पिछले कुछ दिनों से कानपुर में जिस तरह से कालगर्ल रैकेट्स का भंडाफोड़ हो रहा है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि रैकेट चलाने वालों ने इस औद्योगिक नगरी को अपना केंद्र बिंदु बना लिया है. इन के रैकेट में देश की ही नहीं विदेशी बालाएं भी अपने हुनर में इतनी एक्सपर्ट हैं कि...  —सुरेशचंद्र मिश्र   रवि शर्मा ने जो समय तय किया था, उसी समय पर प्रमोद गुप्ता कानपुर के मोतीझील पार्क पहुंच

गया. पार्क के गेट पर ही बेचैन सा एक व्यक्ति चहलकदमी करता दिखा. वह नीली जींस और सफेद रंग की टीशर्ट पहने था. पहचान के लिए उस ने प्रमोद को अपनी यही ड्रैस बताई थी. अत: प्रमोद समझ गया कि यही व्यक्ति रवि शर्मा है. इस के बावजूद आश्वस्त होने के लिए उस ने अपने मोबाइल में सेव किया हुआ रवि का फोन नंबर डायल किया. पलक झपकते ही घंटी बजने लगी.

उस व्यक्ति ने फोन निकालने के लिए जैसे ही जेब में हाथ डाला, प्रमोद ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. जिस से घंटी बजनी बंद हो गई. इस से प्रमोद को यकीन हो गया कि सामने वाला व्यक्ति रवि शर्मा ही है. अत: वह तुरंत उस के पास जा पहुंचा, ‘‘हैलो सर, मैं प्रमोद गुप्ता हूं.’’

गर्मजोशी से दोनों के हाथ मिले. रवि मुसकराया, ‘‘आप ही फोन की घंटी बजा कर मेरी शिनाख्त कर रहे थे.’’

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प्रमोद भी मुसकराया, ‘‘पहली मुलाकात में ऐसा करना पड़ता है.’’

‘‘वैसे भी अगर मैं ने अपने उस दोस्त का हवाला न दिया होता जो अकसर आप के यहां आता है तो मेरे अरमान मचलते ही रह जाते.’’ रवि बोला.

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