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ऐसे बनाएं पालक पूरी

पालक पूरी बनाना काफी आसान है. यह खाने में भी बहुत टेस्टी लगती है. पालक आयरन का सबेस अच्छा स्रोत है. पालक पूरी को आप ग्रेवी वाली सब्जी के साथ सर्व कर सकते हैं. तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री

गेंहू का आटा (2 कप)

पानी

घी (2 टी स्पून)

नमक (स्वादानुसार)

तेल (फ्राई करने के लिए)

पालक (पीसी हुई)

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बनाने की वि​धि

पीसी हुई पालक को आटे में मिला लें.

आटे में घी डालकर अच्छी तरह मिलाएं, इसमें नमक डालकर पानी के साथ गूंथ लें.

गूंथ हुए आटे को ढककर 30 मिनट के लिए एक तरफ रख दें.

अब पूरी बेल लें.

तेल गर्म कर लें और पूरियां तल लें.

यह एक बार में उपर आ जाएंगी, करछी इसे बीच में से दबाएं ताकि वह फूली हुई निकलें.

दोनों तरफ से हल्की ब्राउन होने दें.

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अगर मुंहासों से बचना हो तो भूलकर भी न करें ये 5 काम

मुंहासे युवा स्किन की एक आम समस्या है, जो ज्यादातर किशोरावस्था की शुरुआत के साथ ही पैदा होती है. यह शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंज का नतीजा है. लेकिन मुंहासों से जुड़ी कुछ चीजें ऐसी हैं, जिनके बारे में शायद आपको पता नहीं है. इन वजहों से भी आपके चेहरे पर मुंहासे पैदा होते हैं. कुछ लोग मानते हैं कि उनका खानपान खराब होने की वजह से मुंहासे निकल रहे हैं. मां-नानी टोकती हैं कि ज्यादा गर्म और चिकनाहट वाली चीजें मत खाओ. कभी कहती हैं कि मिर्च-मसाले वाला खाना मत खाओ. जबकि ये वजहें आपके मुंहासे का कारण नहीं हो सकती हैं. आप जिस तरह से अपनी त्वचा का ख्याल रखते हैं, वह महत्वपूर्ण है. यहां हम आपको कुछ ऐसी चीजें बता रहें है जो मुंहासे बढ़ाने का काम करती हैं. अगर आप अपनी इन आदतों में सुधार ले आयें तो मुंहासों से बच सकते हैं.

  1. बार-बार चेहरा धोना

मुंहासे से पीड़ित ज्यादातर लोग सोचते हैं कि चेहरे को छ: से सात बार धोना मुंहासे से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है. लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि, अतिरिक्त स्क्रबिंग या धोने से रोमछिद्र त्यादा खुल सकते हैं. जो बदले में आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचाता है और मुंहासों को और खराब कर देता है. इसके अलावा, चेहरे को धोने के दौरान गर्म पानी का उपयोग न करें. किसी भी साबुन का प्रयोग करने से पहले एक बार डौक्टर की सलाह जरूर लें. चेहरे को दिन में दो से तीन बार ही ठंडे पानी और डेटौल सोप से धोना अच्छा होता है.

2. मुंहासों को दबाना या फोड़ना

मुंहासों के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह न केवल आपका चेहरा खराब कर सकता है बल्कि सूजन पैदा करके त्वचा को और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. इसके अलावा, घावों के कारण त्वचा में संक्रमण का खतरा भी बढ़ा सकता है.

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3. औयल बेस्ड ब्यूटी प्रौडक्ट

मुंहासे तब होते हैं जब त्वचा के रोमछिद्र मृत त्वचा और तेल से घिरे होते हैं और बैक्टीरिया का निर्माण करते हैं.  आयल बेस्ड ब्यूटी प्रॉडक्ट का इस्तेमाल करने से त्वचा में और ज्यादा धूल व गंदगी चिपकती है. रोम छिद्र बंद होने से मुंहासों का आकार बढ़ सकता है और चेहरे पर सूजन भी आ सकती है. इसलिए अगर मुंहासे हैं तो आयल बेस्ड ब्यूटी प्रौडक्ट के इस्तेमाल से बचें और फेस क्रीम डौक्टर की सलाह पर ही यूज करें.

4. मौश्चराइजर का इस्तेमाल न करना

आमतौर पर लोग मुंहासे होने से मौश्चराइजर लगाने से बचते हैं, क्योंकि यह भी आयल बेस्ड होता है. लेकिन सौन्दर्य विशेषज्ञों का मानना है कि त्वचा की नमी बरकरार रखने के लिए आप थोड़ी मात्रा में मौश्चराइजर का प्रयोग अवश्य करें. इसके ज्यादा साइडइफेक्ट नहीं हैं.

5. तनाव में होना

जिन्हें मुंहासे की समस्या है उनके लिए तनाव लेना हानिकारक सिद्ध हो सकता है क्योंकि तनाव से मुंहासे और ज्यादा बढ़ते हैं. तनाव से बचने के लिए आपको मेडिटेशन या किसी हैप्पीनेस एक्टिविटी में हिस्सा लेना चाहिए. इससे आप ज्यादा से ज्यादा समय खुश रहेंगे और मुंहासों को बढ़ने से रोक पाएंगे.

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हिन्दूवादी नेताओं के कत्ल की जमीन

रणजीत श्रीवास्तव हत्याकांड

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था सुधारने के जितने प्रयास कर रहे  हैं, प्रदेश की कानून व्यवस्था उतनी ही खराब होती जा रही है. पुलिस का कमीश्नरी सिस्टम भी काम नहीं आया. राजधानी लखनऊ में सुबह शहर के बीच ओ बीच रणजीत की हत्या हो जाती है. रणजीत हिन्दूवादी नेता थे. कुछ माह पहले ही शहर के बीच में एक और हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या कर दी जाती है. हिन्दूवादी मुख्यमंत्री के राज में एक के बाद एक हिन्दूवादी नेताओं की हत्या योगी सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे है. रणजीत का महत्व इसलिये भी ज्यादा है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर का ही रहने वाला था. कमलेश तिवारी हत्याकांड के पुलिसिया खुलासे से उसका परिवार सहमत नहीं था. रणजीत श्रीवास्तव की हत्या में पुलिस के शक की सुई करीबी लोगों की ही तरफ घूम रही है.

रणजीत श्रीवास्तव गोरखपुर शहर के अहरौली गांव का रहने वाले था. 20 साल पहले रणजीत के पिता तारा लाल अपने परिवार के साथ गोरखपुर के भेडियाघाट पर रहने आये थे. इसके बाद तारा लाल के पतरका गांव में जमीन खरीदी. रणजीत खुद गोरखपुर में रहता था. रणजीत का पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था. ऐसे में वह अपनी बहुत पढ़ाई नहीं कर सका. उसकी माली हालत अच्छी नहीं थी. रणजीत श्रीवास्तव को एक्टिंग का शौक था. ऐसे में उसने अपना नाम रणजीत श्रीवास्तव से बदल कर रणजीत बच्चन कर लिया. वह फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से बहुत प्रेरित था. जब उसको एक्टिंग में सफलता नहीं मिली तो उसने नये लोगों को प्रशिक्षण देने का काम करने लगा. उसके पास इसके लिये कोई जगह नहीं थी. ऐसे में उसने टीनशेड के नीचे रंगमंच से जुड़े कलाकारों को प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया.

