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सुभाष को ‘सिरफिरा’ बनाने वाली व्यवस्था सुधारिए

आपरेशन मासूम के तहत फर्रूखाबाद के जिस सुभाष बाथम को सिरफिरा कह कर पुलिस मुठभेड में मार गिराया उसको सिरफिरा बनाने में व्यवस्था का पूरा दोष है. सुभाष बाथम कोई पहली आदमी नहीं है जिसे सिरफिरा कहा गया है. कुछ साल पहले की ही घटना है जब बस्ती जिले में एक सपेरा तहसील में अपनी परेशानियों से निजात नहीं पा सका तो उसने तहसील परिसर में ही सांप छोड दिये थे. कई साल पहले ही बात है राजधानी लखनऊ में कटोरी देवी नामक महिला चर्चा में थी. स्कूल शिक्षिका कटोरी देवी को गलत तरह से नौकरी से बाहर कर दिया गया. कटोरी देवी ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सामने धरना स्थल पर 14 साल धरना दिया. कटोरी देवी के खिलाफ पुलिस ने हर छलबल का प्रयोग किया. इसके बाद भी उसका धरना नहीं टूटा. व्यवस्था ने नहीं सुनी कोर्ट से उसको 14 साल के बाद न्याय मिल सका.

मऊ जिले के रहने वाली लाल बिहारी बचपन के दिनो में ही नौकरी करने मुम्बई चलग गये. उनको कागजों पर मरा दिखाकर जमीन जायदाद दूसरो ने अपने नाम लिखा ली. इसके बाद लाल बिहारी जब गांव आये तो 22 साल तहसील के चक्कर लगाने के बाद भी खुद को जिंदा नहीं साबित कर पाये. अंत में लाल बिहारी ने अपने जैसे और लोगों की लडाई लडने का फैसला कर ‘मृतक संघ’ बना लिया. अब उस पर फिल्म भी बन रही है. व्यवस्था के शिकार ऐसे लोगो को  सिरफिरा बताकर उनकी परेशानी की अनदेखी की जाती है. व्यवस्था में अपनी ना सुनी जाने के कारण आदमी आपा खो देता है. कभी पानी की टंकी पर चढ जाता है तो कभी जहर खाकर खुदकशी कर लेता है. व्यवस्था अपनी करतूत पर हर बार पर्दा डालने में सफल हो जाती है.

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फर्रूखाबाद के मोहम्मदबाद कोतवाली के करथिया गांव का रहने वाले सुभाष बाथम भी ऐसी ही व्यवस्था में फंस कर सिरफिरा हो गया. उसे कोई रास्ता नहीं दिखा तो उसने अपनी बात को कहने के लिये 25 बच्चों को बंधक बनाकर अपनी बात कहने की कोशिश की. 25 बच्चों को बंधक बनाना अपराध था. इसकी सजा उसको अपनी जान गंवा कर मिली. सुभाष बाथम अपने पीछे जो सवाल छोड गया है. इन सवालों को गौर करेगे तो लगेगा कि सुभाष बाथम नहीं व्यवस्था सिरफिरी है. सरकार ने सिरफिरे सुभाष बाथम को मारने वाले पुलिस बल को 10 लाख का इनाम घोषित किया है. पर सुभाष बाथम को सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था पर वह मौन है ?

पुलिस से प्रताड़ित था सुभाष बाथम

सुभाष बाथम अपने मौसा की हत्या मे जेल भेजा गया था. 12 साल जेल में रहने के बाद कोर्ट से जमानत पर छूटकर बाहर आया. सुभाष को लगता था कि गांव वालों ने पुलिस के साथ मिलकर उसको जेल भिजवाया था. पुलिस ने चोरी और हरिजन एक्ट के मुकदमे भी उसके खिलाफ लिख रखे थे. डीएम के नाम लिखे अपने पत्र में सुभाष बाथम ने लिखा कि गरीबी में रहने के बाद भी उसको सरकारी कालोनी, शौचालय नहीं दिया गया. डीएम औफिस और तहसील के चक्कर लगाने के बाद भी उसको कालोनी और शौचालय नहीं दिया गया. मोहम्मदाबाद पुलिस पर आरोप लगाते हुये सुभाष ने कहा कि एसओजी से सिपाही उसको बहुत परेशान करते थे. उसने कहा कि एसओजी के सिपाही उसको चोरी के आरोप में बंद किया और करंट लाकर प्रताड़ित करते थे.

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जेल में रहने वाले और पुलिस के द्वारा प्रताडित होने पर किसी भी आदमी की मानसिक हालत बिगड सकती है. ऐसे में वह ऐसे कदम उठा सकता है. बच्चों को बंधक बनाना सुभाष की गलती थी. जिसकी सजा उसको मिल चुकी है. जरूरत इस बात की भी है कि सुभाष को सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था की भी जबावदेही तय की जाय. उत्तर प्रदेश के थाने और तहसीलों में ऐसे मामले भरे पडे है. जहां लोग व्यवस्था से परेशान होकर पागल होने के कगार पर है. लोगों को सिरफिरा बनने से रोकना है तो उनको सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था को सुधारना होगा उसकी जबावदेही तय करनी होगी. थाने और तहसील में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का जंजाल फैला हुआ है. इसमें रोज लोग पिस रहे है. पुलिस की प्रताड़ना हर मामले में देखी जा सकती है. मनचाहे मुकदमे लिखना और मनचाहे तरीके से रिपोर्ट लिखना आमबात हो गई है. इनमें फंसा सिरफिरा हो जा रहा है.

विरोघ मेरा धर्म !

मैं तो प्रतिकार करूंगा. मैं लड़ता रहूंगा. मैं खंदक की लड़ाई लड़ूगा. मैं हार नहीं मानूंगा. जी हां! कुछ लोग ऐसे होते हैं, उन्हीं में एक आपका यह दास दासानुदास  रोहरानंद भी शुमार किया जा सकता है. देश में कैसी भी हवाएं बहें, मुझे मंजूर नहीं, मैं सदैव खिलाफत करूंगा. क्योंकि मेरा जन्म ही विरोध के लिए, प्रतिकार के लिए हुआ है.

चाहे देश में कोई भी प्रधानमंत्री हो, चाहे देश में किसी की भी सरकार हो, मैं तो विरोध करूंगा. पड़ोसी  कहेगा- सुबह जल्दी उठना स्वास्थ के लिए हितकर है, हर एक को, सुबह कम से कम पांच बजे उठे. मै इस सलाह का विरोध करूंगा. मैं कहूंगा- नहीं ! सुबह जल्दी उठ जाने से ठंड लगती है, इसलिए हम तो  आराम से उठेंगे. पड़ोसन  कहेगी- स्वच्छता अभियान चलेगा, हर शख्स स्वच्छता में योगदान करें. मैं कहूंगा- नहीं ! यह तो गलत बात है पड़ोसन!  पहले तुम  , अपने बंगले की साफ-सफाई पर ध्यान क्यों नहीं देती. झाड़ू पकड़कर दिखावा करती हो, यह नहीं चलेगा, मैं प्रतिकार करता हूं.

दरअसल, मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है. मैं हर शै में विरोध ढूंढता हूं. अब सबसे बड़ा मसला देशभक्ति का लीजिए.

सरकार का, संविधान का घोषित संदेश है, हर देशवासी को, देश के प्रति भक्ति भाव से पगा होना चाहिए. आस पड़ोसियों से मोहब्बत  होनी चाहिए, मैं कहता हूं भई! देश भक्ति है क्या ! हमे तो आजादी  चाहिए!!फिर हम तो अपने खास संबधियो से भी, मन ही मन नफ़रत  रखना चाहते हैं हम उनसे बेपनाह ईर्ष्या और द्वेष का भाव रखते हैं.

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अब आप रोहरानंद की मनो भावना को समझ गए होंगे. धीरे-धीरे मेरे सभी मित्र, आस पड़ोसी भी मेरे मनोविज्ञान को समझ चुके हैं और मुझे अब गंभीरता से नहीं लेते. क्योंकि वे जानते हैं, वे जो भी कहेंगे, मैं 99 प्रतिशत उसका विरोध करूंगा और अपना पक्ष आंखें बंद करके उनके समक्ष परोस दूंगा. अब चाहे वह माने, अथवा नहीं. यह मेरी बला से.

