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कोरोना वायरस को लेकर अक्षय कुमार ने लगाई लोगों की क्लास, कहा- जान है तो जहान है

इन दिनों पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का डर बना हुआ है. सभी इस वायरस से बचने के लिए घर में सेल्फ आइसोलेशन पर हैं. हालाँकि कई ऐसे लोग भी हैं जो बाहर से आने के बाद भी होम क्वारंटाइन में रहने की बजाय बाहर घूम रहे हैं. अक्षय ने उन्ही लोगों के लिए एक स्ट्रॉंग मैसेज दिया है.

अक्षय ने शेयर किया ये वीडियो

अक्षय ने दरअसल अपना वीडियो शेयर किया है जिसमें वह कह रहे हैं, ‘मुंबई एयरपोर्ट पर जो लोग बाहर से लौटे हैं उनका एयरपोर्ट पर टेस्ट किया जा रहा है. जो लोग कोरोना में लो रिस्क कैटेगरी में हैं, उन्हें एक स्टाम्प लगाकर होम क्वारंटाइन या होटल के लिए भेजा रहा है. उन्हें समझाया गया है कि प्रिकॉशन के तौर पर  2 हफ्ते सोशल डिस्टेंस बनाकर रखें. लेकिन ये लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में जा रहे हैं. ये लोग शादियों में, छुट्टियों पर जा रहे हैं. ये लोग किस तरह की सोच के हैं. क्या मानसिकता है इनकी. क्या समझ नहीं आ रहा है लोगों को.’


कोरोना को लेकर दिया ये बयान

अक्षय ने कोरोना वायरस को लेकर कहा, ‘कोरोना वायरस छुट्टी पर नहीं है. वो काफी जोरों से काम पर है. वो इस रेस में आगे चल रहा है. हालाँकि ये रेस अभी खत्म नहीं हुई है. हमें इस रेस को जीतना होगा. डॉक्टर्स, नर्स, पुलिस, अथॉरिटीज लोगों की मेहनत को रेस के बीच लंगड़ी ना मारें. ये ऐसी पहली रेस होगी जिसमें रुकने वाला जीतेगा. बीएमसी ने जो आपके हाथों पर मुहर लगाई है उसे वह बैज ऑफ ऑनर कहती है क्योंकि ना सिर्फ आप अपनी जान बताएँगे बल्कि कई लोगों की जान भी बचाएंगे. इस सम्मान का प्लीज अपमान ना करें. किसी ने सोच-समझकर ही कहा था कि जान है तो जहान है.’

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#coronavirus: ‘कोरोना वायरस’ के संक्रमण में सिंगर कनिका कपूर व भाजपा नेता

सिंगर कनिका कपूर की पार्टी में शामिल भाजपा नेताओं में कोरोना संक्रमण होने का खतरा
देखकर पूरे देश में खलबली मची है. प्रधानमंत्री मोदी की बात देश ने भले ही मान लिया हो पर
खुद उनकी पार्टी के ही नेता भीड भाड वाली पार्टियों में हिस्सा लेते रहे. भाजपा नेताओं में इस तरह
के संक्रमण के खतरे से पार्टी छवि पूरे देश में खराब हुई है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे देश को कोरोना वायरस से बचने के लिय जनता कफ्रर्यू की बात
कह रहे थे. दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थ्यमंत्री जय
प्रताप सिंह, सांसद दुष्यंत सिंह, राजस्थान की पूर्वमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे कई प्रमुख लोग
लंदन से वापस आई सिंगर कनिका कपूर के साथ हाई प्रोफाइल पार्टी में शामिल हो रहे थे.कनिका में  कोरोना वायरस के लक्षण पाये जाने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में सनसनी फैल गई.

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सांसद दुष्यंत सिंह कनिका कपूर के साथ लखनऊ में पार्टी करने के बाद दिल्ली में कई सांसदो के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंच गये स्वास्थ्यमंत्री जय प्रताप सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित नोएडा में विधायक पंकज सिंह के साथ मीटिंग की. ऐसे में कोरोना वायरस के फैलने की चेन लंबी होती गई. सभी लोगों को मेडिकल निगरानी में रखा गया हैकनिका कपूर बॉलीवुड की सिंगर हैं.

कनिका की पैदाइश उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई थी

. वह लंदन की निवासी हैं. इनका ‘बेबी डॉल’ सबसे अधिक प्रसिद्ध था. कनिका ने सिंगिग कैरियर 2012 में शुरू किया था. कनिका कपूर पंजाबी तथा सूफी लोकगीतों की भी गायिका हैं. ‘रागिनी एमएमएस 2’ फिल्म में इनके गीत ‘बेबी डॉल’ के बाद कनिका बहुत मशहूर हो गई. कनिका ने अपना पहला संगीत विडियो ‘जुगनी जी’ 2012 में रिलीज किया था. 2015 में इनका गाया गाना ‘चिट्टियां कलाइयां’ भी काफी मशहूर हुआ.

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कनिका नें सन्नी लियोन की फिल्म‘एक पहेली लीला’ के लिए ‘देसी लुक‘ गाना गाया. 2016 में कनिका ने ‘हग मी‘ तथा ‘लव लेटर‘जैसे लोकप्रिय गीत गाए. संगीत के अलावा वे लखनऊ की चिकनकारी कला को बढ़ावा देने के लिए तथा बच्चों की शिक्षा के लिए भी काम करती है.कनिका का विवाह राज चंदोक से हुआ तथा तीन बच्चे भी हुए.

‘बेबी डॉल’ सबसे अधिक प्रसिद्ध था. कनिका कपूर का गाना

11 मार्च 2020 को कनिका लंदन से लखनऊ आई. उस समय लंदन में कोरोना वायरस
नामक बीमारी फैल चुकी थी और वह पूरी दुनिया को अपने चंगुल में ले रही थी. कनिका मुम्बई के
रास्ते लदंन से लखनऊ आई और यहां 13 से 15 मार्च को बीच कई पार्टियां की. इन हाई प्रोफाइल
पार्टी में उत्तर प्रदेश सरकार के कई मंत्री, नेता और अफसरों ने शिरकत की. इन पार्टी में स्वास्थ्यमंत्री जय प्रताप सिंह, सांसद दुष्यंत सिंह, राजस्थान की पूर्वमंत्री वसुंधरा राजे सिधिंया,कांग्रेस के पूर्व सासद जतिन प्रसाद, विधायक रघुराज प्रताप सिंह, लोक आयुक्त संजय मिश्रा और आईपीएस जावीद अहमद जैसे  तमाम लोग शामिल हुये थे. जतिन प्रसाद के ससुर आदेश सेठ के घर पार्टी हुई थी.

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इसके अलावा कनिका अलीगंज स्थित अपने अपार्ट मेंट में भी रूकी और होटल ताज में भी
रूकी थी. कनिका के उपर आरोप है कि उन्होने जानबूझ कर अपने कोरोना वायरस संक्रमित होने
की बात को छिपाया जिसकी वजह से बहुत सारे लोग इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गयेकनिका के खिलाफ हजरतगंज, सरोजनीनगर, और गोमतीनगर थाने में आईपीसी की धारा 188,
269 और 270 के तहत मामला दर्ज कराया गया.

लखनऊ में सबसे ज्यादा संक्रमित लोग 

जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कनिका कपूर के संपर्क में आये लोगों की जांच कर रहा है. कनिका का मामला सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ देश में सबसे संक्रमि. क्षेत्रों में शामिल हो गई. पूरे लखनऊ बाजार, होटल,रेस्त्रा, मौल बंद कर दिये गये. राजधानी में आवश्यक सेवाओं को छोडकर सभी संस्थान बंद हो गये.

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भले ही कनिका कपूर पर सारी जिम्मेदारी डाल दी होपर इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा कि जब सामान्य लोगों के यहां पार्टि यों और आयोजन
पर जिला प्रशासन ने रोक लगा दी थी तो यह हाई प्रोफाइल पार्टियां किसके आदेश पर हो रही
थी ?

लंदन से कनिका मामा के घर कानपुर आई थीं

जिला और पुलिस प्रशासन तब कहां छिपा था ? प्रधानमंत्री ने सभी को भीड से दूर रहने के
लिये कहा तो भाजपा के यह नेता भीडभाड वाली पार्टि यों में कैसे जा गये थे ? लंदन से आई
कनिका कैसे  बिना जांच के एक सप्ताह तक लखनऊ से लेकर कानपुर अपने मामा के यहां गई कनिका वहां भी गृह प्रवेश में शामिल हुई. यहां भी पुलिस 100 लोगों में संक्रमण की जांच कर रही
है. कनिका मामले ने साफ कर दिया है कि कोरोना को लेकर कागज पर जैसा देखा जा रहा है
जमीन पर हालत उससे अलग है.

कोरोना का कहर पूरी दुनिया में, ऐसे करें खुद का बचाव 

आजकल जहां भी देखो, लोग कोरोना की बात कर रहे हैं. यह एक नई बीमारी है, जिस का इलाज सिर्फ जानकारी है. इस बीमारी का नाम है कोविड 19. यह बीमारी एक महीने में 84 देशों में पहुंच चुकी है. दिसंबर के आखिरी महीने में यह चीन के वुहान शहर में देखी गई थी. अब यह बीमारी चीन के अलावा साउथ कोरिया, ईरान, इटली के अलावा जापान के डायमंड प्रिंसेस जहाज में कहर ढा चुकी है.
भारत में भी यह वायरस दस्तक दे चुका है. लेख लिखे जाने तक इस वायरस से संक्रमित होने के 29 मामले सामने आ चुके थे. कोरोना वायरस 84 देशों तक पहुंच चुका है जिस में 95,334 मामले सामने आए हैं. इस में मरने वालों की संख्या 3,285 व संक्रमित लोगों की संख्या 38,408 है.
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व्यावहारिक तौर पर कोरोना वायरस सार्स की तरह काम करता है. इस के लक्षण 5 दिनों में नजर आने लगते हैं जिस के पश्चात 9 दिनों के भीतर संक्रमित व्यक्ति को निमोनिया होने और 14 दिनों में मृत्यु होने का खतरा होता है.

