Download App

Crime story: देवर की दीवानी

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वालेगांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी.

अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

ये भी पढ़ें-बाली उमर का प्यार

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया.

संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था.

सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था. उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं.

संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है.

कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

ये भी पढ़ें-आंखों में खटका बेटी का प्यार

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी.

इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

 

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं.

लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती.

ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था.

संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती.

एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

 

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी.

गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

 

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी.

उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.

 

लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी.

दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया.

किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई.

संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया.

इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी.

 

सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई.

इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

पुरुषों का बलात्कार

यौनशोषण आज की बात नहीं, यह सदियों से एक बड़ी समस्या रही है. बलात्कार की शिकार न केवल बच्चियां, लड़कियां, युवतियां होती हैं बल्कि समाज में ऐसे भी लोग हैं जो बच्चों और युवकों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि पुरुषों का बलात्कार होता ही नहीं है…

निर्भया, हैदराबाद, उन्नाव के बाद फिर एक गैंगरेप की घटना सामने आई है. लेकिन यहां पीडि़त कोई लड़की नहीं बल्कि एक लड़का है. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में 22 साल के एक लड़के के साथ 4 लोगों ने मिल कर गैंगरेप किया. चारों आरोपियों ने पीडि़त की इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट के जरिए उस की लोकेशन को ट्रेस किया और उसे अगवा कर लिया.

क्या है पूरा मामला…

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वीबी नगर पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों के अनुसार, 4 संदिग्ध उस लड़के को इंस्टाग्राम पर फौलो करते थे. उक्त लड़के ने शहर के एक रैस्तरां के बाहर की एक सैल्फी पोस्ट की. चारों ने इस पोस्ट को देखा और उस की लोकेशन का पता लगाते हुए वहां पहुंच गए. उस लड़के से कहा कि वे उसे इंस्टाग्राम पर फौलो करते हैं और उस के फैन हैं. फिर चारों लड़कों ने उसे साथ में बाइक सवारी करने को कहा. जैसे ही सब मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचे, उन चारों ने उसे कार में चलने को मजबूर किया. इस के बाद अगले 3 घंटों तक सब ने मिल कर उस का रेप किया और फिर कार से नीचे फेंक दिया.

ये भी पढ़ें-क्यों बनते हैं विवाहेत्तर संबंध

यौनशोषण सदियों से एक बड़ी समस्या रही है. इस के शिकार हुए लोग न सिर्फ अपना आत्मविश्वास खो देते हैं बल्कि अपने दिल में हमेशा के लिए यह बोझ ले कर चलते हैं. यौनशोषण सिर्फ फिल्मों, किताबों और कहानियों की बात नहीं है बल्कि यह हमारे घरआंगन, शहर, गली, महल्ले और यहां तक कि कमरे के अंदर की भी बात है.

क्या सिर्फ महिलाएं और लड़कियां ही यौनशोषण का सामना करती हैं? या फिर समाज में ऐसे भी लोग हैं जो युवकों, बच्चों और पुरुषों को भी अपनी हवस का शिकार बनाते हैं? अकसर लोग यही सोचते हैं कि क्या पुरुषों के साथ भी रेप होता है? क्या कोई महिला किसी पुरुष के साथ दुष्कर्म कर सकती है? या किसी पुरुष का नाजायज फायदा उठा सकती है?

दरअसल, कई लोग यह मानने के लिए तैयार ही नहीं कि पुरुषों का भी यौनशोषण हो सकता है. हमारी सरकार और पुलिस भी ऐसा ही मानती है.

अमित (बदला हुआ नाम) जब

9 साल का था तब पहली बार उस के टीचर ने उस का रेप किया. स्कूल की तरफ से पिकनिक पर गए अमित को अचानक अपने बिस्तर पर कुछ महसूस हुआ. उस ने देखा, उस का टीचर उसे चूम रहा है. उसे सोता जान कर उस टीचर ने उस के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए. फिर 12-13 साल की उम्र में उस के दोस्त ने उस के साथ जबरदस्ती की.

ये भी पढ़ें-भुखमरी की कगार पर “स्ट्रगलर” कलाकार,मायानगरी से पलायन को

अमित जब कालेज में पहुंचा, तब उस के बड़े भाई की पत्नी ने उस का यौनशोषण किया, यानी उस को अपने साथ संबंध बनाने को मजबूर किया. तंग आ चुका था वह अपनी भाभी से. दूर जाना चाहता था, पर वह उसे जाने नहीं देती थी. बुरी तरह फंस चुका था वह अपनी भाभी के चंगुल में. पर यह बात उस ने किसी को नहीं बताई क्योंकि उसे लगता था कि लोग उसे ही दोषी ठहराएंगे. किसी से कुछ न बोल कर वह मन ही मन घुटता रहा.

लेकिन, आज अमित अपने जीवन में सुखी है. अच्छी नौकरी के साथ एक हंसताखेलता परिवार भी है. लेकिन अपने साथ हुए शोषण को याद कर आज भी वह दुखी हो जाता है. कभीकभी तो वह नकारात्मकता में चला जाता है. सोचता है, उसे अपने साथ हुए शोषण पर आवाज उठानी चाहिए थी, चुप नहीं रहना चाहिए था.

एक शख्स का कहना है कि जब वह 20 साल का था और किराए के मकान में रहता था. गरमी में छत पर सोता था. एक रात उस का मकान मालिक, जिस की उम्र 60 साल से भी ज्यादा थी, भी छत पर सो रहा था. एकाएक उस ने अपनी चटाई उस के समीप सरका ली और उसे सोता हुआ समझ उस की पैंट में हाथ डाल दिया. यह यौनशोषण घंटों तक चला. वह जाग चुका था पर डर की वजह से हिल भी नहीं सका और मकान मालिक उस का शोषण करता रहा.

उस शख्स का कहना था कि उस का उसे थप्पड़ मारने का मन कर रहा था लेकिन उस वक्त वह इतना कमजोर था कि चुप रह गया. उस का कहना है कि चूंकि वह पुरुष है, इसलिए उस ने उस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और न ही किसी को कुछ बताया ही. लेकिन, आज उस बात को याद कर वह क्षुब्ध हो जाता है.

बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहे एक लड़के ने तो अपनी महिला बौस से तंग आ कर आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य लड़के ने बताया कि उस की सगी मौसी, जो उस से उम्र में लगभग 10 साल बड़ी थी, अकसर उसे पढ़ाते हुए कमरे का दरवाजा बंद कर लेती थी. शुरूशुरू में यह सब उसे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन बाद में उसे अच्छा लगने लगा.

फिल्म जगत में भी

होते हैं शिकार

अभिनेत्री राधिका आप्टे का कहना है कि फिल्म जगत में यौनशोषण केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वे कई ऐसे पुरुषों को जानती हैं जो यौनशोषण के शिकार हुए हैं. हौलीवुड निर्माता हार्वे विंस्टीन विवाद के बाद से मनोरंजन क्षेत्र में यौनशोषण के कई मामले रोशनी में आए. एक के बाद एक केविन स्पेसि, जेम्स टोबैक, ब्रेट रैटनर जैसे कई हौलीवुड दिग्गजों पर यौनशोषण के आरोप लगे.

बौलीवुड में अभिनेता इरफान खान पहले अभिनेता थे जिन्होंने अपने संघर्षों के दिनों में खुद को मिले समझौते के प्रस्ताव की बात खुल कर सामने रखी थी. राधिका ने कहा कि अधिक से अधिक महिलाएं अपने अनुभवों को साझा कर रही हैं. एक ऐसे मंच की आवश्यकता है जहां इन की सुनवाई हो पाए. अभिनेत्री ने एक साक्षात्कार में कहा कि केवल महिलाओं को ही नहीं, पुरुषों को भी यौनशोषण का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील व गंभीर विषय है और यौन दुराचार रोकने के लिए अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है.

पुरुषों के साथ यौन दुराचार विदेशों में भी

अरब जगत में हुए बीबीसी के एक सर्वे से इराक के बारे में चौंकने वाली जानकारी सामने आई. इस सर्वे में महिलाओं से ज्यादा पुरुषों ने अपने शारीरिक शोषण किए जाने की बात कही.

समी (बदला हुआ नाम) अपना अनुभव साझा करते हुए बताता है कि जब वह 13 साल का था तब 15 से 17 साल के बीच की उम्र के 3 बड़े लड़के उसे कोने में ले गए और उसे यहांवहां छूने व दबाने लगे. समी सदमे में था कि यह क्या हो रहा है. उस का जिस्म मानो जम गया था. फिर हिम्मत जुटा कर वह चिल्लाया. यह शोर जब दूसरे बच्चों तक पहुंचा तो उन्होंने हैडटीचर को बताया. उन तीनों लड़कों को स्कूल से निकाल दिया गया. निकालने का कारण उन के मातापिता को नहीं बताया गया.

