Download App

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1

लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

उस पर दोनों तरफ ‘रास्ता बंद’ का चिह्न लगा कर कामगार मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए थे. पीली टोपी और नारंगी रंग के बिना आस्तीन वाले पतले जैकेट पहने कामगार फुरती से आनेजाने वाले ट्रैफिक को हाथों से इशारा कर दिशा दे रहे थे. हालांकि, अस्पताल के अंदर आनेजाने वाले रास्ते पर कोई पाबंदी नहीं थी.  गरिमा जब अस्पताल के पास के बसस्टौप पर बस से उतरी, तो काफी उत्साहित थी. उस का काम अस्पताल के बीमार मरीजों को अच्छा करना नहीं था, यह काम वहां के डाक्टरों और उन की नर्सों का था. गरिमा ने अस्पताल की लौबी में जाने वाले चबूतरे में प्रवेश किया तो तकरीबन 60 बरस के एक बूढ़े चीनी व्यक्ति को अपने सामने से गुजरते हुए पाया. बूढ़े के हाथ में कांच का एक थोड़ा सा बड़ा डब्बा था, जिस में करीब 10-12 सफेद चूहे तेजी से यहांवहां घूम रहे थे. उन चूहों की बेचैनी शायद इस बात का हश्र थी कि उन को अंदेशा था कि उन के साथ क्या होने वाला है.अस्पताल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो कर, अपनी कुर्बानी दे कर, मानव के स्वास्थ्य को और उस की गुणवत्ता को बढ़ाने का जिम्मा, जैसे प्रयोगकर्ताओं ने सिर्फ उन की ही प्रजाति पर डाल दिया हो. चबूतरे से निकल कर, एक ढलान, लौबी के अंदर न जाती हुई, उस ओर जा रही थी जहां बाहर से आने वाला सामान अस्पताल के अंदर जाता था. ढलान की शुरुआत पर लिखा हुआ था.

‘यहां सिर्फ सामान पहुंचाने वाली गाडि़यां और ट्रक’ और इस के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर अस्पताल के ‘प्लस’ चिह्न के साथ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘संक्रामक रोग विभाग’ और उस के नीचे छोटे अक्षरों में ‘वुहान शहरी अस्पताल.’ बूढ़ा आदमी चूहों का डब्बा ले कर उस ढलान से विभाग के अंदर प्रवेश कर गया. गरिमा ने लौबी में प्रवेश किया. लौबी में सामने ही एक 28-30 बरस का चीनी युवक खड़ा था, जिस ने शायद गरिमा को देखते ही पहचान लिया और गरिमा से पूछा, ‘‘गरिमा?’’गरिमा ने चौंक कर उसे देखा, फिर इंग्लिश में कहा, ‘‘हां.’’चीनी युवक ने कहा, ‘‘मेरा नाम मिन झोउ है.’’गरिमा ने पूछा, ‘‘डाक्टर वान लीजुंग से मुझे मुलाकात करनी थी. वे नहीं आईं?’’मिन ने सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं वे कहां हैं. खैर, मुझे मालूम है आज क्या करना है.’’ मिन ने सफेद कोट पहन रखा था, जो दर्शाता था कि वह भी डाक्टर है. गरिमा ने सोचा शायद मिन भी डा. वान लीजुंग के साथ काम करता हो. डा. लीजुंग खुद भी कम उम्र की थीं. उन की भी उम्र 32-35 से ऊपर की नहीं होगी. मिन ने कहा, ‘‘इस अस्पताल के अंदर कहीं हैं वे.’’गरिमा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘एक डाक्टर तो अस्पताल में गायब नहीं हो सकता.’’मिन भी मुसकरा दिया. दोनों लौबी की ओर बढ़ चले. डा. लीजुंग ने अभी भी सफेद कोट पहना हुआ था. उस का चेहरा गंभीर था. माथा तना हुआ था. चेहरे पर पसीने की बूंदें थीं. वह एक ऐसे कमरे में थी जो छोटा और तंग तो था लेकिन जिस में एक बिस्तर डला हुआ था. कोने में लोहे की टेबल थी जिस पर पानी का जार रखा हुआ था.

ऊपर सफेद ट्यूबलाइट जल रही थी. कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद था, लेकिन दरवाजे पर छोटी खिड़की जितना कांच लगा होने से बाहर दिखता था और बाहर से अंदर दिखता था. बाकी दरवाजा मजबूत प्लाईवुड का बना था. वान की आंखें लाल होती जा रही थीं. बाहर से एक तकरीबन 40 वर्ष के डाक्टर ने दरवाजे के कांच तक आ कर वान को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तुम को मालूम है कि ये सब एहतियात बरतना क्यों जरूरी है?’’वान ने बिना उस की तरफ देखे धीरे से हामी भरी.दरवाजे के बाहर खड़े डा. के सफेद कोट पर बाईं ओर छाती के ऊपर एक आयाताकार बिल्ला लगा था जिस पर लिखा था ‘डा. चाओ मू.’डा. मू ने गंभीरता से वान से प्रश्न किया, ‘‘मुझे थोड़ा समझाओ कि क्या कारण हो सकता है?’’वान ने आंखें मीचीं. जिस कुरसी पर वह बैठी थी, उस पर थोड़ा घूम कर कहा, ‘‘मैं ने जितने भी राउंड लगाए हैं अस्पताल के पिछले कई दिनों में, उन में 4 दिन पहले का सुबह वाला राउंड मुझे सब से ज्यादा संदिग्ध लगता है. उस दिन के मेरे सब से पहले वाले पेशेंट को एक्सरेरूम ले जाया गया था, इसलिए उस से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी उस सुबह. दूसरा पेशेंट सोया पड़ा था, उस से भी मेरा कोई संपर्क नहीं बना. तीसरा पेशेंट …,’’ वान ने रुक कर गहरी आंखों से डा. मू को देखा, ‘‘तीसरा पेशेंट थोड़ा मोटा सा था. उस के हाथ में सामान का एक थैला था. उस को बुखार लग रहा था और सर्दीजुकाम था. मैं ने बात करने के लिए उस से पूछा था कि थैले में क्या ले जा रहा है. उस ने बताया था कि हमेशा की तरह हुआनान यानी सीफूड (समुद्री खाद्य) मार्केट से खरीदारी कर के अपने घर जा रहा था.’’ वान ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस के बाएं कंधे को अपने दाएं हाथ से पकड़ कर स्टेथोस्कोप को पहले उस के दाईं ओर रखा, उस ने गहरी सांस खींची. फिर मैं ने स्टेथोस्कोप बाईं ओर रखा. मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है जो ज्यादा जोखिम वाला संपर्क हो.

किसी भी द्रव्य पदार्थ से संपर्क नहीं बना.’’मू बोला, ‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है?’’वान ने कहा, ‘‘ऐसा लगता तो है.’’ वान का इतना कहना ही था कि उसे जोरों की छींक आ गई. उस ने तुरंत अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढकने की कोशिश की तो उसे 3-4 बार जोर से खांसी आ गई. हड़बड़ाहट में वह कुरसी से उठ कर दरवाजे के कांच तक आ पहुंची. उस ने एक हाथ से दरवाजे को थाम कर खांसी रोकने का प्रयास किया. उस ने कांच के दूसरी ओर डा. मू की तरफ पहले तो दयनीय दृष्टि से देखा, फिर अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘उस से कहा था कि थोड़ी देर और रुक जाए वह, ताकि मैं उस का और परीक्षण कर सकूं. लेकिन वह बोला कि उस को जल्दी घर जाना है.‘‘रजिस्ट्रेशन करते समय उस ने अपना नामपता लिखा होगा. मेरी कौपी में उस के परीक्षण का ब्योरा लिखा है. मेरी कौपी…’’ वान ने थोड़ा जोर दे कर फिर सोचा और कहा, ‘‘मैं ने अपनी कौपी पर उस को अस्पताल से बरखास्त किए जाने के लिए दस्तखत करने के लिए अपना पैन दिया. उस ने अपना समुद्री खाद्य वाला थैला नीचे रखा, पैन ले कर कौपी पर दस्तखत किए. मैं ने कौपी और पैन दोनों वापस ले लिए.’’

