सूतक में सियासत

अधिकतर राज्यों में राज्यपाल राज भवनों में आराम फरमाते लॉकडाउन यानि वैज्ञानिक सूतक काल काट रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाक में तरह तरह से दम करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे . राजस्थान के झुंझनु के एक खाते पीते जाट परिवार के जगदीप की मारवाड़ियों में भी ख़ासी पेठ है . राजस्थान हाइकोर्ट बार एसोशिएशन के अध्यक्ष रह चुके धनखड़ कांग्रेस और जनता दल में भी रह चुके हैं लेकिन 2003 में वे भाजपा में शामिल हो गए थे . यानि घाट घाट का पानी उन्होने पिया है .

भाजपा मुद्दत से लाख कोशिशों के बाद भी पश्चिम बंगाल से ममता का दबदबा भेद नहीं पा रही है तो उसने धनखड़ को राज्यपाल बनाकर भेज दिया जिसके दिशा निर्देशों का पालन करते वे ममता को घेरने का कोई मौका नहीं गँवाते उल्टे नए नए मौके पैदा कर लेते हैं . कई बार तो भ्रम होने लगता है कि वे राज्यपाल हैं या विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे हैं . लॉकडाउन के दौरान जब ममता बनर्जी राज्य के प्रबंधन में व्यस्त थीं तब उन्हें डिस्टर्ब करने की गरज से धनखड़ ने 14 पृष्ठों का एक ( आरोप ) पत्र उन्हें लिख डाला और फिर 3 मई को सरकार को लताड़ लगाई कि ममता सरकार गरीबों का राशन बांटने में देर और हिंसा कर रही है और अधिकारी राजनीति करते रहते हैं .

प्रतिक्रिया उम्मीद के मुताबिक हुई जबाब में ममता ने भी 14 प्रष्ठीय जबाब दिया जिसका सार यह था कि राज्यपाल महोदय कोरोना के कहर के दौरान सत्ता हड़पना चाहते हैं और इस बाबत धमकी भरी चिट्ठी उन्हें लिख रहे हैं .  उनका पत्र संवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ है बगैरह बगैरह . धनखड़ की दिक्कत जिस पर भाजपा आलाकमान को ध्यान देना चाहिए यह है कि पार्टी कोई जमीनी नेता पश्चिम बंगाल में खड़ा नहीं कर पा रही है और जो छोटे मोटे हैं वे धार्मिक विवाद और फसाद पैदा करने को ही राजनीति समझते हैं जिसका अधिकतम फायदा भाजपा उठा चुकी है . कुछ कुछ राजनैतिक पंडितों का मानना है कि धनखड़ को गवर्नरी छोडकर सक्रिय राजनीति में आ जाना चाहिए इससे शायद कुछ और फायदा भाजपा को हो लेकिन वह ममता से सत्ता छीनने लायक फिर भी नहीं होगा .

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