‘‘आगे वाला वाहिद है और पीछे वाला अली है,’’ अभिषेक ने धीरे से कहा.
दोनों ने माथे पर हाथ लगा कर हमें सलाम किया व फिर वाहिद ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया व अंदर ले चला.
‘‘कैसे हो अली भाई?’’ अभिषेक ने पूछा.
‘‘सबकुछ ठीक है, भाईजान,’’ अली ने हाथ मिलाते हुए कहा.
वाहिद ने मुझे सोफे पर बिठाया. आशा व रीना भी बैठ गईं.
‘‘हिंदुस्तान से आने में आप को कोई परेशानी तो नहीं हुई, अंकल?’’
‘‘नहीं बेटा, कोई परेशानी नहीं हुई. पर यहां ठंड बहुत है.’’
‘‘हां, ठंड तो है, अंकल. पर अभी क्या है, यहां तो माइनस ट्वैंटी तक टैंपरेचर जाता है.’’
‘‘हां, सुना तो है. पर तब तक तो हम इंडिया लौट जाएंगे.’’
‘‘यह आप ने बहुत अच्छा किया अंकल, जो आप लोग नौर्वे आ गए. मैं तो अपने वालिद साहब से कहकह कर थक गया. पर वे नौर्वे आने को तैयार ही नहीं होते.’’
तभी अंदर से 2 बेहद खूबसूरत युवतियां कमरे में आईं. उन्होंने गुलाबी व हरा सलवार सूट पहन रखा था व सिर पर दुपट्टा डाल रखा था.
‘‘यह मेरी बीवी अंजुम है व वह अली की वाइफ निशा है,’’ वाहिद ने परिचय कराया.
‘‘आदाब अंकल,’’ दोनों ने कहा. फिर वे रीना व आशा से गले लग कर मिलीं व आशा का हाथ पकड़ कर अंदर ले गईं.
मुझे सब सामान्य लग रहा था. लगता ही नहीं था कि किसी पाकिस्तानी के घर में बैठे हैं. लग रहा था जैसे किसी दोस्त के घर दिल्ली के चांदनी चौक में बैठे हैं.
‘‘आप का घर पाकिस्तान में कहां है, बेटा?’’ मैं ने पूछा.
‘‘मेरा घर लाहौर में है, अंकल. वैसे हम कश्मीर से हैं. अली इसलामाबाद से है.’’
‘‘कश्मीर? कश्मीर तो हिंदुस्तान में है.’’
‘‘एक कश्मीर पाकिस्तान में भी है, अंकल. वर्ष 1955 में वालिद साहब लाहौर आ गए थे.’’
‘‘पर वह तो आजाद कश्मीर है न.’’
‘‘उसे… पाकिस्तान ही समझें.’’
तभी अंदर से अंजुम आई. उस के हाथों में ट्रे थी जिस में गुलाबी रंग के शरबत से भरे गिलास थे. उस ने सभी को शरबत दिया.
‘‘आंटी तो बहुत ही अच्छी हैं, अभिषेक. उन्होंने रीना के साथसाथ मेरी भी जिम्मेदारी संभाल ली है,’’ उस ने कहा.
‘‘चलो, अच्छा हुआ. अब अंजुम को अम्मी की कमी नहीं खलेगी,’’ वाहिद ने हंसते हुए कहा.
‘‘क्या हुआ अंजुम बेटी को,’’ मैं ने पूछा.
उस को भी डिलिवरी होनी है. अभिषेक व वाहिद के यहां एक ही समय में खुशियां आने वाली हैं. ज्यादा से ज्यादा हफ्ते का अंतर रहेगा,’’ अली ने जवाब दिया.
‘‘अरे वाह, यह तो बड़ा सुखद संयोग है.’’
हम बातें करते रहे. वाहिद व अली अपने बारे में बताते रहे. वाहिद ने एमटैक के बाद पीएचडी की हुई थी. अली ने बीटैक किया था. मैं ने एक बात महसूस की थी, अंजुम व निशा ने परदा नहीं किया था. अकसर मुसलिम घरों में औरतें परदा करती हैं व मर्दों के सामने नहीं आतीं. पर वे बेतकल्लुफी से आजा रही थीं.
तभी निशा ने आ कर बताया कि खाना लग गया है. हम सभी उठ कर पीछे के बरामदे में आ गए. यहां डाइनिंग टेबल लगी थी. खाना शाकाहारी था जिस में कई आइटम थे. गोभीमटर व टमाटर की रसे वाली सब्जी, कटहल की सूखी सब्जी, एक और सूखी सब्जी, दहीबड़े, रायता, चटनी, पापड़, पूड़ीकचौड़ी. खा कर मजा आ गया. चावल का पुलाव तो लाजवाब था. मैं काफी ज्यादा खा गया. अंत में फलों वाला कस्टर्ड था.
हम खाना खा कर बाहर बड़े वाले कमरे में आ गए. अब महिलाओं को खाना खाना था. सभी के सामने गरम कौफी के प्याले रख कर अंजुम भी खाना खाने चली गई.
