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देश के लिए अभिशाप है महिला मजदुरी और  बाल मजदूरी

 आजाद भारत में मजदूरो के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई कानून बनाई गए और समयसमय पर मजदूरो के विकास के लिए विभिन्न नीतिनिर्देश और  योजना बनाई जाती है. फिर भी मजदूरो का विकास नही हो रहा है। सबसे बदतर स्थिति बाल एवं महिला मजदूरो की है.बच्चों महिला श्रमिकों का आर्थिक और शारीरिक रूप से भी जमकर शोषण किया जाता है. इन बातो से सब आवगत है, लेकिन मजदूरो के नाम पर राजनीतिक और नारेवाजी करने के आलावा कोई कुछ खास करता नजर नही आता है.तो आइये पांचपांच  विन्दुओं  के माध्यम से दोनों के दशा के बारे  में जानते है.

 1.समाज महिलाओं के लिए दो वर्गो में बता हुआ है :- भारत एक ऐसा देश है, जहँ नारी की तुलना देवियां से की जाती है. जिस देश की प्रधानमत्रीं एक महिला रह चुकी है एवम् वर्तमान लोकसभा वित मंत्री भी एक महिला ही है. वही महिला मजदुरी जैसे शब्द बहुत कष्ट्र पुहचाती हैं.आज महिलाओ ने हर क्षेत्र में अपनी एक पहचान बनाई है. महिला वह हर कार्य कर रही है जो पुरूष वर्ग कर रहे है, लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि महिलाओं का एक हिस्सा अपना पेट भरने तथा अपना घर चलाने के लिए मजदुरी भी कर रही है. अगर  समाज पर एक पैनी निगाह डाली जाए तो हमें पता चलेगा कि  हमारे देश में महिलाओं की क्या दशा है?  अगर यह कहा जाए कि आज के समय में हमारा समाज महिलाओं के लिए  दो वर्गो में बट गया तो शायद गलत ना होगा. पहला वर्ग वो है जिसमें महिलाए पढी लिखी और सशक्त हैं, समय के साथ चलने वाली है तथा दुसरा वर्ग वह है जिसमें महिलाए पूरा दिन दो पैसे कमाने के लिए मेहनत मजदूरी करती है और अपने घर का गुजर बसर चलाती हैं औेर अपना जीवन मजदूरी कर के निर्वाह करती हैं.महिला  मजदूरी शब्द सुनने में जितना दुखदायी है, किसी समाज और राष्ट्र के लिए उतना ही कष्ट्रकारी भी है.

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  1. चंद रूपयो को कमाने के लिए महिला करती है मजदूरी :- एक रिर्पोट के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली में महिला दस घटें काम कर सिर्फ 150 रूपये ही कमा पाती हैं, लेकिन उनकी जेब में पहुचने से पहले ही उन 130 रू में से 20 रू ठेकदार अपना कमीश्न काट लेते हैं और नतीजा यह निकलता है कि मात्र 130 रू कमाने के लिए वो जी तोड मेहनत करती हैं. ऐसी हालत में भी काम पाने की होड लगी रहती है, महिलाओ की ऐसी हालत के लिए रूढीवादी सोच तथा अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं. गांवों से नाबालिग लड़कियों को रोजगार की लालच दिखाकर, शहरों में लाया जाता है, जहां उन्हें बहुत ही कम (लगभग 500 रू।- 1000 प्रति माह) के वेतन पर घरों में या दूसरे कारोबारों में गुलामी करनी पड़ती है. महिला सफाई कर्मचारियों में अधिकतर दलित वर्ग की हैं, और उन्हें अक्सर अपनी जात को छुपाकर काम करना पड़ता है. घरेलू काम व सफाई के काम से रोजग़ार कमाने वाली महिलाओं के हकों के लिये लडऩे वाला कोई यूनियन नहीं है, अत: उन्हें संगठित होने की सख्त जरूरत है.
  2. अशिक्षित असफल महिलाए मजदूरी की और मुड़ जाती है :-   समाज में लडकी के जन्म पर दुख होता है और आगे चलकर उसकी पढाई और अन्य कार्यो में भी आड लगाई जाती रही है.उसी का परिणाम यह होता है कि महिलाए अशिक्षित व असफल रह जाती हैं तथा अपने जीवन को चलाने के लिए किसी और पर र्निभर रहती हैं या फिर उनके कदम मजदूरी की तरफ बढ जाते हैं. चंद रूपयो को कमाने के लिए उन्हें वो कार्य करने  पडते है, जिनके लिए वे शारीरिक  रूप से सक्षम भी नहीं होती है.यह हमारे  समाज की एक कडवी सच्चाई है.
  3. सात दशक बाद भी नहीं सुधारे हालत :- आजादी के सात  दशक बाद भी महिला मजदूरो की दशा कोई खास बदलाव नही आया है. एक अनुमान के अनुसार निजी क्षेत्र में कार्यरत महिलायों के अपेक्षा सरकारी  क्षेत्र में कार्यरत महिलायों की हालत और  दयनीय हैं. सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली महिला नित्य दुष्कर्म का शिकार होती है.इस क्षेत्र में हर प्रकार से महिलायों का शोषण किया जा रहा है.मध्य प्रदेश के कई आदिवासी इलाकों में निकटतम अस्पताल 50 कि।मी। दूर हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वहां की 70 प्रतिशत महिलायें कुपोषण की शिकार हैं और 90 प्रतिशत खून की कमी से ग्रस्त हैं. वस्त्र उद्योग में महिलाओं को कंपलसरी (जबरदस्ती) ओवर टाइम करना पड़ता है और जरूरत में भी छुट्टी नहीं मिलती. कई शहरों में महिलाओं को अपना पेट पालने और बच्चों की देखभाल करने के लिये सेक्स वर्कर्स (यौन कर्मचारी) का काम करना पड़ता है. उन्हें सामाजिक बेइज्ज़ती का सामना करना पड़ता है, उन्हें रहने को घर नहीं मिलता, उनके बच्चों को आसानी से स्कूल में दाखिला नहीं मिलती, उन्हें पुलिस भी काफी परेशान करती है.
  4. महिलायें अब संगठित होकर इन मुसीबतों के खिलाफ़ खडी हो रही हैं :- देश के कुछ इलाकों में महिला मजदूर के रूप में काम करने वाली महिलायें अब संगठित होकर इन मुसीबतों के खिलाफ़ लड़ रही हैं. जिस देश की कई महिला संसद संसदीय कार्य प्रणाली की अहम हिस्सा है , जिस देश में अंतरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला हो या खेलो में देश का सर गर्व से उपर उठाने वाली सायना नेहवाल या मैरी हो  इन सबके होते हुए,  जब महिला शोषण और महिला मजदूरो के बारे में जिर्क आता है, तो यह अति दुखद रूप है. समाज के जागरूप वर्ग कों भी महिला मजदूरो की सहायता के लिए आगे आना चाहिए, ताकि नारी प्रधान देश में नारियो की स्थिति बेहतर बन सके.सरकारी स्तर पर आखिर कब यह सुनिश्चित किया जायेगा कि देश से महिला मजदूरी के शोषण को पूरी तरह रोक जाये? और यह कौन निश्चित करेगा कि  देश के हर क्षेत्र में हर महिला को एक सामान मिलेगा ? एक ना एक दिन सरकार को इन सभी प्रश्नों का  जवाब देना होगा.

 

* आइये जानते है  देश बाल मजदूरी की दशा को 5 विन्दुओं में   …

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  1. प्राचीन काल से बाल श्रमिको के बचपन कों मजदूरी के बेदी पर जला दिया जाता है :- बच्चे सभ्यता एवं भविष्य के आधार पर मानवता के उज्वल भविष्य के आधार है और निरंतर पुन जीवन का स्त्रोत भी है । इन्ही के आधार पर मानवता के उज्वल भविष्य की नीव रखी जा सकती है, किन्तु चिंता का विषय यह है कि हमारे देश में बड़ी संख्या में  ऐसे बच्चो की है, जिनका जीवन बाल मजदूरी  मे पिस्ता जा रहा है.बच्चो के बचपन की नीव ही अगर डगमगाई हुई हो तो आगे का भविष्य उनका क्या होगा ये सब जानते और समझते है.प्राचीन काल से ही बाल मजदूर कृषि, उद्योग, व्यापार एवं घरेलू कार्यो में कार्यरत रहे है, परन्तु उस समय जनसंख्या के कम दबाव, गरीबी और रूढि़वादिता के कारण उनकी शिक्षा एवं उनके सही विकास की ओर से आर्थिक और मानसिक ध्यान नही दिया गया. बाल श्रमिको कों  बचपन में ही मजदूरी के बेदी पर होम कर दिया जाता है.
  2. ना मानसिक और ना ही बौद्धिक विकास :- आज भी परिवार की आर्थिक विवाश्ताओ के कारण हजारो बच्चे स्कूल की चौखट भी पर नही कर पाते है और कईयो कों बीच में ही पढाई छोडनी पड़ती है .जिससे बाल श्रमिक आजीविका, शिक्षा प्रशिक्षण और कार्यरत कौशल से वंचित रह जाते है. फलस्वरूप  ना उनका मानसिक विकास हो पाता है और ना ही बौद्धिक विकास.
  3. 85 फीसदी पारंपरिक कृषि गतिविधियों में कार्यरत :- एक अनुमान के अनुसार भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 3।6 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है. ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपरिक कृषि गतिविधियों में कार्यरत हैं, जबकि 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कार्यों में लगे हैं.सिर्फ 0।8 फीसदी कारखानों में काम करते हैं। आमतौर पर बाल मज़दूरी अविकसित देशों में व्याप्त विविध समस्याओं का नतीजा है.दूर -दराज के इलाकों से शहरों में आकर काम करने वाले बाल मजदूरो की स्थिति और भयावह है . जब सारी दुनिया सोती है, तब सर्दियों में बिस्तर से निकलकर ये काम  पर जाने कों तैयारी में लग जाते है.
  4. जबरन मजदूरी करने एवं शारीरिक दुष्कर्मो की असंख्य डरावनी कहानियों :- यूनिसेफ ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि बच्चो कि खरीद,शोषण तथा दुकानों, खदानों, फैक्टियो, उद्योग, ईट- भट्टों तथा घरेलू कामो में जबरन मजदूरी करने एवं शारीरिक दुष्कर्मो की असंख्य डरावनी कहानिया है.यूनिसेफ  के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है.बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं,  उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों को लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं.
  5. सरकार 1987 से ही बाल श्रम पर रोक लगाए जाने के लिए कार्य कर रही है :-  वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु  उपाय सुझाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया था.समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए. समिति ने यह भी सिफारिश किया कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है। 1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी प्रदान कर दिया गया. बाल श्रम के बढ़ते तादाद कों रोकने के दिशा में यह एक कारगर प्रयास थी.  इस नीति के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे बच्चों के कायाकल्प दिया जाता  हैं और उन नीतियों के बारे में समय समय पर योजना बनाई है।  बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए एवं बच्चो के संपूर्ण अधिकारों के लिए कई सरकारी और निजी संस्थान नित्य काम करती है। कई निजी संस्थान बाल श्रमिको के संपूर्ण विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हूँ, समाज के लिए एक मिशाल बन रहे है. समय के साथ सरकार और न्यायलय के तरफ से भी बाल श्रम कों रोकने के लिए नीतियों और योजनायो की घोषणा होती रहती है। लेकिन जब तक समाज के हर तबके के लोगो इस बाल श्रम के विरोध में आवाज बुलंद नही करेगे, तब तक कुछ खास होने वाला नही है. तों जरा सोचिये देश के भविष्य के बारे में और रोकिये बाल श्रमिक के बढ़ाते तादाद कों !

