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पुलिस ने मांगी छोटी सरदारनी की एक्ट्रेस से मांफी, लॉकडाउन तोड़ने का लगा था आरोप

छोटी सरदारनी में अहम किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस अनीता राज को लेकर बड़ी खबर आई है. अनीता के ऊपर लॉकडाउन के नियमों को तोड़ने का आरोप लगा है. यह आरोप एक्ट्रेस के पड़ोसियों ने लगाया है. इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस से भी की है. जिसके बाद पुलिस ने अदाकारा की जांच पड़ताल भी कि है. आइए जानते हैं आखिर क्या है पूरा मामला.

अनीता के पति पेशे से डॉक्टर है. उनके घर पर इलाज के लिए उनके पति के दोस्त आएं थें जिसे वह मना नहीं कर पाई. यह बात सोसाइटी वालों को हजम नहीं हुआ उन्होंने तुरंत इसकी शिकायत पुलिस से की.

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हालांकि अनीता ने इस बात पर सफाई देते हुए कहा है कि वह लोग मेरे पति से मिलने नहीं आएं थें. इलाज के लिए आएं जिसे हम मना नहीं कर सकते थें.

 

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जब पुलिस ने पूरे मामले की छानबीन करी तो पता चला कि उन्होंने किसी नियम को तोड़ा नहीं है. एक मेडिकल स्टाफ होने के नाते उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी की है.

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पुलिस ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए अनीता और उनके पति से अपनी गलती के लिए माफी मांगा है. अगर वर्कफ्रंट की बात करें तो अनीता 80 के दशक में कई हिट फिल्मों में काम कर चुकी हैं. बीते दिन वह छोटे सरदारनी में नजर आ रही थी. फिलहाल खबर आ रही है कि अब यह सीरियल बंड होने वाला है.

#coronavirus: लॉकडाउन की दोगली व्यवस्थाओं पर उठते सवाल

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये गये लौक डाउन पर सरकार की दोगली नीतियों पर अब सवाल उठने लगे हैं. देश के नवनिर्माण में मील का पत्थर कहे जाने वाले मजदूरों को भी यह अहसास हो गया है कि  सरकारें अमीर और धन्ना सेठों के लिए ही होती हैं.

कोटा में डाक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लिए लाखों रुपए कोचिंग पर खर्च करने वाले अमीरों के लड़के, लड़कियों को घर वापस लाने सरकार करोड़ों रुपए फूंक रही हैं, परन्तु गरीब मजदूर तपती धूप में भूख प्यास के बावजूद  नंगे पांव चलकर सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं.

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अमीरों के साहबजादों को घर लाने ग्वालियर से 150 बस कोटा के लिए रवाना की है .और दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों की बात तो छोड़िए  एक जिले से दूसरे जिलों में जाने वाले मजदूरों को घर पहुंचाने की कोई सुध ही नहीं है. सुध कैसे हो आखिर ये ये सरकार अमीर धन्ना सेठों और अफसरों की हिमायती सरकार जो ठहरी.

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मध्यप्रदेश की किसान हितैषी सरकार के पुलिस कर्मियों ने तो हद ही कर दी. तिलहरी गांव में गाय को चारा देने गये 52 साल के किसान वंशीलाल कुशवाहा को इतना बेरहमी से पीटा कि उसके प्राण पखेरू उड़ गए.

वंशीलाल का कसूर सिर्फ इतना था कि वह लौक डाउन में रात दस बजे गांव के बाहर खेत में बंधी अपनी गाय को चारा डालने गया था.

घटना 16 अप्रैल 2020 की रात की है, किसान बंशी कुशवाहा खेत में बंधी गाय को चारा देकर लौट रहा था, तभी वहां पहुंचे गोराबाजार थाना के पुलिस कर्मियों ने किसान से जुआं खेलने वालों का अड्डा पूछा, किसान ने नहीं बताया तो उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी . पुलिस उसे तब तक उसे पीटते रहे, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया .वहां से गुजर रहे लोगों ने की मदद से घर वालों ने किसान को एक निजी अस्पताल में लाकर भर्ती कराया, जहां रविवार 19 अप्रेल की रात उपचार के दौरान किसान की मौत हो गई.

मृतक किसान के 16 और 14 साल के वेटे रो रोकर शिवराज मामा से पूछ रहे हैं कि आखिर उनके पिता का गुनाह क्या था.?

कोरोना वायरस का संक्रमण जिस तेजी से अपने पैर फैला रहा है, उससे लाक डाउन के बढ़ने की संभावना तो पहले से ही व्यक्त की जा रहीं थी. इन सबके बावजूद लोगों की चिंता इस बात को लेकर रही कि लाक डाउन में  बीमार , बुजुर्ग और महिलाओं की समस्याओं पर  जरा भी ध्यान नहीं दिया गया.

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मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव सेठान में रहने वाले ओमप्रकाश प्रजापति अपनी पत्नी सविता के प्रसव के लिए 12 अप्रैल की सुबह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र साईंखेड़ा पहुंचे , लेकिन वहां ड्यूटी पर कोई डाक्टर उपलब्ध नहीं था. एएनएम और नर्सिंग स्टाफ ने महिला की डिलीवरी की प्रारंभिक तैयारियां शुरू की ही थी कि महिला को ब्लीडिंग ज्यादा होने के कारण तहसील के स्वास्थ्य केंद्र के लिए रिफर कर दिया गया है. अब समस्या थी कि लाक डाउन में 25 किमी दूर गाडरवारा कैसे पहुंचे. काफी मशक्कत के बाद स्थानीय लोगों की मदद से एक वाहन द्वारा महिला और उसके पति को रवाना किया गया, लेकिन तब तक देर हो हो जाने के कारण महिला और उसके होने वाले बच्चे की मौत हो चुकी थी.

लौक डाउन के दौरान होने वाली ये घटनाएं वार वार यही सवाल खड़ा कर रही हैं कि आखिर सरकारों का यह दोहरा चरित्र क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मजदूरों को घर जाने से रोक कर बड़े बड़े पूंजीपतियों और  उद्योगपतियों के हित पूरे  कर रही हो.क्योंकि यदि  मजदूर घर चले गए तो ऊनकी फैक्ट्री और कारखाने कैसे चलेंगे.

#lockdown: कोरोना पीड़ित होने से मॉ‌‌ब लिंचिंग से बच गया जावेद

मोदी सरकार के कार्यकाल में माब लिंचिंग की घटनाएं थमने का ना नहीं ले रही हैं. कभी मंदिर मस्जिद के नाम पर तो कभी भारत पाकिस्तान के नाम पर देश में शांति और सौहार्द्र का वातावरण खराब करने की घटनाएं आम हो गई हैं. महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ द्वारा की गई साधुओं की हत्या को भी सांप्रदायिक रंग देने की खूब कोशिश की गई, लेकिन जल्द ही असलियत उजागर हो गई .इसी तरह मध्यप्रदेश के एक कोरोना पीड़ित के मेडिकल से भागने पर सोशल मीडिया पर  वातावरण कुछ इस तरह बन गया था कि यदि उसे कोरोना की बीमारी नहीं होती तो भीड़ उसे मार ही डालती.

19 अप्रैल 2020 को जबलपुर मेडीकल अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कोरोना पाज़ीटिव जावेद खान पुलिस कर्मचारियों की लापरवाही के कारण भाग निकला.

अपनी जान की परवाह न करते हुए पुलिस की नाक के नीचे से भागने वाला चंदन नगर इंदौर निवासी 30 साल का यह युवक वही जावेद है,जिस पर इंदौर के चंदन नगर इलाके में जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर पत्थर बरसाने का आरोप लगा है.

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इंदौर का यह चंदन नगर इलाका तभी सुर्खियों में आया था ,जब वहां रहने वाले वाशिंदों ने कोरोना टेस्ट न कराने के विरोध में मेडिकल टीम और पुलिस पर हमला बोला था. इंदौर पुलिस द्वारा जब जावेद पकड़ा गया तो  उसके विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला कायम कर जेल भेजा गया था. इंदौर प्रशासन ने ज़ावेद का कोरोना टेस्ट  किए बिना जल्दबाजी में उसे  9 अप्रैल को जबलपर जेल शिफ्ट कर दिया. 11 अप्रैल को जब जावेद की कोरोना रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो जबलपुर जेल में हड़कंप मच गया. आनन फानन में जावेद को जबलपुर मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में पुलिस की निगरानी में रखा गया था.

रविवार 19 अप्रैल को मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड के मरीजों को जबलपुर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का काम चल रहा था.अस्पताल के कमरे खोले गए थे.जावेद के कोरोना पाज़ीटिव होने के कारण पुलिस टीम भी जावेद से दूरी बनाकर निगरानी रखती थी . दोपहर 2 बजे के लगभग जावेद पुलिस को  चकमा देकर वहां से फरार हो गया.शाम 4 बजे जब ड्यूटी पर तैनात चार पुलिस कर्मियों ने उसे वार्ड से नदारत पाया तो उनके पैरों तले से जमीन खिसकने लगी.