हो सकता है, आप सोचें, यह कैसा आदमी है. मगर हे मित्र ! यह एक ऊंचा बहुत ऊंचा मनोविज्ञान है जो बेहद दुर्घर्ष श्रम से ही साधा जा सकता है. इसके लिए सतत जागृत रहना पड़ता है. हर कोई आम -ओ – खास रोहरानंद  नहीं बन सकता. ऐसा बनने के लिए आपमे  हम सा माद्दा होना चाहिए. विरोध करना, विरोध में बोलना और हर बात में बिना विचार के विरोध करके दिखाना बेहद कठिन है, जिसे असाधारण आदमी ही साध सकता है .

रोहरानंद  जैसे प्रखर विरोध रखने वाले, बहुत कम होते हैं. मगर इसके लाभ भी तो असंख्य है.अपने घुर विरोध के कारण मै हमेशा लोगों की दृष्टि में रहता हूं, लोग जानते हैं यह आदमी लीक से हटकर चलने वाला है तो उनकी दृष्टि में मेरे प्रति कुछ विशिष्ट सम्मान, कुछ विशिष्ट दुराव रहता है. वे मुझे साध कर चलने की कोशिश करते हैं उन्हें प्रतीत होता है अगरचे मैंने उनकी बात में हां में हां मिला दी, तो उनकी पौ बारह है.

मगर ऐसा हो नहीं सकता. मेरी तो फितरत ही विरोध की है जिसे जमीनी भाषा में टांग खींचना कहते हैं.अब कोई मुख्यमंत्री, चाहे लाख अच्छा करें, जनता चाहे लाख गुणगान करें हम तो अपना धर्म निभाएंगे. हम तो उनका विरोध ही करेंगे.क्योंकि यही मेरा धर्म है विरोध करना मेरी पहचान है अस्मिता है.

क्या कोई अपना धर्म छोड़ सकता है ? लोग जान देने को तैयार हो जाते हैं, मगर अपना धर्म नहीं छोड़ते, फिर भला मैं अपनी लीक, रास्ता क्यों छोडूंगा.देश दुनिया में मेरे जैसे बहुत ज्यादा नहीं होते मगर होते हैं हर जगह होते हैं गांव गली से लेकर दुनिया के विशाल नाट्य  मंच पर अपना प्रदर्शन इमानदारी से करते रहते हैं.

वस्तुतः जैसे समर्थक अपरिहार्य हैं, वैसे ही विरोध करने वाले भी निरापद  हैं.भले ही इन दिनों उनका सम्मान कमतर हो चला है, मगर इतिहास में उन्हें भुलाया बिसारा नहीं जा सकेगा.

कवि रहीम खान खान ने कहा है न- “निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाए, बिन पानी बिन साबुना, निर्मल करे सुहाय” तो विरोध की प्रतिष्ठा तो आदि से रही है अब चाहे आप माने या नहीं, यह दीगर बात है.

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जैसे एक होता है मच्छर, उसका काम भिन भिन करना होता है अब आप चाहें तो मच्छर की भिन-भिन से सबक लेकर अपने को बचा ले या फिर अनदेखी करके कटवा ले. यह आपकी मर्जी है. मच्छर का काम काटना है, वह मौका ढूंढता है. वैसे ही, मैं विरोध का मौका ढूंढता हूं मैं ईमानदारी से आपके, सरकार की एक-एक कदम पर तीव्र दृष्टि रखता हूं और फिर मौका मिलते ही विरोध शुरू अपना काम शुरू कर देता हूं. परसाई जी ने ‘निंदा रस’ निबंध लिखा है. निदां रस का कर्ता और रसिक मेरी भाव भूमि से जुड़ा चीज है. मैं तो अंतिम समय तक अपने विरोध की, खंदक की लड़ाई में लगा हुआ हूं.  निरपेक्ष भाव से अगर कहीं दिख जाऊं, आपके आसपास, तो  सहजता से  नहीं लेना यही गुजारिश है.

आजकल की लड़कियां : भाग 3

खैर, जब प्रथम की शादी की बात नातेरिश्तेदारों में वायरल हुई तो हर रोज कहीं न कहीं से लड़कियों के फोटो और बायोडाटा आने लगे. हर शाम पहले रमा उन्हें देखतीपरखती, फिर रमा की चुनी हुई लिस्ट पर योगेश की सहमति की मुहर लगती और फिर फाइनल अप्रूवल के लिए सारा डाटा प्रथम को भेज दिया जाता.

महीनों की कवायद के बाद आखिर सर्वसम्मति से सलोनी के नाम पर अंतिम मुहर लग गई. 5 फुट, 4 इंच लंबी, रंग गोरा, कालेघने बाल, और आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी सलोनी यथा नाम यथा गुण, एक ही नजर में सब को पसंद आ गई. ऊपर से एमटैक की डिगरी सोने पर सुहागा. जिस ने सुना उसी ने प्रथम को उत्तम चयन के लिए बधाई दी.

रमा खुश थी, लेकिन एक डर अभी भी उसे भीतर खाए जा रहा था. डर यह कि कहीं सलोनी भी सोने की परत चढ़ा हुआ पीतल तो नहीं है. आखिर यह भी आज के जमाने की ही लड़की है न, क्या शादी को निबाह लेगी?

सगाई के 4 महीने बाद शादी होना तय हुआ. इन 4 महीनों में रमा ने चाहे कपड़े हों या गहने, शादी का जोड़ा हो या हनीमून डैस्टिनेशन, सबकुछ सलोनी की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही फाइनल किया. रमा सभी के अनुभवों से सबक लेते हुए बहुत ही सेफ साइड चल रही थी.

धूमधाम से शादी हो गई. कुछ रमा को, तो कुछ सलोनी को हिदायतेंनसीहतें देतेदेते मेहमानों से भरा हुआ घर धीरेधीरे खाली हो गया. प्रथम और सलोनी अपने हनीमून से भी लौट आए. दोनों ही खुश और संतुष्ट लग रहे थे. रमा ने चैन की सांस ली. अब तक तो सबकुछ किसी सुंदर सपने सा चल रहा था. हकीकत से सामना होना अभी बाकी था.

शादी के बाद प्रथम और सलोनी का बेंगलुरु जाना तो तय ही था. रमा पैकिंग में उन की मदद कर रही थी. हालांकि वह चाहती थी कि अभी कुछ दिन और सलोनी को लाड़ कर ले लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. आसपास के उदाहरण देखते हुए रमा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि उस की किसी भी बात से सलोनी का मूड खराब हो और उसे प्रथम से अपने शादी के फैसले पर पछतावा हो.

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‘‘लो, अब मैडम की नई जिद सुनो, कहती हैं कि मम्मीजी के साथ रहना है. अरे भई, जब मम्मी के साथ ही रहना था तो इस बंदे से शादी ही क्यों की थी?’’ प्रथम ने डाइनिंग टेबल पर सलोनी को छेड़ा, तो रमा आश्चर्य से सलोनी की तरफ देखने लगी. योगेश ने भी चौंक कर देखा.

‘पता नहीं वहां जा कर कौन सा तिरिया चरितर दिखाएगी,’ रमा आशंकित हो गई. उस ने बेंगलुरु जाने में बहुत आनाकानी की, लेकिन बहुमत कहो या बहूमत, उस की एक न चली और चारों सदस्य बेंगलुरु आ गए.

पढ़ाई के सिलसिले में कभी होस्टल, तो कभी पीजी में रही सलोनी को घर में रहने के तौरतरीके नहीं आते थे. पूरा घर होस्टल की तरह ही बिखरा रहता था. घर का बुरा हाल देख कर रमा को बहुत कोफ्त होती थी. बाकी घर तो रमा सहेज लेती थी, लेकिन सलोनी की चीजों को हाथ लगाने की उस की हिम्मत नहीं होती थी. इस बात से डरती वह बहू को कुछ बोल नहीं पाती थी कि कहीं उसे बुरा न लग जाए और वह ससुराल छोड़ कर मायके जाने की न सोचने लगे.

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साफसफाई की तो छोडि़ए, रसोई में भी सलोनी दक्ष नहीं थी. शौक कहो या मजबूरी, आएदिन उसे बाहर से पिज्जाबर्गर और्डर करने की आदत थी. सो, यहां भी रोज बाहर से खाना आने लगा.

