गुजरे रविवार यानी 15 मार्च 2020 को उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने कहा कि राज्य में लापता 700 सरकारी डॉक्टर जल्द ही बर्खास्त किए जाएंगे. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे 700 चिकित्सक चिन्हित किए गए हैं,जो सरकारी अस्पतालों में नियुक्ति लेने के बाद या तो कहीं दूसरी जगह चले गए हैं या बगैर बताए उच्च शिक्षा लेनी शुरू कर दी है अथवा चुपचाप अपना निजी नर्सिंग होम चला रहे हैं.

सरकार या प्रशासन को इनके बारे में कुछ भी पता नहीं है. उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक़ ऐसे डॉक्टरों की बर्खास्तगी की प्रक्रिया शुरू हो गई है और एक डेढ़ महीने में इन सभी की सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी.

ये कहानी न तो आज की है और न ही अकेले उत्तर प्रदेश की है. देश के सभी राज्यों में सरकारी डॉक्टरों की यही कहानी है. अब उत्तराखंड को ही लें. उत्तराखंड में पिछले पांच सालों से 48 सरकारी डॉक्टर ड्यूटी से गायब हैं. जिन्हें पिछले साल बर्खास्त किये जाने की बात सरकार द्वारा कही गयी थी. जिस समय इन 48 को बर्खास्त किये जाने की खबर आयी थी, उसी समय यह बात भी पता चली थी कि उत्तराखंड में इनके अलावा 150 अन्य डॉक्टर हैं, जो पिछले 6 महीनों से गायब हैं. यह स्थिति तब थी जबकि प्रदेश की कुल 2109 स्वास्थ्य यूनिटों में मौजूद डॉक्टरों के 2715 पदों में से पहले ही केवल 1104 डॉक्टर थे.

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लेकिन किसी एक या दो प्रदेशों को क्यों रोएं जब सबकी यही कहानी हो? देश में कोई भी ऐसा प्रदेश या महानगर नहीं है, जहां रजिस्टरों के हिसाब से ड्यूटी में मौजूद कुछ डॉ. लापता न हों. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पास वर्ष 2017 तक कुल 10.41 लाख डॉक्टर पंजीकृत थे. इनमें से सरकारी अस्पतालों में 1.2 लाख डॉक्टर थे. शेष डॉक्टर निजी अस्पतालों में कार्यरत थे अथवा अपनी निजी प्रैक्टिस कर रहे थे.लेकिन कागजों में देशभरके सरकारी अस्पतालों में जितने डॉक्टर थे,हकीकत में इससे करीब 25% कम थे.न जाने डॉक्टर कहां गायब हो जाते हैं.लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनके गुमशुदा होने की कहीं कोई रिपोर्ट भी नहीं लिखाई जाती. लगता है इनके घर वालों को भी इनकी चिंता नहीं होती.

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