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मैं अपनी भाभी की छोटी बहन से प्यार करता हूं, उसके साथ सैक्स करना चाहता हूं. वह भी मुझे प्यार करती है, हम क्या करें. सही सलाह दें?

सवाल
मैं 18 साल का लड़का हूं और सगी भाभी की छोटी बहन से प्यार करता हूं. वह भी मुझे बहुत प्यार करती?है. हम दोनों शादी करना चाहते?हैं. पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हैं. सही सलाह दें.

जवाब
घर वाले क्यों तैयार नहीं हैं, इस बात पर विचार करें, फिर जो अड़चन समझ आए उसे दूर करने की कोशिश करें. जब आप दोनों राजी हैं तो किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए. आप की उम्र अभी शादी के लिहाज से कम है तो तय है कि भाभी की छोटी बहन भी कम उम्र की होगी. उस के बालिग होने का इंतजार करें.

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रिश्तों की अहमियत समझिए

पता चला कि राजीव को कैंसर है. फिर देखते ही देखते 8 महीनों में उस की मृत्यु हो गई. यों अचानक अपनी गृहस्थी पर गिरे पहाड़ को अकेली शर्मिला कैसे उठा पाती? उस के दोनों भाइयों ने उसे संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि एक भाई के एक मित्र ने शर्मिला की नन्ही बच्ची सहित उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

शर्मिला की मां उस की डोलती नैया को संभालने का श्रेय उस के भाइयों को देते नहीं थकती हैं, ‘‘अगर मैं अकेली होती तो रोधो कर अपनी और शर्मिला की जिंदगी बिताने पर मजबूर होती, पर इस के भाइयों ने इस का जीवन संवार दिया.’’

सोचिए, यदि शर्मिला का कोई भाईबहन न होता सिर्फ मातापिता होते, फिर चाहे घर में सब सुखसुविधाएं होतीं, किंतु क्या वे हंसीसुखी अपना शेष जीवन व्यतीत कर पाते? नहीं. एक पीड़ा सालती रहती, एक कमी खलती रहती. केवल भौतिक सुविधाओं से ही जीवन संपूर्ण नहीं होता, उसे पूरा करते हैं रिश्ते.

सूनेसूने मायके का दर्द: सावित्री जैन रोज की तरह शाम को पार्क में बैठी थीं कि रमा भी सैर करने आ गईं. अपने व्हाट्सऐप पर आए एक चुटकुले को सभी को सुनाते हुए वे मजाक करने लगीं, ‘‘कब जा रही हैं सब अपनेअपने मायके?’’

सभी खिलखिलाने लगीं पर सावित्री मायूसी भरे सुर में बोलीं, ‘‘काहे का मायका? जब तक मातापिता थे, तब तक मायका भी था. कोई भाई भाभी होते तो आज भी एक ठौरठिकाना रहता मायके का.’’

वाकई, एकलौती संतान का मायका भी तभी तक होता है जब तक मातापिता इस दुनिया में होते हैं. उन के बाद कोई दूसरा घर नहीं होता मायके के नाम पर.

भाईभाभी से झगड़ा: ‘‘सावित्रीजी, आप को इस बात का अफसोस है कि आप के पास भाईभाभी नहीं हैं और मुझे देखो मैं ने अनर्गल बातों में आ कर अपने भैयाभाभी से झगड़ा मोल ले लिया. मायका होते हुए भी मैं ने उस के दरवाजे अपने लिए स्वयं बंद कर लिए,’’ श्रेया ने भी अपना दुख बांटते हुए कहा.

ठीक ही तो है. यदि झगड़ा हो तो रिश्ते बोझ बन जाते हैं और हम उन्हें बस ढोते रह जाते हैं. उन की मिठास तो खत्म हो गई होती है. जहां दो बरतन होते हैं, वहां उन का टकराना स्वाभाविक है, परंतु इन बातों का कितना असर रिश्तों पर पड़ने देना चाहिए, इस बात का निर्णय आप स्वयं करें.

भाईबहन का साथ: भाई बहन का रिश्ता अनमोल होता है. दोनों एकदूसरे को भावनात्मक संबल देते हैं, दुनिया के सामने एकदूसरे का साथ देते हैं. खुद भले ही एकदूसरे की कमियां निकाल कर चिढ़ाते रहें लेकिन किसी और के बीच में बोलते ही फौरन तरफदारी पर उतर आते हैं. कभी एकदूसरे को मझधार में नहीं छोड़ते हैं. भाईबहन के झगड़े भी प्यार के झगड़े होते हैं, अधिकार की भावना के साथ होते हैं. जिस घरपरिवार में भाईबहन होते हैं, वहां त्योहार मनते रहते हैं, फिर चाहे होली हो, रक्षाबंधन या फिर ईद.

मां के बाद भाभी: शादी के 25 वर्षों बाद भी जब मंजू अपने मायके से लौटती हैं तो एक नई स्फूर्ति के साथ. वे कहती हैं, ‘‘मेरे दोनों भैयाभाभी मुझे पलकों पर बैठाते हैं. उन्हें देख कर मैं अपने बेटे को भी यही संस्कार देती हूं कि सारी उम्र बहन का यों ही सत्कार करना. आखिर, बेटियों का मायका भैयाभाभी से ही होता है न कि लेनदेन, उपहारों से. पैसे की कमी किसे है, पर प्यार हर कोई चाहता है.’’

दूसरी तरफ मंजू की बड़ी भाभी कुसुम कहती हैं, ‘‘शादी के बाद जब मैं विदा हुई तो मेरी मां ने मुझे यह बहुत अच्छी सीख दी थी कि शादीशुदा ननदें अपने मायके के बचपन की यादों को समेटने आती हैं. जिस घरआंगन में पलीबढ़ीं, वहां से कुछ लेने नहीं आती हैं, अपितु अपना बचपन दोहराने आती हैं. कितना अच्छा लगता है जब भाईबहन संग बैठ कर बचपन की यादों पर खिलखिलाते हैं.’’

मातापिता के अकेलेपन की चिंता: नौकरीपेशा सीमा की बेटी विश्वविद्यालय की पढ़ाई हेतु दूसरे शहर चली गई. सीमा कई दिनों तक अकेलेपन के कारण अवसाद में घिरी रहीं. वे कहती हैं, ‘‘काश, मेरे एक बच्चा और होता तो यों अचानक मैं अकेली न हो जाती. पहले एक संतान जाती, फिर मैं अपने को धीरेधीरे स्थिति अनुसार ढाल लेती. दूसरे के जाने पर मुझे इतनी पीड़ा नहीं होती. एकसाथ मेरा घर खाली नहीं हो जाता.’’

एकलौती बेटी को शादी के बाद अपने मातापिता की चिंता रहना स्वाभाविक है. जहां भाई मातापिता के साथ रहता हो, वहां इस चिंता का लेशमात्र भी बहन को नहीं छू सकता. वैसे आज के जमाने में नौकरी के कारण कम ही लड़के अपने मातापिता के साथ रह पाते हैं. किंतु अगर भाई दूर रहता है, तो भी जरूरत पर पहुंचेगा अवश्य. बहन भी पहुंचेगी परंतु मानसिक स्तर पर थोड़ी फ्री रहेगी और अपनी गृहस्थी देखते हुए आ पाएगी.

पति या ससुराल में विवाद: सोनम की शादी के कुछ माह बाद ही पतिपत्नी में सासससुर को ले कर झगड़े शुरू हो गए. सोनम नौकरीपेशा थी और घर की पूरी जिम्मेदारी भी संभालना उसे कठिन लग रहा था. किंतु ससुराल का वातावरण ऐसा था कि गिरीश उस की जरा भी सहायता करता तो मातापिता के ताने सुनता. इसी डर से वह सोनम की कोई मदद नहीं करता.

मायके आते ही भाई ने सोनम की हंसी के पीछे छिपी परेशानी भांप ली. बहुत सोचविचार कर उस ने गिरीश से बात करने का निर्णय किया. दोनों घर से बाहर मिले, दिल की बातें कहीं और एक सार्थक निर्णय पर पहुंच गए. जरा सी हिम्मत दिखा कर गिरीश ने मातापिता को समझा दिया कि नौकरीपेशा बहू से पुरातन समय की अपेक्षाएं रखना अन्याय है. उस की मदद करने से घर का काम भी आसानी से होता रहेगा और माहौल भी सकारात्मक रहेगा.

पुणे विश्वविद्यालय के एक कालेज की निदेशक डा. सारिका शर्मा कहती हैं, ‘‘मुझे विश्वास है कि यदि जीवन में किसी उलझन का सामना करना पड़ा तो मेरा भाई वह पहला इंसान होगा जिसे मैं अपनी परेशानी बताऊंगी. वैसे तो मायके में मांबाप भी हैं, लेकिन उन की उम्र में उन्हें परेशान करना ठीक नहीं. फिर उन की पीढ़ी आज की समस्याएं नहीं समझ सकती. भाई या भाभी आसानी से मेरी बात समझते हैं.’’

भाईभाभी से कैसे निभा कर रखें: भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. उसे निभाने का प्रयास सारी उम्र किया जाना चाहिए. भाभी के आने के बाद स्थिति थोड़ी बदल जाती है. मगर दोनों चाहें तो इस रिश्ते में कभी खटास न आए.

सारिका कितनी अच्छी सीख देती हैं, ‘‘भाईभाभी चाहे छोटे हों, उन्हें प्यार देने व इज्जत देने से ही रिश्ते की प्रगाढ़ता बनी रहती है नाकि पिछले जमाने की ननदों वाले नखरे दिखाने से. मैं साल भर अपनी भाभी की पसंद की छोटीबड़ी चीजें जमा करती हूं और मिलने पर उन्हें प्रेम से देती हूं. मायके में तनावमुक्त माहौल बनाए रखना एक बेटी की भी जिम्मेदारी है. मायके जाने पर मिलजुल कर घर के काम करने से मेहमानों का आना भाभी को अखरता नहीं और प्यार भी बना रहता है.’’

ये आसान सी बातें इस रिश्ते की प्रगाढ़ता बनाए रखेंगी:

– भैयाभाभी या अपनी मां और भाभी के बीच में न बोलिए. पतिपत्नी और सासबहू का रिश्ता घरेलू होता है और शादी के बाद बहन दूसरे घर की हो जाती है. उन्हें आपस में तालमेल बैठाने दें. हो सकता है जो बात आप को अखर रही हो, वह उन्हें इतनी न अखर रही हो.

– यदि मायके में कोई छोटामोटा झगड़ा या मनमुटाव हो गया है तब भी जब तक आप से बीचबचाव करने को न कहा जाए, आप बीच में न बोलें. आप का रिश्ता अपनी जगह है, आप उसे ही बनाए रखें.

– यदि आप को बीच में बोलना ही पड़े तो मधुरता से कहें. जब आप की राय मांगी जाए या फिर कोई रिश्ता टूटने के कगार पर हो, तो शांति व धैर्य के सथ जो गलत लगे उसे समझाएं.

– आप का अपने मायके की घरेलू बातों से बाहर रहना ही उचित है. किस ने चाय बनाई, किस ने गीले कपड़े सुखाए, ऐसी छोटीछोटी बातों में अपनी राय देने से ही अनर्गल खटपट होने की शुरुआत हो जाती है.

– जब तक आप से किसी सिलसिले में राय न मांगी जाए, न दें. उन्हें कहां खर्चना है, कहां घूमने जाना है, ऐसे निर्णय उन्हें स्वयं लेने दें.

– न अपनी मां से भाभी की और न ही भाभी से मां की चुगली सुनें. साफ कह दें कि मेरे लिए दोनों रिश्ते अनमोल हैं. मैं बीच में नहीं बोल सकती. यह आप दोनों सासबहू आपस में निबटा लें.