लेकिन, जब हैडटीचर ने बताया कि स्कूल इसे सहमति से हुई यौन घटना बता रहा है और उसे खुश होना चाहिए कि उसे स्कूल से नहीं निकाला गया, तो समी शौक्ड रह गया. इस का मतलब सब को यही लग रहा था कि समी ने सब के साथ मिल कर सहमति से संबंध बनाए. इस हमले से हिल चुके समी ने अपने परिवारवालों को कुछ नहीं बताया. लेकिन कई महीनों तक वह सदमे में रहा. फिर उन के घर आए एक रिश्तेदार ने समी के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब उस ने विरोध किया तो उस ने उसे मारा और रेप किया. वह हिंसक हमला समी के लिए बहुत दर्दनाक था. अगर वह उस के बारे में ज्यादा सोचता, तो उसे बुरे सपने आने लगते थे.

उस हमले के मानसिक घाव से समी इतना परेशान हो जाता था कि रोमांटिक रिश्तों से शरमाने लगा था. फिर उस ने शहर बदला, नए दोस्त बनाए और खुद में आत्मविश्वास पैदा किया. उस ने सोच लिया कि अब उस बुरे अनुभव का बोझ अकेला नहीं ढोएगा. फिर उस ने अपने दोस्तों के एक छोटे समूह से अपने अनुभव शेयर किए और पता चला कि वह अकेला इंसान नहीं है जो यौनशोषण का शिकार हुआ है. उस के दोस्तों के समूह में कई और युवा भी थे, जिन्होंने बताया कि उन के साथ भी ऐसा यौनउत्पीड़न हुआ है.

नहीं मिलता इंसाफ

’ह्यूमन राइट्स वाच’ इराक में गे पुरुषों और ट्रांस महिलाओं के साथ होने वाली यौनहिंसा के बारे में जानती है. हालांकि, ये मामले भी अकसर पुलिस में दर्ज नहीं कराए जाते. इराक में समलैंगिक लोगों के लिए काम करने वाले एक स्वीडन आधारित एनजीओ, इराकीर के संस्थापक अमीर कहते हैं, ‘‘गे और ट्रांस पुरुष इराक में लगातार यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं और ये मामले पुलिस में दर्ज नहीं होते, क्योंकि सामाजिक संरचना पुरुषों को इन चीजों के बारे में बात करने की इजाजत नहीं देती. वे इसलिए भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं कि लोगों को पता चल जाएगा कि वे गे हैं, जिस के बाद वे और ज्यादा हिंसा के शिकार होंगे. हालांकि पुरुषों का बलात्कार भी कानून के खिलाफ है लेकिन पुलिस और समाज में आमतौर पर पीडि़तों के लिए संवेदना नहीं होती. दरअसल, कोई पुरुष बलात्कार के मामले में शिकायत दर्ज कराता है, तो पुलिस वाले उस पर ही हंसते हैं.’’

ऐसा कितनी ही बार हुआ होगा जब आप ने किसी पुरुष के यौनशोषण की बात सुनी होगी? इस का कारण यह है कि कई पुरुष अपने साथ हुए यौनशोषण  की जानकारी देते ही नहीं हैं. उन के मन में पुरुष होने के बावजूद ऐसा होने के लिए मजाक उड़ाए जाने का डर लगा रहता है. महिलाओं की तरह पुरुष अपने शोषण की कहानी नहीं लिख पाते.

एक रिपोर्ट कहती है कि हर 6 में से

एक पुरुष के साथ जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर यौनशोषण होता है, हालांकि, असल आंकड़ा शायद इस से भी ज्यादा हो क्योंकि कई पुरुष अपने साथ हुए शोषण की रिपोर्ट नहीं करते.

आखिर ऐसा क्यों

यौनशोषण के शिकार इंसान, चाहे वह महिला हो या पुरुष, के मन में कई तरह की भ्रांतियां होती हैं. सब से अहम यह है कि क्या मेरे साथ शोषण हुआ है या क्या कुछ गलत हुआ है या यह आम है? यह बात पुरुषों के मन में ज्यादा उठती है. बचपन में लड़कों के साथ हुआ यौनशोषण उन्हें लगता ही नहीं कि गलत है या कुछ बुरा हुआ है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी पुरुष के साथ यौनशोषण कोई महिला कर रही है तो कई बार पुरुष को लगता है कि यह सही है.

इसी कारण कई बार पुरुष को असहजता महसूस होती है और इसे हंसी में टाल दिया जाता है. कई लोगों को तो यह लगता है कि शायद यह उन्हीं ने शुरू किया होगा और सब सही है जिंदगी में. बहुत बाद में उन्हें यह समझ में आता है कि वह सब गलत था और उन का शोषण हुआ था.

साइकोलौजी के मुताबिक, जिस भी लड़के के साथ बचपन में यौनशोषण हुआ होता है उसे आगे चल कर कहीं न कहीं अपनी निजी जिंदगी में दिक्कत होती है. कई इसे हाइपर सैक्सुअलिटी से मापते हैं. कई इसे महिलाओं के प्रति गुस्से से जाहिर करते हैं तो कई पुरुष महिला पर भरोसा नहीं कर पाते हैं और उन्हें गलत ही समझते हैं. बचपन में हुआ यौनशोषण बड़े होने पर सोच पर असर डालता है. अगर 2 छोटी उम्र के लड़के हैं और एक बड़ा और एक थोड़ी कम उम्र का है, तब समझना और मुश्किल हो जाता है कि यह यौनशोषण था.

एक रिसर्चर और ‘डोंट टैल : द सैक्सुअल अब्यूज और बौयज’ किताब के लेखक माइकल डोरैस कहते हैं कि उम्र इस बात पर बहुत असर डालती है कि यौनशोषण के बाद यौनशोषण का शिकार हुए इंसान की सोच कैसी होगी. अकसर मेल टू मेल यौनशोषण में लड़कों को बेहद उग्रता का एहसास होता है और उन का व्यवहार भी वैसा ही बन जाता है.

शर्म और खुद को दोषी समझने लगना, समस्या को जन्म देने लगता है. यौनशोषण किसी भी इंसान को अंदर से गंदा महसूस करवाता है.

समलैंगिकता का ठप्पा लगने का डर : यौनशोषण के शिकार पुरुष को लगता है कि उन के साथ हुए यौनशोषण के कारण लोग उन्हें समलैंगिक न समझने लग जाएं. फिर हो सकता है लोग उन का फायदा भी उठाने लगें. इसलिए वे अपने साथ हुए यौनशोषण की बात किसी से कह नहीं पाते हैं. कहीं न कहीं उन्हें अपनी बदनामी का डर होता है. बौलीवुड की फिल्म ‘बदरीनाथ की दुलहनिया’ में वरुण धवन के यौनशोषण के सीन को कौमेडी की तरह दिखाया गया था और यह बात बेहद चिंताजनक है. मेल ईगो को ले कर इस तरह के सीन समाज में यह दर्शाते हैं कि पुरुषों का यौनशोषण होता ही नहीं है और यह सिर्फ एक मजाक ही है.

पुरुषों के यौनशोषण पर कानून

भारत समेत दुनियाभर में महिलाओं की तरह पुरुष भी रेप का शिकार होते हैं. भारत में पुरुषों के साथ रेप को ले कर कानूनी मान्यता नहीं है, जिस के चलते ऐसे मामले उजागर नहीं हो पाते हैं. हालांकि, अमेरिका समेत दुनिया के दूसरे देशों में पुरुषों के साथ रेप के काफी मामले सामने आते हैं. विदेशों में पुरुषों के साथ रेप होने पर कानून हैं जिन के तहत आरोपी को सजा देने का प्रावधान किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेद्र मोहन शर्मा और एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा का कहना है कि भारत में महिलाओं के साथ होने वाले रेप को ही रेप माना जाता है. पुरुषों के साथ रेप को ले कर कोई कानून नहीं है. हालांकि, अननैचुरल सैक्स को ले कर कानूनी प्रावधान किए गए हैं. इस के तहत आरोपी को 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन पुरुषों के साथ रेप को ले कर कोई प्रावधान नहीं है.

हां, अगर कोई महिला शादी का झांसा दे कर किसी पुरुष से शारीरिक संबंध बनाती है, तो पुरुष को धोखाधड़ी का केस करने का अधिकार है. महिला द्वारा पुरुष का रेप किए जाने का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा भी था. एक व्यक्ति ने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि अगर कोई महिला शादी का वादा कर के शारीरिक संबंध बनाती है और फिर शादी से मुकर जाती है तो क्या यह बलात्कार और धोखा माना जाएगा? उस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई भी, जिस को कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था.

2017 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में एसिड अटैक से पीडि़त पुरुषों को भी सरकारी सहायता देने की सिफारिश की थी. एसिड अटैक की शिकार सिर्फ लड़कियों और महिलाओं को ही सरकारी मदद दी जाती है. उन का सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में मुफ्त इलाज किया जाता है. उन की प्लास्टिक सर्जरी की जाती है. साथ ही, उन्हें इस संकट से उबरने के लिए काउंसलिंग की सुविधा भी दी जाती है. परंतु इसी प्रकार के हमले के शिकार पुरुषों को ये सुविधाएं नहीं मिलती हैं. वे एक अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर होते हैं.

भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है. नतीजा यह हुआ कि यहां महिलाओं को शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया. इसी को ध्यान में रखते हुए महिलाओं के विकास और सुरक्षा हेतु कानून बनाए गए. पर कुछ लोगों ने कानून का दुरुपयोग भी करना शुरू कर दिया और वृद्धों पर भी शारीरिक शोषण के आरोप लगाए जाने लगे. कई बार पुरुषों का शारीरिक शोषण महिलाओं अथवा खुद पुरुषों द्वारा किया जाता है. यह धारणा है कि हमेशा पुरुष ही गलत होते हैं. वे तो बलिष्ठ होते हैं, फिर कोई उन का शोषण कैसे कर सकता है? पर हमें समझना होगा कि हर सिक्के

के दो पहलू होते हैं और पुरुषों का भी मानसिक व शारीरिक शोषण हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अपने एक फैसले में कहा था कि दुष्कर्म और तेजाब पीडि़तों को मुआवजा देने की योजना में नाबालिग लड़कों और पुरुषों को भी शामिल किया जाए. यह निर्णय ‘जैंडर इक्वैलिटी’ की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है. राजस्थान के एक प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल की 11वीं कक्षा के छात्र का सीनियर विद्यार्थियों ने शारीरिक शोषण किया, जिस की शिकायत उस के अभिभावकों ने की. मगर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बावजूद हर स्तर पर इस मामले को दबाने का प्रयास किया गया. राज्य के मीडिया ने लगातार इस मामले को एक महीने तक उठाया था. बावजूद इस के, समाज और प्रशासन के स्तर पर एक चुप्पी सी छाई रही, जैसे यह कोई बड़ी बात हो ही न.

सोच सही नहीं

सर्वे बताता है कि लड़कियों के यौनशोषण के मामले में पुलिस अब जल्द सक्रिय हो जाती है. लेकिन लड़कों के ऐसे मामलों में कुछ खास ध्यान नहीं दिया जाता. सच तो यह है कि लड़कों के साथ हो रहे इन यौन अपराधों के लिए कानूनी पहलू से कहीं ज्यादा सामाजिक सोच जिम्मेदार है. समाज मान कर चलता है कि यौनशोषण तो लड़कियों का होता है. यह बात आमतौर पर दिमाग में लोगों के नहीं आती कि इस का शिकार लड़के भी होते हैं. महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2007 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 52.22 प्रतिशत बच्चों को यौनशोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा और इन में से 52.94 प्रतिशत लड़के इस का शिकार हुए. लेकिन यह बहुत हैरान करने वाला तथ्य है कि इस सत्य के उजागर होने के बाद भी न तो इस संबंध में विधायी संस्थाओं में कोई चर्चा की गई और न ही किसी शोध पर जोर दिया गया.

कुछ समय पहले हुए एससीआईआरटी (स्टेट काउंसिल औफ एजुकेशन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग), हरियाणा के सर्वे में खुलासा हुआ कि लड़कियों के मुकाबले लड़के यौनशोषण के ज्यादा शिकार हो रहे हैं. भले ही यह बात आप को हैरान कर रही हो, मगर सालों से छिपाया जाने वाला यह नंगा सच है जिसे हमेशा ‘मिथक’ कह कर झुठलाया गया है. आमतौर पर लोग इस बात को गंभीरता से नहीं लेते. मानते ही नहीं कि लड़कों का भी रेप हो सकता है और यदि मान भी जाते हैं तो सोचते हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है. इस से कोई खास नुकसान नहीं होता.

इंडियन जर्नल औफ साइकेट्रिक्स ने 2015 में एक लेख प्रकाशित किया था, जिस में कुछ यौनपीडि़तों का उल्लेख किया गया था. उन में एक प्रसंग 9 वर्ष के पीडि़त बालक का था. उस के पिता ने अपने बेटे के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श का विरोध करते हुए कहा था कि इस से न तो वह अपना कौमार्य खोएगा और न ही गर्भवती होगा. उसे एक मर्द की तरह व्यवहार करना चाहिए्र न कि किसी डरपोक इंसान की तरह.

यह सोच एक पिता की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है. अगर बलात्कार से किसी का कौमार्य भंग नहीं होता, वह गर्भवती नहीं होता, तो क्या इसे अपराध नहीं माना जाएगा? यौनशोषण के शिकार पुरुषों को भी महिलाओं के समान ही पीड़ा और मानसिक आघात झेलना पड़ता है. उन्हें भी अपने साथ हुए शोषण पर आत्मग्लानि होती है. इस के साथ ही उन्हें भी समाज द्वारा मजाक बनाए जाने का डर सताता है. जानने पर उन से भी लोग किनारा करने लगते हैं, जो कई बार उन्हें अवसाद में धकेल देता है.

आज जिस तरह से लड़कियां अपने घर में भी असुरक्षित हैं, वैसे ही छोटे लड़के और युवा भी यह खतरा झेलते हैं. कई बार तो उन्हें अपने रिश्तेदार, पड़ोसी के भी हमले का शिकार होना पड़ता है. स्कूलों में उन्हें शिक्षकों, अन्य कर्मचारियों या सीनियर छात्रों से खतरा रहता है. पर हादसा होने पर भय या संकोच के कारण वे लंबे समय तक किसी से कुछ कह नहीं पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं. कई बच्चे तो समझ ही नहीं पाते कि उन के साथ हो क्या रहा है? लेकिन उस बात का बच्चे के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे बच्चे आगे चल कर कुंठा में जीने लगते हैं. कुछ बच्चे हिम्मत कर अगर अपने मातापिता, परिवार से यह बताते भी हैं तो उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है.

2010 में ईटी-साइनोवेट ने देश के

7 शहरों में एक सर्वे कराया, जिस में बेंगलुरु के 32 प्रतिशत पुरुषों ने अपने साथ यौनउत्पीड़न की बात मानी. पुरुष यौनउत्पीड़न को हलके तौर पर लेने वालों को पता होना चाहिए कि 2015 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पाया कि भारतीय जेलों में खुदकुशी की बड़ी वजह साथी कैदियों द्वारा किया गया दुष्कर्म है. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था वर्ल्ड विजन औफ इंडिया ने साफ कहा कि भारत में हर साल यौनशोषण के जितने भी मामले सामने आते हैं, उन में लड़केलड़कियों की संख्या करीबकरीब बराबर ही होती है.

लेकिन अब इस टैबू को तोड़ने के लिए फिल्म निर्मात्री और लेखिका इनसिया दरीवाला विशेष कैंपन चला रही हैं. बता दें कि मुंबई में रहने वाली इनसिया खुद यौनशोषण की शिकार हो चुकी हैं. इनसिया एनडीटीवी डौट कौम पर प्रकाशित एक लेख में कहती हैं, ‘‘मुझ से लोग अकसर पूछते हैं कि एक पुरुष द्वारा यौनशोषण की शिकार हुई महिला होने के बावजूद तुम पुरुषों के यौनशोषण को सामने लाने का कैंपेन कैसे चला सकती हो? तो मैं कहती हूं कि इस सवाल का जवाब पुरुष रेप और यौनशोषण से जुड़े आंकड़े हैं.’’

इनसिया ने बताया कि साल 2007 में भारत सरकार ने एक सर्वे कराया था.

इस अध्ययन में पाया गया कि करीब 59.9 प्रतिशत बच्चे यौनशोषण के शिकार हुए थे. इन में सभी उम्र, राज्यों और सामाजिक पृष्ठभूमि के बच्चे थे.

इनसिया के अनुसार, यौनशोषण के शिकार ज्यादातर बच्चों का यौनशोषण

5  से 16 वर्ष की उम्र के बीच हुआ. इनसिया लिखती हैं कि बच्चे अपने करीबियों को भी इस बारे में नहीं बता पाते. उन्हें डर लगता है कि लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे, लोग उन का यकीन नहीं करेंगे, मजाक उड़ाएंगे. इनसिया ने बताया कि उन के पति का भी बचपन में शारीरिक शोषण किया गया था. वे कहती हैं कि 6 हजार बच्चों और कई वयस्कों से बातचीत करने के बाद मुझे यकीन हो गया कि लड़कों के संग यौनशोषण की घटनाएं पिछले कुछ सालों में और तेजी से बढ़ी हैं. इसलिए इनसिया चाहती हैं कि सरकार इस दिशा में तेजी से कदम उठाए. उन का कहना है कि समाज का जो नजरिया है लड़कों को देखने का, ठीक नहीं है क्योंकि पुरुष बनने से पहले वे लड़के और बच्चे ही होते हैं.

