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एक नई शुरुआत-भाग 1: स्वाति का मन क्यों भर गया?

बिखरे पड़े घर को समेट, बच्चों को स्कूल भेज कर भागभाग कर स्वाति को घर की सफाई करनी होती है, फिर खाना बनाना होता है. चंदर को काम पर जो जाना होता है. स्वाति को फिर अपने डे केयर सैंटर को भी तो खोलना होता है. साफसफाई करानी होती है. साढ़े 8 बजे से बच्चे आने शुरू हो जाते हैं.

घर से कुछ दूरी पर ही स्वाति का डे केयर सैंटर है, जहां जौब पर जाने वाले मातापिता अपने छोटे बच्चों को छोड़ जाते हैं.

इतना सब होने पर भी स्वाति को आजकल तनाव नहीं रहता. खुशखुश, मुसकराते-मुसकराते वह सब काम निबटाती है. उसे सहज, खुश देख चंदर के सीने पर सांप लोटते हैं, पर स्वाति को इस से कोई लेनादेना नहीं है. चंदर और उस की मां के कटु शब्द बाण अब उस का दिल नहीं दुखाते. उन पराए से हो चुके लोगों से उस का बस औपचारिकता का रिश्ता रह गया है, जिसे निभाने की औपचारिकता कर वह उड़ कर वहां पहुंच जाती है, जहां उस का मन बसता है.

‘‘मैम आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं,‘‘ नैना ने कहा, तो स्वाति मुसकरा दी. नैना डे केयर की आया थी, जो सैंटर चलाने में उस की मदद करती थी.

‘‘अमोल नहीं आया अभी,‘‘ स्वाति की आंखें उसे ढूंढ़ रही थीं.

याद आया उसे जब एडमिशन के पश्चात पहले दिन अमोल अपने पापा रंजन वर्मा के साथ उस के डे केयर सैंटर आया था.

अपने पापा की उंगली पकड़े एक 4 साल का बच्चा उस के सैंटर आया, जिस का नाम अमोल वर्मा और पिता का नाम रंजन वर्मा था. रंजन ही उस का नाम लिखा कर गए थे. उन के सुदर्शन व्यक्तित्व से स्वाति प्रभावित हुई थी.

‘‘पति-पत्नी दोनों जौब करते होंगे, इसलिए बच्चे को यहां दाखिला करा कर जा रहे हैं,‘‘ स्वाति ने उस वक्त सोचा था.

रंजन ने उस से हलके से नमस्कार किया.

‘‘कैसे हो अमोल? बहुत अच्छे लग रहे हो आप तो… किस ने तैयार किया?‘‘ स्वाति ने कई सारे सवाल बंदूक की गोली जैसे बेचारे अमोल पर एकसाथ दाग दिए.

‘‘पापा ने,‘‘ भोलेपन के साथ अमोल ने कहा, तो स्वाति की दृष्टि रंजन की ओर गई.

‘‘जी, इस की मां तो है नहीं, तो मुझे ही तैयार करना होता है,‘‘ रंजन ने कहा, तो स्वाति का चौंकना स्वाभाविक ही था.

‘‘4 साल के बच्चे की मां नहीं है,‘‘ यह सुन कर उसे धक्का सा लगा. सौम्य, सुदर्शन रंजन को देख कर अनुमान भी लगाना मुश्किल था कि उन की पत्नी नहीं होंगी.

‘‘कैसे?‘‘ अकस्मात स्वाति के मुंह से निकला.

‘‘जी, उसे कैंसर हो गया था. 6 महीने के भीतर ही कैंसर की वजह से उस की जान चली गई,‘‘ रंजन की कंपकंपाती सी आवाज उस के दिल को छू सी गई. खुद को संयत करते हुए उस ने रंजन को आश्वस्त करने की कोशिश की, ‘‘आप जरा भी परेशान न हों, अमोल का यहां पूरापूरा ध्यान रखा जाएगा.‘‘

रंजन कुछ न बोला. वहां से बस चला गया. स्वाति का दिल भर आया इतने छोटे से बच्चे को बिन मां के देख. बिन मां के इस बच्चे के कठोर बचपन के बारे में सोचसोच कर उस का दिल भारी हो उठा था. उस दिन से अमोल से उस का कुछ अतिरिक्त ही लगाव हो गया था.

रंजन जब अमोल को छोड़ने आते तो स्वाति आग्रह के साथ उसे लेती. रंजन से भी एक अनजानी सी आत्मीयता बन गई थी, जो बिन कहे ही आपस में बात कर लेती थी. रंजन की उम्र लगभग 40 साल के आसपास की होगी.

‘‘जरूर शादी देर से हुई होगी, तभी तो बच्चा इतना छोटा है,’’ स्वाति ने सोचा.

रंजन अत्यंत सभ्य, शालीन व्यक्ति थे. स्त्रियों के प्रति उन का शालीन नजरिया स्वाति को प्रभावित कर गया था, वरना उस ने तो अपने आसपास ऐसे ही लोग देखे थे, जिन की नजरों में स्त्री का अस्तित्व बस पुरुष की जरूरतें पूरी करना, घर में मशीन की तरह जुटे रहने से ज्यादा कुछ नहीं था.

स्वाति का जीवन भी एक कहानी की तरह ही रहा. मातापिता दोनों की असमय मृत्यु हो जाने से उसे भैयाभाभी ने एक बोझ को हटाने की तरह चंदर के गले बांध दिया.

शराब पीने का आदी चंदर अपनी मां पार्वती का लाड़ला बेटा था, जिस की हर बुराई को वे ऐसे प्यार से पेश करती थीं, जैसे चंदर ही संसार में इकलौता सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति है.

चंदर एक फैक्टरी में सुपरवाइजर के पद पर काम करता था और अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा यारीदोस्ती और दारूबाजी में उड़ा देता. मांबेटा मिल कर पलपल स्वाति के स्वाभिमान को तारतार करते रहते.

‘‘चल दी महारानी सज कर दूसरों के बच्चों की पौटी साफ करने,‘‘ स्वाति जब भी अपने सैंटर पर जाने को होती, पार्वती अपने व्यंग्यबाण छोड़ना न भूलतीं.

लौकडाउन में पशुओं की देशभाल

लेखक-डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी एवं डा. संजय सिंह

डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी एवं डा. संजय सिंह आज पूरे देश में वैश्विक महामारी कोरोना के कारण पूरे देश में लौकडाउन की स्थिति है. आप लोग भी अपनी फसलों को काट कर भंडारित करने की तैयारी कर रहे होंगे और अपने दुधारू पशुओं की देखभाल में लगे होंगे. किसानों ने अकसर ही देखा होगा कि पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार खिलाने के बाद भी उन के स्वास्थ्य में कोई अंतर दिखाई नहीं देता, क्योंकि पशुओं के पेट में अंत:परजीवी बहुत ज्यादा होते हैं.

ये परजीवी कैसे होते हैं और इन का उपचार क्या होता है, सब विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे. पेट के कीड़ों से बचाव आंत में पाए जाने परजीवी अथवा अंत:परजीवी पशुओं के शरीर के अंदर पाए जाते हैं और परजीवी कृमि भौतिक संरचना के आधार पर 2 प्रकार के होते हैं. पहले चपटे व पत्ती के आकार के, जिन्हें हम पर्णकृमि और फीताकृमि कहते हैं. दूसरे गोलकृमि, जो आकार में लंबे, गोल और बेलनाकार होते हैं. पर्णकृमि ये परजीवी पत्ती के आकार की संरचना लिए होने के कारण पर्णकृमि कहलाते हैं. इस वर्ग में फैशियोला, एम्फीस्टोम और सिस्टोसोम पशुओं को नुकसान पहुंचाने वाली मुख्य प्रजातियां हैं. ये पशुओं के उत्पादन को कम करने के अतिरिक्त एनीमिया, ऊतक क्षति जैसी गंभीर बीमारियां उत्पन्न करते हैं. फीताकृमि इस परजीवी का शरीर चपटा होता है. इन का आकार कुछ मिलीमीटर से ले कर अनेक मीटर तक लंबा हो सकता है.

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इन का चपटे शरीर और लंबे आकार के कारण इन्हें फीताकृमि भी कहा जाता है. यह परजीवी ज्यादातर पशुओं की भोजन नाल में पाए जाते हैं और पशुओं के पोषण तत्त्वों का उपयोग कर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं. इन के लार्वा पशुओं के विभिन्न अंगों में सिस्ट आदि बनाते हैं और हानि पहुंचाते हैं. जैसे, हाईडेटिड सिस्ट, सिस्टीसरकोसिस आदि. गोलकृमि इन परजीवी का शरीर बेलनाकार होने के कारण इन्हें गोलकृमि कहते हैं. यह परजीवी पशुओं में विभिन्न रोग जैसे रूधिर चूसने के कारण अनीमिया, भोजन इस्तेमाल न करने के कारण कमजोरी, फेफड़ों में होने के कारण निमोनिया, आंखों में होने के कारण अंधापन, गांठ बनना, अंगों व ऊतकों को नष्ट करना आदि अवस्था उत्पन्न कर सकते हैं. सुझाव हर 3 महीने के अंतराल पर पशुओं को पेट के कीड़ों की दवा दें.

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पशुओं का टीकाकरण करवाने से पहले पशुओं को आंत के कीड़ों की दवा जरूर दें. पशुओं के गोबर की जांच कराने के बाद ही पेट के कीड़ों की दवा दें. गोबर की जांच आप अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से करवा सकते हैं. माचिस की डब्बी में या छोटी डब्बी में ताजा गोबर जांच के लिए ले कर जाएं. आंत के परजीवियों का उपचार समय से उचित मात्रा में प्रभावी औषिधियों का प्रयोग और पशु विशेषज्ञ/पशु चिकित्सक की देखरेख में किया जाना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें और सरकार द्वारा दिए गए लौकडाउन के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अपने कृषि/पशुपालन का काम करें.

Crime Story: दिलफेंक हसीना

कभीकभी अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि हम समझ तक नहीं पाते कि यह सब कैसे और क्यों हुआ. सच यह है कि यह वक्त की ताकत होती है, जो इंसान के कर्म के हिसाब से अपनी मौजूदगी का अहसास कराती है. भरत दिवाकर ने नमिता को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उस ने बनाते हुए सोचा भी नहीं होगा कि इस का उलटा भी हो सकता है. आखिर यह सब… —15जनवरी, 2020. उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट. थाना भरतकूप के थानाप्रभारी संजय

उपाध्याय अपने औफिस में बैठे थे. तभी भरतकूप के ही रहने वाले यशवंत सिंह उन के पास आए.

यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर थे. यशवंत सिंह ने थानाप्रभारी को अपना परिचय दिया तो उन्होंने उन को सम्मान से कुरसी पर बैठाया. इस के बाद उन्होंने उन से आने का कारण पूछा तो यशवंत सिंह ने कहा, ‘‘सर, एक बहुत बड़ी प्रौब्लम आ गई है.’’

‘‘बताएं, क्या बात है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कल से मेरी बेटी नमिता का कहीं पता नहीं चल रहा है. मुझे आशंका है कि उस के पति पूर्व ब्लौक प्रमुख भरत दिवाकर ने उस की हत्या कर के लाश कहीं गायब कर दी है.’’