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जबलपुर जिला प्रशासन ने जबलपुर की सीमाओं को सील करते हुए आसपास के जिलों में भी अलर्ट कर दिया .एस पी अमित सिंह ने ड्यूटी पर तैनात चारों पुलिस कर्मियों की लापरवाही पर उन्हें बर्खास्त कर दिया और फरार जावेद की गिरफ्तारी पर 11 हज़ार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

20 अप्रैल की सुबह साढ़े सात तेंदूखेड़ा पुलिस थाना से 7 किमी दूर रायसेन जिले की सीमा से लगे मदनपुर गांव में बने चैक पोस्ट से कुछ दूरी पर एक मोटरसाइकिल आकर रुकी तो चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारी मुस्तैद हो गये.मोटर सायकिल से आने वाला शख्स अपनी मोटरसाइकिल को किक मारकर स्टार्ट कर रहा था,मगर वह स्टार्ट नहीं हो रही थी. ड्यूटी पर तैनात फारेस्ट के वन रक्षक प्रिंस साहू ने युवक के पास जाकर देखा कि बढ़ी हुई दाढ़ी वाला यह युवक काफी परेशान लग रहा था. प्रिंस ने ध्यान से देखा कि कल वाट्स एप मैसेज में जावेद के फरार होने की जो फोटो डाली गई थी, उससे इस युवक का चेहरा मेल खा रहा था.अंतर केवल इतना था , उस फोटो में दाढ़ी नहीं थी. प्रिंस ने युवक को संदिग्ध जानकर तेंदूखेड़ा पुलिस थाने में सूचना देकर जब सख्ती से पूछताछ की तो युवक घबरा गया . इतने में तेंदूखेड़ा पुलिस थाने के एएसआई बसंत शर्मा और तहसीलदार पंकज मिश्रा भी चैक पोस्ट पहुंच गये थे . पुलिस टीम ने जब उससे पूछताछ की तो  उसने अपना नाम जावेद पिता नासिर खान बताया और जबलपुर मेडिकल कॉलेज से भागने की बात स्वीकार कर ली.

चन्दन नगर इंदौर पुलिस थाने के चंदू वाला रोड की गली नं 10 में रहने वाले जावेद के घर में उसकी मां, बहिन ,बीबी और दो लड़कियां हैं. इंदौर में कोरोना की जांच के लिए ग‌ई मेडिकल टीम पर  उसी इलाके के कुछ लोगों ने पथराव कर दिया . इस खबर को स्थानीय मीडिया ने संप्रदायिक रंग में रंग दिया . जावेद का घर मेन रोड पर होने के कारण पुलिस ने उससे पूछताछ की.जावेद और उसके परिवार के लोग मिन्नतें करते रहे कि उन्होंने पथराव नहीं किया है. पुलिस ने सन्देह के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया.और रासुका के तहत जबलपुर जेल भेज दिया. जेल अधीक्षक ने जेल में रखने की बजाय उसे कोरोना परीक्षण हेतु विक्टोरिया अस्पताल भेज दिया और जब रिपोर्ट पाज़ीटिव आई तो मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर दिया. रासुका में बंद होने और ऊपर से कोरोना पाज़ीटिव होने की वजह से जावेद बुरी तरह डर गया था. दस दिनों में ही उसे अपने बीबी, बच्चों की चिंता सताने लगी थी.

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कोरोना पीड़ित जावेद के मेडिकल कॉलेज से फरार होने की घटना दिन भर टीवी चैनलों पर छाई रही  और सरकार में बैठे भगवाधारी पंडे मजदूरों की त्रासदी को भूलकर इस घटना के लिए संप्रदाय विशेष पर दोषारोपण करते दिखाई दिए. लौक डाउन में पुलिस प्रशासन और तीन चेक पोस्टों पर तैनात अमला असहाय, लाचार मजदूरों को आगे बढ़ने से तो रोक देता है , परन्तु जावेद को रोकने में कितना लापरवाह रहा .

चटनी न सिर्फ स्वाद बल्कि सेहत भी सुधारती है

चटनी न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि  हमारी सेहत को भी बेहतर बनाने में मदद करती है. आइए, आप भी जानें कि चटनी खाने के क्या फायदे हैं.

यदि आप सोचते हैं कि खाने के साथ चटनी सिर्फ टेस्ट के लिए खाई जाती है तो यह आप की भूल है, क्योंकि चटनी भोजन के पाचन को आसान बनाती है और पेट में गैस बनने से भी रोकती है. यह अपच की समस्या से भी  निजात दिलाती है.

चटनी भारतीय खानपान का एक अभिन्न अंग है  लेकिन चटनी एक तरह की नहीं होती. धनियापुदीना से ले कर अलगअलग दालों को मिला कर कई प्रकार की चटनी तैयार की जाती हैं…

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कच्चे प्याज,हरी मिर्च और पुदीना चटनी

कच्चा प्याज खाने से हमारा ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है. इस में सल्फर, कैल्शियम और विटामिन सी मौजूद होता है. जो लू और गर्मी के कारण होने वाली दिक्कतों से हमें बचाता है. साथ ही हरी मिर्च हमारे दिमाग के लिए अच्छी होती हैं. पुदीना भी हमारे हमारे दिमाग को शांत और ठंडा रखने में मदद करता है, साथ ही यह एनर्जी भी बढ़ाता है.

विधि : इस चटनी को बनाने के लिए आप को चाहिए कच्चा प्याज, हरी मिर्च, काला नमक, पुदीना पत्ती, थोड़ा-सा जीरा. सभी को मिला कर एकसाथ पीस लें. टेस्टी और हेल्दी चटनी तैयार है.

कच्चे आम की चटनी

ज्यादातर लोगों को मालूम है कि कच्चे आम का पना हमें लू लगने से बचाता है, लेकिन बहुत कम  लोग ही जानते हैं कि इस की चटनी हमें लूज मोशन, लू, अपच, खट्टी डकार जैसी समस्याओं से भी बचाती है.

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विधि : कच्चे आम की चटनी बनाने के लिए आप को चाहिए हरी मिर्च, जीरा, कच्चा आम, थोड़ा सा प्याज और काला नमक. सब को एक साथ पीस कर चटनी तैयार कर लीजिए. खाने का स्वाद बढ़ जाएगा और जायका भी दुरुस्त हो जाएगा.

टमाटर-प्याज और लहसुन की चटनी

टमाटर में लाइकोपीन नामक ऐंटिऑक्सीडेंट होता है. साथ ही लहसुन भी  एक अच्छा ऐंटिबायॉटिक है. प्याज के बारे  हम आप को बता चुके हैं. जब इन तीनों चीजों को साथ  मिला कर आप चटनी तैयार करते हैं तो यह आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और फंगल इंफेक्शन से बचने में भी मदद करती है.

विधि : इस चटनी को बनाने के लिए आप को प्याज, टमाटर और लहसुन के साथ ही थोड़ी-सी राई, साबुत लाल मिर्च और पिंक सॉल्ट चाहिए. खा कर देखिए इस चटनी का स्वाद मन को भा जाएगा.

चना दाल की चटनी

चने की दाल की चटनी आमतौर पर इडली और डोसा के साथ इंजॉय की जाती है, लेकिन पराठा और पूड़ी के साथ इसे खाना भी लोग उतना ही इंजॉय करते हैं. इस चटनी को बनाने के लिए  चने की दाल रात को पानी में भिगो कर रख दें और सुबह इसे पीस कर चटनी तैयार करें. यह चटनी तरहतरह के इंफेक्श्स से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती है.

विधि: इस चटनी  को बनाने के लिए आप को चाहिए लहसुन, लौंग, काला नमक, जीरा और करी पत्ता. इन सभी चीजों को चने की दाल के साथ पीस कर चटनी तैयार करें.

 

Satyakatha: पत्नी की विदाई

सौजन्या- सत्यकथा

पिछले 2-3 दिनों से 20 वर्षीय नैंसी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत परेशान थी. इस की वजह यह थी कि उस का 21 वर्षीय पति साहिल चोपड़ा उसे प्रताडि़त कर रहा था. इस दौरान उस ने नैंसी की कई बार पिटाई भी कर दी थी.

नैंसी ने यह बात अपने घर वालों तक को नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि उस ने घर वालों के विरोध के बावजूद साहिल से लव मैरिज की थी.

साहिल और उस की शादी को अभी 8 महीने ही हुए थे. पति के प्यार की जगह वह उस के जुल्मोसितम सह रही थी. नैंसी ने भले ही यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी, लेकिन अपनी सहेली प्रांजलि और सरानिया को 10 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर मैसेज भेज दी थी. इस मैसेज में उस ने पति द्वारा ज्यादा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने सहेलियों को यह भी कह दिया था कि यदि 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना, साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

दिल्ली की ही रहने वाली प्रांजलि और सरानिया नैंसी की पक्की सहेलियां थीं. दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि नैंसी को बहुत प्यार करने वाला साहिल नैंसी पर हाथ क्यों उठाने लगा. इस की वजह क्या है, यह तो नैंसी से मुलाकात के बाद ही पता चल सकती थी. बहरहाल, वे रोजाना नैंसी से बातें करने लगीं.

लेकिन 2 दिन बाद ही नैंसी का फोन स्विच्ड औफ हो गया. प्रांजलि और सरानिया परेशान हो गईं कि नैंसी का फोन क्यों बंद है. नैंसी पति साहिल चोपड़ा के साथ पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी स्थित बी-1 ब्लौक में रह रही थी. सरानिया और प्रांजलि ने नैंसी की ससुराल देखी थी, इसलिए 13 नवंबर, 2019 को दोनों नैंसी से मिलने उस की ससुराल पहुंच गईं.

