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औकात से ज्यादा: भाग 2

संजय के औफिस में केवल लड़कियां ही काम करती दिखती थीं. पूरे मेकअप में एकदम अपटूडेट लड़कियां, खूबसूरत और जवान. किसी की भी उम्र 22-23 वर्ष से अधिक नहीं. औफिस में संजय ने अपने बैठने के लिए एक अलग केबिन बना रखा था. केबिन का दरवाजा काले शीशों वाला था. किसी भी लड़की को अपने केबिन में बुलाने के लिए वह इंटरकौम का इस्तेमाल करता था. काफी ठाट में रहने वाला संजय चैनस्मोकर भी था. सिगरेट लगभग हर समय उस की उंगलियों में ही दबी रहती थी. नौकरी के पहले दिन सिगरेट का कश खींच संजय ने गहरी नजरों से निशा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘दिल लगा कर काम करना, इस से तरक्की जल्दी मिलेगी.’’ ‘‘यस सर,’’ संजय की नजरों से खुद को थोड़ा असहज महसूस करती हुई निशा ने कहा. कल के मुकाबले में संजय की नजरें कुछ बदलीबदली सी लगीं निशा को. फिर उसे लगा कि यह उस का वहम भी हो सकता था. तनख्वाह के मुकाबले में औफिस में काम उतना ज्यादा नहीं था. उस पर सुविधाएं कई थीं. औफिस टाइम के बाद काम करना पड़े तो उस को ओवरटाइम मान उस के पैसे दिए जाते थे. किसी न किसी लड़की का हफ्ते में ओवरटाइम लग ही जाता था. निशा नई थी, इसलिए अभी उसे ओवरटाइम करने की नौबत नहीं आती थी.

शायद इसलिए अभी उसे ओवरटाइम के लिए नहीं कहा गया था क्योंकि अभी वह काम को पूरी तरह से समझी नहीं थी. उस के बौस संजय ने भी अभी उसे किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. केबिन के दरवाजे के शीशे काले होने की वजह से यह पता नहीं चलता था कि केबिन में बुला कर संजय किसी लड़की से क्या काम लेता था. कई बार तो कोई लड़की काफी देर तक संजय के केबिन में ही रहती. जब वह बाहर आती तो उस में बहुतकुछ बदलाबदला सा नजर आता. किंतु निशा समझ नहीं पाती कि वह बदलाव किस किस्म का था. एक महीना बड़े मजे से, जैसे पंख लगा कर बीत गया. एक महीने के बाद तनख्वाह की 20 हजार रुपए की रकम निशा के हाथ में थमाई गई तो कुछ पल के लिए तो उसे यकीन ही नहीं आया कि इतने सारे पैसे उसी के हैं. पहली तनख्वाह को ले कर घर की तरफ जाते निशा के पांव जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. निशा की तनख्वाह के पैसों से घर का माहौल काफी बदल गया था. 20 हजार रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं थी. एक प्राइवेट फर्म में मुनीम के रूप में 20 वर्ष की नौकरी के बाद भी उस के पापा की तनख्वाह इस रकम से कुछ कम ही थी.

निशा की पहली तनख्वाह से उस की नौकरी का विरोध करने वाले पापा के तेवर काफी नरम पड़ गए. मम्मी पहले की तरह ही नाराज और नाखुश थीं. निशा की तनख्वाह के पैसे देख उन्होंने बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया दी. जैसी कि पहली तनख्वाह के मिलने पर निशा का एक टच स्क्रीन मोबाइल लेने की ख्वाहिश थी, उस ने वह ख्वाहिश पूरी की. इस के बाद रोजमर्रा के खर्च के लिए कुछ पैसे अपने पास रख निशा ने बाकी बचे पैसे मम्मी को देने चाहे, मगर मम्मी ने उन्हें लेने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘घर का सारा खर्च तुम्हारे पापा चलाते हैं, इसलिए ये पैसे उन्हीं को देना.’’ ‘‘लगता है तुम अभी भी खुश नहीं हो, मम्मी?’’ निशा ने कहा.

‘‘एक मां की अपनी जवान बेटी के लिए दूसरी कई चिंताएं होती हैं, वह पैसों को देख उन चिंताओं से मुक्त नहीं हो सकती. मगर मेरी इन बातों का मतलब तुम अभी नहीं समझोगी. जब समझोगी तब तक बड़ी देर हो जाएगी. उस वक्त शायद मैं भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगी.’’ मम्मी की बातों को निशा ने सुना अवश्य किंतु गंभीरता से नहीं लिया. पहली तनख्वाह के मिलने के बाद उत्साहित निशा के सपने जैसे आसमान को छूने लगे थे. सारी ख्वाहिशें भी मुट्ठी में बंद नजर आने लगी थीं. दूसरी तनख्वाह के पैसों से घर की हालत में साफ एक बदलाव आया. मम्मीपापा जिस पुराने पलंग पर सोते थे वह काफी जर्जर और कमजोर हो चुका था. पलंग मम्मी के दहेज में आया था और तब से लगातार इस्तेमाल हो रहा था. अब पलंग में जान नहीं रही थी. पापा लंबे समय से एक सिंगल बड़े साइज का बैड खरीदने की बात कह रहे थे मगर पैसों की वजह से वे ऐसा कर नहीं सके थे. अब जब निशा की तनख्वाह के रूप में घर में ऐक्स्ट्रा आमदनी आई थी तो पापा ने नया बैड खरीदने में जरा भी देरी नहीं की थी. नए बैड के साथ ही पापा उस पर बिछाने के लिए चादरों का एक जोड़ा भी खरीद लाए थे. नए बैड और उस पर बिछी नई चादर से पापा और मम्मी के सोने वाले कमरे का जैसे नक्शा ही बदल गया था. पापा खुश थे, किंतु मम्मी के चेहरे पर आशंकाओं के बादल थे. वे चाहती हुई भी हालात के साथ समझौता नहीं कर पा रही थीं.