– आप चाहे छोटी बहन हों या बड़ी, भतीजोंभतीजियों हेतु उपहार अवश्य ले जाएं. जरूरी नहीं कि महंगे उपहार ही ले जाएं. अपनी सामर्थ्यनुसार उन के लिए कुछ उपयोगी वस्तु या कुछ ऐसा जो उन की उम्र के बच्चों को भाए, ले जाएं.

 

 

मदर्स डे स्पेशल :दादी अम्मा-भाग 2

सुलेमान बेग युवावस्था में रोजगार पाने की गरज से अपनी बीवी सकीना बेगम को ले कर इस शहर में आ गए थे. उस समय उन के पास एक संदूकिया और पुराना बिस्तर था. उन का पुश्तैनी घराना निर्धन था. यही मजबूरी उन्हें यहां ले आई थी. किसी मिलने वाले ने सुझाव दिया था कि यहां साहबों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर गुजरबसर कर सकते हैं. साहब खुश हो गए तो नौकरी भी मिल सकती है.

उस की बात सही निकली. सुलेमान बेग की मेहनत, लगन और सहयोगी व्यवहार से प्रभावित हो कर एक साहब ने 1 साल बीततेबीतते उन की तहसील में तीसरे दरजे की नौकरी भी लगवा दी. कुछ दिनों में सरकारी क्वार्टर भी मिल गया.

नौकरी और क्वार्टर मिलने की खुशी सुलेमान बेग से संभाली नहीं जा रही थी. पहले दिन क्वार्टर में घुसते ही सकीना बेगम को उन्होंने सीने से लगा लिया, ‘बेगम, मेरी जिंदगी में तुम्हारे कदम क्या पड़े, कामयाबी का पेड़ लग गया.’

‘यह सब आप की मेहनत का फल है. मैं तो यही चाहती हूं कि आप सलामत रहें. मेरी उम्र भी आप को लग जाए,’ भावावेश में सकीना बेगम की आंखों में आंसू छलक आए.

‘ऐसा न कहो, तुम हो तो यह घर है. नहीं तो कुछ भी नहीं होता,’ कहते हुए सुलेमान बेग ने उन का माथा चूम लिया.

सुलेमान बेग के 4 बच्चे हुए. 1 बेटी और उस के बाद 3 बेटे. वेतन कम होने से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता था. दोनों पतिपत्नी ने अपना पेट काट कर बच्चों की परवरिश की थी. अपने शौकों को दबा कर बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने में लगे रहे. तबादले होते रहने की स्थिति में एक स्थायी निवास के लिए सुलेमान बेग ने जोड़तोड़ कर के 4 कमरों का घर बना लिया.

सुलेमान बेग का तबादला इधरउधर होता रहा. बच्चों के लिए घर पैसे भेजने के वास्ते किराए के एक कमरे में रहते, मलयेशिया के बने सस्ते कपड़े पहनते और स्वयं तवे पर दो रोटी डाल कर गुजरबसर करते. लेकिन इस का बुरा असर यह हुआ कि वे जबतब बीमार रहने लगे थे.

उन की अनुपस्थिति में सकीना बेगम ही बच्चों को बटोरे रहतीं. वे स्वयं ही घर का सारा कामकाज करतीं. चूल्हे पर सब का खाना बनातीं. कपड़े और बरतन धोतीं. पौ फटते ही उठ जातीं, गाय की सानी करतीं फिर साफसफाई करने के बाद बच्चों को रोटी और साग खिला कर स्कूल भेजतीं. कम वेतन में भी उन के त्याग ने घर को खुशियों से भर रखा था. कुछ बातें वे खुद ही सह लेतीं, पति और बच्चों पर जाहिर नहीं होने देतीं.

एक बार ईद के मौके पर पैसे की कुछ ज्यादा ही तंगी थी. लेकिन बच्चे इस से बेखबर नए कपड़ों की जिद करने लगे, ‘अम्मा, सभी संगीसाथी नएनए कपड़ों की शेखी बघार रहे हैं. हम उन से कम थोड़े ही हैं, ऐसे कपड़े बनवाएंगे कि सब देखते रह जाएंगे. है न अम्मीजान.’

सकीना बेगम को काटो तो खून नहीं. पिछले दिनों लाल गेहूं के पैसे भी कहां दिए थे दुकानदार को. बाद में कुछ और किराने का सामान भी उधार ही आया था. पति की बीमारी, बच्चों की पढ़ाई से आर्थिक तंगी और बढ़ चली थी. नकद सामान आता भी कहां से. बड़ी खुशामद के बाद किराने वाले ने मुंह बिगाड़ते हुए 1 किलो सेंवइयां दी थीं. ऐसे में कपड़ों के बारे में तो वे सोच भी नहीं सकती थीं. सोचा था, नील डाल कर कपड़े फींच देंगी, बच्चे गौर नहीं करेंगे, ऐसे ही टल जाएगी ईद. लेकिन…

बच्चों की बात सुन कर अपने को संयत कर उन्होंने दिलासा दी, ‘क्यों नहीं, हम क्या किसी से कम हैं. सब के कपड़े बनेंगे, आखिर सालभर में एक ही बार तो मीठी ईद आती है.’ बड़ी मुश्किल से उन्होंने बेटी के विवाह के लिए अपनी शादी में चढ़े चांदी के 2 जेवर बचा कर रखे थे. बिना किसी को बताए वे उन्हें गिरवीं रख कर स्वयं को छोड़ सब के कपड़े खरीद लाईं. सुलेमान बेग ने जब उन के कपड़ों के बारे में पूछा तो हंसती हुई बोलीं, ‘अरे, मैं तो घर में ही रहती हूं, मुझे किसी को दिखाना थोड़े ही है.’

सुलेमान बेग की नौकरी के चलते घर में न रहने और वेतन बहुत कम होने के बीच बड़ी कक्षाओं में आने पर 2 बड़े लड़के दूसरे शहर में ट्रेन से जा कर पढ़ने लगे तो उन पर और भार पड़ गया. बच्चों के बड़े होने पर जैसेतैसे जोड़गांठ कर जब उन्होंने बेटी का विवाह कर दिया तो कुछ चैन की सांस ली. तीनों बेटे भी बड़े थे, लेकिन धन के अभाव में उन के लिए रोटियां सेंकनी पड़तीं. चूल्हे में जब वे लोहे की फूंकनी से कंडों को सुलगाने के लिए फूंकतीं तो उन की सांस तो फूल ही जाती, साथ में धुएं और राख से आंखें भी लाल हो जातीं.

वैसे तो वे सहती रहतीं लेकिन उन का सब्र उस समय जवाब दे जाता जब गीली लकडि़यां सुलगने में बहुत देर लगातीं और फूंकनी फूंकतेफूंकते उन की जान कलेजे को आ जाती. ‘पता नहीं कब मुझे आराम नसीब होगा. लगता है मर कर ही चैन मिलेगा,’ कहते हुए वे देर तक बड़बड़ाती रहतीं.

बेटे उच्च शिक्षा तो नहीं ले पाए फिर भी सुलेमान बेग ने 2 बड़े बेटों को शहर में ही तृतीय श्रेणी की नौकरियों पर लगवा दिया और छोटे लड़के को मैडिकल स्टोर खुलवा दिया. आर्थिक स्थिति कुछ सुधरने पर जैसेतैसे जब बड़े बेटे रेहान की शादी हुई तो सकीना बेगम को लगा कि अब उन्हें रातदिन कोल्हू के बैल जैसी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं.

मदर्स डे स्पेशल :दादी अम्मा-भाग 1

दादी अम्मा कहीं चली गई थीं. कहां गई थीं, किसी को पता नहीं चला. रातदिन की उपेक्षा और दुर्दशा के कारण एक न एक दिन यह होना ही था. पहले कभीकभी अकेलेपन से दिल घबराने या तबीयत खराब होने पर वे पासपड़ोस के घरों में या महल्ले के हकीम साहब से माजून लेने चली जाती थीं. लेकिन 2-3 घंटे या फिर देर हुई तो शाम तक घर वापस आ जाती थीं. इस बार जब वे देर रात तक नहीं लौटीं तो तीनों बेटों को चिंता सताने लगी. तमाम रिश्तेदारों में पूछताछ की, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला.

‘‘पता नहीं कहां चली गईं अम्मा, दिल फटा जा रहा है, चचा. 1 महीने से ज्यादा वक्त हो गया है, न जाने किस हाल में होंगी,’’ बड़े बेटे रेहान ने मायूसी भरे लहजे में हाजी फुरकान से कहा.

हाजी फुरकान पूरे महल्ले के मुंहबोले चचा थे. रेहान के घर पर उन का कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. वे दादी अम्मा के बारे में ही पूछने आए थे.

‘‘बेटा, दुखी मत हो. सब्र से काम लो,’’ हाजी फुरकान ने दिलासा दिया.

‘‘चचा, दुख तो इस बात का है कि हम तीनों भाइयों ने उन की कोई खिदमत नहीं की. अब कैसे प्रायश्चित्त करें कि दिल को सुकून मिले. हम उन की खिदमत न कर पाने से तो दुखी हैं ही, उस से भी बड़ी परेशानी यह है कि अम्मा की कई ख्वाहिशें अधूरी रह गई हैं. न वे कुछ मनचाहा खापी सकीं और न ही पहनओढ़ सकीं. इस के पछतावे में हम सब का दिल बैठा जा रहा है.’’

तभी आंगन के दूसरी ओर बने कमरे में से उस का छोटा भाई जुबैर अपनी बीवीबच्चों के साथ आ गया.

‘‘जुबैर बेटा, अपने भाई को समझाओ, ज्यादा आंसू न बहाए, सबकुछ ठीक हो जाएगा,’’ हाजी फुरकान ने जुबैर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. थोड़ी देर बाद उन्होंने दोनों भाइयों से पूछा, ‘‘फैजान कहां है? उसे भी जरा बुलाओ. कुछ खास बात करनी है तुम सब भाइयों के साथ.’’

जुबैर मकान के सामने के हिस्से के ऊपर बने कमरों में से एक कमरे का परदा हटा कर उस में घुस गया. थोड़ी देर बाद वह फैजान को ले कर नीचे आ गया. हाजी फुरकान तीनों भाइयों को ले कर घर की बैठक में चले गए.

‘‘बेटा, परेशान और पशेमान होने की कोई जरूरत नहीं है. अली मियां की मजार पर बैठने वाले मुजाविर गफूर मियां को तुम जानते ही हो. हर मर्ज का इलाज है उन के पास. वे और उन के साथी जाबिर मियां तुम्हें सभी दुखों से नजात दिला देंगे. जनाब जाबिर मियां तो तावीजगंडों और झाड़फूंक में माहिर हैं, माहिर, समझे. अपनी रूहानी ताकतों से अम्मा का पता लगा लेंगे. अगर जिंदा हुईं तो उन्हें घर आने पर मजबूर कर देंगे और यदि मर गई होंगी तो उन की रूह को सुकून दिला देंगे,’’ हाजी फुरकान ने ऐसी शान से कहा जैसे उन्होंने रेहान और उस के भाइयों के दुख दूर करने का ठेका ले रखा हो.

‘‘चचाजान, गफूर मियां और जाबिर मियां से जल्दी मिला दीजिए,’’ जुबैर तपाक से बोला.

‘‘जब तुम सब ने मुझ पर भरोसा किया है तो समझ लो कि तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो गया. मैं कल ही गफूर मियां और जाबिर मियां को बुला लाऊंगा,’’ भरोसा दे कर हाजी फुरकान चले गए.