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ससुराल में जब नैंसी दिखाई नहीं दी तो उन्होंने उस के बारे में उस की सास रोसी से पूछा. रोसी ने बताया कि नैंसी और साहिल घूमने के लिए हरिद्वार गए हैं. दूसरे कमरे में साहिल के दादा बैठे हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पतिपत्नी फ्रांस घूमने गए हैं.

दादा की बात सुन कर दोनों चौंकीं क्योंकि नैंसी के पास पासपोर्ट नहीं था. फिर वह विदेश कैसे जा सकती है. प्रांजलि और सरानिया जब नैंसी के ससुर अश्विनी चोपड़ा से बात की तो उन्होंने दोनों के जयपुर घूमने जाने की बात बताई.

घर के 3 लोगों द्वारा अलगअलग तरह की बातें दोनों सहेलियों को हजम नहीं हुईं. इस के बाद वे अपने घर चली गईं. उन्होंने इधरउधर फोन कर के नैंसी के बारे में पता लगाने की कोशिश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली.

नैंसी की ये दोनों फ्रैंड्स अपनी दुनिया में व्यस्त हो गईं. 28 नवंबर को प्रांजलि व सरानिया ने फिर से नैंसी का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. तब उन्होंने उसी दिन यह जानकारी नैंसी के पिता संजय शर्मा को दे दी.

बेटी के लापता होने की जानकारी पा कर संजय शर्मा के होश उड़ गए. वह पश्चिमी दिल्ली के ही हरिनगर में रहते थे. बेटी नैंसी के बारे में पता करने के लिए वह उसी दिन उस की ससुराल जनकपुरी पहुंच गए. वहां साहिल की मां ने उन्हें बताया कि साहिल और नैंसी घर से 20 लाख से ज्यादा के जेवर ले कर कहीं भाग गए हैं.

संजय शर्मा को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ. काफी पूछताछ करने के बाद भी जब उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अगले दिन 23 नवंबर को वह थाना जनकपुरी पहुंचे.

संजय शर्मा ने थानाप्रभारी जयप्रकाश से मुलाकात कर बेटी नैंसी के शादी करने से ले कर उस के गायब होने तक की बात विस्तार से बता दी. साथ ही उन्होंने नैंसी के पति साहिल, ससुर अश्विनी चोपड़ा और साहिल की बुआ के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के कई दिन बाद भी पुलिस ने नैंसी का पता लगाने की कोशिश नहीं की. तब संजय शर्मा ने डीसीपी और एसीपी से संपर्क किया. जब मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया तो थानाप्रभारी को काररवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थानाप्रभारी जयप्रकाश साहिल के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं मिला. उस के मातापिता यही कहते रहे कि साहिल नैंसी को ले कर कहीं घूमने गया है. लेकिन तब से दोनों के फोन बंद आ रहे हैं. घर वालों को कुछ चेतावनी दे कर थानाप्रभारी लौट आए.

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

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चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

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नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

इस की वजह यह थी कि नैंसी अकसर फोन पर व्यस्त रहती थी. देर रात तक वह किसी से फोन पर बातें करती थी. साहिल का कहना था कि दिन में वह किसी से भी बात करे, उसे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उस के औफिस से लौटने के बाद उस के पास भी बैठ जाया करे.

साहिल जब नैंसी से पूछता कि वह किस से बात करती है तो वह कह देती कि दोस्तों से बात करती है. पत्नी की यह बात साहिल को गले इसलिए नहीं उतरती थी, क्योंकि शादी से पहले नैंसी ने उसे बताया था कि उस का कोई भी दोस्त नहीं है.

जब शादी से पहले उस का कोई दोस्त नहीं था तो शादी होते ही अब कौन ऐसे नए दोस्त बन गए जो घंटों तक उस से बतियाने लगे. यही बात साहिल के दिल में वहम पैदा कर रही थी. नैंसी की बातों और व्यवहार से साहिल को शक था कि उस की पत्नी का जरूर किसी से कोई चक्कर चल रहा है, जिसे वह उस से छिपा रही है.

पति या पत्नी दोनों के मन में संदेह पैदा हो जाए तो वह कम होने के बजाए बढ़ता जाता है और फिर कभी भी विस्फोट के रूप में सामने आता है. जिस नैंसी को साहिल दिलोजान से प्यार करता था, वही उस के साथ कलह करने लगी थी. कभीकभी तो दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता था कि साहिल उस की पिटाई भी कर देता था.

साहिल का उग्र रूप देख कर नैंसी को महसूस होने लगा था कि साहिल को अपना जीवनसाथी चुनना उस की बड़ी भूल थी. उसे इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था.

चूंकि उस ने अपनी पसंद से की शादी थी, इसलिए इस की शिकायत वह अपने पिता से भी नहीं कर सकती थी. हां, अपनी सहेलियों से बात कर के वह अपना दर्द बांट लिया करती थी.

साहिल पत्नी की रोजरोज की कलह से तंग आ चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि नैंसी का खेल ही खत्म कर दे. इस बारे में साहिल ने अपने औफिस में काम करने वाले शुभम (24) से बात की. शुभम साहिल का साथ देने को तैयार हो गया.

साहिल को शुभम ने बताया कि उस का एक ममेरा भाई है बादल, जो करनाल के पास स्थित घरोंडा गांव में रहता है. उसे भी साथ ले लिया जाए तो काम आसान हो जाएगा.

साहिल ने शुभम से कह दिया कि इस बारे में वह बादल से बात कर ले. शुभम ने बादल से बात की तो उस ने हामी भर ली. योजना को कैसे अंजाम देना है, इस बारे में साहिल ने बादल और शुभम के साथ प्लानिंग की. बादल ने सलाह दी कि नैंसी को किसी बहाने पानीपत ले जाया जाए और किसी सुनसान इलाके में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए.

योजना को कहां अंजाम देना है, इस की रेकी के लिए तीनों लोग 10 नवंबर, 2019 को पानीपत गए. काफी देर घूमने के बाद उन्हें रिफाइनरी के पास की सुनसान जगह ठीक  लगी. रेकी करने के बाद तीनों दिल्ली लौट आए.

इसी बीच नैंसी और साहिल के बीच की कलह चरम पर पहुंच गई, तभी नैंसी ने अपनी सहेलियों प्रांजलि और सरानिया को फोन कर के बता दिया था कि आजकल साहिल उस के साथ मारपीट करने लगा है. उस ने उस के घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी है, उस के साथ कुछ भी हो सकता है.

नैंसी को शायद पति का व्यवहार देख कर अपनी मौत की आहट मिल गई थी, तभी तो उस ने सहेलियों से कह दिया था कि अगर 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना कि साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

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चूंकि साहिल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए उस ने 11 नवंबर को सुबह से ही नैंसी के साथ प्यार भरा व्यवहार शुरू कर दिया. पति का बदला रुख देख कर नैंसी भी खुश हो गई. दोनों ने खुशी के साथ लंच किया.

लंच करने के दौरान ही साहिल ने नैंसी से कहा, ‘‘नैंसी, आज मुझे पानीपत में किसी से उधार की रकम लानी है. रकम ज्यादा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम भी पिस्टल ले कर मेरे साथ चलो.’’

नैंसी के पास एक पिस्टल थी, जो उसे उस के किसी दोस्त ने 2 साल पहले गिफ्ट में दी थी. नैंसी ने उस पिस्टल के साथ कई फोटो भी खिंचवा रखे थे. पति के कहने पर नैंसी उस के साथ पानीपत जाने को तैयार हो गई.

शाम करीब साढ़े 6 बजे साहिल पत्नी को ले कर घर से अपनी कार में निकला. शुभम और बादल को भी उस ने घर पर बुला रखा था. शुभम कार चला रहा था और बादल शुभम के बराबर वाली सीट पर बैठा था. जबकि साहिल और नैंसी कार की पिछली सीट पर थे. कार में ही साहिल ने पत्नी से पिस्टल ले कर उस में 2 गोलियां डाल ली थीं.

नैंसी को यह पता नहीं था कि उस का पति उस के सामने ही मौत का सामान तैयार कर रहा है. उन्हें पानीपत पहुंचतेपहुंचते रात हो गई. शुभम कार को रिफाइनरी के पास ददलाना गांव की एक सुनसान जगह पर ले गया. वहीं पर साहिल ने बाथरूम जाने के बहाने कार रुकवा ली. इस से पहले कि नैंसी कुछ समझ पाती, आगे की सीट पर बैठे शुभम और बादल ने उसे दबोच लिया.

तभी साहिल ने नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी, लेकिन गोली नहीं चली और हड़बड़ाहट में साहिल के हाथ से पिस्टल छूट कर नीचे गिर गई. नैंसी अब पूरा माजरा समझ गई थी कि पति उसे यहां मारने के लिए लाया है. वह साहिल के सामने अपनी जान बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन पत्नी के गिड़गिड़ाने का उस पर असर नहीं हुआ.

साहिल ने फुरती से कार में गिरी पिस्टल और गोली उठाई. गोली उस ने दोबारा लोड की और नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी. इस बार गोली उस के सिर के आरपार हो गई. तभी उस ने दूसरी गोली भी मार दी.

गोली लगते ही नैंसी के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह सीट पर ही लुढ़क गई. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. फिर तीनों ने उस की लाश उठा कर झाडि़यों में फेंक दी. साहिल ने उस का मोबाइल अपने पास रख लिया. लाश ठिकाने लगा कर तीनों दिल्ली लौट आए. साहिल अपने घर जाने के बजाए दोनों साथियों के साथ जनकपुरी सी-1 ब्लौक और डाबड़ी के बीच स्थित एक लौज में रुका.

