भई जैसा नाम वैसा काम. अब फेकबुक में फेस की फोटो नहीं डाली तो क्या डाली. फिल्टर कैमरा, टेढ़ी गरदन, होंठ मिचका कर कर दो क्लिक. लेकिन बीमारी की हालत में पोज देना, तौबा, भई मार डाला हमें इस फेकबुक ने.
य ह फेसबुक, बोले तो फेकबुक, भी बड़े कमाल की बूटी है, भाईसाहब. आम आदमी तक को चैन से जीने तो देती नहीं, आराम से मरने भी नहीं देती.
अब देखिए न, 20 दिनों से घर का बिस्तर छोड़ ठीक होने के चक्कर में अस्पताल की चारपाई पर पड़ा हूं. जैसे ही ठीक होने लगता हूं, पता नहीं डाक्टर कौन सी दवाई दे देते हैं कि फिर वहीं जा पहुंचता हूं जहां 20 दिन पहले था.
अस्पताल में आ कर कुछ ठीक हुआ हो या न हुआ हो पर एक बात जरूर हुई है कि बीवी मेरे सारे काम छोड़ मेरी सेहत का हर घंटे सचित्र बुलेटिन फेकबुक पर डालना नहीं भूलती, ताकि हमारे दोस्तों, रिश्तेदारों को मेरी बीमारी के घर बैठे लेटेस्ट अपडेट्स मिलते रहें. इस चक्कर में वह भले ही मुझे समय पर दवाई देना भूल जाए, तो भूल जाए.
अभीअभी डाक्टर, पता नहीं ठीक होने का या स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहने का, इंजैक्शन दे कर गया है. हाय, किस बेदर्दी से उस ने इंजैक्शन लगाया कि मानो वह इंजैक्शन नहीं बाजू में कील ठोंक रहा हो.
इंजैक्शन के दर्द से न हंसा जा रहा है न रोया. मैं हंसी और पीड़ा के बीच जरा आराम करना चाहता हूं. पर बीवी चाहती है कि हर घंटे के तय मेरे स्वास्थ्य के अपडेट्स फेकबुकी दोस्तों, रिश्तेदारों को पूर्ववत निर्विरोध मिलते रहें, चाहे वे मेरा हालचाल पूछने अस्पताल में आएं या न आएं. वैसे भी, जब से फेकबुक ईजाद हुआ है, लोग लाइव मिलने से बेहतर फेकबुक पर ही मिलना ज्यादा बेहतर समझते हैं. अच्छा भी है, फेकबुक पर मिलने में हींग लगे न फिटकरी, रंग तो वैसे भी नहीं चढ़ता.
तो मित्रो, कराहट के बीच फेकबुक पर मेरी बीमारी के ताजा अपडेट्स का समय हो चुका है. मेरा पूरा बदन बिस्तर पर पड़े हुए कांप रहा है. बीमारी से या फेकबुक पर अपलोड करने के लिए खींचे जाने वाले फोटो को ले कर, मुझे मालूम नहीं. आंखें खुल नहीं रहीं. जबान तो खैर विवाह करने के बाद से ही बंद हो गईर् थी. समय के बड़े बलवान होते हैं वे जो विवाह के बाद कम से कम अपनी जबान को बचाए रखते हैं.
बीवी हाथ में मेरा फोटो खींचने को मोबाइल ले चुकी है. इस वक्त वह फिल्मसिटी स्टूडियो के किसी फोटोग्राफर से कम नहीं लग रही. लगता है, अब वह मेरा एक बार फिर लाइव करने लायक फोटो ले कर ही दम लेगी. वैसे मुझे नहीं याद कि अब तक कोई ऐसा लमहा गया हो जिस में उस ने मेरा दम न लिया हो.
यह कैसे लेटे हो मरे हुए की तरह. यों लेटो न. घर की चारपाई पर तो आज तक ठीक एंगल से लेटना नहीं आया, पर सरकारी चारपाई पर भी ठीक ढंग से नहीं लेट रहे हो. इस ढंग से ली तुम्हारी फोटो जो फेकबुक पर चली गई न, तो वे सारे फ्रैंड हमें ही अनफ्रैंड कर देंगे जिन्हें तुम अनफ्रैंड करने को बिदकते रहते हो.
ऐसे में बीवी के ये जुमले. इसे मेरे दर्द की फिक्र नहीं, फेकबुक के फ्रैंडों के अनफ्रैंड होने का खतरा अधिक है. हो भी क्यों? असल जिंदगी में तो सच पूछो तो हम अपने भी दोस्त नहीं.
मैं जैसेतैसे अपने चेहरे पर मौत की उड़ती हवाइयों के बीच जीने की ललक लाने की बेहद कोशिश में हूं कि, दोस्तों तक और तो मेरा कुछ भी आज तक सही नहीं गया, कम से कम बीमारी की एक फोटो तो सही चली जाए, ताकि वे उसे देख कर वाहवाह कर उठें कि वाह, क्या कमाल का बंदा है. चारपाई पर मरते हुए चेहरे पर ऐसी लालिमा.
