बचपन में जब प्राइमरी स्कूल में हिंदी विषय के मास्टरजी व्याकरण में स्वर और व्यंजन सिखाया करते थे तो पल्ले कुछ नहीं पड़ता था. इस मारे मास्टरजी के पास एक घपरोल आइडिया हमेशा रहता था. वह थी उन की पतली लपलपाती बेत की लचकदार छड़ी. जहां विद्यार्थी अटका वहीँ इस छड़ी से पीछे का बेस लाल कर दिया करते. हांलाकि पल्ले तो उस के बाद भी नहीं पड़ता था. लेकिन यह दूसरे विद्यार्थियों के लिए सीख जरुर बन जाता था. और वे रटन तोते की तरह ही सही लेकिन रट जाया करते.

19 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री मोदीजी ने स्वर व्यंजन तो नहीं लेकिन इंग्लिश ग्रामर के वोवल्स की क्लास लगा दी. हिंदी में जिसे स्वर कहते हैं इंग्लिश में उसे वोवल्स कहा जाता है. मोदी जी ने सोशल प्लेटफार्म लिंकडिन के माध्यम से वोवल्स के इन वर्ड्स को आधार बना कर कोरोना के संकट से जीवन में बदलाव और लड़ने की तरकीब बखूबी बताई, वैसे बोलने बताने की खूबी तो उन में बहुत है, ऐंसे ही थोड़े वे अपने प्रतिद्वंदियों के छक्के छुड़ा देते हैं.

अपनी इस पोस्ट में उन्होंने कोरोना खतरे से उपजी देश की स्तिथि को क्रिएटिव तरीके से समझाने की कोशिश की. जिस में वोवल्स की तर्ज पर पांच मुख्य बिंदु देश के सामने रखे. आज की स्थिति को देखते हुए बदकिस्मती से एकता और भाईचारे का जो बिंदु सब से पहला होना चाहिए था वह सब से अंत का यानी पांचवां बिंदु था. जिस में लिखा था कि कोरोना जातधर्म, रंग, भाषा, लिंग और सीमा नहीं देखता, इसलिए एकता और भाईचारा बनाए रखना जरुरी है. लेकिन इस में हमारे मोदीजी क्या कर सकते हैं. इस में तो सारी गलती अंग्रेजी अल्फाबेट की है.

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