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#coronavirus: जनता कर्फ्यू ने बढ़ाई जमाखोरी

प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश का खौफ जनता पर कुछ इस कदर छाया है कि ‘जनता कर्फ्यू‘ की घोषणा के बाद बाजार में खरीददारों की ऐसी भीड बढ गई जैसे नोट बंदी की घोषणा के बाद बैंक के एटीएम के बाहर रात में ही लंबी लबी लाइने लग गई थी. इस भीड पर करोना का नहीं लौक डाउन का खौफ सिर चढ कर बोल रहा था.

जैसे ही इस बात का पता लोगों को चला कि 19 मार्च की रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देगे अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. इस बात की अफवाह फैल गई कि देश में अचानक ‘लौक डाउन‘ होने वाला है. इस बात से बाजारों में जमाखोरी शुरू होने लगी. प्रधानमंत्री के संदेश के पहले प्रसार भारती के सीईओ को यह मैसेज जारी करना पडा कि किसी तरह के लौक डाउन की घोषणा नही होनी है. इस खबर के बाद बाजार में खरीददारी पर कुछ रोक लगी पर रात 8 बजे प्रधानमंत्री के द्वारा 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू‘ की घोषणा होते ही रात में ही अनाज और सब्जी की मंडियों में खरीददारों की वैसे ही लाइनें लग गई जैसे ‘नोटबंदी’ के बाद बैंक के एटीएम के बाहर लग गई थी.

प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश और रात 8 बजे के समय का खौफ अपने में किसी से कम नहीं है. देश के लोगों को लगा कि जिस तरह से नोटबंदी और दूसरे मामले अचानक सामने आ गये वैसे ही अचानक कुछ समय के लिये देश में ‘लौक डाउन‘ का फैसला लिया जा सकता है. ऐसे में जरूरत के सामानों की ज्यादा खरीददारी होने लगी. यह देखते ही देखते दुकानदारों ने बाजार से सामान गायब कर दिया और बाद भी वही सामान मंहगे दामों में बिकने लगा. प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि देश की जरूरी सेवायें ठप्प नहीं की जायेगी. इसके बाद भी बाजार के जमाखोरो ने अपना काम जारी रखा.

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लखनऊ की सब्जी मंडी में जो आलू 19 मार्च की सुबह फुटकर रूप सें 20 रूपये प्रतिकिलो बिक रहा था रात होते होते उसकी कीमत 50 रूपये प्रति किलो हो गई. ग्रोसरी आइटम की औन लाइन सेलिंग करने वाले ‘एप’ भी इसमें कोई मदद करने की हालत में नहीं रह गये. वहां औडर इतनी अधिक संख्या में हो गये कि एक सप्ताह के बाद की डिलीवरी की बात कही जाने लगी. लोगों ने अपनी जरूरत से ज्यादा का सामान खरीदना शुरू की दिया. लोगों की इस प्रवृत्ति हो समझ कर प्रधानमंत्री ने अपील भी की कि जरूरत के अनुसार खरीददारी करे. पर प्रधानमंत्री की यह अपील किसी ने नहीं सुनी.

असल में हमारा समाज धर्म पर चलने की बात करता है. पर समाज में ना कोई धर्म है और ना कोई सिद्वांत जो नेता, कारोबारी और प्रधानमंत्री के भक्त थे उन्ही मे से बडी तादाद में लोग जमाखोरी में लग गये. इस जमाखोरी से जहां एक ओर लोगों का मुनाफा बढ गया वही दूसरी तरफ गरीब आदमी के लिये दोहरी मुसीबत आ गई एक तरफ उसके पास काम नहीं दूसरी तरफ मंहगाई बहुत आगे बढ गई. करोना से बचाव में प्रयोग होने वाले मास्क और सेनेटाइजर नकली बनने लगे. इनकी कीमत बढ गई और बाजार से गायब हो गये. करोना के खिलाफ जिस समाज को एकजुट होकर लडना था वह मुनाफा और जमाखोरी में जुट गया है.

कितना सहेगी आनंदिता

कनिका कपूर के कोरोना वायरस पॉज़िटिव होने पर ऋषि कपूर ने दिया ऐसा रिएक्शन

कनिका कपूर के कोरोना वायरस पॉज़िटिव होने के बाद से सभी उनको गैर ज़िम्मेदार कह रहे हैं. इसी बीच ऋषि कपूर ने कनिका कपूर के मामले पर अपना रिएक्शन दिया है.

ऋषि कपूर ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर और कनिका कपूर की फोटो को शेयर करते हुए लिखा, ‘आज कल कुछ ‘कपूर’ लोगों पर टाइम भारी है. डरता हूं. हे मालिक रक्षा करना दूसरे कपूरों की. कोई गलत काम ना हो कभी.’

कनिका कपूर ने लिखा ये मैसेज…

कनिका ने कोरोना वायरस के पॉज़िटिव होने की बात को कंफर्म करते हुए लिखा, पिछले 4 दिनों से मुझे फ्लू की दिक्कत थी. मैंने अपना टेस्ट कराया तो उसमें कोरोना वायरस पॉजिटिव निकला. मैं और मेरा पूरा परिवार क्वारनटाइन है और हम पूरी मेडिकल एडवाइस ले रहे हैं. मैं जिनके भी टच में थी उनका भी टेस्ट किया जाएगा. मैं 10 दिन पहले जब घर आई थी तब एयरपोर्ट पर मुझे स्कैन किया गया था. लेकिन ये दिक्कत मुझे 4 दिन पहले हुई है.’

फैन्स से की से अपील…

कनिका ने अपने फैन्स से अपील करते हुए लिखा, ‘इस स्टेज पर मैं सबसे यही कहना चाहूंगी कि आप सब आइसोलेशन में रहें और अगर आपको लगता है कि आपको भी इसके लक्षण फील हो रहे हैं तो प्लीज अपना चेक कराएं. मैं अभी बेहतर महसूस कर रही हूं. इसके साथ ही हमें हमेशा अपने आस-पास के लोगों का भी ध्यान रखना होगा. हमें इस सिचुएशन में पैनिक होने की जरूरत नहीं है और इस मामले में एक्सपर्ट्स, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के गाइडलाइन्स को फॉलो करने चाहिए.’

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अपने सिग्नेचर स्टाइल में कार्तिक आर्यन ने फैन्स से की खास अपील, वायरल हो रहा ये वीडियो

दुनिया भर में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सभी खास कदम उठा रहे हैं. इसी बीच फेमस बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन भी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वो अपने फैंस को कोरोना को लेकर अवेयर कर रहे हैं. लेकिन बिल्कुल अलग अंदाज में. ये वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है और फैंस इस पर जमकर कमेंट कर रहे हैं.

‘प्यार का पंचनामा’ स्टाइल में बनाया वीडियो…

दरअसल, एक एक्टर होने के नाते कार्तिक भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझ रहे हैं और पॉपुलर पर्सनालिटी होने के नाते वह लगातार अपना फर्ज निभा रहे हैं. हाल ही में कार्तिक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से पर ये वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह अपने फैन्स और देश की जनता से अपील करते नजर आ रहे हैं कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग मतलब कम से कम लोगों के संपर्क में आएं.

 

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My Appeal in my Style Social Distancing is the only solution, yet ??