‘‘वाहिद बेटा, तुम्हारे यहां खाना खा कर तो ऐसा लगा जैसे अपने यहां ही खा रहे हों. लगा ही नहीं कि यूरोप में या विदेश में हैं. यहां ये सब मिल जाता है?’’
‘‘हां अंकल. यही गनीमत है. सब मिल जाता है. पाकिस्तान से थोड़ा महंगा जरूर होता है पर मिल जाता है.’’
‘‘क्या पाकिस्तान में भी लोग इस तरह का खाना खाते हैं. मेरे विचार से तो वहां मीटमुरगा ज्यादा खाते हैं.’’
‘‘ऐसा नहीं है, अंकल. पाकिस्तान में भी हफ्ते में 5 दिन लोगों के यहां दाल बनती है, मीट भी बन गया तो ठीक है. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि वहां भी कई लोग ऐसे हैं जो टोटल वैजिटेरियन हैं.’’
‘‘अगर ऐसा है तो वाकई आश्चर्य ही है. मैं ने तो सुना है वहां रहने वाले हिंदुओं को भी जबरन मीट खाना पड़ता है.’’
‘‘अब मैं क्या कहूं. हिंदू वहां हैं पर कम हैं. फिर भी 20 लाख हिंदू पाकिस्तान में हैं. इतने लोगों से खानेपीने में कोई कैसे जबरदस्ती कर सकता है.’’
‘‘अच्छा, वहां अभी भी मंदिर हैं या सभी गिरा कर मसजिद बना दी गई हैं?’’
वाहिद चुप रह गया. मुझे भी लगा शायद मेरा प्रश्न उचित नहीं था.
‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है, अंकल. वहां मंदिर भी हैं और गुरुद्वारा भी हैं. हर साल तीर्थयात्रा करने हजारों हिंदू व सिख इंडिया से वहां जाते हैं. अगर मंदिर या गुरुद्वारे वहां नहीं होते तो ये लोग वहां किसलिए जाते? कुछ घटनाएं हुई हैं पर वे बहुत ज्यादा नहीं हैं. वहां हिंदू भी हैं, सिख, ईसाई भी हैं व सभी अपने हिसाब से इबादत करते हैं,’’ इस बार अली बोला.
‘‘तो पाकिस्तान में हिंदू इतना डरे हुए व दबे हुए क्यों हैं?’’
‘‘पाकिस्तान में सभी डरे हुए हैं अंकल. क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख. पर वे डरते हैं गुंडों से और बदमाशों से, वे डरते हैं माफिया नेताओं से ठीक उसी तरह से जैसे हिंदुस्तान के बाशिंदे डरे, दबे हैं हिंदुस्तानी गुंडों, बदमाशों से. कोई अंतर नहीं है, अंकल,’’ वाहिद गंभीरता से बोला.
‘‘यह सच है कि आम पाकिस्तानी हिंदुस्तानियों को पसंद नहीं करते?’’
अब अली ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘अंकल, यह एकदम सच है. देखिए, मैं और वाहिद पाकिस्तानी हैं और अभिषेक हिंदुस्तानी है. हम लोग एकदूसरे को इतना नापसंद करते हैं कि तमाम और पाकिस्तानियों और हिंदुस्तानियों के यहां होने के बावजूद हम सब से खास दोस्त हैं. अब और क्या सुबूत चाहिए आप को नापसंदगी का.’’
‘‘चला जाए, वाहिद भाई. औलरेडी देर हो गई है. यहां सूरज जल्दी डूबता है. पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो जाएगा,’’ अभिषेक उठ गया. वह मुसकरा रहा था.
सभी उठ गए.
लौटते समय बस में मैं ने अभिषेक से पूछा, ‘‘बेटा, मैं कुछ गलत तो नहीं बोल गया?’’
‘‘अरे नहीं, पापा. आप टैंशन न लें. वैसे हम लोग आपस में इस तरह की बातें नहीं करते,’’ अभिषेक बोला.
रीना को कुछ प्रौब्लम हो गई थी. उस का बीपी हाई चल रहा था. हम उसे पूरा आराम दे रहे थे. आशा ने किचन संभाल लिया था. घर की साफसफाई व वाशिंग मशीन में कपड़े लगाने का कार्य मैं ने ले लिया था. अभिषेक के यहां काम थोड़ा ज्यादा ही था. अब मैं आराम से ग्रोनलैंड बाजार जा कर घर का सामान, सब्जी व दूध वगैरह ले आया करता था. हर तीसरेचौथे दिन अभिषेक रीना को अस्पताल ले जा कर दिखा देता था. हम बेसब्री से डिलिवरी का इंतजार कर रहे थे.
उधर अंजुम व वाहिद के यहां भी
थोड़ी परेशानी थी. 2 दिन, दिनदिनभर के लिए, आशा को वहां जाना पड़ा. अभिषेक ही जा कर छोड़ आया.
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