विश्व का कोना-कोना कोरोना महामारी से कराह रहा है

विश्व इतिहास का सबसे भयावह महामारी का खिताब लेने वाला को रोना बीमारी थमने का नाम नहीं ले रहा है . वायरस से आम और खास कोई नहीं बचा। आम इंसान हो या हॉलिवुड एक्टर, यहां तक कि बड़े से बड़े राजनीतिज्ञों को भी इसने अपनी गिरफ्त में लिया है.आईये जानते है :- विश्व में कोरोना ने कैसे हलचल मचा कर रखा है ।  20 ऐसे देशों की बात करे जहां कोरोना का संक्रमण अधिक है.

 

  1. उनमें पहले साथ पर उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में स्थित संयुक्त राष्ट्र अमेरिका आता है यह संक्रमण मरीजों की संख्या 10 लाख 70 हजार के करीब पहुंच गया है. यहां सबसे अधिक लोग इस बीमारी से मरे है , 62 हजार से अधिक लोगों का अभी तक मौत हो चुका है.
  2. दूसरे नंबर पर यूरोप महाद्वीप का स्पेन है , यहां संक्रमित मरीजों की संख्या 2 लाख 37 हजार के करीब पहुंच गया है , जबकि 24 हजार 300 से अधिक लोग की मौत हो चुकी है.
  3. तीसरे नंबर पर यूरोप का रोमन साम्राज्य का देश इटली है. यहां संकरण ने अपने चपेट में अभी तक 2 लाख ,60 हजार तक लोगो को संक्रमित किया है .वहीं 27 हजार 600 से अधिक लोगों का मौत संक्रमण के कारण हुआ है .
  4. चौथे नंबर पर अपने यूरोप महाद्वीप का फैशन का देश फ्रांस है , यहां अभी तक 1 लाख 66 हजार 400 संक्रमित मरीज हो गए है , जबकि 24 हजार से अधिक लोगों का मौत हो चुका है .
  5. पांचवे नंबर पर 1 लाख 65 हजार से अधिक संक्रमित व्यक्ति के साथ यूनाइटेड किंगडम 1 लाख 65 हजार से अधिक लोगों को संक्रमण हुआ है , अभी तक यहां          26 हजार से अधिक लोगों का मौत हुआ .
  6. छठा देश है यूरोप महाद्वीप का जर्मनी यहां संक्रमण से 1 लाख 61 हजार लोग संक्रमित है . वहीं 6 हजार 500 लोगो का मौत इस बीमारी से हो गया .
  7. सातवां देश है एशिया का तुर्की यहां 1 लाख 17 हजार लोगों को अभी तक संक्रमण हो चुका है , वहीं 3 हजार 100 लोगो की मौत हो चुका है .
  8. आठवां देश है , दुनिया का सबसे बड़ा देश एशिया महाद्वीप और यूरोप महाद्वीप में फैला देश रूस .  यहां संक्रमित व्यक्ति की संख्या 1 लाख पहुंच चुकी है , वहीं करीबन 1 हजार लोगों का मौत हो चुका है .
  9. नौवां देश है एशिया महाद्वीप में स्थित ईरान , यहां अभी तक 93 हजार 700 लोगो को को रोना संक्रमण हो चुका है वहीं 6 हजार के करीब लोगो का मौत संक्रमण कर कारण हुआ है.

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10.कोरोना संक्रमण से प्रभावित देशों में दसवें नंबर पर एशिया का ईरान देश है .यहां  93 हजार 600 लोग कोरो ना से संक्रमित है , वहीं 6 हजार से अधिक लोगों का मौत इससे हो चुका है .

  1. इस सूची में ग्याहरे वे नंबर पर एशिया महाद्वीप का चीन है , यही से यह महामारी पूरे विश्व में फैली . अभी तक यहां लोगो को 82 हजार 800 लोगो को संक्रमण हुआ , जबकि 4 हजार 600 के करीब लोग  मारे गए .
  2. दक्षिण अमेरिका महाद्वीप का देश ब्राजील इस सूची में बारहवें नंबर पर है . यहां अभी तक 79 हजार 700 से अधिक लोगों को संकरण हो चुका है , वहीं 5 हजार 500 से अधिक लोगों का मौत हो चुका है .
  3. उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का देश कनाडा इस सूची में तेरहवां स्थान पर है , यहां संक्रमित मरीजों की संख्या 51 हजार 500 पहुंच चुका है , वहीं 3 हजार से अधिक लोगो का मौत हो चुका है .
  4. चौदहवीं नंबर पर यूरोप महाद्वीप का देश बेल्जियम है .यहां अभी तक संक्रमित मरीजों की संख्या 48 हजार पहुंच चुका है , वहीं 7 हजार से अधिक लोगों का मौत इस बीमारी के कारण हुआ है .
  5. पंद्रहवीं नंबर पर है, यूरोप का देश नीदरलैंड , यहां अभी तक 38 हजार 800 से अधिक लोगों को संक्रमण हो चुका है , 4 हजार 700 से अधिक लोगो का मौत इससे हो चुका है.
  6. 16.उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का पेरू इस सूची में सोलहवीं नंबर पर है.यहां अभी तक 34 हजार से अधिक लोगो को को रोना संक्रमण हो चुका है , वहीं 900 से अधिक लोगो का मौत इस संकरण से हो चुका है.
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  1. हिंदमहासगार के तट पर एशिया महाद्वीप में स्थित अपना देश भारत , इस सूची में सत्रहवी नंबर पर है. अभी तक यहां कुल 33 हजार 500 से अधिक संक्रमित मरीज हो चुके है , वहीं 1 हजार 100 से अधिक लोगो का मौत हो चुका है.
  2. आठारहवी नंबर पर है, यूरोप महाद्वीप का देश स्विटजलैंड ,यहां अभी तक 29 हजार 600 लोगो को संक्रमण हो चुका है , वहीं 1 हजार 700 से अधिक लोगो का जान इस बीमारी से जा चुका है .
  3. उन्नीसवा स्थान पर है , उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का देश इक्वाडोर ,यहां संक्रमित मरीजों की संख्या 24 हजार 800 पहुंच चुका है , अभी तक 800 से अधिक लोगो का मौत इस बीमारी से हो चुका है.
  4. बीसवा स्थान पर है , यूरोप महाद्वीप देश पुर्तगाल ,यहां अभी तक 24 हजार 500 से अधिक लोग संक्रमित हो चुके है , वहीं करीबन 1000 से अधिक लोगो का मौत इस संक्रमण से हो चुका है .

आलिया को दिल से अपना चुके थे ऋषि कपूर, हर फैमिली फंक्शन में होती थी शामिल

बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अब हमारे बीच नहीं हैं. उनके जाने का दर्द पूरे देशवासी को हो. उनके परिवार के लिए यह वक्त बहुत मुश्किल भरा है. उऩ्हें खुद को संभालने के लिए हौसले की जरुरत है.
ऋषि कपूर इस दुनिया को छोड़कर जाने से पहले अपनी कुछ इच्छाओं को पूरा करना चाहते थें जो कि अधूरा ही छोड़कर चले गए.

ऋषि कपूर अपने बेटे रणबीर कपूर को  घोड़ी चढ़ते देखना चाहते थे. यह सपना उनका अधूरा ही रह गया. रणबीर कपूर और आलिया भट्ट इसी साल शादी के बंधन में बंधने वाले थें, लेकिन इससे पहले ही ऋषि कपूर हम सबसे काफी दूर चले गए जहां से कभी कोई वापस नहीं आता.

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आलिया भट्ट कपूर खानदान की लाडली बन चुकी थी सभी लोग उन्हें दिल से अपनी बहू मानने लगे थें. ऋषि कपूर आलिया को बहू बनाने के लिए बहुत ही बेताब थें. वह जल्द दोनों को सात फेरे लेते देखना चाहते थें.

 

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They all look so happy together! Also, Alia is an amazing partner, ranbir is really lucky to have her.?

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आलिया देखते ही देखते ऋषि कपूर की बहुत करीब जा चुकी थीं. ऋषि कपूर हर वक्त आलिया की तारीफ करते रहते थें. जब आलिया की फिल्म राजी आई थी उस वक्त ऋषि कपूर ने जमकर आलिया की तारीफ सोशल मीडिया पर की थी.

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आलिया ने फिल्म कपूर एंड सन्स में साल 2016 में ऋषि कपूर के साथ काम किया था. आलिया के साथ मिलकर ऋषि कपूर ने जमकर फिल्म का प्रमोशन किया था.

कपूर परिवार के बाकी अन्य सदस्यों को भी आलिया और रणबीर कपूर की जोड़ी पसंद आने लगी थी. दोनों साथ में बेहद क्यूट कपल लगते हैं. आलिया कपूर खानदान में जाने के लिए बेसब्री से इंतजार कर ही रही थी कि अचानक यह दुख का पहाड़ दूट गया.

