बीते पखवाड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के सभी देशों से कोरोना संकट के बीच गर्भधारण और गर्भपात को अनिवार्य स्वास्थ्य सेवा घोषित करने का अनुरोध किया था. संगठन ने सभी सरकारों से कहा था कि वे जिन भी सेवाओं को अनिवार्य मानती हैं, उन्हें चिह्नित करके वरीयता दें. इनमें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए. विश्व के कई देशों ने इस पर अमल भी किया. कई जगह रूढ़िवादी सोच ने इसे प्रभावित किया है. आइये जानते है इस संकट के समय प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या विशेष प्रभाव पड़ रहा है ..

* गर्भधारण करने का फैसला खुद महिला तय नहीं कर सकती :- आज भी हमारे देश समेत कई देशों में महिला यह तय नहीं कर सकती है कि उसे कब और किस उम्र पर गर्भधारण करना है. फैसला न ले पाना , का असर उनके सेहत पर पड़ता है , असमय वह कई बीमारियों का शिकार होती है.  लॉकडाउन के समय गर्भधारण रोने के उपायों भी सभी महिलाओं के पहुंच से दूर हुआ है . इस समय  कंडोम और गर्भनिरोधक पर सप्लाई नहीं हो पा रहा है, इसका असर महिलाओं पर पड़ रहा है. और कई महिलाएं अनचाहे गर्भ की परेशानी झेल रही हैं.

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* नवयुवतियों का असमय मौत होना चिंता जनक है :- यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया भर में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याएं होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट के अनुसार मातृत्व मृत्यु के 4.7% से 13.2% मामलों का कारण असुरक्षित गर्भपात है. विश्व में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 211 है.

* 95 लाख महिलाओं को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं  :- यूरोपीय देशों के लगभग 100 गैर-सरकारी संगठनों ने संयुक्त बयान में कहा है कि लॉक-डाउन के दौरान उन महिलाओं की मदद की जानी चाहिए जो प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करना चाहती हैं. वही लंदन की गैर-सरकारी संगठन ने चेतावनी दी थी कि कोविड-19 के कारण इस साल लगभग 95 लाख महिलाओं और लड़कियों को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाएंगी. यह संगठन दुनिया के 37 देशों में गर्भनिरोध और सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं मुहैया कराता है. संगठन का कहना है कि यात्रा पर प्रतिबंधों और लॉक-डाउन के चलते महिलाओं पर बुरा असर होगा क्योंकि उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने में परेशानी हो रही है . वही एक अन्य अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने बताया कि 64 देशों में उसके 5,600 क्लिनिक बंद कर दिए गए हैं. गर्भनिरोध के साधन और एचआईवी की दवाओं की भी कमी आई है .

 * निर्माण और सप्लाई बंद :- विश्व के कई इलाकों में कंडोम और दूसरे गर्भनिरोधक का निर्माण और सप्लाई बंद पड़ा है . इसके उत्पाद की अधिकतर कारखाने एशिया के कई देशों में है. बहुत सी कारखाने चीनी में है , जो अभी तक बंद हैं. तो अन्य देशों के कारखाने भी खुले नहीं है, बहुत से कारखाना मजदूरों को घर पर रहकर काम करने को या कम घंटे काम करने को कहा गया है. कही निर्माण हो ही नहीं रहा है तो कही इसके निर्माण क्षमता में भरी गिरावट दर्ज किया गया है. यातायात के साधन को बंद होने के कारण यह अपने तय विक्रेता के पास भी समय रहते नहीं पहुंच पा रहा है . अब सप्लाई बंद है तो  लाखों महिलाओं को प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी सामग्री मिलनी बंद हो गई हैं. इस कारण अपने पति और पुरुष मित्रों के साथ घरों तक सीमित हुई औरतों को अवांछित गर्भधारण का सामना करना पड़ रहा है.

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  * एक जिला ऐसा भी है जहाँ  घर घर बांटी जा रही है गर्भनिरोधक गोलियों :-   उत्तरप्रदेश के बलिया जिला में एसीएमओ डॉ वीरेंद्र कुमार के निगरानी में देश में जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के लिए परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं. इसी उपाय में कंडोम व माला डी गोलियां हैं. अधिकारी का कहना है कि परिवार नियोजन किट बांटने का यह अभियान पहले से चल रहा है. लॉकडाउन में लोग घरों में हैं. ऐसे में जनसंख्या न बढ़े इसे ध्यान में रखते हुए कंडोम बांटने वाले अभियान को निरंतर जारी रखा गया है. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

लॉकडाउन लगा तो टीकाकरण जैसे कार्यक्रम भी बंद हो गए. विदेश और देश के दूसरे हिस्सों से कौन आया, इसकी छानबीन के लिए घर-घर जा रहीं आशा कार्यकर्ता गर्भनिरोधक भी बांट रही हैं.  ये गोलियां उन्ही जोड़ों को दी जा रही हैं, जिनके छह माह या एक साल से ऊपर के बच्चे हैं और वे गर्भधारण के इच्छुक नहीं हैं. जबकि लॉकडाउन में बाहर निकलना मुश्किल है. वे परिवार नियोजन के कोई उपाय नहीं कर सकते.   इसके साथ ही आशा कार्यकर्ता व एएनएम घर-घर जाकर कोरोना से लड़ने के साथ-साथ परिवार नियोजन के फायदे भी बता रही हैं.

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