‘उफ्फ, यह रोजरोज बाहर का खाना. जेब और पेट दोनों का भट्ठा बिठा देगा. लेकिन सलोनी को समझ आए तब न. मैं ने कुछ कह दिया तो खामखां बात का बतंगड़ बन जाएगा,’ यह सोच कर रमा चुप्पी साध लेती.

रमा सलोनी से मन ही मन भयभीत सी रहती थी. घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण होते हुए भी एक अनजानी सी दूरी उस ने अपने दोनों के बीच बना रखी थी. सहमीसहमी सी रमा ने खुद को एक खोल में बंद कर के अपने चारों तरफ लक्ष्मणरेखा खींच ली.

रमा ने खुद को तो ऐडजस्ट कर लिया लेकिन पेट तो आखिर पेट ही था. अधिक सहन नहीं कर पाया और एक दिन योगेश की तबीयत खराब हो गई.

‘‘क्या रमा, तुम भी, बहू के आते ही फिल्मों वाली सास बन गईं. एकदम आलसी हो गई हो, आलसी. अरे भई, जरा रसोई में भी झांक लिया करो, यह रोजरोज का मैदामिर्च मेरा पेट अब बरदाश्त नहीं कर रहा. बाहर का खातेखाते मुझे होटल की सी फील आने लगी. अब कुछ घरवाली फीलिंग आने दो,’’ योगेश ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘अगर सलोनी को बुरा लग गया तो, कहीं वह घर छोड़ कर चली गई तो? जानते हो न, आजकल की लड़कियां कुछ भी टौलरेट नहीं करतीं. न बाबा न, मैं कोई रिस्क नहीं लूंगी. तुम थोड़ा सा बरदाश्त कर लो. अपने घर चल कर सब तुम्हारे हिसाब से बना दूंगी. बरदाश्त न हो, तो कुछ दिन एसिडिटी या हाजमे की दवाएं ले लो,’’ योगेश को समझाती रमा कमरे से बाहर निकल गई. तभी वह प्रथम के कमरे से आती सलोनी की आवाज सुन कर ठिठक गई. सलोनी किसी से फोन पर बात कर रही थी.

‘‘समझने की कोशिश करो, इस तरह तो यहां मेरा दम घुट जाएगा. यह माहौल ज्यादा दिन रहा तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’ सलोनी हालांकि बहुत धीरेधीरे बोल रही थी लेकिन रमा का तो रोमरोम कान बना हुआ था. सलोनी की बातें सुन कर उसे चक्कर सा आ गया. वह वहीं लौबी में कुरसी पकड़ कर बैठ गई. उन के परिवार की हंसी उड़ाते नातेरिश्तेदार, चटखारे लेते पड़ोसी, उदास, नर्वस सा प्रथम, मुंह छिपाते योगेश, और भी न जाने कितनी ही तसवीरें उस की आंखों के सामने घूमने लगीं.

नहींनहीं, वह इस तरह की स्थिति नहीं आने देगी. अपने परिवार की इज्जत और प्रथम की आने वाली जिंदगी के लिए सलोनी के पांव पकड़ लेगी, लेकिन उसे यह घर छोड़ कर नहीं जाने देगी. रमा ने निश्चय किया और किसी तरह उठ कर सलोनी के कमरे की तरफ बढ़ गई.

‘‘सलोनी बिटिया, मैं तो तुम्हें कुछ कहती भी नहीं, तुम पर किसी तरह की कोई पाबंदी भी हम ने नहीं लगाई. देखो, अगर फिर भी तुम्हें मेरी किसी बात से तकलीफ हुई है तो प्लीज, तुम प्रथम को कोई सजा मत देना. वह तुम से बहुत प्यार करता है. तुम जैसे चाहो वैसे रहो, लेकिन घर छोड़ कर जाने की बात मत सोचना. हम कल ही यहां से चले जाएंगे,’’ रमा सलोनी के आगे गिड़गिड़ा कर बोली.

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सलोनी हतप्रभ सी उसे देख रही थी. पहले तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आया, फिर अचानक उस का ध्यान अपने हाथ में पकड़े मोबाइल की तरफ गया और उसे अपनी मां से होने वाली बातचीत याद हो आई. सारा माजरा समझ में आते ही सलोनी की हंसी छूट गई. वह खिलखिलाते हुए रमा के गले से झूल गई.

‘‘ओह मां, आप कितनी क्यूट हो, अब तक मुझ से इसलिए दूरी बनाए हुए थीं कि कहीं मुझे कुछ बुरा न लग जाए, और मैं नासमझ इसे आप का ऐटीट्यूड समझ रही थी. मां, यह सच है कि हम आजकल की लड़कियां अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं. हम ज्यादती बरदाश्त नहीं करतीं, तो किसी पर ज्यादती करती भी नहीं. परिवार में रहना हमें भी अच्छा लगता है, लेकिन अपने स्वाभिमान की कीमत पर नहीं. शायद आप ने भी आजकल की लड़कियों को ठीक से नहीं समझा. लेकिन इतना पढ़लिख कर आखिर में भी तो बौड़म ही रही न. मैं भी आप को कहां समझ पाई,’’ सलोनी ने प्यार से रमा के गाल खींच लिए.

‘‘लो, कर लो बात. भई, यह तो गजब ही हुआ. सास अपनी बहू से डर रही थी और बहू अपनी सास से. अरे रमा रानी, रिश्तों के समीकरण गणित की तरह नहीं होते कि 2 और 2 हमेशा 4 ही होंगे. यहां 2 और 2, 22 भी हो सकते हैं. जिस तरह से पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं उसी तरह से यह भी जरूरी नहीं कि जो सब के साथ हुआ वही तुम्हारे साथ भी हो.  समझीं तुम,’’ यह कह कर योगेश ने ठहाका लगाया.

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‘‘जी पापा, आप एकदम सही कह रहे हैं. चलिए, आज हम सब आप की पसंद की सब्जियां ले कर आते हैं. यों तो यूट्यूब पर कुछ भी बनाना सीखा जा सकता है लेकिन जो रैसिपी मां के हाथ की हो उस का भला किसी से क्या मुकाबला. मां, मुझे भी खाना बनाना सीखना है, सिखाओगी न?’ सलोनी ने रमा के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘क्यों नहीं, जरूर,’’ रमा मुसकरा दी.

इस मुसकराहट में डर की परछाईं बिलकुल भी नहीं थी.

आजकल की लड़कियां : भाग 2

‘‘सुनिए, हम प्रथम की शादी  अपनी पसंद की लड़की से करेंगे या फिर प्रथम की?’’ एक रात रमा ने योगेश से पूछा. ‘‘तुम भी न, बिना सिरपैर की बातें करती हो. अरे भई, आजकल बच्चों की शादी की जाती है, उन पर थोपी नहीं जाती. सीधी सी बात है, यदि प्रथम ने किसी को पसंद कर रखा है तो फिर वही हमारी भी पसंद होगी. तुम तो बस उस के मन की थाह ले लो,’’ योगेश ने अपना मत स्पष्ट किया. सुन कर रमा को यह राहत मिली कि कम से कम इस मुद्दे पर तो घर में कोई बवाल नहीं मचेगा.

‘‘प्रथम, तुम्हारी मौसी ने 2-3 लड़कियों के बायोडाटा भेजे हैं. तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूं?’’ एक दिन रमा ने बेटे का दिल टटोलने की मंशा से कहा.

‘‘अरे मां, तुम मेरी पसंद तब से जानती हो जब मैं खुद भी कुछ नहीं जानता था, तुम से बेहतर चुनाव मेरा नहीं हो सकता. तुम्हें जो ठीक लगे, करो,’’ प्रथम ने स्पष्ट कह दिया. उस के इस जवाब से  यह तो साफ था कि वह अरेंज मैरिज चाहता है. रमा के दिल से एक बोझ उतरा. लेकिन, अब दूसरा बोझ सवार हो गया.

‘कहीं मेरी पसंद की लड़की प्रथम की पसंद न बन सकी तो? कहीं मुझ से लड़की को पहचानने में चूक हो गई तो? फोटो, बायोडाटा और एकदो मुलाकातों में आप किसी को जान ही कितना पाते हो? अगर कुछ अनचाहा हुआ तो प्रथम तो सारा दोष मुझ पर डाल कर जिंदगीभर मुझे कोसता रहेगा. तो फिर कैसे चुनी जाए सर्वगुणसंपन्न बहू, जो पतिप्रिया भी हो?’ रमा फिर से उलझ गई.

