दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि – ‘लॉकडाउन कोरोना वायरस का इलाज नहीं है, बस ये इसको फैलने से रोकता है. ऐसा कभी नहीं होगा कि कोरोना का एक भी केस भविष्य में फिर ना मिले.अगर हम सोचें कि किसी एरिया में लॉकडाउन कर दिया और वहां केस जीरो हो जाएंगे तो ऐसा पूरी दुनिया में नहीं हो रहा है. हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी.’ कई डॉक्टर्स ने भी इस दौरान कहा है कि कोरोना से मुक्ति मिलने में अभी साल भर से ज़्यादा का वक़्त लगेगा और हो सकता है कि कोरोना भी हमारे बीच वैसे ही जम जाए जैसे डेंगू, चिकनगुनिया या अन्य वायरल जनित बुखार जमे हुए हैं.
कोरोना के साथ जीने की आदत डालने से मुख्यमंत्री केजरीवाल का साफ़ मतलब ये है कि अब तक हम लोग जिस तरह से जीते आये हैं, उनमे अब पूरी तरह बदलाव करने होंगे. हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखते हुए अपने कामकाज करने होंगे, अपनी साफ़-सफाई का भरपूर ख़याल रखते हुए जीना सीखना होगा. कोरोना से बचना है तो अब हाथ मिलाने, गले मिलने जैसे कृत्यों से बचना होगा. कोरोना से दूर रहना है तो अब झुण्ड से दूर रहना होगा.
कोरोना ने इंसान के अंदर जान खोने का डर इसकदर तारी कर दिया है कि अब लोग झुण्ड बना कर कुछ भी करने से डरेंगे. झुण्ड जो सबसे ज़्यादा जुटता है धार्मिक स्थलों पर, धार्मिक आयोजनों में। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च में. कोरोना के चलते अब लोग अपने ईश अपने आराध्य को याद करने के लिए पूजा स्थलों पर जाने से भी घबराएंगे. इकट्ठे होकर नमाज़ पढ़ने, इकट्ठे होकर पूजा-आरती करने, मेले, रथयात्राएं, मूर्ति विसर्जन कार्यक्रम जैसे बहुत से कामों पर ये कोरोना रोक लगा देगा. इंसान खुद इन कृत्यों से दूरी बना लेगा क्योंकि उसको अपनी जान का डर होगा.
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तब्लीगी जमात का नाम इस देश में पहली बार खूब चर्चा में आया. बहुतेरे लोग इसके बारे में नहीं जानते थे. यहाँ तक कि टीवी मेडिया से जुड़े लोगों को भी नहीं मालूम था, एक टीवी एंकर तो इसके बारे में बोलते हुए इसको ‘तालिबानी जमात’ तक कह गया और माफ़ी भी नहीं मांगी. कोरोना काल में चर्चा में आये तब्लीगी जमात को आने वाले वक़्त में कोरोना फैलाने वाली जमात भी कहा जाए तो आश्चर्य नहीं. इसके सदस्यों की देश भर में जैसी धरपकड़ हुई है, ऐसी किसी आतंकी संगठन के सदस्यों की नहीं हुई होगी. चैनलों पर इन की खूब लानत-मलामत हुई. पुलिस ने उन पर जुल्म ढाये। अस्पतालों में उनके साथ बुरा सुलूक हुआ. मुसलामानों में इसकदर डर बैठ गया है कि अब शायद तब्लीगी जमात तो क्या किसी भी धर्म संप्रदाय के लोग जमात में इकट्ठा होकर इस कल्पित ईश्वर अल्लाह को याद नहीं करेंगे. हां, इससे कई दिन तक शहरों से पैदल घर जाने वाले मजदूरों की तस्वीरें चैनलों से गायब हो गईं और सरकार और वर्ण व्यवस्था की वकालत करने वाले दलितों पिछड़ों को भुलवा सके.
तब्लीगी जमात के ही एक सदस्य अरशद अहमद अमरावती जिले के रहने वाले हैं. अरशद को हरियाणा के झज्जर में एम्स के डेडिकेटेड कोविड-19 सेंटर में क्वारैंटाइन किया गया था. अरशद अहमद कहते हैं कि – ‘सभी को सरकारी गाइडलाइन माननी चाहिए. हमें हर हाल में को-ऑपरेट करना चाहिए. लॉकडाउन के दौरान हम रमजान में मस्जिद नहीं जाएं.’ हालांकि अरशद का कोरोना टेस्ट अब नेगिटिव आ चुका है. वो दो बार दूसरे रोगियों को ठीक होने के लिए अपना प्लाज़्मा भी डोनेट कर चुके हैं और कहते हैं, ” लोगों की जान बचाने के लिए अगर दस बार भी ब्लड डोनेट करना पड़ा तो पीछे नहीं हटूंगा.” मगर अब शायद ही अरशद भविष्य में किसी जमात का हिस्सा बनना पसंद करें.