इधर, निशा के सपनों का संसार और बड़ा हो रहा था. जो उस को मिल गया था वह उस से कहीं ज्यादा हासिल करने की ख्वाहिश पाल रही थी. अपनी ख्वाहिशों के बीच में निशा को कई बार ऐसा लगता था कि उस की भावी तरक्की का रास्ता उस के बौस के केबिन से हो कर ही गुजरेगा. मगर औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों की तरह अभी बौस ने उसे एक बार भी अकेले किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. हालांकि औफिस में काम करते हुए उस को 2 महीने से अधिक हो चुके थे. बौस के द्वारा एक बार भी केबिन में न बुलाए जाने के कारण निशा के अंदर एक तरह की हीनभावना जन्म लेने लगी थी. वह सोचती थी दूसरी लड़कियों में ऐसा क्या था जो उस में नहीं था? जब उक्त सवाल निशा के जेहन में उठा तो उस ने औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों पर गौर करना शुरू किया. गौर करने पर निशा ने महसूस किया कि औफिस में काम करने वाली और बौस के केबिन में आनेजाने वाली लड़कियां उस से कहीं अधिक बिंदास थीं. इतना ही नहीं, वे अपने रखरखाव और ड्रैस कोड में भी निशा से एकदम जुदा नजर आती थीं. औफिस की दूसरी लड़कियों को देख कर लगता था कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने मेकअप और कपड़ों पर ही खर्च कर डालती थीं और ब्यूटीपार्लरों में जाना उन के लिए रोज की बात थी.

लड़कियां जिस तरह के कपड़े पहन औफिस में आती थीं, वैसे कपड़े पहनने पर तो शायद मम्मी निशा को घर से बाहर भी नहीं निकलने देतीं. उन वस्त्रों में कटाव व उन की पारदर्शिता में से जिस्म का एक बड़ा हिस्सा साफ नजर आता था. कई बार तो निशा को ऐसा भी लगता था कि बौस के कहने पर औफिस में काम करने वाली लड़कियां औफिस से बाहर भी क्लाइंट के पास जाती थीं. क्यों और किस मकसद से, यह अभी निशा को नहीं मालूम था. मगर तरक्की करने के लिए उसे खुद ही सबकुछ समझना था और उस के लिए खुद को तैयार भी करना था. वैसे बौस के केबिन में कुछ वक्त बिता कर बाहर आने वाली लड़कियों के अधरों की बिखरी हुई लिपस्टिक को देख निशा की समझ में कुछकुछ तो आने ही लगा था. निशा को उस की औकात और काबिलीयत से अधिक मिलने पर भी मम्मी की आशंका सच भी हो सकती थी, किंतु भौतिक सुखों की बढ़ती चाहत में निशा इस का सामना करने को तैयार थी. आगे बढ़ने की चाह में निशा की सोच भी बदल रही थी. उस को लगता था कि कुछ हासिल करने के लिए थोड़ी कीमत चुकानी पड़े तो इस में क्या बुराई है. शायद यही तो कामयाबी का शौर्टकट था. बौस के केबिन से बुलावा आने के इंतजार में निशा ने खुद को औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों के रंग में अपने को ढालने के लिए पहले ब्यूटीपार्लर का रुख किया और इस के बाद वैसे ही कपड़े खरीदे जैसे दूसरी लड़कियां पहन कर औफिस में आती थीं.

औकात से ज्यादा: भाग 1

लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी. निशा कुछ करने को इसलिए भी बेचैन थी क्योंकि नौकरी करने वाली लड़कियों के हाथों में दिखलाई पड़ने वाले आकर्षक व महंगे टच स्क्रीन मोबाइल फोन अकसर उस के मन को ललचाते थे और उस की ख्वाहिश थी कि वैसा ही मोबाइल फोन जल्दी उस के हाथ में भी हो. निशा के सपने केवल टच स्क्रीन मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं थे.  टच स्क्रीन मोबाइल से आगे उस का सपना था फैशनेबल कीमती लिबास और चमचमाती स्कूटी. निशा की कल्पनाओं की उड़ान बहुत ऊंची थी, मगर उड़ने वाले पंख बहुत छोटे. अपने छोटे पंखों से बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखना ही निशा की सब से बड़ी भूल थी. वह जिस उम्र में थी, उस में अकसर लड़कियां ऐसी भूल करती हैं. वास्तव में उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे की दुनिया कितनी बदसूरत व कठोर है.

अपने सपनों की दुनिया को हासिल करने को निशा इतनी बेचैन और बेसब्र थी कि मम्मी और पापा के समझाने के बावजूद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में दाखिला नहीं लिया. वह बोली, ‘‘नौकरी करने के साथसाथ आगे की पढ़ाई भी हो सकती है. बहुत सारी लड़कियां आजकल ऐसा ही कर रही हैं. कमाई के साथ पढ़ाई करने से पढ़ाई बोझ नहीं लगती.’’ ‘‘जब हमें तुम्हारी पढ़ाई बोझ नहीं लगती तो तुम को नौकरी करने की क्या जल्दी है?’’ मम्मी ने निशा से कहा. ‘‘बात सिर्फ नौकरी की ही नहीं मम्मी, दूसरी लड़कियों को काम करते और कमाते हुए देख कई बार मुझ को कौंप्लैक्स  महसूस होता है. मुझे ऐसा लगता है जैसे जिंदगी की दौड़ में मैं उन से बहुत पीछे रह गई हूं,’’ निशा ने कहा. ‘‘देख निशा, मैं तेरी मां हूं. तुम को समझाना और अच्छेबुरे की पहचान कराना मेरा फर्ज है. दूसरों को देख कर कुछ करने की बेसब्री अच्छी नहीं. देखने में सबकुछ जितना अच्छा नजर आता है, जरूरी नहीं असलियत में भी सबकुछ वैसा ही हो. इसलिए मेरी सलाह है कि नौकरी करने की जिद को छोड़ कर तुम आगे की पढ़ाई करो.’’