#coronavirus: लॉकडाउन के कारण प्रजनन स्वास्थ्य सेवाए हो रही है बाधित

बीते पखवाड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के सभी देशों से कोरोना संकट के बीच गर्भधारण और गर्भपात को अनिवार्य स्वास्थ्य सेवा घोषित करने का अनुरोध किया था. संगठन ने सभी सरकारों से कहा था कि वे जिन भी सेवाओं को अनिवार्य मानती हैं, उन्हें चिह्नित करके वरीयता दें. इनमें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए. विश्व के कई देशों ने इस पर अमल भी किया. कई जगह रूढ़िवादी सोच ने इसे प्रभावित किया है. आइये जानते है इस संकट के समय प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या विशेष प्रभाव पड़ रहा है ..

* गर्भधारण करने का फैसला खुद महिला तय नहीं कर सकती :- आज भी हमारे देश समेत कई देशों में महिला यह तय नहीं कर सकती है कि उसे कब और किस उम्र पर गर्भधारण करना है. फैसला न ले पाना , का असर उनके सेहत पर पड़ता है , असमय वह कई बीमारियों का शिकार होती है.  लॉकडाउन के समय गर्भधारण रोने के उपायों भी सभी महिलाओं के पहुंच से दूर हुआ है . इस समय  कंडोम और गर्भनिरोधक पर सप्लाई नहीं हो पा रहा है, इसका असर महिलाओं पर पड़ रहा है. और कई महिलाएं अनचाहे गर्भ की परेशानी झेल रही हैं.

 ये भी पढ़ें-अब भगवान को क्यों चाहिए सरकारी सम्मान?

* नवयुवतियों का असमय मौत होना चिंता जनक है :- यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया भर में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याएं होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट के अनुसार मातृत्व मृत्यु के 4.7% से 13.2% मामलों का कारण असुरक्षित गर्भपात है. विश्व में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 211 है.

* 95 लाख महिलाओं को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं  :- यूरोपीय देशों के लगभग 100 गैर-सरकारी संगठनों ने संयुक्त बयान में कहा है कि लॉक-डाउन के दौरान उन महिलाओं की मदद की जानी चाहिए जो प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करना चाहती हैं. वही लंदन की गैर-सरकारी संगठन ने चेतावनी दी थी कि कोविड-19 के कारण इस साल लगभग 95 लाख महिलाओं और लड़कियों को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाएंगी. यह संगठन दुनिया के 37 देशों में गर्भनिरोध और सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं मुहैया कराता है. संगठन का कहना है कि यात्रा पर प्रतिबंधों और लॉक-डाउन के चलते महिलाओं पर बुरा असर होगा क्योंकि उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने में परेशानी हो रही है . वही एक अन्य अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने बताया कि 64 देशों में उसके 5,600 क्लिनिक बंद कर दिए गए हैं. गर्भनिरोध के साधन और एचआईवी की दवाओं की भी कमी आई है .

 * निर्माण और सप्लाई बंद :- विश्व के कई इलाकों में कंडोम और दूसरे गर्भनिरोधक का निर्माण और सप्लाई बंद पड़ा है . इसके उत्पाद की अधिकतर कारखाने एशिया के कई देशों में है. बहुत सी कारखाने चीनी में है , जो अभी तक बंद हैं. तो अन्य देशों के कारखाने भी खुले नहीं है, बहुत से कारखाना मजदूरों को घर पर रहकर काम करने को या कम घंटे काम करने को कहा गया है. कही निर्माण हो ही नहीं रहा है तो कही इसके निर्माण क्षमता में भरी गिरावट दर्ज किया गया है. यातायात के साधन को बंद होने के कारण यह अपने तय विक्रेता के पास भी समय रहते नहीं पहुंच पा रहा है . अब सप्लाई बंद है तो  लाखों महिलाओं को प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी सामग्री मिलनी बंद हो गई हैं. इस कारण अपने पति और पुरुष मित्रों के साथ घरों तक सीमित हुई औरतों को अवांछित गर्भधारण का सामना करना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें-#coronavirus: लॉकडाउन में बढ़ी ईएमआई के दिक्कते

  * एक जिला ऐसा भी है जहाँ  घर घर बांटी जा रही है गर्भनिरोधक गोलियों :-   उत्तरप्रदेश के बलिया जिला में एसीएमओ डॉ वीरेंद्र कुमार के निगरानी में देश में जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के लिए परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं. इसी उपाय में कंडोम व माला डी गोलियां हैं. अधिकारी का कहना है कि परिवार नियोजन किट बांटने का यह अभियान पहले से चल रहा है. लॉकडाउन में लोग घरों में हैं. ऐसे में जनसंख्या न बढ़े इसे ध्यान में रखते हुए कंडोम बांटने वाले अभियान को निरंतर जारी रखा गया है. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

लॉकडाउन लगा तो टीकाकरण जैसे कार्यक्रम भी बंद हो गए. विदेश और देश के दूसरे हिस्सों से कौन आया, इसकी छानबीन के लिए घर-घर जा रहीं आशा कार्यकर्ता गर्भनिरोधक भी बांट रही हैं.  ये गोलियां उन्ही जोड़ों को दी जा रही हैं, जिनके छह माह या एक साल से ऊपर के बच्चे हैं और वे गर्भधारण के इच्छुक नहीं हैं. जबकि लॉकडाउन में बाहर निकलना मुश्किल है. वे परिवार नियोजन के कोई उपाय नहीं कर सकते.   इसके साथ ही आशा कार्यकर्ता व एएनएम घर-घर जाकर कोरोना से लड़ने के साथ-साथ परिवार नियोजन के फायदे भी बता रही हैं.

योगी कहे जय श्रीराम प्रियंका कहे पहले काम

जिस राज्य का मुखिया हिंदुत्व की दहाड़ खुलेआम करता हो और राज्य की सियासत उग्र हिंदू राष्ट्र के फेर में धंसती जा रही हो वहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आम जनता का ध्यान मूलभूत मुद्दों की तरफ खींच रही हैं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ाने व पार्टी की सांगठनिक मजबूती के लिए किसानों, नौजवानों, बेरोजगारों के मूल सवालों पर फोकस करना शुरू किया है. उन्होंने यह तय किया है कि योगी सरकार के हिंदुत्व नैरेटिव से इतर आम आदमी के असल सवालों पर बात कर के योगी सरकार

की हिंसक, विभाजनकारी राजनीतिक असलियत की तुलना में आम जनता के सवालों पर प्रदेश की राजनीति को खड़ा किया जाए. इस के तहत पार्टी प्रदेश के बेरोजगारों, नौजवानों, छोटे दुकानदारों, रेहड़ीपटरी वालों, किसानों से सीधे संवाद कायम कर के योगी आदित्यनाथ सरकार की जनविरोधी नीतियों का परदाफाश करेगी और सरकार को सड़क से सदन तक घेरेगी.

ये पढ़ें#lockdown: संकट में सुपरपावर 

हालांकि, योगी आदित्यनाथ की सरकार भले ही बेरोजगारों, किसानों और नौजवानों की समस्याओं पर संवेदनशील होने का दावा करती हो लेकिन विश्लेषक यह मानते हैं कि यह सरकार केवल अपने मूल एजेंडे यानी हिंदुत्व के प्रसार और इसे स्थापित करने पर ही केंद्रित है. आम जनता की समस्याओं से इस का सरोकार नहीं है.

गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को गन्ना मूल्य का समयबद्ध और उचित भुगतान मिलना एक बड़ी समस्या है. चीनी मिलों पर किसानों की बकाया रकम 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है. वहीं, पूर्वांचल में रोजीरोटी के लिए पलायन के साथ किसानों को धान और गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना एक  बड़ी चुनौती है. रोजगार गायब है. योगी सरकार के लाख दावों के बावजूद सरकार किसानों को गन्ने का समयबद्ध न्यूनतम मूल्य दिलवा पाने में जहां असफल है वहीं पूर्वांचल में धान के सीजन में किसानों ने बिचौलियों को बड़ी मात्रा में अपनी तैयार फसलें औनेपौने दामों में बेची हैं.