कानून के मुंह पर तमाचा है पारिवारिक विवाद में हत्याएं

अगर जाति, धर्म और महिला में से किसी के साथ में इतनी बड़ी कोई घटना घटी होती तो पूरा देश उबल रहा होता.परन्तु 6 लोगो की एक साथ हत्या पारिवारिक जमीनी विवाद में हुई हैं इस लिए समाज, राजनीति और कानून को फर्क नही पड़ता. पुलिस हत्यारो से पूछताछ करने के लिए उनकी मानसिक स्वास्थ्य को ठीक होने का इंतजार कर रही हैं. समाज भी उन 6 बेसमय मारे गए लोगो को लेकर आक्रोश में नही है. देश मे अपराध की गम्भीरता कानून की धाराओं के हिसाब से नही जाति धर्म और लैंगिक भेदभाव से तय होती है.जब तक कानून में हिसाब से अपराध को नही देखा जाएगा तब तक देश मे ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता.

तहसील, प्रशासन और थानों की कमी

तहसील, पुलिस औऱ सरकार जमीनों से अवैध कब्जे हटाने और दबंगो को सबक सिखाने में पूरी तरह से फेल है. यही वजह है कि दबंग किस्म के लोग जमीन और खेत पर जबरन कब्जा करते है और जब उनको किसी तरह से कब्जा छोड़ने पर मजबूर किया जाता है तो हिंसक वारदात कर देते हैं. पुलिस न्याय देने की जगह पर लाशों को पोस्टमार्टम करने के लिए भेज कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं. ऐसे विवादों में सबसे अधिक जिम्मेदार तहसील पर तो कोई उंगली भी नही उठाता है. ऐसी घटनाएं जब परिवार में होती हैं तो उनको बड़ी आसानी से पारिवारिक विवाद बता कर पल्ला झाड़ लिया जाता है.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बंथरा थाने में एक ही परिवार में 6 लोगों की हत्या भी इसकी ताजा कड़ी है. इसके बाद भी सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी। जिससे ऐसी घटनाओं को रोका जाना असंभव सी बात है. आदिम काल से झगड़ों की सबसे बड़ी वजह जमीन को आधुनिक समाज मे भी न्याय नहीं मिल रहा है. पुलिस और तहसील के संरक्षण में जमीनों पर कब्जे और कमजोरों की हत्या का सिलसिला जारी है.

खेत का टुकड़ा बना हत्या की वजह :

लखनऊ में संपत्ति के लालच में 29 अप्रैल 2020 को एक पुत्र ने  अपने माता-पिता सहित  भाई, भाभी, भतीजे और भतीजी  की धारदार हथियार से काटकर बुरी तरीके से निर्मम हत्या कर दी.

बंथरा थाना क्षेत्र के गोदौली गांव में रहने वाले अमर सिंह अपने छोटे बेटे अरूण सिंह के साथ रहते थे. उनका बड़ा बेटा अपने परिवार सहित अलग रहता था. अमर सिंह ने दोनो बेटो के बीच अपनी सारी सम्पत्ति का बटवारा कर दिया था.

3 साल से जारी था विवाद :

अमर सिंह ने तकरीबन तीन वर्ष पहले गांव के पास स्थित अपनी जमीन के एक टुकड़े को बेचा था.अमर सिंह का बड़ा बेटा अरूण सिंह इस जमीन को बेचने से मिली रकम में हिस्सा मांग रहा था. इसी को लेकर अजय अक्सर अपने माता-पिता से झगड़ा किया करता था.

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29 अप्रैल 2020 दिन बुधवार की शाम तकरीबन पांच बजे अजय सिंह बेटे अंकित सिंह के साथ अपने पुश्तैनी घर पहुंचा. इस दौरान घर पर मौजूद अपनी मां 58 साल की बूढ़ी माँ रामसखी  का गला रेतकर उनकी हत्या कर दी. इसके बाद दोनो खेत पहुंचे गए। खेत मे काम कर रहे 63 साल के बूढे  पिता अमर सिंह पर बांके व फरसे से हमला कर दिया. पिता पर ताबड़ तोड हमला देखकर अमर सिंह का छोटा बेटा अरूण सिंह पत्नी रामदुलारी, बेटा सौरभ व बेटी सारिका को लेकर भागने लगे. अजय सिंह और अंकित ने मिलकर उन्हें दौड़ाकर गांव के ही राम प्रताप सिंह की बाग में पकड़ लिया और बांका व फरसा से हमला कर चारों को मौते घाट उतार दिया.

खाना पूर्ति तक सीमित रही पुलिस

घटना की सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और घटना स्थल का मौका-मुआयना कर ही रही थी.  इसी दौरान अजय सिंह अपनी पत्नी रूपा व बेटे अंकित सिंह उर्फ अविनाश के साथ थाने पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया.

पिता को चरित्रहीन बताया

हत्या का आरोपी अजय सिंह ने केवल पिता की हत्या की नही की वह उनको चरित्रहीन भी बता कर बदनाम कर रहा था. अजय ने कहा कि पिता के संबंध छोटी बहू से थे. जिसकी वजह से वह उनको ज्यादा मानते थे. अजय ने बेटे अंकित के साथ पूरी योजना बना कर अपने पिता और भाई के परिवार को खत्म कर दिया जिससे उनका कोई वारिस जिंदा ना रह सके.भाई की अबोध बेटी तक को मार डाला.पुलिस अब अजय को विछिप्त बता कर मामले को हल्का करने की कोशिश कर रही है.

जबरन कब्जा बनाये रखना चाहता था दबंग

अजय जबरन लगभग 10 साल से पूरी जमीन पर कब्जा करके खेती करा रहा था.वह आने पिता और भाई को खेत पर हिस्सा नहीं देना चाहता था. बहुत बार शिकायत करने के बाद इस बार बंथरा पुलिस के सहयोग से मृतक अरुण सिंह ने अपनी आधी संपत्ति पर कब्जा करके गेहूं की फसल की बुवाई  की थी.उसकी कटाई कर रहे थे इतने में अचानक   हत्यारोपी ने पीछे से हमला करके सभी लोगों की हत्या कर दी और मौत की नींद सुला दिया.

इस घटना में बंथरा पुलिस की  पूरी तरीके से लापरवाही उजागर हो गई है.घटना को लेकर कई बार  दोनों पक्ष  थाने आ चुके थे और कई बार विवाद भी हो चुका था लेकिन  पुलिस ने  इस मामले को गंभीरता से  नहीं लिया जिसकी वजह से इतनी बड़ी  घटना घट गई. थाने पहुचे हत्यारे पिता पुत्र को जेल भेज कर पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली.

इस तरह की घटनाओं में अदालत भी जल्दी न्याय नहीं देतीं। समाज भी आक्रोशित नहीं होता.इसको एक सामन्य पारिवारिक विवाद मॉन लिया जाता हैं. पूरे परिवार की हत्या का मकसद यह था कि जब जेल से छूट कर वापस दोनो पिता पुत्र आये तो पूरी जमीन पर उनका कब्जा हो सके.हत्यारों ने पूरे परिवार को खत्म कर दिया जिससे कानूनों लड़ाई लड़ कर उनको सजा दिलाने वाला ना रह सके.

बातचीत ‘‘पुलिस ने दंगाइयों जैसा व्यवहार किया’’

कारवां ए मोहब्बत नामक मुहिम के जरिए रिटायर्ड आईएएस हर्ष मंदर ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों के ऊपर की गई पुलसिया बर्बरता की रिपोर्ट तैयार की है. आइए, उन्हीं से जानते हैं कि इस में है क्या…

पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर  सोशल ऐक्टिविस्ट के रूप में लंबे समय से काम कर रहे हैं. राइट टू फूड और भूमि सुधार कानून को बनवाने में हर्ष मंदर की प्रमुख भूमिका रही है. 1955 में गुजरात में पैदा हुए हर्ष मंदर को ‘राजीव गांधी नैशनल सद्भावना सम्मान’ जैसे कई बडे़ सम्मान मिल चुके हैं. मौब लिंचिंग और नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों पर पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई को ले कर इन्होंने ‘कारवां ए मोहब्बत’ नाम से एक मुहिम शुरू की. ‘कारवां ए मोहब्बत’ में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले मुसलिमों व दूसरे विरोधियों के ऊपर की गई पुलसिया बर्बरता की एक रिपोर्ट तैयार की गई. 48 पन्नों की इस किताब में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन शुरू किए जाने के बाद होने वाली घटनाओं का सिलसिलेवार विवेचन किया गया है. ‘कारवां ए मोहब्बत’ को मीडिया के लिए जारी करने के इस कार्यक्रम में रिटायर्ड आईएएस हर्ष मंदर, समाजसेवी दीपक कबीर, रिटायर्ड आईपीएस एस आर दारापुरी, मैगसेसे अवार्डी संदीप पांडेय, महिला नेता सदफ फातिमा और मोहम्मद शोएब मौजूद थे.
नागरिकता संशोधन कानून को ले कर विरोध प्रदर्शन की वजहें क्या हैं?

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नागरिकता संशोधन कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ  है. मजहब के आधार पर नागरिकता देने का कानून हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष छवि के खिलाफ  है. यह आपस में बांटने वाला कानून है. इस कानून से अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर से मुसलिम समुदाय के मन में एक डर आ गया है. उन्हें लगता है कि वे सुरक्षित नहीं हैं. पहले दंगे होते थे, तो एक इलाका ही प्रभावित होता था. अब कहीं भी कोई भी ऐसे माहौल में हिंसा फैलाने लगता है. इस नफरत का जवाब देना जरूरी है. ‘कारवां ए मोहब्बत’ का मकसद यह बताना भी है कि हम अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य नहीं होते हुए भी उन के साथ खड़े हैं. बहुसंख्यक समुदाय में एक बेहद खतरनाक चुप्पी है. बहुसंख्यक समुदाय मूकदर्शक बना हुआ है. इस चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है.
‘कारवां ए मोहब्बत’ में आप ने जो अध्ययन पेश किया है, वह क्या है?
उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक की घटनाओं को इस में लिया गया है. वैसे तो नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन पूरे देश में हुए, हर जगह पुलिस और प्रशासन ने अपने तरह से इस को संभाला पर उत्तर प्रदेश के मामले में एक अलग ही मंजर देखने को मिला. जो पूरे देश में कहीं और नहीं दिखा. यह मंजर देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि उत्तर प्रदेश की पुलिस किसी दुश्मन से जंग लड़ रही हो. विरोधप्रदर्शन कोई नई बात नहीं है. हर सरकार के दौर में यह होता रहा है. पुलिस भी लाठीचार्ज करती रही है. इस मामले में पुलिस ने बर्बरता की सारी सीमाएं तोड़ दीं. केवल शारीरिक बर्बरता ही नहीं की गई, मानसिक यातनाएं भी दी गईं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस का सांप्रदायिक चेहरा सामने आया.
क्या पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात दिखे?