अपनी कार उस ने पास में ही स्थित सीतापुरी इलाके में ऐसी जगह खड़ी की, जहां स्थानीय लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. यह इलाका चानन देवी अस्पताल के नजदीक है. नैंसी का मोबाइल साहिल ने सुभाषनगर मैट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था.

अगले दिन शुभम और बादल अपनेअपने घर चले गए. साहिल भी इधरउधर छिपता रहा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें ले कर पानीपत में उसी जगह पहुंची, जहां उन्होंने नैंसी की लाश ठिकाने लगाई थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने ददलाना गांव की झाडि़यों से नैंसी की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए नैंसी की लाश पानीपत के सरकारी अस्पताल में भेज दी.

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इस के बाद पुलिस के तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर उन का 2 दिन का रिमांड लिया. रिमांड अवधि में आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चानन देवी अस्पताल के नजदीक खड़ी साहिल की कार बरामद की. कार की मैट के नीचे छिपाई गई वह पिस्टल भी पुलिस ने बरामद कर ली, जिस से नैंसी की हत्या की गई थी. पुलिस नैंसी का मोबाइल बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

19 दिन 19 टिप्स: इन आसान कसरतों से ठीक करें कमर दर्द

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और लंबे समय तक औफिस में बैठने से कमर दर्द की परेशानी होती है. पर अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है, आप एक्सरसाइजेज करते रहते हैं तो आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.  पर जिस तरह की लोगों की जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है, सबके लिए एक्सरसाइज कर पाना मुश्किल होता है. लोगों के पास उतना वक्त नहीं होता.  ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं जिसमें बिना पसीना बहाए, सिर्फ घर में बैठ कर आप कमर दर्द को दूर सर सकते हैं.

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  • कुर्सी पर बैठ कर एक हाथ ऊपर की ओर ले जाएं और दूसरे हाथ की ओर झुकें. कम से कम 20 सेकेंड तक इस पोजिशन में रहें और दूसरे हाथ से भी ऐसा ही करें.
  • अपने हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ें और उसे ऊपर की ओर खीचें. इससे आपकी कमर में खिंचाव होगा. इस पोजिशन में 15 से 20 सेकेंड तक रहें और इसे 4 से 5 बार तक करें.
  • अपनी ऐड़ी को जमीन पर रख लें. उसे बिल्कुल सीधा रखें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर खींचे. इस दौरान अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें. इसे करीब 30 सेकेंड्स तक 5 से 6 बार करें.
  • कुर्सी पर बैठ कर अपने हाथों को अपनी जांघ के नीचे दबा लें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं. इससे आपकी कमर में खिचाव होगा. इसे 3 से 5 बार तक करें.

खेतीबारी, खेतीशिक्षा की महत्ता समझने की जरूरत

विश्व में खाद्यान्न संकट पैदा होने की आहट के बीच और वायरसरूपी हमले के मद्देनजर कृषि प्रधान देश भारत की खेतीबारी पर भी असर पड़ना तय है. अब तो ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि क्या हम कृषि प्रधान देश नहीं रहे.

भारत कृषि प्रधान देश है या नहीं रहा, इसे दो तरह से देखे जाने की जरूरत है. जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में अब कृषि की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है और यही हालात रहे तो अगले 15 वर्षों में भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी और भी कम हो जाएगी. ऐसे में आय के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अब भारत कृषि प्रधान नहीं रह गया है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि कृषि पर निर्भर आबादी की दृष्टि से देखा जाए तो हम अभी भी कृषि प्रधान देश हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, लगभग 55 फीसदी श्रम शक्ति (वर्क फोर्स) कृषि पर निर्भर है. कृषि पर निर्भर आबादी तो 65-70 फीसदी होगी और एनएसएसओ के मुताबिक, 2011 में 49 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर थी और अब भी लगभग 44 फीसदी श्रम शक्ति कृषि पर निर्भर है. सीधे-सीधे यह कह देना कि ‘भारत कृषि प्रधान देश नहीं रहा’ सही नहीं है.

अब यहां यह समझना जरूरी है कि कृषि से जुड़ी आबादी क्या करती है? पिछले कई सर्वे बताते हैं कि कई राज्य ऐसे हैं, जहां फसल की खेती से आमदनी कम है, लेकिन वहां के छोटे या सीमांत किसान या भूमिहीन किसानों की आय मजदूरी से भी होती है, वे बाहर नहीं जाते, बल्कि वहीं बड़े किसानों के पास खेत में काम करते हैं. वे कोई गैरकृषि गतिविधि नहीं करते। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक सहित कई राज्यों में किसानों की जो कुल आमदनी है, उसमें खेतिहर मजदूरों का हिस्सा काफी उल्लेखनीय है. इसे गैरकृषि आय माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. जिसे अभी गैरकृषि आय कहा जा रहा है, सही माने में वह गैरकृषि आय नहीं है.  हां, गैर कृषि व्यापार आय की बात करें तो उसका अनुपात काफी कम है. इसलिए अभी यह कह देना जल्दबाजी होगा कि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में कमी आ रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि देश में अभी भी कृषि क्षेत्र में जितनी संभावनाएं हैं, उसका दोहन ही नहीं किया गया.

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लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गैरकृषि आय की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत नहीं है. देश में गैरकृषि से होने वाली आय को भी बढ़ाने की सख्त जरूरत है. कृषि पर निर्भर इतनी बड़ी आबादी को केवल कृषि के भरोसे नहीं छोड़ सकते. अब या तो कृषि से होने वाली आमदनी बढ़ाइए या फिर गैरकृषि आमदनी बढ़ाइए.

किसानों को ऐसे अवसर प्रदान करने होंगे कि वे अपनी खेती के अलावा दूसरे कार्यों से आमदनी बढ़ाएं, जैसे पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन आदि. सही माने में किसानों की सुनिश्चित आमदनी गैरकृषि कार्य से ही होती है, वरना तो कृषि से होने वाली आमदनी का कोई भरोसा नहीं. कभी सूखा पड़ गया, कभी बाढ़ आ गई, कभी आग लग गई और अब वायरस – कुलमिला कर खेतीबारी बहुत जोखिमभरा रोजगार का साधन हो चुका है. इसलिए गैरकृषि आय पर फोकस बढ़ाना होगा.

हालांकि, केवल गैरकृषि साधन बढ़ाने से ही किसानों की दशा नहीं सुधरेगी, उन्हें शिक्षा भी देनी होगी. किसानों को गांवों में ही बुनियादी सुविधाएं देनी होंगी. इसमें स्वास्थ्य सुविधाएं, बाजार, बैंक जैसी सेवाएं भी शामिल हैं. अगर किसान के बच्चे शिक्षित होंगे तो वे गैरकृषि क्षेत्र में नौकरी भी कर सकते हैं. कौशल विकास कार्यक्रम चला कर उन्हें तकनीकी तौर पर मजबूत करने से वे उद्यमिता की ओर भी अग्रसर होंगे. शिक्षा के अलग-अलग फायदे होते हैं. युवाओं के लिए, खासकर, यह सब करना पड़ेगा.

लेकिन कुछ हो नहीं रहा है. न तो कृषि क्षेत्र और ना गैरकृषि क्षेत्र की ओर कोई विशेष ध्यान दिया जा रहा है. ऐसे में क्या होगा? किसान और उसके परिवारों के सामने भूखमरी के सिवा रास्ता नहीं बचेगा या वे आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाएंगे.

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देश की व्यवस्था अगर कृषि क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है तो कृषि शिक्षा पर खास ध्यान देना होगा. अब कृषि क्षेत्र में नई-नई तकनीक की बात की जा रही है.  ड्रोन के इस्तेमाल की बात हो रही है। सिंचाई में नई तकनीक की बात हो रही है. लेकिन यह सब तब ही संभव है, जब किसान को उसका तकनीकी ज्ञान हो. उसे इसकी शिक्षा देने की जरूरत है. किसानों को ट्रेंड करना होगा ताकि वे खेतीबारी में सुधार कर सकें. साथ ही, कृषि क्षेत्र में नौकरी कर सकें. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो इनोवेशन हो रहे हैं उन्हें सरकार अगर जमीनी स्तर पर लागू नहीं करेगी तो कृषि क्षेत्र में सुधार नहीं होगा. इसलिए कृषि शिक्षा की ओर बहुत ध्यान देना होगा.

सरकार यदि चाहती है कि किसान के बच्चे भी कृषि कार्य ही करे तो उन्हें कृषि शिक्षा देने की जरूरत है. खासकर, आधुनिक तकनीक का ज्ञान देना पड़ेगा. तभी जाकर वे कृषि क्षेत्र में रहेंगे और आमदनी बढ़ाएंगे, लेकिन ओवरऔल जो स्थिति है, उससे लगता है कि कृषि क्षेत्र में लोग रहेंगे नहीं. खासकर युवा पीढ़ी. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि खेत छोटे होते जा रहे हैं, जिससे आमदनी ज्यादा होती नहीं है. रिस्क भी बहुत है, लोग तैयार नहीं हो रहे हैं. अब तक हम कोई ऐसा मैकेनिज्म तैयार नहीं कर पाए, जिससे खेती को जोखिम मुक्त बनाया जा सके. बीमा योजनाएं भी यह काम नहीं कर पाई हैं. सपोर्ट सिस्टम नहीं है. पैदावार ज्यादा हो जाए तो फेंकना पड़ता है. सरकार को सिस्टम बनाना होगा कि वह खेती को रिस्क फ्री कर दे.

