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खेतीबारी, खेतीशिक्षा की महत्ता समझने की जरूरत

विश्व में खाद्यान्न संकट पैदा होने की आहट के बीच और वायरसरूपी हमले के मद्देनजर कृषि प्रधान देश भारत की खेतीबारी पर भी असर पड़ना तय है. अब तो ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि क्या हम कृषि प्रधान देश नहीं रहे.

भारत कृषि प्रधान देश है या नहीं रहा, इसे दो तरह से देखे जाने की जरूरत है. जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में अब कृषि की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है और यही हालात रहे तो अगले 15 वर्षों में भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी और भी कम हो जाएगी. ऐसे में आय के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अब भारत कृषि प्रधान नहीं रह गया है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि कृषि पर निर्भर आबादी की दृष्टि से देखा जाए तो हम अभी भी कृषि प्रधान देश हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, लगभग 55 फीसदी श्रम शक्ति (वर्क फोर्स) कृषि पर निर्भर है. कृषि पर निर्भर आबादी तो 65-70 फीसदी होगी और एनएसएसओ के मुताबिक, 2011 में 49 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर थी और अब भी लगभग 44 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर है. सीधे-सीधे यह कह देना कि ‘भारत कृषि प्रधान देश नहीं रहा’ सही नहीं है.

अब यहां यह समझना जरूरी है कि कृषि से जुड़ी आबादी क्या करती है? पिछले कई सर्वे बताते हैं कि कई राज्य ऐसे हैं, जहां फसल की खेती से आमदनी कम है, लेकिन वहां के छोटे या सीमांत किसान या भूमिहीन किसानों की आय मजदूरी से भी होती है, वे बाहर नहीं जाते, बल्कि वहीं बड़े किसानों के पास खेत में काम करते हैं. वे कोई गैरकृषि गतिविधि नहीं करते। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक सहित कई राज्यों में किसानों की जो कुल आमदनी है, उसमें खेतिहर मजदूरों का हिस्सा काफी उल्लेखनीय है. इसे गैरकृषि आय माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. जिसे अभी गैरकृषि आय कहा जा रहा है, सही माने में वह गैरकृषि आय नहीं है.  हां, गैर कृषि व्यापार आय की बात करें तो उसका अनुपात काफी कम है. इसलिए अभी यह कह देना जल्दबाजी होगा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में कमी आ रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि देश में अभी भी कृषि क्षेत्र में जितनी संभावनाएं हैं, उसका दोहन ही नहीं किया गया.

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लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गैरकृषि आय की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत नहीं है. देश में गैरकृषि से होने वाली आय को भी बढ़ाने की सख्त जरूरत है. कृषि पर निर्भर इतनी बड़ी आबादी को केवल कृषि के भरोसे नहीं छोड़ सकते. अब या तो कृषि से होने वाली आमदनी बढ़ाइए या फिर गैरकृषि आमदनी बढ़ाइए.

किसानों को ऐसे अवसर प्रदान करने होंगे कि वे अपनी खेती के अलावा दूसरे कार्यों से आमदनी बढ़ाएं, जैसे पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन आदि. सही माने में किसानों की सुनिश्चित आमदनी गैरकृषि कार्य से ही होती है, वरना तो कृषि से होने वाली आमदनी का कोई भरोसा नहीं. कभी सूखा पड़ गया, कभी बाढ़ आ गई, कभी आग लग गई और अब वायरस – कुलमिला कर खेतीबारी बहुत जोखिमभरा रोजगार का साधन हो चुका है. इसलिए गैरकृषि आय पर फोकस बढ़ाना होगा.

हालांकि, केवल गैरकृषि साधन बढ़ाने से ही किसानों की दशा नहीं सुधरेगी, उन्हें शिक्षा भी देनी होगी. किसानों को गांवों में ही बुनियादी सुविधाएं देनी होंगी. इसमें स्वास्थ्य सुविधाएं, बाजार, बैंक जैसी सेवाएं भी शामिल हैं. अगर किसान के बच्चे शिक्षित होंगे तो वे गैरकृषि क्षेत्र में नौकरी भी कर सकते हैं. कौशल विकास कार्यक्रम चला कर उन्हें तकनीकी तौर पर मजबूत करने से वे उद्यमिता की ओर भी अग्रसर होंगे. शिक्षा के अलग-अलग फायदे होते हैं. युवाओं के लिए, खासकर, यह सब करना पड़ेगा.

लेकिन कुछ हो नहीं रहा है. न तो कृषि क्षेत्र और ना गैरकृषि क्षेत्र की ओर कोई विशेष ध्यान दिया जा रहा है. ऐसे में क्या होगा? किसान और उसके परिवारों के सामने भूखमरी के सिवा रास्ता नहीं बचेगा या वे आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाएंगे.

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देश की व्यवस्था अगर कृषि क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है तो कृषि शिक्षा पर खास ध्यान देना होगा. अब कृषि क्षेत्र में नई-नई तकनीक की बात की जा रही है.  ड्रोन के इस्तेमाल की बात हो रही है। सिंचाई में नई तकनीक की बात हो रही है. लेकिन यह सब तब ही संभव है, जब किसान को उसका तकनीकी ज्ञान हो. उसे इसकी शिक्षा देने की जरूरत है. किसानों को ट्रेंड करना होगा ताकि वे खेतीबारी में सुधार कर सकें. साथ ही, कृषि क्षेत्र में नौकरी कर सकें. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो इनोवेशन हो रहे हैं उन्हें सरकार अगर जमीनी स्तर पर लागू नहीं करेगी तो कृषि क्षेत्र में सुधार नहीं होगा. इसलिए कृषि शिक्षा की ओर बहुत ध्यान देना होगा.

सरकार यदि चाहती है कि किसान के बच्चे भी कृषि कार्य ही करे तो उन्हें कृषि शिक्षा देने की जरूरत है. खासकर, आधुनिक तकनीक का ज्ञान देना पड़ेगा. तभी जाकर वे कृषि क्षेत्र में रहेंगे और आमदनी बढ़ाएंगे, लेकिन ओवरऔल जो स्थिति है, उससे लगता है कि कृषि क्षेत्र में लोग रहेंगे नहीं. खासकर युवा पीढ़ी. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि खेत छोटे होते जा रहे हैं, जिससे आमदनी ज्यादा होती नहीं है. रिस्क भी बहुत है, लोग तैयार नहीं हो रहे हैं. अब तक हम कोई ऐसा मैकेनिज्म तैयार नहीं कर पाए, जिससे खेती को जोखिम मुक्त बनाया जा सके. बीमा योजनाएं भी यह काम नहीं कर पाई हैं. सपोर्ट सिस्टम नहीं है. पैदावार ज्यादा हो जाए तो फेंकना पड़ता है. सरकार को सिस्टम बनाना होगा कि वह खेती को रिस्क फ्री कर दे.

युवा कृषि की ओर जाना चाहते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन सरकारी कृषि विश्वविद्यालयों में सीटें नहीं बढ़ाई जा रही हैं, उन्हें सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जा रही हैं. इसलिए इस क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर हाथ मार रहा है. पिछले दिनों सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईएसएआर) से कहा है कि वह अपने स्तर पर संसाधन जुटाए. अब अगर वैज्ञानिक ही संसाधन जुटाने लगेगा तो वह रिसर्च क्या करेगा? संसाधन ही जुटाना था तो वह वैज्ञानिक क्यों बना?