उत्तर प्रदेश के 10-12 जिलों में हालात सब से खराब दिखे. ऐसा लग रहा था जैसे सरकार के दबाव में काम हो रहा हो. अगर कहीं हिंसा हुई भी, तो पुलिस को सीधे गोली मारने का अधिकार नहीं है. मरने वालों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी गई. यह कह दिया गया कि आपसी रंजिश में हादसे हुए. मरने वालों के परिवार वालों को समझौते के लिए मजबूर किया जा रहा था. 19 मरने वालों को किस ने मारा, यह पुलिस नहीं तलाश कर पाई. सब से खास बात यह थी कि हिंसा से निबटने के नाम पर पुलिस बर्बरता का एकजैसा ट्रैंड अलगअलग जिलों में देखने को मिला. यौनहिंसा और प्रताड़ना तक की बात सामने देखने को मिली. यह चकित करने वाला माहौल था.

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इस की प्रमुख वजह आप को क्या लगती है ?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस तरह से प्रदर्शन करने वालों से ‘बदला’ लेने की बात कही, उस के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस का बर्बर और अमानवीय चेहरा सामने आया. गृहमंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 19 दिसंबर, 2019 तक 19 लोग मारे गए. 1,113 लोगों को हिरासत में लिया गया. इस के अलावा हिंसा रोकने के लिए 5,558 लोगों को पकड़ा गया. ये आंकडे़ बढ़ रहे हैं.

आज भी बेकुसूर लोगों के खिलाफ पुलिसिया उत्पीड़न जारी है. पुलिस बेलगाम छापेमारी और उत्पीड़न का घिनौना खेल खेल रही है. मुसलमानों को नोटिस भेजे गए. सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पहुंचाने की भरपाई के मामलों में नियमकानून ताक पर रख दिए गए हैं. पुलिस की बर्बरता पर जब मुख्यमंत्री ने उन की पीठ थपथपाई और सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘हर दंगाई हतप्रभ है. यह उपद्रवी हैरान है. देख कर योगी सरकार की सख्ती सभी के मंसूबे शांत हैं.’
आप की जांच रिपोर्ट में क्या बातें सामने आईं?

रिसर्च करने में लगी टीमों ने पाया कि नफरत से भरी वरदीधारी पुलिस ने मुसलमानों के घरों में घुस कर मारा. उन के स्कूटर और कारों में आग लगा दी. टीवी, वाश्ंिग मशीन जैसे उपकरणों को आग लगा दी. कैशगहने लूट लिए. बच्चों के खिलौने, घरों के दरवाजे और खिड़कियां तोड़ दी गईं. बुजुर्ग, महिलाओं, मासूम बच्चों तक पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं. मुसलमानों के खिलाफ  पुलिस ने भद्दी और

अपमानजनक टिप्पणियां कीं. पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ  मुकदमा कायम कर लोगों को डराने का काम कर रही है.

उत्तर प्रदेश में एक समुदाय के खिलाफ  ऊपर से नीचे तक बदले की भावना से काम किया गया. नौकरी के दौरान मैं ने तमाम मामले देखे और उन को संभाला. ऐसे मामले पहली बार दिखे. कई जगहों पर पुलिस उस तरह से काम कर रही थी जैसे दंगाई करते हैं. पुलिस के अधिकारी खुलेआम प्रदर्शन करने वालों को पाकिस्तान जाने की बात कहते सुने गए.देश के विपक्षी दल इस मसले पर बहुत मुखर हो कर सामने नहीं आए. इस का क्या कारण देखते हैं?

देश की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी अपना फायदानुकसान देख कर ऐसे मुद्दों पर हाथ डालती हैं. राजनीतिक दलों को लगता है कि अगर वे खुल कर इस नाइंसाफी के खिलाफ  बोलेंगे, तो बहुसंख्यक तबका नाराज हो जाएगा. जिस का प्रभाव उन को चुनाव में झेलना पड़ सकता है. सब ने यह मान लिया है कि बहुसंख्यक आबादी सांप्रदायिक हो गई है. यह गलत धारणा है. जिस तरह से विभाजन के समय गांधी ने 1947 में उन इलाकों में जा कर शांति और अमन की बात कही थी जहां आग लगी हुई थी, वही काम आज करने की जरूरत है. देश में राजनीति एक तरफ  है और देश में अमनचैन भाईचारा अलग है. विकास के लिए देश का अमनचैन बने रहना बेहद जरूरी है. देश का संविधान नागरिकों के लिए है. यह सरकार को बंदिशों में रखने का काम भी करता है. द्य

19 दिन 19 टिप्स: अवहेलना के जिम्मेदार बुजुर्ग खुद

लेखिका: रागिनी  झा

बुजुर्ग समाज का एक अहम हिस्सा हैं. लेकिन बहुत ही कम घर होंगे जहां उन की अवहेलना न की जाती हो, उन्हें नकारा न जाता हो. इस की वजह क्या है? इस की वजह स्वयं ये बुजुर्ग लोग हैं. जी हां, सुनने में जरूर खराब सा लगता है, लेकिन सचाई यही है.

आज के समय में जहां जिंदगी तेजी से दौड़ रही है वहीं इन लोगों के पुराने रूढि़ग्रस्त, दकियानूसी विचारों से लोगों को कितनी परेशानियों से जू झना पड़ता है, ये लोग नहीं जानते.

आइए, गौर करें उन कारणों पर जिन के चलते बुजुर्ग अपनी अवहेलना के शिकार होते है :

दकियानूसी विचार : मंगलवार है, आज यात्रा पर मत जाओ. आज गुरुवार है, बाल मत धोओ, कपड़े मत धोओ, किचन में जूते पहन कर मत जाओ आदि.

अब सोचिए, गुरुवार के दिन आप के औफिस की पार्टी है. सो, क्या आप गंदे बालों में ही पार्टी अटैंड करेंगे?

मंगलवार को आप का कहीं इंटरव्यू हैं. सो, क्या आप यात्रा के लिए नहीं निकलेंगे? जल्दी में आप को निकलना है, तो क्या जूते उतार कर आप अपना लंच पैक करने किचन में आएंगे?

ऐसे ही ढेरों कारण हो सकते हैं जिन के कारण उन की सोच के मुताबिक चलना संभव नहीं है. इस कारण से उन्हें आज की पीढ़ी से चिढ़ होती है. उन्हें ऐसा लगता है कि नई पीढ़ी उन को प्यार नहीं करती, इन को नकार रही है.

पुरानी मान्यताएं : समाज में मान्यता है कि बहू को हमेशा सिर ढक कर चलना चाहिए, परदे में रहना चाहिए. सुबह उठ कर रोज सासससुर के पैर छूने चाहिए. अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उन्हें लगता है कि इस से उन की अवहेलना हो रही है.

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हमारे पड़ोस में एक औरत है. उस के चेहरे को आज तक उस के घर के लोगों के अलावा किसी और ने नहीं देखा होगा. बड़ा सा घूंघट उस के चेहरे पर होता है. रोज उठ कर वह अपने सासससुर के पैर छूती है. पुरानी सारी मान्यताएं वह निभा रही है. पर जब वह अपनी सास से लड़ाई करती है तो उस की कर्कश आवाज सुन कर महल्ले के सारे लोग उस के घर के बाहर इकट्ठा हो जाते हैं. आलम यह रहता है कि घूंघट तब भी उस के चेहरे पर होता है, आप उस का चेहरा नहीं देख सकते.

क्या उस के सासससुर उस घर में खुश रह सकते हैं? कभी नहीं. बुजुर्ग क्यों नहीं सम झते कि असली शर्म आंखों की होती है, असली इज्जत दिल से की जाती है. बाहरी किसी दिखावे से नहीं.

अपनेआप को काम से परे सम झना: बुजुर्ग होने का यह अर्थ नहीं कि आप अपने हाथपैर हिलाना बंद कर दें. ज्यादातर बुजुर्ग रिटायर होने के बाद यह सोचते हैं कि अब तो वे काम से रिटायर हो गए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. हमारे हिंदी के प्रोफैसर 70 वर्ष से ऊपर के हो चुके हैं, परंतु अब भी वे अपनी खुशी के लिए पढ़ाते हैं. अब भी अध्ययन करते हैं. हम चाहे पढ़तेपढ़ते थक जाएं, लेकिन वे पढ़ातेपढ़ाते नहीं थकते. ऐसे ही आप का भी कोई शौक होगा जैसे पेंटिंग, कुकिंग या फिर ट्यूशन पढ़ाना वगैरह. वे सारे शौक अब आप इस खाली समय में पूरे कर सकते हैं.आप के पास इतना समय हो ही क्यों कि कोई आप की अवहेलना कर सके.

बेवजह की रोकटोक : बुजुर्गों की एक आदत होती है कि वे बेवजह की रोकटोक हर समय करते रहते हैं. ज्यादातर सासें अपनी बहुओं के हरेक काम में कुछ न कुछ बोलती रहती हैं. इस में इतना तेल क्यों डाल दिया, आज यह क्यों बनाया, इसे ऐसे नहीं करते, वैसे करते है और भी पता नहीं क्याक्या.

कामिनी के दादाजी को घर की स्त्रियों का घर से बाहर निकलना पसंद नहीं था. वे मुख्य दरवाजे पर ही बैठे रहते थे. जहां कोई महिला सदस्य निकली नहीं कि उसे डांटना शुरू. ऐसे में सभी स्त्रियां पीछे के दरवाजे से बाहर जाया करती थीं.

हुई न उन की अवहेलना. और फिर क्या फायदा ऐसी जिद की जिस की कोई तुक ही न हो.

किसी भी हाल में खुश न रहना : सुनीता की सास को खाने के बाद मीठा खाने की आदत थी. सुनीता रोज उन के लिए कभी थोड़ा सा हलवा या फिर दही में चीनी डाल कर उन्हें दे देती थी. एक दिन सुनीता ने थोड़ी सी खीर बना कर सास को खाने को दी.

सास ने खीर देखते ही कहा, ‘‘क्या मैं ही अकेलेअकेले खीर खाऊंगी और सब मेरा मुंह देखेंगे.’’

दूसरे दिन सुनीता ने सब के लिए सेवइयां बना दीं. यह देख कर सास बोली, ‘‘बचत का तो नाम ही नहीं जानती है, रोजरोज इतना खर्च. मेरे बेटे की तो अक्ल मारी गई थी जो इसे ब्याह कर लाया.’’