रंगमंच से जुड़े होने के बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाया तो उसने राजनीति और समाजसेवा को अपना रास्ता बनाया. रणजीत को सुर्खियों में रहने का शौक था. इसके लिये उसने कई सामाजिक संस्थाओं को बनाकर काम करना शुरू किया. सुर्खियों में रहने के लिये वह पत्रकार संगठन और जातीय संगठन भी बनाकर काम करने लगा. गोरखपुर में रणजीत ने जापनी इंसेफेलाइटिस, पल्स पोलियो, महापुरूषों की प्रतिमाओं को साफ सफाई करने का अभियान चलाया. इस बहाने वह राजनीति में भी खुद को रखना चाहता था. ऐसे में उसने गोरखपुर से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना काम शुरू करने का फैसला किया.

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पारिवारिक विवादों से नाता

एक तरफ का सामाजिक और राजनीतिक चेहरा था. दूसरी तरफ पारिवारिक विवादों से उसका नाता था. रणजीत की शादी कालिंन्दी के साथ हुई थी. कालिन्दी भी भेडियाघाट स्थित रणजीत के घर के पास की रहने वाली थी. 2017 में रणजीत की साली ने शाहपुर थाने में रणजीत के खिलाफ ही छेडखानी, मारपीट और बलात्कार का मामला दर्ज कराया था. पुलिस की मिलीभगत से रणजीत कागजों पर फरार चल रहा था. पुलिस ने खानापूर्ति के लिये रणजीत के पतरका गांव स्थित टीनशेड वाले घर पर कुर्की का आदेश चस्पा करके अदालत में कागजों पर फरार दिखा दिया था. साली के द्वारा बलात्कार का मुकदमा लिखाने के बाद रणजीत ने ससुराल से अपने संबंध खत्म कर लिये थे. रणजीत की पत्नी कालिन्दी भी अपनी बहन पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रही थी. इस कारण अब ससुराल से रणजीत के संबंध खत्म हो गये थे.

रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी को भी उससे शिकायत थी. रणजीत के स्मृति नामक महिला से अवैध रिश्ते बन गये थे. अवैध रिश्तों का विरोध करने पर कालिंदी और रणजीत की लड़ाई होती रहती थी. कालिंदी ने पति रणजीत के खिलाफ महिला थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी. कालिंदी के विरोध के बाद भी रणजीत ने अपनी गलती नहीं सुधारी. काफी समय तक रणजीत पत्नी और प्रेमिका दोनो को एक ही घर में रख रखा था. रणजीत ने बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से अपना रिश्ता बनाया. जिससे उसको राजनीतिक संरक्षण मिल सके. बसपा से उसको बहुत लाभ नहीं हुआ पर समाजवादी पार्टी के समय उसका राजनीति रसूख बढ़ गया जिसकी वजह से पुलिस उसको संरक्षण देने लगी थी.

साइकिल यात्रा का सफर

समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के समय रणजीत ने साइकिल से पूरे भारत भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. जब भारत भूटान साइकिल यात्रा निकली तो दल के नायक के रूप में रणजीत ने ही दल की अगुवाई की थी. इसके बाद रणजीत का नाम लिम्का बुक औफ वल्र्ड रिकार्ड में जुड़ गया. अखिलेश सरकार के दौर में अपने राजनीतिक रसूख का लाभ लेने के लिये रणजीत ने अपनी मां कौशिल्या देवी के नाम पर गांव वाली जमीन में ही वृद्वाआश्रम और अनाथ आश्रम खोलने की याजना बनाई और इसका भूमि पूजन भी किया. जिसमें जिले के तमाम प्रशासनिक अफसर शामिल भी हुये थे. जब से अखिलेश यादव की सरकार सत्ता से हटी तो उसे नये आसरे की तलाश करनी पडी. रणजीत के गोरखपुर शहर के रहने वाले मंहत योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये. ऐसे में रणजीत ने भी समाजवादी रूप छोडकर योगी आदित्यनाथ ही तरह हिन्दूवादी रूप बनाने का काम शुरू किया.

प्रदेश मे हिन्दूत्व की राजनीति के चमकने के लिये रणजीत ने भी हिन्दूवादी नेता की छवि बनाने का काम शुरू किया. ऐसे में उसने विश्व हिन्दू महासभा के अन्तराष्ट्रीय प्रमुख के रूप में खुद को प्रस्तुत करना शुरू किया. अखिलेश सरकार के समय में दिये गये ओसीआर के सरकारी आवास में वह रहता था. यही उसने 1 फरवरी 2020 शनिवार के दिन अपने जन्मदिन की पार्टी भी मनाई थी. कई लोग उसको बधाई देने सरकारी प्लैट पर पहुंचे थे. यही ओसीआर स्थित मंदिर में उसने सुदंरकांड की पार्टी भी रखी थी. समाजवादी विचारधारा पर पर्दा डालने के लिये रणजीत सिंह ने पिछले कुछ दिनो से प्रखर हिन्दुत्व का चेहरा चमकाना शुरू कर दिया था.

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जन्मदिन के बाद हत्या

1 फरवरी को अपने जन्मदिन की पार्टी मनाने वाले रणजीत को यह नही पता था कि अगले दिन मौत उसका इंतजार कर रही है. 2 फरवरी को सुबह करीब 5 बजकर 30 मिनट पर रणजीत अपने ओसीआर स्थित आवास से बाहर मार्निग वाक के लिये निकला. रणजीत के साथ पत्नी कालिन्दी और रिश्तेदार आदित्य ही था. ओसीआर ने विधानसभा मार्ग स्थित भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय से लालबाग ग्राउड की तरफ मुड गई. जहां वह जौगिग करती थी. रणजीत और आदित्यनाथ आगे बढ गये और हजरतगंज चैराहे से परिर्वतन चैक होते हुये ग्लोब पार्क के पास पहंुच गये. ग्लोब पार्क के पास शौल लपेटे एक युवक रणजीत के पास पहुंचा और दोनो पर पिस्टल तान दी. इसके बाद रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन छीन लिये. इसके बाद रणजीत के सिर पर पिस्टल सटा कर गोली मार दी. हमलावर ने आदित्य पर भी गोली चलाई जो उसके हाथ में लगी. इसके बाद हमलावर वहां से भाग निकला.

राहगीरों ने आदित्य के शोर मचाने पर पुलिस को खबर की. पुलिस हत्या की जानकारी देने रणजीत के आवास पर पहुंची तो गोरखपुर से रणजीत के साथ आये अभिषेक की पत्नी ज्योति उसे घर पर मिली और ज्योति ने फोन करके रणजीत की पत्नी कालिंदी को हत्या की सूचना दी. पति की हत्या का पता चलते ही कालिंदी सिविल अस्पताल पहुंच गई. वहां से पुलिस ने कालिंदी को अपने साथ ले लिया. जिसे बाद में पूछताछ के बाद चिनहट निवासी चचेरे भाई के साथ भेज दिया गया. हिन्दूवादी नेता की हत्या से पूरी राजधानी सकते में आ गई. कुछ महीने पहले से कमलेश तिवारी नामक एक और हिन्दूवादी नेता की हत्या हो चुकी है.

