लॉक डाउन ने बढ़ाई नज़दीकियां–

 उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कट्टर सनातनी हैं और अब कहने भर को ही सही बसपा सुप्रीमो अंबेडकारवादी हैं. ये दोनों विचारधाराएं नदी के दो किनारों जैसी हैं लेकिन लगता है लाक डाउन के चलते यह नदी सूख रही है. हैरतअंगेज तरीके से योगी–माया के बीच नज़दीकियां बढ़ रहीं हैं. मायावती ने अपने विधायकों से आग्रह किया (गौर करें इस बार आदेश नहीं दिया) कि वे अपनी विधायक निधि से मुख्यमंत्री कोष में 1-1 करोड़ रु दें जो कि उन्होंने दे भी दिये. इस पर खुशी से फूले नहीं समाए आदित्यनाथ ने फोन कर बहिन जी को हार्दिक धन्यवाद भी दिया.

मायावती जाने क्यों (शायद भीम आर्मी के मुखिया चन्द्र शेखर रावण की बढ़ती लोकप्रियता और स्वीकार्यता के डर से) इन दिनों भाजपा से नज़दीकियाँ बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूक रहीं. बरेली में जब गरीब भगोड़े मजदूरों पर कीटनाशक केमिकल छिड़का गया था, तब उन्होंने औपचारिक विरोध दर्ज कराया था. यह नहीं कहा था कि इन मजदूरों में अधिकांश दलित समुदाय के हैं और उनकी शुद्धि का यह तरीका मनुवादी है लिहाजा योगी तत्काल इस्तीफा दें. पूरे देश की तरह यूपी में भी दलितों पर अत्याचार आए दिन होते रहते हैं जिन पर मायावती अमूमन खामोश ही रहती हैं.

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कभी तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे पर सवार होकर सत्ता के शिखर तक पहुंची मायावती ने लगता है दलितों की नियति से समझौता कर लिया है इसलिए बाहर भी हैं. ब्राह्मणो के कुसंग ने भले ही उनकी बुद्धि हर ली हो लेकिन दलित समुदाय अर्ध जागरूक तो हो ही चुका है इसलिए पिछले साल अगस्त में हुये 12 सीटों के उपचुनाव में बसपा को कुछ नहीं मिला था. इन दो धाकड़ नेताओं के बीच खिचड़ी कुछ भी पक रही हो लेकिन यह बात भी कम दिलचस्प नहीं कि बहिन जी के गाँव बादलपुर में भाजपाई रोज जरूरतमंदों को खाना बाँट रहे हैं जिससे लगता है कि बसपा संगठनात्मक तौर पर निचले स्तर से भी दरक रही है.        

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