लड़कों के साथ यौनउत्पीड़न होने पर बताने में कतराने की वजह के सवाल पर इनसिया ने कहा कि दरअसल, जब समाज में किसी लड़की के साथ यौनउत्पीड़न की घटना होती है तो समाज की पहली प्रतिक्रिया हमदर्दी की होती है. उसे बचाने के लिए सपोर्ट सिस्टम होता है. लेकिन अगर कोई लड़का अपने साथ हुए यौनउत्पीड़न के मामले को ले कर बोलता भी है तो पहले लोग उस पर हंसेंगे, उस का मजाक उड़ाएंगे. मानेंगे भी नहीं कि उस के साथ ऐसा कुछ हुआ भी है. वे कहेंगे, ‘तुम झूठ बोल रहे हो, यह हो ही नहीं सकता.’ हंसी और मजाक बनाए जाने के कारण लड़कों को आगे आने से डर लगता है.

इनसिया करीब 2 वर्षों से इस अभियान से जुड़ी हुई हैं और शुक्रगुजार हैं वे सरकार की, कि कम से कम वह इस ओर ध्यान तो दे रही है. आज सामान्य कानूनों को निष्पक्ष बनाने की प्रक्रिया चल रही है. इस की शुरुआत पोस्को कानून से हुई. अब धारा 377, पुरुषों के दुष्कर्म कानून को भी देखा जा रहा है. इनसिया कहती हैं कि अब यह नहीं है कि सरकार एक लिंग को ध्यान में रख कर सारे कानून बनाए. यह सिर्फ महिलाओं की बात नहीं है. पुरुष और महिलाओं को समानरूप से सुरक्षा मिलनी चाहिए.

दरअसल, कानून के साथ लोगों को अपनी सोच बदलने की भी जरूरत है कि समाज हम लोगों से बनता है, इसलिए मानसिकता बदलना बहुत जरूरी है. अगर हम मानसिकता नहीं बदल पाए तो कानून कितने भी सख्त बन जाएं, उन का कोई फायदा नहीं होगा.

मी टू की तर्ज पर अब मेन टू कैंपेन की शुरुआत की गई है. इस अभियान के तहत महिलाओं के हाथों यौनशोषण के शिकार हुए पुरुष अब खुल कर बोलेंगे. पीडि़त पुरुष सब के सामने अपनी आपबीती रखेंगे. इस कैंपेन में फ्रांस के एक पूर्व राजनयिक भी शामिल हैं जिन्हें 2017 में यौनशोषण उत्पीड़न के मामले

में अदालत ने बरी कर दिया था. इस अभियान की शुरुआत 15 लोगों के

समूह ने की थी.

 

बागानों में निराई-गुड़ाई के लिए इस्तेमाल करें कल्टीवेटर

बागानों में फलदार पेड़ों के नीचे खरपतवार को हटाने की समस्या बनी रहती है, जिस के लिए किसानों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है. इस पर ज्यादा मेहनत और रकम भी खर्च होती है. हाथ के औजारों से खरपतवार सही तरीके से हट भी नहीं पाती. यही वजह है कि वहां फिर से खरपतवार पैदा होने का डर बना रहता है. इस तरीके से खरपतवार हटाने में जमीन भी उपजाऊ नहीं बन पाती है. अगर इस के स्थान पर इंटरकल्टीवेटर का उपयोग किया जाए तो यह ज्यादासुविधाजनक और सस्ता होने के साथ जमीन ज्यादा उपजाऊ बन सकती है.

एग्रीकल्चरर इंटरकल्टीवेटर डीजल या पैट्रोल से चलता है. इसे हाथ से चला कर किसान फलदार पेड़ों के नीचे उगी खरपतवार को पूरी तरह हटा देता है. साथ ही, जमीन को भी उपजाऊ बना देता है. इस की वजह से पेड़ों को पर्याप्त पोषण मिलने की वजह से उन में ज्यादा फल लगते हैं, जिस से किसान की आमदनी बढ़ जाती है.

इंटरकल्टीवेटर में लगे रोटर खरपतवार को काट कर जमीन में मिला देते हैं, जो पेड़ों के लिए खाद का काम करती है. इस कल्टीवेटर को आसानी से इधरउधर घुमा कर पेड़ के नीचे और आसपास उगी हुई खरपतवार को पूरी तरह से टुकड़ेटुकड़े कर मिट्टी में मिल जाती है. जब पानी दिया जाता है, तो खरपतवार के टुकड़े उपजाऊ खाद में बदल जाते हैं. इंटरकल्टीवेटर से खरपतवार साफ करना सुविधाजनक होने के साथ सस्ता भी है. एक पेड़ के नीचे से मजदूरों द्वारा खरपतवार हटाने में तकरीबन 30-40 रुपए का खर्चा आता है, जबकि इंटरकल्टीवेटर से खरपतवार हटाने में 10 रुपए से भी कम का खर्चा होता है.
पेड़ों के नीचे के अलावा इन के बीच में बनी जमीन को भी इंटरकल्टीवेटर उपजाऊ बना देता है, क्योंकि कल्टीवेटर में लगे रोटर जमीन को खोद कर उसे इस तरह मिला देते हैं कि जमीन के गुणकारी तत्त्व मिट्टी में बने रहते हैं.

ये भी पढ़ें-सरकारी मंडी में मनमानी बनी तरबूज किसानों की परेशानी

भरतपुर की लुपिन फाउंडेशन संस्था ने वैर पंचायत समिति क्षेत्र के नयावास और गोठरा गांव के 16 किसानों को एग्रीकल्चरर इंटरकल्टीवेटर अनुदान पर मुहैया कराए हैं.वैसे, इंटरकल्टीवेटर ज्यादामहंगा भी नहीं आता. भारत में इन मशीनों को बनाने वाली कंपनियां किसानों को तकरीबन 30,000 रुपए में मुहैया करा रही हैं, जिस में घंटेभर में तकरीबन 1लिटर डीजल की खपत होती है. इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल लीची, अनार, अमरूद, नीबू वगैरह बागानों में किया जाता है, क्योंकि इन फलदार पौधों के तने काफी नीचे तक फैल जाते हैं. इन पेड़ों के नीचे उगी खरपतवार को हटाने में काफी परेशानी होती है.

ये भी पढ़ें-फायदेमंद भिंडी

गोठरा गांव के बागान मालिक भगवान सिंह ने बताया कि इंटरकल्टीवेटर हासिल हो जाने के बाद उन्हें पेड़ों के नीचे निराईगुड़ाई करने में आसानी हुई है और उत्पादन भी तकरीबन
25 फीसदी तक बढ़ गया है.इसी तरह  गोठरा गांव के मान सिंह तो खरपतवार से काफी परेशान थे. इंटरकल्टीवेटर मिलने के बाद वे एक दिन में ही पूरे बागान के पेड़ों के नीचे पैदा हुई खरपतवार को हटाने में सक्षम हो गए हैं. इस के अलावा आसपास की जमीन को भी वे इंटरकल्टीवेटर के माध्यम से खुदाई कर उपजाऊ बना रहे हैं.

#WhyWeLoveTheVenue: इंफोटेनमेंट

हुंडई वेन्यू के डैशबोर्ड पर जो चीज सबसे पहले आपका ध्यान खींचेगी, वो है इसका 20.32 सेमी वाला, हाई-रेजोल्यूशन, कैपेसिटिव टचस्क्रीन. इस स्क्रीन की मदद से आप वेन्यू के सभी इंफोटेनमेंट फीचर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. हमने पहले ही ब्लूलिंक कनेक्टेड कार इंटरफेस के बारे में बात की है, जिसे आपके फोन और इस टचस्क्रीन, दोनों से एक्सेस किया जा सकता है. इसके अलावा, वेन्यू एप्पल कारप्ले, एंड्रॉयड ऑटो, और सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम जैसे फीचर्स के साथ लैस आता है.

ये भी पढ़ें-Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: सेफ्टी

जब आप अपने फोन को कार में प्लग करेंगे तो यह तुरंत आपके फोन की स्क्रीन मिररिंग ऐप (mirroring app)को दिखाएगा,जिस से आप डिसट्रेक्शन फ्री ड्राइविंग का अनुभव ले सकेंगे. यदि आपके फोन में सिगनल आना कम हो जाता है, तो वेन्यू सेटलाइट नेविगेशन सिस्टम की मदद लेता है, जो मई मेप इंडिया (MapMyIndia)द्वारा संचालित है. यह मैप बेहद विस्तृत और सटीक हैं, यहां तक कि यह ग्रामीण एरिया को भी विस्तार से दिखाता है, जिस से हमें घर का रास्ता खोजने में मुश्किल नहीं होगी.

इंफोटेनमेंट सिस्टम एक मुख्य कारण है जिस वजह से हम वेन्यू से प्यार करते है.

मदर्स डे स्पेशल: अंधेरे के हमसफर भाग 3

‘‘मां को भी तो हमारी बात समझनी चाहिए. हम उन की पीढ़ी तो हो नहीं सकते. हमारी सब बातों को वे अपनी पीढ़ी से क्यों तोलती हैं? हमें परखें नहीं. हम से प्यार करें तो समझें हमें.’’

‘‘तुम सचमुच जबानदराज हो गई हो, पिंकी,’’ सोमांश को गुस्सा आ गया, ‘‘अब तुम मां से प्रेम का सुबूत मांगती हो. अरे, कौन मां है जो अपने बच्चों से प्यार नहीं करती?’’