पुलसिया कमीश्नर व्यवस्था पर सवाल

राजधानी में अपराध को रोकने के लिये पुलिस व्यवस्था में योगी सरकार ने बदलाव किया था. जिसके तहत लखनऊ में पुलिस कमीश्नर सिस्टम लागू किया गया है. लखनऊ पुलिस ने मार्निग वाक करने वालो की सुरक्षा के लिये विशेष इंतजाम की बात कही थी. इसके बाद मार्निग वाक के समय रणजीत की हत्या ने लखनऊ पुलिस और नये कमीश्नरी सिस्टम को कठघरे में खडा कर दिया. रणजीत की हत्या के बाद आननफानन में जौइंट कमीश्नर औफ पुलिस नवीन अरोरा, एसीपी हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, एसीपी कैसरबाग संजीवकांत सिन्हा सहित कई अफसर मामले की छानबीन में लग गये.

पुलिस पर सबसे बडा सवाल इसलिये भी है कि हुसैनगंज स्थित ओसीआर से लेकर ग्लोब पार्क के बीच 6 पुलिस चैकिया पडती है. इसमें पहली चैकी ओसीआर के बाहर, दूसरी दारूलशफा, तीसरी मल्टीलेवल पार्किग, इसके बाद हलवासिया और फिर केडी सिंह बाबू स्टेडिमय के पास की पुलिस चैकी पडती है. इसके बाद भी हत्यारों को पकडा नहीं जा सका. पुलिस कमीश्नर सुजीत पाडंेय ने इस मामले में 4 पुलिसकर्मियो केडी सिंह चैकी प्रभारी संदीप तिवारी, पीआवी पर तैनात अनिल गुप्ता, अरविंद और आशीष को ससपेंड कर दिया.

घरेलू विवाद में ही हत्यारा तलाश रही पुलिस

रणजीत की हत्या को लेकर उसकी पत्नी कालिंदी का कहना है कि रणजीत कुछ दिनों से प्रखर हिन्दुत्व को लेकर बहस कर रहा था. नागरिकता कानून का भी समर्थन कर रहा था. ऐसे में हिन्दू विरोधी लोग उसके दुश्मन बने हुये थे. कालिंदी ले 50 लाख रूपये का गुआवजा, मकान और सरकारी नौकरी की मांग सरकार के सामने रखी है. लखनऊ के डीसीपी मध्य दिनेश सिंह के जरीये यह मांग पत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा गया है. पुलिस हत्या की पडताल में पारिवारिक बातों को लेकर छानबीन कर रही है. घरवालों के बयानों में कई भ्रम पैदा हो रहे है.

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ऐसे में हत्या की वजह पारिवारिक हो सकती है. रणजीत ऐसा कोई चेहरा नहीे था जिससे उसकी कोई राजनीतिक या सामाजिक दुश्मनी हो. वह अपने स्वार्थ के लिये ही विचारधारा बदल रहा था. कई महिलाओं के साथ संबंधो को लेकर वह विवादो में था. इसके साथ ही साथ सरकार में अपनी पहुंच के नाम पर लोगों के काम कराने का झांसा भी देता रहता था. हिन्दू महासभा के अनिल सिंह ने सरकार की लापरवाही को जिम्मेेदार मानते हुये कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था खराब है. 48 घंटे में अगर पुलिस ने कोई खुलासा नहीं किया तो सरकार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया जायेगा.

क्रिमिनल ऐक्ट की जिम्मेदारी केवल दिमाग पर होती है : मेघना गुलजार

गीतकार व संगीतकार Gulzar की बेटी Meghna Gulzar ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले अपने पिता को असिस्ट किया और बाद में पटकथा लेखन के क्षेत्र में उतरीं. उन्हें नई कहानियां कहना पसंद है और इस के लिए वे पूरी मेहनत करती हैं. फिल्म Filhal उन की निर्देशित डैब्यू फिल्म थी. इस के बाद उन्होंने ‘जस्ट मैरिड’, ‘दस कहानियां’, ‘तलवार’, ‘राजी’ आदि कई फिल्मों का निर्देशन किया और सफल रहीं.

वे हर कहानी को अपने तरीके से कहने की कोशिश करती हैं. वे अपनेआप को महिला निर्देशक नहीं, केवल निर्देशक कहलाना पसंद करती हैं. यही वजह है कि उन्होंने ‘छपाक’ जैसी फिल्म का निर्देशन किया और बेहद अलग ढंग से इसे फिल्माने की कोशिश की. फिल्म के प्रमोशन पर उन से बात करना रोचक था.

मेघना से यह पूछने पर कि दीपिका पादुकोण को इस तरह की भूमिका में लेने की खास वजह क्या रही, तो वे बताती हैं, ‘‘दीपिका पादुकोण ने सिर्फ ग्लैमरस भूमिकाएं ही नहीं निभाई हैं, उन्होंने कई अलग तरह की फिल्में भी की हैं. उन के काम का दायरा बहुत बड़ा है. दीपिका को इस भूमिका में लेने की खास वजह दीपिका की शारीरिक बनावट का Laxmi Agrawal से मिलना है. आज से 10 वर्षों पहले की दीपिका और लक्ष्मी की पिक्चर बहुत मेल खाती हुई है. इसलिए उन से अलग किसी और को लेना मेरे लिए संभव नहीं था.’’

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दीपिका को उस भूमिका में ढालना कितना मुश्किल था, इस पर मेघना ने कहा, ‘‘प्रोस्थेटिक के प्रयोग के अलावा उस व्यक्ति के चालचलन को अडौप्ट करना कलाकार का काम होता है. मैं केवल निर्देश दे सकती हूं, उस की मानसिक अवस्था को महसूस कर उसी रूप में किरदार को सामने लाना कलाकार की प्रतिभा और मेहनत होती है, जो दीपिका ने हूबहू की है.’’

दीपिका फिल्म ‘छपाक’ की प्रोड्यूसर भी हैं. इस का मेघना को क्या फायदा हुआ क्या नहीं, इस पर वे कहती हैं, ‘‘प्रोड्यूसर भी होने के चलते वे मेरे साथ हर काम में रहीं और अपना सब से अच्छा प्रदर्शन देना चाह रही थीं. कलाकार के रूप में अच्छे अभिनय की इच्छा तो रहती है, लेकिन प्रोड्यूसर बनने के बाद इस का फायदा अधिक होता है.’’

कहानी किस तरह का संदेश देने की कोशिश कर रही है, सवाल करने पर वे जवाब देती हैं, ‘‘यह कहानी एसिड वायलैंस की हकीकत को दिखाती है. कहेगी क्या, यह कहना मुश्किल है. मैं हर फिल्म को दर्शकों के ऊपर छोड़ती हूं. दर्शक काफी सैंसिटिव हैं और मेरा अनुभव यह रहा है कि वे कुछ न कुछ फिल्म से ले लेते हैं, और मैं उसे कंट्रोल नहीं करना चाहती.’’

बातोंबातों में मेघना से इस फिल्म को करने में मुश्किल क्या रही, पूछा, तो उन्होंने कुछ इस तरह जवाब दिया, ‘‘इस फिल्म को करते समय मुश्किल नहीं, पर कुछ बातें ध्यान में रखनी जरूरी थीं. पहली, ये एसिड फेंकने वाले लोग कोई भी बेचारे नहीं. दूसरी, फिल्म बनाते वक्त इसे बहुत अधिक डरावनी बनाना नहीं था कि दर्शक इसे देख कर डर जाएं या अपनी आंखें बंद कर लें. इस के अलावा इसे शुगर कोट भी नहीं कर सकते क्योंकि जो सचाई है उसे लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है. यह बैलेंस करना बहुत जरूरी था. मेरे इमोशंस फिल्म के रिलीज के बाद में आते हैं. इतना ही नहीं, दीपिका के लिए भी यह फिल्म बहुत चुनौतीपूर्ण थी. दिल्ली की गरमी, उस में प्रोस्थेटिक, धूप, धूल, पसीना आदि सबकुछ सहना पड़ा.’’

