मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, उम्मीद की जा रही है कि फैसला यही आएगा कि कमलनाथ सरकार सदन में बहुमत साबित करे .  उधर सरकार की कोशिश यही होगी कि जितना हो सके विवाद को टरकाया जाए . दिग्गज कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया होली के दिन कांग्रेस छोडकर भाजपा में गए तो उनके साथ 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया था जिससे मध्य प्रदेश सरकार अल्पमत में आ गई .  यह और बात है कि वह आसानी से हार मानने बाली नहीं .

पिक्चर भी अब हालांकि साफ है लेकिन 22 विधायकों के बाबत कांग्रेस का आरोप यह है कि उन्हें बेंगलुरु में बंधक बनाकर रखा गया है इसलिए उनकी रिहाई तक फ्लोर टेस्ट के कोई माने नहीं . भाजपा कह रही है कि इन विधायकों की दिख रही गुमशुदगी से उसका कोई लेना देना नहीं वे तो अपनी मर्जी से वहाँ डेरा डाले पड़े हैं . हाल फिलहाल कमलनाथ फ्लोर टेस्ट से फ़ौरीतौर पर मुक्ति पा गए हैं पर यह स्थायी नहीं है . राज्यपाल लालजी टंडन खफा हैं कि सरकार ने फ्लोर टेस्ट का उनका निर्देश नहीं माना और सरकार कह रही है कि विधानसभा अध्यक्ष जो कहेंगे उसे ही ब्रह्मा का लेख माना जाएगा .

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यानि विवाद और फसाद अब संवैधानिक और कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया है जिनकी कई धाराएँ उप धाराएं और नियम हैं जिनमे आपस में विकट का विरोधाभास है .

फायदे में भाजपा

राजनीति के इस दिलचस्प लेकिन घटिया खेल में अब हर कोई नफा नुकसान का आकलन करने लगा है . जो कुछ भी गया है वह कांग्रेस का गया है और जो भी मिला है वह भाजपा को मिला है इसलिए वह फ़ायदे में है . भाजपा को बैठे बिठाये एक कद्दाबर नेता मिल गया है वह भी कोई ऐरा गैरा नहीं बल्कि ग्वालियर राजघराने का श्रीमंत है .

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