कोराना वायरस के सभी मरीजों को बुखार होने के साथ 75 फीसदी को खांसी, 50 फीसदी को कमजोरी, 50 फीसदी को सांस न आने जैसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है.

यह बीमारी है क्या
यह रेस्पिरेटरी सिक्रेशन है जिस का अर्थ है श्वसन तंत्र से फैलने वाली बीमारी जो शरीर में बुखार के साथ खांसी या ब्रेथलैसनैस यानी सांस में कमी करती है. जैसेजैसे इस बीमारी में बुखार के साथ खांसी या सांस फूलने लगती है वैसेवैसे यह एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है.
इस के फैलने के 2 तरीके हैं. पहला तरीका है ड्रौपलेट इन्फैक्शन जिस में अगर बीमारी से पीडि़त आदमी दूसरे आदमी के ऊपर 3 फुट के अंदर खांस देता है तो उस को यह बीमारी हो सकती है. दूसरा इस का कारण है बारबार हाथ को न धोना. अगर खांसी आने या छींकने के बाद यह वायरस किसी सरफेस पर रुक जाता है और हम उस को हाथ लगाते हैं तो यह वायरस हमारे हाथ में आ जाता है और अगर हम उन्हीं हाथों को अपने मुंह या आंखों पर हाथ लगाते हैं तो हमें यह बीमारी हो सकती है.
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पहले यह बीमारी चमगादड़ और सांप जैसे वन्यजीवों से उभरी और फिर आदमी से आदमी में आई. अब यह कम्युनिटी में फैल रही है. इस का मतलब है कि कई देशों में यह बीमारी बिना किसी आदमी के संपर्क में आए भी हो रही है. इस बीमारी से 80 फीसदी लोग सिर्फ हलके बुखार और खांसी से पीडि़त होते हैं और उन की सांस नहीं फूलती.
20 फीसदी लोगों की सांस फूलती है और उन को अस्पताल में जाने की जरूरत होती है. 2 फीसदी लोग निमोनिया से पीडि़त होते हैं और फिर उन की मृत्यु हो जाती है.
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एक नई चीज इस बीमारी में देखने में आई है कि यह बीमारी ज्यादातर बड़े या बुजुर्ग लोगों को होती है और 15 साल से कम उम्र के बच्चों में यह कम देखी गई है. मरने वालों में 80 फीसदी वे लोग हैं जो या तो वृद्ध हैं या उन के शरीर में कोई अंदरूनी बीमारी है.
जापान में डायमंड प्रिंसैस जहाज में 23 फीसदी लोगों को यह बीमारी हो गई,
जब उन को इकट्ठा रखा गया. यह बीमारी चिकन खाने से नहीं होती, चमगादड़ का सूप पीने से नहीं होती, लेकिन जंगली जानवरों के कच्चे मीट को हाथ लगाने से चीन जैसे देश में हो सकती है.
इस बीमारी में कोई एंटीबायोटिक काम नहीं करती. इस की कोई वैक्सीन नहीं है. किसी भी नई वैक्सीन को बनने में 18 महीने का समय लगता है. इसी बीमारी से मिलतीजुलती सार्स (एसएआरएस) यानी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम की बीमारी जब आई थी तो वह सिर्फ 6 महीने रही थी, इसलिए उस की वैक्सीन नहीं बन पाई. अगर तब उस की वैक्सीन बनाई जाती तो शायद वह थोड़ी बहुत इस बीमारी में भी काम करती.

#coronavirus: भारतीय रेलवे ने रद्द की कई ट्रेनें, एकबार देखें लिस्ट

कोरोना का कहर पूरे देश में इतना ज्यादा बढ़ गया है कि इसका सीधा असर भारतीय रेलवे पर भी देखने को मिल रहा है. दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही खराब स्थित को देखते हुए भारतीय रेलवे ने कुछ ट्रेनों को 31 मार्च तक रद्द कर दिया है. साथ ही रेलवे में दी जाने वाली छूट को पर भी रोक लगा दी गई है.

रेलवे ने रद्द की ट्रेन

ट्रेन रद्द करने से पहले रेलवे ने विभिन्न ट्रेनों की लिस्ट जारी करते हुए कारण भी बताया था. अभी तक के आंकड़ों में अगर देखा जाए तो भारतीय रेलवे ने लगभग 759 ट्रनों को रद्द किया है. यह 20 मार्च से लेकर 31 मार्च तक कि लिस्ट है.रेलवे के जानकारी के अनुसार जो प्रमुख ट्रेने रद्द कि गई है वह महाराष्ट्र, बिहार, पुणे,हैदराबाद जाने वाली कुछ स्पेशल ट्रेनों को रद्द किया गया है.

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बता दें रेलेवे ने अबतक 759 ट्रेनों को रद्द किया है जिसमें से 617 ट्रनों को पूरी तरह से रद्द किया है तो वहीं 142 ट्रेनों को आशंकित रूप से रद्द किया है.इसके अलावा 34 ट्रनोॆ का रूट डायवर्ट किया गया है. जिससे ज्यादा समस्या न हो.

सफर से पहले करें लिस्ट चेक

अगर आप में से भी कोई ट्रेन का सफर करता है तो पहले है चेक कर लें कहीं आपकी ट्रेन भी कैंसिल तो नहीं हो गई. वरना स्टेशन जाकर वापस आना पड़ सकता है.

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बता दें रेलवे यह कदम आपकी सुरक्षा के लिए उठाया है. जिससे आप और आपके पूरे परिवार को किसी भी तरह के समस्या का सामना न करना पड़ा. साथ ही सरकार के आदेशा अनुसार आपके आस-पास में फालतू की चीजों का स्टॉल लगना भी बंद करवा दिया गया है और ऑफिस के अंदर काम करने वाले कर्मचारी घर से अपने काम को पूरा कर रहे हैं.

करोना से बचने के लिए करें यह उपाय

कोरोना के डर से पूरे देश सहमा हुआ है अभी तक इससे बचने का एक ही उपाय है खुद को आप कितना सुरक्षित रख सकते हैं. ऐसे में आप अपनी सुरक्षा स्वंय करें.

बेवजह घर से बाहर न जाएं. साथ ही कुछ भी खाने से पहले अपने हाथों को साफ से धोएं. बिना मास्क के घर सेबाहर न निकलें.

#coronavirus: घर की सफाई का ऐसे रखें ध्यान नहीं होगी कोई बीमारी

घर की साफसफाई करते समय आप कई ऐसी छोटी छोटी चीजें या फिर कोई सामान आप की नजरों से चूक जाता है. जिसे आप साफ नहीं कर पाती हैं. ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. कई तरह के बैक्टीरिया भी पनपते है. तो चलिए आज बताते है, घर को बैक्टीरिया फ्री रखने के आसान तरीके.

घर की सफाई का रखें विशेष ध्यान

हवा में मौजूद सूक्ष्म कीटाणुओं को मारने के लिए आप 2-3 बूंद लौंग से तैयार ऐसेंशियल औयल को पानी में मिलाकर छिडक दें. नीम औयल भी बैक्टीरिया आदि दूर करने के लिए कारगर है. 1 बडे चम्मच नीम औयल को 1 कप पानी में मिलाकर किचन और बाथरूम की सफाई के लिए इस्तेमाल में ला सकती हैं.

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बाथरूम के फर्श के अलावा दरवाजे की कुंडी, वाशबेसिन, नल, शौवर, बाथटब, बालटी आदि को प्रतिदिन साफ करें. इसके लिए ग्लास क्लीनर और विनेगर आप के काम आ सकते हैं.किचन में सिंक को साफ रखने केलिए साबुन, पानी या फिर ऐंटीबैक्टीरियल क्लींजर का इस्तेमाल बेहतर है. सिर्फ पानी से बैक्टीरिया नहीं मरते. इन का सफाया करने के लिए ब्लीच के साथ क्लींजर का इस्तेमाल जरूरी है.

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किचन में सिंक को साफ रखने के लिए साबुन, पानी या फिर ऐंटीबैक्टीरियल क्लींजर का इस्तेमाल बेहतर है. सिर्फ पानी से बैक्टीरिया नहीं मरते. इन का सफाया करने के लिए ब्लीज के साथ क्लींजर का इस्तेमाल जरूरी है.

पहनने वाले कपड़े के सफाई का भी विशेष ध्यान रखें. अगर आपके कपड़े साफ नहीं होगें तो भी आपको कई तरह के बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए बाहर से आने के बाद अपने रोजाना के कपड़ों को डिटॉल से साफ करें. धूप में भी इन्हें जरूर दिखाएं. इससे कई खतरनाक बैक्टेरियों का खत्मा हो जाता है.

कितना सहेगी आनंदिता: भाग 2

विश्वविद्यालय स्पर्धा हेतु कालेज की बैडमिंटन टीम का सेलैक्शन होना था. 4 नाम तो लगभग तय थे. केवल 2 स्थानों के लिए ही क्वालिफाइंग मुकाबले होने थे और इत्तफाक से शेखर और प्रशांत इन स्थानों के लिए दावेदार थे. शेखर ने ट्रायल मैचों में शानदार प्रदर्शन किया. उस ने टीम के कप्तान को भी हराया और अपना स्थान सुरक्षित कर लिया. दूसरी ओर प्रशांत, कप्तान और सैकंड ईयर के छात्र अविनाश पुरी से हार कर सेलैक्शन की रेस से बाहर हो गया. शेखर उस के हार जाने से दुखी था, पर प्रशांत अपेक्षा के विपरीत शांत था.