गुलजार साहब ने फिल्म ‘छपाक’ देखी है या नहीं, इस पर मेघना बताती हैं, ‘‘वे हमेशा मेरी फिल्म को देख कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. अभी तक उन्होंने पूरी फिल्म नहीं देखी है क्योंकि अभी वे मुंबई में नहीं हैं. लेकिन जितना भी उन्होंने देखा है, उस से उन की आंखें नम हो गई थीं. वे रो पड़े थे. मैं यह सम झ नहीं पाती कि वे मेरी फिल्म को देख कर इतना इमोशनल क्यों हो जाते हैं.’’

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तेजाब फेंकने की घटनाएं आज भी अखबारों की सुर्खियों में होती हैं. इसे कैसे कम किया जा सकता है? इस बारे में मेघना का कहना है, ‘‘क्रिमिनल ऐक्ट की जिम्मेदारी केवल क्रिमिनल के दिमाग में होती है. उस के परिवार, समाज या किसी पर नहीं होती. एसिड वायलैंस ऐसा है कि यह किसी भी वजह से लोग कर देते हैं. एकतरफा प्यार के अलावा संपत्ति विवाद पर भी एसिड अटैक होते हैं. हमारे पास एसिड अटैकर की कोई क्लियर प्रोफाइल नहीं है जिस से वजह सम झी जा सके, वह कोई भी हो सकता है क्योंकि एसिड आसानी से बाजार में मिलता है.’’

मेघना से जब यह पूछा गया कि ऐसी फिल्में व्यवसाय को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं, इस से पीडि़त लोगों को कितना फायदा होता है तो उन्होंने यों जवाब दिया, ‘‘मेरी इस फिल्म में कई एसिड विक्टिम्स ने काम किया है. यहां मेरा सब से कहना है कि उन्हें हम पैसे तो देते हैं, पर क्या उन्हें हम अपने साथ देखना या काम करना पसंद करते हैं, मैं ने इसे महसूस किया है.’’

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क्या ईगो की वजह से एसिड अटैक अधिक होते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में मेघना कहती हैं, ‘‘इसे परिभाषित करना मुश्किल है क्योंकि केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी अकसर पुरुषों पर तेजाब फेंकती हैं अगर उन्होंने शादी से इनकार किया हो वगैरहवगैरह. एक पिता भी कभी अपनी नवजात बेटी पर तेजाब फेंकता है. बहरहाल, इसे कम करने की जरूरत है और इसे कैसे कम करना है, इस का हल सब को खोजने की जरूरत है.’’

अब आगे क्या करने की इच्छा है, इस सवाल पर वे बताती हैं, ‘‘मु झे बच्चों की फिल्म बनाने की इच्छा है क्योंकि मेरा बेटा भी चाहता है. इस के अलावा कौमेडी फिल्म बनाने की इच्छा है.’’

अमेरिका के लंबे हाथ

अमेरिका ने साबित कर दिया है कि उस के हाथ अभी भी बहुत लंबे हैं और फिलहाल उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं है. चाहे उस का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इतना खब्ती क्यों न हो कि उस पर वहां की सांसद ने महाअभियोग का आरोप लगा रखा हो और मामला संसद में चल रहा हो. ट्रंप के आदेश पर अमेरिकी मानवरहित ड्रोन लड़ाकू हवाई जहाजों ने मिसाइलों से इराक की राजधानी बगदाद की सड़क पर जा रहे ईरान के आर्मी जनरल कासिम सुलेमानी की कारों का काफिला उड़ा दिया. जनरल कासिम सुलेमानी के जिस्म के परखच्चे उड़ गए.

अमेरिका इस से पहले ऐसा ही ओसामा बिन लादेन और अबू बकर अल बगदादी के साथ कर चुका है. अमेरिका की सत्ता को चुनौती देने वाला कोई बन नहीं सकता, ऐसा संदेश अमेरिका बिना हवन, पूजन, अल्पसंख्यकों पर बरस कर कर सकता है और साथसाथ पूरे सुबूत भी पेश कर सकता है.

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान की कमर टूट गई, पाकिस्तान की पोल खुल गई क्योंकि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही छिपा हुआ था.

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इसलामिक स्टेट का मुखिया अबू बकर अल बगदादी, जिस ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था, को मार कर अमेरिका ने साबित कर दिया कि वह ऐसा लोकतांत्रिक देश है जो अपने अखबारों से तो डरता है पर मिसाइल रखने वालों से नहीं डरता.

जनरल कासिम सुलेमानी ने पिछले 20 सालों में ईरान की खुफिया सेना को चलाया था और उन के गुप्तचर इसराईल को नष्ट करने की मुहिम में जुटे थे. धार्मिक मतभेदों के चलते शिया मुसलिम देश ईरान की सुन्नी मुसलिम बहुल देश सऊदी अरब व कुछ अन्य अरब देशों से नहीं बनती है. अमेरिका का आरोप है कि जनरल सुलेमानी का खूंखारपन में बड़ा हाथ रहा था.

ईरान की क्रांति, जिस में शाह रजा पहलवी का तख्ता पलटा गया था, के बाद सेना में भरती हुए जनरल सुलेमानी ने धीरेधीरे अपनी ईमानदारी व बहादुरी से सेना का सर्वोच्च स्थान पा लिया था.

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यह युद्धबाजी, यह धार्मिक द्वंद्व, यह रेस और जाति का विवाद इंटरनैट, विज्ञान, तर्क, सुविधाओं के युग में उसी तरह चल रहा है जैसे पिछली 20-30 सदियों के दौरान चल रहा था. इंटरनैट से सोचा गया था कि विभाजन की ये लकीरें मिट जाएंगी पर धर्म के प्रचार का जोर इतना प्रभावी है कि उस ने इंटरनैट पर कब्जा कर लिया और उसे धर्मप्रचार के काम में लगा डाला. ईरान भी धर्म का खूब प्रयोग करता है.

अपराधिनी : भाग 3

लेखिका-  रेणु खत्री

‘‘उन्होंने मुझे घर में रखने से इनकार कर दिया. मैं मायके आ गई. मेरा दुख मां से सहन नहीं हुआ और वे बीमार पड़ गईं व 2 माह के भीतर ही वे भी मुझे छोड़ गईं.

‘‘पापा के किसी मित्र ने मेरे लिए दूसरा रिश्ता खोजा. पर मुझ में अब समय से लड़ने की और ताकत न थी. मैं ने दूसरे विवाह से मना कर दिया. पापा भी मेरी तरफ से परेशान रहने लगे. सो, मैं ने खुद को व्यस्त रखना शुरू किया. पहलेपहल तो मैं किताबों में उलझी रहती थी, उन्हें ही पढ़ती थी. फिर एक दिन किसी ने मुझे समाजसेवी संस्था से जुड़ने का सुझाव दिया. मुझे यह बहुत पसंद आया. अगले ही दिन मैं उस संस्था से जुड़ गई और मेरे जीवन को एक नई दिशा मिल गई. पापा अपने पैतृक गांव चले गए. वहीं चाचाजी, ताऊजी के परिवार के साथ उन का वक्त भी आसानी से कट जाता है और मुझे खुश देख कर उन्हें संतुष्टि भी होती है,’’ यह कह कर वह मुसकरा दी.