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सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कोरोना को लेकर अपनी बात बेहद अलग और दिलचस्प तरीके से रखी है ताकि लोगों को उनकी बात भी समझ आ जाएं. कार्तिक ने अपनी फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ के पॉपुलर मोनोलॉग के अंदाज़ में बोलते हुए ‘कोरोना को स्टॉप करो ना’ की अपील कर रहे हैं. उन्होंने अंदाज बहुत निराला चुना है. इतना निराला कि आपको सुन कर का मजा आ जाएगा.

कार्तिक ने कही ये बातें….

इस वीडियो में कार्तिक कह रहे हैं कि जब वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी जा रही है तो लोग क्यों बेवजह ऑफिस जाने की रट लगा रहे हैं, जबकि आमतौर पर सबके पास यह कम्पलेन होती है कि इन्हें छुट्टी नहीं मिलती. कार्तिक ने साफ कहा है कि गरमी की छुट्टियां नहीं हैं, जो लोग वॉक पर जा रहे है या बर्थ डे मना रहे हैं. कार्तिक ने एक सुर में यह भी कहा है कि मौजूदा समय लांग ड्राइव पर जाने का नहीं है. घर पर बैठने का है. घर पर रह कर ही घर से काम और घर के काम करने का है. कार्तिक ने अपने दो मिनट 24 सेकेंड के इस वीडियो में बेहद जरूरी बातें की है जो कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर है.

 

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Stay safe guys. Can’t stress this enough #WashYourHands #CoronaStopKaroNa

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फैंस ने की तारीफ…

कार्तिक इस वीडियो के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को और अपने फैन्स को कोरोना वायरस के लिए अवेयर कर रहे हैं. उनका यह वीडियो काफी वायरल हो रहा है. फैंस के साथ-साथ बॉलीवुड सेलेब्स भी कार्तिक की तारीफ कर रहे हैं.

 

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Flying again ??‍♂ Best of Luck-Now #BhoolBhulaiyaa2 ??? #Lucknow schedule #CoronaStopKaroNa #WashYourHands

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पीएम मोदी ने 22 मार्च को की जनता कर्फ्यू की अपील…

पीएम मोदी ने गुरुवार शाम को पूरे देश को संबोधित करते हुए सभी से अपील की है कि कुछ दिनों तक घर से बाहर ना निकलें. वैश्विक महामारी हो चुकी है. इससे पूरा विश्व परेशान है.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू होगा जो सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक जारी रहेगा. इस दौरान सब देश के उन लोगों को धन्यवाद करेंगे जो इस मुश्किल समय में हमारे लिए काम कर रहे हैं. इस दिन शाम 5 बजे अपने घर पर खड़े होकर 5 मिनट तक ताली, थाली और घंटी बजाकर उनका आभार प्रकट करें.

पीएम मोदी के इस अपील की सभी तारीफ कर रहे हैं. बॉलीवुड सेलेब्स ने भी पीएम मोदी का पूरा सपोर्ट किया है.

निर्भया के दोषियों को फांसी मिलने पर बॉलीवुड स्टार्स ने भी जताई खुशी, कुछ ने कहां इंतजार हुआ खत्म

वो कहते है न देर है लेकिन अंधेर नहीं. कुछ वैसा ही हुआ निर्भया केस में भी. सात साल के लंबे इंतजार के बाद आज सुबह 5.30 मिनट पर निर्भया के दोषियों को फांसी दे दी गई है. इस फैसले का जश्न पूरा देश मना रहा है. वहीं कुछ बॉलीवुड स्टार्स भी इस फैसले पर अपने-अपने प्रतिक्रिया सोशल मीडिया के जरिए दे रहे हैं. आइए जानते हैं उनका क्या कहना है.

अभिनेता रितेश देशमुख का कहना है कि मेरा प्यार और दुआं निर्भया के माता-पिता के साथ हमेशा से है. मैं इस फैसले से बेहद खुश हूं. आखिर कर फैसले का इंतजार खत्म हुआ.

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अभिनेत्री प्रीती जिंटा का कहना है कि अगर निर्भया के दोषियों साल 2012 में फांसी पर चढ़ा दिया गया होता तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार कम हो सकते थे. खैर इस फैसले के लिए मैं सरकार को शुक्रिया अदा करती हूं.

एक्ट्रेस पासी पन्नू का कहना है कि फाइनली निर्भया के दोषियों को सजा मिली. अब निर्भया की मां आशा देवी चैन से सोएंगी.

बता दें,निर्भया की अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी. फांसी के बाद वह चैन की नींद लेगी. असली न्याय आज मिला है.

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करीब चार के लंबे इंतजार के बाद निर्भया के दोषियों को सजा मिली है. इस फैसले का जश्न पूरा देश मना रहा है. निर्भया के चारों दोषि मुकेश सिंह, अक्षय कुमार, पवन गुप्ता और विनय शर्मा को सुबह 5.30 बजे पवन जल्लाद से फांसी पर चढ़ा दिया.

फांसी के बाद लोगों ने एक दूसरे को मिठाई बांटकर बधाई दी. वहीं निर्भया के मां-पापा के आंखों में अलग सी खुशी नजर आ रही थी. साथ ही कोर्ट के बाहर जिंदाबाद के नारे भी लगाए गए.

 

दंगा और राजनीति

दिल्ली के दंगों से किसी को कोई हैरानी हुई हो, ऐसी बात नहीं. ये दंगे तो होने ही थे. यह 2019 से दीवारों पर साफ लिखा था. गुजरात व हरियाणा में जरा सा बचने, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड की हारों के बाद दंगे कराना ही एक अकेला उपाय बचा था जिस से कि हिंदू राष्ट्र, जिसे पौराणिक राज कहना ज्यादा सही होगा, की ओर बढ़ा जा सकता था. यह काम धारा 370 को तकरीबन खत्म करने के बाद नहीं हुआ, राममंदिर के फैसले से नहीं हुआ और नागरिकता कानून में निरर्थक संशोधन के बाद भी नहीं हुआ तो भगवा गैंग को हैरानी तो होनी ही थी.

इसलिए कुछ करना था. और दिल्ली में मिली बुरी हार की खीझ का बदला भी लेना था. सो, दिल्ली को दंगों में झोंक दिया गया जिस में 2002 के गुजरात मौडल और 2019 के उत्तर प्रदेश व जामिया व जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पैटर्न पर पुलिस की देखरेख में दंगे कराए गए. 53 लोग मारे जा चुके हैं, 450 घायल हैं और बेशुमार संपत्ति जला दी गई है.ये दंगे समाप्त नहीं हुए हैं. भारत एक बार फिर सीरिया बनने की कोशिश में लगा है जहां के काफी बड़े क्षेत्र में धार्मिक कट्टर इसलामिक स्टेट का राज चला था और आज भी अमेरिका के दखल के बावजूद वे तत्त्व अपना प्रभाव बनाए हुए हैं. लाखों सीरियाई अपना घर छोड़ कर यूरोप के शहरों में भटक रहे हैं.

महाभारत विध्वंसों की कहानियां

धार्मिक राज्यों में तो यह होना ही था. हमारे रामायण, महाभारत और पुराण आमतौर पर युद्धों और विध्वंसों की कहानियों से भरे हैं. हमारे देवीदेवता सुख व समृद्धि के प्रतीक नहीं, तीर, चक्र, गदा, तलवार, खड़ग हिंसा के प्रतीक रहे हैं. इसलाम में शुरुआत में ही विरासत को ले कर विवाद हो गया था. ईसा की मृत्यु तो हिंसक थी ही, ईसाई क्रूसेडों के अलावा धार्मिक सेनाओं ने 2,000 साल दुनिया के कितने ही हिस्सों में हिंसा मचाई. उसी राह पर चलने में हिंसा तो होगी ही.