‘‘क्या?’’ यह सुनते ही एसओ संजय उपाध्याय चौंके, ‘‘आप की बेटी की हत्या कर के लाश गायब कर दी?’’

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‘‘हां सर, भरत भी कल से ही लापता है. उस का भी कहीं पता नहीं है.’’ यशवंत सिंह ने बताया.

‘‘ठीक है, आप एक तहरीर लिख कर दे दें. मैं मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई करता हूं. इस बारे में जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलती है, आप को इत्तला कर दूंगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

यशवंत सिंह ने अपने 35 वर्षीय दामाद भरत दिवाकर को नामजद करते हुए लिखित तहरीर दे दी. उस तहरीर के आधार पर पुलिस ने नमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो मामला सही पाया गया.

पड़ताल के दौरान एसओ उपाध्याय को पता चला कि 14 जनवरी, 2020 की रात करीब 10 बजे भरत दिवाकर को पत्नी नमिता के साथ गाड़ी में एक मिठाई की दुकान पर देखा गया था. उस के बाद से ही दोनों लापता थे.

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मामला गंभीर था. एसओ संजय उपाध्याय ने इसे बहुत संजीदगी से लिया. उन्होंने इस की सूचना एसपी अंकित मित्तल, एएसपी बलवंत चौधरी और सीओ (सिटी) रजनीश यादव को दे दी.

मामला समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख व उस की पत्नी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ा था. वैसे भी भरत दिवाकर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह खुद तो पूर्व ब्लौक प्रमुख था ही, उस की दादी दशोदिया देवी भी पूर्व ब्लौक प्रमुख थीं. दशोदिया देवी शहर की जानीमानी हस्ती थीं. इस परिवार का रुतबा था, शान थी, ऐसे में पुलिस का परेशान होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. भरत दिवाकर और उस की पत्नी नमिता का पता लगना जरूरी था.

उसी दिन सुबह 11 बजे के करीब भरत दिवाकर की बहन सुमन के मोबाइल पर एक काल आई थी. काल भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद ने की थी. उस ने सुमन को बताया कि भरत भैया रात करीब 2-3 बजे बरुआ सागर बांध पर आए थे. उन की गाड़ी में बोरे में कोई वजनी चीज थी. उन के साथ मैं भी था.

हम दोनों बोरे में भरी चीज को ले कर बांध के किनारे पहुंचे. वहां पहले से एक नाव खड़ी थी. हम दोनों बोरे को ले कर नाव पर सवार हुए और आगे बढ़ गए. बोरा बांध में पलटते वक्त अचानक नाव पानी में पलट गई. अपनी जान बचा कर मैं तो किसी तरह तैर कर पानी से बाहर निकल आया, लेकिन भैया पानी में डूब गए.

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रामसेवक निषाद की बाद सुन कर सुमन हतप्रभ रह गई. उस ने यह बात अपनी मां चुनबुद्दी देवी से बताई तो मां के भी होश फाख्ता हो गए. बीती रात से मांबेटी भरत के घर लौटने का इंतजार कर रही थीं. लेकिन वह घर नहीं लौटा. उस का फोन भी नहीं लग रहा था.

भरत दिन में भले ही कहीं भी रहता हो, शाम होते ही घर लौट आता था. जब वह रात भर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को चिंता हुई. वे लोग उस की तलाश में जुट गए. उस के सारे यारदोस्तों से फोन कर के पूछ लिया गया, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

जब सुबह 11 बजे रामसेवक ने फोन से सुमन को सूचना दी तो घर वाले समझे कि भरत के साथ अनहोनी हो चुकी है. फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. ऐसे में सुमन ने थोड़े संयम से काम लिया.

उस ने भाई के साथ हुई अनहोनी की जानकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार को दे कर मदद की गुहार लगाई. क्योंकि उस समय सुमन को यही ठीक लगा. भरत के बांध में डूबने की जानकारी होते ही वह भी सकते में आ गया.

जिस बरुआ सागर बांध में घटना घटी थी, वह भरतकूप थाना क्षेत्र में पड़ता था. अनूप ने इस की जानकारी भरतकूप थाने के एसओ संजय उपाध्याय को दे दी. एसओ संजय ने शिवराम चौकीप्रभारी अजीत सिंह को सूचित किया और मौके पर पहुंचने के आदेश दिए. अजीत सिंह के मौके पर पहुंचने के कुछ देर बाद एसओ संजय सिंह पुलिस टीम के साथ बरुआ सागर बांध पहुंच गए.

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बांध के किनारे भरत दिवाकर की सफेद रंग की कार यूपी26डी 3893 लावारिस खड़ी मिली. कार की तलाशी ली गई तो उस में एक पैर की लेडीज चप्पल मिली. सुमन ने चप्पल पहचान ली. वह चप्पल उस की भाभी की थी. पुलिस ने बरामद चप्पल साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले ली.

नमिता और भरत दिवाकर के गायब होने की खबर जिले भर में फैल गई. धीरेधीरे बांध पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. थोड़ी देर में  एएसपी बलवंत चौधरी, सीओ रजनीश यादव, कोतवाल अनिल सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार और भरत दिवाकर के घर वाले भी पहुंच गए.

एएसपी बलवंत चौधरी ने एक नाव की व्यवस्था कराई. नाव के साथ ही एक गोताखोर और एक बड़े जाल का इंतजाम भी करवाया गया. पूरा इंतजाम हो जाने के बाद उन्होंने भरत का पता लगाने के लिए नाव में सवार हो कर बांध में उतरने का फैसला किया.

 

पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी.

लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी. वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए.

रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था.

खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

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अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

 

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी.

आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया.

नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

 

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी.

चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी.

ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो. भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी.

बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था.

आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

 

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों.

भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी.

 

आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा.

जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.

 

भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.

 

भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.

कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.

अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.

 

ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.

नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

 

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.

मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

 

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.

दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

 

राजनीति के मंझे खिलाड़ी भरत दिवाकर ने पत्नी नमिता से छुटकारा पाने की ऐसी योजना बना रखी थी कि किसी को उस पर शक ही न हो. उस ने ऐसा जाल इसलिए बिछाया था ताकि उस का राजनीतिक कैरियर बचा रहे. इस के बाद उस ने पत्नी को विश्वास में लेना शुरू कर दिया.

भरत ने नमिता को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘नमिता, बीते दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ. अब से हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, जहां हमारे अलावा चौथा कोई नहीं होगा. जो हुआ, अब वैसा कभी नहीं होगा. इसीलिए मैं ने घर वालों से दूर हो कर यहां अलग रहने का फैसला किया है.’’

पति की बातें सुन कर नमिता की आंखें भर आईं. दरअसल, भरत चाहता था कि नमिता उस के बिछाए जाल में चारों ओर से घिर जाए. अपने मकसद में वह कामयाब भी हो गया था. भोलीभाली नमिता पति के छलावे को नहीं समझ पाई थी.

अपनी योजना के अनुसार भरत ने 14 जनवरी, 2020 को बेटी तान्या को बड़ी साली के घर पहुंचा दिया. रात 8 बजे के करीब भरत नमिता से बोला, ‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी है. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े नामचीन लोग शामिल हो रहे हैं, तुम भी अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ. बहुत दिन से मैं ने तुम्हें कहीं घुमाया भी नहीं है. आज पार्टी में चलते हैं.’’

यह सुन कर नमिता खुश हुई. वह फटाफट तैयार हो गई. रात करीब 9 बजे दोनों अपनी कार से मुलायमनगर की एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे. वहां से भरत ने मिठाई खरीदी. यहीं पर भरत से एक चूक हो गई. मिठाई खरीदते समय उस की और नमिता की एक साथ की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई.

यही नहीं, वहां से निकलने के बाद दोनों ने एक होटल में खाना भी खाया. वहां भी खाना खाते समय दोनों सीसीटीवी में कैद हो गए. इसी सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस की जांच को गति मिली थी.

 

बहरहाल, खाना खाने के बाद भरत और नमिता होटल से निकले. भरत ने ड्राइवर रामसेवक को इशारों में संकेत दिया कि कार बरुआ सागर बांध की ओर ले चले. मालिक का इशारा पा कर उस ने यही किया. रामसेवक कार ले कर सुनसान इलाके में स्थित बांध की ओर चल दिया. भरत और नमिता कार की पिछली सीट पर बैठे थे.

गाड़ी जैसे ही शहर से दूर सुनसान इलाके की ओर बढ़ी, तो निर्जन रास्ते को देख नमिता को पति पर शक हुआ क्योंकि उस ने पार्टी में जाने की बात कही थी. नमिता ने जैसे ही सवालिया नजरों से पति की ओर देखा तो वह समझ गया कि नमिता खतरे को भांप चुकी है. आखिर उस ने चलती कार में ही अपने मजबूत हाथों से नमिता का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

योजना के मुताबिक, भरत ने पहले से ही कार की पीछे वाली सीट के नीचे एक प्लास्टिक का बड़ा बोरा रख लिया था. यही नहीं, बरुआ सागर बांध में लाश ठिकाने लगाने के लिए दिन में ही एक नाव की व्यवस्था भी कर ली थी.

इस काम के लिए भरत ने हरिहरपुर निवासी नाव मालिक रामसूरत से एक नाव की व्यवस्था करने के लिए कह दिया था. बदले में उस ने रामसूरत को कुछ रुपए एडवांस में दे दिए थे. रामसूरत ने भरत से नाव के उपयोग के बारे में पूछा तो उस ने डांट कर चुप करा दिया था.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए भरत रात 12 बजे के करीब कार ले कर बरुआ सागर बांध पहुंचा. बांध से कुछ दूर पहले रामसेवक ने कार रोक दी. दोनों ने मिल कर कार में से नमिता की लाश नीचे उतारी और उसे बोरे में भर दिया. फिर बोरे के मुंह को प्लास्टिक की एक रस्सी से कस कर बांध दिया.

उस के बाद बोरे के एक सिरे को भरत ने पकड़ लिया और दूसरा सिरा रामसेवक ने. दोनों बोरे को ले कर नाव के करीब पहुंच गए. वहां दोनों ने एक दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का बड़ा पत्थर भर दिया, जिसे लाश की कमर में बांध दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि लाश उतरा कर पानी के ऊपर न आने पाए और राज हमेशा के लिए पानी में दफन हो कर रह जाए.

 

भरत दिवाकर और रामसेवक ने दोनों बोरों को उठा कर नाव में रख दिया. फिर दोनों नाव में इत्मीनान से बैठ गए. नाव की पतवार रामसेवक ने संभाल रखी थी. कुछ ही देर में दोनों नाव ले कर बीच मंझधार में पहुंच गए, जहां अथाह गहराई थी. भरत ने रामसेवक को इशारा किया कि लाश यहीं ठिकाने लगा दी जाए.