3 दिनों बाद ही टीम को स्पर्धा हेतु सीहोर जाना था. उस दिन सभी मैस में नाश्ता करने एकत्र हुए थे. सदा की तरह शेखर और प्रशांत साथ ही बैठे थे. उन्होंने अविनाश को भी पास बैठने के लिए बुला लिया. नाश्ते में उस दिन सांभरबड़ा बने थे. नाश्ता सर्र्व करते समय गादीराम अचानक स्लिप हुआ और खौलते हुए सांभर का बरतन अविनाश के ऊपर जा गिरा. अविनाश के हाथ और जांघों पर फफोले उभर आए. अविनाश टीम के साथ नहीं जा सका. प्रशांत को टीम में जगह मिल गई, लेकिन इस तरह टीम में स्थान पाने को ले कर वह बहुत अपसैट था. शेखर और कप्तान के बहुत समझाने के बाद ही वह नौर्मल हुआ था.

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हमीदिया कालेज के विरुद्ध पहले मैच में पहला सिंगल्स मुकाबला खेलते हुए प्रशांत हार गया. एक लाइनकौल को ले कर वह अंपायर से उलझ गया और उन्हें मां की भद्दी गाली दे बैठा. विश्वविद्यालय की अनुशासन समिति ने प्रशांत को दोषी मानते हुए स्पर्द्धा से बाहर कर दिया. उसे वापस लौटना पड़ा. प्रशांत के इस तरह बाहर जाने से शेखर दुखी था. उस ने उसे सांत्वना देनी चाही तो वह बेरुखी से ‘रहने दो’ कहता हुआ अपना सामान पैक करता रहा.

उसे सुबह की बस से वापस लौटना था. शेखर का मन नहीं माना, वह प्रशांत के पास ही बैठ गया, बोला, ‘भाई, यह सबक है आगे के लिए. मैच में एग्रेशन के साथ ही कूल रहना भी बहुत जरूरी है. मैच में उतारचढ़ाव तो आते ही हैं. हर स्थिति में चित्त को स्थिर ही रहना चाहिए. यही मैच टैंपरामैंट है. अगले साल फिर से मौका मिलेगा खुद को साबित करने का.’

‘क्या खाक मौका मिलेगा, इस साल कैसे मौका मिला था, पता है न तुझे.’

‘पता है भाई, तुम उत्तेजित न हो.’

‘क्या पता है तुम को. यदि मैं ने गादीराम को पैर अड़ा कर गिराया न होता तो क्या अविनाश टीम से बाहर होता और मुझे टीम में जगह मिलती. सारे किएधरे पर पानी फिर गया.’

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प्रशांत की बात सुन कर शेखर अवाक रह गया. उसे पूरा घटनाक्रम याद हो आया, तो यह प्रशांत का सोचासमझा प्लान था. अविनाश के जलने पर उस का दुखी दिखना भी उस के इस खतरनाक प्लान का ही एक भाग था. कितना शातिर खेल खेला था उस ने. शायद उसी शातिराना खेल की सजा मिली है उसे. शेखर स्वयं को असहज महसूस करने लगा. वह कल के मैच के लिए आराम करने का बहाना बना कर चला आया वहां से.

अगले दिन शेखर अपना मैच खेल कर सुस्ताने बैठा ही था कि बगल के हौल से आ रही तालियों की आवाज ने उस का ध्यान खींचा. वह उत्सुकतावश उठ कर उस ओर चला आया. एक सुंदर सी लड़की अपने पावरफुल स्मैश और सटीक नैट ड्रौप्स से प्रतिद्वंद्वी लड़की को पूरे कोर्ट में नचा रही थी. शेखर मंत्रमुग्ध सा उस के खेल को देखता रहा. मैच की समाप्ति पर शेखर उस को बधाई देने से खुद को रोक नहीं सका, ‘कांग्रेचुलेशंस, योर ड्रौप्स आर अमेजिंग.’

‘थैंक्स, शेखर सर.’

अपना नाम सुन कर शेखर कुतूहल से उस की ओर देखने लगा. वह शरमाते हुए बोली, ‘कल दोपहर में मैं ने आप का मैच देखा था और शाम को बहुत देर तक आप सरीखे बैकहैंड ड्रौप्स की प्रैक्टिस की थी.’

आनंदिता के साथ शेखर की यह पहली मुलाकात थी. उस रात लेटालेटा वह बहुत देर तक आनंदिता के बारे में सोचता रहा. पहली ही नजर में भा जाने वाली देहयष्टि, गोरा रंग, आकर्षक चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें, लंबी गरदन, करीने से कटे हुए बाल, बिजली सी चपलता और सब से बढ़ कर स्त्रियोचित हया. अगले दिन वह फिर शेखर के मैच के समय कोर्ट में उपस्थित थी. दोनों की नजरें मिलीं. उस ने आंखों ही आंखों में गुडलक कहा. शेखर आसानी से मैच जीत गया. बाद में वह भी आनंदिता को चीयर करने गया. दोनों ने मैच के बाद कौफी पी. तभी उसे पता चला कि आनंदिता भी विदिशा से खेलने आई है. वह जैन कालेज में बीकौम फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है.

दोनों की अगली मुलाकात 2 माह बाद एक रैस्टोरैंट में हुई. शेखर अपने क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में वहां गया था जबकि आनंदिता पहले से कुछ सहेलियों के साथ वहां उपस्थित थी. दोनों ने एकदूसरे को देखा. लेकिन दोस्तों की उपस्थिति के कारण बातचीत नहीं हो सकी. वह समय था ही ऐसा, लड़केलड़की को बात करते देखा नहीं कि बतंगड़ बनाना शुरू. आनंदिता जल्दी ही सहेलियों के साथ चली गईर् और शेखर दूसरी टेबल पर बैठा उसे दरवाजे से बाहर जाते देखता रहा.

आनंदिता ने दरवाजे से बाहर पैर रखने के पहले एक बार मुड़ कर देखा था उसे. उस की नजरों में कुछ जादू था. शेखर ने दिल में कुछ अलग सा, अप्रतिम सा, महसूस किया था. उसे अपनी सांसें पहली बारिश के बाद फिजा में घुलती मिट्टी की सोंधीसोंधी खुशबू से सराबोर महसूस होने लगी थीं.

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आनंदिता इस के बाद शेखर के दिलोदिमाग में बस गई. उस का मन उस की एक झलक देखने के लिए  बेचैन रहने लगा. वह 2-3 बार क्लास से बंक मार कर जैन कालेज के चक्कर भी लगा आया था, लेकिन इच्छा अधूरी ही रही. जब मुलाकात हुई तो इतनी अप्रत्याशित कि उसे आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

उस के कालेज में स्टूडैंट यूनियन के चुनाव के दौरान 2 समूहों में झगड़ा हो गया था. मारपीट में 6 स्टूडैंट्स को काफी चोटें आई थीं, जिन में प्रशांत भी शामिल था. उस का सिर फटने से काफी खून बह गया था. उसे खून की तुरंत जरूरत थी. लेकिन अस्पताल में उस के समूह का खून उपलब्ध नहीं था. शेखर जानता था कि उस का ब्लडगु्रप भी यही है जिस की प्रशांत को जरूरत थी. वह खून देने में हिचकिचा रहा था लेकिन मदद के लिए भागदौड़ कर रहा था. वह अस्पताल के ब्लडबैंक में मदद की आशा में फिर से आया था कि सामने आनंदिता को ब्लड डोनेट करता देख कर चौंक गया. वह सबकुछ भूल कर आनंदिता को देखता रहा.

ब्लड डोनेट कर आनंदिता जब बाहर आई तो शेखर सामने आ गया, ‘कौन ऐडमिट है आप का जिस के लिए आप ने ब्लड डोनेट किया?’

‘मेरा कोई अपना ऐडमिट नहीं है. मैं तो एक बच्चे को हर 3-4 माह में एक यूनिट ब्लड देती हूं. उसे थैलेसीमिया है.’

 

 

शादी से पहले शादी के बाद : भाग 1

सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव अपने कक्ष में बैठे थे, तभी 30-32 साल का एक युवक उन के पास आया. वह घबराया हुआ था. उस के माथे पर भय और चिंता की लकीरें थीं. थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम अनुपम है. मैं मूलरूप से मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर का रहने वाला हूं. मेरी पत्नी कंचन सैफई के चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरा मैडिकल कालेज में हौस्टल में रह कर नर्सिंग की पढ़ाई कर रही थी. 2 दिनों से वह लापता है. उस का कहीं भी पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह अचानक कहां लापता हो गई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता हूं. कंचन से मेरी हर रोज बात होती थी. 24 सितंबर, 2019 को भी दोपहर करीब पौने 2 बजे मेरी उस से बात हुई थी. लेकिन उस के बाद बात नहीं हुई. मैं शाम से ले कर देर रात तक उस से बात करने की कोशिश करता रहा, पर उस का फोन बंद था.

‘‘आशंका हुई तो मैं सैफई आ कर हौस्टल गया तो पता चला कि कंचन 24 सितंबर को 2 बजे हौस्टल से यह कह कर निकली थी कि वह अस्पताल जा रही है. उस के बाद वह हौस्टल नहीं लौटी. इस के बाद मैं ने कंचन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. सर, आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी पत्नी को खोजने में मदद करें.’’ अनुपम ने कहा.

