बच्चों को बोझ लगने लगे हैं तो कुछ हद तक इस के लिए खुद मांबाप भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्हीं की परवरिश में बच्चा परंपराओं से जुड़ता है या दूर होता है.

मैथ्यू चेरियन का मानना है कि अकेले कानून से कुछ नहीं होगा. बच्चों में शुरू से ही संस्कार के बीज बोने पड़ेंगे. हमारी नई पीढ़ी को बचपन से ही बुजुर्गों के प्रति संवदेनशील बनाए जाने की जरूरत है. साथ ही, बुजुर्गों को भी आर्थिक रूप से सबल बनने के विकल्पों पर ध्यान देना होगा.

क्या सैक्स टौनिकों के दावे सचमुच सच होते हैं, उनसे कैसे लाभ मिल सकता है?

सवाल

मैं 35 वर्षीय विवाहिता हूं. पत्र पत्रिकाओं के पन्ने पलटते समय देखती हूं कि उन में प्राय: सैक्स टौनिकों को ले कर कई तरह के विज्ञापन छपते रहते हैं. क्या उन में किए गए दावे सचमुच सच होते हैं? उन से कैसे और क्या क्या लाभ मिल सकता है?

जवाब

अच्छा होता आप अपने सवाल के पीछे छिपे उद्देश्य के बारे में भी हमें खुल कर लिखतीं. क्या आप के पति शिश्नोत्थान से संबंधित किसी प्रकार की समस्या से गुजर रहे हैं या आप दोनों यों ही अपनी सैक्स लाइफ में कुछ ऐक्सपैरिमैंट करने के इच्छुक हैं?

बहरहाल, सचाई यह है कि अधिकांश सैक्स टौनिक मात्र विज्ञापन के जोर पर बिकते हैं, उन में कोई ऐसा औषधीय गुण नहीं होता कि व्यक्ति उन से लाभ पा सके. उन की कामयाबी का जादू मात्र उन से मिली मानसिक प्रेरणा होती है न कि अंदर आया कोई कैमिकल परिवर्तन. यह सोच कि दवा लेने से यौन सामर्थ्य बढ़ जाएगी, दवा की सफलता मात्र इसी से जुड़ी होती है.

दवा की जगह गोलीकैप्सूल में ग्लूकोज की पुडि़या बांध दी जाए और व्यक्ति को उस के प्रति विश्वास हो तो यह भी लाभकारी साबित होगी. सैक्स टौनिक बेचने वाली बहुत सी कंपनियां दवा की बोतल और गोलीकैप्सूल के पैक पर इसीलिए घोड़े और दूसरे चित्र भी लगा देती हैं ताकि ग्राहक का मन जीता जा सके. दरअसल, कमाल बोतल पर चिपके घोड़े के चित्र से ही होता है न कि गोलीकैप्सूल में बंधी दवा से.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

ऐसे बनाएं चिली फिश

चिली फिश बहुत ही स्वादिष्ट डिश है. यह क्रंची, टेस्टी और ​काफी फीलिंग और स्वाद से भरपूर होती है. आप इसे डिनर पार्टी में भी  सर्व कर सकती हैं.

सामग्री:

फिश के टुकड़े (बोनलेस 250 ग्राम)

बेकिंग पाउडर (1 टी स्पून)

कौर्नफलोर (1/2 कप)

मैदा (1/2 कप)

सोय सौस (2 टी स्पून)

सेलेरी बारीक कटा हुआ (2 टेबल स्पून)

कालीमिर्च (1 टी स्पून)

नमक (स्वादानुसार)

तेल (आवश्यकतानुसार)

गानिर्शिंग के लिए हरी प्याज

सौस के लिए:

1 टेबल स्पून अदरक (1 टेबल स्पून, टुकड़ों में कटा हुआ)

लहसुन  (1 टेबल स्पून, कद्दूकस किया हुआ)

हरी मिर्च (1 टेबल स्पून)

सोया सौस (4 टेबल स्पून)

टोमैटो सौस (5 टेबल स्पून)

चिली सौस (1 टेबल स्पून)

कौर्नफलोर (1 टेबल स्पून)

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बनाने की वि​धि

1.फिश को फिंगर पीस में काट लें.