इत्तफाक देखिए, जैसे ही दोनों ने लाश नाव से गिरानी चाही, नाव में एक तरफ अधिक भार हो गया और वह पानी में पलट गई. नाव के पलटते ही लाश सहित वे दोनों भी पानी में जा गिरे. रामसेवक तैरना जानता था, इसलिए वह तैर कर पानी से निकल आया और बांध पर खड़े हो कर मालिक भरत की बाट जोहने लगा. घंटों बीत जाने के बाद जब वह पानी से बाहर नहीं आया तो रामसेवक डर गया कि कहीं मालिक पानी में डूब तो नहीं गए.

जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने घर लौट आया और इत्मीनान से सो गया. अगली सुबह यानी 15 जनवरी को उस ने भरत की छोटी बहन सुमन को फोन कर के भरत के बरुआ सागर बांध में डूब जाने की जानकारी दी.

 

इधर बेटी के अचानक लापता होने से परेशान पिता यशवंत सिंह ने भरत दिवाकर को आरोपी मानते हुए भरतकूप थाने में शिकायत दर्ज करा दी. बाद में बरुआ सागर बांध से नमिता की लाश पाए जाने के बाद पुलिस ने भरत दिवाकर और रामसेवक निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

घटना के 9 दिनों बाद उसी बरुआ सागर से भरत दिवाकर की भी सड़ीगली लाश बरामद हुई, जो भोलीभाली पत्नी नमिता की हत्या को राज बनाना चाहता था. प्रकृति में भरत दिवाकर को अपने तरीके से अनोखी मौत दे कर नमिता को हाथोंहाथ इंसाफ दे दिया.

दिल तो बच्चा है जी

आखिर दिल बच्चा ही तो है प्यार कोई फौर्मैलिटी नहीं है जिसे उम्र देख कर ही किया जाए. जिस से जब दिल के तार जुड़ने हों जुड़ जाते हैं और न जुड़ें तो बेमतलब रिश्ते में आखिर क्यों बंधा जाए? उम्र की बंदिशें तोड़ता प्यार शौकिया नहीं बल्कि परिपक्व सोच की निशानी होता है.

क्या प्यार की कोई सही उम्र होती है? क्या प्यार के लिए कोई छोटा और कोई बूढ़ा होता है? जी नहीं, प्यार की कोई उम्र, कोई सीमा नहीं होती. प्रसिद्ध लेखिका मारिया एजवर्थ ने कहा था कि इंसानी दिल किसी भी उम्र में उस दिल के आगे खुलता है जो बदले में अपने दिल का रास्ता खोल दे. तकरीबन 2 शतक पूर्व कही गई उन की बात आज भी सटीक साबित होती है. शायद इसी बात की मार्मिकता को समझते हुए गजल सम्राट जगजीत सिंह ने फिल्म ‘प्रेम गीत’ (1981) के एक गीत ‘होठों से छू लो तुम…’ की कुछ पंक्तियों में कहा है, ‘न उम्र की सीमा हो… न जन्मों का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’ चार दशक पहले लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है. तब प्यार की जो नई परिभाषा कल्पना में पिरो कर शब्दों से सजाई गई थी, आज वह समाज की हकीकत बन गई है.

मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं, ‘‘हम उम्र के हर पड़ाव में भावनात्मक रूप से जुड़ने की क्षमता को महसूस करते हैं और चाहते हैं कि कोई हो जो हमारा ध्यान करे, हमारी इज्जत करे, हम से प्यार करे.’’

बौलीवुड की फिल्मों का तो यह औलटाइम फेवरेट विषय रहा है. असंख्य फिल्में व गीत प्रेम की मधुरता, प्रेमी से विरह और प्यार में जीनेमरने की स्थितियों को गुनगुनाते सुने व देखे जाते रहे हैं. एक आम आदमी के जीवन में प्यार कभी उस के जीवन की मजबूत कड़ी बनता है, तो कभी मृगतृष्णा की भांति जीवनभर छलावा देता है. ढाई अक्षर के इस शब्द में जीवन की संपूर्णता है.

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जवानी दीवानी

हमारे समाज में जवानी को बहुत महत्त्व दिया जाता है. कुछ इस तरह का माहौल बना रहता है कि यदि जवानी बीत गई तो जीवन ही समाप्त समझो. जीवन की ऊर्जा, उस की क्षमता और उस का उत्साह, सबकुछ जवानी अपने साथ ले जाती है. शायद इसीलिए जवानी जाने के बाद भी अकसर लोग जवान बने रहना चाहते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र इतनी बुरी भी नहीं और इस का सब से बड़ा कारण है कि उम्र के साथ हमारे पास अनुभवों का खजाना बढ़ता जाता है जिस से हमारी जिंदगी पहले के मुकाबले और रंगीन व रोचक हो जाती है.

यह जरूरी नहीं कि प्यार पाने के लिए आप जवान ही हों. प्यार किसी भी उम्र में हो सकता है. यह तो वह अनुभूति है जो जिसे छू जाए वही इस का सुख, इस का नशा जानता है. कितनी बार हम यह सोचते हैं कि अब हम प्यार के लिए बूढ़े हो चुके हैं खासकर कि महिलाएं. महिलाएं अकसर रोमांस या नए रिश्ते खोजने में डरती हैं और सोचती हैं कि अब हमारी उम्र निकल चुकी है, अब हमें कौन मिलेगा. लेकिन जरूरी नहीं कि प्यार जवानी में ही मिले.

एक उम्र गुजार देने के बाद जो प्यार मिलता है वह छोटी उम्र के प्यार से बेहतर होता है. आप सोचेंगे कैसे? वह ऐसे कि जब हम जवान होते हैं या कम उम्र होते हैं तो हमारे पास केवल उतनी ही उम्र का तजरबा होता है. जबकि उम्र बढ़ने के साथसाथ हमारे अनुभव बढ़ते हैं, हमारी गलतियां बढ़ती हैं और उन गलतियों से हमारी सीखें भी बढ़ती हैं. इसलिए बड़ी उम्र का प्यार वह गलतियां नहीं करने देता जो छोटी उम्र वाले आशिक अकसर कर बैठते हैं. उम्र गुजार देने के बाद हम अपनी गलतियों से शिक्षा ले आगे की राह सुगम बनाने लगते हैं. हमें पता चल जाता है कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं.

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मर्दों को अकसर आत्मविश्वासी औरतें बहुत भाती हैं जिन्हें यह पता हो कि उन्हें खुद से और सामने वाले से क्या चाहिए. इसलिए आजकल ऐसे कई उदाहरण हैं जिन में आशिकों की उम्र में अंतर तो होता है लेकिन साथियों में बड़ी उम्र की औरत होती है और कम उम्र का मर्द. आजकल आप कई ऐसे जोड़े देखेंगे जिन में अधिक उम्र की महिलाओं के साथ कम उम्र के मर्द दिखाई देते हैं.

साइकोलौजिस्ट डा. पल्लवी जोशी कहती हैं, ‘‘प्यार के लिए आपसी सामंजस्य, समझदारी, समर्पण व सम्मान की जरूरत है न कि उम्र की.’’  डा. जोशी के अनुसार ऐसे रिलेशनशिप (जो बड़ी उम्र में बनते हैं) कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब जो बदलाव आ रहे हैं उन में यह देखने को मिल रहा है कि महिलाएं ऐसे रिश्तों में ज्यादा खुल कर सामने आ रही हैं.

दिल तो बच्चा है जी

दिल की मासूमियत कभी खत्म नहीं होती. फिर चाहे आप 15 के हों, 30 के, या फिर 55 के ही क्यों न हों. दिल तो हमेशा बच्चा होता है और वह उसी तरह बचपना कर के जिंदगी का आनंद लेता रहता है. दिल कभी भी यह नहीं सोचता कि आप की उम्र क्या है या जिस से आप की आंखें चार होने वाली हैं उस की उम्र और उस का मजहब क्या है. यह सब से अच्छा होता है. सब से खूबसूरत और जिंदादिल होता है. दिल हमेशा जवां होता है, जिसे अपने सब से करीब पाता है, बस, वह उसी का होने को बेताब हो जाता है.

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मशहूर सिंगर मैडोना ने 61 वर्ष की उम्र में अपने से 36 वर्ष छोटे लड़के विलियम से प्यार किया. हालांकि, विलियम के मातापिता तक उम्र में मैडोना से छोटे हैं पर वे इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके हैं और कहते हैं कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती.

मिसेज इंडिया फेम रह चुकीं मीनाक्षी माथुर का कहना है, ‘‘हमारा समाज काफी बदल रहा है. समाज की तरफ से कई ऐसे आयामों को स्वीकृति मिल रही है जो पहले नहीं थी, जैसे बड़ी उम्र का प्यार या लिव इन रिलेशनशिप. लेकिन अब भी हमारे समाज में उतनी मैच्योरिटी नहीं आई है जितनी कि पाश्चात्य समाज में है. पश्चिम के लोग यह जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं. पहले किसी को पसंद करना, फिर उस के साथ रह कर यह देखना कि निबाह हो सकता है या नहीं और फिर शादी का निर्णय लेना. ये सभी परिपक्व सोच की निशानियां हैं.’’

मैच्योर लव

एक सफल रिश्ते के लिए किसी एक का मैच्योर होना महत्त्व रखता है, रूप से नहीं, दिमाग से ताकि रिश्ता संपूर्ण समझदारी व धैर्य से निभाया जा सके. एक मैच्योर साथी धैर्य से रिश्ते की कमजोरियों पर गौर करता है. ठंडे दिमाग से अपनी व अपने प्रियतम की खामियों को दूर करने की पहल करता है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि रूप, यौवन एक वक्त के बाद ढल ही जाता है, फिर चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का. तब ताउम्र जो आप के साथ रहता है वह है आप का प्यार, आपसी सामंजस्य, विश्वास, एकदूसरे की परवा व समझदारी. इन की नींव पर खड़ा रिश्ता जिंदगी के आखिरी पड़ाव में आप का हाथ थामे रखता है चूंकि उस की बुनियाद उम्र नहीं, आप का सच्चा प्यार होता है.

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समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों एकदूसरे की तरफ अट्रैक्ट होते ही हैं. जीवन में यदि कोई ऐसा आप को मिलता है जिस से मिलने के बाद आप खुद को पूरा समझने लगते हैं, आप का माइंडसैट, नेचर, बिहेवियर, खूबियां व खामियां सब वह अच्छे से समझता है या कहें कि आप को लगता है कि उस के साथ सब मैच करता है तो आप को बेझिझक आगे बढ़ना चाहिए.

जब प्यार मिलता है तो वह उम्र की सीमाएं नहीं नापता. वह तो बस एक तूफान की तरह आता है और अपने उफान में हमें डुबो लेता है. ऐसे में हमें सच्चे प्यार का आनंद लेना चाहिए. उस का सुख उठाना चाहिए और यह शुक्र मनाना चाहिए कि हमारे साथ यह इस समय हो रहा है. प्यार में पड़ कर भले ही हम 50 के हों किंतु हमें अनुभूति 19 की भी हो सकती है, 25 की भी हो सकती है और 38 की भी.

