केंद्र सरकार के 2020 के बजट में आम लोगों के लिए ऐसा कुछ नहीं है जिस की चर्चा की जा सके. बजट भाषण लंबा जरूर था पर जनता की लंबी जरूरतों के सामने इस में जरा भी कहीं ऐसा नहीं लगा कि सरकार को देश को घेरती महंगाई, बेरोजगारी, मंदी और हताश जनता की चिंता है. बजट में इस के दर्शन नहीं हुए.
बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है जो देश की गिरती अर्थव्यवस्था को रोक सके. 1991 से 1995 तक जरूर ऐसा बहुतकुछ हुआ था जिस से देश ने खूब फायदा उठाया था. दरअसल, तब पिछली गलतियों को ठीक करने की कोशिश की गई थी, जो सही साबित हुई थी. इस बार जो गलतियां हुई हैं वे नोटबंदी और जीएसटी की हैं. ये ऐसी गलतियां हैं जिन के बारे में ज्यादाकुछ करना संभव नहीं है.
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5 फीसदी टैक्स इधर कम देना, 5 फीसदी उधर बढ़ा देने के नाम पर जो हल्ला किया जा रहा है, उस के बारे में कम से कम शेयर मार्केट ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में 987 पौइंट गिर कर साफ कर दिया. आम व्यवसायियों को भी यह बजट नहीं सुहाता है, आम जनता की तो बात छोड़ ही दें.
यह अच्छी बात है कि हाल के वर्षों में बजटों में न लंबेचौड़े टैक्स लग रहे हैं और न ही हट रहे हैं. जहां तक बजट में सरकारी खर्च करने के प्रस्तावों की बात है, तो वह दशकों से आम जनता तो दूर, आम नेताओं के भी पल्ले नहीं पड़ते. सरकारी खर्चों की सिफारिश अफसर लोग करते रहते हैं और फिर वे अपने मन से लागू करते रहते हैं. नेताओं का रोल बहुत कम हो गया है. मंत्रियों का रोल भी कम ही रह गया होगा. बस, हर मंत्रालय इस बात पर चिंतित रहता होगा कि उस को मिलने वाला पैसा कम न हो जाए.
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यह मान लिया है कि देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है और हालफिलहाल यह ठीक नहीं होने वाली. कहने को सरकार कहती रहे कि यह स्थिति अस्थायी है, वैश्विक कारणों से है और अभी इस बारे में पक्का कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन, सचाई यह है कि सरकार के वित्त मंत्री के पास इसे सुधारने का कोई तरीका नहीं है.