अपने अब्बू और चाचाओं की ये सारी बातें रेहान की बड़ी बेटी आरजू भी सुन रही थी. 12वीं कक्षा में पढ़ रही आरजू अपनी दादी अम्मा से काफी घुलीमिली थी. एक तरह से वह उन्हें ही अपनी मां समझती थी. वह अपनी दादी को बहुत चाहती थी और दादी अम्मा कह कर पुकारती थी. दादी अम्मा के चले जाने से सब से अधिक दुख उसी को था. अब्बू और चाचाओं के दोहरे व्यवहार को देख कर उस का कलेजा फटा जा रहा था. जब से उस ने होश संभाला था तब से घर में दादी अम्मा की उपेक्षा और दुर्दशा देख रही थी.

जब तक अम्मा घर पर थीं तो बेटों ने उन की महत्ता नहीं समझी. अब उन्हें उन की कमी दुख दे रही थी. अलग रहते हुए भी अम्मा पूरे घरबार के टब्बर को कैसे समेटे रहती थीं. शादीब्याह और दूसरे कार्यक्रमों में जब बेटे अपनी बीवियों के साथ कुछ दिनों के लिए चले जाते तो अम्मा ही उन के बच्चों को ऐसे संभालतीं जैसे मुरगी अपने चूजों को परों के नीचे सुरक्षा देती है. घर के कार्यक्रमों में भी उन की मौजूदगी से सब निश्चिंत से हो जाते.

कई बार हलकीफुलकी बीमारी में तो बच्चे दादी अम्मा की गरम गोद, उन की कड़वे तेल की मालिश और घरेलू नुस्खों से ही ठीक हो जाते थे. अब उन के चले जाने से घर का भारीपन कहीं खो गया था. लगा, जैसे घर की छत उड़ गई हो और दीवारें नंगी हो गई हों. बेटेबहुएं पछता रही थीं कि काश, वे घर के बुजुर्ग का मूल्य समझ पाते. दादी अम्मा के साए में घर और बच्चों को सुरक्षित समझते हुए बेटे और बहुएं अपनेआप में मगन थे. लेकिन अब सुरक्षा का आवरण कहीं नहीं था. घर के सूनेपन और बच्चों के पीले चेहरों ने बेटों और बहुओं को झकझोर कर रख दिया था. उन्हें पछतावा हो रहा था कि जो अम्मा अकेले पूरे घर को समेटे हुए थीं, उन्हें पूरे घर के लोग मिल कर भी क्यों नहीं समेटे रख सके. पूरा घर आह भर रहा था, काश, दादी अम्मा वापस आ जाएं.

अम्मा का चरित्र कुछ इस तरह आंखों के सामने चित्रित होने लगा: दादी अम्मा जब इस घर में आई थीं तो उस समय उन की उम्र यही कोई 19 वर्ष की रही होगी. मांबाप ने उन का प्यारा सा नाम रखा था, सकीना. पिछड़े घराने से ताल्लुक रखने के कारण वे बस 5 दरजा तक ही पढ़ सकी थीं, लेकिन सुंदरता, गुणवत्ता और गुरुत्वता उन में कूटकूट कर भरी थी. मांबाप ने उन का विवाह महल्ले के 10वीं पास सुलेमान बेग से कर दिया था.

 Covid 19 बदलेगा जीने के ढंग

किटी ग्रुप उदास था , लॉक डाउन हुए इतना समय बीत चुका  था , एक दूसरे  को देखे जैसे जमाना बीत रहा था , ग्रुप में चैटिंग कुछ यूँ चल रही थी —
नीता – यार , कुछ तो करो , मर जायेंगे घर का काम करते करते , टी वी तो देखने का मन नहीं करता , हाय , हमारी किटी पार्टी ! कितने दिन  हो गए बाहर निकले , कबसे एक दूसरे को नहीं देखा , हम कब मिलेंगें , यार
मंजू ने लिखा – कोई रास्ता ढूंढो , भाई , बच्चे किसी न किसी से फ़ोन पर बिजी , हस्बैंड वर्क फ्रॉम होम , हम बस  वर्क ऑफ़ होम ही करते रह जायेंगें क्या ?
शोभा –सुनो , सब , आजकल बच्चों को  देख  रही हूँ , वे तो  जरा  बोर  नहीं होते , ज़ूम एप्प पर मस्त वीडियो कॉल करते हैं , खूब मस्ती चल रही है , दोस्तों के साथ , यह तो हम भी कर ही सकते  हैं न .
गीता — जल्दी बताओ , क्या करना है.

कविता — एक दिन और एक टाइम तय कर लो , सब कब फ्री हैं , वीडियो कॉल करते हैं , गप्पें मारते हैं , कितने दिन हो गए , यार रूपा ने लिखा — वाह , यह ठीक है , और एक काम और करेंगें , सब थोड़ा तैयार भी हो जायेंगें , कितने दिन हो गए टी शर्ट , पाजामे में , लिपस्टिक याद कर रही होगी , मैडम जिन्दा भी है या चली गयी.

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उसकी इस बात पर ढेर सारी हसने की इमोजी आयीं , फिर क्या था , तय हो गया , हर मंडे अपने उसी किटी टाइम शाम चार बजे सब वीडियो कॉल पर रहेंगी , और घर वालों से साफ़ साफ़ कह दिया जायेगा कि इस दो  घंटा उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. थोड़े बहुत प्लान बनाये गए , ख़ुशी ख़ुशी उस दिन चैटिंग ख़तम की गयी. मंडे को दोस्तों के साथ टाइम बिताने के उत्साह  में तीन दिन बीत गए , सब वीडियो कॉल पर आयीं , एक दूसरे को देख चहक उठीं , खूब फ्लाइंग किस्सेस दिए गए , सब बहुत दिन बाद थोड़ा तैयार हुई थी , बहुत ही फील गुड वाला टाइम था , अंजना ने अपने हाथ में कॉफ़ी का कप ले रखा था , उसे देख  सब अपने लिए भागकर  कुछ न कुछ ले आयीं , कोई फ्रूटी , कोई जूस , अब सब के हाथ में कुछ न कुछ था. उसके  बाद शुरू हुआ बातों का दौर जिसने सबके अंदर एक जान सी डाल दी , कितने दिन बाद सबको जैसे एक मी टाइम वाली ख़ुशी हुई. वरना तो इतने दिन घर में बिना किसी मेड के घर मैनेज करना आसान नहीं था , सब थक चुकी थीं पर ये दो घंटे उन्हें जिस एनर्जी से भर गए , वे ही जानती थीं , तय हुआ , हर मंडे ऐसे ही मिला जायेगा.

नमिता का कोई किटी ग्रुप जैसा तो कुछ नहीं था , पर लॉक डाउन के इन दिनों में उसे भी बोरियत हो रही थी , होती भी क्यों नहीं , समय ही ऐसा था , उसने अपने बच्चों को अपने फ्रेंड्स के साथ लूडो खेलते हुए देख अपनी तीन फ्रेंड्स को लूडो खेलने के लिए तैयार कर  लिया , चारों अब दूर दूर होकर भी अपने अपने फ़ोन में लूडो खेलना बहुत एन्जॉय करने लगीं , कभी सब्जी काटते हुए लूडो खेल ली जाती , कभी रोटी बेलते हुए फ़ोन पास में रख लूडो चलती रहती , चारों खुश , काम खेलते खेलते निपट जाता , दोस्तों के साथ मन बहल जाता तो मूड फ्रेश हो जाता.
फॅमिली के साथ टाइम तो आप बिता ही रहे होंगें , रात दिन  उनके साथ ही हैं , दोस्त याद आते  होंगें ।  covid 19 के समय आने वाले समय में बाहर निकलने , किटी पार्टी , दोस्तों के साथ  मस्ती करने के तरीके कुछ समय के लिए तो बदलेंगें ही , बाद में भले ही जीवन अपने पुराने ढर्रे पर चल निकले , पर वर्तमान में भी जीवन को रोचक बनाने के लिए कोशिशें तो जारी रखनी ही पड़ेंगीं । अभी सबके जीवन में जो बदलाव आये हैं , उनसे कोई खुश तो नहीं है, जीवन रुका रुका सा  तो लग ही रहा है , तो कुछ  ऐसा करके देखें —

— अब तक अपनी व्यस्तता से जिन दोस्तों  , रिश्तेदारों से एक  दूरी  सी बन  गयी थी , उन्हें फ़ोन करें , वीडियो कॉल भी कर सकती हैं.
–दोस्तों के साथ नेटफ्लिक्स पार्टी करें , सबकी पसंद की एक मूवी एक साथ देखें , इसमें चैट का ऑप्शन भी होता है , दोस्तों के साथ मूवी देखते हुए उनसे चैट करते हुए एन्जॉय कर सकते  हैं.
— अगर आपको लिखने का शौक  है तो अपनी इस समय की यादों को अनुभवों को  लिख लें , आने वाली पीढ़ी के लिए इसे सहेज कर रख सकते हैं.
—-अगर अब तक पढ़ने का शौक पूरा करने के लिए टाइम नहीं मिल  पा रहा था , तो अब यह शौक  पूरा करने में देरी  न करें.

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—आजकल बहुत से ऑनलाइन कोर्स चलते रहते हैं , कोई भी नयी भाषा सीखने में रूचि हो तो आराम से घर में बैठ कर सीख सकती हैं.
——एक्सरसाइज  को हेल्थ के साथ साथ सोशल एक्टिविटी भी बनाया जा सकता है , फेस टाइम पर अपने फ्रेंड्स के साथ वर्क आउट कीजिये या अपनी फॅमिली के साथ ऑनलाइन डांस पार्टी करें , आधा घंटा भी डांस करें तो बढ़िया एक्सरसाइज हो जाएगी. हाउस पार्टी ऍप के बारे में जानकारी ले लें.
—कोविद १९ ने हमें जिन परेशानियों में डाल दिया है , उससे निपटने में इस तरह कुछ मन लगने पर अकेलापन कम  लगेगा , दोस्तों को देखने , उनके साथ  जी भर कर हसने हसाने से दिल  हल्का होगा.यह तो हुई  खाली समय में मनोरंजन की बातें , अब बात करते हैं इस समय अपने गुणों , शौकों का सदुपयोग करने की , उन्हें रिवाइव करने की , अब महिलाओं को घर में रहकर ही कुछ पैसा बचाने या कमाने के हुनर सीखने होंगें क्योकि कोरोना की वजह से आय अवश्य कम होगी चाहे खर्च कम हो जाएँ , तो आइये , नजर डालते हैं कुछ ऐसे कामों पर जिन्हे करते हुए आप एन्जॉय भी कर सकती  हैं और आर्थिक रूप से फ़ायदा भी उठा सकती हैं —

—-घरेलू पिसे मसालों का मार्किट बहुत बड़ा  है , आप घर पर इन्हे तैयार करके थोक मार्किट या रिटेल में सप्लाई दे सकते हैं । तरह तरह के अचार, घी , बड़ी और पापड़ तैयार करके भी बेच सकते हैं , इनकी खूब मांग होती है , आसपास के लोग तो ऐसे ही आपसे खरीद लेंगें.जैम , जेली , सौस भी बना कर बेच  सकती हैं. अचार और घी ऐसी चीज हैं जिन्हे हर मौसम में खरीदा जाता है.
—-घर का बना खाना हमेशा ही पसंद किया जाता है. अगर आप अच्छा खाना बनाना जानती हैं तो आपके पास टिफ़िन सर्विस शुरू करने का एक अच्छा  मौका है. आप अपने आसपास ऑफिस , स्टूडेंट्स और कर्मचारियों के लिए टिफ़िन सर्विस  शुरू कर सकती हैं. बड़े और मध्यम दर्जे के शहरों  में टिफ़िन सर्विसेज की बहुत मांग है.