युवा कृषि की ओर जाना चाहते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन सरकारी कृषि विश्वविद्यालयों में सीटें नहीं बढ़ाई जा रही हैं, उन्हें सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जा रही हैं. इसलिए इस क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर हाथ मार रहा है. पिछले दिनों सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईएसएआर) से कहा है कि वह अपने स्तर पर संसाधन जुटाए. अब अगर वैज्ञानिक ही संसाधन जुटाने लगेगा तो वह रिसर्च क्या करेगा? संसाधन ही जुटाना था तो वह वैज्ञानिक क्यों बना?

यह सही नहीं है.  इससे सरकारी क्षेत्र में रिसर्च खत्म हो जाएगी. प्राइवेट कंपनियां ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च कराएंगी. जिनको बीज बेचना है, उर्वरक बेचना है, मशीन बेचना है, वे लोग ही कृषि क्षेत्र में रिसर्च करेंगे और अपने मुनाफे के लिए उसे लागू करेंगे. इससे प्राइवेट सेक्टर को फायदा होगा.

ऐसी हालत में कृषि शिक्षा, जो भी उपलब्ध है, चौपट होगी, उसकी अहमियत कम होगी और खेतीबारी की गुणवत्ता, जैसी भी है, भी प्रभावित होगी व किसी न किसी रूप में खाद्यान्न का संकट भी महसूस किया जाता रहेगा.

 

ट्रंप काबू में

9 नवंबर, 2016 को चुने गए मगर 20 जनवरी, 2017 को सुपरपावर देश माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल में अमेरिका ‘आने वाले कई सालों के लिए’ दुनिया की दिशा तय करेगा.

अब जब उनका कार्यकाल पूरा होने को है, चुनाव सिर पर हैं और उनके नेतृत्व में अमेरिका पूरी दुनिया की क्या, खुद अपनी ही दिशा तय नहीं कर पा रहा, तो ‘सुपरपावरमैन’ के सुर बदल गए.

आज 23 अप्रैल, 2020 को वाशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “हम पर हमला हुआ. यह हमला था. यह कोई फ्लू नहीं था. कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं देखा, 1917 में ऐसा आखिरी बार हुआ था.” उनका यह बयान नोवल कोरोनावायरस व कोविड-19 को लेकर है.

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‘अमेरिका फर्स्ट’ नारे से अमेरिकियों को लुभा कर सबसे ताकतवर कुरसी पर बैठने के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने तानाशाही रवैया अख्तियार कर लिया था. ऐसा उनका नेचर भी है.

ट्रंप आज कोरोना वायरस की महामारी पर क़ाबू पाने से ज़्यादा इस संकट में घिर कर और उलझ कर रह गए हैं. आने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए ट्रंप जब भी कोई मुद्दा तैयार करते हैं, कोरोना संकट उस मुद्दे की हवा निकाल देता है. उन के पास बीते दिनों को याद करने और दुखड़ा रोने के अलावा कुछ नहीं रह गया है.

वे प्रेस कौन्फ़्रेन्सों में यह कहते सुनाई देते हैं कि हमारे पास दुनिया की सबसे मज़बूत इकोनौमी थी. हमारी परफ़ौर्मेन्स चीन और दुनिया के हर देश से बेहतर थी. हमारे पास सबसे बड़ा बाज़ार था.

ट्रंप 2 महीने पहले सकारात्मक ख़बरें और मुद्दे जमा करने लगे थे क्योंकि रिपब्लिकन्स ने उन्हें सीनेट में महाभियोग के अभियान से नजात दिला दी थी जो डेमोक्रेटों ने पूरी ताक़त से उन के ख़िलाफ़ शुरू किया था.

ट्रंप को नज़र आने लगा है कि एक महीने के दौरान बेरोज़गारी की दर आसमान पर पहुंच गई है जिसका मतलब यह है कि वे अपने सबसे मज़बूत चुनावी मुद्दे से वंचित हो गए हैं. इसी बौखलाहट में उन्होंने विदेशियों के अमेरिका आने पर रोक लगा दी. यह इकोनौमी को फिर से खोलने की उनकी योजना के ख़िलाफ़ फ़ैसला है. इकोनौमी को रफ़तार देने के लिए कामगारों की ज़रूरत पड़ेगी जिनमें विदेशी कामगार भी शामिल हैं.

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ट्रंप की कोशिश थी कि देश की इकोनौमी को बंद न करना पड़े, लेकिन कोरोना के सामने उन्हें घुटने टेकने पड़े क्योंकि कोरोना ने बहुत बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुंचाना शुरू कर दिया. कुछ टीकाकार तो कहने लगे हैं कि संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फ़ाउची ने वह काम कर दिखाया जो ट्रंप के सलाहकार नहीं कर पा रहे थे. दरअसल, ट्रंप के सलाहकारों को शिकायत थी कि ट्रंप कोई भी सलाह मानने के लिए तैयार नहीं होते मगर फ़ाउची के सामने ट्रंप हथियार डाल देने पर मजबूर हो गए.

ट्रंप न अपनी दिशा तय कर पा रहे, न अपनी पार्टी की और न अमेरिका की. प्रेस ब्रीफ़िंग में हर दिन अलग राग लेकर आते हैं. कभी वे कहते हैं कि रिपब्लिकन, डेमोक्रेट, लिबरल और कंज़रवेटिव सब एक हैं. हम सब से मिल कर हमारा राष्ट्र बना है. हमारी आज की क़ुरबानियों को आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी. कभी उनका राग बदल जाता है और वे डेमोक्रेटों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारियों को उकसाना शुरू कर देते हैं. ट्रंप अब बलि के बकरे की तलाश में हैं, इसलिए वे कभी न्यूयौर्क के डेमोक्रेट गवर्नर एंड्र्यू कूमो पर झपट पड़ते हैं, कभी डब्ल्यूएचओ को निशाना बनाते हैं और कभी चीन को धमकियां देते हैं.

ट्रंप की हालत अजीब हो गई है. वे कभी तो एंथनी फ़ाउची को बरखास्त करने की मांग करने वाले ट्वीट को रिट्वीट करते हैं और अगले ही दिन कहते हैं कि फ़ाउची को हटाने का उनका कोई इरादा नहीं है. कारण यह है कि सर्वे में यह बात सामने आई है कि काफी बड़ी तादाद में अमेरिकी फ़ाउची पर बहुत भरोसा करते हैं.

कोरोना के बीच तेल की क़ीमतों का संकट भी सामने आया. ट्रंप ने सऊदी अरब और रूस के झगड़े में कूद कर कोशिश की कि इस मामले को संभालें ताकि अमेरिका की शेल आयल कंपनियों को डूबने से बचा सकें मगर उनकी यह कोशिश भी नाकाम हो गई और तेल की क़ीमतें तो शून्य से भी नीचे चली गईं.

कुल मिलाकर, संकटों से घिरे अमेरिका को बचाने में नाकामी और भावी चुनावों में विपक्षी जो बिडेन की बढ़ती लोकप्रियता के अंदेशे को महसूस कर ट्रंप को सूझ नहीं रहा कि वे किस दिशा पर चलें. ऐसा लगता है जैसे कोरोना ने उन्हें काबू में कर लिया हो.

 

19 दिन 19 टिप्स: खूबसूरती पर धब्बा हैं पीले दांत, ऐसे लाएं सफेद मुस्कान

सुषमा कैसी झक गोरी है, कितने शार्प फीचर्स हैं उसके, जो देखता है बस देखता ही रह जाता है, लेकिन जैसे ही उसका मुंह खुलता है सामने वाला मुंह बिचका लेता है. वजह है उसके पीले-पीले दांत, जो उसके गोरे चेहरे पर बड़े भद्दे दिखते हैं. पीले दांत उसकी खूबसूरती पर धब्बे की तरह चमकते हैं. लगता है जैसे वह ब्रश ही नहीं करती है.

मुस्कान हमारे व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है, लेकिन मुस्कुराते वक्त अगर हमारे पीले दांत नजर आएं तो हम न सिर्फ हंसी का पात्र बनते हैं, बल्कि हमारी ओवरआल पर्सनैलिटी पर भी नेगेटिव असर पड़ता है. कई बार रोजाना अच्छी तरह से दांतों को साफ करने के बाद भी दांतों में पीलापन आ जाता है तो कई बार साफ-सफाई और हाइजीन का पूरा ध्यान न रखना भी इसका कारण हो सकता है.

खाने-पीने की ऐसी कई चीजें हैं जिनसे दांतों पर लगा इनैमल दूषित हो जाता है और दांत पीले नजर आने लगते हैं. इसके अलावा अगर दांत पर प्लाक की परत जम जाए तो इससे भी दांत पीले नजर आने लगते हैं. अधिक चाय या कॉफी का सेवन करना या फिर जो लोग दांतों की सफाई ठीक तरीके से नहीं करते हैं उन्हें भी दांतों से सम्बन्धित समस्याएं होती हैं. सिगरेट या तम्बाकू के सेवन से दांत पीले और बीमार हो जाते हैं.