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यह हिंसा देश पर भारी पड़ेगी. यूरोप व पश्चिमी एशिया में धर्म के साथसाथ बहुत से आविष्कार होते रहे. नई सोच का जन्म हुआ. नई तकनीक ईजाद की गई. पानी के विशाल जहाज बने, जिन पर सामान लाद कर व्यापार किया जाता था और तोपें लाद कर लड़ाइयां लड़ी जाती थीं. भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमारी तकनीक केवल मंदिरों तक सीमित रही. आम व्यक्ति के जीवन को सुधारने के लिए हमारे देश ने कुछ खास नहीं किया.

आज देश में जो हिंसा हो रही है और जो होती रहेगी वह देश को दिक्कतों के युग में ले जा सकती है, इस के आसार दिख रहे हैं. देश में आर्थिक मंदी छाई हुई है. बेरोजगारी बढ़ रही है. उद्योगपति कंगाल हो रहे हैं. बैंक दीवालियापन की कगार पर हैं. ऐसे में देश में धर्मजनित हिंसा देश के लिए आत्महत्या है, और कुछ नहीं.धर्मलाभ नहीं जनलाभ

दिल्ली सरकार आधीअधूरी सी है

दिल्ली में विधानसभा चुनाव बेहद स्थानीय ही थे क्योंकि दिल्ली सरकार आधीअधूरी सी है. मुख्यमंत्री को संविधान के तहत हर समय केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल की अनुमतियों का मुंह देखना पड़ता है. पर फिर भी आम आदमी पार्टी से मुकाबले के लिए प्रधानमंत्री उतरे, चाणक्य गृहमंत्री उतरे, कई मुख्यमंत्री आए, सैकड़ों सांसद आए ताकि अदना से छोटे कद के अरविंद केजरीवाल को रसातल में पहुंचा दिया जाए.

इस चुनाव के दौरान और बाद में भी भारतीय जनता पार्टी के सिर पर पाकिस्तान का भूत सवार रहा. भाजपा चुनावी जंग ऐसे लड़ रही थी जैसे युधिष्ठिर ने 5 गांवों के लिए कौरवों से युद्ध में सारे परिवार को झोंक दिया था.भाजपा भूल गई कि हार तो दूसरी बात, जीत के बाद भी युधिष्ठिर को खुशी नहीं मिली थी. क्योंकि वह जीत महंगी थी. राजधर्मानुशासन पर्व के प्रथम अध्याय में ही कृष्ण की कूटनीति से युद्ध जीते युधिष्ठिर विलाप करते रहे : ‘‘मैं ने लोभवश अपने बंधुबांधवों का संहार करवा डाला.’’

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‘‘सुभद्रापुत्र अभिमन्यु तथा द्रौपदी के प्यारे पुत्रों को मरवा कर मिली विजय मुझे पराजय जान पड़ती है.’’‘‘माता कुंती ने कर्ण के जन्म का रहस्य छिपा कर मुझे बड़े दुख में डाल दिया है. गुप्तरूप से उत्पन्न हुए कुंती के पुत्र कर्ण हम लोगों के बड़े भाई थे. मैं ने राज्य के लोभ में भाई के हाथ भाई का वध करा डाला.’’

‘‘आत्मीयजनों को मार कर स्वयं ही अपनी हत्या कर के हम कौन सा धर्मफल प्राप्त करेंगे.’’‘‘हम लोग तो लोभ और मोह के कारण राज्यलाभ के सुख का अनुभव करने की इच्छा से दंभ और अभिमान का आश्रय ले कर इस दुर्दशा में फंस गए हैं.’’

भारतीय जनता पार्टी के हिंदू नेता

भारतीय जनता पार्टी के नेता हिंदू संस्कृति, इतिहास, देवीदेवताओं की बड़ीबड़ी बातें करते हैं पर इन ग्रंथों में ही युद्घ की विभीषिका का जो जिक्र है उस की उन को कोई जानकारी नहीं है क्योंकि ज्यादातर अंधभक्त हैं जो व्हाट्सऐप पर राम, कृष्ण की जानकारी प्राप्त कर खुद को विशेषज्ञ मान लेते हैं.भारत-पाकिस्तान, हिंदू-मुसलमान करने वाले नेताओं के राजगद्दी के मोह के लिए कई युद्धों व झड़पों में भारी नुकसान हुआ है, जो युधिष्ठिर के विलाप की तरह का है.

अरविंद केजरीवाल इस पचड़े में पड़ने से बचे रहे और बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य की चिंता करते रहे. केजरीवाल के इसी जाल में भाजपा के धुरंधर, चाणक्य सब फंसे रहे. यह याद दिला दें कि रामायण, महाभारत में राजाओं द्वारा जनहित कार्यों का वर्णन न के बराबर है. वहां राज्य के कर्तव्यों में केवल ऋषियोंमुनियों की सुरक्षा, उन्हें दान देना, गाएं देना, सुवर्ण देना, वर्णव्यवस्था बनाए रखना आदि है. अब जीतने के बाद केजरीवाल के सुर बदले, पर ये टैंपरेरी हैं या परमानैंट, पता नहीं.

दरअसल, देश को ऐसी सरकार चाहिए जो धर्म के लाभ के नहीं, जनता के लाभ के फैसले ले.महिला शक्तिएक काम करने वाली, औरतों के हकों के लिए लड़ने वाली, ऊंचे पद पर बैठी युवा महिला के लिए तलाक लेना और फिर खुलेआम उसे स्वीकार करना काफी कठिन है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालिवाल ने ट्विटर पर संदेश डाला कि वे परियों की कहानियों से विवाह का अंत कर रही हैं क्योंकि विवाह को सहना दर्दनाक हो गया था. उन्होंने कहा कि कई बार 2 बहुत अच्छे, सुलझे हुए लोग भी साथ नहीं रह पाते.

भूख हड़ताल पर बैठने वाली महिलाएं

महिलाओं के लिए हर तरह के जोखिम लेने वाली, भूख हड़ताल पर बैठने वाली, पति के साथ हाथ में हाथ डाल कर चलने वाली स्वाति मालिवाल को तलाक की परीक्षा से गुजरना पड़ा. इस में चाहे कुछ अस्वाभाविक लगे, पर जब 2 जने साथ न रह पाएं तो अलग हो जाना ही सही है. पूजा भट्ट ने सही कहा कि एक झूठ को नकली प्रतिष्ठा के कारण ढोए रखना भी गलत ही है.

स्वाति जब तलाक की प्रक्रिया से गुजर रही थीं, जो कभी भी खुशनुमा नहीं होती और हर पल एक खामोश दर्द देती है, तब भी, अपना काम मुस्तैदी से कर रही थीं. उन्होंने मोहन भागवत को आड़ेहाथों लिया जो हिंदू औरतों को शेष समाज के साथ पौराणिक युग में ले जाना चाहते हैं जिस में औरतें ऋषियोंमुनियों के मनोरंजन की निर्जीव वस्तु मात्र मानी जाती थीं और गायों के साथ राजा उन्हें यज्ञों के बाद दान में दे देते थे. उन्होंने गुजरात के धार्मिक संस्था के होस्टल के प्रबंधकों की खिंचाई की जिन्होंने पैंटी उतरवा कर होस्टल की लड़कियों की जांच की कि कहीं वे मासिक पीरियड के दौरान अन्य लड़कियों के साथ बैठ कर मैस में खाना तो नहीं खा रहीं. उन्होंने दिल्ली मैट्रो में एक पुरुष द्वारा अपना अंग एक महिला यात्री को दिखाने पर पुलिस पर उस अपराधी को पकड़ने का दबाव भी बनाया.