‘‘अब ठीक है?’’ कह कर मैं ने अपनी तरफ से हजार पीड़ाओं के बाद भी अपने चेहरे पर हंसी लाने की पूरी कोशिश की.
‘‘नहीं, ऐसे नहीं. लगता ही नहीं कि तुम बीमार होने के बाद भी प्रसन्न हो.’’
‘‘बीमार होने के बाद भी आज तक प्रसन्न कौन रहा? आजकल तो लोग प्रसन्न होने के बाद भी प्रसन्न नहीं दिखते. और तुम हो कि… आखिर बीमार की हंसती हुई फोटो फेकबुक पर डाल तुम साबित क्या करना चाहती हो? यहां लोगों को आज किसी की सच्ची हंसती हुई सूरत भी पसंद नहीं, तो ऐसे में… मैं तो कहता हूं कि दोस्तों की बीमारी में संवेदनाएं अर्जित करना चाहती हो तो मेरी तरह मरियल सी फोटो ही फेसबुक पर डालो. हो सकता है कुछ दोस्तों का दिल पसीज जाए,’’ मैं ने उसे व्यावहारिक दुनिया के सचों से अवगत करवाना चाहा पर वह नहीं मानी, तो नहीं मानी. ये फेकबुकी दुनिया भी कितनी शरीफ फेकबुकी दुनिया है, कमबख्त.
‘‘देखो, अपने को कतई दार्शनिक मत समझो. मैं जानती हूं कि तुम में कितनी अक्ल है,’’ बीवी ने मुझे वास्तविकता से परे करते कहा, ‘‘जैसा मैं कहती हूं, बस, वैसे करो. लोगों को आज किसी की बीमारीसीमारी से कोई सरोकार नहीं. उन के पास अपनी ही बीमारियों का रोना पहले ही क्या कम है जो अब दोस्तों के भी बीमार चेहरे देखें.’’
मुझे पता था कि यह अब सुंदर सी फोटो को ले कर चारपाई पर पड़े का भी दम निकाल कर रहेगी. सो, अपने को पूरी तरह से बीवी के फेकबुक के लिए उस के हवाले कर दिया. जब मैं ने उस के आगे लंगर डाल दिए तो वह मुसकराते हुए फेकबुक पर डालने वाली फोटो को तैयार करती मेरे दर्द की परवा किए बिना चारपाई सजाने लगी, उस से अधिक खुद भी सजने लगी. मुझे बीमारी के हाल में बीमार होने के बाद भी चेहरे पर कैसे दर्दभरे मुसकराते इंप्रैशन लाने चाहिए, खुद कर के बताने लगी.
आखिर पूरे 30 मिनट की कड़ी रिहर्सल के बाद वह जैसा मेरा चेहरा फेकबुक के लिए चाहती थी, वैसा मैं बनाने में समर्थ हो गया. तो मत पूछो, उस ने कितनी चैन की सांस लेते कहा, ‘‘हां, बस, ऐसे ही. अब जरा भी मत हिलना, वरना मेरी आधे घंटे की मेहनत पर पानी फिर जाएगा.’’ मैं ही जानता हूं कि तब मैं चारपाई पर पड़ा अपनी बीसियों पीड़ाओं की सांसें रोके कैसे पड़ा रहा था.
सैल्फी में उस का चेहरा, तोबा, मुसकराता देखा तो मैं पलभर को अपना रोता चेहरा भूल गया. मत पूछो, उस ने अब के भी कितनी लगन से मुझ मरते की अपने साथ सैल्फी खींची और फेकबुक पर अपलोड करने के बाद हिदायत देती बोली, ‘‘अब पूरा एक घंटे तक जैसे मन करे, बिस्तर पर पड़े रहो. मर जाऊं जो तुम्हें करवट बदलने को भी कहूं. अब के तो तुम ने फेकबुक पर फोटो के लिए अपनी तो अपनी, मेरी भी जान निकाल कर रख दी, जानू. प्लीज, जब तक अस्पताल में हो, आगे से ऐसा मत करना. मुझे बहुत डर लगता है. तुम्हारी कसम, डियर. मैं इस हालत में तो तुम्हें कतई तकलीफ न देती जो मुआ ये फेकबुक न होता. मुझे माफ करना बेबी,’’ कह वह मेरे पास से उठी और सामने के स्टूल पर बैठ लाइक्स गिनने में मग्न हो गई.
हे, मेरे मित्रो, जब तक मैं ठीक नहीं हो जाता, यह मनाओ कि हर घंटा 60 मिनट के बदले 300 मिनट का हो जाए ताकि मैं कुछ देर अस्पताल में ही सही, चैन की सांस तो ले सकूं.
हे फेकबुक प्रेमियो, रोजरोज के मरने से बेहतर मैं एकबार ही मरना समझता हूं. इसलिए असली के मरने से मैं नहीं डरता. डरता हूं तो, बस, मरते हुए भी फेकबुक के लिए फोटो सैशन से. कहीं मरतेमरते भी बीवी के मनमाफिक चेहरे को लाइक्सजनिक न बना पाया और दोस्तों के लाइक्स बीवी की उम्मीदों के हिसाब से न मिले, तो उस की तो गई न सारी जिंदगी पानी में.