‘‘जमाना बदल गया है मम्मी, पढ़ाई में सालों बरबाद करने से फायदा नहीं.  बीए करने में मुझे जो 3 साल बरबाद करने हैं, उस से अच्छा इन 3 सालों में कहीं जौब कर के मैं अपना कैरियर बनाऊं,’’ निशा ने कहा. मम्मी के लाख समझाने के बाद भी निशा नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उस के अंदर जबरदस्त जोश और आत्मविश्वास था. उस के पास ऊंची पढ़ाई के सर्टिफिकेट और डिगरियां नहीं थीं, लेकिन यह विश्वास अवश्य था कि अगर अवसर मिले तो वह बहुतकुछ कर के दिखा सकती है. वैसे देखा जाए तो लड़कियों के लिए काम की कमी ही कहां? मौल्स, मोबाइल और इंश्योरैंस कंपनियों, बड़ीबड़ी ज्वैलरी शौप्स और कौस्मैटिक स्टोर आदि पर ज्यादातर लड़कियां ही तो काम करती नजर आती थीं. ऐसी जगहों पर काम करने के लिए ऊंची क्वालिफिकेशन से अधिक अच्छी शक्लसूरत की जरूरत थी जोकि निशा के पास थी. सिर्फ अच्छी शक्लसूरत कहना कम होगा, निशा तो एक खूबसूरत लड़की थी. उस में वह जबरदस्त चुंबकीय खिंचाव था जो पुरुषों को विचलित करता है. कहने वाले इस चुंबकीय खिंचाव को सैक्स अपील भी कहते हैं.

निशा उत्साह और जोश से भरी नौकरी की तलाश में निकली अवश्य, मगर जगह- जगह भटकने के बाद मायूस हो वापस लौटी. नौकरी का मिलना इतना आसान नहीं जितना लगता था. निशा 3 दिन नौकरी की तलाश में घर से निकली, मगर उस के हाथ सिर्फ निराशा ही लगी. इस पर मम्मी ने उस को फिर से समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं फिर कहती हूं, यह नौकरीवौकरी की जिद छोड़ और आगे की पढ़ाई कर.’’ निशा अपनी मम्मी की कहां सुनने वाली थी. उस पर नौकरी का भूत सवार था. वैसे भी, बढ़े हुए कदमों को वापस खींचना अब निशा को अपनी हार की तरह लगता था. वह किसी भी कीमत पर अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी. फिर एक दिन नौकरी की तलाश में निकली निशा, घर आई तो उस के चेहरे पर अपनी कामयाबी की चमक थी. निशा को नौकरी मिल गई थी. नौकरी के मिलने की खुशखबरी निशा ने सब से पहले अपनी मम्मी को सुनाई थी. निशा को नौकरी मिलने की खबर से मम्मी उतनी खुश नजर नहीं आईं जितना कि निशा उन्हें देखना चाहती थी.

मम्मी शायद इसलिए एकदम से अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकीं क्योंकि एक मां होने के नाते जवान बेटी की नौकरी को ले कर दूसरी तरह की कई चिंताएं थीं. इन चिंताओं को अपनी रंगीन कल्पनाओं में डूबी निशा नहीं समझ सकती थी. बेटी की नौकरी की खबर से खुश होने से पहले मम्मी कई बातों को ले कर अपनी तसल्ली कर लेना चाहती थीं.

‘‘किस जगह पर नौकरी मिली है तुम को?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘शहर के एक बहुत बड़े शेयरब्रोकर के दफ्तर में. वहां पहले भी बहुत सारी लड़कियां काम कर रही हैं.’’

‘‘तनख्वाह कितनी होगी?’’

‘‘शुरू में 20 हजार रुपए, बाद में बढ़ जाएगी,’’ इतराते हुए निशा ने कहा. नौकरी को ले कर मम्मी के ज्यादा सवाल पूछना निशा को अच्छा नहीं लग रहा था. तनख्वाह के बारे में सुन मम्मी का माथा जैसे ठनक गया. उन को सबकुछ असामान्य लग रहा था.  बेटी की योग्यता को देखते हुए 20 हजार रुपए तनख्वाह उन की नजर में बहुत ज्यादा थी. एक मां होने के नाते उन को इस में सब कुछ गलत ही गलत दिख रहा था. वे जानती थीं कि मात्र 7-8 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए बहुत से पढ़ेलिखे लोग इधरउधर धक्के खाते फिर रहे थे. ऐसे में अगर उन की इतनी कम पढ़ीलिखी लड़की को इतनी आसानी से 20 हजार रुपए माहवार की नौकरी मिल रही थी तो इस में कुछ ठीक नजर नहीं आता था. निशा की मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन को मालूम था कि अगर कोई किसी को उस की काबिलीयत और औकात से ज्यादा दे तो इस के पीछे कुछ मतलब होता है, और औरत जात के मामले में तो खासकर. लेकिन निशा की उम्र शायद अभी इस बात को समझने की नहीं थी. उजालों के पीछे की अंधेरी दुनिया के सच से वह अनजान थी. सोचने और विचार करने वाली बात यह थी कि मात्र दरजा 10+2 तक पढ़ी हुई अनुभवहीन लड़की को शुरुआत में ही कोई इतनी मोटी तनख्वाह कैसे दे सकता था. मम्मी को हर बात में सबकुछ गलत और संदेहप्रद लग रहा था, इसलिए उन्होंने निशा को उस नौकरी के लिए साफसाफ मना किया, ‘‘नहीं, मुझ को तुम्हारी यह नौकरी पसंद नहीं, इसलिए तुम वहां नहीं जाओगी.’’

मम्मी की बात को सुन निशा जैसे हैरानी में पड़ गई और बोली, ‘‘इस में नापसंद वाली कौन सी बात है, मम्मी? इतनी अच्छी सैलरी है. किसी प्राइवेट नौकरी में इतनी बड़ी सैलरी मिलना बहुत मुश्किल है.’’ ‘‘सैलरी इतनी बड़ी है, इस कारण ही तो मुझ को यह नौकरी नापसंद है,’’ मम्मी ने दोटूक लहजे में कहा.

‘‘सैलरी इतनी बड़ी है इसलिए तुम को यह नौकरी पसंद नहीं?’’