यह सही नहीं है.  इससे सरकारी क्षेत्र में रिसर्च खत्म हो जाएगी. प्राइवेट कंपनियां ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च कराएंगी. जिनको बीज बेचना है, उर्वरक बेचना है, मशीन बेचना है, वे लोग ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च करेंगे और अपने मुनाफे के लिए उसे लागू करेंगे. इससे प्राइवेट सेक्टर को फायदा होगा.

ऐसी हालत में कृषि शिक्षा, जो भी उपलब्ध है, चौपट होगी, उसकी अहमियत कम होगी और खेतीबारी की गुणवत्ता, जैसी भी है, भी प्रभावित होगी व किसी न किसी रूप में खाद्यान्न का संकट भी महसूस किया जाता रहेगा.

 

ट्रंप काबू में

9 नवंबर, 2016 को चुने गए मगर 20 जनवरी, 2017 को सुपरपावर देश माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल में अमेरिका ‘आने वाले कई सालों के लिए’ दुनिया की दिशा तय करेगा.

अब जब उनका कार्यकाल पूरा होने को है, चुनाव सिर पर हैं और उनके नेतृत्व में अमेरिका पूरी दुनिया की क्या, खुद अपनी ही दिशा तय नहीं कर पा रहा, तो ‘सुपरपावरमैन’ के सुर बदल गए.

आज 23 अप्रैल, 2020 को वाशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “हम पर हमला हुआ. यह हमला था. यह कोई फ्लू नहीं था. कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं देखा, 1917 में ऐसा आखिरी बार हुआ था.” उनका यह बयान नोवल कोरोनावायरस व कोविड-19 को लेकर है.

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‘अमेरिका फर्स्ट’ नारे से अमेरिकियों को लुभा कर सबसे ताकतवर कुरसी पर बैठने के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने तानाशाही रवैया अख्तियार कर लिया था. ऐसा उनका नेचर भी है.

ट्रंप आज कोरोना वायरस की महामारी पर क़ाबू पाने से ज़्यादा इस संकट में घिर कर और उलझ कर रह गए हैं. आने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए ट्रंप जब भी कोई मुद्दा तैयार करते हैं, कोरोना संकट उस मुद्दे की हवा निकाल देता है. उन के पास बीते दिनों को याद करने और दुखड़ा रोने के अलावा कुछ नहीं रह गया है.

वे प्रेस कौन्फ़्रेन्सों में यह कहते सुनाई देते हैं कि हमारे पास दुनिया की सबसे मज़बूत इकोनौमी थी. हमारी परफ़ौर्मेन्स चीन और दुनिया के हर देश से बेहतर थी. हमारे पास सबसे बड़ा बाज़ार था.

ट्रंप 2 महीने पहले सकारात्मक ख़बरें और मुद्दे जमा करने लगे थे क्योंकि रिपब्लिकन्स ने उन्हें सीनेट में महाभियोग के अभियान से नजात दिला दी थी जो डेमोक्रेटों ने पूरी ताक़त से उन के ख़िलाफ़ शुरू किया था.

ट्रंप को नज़र आने लगा है कि एक महीने के दौरान बेरोज़गारी की दर आसमान पर पहुंच गई है जिसका मतलब यह है कि वे अपने सबसे मज़बूत चुनावी मुद्दे से वंचित हो गए हैं. इसी बौखलाहट में उन्होंने विदेशियों के अमेरिका आने पर रोक लगा दी. यह इकोनौमी को फिर से खोलने की उनकी योजना के ख़िलाफ़ फ़ैसला है. इकोनौमी को रफ़तार देने के लिए कामगारों की ज़रूरत पड़ेगी जिनमें विदेशी कामगार भी शामिल हैं.

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ट्रंप की कोशिश थी कि देश की इकोनौमी को बंद न करना पड़े, लेकिन कोरोना के सामने उन्हें घुटने टेकने पड़े क्योंकि कोरोना ने बहुत बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुंचाना शुरू कर दिया. कुछ टीकाकार तो कहने लगे हैं कि संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फ़ाउची ने वह काम कर दिखाया जो ट्रंप के सलाहकार नहीं कर पा रहे थे. दरअसल, ट्रंप के सलाहकारों को शिकायत थी कि ट्रंप कोई भी सलाह मानने के लिए तैयार नहीं होते मगर फ़ाउची के सामने ट्रंप हथियार डाल देने पर मजबूर हो गए.

ट्रंप न अपनी दिशा तय कर पा रहे, न अपनी पार्टी की और न अमेरिका की. प्रेस ब्रीफ़िंग में हर दिन अलग राग लेकर आते हैं. कभी वे कहते हैं कि रिपब्लिकन, डेमोक्रेट, लिबरल और कंज़रवेटिव सब एक हैं. हम सब से मिल कर हमारा राष्ट्र बना है. हमारी आज की क़ुरबानियों को आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी. कभी उनका राग बदल जाता है और वे डेमोक्रेटों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारियों को उकसाना शुरू कर देते हैं. ट्रंप अब बलि के बकरे की तलाश में हैं, इसलिए वे कभी न्यूयौर्क के डेमोक्रेट गवर्नर एंड्र्यू कूमो पर झपट पड़ते हैं, कभी डब्ल्यूएचओ को निशाना बनाते हैं और कभी चीन को धमकियां देते हैं.

ट्रंप की हालत अजीब हो गई है. वे कभी तो एंथनी फ़ाउची को बरखास्त करने की मांग करने वाले ट्वीट को रिट्वीट करते हैं और अगले ही दिन कहते हैं कि फ़ाउची को हटाने का उनका कोई इरादा नहीं है. कारण यह है कि सर्वे में यह बात सामने आई है कि काफी बड़ी तादाद में अमेरिकी फ़ाउची पर बहुत भरोसा करते हैं.

कोरोना के बीच तेल की क़ीमतों का संकट भी सामने आया. ट्रंप ने सऊदी अरब और रूस के झगड़े में कूद कर कोशिश की कि इस मामले को संभालें ताकि अमेरिका की शेल आयल कंपनियों को डूबने से बचा सकें मगर उनकी यह कोशिश भी नाकाम हो गई और तेल की क़ीमतें तो शून्य से भी नीचे चली गईं.

कुल मिलाकर, संकटों से घिरे अमेरिका को बचाने में नाकामी और भावी चुनावों में विपक्षी जो बिडेन की बढ़ती लोकप्रियता के अंदेशे को महसूस कर ट्रंप को सूझ नहीं रहा कि वे किस दिशा पर चलें. ऐसा लगता है जैसे कोरोना ने उन्हें काबू में कर लिया हो.