2.कौर्नफलोर, मैदा, बेकिंग पाउडश्र, सौस सौस, सेलेरी, कालीमिर्च पानी और नमक डालकर एक बैटर तैयार करें.

3.फिश के पीसों को बैटर में डिप करके तेल में गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करें, इसे सर्विंग प्लेट में निकालें.

सौस तैयार करने के लिए:

1.एक पैन में तेल गर्म करें.

2.इसमें लहसुन, अदरक और हरी मिर्च डालें, इसमें सोया सौस, चिली और टोमैटो सौस डालें.

3.फाइनली इसमें कौर्नफलोर में थोड़ा सा पानी मिलाकर डालें एक बार जब यह उबलने लगे तो इसे आंच से हटा लें.

4.सर्व करते समय, इस सौस को फिश के टुकड़ों पर डालें, हरी प्याज से गार्निश करके सर्व करें.

5.हरी प्याज से गार्निश करके सर्व करें.

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फिल्म हैक्ड के नए सौंग में हिना खान का बोल्ड अवतार

टीवी की दुनिया में  जलवा बिखेरने वाली Hina Khan अब फिल्मी दुनिया में भी कदम रखने जा रही हैं. डैमेज्‍ड 2′ नाम की वेब सीरीज में तहलका मचाने के बाद अब हिना खान फिल्म Hacked से बौलीवुड डेब्यू करने जा रही हैं, इस बात से हिना तो एक्साइटेड है ही उनके फैंस भी बहुत ज्यादा एक्साइटेड है  इस समय हिना फिल्म के प्रमोशन में काफी बिजी हैं. हाल ही में फिल्म हैक्ड का नया song  भी रिलीज कर दिया गया है.

Hina Khan की डेब्यू फिल्म Hacked का दूसरा नया गाना ‘तू जो मिली’ मेकर्स द्वारा रिलीज कर दिया गया है. इस गाने में हिना खान स्विमिंग पूल में रेड बिकिनी पहने नजर आ रही हैं.  हिना का ये अवतार कहर ढा रहा है. वीडियो में हिना बेहद बोल्ड अंदाज में नजर आ रही हैं.

इस गाने को यास्सेर देसाई ने गया है और इसके लिरिक्स शकील अजमी ने लिखे हैं. विक्रम भट्ट के निर्देशन में बनी यह फिल्म 7 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.

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फिल्म की कहानी एक सनकी हैकर के इर्द गिर्द घूमती नज़र आ रही है. इसका ट्रेलर भी बीते दिनों रिलीज किया गया था. ट्रेलर में रोहन शाह, जो कि फिल्म में 19 साल के एक हैकर का किरदार निभा रहे हैं, वो हिना खान के आशिक हैं. हिना किसी और से प्यार करती हैं. रोहन को खुद से दूर करने के लिए वो उसकी कम उम्र का भी हवाला देती हैं. लेकिन वो किसी भी कीमत पर हिना को छोड़ने को तैयार नहीं है. फिल्म इंटरनेट से घिरी हुई और हमारी जिंदगी को कोई कैसे हैक और कंट्रोल कर सकता है इसकी कहानी दिखाती है.

हाल ही में फिल्म का ट्रेलर भी रिलीज हुआ था, जिसको लोगों ने खूब पसंद किया था. ट्रेलर के बाद फिल्म का एक गाना रिलीज किया गया था, अब एक दूसरा गाना फिल्म ‘हैक्‍ड’ का नया सॉन्ग भी रिलीज कर दिया गया है. इस गाने को अब तक 29 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं.

फिल्‍म हैक्‍ड के इस वीडियो सौन्‍ग के बोल है, ‘अब ना फिर से’. इस गाने को अमजद नदीम ने लिखा है और इसे आवाज दी है यासर देसाई ने. इस गाने की कंपोजीशन अमजद नदीम आमिर ने की है. इसे पृथ्‍वी शॉ ने मिक्‍स किया है.

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हिना खान की इस फिल्‍म के ट्रेलर को यूट्यूब पर अब तक 1 करोड़ से भी अधिक बार देखा गया है. इस फिल्‍म का ट्रेलर पहले ही इंटरनेट पर धूम मचा रहा है. इसमें हिना खान के लुक और उनकी एक्टिंग की उनके फैंस तारीफ कर रहे हैं.