देशी भी पीछे नहीं

प्यार वह एहसास है जो उम्र को बखूबी हरा सकता है. इस का एक बेहद खूबसूरत उदाहरण है झाबुआ जिले के परगट गांव में रहने वाले बादू सिंह और भूरी की प्रेम कहानी. भूरी का पति शराब पी कर उस से अकसर मारपीट किया करता था जबकि बादू सिंह की पत्नी का देहांत हो चुका था और वह एकाकी जीवन जी रहा था. दोनों मजदूरी करने गुजरात गए और वहीं इन की मुलाकात हुई. मिलने पर इन्हें लगा कि हम दोनों एकदूसरे के लिए सही हैं. बस, यहीं से प्यार की कोंपलें फूटने लगीं.

लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट यह रहा कि ये दोनों ही 70 पार की उम्र के हैं. जिस उम्र में हमारा समाज अपने बुजुर्गों को हाथ में माला फेरने और भगवान में मन लगा कर अपनी उम्र पूरी होने की नसीहत देता है, उस उम्र में इन दोनों ने बेखौफ हो कर प्यार किया और समाज की परवा न करते हुए आगे बढ़ चले. दिल के हाथों मजबूर हो कर अपने प्यार को पाने के लिए इन दोनों ने लिवइन में रहना शुरू कर दिया. भूरी कोई आधुनिका नहीं, किसी पौइंट को प्रूव करने के लिए नहीं, किसी संस्था की सदस्य नहीं बल्कि केवल अपने दिल की सुनते हुए ऐसा कर गुजरी.

समाजशास्त्री टेसू खेवानी कहती हैं कि जब हम अपने किसी निर्णय पर अडिग होते हैं तो समाज भी उसे स्वीकार कर ही लेता है. हमारे अपने आत्मविश्वास को देखते हुए जब हमारी अंतरात्मा हमारा साथ देती है तो बाहरी समाज भी खूबसूरती से उसे अपना लेता है. इसलिए जरूरी है कि हम जो निर्णय लें उस पर पूरा विश्वास रखें और डटे रहें.

मनोवैज्ञानिक आधार पर रोमांटिक रिलेशनशिप

मनोवैज्ञानिक आधार पर देखा जाए तो एक सुदृढ़ रिश्ते, जिस में एक अच्छा रोमांटिक रिलेशनशिप भी आता है, का असर हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा पड़ता है. और इस कारणवश यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि एक सफल रोमांटिक रिश्ता किन कारणों से बन सकता है. बढ़ती उम्र की आबादी के लिए यह जान लेना स्वास्थ्यवर्धक रहेगा.

जब हम जवान होते हैं तो अपने रिश्ते की नकारात्मकता पर कम ध्यान देते हैं. इस कारण कई बार हम गलत रिश्ते भी बना बैठते हैं. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ हम यह समझने लगते हैं कि हमें एक रिश्ते से क्या चाहिए और क्या नहीं. रिश्ते बनाने में भले ही हम अपनी गति धीमी कर लें लेकिन गलती करने से बचना चाहते हैं. संभवतया इसीलिए औरतें रिश्तों में आगे बढ़ने से कतराती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अब समय बीत चुका है, अब उन्हें उन का साथी नहीं मिलेगा, और वे रोमांटिक रिश्ता ढूंढ़ने में घबराने लगती हैं. लेकिन, साथ ही एक सचाई यह भी है कि बढ़ती उम्र की औरत अपने साथी में कमी न ढूंढ़ कर, उसे ‘जैसा है वैसा ही’ स्वीकार सकती है जबकि एक जवान स्त्री अपने साथी को अपनी तरह बनाने की कोशिश करती रहती है.

58 साल की बेथनी को जब उन का मनपसंद साथी मिला तो दोनों ने एकसाथ रहने का निर्णय किया. न्यूयौर्क में स्थित हडसन रिवर के पास जब उन्होंने अपने घर में एकसाथ रहना शुरू किया तो बेथनी ने अपने अंदर जवानी के दिनों के मुकाबले एक भारी बदलाव महसूस किया. वे कहती हैं, ‘अब तक की सारी जिंदगी में जब भी किसी पुरुष ने मुझ से भिन्न कोई कार्य किया तो मैं ने उसे अपने सांचे में ढालना चाहा. लेकिन, अब एक उम्र निकल जाने के बाद मुझ में यह बदलाव आया है कि अपने से भिन्न तरीके पर मेरी प्रतिक्रिया होती है. अच्छा, यह ऐसे भी हो सकता है, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. यह तरीका बेहतर है क्योंकि इस में तनाव नहीं.’ बेथनी कहती हैं कि जिंदगी छोटी है और मौत एक दिन जरूर आएगी, और प्यार सच है. इसलिए हम वर्तमान के एकएक पल का लुत्फ उठाना चाहते हैं.

बहुत हैं उदाहरण

सैलिब्रिटीज की बात करें तो बढ़ती उम्र में प्यार तलाशने वालों की कमी नहीं है. जहां उर्मिला मातोंडकर, प्रीति जिंटा ने 40 पार करने पर शादियां कीं, संजय दत्त ने 48 साल की उम्र में तीसरी शादी की जो उन का सच्चा प्यार साबित हुई. वहीं, सुहासिनी मुले जैसी खूबसूरत अभिनेत्री ने 60 पार करने के बाद और कबीर बेदी ने 70 पार करने के बाद शादियां कीं. नीना गुप्ता जैसी प्रखर स्वभाव की महिला को अपना सच्चा प्यार 43 वर्ष की आयु में मिला. जब वे एक प्लेन में यात्रा कर रही थीं तब उन की मुलाकात पेशे से चार्टर्ड अकाउंटैंट विवेक मेहरा से हुई. 6 साल लिवइन रिलेशनशिप में रहने के बाद उन्हें विश्वास हो गया कि यही उन का सच्चा साथी है और 49 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने दिल की आवाज को सुना और विवाह कर लिया.

राजनीति के क्षेत्र में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन ने 54 साल की उम्र में एक बार फिर अपने दिल की राह पकड़ी. भारत में भी ऐसा एक किस्सा कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह का मिलता है जिन्होंने 67 वर्ष की आयु में प्यार की डगर चुनी और अमृता राय से विवाह किया.

हालांकि, ऐसे किस्से कई बार इंटरनैट पर काफी ट्रोल होते हैं. बढ़ती उम्र में प्यार का हाथ थामने वालों को समाज में बहिष्कार और मखौल का पात्र बनना पड़ता है. किंतु जब प्यार किया तो डरना क्या? प्यार का साथ जिस उम्र में भी मिले, बिना संकोच करें बढ़ा हुआ हाथ थाम लेना चाहिए.

 

Hyundai #AllRoundAura: हर तरह से शानदार है Interior

हुंडई Aura एक शानदार, हाई डेफिनेशन 25 सेमी इंफोटेनमेंट स्क्रीन के साथ आती है जो आपके सभी जरूरी मनोरंजन का ध्यान रखती है. सिर्फ इतना ही नहीं, यह स्क्रीन ड्राईवर के लिए गाड़ी से जुड़ी सारी जरूरी जानकारी भी उसकी आंखों के सामने रख देती है. इस के गेज क्लस्टर में एक एनालॉग टैकोमीटर के साथ 13.46 सेमी का मल्टी इन्फर्मेशन डिस्प्ले भी है, यह आपको वह सभी जानकारी देता है जो आप जानना चाहते हैं.

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यह डिस्प्ले आपको बाहर के टेम्परेचर से लेकर गाड़ी का तेल खत्म होने में बची दूरी तक, सब कुछ बताता है. लेकिन सब से जरूरी बात यह है कि यह आपकी स्पीड को दिखाता है, वो भी एक आसानी से पढ़े जाने वाले फॉन्ट में. इसका इन्फोर्मेटिव गेज क्लस्टर ड्राइविंग को एक सुखद अनुभव बनाता है. #AllRoundAura.

हिन्दुस्तानीं भाऊ पर भड़की एकता कपूर, लीगल नोटिस को बताया गलत

बीते कुछ दिनों से एकता कपूर अपनी वेब सीरीज को लेकर चर्चा में बनी हुई है. वेब सीरीज xxx2 में आर्मी के वर्दी में लोगों के साथ आपत्तिजनक सीन दिखाया गया है. जिसे लेकर बीग बॉस 13 कंटेस्टेंट हिन्दुस्तानीं भाऊ ने कई तरह के सवाल उठाएं है.

यह विवाद कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. हिन्दुस्तानीं भाऊ ने कहा है कि हमें इस बात का पता नहीं था कि इस वेब सीरीज में हमारे देश के सेना को लेकर इतना गलत दृश्य दिखाया गया है. इस सीरीज से सेना के गलत सीन को हटाना होगा और साथ ही एकता कपूर को वादा करना होगा कि आज के बाद वह कोई भी ऐसा दृश्य नहीं दिखाएंगी.

आगे हिन्दुस्तानी भाऊ ने कहा था कि अगर वह उनकी बात को नहीं मानेंगी तो उन्हें 100 करोड़ रुपये का हर्जाना भरना पड़ सकता है.

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हिन्दुस्तानी भाऊ के इस बात पर एकता से बात लेंबे समय से चुपी साधी था लेकिन जब उन्हें लगा कि पानी सर से ऊपर जा रहा है तो उन्होंने इस पर अपनी बात को रखते हुए कहा है कि मैं एक भारतीय होने के नाते हिन्दुस्तानीं सेना की दिल से इज्जत करती हूं अगर मेरी वजह से किसी को कई चोट पहुंची है तो मैं दिल से मांफी मांगती हूं.

और वादा करती हूं कि आगे से कुछ भी ऐसा नहीं होगा जिससे मेरे देश के लोगों को चोट पहुंचे. एकता कपूर ने आगे कहा कि लेकिन यह सरासर लगत है कुछ लोग अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं मेरे परिवार को रेप की धमकी दे रहे हैं. यह कहा कि मानवता है.

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एकता कपूर के नर्म स्वभाव से मांफी मांगने पर सभी फैंस एक बार फिर उनकी तारीफ कर रहे हैं. उन्हें लगातार कमेंट भी कर रहे हैं.

इन दिनों एकता कपूर अपनी अपकमिंग सीरियल नागिन 5 की शूटिंग में व्यस्त हैं.

रणबीर कपूर की फैमिली के साथ ऐसे टाइम बिता रही हैं आलिया भट्ट, रिद्धिमा कपूर ने शेयर की फोटो

बॉलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट जल्द ही कपूर खानदान की बहू बनने वाली हैं. ऐसे में आलिया शादी से पहले कनेक्टेड है. उन्हें हमेशा रणबीर की फैमली के साथ देखा जाता है. चाहे समय सुख का हो या फिर दुख का आलिया हर वक्त रणबीर कपूर की फैमली को सपोर्ट करती नजर आती है.

हाल ही में नीतू कपूर की बेटी रिद्धिमा कपूर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक फोटो शेयर की हैं जिसमें आलिया भट्ट भी नजर आ रही हैं. इस तस्वीर में सभी लोग मस्ती के मूड में नजर आ रहे हैं.

रिद्धिमा आलिया के साथ बेहद खूबसूरत बॉन्ड शेयर करती हैं. कुछ दिनों पहले जब रिद्धिमा के पापा यानी ऋषि कपूर की मौत के समय भी आलिया हर वक्त सभी के साथ नजर आई थी.