 

19 दिन 19 टिप्स: खूबसूरती पर धब्बा हैं पीले दांत, ऐसे लाएं सफेद मुस्कान

सुषमा कैसी झक गोरी है, कितने शार्प फीचर्स हैं उसके, जो देखता है बस देखता ही रह जाता है, लेकिन जैसे ही उसका मुंह खुलता है सामने वाला मुंह बिचका लेता है. वजह है उसके पीले-पीले दांत, जो उसके गोरे चेहरे पर बड़े भद्दे दिखते हैं. पीले दांत उसकी खूबसूरती पर धब्बे की तरह चमकते हैं. लगता है जैसे वह ब्रश ही नहीं करती है.

मुस्कान हमारे व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है, लेकिन मुस्कुराते वक्त अगर हमारे पीले दांत नजर आएं तो हम न सिर्फ हंसी का पात्र बनते हैं, बल्कि हमारी ओवरआल पर्सनैलिटी पर भी नेगेटिव असर पड़ता है. कई बार रोजाना अच्छी तरह से दांतों को साफ करने के बाद भी दांतों में पीलापन आ जाता है तो कई बार साफ-सफाई और हाइजीन का पूरा ध्यान न रखना भी इसका कारण हो सकता है.

खाने-पीने की ऐसी कई चीजें हैं जिनसे दांतों पर लगा इनैमल दूषित हो जाता है और दांत पीले नजर आने लगते हैं. इसके अलावा अगर दांत पर प्लाक की परत जम जाए तो इससे भी दांत पीले नजर आने लगते हैं. अधिक चाय या कॉफी का सेवन करना या फिर जो लोग दांतों की सफाई ठीक तरीके से नहीं करते हैं उन्हें भी दांतों से सम्बन्धित समस्याएं होती हैं. सिगरेट या तम्बाकू के सेवन से दांत पीले और बीमार हो जाते हैं.

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हममें से ज्यादातर लोग पीले दांत और मुंह की बदबू जैसी समस्याओं से जूझते हैं. कई लोग तो डेंटिस्ट के पास जाकर मंहगा ट्रीटमेंट भी करवाते हैं. दांत पॉलिश करवाने के चक्कर में काफी पैसा भी फूंक देते हैं, लेकिन समस्या कुछ दिनों के बाद फिर उभर आती है. अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो बिना कोई पैसा खर्च किये घरेलू नुस्खों से घर बैठे दांतों का पीलापन दूर कर सकते हैं.

  1. नमक और सरसों का तेल
    दांतों को चमकाने के लिए नमक और सरसों के तेल का मिश्रण बहुत पुराना और अचूक इलाज है. आधा चम्मच नमक अपनी हथेली पर ले लें और इसमें पांच-छह बूंद सरसों का तेल मिला कर उंगली की मदद से अपने दांतों और मसूढ़ों पर हल्के हाथों से मसाज करते हुए मलें. आप टूथब्रश का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, लेकिन उंगली से दांत साफ करने पर मसूढ़ों की अच्छी मालिश भी हो जाती है. तीन से पांच मिनट की मसाज के बाद साफ पानी से कुल्ला कर लें. हफ्ते में दो-तीन बार नमक और सरसों के तेल के इस्तेमाल से आपके दांत मोतियों जैसे चमक उठेंगे. यह पेस्ट मुंह में पैदा होने वाले नुकसानदायक बैक्टीरिया को भी खत्म करता है और सांस की बदबू भी दूर करता है. इससे दांत के दर्द में भी आराम मिलता है.

2. हल्दी और सरसों का तेल
मोतियों जैसे सफेद और चमकदार दांत पाने के लिए सरसों के तेल के साथ नमक की जगह हल्दी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आधा चम्मच हल्दी पाउडर में एक चम्मच सरसों का तेल मिलाएं और इस पेस्ट को दांतों पर उंगलियों की मदद से धीरे-धीरे रगड़ें. इस मिश्रण के नियमित इस्तेमाल से कुछ ही दिनों में दांतों का पीलापन पूरी तरह से दूर हो जाता है.

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3. केले का छिलका
दांतों को चमकाने के लिए आप केले के छिलके का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. जी हां, केला आपकी सेहत के लिए जितना फायदेमंद फल है, उसका छिलका भी उतना ही फायदेमंद है. केले का छिलका जिस तरफ से सफेद है, वह हिस्सा आप अपने दांतों पर धीरे-धीरे तीन से पांच मिनट तक रगड़ें और फिर ब्रश करके कुल्ला कर लें. इससे कुछ ही दिनों में दांतों का पीलापन खत्म हो जाता है और सफेदी आती है. केले में मौजूद पोटैशियम, मैग्नीज और मैग्नीशियम जैसे तत्व दांत और मसूढ़े सोख लेते हैं. इससे दांत न सिर्फ सफेद बल्कि मजबूत भी होते हैं. केले के छिलके के इस नुस्खे को हफ्ते में 2 से 3 बार ट्राई करें.

4. बेकिंग सोडा और नींबू का रस
दांतों को घर पर ही आसानी से सफेद करने के लिए एक प्लेट में एक चम्मच बेकिंग सोडा लें और उसमें थोड़ा सा नींबू का रस मिलाएं. जब तक पेस्ट जैसी कन्सिस्टेंसी न मिल जाए उसमें नींबू का रस मिलाते रहें. अब इस पेस्ट को टूथब्रश पर लगाएं और ब्रश करें. बेकिंग सोडा वाले इस पेस्ट को दो मिनट से ज्यादा दांतों पर लगा न रहने दें, वरना दांतों के इनैमल को नुकसान हो सकता है. ब्रश करने के बाद अच्छी तरह कुल्ला करें.

5. स्ट्रॉबेरी चमकाए दांत
दो ताजे स्ट्रॉबेरी लेकर उन्हें अच्छी तरह मैश कर लें. इसे अपने दांतों पर 2 से 3 मिनट तक लगाकर रखें और कुल्ला कर लें. चाहें तो स्ट्रॉबेरी लगाने के बाद अच्छी तरह से ब्रश भी कर सकते हैं. स्ट्रॉबेरी में मैलिक ऐसिड नाम का तत्व पाया जाता है जो दांतों का पीलापन दूर कर उन्हें सफेद बनाने में मदद करता है. साथ ही स्ट्रॉबेरी में मौजूद फाइबर मुंह के बैक्टीरिया को दूर करने में मदद करता है.

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#lockdown: लीची के बागान गुलजार, पर खरीदार नहीं

पटना: लीची किसानों को इस बार काफी नुकसान हुआ है. मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर और पूर्वी चंपारण के साथ बेगुसराय, भागलपुर और सीतामढ़ी के लीची किसान परेशान हैं. इस बार मौसम सही रहने के कारण लीची की पैदावार तो अच्छी हुई है, लेकिन उन्हें खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं.

बता दें कि बिहार में लीची का कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का होता था, वहीं  सिर्फ मुजफ्फपुर से ही तकरीबन 500 करोड़ रुपए का लीची कारोबार होता था, लेकिन इस बार लीची की खेती करने वाले किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है.

हालांकि राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक विशाल नाथ ने कहा कि किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान होने की संभावना कम  है क्योंकि 50 फीसदी किसानों के लीची के बागान को बड़े वेंडर द्वारा निश्चित राशि तय कर 4 से 5 साल के लिए खरीद लिया जाता है. इस कांट्रेक्ट से किसानों को घाटा होने का डर खत्म हो जाता है.