‘‘हां, क्योंकि मैं नहीं मानती सही माने में तुम इतनी बड़ी सैलरी पाने के काबिल हो. जो कोई भी तुम को इतनी सैलरी देने जा रहा है उस की मंशा में जरूर कुछ खोट होगी,’’ मम्मी ने अपने मन की बात निशा से कह दी. मम्मी की बात को निशा ने सुना तो गुस्से से उत्तेजित हो उठी, ‘‘आप पुरानी पीढ़ी के लोगों को न जाने क्यों हर अच्छी चीज में कुछ गलत ही नजर आता है. वक्त बदल चुका है मम्मी, अब काबिलीयत का पैमाना सर्टिफिकेटों का पुलिं?दा नहीं बल्कि इंसान की पर्सनैलिटी और काम करने की उस की क्षमता है.’’

‘‘मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’ निशा के तेवर बगावती थे. उस के बगावती तेवरों को देख मम्मी एकाएक जैसे ठिठक सी गईं, ‘‘एक मां होने के नाते तुम को समझाना मेरा फर्ज था, मगर लगता है तुम मेरी बात मानने के मूड में नहीं हो. अब इस मामले में तुम्हारे पापा ही तुम से कोई बात करेंगे.’’

‘‘मैं पापा को मना लूंगी,’’ निशा ने लापरवाही से कहा. मम्मी के विरोध को दरकिनार कर के निशा ने जैसा कहा, वैसे कर के भी दिखलाया और नौकरी पर जाने के लिए पापा को मना लिया. लेकिन मम्मी निशा से नाराज ही रहीं. मम्मी की नाराजगी की परवा नहीं कर के निशा नौकरी पर चली गई. एक नौकरी उस के कई सपनों को पूरा करने वाली थी, इसलिए वह रुकती तो कैसे रुकती. मगर उस को यह नहीं मालूम था कि कभीकभी अपने कुछ सपनों की अप्रत्याशित कीमत भी चुकानी पड़ती है. संजय शहर का एक नामी शेयरब्रोकर था. पौश इलाके में स्थित उस का एअरकंडीशंड औफिस काफी शानदार था और उस में कई लड़कियां काम करती थीं. शेयरब्रोकर संजय की उम्र तकरीबन 40 वर्ष थी. उस का सारा रहनसहन और जीवनशैली एकदम शाही थी. ऐसा क्यों नहीं होता, एक ब्रोकर के रूप में वह हर महीने लाखों की कमाई करता था. संजय के औफिस में एक नहीं, कई कंप्यूटर थे जिन के जरिए वह दुनियाभर के शेयर बाजारों के बारे में पलपल की खबर रखता था.

Lockdown में फैंस के लिए ऐसे फोटोज शेयर कर रही हैं ‘तारक मेहता’ की ‘बबिता जी’

टीवी के सबसे पसंदीदा शो में से एक है. ‘तारक मेहता’ का उल्टा चश्मा. हर घर में इस शो को देखा जाता है. इस शो में बबीता का किरदान निभाने वाली मुनमुन दत्ता एक बार फिर अपनी नई तस्वीर में सुर्खियों में आ गई है.

बबीता के किरदार को सभी लोग खूब पसंद करते हैं. फैंस को इनके नए लुक का इंतजार रहता है. हाल ही में मुनमुन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी नई तस्वीर शेयर की है. जिसमें ट्रेडिशन लुक में नजर आ रही हैं.

मुनमुन यह तस्वीर शेयर करते हुए लोगों से अपील की हैं कि घर के अंदर रहे स्वस्थ रहें. फैंस इनके तस्वीर को कमेंट और शेयर कर रहे हैं. बता दें इस तस्वीर में मुनमुन बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

रेड लिपस्टिक और कानों में इंयरिंग पहने मुनमुन बलां की खूबसूरत लग रही हैं. एक्ट्रेस का एथनिक लुक लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

सेल्फी के दौरान मुनमुन ने ब्लैक कलर की ऑउटफिट पहना हुआ हैं. जो खूब जच रहा है. मुनमुन दत्ता आए दिन इंस्टाग्राम पर अपनी तस्वीर शेयर करती रहती हैं.

 

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मुनमुन ने अपने करियर की शुरुआत साल 2004 में सीरियल बाराती से किया था. जिसके बाद फैंस के दिलों पर राज करने लगी.

मुनमुन और भी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं. फिलहाल मुंबई में अपनी फैमली के साथ समय बीता रही हैं

Lockdown में राखी सावंत ने शेयर की Wedding Photos, फैंस बोले- पति कहां है?

बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत एक बार फिर चर्चा में आ गई हैं. राखी सावंत पिछले आठ महीने से अपनी शादी की खबर के लेकर सुर्खियों में थी. राखी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने पति का हाथ थामे दुल्हन के अवतार में वीडियो पोस्ट किया है. जिसे देखकर फैंस एक बार फिर राखी के शादी पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

इस तस्वीर में राखी सावंत ने लाल जोड़ा पहन रखा है. बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही हैं.
राखी सावंत ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है मेरी शादी की फोटो. राखी ने एक के बाद एक कई तस्वीर शेयर की है लेकिन इन सभी फोटो में उनके पति कही नजर नहीं आ रहे हैं.

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इस फोटो में देख सकते है कि राखी सावंत नजर आ रही हैं साथ में उनके पति का सिर्फ हाथ ही नजर आ रहा है. इस पर राखी के फैंस लगातार उनसे पति के बारे में सवाल कर रहे हैं. एक ने तो लिखा पति की भी एक झलक दिखा दो.

राखी सावंत ने एक लंबे ड्रामा के बाद पिछले साल अगस्त में अपनी शादी का खुलासा किया था. रिपोर्ट की माने तो राखी ने एक एनआरआई लड़के से शादी की है. जिसे राखी ने बहुत पर्सनल रखा है.

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आए दिन राखी अपने नए-नए ड्रामे की वजह से सुर्खियों में बनी रहती हैं, यह तो नहीं पता है कि राखी इन दिनों कहा है लेकिन जहां भी है नियमों का पालन करते हुए घर के अंदर हैं.