—-ब्यूटी पार्लर महिलाओं का सबसे फेवरिट बिजनेस माना जाता है , आपको इसे शुरू करने के लिए किसी बड़ी  जगह की भी जरुरत नहीं है. आप ऑन  कॉल ब्यूटी ट्रीटमेंट पैकेज का भी काम कर सकती  हैं , कई महिलाएं आपको घर बुलाकर सर्विसेज ले सकती  हैं , इससे आपकी अच्छी  कमाई हो  सकती है.
—अगर आप पढ़ी  लिखी  हैं  और  जॉब करने की स्थिति में नहीं हैं तो घर में ही कोचिंग क्लास चला सकती हैं।  आप किसी एक सब्जेक्ट का बैच भी ले सकती हैं.
—अपने शौक  से पैसा कमा कर आपको संतोष  मिलेगा  क्यूंकि इस काम को करना और  सिखाना  आप सचमुच एन्जॉय करेंगीं. अगर आपको पेंटिंग , म्यूजिक , डांस , योग या कुकिंग आती है तो आप  हॉबी क्लासेस चलाकर अच्छा पैसा कमा सकती हैं.

-आपके अनुभव और आपके कॉन्टेक्ट्स आपको कंसल्टेंसी के फील्ड में आगे ले जा सकते  हैं. आज का सर्विस सेक्टर पहले से बहुत बदल जायेगा , अब हर सेक्टर की जरूरतें और  काम करने के ढंग बदलेंगे. यदि आप सही पद पर सही व्यक्ति का चुनाव करने में सक्षम हैं तो आप इस करियर के बारे में सोच सकती हैं.आप हस्तशिल्प , आर्ट एंड क्राफ्ट जैसी चीजें भी ऑन लाइन  बेच सकती  हैं. आप एक फेसबुक पेज के द्वारा अपने सामान की मार्केटिंग कर और किसी कूरियर सर्विसेज से गठजोड़ कर अपने होम डेकोर  आइटम्स , सजावट  के सामान का बिजनेस कर सकती  हैं.

—-बच्चों के साथ यदि आपको समय बिताना अच्छा लगता है , उनकी प्यारी बातें आपको खुश करती हैं तो क्रेच घर के कामों के साथ अन्य जरूरतों को  पूरा करने का एक अच्छा  आईडिया है , इससे आप कम  समय  में अच्छे पैसे कमा सकती हैं.एफिलिएट मार्केटिंग उसको कहते हैं जिसमे आप किसी दूसरी कंपनी के प्रोडक्ट को प्रोमोट करते हैं और बेचते हैं , एफिलिएट मार्केटिंग के लिए आपको एक वेब साइट बनानी होगी जिसमे आप किसी प्रोडक्ट के बारे में  आर्टिकल लिखेंगीं  और उसे सोशल मीडिया यानी फेसबुक और ट्विटर में शेयर करेंगीं , यदि कोई व्यक्ति आपकी वेब साइट में आकर वो प्रोडक्ट खरीदता है तो कंपनी आपको कमीशन के तौर पर प्रॉफिट देगी.

—अगर आपको लिखना पसंद है तो आप अपना एक ब्लॉग स्टार्ट कर सकती हैं और पैसा कमा सकती हैं , आप अपने ब्लॉग में कुछ भी लिख सकती हैं जैसे हेल्थ  केयर , पेरेंटिंग , बेबी केयर , ट्रेवल , खाना पीना , इत्यादि.अगर आप में कोई टैलेंट है तो आप यू ट्यूब के माध्यम से लोगों तक पहुँच सकती हैं , वीडियो में चलने वाले एड से आपको पैसा मिलता है. पर इसके लिए आपको एडिटिंग और स्क्रिप्टिंग की जानकारी  होनी चाहिएबहुत सारी  महिलाओं को सिलाई का शौक  होता है , टेलरिंग क्लास लेकर या अपना एक टेलरिंग उद्योग शुरू करके आप अच्छे पैसे कमा सकती  हैं.

 

Lockdown: हिना खान ने ऐसे बनाया लॉकडाउन को फनी, वायरल हुआ Video

लॉकडाउन  में  अपनी बोरियत को दूर करने के लिए आम आदमी से लेकर बॉलीवुड स्टार तक सभी अपना टाइमपास सोशल मीडिया के जरिए कर रहें है. कोई घर की सफाई करके, कोई लज़ीज डिश बना तो कोई फिटनेस पर जोर दे रहा है.  वहीं छोटे पर्दे की संस्कारी बहू हिना खान सोशल मीडिया पर  इंटरेस्टिंग वीडियो बना कर अपना और अपने फैंस का भरपूर मनोरंजन कर रहीं हैं.

हिना खान ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है. जिसमें वे आरती करती नजर आ रही हैं.  वाइट टी शर्ट के साथ उन्होंने सिर को दुपट्टे से कवर कर रखा है. हाथ में अगरबत्ती लिए इंस्टाग्राम, ट्विटर फेसबुक, टिकटॉक के साइन बोर्ड रख कर उनकी पूजा करते हुए दिख रही हैं. सामने दिए जल रहें है. इस वीडियो को शेयर करते हुए हिना खान ने कैप्शन में लिखा, ” क्वारंटाइन फन  टिकटॉक फन लॉकडाउन के देवता” . हिना की ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है.  उनसे पूछा गया कि वे क्या कर रही हैं, हिना खान ने कहा- कुछ नहीं, लॉकडाउन के देवताओं की आरती उतार रही हूं. हिना खान का ये दिलचस्प वीड‍ियो तेजी से वायरल हो रहा है.

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हाल ही में लॉकडाउन के बीच रमजान के आने पर हिना ने घर पर रोजे रखते हुए फैंस को अपने पिछले सभी रमजान के किस्से शेयर किए हैं और बताया है कि लॉकडाउन के चलते वो 20 सालों में पहली बार पुरी शिद्दत से रोजे रख पा रही हैं.

 

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छोटे पर्दे पर अक्षरा के रोल से फेमस हुईं संस्कारी बहू हिना खान, चर्चित शो ‘बिग बॉस ‘ में भी नजर आ चुकी हैं,   इसके अलावा हिना ने डायरेक्टर विक्रम भट्ट की फिल्म ‘हैक्ड’ से बॉलीवुड डेब्यू किया.

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हिना खान काफी समय से अपने पहले शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  के सुपरवाइजिंग प्रोड्यूसर रॉकी जायसवाल के साथ रिलेशनशिप में है. हिना खान सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं, अक्सर अपने फोटोज और वीडियोज इंस्टाग्राम पर शेयर करती रहती है.

लॉकडाउन में शराब दुकान खुलने से भड़के ये एक्टर्स, ट्वीट कर सुनाई खरीखोटी

कोरोना वायरस की जंग खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहै है. देश का हर व्यक्ति इस महामारी से परेशान है. लोग खुद के बचाव के लिए अपने रोजमर्रा के काम से छुट्टि लेकर अपने घर पर रह रहे हैं. हालांकि इससे देश की आर्थिक स्थिति को बहुत नुकसान हो रहा है. सबसे ज्यादा शिकार इसके गरीब वर्ग के लोग हो रहे हैं. जो सुबह काम करने शाम को अपने परिवार का पेट भरते थें.

लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा कर दी गई है. लॉकडाउन का तीसरा चरण घोषित करते ही सरकार ने लोगों को कुछ खास तरह की छुट्ट भी दी है. जिससे लोगों का जीवन पटरी पर आ सके. ऐसे में सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए शराब की दुकान खुलने के आदेश दे दिए हैं.

वहीं कुछ लोग इससे खुश हैं तो कुछ लोग इसकी लगातार आलोचना कर रहे हैं. उन्हें शराब की दुकान खुलने पर दिक्कत हो रही है. इन्हीं में एक नाम जावेद अख्तर का शामिल है जिन्होंने ट्विट कर इस पर अपनी नाराजगी जताई है.

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कॉमेडियन कपिल शर्मा भी शराब के लिए लोगों की ऐसी मारामारी पर गुस्सा जताया. उन्होंने अपनी इंस्टास्टोरी में लिखा, यह लो सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी की तैसी। बेवकूफ लोग.शराब से ही कोरोनो को मारेंगे ये.

बॉलीवुड अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा ने इस फैसले की गलत बताते हुए अपनी इंस्टा स्टोरी पर लिखा, ‘मुझे समझ नहीं आता ऐसी क्या जल्दी थी जो शराब की दुकान खोली गयी और ये कोई जरूरत का सामान भी नहीं  ये बहुत ही खराब आइडिया है. इससे घरेलू हिंसा, बच्चों के प्रति हिंसा और माहौल ही खराब होगा।’

इनके साथ डायरेक्टर आश्विनी अय्यर और अभिनेता पारेश रावल ने भी गुस्सा जताया है. परेश रावल ने ट्विट करते हुए लिखा है कृप्या पीने के बाद गाड़ी सीधे अपने घर लेकर जाएं. कोई भी चीन से लड़ने नहीं जाएगा.

जावेद अख्तर ने ट्विट करते हुए लिखा है लॉकडाउन में शराब की दुकान खुलने से विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे.

फिल्म डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी  ने लिखा है इससे घरेलू हिंसा बढ़ जाएंगे. परिवार की शांति खत्म हो जाएगी.

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शराब के दुकान पर चार से ज्यादा लोग एक साथ में नहीं खड़े हो सकते हैं. वहीं सोशल डिस्टेश का खूब ध्यान में रखते हुए दुकान पर खड़े होना है. किसी भी तरह की कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

सरकारों का गरीब विरोधी चरित्र और प्रवासी मजदूर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महज 4 घंटे के नोटिस में पूरे देश में लाकडाउन की घोषणा की थी. इस कारण जो जहां थे वहीँ थम गए. लाकडाउन के कारण जिस तबके को सब से बड़ी समस्या झेलनी पड़ी वह प्रवासी मजदूर तबका था जो अपने गृहराज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश में गया था. 1 मई 2020, मई दिवस को केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया. यह फैसला लॉकडाउन के लगभग 37 दिन बाद लिया गया.

‘भूख के आन्दोलन’ के आगे मोदी सरकार का लाकडाउन फुस्स

जिस समय कोरोना बीमारी से पूरी दुनिया सहम गई थी, हमारा देश पूरा ठप हो गया था, और लोग अपने घरों में कैद हो गए थे. उस समय गरीब तबका बिमारी की परवाह किये बगैर सड़कों पर निकल पड़ा. जाहिर सी बात है कोरोना के डर से ज्यादा देश के गरीबों को भूख से मरने का डर था. यही कारण है कि प्रवासी मजदूरों ने लाकडाउन को तोड़ते हुए तीसरे दिन से ही चहलकदमी शुरू कर दी थी. पहले चरण में हजारों की संख्या में मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लम्बी यात्रा की. इस दौरान कई मजदूरों और उनके छोटे छोटे बच्चों ने भूख और थकान के कारण अपनी जान गंवाई. कईयों की रोड एक्सीडेंट में जान चली गई. दुधमुहे बच्चों से ले कर गर्भवती महिलाओं तक, जवान मजूरों से लेकर बुजुर्गों तक ने भूख और सरकार पर अति अविश्वास के कारण यह यात्रा शुरू की. इस का असर दिल्ली के आनंद विहार में इक्कठा हुए हजारों मजदूरों की संख्या से लगाया जा सकता है.