अब बताइए ऐसी हालत में कोई क्या कर सकता है. थोड़े दिनों तक तो सब ठीक रहता है ?पर उस के बाद चीखचिल्लाहट हो जाती है. ऐसी हालत में कोई भी इन की अवहेलना कर सकता है.

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प्रवचनकर्ताओं के भाषण : बुजुर्गों के ज्यादातर विचार प्रवचनकर्ताओं के भाषणों से प्रभावित होते हैं. आदर्श घर के नाम पर दिए गए भाषणों को सुन कर ये लोग आते हैं और वैसा ही घर में व्यवहार में लाने को कहते हैं जो कि वास्तविकता में बिलकुल भी संभव नहीं होता है.

कोई उन प्रवचनकर्ताओं से पूछे कि वे खुद अपनी जिंदगी में कितने आदशों को मानते हैं. वहीं, ज्यादातर प्रवचनकर्ताओं के ऊपर गंभीर से गंभीर आरोप होते हैं. बावजूद इस के लोग पागलों की तरह उन के दर्शन और भाषणों को सुनने जाते हैं.

उन्हें सुनने के बजाय बुजुर्ग अगर उतने समय में अपना कोई काम कर लें, तो ज्यादा अच्छा रहे.

जरूरत से ज्यादा बच्चों पर विश्वास: बहुत सारे मांबाप जीवित रहते ही अपनी सारी संपत्ति अपने बच्चों के नाम कर देते हैं. उन्हें विश्वास होता है कि उन के बच्चे उन के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करेंगे. लेकिन, होता इस से बिलकुल उलटा है.

संपत्ति पाते ही बच्चे उन की अवहेलना करनी शुरू कर देते हैं. वे उन की तकलीफों, उन की जरूरतों की परवा नहीं करते. इसलिए आज के समय की मांग है कि भले ही बुजुर्ग अपनी वसीयत बना कर रख दें परंतु अपने जीतेजी अपनी संपत्ति किसी के नाम न करें.

अन्य कारण : और भी बहुत सी वजहें हैं जिन के कारण बुजुर्गों की अवहेलना होती है. ऐसा नहीं है कि आज की पीढ़ी सम झदार नहीं है, जब बुजुर्ग बीमार पड़ते हैं या जब उन्हें बच्चों की जरूरत होती है तो परिवार के सभी लोग उन की सेवा करते हैं.

बुजुर्गों को सम झना चाहिए कि आज का माहौल बहुत बदल चुका है. अगर आप मांसमछली नहीं खाते तो जरूरी नहीं कि जो बहू या दामाद आप के घर आएं वे भी शाकाहारी ही हों. वे अगर मांसमछली खाना चाहते हैं, तो उन्हें मत रोकिए. अगर बहू जींस पहनना चाहती है, तो उसे जींस पहनने दीजिए.

इसी तरह सिर्फ अपनी खुशी के लिए कि हमें अपनी आंखों से पोते की या पोती की शादी देखनी है, आप उन के मना करने के बावजूद उस उम्र में उस की शादी करवा देते हैं जबकि वे अपने कैरियर पर पूरा ध्यान दे रहे होते हैं. ऐसा कर के आप तो चंद लमहों की खुशी पा जाते हैं परंतु उन के लिए शादी पूरी जिंदगी का नासूर बन जाती है.

हरेक को अपना जीवन अपने ढंग से जीने का हक है. यह बात ये बुजुर्ग क्यों नहीं सम झते. संतानों के कुछ अपने सपने होते हैं. वे किसी खास लड़के या लड़की से शादी करना चाहते हैं, क्यों आप धर्म और जाति की खोखली मान्यताओं के कारण उन को एकदूसरे से शादी करने से रोकते हैं. याद रखिए, शादी उन्हें करनी है. आखिर उन्होंने कुछ देख कर ही एकसाथ जीवन बिताने का निर्णय लिया होगा. आप लोग क्यों उन के बीच में दीवार बनते हो. आज आप उन के सपनों और जज्बातों को नहीं सम झ रहे, हो सकता है कल वे आप की परवा न करें.

आप अपनी पूरी जिंदगी बिता चुके हैं, और आप की संतानें अपनी जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं. ये लोग आगे बढ़ना चाहते हैं, अपने जीवन में लीक से हट कर कुछ करना चाहते हैं. पर आप इन पर सौ तरह के अकुंश लगाते हैं. अगर ये गलती कर रहे हैं, तब आप इन्हें डांटेंगे, तो ये आप की बात ध्यान से सुनेंगे. लेकिन आप बिना किसी कारण के टोकाटोकी करेंगे तो ये  झुं झलाएंगे और हो सकता है आप की अवहेलना भी कर जाएं.

19 दिन 19 कहानियां: प्यार के अंधेरे में डूबा प्रकाश

छत्तीसगढ़ के जिला रायपुर की कोतवाली के अंतर्गत आने वाले मोहल्ला रिसाईपारा की रहने वाली 20 साल की खूबसूरत नगमा परवीन 18 जनवरी, 2017 की रात ब्यूटीपार्लर से लौट कर नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. उस के अब्बू मोहम्मद असलम ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो पता चला कि मोबाइल घर पर ही रखा है. उस से संपर्क का एकमात्र साधन फोन था, जो घर पर ही रखा था. ब्यूटीपार्लर ज्यादा दूर नहीं था. वहां जा कर पता किया तो पता चला कि उस दिन वह ब्यूटीपार्लर पर गई ही नहीं थी. यह जान कर घर वाले परेशान हो उठे. उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि नगमा ब्यूटीपार्लर पर नहीं गई तो बिना बताए कहां चली गई. जबकि उसे कहीं बाहर जाना होता था तो वह घर वालों को बता कर जाती थी.

ऐसा पहली बार हुआ था, जब नगमा घर वालों को बिना बताए न जाने कहां चली गई थी. अपने हिसाब से मोहम्मद असलम ने बेटी को हर तरह से खोजा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. वह कोई छोटी बच्ची नहीं थी कि कोई उसे बहलाफुसला कर उठा ले जाता. वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. अगर उस के साथ जबरदस्ती की गई होती तो पता चल जाता.

मोहम्मद असलम और उन के घर वालों ने किसी तरह रात बिताई. सवेरा होते ही वह कुछ लोगों के साथ कोतवाली पहुंच गए और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के बाद इंसपेक्टर श्रीप्रकाश सिंह ने इस मामले में जांच शुरू की तो पता चला कि नगमा सुबह तेजप्रकाश सेन की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहीं गई थी.

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उसे तेजप्रकाश की मोटरसाइकिल पर बैठ कर जाते किसी और ने नहीं, नगमा की 8 साल की छोटी बहन ने देखा था. लेकिन यह बात उस ने घर वालों को नहीं बताई थी. जब पुलिस ने उस से पूछा, तभी उस ने बताया था.

श्रीप्रकाश सिंह को जब पता चला कि नगमा तेजप्रकाश के साथ गई है तो उन्होंने उस के बारे में मोहम्मद असलम से पूछा. पता चला कि तेजप्रकाश मोहल्ला आमातालाब में अपने परिवार के साथ रहता था. वह शादीशुदा था और 2 बच्चों का बाप था, इस के बावजूद उस ने खुद को कुंवारा बता  कर नगमा से कोर्टमैरिज कर ली थी.

नगमा को जब उस के शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप होने का पता चला था तो वह अदालत चली गई, जहां से उसे ढाई लाख रुपए गुजाराभत्ता देने का आदेश हुआ था. ये रुपए तेजप्रकाश को 27 हजार रुपए हर महीने की किस्त के रूप में देने थे. लेकिन तेजप्रकाश ने 27 हजार रुपए की मात्र एक किस्म ही दी थी. उस के बाद उस ने एक पैसा नहीं दिया था.

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नगमा और तेजप्रकाश की इस कहानी को जान कर श्रीप्रकाश सिंह को समझते देर नहीं लगी कि मामला क्या हो सकता है.  उन्होंने तुरंत तेजप्रकाश सेन के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए उसे कोतवाली लाया गया, लेकिन पुलिस हिरासत में होने के बावजूद उस के चेहरे पर जरा भी भय नहीं था.

एसएसपी राजीव टंडन और सीओ ए.सी. द्विवेदी की उपस्थिति में उस से पूछताछ शुरू हुई. श्रीप्रकाश सिंह ने पूछा, ‘‘तुम नगमा परवीन को जानते हो?’’

‘‘जी जानता हूं. लेकिन आप उस के बारे में मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ तेजप्रकाश ने कहा.

‘‘इसलिए कि वह 4 दिनों से गायब है.’’

‘‘क्या?’’ उस ने चौंक कर कहा, ‘‘वह 4 दिनों से गायब है?’’

‘‘हां, वह 4 दिनों से गायब है. काफी प्रयास के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. घर से ब्यूटीपार्लर जाने के लिए वह निकली थी, लेकिन वह ब्यूटीपार्लर पहुंच नहीं पाई. बीच से ही वह गायब हो गई.’’

‘‘ब्यूटीपार्लर नहीं गई तो फिर वह कहां गई?’’

‘‘यही पता करने के लिए तो तुम्हें यहां लाया गया है.’’ श्रीप्रकाश सिंह ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे क्या पता कि वह ब्यूटीपार्लर नहीं गई तो कहां गई? वह जहां भी गई है, मुझे बता कर थोड़े ही गई है. वह कहां जाती है, किस से मिलती है, क्या करती है, मुझे बता कर थोड़े ही करती है?’’ सफाई देते हुए तेजप्रकाश ने कहा, ‘‘अगर उस के बारे में कुछ पूछना है तो उस के घर वालों से जा कर पूछें. वही बता सकते हैं कि वह कहां है?’’

‘‘ठीक है, घर वालों से पूछ लेंगे. लेकिन तुम एक बात यह बताओ, क्या तुम नगमा की छोटी बहन को जानते हो?’’

‘‘जी, बिलकुल जानता हूं.’’

‘‘वह कह रही थी कि जिस दिन नगमा गायब हुई है, उस दिन उस ने तुम्हें नगमा को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले जाते हुए देखा था.’’

‘‘वह झूठ बोल रही है.’’ तेजप्रकाश ने एकदम से कहा. लेकिन इस बात से वह घबरा गया, जो उस के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उसे भांप भी लिया था. इस के बाद तो पुलिस अधिकारियों ने उसे अपने सवालों से इस तरह घेरा कि बिना सख्ती किए ही उस ने एसएसपी के पैर पकड़ लिए.

वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. नगमा को मैं ने मार दिया है. उसे मारता न तो क्या करता. मैं ने उस से प्यार किया, पत्नीबच्चों को छोड़ कर शादी की, इस के बावजूद उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. उस की वजह से मेरे परिवार ने मुझे छोड़ दिया. इस के बावजूद वह मुझे छोड़ कर चली ही नहीं गई, मेरे ऊपर मुकदमा भी कर दिया था.’’

पुलिस ने तेजप्रकाश को अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि के दौरान उस ने नगमा परवीन की हत्या का अपना अपराध तो स्वीकार कर ही लिया, मोटरसाइकिल और उस की डिक्की में रखा चाकू, बोरी, रस्सी आदि भी बरामद करवा दी. पूछताछ में उस ने नगमा की हत्या की जो कहानी पुलिस अधिकारियों को सुनाई, वह इस प्रकर थी—

नगमा परवीन मोहम्मद असलम की बड़ी बेटी थी. प्राइवेट नौकरी करने वाले मोहम्मद असलम की जिंदगी मजे से कट रही थी. वह जमाने से कदम मिला कर चलने वालों में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों को पढ़ायालिखाया. नगमा ने भी बीए किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने नौकरी करने के बजाए ब्यूटीपार्लर का काम सीखा और घर से थोड़ी दूरी पर अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. उस का ब्यूटीपार्लर चल भी निकला.

खूबसूरत नगमा परवीन पर मर मिटने वालों की कमी नहीं थी. उन्हीं में आमातालाब का रहने वाला तेजप्रकाश सेन भी था. वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. बापबेटे को ठीकठाक तनख्वाह मिलती थी, इसलिए परिवार सुखी और संपन्न था.

तेजप्रकाश मांबाप की एकलौती संतान था. उस की शादी ही नहीं हो चुकी थी, बल्कि वह एक बेटे और एक बेटी का बाप भी था. इस के बावजूद वह पहली ही नजर में नगमा पर मर मिटा था. नगमा पर दिल आते ही वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर और ब्यूटीपार्लर के चक्कर ही नहीं लगाने लगा था, बल्कि घंटों उस के ब्यूटीपार्लर के सामने खड़ा हसरतभरी नजरों से ताका करता था.

उस की इस हरकत को देख कर नगमा को समझते देर नहीं लगी कि वह क्या चाहता है. फिर तो वह उसे देख कर अनायास ही मुसकराने लगी. इसी मुसकान ने दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया. उस समय नगमा 18 साल की थी तो तेजप्रकाश 29 साल का. देनों के बीच उम्र में 10 साल का लंबा फासला था. लेकिन तेजप्रकाश की कदकाठी ऐसी थी कि वह इतनी उम्र का लगता नहीं था.

जल्दी ही नगमा के घर वालों को उस के और तेजप्रकाश के प्रेमसंबंधों का पता चल गया था. लेकिन उन्होंने किसी तरह का ऐतराज नहीं किया. नगमा ने तेजप्रकाश को दिल का राजकुमार बनाया तो उसी से शादी करने का फैसला कर लिया. इस की वजह यह थी कि दोहरी जिंदगी जी रहे शातिर तेजप्रकाश सेन ने अपनी शादी के बारे में न तो नगमा को पता चलने दिया और न ही उस के घर वालों को.

जल्दी ही दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. चूंकि नगमा बालिग हो चुकी थी, इसलिए घर वाले चाह कर भी विरोध नहीं कर सकते थे. अदालत से पतिपत्नी की तरह रहने की इजाजत ले कर तेजप्रकाश ने किराए का कमरा लिया और उसी में नगमा परवीन के साथ रहने लगा.

तेजप्रकाश ने जो कुछ छिपा कर नगमा से शादी की थी, जल्दी ही उस सब की जानकारी नगमा को हो गई. जब तेजप्रकाश की सच्चाई नगमा के सामने आई तो वह सन्न रह गई. उस के सपने चूरचूर हो गए थे. उस ने तेजप्रकाश से ऐसी उम्मीद कतई नहीं की थी कि वह उस के साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है. इसलिए उस की सच्चाई जान कर उसे उस से नफरत हो गई.

नगमा परवीन की समझ में नहीं आ रहा था कि उस ने जो गलती की है, उसे मांबाप को कैसे बताए, क्योंकि एक तरह से उस ने मांबाप के भरोसे को तोड़ा था. उस ने मांबाप को बताए बिना तेजप्रकाश से शादी की थी. आखिर में मजबूर हो कर उस ने सारी बातें अपने अब्बू को बताई तो बेटी की परेशानी को देखते हुए वह उस की मदद के लिए तैयार हो गए. क्योंकि बेटी की जिंदगी का सवाल था.

तेजप्रकाश को सबक सिखाने के लिए मोहम्मद असलम ने अदालत में उस के खिलाफ धोखा दे कर शादी करने का मुकदमा दायर कर दिया. मुकदमा दायर होने के बाद तेजप्रकाश के घर वालों को जब उस की इस करतूत का पता चला तो मांबाप ने उस की मदद करने के बजाए उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

पत्नी भी बच्चों को ले कर मायके चली गई. तेजप्रकाश की स्थिति धोबी के कुत्ते की जैसी हो गई. वह न घर का रहा न घाट का. अदालत ने नगमा परवीन के हक में फैसला सुनाया. उस ने तेजप्रकाश को ढाई लाख रुपए देने का आदेश दिया, जिसे उसे 27 हजार रुपए महीने की किस्त के रूप में देना था. उस ने 27 हजार रुपए की पहली किस्त तो नगमा परवीन को दे दी, लेकिन उस के बाद उस ने उसे एक भी रुपया नहीं दिया. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. मजबूर हो कर नगमा ने एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया.

नगमा द्वारा दोबारा मुकदमा करने पर तेजप्रकाश परेशान हो उठा. अब उसे अपने किए का पश्चाताप हो रहा था. क्योंकि अब वह कहीं का नहीं रह गया था. पत्नी पहले ही उसे छोड़ कर चली गई थी. मांबाप ने भी मुंह मोड़ लिया था. पत्नी और मांबाप को मनाने की उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे साथ रखने से साफ मना कर दिया. जिस की वजह से यह सब हुआ था, वह भी साथ रहने को तैयार नहीं थी. बल्कि वह उसे परेशान कर रही थी.

तेजप्रकाश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? नगमा द्वारा दोबारा मुकदमा करने से वह काफी परेशान था. इस परेशानी में उस ने नगमा नाम की इस बला से निजात पाने के लिए सोचाविचारा तो उसे लगा कि वह इस बला से हमेशा के लिए तभी छुटकारा पा सकता है, जब उसे खत्म कर दे.

लेकिन इस में खतरा बहुत था. पकड़े जाने पर उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती. इसलिए वह हत्या इस तरह करना चाहता था कि पकड़ा न जाए. उसे पता था कि वह पकड़ा तभी नहीं जाएगा, जब पुलिस की हत्या का कोई सबूत न मिले. इस के लिए तेजप्रकाश टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिक देखने लगा. इन्हीं धारावाहिकों को देख कर उस ने नगमा की हत्या की योजना बना डाली. योजना के अनुसार उस ने पहले नगमा पर विश्वास जमाया. तेजप्रकाश नगमा का पहला प्यार था, इसलिए उस ने भले ही उसे धोखा दिया था, लेकिन वह उसे अपने दिल से निकाल नहीं पाई थी.

इसलिए जब भी तेजप्रकाश उसे फोन करता था, वह फोन उठा लेती थी. यही वजह थी कि वह नगमा को यकीन दिलाने में सफल रहा कि वह उसे फिर से अपना लेगा, दोनों पतिपत्नी की तरह रहेंगे. विश्वास दिलाने के लिए उस ने कहा था कि पत्नी से उस ने संबंध तोड़ लिए हैं. उस की इसी बात पर नगमा झांसे में आ गई.

नगमा को पूरी तरह विश्वास में ले कर 17 जनवरी, 2017 की रात 9 बजे के करीब तेजप्रकाश ने उसे फोन कर के कहा कि अगले दिन वह उसे ले कर घूमने जाना चाहता है. नगमा उस के साथ चलने को तैयार हो गई. उस ने यह बात मांबाप को भी नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि शायद वे उसे उस के साथ जाने न देते.

18 जनवरी की सुबह 9 बजे तेजप्रकाश ने फोन कर के नगमा से कहा कि वह उस के घर से थोड़ी दूरी पर सड़क पर मोटरसाइकिल लिए खड़ा है. इस के बाद उस ने कहा था कि वह अपना फोन घर में ही छोड़ कर आए, क्योंकि वह उसे नया फोन गिफ्ट में दिलाना चाहता है.

बात नए फोन की थी, इसलिए नगमा ने वैसा ही किया, जैसा तेजप्रकाश ने कहा था. उस ने अपना फोन घर में ही छोड़ दिया. इस के बाद घर वालों से ब्यूटीपार्लर जाने की बात कह कर वह तेजप्रकाश के साथ उस की मोटरसाइकिल से चली गई. नगमा ने भले ही घर वालों को नहीं बताया था कि वह कहां जा रही है, लेकिन उस की छोटी बहन ने उसे तेजप्रकाश के साथ मोटरसाइकिल से जाते देख लिया था.

तेजप्रकाश उसे ले कर पड़ोसी जिले बालोद के सियादेई मंदिर पर पहुंचा. दर्शन करने के बाद उस ने सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल रोक कर नगमा को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया और फुरती से गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. जब वह बेहोश हो गई तो उस ने डिक्की में रखे चाकू और पेंचकस से उस के गले पर कई वार किए.

जब उसे लगा कि नगमा मर गई है तो उस ने साथ लाए बोरे में उस की लाश भरी और उसे पीछे बांध कर वहां से 40 किलोमीटर दूर रुद्री घाट पर ले गया. वहां से उस ने धमतरी के एक लकड़ी व्यवसाई से फोन पर बात कर के अंतिम संस्कार के बहाने घाट पर लकडि़यां मंगवा लीं. उस समय तक शाम हो चुकी थी. उस ने मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर लकडि़यों पर लाश रखी और पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. उस समय घाट सूना पड़ा था. इसलिए उसे लाश जलाते हुए किसी ने नहीं देखा.