‘हर सवाल के जवाब गूगल बाबा के पास मिल जाते हैं. क्यों न मैं भी उन की मदद लूं.’ रमा ने सोचा और अगले दिन गूगल पर सर्च करने लगी.

‘अच्छी बहू की तलाश कैसे करें?’ रमा ने गूगल सर्च पर टाइप किया और एक क्लिक के साथ ही कुछ सजीधजी भारतीय पहनावे वाली खूबसूरत लड़कियों की तसवीरों के साथ कई सारी वैबसाइट्स के लिंक्स भी स्क्रीन पर आ गए जिन में लिखा था कि अच्छी बहू में क्याक्या गुण होने चाहिए. अच्छी बहू कैसे बना जाए, बहू को सांचे में कैसे ढाला जाए, सासबहू में कैसे तालमेल हो आदिआदि. गूगल ने तो दिमाग में ही घालमेल कर दिया. नैट पर अच्छी बहू खंगालतेखंगालते रमा का सिर चकराने लगा, लेकिन जो रिजल्ट वह चाह रही थी वह उसे फिर भी न मिला. अब तो रमा और भी ज्यादा दुविधा में फंस गई.

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क्यों न किसी अनुभवी से सलाह ली जाए, यह सोच कर उस ने अपनी दूर की ननद माया को फोन लगाया.

‘‘कहो भाभी, कैसी हो? प्रथम के लिए कोई लड़कीवड़की देखी क्या?’’ माया ने फोन उठाते ही पूछा

‘‘अरे, कहां दीदी. लड़कियां तो बहुत हैं लेकिन अपने घरपरिवार में सैट होने वाली लड़की को आखिर कैसे पहचाना जाए. कहीं हीरे के फेर में पत्थर उठा लिया तो?’’ रमा ने अपनी उलझन उन के सामने रख दी.

‘‘अरे भाभी, पराई जाई लड़कियों को तो हमें ही अपने मनमुताबिक ढालना पड़ता है, जरा सा कस कर रखो, फिर देखो, कैसे सिर झुकाए आगेपीछे घूमती हैं,’’ माया ने अपने अनुभव से दावा किया.

लेकिन ज्यादा कसने से वह कहीं बिदक गई तो? माया की बातें सुन कर रमा सोच में पड़ गई. फिर उस ने अपनी मौसेरी बहन विमला को फोन लगाया.

‘‘अरे, विमला दीदी, कैसी हो आप?’’ रमा ने प्यार से पूछा.

‘‘बस, ठीक हूं. तुम कहो. प्रथम के बारे में क्या प्रोग्रैस है, कोई रिश्ता पसंद आया?’’ विमला को जिज्ञासा हो उठी थी.

‘‘देख रहे हैं, आप की नजर में कोई अच्छी लड़की हो, तो बताओ,’’ रमा ने उन्हें टटोला.

‘‘अरे रमा, लड़कियां तो मिल ही जाएंगी, लेकिन एक बात गांठ बांध के रख लेना, बहू पर ज्यादा पाबंदी मत लगाना. खूंटे से बंधे हुए तो जानवर भी नहीं रहते, फिर वह तो जीतीजागती एक इंसान होगी. बस, अपनी बेटी की तरह ही रखना,’’ विमला ने उसे सलाह दी.

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विमला की बात सुनते ही रमा के दिमाग में मिश्रा जी की बहू का किस्सा घूम गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बहू को छूट देना अधिक उचित है या उसे थोड़ी सी पाबंदी लगा कर अपने हिसाब से ढालना चाहिए. सबकुछ जलेबी की तरह गोलगोल उलझा हुआ था. शाम होतेहोते उस का दिमाग चक्करघिन्नी हो गया.

एक तो पक्की उम्र में ब्याह, ऊपर से पढ़ीलिखी होने के साथसाथ आत्मनिर्भर भी. न झुकने को तैयार, न सहने को. आजकल की लड़कियों के दिमाग भी न जाने कौन से आसमान में रहते हैं. अपने आगे किसी को कुछ समझतीं ही नहीं. अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं. रमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि प्रथम के लिए किस तरह की लड़की तलाश करे. कामकाजी या घरेलू? व्यावसायिक डिगरी वाली या सिर्फ उच्चशिक्षित? यह तो बिलकुल भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा कठिन काम हो गया था. काम नहीं, इसे मिशन कहा जाए, तो अधिक उपयुक्त होगा.

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धर्म की आड़ में यौनाचार

हिंदू धर्म ऐसे प्रसंगों से भरा पड़ा है जहां औरतों को जबरन भोग्या बनाया गया है. धर्माचार्यों व ढोंगियों के कृत्य व अत्याचार को चुपचाप तथाकथित प्रसाद के नाम पर औरतों ने धर्मसम्मत समझ सहा है. लेकिन, आज कुछ युवतियों ने बुलंद आवाज कर साहस का परिचय देते हुए इन ढोंगियों को नंगा कर दिया है.

मुमुक्षु आश्रम का अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद अपने ही कालेज में कानून की पढ़ाई करने वाली 24 वर्षीया छात्रा के साथ बलात्कार करने के आरोप में जेल पहुंच गया. नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते उस के वीडियो के सामने आने पर जनसाधारण ने देखा कि धर्म की आड़ में कैसा खेल खेला जा रहा है.

स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वह राममंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में था जो राममंदिर निर्माण की राजनीति कर रहे थे. सत्य जो भी हो, जांच में सामने आ ही जाएगा. परंतु, इस प्रकार की घटनाओं से जनसाधारण की श्रद्धा व आस्था का घायल होना स्वाभाविक है.

आध्यात्मिक जगत के कभी चमकते सितारे रहे आसाराम बापू और रामरहीम यौनाचार व बलात्कार मामलों में सजा भुगत रहे हैं. आसाराम और चिन्मयानंद में अंतर केवल इतना है कि आसाराम केवल संत था और मंच पर कृष्ण बन कर रासलीला करता हुआ युवतियों को कामक्रीड़ा के उद्देश्य से अपनी ओर आकर्षित करता हुआ पंडाल में बैठी श्रद्धालुओं की भीड़ पर कभी फूलों की वर्षा करता था तो कभी होली का रंग बरसाता था, जबकि चिन्मयानंद अतिविशिष्ट व्यक्ति अर्थात सांसद व मंत्री भी रहा है.

रामरहीम की एक साध्वी के अनुसार, ‘‘साधु बनने के 2 वर्षों बाद एक दिन महाराज गुरमीत रामरहीम की परम शिष्या साध्वी गुरुजोत ने रात को 10 बजे मुझे बताया कि आप को पिताजी ने गुफा  (महाराज के रहने का स्थान) में बुलाया है. गुफा में ऊपर जा कर मैं ने देखा, महाराज बैड पर बैठे हैं. उन के हाथ में रिमोट है, सामने टीवी पर ब्लू फिल्म चल रही है. बैड पर सिरहाने की ओर रिवौल्वर रखी हुई है. मैं यह सब देख कर हैरान रह गई. मुझे चक्कर आने लगे. महाराज ऐसे होंगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

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‘‘महाराज ने टीवी बंद किया व मुझे साथ बिठा कर पानी पिलाया और कहा, ‘मैं ने तुम्हें अपनी खास प्यारी समझ कर बुलाया है.’ मेरा वह पहला दिन था. महाराज ने मुझे बांहों में लेते हुए कहा, ‘मैं तुझे दिल से चाहता हूं. तुम्हारे साथ प्यार करना चाहता हूं. तुम ने हमारे साथ साधु बनते वक्त तनमनधन सब सतगुरु को अर्पण करने को कहा था. तो अब यह तनमन मेरा है.’

‘‘मेरे विरोध करने पर उन्होंने कहा, ‘इस में कोई शक नहीं कि हम ही खुदा हैं.’ जब मैं ने पूछा कि क्या यह खुदा का काम है तो उन्होंने कहा, ‘श्रीकृष्ण भगवान थे, उन के यहां 360 गोपियां थीं जिन से वे हर रोज प्रेमलीला करते थे. फिर भी लोग उन्हें परमात्मा मानते हैं.’’’ (संदर्भ : पीडि़ता साध्वी की चिट्ठी पीएम के नाम, दैनिक जागरण 26/8/2017).