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बता दें कि इस साल के आखिरी में ही रणबार और आलिया शादी के बंधन में बंधन में बंधने वाले थें लेकिन रणबीर के पिता की डेथ की वजह से दोनों के परिवार वालों ने अपना प्लान कैंसिल कर दिया है.

फिलहाल दोनों की शादी की कोई चर्चा नहीं है कि कब करने वाले हैं. लेकिन दोनों साथ में क्वालिटी टाइम स्पेंड करते नजर आते हैं.

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आलिया भट्ट की वर्क फ्रंट की बात करें तो फिलहाल उनके पास कई प्रोजेक्ट्स है लेकिन वह लॉकडाउन की वजह से अपने फैमली के साथ रह रही हैं.

 

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My comfort zone ❤️ #familia

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वहीं रणबीर कपूर और आलिया भट्ट डल्द ही फिल्म ब्राह्मशास्त्र में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म में दोनों की जोड़ी को देखने के लिए दर्शक इंतजार में हैं.

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आलिया भट्ट इससे पहले भी कई सुपरहिट फिल्मों में काम कर चुकी हैं, उनकी सबसे सुपरहिट फिल्म राजी रही है.

कपूर फैमली के साथ-साथ लिया भट्ट को भी ऋषि कपूर के जाने का दुख है. उन्होंने इस बात को कई बार अपने सोशल मीडिया के जरिए बयां किया हैं. आलिया ऋषि कपूर को अपने पिता जैसे मानती थी.

प्रसव पीड़ा से महिला तड़पती रही, अस्पताल चक्कर कटवाते रहे, आखिर में मौत

उत्तर प्रदेश के नॉएडा से एक मामला सामने आया है. जिसने मानवता को फिर शर्मशार कर दिया है. मामला एक गर्भवती महिला का है. जिसकी मौत की जिम्मेदार पूरी तरह से सरकारी अव्यवस्था है. घटना यह है कि 5-6 जून की रात नॉएडा में 8 महीने की गर्भवती महिला को लेकर उसका परिवार 13 घंटो तक कई अस्पतालों के चक्कर काटता रहा. लेकिन सभी अस्पतालों ने गर्भवती महिला को भर्ती करने से मना कर दिया, जिस कारण अंत में उसकी मौत हो गई.

महिला गाजियाबाद जिले के खोड़ा कॉलोनी की रहने वाली थी. शुक्रवार रात महिला को प्रसव पीड़ा होने लगी. परिवारजन पीड़ित महिला को ऑटो रिक्शा में बैठा कर नॉएडा के सेक्टर 24 में स्थित बीमा राज्य कर्मचारी निगम के अस्पताल लेकर पहुंचे. वहां डॉक्टरों ने पीड़ित महिला को लेने से इनकार कर दिया. जहां से महिला को एम्बुलेंस में दूसरे निजी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां भी अस्पताल ने लेने से साफ़ मना कर दिया.

यही कारण था कि पूरी रातभर परिजन अस्पताल दर अस्पताल के चक्कर काटते रहे. खबर के मुताबिक शुक्रवार रात से लेकर अगली सुबह तक पीड़ित महिला के साथ परिजन ने लगभग 8 अस्पतालों के चक्कर काटे. जिसमें जेम्स, मेक्स, शिवालिक, शारदा और ईएसआईसी जिला अस्पताल इत्यादि शामिल है. लेकिन किसी ने भी महिला को भर्ती नहीं किया. अस्पतालों को महिला के कोरोना होने का डर था.

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परिवार का कहना है कि अस्पताल में भर्ती करने से पहले कई जगह कोविड-19 की रिपोर्ट मांगी जा रही थी. कई जगह बेड की कमी बताई जा रही थी. जिस कारण अस्पताल वाले लेने से मना कर रहे थे. यहां तक कि उनका आरोप है कि उसी रात नॉएडा के एक निजी अस्पताल में भर्ती करने से पहले उन्होंने टेस्ट करने के लिए 5000 रूपए दिए लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें बिना पैसे लौटाए वहां से भी भगा दिया गया. 13 घंटे इलाज की तलाश में भटकने के बावजूद आखिर में महिला ने अपना दम तोड़ दिया जिसके बाद पेट में पल रहा बच्चे की भी मौत हो गई.

इस मामले में जिला सुचना अधिकारी राकेश चौहान ने कहा कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए जिलाधिकारी ने अपर वित्त एवं राजस्व मुनीन्द्र नाथ तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर दीपक ओहरी को जांच की जिम्मेदारी सोंपी हुई है. किन्तु अधिकारी अगर इस घटना से पहले ही इन तरह के मामलों में संज्ञान लेती तो महिला की मौत होने से बच सकती थी. जबकि अधिकारी से लेकर सरकार को इस प्रकार की घटनाओं के होने का अंदाजा पहले से ही होना चाहिए था.

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ऐसी घटनाए पहले भी हो चुकी

सरकारी कुप्रबंधन की खबर पहले भी आती रही हैं. मई के अंत में महाराष्ट्र के ठाणे में 26 वर्षीय गर्भवती महिला 25-26 तारीख की रात अस्पताल दर अस्पताल के चक्कर काटती रही. कई अस्पतालों के चक्कर काटने की बाद भी उसे किसी अस्पताल ने भर्ती नहीं किया गया, अंत में रास्ते में ऑटो के भीतर महिला की मौत हो गई. वहीँ महाराष्ट्र में ही रमाबाई आम्बेडकर में रहने वाली 8 महीने की गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा के कारण अस्पताल पहुंची वहां डॉक्टरों ने बताया की अभी डिलीवरी होने में समय है. लेकिन महिला पीड़ा में होने से महिला ने हॉस्पिटल प्रबंधक को घर पहुँचाने के लिए साधन की मांग की लेकिन उसे मना कर दिया गया. पीड़ित महिला को पैदल रेलवे ट्रैक के रास्ते घर आने पर मजबूर होना पड़ा. ऐसी और भी घटनाए हैं जिसमें बिना इलाज पीड़ित को अपनी जान गंवानी पड़ी या परेशानी उठानी पड़ी.

इसी प्रकार की घटना कुछ समय पहले राजस्थान से भी सामने आई थी जहां गर्भवती महिला को डॉक्टर ने एडमिट करने से मना कर दिया था और रास्ते में बच्चा बिन ट्रीटमेंट के मर गया. पति ने तो अस्पताल पर यह तक आरोप लगाए थे कि मुस्लिम होने के चलते पीड़ित को एडमिट नहीं किया गया. यह मामला जनाना अस्पताल का था जहां विशेषतौर पर गर्भवती महिलाओं को एडमिट किया जाता है. उसके बाद उस गर्भवती महिला को जयपुर अस्पताल भेजा गया रास्ते में ही महिला ने बच्चे को जन्म दिया, जिस कारण बच्चे की मौत हो गई.

यह कुछ रिपोर्ट्स है जो तालाबंदी में सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोल रही है. किन्तु मात्र गर्भवती महिलाएं ही नहीं अन्य बिमारियों से पीड़ित मरीजों को बिना सरकारी इलाज के अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है.

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गर्भवती महिलाओं को लेकर ये आकड़े सरकार की बातों से उलट

सिर्फ कोरोना संक्रमण के समय ही नहीं उससे पहले भी गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भारत सरकार और राज्य सरकारों के दावे खोखले रहे हैं. केंद्र की आरटीआई में खुलासा हुआ कि सरकार की प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना का लाभ सिर्फ 22 फीसदी महिलाओं को मिल रहा है. इसके बावजूद की इस योजना में पहली प्रसव के लिए सहायता देने का प्रावधान है. वहीँ ‘जच्चा बच्चा’ सर्वे, जिसे अर्थशास्त्री रितिका खेरा और डीन ड्रेज तथा समाज वैज्ञानिक अनमोल समांची ने गर्भवती महिलाओं को लेकर आकड़े देश के सामने पेश किये.

2019 के अंत महीनों में जब प्रधानमंत्री विदेशों के एनआएआई को यह बता रहे थे कि भारत में सब बढ़िया है, उस समय एक भारत के 6 राज्यों को लेकर यह सर्वे सामने आया था. इस सर्वे के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के आकड़े हम सभी के लिए काफी चिंताजनक थे.

इस सर्वे के मुताबिक 30 फीसदी परिवारों को प्रसव पीड़ा का खर्चा उठाने के लिए अपनी सम्पति बैचनी पड़ती है. वहीँ 63 फीसदी ग्रामीण महिलाएं अपनी डिलीवरी के दिन तक अपना काम कर रही होती हैं. 706 महिलाओं पर किए इस सर्वे में पता चला कि कई महिलाओं का वजन डिलीवरी के समय 40 किलो से भी कम रहता है.

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यह सर्वे उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और हिमांचल प्रदेश के राज्यों में किया गया. जिसमें सबसे दुखद स्थिति उत्तरप्रदेश की बताई गई. जहां मात्र 12 फीसदी गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ‘नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट 2013’ के तहत आंगनबाड़ी से उचित लाभ मिल पाता है. जिसमें पका हुआ खाना, फोलिक एसिड की टेबलेट, क्रेच की व्यवस्था शामिल होती है. सर्वे में बाते गया की किसी आम परिवार में महिला डिलीवरी के समय ओसतन आने वाले खर्चे की तुलना में मिलना वाला सरकारी पैसा कम होता है. साथ ही यह पैसा रक़म किश्तों में मिलती है. सरकार की यह योजनाओं कई शर्तो के साथ बनाई गई होती हैं से जिस कारण गरीब तक इसका लाभ नहीं पहुँच पाता. और अधिकाँश महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं.

कोरोना काल में और बुरा हाल

सर्वे से पता चलता है कि गर्भवती महिलाओं के लिए सरकारी व्यवस्थाएं पहले से ही काफी ख़राब हालत में थी. कोरोना काल में अब स्थिति काफी बिगड़ चुकी है. ज्यादातर सरकारी अस्पतालों के ओपीडी बंद किये गए हैं. अस्पतालों के आपातकाल सेक्शन में भी दाखिला देने से पहले कोविड-19 का टेस्ट क्लिअरेंस सर्टिफिकेट माँगा जा रहा है. कई मरीजों को बेड्स की कमी के चलते वापस भेजा जा रहा है. तालाबंदी के ढाई महीने बाद भी अस्पताल सामान्य स्थिति में नहीं लौट पाएं हैं.

आज तमाम रिपोर्ट्स में महज कोरोना के आकड़ों को ही दिखाया जा रहा है, किन्तु इसके इतर अधिकतर अस्पताल कोरोना संक्रमण के इलाज में लगे हैं. जिसकी व्यस्तता के चलते अन्य बिमारियों से होने वाली मौतों का आकड़ा सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं किया जा रहा, न ठीक से ट्रीट किया जा रहा है. ऐसा तो है नहीं कि भारत में कोरोना के आने के बाद बाकी बिमारियां छुट्टियाँ मनाने चली गई है. कोरोना काल में अन्य बिमारी के मरीजों को पर्याप्त इलाज न मिलने के चलते कई समस्याएं उठानी पड़ रहीं है.