लाश जल गई तो उस ने राख ठंडी कर के नदी में फेंक दी, जिस से पुलिस को कोई साक्ष्य न मिले. इस के बाद नहाधो कर साफ कपड़े पहने और रात 11 बजे के करीब दुर्ग जिला के उतई गांव स्थित अपनी ससुराल पहुंच गया. रात उस ने वहीं बिताई और अगले दिन अपने घर आ गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर कोतवाली पुलिस ने उसे दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक वह जेल में बंद था. पुलिस उस के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. तेजप्रकाश ने चालाकी तो बहुत दिखाई, पर कानून के लंबे हाथों से बच नहीं सका. सोचने वाली बात यह है कि आखिर तेजप्रकाश को मिला क्या? अगर वह अपनी पत्नी में ही संतोष किए रहता तो न उस का घर बरबाद होता और न जिंदगी?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खेती की जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का रखें ध्यान

बढ़वार हासिल करने के लिए पौधों को अनेक तत्त्वों की जरूरत होती है, जिन को वे मिट्टी, पानी व हवा से लेते हैं. लेकिन सभी तत्त्व पौधों की खुराक का हिस्सा नहीं होते. वे तत्त्व, जो पौधों की खुराक होते हैं, उन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं.मशहूर कृषि वैज्ञानिक आरनोन पौधों के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत को कुछ इस तरह बताते हैं, वे पोषक तत्त्व, जिन की कमी होने पर पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर पाते हैं.
पौधों के लिए जरूरी

पोषक तत्त्व
खास पोषक तत्त्व : इस में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटैशियम आते हैं. पौधों को इन्हीं 3 पोषक तत्त्वों की सब से ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें खास पोषक तत्त्व कहते हैं. खेती में सब से ज्यादा इन्हीं पोषक तत्त्वों वाली खाद का इस्तेमाल होता है.

गौण पोषक तत्त्व : इस में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम व सल्फर तत्त्व आते हैं. इन्हें पौधों के लिए पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. लेकिन इन का काम खास पोषक तत्त्वों के मुकाबले कम होता है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्व : इस में आयरन, जिंक, कौपर, मैंगनीज, बोरोन, मोलिब्डेनम, क्लोरीन व कोबाल्ट तत्त्व आते हैं. पौधों को इन पोषक तत्त्वों की बहुत ही कम मात्रा यानी
1 पीपीएम से भी कम की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहते हैं.लेकिन खास पोषक तत्त्वों के साथसाथ सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी पौधों के विकास व बढ़ोतरी के लिए जरूरी होते हैं.

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से न केवल पौधों की बढ़वार रुक जाती है, बल्कि वे अपना जीवन चक्र भी पूरा नहीं कर पाते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों के पोषण के लिए जरूरी एंजाइम को क्रियाशील बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और पौधों को बीमारियों से बचने व उन से लड़ने की ताकत देते हैं.

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आइए जानें, सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों में क्याक्या करने की कूवत रखते हैं:
जिंक : यह पौधों की जिंदगी में होने वाली जरूरी प्रतिक्रियाओं में उत्प्रेरक का काम करता है और औक्सीकरण की क्रिया को नियमितता प्रदान करता है. यह अनेक एंजाइम्स के उपचयन में भाग लेता है और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है. पौधों में पाए जाने वाले हार्मोनों के लिए यह जैविक संश्लेषण में काम आता है और पौधों के द्वारा फास्फोरस के उपापचय में सहायक होता है. यह पौधों द्वारा कार्बोहाइड्रेट के उपयोग को भी प्रभावित करता है.
जिंक की कमी से पौधों में पानी की मात्रा कम हो जाती है. जिंक पौधों में प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोजन के उपचयन में मदद करता है. जिंक फूल व फलों के बनने और फसलों के जल्दी पकने में मददगार होता है. पौधों में जिंक की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* पौधों की पत्तियां एकदम छोटी हो जाती हैं.
* फास्फोरस बढ़ने से जिंक की कमी बढ़ती है.
* धान में खैरा बीमारी इस की कमी का खास लक्षण है.
लोहा : पौधों को इस की कम मात्रा में जरूरत होती है, लेकिन पौधों के पोषण में इस का काफी महत्त्व है. यह पौधों में क्लोरोफिल, प्रोटीन व कोशिका विभाजन के लिए जरूरी और पौधों के विभिन्न एंजाइम्स के बनने का खास घटक है. इस की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* लोहे की कमी से पौधों में हरेपन की कमी दिखाई देती है.
* इस की कमी के लक्षण पौधे की शिराओं के बीच के भागों में ही सीमित रहते हैं.
* पत्तियों पर पीले रंग की लंबी धारियां दिखाई देती हैं.
* पौधों की बढ़वार कम होती है.
* पौधा सफेद दिखाई देने लगता है.
* फल अधपके गिर जाते हैं.

मैंगनीज : पौधों के पोषण में जरूरी यह तत्त्व पौधों की बढ़वार और पौधों के उपापचय के लिए जरूरी है. यह नाइट्रेट और क्लोरोफिल के बनने में मददगार होता है. यह कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन उपापचय में जरूरी होता है. यह एंजाइम के उत्प्रेरक के रूप में भी काम करता है. पौधों में मैंगनीज की कमी के लक्षण ये होते हैं:

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* मैंगनीज की कमी के चलते नई व पुरानी पत्तियों में कई तरह के हरिमाहीन धब्बे देखे जा सकते हैं.
* इस की कमी से पत्तियों का रंग हलका हो जाता है. साथ ही, पौधों की पत्तियों और जड़ों में चीनी की मात्रा में कमी आ जाती है.

* धान्य फसलों की पत्तियां भूरी हो जाती हैं और उन में ऊतक गलन बीमारी पैदा हो जाती है.
* इस की कमी के लक्षण पहले पौधों की नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं.
तांबा : यह प्रकाश संश्लेषण व श्वसन क्रिया में भाग लेता है. फफूंदी से पैदा होने
वाली बीमारियों की रोकथाम में इस का खास रोल होता है. यह औक्सीकरण अवकरण की क्रिया में अहम काम व पौधों में विटामिन ए के बनने में मदद करता है. पौधों में तांबे की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* तांबे की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है.
* सरसों वर्ग के पौधों की शिराओं व बीच में धब्बे पड़ जाते हैं.
* नई पत्तियों में क्लोरोसिस रोग हो जाता है.

बोरोन : यह आरएनए व डीएनए के संश्लेषण में योगदान देता है और कोशिकाओं में पानी पर काबू करता है. साथ
ही, दलहनी फसलों में यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण में काफी मददगार होता है. पौधों में बोरोन की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* बोरोन की कमी से जहां दलहनी फसलों की जड़ों पर गांठों का पूरा विकास नहीं हो पाता, वहीं प्रजनन अंगों का विकास भी प्रभावित होता है.
* बोरोन की कमी होने पर पौधे नाइट्रोजन का उपयोग भी कम कर पाते हैं.
* पौधों के सिरे रंगहीन व मुडे़ हुए हो जाते हैं.

* पार्श्व कलिकाएं विकसित नहीं होतीं.
* इस की कमी से पत्तियों पर सफेद धब्बे व धारियां पाई जाती हैं.
* फूल व फल बनने की दर कम हो जाती है.
* इस की कमी से पत्तियों में झुर्रियां, कड़ापन व हरिमाहीनता वगैरह के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
मोलिब्डेनम : यह चीनी और विटामिन सी बनाने में मददगार होता है और फास्फोरस के उपापचय में भाग लेता है. दलहनी फसलों की जड़ग्रंथियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा हवा में मौजूद नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में मोलिब्डेनम का खास रोल रहता है. यह फूलों की बढ़वार में मददगार होता है. मोलिब्डेनम के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:

* इस की कमी से पौधों में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है.
* पत्तियों के किनारे झुलस जाते हैं.
* तने व पत्ती पीली व धब्बेदार हो जाती है.
* दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथि कमजोर रह जाती है.
* फूल निकलने में कमी आ जाती है.
क्लोरीन : यह कोशिका रस के संतुलन में मददगार है व एंथोसाइनिंस का संघटक पदार्थ है. यह पौधों की प्रकाश अपघटन की क्रिया में भाग लेता है. क्लोरीन के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:
* इस की कमी होने पर फल नहीं बनते हैं.
* मक्के के पौधे सूख जाते हैं.
* बरसीम की पत्तियां कटने लगती हैं.
* पौधों में हरिमाहीनता पैदा हो जाती है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को हम कैमिकल खादों का इस्तेमाल कर कम कर सकते हैं. विभिन्न प्रकार के कैमकल खादों का इस्तेमाल दिए गए बौक्स के अनुसार करें.

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 3

लेखक- डा. भारत खुशालानी

अधिकारी दोनों को एक बड़े कमरे में ले कर गया, जो एक प्रतीक्षालय कमरे की तरह था. गरिमा उसी कमरे में बैठी रही, जबकि मिन अस्पताल में अपने दूसरे काम से निकल गया. गरिमा को चीनी भाषा अब अच्छे से समझ आने लगी थी. उस को अधिकारी और रिसैप्शनिस्ट की बातों से समझ आ गया था कि मामला गंभीर है. उस ने हिंदुस्तान फोन लगाने की सोची, लेकिन फिर स्काइप करना ज्यादा उचित समझा. भारत में अभी दोपहर हो रही होगी और मम्मी खाना बना रही होगी, यह सोच कर उस ने स्काइप करने का विचार भी त्याग दिया. उस के बदले उस ने विश्वविद्यालय में अपनी सहेली शालिनी को फोन लगाया. ‘‘शालिनी, तेरे को विश्वास नहीं होगा. हम लोगों को अभी अस्पताल से निकलने नहीं दिया जा रहा है.’’शालिनी बोली, ‘‘क्या बात कर रही है?’’ गरिमा ने कहा, ‘‘किसी वायरस की बात कर रहे थे. शायद मेरी जांच भी करें कि किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क तो नहीं हो गया है.’’शालिनी ने पूछा, ‘‘वान ने अच्छे से बात की तुझ से?’’गरिमा ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, उस से मुलाकात नहीं हो पाई. शायद वह व्यस्त है.