अब मेरे नयन बरसने लगे. मैं ने अपने हाथ जोड़ उस से क्षमा मांगी अपने उन शब्दों के लिए जो मैं ने 20 वर्षों पहले गुस्से में उस से कहे थे. पर वह तो मानो विनम्रता, सहनशीलता और प्रेम की साक्षात रूप थी. मुझे गले से लगा कर बोली, ‘‘याद है तुम्हें, दादी ने क्या कहा था? सब समय से मिलता है. मेरा समय मुझे मिल गया. जो हुआ, अच्छा हुआ. अब तो मेरी अपनी पहचान है.’’ वह फिर मुसकरा दी.

मेरी आंखें पोंछ कर उस ने मुझे पानी पिलाया और बड़ी ही फुरती से उठी. दौड़ कर मेरे मनपसंद समोसे ले कर आई, ‘‘इन्हें खाओ, मैं ने खुद बनाए हैं,’’ कह कर प्लेट मेरे हाथ में दी. फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आया न मां के हाथ के बने समोसे वाला स्वाद. उन्हीं से सीखे थे मैं ने.’’ मेरी आंखें फिर बरसने लगीं. माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए वह जोर से हंसी और बोली, ‘‘अरे यार, इतनी मिर्च तो नहीं है इस में जो तुम्हारी आंखों में पानी आ रहा है.’’ कह कर उस ने बर्फी का एक बड़ा टुकड़ा मेरे मुंह में ठूंस दिया और मैं खिलखिला कर हंस पड़ी.

बहुत देर तक हम बातें करते रहे. इस बीच, उस की संस्था से उस के पास कई फोन आए. सभी प्रश्नों के वह संतोषजनक उत्तर देती और फिर हम वापस पुरानी यादों में खो जाते.

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वहां से वापस लौटते समय बड़े ही भय के साथ मैं ने वो उपहार उसे देने चाहे, पर साहस ही नहीं जुटा पा रही थी. शायद उस ने मेरा मन पढ़ लिया था, तभी वह चहक कर बोली, ‘‘तुम इतने सालों में मिली हो, मेरे लिए कोई तोहफा तो जरूर लाई होगी. इसे दो न मुझे.’’ बच्चों की तरह मुझे झकझोर कर कहने लगी, ‘‘तुम से तोहफा लिए बिना तो तुम्हें यहां से जाने ही नहीं दूंगी,’’ वह फिर मुसकराई.

अब मैं ने उस की बात मानते हुए उन उपहारों को उसे भेंट किया. मेरे नयन अभी भी सजल थे. उपहार लेते समय वह खुशी से मानो उछल पड़ी हो. ‘‘मेरे तो बहुत सारे बच्चे हैं. ये उपहार पा कर वे बहुत खुश होेंगे. इसे तो मैं ड्राइंगरूम में सजाऊंगी,’’ ऐसा कह कर उस ने मेरा और मेरे लाए हुए उपहारों का बहुत मान रखा.

यों ही सुकून का एहसास दिलाती, सधी हुई बातों से, वर्तमान लमहों को पूरे मन से जीने का कौशल सिखलाती, उत्साह से भरपूर वह मुझे बाहर तक विदा करने आई इस वादे के साथ कि कल रविवार को शशांक के साथ फिर मिलने आना है.

मैं वहां से चल दी. गाड़ी में बैठे पूरे रास्ते मेरे मन में एक अजीब सी उलझन हिचकोले खाती रही. अपनी जिंदगी, अपने सपने, मात्र अपना ही भला चाहने के स्वार्थ में मैं ने उस बेकुसूर को न जाने क्याक्या कह दिया था. फिर भी, उस के नयनों में स्नेह, हृदय में प्यार और अपनापन देख कर मैं स्वयं को बहुत बड़ी अपराधिन महसूस कर रही थी.

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दादी की जिस सीख को मैं ने अपनाना तो दूर, कभी उसे तवज्जुह भी नहीं दी, आज फिर याद आई. वही दादी, जो कहती थीं, ‘सबकुछ नियति तय करती है. हम सभी उस नियति के मोहरे मात्र हैं. कभी भी किसी से आहत करने वाले शब्द मत बोलो कि उस के घाव कभी भर न पाएं और वे नासूर बन जाएं.’

अब लगता है शायद नियति ने ही ऐसा तय कर रखा था कि मेरे स्थान पर शैली आ गई. उस ने भी मित्रता का क्या खूब फर्ज निभाया, मेरे जीवन में आने वाले बुरे समय को उस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह भले ही सबकुछ भुला कर मुझे माफ कर दे, पर मैं अपनी ही नजरों में ताउम्र उस की अपराधिनी रहूंगी.

अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है कार्बनिक खादें

किसान के लिए मिट्टी उतनी ही जरूरी है, जितनी हमारे लिए हवा या पानी, लेकिन ज्यादा फसल लेने के चक्कर में ज्यादातर किसान कैमिकल खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर के मिट्टी की ताकत को कमजोर कर देते हैं.

मिट्टी में कई तरह के खनिज तत्त्व पाए जाते हैं, जो जरूरी पोषक तत्त्वों का जरीया होते हैं. लेकिन लंबे समय तक मिट्टी पौधों के लिए पोषक तत्त्व नहीं दे सकती, क्योंकि लगातार फसल लेते रहने से मिट्टी में एक या कई पोषक तत्त्वों का भंडार कम होता जाता है.

एक समय ऐसा आता है कि मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी का असर फसल पर दिखाई देने लगता है. ऐसी हालत से बचने के लिए जरूरी होता है कि जितनी मात्रा में पोषक तत्त्व व जमीन से पौधों द्वारा लिए जा रहे हैं, उतनी ही मात्रा में जमीन में वापस पहुंचें. जमीन में पोषक तत्त्वों को वापस पहुंचाने के लिए खाद सब से अच्छा जरीया है. खाद 2 तरह की होती हैं, कार्बनिक और अकार्बनिक.

अकार्बनिक खाद को कैमिकल खाद भी कहा जाता है. यह सभी जानते हैं कि बढि़या बीज, कैमिकल खाद व सिंचाई का हमारे देश की खाद्यान्न हिफाजत में अहम भूमिका होती है.

हरित क्रांति से पहले भी हमारे देश में भुखमरी के हालात थे, लेकिन हरित क्रांति के बाद बढि़या बीज और कैमिकल खादों के इस्तेमाल से हमारी उत्पादकता साल 1990 तक खूब बढ़ी. लेकिन उस के बाद या तो उत्पादकता में ठहराव आ गया, या फिर उस में गिरावट आने लगी.

उत्पादकता में ठहराव या उस में गिरावट की खास वजह है कैमिकल खादों का लगातार असंतुलित यानी बेहिसाब और जरूरत से ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल. मिट्टी में हो रहे बदलाव की पिछले 2 दशकों से लगातार चर्चा हो रही है. लगातार कैमिकल खादों के असंतुलित इस्तेमाल से मिट्टी बंजर हो रही है. मिट्टी का पीएच मान प्रभावित हो रहा है व फायदेमंद बैक्टीरिया की तादाद कम हो रही है.

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मतलब, मिट्टी की भौतिक, कैमिकल व जैविक तीनों दशाएं प्रभावित हो रही हैं. अगर लगातार कैमिकल खादों का इस्तेमाल चलता रहा, तो एक समय ऐसा आएगा कि मिट्टी की उत्पादकता काफी घट जाएगी और हमारे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर सवालिया निशान लग जाएगा.