Valentine’s Special : फेमस सिंगर नेहा कक्कड़ वैलेंटाइन डे वाले दिन लेंगी सात फेरे

बौलीवुड की स्टाइलिश, फेमस सिंगर नेहा कक्कड़ इन दिनों अपनी शादी को लेकर  खूब चर्चा बटोर रहीं हैं. नेहा की शादी  सिंगर उदित नारायण के बेटे Aditya Narayan  के साथ 14 Feb को  होने जा रही है. दोनों की शादी की खबर ‘इंडियन आइडल 11’ के सेट से शुरू हुई थीं.

शादी से पहले बैचलर पार्टी

इन दिनों नेहा कक्कड़ शो ‘इंडियन आइडल 11’ की जज हैं और आदित्य नारायण इस शो के होस्ट है.  कुछ समय से मीडिया में  नेहा और आदित्य  की शादी की बातें चल रही हैं.  खबर सामने  ये भी आ रही है कि आई है की वैलेंटाइन डे यानी प्यार के  दिन यानी 14 फरवरी को शादी करने वाले हैं. और दोनों जल्द ही अपनी बैचलर पार्टी भी और्गेनाइज करेंगे.

सेट पर पार्टी

एक रिपोर्ट के मुताबिक ये पार्टी ‘इंडियन आइडल 11’ के सेट पर होगी. इस हफ्ते वीकेंड पर दिखाया जाएगा. बताया जा रहा है कि दोनों की पार्टी शूट हो चुकी है और ऑनएयर भी ये जल्द ही दिखाई जाएगी. वैसे भी आदित्य नारायण कई बार इंडियन आइडल 11 के स्टेज पर नेहा को प्रपोज कर चुके हैं. और अब वह  नेहा से शादी की भी घोषणा कर चुके हैं. सेट पर शादी के कार्ड की तस्वीर भी सामने आ गई थी . जिस दिन ये सब हुआ था उस दिन अल्का याग्निक सेट पर आई थीं और शादी तय होने की खुशी में गाना भी गाया था.

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दोनों के पैरेंट्स ने किया रिश्ता पक्का

आपको बता दे हाल ही में  ‘इंडियन आइडल 11’ के सेट पर आदित्य नारायण और नेहा कक्कड़ के पैरेंट्स पहुंचे थे . यहां उदित नारायण ने नेहा को अपनी बहू बनाने की इच्छा जाहिर की थी . वहीं नेहा के पैरेंट्स भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए. सेट पर सबसे पहले आदित्य के परिवार की ओर से नेहा को शगुन दिया गया . इस दौरान दोनों की शादी की डेट भी पक्की हो गई . सबने मिलकर तय किया कि 14 फरवरी को शादी होगी . इसके बाद विशाल ददलानी ने 1 फरवरी को मेहंदी की डेट भी फिक्स कर दी . इस पर नेहा ने कहा था, ‘अरे, लगवा लेंगे यार मेहंदी .’

शगुन का दुपट्टा

हाल ही में एक और खबर सामने आई  की कुमार सानू को बौलीवुड में 30 साल पूरे हो गए हैं. इस मौके पर उन्हें इंडियन आइडल 11 में इनवाइट किया गया  इस सिंगिंग रिएलिटी शो अपकमिंग एपिसोड में कुमार सानू नेहा कक्कड़ को स्पेशल गिफ्ट भी देते हुए नजर आएंगे. ये स्पेशल गिफ्ट एक रेड कलर की शगुन की चुनरी होगी. ये चुनरी आदित्य नारायण परिवार की होगी . शादी का शगुन मानकर नेहा ने इसे स्वीकार कर लिया. यह एपिसोड आने वाले वीकेंड पर दिखाया जाएगा . दुपट्टा देने के बाद कुमार सानू ने फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ का गाना ‘ओढ़ ली चुनरिया’ गाया .