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इस के अलावा 30 फीसदी ऐसे वेंडर भी होते हैं, जो 1 से 2 साल के लिए बागान खरीदते हैं, बाकी बचे 20 फीसदी किसान फसल की पैदावार करने से ले कर उसे मार्केट में बेचने का काम करते हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि इस बार लीची की तैयार फसल को बाहर ले जाने के लिए ट्रांस्पोटेशन की समस्या आ सकती है.

बिहार के लीची ग्रोवर्स एसोशिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया कि इस बार मौसम की अनुकूलता की वजह से लीची की पैदावार अच्छी हुई है. लेकिन मुश्किल यह है कि इस बार खरीदार नहीं मिल पा रहे. पैसों की कमी की वजह से लोगों में खरीदारी क्षमता भी कम हो रही है. इस से लीची के कारोबार पर बड़े पैमाने पर असर पड़ने की संभावना है.

मैंथोल भेजा जाएगा विदेश

रामपुर:  मैंथोल की विदेशों में भारी मांग है. इस का दवाओं में काफी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है.  20 अप्रैल से फैक्टरी चलाने की अनुमति मिलने के बाद अब मैंथोल कारोबार को गति मिली है.

अमेरिका, इटली, जरमनी समेत कई देशों ने रामपुर के निर्यातकों से मैंथोल की मांग की है. इस बात को ध्यान में रख कर अब मैंथा उद्यमियों की अनुमति को जिला प्रशासन ने मान लिया है.

इस के बाद अमेरिका समेत फ्रांस, ब्रिटेन, जरमनी, नाईजीरिया, ब्राजील और सिंगापुर को मैंथोल का निर्यात किया जा सकेगा.

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उत्तर प्रदेश मैंथा एक्सपोर्टर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु कपूर बताते हैं कि रामपुर से सालभर में 1750 करोड़ रुपए का मैंथोल एक्सपोर्ट होता था, जबकि पूरे प्रदेश से 3000 करोड़ और देश से 6500 करोड़ का निर्यात किया जाता है.

रामपुर में हजारों किसान मैंथा की फसल उगाते हैं और फिर टंकियों में तेल निकाल कर बेचते हैं. इस के बाद फैक्टरियों में मैंथोल व पाउडर वगैरह तैयार कर दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया जाता है.

चीन को भी मैंथा पाउडर एक्सपोर्ट किया जाता है, जबकि अमेरिका, इटली, स्पेन, जरमनी, ब्राजील वगैरह देशों को क्रिस्टल और मैंथोल का एक्सपोर्ट होता है.

वैसे, मैंथोल का प्रयोग बदन के दर्द को दूर करने की दवा बनाने में किया जाता है. साथ ही, कफ सीरप और विक्स में भी इस का इस्तेमाल होता है. खांसीजुकाम में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है. साबुन और सैनेटाइजर में भी मैंथा उत्पादों का प्रयोग होता है.

धान न उठाने पर दिया नोटिस

मीरजापुर:  धान गोदाम में धान पड़ा हुआ है, पर धान क्रय केंद्रों से धान का उठान न होने पर सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक (सहकारिता) मित्रसेन वर्मा ने क्रय केंद्र प्रभारी भुइली, चैकिया, अहरौरा को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया.

उन्होंने नोटिस जारी करते हुए कहा कि मूल्य समर्थन योजना वर्ष 2019-20 के तहत क्रय किया गया धान गोदाम पर पड़ा है. क्रय केंद्र से धान उठाने के लिए पीसीएफ द्वारा राइस मिल लगाई गई है.

धान खरीद बंद होने के काफी दिन के बाद भी धान का उठान न कराया जाना घोर लापरवाही है.

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यदि धान मिलर से संपर्क कर एक हफ्ते के अंदर उठान नहीं कराया जाता है और समिति व पीसीएफ की परिसंपत्तियों को नुकसान होता है, तो मिलर के साथसाथ किसान भी उत्तरदायी होंगे.

वहीं धान मिलर से भी यह कहा गया है कि आप के द्वारा क्रय केंद्र से अवशेष धान का उठान क्यों नहीं किया गया. कारण स्पष्ट करें अन्यथा अनुबंध का पालन न करने व शासनादेश का उल्लंघन करने संबंधी धाराएं लागू होंगी.

पहली बार गरीबों को मिलेगा मुफ्त राशन

जालंधर: गरीबों को राशन मुहैया कराने के लिए पंजाब में पहली बार केंद्र सरकार की ओर से बिना किसी शुल्क के राशन मुहैया कराया जाएगा.

यह राशन पंजाब सरकार द्वारा चलाई जा रही आटादाल स्कीम के तहत बनाए गए नीले कार्डों पर ही दिया जाएगा. वितरण राशन डिपो के माध्यम से किया जाएगा. इस में 3 माह के लिए गेहूं और दालें शामिल रहेंगी.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत यह राशन मुफ्त मुहैया कराया जाएगा. राशन के वितरण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जिला स्तर पर कमेटियां बनाए जाने को सुनिश्चित किया गया है.

इस योजना के तहत नीले कार्ड में दर्ज प्रति सदस्य 5 किलो गेहूं के हिसाब से वितरण होगा.

मिसाल के तौर पर अगर 4 सदस्यों का कार्ड है, तो उस पर हर महीने 20 किलो गेहूं के हिसाब से 3 महीने का एकसाथ 60 किलो गेहूं दिया जाएगा, जबकि दाल प्रति कार्ड 1 महीने की 1 किलो ही जारी होगी. इस हिसाब से 3 महीने की दाल 3 किलो एकसाथ दी जाएगी.

नियमों के मुताबिक ही राशन दिया जाएगा. इस के बाद जरूरत पड़ने पर इस योजना के तहत राशन वितरण करने की अवधि को और आगे भी बढ़ाया जा सकता है.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के लागू करने के साथ ही पंजाब सरकार द्वारा अलग से चलाई जा रही आटादाल स्कीम के तहत राशन का वितरण नहीं किया जाएगा. इस स्कीम के तहत लाभार्थियों को केवल 2 रुपए प्रति किलो गेहूं दिया जाता है, जबकि निशुल्क राशन देने की योजना लागू होते ही पंजाब सरकार की स्कीम को रोक दिया जाएगा.

मुफ्त राशन केवल उन्हीं को मिलेगा, जो खाद्य आपूर्ति विभाग के पोर्टल पर अपलोड होंगे या जिन लोगों ने नीले कार्ड के लिए आवेदन किया था.

डीएफएससी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि मुफ्त राशन वितरण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कमेटी बनाई जाएगी. डिपो होल्डर के मारफत होने वाले राशन के वितरण में किसी भी तरह की अनियमितता बरदाश्त नहीं की जाएगी.

अब मिठास घोलेगी नई चीनी रोगों से भी लड़ सकेगी

कानपुर: बच्चों को ज्यादा चीनी न खिलाओ वरना दांत सड़ जाएंगे और बड़ों को हिदायत दी जाती कि डायबिटीज हो जाएगी, लेकिन अब चीनी न सिर्फ रोगों से लड़ने की ताकत देगी, बल्कि आंखों की रोशनी भी बढ़ाएगी.

