इंट्रो शराब पर लगने वाला टैक्स ऐसा है जिसमें अफसरशाही को भी खूब पैसा मिलता है और सरकार को भी सरकार को यह पैसा आम औरतों की पारिवारिक जेब से जाता है. लॉक डाउन की वजह से जब सब घरों की तनख्वाह या आमदनी आधी चौथाई रहने वाली हो, यह खर्च सरकार का पेट भरेगी. पर इससे घरेलू झगड़े और मारपीट की घटनाएं बढ़ेगी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आबकारी राजस्व में 75 फीसदी अधिक का लक्ष्य रखा है. लॉकडाउन में 40 दिन की बंदी से यह लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा था. शराब सिंडिकेट का दबाव था कि लक्ष्य पूरा करने के लिए शराब की दुकानें खोली जाए. क्योंकि शराब की कंपनियों ने इस साल ज्यादा बिक्री के लिए अपना उत्पादन अधिक कर दिया था. लॉक डाउन में यह सब बर्बाद हो रहा था.

उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉक डाउन में शराब  सहित भांग, बीयर और गांजा की भी दुकाने  खोलने का फैसला किया है. इस फैसले के पीछे उत्तर प्रदेश के शराब माफियाओं का दबाव है.

सरकार के अपने आदेश में कहा है कि यह दुकानें सोशल डिस्टनसिंग का पूरी तरह से पालन करते हुए खोली जाएगी और किसी को भी सार्वजनिक स्थलों पर शराब नही पीने दिया जाएगा. शराब बेचने वाले मास्क और ग्लब्स पहनेंगे.

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सरकार ने इस फैसले की वजह भी जनता के उपर ही ठोक दिया है. सरकार और उनके समर्थकों  ने जनता को यह समझने का काम किया है कि राजस्व की कमी को पूरा करने और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह फैसला करना मजबूरी है. उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भक्त अब अर्थव्यवस्था के नाम पर सरकार के फैसले का सर्मथन कर रहे है. इसके बाद भी समाज का बहुत बड़ा वर्ग प्रदेश सरकार के इस काम का विरोध कर रहा है.

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