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उदित नारायण का बयान

सभी कंटेस्टेंट ने भी कुमार सानू का साथ दिया . नेहा और आदित्य की शादी के बारे में उदित नारायण का बयान भी आया था . उन्होंने कहा था, ‘दोनों बच्चों की पहले ही साथ में जोड़ी बनाई जा चुकी है. टीवी पर भी लगातार खबरें आ रही हैं. मुझे भी नेहा बहुत पसंद है. मुझे भी अच्छा लगेगा अगर घर में कोई फीमेल सिंगर आ जाएगी .’ ‘मुझे ही नहीं नेहा सभी को बहुत पसंद है. उसने इंडस्ट्री में अपने दम पर अपना नाम बनाया है . मैं भी उसके गाने सुनते रहता हूं .’

नेहा ने कुछ दिन पहले इंडियन आइडल का एक प्रोमाे वीडियो अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया था. इसके कैप्शन में उन्होंने लिखा था, ‘नेहू की शादी आदी के साथ. मम्मी पापा करवाकर ही मानेंगे आदी और मेरी शादी.’

पशुओं की ऐसे करें देखभाल

हर इनसान के लिए दूध बेहद अहम चीज है. दूध से ही हर घर में दिन की शुरुआत होती है. हरेक  इनसान चाय, कौफी या फिर पीने में दूध का इस्तेमाल करता है. दुधारू पशुओं में सब से अहम पशु भैंस है.

दूध उत्पादन खेती का पूरक कारोबार होने के चलते ग्रामीण इलाकों में काफी तादाद में भैंस पाली जाती हैं. भैंस पालन करने से माली भार काफी हलका हो जाता है.

ज्यादा दूध लेने के लिए भैंस की पंढरपुरी, जाफराबादी, मेहसाणा, मुर्रा नस्ल काफी मशहूर हैं. भैंस से बेहतर दूध लेने के लिए उन्हें पौष्टिक खुराक देना बेहद जरूरी है. खुराक में खासकर उन्हें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनरल्स वगैरह सही मात्रा में देना चाहिए.

बढ़ते शहरीकरण से चारागाह और खेती की जमीन घटती जा रही है, जिस के चलते हरे चारे की कमी होने लगी है. लिहाजा, दूध के पारंपरिक कारोबार को बरकरार बनाए रखने के लिए पशुओं को चरने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस दौरान पशु कचरे के ढेर पर घूमतेफिरते जूठी खाने की चीजें, सब्जीभाजी के डंठल, धान का बचाखुचा हिस्सा समेत गंदगी और प्लास्टिक की थैली वगैरह खा लेता है. इस तरह से कील, सूई, सिक्के, तार, नटबोल्ट वगैरह पशुओं के पेट में चले जाते हैं.

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इस तरह बारबार पौलीथिन की थैलियां खाते रहने से उन के पेट में प्लास्टिक जमा होता जाता है. प्लास्टिक के न पचने की वजह से उन की चारा खाने और पाचन की कूवत कमजोर हो जाती है. इस तरह कुपोषित पशुओं में बां झपन की तादाद ज्यादा पाई जाती है.

प्लास्टिक के साथ पशु के पेट में गई पौलीथिन वगैरह चीजें फेफड़ों, दिल, डाइफ्रेम में छेद कर देती हैं, जिसे ट्रौमैटिक रैटिकुलोपेरिटोनाइटिस या डायाफ्रामिक हर्निएशन कहते हैं. इस हालत में पशु के पेट का आपरेशन कर के इन चीजों को बाहर निकाल दिया जाए. मवेशी 3 हफ्ते के भीतर पहले की तरह भलाचंगा हो जाता है.

लेकिन कुछ लोग इस तरह के पशुओं को सीधे बाजार की राह दिखाने की सलाह देते हैं या फिर उन्हें स्लौटर हाउस पहुंचा देना आसान सम झते हैं. इस की वजह यही है कि इन लोगों को पशुओं के उपचार के बारे में सही जानकारी नहीं हुआ करती, इसीलिए नासमझी के चलते पशुपालक एक बढि़या दुधारू पशु को बेवजह मौत की भेंट चढ़ा देता है.