लॉकडाउन टिट बिट्स: पार्ट 6

जमादार संग जन्मदिन –

लॉकडाउन के दौरान जिनके जन्मदिन पड़ रहे हैं वे अपने आप से ही हेप्पी बर्थ डे कहकर सेलिब्रेट कर रहे हैं. 12 अप्रैल को मध्यप्रदेश के राज्यपाल लाल जी टंडन ने भी अपना जन्मदिन सादगी से मनाया पर इसकी एक खास बात जो भोपाल के राजभवन की चारदीवारी में ही कैद होकर रह गई वह यह थी कि राज्यपाल महोदय ने एक जमादार को भी साथ बैठालकर खाना खिलाया. कायदे से इस खबर को जितना रेस्पोंस मिलना चाहिए था वह नहीं मिला क्योंकि मीडिया का सारा ध्यान इन दिनों कोरोना और लॉकडाउन से जुड़ी खबरों और उससे भी ज्यादा अफवाहों पर है . लॉकडाउन के चलते बड़े नेता अधिकारी बुके लेकर राजभवन नहीं पहुंचे थे इसलिए भी इस गरमागरम समाचार की भ्रूण हत्या हो गई.

दलितों के साथ भोज कर उन्हें उपकृत करने का सियासी रिवाज सादगी से सम्पन्न हो गया तो कहना मुश्किल है कि यह बड़प्पन था , मजबूरी थी या फिर मनोरंजन था. बहरहाल डाइनिंग टेबल पर सोशल डिस्टेन्सिंग का पूरा और खास ध्यान रखा गया जिससे हल्दी लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा आया. लालजी टंडन के जन्मदिन पर उनकी तनहाई के साथी इस जमादार की तो मानो पीढ़ियाँ तर गईं. लेकिन वह पैदाइशी बेचारा यह कभी नहीं समझ पाएगा कि वह दिन कब आएगा जब देश के नेता यह सोचें कि जो स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन वे रोज खाते हैं वह दलितों को कभीकभार भी नसीब क्यों नहीं होता.

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सबसे बड़े भक्त की परीक्षा –

इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना और लॉकडाउन से दान दक्षिणा का कारोबार भी प्रभावित हुआ है लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात पंडे पुजारियों के लिए यह है कि फुर्सत में बैठे लोग कहीं यह सोचना शुरू न कर दें कि जब बगैर दान दक्षिणा के भी काम चल ही जाता है तो क्यों पैसा जाया किया जाये और भगवान कहीं है तो उसने कोरोना को भस्म क्यों नहीं कर दिया उल्टे खुद ही बंद हो गया . देश भर में जो ब्रांडेड मंदिर बंद हैं उनमे से एक केदारनाथ का भी है. इस मंदिर की मूर्ति की पूजा अति उच्च श्रेणी के रावल समुदाय के ब्राह्मणो के निर्देशन में ही होती है. इन दिनों यह ज़िम्मेदारी भीमा शंकर रावल निभा रहे हैं जो महाराष्ट्र के नांदेड तरफ कहीं फंसे हुये हैं.

अब यह कोई हिन्दी फिल्म तो है नहीं कि भीमा शंकर उड़कर केदारनाथ पहुँच जाएँ लिहाजा उन्होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि वे ही उड़नखटोले का इंतजाम कर दें. केदारनाथ के कपाट 29 अप्रेल को खुलना है अब अगर नरेंद्र मोदी कृपा नहीं बरसाते हैं तो सालों पुराना रिवाज टूट जाएगा और मूर्ति मुकुट विहीन ही रहेगी क्योंकि भगवान का स्वर्ण मुकुट रावल अपने पास ही रखते हैं और कभी कभार इसे पहनते भी हैं. पैसों की तंगी के इस दौर में अगर सरकार फिजूल का यह खर्च करती है तो भी निशाने पर रहेगी कि लाखों दरिद्रनरायन यानि मजदूर यहाँ वहाँ भूखे प्यासे फंसे पड़े हैं और आप एक  रावल के केदारनाथ मंदिर पहुँचने के लिए हवाईजहाज पर पैसा फूँक रहे हैं.

असल परीक्षा इस रावल की नहीं बल्कि मोदी जी की है जो कभी कभार हिमालय की किसी गुफा में जाकर ध्यानमग्न होकर बैठ जाते हैं तो समूचे आर्यावर्त में हाहाकार मच जाता है. लोग शंकर से ज्यादा नरेंद्र को पूजने लगते हैं. आखिर ज्ञान, ध्यान और योग, समाधि बाला कट्टर हिन्दूवादी नीलकंठनुमा पीएम पहली बार मिला है जिसे उस वक्त तक नहीं खोना है जब तक जीडीपी शून्य से भी नीचे न आ जाए अर्थात सभी भिक्षुक न हो जाएँ. अब देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी भीमा शंकर को कैसे केदारनाथ पहुंचाते हैं . फैसला होने तक रावल चाहें तो यह दोहा गुनगुना  सकते हैं कि ……. कभी कभी भगवान को भी भक्तो से काम पड़े, जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े….

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बक़ौल जस्टिस काटजू –

लॉकडाउन का दौर यूं ही सूना सूना सा गुजर जाता अगर रिटायर्ड जस्टिस मार्कण्डेय काटजू यह ट्वीट न करते कि ईश्वर कहीं है तो कोरोना को खत्म क्यों नहीं कर देता. बात बहुत मामूली है और हर किसी के खासतौर से आस्तिकों के दिमाग में सबसे पहले आई होगी जो दिन रात पूजा पाठ में उलझे अपना और दूसरों का भी वक्त व पैसा जाया किया करते हैं. हैरान परेशान इन लोगों का संदेह दूर करने ऊपर से कोई आकाशवाणी नहीं हुई तो ये नीचे बालों की सलाह पर दोगुने जोश से भजन पूजन में यह सोचते लग गए कि यह भी एक तरह की प्रभु लीला ही है लिहाजा ज्यादा सर, घबराहट पैदा करने बाले इस सवाल में न खपाया जाये.