जी हां, नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट ने विटामिन ‘ए‘ वाली चीनी तैयार की है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी.

 

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में 20 करोड़ से अधिक बच्चे विटामिन ‘ए‘ की कमी के शिकार हैं. इस की कमी से उन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने और आंखों की रोशनी की भी समस्या है. साथ ही, शरीर का विकास भी ठीक से नहीं होता है. विटामिन ‘ए‘ की कमी को पूरा करने के लिए खाद्य पदार्थों में इस को मिलाया जा रहा है.

 

अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंगलैंड, फ्रांस, जरमनी, केन्या, नाईजीरिया आदि देशों में विटामिन ‘ए‘ को चीनी में मिलाने का प्रयोग हुआ, लेकिन यह सफल नहीं हो सका. वजह, चीनी में विटामिन ‘ए‘ की सही मात्रा नहीं मिल पाई.

 

एनएसआई के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन के निर्देशन में वैज्ञानिकों ने काम किया. 3 साल के शोध के बाद चीनी में विटामिन ‘ए‘ की सही मात्रा मिल सकी.

 

उन्होंने बताया कि चीनी बनाने में कोक्रिस्टिलाइजेशन और कूलिंग तकनीक अपनाई गई. सब से पहले गन्ने के रस को शुद्ध किया गया. चीनी के घोल को गाढ़ा करने की प्रक्रिया की गई. इस के क्रिस्टल रूप में आने से पहले विटामिन ए को मिला दिया गया. दोनों क्रिस्टल रूप में तैयार हो गए. कूलिंग तकनीक से चीनी और विटामिन ‘ए‘ मिल गए.

 

संस्थान ने विटामिन बी, डी, आयरन, फोलिक एसिड पर काम शुरू किया और इन को भी चीनी के साथ मिलाया जाएगा. प्रति ग्राम चीनी में 15.5 से 19.5 माइक्रोग्राम विटामिन ‘ए‘ की मात्रा रहेगी.

 

उन के मुताबिक, चीनी में विटामिन ‘ए‘ 6 महीने तक सुरक्षित रहेगा. चीनी को सूरज की रोशनी में रखा जाएगा, लेकिन अधिकतम तापमान 40 डिगरी सैल्सियस से अधिक न हो, जबकि नमी 65 फीसद से कम रहे. विटामिन ‘ए‘ वाली चीनी का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि इस प्रक्रिया के बाद चीनी की कीमत में कुछ इजाफा होगा.

 

चला औपरेशन किलिंग: मार दीं हजारों मुरगियां

 

नवादा: बर्ड फ्लू के कारण हजारों मुरगियों को जिंदा ही मार दिया गया.  बिहार के नवादा जिले में स्थित अकबरपुर प्रखंड के रजहत गांव के नजदीक मो. मसीउद्दीन के पॉल्ट्री फार्म की मुुरगियों में बर्ड फ्लू की पुष्टि होने के बाद ‘ऑपरेशन किलिंग‘ अभियान चलाया गया.

 

इस दौरान सभी मुरगियों को मार कर उन्हें प्लास्टिक के थैले में बंद कर जेसीबी से गड्ढों में जमींदोज करा दिया.

 

जिलाधिकारी से इस के लिए हरी झंडी मिलने के बाद यह अभियान चलाया गया. पॉल्ट्री फार्म की तकरीबन 8,000 मुरगियों को मारा गया.

 

दरअसल, कुछ दिन पहले इस फार्म की कई मुरगियों को मरते हुए पाया गया था. फार्म के मालिक ने पशुपालन विभाग को सूचना दी थी. इस के बाद सैंपल ले कर कोलकाता जांच के लिए भेजा गया, जहां बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई. इस के बाद जिलाधिकारी के आदेश पर यह कार्यवाही की गई.

 

जिला पशुपालन पदाधिकारी डाक्टर तरुण कुमार उपाध्याय और कुक्कुट पदाधिकारी डाक्टर श्रीनिवास शर्मा की देखरेख में 5 सदस्यों की टीम ने पॉल्ट्री फार्म में रह रहीं मुरगियों को अपने सामने मरवाया.

 

बर्ड फ्लू के लक्षण मिलने के बाद सभी मुरगे व अंडे की दुकानें बंद कर दी. रजहत स्थित पॉल्ट्री फॉर्म को केंद्र मान कर 9 किलोमीटर की परिधि तक सर्वे एरिया घोषित किया गया. इन क्षेत्रों में मुरगी, अंडे व मुरगी के खाद्य पदार्थों के आनेजाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई.

 

किसानों को राहत

अब सीधे गांवों से बेच सकेंगे फसल

 

देहरादून: किसानों को कृषि उपज बेचने और इस के भंडारण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने किसानों को बड़ी राहत दी है. अब वे गांव या कोल्ड स्टोर, क्लस्टर से भी कृषि उपज बेच सकेंगे यानी कारोबारी अब सीधे गांवों में किसानों से गेहूं, फलसब्जी समेत दूसरे कृषि उत्पाद खरीद सकेंगे. इस से किसानों को अपने उत्पादों को मंडी तक ले जाने के झंझट से नजात मिल जाएगी.

 

हालांकि, यह व्यवस्था हौटस्पाट वाले इलाकों को छोड़ राज्य व राज्य के दूसरे हिस्सों में ही मान्य होगी.

 

उत्तराखंड कृषि उत्पाद (विकास एवं विनियमन) अधिनियम में संशोधन करते हुए शासन ने अधिसूचना जारी की.

 

खेती के कामों के साथ ही कृषि उपज की खरीदारी पर असर न पड़े, इस के सरकार ने सशर्त छूट दी है. इस के बावजूद किसानों को कृषि उपज को बेचने और भंडारण के लिए नजदीक में उचित जगह न मिलने से कठिनाई आ रही थी. इसे देखते हुए सरकार ने यह कड़ा कदम उठाया.

 

मुख्य सचिव उत्पल सिंह की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, प्रदेश में घोषित मंडी क्षेत्र के तहत किसान, किसान समूह, कृषि उत्पाद संस्थाओं, सहकारी समितियों वगैरह को सीधे किसान से कृषि उपज क्रयविक्रय की अनुमति दी गई है.

 

साथ ही, मंडी क्षेत्र के तहत स्थित कोल्ड स्टोरेज, गोदाम, क्लस्टर को उपमंडी स्थल घोषित किए जाने की अनुमति दी गई है. सब से अहम यह है कि कृषि उत्पादों की विकेंद्रीकृत मार्केटिंग को प्रोत्साहन और गांव लैवल से अधिप्राप्ति की अनुमति जारी की गई.

 

अधिसूचना के बाद यह राहत मिल गई है कि कोई कहीं भी थोक कारोबार कर सकता है. गांवों से भी सीधे किसानों से कारोबारी फसल उपज खरीद सकते हैं.

 

कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि किसानों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न आए, इस के लिए सरकार पूरी तरह गंभीर है.