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी और खुल रहे राजों का सिलसिला अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि राजस्थान के कथित संत कौशलेंद्र फलाहारी महाराज (70) पर एक

21 वर्षीया कानून की छात्रा ने बलात्कार का आरोप लगा कर सनसनी फैला दी. युवती के अनुसार, 7 अगस्त को बाबा ने उसे विद्या और उज्ज्वल भविष्य का वरदान देने का झांसा दे कर उस से बलात्कार किया. बिलासपुर पुलिस ने 11 सितंबर को एफआईआर दर्ज कर मामला हाथों में लिया. 15 वर्षों से अध्यात्म जगत में सक्रिय बताए जाने वाले फलाहारी बाबा का पूरा नाम जगतगुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी कौशेलेंद्र प्रपन्नाचारी फलाहारी महाराज है. वे रामानुज संप्रदाय के साधु माने जाते हैं. (संदर्भ : दैनिक पंजाब केसरी, संपादकीय लेखकृत विजय कुमार, दिनांक 24/9/2017).

मेरठ के बलदीपुर दौराला स्थित परमधाम न्यास के संचालक क्रांतिगुरु चंद्र मोहन महाराज व आश्रम के जनेऊ क्रांति अध्यक्ष कुलदीप के विरुद्ध देहरादून के राजपुर थाने में 2 महिलाओं ने दुष्कर्म का मुकदमा दर्र्ज करवाया है. (संदर्भ : उपयुक्त वही, दिनांक 27/8/2019).

देश की इन बहादुर बेटियों ने अपने साथ हुए यौनाचारबलात्कार के कारण इन तथाकथित भारत के चमत्कारी व प्रभावशाली धर्माचार्यों के विरुद्ध आवाज उठाई. धर्म की आड़ में यौनाचार, बलात्कार करने वालों को सजा दिला कर इन्होंने अपने साहस का परिचय दिया. वहीं, धर्म की आड़ में चल क्या रहा है, यह भी जनता के सामने आया.

ये कुछ ऐसे मामले हैं जो युवतियों द्वारा दिखाए गए साहस के कारण जनसाधारण के सामने आ गए. निसंदेह कुछ ऐसी घटनाएं भी हो सकती हैं जो सामाजिक मानमर्यादा, प्रतिष्ठा, शर्म आदि के चलते प्रकाश में आने से रह जाती हैं.

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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ : उद्घोषण, अभियान की सार्थकता इसी में है कि ऐसी युवतियां इन से प्रेरित होती हुई धर्म की आड़ में अपने साथ होने वाले यौनशोषण के विरुद्ध आवाज उठाएं ताकि धर्म की आड़ में यौनाचार करने वाले मठों, मंदिरों व आश्रमों के प्रमुखों के प्रति जनसाधारण ज्यादा से ज्यादा जागृत हो सके और धर्म की वास्तविकता उजागर हो सके.

इतना धार्मिक देश, ऋषिमुनियों की धरती, इतने धर्मस्थल, प्रतिदिन इतने धार्मिक उपदेश, बेशुमार धर्माचार्य. फिर भी धर्माचार्यों द्वारा देश की बेटियों से, युवतियों से रेप? नारी की इतनी दुर्गति? इन सब का एक ही उत्तर है- हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत. स्वामी व धर्माचार्यों के वेश धारण कर के रेप करने के प्रसंगों से हिंदू धर्म भरा पड़ा है. युवतियां, औरतें यही सोचती हैं कि स्वामी अथवा बाबा उन के साथ जो कृत्य कर रहे हैं वह धर्मसम्मत कर रहे हैं.

वेदों में नारी का तिरस्कार : मानव सभ्यता के प्राचीनतम अभिलेख – वेदों में नारी के अपमान व तिरस्कार के जिन अमानवीय तौरतरीकों का पता चलता है, वे बहुत आपत्तिजनक और निंदनीय हैं. इन्हीं के अनुकरण पर परवर्ती धर्मग्रंथों के रचयिताओं ने अपनी इच्छानुसार व स्वहित को ध्यान में रखते हुए नारी का शोषण किया. फलस्वरूप, आज भी नारी की दुर्गति हो रही है. नारी की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार सतीप्रथा, दासीप्रथा व नियोगप्रथा आदि का वर्णन वेदों में मिलता है. इन के माध्यम से कामी, क्रूर धूर्तों ने नारी की जीभर कर बेइज्जती की और अपनी वासना की आग को बुझाया.

परस्त्रीगमन का धर्मसम्मत मार्ग नियोग : नियोग का अर्थ है कि किसी नियुक्त पुरुष के साथ संभोग द्वारा पुत्रोत्पत्ति के लिए पत्नी या विधवा की नियुक्ति. यानी, नियोग के अंतर्गत संतानप्राप्ति के लिए स्त्री को पुरुष से संभोग करने के लिए प्रेरित या बाध्य किया जाता था. नियोग अकसर तथाकथित देवताओं, ऋषियोंमुनियों और ब्राह्मणों द्वारा भी कराया जाता था. (देखें -महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 64, 95,103,104).

ये लोग ‘बीज दान’ के नाम से निसंतान स्त्रियों के साथ संबंध बनाते थे. यह एक ऐसी अश्लीलता व गंदगीभरी तथाकथित धर्माज्ञा थी जिस के कारण स्त्रियों का सतीत्व सुरक्षित न रह सका. इस धर्मादेश के चलते धर्म के तथाकथित ठेकेदारों के लिए पर स्त्रीगमन का रास्ता खुल गया और वे यौनाचार करते हुए नारी की दुर्गति करने लगे.

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती, जिन्होंने वेदों के प्राचीन भाष्यकारों के अर्थों में विद्यमान दोषों से मुक्त भाग्य लिखने का दावा किया है, ने वेदों में नियोग का न सिर्फ अस्तित्व स्वीकार किया है अपितु स्मृतियों के आधार पर वेदमंत्रों के भाष्यों में नियोग की विस्तृत व्याख्या भी की है.

उन के अनुसार, एक स्त्री व पुरुष को कईयों से यौन संबंध बनाने का विधान है. यदि एक से संतान उत्पन्न न हो तो दूसरे से करें.

मात्र उपभोग की वस्तु : यजुर्वेद के महीधर भाष्य (23/19 से 23/21 तक) में पशुओं तक को स्त्रियों के साथ संबंध बनाने को कहा गया है. अश्वमेध यज्ञ के एक प्रसंग में स्त्रियों व पुरोहितों को ऐसा अश्लीलतापूर्ण वार्त्तालाप करते हुए दिखाया गया है जिसे लेख में लिखना वर्तमान नैतिक मर्यादा का हनन होगा. यह सारा वर्णन यही स्पष्ट करता है कि वैदिक युग में नारी कितनी सम्मानित थी. अर्थात, नारी को पूरी तरह बेइज्जत किया गया. उसे केवल बच्चे पैदा करने वाली मशीन मात्र समझा गया. केवल उपभोग की वस्तु समझा गया. सबरीमाला मंदिर मुद्दे पर परंपरावादियों के मनुवादी दृष्टिकोण से नारी की वर्तमान स्थिति को समझा जा सकता है. एक तरफ हम अन्य ग्रहों पर बस्तियां बसा लेने व एकसमान नागरिक संहिता के लिए प्रयासरत हैं तो वहीं रजस्वलाओं के लिए कबायली धर्मादेश लिए हुए हैं.

महाभारत के आदर्श पात्रों की आपत्ति : महाभारत को हिंदू केवल इतिहास ग्रंथ ही नहीं, पंचमवेद भी कहते हैं. महाभारत में आता है कि एक बार पाराशर ऋषि नदी पार कर रहा था. वह जिस नाव पर सवार था उसे सत्यवती चला रही थी. ऋषि सत्यवती पर मोहित हो गया. सत्यवती उस से गर्भवती हुई और उस ने एक बालक को जन्म दिया. इस संबंध में उल्लेखनीय यह है कि ऋषि पाराशर ने सत्यवती से कहा कि वह उस से संबंध बनाने के बाद भी ‘अक्षत योनि’ रहेगी. यही बालक आगे चल कर महर्षि वेदव्यास नाम से प्रसिद्ध हुआ. हिंदू मतानुसार, वेदव्यास ने महाभारत और पुराणों की रचना की.

