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उलझे रिश्ते: भाग-3

‘‘आगे वाला वाहिद है और पीछे वाला अली है,’’ अभिषेक ने धीरे से कहा.

दोनों ने माथे पर हाथ लगा कर हमें सलाम किया व फिर वाहिद ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया व अंदर ले चला.

‘‘कैसे हो अली भाई?’’ अभिषेक ने पूछा.

‘‘सबकुछ ठीक है, भाईजान,’’ अली ने हाथ मिलाते हुए कहा.

वाहिद ने मुझे सोफे पर बिठाया. आशा व रीना भी बैठ गईं.

‘‘हिंदुस्तान से आने में आप को कोई परेशानी तो नहीं हुई, अंकल?’’

‘‘नहीं बेटा, कोई परेशानी नहीं हुई. पर यहां ठंड बहुत है.’’

‘‘हां, ठंड तो है, अंकल. पर अभी क्या है, यहां तो माइनस ट्वैंटी तक टैंपरेचर जाता है.’’

‘‘हां, सुना तो है. पर तब तक तो हम इंडिया लौट जाएंगे.’’

‘‘यह आप ने बहुत अच्छा किया अंकल, जो आप लोग नौर्वे आ गए. मैं तो अपने वालिद साहब से कहकह कर थक गया. पर वे नौर्वे आने को तैयार ही नहीं होते.’’

तभी अंदर से 2 बेहद खूबसूरत युवतियां कमरे में आईं. उन्होंने गुलाबी व हरा सलवार सूट पहन रखा था व सिर पर दुपट्टा डाल रखा था.

‘‘यह मेरी बीवी अंजुम है व वह अली की वाइफ  निशा है,’’ वाहिद ने परिचय कराया.

‘‘आदाब अंकल,’’ दोनों ने कहा. फिर वे रीना व आशा से गले लग कर मिलीं व आशा का हाथ पकड़ कर अंदर ले गईं.

मुझे सब सामान्य लग रहा था. लगता ही नहीं था कि किसी पाकिस्तानी के घर में बैठे हैं. लग रहा था जैसे किसी दोस्त के घर दिल्ली के चांदनी चौक में बैठे हैं.

‘‘आप का घर पाकिस्तान में कहां है, बेटा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मेरा घर लाहौर में है, अंकल. वैसे हम कश्मीर से हैं. अली इसलामाबाद से है.’’

‘‘कश्मीर? कश्मीर तो हिंदुस्तान में है.’’

‘‘एक कश्मीर पाकिस्तान में भी है, अंकल. वर्ष 1955 में वालिद साहब लाहौर आ गए थे.’’

‘‘पर वह तो आजाद कश्मीर है न.’’

‘‘उसे… पाकिस्तान ही समझें.’’

तभी अंदर से अंजुम आई. उस के हाथों में ट्रे थी जिस में गुलाबी रंग के शरबत से भरे गिलास थे. उस ने सभी को शरबत दिया.

‘‘आंटी तो बहुत ही अच्छी हैं, अभिषेक. उन्होंने रीना के साथसाथ मेरी भी जिम्मेदारी संभाल ली है,’’ उस ने कहा.

‘‘चलो, अच्छा हुआ. अब अंजुम को अम्मी की कमी नहीं खलेगी,’’ वाहिद ने हंसते हुए कहा.

‘‘क्या हुआ अंजुम बेटी को,’’ मैं ने पूछा.

उस को भी डिलिवरी होनी है. अभिषेक व वाहिद के यहां एक ही समय में खुशियां आने वाली हैं. ज्यादा से ज्यादा हफ्ते का अंतर रहेगा,’’ अली ने जवाब दिया.

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ा सुखद संयोग है.’’

हम बातें करते रहे. वाहिद व अली अपने बारे में बताते रहे. वाहिद ने एमटैक के बाद पीएचडी की हुई थी. अली ने बीटैक किया था. मैं ने एक बात महसूस की थी, अंजुम व निशा ने परदा नहीं किया था. अकसर मुसलिम घरों में औरतें परदा करती हैं व मर्दों के सामने नहीं आतीं. पर वे बेतकल्लुफी से आजा रही थीं.

तभी निशा ने आ कर बताया कि खाना लग गया है. हम सभी उठ कर पीछे के बरामदे में आ गए. यहां डाइनिंग टेबल लगी थी. खाना शाकाहारी था जिस में कई आइटम थे. गोभीमटर व टमाटर की रसे वाली सब्जी, कटहल की सूखी सब्जी, एक और सूखी सब्जी, दहीबड़े, रायता, चटनी, पापड़, पूड़ीकचौड़ी. खा कर मजा आ गया. चावल का पुलाव तो लाजवाब था. मैं काफी ज्यादा खा गया. अंत में फलों वाला कस्टर्ड था.

हम खाना खा कर बाहर बड़े वाले कमरे में आ गए. अब महिलाओं को खाना खाना था. सभी के सामने गरम कौफी के प्याले रख कर अंजुम भी खाना खाने चली गई.

‘‘वाहिद बेटा, तुम्हारे यहां खाना खा कर तो ऐसा लगा जैसे अपने यहां ही खा रहे हों. लगा ही नहीं कि यूरोप में या विदेश में हैं. यहां ये सब मिल जाता है?’’

‘‘हां अंकल. यही गनीमत है. सब मिल जाता है. पाकिस्तान से थोड़ा महंगा जरूर होता है पर मिल जाता है.’’

‘‘क्या पाकिस्तान में भी लोग इस तरह का खाना खाते हैं. मेरे विचार से तो वहां मीटमुरगा ज्यादा खाते हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है, अंकल. पाकिस्तान में भी हफ्ते में 5 दिन लोगों के यहां दाल बनती है, मीट भी बन गया तो ठीक है. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि वहां भी कई लोग ऐसे हैं जो टोटल वैजिटेरियन हैं.’’

‘‘अगर ऐसा है तो वाकई आश्चर्य ही है. मैं ने तो सुना है वहां रहने वाले हिंदुओं को भी जबरन मीट खाना पड़ता है.’’

‘‘अब मैं क्या कहूं. हिंदू वहां हैं पर कम हैं. फिर भी 20 लाख हिंदू पाकिस्तान में हैं. इतने लोगों से खानेपीने में कोई कैसे जबरदस्ती कर सकता है.’’

‘‘अच्छा, वहां अभी भी मंदिर हैं या सभी गिरा कर मसजिद बना दी गई हैं?’’

वाहिद चुप रह गया. मुझे भी लगा शायद मेरा प्रश्न उचित नहीं था.

‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है, अंकल. वहां मंदिर भी हैं और गुरुद्वारा भी हैं. हर साल तीर्थयात्रा करने हजारों हिंदू व सिख इंडिया से वहां जाते हैं. अगर मंदिर या गुरुद्वारे वहां नहीं होते तो ये लोग वहां किसलिए जाते? कुछ घटनाएं हुई हैं पर वे बहुत ज्यादा नहीं हैं. वहां हिंदू भी हैं, सिख, ईसाई भी हैं व सभी अपने हिसाब से इबादत करते हैं,’’ इस बार अली बोला.

‘‘तो पाकिस्तान में हिंदू इतना डरे हुए व दबे हुए क्यों हैं?’’

‘‘पाकिस्तान में सभी डरे हुए हैं अंकल. क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख. पर वे डरते हैं गुंडों से और बदमाशों से, वे डरते हैं माफिया नेताओं से ठीक उसी तरह से जैसे हिंदुस्तान के बाशिंदे डरे, दबे हैं हिंदुस्तानी गुंडों, बदमाशों से. कोई अंतर नहीं है, अंकल,’’ वाहिद गंभीरता से बोला.

‘‘यह सच है कि आम पाकिस्तानी हिंदुस्तानियों को पसंद नहीं करते?’’

अब अली ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘अंकल, यह एकदम सच है. देखिए, मैं और वाहिद पाकिस्तानी हैं और अभिषेक हिंदुस्तानी है. हम लोग एकदूसरे को इतना नापसंद करते हैं कि तमाम और पाकिस्तानियों और हिंदुस्तानियों के यहां होने के बावजूद हम सब से खास दोस्त हैं. अब और क्या सुबूत चाहिए आप को नापसंदगी का.’’

‘‘चला जाए, वाहिद भाई. औलरेडी देर हो गई है. यहां सूरज जल्दी डूबता है. पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो जाएगा,’’ अभिषेक उठ गया. वह मुसकरा रहा था.

सभी उठ गए.

लौटते समय बस में मैं ने अभिषेक से पूछा, ‘‘बेटा, मैं कुछ गलत तो नहीं बोल गया?’’

‘‘अरे नहीं, पापा. आप टैंशन न लें. वैसे हम लोग आपस में इस तरह की बातें नहीं करते,’’ अभिषेक बोला.

रीना को कुछ प्रौब्लम हो गई थी. उस का बीपी हाई चल रहा था. हम उसे पूरा आराम दे रहे थे. आशा ने किचन संभाल लिया था. घर की साफसफाई व वाशिंग मशीन में कपड़े लगाने का कार्य मैं ने ले लिया था. अभिषेक के यहां काम थोड़ा ज्यादा ही था. अब मैं आराम से ग्रोनलैंड बाजार जा कर घर का सामान, सब्जी व दूध वगैरह ले आया करता था. हर तीसरेचौथे दिन अभिषेक रीना को अस्पताल ले जा कर दिखा देता था. हम बेसब्री से डिलिवरी का इंतजार कर रहे थे.

उधर अंजुम व वाहिद के यहां भी

थोड़ी परेशानी थी. 2 दिन, दिनदिनभर के लिए, आशा को वहां जाना पड़ा. अभिषेक ही जा कर छोड़ आया.

आगे पढ़ें- आखिरकार एक दिन रीना को तेज दर्द उठा. आशा के…

उलझे रिश्ते: भाग-1

नई दिल्ली से नौर्वे की राजधानी ओस्लो की फ्लाइट कुल 14 घंटों की थी जिस में से फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में 4 घंटों का स्टौपेज भी शामिल है. दरअसल, दिल्ली से ओस्लो की कोई सीधी फ्लाइट नहीं है. या तो डेनमार्क हो कर या फिर फिनलैंड हो कर जाना होता है. दिल्ली से 8 घंटे की फ्लाइट हेलसिंकी की, वहां 4 घंटों का स्टौपेज. फिर हेलसिंकी से ओस्लो की 2 घंटे की उड़ान.