 

किसानों का अनाज खरीदना सरकार की प्राथमिकता

 

रेवाड़ी: सहकारिता मंत्री डाक्टर बनवारी लाल ने क्षेत्र की मंडियों का दौरा किया और खरीद व्यवस्था का जायजा लिया. उन्होंने वहां मौजूद अधिकारियों को उचित व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए. उन्होंने बिठवाना, गढ़ी बोलनी, टांकड़ी, बनीपुर चैक, बावल अनाज मंडी में पहुंच कर खरीद व्यवस्था का जायजा लिया.

 

उन्होंने कहा कि किसानों का एकएक दाना खरीदना सरकार की प्राथमिकता है. साथ ही, सुरक्षित रहने के लिए किसानों से मंडी में मास्क पहन कर आने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कहा.

 

पराली जलाने पर बैन, पराली जलाई तो खैर नहीं

 

पटना: 20 अप्रैल से गेहूं की फसल कटाई शुरू  हो गई. इसे देखते हुए बिहार में गेहूं की फसल कटाई के बाद बचे अवशेष यानी पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

 

प्रमंडलीय आयुक्त संजय कुमार अग्रवाल ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सशक्त व प्रभावी मौनीटरिंग करने के निर्देश दिए. साथ ही, सभी सीओ, बीडीओ, थानाध्यक्ष को स्थानीय स्तर पर कड़ी नजर रखने के साथ ही पराली जलाने वालों पर कानूनी कार्यवाही करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया.

 

उन्होंने सभी जिलाधिकारी को अपने जिले में हेल्पलाइन नंबर जनहित में जारी कर सूचना या शिकायत मिलने पर कार्यवाही करने का निर्देश भी दिया.

 

प्रमंडलीय आयुक्त संजय अग्रवाल ने आम लोगों से अपील की कि वह अपने जिले में पराली जलाने से संबंधित सूचना जिला पदाधिकारी को दें.

वजह पराली जलाने पर रोक की

– पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों को भारी नुकसान होता है. इस से मिट्टी में मौजूद पोटैशियम, नाइट्रोजन, फास्फोरस सहित कई अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है.

– फसल अवशेष को जलाने से कार्बन डाईऔक्साइड ,कार्बन मोनोऔक्साइड सहित कई जहरीली गैसें निकलती हैं, जो हवा को प्रदूषित करती हैं. इस से इनसान की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही, पराली जलाने से खेतों की पैदावार में भी कमी होती है.

– इस के अलावा पराली जलाने से पर्यावरणीय संकट ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पैदा होने और खाद्य सुरक्षा का संकट खड़ा होता है, इसलिए खेतों की पैदावार बढ़ाने, पर्यावरणीय समस्या से नजात पाने और खाद्य सुरक्षा के लिए फसल अवशेष का कुशल प्रबंधन ही जरूरी है.

 

किसानों से खरीदा जाएगा सारा अनाज

 

चंडीगढ़: हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला ने गेहूं खरीद में विपक्ष के कुप्रबंधन के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया सही से चल रही है और किसानों के अनाज के एकएक दाने की खरीद की जाएगी.

 

कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सरकार और आढ़तियों के बीच अविश्वास का माहौल है. इस वजह से खरीद प्रक्रिया बाधित हुई है.

 

इस पर दुष्यंत चैटाला ने कहा कि गेहूं और सरसों की सुगम खरीद सरकार के लिए चुनौती है, लेकिन किसानों के हित में कई फैसले किए गए हैं और चीजें सही से चल रही है.

 

हरियाणा में भाजपा गठबंधन की भागीदार जननायक जनता पार्टी के एक नेता ने कहा कि प्रक्रिया थोड़ी लंबी होने पर भी हम किसानों से सारा अनाज खरीदेंगे.

 

उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में रोजाना औसतन डेढ़ लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद होती है, जबकि कांग्रेस शासन वाले पंजाब में पहले 2 दिनों में 42,200 मीट्रिक टन गेहूं की ही खरीद हुई.

 

बता दें कि दुष्यंत चैटाला के पास खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का काम है.

 

कृषि विवि में दाखिले के लिए जारी अंतिम तिथि

 

पालमपुर: कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने 2020-21 के चलने वाले सत्र की होनी वाली स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं की पढ़ाई को ले कर शेड्यूल जारी किया है. कृषि विश्वविद्यालय में विभिन्न कोर्स को ले कर ऑनलाइन प्रोस्पेक्टस की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस के लिए 15 मई तक छात्र आवेदन कर सकते हैं.

 

कृषि विश्वविद्यालय ने यह भी संकेत दिए हैं कि शेड्यूल में फेरबदल भी हो सकता है.

 

वैसे, कृषि विश्वविद्यालय की ओर से जारी किए गए शेड्यूल में वेटरनेरी कॉलेज (बीबीएससी एंड एएच) और बीएससी ऑनर्स की लिखित परीक्षा 13 जून और मास्टर कार्यक्रमों की 21 जून को होगी. वहीं बीबीएससी एंड एएच और बीएससी आनर्स में जनरल व सेल्फ फाइनेंसिंग श्रेणी के छात्रों की काउंसलिंग जुलाई और अन्य श्रेणियों की 10 जुलाई को होगी.

 

बीटेक फूड टेक्नोलॉजी की काउंसिलिंग 13 जुलाई, बीएससी फिजिकल साइंस और बीएससी लाइफ सांइस की 14 जुलाई, बीसीसी ऑनर्स कम्युनिटी साइंस की 15 जुलाई, एमएससी एग्रीकल्चर की 16 जुलाई, एमबीएसी की 18 जुलाई और 27 अगस्त को काउंसिलिंग होगी.

 

विभिन्न कक्षाओं के लिए वॉक इन इंटरव्यू 19 अगस्त और 21 सितंबर  को होंगे.

 

हालांकि इन तिथियों में बदलाव भी हो सकता है.

 

25 हजार क्विंटल की ही हुई सरकारी खरीद

 

फरीदाबाद: सरकार द्वारा जारी हिदायतों के मुताबिक फरीदाबाद, बल्लभगढ़, मोहना, फतेहपुर बिलौच और तिगांव मंडियों में 25,166 क्विंटल गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई.

 

डीसी यशपाल यादव ने बताया कि कृषि विपणन बोर्ड, खाद्य आपूर्ति नियंत्रण विभाग, एफसीआई व हरियाणा स्टेट वेयर हाउस के अधिकारियों को खरीद का काम सुचारु रूप से चलाने और अनाज मंडियों में खरीद संबंधी पुख्ता इंतजाम करने के दिशानिर्देश दिए गए.

 

आम हो या अमरूद, महक से रहेंगे दूर

 

पटना: बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सबौर के एसोसिएट डायरेक्टर फैज अहमद ने बताया कि बिहार में अमरूद, केला और आम की पैदावार ज्यादा होती है. इस में आम का स्थान 64 फीसदी पैदावार के साथ पहले नंबर पर है.

 

उन्होंने बताया कि इस बार आम के पेड़ में मंजर आने के साथ ही उस का मिलन बारिश के साथ हो गया. इस वजह से 10 से 12 फीसदी तक मंजर खराब हो गए.

 

बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एसोसिएट डायरेक्टर फैज अहमद ने बताया कि बिहार में 1 लाख, 30 हजार हेक्टेयर इलाके में 8 से 10 लाख टन तक आम की पैदावार होती है, पर इस बार किसानों को 20 से 30 फीसदी तक का घाटा उठाना पड़ सकता है.

 

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कुल उत्पादन का 20 से 25 फीसदी तक आम पश्चिम बंगाल जाता था, पर इस बार कम ही उम्मीद दिख रही है, क्योंकि बाहर के कितने कारोबारी बिहार आएंगे, यह कह पाना मुश्किल है.

 

बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने बताया कि राज्य में इन फसलों को कम से कम नुकसान हो, इस के लिए कृषि विभाग विभिन्न स्तरों पर काम कर रहा है. आम, अमरूद व लीची की फसल को कीट व रोगों से बचाने के लिए भी काम किए जा रहे हैं.

 

उन्होेंने किसानों से कहा है कि जिला स्तर पर आम, अमरूद व  लीची से जुड़े राज्य व राज्य के बाहर के व्यवसायी जो पहले इन जिलों से आम और लीची का व्यापार करते थे, उन से संपर्क करें. आम, लीची और अन्य सभी कृषि उत्पादों के राज्य के अंदर या बाहर परिवहन के लिए सभी बाधाओं को दूर किया जाएगा. साथ ही, कारोबारियों को सरकार के स्तर से सभी तरह का सहयोग किया जाएगा.

लॉकडाउन:‘पटियाला बेब्स’ बंद होने से दुखी हुई ‘मिनी’ अशनूर कौर, शेयर किया पोस्ट

कोरोना की मार से हर कोई परेशान है चाहे वो निम्न वर्ग के लोग हो या छोटे क्लास के लोग है. हाल ही में सोनी टीवी ने जो फैसला लिया है. इससे मालूम पड़ता है देश में मंदी के हालात बढ़ते जा रहे है. आने वाले समय में लोगॆ को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है.

दरअसल, सोनी टीवी ने अपने कुछ शोज को बंद करने का फैसला लिया है. इस खबर से दर्शकों के होश उड़ गए हैं. इनके नाम है ‘पटियाला बेब्स’  ‘इशारो ही इशारो में’  ‘बेहद 2’ का नाम इस लिस्ट में शामिल  है.

इसी बीच सीरियल पटियाला बेब्स की एक्ट्रेस ने इस खबर पर मोहर लगाते हुए कहा है कि मैं शो के आखिरी दिन बहुत एक्साइटेड थी अगले दिन बहुत ही शानदार शूटिंग थी. तभी मुझे खबर मिली की शो बंद होने वाला है.

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इस बात से मैं सदमें में आ गई और अभी तक उभर नहीं पाई हूं. यह सब फैसला कोरोना जैसे गंभीर बीमारी की वजह से देश के हालात खराब होते जा रहे हैं, इसलिया लिया गया है. कोरोना के बाद भी हमारा शोज फिर से शुरू होगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. इस बात से मैं सदमें हूं कब तक इससे उभर कर बाहर आऊंगी ये भी नहीं पता है.

लॉकडाउन अभी भी है और अनिश्चित काल तक रहेगा. हमारा सीरियल बहुत ही अच्छे मोड़ पर था. जहां से हम अलग रुख पर जा रहे थे.

#coronavirus: नर्स बनकर काम कर रही हैं ये एक्ट्रेस, नीति आयोग और महाराष्ट्र सीएम ने ऐसे की तारीफ

अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा पिछले कुछ दिनों से फिल्म जगत से दूरी बनाकर देश और समाज सेवा में जुटी हुई हैं. शिखा इन दिनों कोरोना के मरीज की मदद कर रही हैं. शिखा के पास नर्स की डिग्री है. जिसका वह इस समय बखूबी फायदा उठा रही हैं. अस्पताल में फ्री में कोरोना के मरीज की मदद कर रही हैं. नीति आयोग ने इस बात के लिए उनकी प्रशंसा की है.

‘नीति आयोग’’ने अपने ट्वीटर एकाउंट और इंस्टाग्राम एकाउंट से अभिनेत्री से नर्स बनकर कार्यरत शिखा मल्होत्रा की तस्वीर शेअर करते हुए लिखा कि -‘‘एक स्वयं सेवक के रूप में शिखा मल्होत्रा  की निःस्वार्थ सेवा कोरोना महामारी में एक नई आषा,आत्मषक्ति और नेकी का संदेष दे रही हैं….’’

शिखा मल्होत्रा के लिए किसी सरकारी संस्था की तरफ से आया यह दूसरा प्रशंसा वाला संदेश है. इससे पहले तीस मार्च को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी अपने ट्वीटर हैंडल से शिखा मल्होत्रा के कार्य की तारीफ करते हुए उनका हौसला आफजाई कर चुके हैं.

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‘‘रनिंग शादी’’और ‘फैन’’ जैसी फिल्मों की अदाकारा तथा सात फरवरी को पूरे देश में प्रदर्शित फिल्म‘‘काॅंचली’’की हीरोईन शिखा मल्होत्रा 27 मार्च से मंुबई के जोेगेश्वरी इलाके के ‘बाला साहेब ठाकरे ट्ामा अस्पताल’से जुड़कर बतौर नर्स कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटी हुई हैवह ‘‘बाला साहेब ठाकरे ट्ामा केअर अस्पताल’’में नर्स के तौर पर अपनी सेवाएं मुफ्त में दे रही हैं.

वास्तव में मषहूर कहानीकार विजयदान देथा की कहानी पर आधारित हिंदी फिल्म‘‘काँचली‘‘ की हीरोईन शिखा मल्होत्रा एक प्रषिक्षित नर्स भी हैं.अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने से पहले उन्होनेे बाकायदा दिल्ली में चार साल का नर्सिंग का कोर्स करने के अलावा कुछ समय तक बतौर नर्स अस्पताल में नौकरी भी की थी.उसके बाद वह फिल्म‘‘रनिंग षादी’’से अभिनय के क्षेत्र मंे आ गयी थीं.

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जब फोन पर शिखा मल्होत्रा से बात हुई,तो उन्होने बताया – ‘‘महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ट्वीट के बाद नीति आयोेग के ट्वीट से मुझे बल मिला है.और अब मंै ज्यादा मेहनत व तत्परता के साथ कोरोना को  हराने में अपना योगदान देने मंे जुटी रहूंगी.हमारे अस्पताल के सभी डाक्टरों और नर्सो की मेहनत के परिणाम स्वरूप हमारे अस्पताल से अब तक तीस कोरोना मरीज स्वस्थ होकर अपने अपने घर वापस जा चुके हैं.’’

#lockdown: गर्मी में कूल रहने के लिए घर पर अपनाएं यह तरीका

सबसे पहले तो कोरोना की मार झेल रहे हैं जिसकी वजह से लॉकडाउन चल रहा है और सबकुछ बंद है ऐसे में गर्मी भी बढ़ रही है और लोगों को परेशानी हो रही है क्योंकि दोस्तों गरमी में भला कौन कूलर या एसी जैसी सुविधाएं  नहीं चाहता लेकिन समस्या ये कि इस लॉकडाउन में भला कोई कूलर एसी कैसे चलाए क्योंकि काफी महिनों से सभी के यहां कूलर और एसी बंद पड़ा होगा और उसमें कुछ न कुछ तो खराबी आ ही जाती है.