‘‘अच्छा मां, माफ कर दो,’’ कहते हुए पिंकी की आंखें भर आईं और वह अपने कमरे में चली गई. पिंकी के आंसू देख सोमांश के मन में परिवर्तन आ गया. अब पिंकी का पलड़ा भारी हो गया. अब पूरी घटना उन्हें एक मामूली सी बात लगने लगी जिसे कजली अकारण तूल दे बैठी थी. अब उन का गुस्सा धीरेधीरे कजली की तरफ मुड़ रहा था कि कजली कुछ नहीं समझती. ग्रेजुएट होते हुए भी अपने जमाने से आगे नहीं बढ़ना चाहती. समझती है कि जो भी अच्छाई है, सारी उस की पीढ़ी की लड़कियों में थी. जरा भी लचीलापन नहीं. समझने को तैयार नहीं कि अब पिंकी नए जमाने की युवती है, जो उस की परछाईं नहीं हो सकती. रात को बिस्तर पर काफी देर तक उन्हें नींद नहीं आई. वे यही बातें सोचते रहे. उधर कजली उन का इंतजार करती रही. कोई एक स्पर्श या कोई प्रेम की एक बात. यह इंतजार करतेकरते उस की कितनी रातें वीराने में लुटी थीं. मगर यह हसरत जैसे पूरी न होने के लिए ही उस की जिंदगी में अब दफन होती जा रही थी. शायद औरतों का मिजाज इसीलिए कड़वा हो जाता है कि वह कभी भी अपने भीतर की युवती को भुला नहीं पाती. वह उस का अभिमान है. देह ढल जाती है मगर वह अभिमान नहीं ढलता. यदि उस का पति उसे थोड़ा सा एहसास भर कराता रहे कि उस की नजरों में वह सब से पहले प्रेमिका है, फिर पत्नी और फिर बाद में किसी की मां, तो उस का संतुलन शायद कभी न बिगड़े मगर पति तो उसे मातृत्व का बोझ दे कर प्रेमिका से अलग कर देता है.

कजली सिसकने लगी. सोमांश झुंझला उठे. वे पहले से ही गुस्से में थे. उन की समझ में नहीं आया कि वह चाहती क्या है. पिंकी पर पूरी विजय पा लेने के बाद भी अभी कुछ कसर रह गई, शायद तभी वह रो रही है. पिंकी को यह अपनी नासमझी से कुचल देगी. वह भी एक भयभीत, दबी, कुचली भारतीय नारी बन कर रह जाएगी. वे कजली की ओर मुड़े मगर उन्हें बोलने से पहले अपने गुस्से पर काबू पाना पड़ा क्योंकि वे जानते थे कि यदि गुस्से में बोला तो कजली सारी रात रोरो कर गुजार देगी. न सोएगी न सोने देगी. कठोर शब्द उस से बरदाश्त नहीं होते और असुंदर परिस्थितियां सोमांश से बरदाश्त नहीं होतीं.

‘‘देखो कजली,’’ सोमांश अपनी आवाज को संयत करते हुए बोले, मगर कजली की नारी सुलभ प्रज्ञा फौरन समझ गई कि वे वास्तव में कु्रद्ध हैं, ‘‘हमें समझना होगा कि यह एक नई पीढ़ी है, कुछ पुराने मूल्य हमारे पास हैं, कुछ नए मूल्य इन के पास हैं. अगर मूल्य इसी तरह आपस में टकराते रहे तो वे विध्वंसक हो जाएंगे. हमें नए और पुराने मूल्यों के बीच समझ पैदा करनी होगी.’’

‘‘कैसे?’’ कजली ने पूछा.

‘‘मान लो, पिंकी कहती है कि यह क्या फूहड़पन है मां. अब पुराने मूल्यों से देखो तो यह एक गाली है और यदि नए मूल्यों से देखो तो स्पष्ट अभिव्यक्ति. स्पष्ट अभिव्यक्ति की खूबी यह होती है कि वह मन में कोई जहर पलने नहीं देती. स्पष्ट अभिव्यक्ति के कारण ही अमेरिका में लोग स्पष्ट सुनने और कहने के आदी हैं. वहां कोई ऐसी बातों का बुरा नहीं मानता. सब जानते हैं कि स्पष्टता की तलाश में अभिव्यक्ति इतनी कड़वी हो ही गई है. इस में दिल की कड़वाहट नहीं है. ‘‘इस के विपरीत मेरा और अपना जमाना लो. बहुत सी कड़वी बातें जबान पर आ कर रह जाती थीं. वे कहां जाती थीं, सब की सब दिल में. जब कड़वी बात जबान से दिल में लौट आती है तो वह दिल में लौट कर गाली बन जाती है.’’

‘‘मैं समझती हूं,’’ कजली बोली, ‘‘मगर क्या करूं, मेरे दिमाग को यह सूझता ही नहीं. जब तुम कहते हो तो दूसरा पहलू दिखता है वरना मुझे लगता है, बच्चे बड़े हो गए हैं, किसी को मेरी जरूरत नहीं अब. बस, कोको है. यह भी बड़ा हो जाएगा. फिर मैं क्या करूंगी? इतनी अकेली होती जाऊंगी मैं…’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो?’’ सोमांश का हृदय करुणा से भर आया. कजली को उस ने बांहों में भर लिया. तब तक चांद पेड़ों पर चढ़ताचढ़ता खिड़की के सामने आ गया था. चांदनी पेड़ों से छनती कुछ शय्या पर आ रही थी. उस उजाले में कजली का आधा मुंह दमक रहा था और आधे पर स्वप्निल साए थे. उस की विशाल आंखों में न आंसू थे न थकान और न ही निराशा. उन की जगह थी एक स्निग्ध चमक, वासना का वह पवित्र आलोक जो कामकलुषित मन से नहीं, शरीर के अंग गहन स्रोतों से निकलता है. यह वह साफ पाशविकता थी जो प्रकृति को दोनों हाथों से पकड़ कर बरसता नभ उमड़उमड़ कर उस के असंख्य गर्भकोषों में उतार देता है. सोमांश को लगा, यौन की पूर्णता के सर्वथा दैहिक होने में है. मन इस का साक्षी न बने, लजा कर छिप जाए अन्यथा मन इसे देख कर कामकलुषित हो जाता है. विप्लव नहीं, एक संयमित, यौन सुरभ्य क्रिया थी, उम्र ने कामविप्लव को झेल कर सुंदर बनाना सिखा दिया था. जो यौवन में उन्मुक्त मद था, प्रौढ़ावस्था में एक कोमल अनुराग विनिमय बन गया था. तृप्ति दोनों में है मगर यह तृप्ति प्रवृत्त होने वालों पर आश्रित है जो प्रौढ़ता को यौवन का अभाव नहीं, एक परिपक्वता की प्राप्ति समझाते हैं, वे इस की देन से जीवन संवारते हैं. सौंदर्य के तार चांद की किरणों के साथ यौनकर्म भी शय्या पर बुन रहा था. आकाश पर दूर छितरे बादलों को देख अब कजली के मन में उठते विचार बदल गए थे. इतनी पीड़ा थी बादलों के मन में, उस ने सोचा गरजगरज कर जी खोल कर आंसू बहाए थे उन्होंने, मगर अब वे दूरदूर थके बच्चों की तरह सो रहे थे. सफेद बादलों से दुख के श्यामल स्पर्श दूर नहीं हुए थे किंतु उन के पाश से अब बादल बेखबर थे. चांदनी में चमकती उन की रुई जैसी सफेदी को श्यामलता का अब जैसे कोई एहसास ही नहीं था.

दुखों से निकलने की राह क्या यही ह? दुखों से लड़ी तो दुख अनंत लगे और दुखों पर साहसपूर्वक आत्मबलि दी तो वे निष्प्रभ हो गए. उधर सोमांश मूल्यों के इस संघर्ष में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने में असमर्थ थे. न तो पत्नी को दबा सकते थे न बेटी को. एक के साथ शताब्दियां थीं, संस्कृति थी तो दूसरी के साथ वह ताजगी, वह चिरनूतन जीवन था जिस से मूल्य और संस्कृति जन्म लेते हैं. दोनों में संघर्ष अनिवार्य है क्योंकि यह दौर अनिश्चितता के नाम है. जब काल के ही तेवर ऐसे हैं तो मैं संभावनाओं के कालरचित खेल को एक निश्चित हल दे कर रोकने वाला कौन हूं. ये छोटेछोटे पारिवारिक संघर्ष ही नए मूल्यों को जन्म देंगे शायद. अपने छोटे से परिवार का हर सदस्य उन की आंखों के आगे अपनी सारी शरारत के साथ आया. हम सब अंधेरे के हमसफर हैं. रोशनी कहां है? कभीकभी इतिहास में ऐसा दौर भी आता है जब पूरी श्रद्धा से अपनेअपने अंधेरे के सहारे चलना पड़ता है.