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कोई सोच सकता था कि रमज़ान में रोज़ेदार मस्जिद ना जाएगा? जो साल भर नमाज़ नहीं पढ़ते हैं वो भी रमजान के दिनों में मस्जिद में ही नज़र आते हैं. मगर अबकी बार कोरोना ने जान का ऐसा खौफ दे दिया कि दुनिया भर में मुसलमान मस्जिदों से दूर अपने-अपने घरों में रहे हैं. दरवाज़े बंद हैं. पडोसी भी नहीं झाँक सकता. कोई इफ्तार पार्टी का आयोजन अपने देश में नहीं कर रहा है.कोई पैसे की बर्बादी नहीं हो रही. इफ्तार पार्टियों की आड़ में कोई राजनीति नहीं हो रही. सब घर में बंद हैं.अब धर्म का कोई बिचौलिया नहीं है। अब वो दो खजूर से अपना रोज़ा खोल ले या बिरयानी बनवा ले, कोई देखने वाला नहीं. आगे ईद भी लोग अपने-अपने घरों में मनाएंगे. ‘अल्लाह से डरो’ ‘इस भगवान से डरो’ ‘फलां गौड से भय करो’ से बदल कर ‘कोरोना से डरो’ हो गया है.
बनारस में जहां गंगा के घाटों से लेकर विश्वनाथ गली तक में पर्यटकों की भीड़ ठसाठस भरी रहती थी और धर्म की दुकाने चलाने वालों का रोजाना लाखों का वारा न्यारा होता था, वहां अब कोरोना के डर से विदेशी तो क्या, देशी पर्यटक और श्रद्धालु भी नदारत हैं. घाट और गलियां सूनी हैं. फूल-माला, दिया- अगरबत्ती, प्रसाद आदि दुकानों पर ताला पड़ गया है. घाटों पर पंडों की दुकानदारी चौपट हो चुकी है. धर्म का धंधा मंदा पड़ गया है. लेकिन गंगा का पानी साफ़ हो गया है. गंगा निर्मल हो गई है. वातावरण स्वतः शुद्ध हो गया है, बिना किसी आरती, हवन या यज्ञ के.
यही हाल नवरात्र के दौरान भी देखने को मिला. मंदिरों में ताले पड़े रहे. लोगों ने अपने-अपने घरों में ही जोत जलाई. मंदिरों के आगे मजमा लगाए भिखारियों को पूरी-सब्ज़ी बाँटते लोग भी कहीं नज़र नहीं आये. सड़कों पर खाली प्लास्टिक की खाली गन्दी प्लेटों-गिलासों का अम्बार भी नहीं लगा. नवरात्र बंगालियों का बड़ा त्यौहार है. बंगाली औरतें तो नवरात्र के नौ दिनों में ऐसी खरीदारी करती हैं जैसे घर में शादी का जश्न हो. देश भर में जगह-जगह बड़े-बड़े देवी पंडाल सजते हैं, लाखों-करोड़ों रूपए खर्च किये जाते हैं. रात दिन पूजा-आरती का कार्यक्रम होता है. भीड़ एक दूसरे पर उमड़ी पड़ती है. तिल धरने की जगह नहीं होती है, मगर अबकी बार कोरोना ने सब पर फुलस्टॉप लगा दिया. यहां तक कि अष्टमी और नौमी को जब कन्या पूजन का दिन था, उस दिन भी घरों में सन्नाटा पसरा रहा. अब जब कन्या ही नहीं बिठानी थी तो हलुवा, पूरी, छोले, आलू भी नहीं बने. कन्याओं पर चढ़ावे के लिए नए कपड़े, उपहार, फल, मिठाई भी नहीं खरीदा गया. जब मंदिर में प्रसाद चढाने ही नहीं जाना था तो पूजा सामग्री, फूल, अगरबत्ती, नारियल, देवी की चादर किसी भी चीज़ की खरीदारी नहीं हुई. अगर जोड़ने बैठें तो अबकी नवरात्र में देश भर की महिलाओं का करोड़ों रुपया कोरोना ने बचा दिया. और घर के मंदिर में ही नवरात्र की पूजा-अर्चना करने से भगवान् नाराज़ हुए हों, ऐसा कोई समाचार भी किसी कोने से नहीं आया.
कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहे हरियाणा में महाराष्ट्र के नांदेड स्थित गुरुद्वारा हुजूर साहिब से लौटे श्रद्धालु मुसीबत बने. नांदेड से लौटे चार श्रद्धालुओं की रिपोर्ट पहले कोरोना पॉजिटिव आई थी, उसके बाद कई और लोगों की रिपोर्ट भी पॉजिटिव निकली.अब ये सभी क्वारेंटाइन किये गए हैं. लोग इनको कोस रहे हैं. यहाँ तक कि इनके परिवारवाले भी इनसे दूरी बनाये हुए हैं.
कोरोना का संकट ख़तम होने में अभी लंबा वक़्त लगेगा. इस दौरान बहुत सारी चीज़ों और आदतों में इंसान खुद बदलाव कर लेगा. धर्मगुरुओं की चालबाजियों के चलते जिन बातों को ले कर वह इस डर में जीता था कि उनके कहे अनुसार ना किया तो नरक प्राप्त होगा या कोई ना कोई अनिष्ट होगा, यह डर बहुत सारे लोगों के दिलों से निकल जाएगा. इसके लिए उन्हें कोरोना को धन्यवाद देना चाहिए.
एक छोटा सा उदाहरण कोरोना काल के बीते दो महीने में हुई सामान्य मौतों से लिया जा सकता है. हिन्दू धर्म में मान्यता है कि व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित करना आवश्यक है. इसके साथ ही सात से ले कर इक्कीस पंडितों को भोज कराना भी ज़रूरी है. उनको भरपूर दान-दक्षिणा देना भी ज़रूरी है. घर में शुद्धिकरण के लिए हवन करवाना आवश्यक है. पूरे मोहल्ले और ब्राह्मणों की पांत को तिरहीं का भोज करवाना ज़रूरी है. इन सबके बगैर मरने वाले को मोक्ष नहीं मिलेगा, ऐसी मान्यता रही है. अब कोरोना काल में जितने लोगों को मृत्यु पश्चात अग्नि दी गयी, उनमे से ज़्यादातर की अस्थियों का प्रवाह गंगाजी में नहीं हुआ है, बल्कि अपने ही शहर की नदी में कर दिया गया है क्योंकि लॉक डाउन में हरिद्वार, ऋषिकेश जाने के मार्ग बंद हैं. बहुतेरों के अस्थि-कलश श्मशान में बने लॉकररूम में ही इस इंतज़ार में रख दिए गए हैं कि जब आवागमन का मार्ग खुलेगा, तब प्रवाहित किये जाएंगे. हालांकि मान्यता के अनुसार अस्थिकलश अधिक दिनों तक नहीं रखे जाते हैं. व्यक्ति की मृत्युपश्चात कोरोना काल में पंडितों को भोज भी नहीं दिया गया है, तिरहीं भी नहीं हुई क्योंकि लॉक डाउन था, लोग एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकते थे. अब जिन परिवारों में उनका कोई अपना इस दौरान स्वर्गवासी हुआ है, उसका दाहसंस्कार साधारण तरीके से बहुत कम लोगों की उपस्थिति में किया गया है. कोरोना के डर से किसी पंडित ने भी इसमें कोई मीनमेख नहीं निकाली. कोरोना से मरने वाले लोगों को तो अंतिम संस्कार की सम्पूर्ण क्रियाविधि भी नसीब नहीं हुई. उनके शरीर को तो अस्पताल में ही प्लास्टिक में लपेट कर सीधे श्मशान में लाकर जला दिया गया. ये काम कहीं स्वास्थकर्मियों ने किया तो कहीं पुलिस ने किसी पंडित ने अंतिम क्रिया नहीं करवाई, यहाँ तक के बहुतेरों के तो परिजन तक कोरोना के डर से मृत शरीर के पास नहीं फटके.
कोरोना वायरस जिस स्पीड से भारत में फैल रहा है, उससे डर बढ़ने लगा है. स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक आंकड़े कहते है कि बाद के 11 दिनों में 20 हजार केसेज बढ़े हैं. जबकि उससे पहले के 20 हजार मामले तक पहुंचने में हमें 12 सप्ताह लगे थे. यानी सिर्फ 11 दिन के भीतर मामले दोगुने हो गए. भारत ने 24 मार्च को लॉकडाउन किया था. उसके बाद से ४ मई तक 40 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं. बीमारी बढ़ने की रफ़्तार यही रही तो लॉकडाउन खत्म होते-होते देश में कुल केस 1 लाख के करीब पहुंच सकते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लोग गंभीर नहीं हुए और झुण्ड में जमा हुए तो नतीजे और ज़्यादा खतरनाक हो सकते हैं.