घोषित तौर पर घनघोर नास्तिक जस्टिस काटजू तो अगले ट्वीटके मसौदे पर चिंतन मनन करने अपनी लाइब्रेरी तरफ चले गए लेकिन सोशल मीडिया पर खासा बबाल मचा गए जिसके लिए वे बदनाम भी खूब हैं. भक्तों ने नाना प्रकार के तर्क दिये कुछ अभक्तों ने उनका समर्थन भी किया. लेकिन उनके मामूली से सवाल का कोई भी सटीक जबाब नहीं दे पाया. बड़े और नामी धर्म गुरु व शंकराचार्य नुमा महामानव और मुल्ले, पादरी तक अपने अपने ईश्वर की इस खामोशी पर हैरान हैं और ऐसी किसी बहस से कतरा रहे हैं जो उनकी दुकानदारी के लिए खतरा बन जाये तो इन पर तरस आना स्वभाविक बात है. डर तो इस बात का है कि कल को ये लोग कोरोना को ही अवतार घोषित कर उसके पूजा पाठ के इंतजाम न करा दें जैसे कभी स्माल पाक्स को शीतलामाता करार देकर करबाए थे.

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आ अब लौट चलें –

बसपा प्रमुख मायावती ने मुद्दत बाद वे तेवर दिखाये जिनहोने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.   अंबेडकर जयंती के मौके पर अनायास या जानबूझकर उन्हें याद आया कि बाबा साहब ने तो पूरी ज़िंदगी दलितों के भले के लिए समर्पित कर दी थी और एक वे हैं जो बार बार मनुवादियों के बहकाबे में आकर अपने दलित भाई बहिनों को भूल जाती हैं. लिहाजा भूल सुधारते उन्होने अरसे बाद एक सच्ची बात यह कही कि लॉकडाउन के चलते जो लाखों मजदूर देश भर में इधर उधर फंसे हैं उनमें से 90 फीसदी दलित और अति पिछड़े हैं जिनकी अनदेखी हर एक सरकार ने की.

उनके इस बयान पर प्रतिक्रियाएँ तय है देर से आएंगी खासतौर से भाजपा इसे तूल देकर अपना नुकसान नहीं करना चाहेगी क्योंकि उसका वोट बेंक तो अपने घरों में आराम फरमाता रामायण और महाभारत का लुत्फ उठा रहा है. वह अगर कुछ कहेगी भी तो सिर्फ इतना कि इस नाजुक मुद्दे पर धर्म और जात पांत की राजनीति न की जाये. लेकिन मायावती ने कर दी है तो यह उनकी मजबूरी भी हो गई थी वजह उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा था उल्टे कोसने बाले कोस ही रहे थे कि बातें तो बड़ी बड़ी करती थीं अब जब दलित बड़ी दिक्कत में है तो तो मुंह में दही जमाए बैठी हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि मायावती इस सच पर कितने दिनों कायम रह पाती हैं और कैसे कैसे इसे भुना पाती हैं.

#coronavirus: लॉकडाउन और शादी

कोरोना की वजह से लॉकडाउन है.साथ में शादी विवाह के लिए लगन का भी महीना.इस महीनें लाखों युवा युवती परिणय सूत्र में बंधने वाले थे.बहुत लोगों द्वारा अपने निकट सबन्धियों को आमंत्रण पत्र भी भेजे जा चुके थे.इसी बीच कोरोना का कहर शादी विवाह पर भी भारी पड़ने लगा.शादी का समय नजदीक आने लगा.बहुतेरे होने वाले दूल्हा दुल्हन का सगाई छेंका और मगनी,रिंग शिरोमणि शादी के पूर्व की रश्में पूरी हो गयी.इसी बीच कोरोना के कहर ने ख्वाबों की दुनिया पर ताला जड़ दिया.इस लॉक डाउन की वजह शादी विवाह पर भी रोक लग गयी.लोगों को नहीं मालूम कि अब कबतक चलेगा लॉक डाउन अगर लॉक डाउन खत्म भी हो गया तो सोशल डिस्टेंसिंग का मामला कबतक चलेगा.इस उधेड़बुन में होनेवाले दूल्हा दुल्हन के साथ में इनके परिजन और इष्ट मित्र भी पड़े हुवे हैं.

जहाँ लाखों शादियाँ रुक गयी है.इसी बीच बिहार के नवादा जिला से एक अच्छी खबर आई है कि बिना भीड़ भाड़ के दूल्हा दुल्हन मुँह में मास्क लगाये परिणय सूत्र में बंध गए. जहां कोरोना के कहर के बीच मुंह पर मास्क लगाकर पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर एक युवक और युवती परिणय सूत्र में बंध गए. यह यादगार शादी  शेखपुरा जिलाधिकारी की अनुमति के बाद संभव हो सकी.

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विश्व भर में एक महामारी के रूप में फैले कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन ने आम जनजीवन पर ब्रेक लगा दिया है, लोग फिलहाल अपने घरों में ही रह रहे हैं और सिर्फ जरूरी समान के लिए ही अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं.ऐसे में मुंह पर मास्क लगाए हिसुआ थाना क्षेत्र के अंदर बाजार काली स्थान के निवासी स्व धर्म देव प्रसाद कंधवे की पुत्री श्वेता कुमारी ने गौरव कुमार के साथ अग्नि के साथ फेरे लेकर नए जीवन की शुरुआत की.

बरबीघा थाना क्षेत्र के झंडा चौक के हनुमान गली के रहने वाले निवासी स्व गोपाल प्रसाद के पुत्र गौरव कुमार ने शेखपुरा के ज़िलाधिकारी इनायत खान के पास शादी की अर्जी लगायी.वहीं इस विवाह करने की अर्ज़ी पर डी एम ने लॉकडाउन का पालन करने व सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखने के शर्त पर पास निर्गत किया.तब जाकर यह शादी सम्पन्न हो सका. इस दौरान लड़की का भाई और लड़के के चाचा गवाह के तौर पर मौजूद रहे.

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यह शादी पिछले नौ माह पहले ही तय हो चुकी थी और 15 अप्रैल 2020 की तिथि शादी के लिए निर्धारित की गई थी, परंतु वैश्विक महामामारी के कारण शादी टलने ही वाली थी लेकिन शेखपुरा जिलाधिकारी के आदेश के बाद यह सम्भव हो सका.