अगली सुबह चारों एकसाथ मानो किसी अज्ञात प्रेरणा के अधीन नाश्ता करने बैठे, ‘‘पिताजी, आज आप ने ब्रिल क्रीम लगाई है या तेल?’’ कोको ने पूछा.

‘‘ब्रिल क्रीम.’’

‘‘बहुत सारी लगाई होगी,’’ कोको बोला, ‘‘तभी तो चेहरा इतना चमक रहा है.’’

पिंकी हंसने लगी. कजली भी हंसने लगी और बोली, ‘‘या तो लगाते नहीं और जब लगाते हो तो थोक के भाव.’’ सोमांश की ऐसी बचकानी हरकतों पर अकसर घर में हंसी बिखर जाती थी. पुराने मूल्यों और नए मूल्यों के बीच अमूल्य कोको भी था जिस के मूल्य अभी प्रकृति ने समन्वित कर रखे थे, जो सनातन थे कालजन्य नहीं. उस के बचपन का भोलापन अकसर दोनों मूल्यों के बीच ऐसे संगम अकसर रच दिया करता था. कुछ देर में ही कोको और पिंकी की लड़ाई होने लगी, ‘‘देखो मां,’’ पिंकी बोली, ‘‘अब की बार जो रस्कीज (शकरपारे) लाई हो, सब कोको ने छिपा लिए हैं. हमें भी दिलवाओ.’’

‘‘मांमां…’’ कोको बोला, ‘‘पहले दीदी से मेरे 30 रुपए दिलवाओ.’’

‘‘वाह, इसे मैं कहीं ले जाऊं तो ठंडा पिलवाऊं और आइसक्रीम खिलवाऊं…’’

‘‘जो खिलाते हैं, उस के दाम क्या छोटे भाई से वसूल किए जाते हैं?’’ कजली बोली.

‘‘मां, मेरे रुपए दिलवाओ,’’ कोको फिर बोला.

‘‘मैं नहीं दूंगी,’’ कहती हुई पिंकी कमरे में भागी और उस के पीछेपीछे कोको.

मदर्स डे स्पेशल: अंधेरे के हमसफर भाग 2

‘‘उफ, मां,’’ खीज कर पिंकी उठी और मां से फोन छीन लिया. रिसीवर हाथ से ढकते हुए बरसी, ‘‘यह क्या मां, क्या जरूरत है आप को इतनी बातें करने की?’’

तब तक फोन कट गया. ‘‘यह लो, फोन भी कट गया. सारा वक्त तो फोन पर आप ले लेती हैं. फोन पर चाहे मेरा ही मित्र हो, उसे भी आप अपना ही मित्र समझती हैं. ऐसे ही जब अनीता आती है तो ऐसे प्यार करने लगती हो जैसे वह आप की दोस्त है.’’ ‘‘तो इस में क्या हुआ? मुझे अच्छी लगती है, सीधी और नाजुक सी लड़की है.’’

‘‘बस भी कर मां, मुझे बहुत बुरा महसूस हुआ कि तुम संजय को कह रही थीं, तुम कोको की पार्टी में नहीं आए. अब कोको खुद यह बात कहे तो और बात है. आप कौन होती हैं यह बात कहने वाली?’’

‘आप कौन होती हैं’ यह वाक्य तीर की तरह चुभा कजली को, ‘‘मैं कौन होती हूं?’’ वह बोली, ‘‘मैं कोको की मां हूं.’’

‘‘मेरा यह मतलब नहीं था, मां.’’

‘‘तुम क्या अपनी जबान को थोड़ा भी नियंत्रण नहीं कर सकतीं? बाहर वालों के सामने तो ऐसी बन जाती हो जैसे मुंह से फूल झड़ रहे हों और घर वालों से कितनी बदतमीजी से बोलती हो?’’

‘‘आप को कुछ समझाना बेकार है, मां,’’ कह कर पिंकी अपने कमरे में चली गई. बाद में कजली भी अपने कमरे में चली गई. अब दोनों को शाम तक, गृहस्वामी के लौटने तक, अपनाअपना अवसाद जीना था, अपनीअपनी खिन्नता को अकेले झेलना था. दोनों दुखी थीं मगर अपने दुखों को बांट नहीं सकती थीं. कोई दीवार थी जो दुखों ने ही चुन दी थी या फिर अभिमान था, एक मां का सहज अभिमान और एक युवा लड़की के तन में बसे उभरते यौवन का अभिमान जो उसे एक अलग पहचान बनाने को मजबूर कर रहा था, जो मां को आहत सिर्फ इसलिए कर रहा था ताकि वह उस के साए से निकल सके और अपना नीला आसमान खुद बना सके. स्कूल से आते ही कोको ने अपना बस्ता फेंका और बिना जूते खोले मां के पास लेट गया. मां से चिपट गया जैसे इतनी देर दूर रहने मात्र से उस के शरीर के कण प्यासे हो गए थे. उस रस के लिए जो सिर्फ मां के शरीर से झरता था. रात को खाने के बाद कजली ने पति से शिकायत की, ‘‘पिंकी बहुत बदतमीज हो गई है. आज इस ने मुझे फूहड़ आदि न जाने क्याक्या कहा.’’

पति सोमांश, जो पेशे से जज हैं, कुछ देर चुप रहे और पत्नी के दुख को कलेजे में उतर जाने दिया और जब उन के भी कलेजे को इस का लावा झुलसाने लगा तो बोले, ‘‘पिंकी, अब तुम बच्ची तो नहीं रहीं. अगर तुम अपनी मां का आदर नहीं कर सकतीं तो किस का करोगी? जो व्यक्ति अपनी भाषा को नहीं निखारता, उस का व्यक्तिव नहीं निखरता. क्या तुम गंवार लड़की बनी रहना चाहती हो? संस्कार कौन बताएगा? कोई और तो आएगा नहीं. वाणी और करनी पर सौंदर्य का संयम रखोगी तो संस्कार बनेंगे वरना वाणी और कर्म दोनों जानवर बना देंगे. तुम मनोवेगों में जीती हो. मनोवेगों में जीना प्राकृतिक जीवन नहीं है. बुद्धि और संयम भी तो प्राकृतिक हैं, केवल मनोवेग ही प्राकृतिक हो ऐसा तो नहीं.’’ पिंकी रोंआसी हो गई, ‘‘पिताजी, मैं किसी की शिकायत नहीं करती और मां रोरो कर रोज मेरी शिकायत करती हैं. रो पड़ती हैं तो लगता है ये सच बोल रही हैं. यदि मैं भी रोऊं तो आप समझोगे कि सच बोल रही हूं वरना आप मुझे झूठी समझोगे.’’

‘‘तो क्या मैं झूठ बोल रही हूं?’’ कजली बोली.

‘‘आप जिस तरह बात को पेश कर रही हैं, मैं ने उस तरह नहीं कहा था. आप के मुंह से सुन कर तो लगता है, जैसे मुझे जरा भी तमीज नहीं है, मैं पागल हूं.’’ ‘‘तुम पिताजी के सामने निर्दोष बनने की कोशिश मत करो. तुम जिस तरह का बरताव करती हो वह किसी भी लड़की को शोभा नहीं देता. हम तो बरदाश्त कर लेंगे मगर तुम्हें पराए घर जाना है. सब यही कहेंगे कि मां ने कुछ नहीं सिखाया होगा.’’

पिता बोले, ‘‘यह तो मैं भी देखता हूं पिंकी कि तुम ‘मम्मी’ को कुछ नहीं समझती हो.’’

‘‘पिताजी, आप भी ‘मम्मी’ कह रहे हैं,’’ पिंकी हंसने लगी.

‘‘यह हंसी में टालने की बात नहीं है, पिंकी,’’ पिता ने गंभीर आवाज में कहा, ‘‘तुम ने अमेरिकन संस्कृति अपना ली है. वह भारत में नहीं चलेगी. हमारी संस्कृति की जड़ें बहुत मजबूत हैं अमेरिका के मुकाबले. जिस घर में जाओगी वहां की भारतीय जड़ें तुम्हारी अमेरिका की वाहियात बातों को बरदाश्त नहीं करेंगी.’’ पिंकी बोली, ‘‘अमेरिकन संस्कृति कोई संस्कृति नहीं, प्रेग्मेटिज्म है, उपयोगितावाद है यानी जो वक्त का तकाजा है वही करो. इस आदर्श को अपना लेने में हर्ज ही क्या है? जिन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की दुहाई आप देते हैं उन्होंने हमें दिया ही क्या? सदियों की गुलामी, औरतों की दुर्दशा, दहेज व जातिवाद के अलावा और क्या? इस संस्कृति को भी तो खुल कर नहीं जी पाते हम लोग. जीएं तो विदेशों से हुकूमत करने आए लोग सांप्रदायिकता का आरोप लगाते हैं. कितना अस्तव्यस्त कर डाला है आप की पीढ़ी के मूल्यों ने. इस से तो हम ही अच्छे हैं. जो भीतर हैं वही बाहर हैं. अगर हम बहुत मीठी बातें नहीं करते तो हमारे दिल भी तो काले नहीं हैं. वे मूल्य क्या हुए कि दिल में जहर भरा है और ऊपर से सांप्रदायिक एकता का ढोंग रच रहे हैं?’’