पशु कुपोषित न हों, इस के लिए उन्हें पौष्टिक और संतुलित खुराक देना जरूरी है. इस खुराक में हरे और सूखे चारे के साथ ही कौन्सैंट्रेट फीड का भी समावेश होना चाहिए. साथ ही, जिन खनिज तत्त्वों की कमी में पशु को पाईका नामक बीमारी होती है, उन की सही मात्रा के लिए उन्हें नियमित रूप से खनिज मिश्रण देना जरूरी है. ये खनिज मिश्रण बाजार में तो मुहैया हैं ही, किसान डाक्टर की सलाह ले कर उन्हें अपने घर में भी तैयार कर सकते हैं.

पशुओं को दी गई पौष्टिक खुराक का उसे पूरी तरह फायदा हो, इस के लिए उन्हें नियमित रूप से समयसमय पर पेट में कीड़े मारने वाली दवाएं और टीके देने जरूरी हैं. इस संबंध में अगर सही प्लानिंग कर उस का तरीके से पालन किया गया तो फिर आगे मानसिक व माली दिक्कतों से छुटकारा पाना तय है और साथ ही पशु ज्यादा दूध देगा.

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लिहाजा, लोगों को चाहिए कि अपने घर का कचरा, जूठे खाद्य पदार्थ, सब्जीभाजी के डंठल वगैरह को प्लास्टिक की थैली में बांध कर न फेंकें, ताकि पशु उन्हें खा भी जाएं तो प्लास्टिक की थैली उन के पेट में जाने का खतरा न रहे.

अगर ऐसा मुमकिन न हो, तो उसे सादा कागज में लपेट कर फेंकें. लोहे वगैरह की चीजों को कचरे के साथ ढेर पर न फेंकें. अगर ये सारी सावधानी बरतें, तो पशुओं की इस तरह होने वाली असमय मौत को टालने में हम अपना योगदान कर सकते हैं.

आजकल की लड़कियां : भाग 1

‘‘कुछ सुना आप ने, वो अपने मिश्रा जी हैं न… उन की बहू घर छोड़ कर चली गई,’’ औफिस से घर आते ही रमा ने चाय के साथ पति योगेश को यह सनसनीखेज खबर भी परोस दी.

‘‘कौन से मिश्रा जी? वो जो पिछली गली में रहते हैं, जिन के यहां हम भी गए थे शादी में… वो? लेकिन उस शादी के तो अभी 6 महीने भी नहीं हुए. आखिर ऐसा क्या हुआ होगा?’’ योगेश ने चाय के घूंट के साथ खबर को भी गटकने की कोशिश की, लेकिन खबर थी कि गले से नीचे ही नहीं उतर रही थी.

‘‘हांहां वही. बहू कहती है ससुराल में उसे घुटन होती है. ये आजकल की लड़कियां भी न… रिश्तों को तो कुछ समझती ही नहीं हैं. मानो रिश्ते न हुए नए फैशन के कपड़े हो गए. इधर जरा सा अनफिट हुए, उधर अलमारी से बाहर. एक हम थे जो कपड़ों को फटने तक रफू करकर के पहनते रहते थे, वैसे ही रिश्तों को भी लाख गिलेशिकवों के बावजूद निभाते रहते हैं,’’ रमा ने अपने जमाने को याद कर के ठंडी सांस ली.

‘‘लेकिन तुम्हीं ने तो एक बार बताया था कि मिश्राजी अपनी बहू को एकदम बेटी की तरह रखते हैं. न खानेपीने में पाबंदी, न घूमनेफिरने में रोकटोक. यहां तक कि अपनी बिटिया की तरह बहू को भी लेटैस्ट फैशन के कपड़े पहनने की छूट दे रखी है. फिर भला बहू को क्या परेशानी हो गई?’’

‘‘वही तो, मिश्रा जी ने पहले तो जरूरत से ज्यादा लाड़ कर के उसे सिर पर चढ़ा लिया, और देखो, अब वही लाड़ उस के सिर चढ़ कर बोलने लगा. इन बहुओं की लगाम तो कस कर ही रखनी चाहिए जैसी हमारे जमाने में रखी जाती थी. क्या मजाल कि मुंह से चूं भी निकल जाए,’’ रमा ने अपना समय याद किया.

‘‘तो तुम भी कहां खुश थीं मेरी मां से, हर वक्त रोना ही रहता था तुम्हारी जबान पर,’’ योगेश ने उस के खयालों के फूले हुए गुब्बारे को तंज की पिन चुभो कर फुस्स कर दिया.