यात्रा अच्छी रही. यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी पर कोई परेशानी नहीं हुई. पहले थोड़ा डर जरूर लग रहा था. पत्नी भी साथ थी. बेटे ने पहले ही बता दिया था कि इंग्लिश से काम चल जाएगा हेलसिंकी में भी और ओस्लो में भी. देश के अंदर मैं पहले भी कई बार हवाई यात्रा कर चुका था, इसलिए हवाई यात्रा से कोई भय नहीं था. पर विदेश यात्रा हेतु विभिन्न कार्यवाहियां, मसलन इमिग्रेशन व कस्टम आदि की कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन कोई परेशानी नहीं हुई. टिकट पर ही एयरलाइंस का नाम व टिकट नंबर लिखा हुआ था. दिल्ली का आईजीआई एयरपोर्ट भव्य व अद्भुत है. सामने लगे बोर्ड पर ही एयरलाइंस व फ्लाइट का नंबर लिखा हुआ था. हम एफ  काउंटर पर आ गए व वहां बैठी लड़की ने हमारा बोर्डिंग पास बना दिया. दोनों बड़ी अटैचियां लगेज में ले ली गईं व इमिग्रेशन और कस्टम काउंटर भी बता दिया गया. वहां हमें एक छोटा सा फौर्म भरना पड़ा. काउंटर पर बैठे पुलिस अधिकारी ने मात्र एक प्रश्न पूछा, ‘‘आप ओस्लो क्यों जा रहे हैं?’’

‘‘वहां हमारा बेटा है. हम उस से मिलने जा रहे हैं,’’ मैं ने कहा. उस ने तुरंत हमारे पासपोर्ट पर मुहर लगा दी व हमें अंदर जाने को कहा. सिक्योरिटी चैक पार कर के हाथ में अपना छोटा बैग लिए टिकट पर लिखे अनुसार हम अपने बोर्डिंग गेट पर जा पहुंचे. शीघ्र बोर्डिंग प्रारंभ हो गई व हम जहाज पर जा बैठे.

जहाज के उड़ने की घोषणा इंग्लिश व एक अन्य भाषा, जिसे हम बिलकुल भी न समझ पाए व मजे की बात कि हिंदी में भी हुई. उस के बाद जहाज उड़ चला. करीब 15 मिनट के बाद स्नैक्स व पेय सर्व किए गए. फिर हम सीट पर लगी स्क्रीन पर ही फिल्म देखने लगे. एकडेढ़ घंटे बाद खाना लगाया जाना शुरू हुआ. मेरी पत्नी आशा व मैं ने शाकाहारी भोजन लिया. खाने के बाद हम ने एक नींद ले ली.

मेरी जब नींद खुली तो फिर स्नैक्स सर्व किए जा रहे थे. मैं ने घड़ी देखी. हेलसिंकी आने में अब 2 घंटे ही रह गए थे. हम स्क्रीन पर हेलसिंकी आने की प्रक्रिया देखने लगे. जल्दी ही हेलसिंकी एयरपोर्ट आने की घोषणा होने लगी. जहाज हेलसिंकी पर उतर गया. जहाज से उतर कर हम बस में बैठ गए व अराइवल गेट से अंदर आ गए. यहां भी लाइन लगी थी. जब हमारा नंबर आया तो काउंटर पर बैठे हट्टेकट्टे, लंबेचौड़े विदेशी की ओर हम ने अपने अपना पासपोर्ट व टिकट बढ़ा दिए. उस ने कंप्यूटर पर चैक कर हम से विदेशी भाषा में कुछ कहा. मेरी समझ में कुछ आने का सवाल ही नहीं था. मैं मूर्खों की तरह उसे देखता रहा. फिर धीरेधीरे बोला, ‘‘विल यू स्पीक इन इंग्लिश प्लीज.’’

विदेशी मुसकरा पड़ा, फिर इंग्लिश में कुछ बोला जिस में मुझे सिर्फ  2 शब्द समझ में आए. ‘‘योर व फिन.’’

‘‘प्लीज स्पीक स्लोली ऐंड क्लियरली,’’ मैं ने उन से रिक्वैस्ट की.

‘‘योर फिन एयरलाइंस हैल्प काउंटर इज ऐट नंबर थ्री,’’ उस ने धीरेधीरे कहा.

हम आगे बढ़ गए. तीर के निशान से काउंटर नंबर दर्शाए गए थे. हम 3 नंबर काउंटर पर पहुंच गए. काउंटर पर बैठी बेहद सुंदर व स्मार्ट लड़की ने हमारा टिकट देख कर हेलसिंकी से ओस्लो का पास बना दिया.

‘‘योर गेट नंबर इज ट्वैंटी सेवन. मूव राइट,’’ उस ने कहा. हम ने उसे धन्यवाद दिया व आगे बढ़े. हमारे गेट पर बोर्डिंग प्रारंभ थी. हम ने पास दिखाया व बस से होते हुए जहाज पर सवार हो गए. जहाज उड़ा व ठीक 2 घंटे बाद ओस्लो में उतर गया. जहाज में ही घोषणा कर के बता दिया गया था कि हमारा सामान बैल्ट संख्या 12 पर आएगा.

अराइवल गेट से अंदर आते ही सामने लगेज का इंडिकेटर दिखा. उसी के सहारे हम बैल्ट तक पहुंच गए. एकएक कर के सामान आ रहे थे. जैसे ही हमारी अटैचियां आईं, हम ने उन्हें उठा कर ट्रौली में डाल लिया. सामने एक्जिट का तीर था जिस के सहारे चलते हुए हम एक्जिट गेट तक पहुंच गए.

शीशे के विशाल एक्जिट गेट के बाहर लोहे की रेलिंग के पास हमें अपना बेटा अभिषेक खड़ा दिखाई दे गया जिस ने हमें देख लिया था व जोरजोर से हाथ हिला रहा था.

गे?ट से बाहर आते ही अभिषेक हम से लिपट गया. उस की आंखें भर आईं. 2 वर्षों बाद अपने बेटे को देख कर आशा भी अपनेआप को न रोक सकी. उस की आंखों से अविरल आंसू बहने लगे, पर मैं अपने पर नियंत्रण बनाए रहा. अभिषेक ने अपनी मां को जोर से अपनी बांहों में भर लिया.

‘कैसे हो बेटा, सब लोग कैसे हैं?’’ मैं ने कहा.

‘‘सब लोग एकदम ठीक हैं, आप का इंतजार कर रहे हैं. आप की यात्रा कैसी रही?’’

‘‘यात्रा अच्छी रही, बेटा. कहीं कोई परेशानी नहीं हुई.’’

‘‘मुझे चिंता लग रही थी. मुझे लगा हेलसिंकी में कोई असुविधा न हो. बहरहाल, आइए इधर से आ जाइए, हम बस से चलेंगे.’’

अभिषेक आगेआगे चला व हम पीछेपीछे चले. थोड़ी सी दूर एयरपोर्ट पर ही बस का टर्मिनल था. अभिषेक ने कार्ल स्टफ  इलाके में मकान लिया था, यह मुझे मालूम था. यहां ठंड काफी ज्यादा थी. मैं ने यहां की ठंड में गलन काफी अधिक महसूस की. काटती हवा बड़ी तेज चल रही थी. मैं ने व आशा ने एयरपोर्ट पर ही जैकेट, टोपी व मफलर पहन लिए थे.

तभी 1 नंबर की बस आ गई. यह अभिषेक के इलाके में जाती थी. अभिषेक ने चालक को इशारा किया व उस ने बटन दबा कर बस की साइड का एक दरवाजा खोल दिया. उस के अंदर सामान रखने की जगह थी. आश्चर्य तो तब हुआ जब चालक उतर कर नीचे आया व उसी ने दोनों बड़ी अटैचियां उठा कर अंदर रखीं व फिर अपनी सीट पर जा बैठा. हम हाथ में छोटा बैग ले कर सीट पर बैठ गए. अभिषेक टिकट बनवाने लगा. चालक ने ही टिकट बनाया. फिर अभिषेक आ कर हमारे पास बैठ गया.

‘‘यह चालक तो बड़ा शरीफ  है, बेटा. हमारा सामान भी उठा कर रखा,’’ मैं ने कहा.

‘‘यह तो उस की ड्यूटी है, पापा. यहां यही चलन है.’’

‘‘कोई कंडक्टर नहीं है?’’

‘‘यहां कंडक्टर नहीं होता. चालक ही टिकट देता है.’’

‘‘यानी चालक ही कंडक्टर है और वही क्लीनर भी है?’’

अभिषेक हंस पड़ा, ‘‘कह सकते हैं. यहां चालक के रूप में ज्यादातर पोलिश लोग हैं. वे यहां शरणार्थी हैं.’’

बस काफी रफ्तार से जा रही थी. ओस्लो शहर से एयरपोर्ट करीब 15 किलोमीटर दूर है. यह हाईवे था. बड़ीबड़ी गाडि़यां व ट्रक वगैरह काफी चौड़ी व साफसुथरी सड़क पर कम से कम डेढ़ सौ किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहे थे. चारों ओर का दृश्य बड़ा ही सुंदर था. सड़क के दोनों ओर लंबेलंबे, हरेभरे मैदान थे जिन के पार ऊंची पहाडि़यां दिखाई दे रही थीं. बड़ेबड़े मैदानों की घास बड़े करीने से कटी हुई थी जिस से वे बड़ेबड़े लौन जैसे लग रहे थे.

आगे पढ़ें- ‘‘क्या यहां ओस्लो में काफी भारतीय हैं?’’

उलझे रिश्ते: भाग-2

‘‘क्या यहां ओस्लो में काफी भारतीय हैं?’’

‘‘नहीं पापा. यहां इंडियन बहुत कम हैं.’’

‘‘नौर्वे के लोगों के अलावा यहां और कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘पोलैंड के काफी लोग हैं. इस के अलावा सीरिया, इराक, सूडान, फिलिस्तीन के लोग हैं. ये यहां शरणार्थी हैं. बाकी पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका के लोग हैं जो ज्यादातर यहां काम करने आए हैं. कइयों ने यहां की नागरिकता भी ले ली है. मेरी कंपनी में 70 लोग हैं जिन में भारतीय सिर्फ  4 हैं.’’