दिहाड़ी मजदूरों की दिहाड़ी 

पिछले 3 वर्षों से एक पैसा नहीं बढ़ी है और महंगाई 7 साल के अपने उच्चतम स्तर पर है. गांव में रोजगार का गंभीर संकट है और ग्रामीण भारत की क्रयशक्ति आधी हो चुकी है. ऐसे दौर में जब प्रदेश में किसान, मजदूर और खेती अपने सब से बुरे दौर में हैं तब प्रियंका गांधी का यह प्रयास क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कोई सांगठनिक राजनीतिक ताकत दे पाएगा? और जब प्रदेश का विपक्ष भी हिंदू सांप्रदायिकता को संतुष्ट करने की कोशिश में हो, तब प्रियंका गांधी का यह कदम कांग्रेस की कितनी मदद करेगा?

ये भी पढ़ें-#lockdown: मोदीजी यह विधायक आपकी नहीं सुनता

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के सामाजिक कार्यकर्ता शम्स तबरेज से जब इस संदर्भ में पूछा गया, तो उन का जवाब था. कि प्रियंका गांधी ने आम आदमी व उस के सवालों पर बात करने और सरकार को घेरने का जो निर्णय लिया है वह समयानुकूलित है. जब पूरे विपक्ष के लिए ये सवाल बेगानी हों तब इन सवालों को ले कर जनता से संवाद करना बड़ी बात है. उन के मुताबिक, सरकार के दावों के इतर उन के क्षेत्र के किसानों ने अपने धान को औनेपौने दामों में बिचैलियों को बेचा है. छोटे और मझोले किसान बड़ी संख्या में अपनी धान की फसल बिचौलियों को 1,200 से 1,400 रुपए प्रति क्ंिवटल में बेच दे रहे हैं. इस की मुख्य वजह यह है कि सरकारी मंडियों में छोटे किसानों की कोई सुध नहीं लेता.

कई बार किसान इन्हीं बिचौलियों से फसल तैयार होने के पहले ही एडवांस पैसे इस वादे पर ले जाते हैं कि अपनी तैयार फसल वे इन्हीं बिचौलियों को देंगे और इस तरह से कर्ज में फंसे ये किसान बड़े नुकसान पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं. जब नौकरी नहीं है, किसान कर्जदार हैं, गन्ना किसान अपनी फसल का दाम नहीं पा रहा है, दिहाड़ी मजदूर संकट में हैं, तब कांग्रेस के लिए सही यही है कि वह अवाम के जमीनी सवालों पर योगी सरकार को घेरे.

#WhyWeLoveTheVenue: जानें शानदार Interior की खासियत

हुंडई वेन्यू इन दिनों सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कार कही जा रही है. इसके फंक्शन और डिजाइन की मार्केट में जमकर तारीफ हो रही है. इस कार में बैठकर आप बेहद ही आराम से लंबा सफर तय कर सकते हैं. आइए जानते है इस कार की खासियत के बारे में..

इस कार के अंदर मौजूद सभी बटन टच करने से खुलते हैं और बंद होते हैं. अगर आप लंबे सफर पर जा रहे हैं और आपके गाड़ी के शीशे गंदे हो रहे हैं, जिससे ड्राइविंग में दिक्कत आ रही है तो ऐसे में वहां खुद ही पानी की फुहारे आ जाएंगी और फिर आपका शीशा क्लीन हो जाएगा.

r

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 टिप्स: अगर आप सास बनने जा रही हैं तो पढ़ें ये खबर

गाड़ी के अंदर का डैशबोर्ड 8 इंच का है. साथ ही इसके अंदर टचस्क्रीन स्मैक ui भी मौजूद है. जिससे आपको ज्यादा हाथ पैर मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

आगे की दोनों सीटे अच्छी और सपोर्टिव है. अगर बात करें ड्राइविंग सीट की तो आप बेहद ही कम्फर्टेबल होकर ड्राइव कर सकते हैं. सामने से सड़क का नीचे वाला हिस्सा आराम से नजर आएगा. जिससे आप एक्सिडेंट होने के खतरे से भी बच सकते हैं.

ये भी पढ़ें-19 दिन 19 टिप्स: फोरप्ले जितना ही जरूरी है आफ्टरप्ले  

गाड़ी की स्टेरिंग स्मूथ है जिससे आपको गाड़ी के अंदर थकावट महसूस नहीं होगी. लंबा इंसान भी इस गाड़ी के अंदर आराम महसूस करेगा.

मध्यप्रदेश-कोरोना से जंग

आध्यात्म , एकात्म और आयुर्वेद का पाखंड

कोरोना वायरस को किसी धार्मिक पाखंड , आयुर्वेद , ज्योतिष , झाडफूंक , तंत्र मंत्र या टोने टोटकों से काबू नहीं किया जा सकता यह बात किसी सबूत की मोहताज नहीं रह गई है लेकिन फिर भी इस बात को अगर बार बार दोहराना पड़ता है तो इसकी बड़ी वजह यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा के शीर्ष और जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता एक षड्यंत्र और पूर्वाग्रह के चलते इन्हीं पाखंडों को थोपने की कोशिश करते कोरोना के कहर को और बढ़ा ही रहे हैं . एक तरफ दुनिया भर के देशों के नेता और वैज्ञानिक कोरोना का इलाज करने और वेक्सीन बनाने दिन रात एक किए दे रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपाई नेता हकीकत और विज्ञान की सच्चाई को झुठलाते हुये यह जताने की कोशिश जिसे मूर्खता और धूर्तता कहना ज्यादा बेहतर होगा कर रहे हैं कि कोरोना को सनातन धर्म के सिद्धांतों से काबू किया जा सकता है .

इस साजिश को बड़ा मंच दिया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो बीती 28 अप्रेल को साधु संतों की शरण में थे . इस दिन आदि शंकराचार्य की जयंती थी .  शिवराज सिंह ने कई नामी संतों और धर्म गुरुओं से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये रूबरू होते उनसे पूछा कि कोविड 19 से निबटने का रास्ता क्या है . इस पौराणिक से संवाद का विषय रखा गया था , कोविड 19 की चुनौतियाँ और एकात्म बोध . बक़ौल शिवराज सिंह कोरोना से निबटने के लिए नए प्रकाश की जरूरत है .  चिकित्सा विज्ञान और डाक्टर अपना काम कर रहे हैं लेकिन अब दर्शन संत और आध्यात्मिक गुरुओं को भी रास्ता दिखाना जरूरी है .

बस इतना कहना भर था कि देश भर के नामी गिरामी गुरु नया प्रकाश लेकर स्क्रीन पर प्रगट हो गए जो डेढ़ महीने से घाटा झेल रहे हैं  . इनकी दुकाने बंद तो नहीं हुईं हैं  लेकिन लाक डाउन के चलते आमदनी जरूर पहले सी नहीं हो रही है . इन ब्रांडेड महात्माओं एक यह बड़ा डर अपनी जगह वाजिब भी है कि अगर भक्तों की दान दक्षिणा की लत छूट गई तो वातानुकूलित  मठों और आश्रमों की रंगीनी , वीरानी में तब्दील हो जाएगी और इन्हें देसी घी के पकवान और ड्राई फ्रूट के लाले पड़ जाएंगे.

संकट और नुकसान के इन दिनों में धर्मप्रेमी शिवराज सिंह ने इन्हें दुकान और धंधा चमकाने मौका दिया और एवज में प्रदेश की जनता को मिला यह आशीर्वादनुमा संदेश कि कोरोना का संकट ईश्वर द्वारा लिया जा रहा इम्तिहान है इसलिए घबराओ मत हिम्मत रखो .  भगवान इम्तिहान के बाद सब ठीक कर देगा , बस तुम लोग हमें मत भूल जाना . अब यह इन विददानों ने नहीं बताया कि भगवान को बैठे ठाले ये क्या ठिठोली सूझी कि उसने भक्तों का ही  जीना मुहाल कर दिया और यह भी नहीं बता रहा कि यह इम्तिहान कितने दिन और चलेगा .

और अहम सवाल ये कि वह खुद क्यों कोरोना के डर से मंदिरों में छिपा बैठा है और आप जैसे उसके दलाल भी मुंह छिपाते अपने दड़बो में कैद हैं . क्यों नहीं पहले की तरह आप महिलाओं की भव्य शोभा यात्रा निकालकर किसी मैदान में 101 कुंडीय कोई बगुलामुखी छाप यज्ञ कर कोरोना को भस्म नष्ट नहीं कर देते . इसका मेहनताना देने तो हम हमेशा की तरह तैयार हैं ही इस बार तो पीछे आप लोग हट रहे हो .