* पंडित की पंडितई नहीं डी एम का आदेश चला

एक तरफ शुभ लगन मुहूर्त देखकर हर काम करने को हमारे हिन्दू धर्म में प्रचलन है.खासकर शादी विवाह के मामले में और अधिक.पण्डित जी लग्नपत्री देखकर शादी विवाह के लिए तिथि मुहूर्त के अनुसार शुभ तिथि बताते हैं.उसके बदले में उन्हें दान दक्षिणा भी मिलता है.पूरे देश मे इस वर्ष भी लगन मुहूर्त देखकर पण्डित जी के अनुसार लोगों ने अपने लड़के लड़कियों के शादी और अन्य वैवाहिक कार्यक्रमों की तिथि तय की.लोगों ने आमंत्रण पत्र भी छपवाए.

पण्डित जी को तो शुभ लगन मुहूर्त देखकर यह मालूम होना चाहिए था कि इस महीने या आगे का महीना अशुभ है.कोरोना वायरस का प्रकोप होने वाला है.लेकिन पण्डित जी को यह सब पता नहीं उन्हें सिर्फ शुभ ही शुभ दिखाई दिया और लोगों को वैवाहिक कार्यक्रमो के बारे में जानकारी दी.तिथि के अनुसार लोगों ने खाना बनाने वाले,नाच बाजा, टेंट और गाड़ी वाले को अग्रिम पैसे दे दिए.लेकिन कोरोना बीमारी की वजह से रोक लग गयी.सच मायने में इन पंडितों के ऊपर मुकदमा दायर होना चाहिए कि तुम्हारे वजह से मेरा इतना नुकसान हुआ.अगर तुम्हें सही जानकारी होती तो तुम्हें सब शुभ अशुभ पता होना चाहिए था.

इस कोरोना की बीमारी और पण्डित जी का पावर और ज्ञान का पता आम लोगों को चलना चाहिए .अब समय आ गया है.इन चीजों को समझने का.पण्डित की पण्डितई नहीं इस शादी में डी एम साहब का आदेश लागू हुआ.देश के लोंगों आँख पर बन्द पट्टी को खोलो.

लॉकडाउन पर उठाया राहुल गांधी ने सवाल

लॉकडाउन को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पर सवाल उठा दिया है. कोरोना वायरस से निपटने के लिए लॉकडाउन कि नीति पर राहुल गांधी ने कहा कि इसके जरिए कोरोना वायरस के संकट को हरा नहीं पाएंगे.

राहुल गांधी ने कहा कि कोरोना को हराने का एक ही तरीका है कि इसकी टेस्टिंग बड़े स्तर पर की जाए.देश में रैंडम टेस्टिंग भी होनी चाहिए. एक जिले में औसतन सिर्फ 350 टेस्ट हो रहे हैं जो नाकाफी हैं. देश में टेस्टिंग की दर बहुत कम है और इसके चलते ही कोरोना वायरस के मरीजों की सही संख्या के बारे में पता नहीं चल पा रहा है. जब देश से लॉकडाउन हटेगा तो कोरोना वायरस का खतरा और बढ़ेगा. इस सच्चाई को समझना होगा.

राज्यो को मिले राहत पैकेज

राहुल गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार को राज्यों को पैसा देना चाहिए और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को और ज्यादा ताकत देनी चाहिए. सरकार के पास गोदामों में अनाज भरा हुआ है और इसे सरकार को गरीबों के लिए खोल देना चाहिए.

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सरकार को समझना होगा कि कोरोना वायरस के कारण देश में आगे चलकर खाद्यान्न की कमी होने वाली है, नौकरियों की भारी पैमाने पर कटौती होने वाली है. सरकार के पास इससे निपटने की दिशा में काम शुरू करना चाहिए.

कोरोना से कम नही भूख

राहुल गांधी ने कहा कि देश में कोरोना संकट के कारण लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है जो कि सबसे जरूरी है. सरकार को अपने गोदाम गरीब लोगों के लिए खोल देने चाहिए. 10 किलो चावल और गेहूं, 1 किलो दाल, 1 किलो चीनी सरकार को हर हफ्ते गरीब लोगों को मुहैया कराना चाहिए. आज भी कई लोगों के पास राशन कार्ड तक नहीं है तो ऐसे लोगों के पास खाने पीने का सामान कैसे पहुंचे, इसकी सरकार को चिंता करनी चाहिए.

आपसी सहयोग पर बल दिया

राहुल गांधी ने कहा भारत किसी भी महामारी से जीत सकता है लेकिन इस समय हमें एक होकर इससे लड़ना होगा. अगर हम लोग बंट गए तो वायरस जीत जाएगा लेकिन अगर हम मिलकर इसका सामना करें तो वायरस हार जाएगा.

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राहुल गांधी ने सरकार को सुझाव देते हुए कहा कि उसे हेल्थ के मोर्चे पर तो लड़ना ही है लेकिन इकोनॉमी के मोर्चे पर भी कई काम करने होंगे. सबसे गरीब लोगों के बैंक खाते में सीधा पैसा पहुंचाना चाहिए. उनको खाने का सामान मुहैया कराया जाए और लॉकडाउन के बाद लोगों के आर्थिक जीवन की सुरक्षा के लिए भी कई कदम उठाने चाहिए.

भक्तों ने किया राहुल पर हमला

जैसे ही राहुल गांधी की बाते मीडिया में आनी शुरू हुई मोदी भक्तों ने राहुल गांधी को निशाने पर लेकर कहना शुरू किया कि राहुल गांधी ने चीन को मदद पहचाने के उद्देश्य से मोदी के कामकाज की आलोचना की है.पूरे विश्व मे चीन अलग थलग पड़ गया है. अब राहुल गांधी जैसे लोगो के बयानों की आड़ में चीन अपने मक्सद में सफल हो जाएगा.

19 दिन 19 कहानियां: दो पाटों के बीच -भाग 1

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुननेबाद रा के धा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

मौसम का बिगड़ता मिजाज, किसानों का न कल बचा न आज

खुशहाल किसानों की जो तसवीर हमारे जेहन में उभरी हुई थी, वह अब धूमिल होती नजर आ रही है. किसानों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली हालत हो गई है. गेहूं की फसल पक जाने के कारण किसान गेहूं फसल की कटाई में लगा है और कटा हुआ गेहूं खाली खेतों में ही पड़ा है. क्योंकि मंडी में अभी गेहूं नहीं पहुंचा है.