‘‘यानी यहां मुसलमान भी हैं,’’ आशा ने चौंक कर पूछा.

अभिषेक फिर हंस पड़ा. काफी बड़ी संख्या में हैं. पाकिस्तान, बंगलादेश के तो हैं ही, सीरिया, इराक, सूडान, फिलिस्तीन के भी तो मुसलमान ही हैं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे दोस्त तो भारतीय ही होंगे न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मेरे क्लोज फ्रैंड्स में विश्वनाथन है जो केरल से है. इस के अलावा वाहिद व अली हैं जो पाकिस्तान से हैं.’’

‘‘तुम्हें मुसलमान ही मिले थे. नौर्वे के लोगों से दोस्ती नहीं कर सकते थे?’’ आशा ने कहा.

‘‘यूरोपियन खासकर नौर्वेजियन दूसरों से दोस्ती करना कम पसंद करते हैं. सिर्फ  परिचय रखना पसंद करते हैं.’’

‘‘चलो बेटा, ठीक है. विदेश तो विदेश ही है. कोई अपना देश तो है नहीं,’’ आशा ने ठंडी सांस ली.

तभी अभिषेक ने उठने का इशारा किया. शायद हमारा स्टौप आ रहा था. हम गेट पर आ गए. बस रुक गई. हम नीचे उतरे. चालक ने आ कर हमारी अटैचियां उतारीं. हम पहियों पर अटैचियों को चलाते हुए कालोनी की रोड पर चले. कालोनी देख कर मेरी तबीयत प्रसन्न हो गई. कालोनी के बीचोंबीच एक खूब बड़ा हराभरा मैदान था जिस में भी करीने से कटी हुई घास लगी थी. इस के किनारेकिनारे क्यारियां बनी थीं जिन में रंगबिरंगे फूल लगे थे. घास के मैदान के 3 तरफ  तिमंजिले ब्लौक बने थे.

अभिषेक ने जेब से चाबी निकाल कर सी ब्लौक के शीशे के गेट को खोला. भूतल पर सामने ही उस का फ्लैट था. हम अंदर आए और उस ने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने की आवाज सुनते ही रीना बाहर आ गई. आशा ने उसे सीने से लगा लिया.

रीना हमारी बहू है. उसे डिलिवरी होनी है और इसलिए हम 3 माह के लिए नौर्वे आए हैं. हम वहीं पड़े सोफे पर बैठ गए.

‘‘आप को तो इस जर्नी में बड़ी थकान हो गई होगी, मांजी. 14 घंटे तो लग ही गए होंगे.’’

‘‘घर से निकले तो हमें 18-20 घंटे हो रहे हैं. 3 घंटे पहले तो एयरपोर्ट पर ही पहुंचना था. पर पता नहीं क्यों थकान बिलकुल भी नहीं लग रही है,’’ आशा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप पहले चाय पिएंगे कि हाथमुंह धोना पसंद करेंगे?’’

‘‘मैं तो पहले चाय पिऊंगा. तुम्हारे मुल्क में धूल का तो नामोनिशान नहीं है.’’

‘‘मैं हाथमुंह धो लेती हूं,’’ आशा ने कहा.

‘‘तब तक मैं चाय बना लाती हूं,’’ रीना किचन में चली गई.

अभिषेक ने कानपुर आईआईटी से बीटैक किया था. वह शुरू से ही जहीन था. उस ने सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास की थीं. आईआईटी में भी वह प्रथम प्रयास में ही चयनित हुआ था. बीटैक के अंतिम वर्ष में ही एक अमेरिकी कंपनी ने उसे जौब औफर कर दिया था. बीटैक में उस ने काफी अच्छी रैंक पाई थी. 3 महीने ह्यूस्टन में प्रशिक्षण लेने के बाद उस की कंपनी ने उसे यहां ओस्लो में पोस्ंिटग दे दी थी. अभिषेक को अपनी पढ़ाई पूरी किए व नौकरी करते 4 वर्ष हो चुके थे. नौकरी में आने के एक वर्ष बाद ही हम ने उस का विवाह कर दिया था. शादी के बाद पहले वर्ष तो वह भारत आया था पर पिछले 2 वर्षों से वह नहीं आ पा रहा था. अब रीना गर्भवती थी व उस का नौवां महीना चल रहा था. उसे देखभाल की आवश्यकता थी, इसलिए हम यहां आए थे.

2 वर्ष पहले बैंक से कर्ज ले कर अभिषेक ने यह 2 बीएचके फ्लैट खरीद लिया था.

दूसरे दिन मैं अभिषेक के साथ बाहर घूमने निकला. शनिवार था और अभिषेक की छुट्टी थी. उसे घरेलू सामान व सब्जी, दूध वगैरह लेना था.

घर के पास ही मैट्रो स्टेशन था. ठंड काफी थी. अभिषेक की तो आदत थी पर मैं जैकट, टोपी, मफलर, मोजे व ग्लब्स पहने हुए था. रास्ते में भीड़ थी व लोग आजा रहे थे.

‘‘हम यहां के ग्रोनलैंड इलाके में जा रहे हैं. यहां पर हमारी आवश्यकता की सभी चीजें मिल जाती हैं.’’

स्टेशन के बाहर काफी चहलपहल थी. वह काफी साफसुथरा था. सड़कें चौड़ी थीं. हम सड़क पार कर के मुख्य बाजार में आ गए. तभी मैं चौंक पड़ा. कोई किसी को आवाज दे कर बुला रहा था, ‘‘अरे भाईजान, जरा सुनिए तो.’’

नौर्वे में हिंदी सुन कर मैं दंग रह गया. मैं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से अभिषेक की तरफ  देखा.

‘‘यह उर्दू है, पापा. यह पाकिस्तानियों की मार्केट है. यहां 80 प्रतिशत दुकानें पाकिस्तानियों की हैं. तभी न, यहां हमारी चीजें मिल जातीं हैं. उन का व हमारा कल्चर व खानपान एकजैसा है न.’’

‘‘पाकिस्तानी? यह तुम मुझे कहां ले आए. हमारा और उन का कल्चर एकदम अलग है. ये खतरनाक लोग हैं. इन से बच कर रहा करो,’’ मैं ने मुंह बना कर कहा.

अभिषेक हंस पड़ा, ‘‘यहां यह सब नहीं है, पापा. आप डरें नहीं.’’

हम एक दुकान में गए. काफी बड़ी दुकान थी. यहां दाल, चावल, आटा, मसाले व सब्जियां वगैरह थीं. मांस की दुकानें भी बहुतायत में थीं. अभिषेक ने खरीदारी की व हम वहां से बाहर आ गए.

सामने एक मैदान जैसा था. वहां कुछ भीड़ थी. थोड़ीथोड़ी दूर पर 2 कैनोपी लगी थीं. मुझे लगा, कोई तमाशा हो रहा है.

‘‘यह क्या हो रहा है, बेटा. आओ जरा देखें तो,’’ मैं ने अभिषेक से कहा.

‘‘उधर न जाइए, पापा. इधर से आइए.’’

‘‘क्यों? क्या हुआ? क्या है यह?’’

‘‘ये मुसलिम हैं, चंदा इकट्ठा कर रहे हैं.’’

‘‘चंदा? काहे का चंदा ले रहे हैं ये लोग?’’

‘‘पापा, सीरिया और सूडान जैसे कई मुसलिम देशों में लड़ाई चल रही है. वहां के लोग बड़ी परेशानियों में हैं. उन्हीं के लिए ये लोग चंदा इकट्ठा करते हैं.’’

‘‘ओह, पर इस तरह खुलेआम… ’’

‘‘यह यूरोप है, पापा. यहां के लोग बड़े खुलेदिल के हैं. कुछ नहीं कहते. पर गलत लोग इस का गलत फायदा उठाते हैं. सुनते हैं, इन पर आईएसआई का भी प्रभाव है. ऐसा भी पता चला है कि चंदे का यह पैसा दुनिया के कई टेररिस्ट और्गेनाइजेशंस को टेररिज्म चलाने के लिए भी जाता है. पर क्या कहा जा सकता है.’’

‘‘अरे बाप रे, क्या हाफिज सईद को भी चंदा जाता है?’’

‘‘कोई नहीं जानता. क्या मालूम जाता ही हो. दूसरी कैनोपी में धर्मप्रचार का कार्य हो रहा है. हर साल सैकड़ों ईसाई इसलाम धर्म अपनाते हैं.’’

‘‘यह सब तो खतरनाक है.’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने आप को रोका था. इस के अलावा यहां नाइजीरियन भी हैं. वे भी शरणार्थी हैं. मानवता के आधार पर वे यहां आ गए हैं. पर

अब वे नशीली दवाइयां वगैरह सप्लाई करते हैं. लोकल पुलिस उन पर नजर रखती है.’’

‘‘चलो बेटा, वापस चलो. मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘अरे नहीं, डरने की बात नहीं है. हम विदेश में हैं, इसलिए सावधानी रखनी पड़ती है. चलिए.’’

हम वापस चले व मैट्रो से घर आ गए.

आज रीना को मैडिकल चैकअप के लिए हौस्पिटल जाना था. रीना व अभिषेक टैक्सी से अस्पताल चले गए.

2 घंटे बाद वे वापस आए व बताया कि सबकुछ एकदम नौर्मल है.

‘‘कल रविवार है. कल आप लोगों को वाहिद ने खाने पर बुलाया है,’’ अभिषेक ने बैठते हुए कहा.

‘‘कौन, वही पाकिस्तानी?’’

‘‘हां, मेरा दोस्त है.’’

‘‘मैं तो उस के यहां नहीं जाऊंगा.’’

‘‘क्यों? क्या आप उन के यहां नहीं खाते?’’

‘‘ऐसा नहीं है. हिंदुस्तान में तो मेरे

कई दोस्त हैं. ईदबकरीद में तो जाता

ही हूं. खातापीता भी हूं. पर वे हिंदुस्तानी मुसलमान हैं. हिंदुस्तानी मुसलमान शरीफ  होते हैं. पाकिस्तानियों का कोई भरोसा नहीं है. वे धोखेबाज होते हैं.’’

‘‘आप नहीं जाएंगे तो अच्छा नहीं लगेगा. आप के लिए ही उन्होंने यह प्रोग्राम रखा है.’’