सैफई मैडिकल कालेज के हौस्टल से नर्सिंग छात्रा का अचानक गायब हो जाना वास्तव में एक गंभीर मामला था. थानाप्रभारी चंद्रदेव ने आननफानन में कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. यह 26 सितंबर, 2019 की बात है.

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इस के बाद थानाप्रभारी ने अनुपम से पूछा, ‘‘अनुपम, तुम्हारी पत्नी का चरित्र कैसा था? कहीं उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था?’’

‘‘नहीं सर, उस का चरित्र ठीकठाक था. वैसे भी वह अपना कैरियर दांव पर लगा कर किसी के साथ नहीं जा सकती.’’ अनुपम बोला, ‘‘सर, मुझे लगता है कि गलत इरादे से किसी ने उस का अपरहण कर लिया है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ यादव ने अनुपम से पूछा.

‘‘नहीं सर, मेरा किसी से झगड़ा नहीं है. इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’ अनुपम ने बताया.

अनुपम से पूछताछ के बाद चंद्रदेव यादव सैफई मैडिकल कालेज पहुंचे. वहां जा कर उन्होंने हौस्टल की वार्डन भारती से पूछताछ की. भारती ने बताया कि कंचन का व्यवहार बहुत अच्छा था. वह अपनी साथी छात्राओं के साथ मिलजुल कर रहती थी.

24 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह हौस्टल से अस्पताल गई थी, लेकिन अस्पताल नहीं पहुंची. हौस्टल और अस्पताल के बीच उस के साथ कुछ हुआ है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. अस्पताल प्रशासन भी अपने स्तर से कंचन की खोज में जुटा है. पर उस का पता नहीं चल पा रहा है.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने मैडिकल कालेज में जांचपड़ताल की तो पता चला कालेज में कंचन ने वर्ष 2017-18 सत्र में एएनएम प्रशिक्षण हेतु नर्सिंग छात्रा के रूप में प्रवेश लिया था. वह इस साल अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह व्यवहारकुशल थी.

यादव ने कंचन के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही कई छात्राओं से पूछताछ की तो उन्होंने उसे बेहद शालीन और मृदुभाषी बताया. साथी छात्राओं ने इस बात को भी नकारा कि उस का किसी से विशेष मेलजोल था.

थानाप्रभारी ने हौस्टल वार्डन भारती के सहयोग से कंचन के हौस्टल रूम की तलाशी ली, लेकिन रूम में कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. न ही कोई ऐसा प्रेमपत्र मिला, जिस से पता चलता कि उस का किसी से प्रेम संबंध था.

हौस्टल व कालेज के बाहर कई दुकानदारों से भी यादव ने पूछताछ की लेकिन उन्हें कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कंचन कहां चली गई.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने कंचन की ससुराल खड़ेपुर जा कर उस के ससुराल वालों से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने पुलिस का सहयोग नहीं किया. उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कंचन ससुराल में बहुत कम रही है. वह या तो मायके में रही या फिर हौस्टल में. इसलिए उस के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते.

कंचन का मायका इटावा जिले के थाना जसवंत नगर के गांव जगसौरा में था. यादव जगसौरा पहुंचे और कंचन के पिता शिवपूजन तथा मां उमादेवी से पूछताछ की.

कंचन के मातापिता के लापता होने से दुखी तो थे, लेकिन उस के संबंध में जानकारी देने में संकोच कर रहे थे. जब वहां से भी कंचन के बारे में कोई काम की बात पता नहीं चली तो वह थाने लौट आए.

अनुपम, पत्नी के लापता होने से बेहद परेशान था. जसवंत नगर, सैफई, इटावा जहां से भी अखबार के माध्यम से उसे अज्ञात महिला की लाश मिलने की खबर मिलती, वह वहां पहुंच जाता.

धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. लेकिन पुलिस कंचन का पता लगाने में नाकाम रही. अनुपम हर दूसरेतीसरे दिन थाना सैफई पहुंच जाता और पत्नी के संबंध में थानाप्रभारी से सवालजवाब करता. चंद्रदेव उसे सांत्वना दे कर भेज देते थे.

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जब अनुपम के सब्र का बांध टूट गया तो वह एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह के औफिस पहुंचा. उस ने उन्हें अपनी पत्नी के गायब होने की बात बता दी.

नर्सिंग छात्रा कंचन के लापता होने की जानकारी ओमवीर सिंह को पहले से ही थी. वह इस मामले की मौनिटरिंग भी कर रहे थे, ओमवीर सिंह ने अनुपम को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द ही उस की लापता पत्नी की खोज करेगी. आश्वासन पा कर अनुपम वापस लौट आया.

एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने लापता कंचन को खोजने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव, एसआई राजवीर सिंह, वासुदेव सिंह, विपिन कुमार, महिला एसआई अंजलि तिवारी, सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह, कांस्टेबल अभिनव यादव तथा सर्वेश कुमार को शामिल किया. टीम की कमान खुद एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने संभाली.

विशेष टीम ने सब से पहले कंचन के पति अनुपम तथा उस के मातापिता से पूछताछ की. इस के बाद टीम ने कंचन के मातापिता तथा पड़ोस के लोगों से जानकारी हासिल की. टीम को आशंका थी कि कंचन का अपहरण दुष्कर्म करने के लिए किया जा सकता है. अत: टीम ने क्षेत्र के इस प्रवृत्ति के कुछ अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की, लेकिन कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह ने कंचन का मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि कोई जानकारी मिल सके पर मोबाइल फोन बंद होने से कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इधर थानाप्रभारी, एसआई अंजलि तिवारी व टीम के अन्य सदस्यों के साथ मैडिकल कालेज पहुंचे और कंचन के हौस्टल रूम की एक बार फिर छानबीन की. गहन छानबीन के दौरान उन्हें वहां मोबाइल फोन के 2 खाली डिब्बे मिले. दोनों डिब्बे उन्होंने सुरक्षित रख लिए.

टीम ने सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुरेशचंद्र शर्मा से भी बात की. साथ ही अन्य कई लोगों से भी कंचन के संबंध में जानकारी जुटाई. कुलसचिव कहा कि वह स्वयं भी कंचन के लापता होने से चिंतित हैं, क्योंकि यह उन की प्रतिष्ठा का सवाल है.

महिला एसआई अंजलि तिवारी ने कंचन के हौस्टल रूम से बरामद दोनों डिब्बों पर अंकित आईएमईआई नंबरों की जांच की तो पता चला कि इन आईएमईआई नंबरों के दोनों फोनों में 2 सिम नंबर काम कर रहे थे. एक फोन का सिम कंचन के नाम से खरीदा गया था, जबकि दूसरा आनंद किशोर पुत्र हाकिम सिंह, निवासी नगला महाजीत सिविल लाइंस इटावा के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस टीम 12 अक्तूबर, 2019 की रात को आनंद किशोर के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. थाना सैफई ला कर आनंद किशोर से पूछताछ शुरू की गई. तब आनंद किशोर ने बताया, ‘‘सर, मैं किसी कंचन नाम की लड़की को नहीं जानता.’’

‘‘तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. तुम कंचन को अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन का डिब्बा उस के हौस्टल रूम से बरामद हुआ है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि सारी सच्चाई बता दो वरना…’’

थानाप्रभारी चंद्रदेव का कड़ा रुख देख कर आनंद किशोर डर गया. वह बोला, ‘‘सर, यह सच है कि मैं ने ही बात करने के लिए उसे मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.’’

‘‘तो बताओ कंचन कहां है? उसे तुम ने कहां छिपा कर रखा है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘सर, कंचन अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने उस की हत्या कर दी है.’’ आनंद ने बताया.

‘‘क्याऽऽ कंचन को मार डाला?’’ वह चौंके.

‘‘हां सर, मैं ने कचंन की हत्या कर दी है. मैं जुर्म कबूल करता हूं.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

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‘‘सर, लाश मैं ने भितौरा नहर में फेंक दी थी. फिर उस के दोनों मोबाइल तोड़ कर जगसौरा बंबा के पास फेंक दिए थे. खून से सने अपने कपड़े, शर्ट, पैंट तथा तौलिया भी वहीं जला दिए थे, चाकू भी वहीं फेंक दिया था.’’

इस के बाद पुलिस टीम ने आनंद किशोर की निशानदेही पर जगसौरा बंबा के पास से 2 टूटे मोबाइल तथा आलाकत्ल चाकू बरामद कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम आनंद किशोर को साथ ले कर जसवंत नगर क्षेत्र की भितौरा नहर पहुंची. वहां आनंद किशोर ने नहर किनारे जलाए गए अधजले कपड़े बरामद करा दिए. हत्या में इस्तेमाल आनंद किशोर की ओमनी कार भी पुलिस ने उस के घर से बरामद कर ली.

आनंद किशोर की निशानदेही पर पुलिस ने अब तक मोबाइल फोन, चाकू, अधजले कपडे़ तथा हत्या में प्रयुक्त कार तो बरामद कर ली थी, लेकिन कंचन की लाश बरामद नहीं हो पाई थी.

अत: लाश बरामद करने के लिए पुलिस आनंद को एक बार फिर भितौरा नहर ले गई, जहां उस ने लाश फेंकने की बात कही थी, वहां तलाश कराई. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कंचन की लाश बरामद नहीं हो सकी.

