करौंदा को अकसर बाड़ के रूप में लगाया जाता है, क्योंकि इस की कांटेदार झाडि़यां जानवरों से आप के बाग को बचाती हैं. इस के पके फल में बहुत से गुण भी
होते हैं.

चचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचचच

करौंदे के कांटेदार और झाड़ीनुमा पौधे को अकसर बाग के चारों तरफ बाड़ के रूप में लगाया जाता है. पौधे बड़े हो जाने पर घनी कांटेदार झाड़ी बन जाते हैं, जानवरों से बाग की हिफाजत करते हैं. पौधों की ऊंचाई 3 मीटर या इस से ज्यादा होती है.

करौंदा एक झाड़ी है, जो ज्यादा जाड़े वाले इलाकों को छोड़ कर उपोष्ण व उष्ण आबोहवा में लगाया जा सकता है. कम उपजाऊ मिट्टी में इसे आसानी से उगाया जा सकता है.
करौंदा नमकीन व खार वाली मिट्टी के प्रति कुछ हद तक सहनशील है, लेकिन ज्यादा बारिश व बाढ़ वाले इलाके इस के लिए सही नहीं हैं. करौंदे पर बीमारियों व कीड़ों का हमला नहीं होता है.
करौंदा पैक्टिन, कार्बोहाइड्रेट्स और विटामिन सी का अच्छा जरीया है. पके हुए करौंदे में कैलोरी 745 से 753 फीसदी, नमी 83.7 फीसदी, प्रोटीन 0.39 फीसदी, फैट 2.57 से 4.63 फीसदी, चीनी 7.35 से 11.58 फीसदी, रेशा 0.62 से 1.8 फीसदी, खनिज लवण 0.78 फीसदी, विटामिन सी 9 मिलीग्राम प्रति सौ ग्राम में और लोहा 31.9 मिलीग्राम प्रति सौ ग्राम में पाया जाता है.
पकने से थोड़ा पहले फलों को तोड़ कर

2 फीसदी नमक के घोल में उपचारित और सुखा कर रखा जा सकता है. इस का इस्तेमाल अचार, जैली, चटनी, सब्जी, स्क्वैश व सिरप बनाने में किया जाता है. फलों का इस्तेमाल मिठाई और पेस्ट्री वगैरह को सजाने के लिए चेरी की जगह पर भी किया जाता है.
करौंदा को दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. इस की पत्ती का रस बुखार के इलाज के लिए और पत्तियों को रेशम के कीड़ों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस की लकड़ी का इस्तेमाल चम्मच और कंघा बनाने में होता है.

करौंदे की 4 किस्में होती हैं. हरे रंग के फलों वाली, गुलाबी रंग वाली, सफेद रंग के फलों वाली और करौंदा-1 व नरेंद्र हैं. हर किस्म का इस्तेमाल अचार व जैली बनाने में किया जाता है.
करौंदा की पौध बीज द्वारा तैयार की जाती है. लेकिन 500 पीपीएम इंडोल ब्यूटीरिक एसिड के घोल से उपचार के साथ स्टूल लेयरिंग व 10,000 पीपीएम इंडोल ब्यूटीरिक एसिड के घोल के उपचार के साथ स्टूल लेयरिंग तरीके द्वारा भी पौध तैयार की जा सकती है.

पके हुए फलों से बीजों को जुलाईअगस्त महीने में निकाल कर नर्सरी में बो देना चाहिए. अगर बीजों को स्टोर करना है तो छाया में सुखा कर या 2 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीजों में मिला कर सूखी हुई बोतलों में रखें. बीजों को ज्यादा दिन तक रखने से उन की क्वालिटी कम हो जाती है. जितनी जल्दी हो सके, उन की बोआई कर देनी चाहिए. नर्सरी में बीज जमने के बाद छोटे पौधो की खरपतवार, बीमारी और कीटों

से हिफाजत करनी चाहिए. बीजू पौधे 2 साल बाद बाग में रोपने लायक हो जाते हैं.
बाड़ बनाने के लिए पौधे से पौधे की दूरी 60 सैंटीमीटर रख कर बाग के चारों तरफ लगाएं. बाग में पौधे व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखनी चाहिए. इस तरह से एक एकड़ रकबे में 435 पौधे लगाए जा सकते हैं.
करौंदे के पौधे लगाने से एक महीना पहले फरवरीमार्च और सितंबरअक्तूबर माह में 60×60×60 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद कर उन में गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मात्रा में मिला कर भरें. दीमक की रोकथाम करने के लिए 30 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास दवा को हर गड्ढे में डालें. बाग में पौधे जुलाई से सितंबर महीने तक लगाए जाते हैं. अगर सिंचाई का सही इंतजाम हो तो फरवरी महीने में भी पौधे लगाए जा सकते हैं.

करौंदे की झाड़ी बिना खाद दिए भी अच्छी पैदावार देती है, लेकिन शुरू के सालों में नाइट्रोजन के इस्तेमाल से पौधे तेजी से बढ़ते हैं. एक पौधे में 20 किलोग्राम गोबर की सही खाद हर साल बारिश शुरू होने से पहले जून महीने में डालें. अगर सिंचाई का इंतजाम हो तो शुरू के सालों में 100 ग्राम यूरिया खाद प्रति पौधा डालनी चाहिए. नाइट्रोजन से पौधे की बढ़वार ज्यादा होती है. 3 साल बाद करौंदे को खाद की जरूरत नहीं होती.

पौधे लगाने के 2-3 साल बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं. जुलाई से सितंबर महीने तक फल लगते हैं. जब पौधा छोटा होता है, तो शुरू के सालों में 4-5 किलोग्राम फल मिलता है. बाद में एक पौधे से 30 किलोग्राम तक फल हासिल होते हैं.

करौंदे पर लगने वाले कीट छोटे, गोल व पीले भूरे रंग के होते हैं. ये सफेद मोम जैसे चूर्णी पदार्थ से ढके होते हैं और मुलायम टहनियों और पत्तियों के नीचे चिपक कर रस चूसते हैं, इस से पेड़ों का विकास रुक जाता है. ये कीट मीठा रस भी छोड़ते हैं, जिस से पौधे पर चींटियां आ जाती हैं और फफूंदी भी लग जाती है. इन कीटों की उचित रोकथाम के लिए सही कीटनाशकों का छिड़काव करें. ठ्ठ

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...