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‘‘बसबस, रहने दो. तुम्हारी मां थीं ही हिटलर की कौर्बनकौपी. उन्हें तो हमेशा मुझ में कमियां ही नजर आती थीं,’’ कहते हुए रमा ने चाय के बरतन उठाए और बड़बड़ाते हुए रसोई की तरफ चल दी. योगेश ने भी टीवी चलाया और न्यूज देखने में व्यस्त हो गया. मिश्रापुराण पर एकबारगी विराम लग गया.

‘‘अरे रमा, सुना तुम ने, वह अपनी किटी ऐडमिन कांता है न, उस की बेटी अपने पति को छोड़ कर मायके वापस आ गई,’’ दूसरे दिन शाम को पार्क में पड़ोसिन शिल्पी ने उसे रोक कर अपने चटपटे अंदाज में यह ब्रेकिंग न्यूज दी तो रमा के दिमाग में एक बार फिर से मिश्राजी की बहू घूम गई.

‘‘क्या बात कर रही हो? उस ने तो लवमैरिज की थी न, फिर ऐसा क्या हुआ?’’ रमा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, कुछ मत पूछो. ये आजकल की लड़कियां भी न. न जाने किस दुनिया में जीती हैं. कहती है मुझ से गलती हो गई. शादी के बाद मुझे पता चला कि यह मेरे लिए परफैक्ट मैच नहीं है. यह भी कोई तर्क हुआ भला?’’ शिल्पी ने हाथों के साथसाथ आंखें भी नचाईं.

‘‘अब क्या बताएं, यह तो आजकल घरघर की कहानी हो गई. बहुओं को ज्यादा छूट दो, तो उन के पर निकल आते हैं. कस कर रखो तो उन्हें घुटन होने लगती है. सहनशीलता का तो नाम ही नहीं है इन की डिक्शनरी में. शादी की पहली सालगिरह से पहले ही बेटियां मायके आ जाती हैं और बहुएं ससुराल छोड़ जाती हैं. पता नहीं कहां जाएगी यह 21वीं सदी,’’ कहते हुए रमा ने बात खत्म की और घर लौट आई.

कहने को तो रमा ने बात खत्म कर दी थी लेकिन क्या सचमुच सिर्फ बात को खत्म कर देनेभर से ही मुद्दा भी खत्म हो जाता है? नहीं न, और तब तो बिलकुल भी नहीं जब घर में खुद अपनी ही जवान औलाद हो. रमा रास्तेभर अपने बेटे प्रथम के बारे में सोचती जा रही थी.

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उस की उम्र भी तो विवाह लायक हो गई है. सीधे, सरल स्वभाव का प्रथम अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के अब एक एमएनसी में आकर्षक पैकेज पर नौकरी कर रहा है, बेंगलुरू में अपना फ्लैट ले कर अकेला रहता है. घर का इकलौता बेटा है. देखने में भी किसी फिल्मी हीरो सा डार्क, टौल और हैंडसम है. क्या ये सब खूबियां किसी की पसंद बनने के लिए काफी नहीं हैं? लेकिन फिर भी क्या गारंटी है कि मेरी होने वाली बहू प्रथम के साथ निबाह कर लेगी. रमा के विचार थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे..

अगले भाग में पढ़ें-  हकीकत से सामना होना अभी बाकी था.

जाती ठंड से बचाएं दिल

दिल्ली के अस्पतालों में बीती दिसम्बर और नये साल में हार्ट अटैक और हार्ट फेलियर के मामले लगभग दोगुने हो गये हैं. लोग सांस फूलने, कमजोरी, सीने में दर्द जैसी तकलीफों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं. यह सभी लक्षण दिल की बीमारी से जुड़े हुए हैं. जाती ठंड धमनियों में खून के थक्के जमने, धमनियां सिकुड़ने जैसी तकलीफें दे कर जा रही है.