ऐसे में यह खबर आना किसानों को मुसीबत में डाल देगा कि आने वाले समय में मौसम फिर से करवट लेने वाला है. अगर किसान अपनी फसल का सही बंदोबस्त नहीं कर पाते हैं तो फसल चौपट हो सकती है.

मौसम विभाग की मानें तो जम्मूकश्मीर में पश्चिमी विक्षोभ बन रहा है. इस वजह से उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर गरज, चमक के साथ भारी बौछारें या ओले गिरने की संभावना है.

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अगर मौसम का मिजाज बिगड़ा तो किसानों की समस्‍याओं को और भी बढ़ा सकता है. उन के लिए एक तरफ कोरोना की मार है, तो वहीं दूसरी तरफ मौसम का भी आंखमिचौली का खेल चल रहा है.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने मौसम विभाग के हवाले से कहा है कि हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में आंधी के साथसाथ बारिश भी हो सकती है. इस वजह से यहां यलो अलर्ट जारी किया गया है. साथ ही, चेतावनी भी दी गई है कि बेहद खराब मौसम होने के कारण लोगों की जान को भी खतरा हो सकता है.

स्‍काइमेट वेदर एजेंसी के मुताबिक, जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में आने वाले दिनों में बारिश होने के आसार हैं. इन राज्‍यों में कई जगहों पर हलकी से मध्यम बारिश होगी, जबकि कुछ स्थानों पर भारी बौछारें या ओले पड़ने की आशंका है.

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वहीं पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बारिश या धूल भरी आंधी चलने की संभावना है. केरल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में भी कहींकहीं बारिश हो सकती है.

आने वाले दिनों में मौसम के करवट लेने से गरीब किसानों की तो मानो कमर ही टूट जाएगी. वे तो पहले ही तंगहाली में जी रहे थे और मौसम का कहर इन के लिए कहीं कयामत ही न ला दे.

19 दिन 19 टिप्स: क्या स्पर्म से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप?

आधुनिक जीवनशैली का खामियाजा पुरुषों को अपने शुक्राणुओं की संख्‍या (स्‍पर्म काउंट) खो कर चुकाना पड़ रहा है. इससे उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित और स्‍पर्म की गुणवत्ता भी घटी है. ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में आधुनिक जीवनशैली के कारण पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर हो रहे नकारात्मक असर का खुलासा हुआ है.

अध्ययन से यह बेहद चिंताजनक आंकड़े सामने आये हैं कि आज से 50 साल पहले पुरुषों के एक मिलीलीटर सीमन में शुक्राणुओं की संख्या 11 करोड़ तीस लाख थी जो वर्ष 1988 में घटकर छह करोड़ बीस लाख रह गयी और आज यह मात्र चार करोड़ सत्तर लाख रह गयी है.

बढता तनाव, मोटापा, खराब लाइफस्‍टाइल और प्रदूषण संसार के मर्दों के लिए खतरे के बडें सबब साबित हो सकते हैं. यह बात पुरुषों के लिये किसी सदमें से कम नहीं है,लेकिन अगर स्‍थिती अब भी संभाली जा सकती है. अगर पुरुष अपनी आदतों में कुछ सुधार कर लें तो वे अवश्‍य ही पिता बनने के काबिल हो सकते हैं.

किसी भी तरह के नशे और माचो मैन बनने की चाह में ली जाने वाली दवाइयों के इस्तेमाल पर रोक लगाने, गलत खानपान, डाइट में बदलाव लाने, शरीर के तापमान को कम करने, कैफीन के कम इस्तेमाल और मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करने से शुक्राणुओं को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और स्‍पर्म काउंट को बढ़ाया जा सकता है. इन उपायों को अपनाकर अच्छी मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं को बनना संभव बनाया जा सकता है.

अत्यधिक लूब्रिकन्ट का उपयोग

अत्यधिक लूब्रिकन्ट के उपयोग से बचें, वे भी शुक्राणु की मौत का कारण बन सकता है.

स्‍मोकिंग छोडे़

विशेषज्ञों का कहना है कि स्मोकिंग मर्दों में स्पर्म काउंट कम कर देती है तथा उनकी क्‍वालिटी भी ख्‍राब कर देती है इसलिए इसे छोडऩा अच्छा है. इससे गुर्दों को ब्लड सप्लाई कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.

कसी अंडरवेयर ना पहने

यदि कसी अंडरवेयर और पैन्‍ट पहनेंगे तो अंडकोष पर्याप्त शुक्राणुओं का उत्पादन नहीं कर पाएंगे तथा कम शुक्राणुओं की गिनती होगी. जब आपको कहीं पर ज्‍यादा देर तक के लिये बैठना हो तो टाइट अंडरवेयर ना पहने.

ना पिएं ज्‍यादा कौफी

रोज एक या दो कप कौफी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा जितना रोजना भारी मात्रा में कौफी पीने पर पडे़गा. इससे स्‍पर्म की गतिशीलता खराब हो जाती है.

रोजाना व्‍यायाम करें

रोजाना एक्‍सरसाइज करने से मोटापा और तनाव कम होगा और यह पूरे शरीर को स्‍वस्‍थ्‍य बनाएगा. बहुत ज्‍यादा कठिन एक्‍सरसाइज तथा ट्रेनिंग प्रोग्राम करने से बचे.

स्‍वस्थ वजन बनाए रखें

शरीर ना ज्‍यादा दुबला ही हो और ना ही ज्‍यादा मोटा क्‍योंकि शरीर का वजन ही एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर प्रभाव डालता है.

स्‍टीम बाथ से बचे

हफ्ते में एक बार सना बाथ और गरम पानी से नहाना ठीक है लेकिन 40 डि.से या फिर उससे अधिक टंपरेचर तक भी भाप और गरम पानी आपके स्‍पर्म की गिनती कम कर सकता है.

मोबाइल को पौकेट में ना रखें

मोबाइल या फिर लैपटौप को अपनी पॉकेट और जांघ पर ना रखें. अपने अंडकोष को इनके द्वारा निकलती हुई तेज गर्मी से बचाएं.

 

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