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इस का दूसरा चरण तब आया जब केंद्र सरकार ने कड़े फैंसलों से प्रवासी मजदूरों को पैदल अपने घर गांव जाने से रोका गया. यही नहीं रोकने के साथ साथ उन पर लाठी, डंडो का अमानवीय इस्तेमाल किया गया. इस के साथ ही देश में दुसरे चरण के लाकडाउन की घोषणा के बाद यह संघर्ष और भी तीव्र होता दिखा जब सरकार ने लाकडाउन को आगे के लिए बढाया. इस का असर यह हुआ की देश के अलग अलग हिस्सों से मजदूरों के छुपते छुपाए, या थोड़े बहुत दिखते दिखाते आन्दोलन चलने लगे. मुंबई में भी हजारों मजदूर बांद्रा स्टेशन के पास अपने गृहराज्य जाने की मांग को ले कर इकठ्ठा हुए थे और सरकार ने उन पर लाठियां भांजी. गुजरात के अहदाबाद और सूरत में भूख और बदइन्तेजामी से नाराज मजदूरों ने सड़कों पर आकर हंगामा काटना शुरू किया. हैदराबाद के आईआईटी में काम कर रहे कंस्ट्रक्शन मजदूरों ने सशक्त आन्दोलन से अपनी आवाज प्रशासन तक पहुंचाई. कहीं कहीं जगह फ़ूड रायट देखने को मिला, मजदूरों ने प्रशासन के साथ दो दो हाथ भी किये, आगजनी किया और मजदूरों की गिरफ्तारियां भी हुईं. इन में से कई विरोध अख़बारों की सुर्खियाँ बनी कईयों की आवाज मुक्कमल तरीके से पहुँच नहीं पाई लेकिन सामान्य बात यह कि इन सारे आन्दोलन में प्रवासी मजदूर अपने घर गांव वापस जाने की मांग करते रहे.

स्व-आन्दोलन(कार्यवाहियां)

देश में प्रवासी मजदूरों के इन आन्दोलन और चहलकदमियों में एक बात गौर करने वाली थी वह थी ‘सव-आन्दोलन’ की छाप. जाहिर है लाकडाउन के इस विकट समय में वह सारे नेता (तथाकथित) अपने घरों में कैद थे. मजदूरों की अगुहा कही जाने वाली वाम पार्टियां भी लाकडाउन के इस विकट समय में मजदूरों के मुद्दे उठाने में नाकामयाब रही. इस का उदाहरण इसी बात से लगाया जा सकता है कि केरल राज्य में वहां की सीपीम सरकार प्रवासी मजदूरों को “गेस्ट मजदूर” कहने भर से ट्विटर और फेसबुकिया लोगों को भ्रम में रखती रही. जबकि हजारों की संख्या में केरल में काम कर रहे प्रवासी मजदूर भी सरकार की बदइन्तेजामी और भूख से अपने गांव वापस जाने की मांग करते दिखाई दिए.

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लाकडाउन के इस विकट समय में जब सब से नीचे तबके का मजदूर अपने सब से खतरनाक दौर से गुजर रहा है उस समय तथाकथित नेताओं की जिम्मेदारी महज ट्विटर में ट्वीट कर देने भर तक सीमित हो गई. मजदूरों का नेताविहीन होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ले देकर मजदूरों की जो ख़बरें उठ उठ कर आती रही वह मजदूरों की ‘स्वकार्यवाहियों’ के माध्यम से ही आती रही. मजदूरों के रहनुमा नेता ऐसे मोके में गायब रहे, वह महज ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते पाए गए. या दान पुण्य के परोपकार का प्रचार करते पाए गए.

मजदूरों के लिए इन्तेजाम करने में सरकार नाकामियाब

यह बात जरुर है कि प्रवासी मजदूरों ने लम्बे संघर्ष के बाद वापस घर जाने की मांग में जीत हांसिल की है. लेकिन इसका एक परिणाम यह भी निकलता है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारें मजदूरों को न्यनतम जरुरत के इन्तेजाम करने में पूरी तरह नाकामियाब रही. वहीँ एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रोणब सेन ने सरकार को चेताया भी था की “अगर माइग्रेट वर्कर के पास खाना नहीं पहुंचा तो खाने को ले कर दंगों की संभावना बढ़ सकती है.” यह बात कहीं न कहीं सच भी साबित हुई. कई हिस्सों से उठते हुए यह ख़बरें देखने को भी मिली. जाहिर है ऐसे समय में सरकार भली भांति जानती थी कि प्रवासी मजदूरों के पास बेसिक सुविधाएं पहुंचाने का न तो उनके पास कोई व्यवस्था है, न ही योजना और न ही ख़ास इच्छा.

भारत में अधिकतर मजदूरों का सरकार के पास कोई पुख्ता डाटा मौजूद नहीं है, छोटे उद्योगों में काम करने वाले अधिकतर मजदूरों का ‘मजदूर कार्ड’ नहीं बना होता, अधिकतर मजदूर अपने अधिकारों से वंचित होते हैं. जाहिर है इनमें से कई मजदूरों को सरकार द्वारा तय किया गया ‘न्यूनतम मेहनताना’ तक नहीं मिलता, सेफ्टी मिजर्मेंट की बात ही छोड़ दें.

लाकडाउन के ऐसे समय में सरकार द्वारा रोजगार की सुरक्षा की गारंटी नहीं देना परेशानी का सबब बनता गया. रोजगार की हानि तो जीएसटी, नोटबंदी के कारण लाकडाउन के पहले ही खतरनाक स्थिति में थी लेकिन बचे कुचे रोजगार पर भी लाकडाउन के हथोड़े ने गहरी चोट की. अधिकतर छोटे उद्योग बंद होने के कगार पर पंहुच गए. इसके अलावा जिन शेल्टर होम में प्रवासी मजदूर रुके होते हैं वहां गंदगी और बदबू बुरी तरह से प्रभावित कर रही थी. सरकार द्वारा जो खाना मुहैया कराया भी जा रहा था वह अपर्याप्त व खराब गुणवत्ता वाला खाना था. इस के अलावा सरकार की राहत की अधिकतर सेवाएँ एनजीओ व परोपकारियों पर निर्भर थीं. यह सारी चीजें यह भी बता रहीं थी कि सरकार ने लाकडाउन को बिना तैयारियों के साथ देश में थोपा साथ ही देश के सबसे निचले तबके का ध्यान रखने में पूरी तरह नाकामियाब रही जिसका हर्जाना गरीब जनता को झेलना पड़ रहा है.

अमीरों का पक्ष लेती केंद्र सरकार

लाकडाउन के शुरू होने से पहले ही सरकार ने अमीरों के प्रति उदार रवैया दिखाना शुरू कर दिया था. न्यूज़ 18 की 4 मई की रिपोर्ट के अनुसार विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने संसद में बताया था कि चीन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने के लिए एयर इंडिया ने 2 विशेष उड़ानों (पहली 30 जनवरी दूसरी 1 फरवरी) में 5.8 करोड़ रूपए का बिल उठाया था. जिस में 1000 के करीब भारतियों को लाया गया. यात्रियों को इस विशेष सेवा के बदले कोई पैसा नहीं देना पड़ा. वहीँ 31 जनवरी से 22 मार्च तक कुल 5 विशेष उड़ाने भरी गई जिस में एयर इंडिया ने चीन, जापान और इटली से 1000 से अधिक भारतियों को रेस्क्यू किया. प्रोटोकाल के अनुसार इन सभी उड़ानों का वाणिज्य किराया नहीं लिया गया, बल्कि एयर इंडिया ने इस का बिल विदेश मंत्रालय को सोंपा. न्यूज़ 18 के सूत्रों के मुताबिक नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कहा कि इस तरह के हर निकासी अभ्यास के लिए राष्ट्रीय वाहक कदम उठाते हैं. इसलिए एयर इंडिया ने यह कदम उठाया और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीसीयू) के रूप में बिल का खर्चा उठाया गया. चीन के अलावा एयर इंड़िया ने इटली और रोम के लिए उड़ाने भरी जिस में करोड़ों रूपए खर्चा किया गया लिहाजा जिसका भुगतान सरकार ने ही किया. यह अति संपन्न लोग थे जिन्हें सरकार ने विदेशो से रेस्क्यू किया और उनका किराया खुद सरकारी खजाने से भरा.

इसके इतर कई ख़बरें आती रही जिसमें कोटा प्रकरण चर्चित मामला बना जिसमें नेताओं की गन्दी राजनीती भी देखने को मिली. यूपी सरकार ने कोटा से लगभग 8000 छात्रों का रेस्क्यू किया जिसमें खबर आई थी कि छात्रों को लाने के लिए एसी बसों का प्रबंध भी किया गया. वहीँ इसी प्रकरण में नितीश सरकार के झूटे नैतिक मूल्यों की पोल तब खुल गई जब उन्ही की सरकार के एक एमएलए को 16 से 25 अप्रैल तक का स्पेशल पास दिया गया ताकि वह कोटा में फंसी अपनी बेटी को वापस अपने महलनुमा बंगले में ला सके. वहीं आरटीआई वर्कर साकेत गोखले ने आरटीआई के माध्यम से चोंका देनी वाली जानकारी हांसिल की. जिसमें पता चला कि रिज़र्व बैंक ने भारत के 50 बड़े विलफुल डिफाल्टरों का लगभग 68000 करोड़ रुपया को बट्टे खाते में डाल दिया. बट्टे खाते यानी यह कर्ज माफ कर दिया गया है. इन 50 डिफाल्टरों में मेहुल चौकसी जैसे भगोड़ों का नाम भी शामिल था. यह एक तरफा अमीरों के लिए की गई कार्यवाही सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करते हैं.

केंद्र और राज्य सरकारों का टकराव

इस दौरान देश में आर्थिक तौर पर सब से निचले पायदान पर खड़े मेहनतकश आवाम ने अपने संघर्षो से जीत हांसिल की तो प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकार का गरीब विरोधी रवैया नग्न अवस्था में सामने आ चुका है. केंद्र सरकार ने जिन स्पेशल ट्रेन सर्विस (श्रमिक एक्सप्रेस) से प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की बात कही थी उसमें पहले कहा गया कि मजदूरों को यात्रा का खर्चा नहीं देना पड़ेगा यात्रा मुफ्त में करवाई जाएगी. यात्रा का खर्चा राज्य सरकारें वहन करेंगी. जो अपने आप में केंद्र सरकार का गरीब लोगों के प्रति गैरजिम्मेदराना रवैय्या दिखाता था.

जाहिर सी बात है ज्यादातर प्रवासी मजदूर आर्थिक तौर पर पिछड़े गृहराज्य से दुसरे राज्यों में काम के लिए पलायन करते हैं, अगर केंद्र सरकार इस तरह पूरा खर्चा राज्य सरकारों पर लादती है तो पहले ही आर्थिक मार झेल रहे राज्यों में और बोझ पड़ना निश्चित है. इस में यूपी, बिहार, झारखंड, छतीसगढ़, उडीसा इत्यादि राज्य आते हैं. इसलिए विपक्षी पार्टियों ने ट्रेन के किराया को ले कर आवाज उठाना शुरू भी कर दिया. इसके अलावा भाजपा के इतर विपक्षी सरकारों को इस बात की चिंता होने लगी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक संबंध में उन्हें केंद्र से इसका लाभ नहीं मिल पाएगा. जबकि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है उन्हें केंद्र सरकार मदद मुहैय्या करा सकती है.

फिर से अधर में अटके मजदूर

वो कहते है न आसमान से गिरे खजूर में अटके, यही हिसाब इस समय प्रवासी मजदूरों का हो चला है. सरकारें (केंद्र तथा राज्य) इन्हें फुटबाल की तरह यहां से वहां लतियाने में लगी है. केंद्र और राज्य के आपसी टकराव से एक बार फिर प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई है. अपने घरों के लिए स्टेशन की तरफ पहुंचे कई मजदूरों को वापस निराशा से लौटना पड़ा जब उन्हें पता चला कि सरकार उन्हें उनके घर पहुंचाने के लिए किराया वसूल रही है. कई रिपोर्ट्स आई है जिसमें बताया जा रहा है जितना किराया रेलवे चार्ज करता है उससे कई अधिक गरीब प्रवासी मजदूरों से लिया जा रहा है. रेलवे ने जो आदेश जारी किया है उसमें साफ़ लिखा है कि किराया मजदूरों से वसूल किया जाएगा.