चूंकि आनंद किशोर ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और हत्या में इस्तेमाल कार तथा चाकू भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने गुमशुदगी के इस मामले को हत्या में तरमीम कर दिया और भादंवि की धारा 302, 201 के तहत आनंद किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कितना सहेगी आनंदिता: भाग 3

लेखक-अरुण अर्णव खरे

आप ने कहा आप का कोई अपना ऐडमिट नहीं है, फिर यह बच्चा कौन है आप का?’ शेखर आश्चर्य से आनंदिता की ओर देखते हुए बोला.

‘वह दीदी बोलता है, तो भाई समझ लीजिए.’‘प्लीज, पहेलियां मत बुझाइए.’

‘मैं सच में ज्यादा नहीं जानती उस के बारे में. हमारी सर्वेंट के भाई का लड़का है. 5 साल का है. जन्म से ही थैलेसीमिया से पीडि़त है. पर आप यहां कैसे?’‘मैं…’ शेखर उत्तर देते हुए अचकचा गया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोला, ‘मैं भी ब्लड डोनेट करने आया हूं, मेरे दोस्त को जरूरत है.’‘आप बहुत अच्छे हैं. बेहतरीन खिलाड़ी के साथसाथ एक नेकदिल इंसान भी.’

आनंदिता चली गई, जिंदगी का एक नया फलसफा सिखा कर. उस दिन ब्लड डोनेट कर शेखर ने स्वयं को एक अच्छा काम दूसरों के लिए करने पर जलते हुए दीए के प्रकाश सा आलोकित महसूस किया. इस के बाद तो शेखर अपनी हर धड़कन में आनंदिता की उपस्थिति अनुभव करने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के निकट आने लगे, एकदूसरे के बारे में दोनों ही बहुतकुछ जान गए. शेखर के पिता नरसिंहपुर में डैंटल सर्जन हैं जबकि आनंदिता के मातापिता नहीं थे. जब वह 2 साल की थी, तभी उस के मातापिता एक नाव दुर्घटना में बेतवा नदी में बह गए थे. उसे बचा लिया गया था. तभी से वह अपने मामा के यहां रह रही है. उन्होंने उसे बेटी से बढ़ कर पाला है. आनंदिता नाम भी उन्होंने ही दिया है.

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समय के साथ शेखर और आनंदिता नजदीक आते गए. बैडमिंटन ने भी इस में अहम रोल अदा किया. पहले साल यूनिवर्सिटी बैडमिंटन के सिंगल्स में उपविजेता रहने के बाद शेखर अगले वर्ष चैंपियन बन गया. आनंदिता भी ज्यादा पीछे नहीं रही. वह उस वर्ष की उपविजेता बन कर लौटी. शेखर के टिप्स और कोर्ट में उस की उपस्थिति हमेशा प्रेरणादायी सिद्ध होती. प्रारंभिक आसक्ति ने प्रेम का स्वरूप कब ले लिया, दोनों को पता ही नहीं चला. एकदो हफ्ते तक जब मिलना नहीं होता, तो मन की बेचैनी दोनों के रिश्तों को परिभाषित करती प्रतीत होती. यह प्यार दोनों ही अपने दिलों में अधिक समय तक दबा कर नहीं रख सके. दोनों को ही एकदूसरे का साथ हमेशा सुखकर लगता था. उन्हें एहसास होने लगा था कि वे दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे हैं. उन्होंने एक दिन सदा साथ देने का वादा एकदूसरे से कर डाला. इस के बाद शेखर आनंदिता के घर भी आनेजाने लगा. मामामामी को भी वह पसंद था. शेखर ने अपनी मां को भी आनंदिता के बारे में बता दिया था. सबकुछ मनमुताबिक और सुगमता से हो रहा था. बस, इंतजार था तो पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी सी नौकरी का.

शेखर ने जिस वर्ष मैकेनिकल में अपनी इंजीनियरिंग पूरी की उसी साल आनंदिता ने एमकौम कर लिया. आनंदिता सीए करना चाह रही थी. सो, उस ने पंचरत्न कोचिंग संस्थान जौइन कर लिया. शेखर का कैंपस सेलैक्शन किर्लोस्कर गु्रप्स में ट्रेनी इंजीनियर के रूप में हो गया. जुलाई में उसे जौइन करना था. प्रशांत उसे विदा करने स्टेशन तक आया. उस के 2 पेपर रुके हुए थे, सो, सप्लिमैंट्री एग्जाम तक प्रशांत को होस्टल में ही रुकना था.

‘‘अरे कितना सोओगे, हम कब से आप के जागने का इंतजार कर रहे हैं. मुकुल भाईसाहब मिलने आए थे लेकिन आप को सोता देख कर लौट गए. नीचे डाइनिंग हौल में बुला गए हैं,’’ आनंदिता की आवाज ने शेखर को सपनों की दुनिया से यथार्थ की जमीन पर ला दिया.

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‘‘ओह, 4 बज गए. मैं 2 मिनट में पहुंचता हूं वहां. तुम लोग चलो,’’ कहता हुआ शेखर वाशरूम में घुस गया.

शाम का कार्यक्रम सुव्यवस्थित और मंत्रमुग्ध करने वाला रहा. रुद्र और प्रथम सहित कई बच्चों ने शानदार प्रस्तुतियां दीं. शेखर के कहने पर रुद्र ने प्रथम से एक बार फिर सुबह की घटना के लिए सौरी कहा. प्रथम ने भी उस का हाथ थाम कर सौरी कहा. दोनों को बात करते देख कर शेखर और आनंदिता का मन हलका हो गया. अगले दिन सभी का सांची स्तूप देखने का प्रोग्राम था. उसी दिन शाम को महिलाओं के लिए वूमेंस स्पैशल नाइट का आयोजन किया गया था. आनंदिता ने ‘आप की नजरों ने समझा…’ गीत गा कर समां बांध दिया. बाद में सभी ने डीजे पर जम कर डांस किया.

उस दिन आनंदिता के गायन को सभी ने बहुत सराहा. शेखर को भी बधाइयां मिलीं. नींद की आगोश में भी शेखर खुद को गर्वित महसूस करता रहा. एसिड से जलने के बाद आनंदिता का बैडमिंटन खेलना छूट गया था, लेकिन जिंदगी से हारना उसे स्वीकार नहीं था. उस ने विलास सिरपुरकर का संगीत विद्यालय जौइन कर लिया. उन्हीं से उस ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी. लगन की पक्की तो वह शुरू से थी, सो, थोड़े समय में ही उसे स्वर साधना आ गया. वह सबकुछ भूल कर संगीत को समर्पित हो गई थी.

शादी के लिए भी शेखर को कितना मनाना पड़ा था. वह तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थी. विद्रूप चेहरा ले कर किसी के जीवन को ग्रहण लगाना नहीं चाहती थी वह. शेखर को भी ट्रेनिंग के बाद ही पता चला था उस हादसे के बारे में. आनंदिता को देख कर दहल गया था वह. इतनी सुंदर और सुशील लड़की के साथ इतना घिनौना कृत्य. कौन राक्षस है जिस ने ऐसा किया होगा. कई दिनों तक सोचता रहा था शेखर. आनंदिता भी अनभिज्ञ थी. उस का तो कभी किसी से मामूली विवाद भी नहीं हुआ था.

पूरे 7 साल इंतजार किया था उस ने

 आनंदिता का. सब ने उसे मना

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किया था, धिक्कारा था, चेतावनी दी थी. पर वह आनंदिता को कैसे छोड़ सकता था. उस ने सदा साथ निभाने का वादा किया था उस से. आखिरी दम तक हार न मानने की ट्रेनिंग ली थी बैडमिंटन कोर्ट पर. फिर जिंदगी के सब से महत्त्वपूर्ण मैच में वह घुटने कैसे टेक सकता था.

आनंदिता ने पूरी कोशिश की थी उसे डिगाने की. उस के हर प्लेसमैंट को सूझबूझ के साथ रिटर्न करती रही. वह हर पौइंट के लिए जूझता रहा. लेकिन मैच पौइंट पर आ कर आनंदिता भावुक हो गई और उस के अनुरोध को टाल नहीं सकी. दोनों ने कोर्ट मैरिज की. उन्हें आशीर्वाद देने आनंदिता के मामामामी और शेखर के पापामम्मी ही उपस्थित थे. अपनों की उपस्थिति ने दोनों को असीम ऊर्जा दी और साहस भी. साहस, जिंदगी की हर परीक्षा में उत्तीर्ण होने का, निश्चित हो आगे बढ़ते जाने का.

एलुमिनी मीट के अंतिम दिन सभी का गुलाबगंज के पास बमौरी गांव के भ्रमण का कार्यक्रम था, जिसे एलुमिनी एसोसिएशन ने कालेज प्रबंधन के सहयोग से गोद लिया था. गांव में बच्चों के लिए एक कंप्यूटर सैंटर और लाइब्रेरी का लोकार्पण तथा निराश्रित महिलाओं के संवर्द्धन हेतु सिलाई मशीनें भेंट की जानी थीं. आनंदिता के सुझाव पर ही एसोसिएशन ने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की इस पहल को खुशीखुशी स्वीकार किया था.

अगले दिन सभी को वापस लौटना था. देररात तक लोग एकदूसरे से मिलते रहे. प्रशांत को अकेला देख कर आनंदिता उस के पास चली आई, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से कुछ बात करना चाहती हूं.’’

‘‘यदि आप प्रथम की बात को ले कर दुखी हैं तो मैं आप से माफी मांगता हूं,’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘नहीं, वह तो बच्चा है. मैं हूं ही ऐसी. पहली बार जो भी देखता है, डर जाता है.’’

प्रशांत को कोई उत्तर नहीं सूझा. वह चुप रहा. आनंदिता बोली, ‘‘कुछ पूछना है आप से?’’

‘‘हां, निसंकोच पूछिए.’’