‘‘पर हम तो मीटमांस नहीं खाते हैं. हम उन के यहां क्या खाएंगे भला.’’

‘‘यह मैं ने उन्हें पहले ही बता दिया है. कल नौनवेज नहीं होगा, केवल शाकाहारी होगा.’’

‘‘चलो, ठीक है,’’ मैं ने आधे मन से कहा, ‘‘तुम्हारा दोस्त है. चले चलेंगे. पर मैं कुछ खापी नहीं पाऊंगा.’’

दूसरे दिन हम वाहिद के यहां के लिए बस से ही निकले. वाहिद का मकान ओस्लो शहर के बाहरी हिस्से में था. यह जगह बेहद ही खूबसूरत थी. यह थोड़ी ऊंची जगह थी. हमारे पहुंचते ही 2 लड़के जैसे आदमी बाहर निकल आए. दोनों ने ही घनी दाढ़ी रख

रखी थी. उन्होंने मुसकरा कर सब का स्वागत किया.

आगे पढ़ें- दोनों ने माथे पर हाथ लगा कर हमें सलाम किया व फिर…

उलझे रिश्ते: भाग-4

आखिरकार एक दिन रीना को तेज दर्द उठा. आशा के अनुसार यह प्रसव का दर्द था. टैक्सी ले कर हम सभी अस्पताल पहुंचे. रीना को तुरंत ऐडमिट कर लिया गया. पर रीना का बीपी काफी हाई था. डाक्टर भी चिंतित हुए. रीना का दर्द एक घंटे में खत्म हो गया. डाक्टरों के अनुसार, डिलिवरी में अभी 2-3 दिन थे पर रीना को लगातार मैडिकल केयर की आवश्यकता थी. सो, उन्होंने रीना को अस्पताल में ही रखने का निश्चय किया.

अब असली परेशानी थी हौस्पिटल का घर से दूर होना. हौस्पिटल आने के लिए ट्राम व बस बदल कर आना पड़ता था. मेरे लिए अकेले घर पहुंचना संभव नहीं था. बसस्टौप व ट्रामस्टौप सभी नौर्वेजियन भाषा में लिखे होते थे. उद्घोषणा भी उसी में होती थी. अगर मैं भटक गया तो आशा के साथ गुम हो सकता था.

ऐसे समय में वाहिद व अली खूब काम आए. एक दिन वाहिद छुट्टी लेता था तो एक दिन अली. अभिषेक लगातार काम पर जाता रहा. खाना तो अली की पत्नी निशा ही बना कर भेजती रही. हमें अस्पताल पहुंचाने व लाने का काम वाहिद और अली करते रहे. सुबह वाहिद या अली घर आ जाते थे. तब तक आशा नाश्ता इत्यादि बना लेती थी. वे हमें अस्पताल ले कर आते थे व फिर एकाध घंटे के लिए औफिस चले जाते थे.

दिन का खाना निशा ले कर आती थी. शाम को अभिषेक, वाहिद, अली तीनों आ जाते थे. वाहिद अभिषेक का खाना ले कर आता था जिसे अंजुम बनाती थी. फिर वाहिद व अली हम लोगों को घर पहुंचा कर अपने घर जाते थे. अभिषेक रात में अस्पताल में रहता था व रीना को अस्पताल से ही संतुलित भोजन मिलता था.

यह सिलसिला लगातार 3 दिनों तक चलता रहा. सच में वाहिद व अली ने दोस्ती की मिसाल पेश कर दी. काम तो सब चल ही जाता पर इन लोगों की वजह से मुसीबत के दिनों की परेशानी कम हो गई व सब से बड़ी बात, इस विदेश में सहारा हो गया.

तीसरे दिन रात में डेढ़ बजे अभिषेक का फोन आया. एकदम से रीना की तबीयत बिगड़ गई थी. अभिषेक घबरा गया था. उस ने कहा कि वाहिद व अली आ रहे हैं. हम लोग कपड़े बदल कर तैयार हो जाएं जिस से उन के साथ अस्पताल आ सकें. वाहिद, अली व निशा टैक्सी से आए व हम 2 बजे रात अस्पताल पहुंच गए. रीना को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी व बच्चे की हार्टबीट स्लो चल रही थी. मैं, वाहिद, अली व निशा नीचे हौल में कुरसियों पर

अभिषेक व आशा ऊपर रीना के पास कमरे में थे.

बैठे हुए थे. अभिषेक व आशा ऊपर रीना के पास कमरे में थे. स्थिति में सुधार था. अब डिलिवरी होना निश्चित था. डाक्टर औपरेशन के हक में नहीं थे व नौर्मल डिलिवरी का प्रयास कर रहे थे.

‘‘बेटे, तुम लोगों की सहायता से हम लोगों को इस मुसीबत की घड़ी में बड़ी सहायता मिली. तुम्हारा यह एहसान हमारा पूरा परिवार कभी भी भूल नहीं पाएगा,’’ मैं ने पूरे मन से कहा.

‘‘अहसान? इस के बारे में तो मैं ने कभी सोचा ही नहीं,’’ वाहिद ने थकान व नींद से भरी आंखें उठा कर कहा.

‘‘अहसान किस बात का अंकल. यहां हमारा है ही कौन. हमीं को एकदूसरे के काम आना है. हम गैर नहीं हैं अंकल,’’ अब अली ने अपने पैर फैला कर कहा.

‘‘तुम ठीक कहते हो, बेटा. देखो, तुम लोग मेरी बात का बुरा नहीं मानना. शायद मुझे ठीक से बात करना नहीं आता,’’ मैं ने कहा.

‘‘नहींनहीं अंकल, आप ऐसा न कहें. आप हमारे बुजुर्ग हैं. आप से बात कर के हमें अच्छा लगता है. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मेरे वालिद साहब ही बात कर रहे हों. हम मिस करते हैं उन्हें, अंकल.’’

‘‘अच्छा बच्चो?, एक बात बताओ, क्या दूसरे पाकिस्तानी लोग भी ऐसा ही सोचते हैं?’’

सभी चुप हो गए. वाहिद व अली एकदूसरे को देखते रहे.

‘‘शायद ऐसा नहीं है, अंकल. पर मैं एक बात आप को बताता हूं. वर्ल्ड कप में अगर हिंदुस्तान पाकिस्तान को हरा देता है तो पूरे पाकिस्तान में अफसोस और इंडिया की हायहाय होती है. पर अगर फाइनल में इंडिया का मुकाबला वेस्टइंडीज, आस्ट्रेलिया या इंग्लैंड से होता है तो हम इंडिया की जीत मनाते हैं,’’ वाहिद धीरेधीरे बोला.

‘‘हमें हिंदुस्तानियों से बड़ा डर लगता है, अंकल,’’ निशा ने धीरे से कहा.

‘‘हिंदुस्तानियों से डर? कैसा डर, निशा बेटी?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘पाकिस्तान में हमें लगता है कि कभी भी हिंदुस्तानी आ कर हमें मार डालेंगे. हमारे घर लूट लेंगे व आग लगा देंगे. हिंदुस्तान से पाकिस्तान बहुत छोटा है न, अंकल. हमें लगता है, हम अपने को बचा नहीं पाएंगे,’’ बोलतेबोलते निशा का गला भर आया.

एक सन्नाटा पसर गया पूरे हौल में. निशा ने अपनी बात बिना किसी लागलपेट के रख दी थी.

‘‘क्या तुम लोग मानोगे. एकदम यही डर हिंदुस्तान में बैठ कर हमें भी लगता है,’’ मैं ने थोड़ी देर गहरी सांस ली.

‘‘अरे, ये सब नहीं होता, अंकल. आज की इंटरनैशनल स्थिति ऐसी नहीं है. न तो कोई किसी को ऐसा करने देगा और न ही कोई ऐसा कर पाएगा,’’ अली ने कहा.

‘‘सीधी सी बात है. हम एकदूसरे से चिढ़ते हैं. जब चिढ़ते हैं तो जलते हैं ठीक उसी तरह से जैसे 2 भाई और उन की बीवियां जलते हैं. इस में गुस्सा नहीं होता और अमूमन नफरत भी नहीं होती. मैं आम पाकिस्तानी हूं और आप को यकीन दिलाता हूं कि आम पाकिस्तानी हिंदुस्तान से नफरत नहीं करता. हम आज भी जब दिल्ली, हैदराबाद या भोपाल की बात करते हैं तो घमंड से हमारा सीना फूल जाता है,’’ वाहिद बोला.

‘‘पर वो हाफिज सईद… और वो हमीदुल्लाह?’

‘‘कौन हाफिज सईद? किस हमीदुल्लाह की बात कर रहे हैं आप?’’

‘‘अरे वो है न एक. वही जैश वाला. अरे, वही जिस के आदमी कभीकभी चादर फैला कर चौराहों पर कश्मीर के लिए भीख मांगते दिखाई देते हैं,’’ अली ने वाहिद से धीरे से कहा.

‘‘वही तो. ये लोग आप की मीडिया की देन हैं. पाकिस्तान में उसे बहुत कम लोग जानते हैं. पर आप की मीडिया और नेताओं ने उसे हिंदुस्तान के घरघर में पहुंचा दिया है. शायद अपनी टीआरपी बढ़ाने और अपनी दुकान चलाने के लिए. यही पाकिस्तान में भी हो रहा है. आप के उन तथाकथित टैररिस्टों का नाम शायद आप जानते भी न होंगे जो हमारे मीडिया के मुताबिक सिंध और बलूचिस्तान में तबाही मचाए हुए हैं. इन लोगों ने कश्मीर के नाम पर पूरी दुनिया से बेहिसाब पैसा इकट्ठा किया हुआ है. और ये हाफिज… सुना है इस के तो सैकड़ों ट्रक चलते हैं. इस की हर बडे़ शहर में प्रौपर्टी है. उसे तो इंडिया का शुक्रगुजार होना चाहिए. लेकिन जान लीजिए, पाकिस्तान में उस की हैसियत एक अनपढ़, मवाली, गुंडा या माफिया से ज्यादा नहीं है,’’ वाहिद जोश से बोला.

तभी मेरा फोन बजा.

‘‘रीना को लड़का हुआ है, पापा. दोनों एकदम ठीक हैं. आप बाबा बन गए, पापा. जरा वाहिद को दीजिए,’’ अभिषेक का फोन आया था.