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यही कारण था जब चीन में कोरोना वुहान शहर में अपने पैर पसारने लगा था तब वहां की सरकार ने 10 दिनों के भीतर समय रहते 1600 बेड्स के दो अस्पताल उसी दौरान खड़े कर दिए थे. ताकि कोरोना मरीजों का अलग ट्रीटमेंट किया जा सके. और एक समय के बाद अन्य बिमारियों से पीड़ित मरीजों का इलाज सुचारू रूप से चलाया जा सके. किन्तु हमारी देश की सरकारें मौजूदा अस्पतालों के भरोसे ही चीजों को सँभालने की कोशिश कर रही है. नए अस्पताल बनाने की जगह पहले से बने अस्पतालों पर अतिरिक्त दबाव बना रही है.

यही कारण है कि इसी सरकारी कुप्रबंधन के चलते नॉएडा में उस गर्भवती महिला और पेट में पल रहे बच्चे को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसके साथ तमाम दूसरे मरीज अस्पतालों में कोरोना के चल रहे इलाज के कारण पेंडिंग में खड़े हैं. जिस कारण उनके स्वास्थ्य में और गिरावट दर्ज हो रही है.

Medela Flex Breast Pump: रखें मां और बच्चे की सुरक्षा का पूरा ख्याल

हर मां चाहती है कि उसके बच्चे को भरपूर पोषण मिले, इसके लिए वह बच्चे के जन्म लेते ही उसे अपना दूध पिलाती है, चाहे उसे इसके लिए कितनी भी पीड़ा क्यों सहनी पड़े. आखिर ये रिश्ता होता ही ऐसा है. मां से अपने बच्चे की पीड़ा देखी नहीं जाती. वह जानती है कि अगर बच्चे को हैल्थी रखना है, उसकी इम्युनिटी को बढ़ाना है तो उसे मां का दूध पिलाना ही होगा

लेकिन कई बार ऐसी स्थिति  जाती है जब मां चाहा कर भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती. जैसे कई बार स्तनों में दूध नहीं आता या फिर अधिक दूध आने के कारण स्तनों में अत्यधिक पीड़ा होती है या जौब के कारण मजबूरन उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए  फार्मूला मिल्क का सहारा लेना ही पड़ता है. जो भले ही बच्चे की भूख को शांत कर दे लेकिन इससे बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते हैं, जो आगे चलकर उसमें कई कमियों का कारण भी बन सकते हैं

लेकिन अब नई टेक्नोलॉजी के आने के कारण हमारा जीवन आसान हो गया है. हमारे सामने आज ढेरों विकल्प होते हैं. इसी में एक है ब्रैस्ट पंपअब ऐसे ब्रैस्ट पंप्स  गए हैं जिसने मां की परेशानी को दूर करने का काम किया है

क्या है ब्रैस्ट पंप 

ब्रैस्ट पंप एक ऐसा यंत्र है, जिसकी मदद से मां अपने दूध को संग्रहित करके रख सकती है और जब बच्चे को इसकी जरूरत हो आसानी से पिलाया जा सकता है. एक बार दूध संग्रहित होने के बाद मां दूसरे काम भी आसानी से टेंशन फ्री हो कर कर सकती है. हर मां के मन में ये सवाल जरूर आता है कि कहीं ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से हमें दर्द तो नहीं होगा या फिर बच्चे को इस दूध से कोई नुकसान तो नहीं पहुंचेगा. तो आपको बता दें कि ये पूरी तरह से सेफ है. बस आप पंप की साफ़ सफाई का खास ध्यान रखें

आपको बता दें कि ब्रैस्ट पंप वैक्यूम के कारण काम करते हैं. जब इन पंप्स को दोनों स्तनों पर अच्छे से लगाया जाता है तो वैक्यूम के कारण स्तनों से दूध निकल कर पंप से जुड़ी हुई बोतल में भरने लगता है. जिन्हें आप आसानी से फ्रिज में स्टोर करके रख सकती हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को दूध तभी पिलाएं जब दूध नोर्मल टेम्परेचर पर जाए. इससे जहां आपको सुविधा होगी वहीं आपके बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी मिल जाएंगे

वैसे को मार्केट में आपको ढेरों ब्रैस्ट पंप मिल जाएंगे. लेकिन सवाल है बच्चे की हैल्थ का जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता. ऐसे में मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप का जवाब नहीं. क्योंकि उन्होंने एक मां की जरूरतों को ध्यान में रखकर ब्रेस्ट पंप बनाए हैं. जिसमें  हैल्थ भी और कम्फर्ट भी. चाहे बच्चा जन्म से पहले जन्मा  हो, स्तनों से दूध बाहर पा रहा हो, ऐसे में उच्च क्षमता वाले मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप मां के दूध को स्तनों से आसानी से बाहर निकाल के  बच्चे तक मां के दूध को पहुंचाने का काम करते हैं. इसके अधिकांश पम्प में 2 फेज एक्सप्रेशन टेक्नोलोजी है, जो काफी यूनिक है

तो फिर मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप से आप भी रहें रिलैक्स और बच्चे को भी दें पूरा पोषण. साथ ही में अपनी पर्सनल और प्रौफेशनल लाइफ का भी रखें ख्याल.

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Crime Story: दिलजले की हैवानियत

दिलीप गुप्ता बहुत बेचैन थे. उन की नजरें बारबार कलाई घड़ी की ओर चली जाती थीं, समय देखते तो उन की बेचैनी बढ़ जाती. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वंशिका ने आने में इतनी देर कैसे कर दी. बेटी के बारे में सोचसोच कर उन के माथे की सिलवटें और भी गहरी होती जा रही थीं.उन की 21 वर्षीया बेटी वंशिका महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी (तृतीय वर्ष) की छात्रा थी. 1 फरवरी, 2020 को वह सुबह 10 बजे कालेज जाने के लिए घर से निकली थी. उसे हर हाल में 3 बजे तक वापस घर आ जाना चाहिए था, लेकिन अब शाम के 5 बज चुके थे, वह घर नहीं लौटी थी. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. दिलीप गुप्ता इसलिए बेचैन थे.

दिलीप गुप्ता की परेशानी तब और बढ़ गई, जब शाम 6 बजे उन के मोबाइल पर किसी अनजान फोन नंबर से एक एसएमएस आया. मैसेज में लिखा था, ‘अंकल, वंशिका का अपहरण हो गया है.’ मैसेज पढ़ कर दिलीप गुप्ता घबरा गए. उन की पत्नी रजनी ने तो रोना शुरू कर दिया. वह बारबार कह रही थी कि वंशिका जरूरी काम से कालेज गई थी. वह अपहर्त्ताओं के चक्कर में कैसे फंस गई. दिलीप गुप्ता ने मैसेज भेजने वाले मोबाइल फोन पर काल लगाई, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से पतिपत्नी की धड़कनें बढ़ गईं. वंशिका की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. ऐसे समय में उस का अपहरण हो जाने से अतुल गुप्ता का परिवार स्तब्ध रह गया.

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दिलीप गुप्ता की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उन की बेटी का फिरौती के लिए अपहरण हुआ है. इसी अविश्वास की वजह से वह अपने परिजनों के साथ बेटी की खोज में जुट गए.बछरावां कस्बे में वंशिका की कई सहेलियां थीं. वह उन के घर गए. कई से मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाई. इस के अलावा उन्होंने बसअड्डे व नातेरिश्तेदारों के यहां वंशिका की खोज की, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. गुप्ता पूरी रात बेटी की खोज में जुटे रहे.

2 फरवरी की सुबह 8 बजे दिलीप गुप्ता बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बछरावां जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन की नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. खबर पढ़ कर उन का दिल कांप उठा, मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं. खबर के मुताबिक, रायबरेली के हरचंदपुर थाना क्षेत्र के शोरा गांव स्थित एक ढाबे के पीछे यूकेलिप्टस के बाग में पुलिस को एक युवती की अधजली लाश मिली थी, जिस की पहचान नहीं हो पाई थी. खबर में कुछ पहचान वाली बातें भी छपी थीं.

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दिलीप गुप्ता को शक हुआ कि कहीं लाश उन की बेटी की तो नहीं. इस जानकारी के बाद वह पत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ थाना हरचंदपुर जा पहुंचे. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह उस समय थाने में ही थे और सहयोगी पुलिसकर्मियों से अज्ञात लाश के बारे में चर्चा कर रहे थे.दिलीप गुप्ता ने उन्हें परिचय दिया और बेटी की गुमशुदगी की जानकारी दे कर बरामद शव को देखने की इच्छा जताई.शिनाख्त हेतु युवती के शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया था. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह दिलीप गुप्ता व उन के घर वालों को पोस्टमार्टम हाउस ले गए. युवती का अधजला शरीर सामने आया तो घर वाले चीख पड़े.
थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने उन्हें सांत्वना दे कर लाश की पहचान कराई. परिवार के लोगों ने चेहरे से शिनाख्त करने में असमर्थता जताई. फिर उस के कपड़ों और पहनावे से अंदाजा लगाया.

पैरों की नेल पौलिश, कान में सोने की बाली, जूड़ा बांधने का तरीका, नाक में छोटी नथुनी, जींस के कपड़े और जूतों से मातापिता ने लाश पहचान ली. मृतका उन की बेटी वंशिका ही थी.अनिल कुमार सिंह मृतका के पिता दिलीप गुप्ता और मां रजनी गुप्ता को थाना हरचंदपुर ले आए. सब से पहले उन्होंने लाश की शिनाख्त हो जाने की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी. सूचना पाते ही वह थाने आ गए. उन्होंने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से विस्तृत पूछताछ की.दिलीप गुप्ता ने बताया कि उन्हें एक रिश्तेदार अतुल गुप्ता पर शक है, जो उन की बेटी वंशिका को परेशान करता था. कुछ दिन पहले उस ने वंशिका के कालेज में उस के साथ मारपीट भी की थी, साथ ही धमकी भी दी थी. यह मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही अतुल व उस के घर वालों ने माफी मांग कर मामले को रफादफा कर दिया था.

अतुल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के शिवरतनगंज थाने के अहोरवा भवानी का रहने वाला था. वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी पारसनाथ का बेटा है. शक है कि रंजिशन अतुल गुप्ता ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर वंशिका की हत्या की है.दिलीप गुप्ता ने दूसरा शक वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव पर जताया. उन्होंने बताया कि वंशिका उस के साथ खूब हिलीमिली थी. कल भी वह वंशिका के साथ ही कालेज गई थी. उस ने ही कल उस के मोबाइल पर वंशिका के अपहरण का मैसेज भेजा था. फिर उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था. अंजलि श्रीवास्तव बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.

