आखिर दिल बच्चा ही तो है प्यार कोई फौर्मैलिटी नहीं है जिसे उम्र देख कर ही किया जाए. जिस से जब दिल के तार जुड़ने हों जुड़ जाते हैं और न जुड़ें तो बेमतलब रिश्ते में आखिर क्यों बंधा जाए? उम्र की बंदिशें तोड़ता प्यार शौकिया नहीं बल्कि परिपक्व सोच की निशानी होता है.

क्या प्यार की कोई सही उम्र होती है? क्या प्यार के लिए कोई छोटा और कोई बूढ़ा होता है? जी नहीं, प्यार की कोई उम्र, कोई सीमा नहीं होती. प्रसिद्ध लेखिका मारिया एजवर्थ ने कहा था कि इंसानी दिल किसी भी उम्र में उस दिल के आगे खुलता है जो बदले में अपने दिल का रास्ता खोल दे. तकरीबन 2 शतक पूर्व कही गई उन की बात आज भी सटीक साबित होती है. शायद इसी बात की मार्मिकता को समझते हुए गजल सम्राट जगजीत सिंह ने फिल्म ‘प्रेम गीत’ (1981) के एक गीत ‘होठों से छू लो तुम...’ की कुछ पंक्तियों में कहा है, ‘न उम्र की सीमा हो... न जन्मों का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन...’ चार दशक पहले लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है. तब प्यार की जो नई परिभाषा कल्पना में पिरो कर शब्दों से सजाई गई थी, आज वह समाज की हकीकत बन गई है.

मनोवैज्ञानिक अदिति सक्सेना कहती हैं, ‘‘हम उम्र के हर पड़ाव में भावनात्मक रूप से जुड़ने की क्षमता को महसूस करते हैं और चाहते हैं कि कोई हो जो हमारा ध्यान करे, हमारी इज्जत करे, हम से प्यार करे.’’

बौलीवुड की फिल्मों का तो यह औलटाइम फेवरेट विषय रहा है. असंख्य फिल्में व गीत प्रेम की मधुरता, प्रेमी से विरह और प्यार में जीनेमरने की स्थितियों को गुनगुनाते सुने व देखे जाते रहे हैं. एक आम आदमी के जीवन में प्यार कभी उस के जीवन की मजबूत कड़ी बनता है, तो कभी मृगतृष्णा की भांति जीवनभर छलावा देता है. ढाई अक्षर के इस शब्द में जीवन की संपूर्णता है.

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