आलोचनाओं के बाद रेल मंत्रालय ने कहा कि “भारतीय रेलवे प्रवासी मजदूरों से सिर्फ सामान्य चार्ज वसूल रही है.” साथ ही रेलवे कह रही है कि “जब मजदूरों को छोड़ दिया जाता है तो ट्रेन खाली वापस आती हैं. यात्रा के दौरान मजदूरों का सोशल डिस्टेंस का ख़याल रखा जा रहा है और उन्हें खाने पीन दिया जा रहा है.”

रेलवे की तरफ से यह बयान अति निंदनीय और अमानवीय है देश की जनता ने उम्मीद है अंग्रेजी हुकूमत को नहीं चुना है. जो गरीब किसानों से खून चूस लगान वसूल करे, जो गरीब लोगों से बुरे समय में पाईपाई का हिसाब और वसूली का काम करे. रेलवे की तरफ से लिया जा रहा यह “सामान्य किराया” उन गरीबों से वसूला जा रहा है जिनका काम पिछले दो महीनो से ठप पड़ा है, बेरोजगारी सर पर बैठी है, भूख और थकान से शरीर बेहाल हो चुका है और जो अंतिम पाई थी वह भी ख़त्म हो चुकी है. जाहिर है जो किराया विदेशों से लोटे अमीर भारतीयों से नहीं लिया गया तो गरीब मजदूरों से सरकार द्वारा किराया लेना शर्मशार कर देने वाला कदम है. एक जिम्मेदार सरकार को चाहिए कि विपदाओं के समय में देश के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों की जरूरतों को अपने प्राथमिक मुद्दे बनाए, यही समय है की सरकार पीएम केयर में जनता के किये दान की पोटली खोले और गरीब मजदूरों को बगैर समस्या के घर पहुंचाने का काम सुनिश्चित करे.

Crime story: आंखों में खटका बेटी का प्यार

राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…   राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने

टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’  ‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया.

थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे.

जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं.

प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा.

इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी.

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दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले.

जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था.

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प्रीति रोज कालेज जाती थी. एक दिन रास्ते में खड़ा हो कर वह प्रीति का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में प्रीति आती दिखाई दी. उसे देखते ही राहुल के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. जैसे ही उस की नजरें प्रीति से टकराईं, उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. प्रीति ने उसे देख लिया था. वह राहुल के पास आ कर धीरे से मुसकराई और सामने से गुजर गई.

राहुल ने भी प्रीति के पीछे अपने कदम बढ़ा दिए. उस ने आसपास देखा और फि़र आहिस्ता से उसे आवाज दी, ‘‘प्रीतिजी!’’

प्रीति को भी आभास था कि राहुल उस के पीछे आ रहा है. लिहाजा चौंकने के बजाय उस पर नजर पड़ते ही प्रीति बोली, ‘‘त…तुम, मेरा मतलब आप..?’’

‘‘पहला संबोधन ही रहने दो, मुझे वही अच्छा लगता है.’’ राहुल ने उस के बराबर में आते हुए कहा.

‘‘सम्मान में बोलना चाहिए,’’ प्रीति बोली.

‘‘खैर छोडि़ए इन बातों को.’’ राहुल ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा,‘‘आज इतनी देर कैसे हो गई आप को?’’

‘‘रात देर तक जागती रही, इसलिए सुबह देर से आंख खुली.’’ प्रीति ने शोखी से जवाब दिया.

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सका, सुबह के वक्त नींद आई.’’

‘‘क्या रात भर पढ़ते रहे?’’

‘‘हां, रात भर मैं तुम्हारे चेहरे की हसीन किताब अपनी आंखों के सामने रख कर पन्ने पलटता रहा.’’ राहुल ने कहा तो प्रीति ने शरमा कर अपना चेहरा झुका लिया. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘इस तरह की बात न करो.’’

‘‘क्यों, क्या मेरी बात अच्छी नहीं लगी?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. आप की बातें रात को मुझे परेशान करेंगी. अब आप जाओ, कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा.’’

प्रीति चौंकी,‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि कल फिर मिलोगी.’’

‘‘देखूंगी.’’ कह कर प्रीति आगे बढ़ गई. राहुल उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन राहुल का किसी काम में मन नहीं लगा. रात भी जैसेतैसे गुजरी. अगले दिन वह फिर उसी निर्धारित जगह जा पहुंचा. थोड़ी ही देर में प्रीति वहां आई तो वह भी उस के साथ हो लिया.

‘‘एक बात कहूं प्रीति?’’

‘‘कहो.’’

‘‘किसी से मिलने की चाहत हो या उस की एक झलक पाने की तड़प, बहुत अजीब सा लगता है न?’’ राहुल ने गंभीरता ने कहा तो प्रीति बोली, ‘‘पहेलियां क्यों बुझाते हो? जो कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सच कह दूं.’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और…’’ राहुल कुछ और भी कहना चाहता था, लेकिन प्रीति ने अपनी तर्जनी उस के होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘सड़क पर सब को सुनाओगे क्या?’’ इसी के साथ उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई.

राहुल की खुशी का पारावार न रहा. वह प्रीति से बोला, ‘‘मेरी बात का जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘क्या जवाब दूं?’’ प्रीति ने उल्टा प्रश्न किया.

‘‘जो तुम्हें अच्छा लगे.’’ राहुल बोला.

‘‘मुझे तो सभी कुछ अच्छा लगता है.’’

‘‘फिर भी.’’

‘‘इतने नासमझ तो नहीं हो, जो आंखों की भाषा भी न पढ़ सको. जरूरी नहीं कि जुबां से प्यार का इजहार किया जाए.’’

प्रीति की बात सुनते ही राहुल खुशी से झूम उठा. उस ने आसपास देखा, फिर प्रीति की कलाई पकड़ कर उस ने धीरे से दबा दी.

राहुल के ऐसा करने से प्रीति के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने जल्दी से अपनी कलाई छुड़ा ली.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो, प्रीति.’’

‘‘देखने वाले की नजर अच्छी हो तो सभी अच्छे लगते हैं.’’

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को हसरत भरी नजरों से देखा और अलगअलग रास्तों पर चले गए. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. हालांकि दोनों अपने प्रेमसंबंधों को ले कर काफी सावधानी बरतते थे. मगर गांव में उन्हें ले कर कानाफूसी होने लगी थी.

दूसरी तरफ प्रीति ने हिम्मत कर के अपनी मां रमा से राहुल से शादी करने की बात बताई तो वह चीखती हुई बोली, ‘‘करमजली, इसी दिन के लिए तुझे पालपोस कर बड़ा किया था कि तू सरेराह नाक कटवाती घूमे. फिर जिस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं, उस के बारे में बात करना ही बेकार है.’’

रमा उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, देख हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, इसलिए तुझे अच्छी शिक्षा ही देंगे. मेरी बात मान कर उसे भूल जा. वैसे भी रिश्ते में तू उस की मौसी लगती है, इसलिए तेरा विवाह उस से नहीं हो सकता. अपनी बिरादरी में कोई अच्छा लड़का देख कर तेरी शादी धामधाम से करेंगे.’’

‘‘तो एक बात मेरी भी कान खोल कर सुन लो. अगर हमारे दरवाजे पर राहुल के अलावा कोई और बारात ले कर आया तो इस घर से मेरी अर्थी ही उठेगी.’’ कह कर प्रीति पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई. उस के बाद वह हिचकियां लेकर रो पड़ी.

इन सब अड़चनों के बीच प्रीति और राहुल काफी चिंताग्रस्त रहने लगे. इन्हीं परेशानियों से घिर कर राहुल ने प्रीति के पिता राजू से जब विवाह की बाबत बात की तो वह एकाएक भड़क उठे, ‘‘अभी तक लोगों से तुम्हारी आवारगी के बारे में ही सुन रखा था, तुम तो चरित्र के भी गिरे निकले. तुम दोनों के बीच ऐसा रिश्ता है कि शादी तो संभव ही नहीं है. कान खोल कर सुन लो, आज के बाद तुम मेरी बेटी से नहीं मिलोगे.’’

राजू जानता था कि लाख चेतावनी के बाद भी दोनों मानेंगे नहीं, मिलेंगे जरूर. इसलिए वह प्रीति को अपने साथ सूरत ले गया. वहां एक निजी स्कूल में उस की अध्यापिका के पद पर नौकरी लगवा दी. राहुल भी दिल्ली चला गया और वहां प्राइवेट नौकरी करने लगा.

राहुल और प्रीति मिल तो नहीं पाते थे लेकिन मोबाइल पर बातें कर लेते थे. इस बातचीत के दौरान ही दोनों ने परिजनों से बिना बताए विवाह करने का फैसला कर लिया.

राहुल दिल्ली से सूरत गया. वहां दोनों ने एक मंदिर में विवाह कर लिया. राहुल की उम्र 21 वर्ष से कम थी, इसलिए कोर्ट मैरिज नहीं हो सकती थी. इस की भनक राजू को लग गई. वह प्रीति को ले कर अपने गांव वापस आ गया. आननफानन में प्रीति का विवाह प्रतापगढ़ के सांगीपुर थाना क्षेत्र के पूरे बक्शी गांव में तय कर दिया.

प्रीति बेचैन हो उठी. उस ने राहुल से बात की तो राहुल ने उसे घर वालों से विवाह का विरोध करने से मना कर दिया. उस ने कहा कि वह विवाह से पहले की रस्में कर ले और विवाह को कुछ समय तक टालने की कोशिश करे. जब तक विवाह का समय आएगा, तब तक उस की उम्र 21 वर्ष हो जाएगी. फिर दोनों किसी तरह से कोर्ट में जा कर विवाह कर लेंगे. प्रीति इस के लिए तैयार हो गई.

15 मई, 2019 को प्रीति के लापता होने पर उस के चाचा राजेश  वर्मा ने अंतू थाने में प्रीति के गुम होने की तहरीर दी. थानाप्रभारी संजय यादव ने प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन प्रीति का कोई पता नहीं चला.

समय बीतता चला गया. 11 नवंबर, 2019 को थाना अंतू के गांव पूरब निवासी काबीना मंत्री के रिश्तेदार सर्वेश उर्फ विक्की सिंह पर उस के पोल्ट्री फार्म के पास जानलेवा हमला हमला हुआ, जिस पर उसी दिन अंतू थाने में 307 आईपीसी में मुकदमा दर्ज हो गया.

जांच के दौरान हमले में चिह्नित हुए अजय पासी निवासी टेकनिया, थाना सांगीपुर व पवन सरोज निवासी नेवादा, थाना सांगीपुर. दोनों हमलावरों पर पुलिस द्वारा 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया.

इस केस पर एसटीएफ को भी लगाया गया. 11 फरवरी, 2020 को एसटीएफ के इंसपेक्टर हेमंत भूषण और उन की टीम ने अंतू थाना इंसपेक्टर मनोज तिवारी की मदद से दोनों ईनामी बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि अजय पासी गांव नंदलाल का पुरवा की प्रीति से एकतरफा प्यार करता था. लेकिन प्रीति काफी दिन से लापता है. प्रीति के चाचा राजेश वर्मा के साथ विक्की भी प्रीति की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने गया था.

अजय ने समझा कि विक्की सिंह ने ही प्रीति को गायब कराया है. उस के बाद पवन ने सरोज व एक अन्य साथी बाबू के साथ कई दिन तक विक्की सिंह की रेकी की फिर 11 नंवबर को उस ने विक्की सिंह पर कई राउंड गोलियां बरसाई. विक्की को मरा समझ कर दोनों फरार हो गए. विक्की इस हमले से बुरी तरह घायल हुआ था.

इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने गहराई से जांच की तो पता चला कि लापता प्रीति वर्मा का प्रेम प्रसंग राहुल वर्मा से था. इस के बाद उन्होंने राहुल को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो राहुल ने जो कुछ बताया, उसे जान कर मनोज तिवारी को प्रीति के लापता होने का पूरा मामला समझ आ गया.

राहुल से पूछताछ के बाद 12 फरवरी को इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने प्रीति के पिता राजू वर्मा, चाचा राजेश वर्मा और जमुना प्रसाद वर्मा को हिरासत में ले कर पूछताछ की. उन्होंने प्रीति की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया और हत्या के पीछे की वजह भी बयान कर दी.

प्रीति का विवाह तय होने के बाद 13 मई, 2019 को उस की सगाई की तारीख निश्चित हुई. 13 मई को वर पक्ष के लोगों के आने के बाद प्रीति की सगाई की रस्म अदा की गई. वर पक्ष के लोगों के जाने के बाद प्रीति ने राहुल को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया.

रात 8 बजे प्रीति घर से कुछ दूर जा कर राहुल से मिली.  घर पर प्रीति को एकाएक न पा कर प्रीति के पिता राजू और तीनों चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश उसे खोजने निकले. कुछ दूरी पर प्रीति राहुल से बात करते दिखाई दी. राहुल ने उन को अपनी तरफ  आते देख लिया. इस पर वह अपनी बाइक छोड़ कर वहां से भाग निकला.

प्रीति के पिता और चाचा उस के पीछे नहीं भागे, बल्कि प्रीति को मारतेपीटते हुए घर ले जाने लगे. राहुल काफी दूर जा कर बेबस खड़ा यह सब देखता रहा. जब वह लोग वहां से चले गए तो राहुल भी वहां से चला गया.

दूसरी ओर पिता और उस के तीनों चाचाओं ने घर ले जा कर प्रीति को लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. घर की महिलाएं बेबस खड़ी देखती रहीं. अगले दिन 14 मई की रात प्रीति के पिता और उस के तीनों  चाचा उस की लाश को पूरब गांव ले गए. वहां नदी किनारे सिंघनी घाट पर प्रीति की लाश को जला दिया और साथ में उस के मोबाइल को भी आग के हवाले कर दिया. प्रीति की लाश को जलाने के बाद उस की राख नदी में बहा दी गई.

अगले दिन राजेश वर्मा ने विक्की सिंह के साथ अंतू थाने जा कर प्रीति की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

काफी समय बीत जाने पर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया तो वे निश्चिंत हो गए कि प्रीति की हत्या रहस्य बन कर रह जाएगी, लेकिन गुनाह किसी न किसी तरह से सामने से आ ही जाता है. प्रीति के पिता राजू वर्मा और चाचा राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश का भी गुनाह सामने आ गया.

इंसपेक्टर मनोज तिवारी ने सभी के विरुद्ध भांदंवि की धारा 193/302/201/34/204 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक ब्रजेश फरार था, पुलिस उस की तलाश कर रही थी. पुलिस ने प्रीति के प्रेमी को मुकदमे में गवाह बना लिया था. द्य 5464 किलोमीटर लंबी

यलो रिवर जिस रफ्तार से शहरों, महानगरों में कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं,

उस से भी ज्यादा रफ्तार से जंगल घटते जा रहे हैं. इंसान का जीवन सब से ज्यादा प्रकृति पर निर्भर है, यह जानते हुए भी आदमी सब से ज्यादा दोहन प्रकृति का ही करता है. दूसरी ओर नगरों की बढ़ती भीड़ ने शहरी नागरिकों की शांति भांग कर दी है. स्थिति यह है कि साधनसंपन्न आदमी थोड़ा सा मौका मिलते ही ऐसी जगहों पर जाने की सोचने लगता है, जहां प्रकृति की गोद में शांति मिल सके. इसी के मद्देनजर सरकारों ने ऐसी जगहों को डेवलप करना शुरू कर दिया है, जो खूबसूरत भी हैं और मनोरम भी.

कुछ व्यवसायी ऐसी जगह जमीनें खरीद कर किराए पर देने के लिए होटल, मोटल या फिर बंगला, कोठी बनवा देते हैं. समय मिलता है तो वहां पर अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने जाते हैं. अब कुछ जगहों पर पर्यटकों के मद्देनजर पर्वतीय गांवों को भी विकसित किया जा रहा है.

यहां आप जो फोटो देख रहे हैं, वह रोमानिया के पेस्रा गांव का है. यूरोप में रोमानिया के कुछ गांव सब से सुंदर माने जाते हैं. जो लोग प्रकृति को पसंद करते हैं और कुछ दिन नगरों की आपाधापी से दूर रहना चाहते हैं. उन के लिए परी देश जैसे ये गांव छुट्टी बिताने के लिए सब से अच्छी जगह हैं. इन गांवों में

ताजी हवा और वातावरण के साथ स्थानीय भोजन का भी आनंद लिया जा सकता है.

कोरोना :सोनिया वर्सेस नरेंद्र मोदी  

कोरोना विषाणु महामारी ने देश में राजनीति को कुछ इस तरह तेज कर दिया है कि देखते ही देखते राजनीति के महानायकों के मुखोटे उतरने लगे हैं . इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है देशभर में 40 दिनों से दबे कुचले असहाय  मजदूर जब केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही स्पेशल ट्रेनों में अपने गंतव्य की तरफ रवाना किए जाने लगे तो उन्हें साफ-साफ कहा गया, आप अपनी अपनी टिकट कटा लो.

त्रासदी यह हो गई कि 40 दिनों तक बिना काम के कोरोना महामारी के इस  समय काल मे  तिल तिल कर किसी तरह जी रहे, अपना समय गुजारने वाले भीषड़   त्रासदी भोगने होने वाले गरीब मजदूरों  के पास स्पेशल ट्रेनों में टिकट कटाने के लिए पैसे नहीं थे और वे ट्रेन पर सवार  नहीं हो सके.

यह सारा घटनाक्रम बताता है कि कोरोना जैसे प्रलयंकारी महामारी के दरमियान भी देश की एक चुनी हुई सरकार किस तरह अपनी संवेदनशीलता   खो सकती है. जब इस लेखक ने आज सुबह-सुबह एक मैसेज सोशल मीडिया में देखा की ट्रेन में प्रवासी मजदूरों के लिए टिकट आवश्यक है! तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सोशल मीडिया का एक बनाया हुआ सफेद झूठ है.सच कहूं तो सोशल मीडिया में एक  ट्रेन की टिकट देखने के बावजूद यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि भारत सरकार इतनी क्रूर हो सकती है कि कोरोना महामारी के समय स्पेशल चल रही ट्रेन में भी टिकट कटाने का नियम कठोरता के साथ पालन करवाया जा रहा है.

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इस महामारी के समय तो सफर के साथ  भोजन आदि की  संपूर्ण व्यवस्था सरकार को करनी ही चाहिए.क्योंकि लोकतंत्र का तात्पर्य ही है और कहा भी जाता है कि लोकतंत्र, जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए है. मगर भारत देश का लोकतंत्र इस परिभाषा से बाहर निकलता दिखाई दे रहा है और ऐसा लगता है कि भारत का लोकतंत्र, पैसों के लिए, पैसों के खातिर की परिभाषा में तब्दील हो चुका है.

सोनिया गांधी की प्रभावशाली एंट्री

आज स्पेशल ट्रेनों की तथा कथा जब मीडिया में तैरने लगी.इधर  पहली बार अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोरोना  के इन 40 दिनों के समय काल में एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए यह ऐलान कर दिया कि प्रवासी मजदूरों से जिस तरह स्पेशल ट्रेन की किराया वसूले जा रहे हैं उसको देखते हुए कांग्रेस पार्टी मजदूरों का किराया अदा करेगी. जैसे ही यह समाचार प्रसारित  हुआ. सीधे-सीधे भारत सरकार और स्वयं को भारत सरकार का पर्याय मानने वाले नरेंद्र मोदी सकते में आ गए. और संपूर्ण देश में उनकी पद पिट गई. और यह पता चल गया कि नरेंद्र मोदी किस तरह देश की सरकार को चला रहे हैं. प्रति पखवाड़े एन केन प्रकारेण टेलीविजन पर आकर देश की जनता को बड़े-बड़े गुण सिखाने वाले नरेंद्र मोदी के मन की बात कुछ इस तरह संपूर्ण देश में उजागर हो गई कि यह सरकार मजदूरों गरीबों के प्रति किस तरह का सौतेला व्यवहार कर रही है. सरकार की क्या सोच है और कहां तक जाएगी.  सरकार का  अलोकतांत्रिक व्यवहार  इस घटनाक्रम में उजागर हो गया कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

गरीब असहाय मजदूर 40 दिन तक कैसे, कहां भूखा प्यासा अपना समय बिताता रहा  है और सरकार जब स्पेशल ट्रेन चलाती है तो पैसे लेने का नियम गाज बनकर उन पर गिर पड़ता है. और अगर यह कहा जाए कि सोनिया गांधी ने आज नरेंद्र मोदी को राजनीति की बिसात पर बुरी तरह झिंझोड़़ कर नीचे और नीचे गिरा दिया है तो यह कदापि  कभी गलत नहीं होगा.

 कोरोना “सत्ता ” को कर रहा है नग्न!

कोरोना महामारी के समयकाल में देश मे नेता, सता, पार्टियों को नग्न होते हुए हम देख रहे हैं. नेता और सरकारों की जो एक शर्म होती है वह मानो बिक चुकी है. यहीं पर आकर के दुष्यंत कुमार जैसे कवि जब सरकार को लताड़ते  हैं तो वह कालजयी रचना बन बन जाती है.

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यहां अगर यह कहा जाए कि भारतीय संविधान की जो मनो भावना है सरकार उसके खिलाफ जाकर एक व्यापारी की तरह व्यवहार करने लगी है तो यह  कदापि गलत नहीं होगा. एक तरफ मोदी जी चींख चींख कर कहते हैं कि देश की जनता के लिए केंद्र सरकार के पास राहत के पिटारे ही पिटारे हैं दूसरी तरफ इस भयंकर संक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार यह जगजाहिर करता  है कि सरकार अपने रास्ते से भटक गई है. शायद यही कारण है कि देश का मीडिया जन भावनाओं को समझते हुए करवट बदलते हुए दिखा. सीधे-सीधे आज इस मामले में कांग्रेस को सामने रखकर सोनिया गांधी का चेहरा दिखाते हुए, नरेंद्र मोदी को बैकफुट पर लेकर आ गया. आज यह मामला एक तूफान बन चुका है. और देश की केंद्र सरकार के बाद राज्य सरकारें हिल रही है. इस भूकंप के चपेट में आए हुए नीतीश कुमार ने माहौल समझते ही तत्काल टिकट के साथ ₹500 देने की भी घोषणा कर दी है.

इधर जहां भाजपा की  शिवराज सिंह चौहान सरकार ने यह घोषणा कर दी है कि प्रवासी मजदूरों के ट्रेन का खर्चा हम अदा करेंगे  वहीं राजस्थान, बिहार,छत्तीसगढ़ की सरकारों में भी आगे आकर खर्चा वहन करने की बात कही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने  यह संवेदनशीलता जाहिर करते हुए स्वयं को एक तरह से भाजपा और मोदी से अलग करते हुए अपनी छवि बचाने का प्रयास किया है. इस तरह प्रवासी मजदूरों का यह मुद्दा संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था और पार्टियों के ताने-बाने को जग जाहिर करता शायद लोकतंत्र पर हंस रहा है.

शराब माफियाओं के दबाव में सरकार

इंट्रो शराब पर लगने वाला टैक्स ऐसा है जिसमें अफसरशाही को भी खूब पैसा मिलता है और सरकार को भी सरकार को यह पैसा आम औरतों की पारिवारिक जेब से जाता है. लॉक डाउन की वजह से जब सब घरों की तनख्वाह या आमदनी आधी चौथाई रहने वाली हो, यह खर्च सरकार का पेट भरेगी. पर इससे घरेलू झगड़े और मारपीट की घटनाएं बढ़ेगी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आबकारी राजस्व में 75 फीसदी अधिक का लक्ष्य रखा है. लॉकडाउन में 40 दिन की बंदी से यह लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा था. शराब सिंडिकेट का दबाव था कि लक्ष्य पूरा करने के लिए शराब की दुकानें खोली जाए. क्योंकि शराब की कंपनियों ने इस साल ज्यादा बिक्री के लिए अपना उत्पादन अधिक कर दिया था. लॉक डाउन में यह सब बर्बाद हो रहा था.

उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉक डाउन में शराब  सहित भांग, बीयर और गांजा की भी दुकाने  खोलने का फैसला किया है. इस फैसले के पीछे उत्तर प्रदेश के शराब माफियाओं का दबाव है.

सरकार के अपने आदेश में कहा है कि यह दुकानें सोशल डिस्टनसिंग का पूरी तरह से पालन करते हुए खोली जाएगी और किसी को भी सार्वजनिक स्थलों पर शराब नही पीने दिया जाएगा. शराब बेचने वाले मास्क और ग्लब्स पहनेंगे.

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सरकार ने इस फैसले की वजह भी जनता के उपर ही ठोक दिया है. सरकार और उनके समर्थकों  ने जनता को यह समझने का काम किया है कि राजस्व की कमी को पूरा करने और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह फैसला करना मजबूरी है. उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भक्त अब अर्थव्यवस्था के नाम पर सरकार के फैसले का सर्मथन कर रहे है. इसके बाद भी समाज का बहुत बड़ा वर्ग प्रदेश सरकार के इस काम का विरोध कर रहा है.

शराब का उत्पादन बढ़ा पर बिक्री घटी
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल शराब के कारोबार से अधिक मुनाफा कमाने की योजना बना रखी थीं. इसी के अनुरूप शराब का अधिक उत्पादन भी कराने का लक्ष्य रखा गया. पिछले साल की तुलना में इस साल राजस्व 75 फीसदी बढ़ा दिया गया था. सरकारी आंकड़े देखें तो 2018-19 के अप्रैल और मई महीने में सरकार को 4,558 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था इस साल लॉक डाउन की वजह से बहुत कम हो गया.

विदेशी शराब का उत्पादन  पिछले साल अप्रैल-मई में 233 लाख विदेशी शराब की बोतलों का उत्पादन हुआ था इस साल इन दो महीनों में 372 लाख बोतलों की बिक्री का लक्ष्य रखा गया था. लॉक डाउन की वजह से यह बोतले बन्द ही रखी रह गई.

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इसी तरह देशी शराब की उत्पादन पिछले साल अप्रैल और मई महीने में 549 लाख लीटर हुआ था इस साल यह 699 लाख लीटर हुआ. इसके उत्पादन में 27 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई. बियर का उत्पादन भी इस साल 25 फीसदी ज्यादा हुआ. पिछले साल अप्रैल और मई महीने में इसका उत्पादन 553 लाख बोतल हुआ था जो इस साल 693 लाख बोतल हुआ. यह सब की बिक्री लॉक डाउन की वजह से बन्द हो गई थी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल आठ निवेशकों के साथ शराब उत्पादन का एमओयू साइन किया गया था. इनमें लॉर्ड्स, रैडिको खैतान, आईजीएल, धामपुर, वेव, सुपीरियर, राजस्थान लिकर के साथ तीन नई कंपनियों हरियावन-हरदोई, साथियावा- आजमगढ़ और स्नेह रोड बिजनौर को शामिल किया गया था.

आंकड़े बताते है कि त्रिवेणी, बलरामपुर, मनकापुर और बाभनन शराब फैक्टिरयों में भी उत्पादन बढ़ा है. बृजनाथपुर, गजियाबाद ऑर्गेनिक, नवाबगंज, गोंडा की जो शराब बनाने वाली फैक्ट्रियां बंद हो गईं थीं वे फिर से खुल गईं. लॉक डाउन की वजह से शराब की बिक्री काफी कम हो गई. इन कम्पनियों का सरकार पर दबाव था कि अगर शराब की बिक्री नही शुरू हुई तो यह कारोबार खत्म हो जाएगा.

शराब की लत छूटने के भय
असल मे शराब का कारोबार करने वालो को इस बात का भय था कि अगर लोगो मे शराब पीने की लत खत्म हो जाएगी तो उनको कारोबार फिर से फैलाना मुश्किल हो जाएगा.

लोक डाउन के दौरान 40 दिन जिन लोगो ने शराब का सेवन नहीं किया वो अब इसकी लत से बाहर आना चाहते थे. बहुत सारे लोगो ने यह सोच भी लिया था कि अब जब 40 दिन शराब नही पी है तो अब  शराब को हाथ नहीं लगायेंगे.

शराब माफियाओं को डर था अगर शराब पीने वालों की लत एक बार छूट गई तो वह घर और परिवार के दबाव में दोबारा शराब नहीं पिएंगे। ऐसे में उनके शराब का कारोबार पूरी तौर से बंद हो जाएगा. इसलिए जरूरी है कि जनता शराब पीने की लत को छोड़ ना सके और उसे लॉक डाउन में भी शराब पीने को मिले जिससे उसकी लत बनी रहे और शराब का धंधा चाक-चौबंद चलता रहे.

धर्म नही तो शराब सही
कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए जब लॉक डाउन का फैसला किया गया तो यह सोचा गया कि घरो में कैद लोग कैसे रहेगे. सरकार के सलाहकारों  ने तब रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक सीरियलों के पुनः प्रसारण की व्यवस्था को किया गया. रामायण के पुनः प्रसारण को इस तरह से प्लान किया गया था की 3 मई को जब दूसरे लॉक डाउन का समय पूरा हो जाये तब तक ही यह सीरियल चले. सलाहकार यह समझ रहे थे कि 3 मई में बाद लॉक डाउन नही करना पड़ेगा. अब जब 3 मई के बाद तीसरा लॉक डाउन आगे बढ़ाया गया तो धर्मिक सीरियलों की जगह शराब की दुकान खोलने की अनुमति दे दी गई. जिससे लोग बिना किसी तर्क वितर्क के नशे में कैद सरकार की हर बात को मानते रहे.

नशे का हर इंतजाम :
सरकार ने केवल शराब का नशा करने वालो का ध्यान नही रखा है बल्कि बियर और गांजा भांग जैसे नशे करने वालो के लिए भी सुविधा दे दी है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने आदेश में कहा है कि शॉपिंग मॉल के अलावा जो भी देशी-विदेशी शराब की दुकान है बीयर बार मॉडल शॉप और भांग की दुकानें हैं वह खोल दी जाएंगी जिससे शराब जैसे नशे करने वाले लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत ना हो और वह आराम से अपने नशे का सेवन कर सकें.

दरअसल सरकार यह जानती है कि कोरोनावायरस से लड़ने के लिए उसके इंतजाम काफी नहीं है ऐसे में वह जनता को पूरी तरीके से बरगलाना चाहती है. जिस समय कोरोना वायरस का संकट शुरू हुआ सरकार ने लोगों को धर्म के नाम पर संतोष दिलाने का काम शुरू किया. इसी के तहत पुराने समय के धार्मिक सीरियल जैसे रामायण और महाभारत टीवी पर पुनः दिखाया जाना शुरू किया गया.

ध्यान भटकाने की कोशिश
40 दिन के लॉक डाउन के बाद देश की जनता का मोह इन धार्मिक सीरियलों से पूरी तरह हट गया. अब वह कोरोना को लेकर तरह-तरह के विरोध करने लगे थे. वह सरकार से तमाम तरीके के ऐसे सवाल भी करने लगे जिनके जवाब सरकार के पास नहीं थे. सबसे बड़ा सवाल मजदूरों को लेकर था. जैसे मजदूर और छात्रों को ट्रेन या बस से लाने का फैसला 40 दिन बाद क्यों किया गया ?

यह फैसला लॉग डाउन शुरू होने से पहले क्यों नहीं किया गया. यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार के पास नहीं था ऐसे में सरकार ने कोरोनावायरस  की बदइंतजामी से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए अब उनको नशे की दुनिया में ले जाने के लिए उपाय करने लगी.

यही वजह है कि फैक्ट्री दुकान और दूसरे आवश्यक जगहों की जगह सबसे पहले लॉक डाउन 3 में शराब और नशे की कारोबार को करने वाले दुकानों को खोलने का फैसला किया गया. यही नहीं वैसे तो सरकार यह कहती है कि पुलिस बल कम है इसलिए अपराध रोकने का काम नहीं हो पा रहा पर यहां सरकार ने एक शराब की दुकान पर नियम और कानून का पालन कराने और सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर दो से चार पुलिसकर्मियों को तैनात करने का फैसला किया. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तकरीबन 1000 दुकाने हैं जो नशे का कारोबार करती हैं ऐसे में केवल लखनऊ में 2 से 4000 कर्म पुलिसकर्मियों की ड्यूटी इन दुकानों पर लगानी पड़ेगी. यह पुलिस बल कँहा से मैनेज होगा यह सरकार ने नही सोचा.

बढ़ेगी घरेलू हिंसा
लॉक डाउन के दौरान घरो में तमाम तरह की दिक्कते आ रही है. पति पत्नी के बीच तालमेल ना होने के मामले में तनाव के क्षणों में लोग एक दूसरे को सहन करने लगे थे. अब नशे की दुकानें खुलने के बाद यह सहनशीलता खत्म हो जाएगी. आपसी तनाव नशे की हालत में मारपीट औऱ लड़ाई झगड़े में बदल जाएंगे. आंकड़े यह बताते है कि घरेलू हिंसा के मामलों में नशे का अहम रोल होता है. जो पति नशा नही करता उसका परिवार में विवाद मारपीट की हालत तक नही पहुचता है.

नशे की दुकानें खोलने के बाद पति पत्नी के बीच होने वाले झगड़ों में मारपीट होने की संभावना बढ़ जाएगी. लॉक डाउन के दिनों में रोजी रोजगार ना होने की वजह से घरों में पैसों की कमी है. जिसकी वजह से तमाम जरूरतें पूरी नहीं हो रही है. ऐसे मामलों में तनाव का होना स्वाभाविक हो जाता है. कई बार आपस में वाद विवाद भी होता है. अब यह बात जवाब मारपीट और झगड़े तक पहुंचने लगेगा.

नशे की भेंट चढ़ेगा सरकारी सहायता का पैसा
शराब की दुकान खोलने का सबसे अधिक प्रभाव कमजोर वर्ग और पड़ेगा. आर्थिक रूप से यह वर्ग पहले से ही परेशान हैं. थोड़ी बहुत सरकारी सहायता और सुविधा मिलने की वजह से इनके घरों की गाड़ी किसी तरीके से चल रही थी. अब यह लोग नशा करने के लिए सरकारी सहायता मैं मिलने वाले पैसे का प्रयोग अपने नशे के लिए करेंगे. जिससे घरों में तनाव बढ़ेगा और लड़ाई झगड़े के हालात बनेंगे.

शराब पीने के लिए गरीब वर्ग हर तरीके के दूसरे उपाय भी करेगा जो समाज में अपराध बढ़ाने का काम करेंगे. ऐसे में साफ है कि सरकार का यह फैसला किसी भी दृष्टिकोण से जनता के हित में नहीं है. यह केवल जनता के पैसे शराब माफियाओं के कारोबार को बढ़ाने और सफेदपोश नेताओं की जेब भरने के काम आएगा.

 

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