3 फरवरी की सुबह लोगों ने अखबारों में बीएससी की छात्रा वंशिका को पैट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने की खबर अखबारों में पढ़ी तो बछरावां की जनता सड़कों पर उतर आई. सामाजिक संगठन, कालेज की छात्राएं, स्कूल छात्राएं और व्यापारी घटना के विरोध में धरनाप्रदर्शन करने लगे.मासूम बच्चों ने जहां रैली निकाल कर वंशिका के लिए न्याय की गुहार लगाई, जबकि कालेज की छात्राओं ने वंशिका के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. सामाजिक संगठन की महिलाओं ने भी सड़क पर जोरदार प्रदर्शन किया.
बछरावां की जनता और व्यापारियों ने तो राष्ट्रीय राजमार्ग-30 को जाम कर दिया. लोग सड़क पर लेट कर प्रदर्शन करने लगे. लोगों को सरकार और पुलिस पर गुस्सा था. वे नारे लगा रहे थे, ‘बिटिया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं. पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद मुर्दाबाद.’ वे लोग जल्द से जल्द हत्यारों को गिरफ्तार कर के उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे.

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जाम तथा बड़े प्रदर्शन से पुलिस के हाथपांव फूल गए. इंसपेक्टर पंकज तिवारी भारीभरकम फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने उग्र प्रदर्शन की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी तो वह मौके पर आ गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया. उन्होंने आश्वासन दिया कि हत्या से जुड़े कुछ लोगों के नाम सामने आए हैं. हत्या का जल्द खुलासा होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट या रेप की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन की बात पर भरोसा नहीं किया.

लगभग 3 घंटे की जद्दोजेहद के बाद क्षेत्रीय भाजपा विधायक रामनरेश रावत को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाया कि सरकार की ओर से मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी. साथ ही यह भी कि वंशिका के कातिल जल्द पकड़े जाएंगे. विधायक के आश्वासन पर प्रदर्शन समाप्त हो गया.चूंकि वंशिका हत्याकांड ने पुलिसप्रशासन की नींद हराम कर दी थी, इसलिए एसपी स्वप्निल ममगाई ने मामले को गंभीरता और चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने वंशिका हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया.इस टीम में थाना हरचंदपुर इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, थाना बछरावां इंसपेक्टर पंकज तिवारी, थाना शिवगढ़ इंसपेक्टर राकेश सिंह, महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी, सीओ (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (महराजगंज) राघवेंद्र चतुर्वेदी और सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास को शामिल किया गया. पुलिस टीम की कमान एएसपी नित्यानंद राय को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास ने पहली फरवरी को घटनास्थल पर सक्रिय 2 नंबरों को संदिग्ध पाया. इन नंबरों की जानकारी जुटाई गई तो इन में एक नंबर अतुल गुप्ता का था और दूसरा ललित गुप्ता का. दोनों अमेठी के कस्बा अहोरवा भवानी, थाना शिवरतनगंज के रहने वाले थे.
अतुल गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि घटना वाले दिन अतुल एक नंबर पर कई घंटे संपर्क में रहा. इस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो वह नंबर अंजलि श्रीवास्तव, शांतिनगर, बछरावां (रायबरेली) के नाम था.पुलिस टीम ने अंजलि श्रीवास्तव और अतुल के संबंध में मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अंजलि श्रीवास्तव उन की बेटी की फ्रैंड है और अतुल गुप्ता उन का रिश्तेदार. अतुल बेटी को परेशान करता था और अंजलि भी विश्वसनीय नहीं है. उन दोनों पर उन्हें शक है.

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अंजलि और अतुल पुलिस की रडार पर आए तो पुलिस टीम ने दोनों को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाना हरचंदपुर ले आई. पुलिस टीम में शामिल महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी अंजलि श्रीवास्तव  को पूछताछ वाले कमरे में ले गईं और बोली, ‘‘अंजलि, सचसच बताओ, वंशिका को किस ने जला कर मारा. मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें सब मालूम है.’’
‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम. कालेज में वह मिली जरूरी थी, पर उस का अपहरण किस ने किया या उसे किस ने जला कर मारा, मुझे पता नहीं.’’
‘‘चालाक मत बनो अंजलि, अतुल के मोबाइल से यह बात पता चल गई है कि तुम उस के संपर्क में थी और तुम्हें सब पता है.’’
यह सुन कर अजलि का चेहरा फक पड़ गया. वह सिर झुका कर बोली, ‘‘मैडम, मैं अतुल के संपर्क में जरूर रही, पर जो किया अतुल ने किया. वह वंशिका की मांग में सिंदूर भरने के बहाने उसे कार में बिठा कर ले गया था.’’
अंजलि के टूटने के बाद अब बारी अतुल की थी. पुलिस टीम अतुल को पूछताछ कक्ष में ले गई. उस से पूछा गया, ‘‘अतुल, तुम ने वंशिका की हत्या क्यों की? तुम्हारे साथ और कौन था? वैसे तो अंजलि ने सब कुछ बता दिया है, लेकिन हम तुम्हारे मुंह से जानना चाहते हैं.’’
पहले तो अतुल गुप्ता अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से मुकरता रहा, लेकिन पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

अतुल ने बताया कि वंशिका उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी, जबकि उस की शादी 25 फरवरी, 2020 को किसी दूसरी लड़की से होनी तय हो गई थी. वंशिका जब उसे समाज में बदनाम करने तथा जिंदगी तबाह करने की धमकी देने लगी तो उस ने वंशिका की हत्या की योजना बनाई.
इस योजना में उस ने वंशिका की खास सहेली अंजलि श्रीवास्तव व अपने चचेरे भाई ललित गुप्ता, ममेरे भाई कृष्णचंद गुप्ता उर्फ धीरू को भी शामिल कर लिया. धीरू महाराजगंज थाने के गांव डेपार मऊ का रहने वाला है.

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4 फरवरी की रात पुलिस टीम ने अहोरवा भवानी स्थित ललित गुप्ता के घर छापा मारा. पुलिस को देख कर ललित कंबल ओढ़ कर तख्त के नीचे छिप गया लेकिन वह पुलिस की निगाह से नहीं बच सका.
ललित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने सुबह 4 बजे महाराजगंज थाने के गांव डेपारमऊ में धीरू के घर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. धीरू के न मिलने पर पुलिस टीम थाना हरचंदपुर लौट आई. थाने में ललित ने अतुल को हवालात में देखा तो उस का चेहरा मुरझा गया.
पूछताछ में ललित ने पहले तो गुनाह से इनकार किया, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. धीरू को पुलिस काफी प्रयास के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पाई.

अभियुक्त अतुल गुप्ता और ललित गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस टीम ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस पर झांसा दे कर वंशिका को ले जाया गया था. यह कार दुर्गेश के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अतुल का रिश्तेदार था. वह घूमने जाने का बहाना कर कार लाया था.
पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल रस्सी, पैट्रोल की 5 लीटर की खाली कैन, क्लोरोफार्म की खाली शीशी व सिंदूर की डब्बी भी कार से बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पास से 4 मोबाइल फोन भी बरामद किए.
पुलिस टीम ने वंशिका गुप्ता हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. यह खबर मिलते ही एसपी स्वप्निल ममगाई व एएसपी नित्यानंद राय थाना हरचंदपुर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ की फिर खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, साथ ही टीम को 25 हजार रुपया पुरस्कार देने की घोषणा की.
इस के बाद एसपी स्वप्निल ममगाई ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया.
चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना हरचंदपुर प्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता, कृष्णचंद उर्फ धीरू गुप्ता और अंजलि श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. इन में अतुल, ललित तथा अंजलि श्रीवास्तव को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक दिलजले प्रेमी की हैवानियत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर लखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर है कस्बा बछरावां. यह रायबरेली जिले का औद्योगिक कस्बा है.
इसी बछरावां कस्बे के सब्जीमंडी में दिलीप कुमार गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी रजनी गुप्ता के अलावा 4 संतानों में से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इन में वंशिका सब से बड़ी थी. दिलीप की पान की दुकान है. दुकान से होने वाली आय से ही परिवार का भरणपोषण करते थे. समाज में उन की अच्छी पैठ थी.

दिलीप गुप्ता की बेटी वंशिका अपने अन्य भाईबहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह दिखने में सुंदर थी. उस का दूधिया गोरा रंग, नैननक्श, इकहरा बदन और लंबा कद सभी को आकर्षित करता था. उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से उसे सभी पसंद करते थे.
दिलीप गुप्ता व उन की पत्नी रजनी, वंशिका को बहुत चाहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही अच्छी नहीं थी, लेकिन वह वंशिका की हर फरमाइश पूरी करते थे. वंशिका ने भी अपने मांबाप को कभी निराश नहीं किया था. वह पढ़ने में मेधावी थी.
इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मांबाप की इजाजत के बाद वंशिका ने बछरावां से 15 किलोमीटर दूर महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश ले लिया था. आवागमन के साधन होने की वजह से वंशिका को महाविद्यालय पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के साथ कस्बे की अनेक लड़कियां पढ़ने जाती थीं.

वंशिका गुप्ता की वैसे तो कई फ्रैंड थीं, लेकिन उसी की क्लास में पढ़ने वाली अंजलि श्रीवास्तव ज्यादा घनिष्ठ थी. अंजलि बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां व छोटी बहन के साथ किराए के मकान में रहती थी, उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.
वंशिका व अंजलि हमउम्र थीं. दोनों घर से ले कर पढ़ाईलिखाई तक की बातें एकदूसरे से शेयर करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.
वंशिका ने बीएससी की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. वह प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करना चाहती थी, सो वह खूब मना लगा कर पढ़ने लगी. उस ने कालेज जाना कम कर दिया था और घर में ही पढ़ाई करने लगी थी. उस ने कस्बे के कोचिंग में पढ़ना भी शुरू कर दिया था.
उन्हीं दिनों एक शादी समारोह में वंशिका की मुलाकात अतुल गुप्ता से हुई. वंशिका अपने मातापिता के साथ अमेठी के थाना शिवरतनगंज क्षेत्र के कस्बा अहोरवां भवानी निवासी रिश्तेदार के घर शदी में आई थी. अतुल गुप्ता भी शादी में आया था. वह अहोरवां भवानी का ही रहने वाला था. वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था.
अतुल गुप्ता की नजर वंशिका पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस के दिल में उतर गई. वह उस से बात करना चाहता था. जब उसे मौका मिला तो वह वंशिका की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘आप अहोरवां भवानी की तो नहीं हैं, कहीं बाहर से आई हैं क्या?’’
‘‘मैं बछरावां की रहने वाली हूं. नाम है वंशिका. मैं अपने मातापिता के साथ शादी में शामिल होने आई हूं.’’ जब अतुल ने वंशिका का परिचय पूछा तो औपचारिक रूप से उस ने भी पूछ लिया, ‘‘आप ने तो मेरा परिचय जान लिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’
अतुल गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं अहोरवां भवानी का ही रहने वाला हूं. नाम है अतुल गुप्ता. पिता का नाम पारसनाथ गुप्ता. कपड़े के व्यवसायी हैं. मैं भी दुकान पर बैठता हूं.’’