जब शुरुआती दौर में कोरोना फैलने की ख़बरें आईं थीं तब धर्म के धंधेबाज़ों में अपने-अपने दवा-दावे बताने शुरू कर दिए थे. मुल्लाओं ने कहा नमाज़ पढ़ो, अल्लाह में यकीन लाओ, कोरोना पास भी नहीं फटकेगा. झाड़-फूंक वाले भी दुकान सजाए बैठ गए. तमाम धर्मगुरुओं ने अपने मंत्र-जाप, पूजा-आराधना, गोबर, गौ मूत्र, आयत-नमाज, टोने-टोटके का प्रचार प्रसार किया. हवन पूजा पाठ कराए गए. मगर जल्दी ही सब अपनी दुकाने समेट कर रफूचक्कर हो गए क्योंकि सब जानते थे कि धार्मिक क्रियाकलापों से कोरोना को नहीं भगाया जा सकता है. ये सिर्फ इंसान को धोखे में रखने के और उन्हें लूटने के साधन मात्र हैं. इससे ज़्यादा डर उन्हें इस बात का रहा कि अगर लोग उनके पास आये तो कहीं उनको कोरोना ना हो जाए. उन्होंने खुद मंदिरों में ताले डाल दिए. भक्त भी समझ गए कि भगवान् या उनके एजेंटों से कोरोना डर कर भागने वाला नहीं है. लिहाज़ा जो डॉक्टर कहें वो मानने में ही भलाई है.
इसमें दो राय नहीं कि धर्म एक शुद्ध धंधा है. इतिहास गवाह है आजतक कभी धर्म के क्षेत्र में मंदी नहीं आई बल्कि विकट स्थिति में तो धर्म का धंधा बढ़ा ही है. लेकिन यह पहला अवसर है जब धर्म और धर्म के नाम पर फैले कारोबार तथा एकत्रित कारोबारियों की दुकानें बंद हो गयी हैं. मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे, मज़ारों पर ताले लग गए हैं और सबसे खास बात यह कि इसमें किसी की भावनाएं भी आहत नहीं हो सकती अन्यथा जान के लाले पड़ जाएंगे. जो भी दावा फेंकने वाले फेंकू थे, सब बिलों में बैठ गए हैं क्योंकि जनता अब समझने लगी है कि पूजापाठ, नमाज-जकात, प्रसाद-चढ़ावे से कोरोना नहीं जाएगा. जनता ये भी समझ रही है कि धर्म के ठेकेदारों ने जो भी दावे किए वह कितने झूठे और पाखण्ड से भरे हुए थे.
अब्राहम लिंकन ने कहा था कि पीढ़ी दर पीढ़ी यदि आप किसी क्षेत्र में मनुष्य को बेवकूफ बना सकते हैं तो वह धर्म है. आज वही धर्म बंदी की कगार पर है और मनुष्य मरने की कगार पर खड़ा है. हमें अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव लाने होंगे ये निश्चित है. दो महीने इंसान घर में क्या बंद हुआ हवा, पानी, धरती ने अपना रूप सजा लिया है. यहां तक की धरती को कवर करने वाली और सूरज की खतरनाक अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाने वाली ओजोन लेयर जो कई जगह से बुरी तरह फट गयी थी उसने भी खुद को सी लिया है. इस रिपेयरिंग तकनीक से वैज्ञानिक हतप्रभ हैं। प्रकृति ने बता दिया है अगर इंसान खुद नहीं सुधरा तो वह उसे सुधार देगी. इसलिए भगवान् के नाम पर नदियों को गंदा करने से अब बचना होगा. भगवान् के नाम पर धर्म का धंधा करने वालों की कलई खुल चुकी है, इनके हाथो लुटने से बचना होगा. जिन बातों को अतिआवश्यक बता कर ये सारे कर्मकांड करवाते थे, उन बातों और चीज़ों के बिना भी दुनिया चल सकती है और किसी को नरक का भागिदार नहीं होना होगा ये बात कोरोना ने भलीभांति समझा दी है.
कोरोना काल दुनिया भर के लोगों के लिए पुनर्जागरण काल है अगर कोरोना का भय कुछ ज्यादा चला तो . वर्ना वैक्सीन बनते ही धर्म वाले कहना शुरू कर देंगें कि उन्होंने पूजा, इबादत या प्रेयर की तो वैज्ञानिकों को चेतना मिली, ज्ञान मिला जो ईश्वर प्रदत्त है. लाओ धारण पर पैसा चढ़ाओ, अपनी औरतों को धर्म के दुकानदारों की सेवा के लिए भेजो.