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हममें से ज्यादातर लोग पीले दांत और मुंह की बदबू जैसी समस्याओं से जूझते हैं. कई लोग तो डेंटिस्ट के पास जाकर मंहगा ट्रीटमेंट भी करवाते हैं. दांत पॉलिश करवाने के चक्कर में काफी पैसा भी फूंक देते हैं, लेकिन समस्या कुछ दिनों के बाद फिर उभर आती है. अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो बिना कोई पैसा खर्च किये घरेलू नुस्खों से घर बैठे दांतों का पीलापन दूर कर सकते हैं.

  1. नमक और सरसों का तेल
    दांतों को चमकाने के लिए नमक और सरसों के तेल का मिश्रण बहुत पुराना और अचूक इलाज है. आधा चम्मच नमक अपनी हथेली पर ले लें और इसमें पांच-छह बूंद सरसों का तेल मिला कर उंगली की मदद से अपने दांतों और मसूढ़ों पर हल्के हाथों से मसाज करते हुए मलें. आप टूथब्रश का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, लेकिन उंगली से दांत साफ करने पर मसूढ़ों की अच्छी मालिश भी हो जाती है. तीन से पांच मिनट की मसाज के बाद साफ पानी से कुल्ला कर लें. हफ्ते में दो-तीन बार नमक और सरसों के तेल के इस्तेमाल से आपके दांत मोतियों जैसे चमक उठेंगे. यह पेस्ट मुंह में पैदा होने वाले नुकसानदायक बैक्टीरिया को भी खत्म करता है और सांस की बदबू भी दूर करता है. इससे दांत के दर्द में भी आराम मिलता है.

2. हल्दी और सरसों का तेल
मोतियों जैसे सफेद और चमकदार दांत पाने के लिए सरसों के तेल के साथ नमक की जगह हल्दी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आधा चम्मच हल्दी पाउडर में एक चम्मच सरसों का तेल मिलाएं और इस पेस्ट को दांतों पर उंगलियों की मदद से धीरे-धीरे रगड़ें. इस मिश्रण के नियमित इस्तेमाल से कुछ ही दिनों में दांतों का पीलापन पूरी तरह से दूर हो जाता है.

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3. केले का छिलका
दांतों को चमकाने के लिए आप केले के छिलके का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. जी हां, केला आपकी सेहत के लिए जितना फायदेमंद फल है, उसका छिलका भी उतना ही फायदेमंद है. केले का छिलका जिस तरफ से सफेद है, वह हिस्सा आप अपने दांतों पर धीरे-धीरे तीन से पांच मिनट तक रगड़ें और फिर ब्रश करके कुल्ला कर लें. इससे कुछ ही दिनों में दांतों का पीलापन खत्म हो जाता है और सफेदी आती है. केले में मौजूद पोटैशियम, मैग्नीज और मैग्नीशियम जैसे तत्व दांत और मसूढ़े सोख लेते हैं. इससे दांत न सिर्फ सफेद बल्कि मजबूत भी होते हैं. केले के छिलके के इस नुस्खे को हफ्ते में 2 से 3 बार ट्राई करें.

4. बेकिंग सोडा और नींबू का रस
दांतों को घर पर ही आसानी से सफेद करने के लिए एक प्लेट में एक चम्मच बेकिंग सोडा लें और उसमें थोड़ा सा नींबू का रस मिलाएं. जब तक पेस्ट जैसी कन्सिस्टेंसी न मिल जाए उसमें नींबू का रस मिलाते रहें. अब इस पेस्ट को टूथब्रश पर लगाएं और ब्रश करें. बेकिंग सोडा वाले इस पेस्ट को दो मिनट से ज्यादा दांतों पर लगा न रहने दें, वरना दांतों के इनैमल को नुकसान हो सकता है. ब्रश करने के बाद अच्छी तरह कुल्ला करें.

5. स्ट्रॉबेरी चमकाए दांत
दो ताजे स्ट्रॉबेरी लेकर उन्हें अच्छी तरह मैश कर लें. इसे अपने दांतों पर 2 से 3 मिनट तक लगाकर रखें और कुल्ला कर लें. चाहें तो स्ट्रॉबेरी लगाने के बाद अच्छी तरह से ब्रश भी कर सकते हैं. स्ट्रॉबेरी में मैलिक ऐसिड नाम का तत्व पाया जाता है जो दांतों का पीलापन दूर कर उन्हें सफेद बनाने में मदद करता है. साथ ही स्ट्रॉबेरी में मौजूद फाइबर मुंह के बैक्टीरिया को दूर करने में मदद करता है.

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#lockdown: लीची के बागान गुलजार, पर खरीदार नहीं

पटना: लीची किसानों को इस बार काफी नुकसान हुआ है. मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर और पूर्वी चंपारण के साथ बेगुसराय, भागलपुर और सीतामढ़ी के लीची किसान परेशान हैं. इस बार मौसम सही रहने के कारण लीची की पैदावार तो अच्छी हुई है, लेकिन उन्हें खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं.

बता दें कि बिहार में लीची का कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का होता था, वहीं  सिर्फ मुजफ्फपुर से ही तकरीबन 500 करोड़ रुपए का लीची कारोबार होता था, लेकिन इस बार लीची की खेती करने वाले किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है.

हालांकि राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक विशाल नाथ ने कहा कि किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान होने की संभावना कम  है क्योंकि 50 फीसदी किसानों के लीची के बागान को बड़े वेंडर द्वारा निश्चित राशि तय कर 4 से 5 साल के लिए खरीद लिया जाता है. इस कांट्रेक्ट से किसानों को घाटा होने का डर खत्म हो जाता है.

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इस के अलावा 30 फीसदी ऐसे वेंडर भी होते हैं, जो 1 से 2 साल के लिए बागान खरीदते हैं, बाकी बचे 20 फीसदी किसान फसल की पैदावार करने से ले कर उसे मार्केट में बेचने का काम करते हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि इस बार लीची की तैयार फसल को बाहर ले जाने के लिए ट्रांस्पोटेशन की समस्या आ सकती है.

बिहार के लीची ग्रोवर्स एसोशिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया कि इस बार मौसम की अनुकूलता की वजह से लीची की पैदावार अच्छी हुई है. लेकिन मुश्किल यह है कि इस बार खरीदार नहीं मिल पा रहे. पैसों की कमी की वजह से लोगों में खरीदारी क्षमता भी कम हो रही है. इस से लीची के कारोबार पर बड़े पैमाने पर असर पड़ने की संभावना है.

मैंथोल भेजा जाएगा विदेश

रामपुर:  मैंथोल की विदेशों में भारी मांग है. इस का दवाओं में काफी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है.  20 अप्रैल से फैक्टरी चलाने की अनुमति मिलने के बाद अब मैंथोल कारोबार को गति मिली है.

अमेरिका, इटली, जरमनी समेत कई देशों ने रामपुर के निर्यातकों से मैंथोल की मांग की है. इस बात को ध्यान में रख कर अब मैंथा उद्यमियों की अनुमति को जिला प्रशासन ने मान लिया है.

इस के बाद अमेरिका समेत फ्रांस, ब्रिटेन, जरमनी, नाईजीरिया, ब्राजील और सिंगापुर को मैंथोल का निर्यात किया जा सकेगा.

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उत्तर प्रदेश मैंथा एक्सपोर्टर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु कपूर बताते हैं कि रामपुर से सालभर में 1750 करोड़ रुपए का मैंथोल एक्सपोर्ट होता था, जबकि पूरे प्रदेश से 3000 करोड़ और देश से 6500 करोड़ का निर्यात किया जाता है.

रामपुर में हजारों किसान मैंथा की फसल उगाते हैं और फिर टंकियों में तेल निकाल कर बेचते हैं. इस के बाद फैक्टरियों में मैंथोल व पाउडर वगैरह तैयार कर दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया जाता है.

चीन को भी मैंथा पाउडर एक्सपोर्ट किया जाता है, जबकि अमेरिका, इटली, स्पेन, जरमनी, ब्राजील वगैरह देशों को क्रिस्टल और मैंथोल का एक्सपोर्ट होता है.

वैसे, मैंथोल का प्रयोग बदन के दर्द को दूर करने की दवा बनाने में किया जाता है. साथ ही, कफ सीरप और विक्स में भी इस का इस्तेमाल होता है. खांसीजुकाम में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है. साबुन और सैनेटाइजर में भी मैंथा उत्पादों का प्रयोग होता है.

धान न उठाने पर दिया नोटिस

मीरजापुर:  धान गोदाम में धान पड़ा हुआ है, पर धान क्रय केंद्रों से धान का उठान न होने पर सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक (सहकारिता) मित्रसेन वर्मा ने क्रय केंद्र प्रभारी भुइली, चैकिया, अहरौरा को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया.

उन्होंने नोटिस जारी करते हुए कहा कि मूल्य समर्थन योजना वर्ष 2019-20 के तहत क्रय किया गया धान गोदाम पर पड़ा है. क्रय केंद्र से धान उठाने के लिए पीसीएफ द्वारा राइस मिल लगाई गई है.

धान खरीद बंद होने के काफी दिन के बाद भी धान का उठान न कराया जाना घोर लापरवाही है.

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यदि धान मिलर से संपर्क कर एक हफ्ते के अंदर उठान नहीं कराया जाता है और समिति व पीसीएफ की परिसंपत्तियों को नुकसान होता है, तो मिलर के साथसाथ किसान भी उत्तरदायी होंगे.