अब सवाल यह उठता है कि क्या हम कैमिकल खादों के इस्तेमाल को कम कर अपनी उत्पादकता बनाए रख सकते हैं? इस का जवाब यह है कि हम उसी दशा में उत्पादकता बनाए रख सकते हैं, जब कैमिकल खादों की कमी के चलते होने वाले पोषक तत्त्वों की कमी की भरपाई दूसरे जरीए से करें यानी पौधों के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत में कोई बदलाव न हो, बदलाव जरीए में हो.

मौजूदा समय में कैमिकल खादों की जरूरत के कुछ भाग को कार्बनिक खादों का इस्तेमाल कर पूरा किया जा सकता है. लेकिन पूरी तरह कार्बनिक खादों के इस्तेमाल से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. जैसे, इन परेशानियों में पहले कुछ सालों में पैदावार में गिरावट मुमकिन है. साथ ही, सौ फीसदी भरपाई के लिए कार्बनिक खादों की जरूरत बहुत होगी. इस वजह से लागत ज्यादा लगानी पड़ेगी.

जैसे, अगर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन किसी फसल को देनी है, तो तकरीबन 260 किलोग्राम यूरिया की जरूरत पड़ेगी. लेकिन अगर कोई कार्बनिक खाद, जिस में नाइट्रोजन 1 फीसदी है, इस्तेमाल करनी है, तो उस की 12 टन की जरूरत होगी, जो बहुत बड़ी मात्रा है. ऐसे में कैमिकल खादों के कुछ भाग की भरपाई करना ही ठीक होगा.

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कार्बनिक खादों का इस्तेमाल खेती के टिकाऊपन के लिए बहुत जरूरी है. मिट्टी में मौजूद जीवांश को मिट्टी का च्यवनप्राश माना जा सकता है. जैसे इनसानी शरीर के लिए च्यवनप्राश शरीर की सक्रियता के लिए अच्छा माना जाता है, उसी तरह मिट्टी की सेहत के लिए जीवांश की सही मात्रा में मौजूदगी जरूरी होती है.

आमतौर पर देखने में आ रहा है कि मिट्टी में लगातार जीवांश में कमी हो रही है, जिस का मिट्टी की सेहत पर बुरा असर दिख रहा है, इसलिए मिट्टी में जीवांश की मात्रा बनाए रखना बहुत ही जरूरी है.

मिट्टी में जीवांश की मात्रा को कार्बनिक खादों के इस्तेमाल से बनाए रखा जा सकता है या बढ़ाया जा सकता है. ये कार्बनिक खादें अलगअलग हो सकती हैं. जैसे, गोबर की सड़ी खाद, नाडेप कंपोस्ट या केंचुए की खाद.

इस के अलावा कई उत्पाद ऐसे हैं, जिन का कचरा पौधों की खुराक के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे, हरी खाद व फसल का कचरा जमीन में मिला कर भी मिट्टी में जीवांश की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है.

हरी खाद के रूप में ढैंचा व सनई खास फसल हैं. ग्वार व लोबिया भी इस में लिया जा सकता है.

दलहनी फसलों के इस्तेमाल से जहां मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ाई जा सकती है, वहीं नाइट्रोजन व फास्फोरस की मौजूदगी को बढ़ाया जा सकता है.

जीवांश की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की पानी लेने की कूवत बढ़ जाती है. जीवांश ही मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया की सक्रियता के लिए ऊर्जा का जरीया हैं. ये बैक्टीरिया जमीन में विभिन्न प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, जिन से विभिन्न पोषक तत्त्वों की उपलब्धता पौधों के लिए सुनिश्चित होती है.

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मिट्टी में होने वाले कैमिकल बदलाव का भी जीवांश विरोध करता है. पोषक तत्त्वों का जमीन से रिसाव भी जीवांश की पर्याप्तता से कम हो जाता है. इन सब गुणों के अलावा जीवांश का एक महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि यह विभिन्न पोषक तत्त्वों का जरीया है.

नैतिकता से परे : भाग 2

लेखक: अलंकृत कश्यप

नैतिकता से परे : भाग 1

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काम सीखने के दौरान वह अपनी बहन रूबी के यहां मोहल्ला कनक विहार में आ कर ठहर जाता था. रोजाना दिन निकलते ही वह प्लंबिंग का काम करने निकल जाता था और दिन ढले बहन के घर लौटता था. धीरेधीरे उस का कामधंधा चल निकला. आलोक की बहन का विवाह अनिल गुप्ता के साथ हुआ था.

धीरेधीरे आलोक गुप्ता ने लखनऊ शहर में अपना कामधंधा जमा लिया तो उस ने बहन के घर से अलग दूसरी जगह रहने का मन बना लिया. फिर उस ने कनक विहार सिटी में भोलाराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया. कुछ दिनों वहां रहने के बाद वह भोलाराम का कमरा खाली कर सलेमपुर पतौरा गांव के निकट दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के यहां किराए पर रहने लगा.

सिपाहीराम का काफी बड़ा मकान था. सिपाहीराम भी आलोक की तरह हंसमुख था, इसलिए कुछ ही दिनों में वह उस से घुलमिल गया. शाम को आलोक जब काम से वापस लौटता था तो खाना खा कर चहलकदमी को निकल जाता था. यह उस की रोजमर्रा की दिनचर्या थी. वह सिपाहीराम की परचून की दुकान पर बैठ कर पान मसाला खाता और घूमने के बाद अपने कमरे में जा कर सो जाता था.

आलोक लगभग 25 साल का नौजवान था. वह खर्चीला और दिलफेंक आदमी था. 18 अगस्त, 2019 की बात है. आलोक बुद्धेश्वर चौराहे पर खड़ा सब्जी ले रहा था. उस समय रात के 8 बजे थे. सब्जी ले कर वह ज्यों ही मुड़ा, उस का सामना दयावती से हो गया.

दयावती आलोक से भलीभांति परिचित थी. आलोक जब कनक विहार सिटी में भोलाराम के मकान में किराए पर रह रहा था, तब दयावती भी उसी मकान में रह रही थी. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. दयावती शादीशुदा थी और उस का पति नौकरी करता था.

एक बार आलोक अपने गांव फरेंदा आया हुआ था. गांव में कई दिन रुकने के बाद वह अपने कमरे पर पहुंचा तो पता चला भोलाराम द्वारा मकान का किराया बढ़ाने पर कई किराएदार कमरा खाली कर के चले गए. दयावती भी उन में से एक थी.

दयावती के जाने का अशोक को अफसोस हुआ. आलोक को यह पता नहीं चल सका कि दयावती ने किराए पर दूसरा कमरा कहां लिया है. इस के बाद आलोक ने भी भोलाराम का कमरा खाली कर के सिपाहीराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया था.

कई महीने बाद उस दिन आलोक और दयावती की अचानक मुलाकात हुई थी. दयावती ने उस से पूछा कि अब तुम कहां रह रहे हो तो उस ने बताया कि वह दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के मकान में रह रहा है. वहां अभी भी कई कमरे खाली पड़े हैं.

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दयावती उस दिन काफी देर तक आलोक से बातें करती रही. दयावती ने आलोक कुमार से सिपाहीराम के मकान का पता पूछ लिया और यह कह कर चली गई कि वह अपने पति रामकिशन पर सिपाहीराम के मकान में किराए पर रहने के लिए दबाव डालेगी.