देवव्रत द्वारा आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा के चलते सत्यवती ने वृद्ध शांतनु से विवाह किया और चित्रांगद व विचित्रवीर्य नामक 2 पुत्रों को जन्म दिया. ये दोनों निसंतान मर गए. तब सत्यवती के कहने पर व्यास ने इन दोनों की पत्नियों को गर्भवती किया. उन की दासी को भी गर्भवती किया. इन से महाभारत के आदर्श पात्र -धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर (दासी पुत्र) पैदा हुए.

धारावाहिक ‘महाभारत’ में इन दृश्यों को बड़े ही स्पष्ट रूप से दिखाया गया है. संवाद और दृश्य इतने स्पष्ट हैं कि कोईर् भी साधारण बुद्धि वाला आसानी से इन्हें समझ सकता है. धर्मभीरु औरतोंयुवतियों ने इन संवादों व दृश्यों को सुना व देखा है, सुनती हैं व देखती हैं. वे इन के प्रभाव से स्वयं को कैसे मुक्त रख सकती हैं? यद्यपि कोईर् भी हिंदू घर में महाभारत धर्मग्रंथ रखना नहीं चाहता तो भी जिन दिनों दूरदर्शन इस धारावाहिक को पहली बार प्रसारित कर रहा था, महाभारत में भगवान (?) कृष्ण की भूमिका केचलते धर्मभीरु  लोग. औरतें दूरदर्शन के आगे देशी घी की जोत जला कर धूपअगरबत्तियों का धुआं भगवान (?) कृष्ण के निमित्त अर्पित किया करते थे. जो काम आज के बाबा कर रहे हैं वे शास्त्रसम्मत ही हैं. लोगों को या तो इन्हें ऐसे ही स्वीकार करना चाहिए या फिर चुप रहना चाहिए कि धर्म से ऊपर क्या?

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मोहपाश में दरकते रिश्ते

अजूबो, ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ,

मुलजिमों के सिवा क्या है, फलक के चांदतारों में.

संतकवि अदम गोंडवी की ये लाइनें चेतना को जगाती हैं. हमारे समाज की आधी आबादी धार्मिक अंधविश्वास की वजह से कपोलकल्पित शक्तियों पर विश्वास कर अर्थ, समर्थ को दरिया में बहा रही है. सब से बड़ी विडंबना यह है कि पढ़ीलिखी, समृद्धसंपन्न महिलाएं भी इन तथाकथित शक्तियों में विश्वास कर रही हैं. परिणामस्वरूप, सभी वर्ग की महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है. वहीं, कुछ स्वेच्छा से उत्पीडि़त हो रही हैं.

परंपरा और आस्था के नाम पर लाखों की धनराशि लुटवा कर वे इस लोक में रहते हुए तथाकथित परलोक को सुधारने के कर्म में अपना आज भी खराब कर रही हैं. एक अनजाने भय, जो व्याप्त नहीं है, पर भविष्य में उस के मौजूद होने के डर से वे अपना वर्तमान भी लुटाने को तैयार बैठी हैं.

मूरति धरि धंधा रखा, पाहन का जगदीश, मोल लिया बोलै नहीं, खोटा विसवा बीस.

लोग ईश्वर की मूर्ति का धंधा करते हैं. ईश्वर को कुछ नहीं मिलता पर उस के नाम पर निठल्ला व्यक्ति महान बन जाता है. महिलाओं के अंधविश्वास के चलते पारिवारिक संबंधों में कटुता आ रही है. रिश्ते आचारविचार, व्यवहार, विश्वास पर टिके होते हैं. घर के दैनिक कार्य को परे रख ईश्वर ध्यान में घंटों समय व्यतीत कर किसी चमत्कार की आशा में पारिवारिक कर्तव्य के निर्वहन से मुंह फेरने का बुरा परिणाम बच्चों पर ज्यादा होता है. ऐसे में हाशिए पर रहने वाली महिलाएं शांति, मुक्ति के बजाय अपने ही हाशिए में और सिमट जाती हैं.

औरतें धर्मगुरुओं की हर बात को ब्रह्मवाक्य मान हर कार्य करती हैं. रंजीता, जो कभी जोश, आत्मविश्वास से भरी महिला थी, आजकल अकेले में अपना समय काट रही है. वजह है अपना पूरा समय एक कुमारी आश्रम की सेवा व सत्संग में लगा कर सामाजिक दूरी बना लेना. सभी को यह संदेश कि ‘जीवन शिवत्व है, इस ध्यान और भान से मन शुद्ध होता है और जागृति आती है,’ देने के साथ वह पारिवार से भी दूरी बना पाठशाला में प्रवचन देने के लिए एक पहर आश्रम में ही बिताती है.

श्वेत वस्त्र धारण कर वह शुचितास्वच्छता की प्रतिमूर्ति बन गई. कुछ दिनों बाद और एक कदम बढ़ा कर बैरागी बन पहले पति से दूर अलग कमरा किया था, फिर अपना अलगअलग खाना, कपड़ों से होते हुए रिश्तेदारों के शादीब्याह से भी दूरी बना ली. सात्विक खाना सब जगह उपलब्ध नहीं होता. किसी का छुआ वह खाती नहीं. सभी चीजें लहसुन, प्याज से बनी रहती थीं. कुछ दिन तो अपना लोटा, बरतन, टिफिन ले कर चली, फिर वह भी समस्या बनती गई.

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परिवार ने कई बार उस के मन मेें झांकने की कोशिश की, पर अंधविश्वास की मोटी चादर से निकलने को वह तैयार न हुई. बच्चे और पति इन रूढि़वादी प्रवृत्तियों से दूर अपने कार्य में तल्लीन रहे. परिणामस्वरूप, सभी ने अपने जीवन में मुकाम हासिल कर लिए, पर वहीं रंजीता मनोरोगी बन एकाकी जीवन बिता रही है.

प्रचार के बल पर सत्ता पर कब्जा पाने के लिए धर्म के दुकानदारों के चक्कर में लोगों की उन की शिक्षा के अनुरूप मानसिकता नहीं बदल सकी है. पोंगापंथी के फेर में एक इंसान दूसरे इंसान को छोटा समझ कर खुद को विशेष दर्जा देता है. नारी ही स्वयं नारी की दुश्मन है. विधवा स्त्री के साथ वह आज भी अछूता जैसे व्यवहार करती है, कुछ शिक्षित हो कर भी अपना भविष्य व तथाकथित परलोक संवारती हैं. यह ऐसी समस्या है जिस को दूर करने का उपाय अपने ही हाथों में है, पर विचारों की गहरी पैठ की वजह से समाधान सामने रह कर भी कोसों दूर है. इस का मायाजाल शहरों, बाजारों के साथ घरपरिवारों में भी जा पहुंचा है.

सब से बड़ी विडंबना यह है कि आज के तकनीकी विज्ञान के क्षेत्र से संबंधित लोग इस के चंगुल में हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जब लोगों ने ढोंगी, मौलवियों, बाबाओं के बहकावे में आ कर अपने ही हाथों अपना सबकुछ गंवा दिया. 2018 में हरियाणा में जलेबी बाबा नाम के एक बाबा ने तंत्रमंत्र के नाम पर चाय में नशीला पदार्थ मिला कर 90 से अधिक लड़कियों के साथ व्यभिचार किया. आखिरकार उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल, जब व्यक्ति नीतिअनीति, उचितअनुचित तथा करणीयअकरणीय के विचार को छोड़ कर किन्हीं कपोलकल्पित दैवीय शक्तियों में विश्वास करने लगे तो उस व्यक्ति में अकर्मण्यता के साथ लोलुपता का भी भाव रहता है. इस के चलते वह आसानी से चालाक धर्मांधता के चंगुल में फंस जाता है.

आज की स्थिति यह है कि राजनीतिक दल अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए जातिवाद, संप्रदायवाद का सहारा ले कर धर्मों की अनेक दुकानें खोल बैठे हैं जो समयसमय पर लोगों का ब्रेनवाश कर अपन उल्लू सीधा करने में संलिप्त हैं.

बच्चों की ‘आत्महत्या’ के कारण

घटना एक- छत्तीसगढ़ की न्याय धानी बिलासपुर के करबला में एक 10 साल के लड़के ने आत्महत्या कर ली. परिजन बता नहीं पा रहे कि कारण क्या हो सकता है.

