लौकडाउन में काफीकुछ बदल गया. आनाजाना, चलनाफिरना, खरीदफरोख्त, लानालेजाना व और भी बहुतकुछ. सफर करना तो लौक है.

सबसे ज़्यादा दिक्कत में प्रवासी मजदूर यानी अपने घर से दूर किसी शहर या राज्य में रोजी-रोटी कमाने वाले हैं. वे अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन नहीं जा पा रहे, लौकडाउन जो लागू है. हां, 'कबूतरबाजी' के जरिए कुछ मजदूर अपने गांव जरूर पहुंच गए हैं.

कबूतरबाज़ी है क्या :

लौकडाउन और कर्फ्यू की दोहरी मार झेल रहे पंजाब के मजदूरों को कबूतरबाज़ी के जरिए उनके मूल राज्यों में छोड़कर आने का ग़ैरक़ानूनी धंधा जोरों पर है. कबूतरबाज़ी, दरअसल, मानव तस्करी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कूट शब्द है. ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से विदेश ले जाए जाने वाले पंजाबी नौजवानों के संदर्भ में इस शब्द का प्रचलन हुआ था. अवैधतौर पर विदेश जाने वालों को 'कबूतर' कहा जाता था और उन्हें भेजने वाले एजेंटों को 'कबूतरबाज' तथा इस सारे गोरखधंधे को 'कबूतरबाज़ी’.

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पंजाब में बिहार व उत्तरप्रदेश के फंसे बदहाल मजदूर, जो किसी भी तरह अपने घर-गांव जाना चाहते हैं,  कोरोना-काल के नए कबूतर हैं और बेईमान-लालची ट्रांसपोर्टर तथा कुछ जालसाज़ लोग कबूतरबाज़ हैं. राज्य पुलिस द्वारा हाल में की गई गिरफ़्तारियों से इस गोरखधंधे का परदाफ़ाश हुआ है.

कई कबूतरबाज काबू :

अभी 24 अप्रैल को पंजाब पुलिस ने 2अलगअलग जगहों से कई गिरोहों से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया है. ये लोग जाली कर्फ्यू पास बनाकर प्रवासी मजदूरों के समूहों को बिहार व उत्तर प्रदेश छोड़ने जाते थे. राज्य के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने इसकी पुष्टि की है. होशियारपुर के टांडा-उड़मुड़ और जालंधर के शाहकोट व लोहिया कसबों से ये गिरफ्तारियां की गई हैं.

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