कहीं. उस के बदले मिन झोउ नाम के लड़के ने प्रयोगशालाएं दिखाईं.’’शालिनी ने आगे पूछा, ‘‘सभी को रखा है या सिर्फ तेरे को रखा है भारतीय जान कर?’’गरिमा ने यहांवहां देखा, ‘‘अच्छा प्रश्न किया है तू ने. अभी मुझे मालूम नहीं है. और एक हाथ की दूरी पर भी रहने को बोल रहे हैं.’’शालिनी ने कहा, ‘‘देख, थोड़ी देर रुक. फिर कोई परेशानी आए तो मुझे बताना.’’गरिमा बोली, ‘‘ठीक है, चल.’’गरिमा ने फोन रख दिया. इस बात का संदेह करना जरूरी था कि सिर्फ भारतीय समझ कर उस को रखा गया था या सब के ऊपर यह लागू था. यह सोच कर गरिमा ने प्रतीक्षालय कमरे से निकल कर थोड़ी तहकीकात करना उचित समझा. थोड़ी देर के बाद उस ने शालिनी को फिर फोन लगाया, ‘‘शालिनी, मेरे खयाल से ये लोग किसी को भी बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, सिर्फ मैं ही इस में शामिल नहीं हूं.’’शालिनी बोली, ‘‘मैं आ जाऊं वहां पर?’’गरिमा ने कहा, ‘‘नहीं, यहां मत आ. तेरे को अंदर नहीं आने देंगे. कुछ घंटों के लिए इन्होंने पूरी जगह की ही तालाबंदी कर दी है. शायद सिर्फ सावधानी बरत रहे हैं. जहां मुझे रखा है, वह अस्पताल के पुराने हिस्से में है. कोई प्रतीक्षालय कमरा लगता है, लेकिन यहां गोदाम की तरह सामान भी रखा है.’’शालिनी ने चिंता जाहिर की, ‘‘तू ठीक है?’’गरिमा ने कहा, ‘‘अभी तक तो ठीक हूं. चल, मैं बाद में कौल करती हूं.’’  अचानक गरिमा को उन चूहों के डब्बे की याद आई जिसे आज उस ने एक बूढ़े को संक्रामक रोग विभाग की ओर ले जाते हुए देखा था. चूहों तक पहुंचने की इजाजत तो आज शायद उस को कोई नहीं देगा, यही सोच कर गरिमा ने महसूस किया कि आज के दिन ही उन चूहों का आना कोई विशेष महत्त्व की बात थी.

जिज्ञासावश, गरिमा उस विभाग को ढूंढ़ने के लिए इस गोदाम से दिखने वाले प्रतीक्षालय कमरे से निकल कर गलियारे में आ गई. दोचार गलियारे पार करने के बाद वह सहम गई क्योंकि वहां पर पुलिसवाले रक्षात्मक कपड़े पहने हुए खड़े थे. उन के पुलिस वाले होने का अंदेशा इसी से लगाया जा सकता था कि उन के पास कमर में पिस्तौल और बैटन मौजूद थे, और उन के पुलिस वाले बिल्ले उन की छाती पर लगे हुए थे. वे ठीक उसी प्रकार के कमरे के बाहर खड़े थे जिस प्रकार के कमरे में डा. वान लीजुंग को रखा गया था. इस कमरे में हुआनान सी फूड वाले आदमी को उस के घर से पुलिस वालों ने ला कर रखा था. 4 दिन पहले उस को सिर्फ हलके रोगलक्षण थे. आज उस की स्थिति इतनी गंभीर थी कि वह मरणासन्न नजर आ रहा था. शायद यहां से उस को तुरंत आईसीयू में ले जाया जाए, पुलिस वालों को भी यह बात पता नहीं थी. इस आदमी के परिवार वालों को, वहीं उस के घर में, संगरोध करने की प्रक्रिया, स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने शुरू कर दी थी. कमसेकम 3 लोगों के साथ उस के सीधे संपर्क बने थे – उस की मां, उस की पत्नी और उस का बेटा. तीनों को उन के घर पर ही स्पर्शवर्जन करने की हिदायत, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को दी गई थी. उन में से एक उस की पत्नी को खांसी और बुखार के लक्षण नजर आ रहे थे. पुलिस वालों ने उस के पास से वह सीफूड माल भी जब्त कर लिया था जो वह हुआनान मार्केट से खरीद कर लाया था. यह माल पुलिस वालों ने अस्पताल के डाक्टरों को दे दिया था. एक पुलिस वाले ने दूसरे से कहा, ‘‘डा. मू का कहना है कि यह सिर्फ तरल पदार्थों से ही फैलता है – खून, पसीना, पेशाब, सीमन.’’दूसरे ने कहा, ‘‘मैं ने तो इस के घर की किसी भी चीज को छुआ तक नहीं. इस को भी जब हम ले कर आए तो मैं ने पूरा गियर पहना हुआ था.’’पहले वाले ने कहा,

‘‘हम को वापस पुलिस स्टेशन लौट जाना चाहिए.’’दूसरा बोला, ‘‘इस की हालत तो देखो. तुम को ऐसा नहीं लगता कि भले ही पूरा गियर पहन रखा था, लेकिन इस के संपर्क में आने के कारण हम को यहां थोड़े समय रहना चाहिए निरीक्षण में?’’पहले वाला बोला, ‘‘किसी तरल पदार्थ का तो आदानप्रदान हुआ नहीं.’’दूसरा बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि फिक्र की कोई बात नहीं है, फिर भी …’’पहले वाले की नजर अचानक गरिमा पर पड़ी. उस ने गरिमा से कहा, ‘‘यह निजी रोगीकक्ष है. आप यहां नहीं आ सकतीं.’’वुहान में, और अस्पताल में, अकसर विदेशी अच्छीखासी संख्या में दिखते थे, इसीलिए उन पुलिस वालों को भारतीय युवती को अस्पताल में देख कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ. वह यहां क्या कर रही थी, इस बात को जानने में उन की कोई रुचि नहीं दिखाई दी. गरिमा ने सकपका कर कहा, ‘‘आज एक व्यक्ति चूहे ले कर संक्रामक रोग विभाग में गया है. वहां मेरा शोधकार्य है. मैं उसी को ढूंढ़ रही हूं.’’ यह बोलतेबोलते जब गरिमा ने कांच से उस कमरे के अंदर नजर डाली जिस में सीफूड वाले व्यक्ति को रखा गया था, तो उस की मरणासन्न हालत देख कर और पुलिस वालों के रक्षात्मक कवच देख कर उस को एक ही झटके में समझ में आ गया कि किसी भयंकर और संक्रामक वायरस वाला किस्सा है. पहले पुलिस वाले ने दूसरे से कहा, ‘‘मैं इस लड़की की मदद करता हूं.’’दूसरे ने हिदायत दी, ‘‘एक हाथ की दूरी पर रखना. और इस को भी मास्क और ग्लव्स दे दो.’’पहले वाले ने अपने कवच में से मास्क और ग्लव्स निकाल कर गरिमा को दे दिए जिन्हें गरिमा ने पहन लिए. मास्क पहनने के बाद यह बताना नामुमकिन था कि वह भारतीय है या चीनी.  पुलिस वाला गरिमा को रास्ता दिखाते हुए ले चला. रास्ते में गरिमा ने कहा, ‘‘वह आदमी, जिस के कमरे के बाहर तुम खड़े थे, बहुत गंभीर हालत में दिख रहा था.’’पुलिस वाला शायद अपने स्टेशन वापस जाने की जल्दी में था, इसीलिए उस ने गरिमा से बिना कुछ कहे उस को अस्पताल के अंदर के रास्ते से संक्रामक रोग विभाग तक पहुंचा दिया और चला गया. विभाग के बाहर बोर्ड लगा था, ‘प्रवेश निषेध.’ अंदर जाने के लिए कीकार्ड की जरूरत थी. इतने में अंदर से एक नीले रंग का कोट पहने व्यक्ति बाहर आया. उस ने गरिमा को वहां खड़ा हुआ पाया और कहा, ‘‘यह क्षेत्र वर्जित है.’’गरिमा ने हिम्मत जुटा कर कहा,

‘‘मैं डा. वान लीजुंग की सहायिका हूं. मुझे अंदर चूहों पर हो रही रिसर्च के सिलसिले में जाना है.’’गरिमा को इंग्लिश में बोलता सुन और विदेशी समझ कर नीले कोटवाले ने इज्जत से अपने कीकार्ड से दरवाजा खोल कर गरिमा को अंदर जाने दिया और खुद दूसरी ओर चला गया.  थोड़ी ही आगे जाने पर गरिमा को वह कमरा दिखा जिस में 2-3 लंबी टेबलें पड़ी थीं और जिन पर तरहतरह के उपकरण रखे थे. वह डब्बा भी था जिस में सफेद चूहे सूखी पत्तियों के ऊपर आतुरता से यहांवहां घूम रहे थे. पास ही सीरिंज का डब्बा था. नोटिसबोर्ड पर अलगअलग रिसर्चपेपर के पहले पन्ने लगे हुए थे जिन में चूहों से हुई रिसर्च के प्रकाशन को दर्शाया गया था. बूढ़ा व्यक्ति वहां नहीं था, वह चूहों को रख कर चला गया था. गरिमा ने चूहों के झांपे को गौर से देखा. इन चूहों पर अभी प्रशिक्षण होना बाकी था. कमरे में रोशनी ज्यादा तेज नहीं थी. चूहों के ऊपर हैंडलैंप से पीली रोशनी पड़ रही थी. एक ओर मेज पर टैलीफोन रखा हुआ था और कुछ कागजात बिखरे हुए थे. अचानक अपने पीछे से आई आवाज से गरिमा हड़बड़ा गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही युवक खड़ा था जिस ने उसे अस्पताल की अन्य प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. मिन झोउ ने कड़की से पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’गरिमा चूहों की तरफ इशारा करना चाहती थी मानो पूछना चाहती हो कि इन चूहों पर कौन सा प्रयोग हो रहा है. लेकिन मिन ने उस को पूछने का अवसर नहीं दिया. मिन ने फिर सख्ती से कहा, ‘‘पूरा अस्पताल तालेबंदी में कर दिया गया है. यह नियम सब के ऊपर लागू होता है.’’गरिमा ने झेंप कर कहा, ‘‘हां.’’मिन ने कहा, ‘‘अब वे लोग किसी को भी इस अस्पताल से 48 घंटों तक बाहर नहीं जाने देंगे.’’गरिमा के मुंह से जैसे चीख ही निकल गई, ‘‘48 घंटे? पूरे 2 दिन?’’मिन ने बताया, ‘‘मैं ने पता कर लिया है, यह खबर झूठी नहीं है.’’गरिमा बोली, ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’

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