मैं ने कांपते हाथों से फोन वाहिद को दिया. मेरी आंखों से आंसू गिर रहे थे, वाहिद, अली व निशा ने खूब जोशभरी मुबारकबाद दी.

15 मिनट बाद हम रीना के पास कमरे में थे. आशा बच्चे को सीने से लगाए कुरसी पर बैठी थी. सफेद तौलिए में लिपटा छोटा सा गुड्डे जैसा बच्चा बेहद खूबसूरत लग रहा था. रीना आराम से बैड पर लेटी मुसकरा रही थी. मैं ने लपक कर बच्चे को आशा से ले लिया व अपने से लगा लिया.

‘‘सब ठीक रहा?’’ वाहिद ने अभिषेक को गले से लगाया.

‘‘ऐब्सोलूटली. सब नौर्मल रहा.’’

‘‘रिलीव कब करेंगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कल शाम तक कर देंगे. बच्चे के कुछ टैस्ट होने हैं.’’

‘‘काहे के टैस्ट, बेटा?’’ मैं चिंतित हुआ.

‘‘यही कि बेबी के सभी अंग, जैसे आंख, कान, नाक, लिवर, किडनी, हार्ट वगैरह ठीकठाक काम कर रहे हैं न,’’ अभिषेक ने बताया. ‘‘अब आप लोग घर जाइए. अंजुम कैसी है, वाहिद?’’ अभिषेक ने वाहिद से पूछा.

‘‘वैसे तो एकदम ठीक है पर थोड़ा डर रही है.’’

‘‘कोई बात नहीं. अब रीना अपना एक्सपीरिएंस शेयर करेगी तो उस का डर कम हो जाएगा.’’ सभी जोर से हंस पड़े, रीना भी.

हम सभी घर आ गए.

रीना भी दूसरे दिन शाम को बच्चे को ले कर घर आ गई. बच्चे के सभी अंग एकदम ठीक काम कर रहे थे.

आशा बच्चे को ले कर पूरी तरह से व्यस्त हो गई. उस की नैपी बदलना, वाश करना, मालिश करने में उस का समय बीतने लगा.

अंजुम की डिलिवरी उसी अस्पताल में 12 दिनों बाद हुई.

उस की डिलिवरी में कोई परेशानी नहीं हुई. जिस दिन गई उसी दिन शाम 4 बजे उस की डिलिवरी हो गई.

उस को भी बेटा हुआ. अभिषेक, वाहिद व अली की खुशी की सीमा न रही. प्रसव के समय मैं व आशा भी वहीं अस्पताल में ही थे.

पर अंजुम को आगे 8 दिन और अस्पताल में रहना पड़ा.

दरअसल, जब बेबी को अस्पताल में चैक किया गया तो समस्या का पता चला. उस के शरीर में खून नहीं बन रहा था. यह लाखों बच्चों में से किसी एक को होने वाली बीमारी थी. तुरंत इलाज शुरू हो गया, पर बच्चा दुबला होता गया.

डिलिवरी के तीसरे दिन ही उस नन्हे से बच्चे को खून चढ़ाने का निश्चय किया गया. पर समस्या बढ़ती गई. बच्चे का खून रेयर किस्म का था. सभी के टैस्ट हो गए पर किसी का भी खून मैच नहीं किया. नौर्वे जैसे देश में भी उस किस्म के खून का स्टौक नहीं था. टीवी में विज्ञापन दे दिया गया. हर पल कीमती था. टैंशन हो गई.

शाम को मैं व आशा अस्पताल गए. रीना घर पर ही रही. तब स्थिति की गंभीरता का पता चला. अभिषेक ने कहा, ‘‘पापा, आप भी चैक करा लो.’’ वह बेहद परेशान था.

मेरा ब्लड टैस्ट हुआ तो मैच कर गया. मुझे आज तक पता ही नहीं था कि मेरा ब्लड भी रेयर है.

‘‘पापा, आप ब्लड देंगे?’’ अभिषेक ने पूछा.

‘‘हां, दूंगा, जल्दी करो.’’

‘‘वह एक मुसलिम है, पापा.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘वो पाकिस्तानी है, पापा.’’

‘‘मैं नहीं जानता. मैं तो बस इतना जानता हूं कि वह एक नन्हा सा बच्चा है जो मेरे बेटे के दोस्त का बेटा है और वह दोस्त नहीं, उस का भाई है. चलो.’’

मैं ने एक यूनिट खून दिया.

शाम तक बच्चे की स्थिति सुधर गई. उस के रोने का स्वर नीचे तक आ रहा था. दवाइयों ने अपना असर करना भी शुरू कर दिया था. 8 दिनों के बाद अंजुम अपने बेटे को ले कर घर आ गई. सबकुछ सामान्य था.

देखतेदेखते 3 माह का समय बीत गया. हमारा पोता अब तकियों के सहारे से बैठने लग गया था. खिलखिला कर हंसता, तो उस के गुलाबी मसूढ़े बड़े सुंदर दिखाई देते. हम ने उस का नाम रखा था अंकुर.

एयरपोर्ट पर हमें छोड़ने अभिषेक,

रीना के साथ ही वाहिद, अंजुम व

अली, निशा भी आए थे. वे हमारे लिए गिफ्ट ले कर आए थे. हम जब फाइनली गेट के अंदर जाने लगे तो अभिषेक व रीना ने हमारे पैर छुए. निशा ने माथे पर हाथ लगा कर हमें सलाम किया पर अंजुम मेरे चेहरे की तरफ  देखती रही. अचानक वह दौड़ कर मेरे कंधे से लग गई. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. ‘‘आप ने हमें बचा लिया, अंकल. आप मेरे अब्बू हैं. मैं तो मर ही जाती, अंकल.’’ वाहिद भी मुझ से लिपट गया. उस की भी आंखें भरी हुई थीं.

‘‘खुश रहो मेरे बच्चो. तुम सभी खूब तरक्की करो और खूब खुश रहो,’’ मैं ने दोनों को अपने सीने से लगा लिया.

‘‘और वाहिद तुम क्यों आंसू गिराते हो, बेटा. तुम से तो मेरा रक्त का संबंध है. तुम्हारे बेटे की रगों में मेरा ही तो खून बह रहा है न.’’

सभी जोर से हंस पड़े.

‘‘मेरे बेटे के ही नहीं, अंकल, बल्कि पूरे पाकिस्तान के ही. कुछ मुट्ठीभर लोगों को छोड़ दीजिए तो हर छोटा, बड़ा, गरीब, अमीर जब अपने खानदान का शजरा निकालता है तो अंत में दोचार या दस पीढि़यों के बाद उस का खून किसी न किसी ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया या शूद्र के ही खून से तो जा कर मिलता है न,’’ वाहिद ने कहा.

एक बार फिर सभी जोर से हंस पड़े.

हम डिपार्चर गेट के अंदर चल पड़े.

‘कोरोना‘ के भय से नहीं बचा पा रहे ‘भगवान’

भगवान की शरण में लोग जीवन की रक्षा के लिये जाते है. दुनिया पर जब ‘कोरोना वायरस’ का खतरा बढ रहा है तब मंदिरों में ताले लग रहे है. केवल बडे मंदिरों पर ही नहीं छोटे छोटे मंदिरों पर भी ताले लग रहे है. जनता को मंदिरों से दूर रहने को कहा जा रहा है जिससे पुजारी और भगवान सुरक्षित रह सके. कई मंदिरों में मूर्तियों को भी पुजारियों ने मास्क पहना कर यह बताने का काम किया है कि कोरोना वायरस से पीडितों की मंदिर भी मदद नहीं कर पायेगे. मुम्बई, शिरणी और उज्जैन जैसे बडे मंदिरों के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मनकामेश्वर मंदिर में ही लोगों को आने से रोका गया है. मनकामेश्वर मंदिर की मंहत देव्या गिरी ने कहा कि ‘कोरोना‘ महामारी से बचाव को देखते हुये मनकामेश्वर बाबा के दर्शन का लाभ 19 मार्च से 31 मार्च तक नहीं हो सकेगे.‘

25 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरूआत हो रही है. जिसमें मंदिरों में भीड बढ जाती है. इस बार नवरात्रि में मंदिर सूने रहेगे. लोग अपने घरो में पूजा पाठ करगे. बडे मंदिरों की तर्ज पर अब छोटे मंदिर भी बंद हो रहे है. यही नहीं पूजा सामाग्री और इससे जुडे करोबार के लोग बता रहे है कि होली के बाद ही नवरात्रि की तैयारी होने लगती थी. इस बार कोरोना का डर इस कदर था कि होली के त्योहार में लोग होली मिलने से बचे. होली मिलन के सामूहिक कार्यक्रम भी नहीं हुये. इससे यह डर था कि मंदिरों में भीड नही होगी ऐसे में नवरात्रि के त्योहार फीके रहेगे. जैसे जैसे बडे मंदिरों के बंद रहने की सूचना आ रही है वैसे वैसे नवरात्रि में कम लोगों के शामिल होने का खतरा बढ रहा है.

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‘सोशल मीडिया‘ पर एक बात की चर्चा होने लगी है कि देश को मंदिरों की नहीं अस्पतालों की जरूरत है. ‘कोरोना‘ से मुकाबले के समय मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और गिरिजाघर सभी मंे ताले लग गये. इस मुसीबत के समय लोगों को केवल और केवल अस्पताल और डाक्टरों से ही अपनी समस्या का निदान समझ आ रहा है. धार्मिक और आस्थावान लोग इस सोच से परेशान होकर कोरोना को हिन्दू सनातन धर्म से जोड कर प्रचार कर रहे है कि हिन्दू धर्म ही इससे बचाव में सक्षम है.इसमें सबसे बडा ‘नमस्ते‘ का जिक्र किया जा रहा है. धर्म का ऐसा प्रचार करने वाले लोग कहते है कि कोरोना को रोकने के लिये ‘हाथ मिलाने‘ की पश्चिमी संस्कृति की जगह पर ‘नमस्ते‘ करने की भारतीय संस्कृति का अपनाये.

असल बात यह ‘धर्म का प्रचार‘ करने वाले इस बात को करने भी लगे है कि ’कोरोना’ के भय से लोग धर्म में विश्वास खोते जा रहे है. कोरोना जब महामारी के रूप में लोगों के सामने है तो लोगों की मदद के बजाये मंदिरों में ताले लग गये है. ऐसे में अब सोशल मीडिया पर भी लोग चर्चा करने लगे है कि देश और समाज को मंदिरों की जरूरत है या अस्पतालो की. इस सवाल का जवाब धर्म का प्रचार करने वाले भी नहीं दे पा रहे है.