पूरे देश में मौसम बार-बार करवटें ले रहा है. आमतौर पर मकर संक्रांति के बाद ठंड कम होनी शुरू हो जाती है, लेकिन अबकी बार तो संक्रांति के बाद तेज हवाओं, आंधी, पानी, ओलों ने मौसम का मिजाज ही बिगाड़ दिया है. ठंड जा-जाकर लौट रही है और इसका शिकार हो रहे हैं प्रौढ़ और बुजुर्ग, जिनका दिल मौसम की इस तुनकमिजाजी को सहन नहीं कर पा रहा है. लिहाजा दिल के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

सर्दी के मौसम में यूं भी दिल के मरीजों को अपना ज्यादा ख्याल रखना जरूरी है क्योंकि ठंड की वजह से नाड़ियां सिकुड़ती हैं और शरीर में खून का बहाव बाधित होता है. ठंड के कारण दिल की धमनियों के सिकुड़ने से खून का प्रवाह रुक सकता है या बहुत धीमा हो सकता है, जिसके चलते हार्ट फेल होने की सम्भावना बन जाती है. ठंड में बरती गई लापरवाही दिल के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.

मौसम की शुरुआती और लौटती ठंड दिल के मरीजों के लिए बहुत खतरनाक होती है. इसलिए उन्हें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है. बूढ़े शरीर में त्वचा के नीचे ज्यादा चर्बी नहीं रहती, लिहाजा सर्दी सीधे भीतर घुस कर नसों पर असर डालती है. इसलिए इस मौसम में खुद को गर्म रखना बहुत जरूरी है ताकि ठंड नसों पर असर न कर सके और उनमें बहने वाला खून बिना किसी रुकावट के अपना चक्र पूरा करे.

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ठंड के कारण दिल की धमनियों के सिकुड़ने से हार्ट में खून और ऑक्सीजन का संचार कम गति से होता है. इससे दिल के मरीजों का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. इस मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स भी ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है. यही वजह है कि सर्दियों में दिल के दौरे का जोखिम 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. सर्दी के मौसम में सूरज भी बादलों में लुकाछिपी का खेल खेलता है. इससे शरीर में विटमिन डी की कमी भी हो जाती है. ऐसे में इस्केमिक हार्ट डिजीज, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बहुत बढ़ जाता है. नसें सिकुड़ने से ब्लॉकेज की स्थिति में हार्ट अटैक होता है. जब दिल का हिस्सा काम करना बंद कर देता है तो हार्ट फेलियर का खतरा रहता है. सर्दियों में हार्ट अटैक और हार्ट फेलियर दोनों ही मामले बढ़ जाते हैं.

थोड़ी सावधानी बरतें

सर्दी के मौसम में सुबह और शाम के वक्त घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए. बूढ़े और प्रौढ़ावस्था के लोग इस बारे में खास ध्यान रखें. अधिक सर्द सुबह में मॉर्निंग वॉक पर न जाएं. गर्म कपड़े ठीक से पहनें और सिर, कान और पैरों को विशेषरूप से गर्म कपड़े से कवर रखें. सर्दियों में दिल के मरीजों के लिए जरूरी है कि कमरे का तापमान 21 और 22 के बीच बनाकर रखें. इस दौरान शरीर को ऐक्टिव रखना भी जरूरी है क्योंकि इससे खून के संचार में दिक्कत नहीं होती, इसलिए गर्म कमरे में ही हल्के व्यायाम कर लें. सर्दियों में गर्म पानी, गर्म सूप, चाय-कॉफी का सेवन करें ताकि छाती में गर्माहट बनी रहे.

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ध्यान रखें कि कमरे में बहुत ज्यादा रूम हीटर का इस्तेमाल न करें. जब एक बार कमरा गर्म हो जाए तो हीटर बंद कर दें. रात भर हीटर या ब्लोअर चलाकर न सोएं. यह खतरनाक हो सकता है. घी, तेल और फैट वाली चीजें खाने से बचें.

इन बातों को इग्नोर न करें

अगर आपको अचानक पसीना आने लगे, जबड़े, कंधे, गर्दन और बाजू में दर्द के साथ सांस फूलने लगे, पेट से लेकर सीने तक दर्द उठे तो इन लक्षणों को कतई नजरअंदाज न करें. तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें और अपना चेकअप कराएं. यह लक्षण हार्ट अटैक के लक्षण हो सकते हैं.

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