प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश का खौफ जनता पर कुछ इस कदर छाया है कि ‘जनता कर्फ्यू‘ की घोषणा के बाद बाजार में खरीददारों की ऐसी भीड बढ गई जैसे नोट बंदी की घोषणा के बाद बैंक के एटीएम के बाहर रात में ही लंबी लबी लाइने लग गई थी. इस भीड पर करोना का नहीं लौक डाउन का खौफ सिर चढ कर बोल रहा था.
जैसे ही इस बात का पता लोगों को चला कि 19 मार्च की रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देगे अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. इस बात की अफवाह फैल गई कि देश में अचानक ‘लौक डाउन‘ होने वाला है. इस बात से बाजारों में जमाखोरी शुरू होने लगी. प्रधानमंत्री के संदेश के पहले प्रसार भारती के सीईओ को यह मैसेज जारी करना पडा कि किसी तरह के लौक डाउन की घोषणा नही होनी है. इस खबर के बाद बाजार में खरीददारी पर कुछ रोक लगी पर रात 8 बजे प्रधानमंत्री के द्वारा 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू‘ की घोषणा होते ही रात में ही अनाज और सब्जी की मंडियों में खरीददारों की वैसे ही लाइनें लग गई जैसे ‘नोटबंदी’ के बाद बैंक के एटीएम के बाहर लग गई थी.
प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश और रात 8 बजे के समय का खौफ अपने में किसी से कम नहीं है. देश के लोगों को लगा कि जिस तरह से नोटबंदी और दूसरे मामले अचानक सामने आ गये वैसे ही अचानक कुछ समय के लिये देश में ‘लौक डाउन‘ का फैसला लिया जा सकता है. ऐसे में जरूरत के सामानों की ज्यादा खरीददारी होने लगी. यह देखते ही देखते दुकानदारों ने बाजार से सामान गायब कर दिया और बाद भी वही सामान मंहगे दामों में बिकने लगा. प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि देश की जरूरी सेवायें ठप्प नहीं की जायेगी. इसके बाद भी बाजार के जमाखोरो ने अपना काम जारी रखा.
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लखनऊ की सब्जी मंडी में जो आलू 19 मार्च की सुबह फुटकर रूप सें 20 रूपये प्रतिकिलो बिक रहा था रात होते होते उसकी कीमत 50 रूपये प्रति किलो हो गई. ग्रोसरी आइटम की औन लाइन सेलिंग करने वाले ‘एप’ भी इसमें कोई मदद करने की हालत में नहीं रह गये. वहां औडर इतनी अधिक संख्या में हो गये कि एक सप्ताह के बाद की डिलीवरी की बात कही जाने लगी. लोगों ने अपनी जरूरत से ज्यादा का सामान खरीदना शुरू की दिया. लोगों की इस प्रवृत्ति हो समझ कर प्रधानमंत्री ने अपील भी की कि जरूरत के अनुसार खरीददारी करे. पर प्रधानमंत्री की यह अपील किसी ने नहीं सुनी.
असल में हमारा समाज धर्म पर चलने की बात करता है. पर समाज में ना कोई धर्म है और ना कोई सिद्वांत जो नेता, कारोबारी और प्रधानमंत्री के भक्त थे उन्ही मे से बडी तादाद में लोग जमाखोरी में लग गये. इस जमाखोरी से जहां एक ओर लोगों का मुनाफा बढ गया वही दूसरी तरफ गरीब आदमी के लिये दोहरी मुसीबत आ गई एक तरफ उसके पास काम नहीं दूसरी तरफ मंहगाई बहुत आगे बढ गई. करोना से बचाव में प्रयोग होने वाले मास्क और सेनेटाइजर नकली बनने लगे. इनकी कीमत बढ गई और बाजार से गायब हो गये. करोना के खिलाफ जिस समाज को एकजुट होकर लडना था वह मुनाफा और जमाखोरी में जुट गया है.