ऐसी ही हलकीफुलकी बातों के बीच अतुल और वंशिका का परिचय हुआ, जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में अतुल वंशिका के मोबाइल पर फोन कर के उस से बातें करने लगा. वंशिका को भी अतुल का स्वभाव अच्छा लगा, वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.
अतुल गुप्ता ने इन नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाया. वह वंशिका के कालेज पहुंचने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए बाहर भी ले जाने लगा. दोनों घूमने जाते तो अच्छे दोस्तों की तरह खुल कर दिल की बातें करते. कुछ ही मुलाकातों में वंशिका को लगने लगा कि अतुल ही उस का भावी जीवनसाथी बनेगा. परिणामस्वरूप दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई.
अब तक वंशिका बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा पास कर अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी. एक दिन वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव ने उसे किसी युवक के साथ हंसतेबतियाते देखा तो बाद में उस ने पूछा, ‘‘वंशिका, वह लड़का कौन था, जिस से तुम हंसहंस कर बातें कर रही थी?’’

वंशिका हौले से मुरा कर बोली, ‘‘अंजलि, तू मेरी सब से अच्छी फ्रैंड है. तुझ से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस का नाम अतुल गुप्ता है, धनाढ्य कपड़ा व्यापारी का बेटा है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. मुझे लगता है अतुल ही मेरा भावी जीवनसाथी होगा.’’
बाद में वंशिका ने अतुल गुप्ता से अंजलि का भी परिचय करा दिया. अंजलि दोनों के प्यार की राजदार बनी तो वह उन दोनों का सहयोग करने लगी. वंशिका और अतुल का प्यार दिन पर दिन बढ़ने लगा. वंशिका को अतुल से बात किए बिना सकून नहीं मिलता था. अतुल का भी यही हाल था.
वंशिका के मातापिता को जब दोनों के बढ़ते प्यार की जानकारी हुई तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि वंशिका ने इस बारे में उन्हें बताया क्यों नहीं. पूछने पर वंशिका ने साफ कह दिया कि वह अतुल से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी.
दिलीप गुप्ता ने बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, ठीक है कि अतुल अच्छा लड़का है. हमारा दूर का रिश्तेदार भी है. लेकिन हमारी और उन लोगों की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर है. मेरी पान की छोटी सी दुकान है और वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी. मुझे डर है कि कहीं वह तुम्हें मंझधार में न छोड़ दे.’’ रजनी ने भी वंशिका को समझाया, लेकिन अतुल के प्यार में अंधी हो चुकी वंशिका को मांबाप की बात समझ में नहीं आई.
दूसरी ओर पारसनाथ गुप्ता को जब पता चला कि उन का बेटा अतुल बछरावां के साधारण पान विक्रेता दिलीप गुप्ता की बेटी के प्यार में है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘बेटा, रिश्ता बराबरी का अच्छा होता है. तुम्हारी और उस की हैसियत में बड़ा अंतर है. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है. तुम उसे भूल जाओ, इसी में सब की भलाई है.’’

अतुल ने पिता की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उसे लगा कि वह ठीक कह रहे हैं. अत: उस ने वंशिका से दोस्ती खत्म करने का निश्चय कर लिया और उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वंशिका जब भी फोन करती तो वह रिसीव नहीं करता था. बारबार फोन करने पर वह रिसीव करता और वंशिका उलाहना देती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता.
पारसनाथ गुप्ता ने अतुल में परिवर्तन पाया तो उन्होंने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया. 25 फरवरी, 2020 की शादी की तारीख भी तय कर दी गई. अतुल ने इस रिश्ते का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मौन स्वीकृति दे दी.
नवंबर, 2019 में वंशिका को पता चला कि अतुल के मांबाप ने उस की शादी तय कर दी है और 25 फरवरी की शादी की तारीख भी तय हो गई है. यह पता चलते ही वंशिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे अपना सपना टूटता नजर आया तो उस ने अतुल से मुलाकात की और पूछा, ‘‘अतुल, जो बात मैं ने सुनी है, क्या वह सच है?’’
‘‘हां वंशिका, तुम ने जो सुना, वह सच है. मातापिता ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है.’’
‘‘तुम पागल हो गए हो क्या?’’ उस की बात सुन कर वंशिका तीखे स्वर में बोली, ‘‘अगर यह सच है तो फिर मेरे साथ घंटों प्यार भी बातें करना, दिनदिन भर मेरे साथ घूमनाफिरना क्या था?’’
‘‘वह दोस्ती थी. तुम चाहो तो यह दोस्ती मेरी शादी के बाद भी जारी रख सकती है.’’
‘‘अतुल, तुम्हारे लिए यह दोस्ती भर होगी, मैं तो तुम से प्यार करती हूं. मैं शादी करूंगी तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारी बैठी रहूंगी. तुम भी कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं तुम्हें समाज में बदनाम कर दूंगी. झूठे मामलों में फंसा दूंगी, समझे.’’

अतुल ने वंशिका से उलझना ठीक नहीं समझा. वह घर वापस आ गया. इस के बाद वह वंशिका की धमकी से परेशान रहने लगा. दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं और उन का प्यार नफरत में बदलने लगा.
जनवरी, 2020 में पहले हफ्ते में एक रोज वंशिका ने अतुल को फोन कर धमकी दी कि अगर उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया तो वह उसे भी दूल्हा नहीं बनने देगी, शादी में हंगामा कर शादी तुड़वा देगी.
उस रोज अतुल पहले से ही तनाव में था. गुस्से में वह वंशिका के कालेज पहुंचा. वहां वादविवाद हुआ तो उस ने वंशिका के गाल पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. कालेज में सार्वजनिक अपमान से वंशिका तिलमिला उठी. उस ने घर आ कर यह जानकारी मांबाप को दी. दिलीप गुप्ता इस बारे में बात करने अतुल के घर पहुंचे और उस के पिता पारसनाथ गुप्ता से बेटी को प्रताडि़त करने की शिकायत की.
बेटे की गलती पर पारसनाथ गुप्ता ने दिलीप के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. उन्होंने अतुल को भी माफी मांगने पर विवश कर दिया. इस के बाद मामला रफादफा हो गया.

अतुल ने माफी मांग कर मामला रफादफा जरूर कर दिया था, लेकिन उस का तनाव कम नहीं हुआ था. वह जानता था कि वंशिका को समझाना आसान नहीं है. इसलिए वह वंशिका से निजात पाने की सोचने लगा. पिता द्वारा हाथ जोड़ कर माफी मांगना भी उस के क्रोध को बढ़ा रहा था.
अतुल की अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई कृष्णचंद उर्फ धीरू से खूब पटती थी. अतुल ने जब यह बात उन्हें बताई तो तीनों ने मिल कर खूब सोचा कि वंशिका से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अंतत: तय हुआ कि वंशिका को ही मिटा दिया जाए.
इस के बाद तीनों ने मिल कर वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव को भी आर्थिक प्रलोभन दे कर शामिल किया गया. अंजलि को वंशिका की सुरागरसी का काम सौंपा गया ताकि वह उस की गतिविधियों की जानकारी देती रहे.
पहली फरवरी, 2020 की सुबह 9 बजे अंजलि श्रीवास्तव ने अतुल को मैसेज किया कि वंशिका और वह महावीर सिंह महाविद्यालय जा रही हैं. वहीं से वह वंशिका को ले कर गंगागंज आएगी. वह वहीं आ जाए.

अंजलि का मैसेज मिलते ही अतुल सक्रिय हो गया. वह घूमने जाने का बहाना कर अपने रिश्तेदार दुर्गेश की कार ले आया. फिर वह अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई धीरू के साथ अहोरा भवानी से कार से निकल पड़ा.
इन लोगों ने मैडिकल स्टोर से क्लोरोफार्म की शीशी तथा बाजार से रस्सी व सिंदूर की डब्बी खरीदी, साथ ही रतापुर स्थित पैट्रोलपंप से कैन में 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. उस के बाद तीनों गंगागंज आ गए. वहां तीनों वंशिका और अंजलि का इंतजार करने लगे.
दूसरी ओर वंशिका और अंजलि बछरावां से सुबह 10 बजे निकलीं और 11 बजे कालेज पहुंचीं. दोनों एक घंटा कालेज में रुकीं. दोनों 12 बजे कालेज से निकलीं. अंजलि घूमने के बहाने वंशिका को गंगागंज ले आई.
इस बीच अंजलि फोन पर अतुल के संपर्क में रही और मैसेज भेजती रही. गंगागंज पहुंचने पर अंजलि ने अतुल को मैसेज किया तो वह उस के बताए होटल पर पहुंच गया. उस समय दोनों समोसा खा रही थीं.
अतुल को देख कर अंजलि बोली, ‘‘वंशिका, वह देखो अतुल कार में बैठा है. चलो उस से मिल लेते हैं.’’
वंशिका ने पहले तो मना किया फिर अंजलि के समझाने पर वह कार के पास जा पहुंची. वंशिका पहुंची तो अतुल बोला, ‘‘वंशिका, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि आज ही तुम्हारी मांग भरूं. देखो, सिंदूर की डब्बी भी साथ लाया हूं. तुम मेरे साथ मंदिर चलो.’’

अतुल की बात पर वंशिका को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन सिंदूर देख कर उस का प्यार उमड़ पड़ा और वह उस की कार में बैठ गई. वंशिका के बैठते ही कार चल पड़ी. कार को ललित चला रहा था और वंशिका अतुल तथा धीरू पीछे की सीट पर बैठे थे.
छलिया प्रेमी के खतरनाक इरादों से अनजान वंशिका जैसे ही अतुल के सीने से लगी, तभी उस की हैवानियत शुरू हो गई. उस ने क्लोरोफार्म की शीशी निकाली और वंशिका को सुंघा दी.
कुछ क्षण बाद ही वंशिका बेहोश हो गई. इस के बाद अतुल और धीरू ने मिल कर वंशिका के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. ललित ने गंगागंज से लगभग 3 किलोमीटर दूर शेरागांव के पास गोपाल ढाबे के पीछे सुनसान जगह पर कार रोकी.
सामने यूकेलिप्टस का बाग था. अतुल और धीरू हाथपैर बंधी बेहोश वंशिका को कार से उठा कर बाग में ले गए और पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया. बेहोशी के कारण वंशिका चिल्ला भी न सकी. घटना को अंजाम देने के बाद तीनों फरार हो गए. वंशिका की सहेली अंजलि गंगागंज से ही वापस अपने घर चली गई थी.
शाम 4 बजे के लगभग शेरागांव के लोगों ने बाग में अधजली लाश देखी तो थाना हरचंदपुर को सूचना दी.
सूचना पाते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह पहुंचे तो युवती की अधजली लाश देख कर उन की रूह कांप उठी. सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी नित्यानंद राय तथा सीओ गोपीनाथ सोनी भी घटनास्थल पर गए. शव की शिनाख्त न हो पाने पर शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.
दूसरे रोज पोस्टमार्टम हाउस में बछरावां निवासी पान विक्रेता दिलीप गुप्ता ने शव की पहचान अपनी 21 वर्षीया बेटी वंशिका के रूप में कर दी. उस के बाद तो हड़कंप मच गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो प्यार के प्रतिशोध में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.
6 फरवरी, 2020 को थाना हरचंदपुर पुलिस ने अभियुक्त अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता तथा दगाबाज सहेली अंजलि श्रीवास्तव को रायबरेली की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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