चालाकी भरे बोल वचन

जब ऑन लाइन दरबार सज गया तो राजन और ऋषियों का वार्तालाप शुरू हुआ . जूना अखाड़े हरिद्वार के मठाधीश अवधेशानन्द गिरि ने बड़े दार्शनिक अंदाज में कहा , चुनौती में अभाव अवसाद तो आते ही हैं लेकिन चुनौतियाँ समाधान व अवसर भी साथ लाती हैं . मनुष्य की  चेतना शताब्दियों से ऐसे कष्ट देख रही है . संकट में आचार्य शंकर के एकात्म का संदेश भी बड़ा समाधान है . योग , आयुर्वेद और आध्यात्म चुनौतियों से निबटने के लिए सशक्त माध्यम है . चिन्मय मिशन मुंबई के स्वरूपानन्द सरस्वती ने ज्ञान इन शब्दों में बघारा , आपत्ति में भी ईश्वर की कृपा होती है . आयुर्वेद का प्रचार हो रहा है . यह इम्यून सिस्टम को बढ़ाने में उपयोगी है . इसी तरह स्वस्थ मनुष्य की मनोदशा ठीक रहती है तो इम्यून सिस्टम और अच्छा होता है . अब भक्ति श्रद्धा और विश्वास बदलाब लाने का कार्य कर रहे हैं . लोगों का उत्साह बढ़ रहा है .

इन दोनों भगवान टाइप के महात्माओं से एक कदम आगे बढ़ते कन्याकुमारी की महिला संत निवेदिता भिड़े के मुताबिक मनुष्य एकात्मा को भूलकर उपयोग में जीने लगा था . ईश्वर ने कोरोना से आत्मवोध का महत्व बता दिया है . राजकोट के परमात्मानंद सरस्वती ने तो यह कहते पूरी फ़िलास्फी की ही बाट लगा दी कि कोरोना मनोवैज्ञानिक कष्ट है . इस संकट के बहाने आज ईश्वर संभवतः यह शिक्षा देना चाह रहे हैं कि व्यक्ति जितना उपभोग करेगा वह कष्ट का कारण बनेगा .

बीकानेर के संत संवित सोम गिरि के मुताबिक कोविड 19 एक चुनौती है लेकिन इसका समाधान भी आसान है . आज विश्व को शंकराचार्य का संदेश देना जरूरी है . कोरोना संक्रमण एक संदेश है कि हम अपने अपराध के लिए पृकृति और पर्यावरण से क्षमा मांगे . नागपुर के मुकुल कानिटकर ने बिना किसी लागलपेट के सीधी सनातनी दुकानदारी की बात करते कहा , हमारे यहाँ पहली रोटी गाय को खिलाने और तुलसी को जल चढ़ाने जैसी परम्पराएँ संस्कृति का हिस्सा हैं लाक डाउन को घरवास का नाम हमने दिया है जिसे मनोबल बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए .

डरे तो ये खुद हैं –

इन लोगों के बयानों ( प्रवचनों )  से साफ दिख रहा है कि इन्हें कोरोना से कोई लेना देना नहीं और न ही उसकी जानकारी है बल्कि इनकी चिंता और डर धर्म की अपनी दुकानदारी पर मँडराता खतरा है .  इसीलिए सभी ने घुमाफिरा कर संकेतों में दान दक्षिणा की ही बात की चूंकि शिवराजसिंह ने जनसंघ के संस्थापक दीनदायल उपाध्याय का दिया एकात्म चिंतन या वाद शब्द जोड़ दिया था इसलिए महानुभावों ने उसे भी जोड़ दिया और चूंकि शंकराचार्य जयंती थी इसलिए उनका भी पुण्य स्मरण सरकारी तौर पर कर लिया गया .

भाजपाई खेमे के नामी धर्मगुरु अवधेशानन्द इसी डर के चलते योग आध्यात्म और आयुर्वेद की वकालात करते नजर आए तो स्वरूपानन्द स्वरस्ती ने आयुर्वेद का खुलेआम न केवल प्रचार किया बल्कि कोरोना को उत्साह बढ़ाने बाली ईश्वरीय कृपा बता डाला . ये दोनों शायद ही बता पाएँ कि आयुर्वेद कैसे और कहाँ कोरोना से निबट रहा है . इन महात्माओं की मंशा या चालाकी  इतनी भर है कि इनके गाल बजाने भर से मान लिया जाये कि देश भर के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित लोगों का जो इलाज चल रहा है वह दरअसल में एलोपेथी से नहीं बल्कि आयुर्वेद से चल रहा है . हजारों चरक , सुश्रुत और सुषेण यह काम कर रहे हैं . सेनेटाइजेशन , सोशल डिस्टेन्सिंग , मास्क , पीपीई किट और दवाइयों का आविष्कार या खोज आयुर्वेद की देन है .

मुकुल कानिटकर गाय की रोटी और तुलसी जल की बात दोहराकर कौन से विज्ञान से कोरोना संकट से निबटने की बात कर रहे हैं इसका तो कोई ओर छोर ही ही नहीं समझ आता . तमाम तथाकथित विददानों ने एक तरह से देखा जाये तो दक़ियानूसी बातें कर डाक्टरों की मेहनत लगन और निष्ठा को ही खारिज कर दिया है जो दिन रात एक कर , घर परिवार का सुख छोडकर , अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना से लोगों को बचा रहे हैं . ऐसे धार्मिक  आयोजनों से वे हतोत्साहित नहीं होंगे ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं .

शिवराज सिंह और साधु संतों के इस नवगठित गिरोह पर जरूरत तो इस बात की है कि कानूनी काररवाई हो क्योंकि ये लोग लोगों को गुमराह कर रहे हैं उन्हें वैज्ञानिक चिकित्सा से दूर कर रहे हैं और हैरानी की बात यह है कि अभियान एलोपेथी के दम पर ही चला रहे हैं . अगर वाकई योग ,  आयुर्वेद और आध्यात्म में कोई शक्ति या दम है तो इन सभी को एक दिन बिना मास्क पहने किसी अस्पताल में कोरोना ग्रस्तों के बीच गुजारकर दिखाना चाहिए लेकिन ये लोग ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि ये लोग समर्पित डाक्टर नहीं हैं और न ही इनमें लोगों के भले का कोई जज्बा है .  ये लोग तो शुद्ध दुकानदार हैं जो अपने सर्व सुविधायुक्त आश्रमों में बैठकर दूध मलाई चाटते विलासी ज़िंदगी जी रहे हैं .

जब कोरोना संकट खत्म हो जाएगा तो ये लोग ब्रह्मा विष्णु राम श्याम और बम बम भोले का उद्घोष लगाते फिर गल्ला खोलकर धूनी रमा लेंगे कि देखो हमने कोरोना को पछाड़ दिया अब लाओ दक्षिणा .  लेकिन अभी ये डरे हुये हैं इसलिए फैसला आम लोगों को अपनी बुद्धि और विवेक से लेना है कि वे इन धूर्तों को श्रेय और दान दक्षिणा देंगे या नहीं .

इनकी क्या मजबूरी

बेहिसाब पैसा और एशोआराम की ज़िंदगी तो इन बाबाओं की आदत है लेकिन शिवराजसिंह ने किस मजबूरी के तहत यह बेतुका और बेहूदा  बेमतलब का आयोजन सरकारी पैसों से किया इसे समझना भी जरूरी है कि कैसे धर्म और राजनीति का गठजोड़ ठगी और पिछड़ेपन की वजह बनता है . कोरोने के मोर्चे पर शिवराज सिंह एक नाकाम मुख्यमंत्री साबित हुये हैं और अपनी नाकामी छिपाने धर्मगुरुओं का पल्लू पकड़ रहे हैं .