वहीं धान मिलर से भी यह कहा गया है कि आप के द्वारा क्रय केंद्र से अवशेष धान का उठान क्यों नहीं किया गया. कारण स्पष्ट करें अन्यथा अनुबंध का पालन न करने व शासनादेश का उल्लंघन करने संबंधी धाराएं लागू होंगी.

पहली बार गरीबों को मिलेगा मुफ्त राशन

जालंधर: गरीबों को राशन मुहैया कराने के लिए पंजाब में पहली बार केंद्र सरकार की ओर से बिना किसी शुल्क के राशन मुहैया कराया जाएगा.

यह राशन पंजाब सरकार द्वारा चलाई जा रही आटादाल स्कीम के तहत बनाए गए नीले कार्डों पर ही दिया जाएगा. वितरण राशन डिपो के माध्यम से किया जाएगा. इस में 3 माह के लिए गेहूं और दालें शामिल रहेंगी.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत यह राशन मुफ्त मुहैया कराया जाएगा. राशन के वितरण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जिला स्तर पर कमेटियां बनाए जाने को सुनिश्चित किया गया है.

इस योजना के तहत नीले कार्ड में दर्ज प्रति सदस्य 5 किलो गेहूं के हिसाब से वितरण होगा.

मिसाल के तौर पर अगर 4 सदस्यों का कार्ड है, तो उस पर हर महीने 20 किलो गेहूं के हिसाब से 3 महीने का एकसाथ 60 किलो गेहूं दिया जाएगा, जबकि दाल प्रति कार्ड 1 महीने की 1 किलो ही जारी होगी. इस हिसाब से 3 महीने की दाल 3 किलो एकसाथ दी जाएगी.

नियमों के मुताबिक ही राशन दिया जाएगा. इस के बाद जरूरत पड़ने पर इस योजना के तहत राशन वितरण करने की अवधि को और आगे भी बढ़ाया जा सकता है.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के लागू करने के साथ ही पंजाब सरकार द्वारा अलग से चलाई जा रही आटादाल स्कीम के तहत राशन का वितरण नहीं किया जाएगा. इस स्कीम के तहत लाभार्थियों को केवल 2 रुपए प्रति किलो गेहूं दिया जाता है, जबकि निशुल्क राशन देने की योजना लागू होते ही पंजाब सरकार की स्कीम को रोक दिया जाएगा.

मुफ्त राशन केवल उन्हीं को मिलेगा, जो खाद्य आपूर्ति विभाग के पोर्टल पर अपलोड होंगे या जिन लोगों ने नीले कार्ड के लिए आवेदन किया था.

डीएफएससी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि मुफ्त राशन वितरण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कमेटी बनाई जाएगी. डिपो होल्डर के मारफत होने वाले राशन के वितरण में किसी भी तरह की अनियमितता बरदाश्त नहीं की जाएगी.

अब मिठास घोलेगी नई चीनी रोगों से भी लड़ सकेगी

कानपुर: बच्चों को ज्यादा चीनी न खिलाओ वरना दांत सड़ जाएंगे और बड़ों को हिदायत दी जाती कि डायबिटीज हो जाएगी, लेकिन अब चीनी न सिर्फ रोगों से लड़ने की ताकत देगी, बल्कि आंखों की रोशनी भी बढ़ाएगी.

जी हां, नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट ने विटामिन ‘ए‘ वाली चीनी तैयार की है, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी.

 

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में 20 करोड़ से अधिक बच्चे विटामिन ‘ए‘ की कमी के शिकार हैं. इस की कमी से उन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने और आंखों की रोशनी की भी समस्या है. साथ ही, शरीर का विकास भी ठीक से नहीं होता है. विटामिन ‘ए‘ की कमी को पूरा करने के लिए खाद्य पदार्थों में इस को मिलाया जा रहा है.

 

अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंगलैंड, फ्रांस, जरमनी, केन्या, नाईजीरिया आदि देशों में विटामिन ‘ए‘ को चीनी में मिलाने का प्रयोग हुआ, लेकिन यह सफल नहीं हो सका. वजह, चीनी में विटामिन ‘ए‘ की सही मात्रा नहीं मिल पाई.

 

एनएसआई के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन के निर्देशन में वैज्ञानिकों ने काम किया. 3 साल के शोध के बाद चीनी में विटामिन ‘ए‘ की सही मात्रा मिल सकी.

 

उन्होंने बताया कि चीनी बनाने में कोक्रिस्टिलाइजेशन और कूलिंग तकनीक अपनाई गई. सब से पहले गन्ने के रस को शुद्ध किया गया. चीनी के घोल को गाढ़ा करने की प्रक्रिया की गई. इस के क्रिस्टल रूप में आने से पहले विटामिन ए को मिला दिया गया. दोनों क्रिस्टल रूप में तैयार हो गए. कूलिंग तकनीक से चीनी और विटामिन ‘ए‘ मिल गए.

 

संस्थान ने विटामिन बी, डी, आयरन, फोलिक एसिड पर काम शुरू किया और इन को भी चीनी के साथ मिलाया जाएगा. प्रति ग्राम चीनी में 15.5 से 19.5 माइक्रोग्राम विटामिन ‘ए‘ की मात्रा रहेगी.

 

उन के मुताबिक, चीनी में विटामिन ‘ए‘ 6 महीने तक सुरक्षित रहेगा. चीनी को सूरज की रोशनी में रखा जाएगा, लेकिन अधिकतम तापमान 40 डिगरी सैल्सियस से अधिक न हो, जबकि नमी 65 फीसद से कम रहे. विटामिन ‘ए‘ वाली चीनी का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. हालांकि इस प्रक्रिया के बाद चीनी की कीमत में कुछ इजाफा होगा.

 

चला औपरेशन किलिंग: मार दीं हजारों मुरगियां

 

नवादा: बर्ड फ्लू के कारण हजारों मुरगियों को जिंदा ही मार दिया गया.  बिहार के नवादा जिले में स्थित अकबरपुर प्रखंड के रजहत गांव के नजदीक मो. मसीउद्दीन के पॉल्ट्री फार्म की मुुरगियों में बर्ड फ्लू की पुष्टि होने के बाद ‘ऑपरेशन किलिंग‘ अभियान चलाया गया.

 

इस दौरान सभी मुरगियों को मार कर उन्हें प्लास्टिक के थैले में बंद कर जेसीबी से गड्ढों में जमींदोज करा दिया.

 

जिलाधिकारी से इस के लिए हरी झंडी मिलने के बाद यह अभियान चलाया गया. पॉल्ट्री फार्म की तकरीबन 8,000 मुरगियों को मारा गया.

 

दरअसल, कुछ दिन पहले इस फार्म की कई मुरगियों को मरते हुए पाया गया था. फार्म के मालिक ने पशुपालन विभाग को सूचना दी थी. इस के बाद सैंपल ले कर कोलकाता जांच के लिए भेजा गया, जहां बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई. इस के बाद जिलाधिकारी के आदेश पर यह कार्यवाही की गई.

 

जिला पशुपालन पदाधिकारी डाक्टर तरुण कुमार उपाध्याय और कुक्कुट पदाधिकारी डाक्टर श्रीनिवास शर्मा की देखरेख में 5 सदस्यों की टीम ने पॉल्ट्री फार्म में रह रहीं मुरगियों को अपने सामने मरवाया.

 

बर्ड फ्लू के लक्षण मिलने के बाद सभी मुरगे व अंडे की दुकानें बंद कर दी. रजहत स्थित पॉल्ट्री फॉर्म को केंद्र मान कर 9 किलोमीटर की परिधि तक सर्वे एरिया घोषित किया गया. इन क्षेत्रों में मुरगी, अंडे व मुरगी के खाद्य पदार्थों के आनेजाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई.

 

किसानों को राहत

अब सीधे गांवों से बेच सकेंगे फसल

 

देहरादून: किसानों को कृषि उपज बेचने और इस के भंडारण में आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने किसानों को बड़ी राहत दी है. अब वे गांव या कोल्ड स्टोर, क्लस्टर से भी कृषि उपज बेच सकेंगे यानी कारोबारी अब सीधे गांवों में किसानों से गेहूं, फलसब्जी समेत दूसरे कृषि उत्पाद खरीद सकेंगे. इस से किसानों को अपने उत्पादों को मंडी तक ले जाने के झंझट से नजात मिल जाएगी.

 

हालांकि, यह व्यवस्था हौटस्पाट वाले इलाकों को छोड़ राज्य व राज्य के दूसरे हिस्सों में ही मान्य होगी.

 

उत्तराखंड कृषि उत्पाद (विकास एवं विनियमन) अधिनियम में संशोधन करते हुए शासन ने अधिसूचना जारी की.

 

खेती के कामों के साथ ही कृषि उपज की खरीदारी पर असर न पड़े, इस के सरकार ने सशर्त छूट दी है. इस के बावजूद किसानों को कृषि उपज को बेचने और भंडारण के लिए नजदीक में उचित जगह न मिलने से कठिनाई आ रही थी. इसे देखते हुए सरकार ने यह कड़ा कदम उठाया.

 

मुख्य सचिव उत्पल सिंह की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, प्रदेश में घोषित मंडी क्षेत्र के तहत किसान, किसान समूह, कृषि उत्पाद संस्थाओं, सहकारी समितियों वगैरह को सीधे किसान से कृषि उपज क्रयविक्रय की अनुमति दी गई है.