‘‘बात तुम्हारी हो रही है,’’ पिता बोले, ‘‘अपनी बात करो, पूरे समाज की नहीं. सारांश यह है कि तुम्हें अपनी मां से माफी मांगनी चाहिए और आइंदा बदतमीजी न करने का वादा करना चाहिए.’’

मदर्स डे स्पेशल: अंधेरे के हमसफर भाग 1

पिंकी के कालेज जाने के बाद बादल घिर आए. आज फिर वह कजली से लड़ी थी. इसी बात को ले कर कजली दुखी थी. कपड़े धोते हुए कई बार उसे रुलाई आई. उस से खाना भी नहीं खाया गया और वह बैडरूम में चली गई. कुछ देर बादलों के घुमड़ते शोर और कजराए नभ ने उस के मन को बहलाए रखा. मगर जैसे ही बूंदें गिरने लगीं उसे फिर पिंकी की बदतमीजी याद आई कि मैं उस की मां हूं और वह मुझे ऐसे झिड़कती है जैसे मैं उस की नौकरानी हूं. पिंकी का व्यवहार अपनी मां के प्रति अच्छा नहीं था. कई बार कजली ने अपने पति से रोते हुए शिकायत की थी. जवाब में वे एक उदास, बेबस सी गहरी सांस लेते और पूरी समस्या का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए उसे धीरज न खोने की राय देते, ‘पुराने मूल्य टूट रहे हैं, नए बन नहीं पाए. नई पीढ़ी इसी दोहरे अंधेरे से घिरी है. अगर हम उन्हें डांटेंगे तो वे भयाक्रांत हो, नए मूल्य ढूंढ़ना छोड़ देंगे. उन का व्यक्तित्व पहले ही मूल्यहीनता की कमी के एहसास से हीनताग्रस्त है. डांटफटकार से वे टूट जाएंगे. उन का विकास रुक जाएगा. बेहतर यही है कि उन के साथ समान स्तर पर कथोपकथन चलता रहे. इस से उन्हें अपने लिए नए मूल्य ढूंढ़ने में मदद मिलेगी.’

पति की इस कमजोर करती, असहाय बनाती प्रतिक्रिया को याद कर कजली की आंखों से विवशता के आंसू बहने लगे. उसे अपना छोटा बेटा कोको याद आया, जो स्कूल गया हुआ था. बड़ा बेटा आईआईटी में इंजीनियरिंग कर रहा था. वह पिंकी की तरह दुर्व्यवहार तो नहीं करता था मगर उस में भी आधुनिक युवावर्ग की असहनशीलता और वह पुरानेपन के प्रति निरादर था. केवल नन्हा कोको ही ऐसा था जो नए और पुराने मूल्यों के भेद से अनभिज्ञ था, जो सिर्फ यह देखता था कि मां की प्यारी आंखें ढुलक रही हैं और यह वह देख नहीं सकता था क्योंकि मां के आंसू देख उस का उदर रोता था. वह अपने मायूस हाथों से उस के आंसू पोंछते हुए उस के गले से लग जाता था  बात कुछ नहीं थी. बात कभी भी कोई खास नहीं होती थी. बस, छोटीछोटी बातें थीं जिन्हें ले कर अकसर पिंकी दुर्व्यवहार करती. आज वह देर तक सोती रही थी. कजली ने उसे जगाया तो वह झुंझला कर बोली, ‘‘उफ, मां, तुम इतनी अशिष्ट क्यों हो गई हो?’’

‘‘क्यों, इस में क्या अशिष्टता हो गई?’’

‘‘अच्छा, इतनी जोर से मुझे हिलाया और ऊपर से कह रही हो कि इस में क्या अशिष्टता हो गई? क्या प्यार से नहीं जगा सकती थीं?’’

‘‘मुझ से ये चोंचले नहीं होते.’’

‘‘ये चोंचले नहीं, मां, आधुनिक संस्कृति है. मेरा सारा मूड आप ने खराब कर दिया. मैं ने कई बार कहा है कि जब मैं सो रही होऊं तो ऐसी कठोर आवाज में मत बोला करो. सुबह उठने पर पहला बोल प्यार का होना चाहिए.’’

‘‘तो अब तुम मुझे सिखाओगी कि कैसे उठाया करूं, कैसे तुम से बात किया करूं? एक तो 9 बजे तक सोई रहती हो ऊपर से मुझे उठाने की तमीज सिखा रही हो. हमारे जमाने में सुबह 6 बजे उठा दिया जाता था. हमारी हिम्मत नहीं होती थी कि कुछ कह सकें.’’

‘‘वह पुराना जमाना था, तब लड़कियों को घर की नौकरानी समझा जाता था. मेरे साथ यह सब नहीं चलेगा.’’

‘‘क्या नहीं चलेगा? तू बहुत जबान चलाने लगी है. जरा सी भी तमीज है तुझ में? मैं तेरी मां हूं.’’

‘‘मां, आप हद से आगे बढ़ रही हो. मैं ने आप को ऐसा कुछ नहीं कहा है. आप मुझे गालियां दे कर निरुत्साहित कर रही हो. आप क्या समझती हो कि मैं आप के इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार को बरदाश्त कर जाऊंगी.’’

‘मूर्खतापूर्ण’ शब्द सुनते ही कजली आश्चर्यचकित रह गई. उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे. अपना सारा उफान उसे पीना पड़ा. नाश्ते की मेज पर फिर पिंकी ने अपने नखरे शुरू कर दिए, ‘‘यह क्या नाश्ता है, मां? परांठे और दूध, क्या यह क्रौकरी लगाने का ढंग है? प्लेटें हरे रंग की हैं तो डोंगे भूरे रंग के. मां, मैं तो ऐसे नहीं खा सकती. खाने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है खाना परोसने का तरीका. फूहड़ तरीके से परोसने से वैसे ही भूख मर जाती है.’’ अब यह दूसरा कठोर शब्द था, ‘फूहड़’. यानी मां फूहड़ है. ‘‘तू अब मां को फूहड़ कहना सीख गई. मैं भी ग्रेजुएट हूं. इस घर में बस यही मेरी इज्जत है?’’

कजली की आंखों में आंसू भर आए. ये ऐसे आघात थे, जो उस ने कभी बचपन में जाने नहीं थे. जिस संस्कृति में वह पली थी उस में मां की शान में गुस्ताखी अक्षम्य थी. कोई भी मां अपनी बेटी से ‘फूहड़’ शब्द सुन कर शांत नहीं रह सकती थी. मां को रोते देख पिंकी सहम गई, ‘‘मैं ने आप को नहीं कहा, मां. मैं तो कुंदन को कह रही थी. इस को कुछ सिखाओ, मां. यह कुछ भी नहीं सीखना चाहता. जैसा गंवार आया था वैसा ही है.’’

‘‘मैं सब समझती हूं. बेवकूफ नहीं हूं. क्या यहां कुंदन था जब तू यह सब बोल रही थी?’’ पिंकी अवाक् हो गई और अपना उतरता चेहरा छिपाने के लिए कालेज के लिए देरी होने का बहाना करते हुए बाहर हो गई. एक पीड़ा थी, एक गहन पीड़ा, एक अनंत सी लगती पीड़ा, जिस का उद्गम पेट के गड्ढे में था, जहां से वह लावे की तरह उबल रही थी. जो आंसू कजली की आंखों से बरस रहे थे वे देखने में तो पानी थे लेकिन वे पिघले लावे की तरह आंखों को लग रहे थे. इस दुख में और सारे दुख आ मिले थे. सब से बड़ा यह था कि गृहस्थ जीवन ने उसे क्या दिया? 3 बच्चे, दुनियाभर की चिंताएं. दुनियादारी के दबाव, भय व दिन पर दिन आकर्षण खोता शरीर और सैक्स से विरक्त होते पति. पूरीपूरी रात वह थक कर, दफ्तर

 

की चिंताओं और जिंदगी की उलझनों को हफ्ते में 2-3 बार 3 पैगों में गर्त कर के ऐसे सोते रहते जैसे स्त्री शरीर के प्रति उन में केवल मातृभाव था. वासना जैसे थी ही नहीं, किंतु चोट तब लगती जब पार्टियों में या कार में साथ जाते हुए वे जी खोल कर सुंदर युवतियों की रूपसुधा से मोटे चश्मे के पीछे आंखों की वीरानी दूर करते. अब उम्र की ढलान पर उतरते हुए कजली को लगता जैसे इतनी धूप में वह अकेली रह गई है.