‘‘मुझ से क्या गलती हुई थी जो आप ने इतनी बड़ी सजा दी मुझे?’’

‘‘आप से और गलती? मैं कुछ समझा नहीं,’’ प्रशांत विस्मय से आनंदिता की ओर देखते हुए बोला.

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‘‘मुझे पता है, वे आप ही थे. मैं आप की आवाज कभी भूल ही नहीं पाई. पहले दिन जब आप ने नमस्ते बोला था, तभी मैं समझ गई थी. उस दिन आप के कहे शब्द, ‘सबक सिखा दिया, सुरु जल्दी चल  यहां से,’ अभी भी कानों में गूंजते रहते हैं. इतना सह लिया जिंदगी में कि अब कोई दर्द माने नहीं रखता. आप विश्वास कीजिए, आप की खुशहाल जिंदगी को नरक नहीं बनाऊंगी. बस, मेरा अपराध बता दीजिए ताकि दुनिया से विदा होते समय दिल पर कोई बोझ न रहे,’’ वर्र्षों से दिल के अंदर दबा दर्द पिघल कर आनंदिता की आवाज में घुल गया था.

प्रशांत को काटो तो खून नहीं. दिसंबर अंत की शीतल रात में भी माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगीं. उस का शरीर निढाल होने लगा. वर्षों पीछे छोड़ा गया समय इस तरह सामने आ खड़ा होगा, उस ने कल्पना भी नहीं की थी. बड़ी मुश्किल से वह बोल पाया, ‘‘मैं ईर्र्ष्या में अंधा हो गया था, इसलिए इतना बड़ा अन्याय कर बैठा.’’

‘‘कैसी ईर्ष्या?’’

‘‘शेखर से ईर्र्ष्या. मैं हर तरह के हथकंडे अपना कर के भी कभी उस से आगे नहीं निकल सका. वह हर बात में मुझ से बीस सिद्ध हुआ करता था. पढ़ाई में मुझ से बहुत आगे रहता. बैडमिंटन में अनुशासनहीनता के कारण मैं दोबारा टीम में स्थान नहीं पा सका. 2 बार क्लास रिप्रेजैंटेटिव के चुनाव में उस से हार गया. मेरी सनक के कारण स्कूल गर्लफ्रैंड ने भी मुझ से नाता तोड़ लिया.

‘‘उसी समय शेखर को आप मिल गईं. वह अकसर आप से मुलाकात के किस्से सुनाता. बहुत तारीफ करता आप की. मैं सुनता और अंदर ही अंदर सुलगा करता. बहुत गुस्सा आता अपनी नाकामियों पर और उस की उपलब्धियों पर. जब किर्लोस्कर में उस का कैंपस सेलैक्शन हो गया और मैं 2 पेपर्स में फेल हो गया तो बहुत रोया था. जिस दिन वह जा रहा था, मैं उसे छोड़ने स्टेशन तक गया था. बहुत खुश था वह. उस ने बताया था कि ट्रेनिंग के बाद आप से शादी करने वाला है. तभी मैं ने निर्णय कर लिया कि जिंदगी में अभी तक जितनी आसानी से उसे सबकुछ मिलता रहा है अब उतनी आसानी से आप को वह नहीं पा सकेगा. मैं जिंदगी का सब से भयंकर सबक सिखाऊंगा उसे.

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‘‘मैं ने कई बार आप का पीछा किया. आप की गतिविधियों पर नजर रखी. सप्लिमैंट्री एग्जाम के बाद जिस रात मुझे वापस लौटना था, उसी शाम को मैं ने आप पर तेजाब फेंकने का फैसला कर लिया था. मेरे दोस्त सुरेश ने इस में मेरा साथ दिया. उसी ने अपने स्कूटर से मुझे भागने में मदद की. और मैं ने आप की जिंदगी नरक बना दी.

‘‘पर शेखर तो अलग ही मिट्टी से बना इंसान निकला. इस स्थिति में भी आप को अपना कर कितना खुश है आज भी. उस जैसे लोगों के कारण ही दुनिया में मानवता जिंदा है. मैं अपराधी हूं आप का. माफी के काबिल नहीं हूं. माफी मांग कर अपने गुनाह की सजा से बचना भी नहीं चाहता. कोई इतना ईर्ष्यालु न हो कि वह मानव सभ्यता के लिए कलंक बन जाए,’’ कहते हुए प्रशांत की आंखों से आंसू बहने लगे.

आनंदिता ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘रो लीजिए, मन हलका हो जाएगा. पर आप को मेरी कसम कि प्रथम और रोहिणी भाभी से कुछ मत कहिएगा. वे जिंदगीभर इस सदमे से उबर नहीं पाएंगे,’’ इतना कह कर आनंदिता तेजी से कदम बढ़ाते हुए अपने कमरे की ओर चल दी.    द्य

कितना सहेगी आनंदिता: भाग 1

लेखक-अरुण अर्णव खरे

आनंदिता इतनी खूबसूरत थी कि शेखर पहली नजर में ही उस के व्यक्तित्व और खूबसूरती पर फिदा हो गया था. जिंदगी का एक खुशनुमा दौर था उन दोनों का लेकिन, उन्हें क्या पता था कि जिंदगी का एक घिनौना रूप भी उन्हें देखना पड़ेगा.

‘‘पापा, सी देयर, हाऊ स्केरी इज दैट आंटी,’’ प्रशांत के 12 वर्षीय पुत्र प्रथम ने हाथ के इशारे से आनंदिता को दिखाते हुए कहा, ‘‘अरे, वे तो इसी ओर आ रही हैं.’’

प्रथम अपनी बात समाप्त कर पाता, इस से पहले ही आनंदिता का बेटा रुद्र चिल्लाते हुए उस की ओर लपका, ‘‘ओए, क्या बोला तू ने, स्केरी, मैं बताता हूं इस का मतलब तुझे.’’

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‘‘रुद्र, बेटे रुको, ऐसा नहीं करते,’’ आनंदिता और शेखर दोनों ने ही बेटे को रोकना चाहा लेकिन तब तक रुद्र ने प्रथम को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था और उस के गालों पर ताबड़तोड़ 3 तमाचे जड़ दिए थे,  ‘‘क्या बोला तू ने मेरी मां के लिए, फिर से बोल, देख, मैं क्या हाल करता हूं तेरा.’’

शेखर ने रुद्र को पकड़ कर अलग किया. आनंदिता ने गुस्से से कांप रहे बेटे को मीठी डांट लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता. माफी मांगो इन से. हम यहां एलुमिनी मीट में पुराने दोस्तों से मिलने आए हैं. अगर तुम ऐसा ही करोगे तो हम वापस चलते हैं.’’

‘‘सौरी,’’ रुद्र ने मां की आज्ञा मानते हुए प्रथम की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. प्रशांत ने भी बेटे से हाथ मिलाने को कहा. लेकिन प्रथम आंख दिखाता हुआ कमरे के अंदर चला गया.

‘‘सौरी प्रशांत, यह अच्छा नहीं हुआ. हम शर्मिंदा हैं. रुद्र को ऐसा नहीं करना चाहिए. बच्चा है, हम समझाएंगे उसे,’’ शेखर ने प्रशांत से हाथ मिलाते हुए कहा. ‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरी बेटरहाफ आनंदिता. तुम्हें याद होगा, मैं तुम से अकसर इन के बारे में ही बातें किया करता था.’’

‘‘नमस्ते,’’ प्रशांत की आवाज सुन कर आनंदिता ने असहज महसूस किया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोली, ‘‘नमस्ते भाईसाहब.’’

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इसी बीच प्रशांत की पत्नी रोहिणी भी कमरे से बाहर आ गई थी. औपचारिक परिचय हुआ. वर्षों रूममेट रहे 2 मित्रों की मुलाकात अजीब सी कड़वाहटभरे माहौल में हुई. शेखर और आनंदिता रुद्र के व्यवहार को ले कर दुखी थे. उस ने पहले कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया था, उस समय भी नहीं जब पिं्रसिपल ने आनंदिता को विनयपूर्वक स्कूल के कार्यक्रमों में आने से मना किया था. शायद उस समय का गुस्सा था जो मौका पा कर अब बाहर आ गया था.

शेखर के सामने फादर विलियम्स का चेहरा घूम गया और उन के कहे शब्द कानों में गूंजने लगे, ‘आई होप, यू विल अंडरस्टैंड माइ पोजिशन. मुझे स्कूल के दूसरे बच्चों का भी ध्यान रखना है. मिसेज अग्निहोत्री जब भी स्कूल आती हैं, मैं ने स्वयं कुछ बच्चों की आंखों में भय महसूस किया है. हम रुद्र को पढ़ाना चाहते हैं. ही इज ए मेरीटोरियस स्टूडैंट, लेकिन आप को मेरी बात ध्यान में रखनी होगी, मिस्टर अग्निहोत्री. प्लीज डोंट बिं्रग हिज मदर फौर पीटी मीटिंग्स ऐंड इन अदर स्कूल ऐक्टिविटीज. इट्स माय हंबल रिक्वैस्ट.’

तब आनंदिता ने आगे बढ़ कर उस को इस असमंजस से उबारा था, ‘शेखर, अपने बच्चे के लिए इतना त्याग तो मुझे करना ही चाहिए. मैं सह सकती हूं इतना, तो… जीवन में जब इतना सहा है तो यह कौन सी बड़ी बात है.

आनंदिता की बात सुन कर अंदर तक भीग गया था वह. और कितना सहेगी आनंदिता. पिछले 20 सालों से सह ही तो रही है और शायद आखिरी सांस तक सहती ही रहेगी. घटनाएं भी किसीकिसी के जीवन को कैसे बदल डालती हैं. हर पल नई चुनौती. नई परीक्षा. हर आंख घूरती हुई, उपेक्षा और घृणा का भाव लिए.

क्या गलती है आनंदिता की? किसी के वहशीपन की सजा भुगत रही है वह तो. उसे पता ही नहीं कि किस ने उस के ऊपर तेजाब फेंका था. क्या अपराध था उस का. क्या चाहता था वह. पर उस के निशाने पर वह थी, यह जानती है.

जब यह हादसा हुआ था उस समय वह अकेली ही थी. खरी फाटक के मोड़ के आगे सुनसान सड़क पर. कोचिंग क्लास से लौटने में देर हो गई थी उस दिन उसे. रात गहराने लगी थी. वह जल्दी से घर पहुंच जाना चाहती थी. पर नहीं रोक पाई वह गहराते हुए अंधेरे को. और अगले कुछ ही क्षणों में सारी जिंदगी उसी अंधेरे के हवाले हो गई. पर हिम्मतवाली है आनंदिता. इतना सब होने के बाद भी जिंदगी से हारी नहीं. उठ कर खड़ी हो गई. दरिंदगी को ठेंगा दिखाते हुए जिंदादिली की मिसाल बन कर. अब तक कितनी ही विपरीत पस्थितियों से, घूरती आंखों और कड़वी जबानों से बिना उफ किए लड़ती आई है. आगे भी लड़ेगी इसी बहादुरी से.

‘‘मुझे माफ कर दो, मां. अब दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा,’’ रुद्र आनंदिता से लिपट कर बोल रहा था, ‘‘आप को दुख पहुंचाया मैं ने. क्या करूं मैं, आप की तरह अच्छा नहीं बन पाया. कोशिश करूंगा कि फिर आप को दुखी न करूं.’’

आनंदिता ने खींच कर उसे गले लगा लिया, ‘‘गलती का एहसास हो जाना, पछतावे के बराबर है, बेटा. अब आगे ध्यान रखना. फिर कभी मेरे लिए इस तरह किसी से बिहेव मत करना. यदि कोई तुम्हें बदसूरत मां का बिगड़ैल बेटा कहेगा, तो मैं नहीं सह पाऊंगी. मैं सब से लड़ सकती हूं पर खुद से लड़ने की शक्ति नहीं है मुझ में.’’

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‘अरे, तुम दोनों यहां आओ मेरे पास, बैठो. हमें शाम के कार्यक्रम के बारे में फाइनल करना है. तुम अपनी सीडी भी चैक कर लो, रुद्र, जिस पर तुम डांस करने वाले हो,’’ शेखर ने रुद्र और आनंदिता का ध्यान बंटाने के लिए कहा, ‘‘आनंदी, तुम भी एक बार रुद्र को प्रैक्टिस करा दो और स्वयं भी गाना गुनगुना कर देख लो कि कहीं कुछ भूल तो नहीं रही हो. बहुत दिनों से अभ्यास नहीं किया है तुमने भी.’’

आनंदिता और रुद्र अभ्यास में लग गए जैसे कुछ हुआ ही न हो. शेखर पलंग पर 2 तकियों के सहारे टिक गया. थोड़ी देर तक वह रुद्र के डांस स्टैप्स को देखता रहा, फिर आंखें बोझिल होने लगीं. उस के सामने बारबार प्रशांत और उस के बेटे प्रथम की तसवीर आ कर मन में हलचल मचा रही थी. क्या प्रथम के रूप में प्रशांत फिर लौट आया है? वैसी ही उद्दंडता, बेशर्मी और अक्खड़पन. 5 साल उस ने प्रशांत के साथ एक ही रूम में रहते हुए गुजारे थे. वह उस की कितनी ही कारगुजारियों का प्रत्यक्षदर्शी था. कितनी बार उस ने प्रशांत की ज्यादतियों का खमियाजा भी भुगता था, पर प्रशांत के चेहरे पर कभी आत्मग्लानि की हलकी सी शिकन तक नहीं देखी थी.रुद्र के स्टैप्स देखते हुए शेखर यादों में खो गया. मस्तिष्क में उभर आई

प्रशांत के साथ हुई पहली मुलाकात. एसए इंजीनियरिंग कालेज के ओल्ड होस्टल में उसे और प्रशांत को एक ही रूम अलौट हुआ था. शेखर पहले होस्टल में रहने आ गया था. प्रशांत ने 2 दिनों बाद वार्डन को रिपोर्ट किया था. उस ने प्रशांत का स्वागत करते हुए परिचय दिया था, ‘मैं शेखर अग्निहोत्री, नरसिंहपुर से.’ प्रशांत ने पूरी तरह बेरुखी दिखाई और बिना कोई उत्तर दिए अपना सामान शेखर के पलंग पर रख दिया और बोला, ‘तुम अपना बिस्तर उठा कर उस पलंग पर रखो, मैं यह पलंग लूंगा. यह टेबल और अलमारी भी खाली कर दो, मैं अपना सामान इन में रखूंगा.’

शेखर अवाक रह गया था, पर संयत रहा था. उस ने अपना बिस्तर और अन्य सामान हटा लिया. तीसरे दिन ही प्रशांत एक सीनियर से उलझ गया, जिस के कारण उस की पिटाई तो हुई ही, शेखर भी सीनियर्स के राडार पर आ गया. रात में जबतब उसे रैगिंग के लिए बुला लिया जाता, पिटाई होती और घंटों एक पैर पर खड़ा रखा जाता.

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5 वर्षों में ऐसी कितनी ही ज्यादतियां शेखर ने सहन की थीं. प्रशांत अकसर ही उस के सैशनल पेपर और ड्राइंगशीट्स फोल्डर से निकाल कर अपने नाम से सब्मिट कर देता. शेखर को दोबारा मेहनत करनी पड़ती और टीचर्स की डांट मिलती, वह अलग. शेखर के विरोध का कभी कोई असर प्रशांत पर नहीं हुआ. वह तो जैसे शेखर की हर चीज पर अपना हक समझता था. धीरेधीरे शेखर भी सावधानी बरतने लगा और वह अपने नोट्स, ड्राइंगशीट्स अलमारी में लौक कर के रखने लगा. 4 माह बीत गए. प्रशांत बदलने लगा. उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया और वह विनम्र होने के साथ ही दोस्ताना भी हो गया. शेखर से उस की जमने लगी. दोनों अपनी बहुत सी बातें भी आपस में शेयर करने लगे..

टीपू का टाइम पास

मैं एक कुत्ता-टीपू. सेन साहब जब 4 साल पहले मुझे लाए थे तो सब गोद में लिए घूमते रहते थे. मैं भी बच्चों के साथ खूब मजे करता था, उन के मुंह चाटा करता था. बच्चे अकसर अपने हिस्से की चौकलेट मुझे दे दिया करते थे. जिंदगी मजे में गुजर रही थी, पर जैसेजैसे मैं आकार में बढ़ता गया और मेरी खुराक बढ़ती गई, उसी हिसाब से सेन साहब के परिवार का मेरे प्रति प्रेम घटता गया.

आज हालत यह है कि मुझे सुबह से ही घर के बाहर बांध दिया जाता है. चेन भी इतनी छोटी रखी है कि ज्यादा घूम नहीं सकता और न तो आनेजाने वालों को भूंक कर डरा सकता हूं. अब तो पास से बकरी भी बड़ी शान से निकल जाती है, जैसे कि मैं एक खुद बकरी हूं. मैं शर्म से पानीपानी हो जाता हूं. घर के सब लोग एकएक कर के काम पर निकल जाते हैं, सिर्फ मैं गेट के पास बंधा रहता हूं और अंदर मिसेज सेन सदा की तरह घर के कामों में ही व्यस्त रहती हैं. मेरे पास सिर्फ पानी का एक बरतन रहता है, उस में से भी कभीकभी पानी गिर जाता है तो कोई दोबारा भरने भी नहीं आता. ऐसे में मेरे पास कोई चारा नहीं है कि आखिर मैं करूं क्या.

कुत्ता बंधा हुआ है, कुछ नहीं कर पाएगा

मैं दिनभर ऊंघऊंघ के थक जाता हूं. साथ में यदि घर में मेरी बिरादरी के कुछ और कुत्ते होते तो उन के साथ गुजारे गए अच्छे पलों को याद कर के टाइम पास कर लेता, पर मैं अकेला लाया गया था, इसलिए यादों का भी कोई सहारा नहीं है. इंसानों की तरह हम कुत्तों में भी सैक्स का अनुपात गड़बड़ हो रहा है. अब कुत्ते ज्यादा हो गए हैं और कोई भी घर में कुतिया नहीं पालना चाहता, इसलिए अगलबगल भी वही कुत्ते और वे भी बंधे हैं. कोई काम के नहीं हैं. भूंकने से भी कोई फायदा नहीं कि थोड़ा टाइम पास हो जाए क्योंकि सब को मालूम है, कुत्ता बंधा हुआ है, कुछ नहीं कर पाएगा, सिर्फ टाइम पास के लिए भूंक रहा है.

वह तो भला हो पड़ोसी के टौमी का, जो एक बार भूल से खुला रह गया और मेरे पास आ कर टाइम पास का एक मंत्र दे गया. बोला, ‘जब तक तुम बंधे हो, टाइम पास के लिए, उन लोगों की लिस्ट बनाया करो जिन्हें यदि तुम कभी खुले रह गए तो काटोगे. इस तरह तुम्हारा अच्छा टाइम पास हो जाएगा. कभी नए लोग जोड़ो और कभी पुराने लोगों को उन के अच्छे व्यवहार के कारण लिस्ट से हटा दो. बहुत मजा आएगा और टाइम भी अच्छा पास हो जाएगा.’