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bigg boss contestent सना खान का आया बयान,एक तरह का किरदार निभाना नहीं है पसंद

दक्षिण भारत की 15 फिल्में,‘बिग बॉस’,‘वजह तुम हो’सहित कुछ हिंदी फिल्मों की अदाकारा इन दिनों हॉट स्टार’ पर प्रसारित हो रहे वेब सीरीज ‘‘स्पेशल औप्स’’को लेकर चर्चा में है.प्रस्तुत है उनसे हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंशः2005 से 2020 तक के 15 वर्ष के अपने कैरियर को आप किस तरह से देखती हैं?

मुझे लगता है कि यदि अभी भी मैं काम कर रही हॅूं और व्यस्त हॅूं,तो इसके मायने यह हुए कि मेरा कैरियर काफी अच्छा चल रहा है.इन 15 वर्षोंं में मेरा रूप भी बहुत बेहतर हो गया है,तो वह भी बहुत महत्वपूर्ण है.और एक कलाकार के तौर पर अगर आप लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं, चाहे फिर वह आपका काम हो या एक इंसान के तौर पर भी अगर आप आगे बढ़ रहे हैं,तो यह अच्छे संकेत हैं.क्योंकि बॉलीवुड में 15 वर्ष तक  टिके रहना आसान तो नही हो सकता.इसके लिए हमने अपने ऊपर काफी काम किया.क्योंकि अगर कुछ वक्त तक आपको काम नहीं मिलता है,तो आप डाइटिंग व वर्कआउट वगैरह करना छोड़ देते हैं.अच्छे से कपड़े पहनना छोड़ देते हैं,कहीं ना कहीं आप सोशल मीडिया से भी दूर हो जाते हैं,जो आपको अपने फैंस से दूर कर देता है.मुझे लगता है कि फेंस से जुड़े रहना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है.अगर आप काम नहीं भी करते हो,तो भी अपने फैंस के साथ जुड़े रहना और उन्हें कंटेंट देना बहुत कठिन काम है,जिसे मैंने अपने सोशल मीडिया के जरिए कहीं ना कहीं कायम रखा है,ताकि लोगों के साथ मेरा जो रिश्ता है,वह खत्म ना हो.

सवाल-आपने दक्षिण भारत में कई फिल्में की, पर बॉलीवुड मंे आपको ज्यादा फिल्में नही मिली?

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-वास्तव में दक्षिण में इतनी रोचक फिल्में मिल रही थीं,कि मैं वहीं रहने लगी थी.मंुबई में मेरी किसी से मुलाकात ही नहीं हो रही थी.मुझे पता ही नहीं था कि मुंबई में या बॉलीवुड हो क्या रहा है?उस समय मैं बहुत ज्यादा पतली थी.दक्षिण में काम करने के लिए मैंने बहुत ज्यादा अपना वजन बढ़ाया.मैं फिर वही व्यस्त थी.जब आप लगातार काम कर रहे होते हो,तो कुछ दूसरा सोचते भी नहीं हो.बॉलीवुड का मसला वैसे भी बहुत अलग है.सच तो यही है कि मुझे अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत बॉलीवुड से ही करनी थी. क्योंकि मुझे हिंदी भाषा और एक्टिंग करना आता है.ऐसे में संवाद याद करना सरल हो जाता है.दक्षिण में मेरे लिए संवाद याद करना बहुत कठिन होता था.खैर,सब कुछ तय समय पर ही मिलता है.

सवाल-जैसा कि आपने कहा कि आपने बहुत कम फिल्में की हैं.लेकिन दूसरों की अपेक्षा आपको शोहरत बहुत ज्यादा मिली.इसकी क्या वजह रही?

 

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They like woman who don’t call them on their bullshit and tht is never the woman I will be ?? . . . #sanakhan

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-मुझे लगता है कि यह ईश्वर की अनुकंपा ही है कि कम काम करने के बाद भी ईश्वर ने मुझे इतनी इज्जत दी है.आज भी मेरे प्रशंसक हैं.लोग हमें जानते व पहचानते हैं.उन्हे मेरा नाम याद है.मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.मुझे लगता है कि इंसान के कर्म पर भी काफी कुछ निर्भर करता है.अगर आप एक अच्छे इंसान हैं,तो ईश्वर भी कहीं ना कहीं आपको हाशिए पर नही जाने देता.आपको ब्रेक देकर भी काम लाकर ही देता है.इतने सारे ब्रेक के बाद भी मैं आज ‘हॉटस्टार’जैसे ओटीटी के बड़े प्लेटफार्म के लिए नीरज पांडे जैसे बड़े निर्देशक के साथ काम कर रही हॅूं.

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सवाल-आपने टीवी पर सिर्फ रियालिटी शो किए हैं.कभी किसी सीरियल में एक्टिंग नहीं की?

-मैं टीवी सीरियल में अभिनय नहीं कर सकती.

सवाल-इसकी वजहें क्या हैं?

-मैं हर दिन एक ही जगह जाकर एक ही तरह की पोशाक पहनकर एक ही जैसा किरदार नहीं निभा सकती.मुझे अलग-अलग तरह का काम करना पसंद है.देखिए,जो कलाकार टीवी सीरियल से कैरियर की शुरूआत करते हैं,शायद उन्हें यह पसंद आता है.लेकिन मैंने विज्ञापन फिल्मों और फीचर फिल्मांे से अपने कैरियर की शुरूआत की.इसी के चलते मुझे अलग-अलग चीजें करना व अलग दिखना अच्छा लगता है.विभिन्न किरदारों को निभाना अच्छा लगता है.सीरियल में लगातार कई वर्ष तक एक ही किरदार निभाना होता है,जो मेरे वश की बात नही है.अगर वह सीरियल 45 साल चला, तो आपकी जिंदगी खत्म हो गई.मैं ऐसा कुछ नही कर सकती.मुझे ऐसे छोटे-छोटे काम करना ज्यादा पसंद है,जिसमें मैं अलग अलग किरदार करूं,कुछ अलग किरदार करूं. हर बार अलग-अलग लोगों के साथ काम करूं, अलग अलग जगह घूमने का अवसर मिले.अलग-अलग घूमने से एक इंसान के तौर पर भी आपके अंदर बहुत बदलाव आता है.

सवाल-वेब सीरीज ‘‘स्पेशल आॅप्स’’ से जुड़ने की मूल वजह क्या रही?

-सच कहॅंू,तो सबसे बड़ी वजह  नीरज पांडे सर रहे.जैसे ही मुझे उनके प्रोडक्शन से फोन आया कि नीरज पांडे सर मिलना चाहते हैं,तो उसी वक्त मैंने कह दिया था कि उनसे कह देना मुझे उनके साथ काम करना है.उस वक्त तक मैंने कॉंसेप्ट वगैरह नही सुना था.मैंने उनसे कहा कि आप अगर मुझे दो सीन भी देंगे तो भी मैं उनके साथ काम करूंगी.नीरज सर के लिए मेरे दिल में इतनी इज्जत है कि उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती.मगर इतनी इज्जत किसी अन्य के लिए इस इंडस्ट्री में नहीं है.मैं नीरज सर की दिल से इज्जत करती हूं और और मैं उनके लिए हमेशा यही दुआ करती हूं कि वह हमेशा अच्छा काम करंे.फिर चाहे वह फिल्में हो या उनकी निजी जिंदगी हो.कुछ लोग ऐसे होते हैं,जिनसे अगर आप मिलते हो,तो भले आप दस मिनट के लिए मिलें, पर उनके लिए इतनी इज्जत हो जाती है कि आपको लगता है कि अगर मैं उनके साथ काम ना भी करूं,तो भी मैं इनके लिए हमेशा अच्छा ही सोचूंगी.नीरज सर ने वही इंप्रेशन मेरी नजर में बनाया था,जब मैं उनसे दस मिनट के लिए मिली थी.मुझे लगा था कि अरे वाह क्या बंदा है.मेरी राय में इंडस्ट्री को नीरज पांडे सर जैसे लोगों की ही जरूरत है.यह अपने काम से काम रखते हैं. किसी के कहने से उनके विचार नही बदलते.अगर नीरज सर को आपको अपनी फिल्म का हिस्सा बनाना है,तो फिर चाहे दस लोग आपके खिलाफ उनसे कुछ कहें,पर वह आपको ही फिल्म में लेंगे.

वह बहुत अच्छे डायरेक्टर हैं.उनको पता होता है कि उनकी स्क्रिप्ट के किरदार में कौन सा आर्टिस्ट सही बैठेगा,उस वक्त वह किसी को भी जज नहीं करते या नहीं देखते कि उसने पहले क्या काम किया है. खैर,जब मैं नीरज सर सेे मिलने गई, तो सर आफिस में नहीं थे.उनकी टीम ने मुझे वेब सीरीज के बारे में नरेशन दिया,जिसे सुनकर मैं इतनी उत्साहित हुई कि मैं वेब सीरीज का नाम पूछना भ्ूाल गयी थी.

सवाल-आपके अनुसार‘‘स्पेशल अॉप्स’’क्या है?

-स्पेशल अॉप्स मेरे लिए सबसे पहले बहुत स्पेशल है.यह सत्य घटनाओं पर आधारित है,लेकिन तमाम काल्पनिक पात्रों व कहानी को भी जोड़ा गया है.

सवाल-इसमें आपका अपना कैरेक्टर का नाम क्या है?

-मैंने इसमें सोनिया का किरदार निभाया है.वह रॉ एजेंट है.इससे अधिक मैं बता नहीं सकती.मैंने अपने किरदार के संबंध में एक शब्द भी कह दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगा.

आपने अभी कहा कि सोशल मीडिया से डिस्कनेक्ट नहीं होना चाहिए.मगर सोशल मीडिया का सिर्फ एक फायदा है कि आप अपने प्रशंसक से जुड़े रह सकते हैं.लेकिन क्या वह आपको एक्टिंग में कहीं मदद करता है?

सवाल – बहुत मदद करता है. किस हिसाब से?