 

साथ ही, मंडी क्षेत्र के तहत स्थित कोल्ड स्टोरेज, गोदाम, क्लस्टर को उपमंडी स्थल घोषित किए जाने की अनुमति दी गई है. सब से अहम यह है कि कृषि उत्पादों की विकेंद्रीकृत मार्केटिंग को प्रोत्साहन और गांव लैवल से अधिप्राप्ति की अनुमति जारी की गई.

 

अधिसूचना के बाद यह राहत मिल गई है कि कोई कहीं भी थोक कारोबार कर सकता है. गांवों से भी सीधे किसानों से कारोबारी फसल उपज खरीद सकते हैं.

 

कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि किसानों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न आए, इस के लिए सरकार पूरी तरह गंभीर है.

 

किसानों का अनाज खरीदना सरकार की प्राथमिकता

 

रेवाड़ी: सहकारिता मंत्री डाक्टर बनवारी लाल ने क्षेत्र की मंडियों का दौरा किया और खरीद व्यवस्था का जायजा लिया. उन्होंने वहां मौजूद अधिकारियों को उचित व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए. उन्होंने बिठवाना, गढ़ी बोलनी, टांकड़ी, बनीपुर चैक, बावल अनाज मंडी में पहुंच कर खरीद व्यवस्था का जायजा लिया.

 

उन्होंने कहा कि किसानों का एकएक दाना खरीदना सरकार की प्राथमिकता है. साथ ही, सुरक्षित रहने के लिए किसानों से मंडी में मास्क पहन कर आने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कहा.

 

पराली जलाने पर बैन, पराली जलाई तो खैर नहीं

 

पटना: 20 अप्रैल से गेहूं की फसल कटाई शुरू  हो गई. इसे देखते हुए बिहार में गेहूं की फसल कटाई के बाद बचे अवशेष यानी पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

 

प्रमंडलीय आयुक्त संजय कुमार अग्रवाल ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सशक्त व प्रभावी मौनीटरिंग करने के निर्देश दिए. साथ ही, सभी सीओ, बीडीओ, थानाध्यक्ष को स्थानीय स्तर पर कड़ी नजर रखने के साथ ही पराली जलाने वालों पर कानूनी कार्यवाही करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया.

 

उन्होंने सभी जिलाधिकारी को अपने जिले में हेल्पलाइन नंबर जनहित में जारी कर सूचना या शिकायत मिलने पर कार्यवाही करने का निर्देश भी दिया.

 

प्रमंडलीय आयुक्त संजय अग्रवाल ने आम लोगों से अपील की कि वह अपने जिले में पराली जलाने से संबंधित सूचना जिला पदाधिकारी को दें.

वजह पराली जलाने पर रोक की

– पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों को भारी नुकसान होता है. इस से मिट्टी में मौजूद पोटैशियम, नाइट्रोजन, फास्फोरस सहित कई अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है.

– फसल अवशेष को जलाने से कार्बन डाईऔक्साइड ,कार्बन मोनोऔक्साइड सहित कई जहरीली गैसें निकलती हैं, जो हवा को प्रदूषित करती हैं. इस से इनसान की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही, पराली जलाने से खेतों की पैदावार में भी कमी होती है.

– इस के अलावा पराली जलाने से पर्यावरणीय संकट ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पैदा होने और खाद्य सुरक्षा का संकट खड़ा होता है, इसलिए खेतों की पैदावार बढ़ाने, पर्यावरणीय समस्या से नजात पाने और खाद्य सुरक्षा के लिए फसल अवशेष का कुशल प्रबंधन ही जरूरी है.

 

किसानों से खरीदा जाएगा सारा अनाज

 

चंडीगढ़: हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला ने गेहूं खरीद में विपक्ष के कुप्रबंधन के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया सही से चल रही है और किसानों के अनाज के एकएक दाने की खरीद की जाएगी.

 

कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सरकार और आढ़तियों के बीच अविश्वास का माहौल है. इस वजह से खरीद प्रक्रिया बाधित हुई है.

 

इस पर दुष्यंत चैटाला ने कहा कि गेहूं और सरसों की सुगम खरीद सरकार के लिए चुनौती है, लेकिन किसानों के हित में कई फैसले किए गए हैं और चीजें सही से चल रही है.

 

हरियाणा में भाजपा गठबंधन की भागीदार जननायक जनता पार्टी के एक नेता ने कहा कि प्रक्रिया थोड़ी लंबी होने पर भी हम किसानों से सारा अनाज खरीदेंगे.

 

उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में रोजाना औसतन डेढ़ लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद होती है, जबकि कांग्रेस शासन वाले पंजाब में पहले 2 दिनों में 42,200 मीट्रिक टन गेहूं की ही खरीद हुई.

 

बता दें कि दुष्यंत चैटाला के पास खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का काम है.

 

कृषि विवि में दाखिले के लिए जारी अंतिम तिथि

 

पालमपुर: कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने 2020-21 के चलने वाले सत्र की होनी वाली स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं की पढ़ाई को ले कर शेड्यूल जारी किया है. कृषि विश्वविद्यालय में विभिन्न कोर्स को ले कर ऑनलाइन प्रोस्पेक्टस की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस के लिए 15 मई तक छात्र आवेदन कर सकते हैं.

 

कृषि विश्वविद्यालय ने यह भी संकेत दिए हैं कि शेड्यूल में फेरबदल भी हो सकता है.

 

वैसे, कृषि विश्वविद्यालय की ओर से जारी किए गए शेड्यूल में वेटरनेरी कॉलेज (बीबीएससी एंड एएच) और बीएससी ऑनर्स की लिखित परीक्षा 13 जून और मास्टर कार्यक्रमों की 21 जून को होगी. वहीं बीबीएससी एंड एएच और बीएससी आनर्स में जनरल व सेल्फ फाइनेंसिंग श्रेणी के छात्रों की काउंसलिंग जुलाई और अन्य श्रेणियों की 10 जुलाई को होगी.

 

बीटेक फूड टेक्नोलॉजी की काउंसिलिंग 13 जुलाई, बीएससी फिजिकल साइंस और बीएससी लाइफ सांइस की 14 जुलाई, बीसीसी ऑनर्स कम्युनिटी साइंस की 15 जुलाई, एमएससी एग्रीकल्चर की 16 जुलाई, एमबीएसी की 18 जुलाई और 27 अगस्त को काउंसिलिंग होगी.

 

विभिन्न कक्षाओं के लिए वॉक इन इंटरव्यू 19 अगस्त और 21 सितंबर  को होंगे.

 

हालांकि इन तिथियों में बदलाव भी हो सकता है.

 

25 हजार क्विंटल की ही हुई सरकारी खरीद

 

फरीदाबाद: सरकार द्वारा जारी हिदायतों के मुताबिक फरीदाबाद, बल्लभगढ़, मोहना, फतेहपुर बिलौच और तिगांव मंडियों में 25,166 क्विंटल गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई.

 

डीसी यशपाल यादव ने बताया कि कृषि विपणन बोर्ड, खाद्य आपूर्ति नियंत्रण विभाग, एफसीआई व हरियाणा स्टेट वेयर हाउस के अधिकारियों को खरीद का काम सुचारु रूप से चलाने और अनाज मंडियों में खरीद संबंधी पुख्ता इंतजाम करने के दिशानिर्देश दिए गए.

 

आम हो या अमरूद, महक से रहेंगे दूर

 

पटना: बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सबौर के एसोसिएट डायरेक्टर फैज अहमद ने बताया कि बिहार में अमरूद, केला और आम की पैदावार ज्यादा होती है. इस में आम का स्थान 64 फीसदी पैदावार के साथ पहले नंबर पर है.

 

उन्होंने बताया कि इस बार आम के पेड़ में मंजर आने के साथ ही उस का मिलन बारिश के साथ हो गया. इस वजह से 10 से 12 फीसदी तक मंजर खराब हो गए.

 

बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एसोसिएट डायरेक्टर फैज अहमद ने बताया कि बिहार में 1 लाख, 30 हजार हेक्टेयर इलाके में 8 से 10 लाख टन तक आम की पैदावार होती है, पर इस बार किसानों को 20 से 30 फीसदी तक का घाटा उठाना पड़ सकता है.

 

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कुल उत्पादन का 20 से 25 फीसदी तक आम पश्चिम बंगाल जाता था, पर इस बार कम ही उम्मीद दिख रही है, क्योंकि बाहर के कितने कारोबारी बिहार आएंगे, यह कह पाना मुश्किल है.

 

बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने बताया कि राज्य में इन फसलों को कम से कम नुकसान हो, इस के लिए कृषि विभाग विभिन्न स्तरों पर काम कर रहा है. आम, अमरूद व लीची की फसल को कीट व रोगों से बचाने के लिए भी काम किए जा रहे हैं.

 

उन्होेंने किसानों से कहा है कि जिला स्तर पर आम, अमरूद व  लीची से जुड़े राज्य व राज्य के बाहर के व्यवसायी जो पहले इन जिलों से आम और लीची का व्यापार करते थे, उन से संपर्क करें. आम, लीची और अन्य सभी कृषि उत्पादों के राज्य के अंदर या बाहर परिवहन के लिए सभी बाधाओं को दूर किया जाएगा. साथ ही, कारोबारियों को सरकार के स्तर से सभी तरह का सहयोग किया जाएगा.

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