एक कहावत है कि बड़े लोगों को बीमारियां भी बड़ी होती हैं. हालांकि ऐसी कहावतों पर यकीन नहीं होता, क्योंकि उन्हें हम जितने सरलीकृत ढंग से समझते हैं, वे इतनी सरल नहीं होतीं. यह बात भी पूरी तरह से सरल निष्कर्षों से परे है, हो सकता है इस कहावत का यह मतलब हो कि दुर्लभ बीमारियां होती तो सब को हैं, लेकिन इन का पता सिर्फ अमीर लोगों को ही चलता है.

वजह ये कि बड़े लोग बीमारी का पता करने के लिए जितना कुछ खर्च कर सकते हैं, उतना हर कोई नहीं कर सकता. अकारण ही इरफान खान की बीमारी का नाम सामने आते ही स्टीव जौब्स का नाम नहीं आया, बल्कि इस नाम के सामने आने का एक मनोविज्ञान है कि स्टीव की तरह इरफान खान भी खास हैं, इसलिए न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ने उन्हें अपने लिए चुना था.

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इरफान खान का फिल्मी कैरियर

इरफान खान नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल औफ ड्रामा से पासआउट हैं. वह अपने सहज अभिनय के लिए जाने जाते हैं. 1988 में मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बौंबे’ से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया था. यह फिल्म औस्कर अवार्ड के लिए भी नौमिनेट हुई थी. इरफान खान के फैंस उन्हें विशेष रूप से कुछ खास फिल्मों के लिए जानते हैं. इन फिल्मों में हैं, ‘हासिल’, ‘मकबूल’, ‘लाइफ इन मैट्रो’, ‘न्यूयार्क’, ‘द नेमसेक’, ‘लाइफ औफ पई’, ‘साहब, बीवी और गैंगस्टर-2’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘लंच बौक्स’ और ‘हिंदी मीडियम’.

साल 2011 में मिला पद्मश्री

इरफान के बेजोड़ अभिनय को सरकार ने भी नोटिस किया, जिस की वजह से साल 2011 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए साल 2012 में बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.

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