भले ही पूरे देश में कोरोना लौकडाउन है, फिर भी केंद्र सरकार के साथसाथ राज्य सरकारों ने किसानों को सशर्त इस दौरान काफी छूट दी हैं. पर मंडियों में मौजूद सरकारी मुलाजिम सरकारी नियमों का हवाला दे कर इन तरबूज किसानों को मंडी में नहीं घुसने दे रहे.

यही हाल देश की हर बड़ी व छोटी मंडियों में है. सरकारी मुलाजिमों की मनमानी करने के कारण किसान काफी परेशानी में हैं क्योंकि इन मंडियों में उन की उपज बिक नहीं पा रही.

इधर, तरबूज किसानों की चिंता वाजिब है. इन किसानों की सब से बड़ी समस्या मंडी में तैनात सरकारी corमुलाजिमों की मनमानी है. सरकारी मुलाजिम इस की यह वजह बताते हैं कि मंडी में ये किसान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे. वहीं किसान कह रहे हैं कि हम सरकार का हर नियम मानने को तैयार हैं, पर मंडी में हमारी उपज सही कीमत पर बिके. पर ऐसा हो नहीं पा रहा.

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ऐसे किसानों के लिए एक तरफ कुआं तो वहीं दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति पैदा हो गई है. मंडी में उन की उपज न बिकने से खराब हो रही है.

तमाम सरकारी दावों की पोल खोलती इन तरबूज किसानों की समस्या वाकई हैरान करने वाली है.

यह मामला झांसी जिले के मऊरानीपुर तहसील की मंडी से जुड़ा है. यहां तरबूज की खेती करने वाले किसानों को मंडी में घुसने से रोक दिया गया. इतना ही नहीं, मंडी के गेट पर ताला लटका दिया गया, जिस से गुस्साए किसानों ने सड़क के दोनों ओर तरबूज से लदे ट्रैक्टर व ट्रॉली की लाइन लगा दी.

झांसी जिले में मऊरानीपुर की मंडी में 3 मई को जब किसान अपने तरबूज बेचने के लिए मंडी पहुंचे तो किसानों को देखते ही मंडी में ताला लगा दिया गया और उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया.

गुस्साए सैकड़ों किसानों ने जिन में बड़ी तादाद में औरतें भी थीं, मंडी के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया.

यहां मौजूद एक किसान ने कहा कि हम लोग फसल को तैयार करने के लिए 2-3 महीने पहले से ही मेहनत कर रहे हैं और आज जब फसल तैयार हो गई है तो मंडी में इसे बेचने से मना किया जा रहा है.

अब जब स्थानीय मंडी में ही हमारी उपज नहीं बिक पाएगी, तो किसान क्या करेगा. हम इसी के भरोसे रहते हैं. अगर उपज नहीं बिकेगी तो हम खाएंगे क्या. हमारी तो लागत भी नहीं निकल पा रही है.

मंडी में पिछले कई दिनों से किसान तरबूज ला कर बेच रहे थे, लेकिन 3 मई को अचानक मंडी के गेट पर ताला लगा दिया गया. मऊरानीपुर तहसील इलाके के सैकडों किसान जब  ट्रॉली में तरबूज लाद कर पहुंचे तो वहां तैनात कर्मचारियों ने उन्हेें मंडी के अंदर जाने से मना कर दिया. इस के बाद किसानों ने अपने ट्रैक्टर ट्राली सडक के किनारे खड़े कर दिए और मंडी के गेट पर धरना देने लगे.

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मऊरानीपुर के मंडी सचिव इस की वजह सोशल डिस्टेंसिंग बताते हैं. उन का कहना है कि कोरोना लौकडाउन के चलते बडे़ अधिकारियों ने निर्देश दिया है कि सोशल डिस्टेंसिंग रखनी है, लेकिन किसानों ने अचानक भीड़ लगा दी. तरबूज ट्रैक्टर पर लाद कर यहां जमा हो गए हैं.

भीड़ न बढ़ने पाए, इसलिए मंडी को बंद कर दिया गया. वहीं कुछ बड़े कारोबारियों ने किसानों को भ्रमित कर के तरबूज मंडी में मंगा लिए, जबकि भीड़ लगाने से मना किया गया था.

झांसी जिले की मऊरानीपुर तहसील प्रशासन ने नई गल्ला मंडी को बंद कर दूसरी जगह सब्जी मंडी खोलने के लिए अस्थाई इंतजाम किया है, लेकिन किसान वहां नहीं जाते, यहीं आते हैं.

किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार बताते हैं कि सरकार कुछ कहती है, अधिकारी व कर्मचारी कुछ कहते हैं. सरकार कहती है कि मंडियों में किसान अपनी फसल बेच सकते हैं. कई ट्रैक्टरट्रॉलियों में तरबूज ले कर किसान मऊरानीपुर मंडी में डेरा डाले हुए हैं.

इन तरबूज किसानों का कहना है कि ये नहीं बिका तो सड़ जाएगा और फसल सड़ी तो किसान भूख से मर जाएगा.

वहीं तहसीलदार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. कहीं ऐसा न हो कि ये बेलगाम सिस्टम किसान की जान ले ले. हम तो यही कह रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग करो या कोई और नियम लगाओ, लेकिन किसान की फसल तो खरीदो.

तरबूज किसान न सिर्फ अपनी उपज बेचने को ले कर परेशान हैं, बल्कि कई जगहों पर खेतों में तरबूज पडे़पडे़ ही सड़ रहे हैं.

पिछले कई दिनों से मौसम में बदलाव आया है, वहीं बरसात ने भी तरबूज की फसल को मंडियों और बाजारों तक पहुंचने से रोक दिया है.

गंगा व यमुना के अलावा दूसरी नदियों के किनारे इस मौसम में तरबूज, खीरा, ककड़ी, खरबूजा, लौकी जैसी सब्जियों और फलों की पैदावार होती है.

प्रयागराज में तकरीबन 3 बीघा खेत में तरबूज बोने वाले एक किसान का कहना है कि उन्होंने एक लाख से ज्यादा की लागत लगाई थी, लेकिन बाजार तक न पहुंच पाने की वजह से तरबूज खेतों में ही खराब हो जा रहा है.

नदियों के किनारे हजारों एकड़ जमीन पर बोई गई इन सब्जियों को उगाने वाले किसान परेशान हैं, वे कहते हैं कि हम बड़ी मंडी तक जा ही नहीं पा रहे हैं और गांवों में सब्जियां बिक नहीं पा रही हैं. ऐसे में तमाम किसान परेशान हैं कि वे अपनी लागत कैसे निकाल पाएंगे.

कछार इलाकों में पैदा होने वाली इन फसलों को उगाने के लिए किसान जीतोड़़ मेहनत करते हैं. घड़े में पानी भर कर सिंचाई करते हैं क्योंकि रेत में पानी का और कोई साधन नहीं रहता. यदि सब्जी और फल न बिक पाया तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.

इन किसानों की समस्या को ले कर कोई कुछ कहने को राजी नहीं हैं. वहीं ये किसान किस दम पर साहूकार का कर्ज लौटा पाएंगे, कहना मुश्किल है.

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