अब जिसके यहां कोई ठीक कर सकता है वो कर लेगा लेकिन जो नहीं कर सकता है उसे तो लॉकडाउन खत्म होने और दुकाने खुलने का इंतजार करना ही पड़ेगा,लेकिन सवाल ये है कि फिर इस बढ़ती हुई गर्मी से कैसे बचा जाए?तो दोस्तों आप इस गर्मी से बहुत तरीकों से बच सकते हैं और खूद को कूल रख सकते हैं क्योंकि खुद को कूल तो रखना ही पड़ेगा.तो दोस्तों भले ही लॉकडाउन चल रहा है लेकिन आपको फल सब्जियों को खरीदने की सुविधा तो मिल ही रही है.

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तो आप कोशिश करें की ज्यादा से ज्यादा ठंडी चीजों का सेवना करें जैस- खीरा, ककरी, तरबूज ,खरबूजा ये सभी ठंडे फल आपको गर्मी में ताजगी का एहसास देंगे और आपकी सेहत भी अच्छी रहेगी.आप चाहें तो फलों को खरीद कर खुद घर में उसका जूस निकाल कर पी सकते हैं जो काफी फायदेमंद होता है. आप घर में खिड़की खोलकर सोइये इससे घर में थोड़ी ताजगी रहेगी क्योंकि वातावरण भी काफी शुद्ध हो गया है और पॉल्यूशन भी कम हो गया है इस वक्त.आप चाहें तो दिन में दो बार स्नान भी कर सकते हैं तरो-ताजा रहने के लिए.घर की छत पर पानी डालकर जमीन को ठंठा कर सकते हैं साथ ही आप चाहें तो छत पर सो भी सकते हैं रात के वक्त.

घर में शिकंजी बना कर पी सकते हैं या फिर नींबू का शरबत भी काफी अच्छा रहेगा.बिस्तर पर मोटे गद्दे बिछाने से अच्छा है कि आप पतले गद्दे लगा लें या फिर ज़मीन पर बिस्तर लगा कर भी सो सकते हैं. कोशिश करें की कॉटन के कपड़े ही पहने तो ज्यादा बेहतर होगा. आपको घर में यदि गमले पौधे लगे हैं तो उनमें भी पानी देते रहिए उससे घर में भी ताजगी बनी रहेगी.दिन भर में कम से कम चौदह से पंद्रह गिलास पानी भी पिएं क्योंकि ये तो बहुत ही ज्यादा जरूरी है.

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दोस्तों शरीर में पानी की कमी बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए.औऱ चूंकि आप बाहर नहीं जा सकते हैं तो सुबह जल्दी उठ कर आप अपनी बालकनी या छत पर थोड़ा टहल कर सुबह की ताजी हवा लें ये भी काफी फायदेमंद रहेगा औऱ आप तरो-ताजा रहेंगे.तो दोस्तों ये सभी तरीकें फिलहाल आपको इस लॉकडाउन वाली गरमी में तरो-ताजा रखेंगे.

#lockdown: कोरोना का भय…प्राइवेट अस्पताल बंद

कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ की एक और समस्या लोगों के सामने आकर खड़ी हो गई है.एक तरफ देश के लाखों डॉक्टर्स दिन – रात कोरोना मरीजों का इलाज करने में जुटे हैं,मेहनत कर रहे हैं,घर परिवार से दूर कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे हैं, अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं और ऐसा खासतौर पर सरकारी अस्पतालों में हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर हजारों डॉक्टर्स ऐसे भी हैं जो संकट की इस घड़ी में कोरोना के डर से हार मानते दिखाई दे रहे हैं.

दरअसल ये मामला प्राइवेट अस्पतालों का है, कई राज्यों में प्राइवेट डॉक्टरों ने कोरोना के डर से प्रैक्टिस बंद कर दी और नर्सिंग होम भी बंद कर दिए हैं. जो खुले भी हैं, वो मरीजों को पहले कोविड-19 यानी की कोरोना का  टेस्ट करवाकर आने को कह रहे हैं क्योंकि उन्हें डर इस बात का है कि कहीं अगर अक भी मरीज कोरोना से संक्रमित गलती से भी अस्पताल के अंदर आ गया तो संक्रमण बुरी तरह से फैल जाएगा और ऐसा कई अस्पतालों में हुआ भी है.दिल्ली,बिहार,मंबई,झारखंड,बंगाल,ओडिशा ये वो राज्य हैं जहां पर प्राइवेट अस्पताल के डाक्टर्स के द्वारा लोगों के उपर दबाव बनाया जा रहा है की मरीज पहले कोरोना टेस्ट करवाए उसके बाद ही हम इलाज करेंगे इतना ही नहीं बल्कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों से भी पहले यही कहा जा रहा है.

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अब बात करते हैं अब आपको बताते के की मुंबई के एक प्राइवेट अस्पताल में क्या चल रहा है दरअसल मुंबई के चेंबूर के इस इलाके में जितने भी प्राइवेट अस्पताल थे वो सभी बंद हो गए जिसके कारण  मरीजों की लंबी कतार लग गई. यहां तक की बिहार के सबसे बड़े अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज में जहां सबसे ज्यादा मरीजों का इलाज चल रहा था वहां पर मंगलवार को भीसड़ आग लग गई.अब जरा सोचिए कि जहां पर प्राइवेट अस्पतालों ने बाहर से आने वाले मरीजों पर पाबंदी लगा दी है और  प्राइवेट डॉक्टर्स, नर्सिग होम, क्लीनिक, फार्मेसी और डायग्नोस्टिक सेंटर्स ने अपनी सेवाएं बंद कर दी हैं वहां पर मरीजों का क्या हाल होगा.

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क्योंकि यहां पर मरीजों का हाल  इस वक्त बहुत बुरा है और कोरोना के मरीजों की संख्या भी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.दरअसल अगर देखा जाए यहां पर डॉक्टर्स ने शायद सिर्फ इसलिए ये कदम उठाया क्योंकि उन्हें अपने स्टॉफ और बाकी डॉक्टर्स की चिंता है क्योंकि कहीं जगहों पर कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए कई स्टॉफ की जान चली गई है तो किसी डॉक्टर की और इसी बात भय है जो प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर्स ने ऐसा कदम उठाया लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसी संकट की स्थित में क्या ऐसा करना सही है?हालांकि वहां की सरकारें अपनी ओर से प्रयास कर रही हैं स्थिति ना बिगड़े और निर्देश भी दिए जा रहे हैं.

जहरीली आशिकी: भाग 2

देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

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जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

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‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की.

आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली.

अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं.

तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया.

तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी.

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इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए.

सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी.

23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी.  संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी.

अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी.

19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

19 दिन 19 कहानियां: जहरीली आशिकी- भाग 1

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी.

राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी.

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इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था.

विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया.

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विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया.

घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया.

सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली.

सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी.

राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था.

मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला. ‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था.

संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही.

दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी.

संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो.

फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा.

उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी.

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