-देखिए,यदि आप सोशल मीडिया से बहुत अच्छे से जुड़े हुए हैं,तो जब आप उदास होते हैं और आप इस बारे में सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करते हैं,तोे बहुत सारे लोग आपका साथ देते नजर आते हैं.आज की तारीख में दोस्त भी ऐसे होते हैं.कुछ लोगों के पास बहुत कम दोस्त होते हैं.कितने लोग ऐसे हैं,जिनके पास तो दोस्त भी नहीं होते हैं.जबकि कहीं ना कहीं,किसी न किसी सिचुएशन में आपको प्यार की बहुत जरूरत पड़ती है.अपने आप को ठीक करने के लिए,किसी बात को जाहिर करने के लिए,लोगों को बताने के लिए कि मेरे पास यह मुद्दे हैं और मुझे इन मुद्दों पर बात करनी है,तो आपके पास सोशल मीडिया का सशक्त प्लेटफार्म मौजूद है.

देखिए,हमारे पास जो जानकारी है,वह दूसरों तक पहुॅचनी चाहिए.क्योंकि बहुत सारे लोग कुछ चीजों से गुजरते हैं.तो मुझे लगता है कहीं ना कहीं सोशल मीडिया आपकी बहुत मदद करता है.मेरी राय में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हथियार है.लोेगों को बताने के लिए कि हर चीज आप जो फोटो में देखते हो वैसा होता नहीं है,कुछ चीजों का एक अलग रूप भी होता है.

सवाल-आप बिग बॉस का हिस्सा रहीं.आपका अपना अनुभव है.पर इन दिनों‘बिग बॉस’को लेकर काफी विवाद उठे हैं.कई तरह के वीडियो मार्केट में आए हैं.आपकी राय में क्या सच क्या झूठ हो सकता है?

-देखिए,सच और झूठ तो मैं खुद भी घर परबैठकर कह नहीं सकती.आपकी ही तरह मंै भी यह सारी चीजें देख व पढ़ रही हूं.यह लोग जो कह व कर रहे हैं,अजीब लगता है.फिर भी ठीक है.जिसके नसीब में जीतना लिखा था,वह जीत गया.

सवाल-वेब सीरीज‘‘स्पेशल आॅप्स’’की शूटिंग के लिए भी आप कई देशों में गयी?

-मैं तो सिर्फ जॉर्डन गई थी.मेरी शूटिंग सिर्फ जॉर्डन में थी.पर बहुत मजा आया.कुछ अलग करने का अवसर मिला.

सवाल-आप थ्रिलर जॉनर के अलावा क्या करना चाहती है?

-एक्शन करना चाहती हूं.मुझे तो एक्शन प्रधान फिल्म करनी है.मसलन-‘40 एंजेल्स’ या ‘एजेंट 007’. मुझे यह सब करना बहुत पसंद है.

सावल-आपके शौक ?

-मुझे घूमना बहुत पसंद है.मेरा खुद का एक क्लीनिक है,मेरे पास स्किन केयर लाइन है.तो वह भी मेरी एक हॉबी है.मेरा खुद का क्लीनिक है, जहां डॉर्मेंट कॉस्मेट काम होता है. तो फिलहाल मैं वही करती हूं और बाकी टाइम पर दूसरा काम करती हूं.

सवाल-क्या इसके लिए आपने कोई ट्रेनिंग ली हैैं?

-जब आप स्किन क्लीनिक खोलते हैं,लोगों की स्किन का ट्रीटमेंट करते हैं,तो आपको ट्रेनिंग भी लेनी पड़ती है.सर्टिफिकेट लेने पड़ते हैं.मैं रोज हमेशा छोटे-छोटे कोर्स करती रहती हूं.अलग-अलग जगहों पर जाती रहती हूं.मै पूरे विश्व में जाकर ट्रेनिंग ले रही हूं.

सवाल-क्या भविष्य में इसे आगे बढ़ाने की इच्छा है या?

-भविष्य में नहीं,अभी भी इसे बढ़ाने की इच्छा है.भविष्य में तो वह आगे बढ़ चुका होगा.पर आज की तारीख में मैं वहां काम कर ही रही हूं.मैं अपने ब्रांड के ज्यादा क्लीनिक खोलने के लिए प्रयास रत हॅूं.

सवाल-आपको कहां घूमने जाना पसंद है?

-मुझे बड़ी से छोटी,हर जगह जाना पसंद है.मैं चाहती हूं कि मैं हर कल्चर का अनुभव लूं,हर जगह की चीज को समझूं.मुझे पूरी दुनिया घूमनी है.

सवाल-आप कई जगहों पर घूम चुकी हैं,कोई ऐसा अनुभव है,जिसने आपकी जिंदगी पर असर डाला हो?

-मुझे लगता है कि घूमने से ज्यादा कभी-कभी आप घर पर बैठे रहते हो,लोगों से मिल लेते हो,तो उनकी कहानियां भी आपके ऊपर असर डालती हैं.सच कहूं तो घूमने से आपके ऊपर कोई असर आता नहीं है.आप सिर्फ देखते हो कि ऐसा कल्चर है और आप उसे इंज्वॉय करते हो.पर आप के उपर प्रभाव नही पड़ता.जब आप कोई मैन्यूमेंट देखते हैं,तो आपको लगता है कि बनाने वाले ने क्या बनाया है?मसलन-जॉर्डन में एक सागर है,जिसके अंदर एक भी मछली नहीं है.आप उसके अंदर डूब नहीं सकते हो.तो यह बहुत ही ताज्जुब की बात है.ऐसा लगता है कि ऊपर वाले ने बनाया है,तो क्या बनाया है. ईश्वर ने कुछ ऐसा बनाया है,जिसके अंदर ना मछली है ना कुछ और,सिर्फ नमक से भरा हुआ है.आप उसके ऊपर तैर सकते हो.ईश्वर की बनायी हुई इस तरह की चीजें जिंदगी बदलने वाली लगती हैं.

 

Coronavirus :कोरोना पर आयुष्मान खुराना ने लिखी कविता, बांटा गरीबों का दर्द 

चीन से शुरू हुई कोरोना की महामारी ने भारत सहित पूरे विश्व के 160 देशों को अपनी चपेट में ले लिया है.भारत में ‘कोरोना’’के सबसे अधिक मरीज महाराष्ट् व मुंबई शहर में हैं.प्राप्त आंकड़ों के अनुसार गुरूवार की सुबह तब भारत में 151 और महाराष्ट् में 45 कोरोना पीड़ित हो चुके हैं,जिसमें से मुंबई के कस्तूरबा गांधी अस्पताल में एक कोरोना पीड़ित की मृत्यु भी हो चुकी है.

परिणामतः महाराष्ट् में अधिकांश शहर पूरी तरह से बंद हैं.लोग अपने अपने घरों में कैद हैं.महाराष्ट् सरकार ने पूरे महाराष्ट् में स्कूल, कॉलेज,जिम,पब,सिनेमाघर,माल्स बंद कर दिए हैं.फिल्म व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद करा दी गयी है.इतना ही नहीं अब मुंबई व पुणे में लोकल ट्रेन भी पचास प्रतिशत ही चल रही है.सरकार के आदेश के अनुसार अब दुकाने भी हर दिन सिर्फ पचास प्रतिशत ही खुलेंगी.

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इस तरह के हालात के चलते सबसे अधिका समस्या गरीब तबके को हो रही है.मुंबई शहर में फिल्म और टीवी जगत में कार्यरत ‘डेलीवेजेस’@दिहाड़ी मजदूरों की हालत तो सबसे ज्यादा खराब है.ऐसे समय में फिल्म व टीवी जगत से जुड़े तमाम कलाकार अपने अपने तरीके से लोगों के बीच ‘कोरोना’को लेकर जागरूकता फैलाने व इससे सुरक्षित रहने के उपाय बताने के साथ ही उन्हे संयम बरतने का संदेश भी दे रहे हैं.

 

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हर कलाकार अपनी क्षमता के अनुरूप सोशल मीडिया का भी उपयोग इसीलिए कर रहा है.ऐसे में ‘विक्की डोनर’,‘शुभ मंगल सावधान’,‘बधाई हो’,‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’जैसी लीक से हटकर और समाज में टैबू समझे जाने वाले विषयों पर बनी फिल्मों में अभिनयकर शोहरत बटोरने वाले 35 वर्षीय अभिनेता आयुष्मान खुराना साहित्यिक रूचि के हैं.वह गीत व कविताएं लिखते रहते हैं.इसलिए आयुष्मान खुराना ने कठिन समय में अपने साहित्यिक कार्य के माध्यम से ट्वीटर पर अपने विचार साझा किए.अभिनेता आयुष्मान खुराना ने बुधवार को देश के कम आय वाले समूहों को समर्पित स्व-लिखित कविता साझा की,जो देश में कोरोना वायरस के चलते बंद से सबसे अधिक प्रभावित हैं.आयुष्मान खुराना ने अपनी इस कविता में देश के दो आर्थिक रूप से अलग-अलग वर्गों को प्रभावित करने के तरीके पर प्रकाश डाला.वह कविता में लिखते हैं.

‘‘अब आमिर का हर दिन रवीवार हो गया,

और गरीब है अपने सोमवार के इंतजार में.

अब अमीर का हर दिन सह परिवार हो गया,

और गरीब है अपने रोजगार के इंतजार में..’’

जी हॉ!‘‘कोरोना -19’’के प्रसार को रोकने के लिए एहतियाती उपाय के रूप में लॉकडाउन पर देश के विभिन्न हिस्सों के साथ, कई दिहाड़ी मजदूरों और कम आय वाले परिवारों को स्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.ऐसे में किसानो की आत्महत्या से लेकर हर मजदूर व गरीब तबके के लिए हमेशा ट्वीटर पर अपनी व्यथा व्यक्त करते रहने वाली अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने भी ट्वीटर का सहारा लेकर पहले दिन से भारत सरकार से आपदा के बीच छोटे व्यापारियों के लिए कुछ सुविधाएं मुहैय्या करने की घोषणा करने का आग्रह किया.

रिचा ने ट्वीटर पर लिखा है-‘‘प्रिय सरकार,कृपया छोटे व्यवसायों के लिए एक खैरात की घोषणा करें … या यह तालाबंदी उनके ताबूत में आखिरी कील होगी.  दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों के लिए राहत की घोषणा करें.हम सभी चेहरे में एक आपदा लिए घूम रहे हैं! राजनीति इंतजार कर सकती है..,‘‘

ट्वीटर व सोशल मीडिया पर आयुष्मान खुराना तथा रिचा चड्ढा की इस पहल का लोग स्वागत कर रहे हैं.