अब भी उस का मन करता कि उस के पति दफ्तर से लौटते ही उसे उसी तरह बांहों में लें जैसे शुरू में लेते थे. उस का शरीर चाहता अठखेलियां हों, कुछ रातों को जागा जाए, कुछ फुजूल की बातें हों और सुबह की रोशनी में धुंधला चांद हो जब वे दोनों सोएं. मगर ये इच्छाएं अब एकतरफा थीं. उसे ग्लानि होने लगी थी अपनी दैहिकता पर. वह अगर खुल कर अपने व्यक्तित्व को जीए तो दुनिया हंसेगी और अगर व्यक्तित्व को न जीए तो शरीर का पोरपोर घुटता है और वह स्थूल होता जाता है. अजब मूल्य है आधुनिक समाज का भी, जो युवावर्ग को तो पूरी आजादी देता है मगर वही युवा वर्ग अपने मातापिता की जरा सी शारीरिक अल्हड़ता बरदाश्त नहीं करता. वह चाहता है कि मातापिता आदर्श मातापिता बने रहें, यह भूल जाएं कि वे स्त्रीपुरुष हैं. 3 बजे पिंकी कालेज से लौटी. वह खाना खा रही थी कि तभी फोन आया. कजली ने फोन उठाया. पिंकी का मित्र संजय था. कजली उस से बातें करने लगी, ‘‘कैसे हो बेटे? मां कैसी हैं? पढ़ाई कैसी चल रही है? तुम कोको की पार्टी में नहीं आए, मुझे बहुत दुख हुआ.’’

अब जहरीली गैस ने मचाई तबाही

आंध्र प्रदेश के तटीय शहर विशाखापत्तनम में एक औद्योगिक इकाई से निकली जहरीली गैस ने जिस तरह तबाही मचाई है उसने एक बार फिर भोपाल गैस काण्ड की याद ताज़ा कर दी है. ये साबित हो गया है कि इंसान की जान की कोई कीमत नही है, इंडिया में यह सबसे सस्ती है. सुबह-सुबह जब लोग अभी नींद से पूरी तरह जाग भी नहीं पाए थे कि विशाखापत्तनम में एक फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक होने से पूरे क्षेत्र में भगदड़ मच गई। लोग जान बचाने के लिए मुँह पर कपड़ा ढंके सुरक्षित जगहों की ओर भागने लगे. कई तो रास्ते में ही बेहोश हो-हो कर गिरने लगे तो कइयों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. इस गैस हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत की पुष्टि शासन ने की है जबकि 5000 से अधिक बीमार हैं जिन्हें सांस लेने में तकलीफ और आंखों में जलन हो रही है. बीमार लोगों में बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं. इन्हें प्राथमिकता के आधार पर अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वहीं मरने वालों में भी एक 8 साल की बच्ची शामिल हैं.
गैस रिसाव के चलते प्लांट के 3 किमी के दायरे तक लोगों में दहशत फैली हुई है. कई लोग सड़क पर ही बेहोश पड़े हुए हैं जबकि कुछ लोग बेहोश हो कर पास स्थित नाले में गिर गए.

अचानक हुए इस हादसे से हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल है और पुलिस लोगों से घर से बाहर आने और सुरक्षित जगहों पर जाने की अपील कर रही है.विशाखापट्टनम जिला कलेक्टर वी विनय चंद का कहना है कि स्थिति काबू में है. प्रभावित लोगों ने आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, जी मचलाना और शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने की शिकायत की है. 200 से ज़्यादा गंभीर लोगों को अस्पतालों में भर्ती किया गया है. जिन्हें सांस लेने में तकलीफ है उन्हें ऑक्सिजन सपोर्ट दिया जा रहा है.

ये भी पढ़ें-पुरुषों का बलात्कार

गोपालपटनम सर्कल इंस्पेक्टर रमनया के मुताबिक़ घटना के बाद करीब 50 लोग सड़कों पर बेहोश पड़े मिले जिन्हे अस्पताल पहुंचाया गया है. गैस के कारण घटनास्थल पर तुरंत पहुंच पाना मुश्किल था, हममें से किसी के लिए भी वहां 5 मिनट या उससे कुछ मिनट ज्यादा समय तक टिकना संभव नहीं था. लेकिन पुलिस ने लोगों से घर से बाहर आने और सुरक्षित जगहों पर जाने की अपील की और लोगों को बाहर निकाला. इस दौरान गैस के प्रभाव में आने से कुछ बाइक सवार लोग भी नियंत्रण खो कर रास्ते में गिर पड़े जिसके चलते कुछ छोटे-मोट एक्सिडेंट भी हुए हैं.

मौके पर लोगों को बचाने के लिए नेशनल डिजास्टजर रेस्पॉन्स फोर्स यानी एनडीआरएफ की टीम लगी है. प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको लेकर मीटिंग बुलाई है और वो खुद पूरे मामले पर नज़र रख रहे हैं.

एलजी पॉलिमर्स के प्लांट से लीक हुई गैस

यह गैस साउथ कोरियन कंपनी एलजी पॉलिमर्स के प्लांट से लीक हुई. इस प्लांट में पॉलिस्टीरीन बनाई जाती है यानी ऐसी प्लास्टिक जिसका खिलौनों और बाकी उपकरणों को बनाने में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. प्लांट में स्टीरीन गैस का इस्तेमाल इसी प्लास्टिक को बनाने के लिए हो रहा था. यह प्लांट विशाखापत्तनम शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है. जो केमिकल लीक हुआ है वह स्टीरीन है जिसे एथनीलबेन्जीन भी कहा जाता है.यह एक ऑर्गेनिक कंपाउंड है. यह एक सिन्थेटिक केमिकल है जो रंगहीन लिक्विड के रूप में दिखती है. हालांकि, काफी समय से इस गैस को रखा जाए तो यह हल्के पीले रंग की दिखती है.स्टीरीन बहुत ही ज्वलनशील होती है और जब यह जलती है तो बहुत ही जहरीली गैस रिलीज करती है.स्टीरीन का इस्तेमाल मुख्य तौर पर पॉलिस्टिरीन प्लास्टिक बनाने में किया जाता है.

ये भी पढ़ें-क्यों बनते हैं विवाहेत्तर संबंध

कितनी खतरनाक है यह गैस?

इस गैस की चपेट में आने से सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम बुरी तरह खराब हो सकता है. सुनने की क्षमता भी खत्म हो सकती है और दिमागी संतुलन खत्म हो सकता है. बाहरी वातावरण में आने के बाद स्टीरीन ऑक्सिजन के साथ आसानी से मिक्स हो जाती है. नतीजतन हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती है. इसके संपर्क में आने के बाद लोगों के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है और वे घुटन महसूस करने लगते हैं. यह गैस बाद में दिमाग और रीढ़ की हड्डी पर भी असर डालती है. इस वजह से गैस के संपर्क में आने वाले लोग सड़कों पर इधर-उधर गश खाकर गिर पड़े.स्टीरीन न्यूरो-टॉक्सिन गैस के संपर्क में आने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है. इससे 10 मिनट के भीतर प्रभावित व्यक्ति की मौत हो सकती है.

अंधेरे के हमसफर: पिंकी ने क्यों बदला अपनी मां के लिए व्यवहार?

#WhyWeLoveTheVenue: सेफ्टी

एक ऐसी गाड़ी जो आपके पूरे परिवार की मनपसंद कर में से हो, उसका सुरक्षित होना बहुत ज़रूरी है. इस मामले में हुंडई वेन्यू हर तरह से तैयार है. यह ऐसे कई एक्टिव और पैसिव सुरक्षा साधनों से लैस है, जो आपके परिवार को हमेशा सुरक्षित रखेगा.

इस कार की बॉडी पार्ट स्टील से बना है जो बेहद मजबूत है, जो भयंकर टक्कर को भी झेल कर अंदर बैठे लोगों को सुरक्षित रखता है.

ये भी पढ़ें-Hyundai venue: एयर प्यूरीफायर ने बढ़ाई वेन्यू की डिमांड 

अगर बात करें इसके एक्टिवसुरक्षा उपकरणों की, तो हुंडई वेन्यू में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक स्थिरता नियंत्रण प्रणाली (एलेक्ट्रोनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल सिस्टम) इसके स्टीयरिंग के कोण (स्टीयरिंग एंगल), थ्रॉटल की स्थिति (थ्रॉटल पोजिसन), और व्हील स्लिप जैसे पैमानों को लगातर जांचता रहता है और आपको सही दिशा की तरफ बढ़ाता रहता है. इसका ईएसपी सिस्टम आपातकालीन स्टीयरिंग और ब्रेकिंग का तनाव ड्राईवर के ऊपर से हटा कर उसके लिए सुरक्षा की एक परत बना देता है.

हुंडई वेन्यू आपको किसी भी खतरनाक टक्क की स्थिति में भी बचाने के लिए पूरी तरह तैयार है. इसमे मौजूद छह एयरबैग क्रंपल ज़ोन और सीट बेल्ट के साथ मिलकर टक्कर के असर को अंदर बैठे यात्रियों से दूर हटा कर उन्हें सुरक्षित रखते हैं.

ये भी पढ़ें-#WhyWeLoveTheVenue: मार्केट में वेन्यू की बढ़ती डिमांड

हमारे लिए सुरक्षा बहत महत्वपूर्ण है, और इसलिए हम हुंडई वेन्यू से प्यार करते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें