हर इनसान के लिए दूध बेहद अहम चीज है. दूध से ही हर घर में दिन की शुरुआत होती है. हरेक  इनसान चाय, कौफी या फिर पीने में दूध का इस्तेमाल करता है. दुधारू पशुओं में सब से अहम पशु भैंस है.

दूध उत्पादन खेती का पूरक कारोबार होने के चलते ग्रामीण इलाकों में काफी तादाद में भैंस पाली जाती हैं. भैंस पालन करने से माली भार काफी हलका हो जाता है.

ज्यादा दूध लेने के लिए भैंस की पंढरपुरी, जाफराबादी, मेहसाणा, मुर्रा नस्ल काफी मशहूर हैं. भैंस से बेहतर दूध लेने के लिए उन्हें पौष्टिक खुराक देना बेहद जरूरी है. खुराक में खासकर उन्हें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनरल्स वगैरह सही मात्रा में देना चाहिए.

बढ़ते शहरीकरण से चारागाह और खेती की जमीन घटती जा रही है, जिस के चलते हरे चारे की कमी होने लगी है. लिहाजा, दूध के पारंपरिक कारोबार को बरकरार बनाए रखने के लिए पशुओं को चरने के लिए छोड़ दिया जाता है. इस दौरान पशु कचरे के ढेर पर घूमतेफिरते जूठी खाने की चीजें, सब्जीभाजी के डंठल, धान का बचाखुचा हिस्सा समेत गंदगी और प्लास्टिक की थैली वगैरह खा लेता है. इस तरह से कील, सूई, सिक्के, तार, नटबोल्ट वगैरह पशुओं के पेट में चले जाते हैं.

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इस तरह बारबार पौलीथिन की थैलियां खाते रहने से उन के पेट में प्लास्टिक जमा होता जाता है. प्लास्टिक के न पचने की वजह से उन की चारा खाने और पाचन की कूवत कमजोर हो जाती है. इस तरह कुपोषित पशुओं में बां झपन की तादाद ज्यादा पाई जाती है.

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