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दूसरे दिन से ही जब मेरे साहब मुझे गेट में बांध कर गए तो मैं ने शुरू में तो ऊंघने का बहाना किया पर जैसे ही वे अंदर गए, मैं जिन्हें मुझे काटना है, उन की लिस्ट बनाने में लग गया. लिस्ट में सब से पहले मैं ने गुड्डू को शामिल किया जो लगभग 20 साल का होगा. कई साल स्कूल में फेल हुआ और बड़ी मुश्किल से कालेज पहुंचा. वह पाजी जब भी मेरे पास से निकलता था, अपने साथियों के साथ, तो उन से डींग मारता था कि मैं पैर से ऐसा कंकड़ उछालूंगा कि वह सीधे टीपू को लगे. अकसर वह लोगों से शर्त लगाता था और जीत भी जाता था. मैं उस के आने पर खड़ा हो कर भूंकता था तो उस का निशाना और सटीक हो जाता था.

अंत में मैं ने भैया लोगों के साथ टीवी में जो अंगरेजी की फिल्मों में देखा था, आजमाना शुरू कर दिया. उस में मैं ने देखा था, जैसे ही पिस्तौल की गोलियां चलती हैं, लोग जमीन पर लेट जाते हैं. मैं ने भी उस की निशानेबाजी के समय जमीन पर लेटना शुरू कर दिया. उस का निशाना इस वजह से कई बार चूक जाता था और उस का कंकड़ मुझे नहीं लगता था. वह शर्त में हारने से बहुत झल्ला जाता. अगले दिन बडे़ कंकड़ का उपयोग करता. कंकड़ों के लगने से मेरे शरीर में दर्द होता था, उस की उस को कोई परवा न थी. मुझे यदि मौका मिला और मैं बंधने से बच गया तो सब से पहले गुड्डू को ही काटूंगा और फुरसत से काटूंगा.

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3 घर छोड़ कर, नायक साहब के घर में छोटेछोटे बच्चे रोज ही मेरे सामने से निकलते हैं. वे अकसर मुझे प्यार करते हैं और अपनी आधी खाई हुई चौकलेट भी मुझे दिया करते हैं. पर उन के साथ चलती हुई एक आया से मुझे सख्त नफरत है. काली सी, मोटी आया, जिस के हाथ में हमेशा एक संटी रहती है, मुझे टौफी खिलाने पर बच्चों को डांट लगाती है और चलतेचलते मुझे अपनी संटी से मार कर भी जाती है.

असल में बच्चों की चौकलेट पर उस की नजर होती थी जो वे मुझे दे दिया करते थे. मैं थोड़ा भूंकने के अलावा कुछ नहीं कर सकता. काली काया, मोटा शरीर, मैं सिर्फ मन ही मन उस को गाली देने के अलावा क्या कर सकता था पर टौमी की सलाह पर अब मैं ने उसे भी अपनी लिस्ट में शामिल कर लिया और यह भी निश्चय कर लिया कि जब भी मौका लगेगा, मैं उस के पिछले हिस्से में ही काटूंगा, जिस से वह जमीन पर बैठने के काबिल भी न रहे. फिलहाल तो मैं मजबूर हूं, सिर्फ लिस्ट बना सकता हूं पर यह आया मेरी लिस्ट में दूसरे नंबर पर है.

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मेरी लिस्ट में अगला नाम दयाशंकर का है जो हमारे महल्ले का दूध वाला है. मैं ने उस को कई बार दूध में नल से पानी मिलाते देखा. मेरी मालकिन उस दूध में और पानी मिला कर मुझे देती है यानी कि मुझे डबल पानी वाला दूध मिलता है. दयाशंकर शान से मेरे सामने से अपनी मोटरसाइकिल से निकलता है, दोनों तरफ दूध की टंकियां लटकती रहती हैं. और खासकर जब वह लेट आता है, और मैं बाहर ही बंधा रहता हूं, तो जानबूझ कर मेरे पास से अपनी मोटरसाइकिल निकालता हुआ जाता है, उस की दूध की टंकी की चोट से जब मैं बचने की कोशिश करता हूं और खड़ा हो जाता हूं तो उसे बहुत मजा आता है. उस को भी मैं ने अपनी काटने वालों की लिस्ट में काफी आगे रखा है. एक तो इस के कारण मुझे पानी वाला दूध मिलता है और फिर इस का मेरे साथ बचकाना व्यवहार. पैर में ऐसा काटूंगा कि दूध बेचना भूल जाएगा.

मेरी लिस्ट में अगले हैं मास्टर साहब, जो सामने वाली दीदी को पढ़ाने आते हैं. हैं तो अधेड़ और दीदी लगभग 22 साल की, पर जब मैं उन लोगों को साथ में देखता हूं तो मुझे कुछ न कुछ गड़बड़ लगता है. विनोदजी अपनी लड़की को कालेज इसलिए नहीं भेजते थे क्योंकि उन के अनुसार, वहां का माहौल ठीक नहीं है. पर अब तो घर में ही माहौल बिगड़ रहा है. इस का उन को या उन की पत्नी को पता नहीं है. विनोदजी पूरे समय टीवी पर खबरें या हाईप्रोफाइल लोगों की किसी भी ताजे मुद्दे पर होती बहस का लुत्फ उठाते रहते हैं और उन की धर्मपत्नी अपने मायके वालों से और सखीसहेलियों से फोन या मोबाइल से बातें करती रहती हैं. दोनों को नहीं मालूम कि उन के घर में ही एक नया सीरियल चल रहा है. वैसे मैं उन को दीदी कह रहा हूं पर सच तो यह है कि वे मुझे भी अच्छी लगती हैं. और मैं मास्टर साहब को खलनायक समझता हूं, इसीलिए मैं ने मास्टर साहब को भी अपने काटने की लिस्ट में शामिल कर लिया है.

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और एक हैं मिसेज दीवान जो वाकई मेरी काटने की लिस्ट में दूरदूर तक नहीं हैं, लगभग 35 साल की, बैंक में नौकरी और अति सुंदर. रोज लगभग सुबह 10 बजे बैंक जाने के लिए घर से निकलती हैं. उन के पति भी उसी बैंक में काम करते हैं. पर

उन के साथ जाने में कतराते हैं, क्योंकि 2-3 बार लोगों ने फब्ती कस दी थी कि वाह री जोड़ी. कौए की चोंच में अनार की कली. उन से बहुत कम उम्र के लड़के भी अपना सब काम छोड़ कर तब तक देखते रहते हैं जब तक वे उन की आंखों से ओझल नहीं हो जाती हैं.

पूरे महल्ले की कालेज जाने वाली लड़कियां और कम उम्र की सारी महिलाएं मिसेज दीवान से बेहद जलती हैं, क्योंकि इस उम्र में भी उन्हें देखने वाले, घूरने वाले और आहें भरने वाले उन सब कम उम्र की लड़कियों से कहीं ज्यादा हैं. यदि टीवी चैनल वालों की भाषा में कहें तो मिसेज दीवान की टीआरपी उन सब के मुकाबले कहीं ज्यादा है. मेरे पास से जब भी वे निकलती हैं, मुझे प्यार से ‘हैलो टीपू’ कहती हैं जिस से मैं शरमा जाता हूं. बहुत देर तक उन के सैंट की खुशबू मेरी नाक में रहती है क्योंकि हम कुत्तों की सूंघने की शक्ति इंसानों से बहुत ज्यादा होती है.

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हां, एक और इत्तफाक है. मेरे मालिक रोज किसी न किसी बहाने ठीक 10 बजे गेट पर आ कर खड़े हो जाते हैं. मुझे प्यार करने का नाटक करते हैं. एक ऐक्स्ट्रा रोटी देने के और खिलाने के बहाने वहीं खड़े रहते हैं. जब तक मिसेज दीवान घर के सामने आ नहीं जातीं. और जैसे ही वे पास आती हैं, बड़े प्यार से मालिक उन से कहते हैं, ‘गुड मौर्निंग मिसेज दीवान, आप कैसी हैं? कभी हमारे घर चाय पर आइए.’ दिखाने की वे यह कोशिश करते हैं जैसे उन का गेट पर आना, और मुझे रोटी देना और मिसेज दीवान का सामने से निकलना एक इत्तफाक है पर मैं ने अक्ल लगाई तो नोट किया कि रविवार और बैंकों की छुट्टियों में उन का मेरे प्रति प्यार गायब हो जाता था. प्यार करना तो दूर, मेरे लिए ऐक्स्ट्रा रोटी देने भी नहीं आते थे.

मेरे अनुमान की सचाई तब और सामने आई जब एक बार मालिक के बड़े लड़के ने सुबह 10 बजे के करीब, उन के बाथरूम में उन से पहले घुस कर उसे ब्लौक कर दिया, उस समय उन का गुस्सा देखने लायक था. उन का बस चलता तो अपने लड़के को मारमार कर उस की चमड़ी ही उधेड़ देते. उस दिन मेरे मालिक ने अपने बड़े लड़के के कारण मिसेज दीवान को देखना मिस कर दिया था. मिसेज दीवान के लिए मेरे दिल में भी बहुत सौफ्टकौर्नर है. यदि कभी खुला रह गया तो मैं उन को काटूंगा तो बिलकुल भी नहीं, पर चाटूंगा जरूर. यह मेरी दिली तमन्ना है. लिस्ट तो बहुत बड़ी है पर समय कम है. आज टाइम पास के लिए इतना ही बहुत है. कल  कुछ  नए  नाम जोड़ूंगा. आज के सफल टाइम पास के लिए मैं टौमी को धन्यवाद देता हूं.

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