2-4 दिन बाद ही दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां कमरा देखने पहुंच गई. कमरा पसंद आने पर वह मकान मालिक को किराए का एडवांस दे आई. हालांकि सिपाहीराम रामकिशन से अनजान था, वह उसे कमरा देने में आनाकानी करता रहा. लेकिन जब आलोक ने कहा कि वह रामकिशन को जानता है, इस के बाद ही उस ने उसे कमरा दिया.

दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां आ कर रहने लगी. चूंकि दयावती आलोक से पहले से काफी घुलीमिली थी, इसलिए उसे नई जगह पर एडजस्ट होने में कोई दिक्कत नहीं हुई. सिपाहीराम ने घर में ही परचून की दुकान खोल रखी थी. मोहल्ले के लोगों को सिपाहीराम की दुकान से रोजमर्रा की जरूरतें आसानी से सुलभ हो जाती थीं. आलोक की जमानत पर सिपाहीराम ने रामकिशन को दुकान का सामान उधार देना शुरू कर दिया था.

सिपाहीराम की इस सहानुभूति से दयावती भी उस में ज्यादा रुचि लेने लगी थी. सिपाहीराम उस की हर परेशानी को दूर करने के लिए तैयार रहता था. दयावती को सिपाहीराम के मकान में रहते 2-3 महीने बीत चुके थे. वह धीरेधीरे सिपाहीराम की तरफ आकर्षित होती गई. दयावती ने सिपाहीराम के मन की खोट पहचान ली थी.

बहकी हुई औरतों को पराए मर्दों की तरफ आकर्षित होते देर नहीं लगती. दयावती को भी सिपाहीराम को आकर्षित करने में ज्यादा समय नहीं लगा.

लेकिन दयावती और आलोक के अंतरंग संबंधों की बात भी सिपाहीराम से छिपी न रह सकीं. समय ने करवट बदली और दयावती व आलोक की मुलाकातें फिर से होने लगीं. वहां रहने के दौरान दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित रहने लगे.

उधर सिपाहीराम भी दयावती को चाहने लगा था, लेकिन उस के मकान में रह रही महिलाओं की दिन में होने वाली चहलपहल से उसे दयावती से बात करने और मिलने का मौका नहीं मिल पाता था.

एक बार की बात है. आलोक अपने पैतृक गांव फरेंदा जाने की तैयारी कर चुका था. मौका पा कर दयावती ने आलोक को रोकते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे और तुम्हारे भाई रामकिशन के लिए पूड़ीकचौड़ी बना रही हूं. तुम अपने कमरे में जा कर लेटो, मैं खाना बना कर लाती हूं. खाना खा कर तुम गांव चले जाना.’’

आलोक अपने कमरे का दरवाजा बंद कर चुका था. वह वापस आ कर दयावती के कमरे में जा कर लेट गया. कुछ ही देर में दयावती थाली में खाना परोस कर आलोक के सामने आ खड़ी हुई. आलोक उस समय खाना खा रहा था.

एक दूसरी किराएदार महिला ने आलोक को दयावती के कमरे में खाना खाते देखा तो वह सुलग उठी. वह अपनी भड़ास निकालते हुए उस के गैस चूल्हे के पास खड़ी हो कर बोली, ‘‘अब तो गैरमर्दों को भी खाना खिलाने की जरूरत पड़ने लगी. अपना खर्च तो पूरा होता नहीं, गैरमर्दों को घर में बिठा कर खाना खिलाया जाता है.’’

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इस के बाद वह महिला सीधी सिपाहीराम के पास गई और कहने लगी, ‘‘दयावती के यहां बाहरी लोगों की खूब आवभगत होती है, कभी तुम्हें एक कप चाय के लिए पूछा है उस ने?’’

यह बात सुन कर सिपाहीराम दयावती के कमरे के सामने जा कर खड़ा हो गया, क्योंकि राजवती के मुंह से यह बात सुन कर सिपाहीराम आगबबूला हो उठा था. सिपाहीराम उम्रदराज बेशक था, लेकिन वह दयावती को चाहता था. उस दिन उस ने दयावती से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उसे इस बात की तसदीक हो गई कि दयावती उसे न चाह कर आलोक को ज्यादा चाहती है.

यही गांठ सिपाहीराम के मन में घर कर गई. सिपाहीराम यह बात भलीभांति समझ गया कि दयावती और आलोक के संबंध पतिपत्नी जैसे हैं.

आलोक और दयावती की निकटता मकान मालिक सिपाहीराम की आंखों में कांटा बन कर खटकने लगी. उस ने कई बार आलोक कुमार को समझाया भी कि वह शरीफ आदमी बन कर रहे. दयावती का चक्कर छोड़ दे. लेकिन आलोक ने उस की बातों पर गौर नहीं किया.

आखिर सिपाहीराम ने उसे रास्ते से हटाने की अपनी क्रूर योजना बना ली. इस योजना में उस ने कनक सिटी के मोनू पांडेय, बबलू प्रजापति और सलेमपुर पतौरा के कल्लू उर्फ हिमांशु गुप्ता, संतोष और अरुण यादव को शामिल कर लिया.

उस दिन 12 अक्तूबर, 2019 को सिपाहीराम ने साढ़े 9 बजे रात को शराब मंगाई और आलोक को भी इस पार्टी में शामिल कर लिया. उस के सभी साथियों ने मिल कर शराब पी.

शराब पीने के बाद योजनानुसार खूब विवाद हुआ. फिर सिपाहीराम के साथियों ने मिल कर उस की दुकान पर ही आलोक को ईंटों से कुचल कर लहूलुहान कर दिया. उस के बाद उन्होंने फोन कर के एंबुलेंस बुला ली.

वे उसे ऐरा अस्पताल की ले गए. एंबुलेंस के ड्राइवर ने कहा कि वह इस घायल आदमी को सरकारी अस्पताल के अलावा और कहीं नहीं ले जाएगा. तब उन्होंने सरकारी अस्पताल के गेट पर एंबुलेंस रुकवा ली और मरणासन्न अवस्था में आलोक को अपनी बाइक से लाद कर मलीहाबाद थाना क्षेत्र की ओर ले गए. दूसरी बाइक पर उस के अन्य साथी भी थे.

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इन लोगों ने तिलसुगा गांव के निकट नाले के किनारे जा कर घायल आलोक को फेंक दिया.

वहीं उस की मौत हो गई. इस के बाद मकान मालिक सिपाहीराम ने खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए अपहरण करने की सूचना रूबी के भाई को दे दी.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस फरार आरोपी संतोष सिंह के संभावित स्थानों पर दबिश दी, लेकिन वह फरार था. अंतत: 22 अक्तूबर, 2019 को मुखबिर की सूचना पर आरोपी संतोष सिंह लोधी भी उन के हत्थे चढ़ गया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.

अपराधिनी : भाग 2

लेखिका-  रेणु खत्री

मेरे लिए कार कंपनी के मालिक, बेहद आकर्षक रोहित का रिश्ता आया. वे मुझे देखने आ रहे थे. मेरी मां, दादी और चाची तो थीं ही मेहमानों की खातिरदारी हेतु, परंतु मैं ने शैली और उस की मां को भी बुलवा लिया. सभी ने मिल कर बहुत अच्छी रसोई बनाई. देखनेदिखाने की रस्म, खानापीना सब अच्छे से संपन्न हो गया. अगले सप्ताह तक जवाब देने को कह कर लड़के वाले विदा ले चले गए.

मधुर पवन की बयार, बादलों की लुकाछिपी, वर्षा की बूंदें, प्रकृति की छुअन के हर नजारे में मुझे अपने साकार होते स्वप्नों की राहत का एहसास होता. लेकिन उस दिन मानो मुझ पर वज्रपात हो गया जब रोहित ने मेरे स्थान पर शैली को पसंद कर लिया. वादे के अनुसार, एक सप्ताह बाद रोहित के मामा ने हमारे यहां आ कर शैली का रिश्ता मांग लिया.

एक बार तो हम सभी हैरान रह गए और परेशान भी हुए. बस, एक मेरी अनुभवी दादी ने सब भांप लिया कि यहां बीच राह में समय खड़ा है. मेरी मां का तो यह हाल था कि वे मुझे ही डांटने लगीं कि तुम ने ही शैली को बुलाया था न, अब भुगतो. पर मेरी दादी रोहित के मामाजी को शैली के घर ले कर गईं. उन्हें समझाया. दादी शैली की शादी से भी खुश थीं.

तनाव दोनों घरों में था. मेरे तो सपने टूट गए. इतना अच्छा रिश्ता शैली की झोली में जाने से मेरी मां का स्वार्थ जाग उठा. वे शैली व उस की मां को भलाबुरा कहने लगीं और मैं ने अपनेआप को एकांत के हवाले कर दिया.

इस घटना से मेरे अंदर न जाने क्या दरक गया कि मेरे जीवन का सुकून खो गया और मेरी मित्रता मेरे अविश्वास की रेत बन कर मेरे हाथों से यों ढह गई मानो हमारी दोस्ती एक छलावा मात्र हो जिसे किसी स्वार्थ के लिए ही ओढ़ा हो.

उधर, शैली नहीं चाहती थी कि हमारी दोस्ती इस रिश्ते की वजह से समाप्त हो. मेरी दादी ने इस बीच पुल का काम किया. उन्होंने पापा को समझाया, ‘शैली भी हमारी ही बेटी है. बचपन से हमारे यहां आतीजाती रही है. हम उसे अच्छी तरह जानतेसमझते हैं. फिर क्यों नहीं सोचते कि वह स्वार्थी नहीं है. वह हमारी प्रिया के मुकाबले ज्यादा सूबसूरत है, गुणी भी है. क्या हुआ जो रोहित ने उसे पसंद कर लिया. अरे, अपनी प्रिया के लिए रिश्तों की कमी थोड़े ही है.’

पापा दादी की बात से सहमत हो गए. मैं दादी की वजह से इस शादी में बेमन से शरीक हुई थी. विदाई के समय शैली मेरे गले लग कर इस कदर रोई मानो वह मुझ से आखिरी विदाई ले रही हो.

शैली की शादी के बाद उस की मां से मैं ने बोलना छोड़ दिया. लगभग 2 महीने बाद शैली मायके आई. वह मुझ से मिलने आई. मेरी दादी ने उसे बहुत लाड़ किया. पर मैं ने और मेरी मां ने उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. मेरी मां तो उसे अनदेखा कर बाजार चली गईं और मैं ने उस का हालचाल पूछने के बजाय उस से गुस्से में कह दिया, ‘अब तो खुश हो न मुझे रुला कर. मेरे हिस्से की खुशियां छीनी हैं तुम ने. तुम कभी सुख से नहीं रह पाओगी.’

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वह रोती हुई बाहर निकल गई और उस के बाद मुझ से कभी नहीं मिली. इस तरह की भाषा बोलना हमारे संस्कारों में नहीं था. और फिर, वह तो मेरी जान थी. फिर भी, पता नहीं कैसे मैं उस के साथ ऐसा व्यवहार कर गई जिस का मुझे उस वक्त कोई पछतावा नहीं था.

दादी को मेरा इस तरह बोलना बहुत बुरा लगा. उन्होंने मुझे बहुत डांटा और उसे मनाने के लिए कहा. पर मैं अपनी जिद पर अड़ी थी. मुझे अपने किए का पछतावा तब हुआ जब शैली का परिवार दिल्ली को ही अलविदा कह कर न जाने कहां बस गया.

वक्त बहुत बड़ा मरहम भी होता है और सबक भी सिखाता है. वह तो निर्बाध गति से चलता रहता है और हर किसी को अपने हिसाब से तोहफे बांटता रहता है. मुझे भी शशांक के रूप में वक्त ने ऐसा तोहफा दिया जो मेरे हर वजूद पर खरा उतरा. इन 19 वर्षों में उन्होंने मुझे शिकायत का कोई अवसर नहीं दिया. मोटर पार्ट्स की कंपनी में मैनेजर के पद पर विराजित शशांक ने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अच्छे से अच्छे विद्यालय में पढ़ाना और घर पर भी हम सभी को हमेशा भरपूर समय दिया है उन्होंने.

वक्त के साथ मैं बहुतकुछ भूल चुकी थी. पर आज शैली के साथसाथ दादी भी बहुत याद आने लगीं. सही कहती थीं दादी, ‘बेटा, कभी ऐसा कोई काम मत करो कि तुम अपनी ही नजरों में गिर जाओ.’ आज मेरा मन बहुत बेचैन था. मैं शैली से मिल अर अपने किए की माफी मांगना चाहती थी. मेरे व्यवहार ने उसे उस समय कितना आहत किया होगा, इसे मैं अब समझ रही थी. यादों के समंदर में गोते खाते वह समय भी नजदीक आ गया जब हमें उस से मिलने जाना था.

हैदराबाद की राहों पर कदम रखते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं. अपनेआप में शर्मिंदगी का भाव लिए बस यही सोचती रही कि कैसे उस का सामना कर पाऊंगी. हमारी आपसी कहानी से शशांक अनभिज्ञ थे. एक बार तो मैं शैली से अकेले ही मिलना चाहती थी. सो, मैं ने शशांक से कहा, ‘‘आप अपने औफिस की मीटिंग में चले जाइए, मैं टैक्सी ले लूंगी, शैली से मिल आऊंगी.’’ उन्हें मेरा सुझाव ठीक लगा.

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अब मैं बिना किसी पूर्व सूचना के शैली के बताए पते पर पहुंच गई. उसी ने दरवाजा खोला. उस का शृंगारविहीन सूना चेहरा देख कर मेरा दिल बैठने लगा. हम दोनों ही गले लग कर जीभर रोए मानो आंसुओं से मैं अपने किए का पश्चात्ताप कर रही थी और वह उस पीड़ा को नयनों से बाहर कर रही थी जिस से मैं अब तक अनजान थी. मैं उस के घर में इधरउधर झांकने लगी कि बच्चे वगैरह हैं या नहीं, मैं पूछ ही बैठी, ‘‘रोहितजी कहां हैं? कैसे हैं? और बच्चे…?’’

मेरा कहना भर था कि उस की आंखें फिर भीग गईं. अब शैली ने बीते 20 वर्षों से, दामन में समाए धूपछांव के टुकड़ों को शब्दों में कुछ यों बयां किया, ‘‘रोहित से मेरा विवाह होने के 4 माह बाद ही एक सड़क दुर्घटना में वे हमें रोता छोड़ कर हमेशा के लिए हम से बिछुड़ गए. सुसराल वालों ने इस का दोष मेरे सिर पर मढ़ा.

अगले भाग में पढ़ें- अब लगता है शायद नियति ने ही ऐसा तय कर रखा था.

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