व्यक्तिगत परेशानियों के समय में भी स्वाति मालिवाल ने जिस तरह अपनी जिम्मेदारियां पूरी कीं, वह यह साबित करता है कि महिलाएं चाहें तो अपने घरों के पुरुषों की हथकडि़यों से छुटकारा पा सकती हैं. जरूरत है सही कदम, सही होने और सही मानसिकता रखने की.

राममंदिर

सफेद दाढि़यों वाले व भगवा वस्त्र पहने तथाकथित संतों, महंतों की इच्छा पूरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट और सरकार की मेहरबानी से अयोध्या में राममंदिर का निर्माण करने के लिए ट्रस्ट का गठन हो ही गया. दशकों से जो हिंदू इस सपने को देख रहे थे वे चाहे संतुष्ट हों पर यह संदेह बना रहेगा कि यह मंदिर देश की बड़ी जनता के लिए पराया ही रहेगा. मुसलमानों ने उस जगह बनी बाबरी मसजिद के लिए कानूनी लड़ाई चाहे लड़ी हो पर देशभर में उत्पात कभी नहीं मचाया था जबकि हिंदू 1947 में विभाजन से पहले भी मचा रहे थे. बाबरी मसजिद कभी भी मुसलमानों के लिए आस्था का कोई बड़ा केंद्र नहीं रही.

अब जब यह मंदिर बन भी जाएगा तो भी सदा यह याद दिलाता रहेगा कि इस के नाम पर देशभर में मुसलिम विरोधी हिंसक आंदोलन हुए. कांग्रेस ने 1910 से 1947 तक आजादी की लड़ाई के लिए राजनीति की थी, जबकि भाजपा ने सदियों पुराने पौराणिक काल्पनिक देवता के नाम पर देशभर में विवाद फैलाया था. राममंदिर हिंदुओं की प्रगति, उन्नति, चेतना, विकास, तार्किक सोच, शिक्षा का प्रतीक नहीं होगा, बल्कि यह सामाजिक बंटवारे, अंधविश्वास और अंधभक्ति का प्रतीक होगा.

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हिंदुओं की आस्था का खेल बहुत रोचक है. यह आस्था शिफ्ट होती रहती है. यह किसी पेड़, पेड़ के नीचे रखे पत्थरों, कुएं, नदी, पहाड़, झरने पर भी हो सकती है. आस्था के चलते ही संतोषी मां एक बार मुख्य देवी बन गई थी. कभी गणेश की पूजा मुख्य हो जाती है तो कभी साईं बाबा की. कुछ के लिए वैष्णो देवी मुख्य हो जाती है तो कई अनजाने से गुरुजी की समाधि पर जम जाते हैं.

इन सब को क्या राममंदिर की ओर ठेला जाएगा या राममंदिर केवल ऊंचे सवर्णों यानी ब्राह्मणों, क्षत्रियों का ही मंदिर होगा? देश के बनिए वैसे राममंदिर समर्थक हैं पर वे पूजते शिव या हनुमान को हैं. उन्हें राममंदिर क्या आमंत्रित करेगा? या फिर यह केवल हिंदूमुसलिम विवाद का सरकारी स्मारक बन कर रह जाएगा?

राममंदिर का कंपीटिशन कैसा होगा?

भाजपा ने बड़ी शान से सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनवाई पर यह स्थल अभी तीर्थस्थल नहीं बना है. इस की प्रतियोगिता क्या राममंदिर से होगी? देशभर में विष्णु, कृष्ण, शिव, गणेश, हनुमान, दुर्गा, काली के मंदिरों से इस राममंदिर का कंपीटिशन कैसा होगा? जो भी यहां जाएगा क्या उस के सामने हिंदूमुसलिम विवाद की वैसी ही छवि खड़ी होगी जैसी भारत और पाकिस्तान की सीमा – अटारीवाघा्ा – पर होती है?

राममंदिर हिंदू समाज को नया उत्साह देगा, ऐसा अभी तो नहीं लगता. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया ही ऐसे समय पर है जब अर्थव्यवस्था सब से ज्यादा कमजोर है. बेरोजगारी बढ़ रही है जबकि उत्पादन घट रहा है, महंगाई धीरेधीरे बढ़ रही है, व्यापार ठप हो रहे हैं, सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं और वह अपनी कंपनियां जमीनजायदाद समेत बेच रही है, किसान आत्महत्याएं बढ़ रही हैं. ऐसे में हिंदूमुसलिम विवाद का स्मारक राममंदिर देश को नया आत्मबल और आत्मविश्वास देगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता. राममंदिर भगवा दलों की जीत अवश्य है, पर यह देश को कभी कुछ देगा, इस में संदेह है

आखिरकार निर्भया को मिला इंसाफ, चारों दोषी फांसी के फंदे पर झूले

निर्भया गैंगरेप के चारों दोषी पवन, अक्षय, मुकेश और विनय को 20 मार्च तड़के साढ़े 5 बजे फांसी दे दी गई. फांसी देने से पहले चारों को मैडिकल किया गया, जिस में सभी फिट और स्वस्थ थे. जिसके बाद जेल में फांसी की प्रक्रिया पूरी कर उन्हें सजा ए मौत दी गई. इस दौरान तिहाड़ जेल को लौक डाउन कर दिया गया था और जेल के बाहर अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

फांसी के बाद 7 साल से इंसाफ का इंतजार कर रहीं निर्भया की मां आशा देवी ने मीडिया से बातचीत में बताया,”जैसे ही मैं सुप्रीम कोर्ट से लौटी, बेटी की तसवीर को गले से लगाया और कहा कि आज तुम्हें इंसाफ मिला.”

हाईकोर्ट ने खारिज किया दोषियों की याचिका

शुक्रवार की आधी रात को दिल्ली हाईकोर्ट में चली सुनवाई में निर्भया के दोषियों की तरफ से फांसी पर रोक की याचिका लगा कर रोक की मांग की गई लेकिन, दिल्ली हाईकोर्ट ने किसी तरह की राहत से इनकार किया. उस के बाद निर्भया के गुनहगारों के वकील एपी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

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मामले का घटनाक्रम

राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर 2012 को 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के सनसनीखेज मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है :