मध्यप्रदेश में कोरोना सरकार की गलती और कुप्रबंधन के चलते ज्यादा फैला क्योंकि 23 मार्च को शपथ लेने बाले शिवराज ने एक महीने तक तो अपना मंत्रिमंडल ही नहीं बनाया और बनाया भी तो सिर्फ 5 मंत्रियों का , जो हालात संभालने नाकाफी साबित हो रहा है . अब जिस राज्य में स्वास्थ मंत्री और स्वास्थ सचिव ही नहीं होगा वहाँ लोग तो बेमौत मारे ही जाएंगे . गौरतलब है कि शिवराज सिंह कांग्रेस के कमलनाथ से कुर्सी छीनकर मुख्यमंत्री बने हैं जिसमें उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सहयोग दिया है . एक नाटकीय घटनाक्रम में सिंधिया अपने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे .

चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें . उनके हाथ पाँव फूलने की वजहें राजनैतिक ज्यादा हैं . प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है जिनकी तैयारियां भी शुरू हो गई हैं अगर जनता ने भाजपा और शिवराज को भाव नहीं दिया तो बहुमत के अभाव में यह सरकार भी गिर सकती है .  दूसरे भाजपा के दिग्गज नेता उन्हें चोथी बार मुख्यमंत्री बनाए जाने से खफा भी हैं कि क्या इस पद का पट्टा पार्टी ने उनके नाम कर दिया है जबकि 2018 में जनता ने उन्हें नकार दिया था .  तीसरी अहम बात यह कि शिवराज को अब बात बात में सिंधिया की सलाह और इजाजत का मोहताज होना पड़ रहा है जाहिर है ऐसी कई बातों से उनका आत्मविश्वास लड़खड़ाया हुआ है .

इस लड़खड़ाए आत्मविश्वास को ठीक से खड़ा करने वे गलती पर गलती किए जा रहे हैं . धर्मगुरुओं से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये कोरोना संकट से निबटने निर्देश वे मांग रहे हैं तो इससे हैरान परेशान लोगों में उल्टा मेसेज ही जा रहा है क्योंकि जमीनी तौर पर सरकार लोगों के लिए कुछ नहीं कर पा रही है . मंडियों में किसान परेशान हैं , युवाओं में रोजगार को लेकर डर व्याप्त है , गरीब तबका जिसकी तादाद कोई 5 करोड़ है खाने पीने को मोहताज हो चला है इस तबके को धर्म , आध्यात्म एकात्म बगैरह सब रोटी ही हैं .  इनसे भी ज्यादा अहम बात और शिवराज सिंह का वाजिब और जायज डर कर्मचारियों की नाराजी है जिनका महंगाई भत्ता रद्द कर दिया गया है जो कमलनाथ सरकार उन्हें दे गई थी .

एक प्रोफेसर की मानें तो शिवराज सिंह चाहते तो अप्रेल में बढ़ी हुई पगार दे सकते थे लेकिन कमलनाथ सरकार का फैसला रद्द कर उन्होने कर्मचारियों की नाराजी मोल ले ली है और अब बाबाओं के चक्कर में आकर तो उन्होने रही सही इमेज भी खराब कर ली है कोरोना संकट अगर इन्हीं धर्मगुरुओं के प्रताप  से उन्हें जीतना है तो वे अस्पताल बंद कर दें .  इससे पैसा भी बचेगा फिर वह हमें हमारा हक दे सकते हैं .

इन प्रोफेसर के मुताबिक राज्य सरकार बेवजह की फिजूलखर्ची आयुर्वेद का काढ़ा पिलाकर भी कर रही है . गौरतलब है कि 1 करोड़ लोगों को त्रिकुट नाम का आयुर्वेदिक काढ़ा इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर पिलाया जा रहा है जिसके वैज्ञानिक होने में शक है .

शिवराज सिंह की मंशा साफ दिख रहा है कि सनातन धर्म के प्रचार प्रसार और पोंगा पंथ को हवा देने की है जिसके सहारे वे कोरोना के कहर को काबू कर पाएंगे इसमें शक बेहद कुदरती बात है यानि नुकसान झेलने आम जनता को और तैयार रहना चाहिए क्योंकि अब सरकार इम्यूनिटी बढ़ाने और भी प्रोडक्ट लाने की तैयारी कर रही है इन टोटकों पर कितना पैसा फुंक रहा है यह किसी को नहीं मालूम .

#lockdown: संकट में सुपरपावर 

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है, मगर इसका सबसे ज्यादा खौफनाक असर अमेरिका पर देखने को मिल रहा है.अमेरिका में कोरोना वायरस ने करीब 56  हजार लोगों की जान ले ली है.कोरोना अमेरिका के लिए सबसे घातक बन गया है.अबतक अमेरिका में 9 लाख 87 हजार के करीब लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं.

अमेरिका में जनवरी के बाद से ही कोरोना वायरस का कहर तेज होता गया और लगातार पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई. पिछले करीब चालीस दिन में अमेरिका में ‘स्टे एट होम’ का आदेश लागू है, इस वजह से करीब 90 फीसदी अमेरिकी जनता अपने घरों में है. गौरतलब है कि अमेरिका में पूरी तरह से लॉकडाउन नहीं है, जिसकी काफी आलोचना भी हुई है. यही कारण रहा कि अमेरिका के बड़े शहरों में कोरोना वायरस का कहर थम ही नहीं रहा. अभी भी न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस ने सबसे अधिक तबाही मचाई है, सिर्फ न्यूयॉर्क में ही करीब 18 हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि यहां पर 8 लाख से अधिक लोगों का टेस्ट हो चुका है.अमेरिका में इस महामारी के कारण करीब 2 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. पूरी दुनिया में तबाही मचा रहे कोरोना का सबसे ज्यादा कहर अमेरिका पर टूटा है. अमेरिका में हर दिन कोरोना वायरस संक्रमण से मौत का ग्राफ बड़ा होता जा रहा है और हर दिन नया रिकॉर्ड बनता जा रहा है.

ये भी पढ़ें-#lockdown: मोदीजी यह विधायक आपकी नहीं सुनता 

अमेरिका के लिए पिछले कुछ साल बेहद मुसीबत भरे रहे हैं. इस साल कोरोना की विपदा आ गयी.उधर मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अमेरिका को जून से नंवबर के बीच कुदरत के कहर का फिर सामना करना पड़ सकता है. अगर अमेरिकी सरकार ने सही कदम नहीं उठाए और सही फैसले नहीं लिए तो प्राकृतिक मुसीबत बहुत बड़ी हो सकती है और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है.अमेरिका इस वक़्त तीन बड़ी मुसीबतों से घिरा हुआ है.

अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका के इलाके इसके पीछे बड़े कारण हैं इंसानी गतिविधियां – जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण आदि.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के हाइड्रोक्लाइमेटोलॉजिस्ट पार्क विलियम्स और उनकी टीम ने अमेरिका के इस भयानक सूखे का अध्ययन किया है. पार्क विलियम्स की टीम ने अमेरिका के 1586 स्थानों पर जाकर हजारों पेड़ों, मिट्टी, जलस्तर, नमी और वातावरण का अध्ययन किया पार्क विलियम्स की यह रिपोर्ट साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.पार्क की टीम ने दक्षिण-पश्चिमी अमेरिकी राज्यों और उत्तर पश्चिमी मेक्सिको के 1586 स्थानों की जांच करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. पार्क ने बताया कि इससे पहले अमेरिका और मेक्सिको के इन इलाकों में इतना लंबा सूखा साल 800 में आया था. 850 से 1600 के बीच भी कई बार सूखे की स्थिती आई लेकिन इतनी भयावह नहीं थी.साल 1575 से 1593 के बीच एक बड़ा सूखा पड़ा था. लेकिन, इस बार का सूखा ज्यादा भयावह है. इस सूखे से अभी तक अमेरिका उबर नहीं पाया है.इसी की वजह कैलिफोर्निया जैसे प्रांतों में पानी की कमी हो गई गई है. वहां आयदिन जंगलों में आग लगी रहती है.

ये भी पढ़ें-#lockdown: घर वापसी के बहाने छवि चमकाने की चाहत

इसी बीच, कोरोना वायरस के हमले की चपेट में आया अमेरिका शुरुआती लापरवाहियों के चलते अब खस्ताहाल है.अमेरिका में कोरोना वायरस की वजह से दस लाख से ज्यादा लोग बीमार हैं, जबकि, 56 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. यह संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है.इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिकी सरकार द्वारा फैसला लेने में की गई लेटलतीफी.

जब अमेरिका को लॉकडाउन करना चाहिए था, जब उसे टेस्ट बढ़ाने चाहिए थे, तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप राजनीति करने में लगे हुए थे. वे चीन और विश्व स्वास्थ संगठन पर गुस्सा उतार रहे थे. चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाराज डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों पर मिलीभगत का आरोप भी लगाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोक दी. दूसरे देशों से आने वाले लोगों पर रोक लगा दी. अमेरिका के इन फैसलों से दुनियाभर पर असर पड़ा.दुनिया को साफ़ नज़र आया कि सुपर पावर बुरी तरह बौखलाया हुआ है. वहीँ वे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा की पैरवी में भी लगे हुए थे.भारत को धमका रहे थे कि दवा की खेप ना भेजी तो फिर जवाब दिया जाएगा, ऐसी बातें कर रहे थे। जिस दवा को लेकर पूरी दुनिया के डॉक्टर और वैज्ञानिक कह चुके हैं कि इस दवा से कोरोना मरीज का ठीक होना संभव नहीं है, ट्रंप उसी पर पूरा भरोसा जता रहे थे. हालांकि भारत ने दवा की खेप भेज दी मगर कोरोना से मौतों का सिलसिला फिर भी नहीं थम रहा है.

इस समय कोरोना वायरस का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट अमेरिका और न्यूयॉर्क बने हुए हैं. अमेरिका के बाद यूरोपीय देश स्पेन, इटली, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम हैं. इन देशों में लाखों की संख्या में लोग कोरोना वायरस की वजह से बीमार हुए हैं. हजारों की संख्या में लोग मारे गए हैं.

अमेरिका में इससे ज्यादा भयावह स्थिति बन सकती है अगर जून तक कोरोना वायरस का कोई रोकथाम नहीं हुआ तो, क्योंकि, जून से अमेरिका के ऊपर नई मुसीबत मंडराने लगेगी. इस मुसीबत का नाम है तूफान, हरिकेन और साइक्लोन. जिसकी भविष्यवाणी यूएस नेशनल ओशिएनोग्राफिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के हाइड्रोलॉजिक एंड एटमॉस्फियरिक साइंसेज ने की है.दोनों संस्थानों ने कहा है कि कि इस बार अमेरिका में भारी तूफान, हरिकेन और साइक्लोन आने की आशंका है. ऐसी ही भविष्यवाणी अटलांटा की एक निजी मौसम कंपनी द वेदर चैलन ने भी की है.

द वेदर चैनल के अनुसार इस साल 1 जून से लेकर 30 नवंबर के बीच 18 तूफान आएंगे. इनमें से 9 हरिकेन होंगे. वहीं, इस साल इन छह महीनों में 12 तूफान आएंगे, जिनमें से 6 हरिकेन होंगे.वेदर चैनल ने बताया है कि चार हरिकेन भयानक स्तर के होंगे. ये कैटेगरी तीन से ऊपर के हो सकते हैं. मतलब ये कि जब ये हरिकेन आएंगे तब हवा की रफ्तार 178 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार या उससे कहीं ज्यादा हो सकती है. जो अमेरिका में भारी तबाही मचाएगी.

कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी ने भी भयानक तूफान और हरिकेन आने की आशंका जताई है. सभी ने इस सीजन के इतने भयावह होने के पीछे हाई-सी सरफेस टेंपरेचर को कारण बताया है.अटलांटिक महासागर का पानी गर्म होकर हवा के साथ नमी बनाएगा. यही तूफानों को हवा देगा. अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से हरिकेन और तूफानों की संख्या बढ़ती हुई दिख रही है. वैज्ञानिकों ने पिछले 30 सालों का अध्ययन करके यह नतीजा निकाला है. एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि 1993 के बाद इस बार अटलांटिक महासागर में गर्मी ज्यादा है, जून आते-आते इसका भयावह असर होगा. जितनी ज्यादा गर्मी महासागर में बढ़ेगी, अमेरिका के ऊपर उतना ही खतरा बढ़ जाएगा।.

एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं काइल डेविस और जुबिन जेंग ने कहा कि यह अभी अप्रैल की भविष्यवाणी है.जून के शुरूआत में हम एक और भविष्यवाणी जारी करेंगे। हमने 1993 से लेकर पिछले साल तक का डेटा खंगाला है.

काइल डेविस ने कहा कि हमने देखा कि जिस साल महासागर में गर्मी बढ़ी है, उस साल अमेरिका में तूफानों और हरिकेन की संख्या और भयावहता भी बढ़ी है.काइल का कहना है कि गणना के अनुसार इस बार अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से 10 हरिकेन आएंगे, जिनमें से 5 बेहद गंभीर स्तर के होंगे.19 समुद्री तूफान आएंगे और 163 बार तेज बारिश और आंधी की संभावना है.

तीन तरफ से मुसीबत में घिरे अमेरिका की अर्थव्यवस्था तेज़ी से ढलान की ओर बढ़ रही है.अमेरिकी राष्ट्रपति इससे बुरी तरह घबराये हुए हैं लेकिन फिर भी वो इसमें सुधार लाने के लिए आश्वस्त करते हैं.ट्रंप कहते हैं, ‘हमारे पास कोई विकल्प नहीं है.मुझे हमेशा हर चीज की चिंता रहती है. हमें इस समस्या से पार पाना ही होगा. विश्व के इतिहास में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी रही है…. चीन से बेहतर, किसी भी अन्य देश से बेहतर.हमने पिछले तीन साल में इसे खड़ा किया और फिर अचानक एक दिन उन्होंने कहा कि तुम्हे इसे बंद करना होगा. अब, हम इसे दोबारा खोल रहे हैं और हम बेहद मजबूत होगें, लेकिन दोबारा खोलने के लिए आपको उस पर कुछ धन लगाना होगा.’  उन्होंने कहा, ‘हमनें अपनी एयरलाइन्स बचा लीं.हमनें कई कम्पनियां बचा लीं, जो बड़ी कम्पनियां हैं और दो महीने पहले उनका बेहतरीन साल चल रहा था… और फिर अचानक से बाजार से बाहर हो गईं.हम उन कंपनियों को फिर पटरी पर ले आएंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना को चीन द्वारा बनाया जैविक हथियार ही मान रहे हैं जो अमेरिका जैसी सुपर पावर से लड़ने के लिए वूहान में बनाया गया. बीते हफ्ते व्हाइट हाउस में डेली ब्रीफिंग के दौरान ट्रंप ने कहा, ‘हम पर हमला हुआ. यह हमला ही है। यह कोई फ्लू नहीं है. पहले कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं देखा, 1917 में ऐसा आखिरी बार हुआ था’ ट्रंप कई हजार अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेजों के परिणामस्वरूप बढ़ते अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण के बारे में किए एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन वैश्विक महामारी से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए लोगों और उद्योगों की मदद के लिए सामने आया है. उन्होंने आश्वस्त किया कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था जल्दी ही पटरी पर आ जाएगी और हम मुसीबतों पर विजय पाएंगे.

#lockdown: ‘ देश में कोरोना का कोहराम  जारी ‘  संक्रमित मरीजों की संख्या 30 हजार पार

कोरोना का फैलाव भारत में तेजी फ़ैल रहा है, स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बताया गया कि बुधवार (29 अप्रैल 2020 ) को  शाम 05बजे तक ,  कुल संक्रमित मरीजों कि संख्या कुल 31 हजार 332 पहुंच चुका है, वही 7 हजार 696 लोगो को इलाज के बाद संक्रमण मुक्त हो चुके है वही अभी तक 1 हजार 7 लोगो का मौत हो चूका है. अभी देश में 22 हजार 629 एक्टिव केस हैं . फिर भी आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि विशेषज्ञ डाक्टरों का मानना है लॉक डाउन- 2 का आखिरी सप्ताह सरकार के लिए काफी अहम है . इसलिए केंद्र सरकार ने सभी को कोरोना वायरस से मिल कर लड़ने को कह रही है. सख्ती से लॉकडाउन -2 का पालन करने को कह रही है, लेकिन अब भी कुछ लोग है कि जो इस भयावह स्थिति को समझने को तैयार ही नहीं है. भारत के कई राज्य इसे से बेहद प्रभावित है तो कई राज्यों में यह संक्रमण ना के बराबर है, कही संक्रमण का फैलाव तेजी से हो रहा है तो कही रुका हुआ है तो आइये एक नजर डालते है   बुधवार (29 अप्रैल 2020 ) तक भारत के किस इलाके का क्या हाल है.

* महाराष्ट्र और गुजरात में कोरोना के सबसे अधिक मामले :- महाराष्ट्र कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित है. यहां अब तक 9318 मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 400 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1388 लोग ठीक हो चुके हैं. महाराष्ट्र के बाद गुजरात कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित है. यहां अब तक 3744 मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 181 लोगों की मौत हो चुकी है.

ये भी पढ़ें-#lockdown: कोरोना से ज़्यादा क्वारंटाइन का डर

* पिछले 24 घंटों में कोरोना से सर्वाधिक मौतें :- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटों में कोरोना के 1813 नए मामले सामने आए हैं और 71 लोगों की मौत हुई है. 24 घंटों के अंदर हुई मौतों में अब तक का ये देश में सर्वाधिक आंकड़ा है. मंगलवार की तुलना में बुधवार को कोरोना के नए मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है. पूरे देश में कोरोना से एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और यह संख्या अब 1008 हो गई है.

* 24.5% के दर से लोगो ठीक हो रहे हैं  :-  देश में कुल पुष्ट मामलों की संख्या 31,332 है. इसमें अब तक कुल 7,695 लोगों को उपचारित किया जा चुका है. ठीक होने के दर में लगातार बढ़ोतरी दर्ज किया जा रहा है, अभी कुल आरोग्य प्राप्ति दर 24.5% तक हो गया है.

ये भी पढें: #lockdown: नए रूप में कबूतरबाजी

* 80 जिलों में वायरस का कोई नया मामला नहीं :- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बताया  कि पिछले सात दिन में देश के 80 जिलों में कोरोना वायरस का कोई नया मामला सामने नहीं आया है और पिछले 14 दिन में 47 जिलों में संक्रमण के किसी नए मामले की पुष्टि नहीं हुई है. तीन सौ से अधिक जिलों में अभी तक संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है . इसके अलावा पिछले 21 दिन में 39 जिलों में एक भी मामला सामने नहीं आया है और पिछले 28 दिन में 17 जिलों में कोई मामला सामने नहीं आया.  जिन 129 जिलों में कोविड-19 के अधिक मामले सामने आए हैं उन्हें ‘हॉटस्पॉट’ घोषित कर दिया गया है .

अलविदा: ऋषि कपूर से जुड़े ये 5 किस्से नहीं जानते होंगे आप 

ऋषि कपूर अब हमारे बीच नहीं रहे. इस खबर से उनके फैंस और फैमिली को गहरा दुख पहुंचा है. आइए जानते हैं उनकी लाइफ से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से.

1 फ्लर्ट करने का मौका नहीं छोड़ते थे ऋषि

ऋषि की लाइफ में नीतू सिंह के आने के बाद भी वह अन्य एक्ट्रेसेस के साथ फ्लर्ट करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे. ऋषि की लाइफ में नीतू के आने से पहले उनका अफेयर एक्ट्रेस यास्मिन के साथ 5 साल तक चला और फिर ब्रेकअप हो गया. इसके बाद उन्हें डिंपल कपाड़िया से प्यार हुआ.

नीतू को ऋषि के अफेयर्स के बारे में पता था और जब वो पकड़े जाते थे तो साफ मना कर देते थे. एक इंटरव्यू में नीतू ने बताया था कि मैं इतनी भोली थी इसलिए उनकी बातों में आ जाती थी. वो जानते थे कि मैं एक सिंपल लड़की हूं और उन्हें संभाल लूंगी.’ नीतू का कहना था कि ऋषि मुझे भोली समझ कर डोमिनेट करने की पूरी कोशिश करते थे.

ये भी पढ़ें-इरफान खान के बाद ऋषि कपूर ने भी कहा दुनिया को अलविदा

2 स्ट्रिक्ट ब्वायफ्रेंड थे ऋषि

ऋषि काफी स्ट्रिक्ट ब्वायफ्रेंड थे. जब नीतू उनकी गर्लफ्रेंड बनीं तो वो उन्हें रात 8.30 के बाद शूटिंग की इजाजत नहीं देते थे.

3 ऋषि को छोड़ने के बाद सैलून चलाने लगी थीं उनकी पत्नी नीतू

ऋषि और नीतू 1973 से 1981 तक एकसाथ 12 फिल्मों में काम किया. इसी बीच दोनों में प्यार हुआ और लंबे टाइम तक डेटिंग के बाद 22 जनवरी 1980 में उन्होने शादी कर ली. शादी के बाद दोनों के दो बच्चे बेटी रिद्धिमा और बेटा रणबीर हुआ. लेकिन 1990 से इनके रिश्तों में काफी सारी परेशानियां आने लगीं, जिसकी वजह ऋषि की शराब बनीं. खबरें आईं कि शराब के नशे में उन्होंने नीतू पर कई बार हाथ भी उठाया. इस वजह से परेशान होकर नीतू ने लीगल कदम उठाया और अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दर्ज करा दिया. यही नहीं नीतू, ऋषि से इतना परेशान हो गई थीं कि उन्होंने घर छोड़ दिया.


नीतू ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था, ऐसे में उन्होंने खुद का सैलून खोलकर पैसे कमाना शुरू कर दिया था. कुछ टाइम बाद दोनों के रिश्तों में परेशानियां थोड़ी कम हुईं और नीतू ने वापस आकर पति ऋषि और बच्चों को संभालना बेहतर समझा.

ये भी पढें-अलविदा इरफान खान: जयपुर के जमीदार परिवार का बेटा कैसे बना

4 संजय को शक था कि उनकी गर्लफ्रेंड के साथ ऋषि का अफेयर है

ऋषि कपूर ने ‘खुल्लम खुल्ला: ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ में संजय दत्त और टीना मुनीम (उस दौरान संजय की गर्लफ्रेंड) से जुड़ा एक चौंकाने वाला खुलासा किया है.

बायोग्राफी में ऋषि बताते हैं, एक एक्ट्रेस के तौर पर टीना मुनीम ने परदे पर अपना एक अलग आकर्षण बनाया था. मैंने उनके जैसी किसी दूसरी माडर्न और खूबसूरत को-एक्ट्रेस के साथ कभी काम नहीं किया. लोग कहते थे कि हम स्क्रीन पर अच्छे लगते हैं. फिल्म ‘कर्ज’ में हमने स्क्रीन शेयर की और यह फिल्म मेरे दिल के काफी करीब है. हमारी बढ़ती दोस्ती और साथ आ रही फिल्मों की वजह से सीक्रेट अफेयर की खबरें उड़ीं. उस दौर में मीडिया एक्टिव नहीं थी, लेकिन लोगों ने कहानियां बनानी शुरू कर दी थी. तब मैं शादीशुदा नहीं था और टीना का अफेयर संजय दत्त के साथ था. संजय इन खबरों से वाकिफ थे. उस दौरान में वे ड्रग्स लेते थे और एक दिन गुलशन (ग्रोवर) के साथ नीतू कपूर के पाली स्थित अपार्टमेंट में उनसे झगड़ने पहुंच गए.

बुक में ऋषि लिखते हैं, गुलशन ने मुझे बाद में बताया कि ‘रौकी’ की शूटिंग के दौरान संजय नीतू के घर झगड़ने पहुंच गए थे. लेकिन नीतू ने इस सिचुएशन को बेहतरीन तरीके से संभाला. उन्होंने संजू को समझाया कि वे बातें महज अफवाहें हैं. टीना और चिंटू के बीच ऐसा कुछ नहीं है. वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. इंडस्ट्री में रहते हुए तुम्हें अपनों पर भरोसा करना सीखना चाहिए.

5 जब रणबीर को ऋषि ने जड़ दिया था थप्पड़

डायरेक्टर राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ 31 जुलाई 1982 को रिलीज हुई थी. फिल्म में ऋषि कपूर के अपोजिट पद्मिनी कोल्हापुरे नजर आई थीं. इस फिल्म की रिलीज के दो महीने बाद यानी 28 सितंबर 1982 को रणबीर कपूर का जन्म हुआ था. रणबीर अपने पापा ऋषि के फैन हैं.  रणबीर ने एक इंटरव्यू में बताया था, पापा के अलग-अलग तरह के किरदारों को देखना मुझे काफी अच्छा लगता है. पापा कभी मुझ पर नहीं चिल्लाए लेकिन बचपन में जब मैं करीब 12 साल का था तब पापा ने मुझे एक बार बहुत जोरो का चांटा मारा था, क्योंकि मैं जूते पहनकर पूजा रूम में चला गया था.

इरफान खान के बाद ऋषि कपूर ने भी कहा दुनिया को अलविदा

बुधवार को सिनेमा जगत के दिग्गज अभिनेता इरफान खान का निधन हुआ. जिसके सदमे से लोग अभी बाहर नहीं निकल पाए थे कि अभी एक और खबर आई है कि ऋषि कपूर भी अब हमारे बीच नहीं रहे. इस खबर की जानकारी अमिताभ बच्चन ने ट्वीट करके दिया है.

इस खबर को आते ही सितारों के बीच शोक की लहर छा गई. अमिताभ बच्चन ने सुबह नौ बजकर 32 मिनट पर ट्वीट किया है. अपने ट्वीट पर अमिताभ बच्चन ने लिखा है वो चले गए वो चले गए ऋषि कपूर उनका निधन हो गया. मैं टूट गया.

अभिनेता ऋषि कपूर का निधन 67 साल के उम्र में हुआ है. वह लंबे समय से बीमार थें. बीती रात उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन किसी ने ऐसा नहीं सोचा था कि वह हमारे बीच नहीं रहेंगे.

ये भी पढ़ें-अलविदा इरफान खान: जयपुर के जमीदार परिवार का बेटा कैसे बना

इस खबर पूरे बॉलीवुड में शोक का लहर छाया हुआ है. सभी कलाकार उन्हें विनम्र श्रद्धाजली अर्पित कर रहे हैं. इतना ही नहीं पूरे देश में शोक की लहर दौड़ रही है.

वहीं एक यूजर्स ने लिखा है कि हे भगवान साल 2020 क्या लेकर आय़ा है. सुबह-सुबह आपने कैसी खबर दे दी है. सभी के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल लग रहा है कि वह हमारे बीच नहीं रहें.

ये भी पढ़ें-अलविदा इरफान खान: दादा तू ऐसे नहीं मर सकता…

वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ीत थें. इस बीमारी के लिए वह विदेश भी गए थें. हालांकि वहां से आने के बाद अपने परिवार के साथ स्वस्थ थे. अचानक कल तबीयत खराब हुई.

लोगों का मानना है कि न जाने यह साल और क्या क्या करके मानेगा. बॉलीवुड के दो दिग्गज कलाकार इस दुनिया को छोड़कर चले गए महज दो  दिन में. सभी की भागवान से प्रार्थना है कि वह उऩके परिवार को मजबूत बनाएं रखें. इस मुश्किल घड़ी में

बुढ़ापे में दुल्हन कृपया रुकिए

कहते हैं, थोड़ी सी चूक हमें दर्द दे जाती है और यही चूक, बुढ़ापे में हो जाए, तो आदमी, न घर का रहता है ना घाट का. आज हम आपको बताने जा रहे हैं बुढापे में शादी के मजे और उसके बाद मिलने वाली दर्द की, सजा की  सच्ची घटना . हम बुढ़ापे के विवाह की खिलाफत नहीं कर रहे हैं मगर सावधानी हटी, दुर्घटना घटी की कहावत आपको याद दिलाना चाहते हैं.

जिस तरह सड़क पर थोड़ी सी चूक  दुर्घटना आमंत्रित करती है. वैसे ही जिंदगी की अंतिम सीढी में अगर कोई बुजुर्ग धोखे और चालबाजी का शिकार हो जाए तो उसकी जिंदगी नरक बनने से भला कौन बचा सकता है.   दरअसल,छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रिटायर अफसर को बुढ़ापे में शादी महंगी पड़ गयी.लूटेरी दुल्हन ने अफसर से 40 लाख रुपये तो ठगे ही “कार” भी लेकर फरार हो गयी.

अब इस मामले मे, पुलिस शिकायत के बाद जांच कर रही है.  छत्तीसगढ़ के खाद्य विभाग में  अधिकारी रहे एमएल पस्टारिया 77 वर्ष  के हो चुके  हैं, और अपनी अकेली की जिंदगी से अजीज आकर कुछ माह पूर्व  उन्होंने एक  अपरिचित महिला से ब्याह  रचाया. और फिर धीरे-धीरे हो गए ठगी के शिकार । महिला ने उक्त शख्स को धीरे धीरे आईने में उतारा और उसे रुपए पैसों के मामले में नित्य नए  किस्से गढ़ कर रुपए ऐंठती चली गई. श्रीमान बुरी तरह लूट गए तो एक दिन महिला रफूचक्कर हो गई. अब स्थिति यह है कि माया मिली ना राम! ऐसे घटनाक्रम से सबक लेकर कुछ तथ्यों को जाने समझे. ताकि हमारे आसपास, समाज में ऐसी घटनाएं ना हो और लोग सुरक्षित रहें.आबाद रहें.

ये भी पढ़ें- जब शराब पी कर डीजे की तेज आवाज में नाचना पड़ गया भारी

मेट्रोमोनियल से बचकर

दरअसल ,कुछ समय  पूर्व  उनकी पत्नी का निधन हो गयी था तत्पश्चात बिना सोचे समझे  उन्होंने ‘मैट्रोमानियल’ साइट पर अपना सीवी डाला दिया  था.सीवी के बाद एक महिला ने उनसे संपर्क किया और शादी के लिए हामी भर दी. महिला ने खुद का नाम आशा बताया था. दिसंबर 2016 में  “मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री विधवा एवं परित्याक्ता कन्यादान योजना” का लाभ  उठा कर  दोनों ने विवाह किया . दोनों छत्तीसगढ़ के  बिलासपुर के बंधवापारा में आ कर रहने लगे . इस  दरम्यान  आशादेवी  बीच-बीच में किसी ना किसी बहाने से मायके के नाम पर चली जाती थी. महिला ने श्रीमान  को भरमा कर इस दौरान घूमने फिरने  के नाम पर एक  बेहतरीन कार भी लोन से खरीदवा ली.

महिला के साथ आशीष व राहुल नाम के युवक भी आते थे, जिसे महिला अपना रिश्तेदार बताया करती थी. महिला ने रिटायर अफसर को झांसा दिया कि उसके नाम पर काफी जमीन है, जो बंधक पड़ी हुई हैं. वो अपने रिश्तेदार को जमीन बेचना चाहती है, जिसका सौदा भी वो करोड़ों में कर चुकी है. महिला ने कहा कि बेचने के लिए पहले उसे अपनी जमीन छुडानी पड़ेगी. इस बहाने से एमएल पस्टरिया वह लाखों  रुपये  लेती चली गई. करीब 40 लाख रुपये वो जब ले चुकी श्रीमान को शक होने लगा. रिटायर अधिकारी  ने महिला की बात पर विश्वास पर जेवर बेचकर और उधार लेकर पैसे तक  लिये. एक दिन जैसा की होना था महिला ने जब देखा कि अब श्रीमान कंगाल हो चुके हैं तो शायद दूसरा शिकार पकड़ने के लिए उड़ गई. इसमें बुजुर्ग अधिकारी ने लिखवाया है कि चार महीने पहले वो जमीन का सौदा कराने के नाम पर गयी और फिर नहीं लौटी यही नहीं महिला जाते-जाते कार भी ले गयी.बहरहाल, बुजुर्गवार थोड़ी समझदारी दिखाते और मेट्रोमोनियल में विज्ञापन देने की बजाय अपने आसपास किसी चिर परिचित महिला से ब्याह रचाते तो उन्हें न ठगी का शिकार होना पड़ता, न हीं धोखा खाकर पुलिस के चक्कर लगाने पड़ते.

ये भी पढ़ें- इश्क के चक्कर में

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें