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ऐ मच्छर, तू महान है: अदने से मच्छर की महिमा अपरंपार

ऐ मच्छर, तू महान है. तेरी महिमा का क्या वर्णन करूं? तू मनुष्यों के लिए प्रेरणास्रोत भी है तो मनुष्यों का पालक भी है. तू ने साबित कर दिया है कि कदकाठी और आकार के आधार पर किसी को हीन नहीं समझना चाहिए. कोई न कोई कवि कह डालेगा, ‘मच्छर कबहुं न निंदिए, जो होय सूक्ष्म आकार. इन की ही कृपा से, कितनों के सपने होय साकार.’ तुझ से सौ गुणे, हजार गुणे, लाख गुणे, करोड़ गुणे लंबेचौड़े प्राणी परिवर्तन के दंश से लुप्त हो गए पर तू है कि सदियों से, सहस्त्राब्दियों, लक्षाब्दियों से डटा हुआ है, अड़ा हुआ है, अडिग रह कर खड़ा हुआ है.

किसी भी परिवर्तन ने तेरे अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाला. और भविष्य में ऐसी कोई संभावना नजर भी नहीं आती. तुझ से वैसे तो हर जीव को प्रेरणा लेनी चाहिए पर मनुष्यों के लिए तेरा विशेष महत्त्व है. शायद, भारतवासियों ने तुझ से ही प्रेरणा ले कर हर परिवर्तन को सहना सीखा है. महंगाई कितनी भी बढ़ जाए, भ्रष्टाचार कितना भी बढ़ जाए, कानून व्यवस्था की जो भी हालत हो उस में भारतवासी खुशीखुशी जीना सीख चुके हैं.

तेरी खून चूसने की आदत ने भारतवासियों को खून चुसवाने का अभ्यस्त बना दिया है. तू तो फिर भी कितना खून चूस पाएगा-एक मिलीलिटर न डेढ़ मिलीलिटर. हम तो अब इस कदर अभ्यस्त हो गए हैं कि कोई हमारे शरीर का सारे का सारा खून भी चूस ले तो भी कोई फर्क न पड़े, शायद. शिक्षण संस्थान, अस्पताल, व्यवसायी, सरकार सभी खून चूसते हैं आम जनता का और लोग बगैर किसी गिलाशिकवा के अपना खून प्रस्तुत करते हैं सभी को, चुसवाने के लिए. इस प्रकार, हम देशवासियों को अनुकूलन की प्रक्रिया अपनाने में तू काफी मददगार रहा है.

मनुष्यों के लिए तू रोजगार का साधन है. तू ने मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने कितनी बीमारियां मनुष्यों को दान में दी हैं. और अब तो ‘बाय वन गेट वन’ की तर्ज पर किसी को डेंगू के साथ मलेरिया तो किसी को मलेरिया के साथ चिकनगुनिया दे रहा है. सुना है, अब तू कौंबो पैक में तीनों बीमारियां साथसाथ भी परोसने वाला है.तेरे द्वारा दिए गए मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया को लोग मनुष्यों के लिए हानिकर मानते हैं, विनाशकारक मानते हैं. लेकिन तेरी इन्हीं भेंटों के चलते न जाने कितनी पैथोलौजी लैब, कितने डाक्टर, कंपाउंडर, नर्स, अस्पताल, दवा दुकान आदि चल रहे हैं.

सुनने में आया है कि कई डाक्टरों की तो सैटिंग है पैथोलौजी लैब से. जांच की फीस में उन का हिस्सा तो होता ही है, कई बार मौसमी बुखार में भी वे डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की जांच के लिए सलाह दे देते हैं. यदि उन की पसंद की लैब के अलावा अन्य लैब से जांच करवाई जाए तो उसे वे मान्यता नहीं देते. उन की पसंद की लैब से हुई जांच रिपोर्ट को ही उन के द्वारा मान्यता दी जाती है. सुनने में यह भी आया है कि कई बार नियोजित तरीके से नैगेटिव रिपोर्ट को भी पौजिटिव दिखाया जाता है ताकि प्लेटलेट्स की गणना के लिए बीचबीच में जांच करवाई जाए और पैथोलौजी लैब तथा डाक्टर व उन के सहयोगियों की दालरोटी चलती रहे और उस में घी भी डलता रहे.

इतना ही नहीं, तू ने कितनों को भांतिभांति की अगरबत्तियां, कार्ड और क्रीम बनाने को प्रेरित किया. इन वस्तुओं के निर्माण में लगे पूंजीपतियों, श्रमिकों, परिवहन संचालकों, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं की आजीविका में तेरा अप्रतिम योगदान है. और तो और, तुझ से बचाव के लिए भांतिभांति के विज्ञापन बनते हैं, उन के द्वारा भी कई कलाकार, विज्ञापन एजेंसियां आदि रोजगार पाते हैं. कई कलाकारों को तेरे कारण रजत पटल पर आने का मौका मिलता है. तेरी मेहरबानी से सरकार ने मलेरिया विभाग बना कर कई लोगों को रोजगार दिया है. आगे चल कर डेंगू विभाग, चिकनगुनिया विभाग बनने की भी संभावना है. इस से भी कई लोग रोजगार पाएंगे. वहीं, फौगिंग के नाम पर, गड्ढे भरने के नाम पर, दवा छिड़काव के नाम पर न जाने कितने सरकारी कर्मचारियों, ठेकेदारों को तू सुखीसंपन्न बनाता है.

पर यार, तू थोड़ा सा नैगेटिव भी है वरना अभी तक तो तेरी पूजा शुरू हो चुकी होती. मनुष्य जिन चीजों से डरता है उस की पूजा करने लगता है. विनाशक नदियों को मां और भगवान का दरजा दिया जाता है. मनुष्य जिन व्यक्तियों से डरता है उन्हें माननीय, आदरणीय, परमादरणीय आदि कहने लगता है. यदि तेरा प्रकोप और बढ़ जाए तो शायद तेरी भी पूजा होने लगे. तेरे नाम के साथ भी माननीय, पूज्यनीय, आदरणीय. परमादरणीय जैसे शब्द प्रयुक्त होने लगें. तेरे नाम का भी चालीसा, सहस्त्रानाम, पुराण आदि का निर्माण हो. औल द बैस्ट, यार. 

पर यार, मेरी एक सलाह मानना- आरक्षण की मांग मत करना. अभी देश में स्थिति यह है कि जो दबंग है, अमीर है वह भी दबंगई से आरक्षण की मांग करने लगता है. विनाशलीला कर कहता है कि मैं कमजोर हूं, मुझे आरक्षण चाहिए. तू मसला जाता है, कुचला जाता है, लोग तुझ से नफरत करते हैं, तुझे अनेक रोगों का कारण मानते हैं. इन आधारों पर तू आरक्षण का हकदार तो है पर यह भी सोच, तेरे से कितने घर चल रहे हैं, कितने लोग प्रेरणा पा रहे हैं. इसलिए आरक्षण मत मांगना, भले ही दोचार बीमारियां और बढ़ा देना.

जहरीली आशिकी: भाग 3

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई.

उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी.

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इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया.

राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था.

ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया.

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इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है.

यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई.

उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया.

घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा.

घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

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संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी.

राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी.

घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी.

राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई.

पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया.

8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है.

अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए.

आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी.

जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है.

जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.

मैं अपने बौयफ्रैंड से प्रेम करती हूं,पिछले दिनों हम दोनो सारी हदें पार कर गए, अब मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 18 वर्ष की हूं. अपने बौयफ्रैंड से प्रेम करती हूं वह भी मुझ से प्यार करता है. पर पिछले दिनों हम दोनों प्रेम में इतना बह गए कि सारी हदें पार कर गए. उस दिन से वह मुझ से कटाकटा सा रहने लगा है और बात भी कम करता है जबकि मैं हमेशा उस के बारे में सोचती हूं. बताइए मैं क्या करूं?

जवाब

प्रेम के चक्कर में सारी हदें पार कर जाने का खमियाजा लड़की को ही भुगतना पड़ता है. लेकिन आप के मामले में लगता है उस दिन से अगर वह बात नहीं कर रहा है तो हो सकता है इस बात से परेशान हो कि हम ने सारी हदें पार कर दीं, कहीं कोई गड़बड़ न हो.

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आप अपने बौयफ्रैंड को समझाएं कि जरूरी नहीं कि सारी हदें पार करने पर कोई गड़बड़ हो ही. साथ ही उस के मन की वजह जानने की कोशिश करें. यह भी जानने की कोशिश करें कि कहीं वह अन्य किसी के चक्कर में तो नहीं या फिर आप से मजे लूट कर अन्य जगह मुंह मार रहा हो, अगर ऐसा नहीं है तो उसे बताएं कि प्रेम में यह सब चलता है. जरूरत से ज्यादा सोचना ठीक नहीं.

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अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

तीज 2022: मेकअप का बेस बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

कई लड़कियों को मेकअप करने का शौक तो होता है पर ठीक तरह से मेकअप बेस लगाना नहीं आता, इसलिये उनका चेहरा भद्दा दिखने लगता है. अगर आपको भी मेकअप बेस लगाने का सही तरीका नहीं मालूम तो हमारी आज की यह खबर आपके लिए ही है. अगर आप चाहती हैं, कि आपको एक बार देखने के बाद लोगो की नजरे केवल आप पर ही टिकी रहें, तो जरूरी है कि मेकअप करने से पहले सही तरीके से बेस लगाया जाए. आइये जानते हैं मेकअप बेस लगाने का सही तरीका-

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  1. अगर आप लंबे समय या फिर कड़ी धूप में बाहर रहने का प्‍लान बना रही हैं, तो आपको ऐसा मेकअप चाहिये जो देर तक टिका रहे. इसके लिये सबसे पहले अपने चेहरे पर बर्फ लगाएं. अपनी आदत में डाल लें कि जब भी गर्मी या मौनसून का सीजन हो तो फाउनडेशन लगाने से पहले बर्फ जरुर इस्‍तमाल करना है.
  2. दूसरे चरण में आपको सही तरह का मेकअप फाउनडेशन चुनना होगा. आजकल बाजार में कई तरह के मेकअप ब्रांड उपलब्‍ध हैं, जो कई रंगो के फाउनडेशन देती है. इसलिये कोई जरुरी नहीं है कि किसी एक ब्रांड में आपकी जरूरत का फाउनडेशन मिल जाए. इसलिये हमेशा सही ब्रांड और सही फाउनडेशन ही चुने.
  3. फाउनडेशन को समान रूप से पूरे चेहरे पर प्रयोग करना चाहिये. यह कंसीलर की तरह नहीं होता जो कि केवल दाग-धब्‍बों को छुपाने के लिये प्रयोग किया जाता है. जब आप एक बार फाउनडेशन लगा लें तब अगर आपको लगता है कि इसे फिर दुबारा लगाने की जरुरत है, तभी दूसरा कोट लगाएं.
  4. अगर आपकी स्‍किन ड्राई हैं, तो फाउनडेशन में थोडा सा मौस्‍चोराइजर भी मिला लें. लेकिन चेक कर लें कि यह बहुत ज्‍यादा औयली ना हो.
  5. फाउनडेशन को त्‍वचा पर कभी भी क्रीम या लोशन की तरह नहीं लगाना चाहिये. अगर आपके पास लिक्‍विड फाउनडेशन है तो उसकी केवल कुछ ही बूदें अपने चेहरे पर लगाएं. उसके बाद धीरे-धीरे पूरे चेहरे पर इसे अच्‍छे से फैलाएं और अंडर आई तथा दाग-धब्‍बों को छुपाएं.
  6. आखिर में फाउनडेशन परउडर लगाएं. इसे केवल गालों पर ही ना लगा कर पूरे चेहरे पर लगाएं, वरना यह देखने में बहुत ही खराब लगेगा. साथ ही इसे ज्‍यादा भी प्रयोग ना करे.

रूसी को जड़ से मिटाने में एलोवेरा है कारगर

फार्म एन फ़ूड न्यूज: छत पर उगाएं सब्जियां, फोन पर मिलेगी जानकारी

मुरादाबाद: मनोहरपुर स्थित कृषि प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक डाक्टर दीपक मैंदीरत्ता ने कहा कि घर की छत या खाली जमीन में आप सब्जियों की खेती कर सकते हैं. खादबीज कहां से मिलेगा, सब्जी को कैसे लगाना है, पूरी जानकारी फोन पर मिलेगी.

जो लोग अपने घर पर हैं, उन का समय नहीं कट रहा है. ऐसे में छतों पर जैविक सब्जियां उगाने से जहां समय का पता नहीं लगेगा, वहीं पौष्टिक सब्जियां भी खाने को मिलेंगी.

जैविक सब्जियां किस तरह उगाई जानी हैं, इस की विधि सीखने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं हैं, क्योंकि जैविक खेती के गुर सिखाने के लिए कृषि प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक तैयार हो गए हैं.

उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि जैविक विधि से सब्जियां उगाने की विधि को ही बढ़ावा दिया जाए. इस से लोगों को घर बैठे स्वच्छ और पौष्टिक सब्जियां मिल सकेंगी.

डाक्टर दीपक मैंदीरत्ता, निदेशक, कृषि प्रशिक्षण केंद्र, मनोहरपुर का कहना है कि जैविक खेती करने के लिए गोबर की खाद लोगों को आसानी से मिल जाएगी. खादबीज की दुकानों को खोलने का आदेश प्रदेश सरकार ने दे दिया है, वहां पर सब्जी का बीज मिल जाएगा, अगर कहीं दिक्कत आती है तो यह विधि जानने के लिए इस मोबाइल नंबर 9412475302 पर बात कर सकते हैं.

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नई तकनीक से उम्मीद अब खट्टे नहीं होंगे अंगूर

मुंबई: मजदूरों की किल्लत के चलते अंगूर की तुड़ाई प्रभावित हो गई है क्योंकि हर साल तकरीबन ढाई हजार करोड़ रुपए का निर्यात होने वाला अंगूर इस बार यों ही धरा रह गया. लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की पेड़ों पर ही अंगूर के गुच्छों को सुखा कर किशमिश में बदलने की टैक्नोलौजी से किसानों को उम्मीद हुई है.

महाराष्ट्र में उत्पादक मंडियों में कारोबार बंद पड़ा है. इस वजह से घरेलू बाजार में अंगूर की सामान्य सप्लाई भी नहीं हो पा रही है. इस मुश्किल समय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों की टीम ने एक नई टैक्नोलौजी विकसित की है, जो किसानों के लिए रामबाण बन कर उभरी है. यह टैक्नोलौजी अंगूर की लता पर गुच्छों को सुखा कर किशमिश बना देगी.

आईसीएआर के हौर्टिकल्चर उपमहानिदेशक डाक्टर एके सिंह ने बताया कि इस विधि से अंगूर किसानों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी. इस नई तकनीक से 12वें दिन में अंगूर सूख कर किशमिश में बदल जाता है. इस के तहत पेड़ पर अंगूर के पके गुच्छों को 4 से 6 दिन तक ही रोका जा सकता है. इस के बाद वह खराब होने लगता है.

निर्यात न होने और घरेलू बाजार में मांग घटने से किसानों की माली हालत ठीक नहीं है. वहीं किसानों को इसे सुखा कर किशमिश बनाने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे थे, जो बागों से अंगूर तोड़ सकें. इसीलिए यह नई टैक्नोलौजी तैयार की गई. इस में 2 खास तरह के कैमिकलों (एथाइल ओलियट और पोटैशियम कार्बोनेट) को पानी में मिला कर गुच्छों पर एक निश्चित समय के अंतर पर 3 छिड़काव करना होता है. इस के 12वें दिन तक अंगूर सूख कर किशमिश में बदल जाता है.

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इस चुनौती से निबटने में अंगूर को पेड़ पर ही सुखाने वाली टैक्नोलौजी काफी कारगर साबित हो रही है.एग्रीकल्चरल एंड प्रोसैस्ड फूड प्रोडक्ट ऐक्सपोर्ट डेवलपमैंट अथोरिटी के मुताबिक, भारत ने पिछले साल तकरीबन 250 करोड़ रुपए की लागत की 20,000 टन किशमिश का निर्यात किया था. किशमिश की मांग टर्की, अमेरिका, चिली, यूरोपीय संघ के देशों के अलावा दक्षिणी अफ्रीकी देशों में है.

फोन कॉल और मैसेज के माध्यम से खरीदा जाएगा गेहूं

रेवाड़ी: जिले में गेहूं की खरीद चालू हो गई. गेहूं खरीद के लिए प्रशासन की ओर से जिले में 10 खरीद केंद्र बनाए हैं. इन में रेवाड़ी की नई अनाज मंडी सहित कोसली व बावल में भी खरीद केंद्र बनाए गए हैं, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखा जा सके. ज्यादातर किसानों को मैसेज दे कर खरीद सैंटर पर बुलाया गया.

जिले में सरसों की खरीद के लिए भी किसानों को मैसेज भेज कर या फोन कर के मंडी में बुलाया गया, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सके.

25 दिन बाद मंडी खुली भी पर न बिकने से किसान रहे परेशान

बिलाड़ा: सूनी पड़ी मंडी को फिर से खोला गया, पर किसानों ने आने में दिलचस्पी नहीं ली. कुछ किसान आए भी, लेकिन बिक्री न होने से उन्हें निराश लौटना पड़ा. कृषि उपज मंडी समिति बिलाड़ा में जिंसों की खरीदफरोख्त नहीं हो सकी.

25 दिन बाद पहली बार मंडी खुली. महज 4 किसान ही अपना गेहूं बेचने आए. यहां आए किसानों को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि खरीदार ही नहीं मिले. बुझे मन से इन में से 2 किसानों ने 35 क्विंटल गेंहू बेचा, वहीं बाकी के 2 किसान इतने निराश हुए कि उचित कीमत न मिलने पर खाली हाथ ही लौट आए.

वजह, पूरे दिन किसान लोगों के आने का इंतजार करते रहे, लेकिन यहां महज 48 लोग ही आ सके. कृषि मंडी बिलाड़ा की जो तसवीर सामने आई, वो शायद पहले कभी किसानों ने नहीं देखी थी. मंडी ऐसे सुनसान थी, जैसे यहां कभी कुछ था ही नहीं.

मंडी में सौंफ, जीरा, इसबगोल के अलावा सभी तरह के जिंसों की खरीदी हुई. नए नियम के मुताबिक किसान सुबह 8 बजे से ले कर दोपहर 12 बजे तक ही मंडी में आ सकते हैं.

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बता दें कि बिलाड़ा कृषि मंडी सौफ व जीरे के लिए देशभर में मशहूर है. यहां से सौंफ व जीरा देश के हर कोने में पहुंचता है.

कृषि विश्वविद्यालयों में औनलाइन कक्षाएं

नई दिल्लीः कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों के लिए औनलाइन कक्षाएं शुरू करने को कहा है.

उन्होंने कृषि अनुसंधान परिषद के किसानों और खेतीबाड़ी पर इस कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करने को ले कर किए जा रहे कामों का आकलन किया और यह निर्देश दिया. कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए तकरीबन 2 करोड़ किसानों को इस का फायदा मिलेगा.

मिनी टैक्टर बनाया जो एक लिटर पैट्रोल में जोतेगा डेढ़ बीघा खेत

गोरखपुर: बुद्धा इंस्टीटयूट के बीआईटी के मैकेनिकल विभाग के आखिरी साल के 4 छात्रों ने मिल कर एक टैक्टर तैयार किया है, जो एक लिटर पैट्रोल में डेढ बीघा खेत जोत सकता है.

ये छात्र अपेक्षा सिंह, शिवानी सिंह, अभिषेक मल्ल और गजेंद्र पांडे हैं. इन छात्रों ने धीरेंद्र कुमार की अगुआई में खेती के कामों को करने के लिए कम से कम लागत में एक ऐसे ट्रैक्टर को बनाया है जिस की मदद से किसान आसानी से खेत की जुताई कर पाएंगे.

इस मौडल का नाम मिनी टैक्टर रखा गया है. इस टैक्टर को तैयार करने में कुल खर्च 25 से 30 हजार रुपए आया है.

Lockdown: ‘नोटबंदी’ जैसा तुगलकी फैसला ना साबित हो ‘लॉक डाउन’

“नोटबंदी” के बाद करोना से लड़ाई के लिए किया “लॉक डाउन” भी कही अपनी गलत नीतियों का शिकार तो नही हो रहा है. यह शंका अब लोगो के मन मे उठ रही है कि क्या 3 मई से लॉक डाउन खत्म होगा या अचानक 3 मई को कोई आगे की तारीख की घोषणा की जाएगी.

कई बार सही प्रबंधन ना होने के कारण बड़े से बड़े फैसले  अनुकूल परिणाम नहीं दे पाते है. उदाहरण के लिए नोटबंदी सबसे बड़ी मिसाल है. जिस समय  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक देश की जनता को यह फैसला सुना दिया कि रात 12 बजे से 1000 और 500 के नोट बंद किए जा रहे हैं उससे पूरे देश में अफरा-तफरी मच गई थी. नोटबन्दी के फैसले के पीछे की वजह बताते प्रधानमंत्री ने कहा था “नोटबंदी से देश में आतंकवाद भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और काला धन बाहर आ जाएगा”.

उस समय प्रधानमंत्री ने देश की जनता से केवल 50 दिन का समय मांगा था प्रधानमंत्री ने कहा था देश की जनता इस कठिन घड़ी में केवल 50 दिन का समय हमें दे दे उसके बाद यह देश भ्रष्टाचार आतंकवाद से मुक्त हो जाएगा और हमारी अर्थव्यवस्था में काला धन पूरी तरीके से खत्म हो जाएगा. नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार आतंकवाद और काला धन की समस्याएं अपनी जगह जस की तस बनी रही. जनता को नोटबंदी में तमाम तरीके कष्ट सहने पड़े जिनका बाद में कोई सुखद परिणाम भी नहीं निकला.

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जिस समय हम कुछ कड़े फैसले करके अपने भविष्य के प्रति बेहतर कर रहे होते हैं तब कठिन फैसले भी न्यायोचित लगते है. लेकिन अगर कठिन फैसलों का कोई सार्थक परिणाम ना निकले तो वह भी व्यर्थ की कवायत माने जाते हैं . यही वजह है कि हर फैसला करने से पहले उसके प्रबंध का पूरा इंतजाम किया जाना जरूरी होता है.

जनता कर्फ्यू’ बन गया ‘लॉक डाउन’ :

नोटबंदी की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को रोकने  के लिये लॉक डाउन का फैसला भी अचानक सुनाया. पहले उन्होंने जनता से कहा कि आप केवल एक दिन दैनिक यानि 22 मार्च को “जनता कर्फ्यू” का पालन करके अपने घर मे रहे. इस दिन कोई अपने घरों से बाहर ना निकले संयम का परिचय देते हुए अपने घर में रहे और शाम को ताली और थाली बजाकर कोरोना से  लड़ाई करने का हौसला बनाए.

22 मार्च को पूरे देश की  जनता ने जनता कर्फ्यू का पालन किया. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता कर्फ्यू को लॉक डाउन में बदलने की अचानक घोषणा कर देते है. और इसको 14 अप्रैल तक पूरे देश में लागू कर देते है. उस समय फिर लोगो ने सोचा कि  14 अप्रैल के बाद लॉक खुल जाएगा और वह पहले की तरह अपने कामकाज करने लगेंगे. जब 14 अप्रैल आया तब प्रधानमंत्री ने नई घोषणा के साथ लॉक डाउन की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया.

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किस्तों में बढ़ाता लॉक डाउन:

अब 3 मई को भी नॉक डाउन खुलेगा इस विषय में जनता को पूरी तरीके से संशय बना हुआ है. एक बार लोगों को लग रहा है कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह लोक डाउन का पालन भी कर रहे हो और इसका आगे भी कोई परिणाम भी आगे ना निकले जैसे नोटबंदी के दौरान जनता ने हाल संकट अपने ऊपर ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी बात पर विश्वास करके अपने कठिन दिन काटे लेकिन देश में आतंकवाद भ्रष्टाचार और काला धन बना रहा . अगर नोटबंदी सफल मानी जानी चाहिए तो आतंकवाद भ्रष्टाचार और काला धन जैसी समस्याएं देश में नहीं होनी चाहिए थी.

इसका मतलब यह है कि कहीं ना कहीं नोट बंदी को लेकर जो योजनाएं बनी थी वह फेल हो गए और जनता ने नोटबंदी के कष्ट भी शहर और उसका कोई परिणाम भी उसे हाथ नहीं लगा ठीक है ऐसी स्थिति कोरोना वायरस को लेकर लॉक डाउन को लेकर है . “जनता कर्फ्यू” से लेकर 3 मई तक लोक डाउन की घोषणा हुई . तीन अलग-अलग स्टेप में लॉक डाउन  की घोषणा के 1 महीने बाद भी अपने घरों से दूर रह रहे मजदूरों पढ़ाई करने वाले बच्चे और दूसरे जरूरत में जरूरतमंदों को परेशानी का सामना करना पड़ा. उससे साफ लग रहा कि लोक डाउन को भरम में रखकर काम किया जा रहा है.

समय पर नही लिया फैसला

भारत मे कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया था. उसके बाद अगर विदेशों से वापस आने वालो का सही तरह से हेल्थ मैनजमेंट किया जाता और एयरपोर्ट बंद कर दिए जाते तो पूरे देश मे लॉक डाउन नही करना पड़ता. पूरा फरवरी और मार्च के 20 दिन तक सरकार कोई एक्शन प्लान नही बना पाई. फरवरी से मार्च के इस दौरान यही कहा जाता रहा कि केवल हमे हाथ मिलाने से बचना है. हम नमस्ते करेगे और कोरोना को हरा देगें. इस बहाने हिन्दू संस्कृति को विदेशी संस्कृति से बेहतर बताने की मुहिम भी चली.

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नहीं हुई सही काउंसिल

जनता कर्फ्यू के दिन तक जनता को यह पता नही था कि उनको कितना लम्बा समय लॉक डाउन में गुजरना होगा. अगर सही प्लान के साथ लॉक डाउन का प्रबंध किया गया होता और जनता को यह समझा दिया गया होता कि उनको कितने लंबे लॉक डाउन में रहना है तो जनता मानसिक रूप से तैयार होती और उसको मानसिक अवसाद से नही गुजरना पड़ता.

सही जानकारी ना देने पर अफवाहों को बल मिलता हैं. हमारे देश मे कम्प्यूटर युग के बाद भी रूढ़िवादी और संकीर्ण मानसिकता प्रबल है. जिसकी वजह से बहुत सारी दिक्कते समाज मे बद्व जाती हैं. कोरोना संकट के समय भी कोरोना से अधिक लड़ाई हिन्दू मुस्लिम के बीच हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे केवल ताली बजाने, थाली बजाने, दीये जलाने से ही कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है.

बेहतर प्रबंध के अभाव में तनाव पूर्ण बने हालात :

राजनीतिक समीक्षक और दलित चिंतक राम चन्द्र कटियार कहते है “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबसे पहले दूरदर्शन पर अपना संदेश जनता को देते है उसके बाद अचानक फैसला लागू कर दिया जाता है. जल्दबाज़ी में फैसला लागू होने के कारण सही परिणाम सामने नहीं आता और जनता को बेवजह परेशान होना पड़ता है. मोदी सरकार के हर फैसले में उनका यह स्टाइल साफ दिखता है”

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देश को लॉक डाउन करने से पहले अगर लोगो को अपने गांव घर तक जाने की छूट और प्रबंध किया गया होता तो इस तरह से जानवरो की तरह लोगो को पलायन करने के लिए मजबूर नही होना होता. दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र के बस और रेलवे स्टेशनों पर भीड़ नही लगती.

कई फैक्ट्रीयों में जो समान बना था वो खराब हो गया. जिंसमे दूध से बना समान खास था. मिठाइयों और खाने पीने का सामान खराब होने से नही बचाया जा सका. ऑन लाइन डिलीवरी के लिए जिन लोगो के नम्बर आननफानन में जारी किये गए वो एक सप्ताह तक लोगो को घरो तक सामान पहुचने के लिए तैयार ही नही हो पाए थे. जनता अब तक उहापोह में है कि उसे कितने दिन लॉक डाउन में रहना है.

कोरोना का इलाज कैसे होना है ? कैसे आइसुलेशन में रहना है ? इनका प्रबंध कौन करेगा ? यह सब लॉक डाउन के बाद तय करने की जगह पहले इसका प्रबंध किया गया होता तो जनता को लोक डाउन से निपटने की ऊर्जा मिलती. जनता में कोरोना और उसके इलाज को लेकर तमाम भ्रंतियो है. इनको लेकर काउंसलिंग की जरूरत थी. भारत लोकतांत्रिक देश है. यहाँ सैनिक शासन वाले देशों की तरह तानाशाही पूर्ण फैसले लेने से हालत बिगड़ते है. अगर कोरोना या नोटबन्दी को लेकर लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनकूल फैसले होते तो देश मे तनावग्रस्त और अनिश्चितता भरा माहौल नही बनता और जनता पूरी मजबूती से कोरोना के खिलाफ लड़ सकती.

बी आर चोपड़ा: जब 4 बार बदला कहानी का अंत और दर्शकों ने थिएटर में फेकें पत्थर

एडिट बाय- निशा राय

बी आर चोपड़ा 106वीं बर्थ एनिवर्सरी: बलदेव राज चोपड़ा से मेरी पहली मुलाकात धारावाहिक ‘‘महाभारत’’ के फिल्मांकन के दौरान फिल्मसिटी स्टूडियो में हुई थी. उसके बाद फिल्म ‘कल की आवाज’, ‘बागबान’ और ‘‘बाबुल’’ के दौरान उनसे मेरी कई मुलाकातें होती रही. 2002 में 13 जुलाई से 17 जुलाई तक उनकी पुत्रवधू और फिल्मकार स्व.रवि चोपड़ा की पत्नी रेणु चोपड़ा ने ‘बी आर थिएटर’में पांच दिवसीय फिल्मोत्सव आयोजित कर बी.आर चोपड़ा को सम्मानित करने का काम किया था.

इन पांच दिनों में ‘धुंध’, ‘गुमराह’, ‘इंसाफ का तराजू’,‘वक्त’ और ‘नया दौर’ जैसी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया था. इसी दौरान इन फिल्मों के संदर्भ में स्व.बी आर चोपड़ा से भी मेरी लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें कई अद्भुत बातें उन्होंने हमें बतायी थीं. वह जब तक जीवित रहे, काम करते रहे और उनके अंदर हमेशा कुछ नया कर गुजरने का जज्बा बरकरार रहा. हम यहां उनकी कुछ फिल्मो के संदर्भ में उनके जीवित रहते जो बातें हुई थी, वह पेश कर रहे हैं…

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गुमराहः पहली अति बोल्ड फिल्म

बी आर चोपड़ा ने कई फिल्में बनाई. लेकिन उनके द्वारा 1962 में निर्मित फिल्म ‘‘गुमराह’’ को पहली अति बोल्ड फिल्म माना जाता है. इस फिल्म में पहली बार किसी शादीशुदा औरत की जिंदगी में परपुरुष का चित्रण है. यह एक अलग बात है कि अंततः यह फिल्म इस बात को ऊभारती है कि हर शादीशुदा औरत को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाते हुए लक्ष्मण रेखा को पार करने का दुष्साहस नहीं करना चाहिए. फिल्म ‘गुमराह’ में मीना (माला सिन्हा) अपने प्रेमी राजेंद्र (सुनील दत्त) के लिए अपने पति अशोक (अशोक कुमार) को धोखा देती हैं. लेकिन अशोक अपने तरीके से अपनी पत्नी मीना को सही और गलत का एहसास कराते हैं.

फिल्म गुमराह की कहानी: जर्मन लेखक की कहानी से प्रेरित

1962 में फिल्म ‘‘गुमराह’’की कहानी बी आर चोपड़ा के दिमाग में कैसे आई थी? क्योंकि यह वह वक्त था, जब किसी भी नारी के जीवन में गैर मर्द की कल्पना नहीं की जा सकती. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने हमसे कहा था- ‘‘हमने एक जर्मन लेखक की 15 पन्नों की एक कहानी पढ़ी थी, जिसे हमने फिल्म की पटकथा के रूप में परिवर्तित किया. फिल्म की शुरुआत प्रेमी और प्रेमिका के गीत गाने से होती है.’’

फिल्म पूरी हो के बाद शुरूआत बदली गयीः

फिल्म पूरी हो गयी थी. फिल्म के मुख्य कलाकार अशोक कुमार चाहते थे कि फिल्म को जल्द से जल्द प्रदर्शित किया जाए, मगर बी आर चोपड़ा फिल्म के शुरूआती दृष्य से संतुष्ट नहीं थे. इसका जिक्र करते हुए बी आर चोपड़ा ने हमें बताया था- ‘‘फिल्म प्रदर्शन के लिए तैयार थी. लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या फिल्म की यह शुरूआत सही है? इसलिए अशोक कुमार के बार बार कहने के बावजूद मैं फिल्म को रिलीज नहीं कर रहा था. एक दिन हमने ‘रामायण’ में लक्ष्मण रेखा खींचने की कहानी सुनी. बस फिर हमने शुरुआत में लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा खींचने की कहानी को दिखाया और कहा कि ऐसी ही एक लक्ष्मण रेखा को लांघने के प्रयास की कहानी है फिल्म ‘गुमराह’.

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बी आर चोपड़ा ने अपनी फिल्म ‘गुमराह’ में जिस लक्ष्मण रेखा को ना लांघने की बात कही थी, वह आज साठ साल बाद भी एक शाश्वत सत्य है. यह एक अलग बात है कि वर्तमान परिस्थितियों में गैर मर्द की कल्पना करना आम बात हो गई है. लेकिन 1962 में इसकी कल्पना करना संभव नहीं था. यही वजह है कि जब यह फिल्म दिल्ली के शीला सिनेमाघर में प्रदर्शित हुई थी, तो दर्शकों ने पर्दे पर पत्थर फेंके थे.

गुमराह के निर्माण में आयी थीं दिक्कतें

1962 में जिस तरह के सामाजिक हालात थे, उसके चलते ‘गैर मर्द’ को खलनायक ही माना जाता था. इसलिए फिल्म ‘‘गुमराह’’ में गैर मर्द राजेंद्र का किरदार निभाने के लिए कोई भी कलाकार तैयार नहीं था. उन दिनों कोई भी कलाकार खलनायक नहीं बनना चाहता था, सभी को हीरो ही बनना था. लोग ‘देवदास’ की कल्पना को बदलना नहीं चाह रहे थे. ऐसे में बी आर चोपड़ा के सामने समस्या पैदा हो गई थी कि क्या किया जाए? पर ऐसे वक्त में अभिनेता सुनील दत्त ने आगे बढ़कर इस किरदार को निभाने के लिए हामी भरी. क्योंकि सुनील दत्त को कहानी पंसद आयी थी और उन्हे फिल्म की कहानी में राजेंद्र और मीना के प्यार में कहीं भी अश्लीलता नजर नहीं आयी थी. बाद में फिल्म देखकर लोगों ने महसूस किया था कि चोपड़ा साहब ने राजेंद्र के किरदार की पवित्रता को बरकरार रखी थी.

गुमराह का क्लायमेक्स चार बार बदला गया

‘गुमराह’ सर्वाधिक सफल फिल्म रही है. मगर बहुत कम लोगों को पता होगा की फिल्म ‘गुमराह’ की शुरुआत ही नहीं बल्कि इसका क्लायमेक्स भी चार बार बदला गया था. जब चौथी बार फिल्म के क्लायमैक्स का पुनः फिल्मांकन होना तय हुआ, उस वक्त सुनील दत्त अपनी पत्नी के साथ इटली में छुट्टियां मना रहे थे. चोपड़ा साहब ने उन तक खबर भिजवाई. सुनील दत्त यह सोचकर आनन-फानन मुंबई पहुंच गया कि अब नए क्लायमैक्स में राजेंद्र को मीना मिल जाएगी, मगर ऐसा नही हुआ था. फिल्म के अंत में जो दृष्य है, उसमें मीना,राजेंद्र के लिए दरवाजा हमेशा हमेशा के लिए बंद कर देती है.

धुंध में भी गैर मर्द की कहानीः

इसके बाद बी आर चोपड़ा ने 1973 में फिल्म ‘‘धुंध’’बनायी थी. इस फिल्म में भी गैर मर्दका किरदार था, जिसे संजय खान ने बिना कुछ सोचे समझे निभाने की हामी भर दी थी. क्योंकि ‘धुंध’’ की कहानी में गैर मर्दवास्तव में गैर मर्दनहीं है, बल्कि वह तो दूसरों की मदद करने वाल इंसान है.

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पहली रंगीन फिल्म ‘‘वक्त’’

‘गुमराह’’के बाद बी आर चोपड़ा ने 1965 में पहली रंगीन फिल्म ‘‘वक्त’’ का निर्माण किया था, जिसके कैमरामैन धर्म चोपड़ा को फिल्मफेअर अवार्ड से नवाजा गया था.

इस फिल्म के निर्माण के पीछे भी अजीबोगरीब कहानी थी. जिसके बारे में जीवित रहते हुए खुद बी आर चोपड़ा ने मुझे एक मुलाकात के दौरान बताया था. उन्होंने बताया था- ‘‘एक दिन मैं अपने ऑफिस में बैठा हुआ था, लेखक अख्तर मिर्जा मेरे पास आए. उन्होंने बताया कि पृथ्वी राज कपूर अपने तीनों बेटों को लेकर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं. इस फिल्म में वह स्वयं अभिनय करेंगे. इसलिए उनके कहने पर अख्तर मिर्जा ने एक पिता और तीन बेटों को लेकर एक कहानी लिखी है. मैने उत्सुकतावश उनसे कहानी सुनी और मैने उनसे कहा कि यह कहानी बहुत अच्छी है. पृथ्वीराज कपूर को यह कहानी जरूर पसंद आएगी. लेकिन शाम को अख्तर मिर्जा वापस मुंह लटकाए हुए आ गए. उन्होंने बताया कि पृथ्वीराज कपूर को यह कहानी पसंद नहीं आई है. तो मैंने उनसे कहा कि आप चिंता ना करें, इसी कहानी पर मैं फिल्म बनाउंगा. उसके बाद मैने इस फिल्म में अभिनय करने के लिए पृथ्वी राज कपूर और उनके तीनों बेटों से बात कर ली.

कैसे वक्त के कलाकार बदले गएः

मगर सभी जानते है कि फिल्म ‘‘वक्त’’ में पृथ्वीराज कपूर और उनके तीनों बेटे नहीं है. इस पर बी आर चोपड़ा ने हमें एक दिलचस्प वाक्या सुनाया था- ‘‘हमने अपनी तरफ से  पृथ्वीराज कपूर और उनके तीनो बेटो को इस फिल्म में अभिनय करने के लिए राजी कर लिया था. मगर दो दिन बाद मेरे मित्र व फिल्मकार विमल राय मेरे पास आए. तो मैंने उन्हें कहानी सुनाई. कहानी विमल राय को भी पसंद आई. लेकिन विमल राय ने मुझे सलाह दी कि इस कहानी में तीनों बेटों के किरदार में तीनों सगे भाइयों को मत लीजिए. ऐसा करेंगे तो, इस कहानी का उतना असर दर्शकों पर नहीं पड़ेगा, जितना इस कहानी के अनुसार पड़ना चाहिए. तब हमने कलाकार बदले थे. फिर बलराज साहनी, राजकुमार, सुनील दत्त और शशि कपूर को लेकर यह फिल्म बनायी थी और इसके निर्देशन की जिम्मेदारी मैंने अपने छोटे भाई यश चोपड़ा को दी थी.’’

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बी. आर. चोपड़ा का जन्म और शुरुआती जीवन

22 अप्रैल 1914 में ब्रिटिश शासन के दौरान वर्तमान के पाकिस्तान शहर राहोन में जन्में पद्मभूषण और दादा साहेब फालके अवॉर्ड से सम्मानित फिल्मकार बलदेव राज चोपड़ा उर्फ बी आर चोपड़ा का 94 वर्ष की उम्र में मुंबई में और देहांत 5 नवंबर 2008 को हुआ था. आज उनकी 106वीं पुण्यतिथि है. बतौर पत्रकार बी आर चोपड़ा के संग हमारी कई मुलाकातें रही हैं. आज हम उनसे और उनके फिल्मों के संदर्भ में उनसे हुई कुछ अद्भुत बातों का यहां जिक्र कर रहे हैं.

बी आर चोपड़ा ने अपने कैरियर की शुरूआत 1944 में लाहौर में बतौर फिल्म पत्रकार की थी. वह लाहौर में ही ‘‘अरोड़बंस प्रेस’’ में नौकरी करते थे, बाद में 1974 में इसी प्रेस ने ‘मायापुरी’ साप्ताहिक फिल्म पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया. बी आर चोपड़ा ने लाहौर में ही 1947 में आई एस जौहर की कहानी पर फिल्म ‘‘चांदनी चौक’’ की शुरूआत की थी, मगर तभी देश का बंटवारा हो गया और वह लाहौर से दिल्ली तथा दिल्ली से मुंबई पहुंच गए. मुंबई पहुंचने पर उन्होंने सबसे पहले 1948 में फिल्म ‘करवट’ का निर्माण शुरू किया. और 1951 में बतौर निर्देशक उन्होने फिल्म ‘अफसाना’का निर्देशन किया, जिसमें अशोक कुमार हीरो थे. फिर 1954 में आई एस जौहर की ही कहानी पर मीना कुमारी को लेकर उन्होंने फिल्म ‘‘चांदनी चौक’’ बनायी.

1955 में उन्होंने ‘‘बी आर फिल्मस’’ नामक अपने प्रोडक्शन हाउस की शुरूआत की थी, जिसके तहत पहली फिल्म ‘‘एक ही रास्ता’’ का निर्माण व निर्देशन किया था. 2006 तक उन्होंने 36 फिल्मों का निर्माण और इनमें से ‘एक ही रास्ता’,‘धूल का फूल’,‘धुंध’ सहित 16 फिल्मों का निर्देशन किया. उन्होंने ‘‘महाभारत’’ और ‘सैादा’ जैसे धारावाहिक का निर्माण व निर्देशन किया.

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नादानियां: भाग 2

“अच्छा…… तो आपको अपने बेटे की गलती नहीं दिखी, मगर मेरी दिख गई, क्योंकि मैं पराए घर की हूँ इसलिए ? और संस्कार आपने कैसे दिये हैं अपने बेटे को ? बेईमानी करने की?”रचना की बात पर मालती का मुंह खुला का खुला रह गया ! रचना अपनी सास का हमेशा से आदर करती आई थी.  लेकिन आज उसके ऐसे तेवर देख वह आवक रह गई ! मालती भी अपनी बहू को बेटी से कम प्यार नहीं करती थी. वह तो गुस्से से उसके मुंह अपशब्द निकल गये, वरना,कभी वह उसे कुछ उल्टा-सीधा नहीं बोलती थी. हालांकि, अपने बेटे को भी उसने डांटा, फिर भी रचना को लग रहा है कि मालती ने उसके साथ पक्षपात किया. बेटे की लगती को तो नजरंदाज कर दिया और सारी गलती बहू के सिर मढ़ दी.

रचना को बुरा मानते देख मालती ने उसे समझना चाहा कि वह इस घर की बहू है.  घर की इज्जत है, अगर वही इस तरह से व्यवहार करेगी, तो लोग क्या कहेंगे ? मगर रचना कहने लगी कि वह उसे समझाने के बजाय अपने बेटे को समझाये, तो ज्यादा बेहतर होगा. रचना को अपनी माँ से बहस लगाते देख, निखिल का पारा और चढ़ गया.

बोला,“देखो, देखो माँ, कैसे आपसे भी मुंह लगा रही है ये .  धक्का दिया इसने पहले मुझे .  छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया और घर में  बवाल मचा दिया. और तेवर तो देखों इसके ? खबरदार जो मेरी माँ से बत्तमीजी की तो! “ उंगली दिखाते हुए निखिल बोला, तो कस कर उसने उसकी उंगली मरोड़ दी और बोली।

“खबरदार अपने पास रखों, समझे और आगे से उंगली-टिंगली मत दिखाना मुझे, नहीं तो तोड़ दूँगी।  और तुमने, तुमने क्या किया ? एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी……..तुमने धक्का नहीं दिया मुझे, बल्कि ज्यादा ज़ोर से दिया और मुझे चोट लगते-लगते बची? और मेरे माँबाप पर क्यों गए ? मेरे माँबाप क्या हैं मेरे लिए और उन्होंने मुझे कैसे संस्कार दिये हैं, यह मुझे तुम सब से जानने की जरूरत नहीं है, समझे ?” अपनी सास की तरफ देखते हुए रचना बोली.  “और एक बात जान लो, मैं कोई तुम्हारी दासी-पोसी नहीं हूँ.  तुम्हारे टुकड़ों पर नहीं पलती हूँ जो तुम्हारी धौंस सहूँगी .  मैं खुद इतना कमा लेती हूँ की मुझे तुम्हारे पैसों की कोई जरूरत नहीं है.  तुम्हारे पैसों की जरूरत होगी तुम्हारे परिवार को” रचना की बात पर निखिल तिलमिला उठा और कस कर एक तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया. एक तो वैसे ही उसने उसकी उंगली मरोड़ दी तो दर्द हो रहा था, ऊपर से बकवास पर बकवास किए जा रही थी तो कितना सहता वो? लगा दिया एक तमाचा।

लेकिन यह बात रचना के बर्दाश्त के बाहर हो गया. क्रोध के मारे उसका मुंह लाल हो गया।  उसने भी जो सामान सामने पड़ा था, उठाकर निखिल की ओर ज़ोर से फेंका। निखिल ने हाथ आगे कर रोक लिया, वरना उसका सिर तो फटना ही था आज.  मालती को समझ नहीं आ रहा था कि करें ? कैसे रोकें इनके झगड़े को ?दोनों के झगड़े की आवाजें सुन आसपड़ोस के लोग भी कान लगा कर सुनने लगें.  अब लोगों की तो आदत ही होती मज़ा लेने की.  किसी के घर झगड़ा हुआ नहीं, पहुँच जाते हैं तमाशा देखने.  मालती जितना दोनों को शांत करने का प्रयास कर रही थी,  मामला उतना ही बिगड़ता जा रहा था.  रचना कहने लगी कि वह निखिल के खिलाफ हिंसा का केस करेगी. बतलाएगि पुलिस को की कैसे उसके पति ने उसे मारा-पीटा, उस पर जुल्म किया.  और निखिल कह रहा था कि कौन डरता है पुलिस से.  बुलाओ पुलिस को.  दिखाऊँगा कि कैसे रचना ने उसे अपने नाखून से नोच डाला है.  धक्का दिया और सिर भी फोड़ने जा रही थी,यह भी वह पुलिस को बताएगा. ‘अरे, पुरुष एक थप्पड़ भी चला दे, तो हिंसा हो जाता है और औरत नोच-खसोट ले,पति का सिर फोड़ दे, तो कुछ नहीं?’ दोनों के चिल्लम-चिल्ली से लग रहा था मालती के दोनों कान फट कर उड़ जाएंगे. उसने अपने दोनों हाथ से कान दबा लिए. लेकिन आवाज फिर भी रुक नहीं रहे थे.

गुस्से से फनफनाई रचना 112 नंबर पर कॉल करने ही जा रही थी कि मालती ने उसके हाथ से फोन छीन लिया और घर की इज्जत की दुहाई देने लगी. मालती के हाथ जोड़ने पर रुकी थी वह, मगर उसका फैसला बदला नहीं था. उसका गुस्सा तो अब भी सातवें आसमान पर विराजमान था.  कहने लगी,‘लॉकडाउन टूटते ही वह निखिल पर हिंसा का केस करेगी.  जेल भिजवा कर रहेगी उसे. फोन कर वह अपने मायके वालों को सब कुछ बताना चाहती थी, लेकिन इस लॉकडाउन में वह कर भी क्या सकते थे, सिवाय परेशान होने के ? इसलिए उन्हें न बताना ही उसे सही लगा.

क्रोध के मारे हवा से हिलते पत्ते की भाँति कांपती हुए वह अपने कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा लगा लिया। क्योंकि वह निखिल का मुंह भी नहीं देखना चाहती थी.  मजबूरन निखिल को सोफ़े पर सोना पड़ा, पर एक तो गर्मी ऊपर से मच्छर उसे सोने भी नहीं दे रहा था.  काट-काट कर उसका बुरा हाल किए हुए था.  गुस्सा आ रहा था उसे खुद पर, की क्यों उसने ऐसी लड़की को अपनी जीवन संगनी बनाया जो बातबात पर उससे लड़ती-झगड़ती रहती है ?‘नहीं, अब मैं भी नहीं रह सकता ऐसे तुनकमिजाजी लकड़ी के साथ.  छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनकर घर मे हँगामा कर देती है.  हाँ, मैंने बेईमानी की, तो क्या हो गया ? बचपन में भी करता था तो क्या हो गया ? बड़ा पुलिस की धमकी दे रही है ! पुलिस से वे लोग डरते हैं जो गलत करते हैं और मैंने कोई गलती नहीं की, यह मैं जनाता हूँ . ?देखो, उसके नाखून के निशान अभी हैं मेरे हाथ पर, तो क्या यह हिंसा नहीं हुआ ? कितना खून निकल आया था मेरा, काश फोटो खींच लेता, तो पुलिस को दिखाता, फिर देखता पुलिस किसे जेल भेजती है.  वैसे, जेल भी चला जाऊँ तो ठीक, कम से कम इस औरत से दूर तो रहूँगा’अपने आप में ही सोचते-सोचते निखिल की आँखें जाने कब लग गई.

उधर मालती के पैरों के नीचे से जमीन सरकने लगी थी. सोच कर ही वह कांप रही थीकि अगर बहू ने पुलिस में कम्पलेन कर दिया तो क्या होगा ?माँ-बेटे को जेल तो होंगी हीं, सालों की कमाई इज्जत भीमिट्टी में मिल जाएगी. लोग हसेंगे सो अलग.

किसी तरह मालती रचना को समझा-बूझकर उसका गुस्सा शांत करना चाह रही थी.  निखिल से वह माफी मांगवाने को भी तैयार थी.   मगर रचना कुछ सुने तब तो. मालती को यह सोचकर धकधकी उठ रही थी कि कल अगर उसके दरवाजे पर पुलिस आ गई और  सारी बात मुहल्ले की औरतों को के सामने आ गई, तो क्या होगा ?‘वह तो खुश ही होंगी . उनकी आत्मा तो कब से हमारे घर के बारे में कुछ ऐसा-वैसा सुनने को बेचैन है.  इस मुहल्ले में कुछ ऐसी कुटिल महिला भी हैं, जो मुझसे, मेरी बहू से जलती हैं, क्योंकि सुंदरता के साथ मेरी बहू कमाऊ जो है. मुझे मान-सम्मान भी देती है, जो उनकी बहुए नहीं देती हैं उन्हें, तो ईर्ष्या तो होगी ही न ? मेरी बहू गाड़ी से ऑफिस आती जाती है, तो कैसे सब देख जल-भून जाती हैं.  जानती हूँ हाल-चाल पूछने के बहाने आकर मेरा दिल और जलाएगी.  इन दुष्टटिनियों को हमारी बेबसी पर ताली बजने का मौका मिल जाएगा.  आखिर जलती जो हैं वे लोग मुझसे’सोचते-सोचते जाने कब मालती की भी आँखें लग गई.

इधर रचना का गुस्सा अभी भी उफान पर था.  गुस्से में एक तो खाया नहीं जाता है और खाली पेट गुस्सा और बढ़ता जाता है.  कई बार मालती खाने की थाली ले कर आई भी, पर रचना ने उसे दरवाजे से ही लौटा दिया था, यह बोलकर कि उसे भूख नहीं है.  जब भूख लगेगी, खुद ही खा लेगी.

रचना और निखिल एक कंपनी में साथ काम करते थे. दोस्ती के बाद दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए और फिर धीरे-धीरे उनका प्यार परवान चढ़ने लगा.  जब उनका एक दिन भी न मिलना उन्हें बेचैन करने लगा, तो दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया.  रचना के माता-पिता को तो कोई समस्या नहीं थी इस रिश्ते से, मगर मालती अपने एकलौते बेटे का विवाह किसी गैर जातिय लड़की से नहीं करना चाहती थी.  मगर बेटे के प्यार के आगे वह झुक गई और जब वह रचना से मिली, तो उसके अच्छे व्यवहार ने उसे और पिघला दिया.  जरा कड़क स्वभाव की रचना दिल की कितनी अच्छी है यह बात शादी के कुछ दिनों बाद ही मालती को मालूम पड़ गया.

नादानियां: भाग 1

अपने पीठ पीछे तकिया टिकाये पलंग के किनारे बैठी रचना आराम सेमैगज़ीन पढ़ रही थी.  बड़ा सुकून मिल रहा था उसे अपनी मन-पसंद मैगज़ीन पढ़ते हुए.   वरना, तो रोज उसे कहाँ समय मिल पाता था .  सुबह हड़बड़ी में ऑफिस निकल जाती थी और फिर रात के 8 बजे ही घर वापस आती थी.  थक कर इतना चूर हो जाती कि फिर कहाँ उसे कुछ पढ़ने लिखने का मन  होता था.  एक संडे की छुट्टी में घर-बाहर के ही इतने काम होते थे कि मैगज़ीन पढ़ना तो दूर, झाँकने तक का समय नहीं मिल पाता था उसे.  अखबार वाला हर महीने का मैगज़ीन दे जरूर जाता था, पर वह उलट-पुलट कर देख भर लेती थी.  लेकिन अब जब इस लॉकडाउन मेंउसे घर में रहने का मौका मिला है,तोवह सारे मैगज़ीन पढ़ लेना चाहती है.

लेकिन निखिल उसे पढ़ने दे तब न .  कब उसे परेशान किए जा रहा है.  कुछ-कुछ लिख कर कागज के बॉल बना-बना कर उस पर फेंक रहा है, ताकि वह डिस्टर्ब हो जाए और पढे ही न. इस बार फिर निखिल ने उस पर कागज का बॉल बनाकर फेंका तो वह तिलमिला उठी.

“निखिल………..चीखते हुए रचना बोली, “क्या है तुम्हें ?क्यों मुझे परेशान कर रहे हो ?एक और बॉल फेंका न तो बताती हूँ. “ लेकिन निखिल को तो आज बदमाशी सूझी थी, सो उसने फिर रचना के ऊपर कागज का बॉल फेंका. “प्लीज, निखिल, पढ़ने दो न मुझे.  वैसे भी मुझे कुछ पढ़ने-लिखने का समय नहीं मिल पाता है और अभी मिला है तो तुम मुझे परेशान कर रहे हो.  मैं तो कहती हूँ तुम भी पढ़ने की आदत बना लो, अच्छा टाइम पास हो जाएगा और कुछ सीखने को भी मिलगे.  ये लो”  एक मैगज़ीन उसकी तरफ बढ़ते हुए रचना बोली.

लेकिन निखिल कहने लगा, “हुम्म……… ये औरतों वाली मैगज़ीन मैं नहीं पढ़ता.  होते ही क्या हैं इसमें? सिर्फ औरतों की बातें. “

“औरतों वाली? अरे, इसमें तुम पुरुषों के लिए भी बहुत कुछ होता है, पढ़ कर देखों तो”  रचना के जिद करने पर निखिल ने मैगज़ीन ले तो लिया, पर उलट-पुलट कर यह बोलकर रख दिया कि उसे कुछ समझ नहीं आता और वैसे भी पढ़ना उसे कुछ खास पसंद नहीं है.  “हाँ,सही बात है. तुम्हें तो सिर्फ मोबाइल चलाना और फालतू के वीडियो देखना अच्छा लगता है, है न ?देखती नहीं हूँ क्या कैसे दिन भर मोबाइल में आँख गड़ाए रहते हो. फालतू के वीडियो देख-देखकर ‘ही ही ही’ करते रहते हो . मोबाइल एडिक्ट हो गए हो तुम, मोबाइल एडिक्ट. “

“और तुम किताबी क्रीड़ा नहीं बन गई हो. जब देखों कोई न कोई किताब लेकर बैठ जाती हो.  कब से बोल रहा हूँ चाय बनाओ, पर  तुम हो की, तुम्हें तो पढ़ने से ही फुर्सत नहीं मिल रही है.  अरे, है क्या इस किताब में, कोई ख़जाना?” खीजते हुए निखिल बोला, तो तुनक कर रचना बोल पड़ी.

“हाँ, ख़जाना ही समझा लो, पर तुम जैसे उल्लू को यह बात समझा नहीं आएगी.  पढ़ना मुझे कोई खास पसंद नहीं है………..यही कहा था न तुमने ?” मुंह चिढ़ाते हुए रचना बोली, तो निखिल गुर्राया ! “ऐसे घूरो मत, चाय पीनी है, जाकर खुद बना लो, मैं नहीं बनाऊँगी समझे ?” बोलकर वह फिर किताब में घुस गई.  सोच लिया उसने, वह बिल्कुल चाय बनाने नहीं उठेगी. ‘अरे, सुबह से काम कर के अभी तो बैठी हूँ, फिर भी किसी को चैन नहीं है.  हर समय कुछ न कुछ  चाहिए हीं इन्हें.   अच्छा था जो ऑफिस जाती थी.  भले थक जाती थी, पर इतना काम तो नहीं करना पड़ता था घर का.  सोचा था लॉकडाउन में खूब सोऊंगी, पढ़ूँगी.  लेकिन यहाँ तो घर कामों से ही फुरसत नहीं मुझे.  सब घर में हैं, तो सब को कुछ न कुछ चाहिए ही होता है और ये निखिल की तो नवाबी और बढ़ गई है.  जब देखो,‘रचना चाय बनाओ, रचना पकौड़ी बनाओ.  रचना आज खाने में पिज्जा बनाना. रचना ये, रचना वो. अरे, मैं क्या कोई नौकरनी हूँ इनसब की जो इनके हुक्म बजाती रहूँ ?’अपने मन में ही सोच रचना भुनभुना उठी और किताबों में फिर से आँख गड़ा दिया कि तभी उसके सिर पर एक कागज का बॉल आकर गिरा.  देखा तो निखिल शरारती अंदाज में मुस्कुरा रहा था.

“निखिल………मैं ने कहा न मैं कोई चाय-वाय नहीं बनाने वाली. तुम जीतने भी तंग कर लो मुझे मैं नहीं उठने वाली यहाँ से . तुम जाओ खुद ही चाय बना लो. “

“मुझसे चाय अच्छी नहींबनती रचना, नहीं तो क्या बना नहीं लेता” बहाने बनाते हुए निखिल बोला, “अच्छा एक काम करते हैं.  चलो, हम लूडो खेलते हैं.  जो हारा वह चाय पकौड़े बनाएगा.  बोलो, मंजूर ?”

“हुंम………..कुछ सोचते हुए रचना बोली, “अच्छा चलो मंजूर, पर शर्त याद रखना ? और हाँ, जीतूगी तो मैं ही” हँसते हुए रचना ने किताब बंद की और शुरू हो गया लूडो के खेल.

जैसे-जैसे खेल बढ़ता जा रहा था रचना जीत की तरफ बढ़ती जा रही थी. वहीं निखिल को अपनी हार साफ नजर आने लगी थी. ‘कहीं हार गया तो चाय-पकौड़े बनाने पड़ेंगे.  रचना खिल्ली उड़ाएगी सो अलग’  यह सोचकर निखिल बेईमानी पर उतर आया और जीतने के लिए उसने बेईमानी शुरू कर दी, जिससे खेल में वह आगे और रचना पीछे जाने लगी.  निखिल को बेईमानी करते देख रचना तिलमिला उठी और उसने खेल पलट दिया.

खेल पलटते देख निखिल आगबबूला हो उठा ! क्योंकि वह  खेल जीतने ही वाला था, मगर रचना ने उस पर पानी फेर दिया.  “क्यों……..क्यों खेल बिगाड़ा तुमने?” लगभग चीख पड़ा निखिल.

“क्योंकि……….क्योंकि तुम बेईमानी कर रहे थे. “ बोलते हुए रचना ने निखिल को ठेल दिया और लूडो के भी दो टुकड़े कर डाले.

“क्या की बेईमानी मैंने, हूं?” कह कर निखिल ने भी रचना को एक धक्का दे दिया.  फिर क्या था तिलमिलाई सी उसने भी उसे ऐसा कस कर धक्का मारा की वह जाकर दूर लुढ़क गया.  एक छोटी सी बात पर दोनों के बीच लड़ाई शुरू हुई तो दोनों ‘तू तू मैं मैं’ पर उतर आएं.  बेटे-बहू के कमरे से हल्ला-गुल्ला की आवाजें सुनकर जब मालती दौड़ी आई तो देखादोनों जुद्दम-जुद्दी लड़ें जा रहे थे.  कोई किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं. मालती ने पूछा भी‘अरे, क्या हुआ, क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों इस तरह से?’मगर उन्हेंलड़ने से फुर्सत मिले तब तो मालती की बात सुनें. हार कर मालती वहाँ से यह सोचकर खिसक गई कि यह पति-पत्नी के बीच का मामला है,अपने ही सुलझ लेंगे.   मगर उनकी लड़ाई तो बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ती चली गई जैसे राई का पहाड़.  दोनों एक-दूसरे पर उंगली उठाने लगें, एक-दुसरे की गलतियाँ गिनवाने लगें, एकदूसरे के परिवार को कोसने लगें और जाने वे एकदूसरे पर क्या-क्या अनाप-शनाप दोषारोपण लगाने लगें थे.  लग रहा था दोनों एक दूसरे की जान ही ले लेंगे.  अगर बीच में मालती ना आती, तो शायद कोई अनहोनी जरूर ही जाती आज.

“अरे, क्या हो गया तुम दोनों को…………..पागल हो गए हो क्या?” बेटे बहू की हरकतों ने मालती को चिल्लाने पर मजबूर कर दिया. “क्यों इस तरह से आपस में लड़ रहे हो बच्चे की तरह? और बहू,ये तुम्हारा मायका नहीं, ससुराल है, समझा नहीं आता ? एक बच्चे की तरह लूडो खेलती हो और फिर झगड़ा करते शर्म नहीं आती? क्या यही संस्कार दिये हैं तुम्हारे माँ-बाप ने ? क्या अच्छे घरों की बहू-बेटियाँ ऐसे करती हैं ? आसपड़ोस सुनेंगे तो क्या कहेंगे ?” सास की बात सुनकर  रचना की त्योरियों पर और बल पड़ गये .  झुंझुलाहट के मारे बदन में ज्वाला-सी दहक उठी.  दहके भी क्यों न, कोई भी लड़की अपने लिए कुछ भी बर्दाश्त कर लेगी, मगर कोई उसके माँबाप के बारे में कुछ कहें, तो कोई कैसे सहन कर सकता है.

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