  • 16 दिसंबर, 2012 : अपने मित्र के साथ जा रही एक पैरामेडिकल छात्रा के साथ एक निजी बस में 6 लोगों ने बर्बरतापूर्वक सामूहिक दुष्कर्म करने और क्रूरतापूर्ण हमला करने के बाद उसे घायल हालत में उस के दोस्त के साथ चलती बस से बाहर फेंक दिया. पीड़ितों को सफदरगंज अस्पताल में भरती कराया गया.
  • 17 दिसंबर : आरोपियों पर कड़ी काररवाई की मांग करते हुए देशभर में भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
  • पुलिस ने चारों आरोपियों- बस चालक राम सिंह, उस के भाई मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पहचान की.
  • 18 दिस‍ंबर : राम सिंह सहित चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
  • 20 दिस‍ंबर : पीड़िता के दोस्त का बयान दर्ज किया गया.
  • 21 दिस‍ंबर : दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से नाबालिग आरोपी को गिरफ्तार किया गया. पीड़िता के दोस्त ने आरोपियों में से एक मुकेश की पहचान की. छठे आरोपी अक्षय कुमार सिंह को पकड़ने के लिए हरियाणा और बिहार में छापेमारी की गई.
  • 21-22 दिसंबर : अक्षय को बिहार के औरंगाबाद जिले से गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया. पीड़िता ने अस्पताल में एसडीएम के सामने अपना बयान दर्ज कराया.
  • 26 दिसंबर : दिल का दौरा पड़ने के बाद पीड़िता की हालत और गंभीर हो गई जिसे देखते हुए सरकार ने पीड़िता को इलाज के लिए विमान से सिंगापुर के ‘माउंट ऐलिजाबेथ’ अस्पताल भेजा.
  • 29 दिस‍ंबर : पीड़िता ने गंभीर चोटों और शारीरिक समस्याओं से जूझते हुए तड़के करीब सवा 2 बजे दम तोड़ दिया. पुलिस ने प्राथमिकी में हत्या की धाराएं जोड़ दीं.
  • 2 जनवरी 2013 : तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने यौन उत्पीड़न मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालत का उद्घाटन किया.
  • 3 जनवरी, 2013 : पुलिस ने 5 वयस्क आरोपियों के खिलाफ हत्या, सामूहिक बलात्कार, हत्या का प्रयास, अपहरण, अप्राकृतिक यौनाचार और डकैती की धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किए.
  • 5 जनवरी : अदालत ने आरोप पत्र पर संज्ञान लिया.
  • 7 जनवरी : अदालत ने बंद कमरे में सुनवाई के आदेश दिए.
  • 17 जनवरी : त्वरित अदालत ने पांचों वयस्क आरोपियों के खिलाफ सुनवाई शुरू की.
  • 28 जनवरी : किशोर न्याय बोर्ड ने कहा कि एक आरोपी का नाबालिग होना सबित हो चुका है.
  • 2 फरवरी : त्वरित अदालत ने पांचों वयस्क आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए.
  • 28 फरवरी : किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग आरोपी के खिलाफ आरोप तय किए.
  • 11 मार्च : आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली.
  • 22 मार्च : दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मीडिया को निचली अदालत की कार्यवाही को रिपोर्ट करने की अनुमति दी.
  • 5 जुलाई : किशोर न्याय बोर्ड में नाबालिग आरोपी के खिलाफ सुनवाई पूरी हुई. किशोर न्याय बोर्ड ने 11 जुलाई के लिए फैसला सुरक्षित कर लिया.
  • 8 जुलाई : त्वरित अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही दर्ज की.
  • 11 जुलाई : किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को सामूहिक बलात्कार की घटना से एक रात पहले 16 दिसंबर को एक बढ़ई की दुकान में घुसकर लूटपाट करने का भी दोषी पाया. दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीन अन्तर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों को मामले की सुनवाई को कवर करने की अनुमति दी.
  • 22 अगस्त : त्वरित अदालत में चारों वयस्क आरोपियों के खिलाफ मुकदमे में अंतिम दलीलों पर सुनवाई शुरू हुई.
  • 31 अगस्त : किशोर न्याय बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को सामूहिक बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराते हुए सुधार गृह में 3 साल गुजारने की सजा दी.
  • 3 सितंबर : त्वरित अदालत ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर लिया.

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  • 10 सितंबर : अदालत ने मुकेश, विनय, अक्षय और पवन को सामूहिक बलात्कार, अप्राकृतिक यौनाचार और लड़की की हत्या और उस के दोस्त की हत्या के प्रयास सहित 13 अपराधों में दोषी करार दिया.
  • 13 सितंबर : अदालत ने चारों अपराधियों को मौत की सजा सुनाई.
  • 23 सितंबर : उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा अपराधियों को मौत की सजा दिए जाने के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई शुरू की.
  • 13 जनवरी 2014 : उच्च न्यायालय ने अपराधियों की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा .
  • 13 मार्च : उच्च न्यायालय ने चारों अपराधियों की मौत की सजा बरकरार रखी.
  • 15 मार्च : 2 अभियुक्तों मुकेश और पवन की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने सजा पर रोक लगा दी. बाद में सभी अभियुक्तों की सजा पर रोक लगा दी गई.
  • 15 अप्रैल : उच्चतम न्यायालय ने पुलिस से पीड़िता द्वारा मृत्यु से पहले दिए गए बयान को पेश करने के लिए कहा.
  • 3 फरवरी 2017 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्तों की मौत की सजा पर फिर से सुनवाई होगी.
  • 27 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने दोषियों की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया.
  • 5 मई : उच्चतम न्यायालय ने चारों दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखी. शीर्ष अदालत ने निर्भया कांड को ‘सदमे की सुनामी’ और ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ अपराध करार दिया.
  • 8 नवंबर : एक दोषी मुकेश ने उच्चतम न्यायालय में फांसी की सजा बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की.
  • 12 दिसंबर : दिल्ली पुलिस ने उच्चतम न्यायालय में दोषी मुकेश की याचिका का विरोध किया.
  • 15 दिसंबर : अभियुक्त विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता ने अपनी मौत की सजा पर पुनर्विचार के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया.
  • 4 मई 2018 : उच्चतम न्यायालय ने 2 अभियुक्तों विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित कर लिया.
  • 9 जुलाई 2018 : उच्चतम न्यायालय ने तीनों अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका खारिज की.
  • 10 दिसंबर 2019 : चौथे अभियुक्त अक्षय ने उच्चतम न्यायालय में अपनी मौत की सजा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की.
  • 13 दिसंबर 2019 : पीड़िता की मां ने उच्चतम न्यायालय में दोषी की पुनर्विचार याचिका का विरोध किया.
  • 18 दिसंबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका खारिज की.
  • दिल्ली सरकार ने डेथ वारंट जारी किए जाने की मांग की.
  • दिल्ली की एक अदालत ने तिहाड़ प्रशासन को निर्देश दिया कि वे दोषियों को शेष कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करने के लिए नोटिस जारी करें.
  • 19 दिसंबर 2019 : दिल्ली उच्च न्यायालय ने पवन कुमार गुप्ता की अर्जी खारिज की जिस में उस ने अपराध के समय किशोर होने का दावा किया था.
  • 6 जनवरी 2020 : दिल्ली की एक अदालत ने दोषी पवन के पिता की उस याचिका को खारिज कर दिया जिस में घटना के एकमात्र चश्मदीद के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी.
  • 7 जनवरी 2020 : दिल्ली की अदालत ने चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दिए जाने का आदेश जारी किया.
  • 14 जनवरी 2020 : उच्चतम न्यायालय ने 2 दोषियों विनय शर्मा (26) और मुकेश कुमार (32) की सुधारात्मक याचिकाओं को खारिज कर दिया.
  • दोषी मुकेश कुमार ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की.
  • 17 जनवरी : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुकेश की दया याचिका ठुकराई.
  • 25 जनवरी : दया याचिका ठुकराए जाने के खिलाफ दोषी मुकेश ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया.
  • 28 जनवरी : उच्चतम न्यायालय में जिरह हुई, फैसला सुरक्षित रखा गया.
  • 29 जनवरी : दोषी अक्षय कुमार ने सुधारात्मक याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की.
  • उच्चतम न्यायालय ने दोषी मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली अपील ठुकरा दी.
  • 30 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने दोषी अक्षय कुमार सिंह की सुधारात्मक याचिका खारिज की.
  • 31 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने दोषी पवन कुमार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिस में उस ने अदालत के उस फैसले की समीक्षा करने की अपील की थी जिस में उस के नाबालिग होने के दावे को खारिज कर दिया गया था .
  • दिल्ली की एक अदालत ने निर्भया मामले के दोषियों को 1 फरवरी को फांसी के ब्लैक वारंट की तामील को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया.
  • 1 फरवरी : केंद्र ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया.
  • 5 फरवरी : उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ केंद्र की याचिका को खारिज किया. उच्च न्यायालय ने कहा कि सभी चारों दोषियों को एकसाथ फांसी पर लटकाया जाना चाहिए. अदालत ने मौत की सजा पाए चारों दोषियों को निर्देश दिए कि यदि वे कोई आवेदन दाखिल करना चाहते हैं तो इसे 1 सप्ताह के भीतर दाखिल करें जिस के बाद प्राधिकारी इस पर काररवाई कर सके.
  • केंद्र, दिल्ली सरकार ने दोषियों की फांसी पर रोक के निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिका के नामंजूर होने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया .
  • 6 फरवरी : तिहाड़ के अधिकारियों ने मौत की सजा पर तामील करने के लिए नया वारंट की मांग करते हुए अदालत का रुख किया, निचली अदालत ने दोषियों से उन की प्रतिक्रिया मांगी.
  • 7 फरवरी : दिल्ली की एक अदालत ने मौत की सजा पर तामील करने के लिए नया वारंट की मांग वाली तिहाड़ की याचिका खारिज की.
  • 11 फरवरी : दोषी विनय कुमार ने दया याचिका ठुकराए जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया. पीड़िता के मातापिता मौत की सजा तामील करने के लिए नया वारंट लेने दिल्ली की अदालत पहुंचे.
  • 13 फरवरी : दोषी पवन ने डीएलएसए से कानूनी मदद लेने से मना किया, जेल अधिकारियों ने सत्र अदालत को बताया.
  • दोषी पवन का पक्ष रखने के लिए उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश को नियुक्त किया.
  • वहीं दोषी विनय कुमार ने उच्चतम न्यायालय में मानसिक बीमारी होने का दावा किया, केंद्र ने उसे मानसिक रूप से स्वस्थ बताया.

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  • 14 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने दया याचिका खारिज होने के खिलाफ दोषी विनय शर्मा की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया.
  • 17 फरवरी : मुकेश ने वृंदा ग्रोवर को अपना वकील बनाने से मना किया.
  • दिल्ली की एक अदालत ने फांसी की सजा पर तामील करने के लिए 3 मार्च की तारीख मुकर्रर की.
  • 28 फरवरी : दोषी पवन ने उच्चतम न्यायालय में सुधारात्मक याचिका दायर की.
  • 2 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने दोषी पवन की सुधारात्मक याचिका खारिज की.
  • दिल्ली की एक अदालत ने अगले आदेश तक चारों दोषियों की मौत की सजा पर रोक लगाई.
  • 4 मार्च : दिल्ली सरकार ने मौत की सजा पर तामील के लिए नई तारीख की मांग करते हुए अदालत का रुख किया.
  • 5मार्च : दिल्ली की एक अदालत ने मौत की सजा पर तामील के लिए 20 मार्च की तारीख मुकर्रर की.
  • 6 मार्च : दोषी मुकेश ने उस के कानूनी विकल्प बहाल करने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया.
  • 11 मार्च : दोषी पवन ने पुलिसकर्मियों पर जेल में मारपीट करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अदालत का रुख किया.
  • 12 मार्च : दोषी पवन के पिता ने मामले के एकमात्र चश्मदीद के खिलाफ प्राथमिक दर्ज न किए जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया.
  • 13 मार्च : दोषी विनय कुमार ने दया याचिका खारिज किए जाने में उचित प्रक्रिया का पालन ना किए जाने का दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया.
  • 16 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने कानूनी विकल्प बहाल किए जाने की दोषी मुकेश की याचिका खारिज की.
  • मौत की सजा पर रोक लगाने की मांग करते हुए तीन दोषियों ने अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख किया.
  • 17 मार्च : दोषी मुकेश ने अपराध के समय दिल्ली में न होने का अदालत में दावा करते हुए मौत की सजा रद्द किए जाने की मांग की, याचिका खारिज कर दी गई.
  • दोषी पवन ने उच्चतम न्यायालय में नई सुधारात्मक याचिका और दोषी अक्षय ने दूसरी दया याचिक दायर की.
  • 18 मार्च : दोषी मुकेश ने निचली अदालत के 17 मार्च के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया, याचिका खारिज.
  • दोषी पवन, विनय और अक्षय ने मौत की सजा पर रोक लगाने की मांग की, दिल्ली की अदालत ने तिहाड़, पुलिस को नोटिस जारी किया.
  • 19 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने दोषी पवन की सुधारात्मक याचिका खारिज की.
  • दोषी मुकेश ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर दावा किया कि 16 दिसम्बर 2012 को अपराध के समय वह दिल्ली में नहीं था, याचिका खारिज.
  • दिल्ली की एक अदालत ने मौत की सजा पर रोक की मांग वाली दोषी पवन, विनय और अक्षय की याचिका खारिज की.
  • उच्चतम न्यायालय ने दोषी अक्षय की दूसरी दया याचिका खारिज होने के खिलाफ दायर याचिक खारिज की.
  • 20 मार्च : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मौत की सजा पर रोक की मांग वाली तीन दोषियों की याचिका खारिज की, दोषियों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया.
  • सुबह से पहले हुई सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने पवन गुप्ता की दूसरी दया याचिका खारिज होने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की.
  • निर्भया मामले के चारों दोषियों को सुबह साढ़े 5 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.

खतरनाक है डी-ग्लोबलाइजेशन की सुगबुगाहट

कोरोना के कंधे पर बंदूक रखकर बड़ी चालाकी से सम्पन्न देश इसके खात्मे की जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं। यह खतरनाक है.इससे कमजोर देशों पर आफत टूट पड़ेगी। इस विचार पर ये लेख भेज रहा हूं. पसंद आये तो कृपया इस्तेमाल करें.

स्वाइन फ्लू और कोरोना वायरस के बीच के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है यानी 2008 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आगमन की जो संख्या 0.9 बिलियन थी, वह 2018 में बढ़कर 1.4 बिलियन हो गई है. इस समय कोरोना वायरस से जो सबसे अधिक प्रभावित देश हैं, वह वही हैं जिन्होंने इस अवधि (2008 से 2018) में सबसे ज्यादा पर्यटक आगमन व निकासी रिकॉर्ड की थी. इस अवधि में पर्यटक आगमन के लिहाज से जो टॉप पांच देश रहे (यानी 2018 में पर्यटकों की संख्या व 2008 की तुलना में प्रतिशत वृद्धि), वह हैं- फ्रांस (89 मिलियन, 13 प्रतिशत की वृद्धि), स्पेन (83 मिलियन, 45 प्रतिशत की वृद्धि), अमेरिका (80 मिलियन, 37 प्रतिशत की वृद्धि), चीन (63 मिलियन, 19 प्रतिशत की वृद्धि) व इटली (62 मिलियन, 44 प्रतिशत की वृद्धि).

जबकि इसी दौरान पर्यटक निकासी के लिहाज से जो टॉप पांच देश रहे, वह हैं- चीन (150 मिलियन, 227 प्रतिशत की वृद्धि), जर्मनी (109 मिलियन, 26 प्रतिशत की वृद्धि), अमेरिका (93 मिलियन, 45 प्रतिशत की वृद्धि), हांगकांग (92 मिलियन, 13 प्रतिशत की वृद्धि) व इंग्लैंड (70 मिलियन, 31 प्रतिशत की वृद्धि)। इन दस वर्षों में भारत में पर्यटकों के आगमन में तीन गुना इजाफा हुआ है.साल 2008 में भारत में 5.3 मिलियन पर्यटक आये थे, जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 17.4 मिलियन हो गई.यह सब आंकड़े विश्व बैंक के डाटा के आधार पर हैं. साल 2019 में भारत में 11 मिलियन विदेशी व 7 मिलियन एनआरआई आये थे, जिनमें से अधिकतर यूरोप व उत्तरी अमेरिका से आये थे.हालांकि इनमें से ज्यादातर ने दिल्ली व मुंबई में लैंड किया, लेकिन वहां से वह गोवा से लेकर बिहार तक विभिन्न राज्यों में गये.

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मात्र दस वर्षों में जहां अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आगमन तीन गुना बढ़ा है, वहीं देश से बाहर जाने वाले पर्यटकों की संख्या दोगुनी वृद्धि हुई है. ग्लोबल मोबिलिटी में तेजी से हुई वृद्धि के जबरदस्त लाभ हुए हैं, लेकिन यह लाभ साथ ही अपने साथ अनेक खतरे भी लाया है. महाराष्ट्र सहित कुछ राज्य जहां पर्यटकों की संख्या अधिक रही, अब वह कोरोना वायरस के काफी संख्या में केस रिपोर्ट कर रहे हैं.इस पृष्ठभूमि में यह अनुमान शायद गलत नहीं है कि सीमाओं को बंद करने से पहले अंतर्राष्ट्रीय यात्रा की भारत में कोरोना वायरस फैलाने में भूमिका रही है. आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) का कहना है कि भारत में कोरोना वायरस का अभी सामुदायिक ट्रांसमिशन नहीं हुआ है। ध्यान रहे कि सामुदायिक फैलाव (कम्युनिटी स्प्रेड) का अर्थ होता है कि वायरस उस रोगी में मिले जो न विदेश गया है और न विदेश से आये हुए व्यक्ति के संपर्क में आया है.

दूसरे शब्दों में भारत में जो अब तक कोरोना वायरस के 166 मामले प्रकाश में आये हैं, उनका किसी न किसी रूप में विदेश से कोई संपर्क है.अभी तक सामुदायिक ट्रांसमिशन न होने का अर्थ यह नहीं है कि लापरवाही बरती जाने लगे, खतरा अभी टला नहीं है. चूंकि ग्लोबल यात्रा व पर्यटन ने कोरोना वायरस को फैलाया है, इसलिए डी-ग्लोबलाइजेशन की मांग अब गति पकड़ती जा रही है. राष्ट्रवाद की आड़ लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है ताकि डी-ग्लोबलाइजेशन के विचार को बल मिल सके.मसलन, चीन में यह काल्पनिक प्रोपेगंडा है कि कोविड-19 को वुहान में अमेरिकी सेना ने स्मगल किया और अमेरिका में यह आरोप लगाया जा रहा है कि यह ‘चीनी वायरस’ है.

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इन दोनों ही देशों में कोरोना वायरस बड़ी समस्या है, लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले कठिन दिनों का सामना कोई भी देश एक दूसरे के संसाधनों, संस्थाओं, महारत आदि के बिना नहीं कर सकता। फना निजामी कानपुरी ने कहा था- ‘तर्के ताल्लुक को एक लम्हा चाहिए मगर/तमाम उम्र मुझको सोचना पड़ा’। तर्के ताल्लुक (संबंध विच्छेद) यानी डी-ग्लोबलाइजेशन तो एक लम्हे में किया जा सकता है कि हर देश अपनी अपनी सीमाओं में सिमटकर बैठ जाये, लेकिन आज की हकीकत ग्लोबलाइजेशन व आपसी सहयोग ही है। डी-ग्लोबलाइजेशन न तो कोविड-19 को पराजित कर सकता है और न ही विश्व अर्थव्यवस्था को बरकरार रख सकता है‘वी आर द वल्र्ड’ (हम संसार हैं) गीत की कुछ पंक्तियों का अर्थ यह है- ‘एक समय आता है जब हमें एक खास पुकार को मानना पड़ता है, जब संसार को एक इकाई के रूप में साथ आना होता है’

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जब यह मालूम किया गया कि एक स्वस्थ व्यक्ति होने के बावजूद उन्होंने वाशिंगटन स्टेट में कोरोना वायरस ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए क्यों वालंटियर किया, तो नील ब्राउनिंग ने कहा, “शेष संसार के लिए इसको (कोरोना वायरस) जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए” जो लोग कोविड-19 के विरुद्ध जंग में फ्रंटलाइन में हैं, वह अच्छी तरह से समझते हैं कि यह वायरस राष्ट्रीय सीमाओं पर नहीं ठहरता है, इसका तोड़ (एंटीडॉट) सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय टीमवर्क से ही निकाला जा सकता है न सिर्फ वैक्सीन रिसर्च बल्कि उपचार विधि भी ग्लोबल सहयोग नेटवर्क्स का ही नतीजा हो सकती है.कोविड-19 ने भारत व पाकिस्तान को भी वापस एक मेज पर ला दिया है. इजराइल व फिलिस्तीन के हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स संयुक्त ट्रेनिंग सत्र आयोजित कर रहे हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस ए गेब्रेयेसुस ने एकदम सही कहा है कि सबका एक ही दुश्मन (कोरोना वायरस) है और हम सबको एकजुट होकर उसका मुकाबला करना है.

विभिन्न देश एक दूसरे से मास्क, सुरक्षा उपकरण व टेस्ट किट्स ले रहे हैं. संकट को नियंत्रित करने के लिए गरीब देशों को अतिरिक्त मदद की आवश्यकता होगी. पिछले कुछ दशकों के दौरान ग्लोबलाइजेशन के कारण काफी सम्पन्नता आयी है, अगर कोरोना वायरस की आड़ में स्वयंभू राष्ट्रवादियों द्वारा उठायी गई डी-ग्लोबलाइजेशन की मांग को मान लिया जाता है, तो भारत सहित विश्व स्तर पर जो गरीबी उन्मूलन को गति मिली है उस पर विराम लग जायेगा. यह सही है कि इस समय सीमाओं का बंद करना जरूरी है, लेकिन यह खतरे के अनुपात में होना चाहिए न कि किसी और वजह से। आज दीवारों की बजाय सभी देशों को पहले से कहीं अधिक एक दूसरे के सहयोग की जरूरत है, इस महामारी से लड़ने के लिए भी और विश्व अर्थव्यवस्था को बरकरार रखने के लिए भी. इस महामारी व क्लाइमेट चेंज में काफी समानताएं हैं, दोनों का ही मुकाबला मात्र राष्ट्रीय स्तर पर नहीं किया जा सकता. ध्यान रहे कि हम सब एक ही ग्रह को शेयर करते हैं, और यह कोई रोमांटिक धारणा नहीं है बल्कि स्पष्ट हकीकत है। इसलिए डी-ग्लोबलाइजेशन का विचार (या मांग) बकवास से अतिरिक्त कुछ नहीं.

हमें खाने दो प्लीज

आदरणीय प्रधानमंत्रीजी,

नमस्कार,

वैसे तो हम आप से खासे नाराज हैं कि आप ने हमारी नाक में नकेल डालने की कोशिश उसी दिन से शुरू कर दी है जिस दिन से हम ने आप को जितवा कर कुरसी पर बिठाया है. परंतु साहब, हम भी किसी से कम नहीं. हम भी दफ्तरों में 20-22 साल से जमे हुए इज्जत से खा रहे हैं. क्या मजाल जो किसी की अनामिका तक हमारी ओर उठी हो.

समाज में हमारी ऐसी इज्जत है कि भगवान तक हमारी इज्जत देख हम से ईर्ष्या करता है. वह सोचता है कि मैं सरकारी कर्मचारी क्यों न हुआ, भगवान क्यों हो गया.  यह हमारा बरसों पुराना अनुभव है कि हमें बदलने का दावा करने वाला 4 दिन के बाद खुद ही बदलता रहा है. देखिए साहब, आप हमें परेशान करने के लिए स्टेटमैंट पर स्टेटमैंट दिए जा रहे हैं. कभी आप के मंत्री हमारे दफ्तरों में हम से पहले आ कर हमारी गैरहाजिरी लगा देते हैं तो कभी हम से छुट्टी देने को कहते हैं. पर अब हम भी हाथ पर हाथ धरे नहीं रहने वाले. वैसे भी मत पूछो, हम आजकल महंगाई के कारण कितने परेशान चल रहे हैं.

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अब आप ने जोश में आ एक और स्टेटमैंट दे मारा है. इस के चलते हर विभाग के हर तबके के कर्मचारियों के हाथपांव फूल गए हैं. आप तो जो मन करे, कह देते हो पर झेलना तो आप की नीतियों को जनता तक पहुंचाने वाले हम कर्मचारियों को पड़ रहा है न. अब आप से ही पूछते हैं कि हम ने क्या सिर पर कफन बांध चुनावी ड्यूटी इसीलिए दी थी?

अरे साहब, देश के प्रधानमंत्री हो तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि जनता को खुश करने के लिए जो मन में आया, कह दिया.  जनता को बहकाने के लिए कुछ भी कहिए, चलेगा, पर हमारे सम्मान को ठेस मत पहुंचाइए, प्लीज. हमारे पास सम्मान और जोड़े हुए सामान के सिवा तीसरा कुछ नहीं. कुछ कहने से पहले जरा सोच तो लिया करो कि आप के कहे का कहां, क्या असर होने वाला है. आप के पास दल है तो हमारे पास बेचारा दिल.

अब आप ने फरमाया है कि आप न खाने देंगे और न खाएंगे. अब आप से हम पूछते हैं, जिस बंदे को सरकारी नौकरी में लगते ही खाने की आदत बन जाए, जो सरकारी नौकरी में खाने के लिए ही आए, उसे आप क्या खाने से रोक पाएंगे? हमारा तो इतिहास ही खाने का रहा है, हुजूर. और जो आप ने किसी तरह हमें खाने से रोक ही लिया तो क्या हम बिन खाए जिंदा रह पाएंगे?

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अगर आप के द्वारा खाने से हम पर लगी रोक के कारण हमें कुछ हो गया न, तो देख लेना, हमारा परिवार आप को कभी माफ नहीं करेगा. आप को कभी वोट नहीं देगा.  आप से पहले भी सरकार थी. उन्होंने कभी हमारे खाने पर कोई आपत्ति नहीं की. बल्कि वे तो हमें खाने के एक से एक सुनहरे मौके देते रहे. भगवान उन की आत्मा को शांति दे.

अरे साहब, हम ने तो नौकरी तक नोट दे कर ली है. अब नौकरी में लगा दिए पैसे पूरे नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? यहां पर सब नोट देखते हैं, लियाकत नहीं. जिन के पास नोट नहीं, केवल लियाकत है, वे बेचारे तो रेहडि़यों पर अपनी लियाकत की डिगरियां लटकाए कमेटी वालों को हफ्ता देते चाट बेच रहे हैं. कोरी लियाकत से यहां आज की डेट में कुछ नहीं मिलता. नोट है तो सपोर्ट है.

आप नहीं खाएंगे, अच्छी बात है. पर हमें तो कम से कम खाने से मत रोको. आप के आगेपीछे कोई नहीं. तो हम क्या करें साहब. हमारे आगेपीछे तो बीसियों जिंदा, सैकड़ों मरे हैं और वे हर जगह कहते फिरते हैं कि उन का रिश्तेदार माल महकमे में अपने से ऊंची कुरसी पर बैठता है. इतनी ऊंची कुरसी पर कि भगवान को भी भक्त के कंधों पर चढ़ उस से बात करनी पड़ती है.

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यहां तो अपने कुछ अग्रज इस बात के हिमायती हैं कि खाओ, पर खाने न दो. यह तो मेरी महानता है कि मैं खाता नहीं, पर दोनों आंखें बंद कर उन को खाने जरूर देता हूं. सच कहूं, एक अरसा पहले मैं ने भी आप वाला प्रयोग किया था कि मैं न खाऊंगा, न खाने दूंगा. पता है तब क्या हुआ था मेरे साथ? चलो आप को बता ही देता हूं. तब खाने वालों ने मिल कर मुझे ही शहर के बाहरी क्षेत्र में पटकवा दिया था. बड़ी मुश्किल से अपना तबादला रुकवा पाया था मैं. तब एक समझदार ने नसीहत देते हुए कहा था कि न खाना अच्छी बात है पर खाने से रोकना घोर पाप. उस के बाद मैं ने आगे कसम खाई थी कि मर जाऊं जो किसी को खाने से रोकूं, नरक मिले जो किसी को खाते हुए देख औब्जैक्शन करूं.

इधर, मेरे दफ्तर के कुछ ऐसे ईमानदार हैं कि किसी का भी प्रोग्राम हो, कोई भी प्रोग्राम हो, निसंकोच लंच हंसते हुए खा ही जाते हैं. 5 रुपए की चाय मुफ्त में पी ही जाते हैं. और मैं हूं कि शान से, पूरे आत्मसम्मान से उन की थाली में माल परोसता रहता हूं. इसलिए हे मेरे प्रधानमंत्रीजी, सबकुछ कीजिए, पर हमें खाने से मत रोकिए. हम नहीं खाएंगे तो आप कैसे अपने तय किए लक्ष्य पाएंगे? देश के विकास के लिए हमारा खाना बहुत जरूरी है. हमें खाने से रोकना समुद्र पर बांध बनाने जैसा है. हम खानदानी खाने वाले नहीं खाएंगे तो देश के विकास की सारी फाइलें अलमारी में रखीरखी सड़ जाएंगी, जनाब. मुझे जो आप को बताना था, बता दिया. शेष आप की इच्छा. सरकार आप की, नाव आप की. हम तो केवल उसे बहाने वाले बंदे हैं जी.

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

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जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

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एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

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वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है.

इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता.

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