कोरोना: लापरवाह भूपेश सरकार !

लेखक-सुरेशचंद्र रोहरा
कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैल चुका है. डब्ल्यूएचओ ने महामारी घोषित कर दी है. प्रधानमंत्री  ने दक्षेस देशों के  समक्ष बड़ी पहल, फंड बनाने हाथ बढ़ा बड़ा , संदेश दिया है कि भारत  कोरोना महामारी को लेकर कितना गंभीर है. दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी, आंगनबाड़ी बंद करके छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है.प्रदेश में आज भी मदिरालय   की दुकानों में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुट रही है और इसे  व्यवस्थित नहीं किया गया है.
 कोरोना वायरस के चलते शराब दुकानों को बंद किये जाने के सवाल पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि किसी एक दुकान को टारगेट न करें. हमको शराब की दुकान से लेकर हर ऐसे ठिकाने जहां भीड़  हैं, हमको परहेज बरतना चाहिए.
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मदिरालय में भारी हुजूम 
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छत्तीसगढ़ के दूसरे नंबर के बड़े नेता और स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिहदेव कहते हैं  कि महाराष्ट्र और दिल्ली में सरकार ने मॉल्स पर भी सिनेमा हॉल के जैसा प्रतिबंध लगा दिया है.लेकिन  शराब की दुकानों पर  जब तक बंद करने के आदेश नहीं आते तब तक एहतियात सबको बरतनी होगी. मैं किसी एक को टारगेट करने के पक्ष में नहीं हूं कि शराब की दुकान में कोई विशेष बात है. ऐसी कोई बात नहीं है. मैंने पहले भी कहा कि शराब की दुकान से कहीं ज्यादा लोग सब्जी मार्केट में जाते है. किसी एक दुकान को टारगेट न करें.
उन्होंने कहा कि हमारी जान को खतरा हो सकता है समझते हुए अगर हम फिर भी भीड़ करेंगे तो अपने प्रति एक बड़ी लापरवाही होगी. आज का समय दबा कर कुछ कराने का नहीं है, लोगों से आग्रह करके उन को जागरूक करने का है कि आप इसकी गंभीरता को समझे. कुल मिलाकर यह सब लफ्फाजी कांग्रेस के मंत्री नेता कर रहे हैं. जबकि इसकी जगह रणनीतिक तरीके से पहल की गंभीर आवश्यकता है. क्योंकि कहा भी गया है कि -“आप का काम दिखना चाहिए बड़ी-बड़ी बातें नहीं.”
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जागरूकता अपरिहार्य आहे 
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देशभर में तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस को देखते हुए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ में सभी सार्वजनिक और भीड़-भाड़ वाले जगहों को 31 मार्च तक बंद करने का निर्देश दिया है. जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार का परामर्श है. मगर कुछ जगह ऐसी भी है जहां आज भी भारी भीड़ जुट रही है और कहीं ना कहीं शासन और संपूर्ण व्यवस्था निरुपाय महसूस करती है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या  कांग्रेस भवन हो या भाजपा के कार्यालय क्या  कोरोना से सुरक्षित है ? क्या कांग्रेस के  ‘मंत्री से मिलिए’ कार्यक्रम में मुलाकात करने आ रहे लोग कोरोना की चपेट में नहीं आएंगे ? क्या आलाकमान से इसे जारी रखने के लिए कोई निर्देश मिला हुआ  है. इसी तरह रेलवे स्टेशन पर रेल, बस स्टैंड पर बसें दौड़ रही है बाजारों में अभी भी भीड़ है और यहां लोग एक दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं.  ऐसे समय में जब WHO की तरफ से कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया जा चुका है. यह सब जाहिर करता है कि कोरोना  का लेकर हम कितने गंभीर हैं. दरअसल, हमें अभी जागरूक होने की बेहद  दरकार है.

चापलूसै शक्ति कलियुगे

आज के कलियुग की महाभारत जीतनी है तो पार्थ, चापलूसी योग कर और फिलौसफी यानी दर्शन झाड़ना है तो अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता का फलसफा अपना. फिर देख बिना कर्म के कितना मीठा फल प्राप्त करता है तू. जय कलियुगे, जय चापलूसै शक्ति.

हे पार्थ, तू निष्काम भाव से कर्म करता किस युग में जी रहा है? न यह सतयुग है, न त्रेता, न द्वापर. यह कलियुग है पार्थ, कलियुग. निष्काम कर्म से तू आज कुरुक्षेत्र तो छोड़, मीट मार्केट के प्रधान का चुनाव भी नहीं जीत पाएगा.

पार्थ, यह युग बिना काम के फल की इच्छा रखने का युग है. जो दिनभर हाथ पर हाथ धरे लंबी तान के सोया रहता है, आज फल उसी के कदमों को चूमता है. शेष जो काम करने वाले हैं वे तो सारी उम्र पसीना बहातेबहाते ही मर जाते हैं. सामने देख, जो जीवन में पढ़े नहीं वे विश्वविद्यालयों में प्रोफैसर बन रहे हैं और जो दिनरात ईमानदारी से पढ़ते रहे वे लंचरपंचर रेहडि़यों में लालटेन की जगह अपनी उपाधियां टांगे मूंगफलियां, समोसे बेच रहे हैं.

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पार्थ, यह युग कर्म की पूजा करने का नहीं, व्यक्तिक पूजा का युग है. देख तो, जिन्होंने व्यक्ति की पूजा की, और जो सारे कामकाज छोड़ व्यक्ति की पूजा करने हेतु दिनरात रोटीपानी की चिंता छोड़ चापलूसी में डटे हैं, वे कहां से कहां पहुंच गए? और एक तू है कि मेरी ओर टकटकी लगाए लोकसभा चुनाव के लिए मुझ से निष्काम कर्म का चुनावी संदेश सुनने को सारी चुनावी सामग्री एक ओर छोड़ आतुर बैठा है.

आज योगों में योग चापलूसी योग है, तो दर्शनों में दर्शन चापलूसी दर्शन. जिस के दर्शन में चापलूसी नहीं उस का जीवनदर्शन, दर्शन नहीं. धन्य हैं वे लोग जो अपने मन में चापलूसी को स्थिर कर सदा निष्ठापूर्वक और परम श्रद्धा से जहाज के डूबते होने के हर पल संदेश मिलने के बाद भी डूबते जहाज में हुए छेदों को बंद करने की सोचने के बदले डूबते जहाज के सर्वेसर्वा की चापलूसी में लगे रहते हैं.

हे पार्थ, जो चापलूस लोकलाज छोड़ बस चापलूसी के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान स्थापित करते हैं और चापलूसी में एकदूसरे को पछाड़ने के लिए सिर पर कफन बांधे होते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते आए हैं. अगर यह देखने के लिए तेरे पास दिव्य चक्षु नहीं तो ले, मैं तुझे अपने चक्षु देता हूं.

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देख, वे अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए चापलूसी की सारी हदें, सरहदें पार करते क्याक्या नहीं कर, कह रहे? मैं साक्षी नहीं पर मीडिया साक्षी है. उन्हें इस बात की कतई परवा नहीं कि दूसरे क्या कह रहे हैं. उन्हें तो बस उन का अतिशयोक्तिपूर्ण गुणगान करना है वीरगाथा काल के चारणों की तरह. बल्कि ये चारण तो वीरगाथा काल के चारणों से भी दो कदम आगे के चारण हैं.

हे पार्थ, चापलूसी विद्या सीखना तेरी धनुर्विद्या सीखने से भी कहीं अधिक जटिल है. यह निरंतर कड़े अभ्यास से ही आती है. इस विद्या को प्राप्त करने के लिए सोएसोए भी जागे रहना पड़ता है. इसलिए नए कुरुक्षेत्र के लिए उत्तराधुनिक हो रण शस्त्रों से नहीं, चापलूसी से जीतने का अभ्यास कर. वे चापलूसी में क्याक्या कह रहे हैं? उन की चापलूसी की अनूठी, अमर गाथाओं का अवलोकन कर, गहन अध्ययन कर, उन पर चिंतनमनन कर. अगर तू सिद्ध चापलूस हो गया तो तुझे किसी को जीतने के लिए शस्त्र उठाने की कतई जरूरत नहीं. तू मजे से लेटेलेटे ही जीवन का हर युद्ध जीतता रहेगा.

इसलिए, मेरा तुझे आज की डेट में बस यही संदेश है, पार्थ, कि मेरी ओर टुकुरटुकुर देखना छोड़, न खुद शर्मिंदा हो, न मुझे असहाय कर. अपने मन को निर्विकार हो चापलूसी में लगा. अपने तनमन को चापलूसी से लबालब कर दे. क्योंकि, सच यहां कोई न जानना चाहता है न सुनना. देख, सभी हर जगह अपना सबकुछ लुटने के बाद भी अपनी जयजयकार सुनने के लिए कितने उग्र हैं, व्यग्र हैं? और वे हैं कि दे दनादन गला फाड़ उन की जयजयकार करने में जुटे हैं.

मुझे इस में कोई संशय नहीं कि ऐसाकरने से तू मेरे बिना ही हर सिद्धिको प्राप्त कर लेगा. तेरे चापलूस होते ही राजा से ले कर रंक तक सब तुझ पर प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहेंगे. और तुझे चाहिए भी क्या? इसलिए मेरा संदेश तुझे बस यही है कि तू जो भी बोल, बस, बिन सोचेसमझे, जहां जरूरत दिखे आंखें मूंद उस की प्रशंसा में बोल, जी खोल कर बोल. तेरा ऐसा करने में जाता भी क्या है? यह निर्विवाद सत्य है कि कर्म करने वाला कर्म करने के बाद कुछ पाएगा या नहीं, संशय ही बना रहता है पर चापलूसी करने वाला हर हाल में पाता ही पाता है. वहां संशय की संभावना नैग्लिजिबल है. वर्तमान गवाह है. इसलिए जा, निष्काम कर्मयोग से मुक्त हो चापलूसी योग शुरू कर. आने वाला कल तेरा होगा.

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