घटना दो- छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिला के ग्राम देवरी में एक 11 साल के लड़के ने आत्महत्या कर ली. फांसी लगाकर की गई इस आत्महत्या के पीछे कारण, परिजनों का डांटना माना जा रहा है.

घटना तीन- सरगुजा जिले के एक गांव में एक 12 वर्ष की लड़की ने कर ली आत्महत्या. 10 साल की लड़की थी अवसाद  में.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा जिला के कुसमुंडा थाना क्षेत्र के गेवराबस्ती में महज 11 साल की किशोरी ने आत्महत्या कर ली. परिजनों के अनुसार उसने अपने को, घर के कमरे के भीतर  बंद कर लिया और दुपट्टे को फंदा बनाकर झूल गई. यह पूरा वाकया 27 जनवरी 2020 की सुबह का  है.  बड़ी देर तक  जब वह बाहर नही आई तो मां ने वहां से गुजर रहे एक ऑटो ड्राइवर से दरवाजा खोलने सहयोग  मांगा. जब किवाड़ तोड़कर जब वे भीतर  दाखिल हुए तो दृश्य  देखकर उनके होश उड़ गए. किशोरी की लाश फंदे पर लटक रही थी. लड़की  की मां उसके परिजन यह अनुमान से बाहर का हकीकत भरा नजारा देखकर, जार जार रोने लगे, मगर घटना तो घटित हो चुकी थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक नाबालिग जिसकी उम्र मात्र 11 वर्ष है, वह आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाती है?

इस संदर्भ में समाज विज्ञानी एवं मनोवैज्ञानिकों ने अनुसंधान किए हैं. और निरंतर अनुसंधान जारी है. दरअसल, यह माना जाता है कि यह उम्र जब लड़के, लड़कियां अट्ठारह वर्ष तक के होते हैं तब बेहद भावुक  होते हैं रोमानी दुनिया  मे विचरण करते हैं. और भावनाओं में बहकर कोई भी ऐसा कदम उठा देते हैं जो उनकी जिंदगी पर भारी पड़ जाता है. हमारे आस पास ऐसी अनेक घटनाएं घटित होते रहती हैं. मगर परिवारजनों की समझदारी के बगैर इन घटनाओं को रोका नहीं जा सकता.

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डांटा फटकारा तो…..

हमारे इस आलेख का यही विषय है, ऐसी घटनाओं पर दृष्टिपात करते हुए हम यह बताने का प्रयास करेंगे कि कैसे नाबालिग बच्चों की आत्महत्याओं को रोकने का  सरजाम किया जा सकता है-

हमारे संवाददाता ने आज कोरबा जिला के कुसमुंडा थाना के गेवरा बस्ती पहुंचकर जमीनी हकीकत समझने का प्रयास किया वहां उपस्थित पुलिस अधिकारी राकेश मिश्रा के अनुसार गेवरा बस्ती के रहने वाले रोहित जायसवाल की 11 वर्षीय बेटी भवानी जायसवाल  सुबह घर के बाहर किसी काम मे व्यस्त थी तभी माँ ने उसे किसी बात पर फटकार लगा दी. मां की डांट बेटी भवानी को इतना नागवार गुजरी की उसने आनन-फानन में खुद को कमरे में कैद कर लिया और अपनी जान ही दे दी. सूचना पाकर पहुंची पुलिस ने शव के बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल रवाना कर दिया है. यह पूछने पर कि  महज 11 साल की उम्र में आत्महत्या जैसे कदम उठाने  की ऐसी घटनाओं के पीछे का मनोविज्ञान क्या होता है उन्होंने बताया कि ऐसी और भी कुछ घटनाएं उन्होंने विवेचना मे ली हैं. इस घटनाक्रम में अभी तक यही तथ्य सामने आया है कि  बालिका मां की डांट से क्षुब्ध हो उठी थी. अक्सर आजकल के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिंट मीडिया में ऐसी घटनाओं का प्रकाशन होता है साथ ही मोबाइल में इंटरनेट के माध्यम से भी आत्महत्या करने के तरीके आसानी से उपलब्ध है जिन्हें देखकर बाल मानस के बच्चे आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं. साथ ही एक बड़ा कारण शिक्षा के क्षेत्र में असफलता भी होता है. युवा होते बच्चे जब यह देखते हैं कि एजुकेशन के क्षेत्र में उन्हें सफलता नहीं मिल रही तो वह आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसे मे उन्हें अच्छी समझाइश की  दरकार होती है.

परिजनों की समझाइश जरूरी

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बी के शुक्ला ने इस संदर्भ में बताया कि मासूम बच्चों की आत्महत्या के पीछे का मनोविज्ञान बेहद जटिल है. अनेक प्रकरण उन्होंने अपने जीवन में देखे हैं और सार भूत तथ्य यह मानते हैं कि  बच्चों की आत्महत्या के पीछे परिजनों की डांट फटकार बड़ा स्थान रखती है. मासूम बच्चों के साथ बड़ों का परिजनों का व्यवहार मधुर होना चाहिए. बच्चे कोमल भावनाओं के होते हैं माता-पिता और परिजनों को उन्हें प्यार से समझाइश देते हुए अपनी बात को रहना चाहिए. अगर ऐसा होगा तो बच्चा कभी भी  आत्महत्या जैसा कठोर कदम नहीं उठाएगा.

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छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध डौक्टर जी आर पंजवानी ने बताया कि बच्चों की आत्महत्याओं के पीछे एक बड़ा कारण आज का वीडियो गेम का संजाल है. जिन्हें देखकर बच्चे आत्महत्या करने को प्रेरित हो जाते हैं माता-पिता परिजनों को चाहिए कि बच्चों पर  “नरम निगाह” अवश्य रखें, माता पिता अपने दैनिक जीवन की विशेषताओं में से व्यस्त हो जाते हैं कि उनके पास बच्चों के लिए समय नहीं रहता यह भी एक बहुत बड़ा कारण है.

कितने करीब हैं आप अपने बच्चे के

समय समय पर किए गए शोध और अध्ययनों के मुताबिक बच्चे में भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता काफी हद तक अपने अभिभावक के साथ बच्चे के रिश्ते पर निर्भर करता है. बच्चा मांबाप के जितने करीब होगा उस का व्यक्तित्व उतना ही संतुलित होगा. बच्चा आप के कितने करीब है इस बात का अंदाजा लगाने के लिए आप यह देखें कि परेशान या अपसेट होने की स्थिति में वह आप से खुलकर बातें करता है या नहीं? आप से हर बात शेयर करता है या नहीं? यदि नहीं तो स्पष्ट है अपने बच्चे के साथ आप का रिश्ता इतना गहरा नहीं जितना होना चाहिए. यानी आप अपने बच्चे के करीब नहीं है.

कुछ समय पहले अमेरिका के टेक्सास में प्रोफेसर मैथ्यू ए एंडर्सन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार बचपन में अपने अभिभावक के साथ आप का रिश्ता कैसा रहा यह तथ्य बड़े होने पर आप की सेहत को प्रभावित करती है. बड़े होने के बाद उन लोगों में बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है जिन्हें कम उम्र में अभिभावक से अधिक डांटफटकार मिली होती है. दरअसल जब बच्चे का अभिभावक के साथ रिश्ता मिठास भरा नहीं होता तो बच्चों में हेल्दी लाइफ़स्टाइल डेवलप नहीं हो पाती साथ ही इमोशनल और सोशल स्किल्स के मामले में भी वे पिछड़ जाते हैं.

अध्ययन के मुताबिक यदि अभिभावक और बच्चे के रिश्ते में खटास हो तो  बच्चे का खाना ,पीना ,सोना और दूसरी गतिविधियां अनियमित हो जाती हैं. घर के संतुलित खाने के बजाय वह जंकफूड स्ट्रीटफूड और हाई फैट फूड ज्यादा लेने लगते हैं.

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बच्चों को हमदर्दी चाहिए सहानुभूति नहीं

जब बच्चे बहुत दुखी हों , किसी वजह  से चिंतित, क्रोधित, हतोत्साहित या  हर्ट हो कर घर लौटे तो अक्सर मांबाप उन्हें दुखी या परेशान न होने की सीख देते हैं.

‘हतोत्साहित मत हो’, ‘ पागल न बनो’, ‘चिंता मत करो’ या ‘इस तरह क्यों सोच रहे हो’ जैसे वाक्य सुन कर बच्चे खुद में लज्जित महसूस करते हैं  कि वे ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं. इस से वे और भी और भी हर्ट हो जाते हैं.

उन्हें महसूस होता है कि पेरेंट्स उन्हें नहीं समझ रहे. वे खुद को अकेला पाते हैं और अपनी बात खुल कर कह नहीं पाते. पर यह तरीका सही नहीं. आप उन की भावनाओं का सम्मान करें. भावनाएं कभी गलत नहीं होतीं. बेहतर होगा कि आप उन से हमदर्दी रखें. उन की भावनाओं को महसूस करें और तब अपनी बात कहें.

जैसे, मैं समझ रहा हूं, चिंता की बात है, तुम अपसेट हो, मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसे ही रिएक्ट करता,
मैं तुम्हे समझ सकता हूं, जैसे वाक्य आप के बच्चों को आप से कनेक्टेड महसूस कराते हैं. उन्हें एहसास होता है कि उन के अभिभावक उन्हें समझ रहे हैं. इससे वे अच्छा महसूस करने लगते हैं. वे अभिभावक से प्रौब्लम सौल्व करने में मदद लेने को इच्छुक हो उठते हैं. इस से बच्चों में सुरक्षा की भावना विकसित होती है और वे अभिभावक के साथ तार्किक रूप से सोचना शुरू कर देते हैं.

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 बच्चे को गाइडेंस चाहिए आर्डर नहीं

बच्चे के साथ दोस्ती का रिश्ता रखें. स्ट्रिक्ट पैरेंट की तरह हर समय औडर न दें. उन में  किसी भी परिस्थिति को देखने और समझने का नजरिया विकसित करें. हर छोटीबड़ी समस्या की जड़ तक जाना और सही समाधान निकालना सिखाएं. उन्हें हर तरह से गाइड करें मगर जबरदस्ती कभी न करें. उन्हें क्या पढ़ना है, किस से दोस्ती रखनी है, क्या खाना है या किस से किस तरह का व्यवहार करना है, जैसे मसलों पर अपनी राय जरूर दें. मगर अंतिम फैसला बच्चों पर छोड़ें. इस से उन में आत्मविश्वास भी आएगा और आप के प्रति उन के मन में इज्जत भी बढ़ेगी.

प्यार से समझाएं मारपीट से नहीं

बच्चों पर हिंसा कतई उचित नहीं. प्यार से समझाने पर बच्चा किसी भी बात को सही तरीके से समझता है और अपनी गलती का एहसास करता है. उस के मन में आप के प्रति सम्मान की भावना भी कायम रहती है. वही आप यदि उस के साथ मारपीट का व्यवहार करेंगे डांट कर डराएंगे तो वह जिद्दी और बदमिजाज बनता जाएगा. आप का रिश्ता भी बुरी तरह प्रभावित होगा और बड़े हो कर वह मारपीट और हिंसा को अपना हथियार बना लेगा. इस तरह उस के व्यक्तित्व का नेगेटिव साइड उभर कर सामने आने लगेगा.

सकारात्मक सोच विकसित करें नकारात्मक नहीं

बच्चों को हमेशा सकारात्मक वातावरण दीजिए. आपकी बातों से उन्हें अहसास दिलाएं कि जीवन में सब कुछ संभव है और वे कुछ भी कर सकते हैं. बच्चों के आगे संभावनाओं का संसार खुला रखें. नकारात्मक पहलुओं से बच कर रहना सिखाएं.

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जानें कैसे बनाएं चपाती सैंडविच

चपाती सैंडविच बनाने के लिए आप रात की बची रोटी का इस्तेमाल कर सकती हैं. चपाती सैंडविच खाने में जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही हेल्दी भी. और इसे बनाने में भी काफी कम समय लगता है. तो चलिए जानते हैं इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री

चार चपाती (ठंडी रोटी)

एक आलू

चीज

बटर

हरी चटनी

एक टमाटर

एक प्याज

एक ककड़ी

एक शिमला मिर्च

चाट मसाला

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विधि

सबसे पहले आलू को उबाल लें और आलू, प्याज, ककड़ी टमाटर और शिमला मिर्च को गोल शेप में काटें.

अब ठंडी रोटी लेकर उस पर हरी चटनी लगाएं. अब उस पर आलू और शिमला मिर्च की स्लाइस रखें और चाट मसाला और नमक छिड़क कर उसके ऊपर चीज को डालें.

अब दूसरी रोटी चीज पर रखें और इस रोटी पर भी हरी चटनी लगाएं. इस पर टमाटर और खीरा ककड़ी की स्लाइस रखें और चाट मसाला और नमक डालकर चीज से कवर करें.

अब एक और चपाती लेकर दूसरी चपाती के उपर रखकर उसके उपरी हिस्से पर हरी चटनी लगाएं.

अब तीसरी रोटी के उपर प्याज के स्लाइस को रखकर चाट मसाला और थोड़ा सा नमक डालकर उसके ऊपर चीज डालें. अब एक और रोटी लेकर तीसरी रोटी के उपर रख दें.

अब एक फ्राई पैन लें उसमे 1 चमच्च बटर डालकर चपाती को रख दें. गैस को मीडियम रखें और 2 से 3 मिनट तक पकने दें.

अब चपाती के ऊपरी हिस्से पर बटर लगा कर उसे तुरंत उलटा करें और उसे भी 2 से 3 मिनट तक पकने दें.

अब गैस को बंद कर दें और चपाती सैंडविच को किसी प्लेट में ले कर उसके स्लाइस काट लें और इसे टोमैटो सौस और हरी चटनी के साथ सर्व करें.

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असली चांदी के तारों से बुना है जेनिफर विंगेट का रेड ब्राइडल दुपट्टा

अगर छोटे पर्दे की पौपुलर और स्टाइलिश एक्ट्रेस की बात हो तो सबसे पहले खूबसूरत, क्यूट सी जेनिफर विंगेट का नाम आता है जो अपनी एक्टिंग के साथ लुक से भी लोगों को दीवाना बनाती है. जेनिफर एक बार फिर अपने लेटेस्ट शो में पहने गए शादी के दुपट्टे को लेकर चर्चा में है जो काफी महंगा है.

इस समय जेनिफर विंगेट सोनी टीवी पर आ रहे अपने लेटेस्ट शो ‘बेहद 2’ को लेकर खूब चर्चा में हैं. जिसमें वो ‘माया’ का जबरदस्त किरदार निभा रहीं है. इस शो में आपको जेनिफर की एक्टिंग के साथ स्टाइल के एक से बढ़ कर एक जलवे देखने को मिल रहे है. शो के दूसरे सीजन में माया का लुक दर्शकों के लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है.

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पिछले सीजन की तरह ही इस शो के सीजन को भी लोग खूब पसंद कर रहे हैं. ये शो शुरू से ही अपने भव्य सेट्स और किरदारों के शानदार अभिनय के कारण चर्चा का विषय बन गया है.

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इस शो के आने वाले एपिसोड में अब आप देखेंगे कि ‘रूद्र’, ‘माया’ के जाल में फंसकर उसके साथ शादी करने के लिए घर से भाग जाएगा. इस शादी वाले दृश्य के लिए ही जेनिफर ने 68 हजार रुपए की कीमत का ब्राइडल दुपट्टा पहना. इस दुपट्टे को असली चांदी के तारों से हाथ से बुना गया है और इसे एक परफेक्ट ब्राइडल दुपट्टा बनाने के लिए 3 कारीगरों ने मिलकर 48 घंटों तक काम किया.

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इस बारे में प्रोडक्शन टीम ने बताया कि माया की शादी रूद्र से हो रही है, तो उन्हें एक ब्राइडल लुक देना होगा. इसके लिए हमने उनके आउटफिट को ब्लैक रखा और इसके साथ एक हेवी रेड ब्राइडल दुपट्टा दिया है. इस शो में माया का लुक दर्शकों के लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है.

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बेहद 2 सोनी टेलीविजन के शो बेहद का सीक्वल है. ‘बेहद’ के पहले सीजन में जेनिफर विंगेट के साथ ही कुशल टंडन और अनेरी वजनी नजर आई थीं. बेहद के लेटेस्ट सीजन में जेनिफर के साथ इस बार अभिनेता शिविन नारंग और आशीष चौधरी भी नजर आ रहे हैं.

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