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Crime Story: दिलजले की हैवानियत

दिलीप गुप्ता बहुत बेचैन थे. उन की नजरें बारबार कलाई घड़ी की ओर चली जाती थीं, समय देखते तो उन की बेचैनी बढ़ जाती. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वंशिका ने आने में इतनी देर कैसे कर दी. बेटी के बारे में सोचसोच कर उन के माथे की सिलवटें और भी गहरी होती जा रही थीं.उन की 21 वर्षीया बेटी वंशिका महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी (तृतीय वर्ष) की छात्रा थी. 1 फरवरी, 2020 को वह सुबह 10 बजे कालेज जाने के लिए घर से निकली थी. उसे हर हाल में 3 बजे तक वापस घर आ जाना चाहिए था, लेकिन अब शाम के 5 बज चुके थे, वह घर नहीं लौटी थी. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. दिलीप गुप्ता इसलिए बेचैन थे.

दिलीप गुप्ता की परेशानी तब और बढ़ गई, जब शाम 6 बजे उन के मोबाइल पर किसी अनजान फोन नंबर से एक एसएमएस आया. मैसेज में लिखा था, ‘अंकल, वंशिका का अपहरण हो गया है.’ मैसेज पढ़ कर दिलीप गुप्ता घबरा गए. उन की पत्नी रजनी ने तो रोना शुरू कर दिया. वह बारबार कह रही थी कि वंशिका जरूरी काम से कालेज गई थी. वह अपहर्त्ताओं के चक्कर में कैसे फंस गई. दिलीप गुप्ता ने मैसेज भेजने वाले मोबाइल फोन पर काल लगाई, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से पतिपत्नी की धड़कनें बढ़ गईं. वंशिका की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. ऐसे समय में उस का अपहरण हो जाने से अतुल गुप्ता का परिवार स्तब्ध रह गया.

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दिलीप गुप्ता की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी, इसलिए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उन की बेटी का फिरौती के लिए अपहरण हुआ है. इसी अविश्वास की वजह से वह अपने परिजनों के साथ बेटी की खोज में जुट गए.बछरावां कस्बे में वंशिका की कई सहेलियां थीं. वह उन के घर गए. कई से मोबाइल फोन पर जानकारी जुटाई. इस के अलावा उन्होंने बसअड्डे व नातेरिश्तेदारों के यहां वंशिका की खोज की, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. गुप्ता पूरी रात बेटी की खोज में जुटे रहे.

2 फरवरी की सुबह 8 बजे दिलीप गुप्ता बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना बछरावां जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन की नजर अखबार में छपी एक खबर पर पड़ी. खबर पढ़ कर उन का दिल कांप उठा, मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं. खबर के मुताबिक, रायबरेली के हरचंदपुर थाना क्षेत्र के शोरा गांव स्थित एक ढाबे के पीछे यूकेलिप्टस के बाग में पुलिस को एक युवती की अधजली लाश मिली थी, जिस की पहचान नहीं हो पाई थी. खबर में कुछ पहचान वाली बातें भी छपी थीं.

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दिलीप गुप्ता को शक हुआ कि कहीं लाश उन की बेटी की तो नहीं. इस जानकारी के बाद वह पत्नी तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ थाना हरचंदपुर जा पहुंचे. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह उस समय थाने में ही थे और सहयोगी पुलिसकर्मियों से अज्ञात लाश के बारे में चर्चा कर रहे थे.दिलीप गुप्ता ने उन्हें परिचय दिया और बेटी की गुमशुदगी की जानकारी दे कर बरामद शव को देखने की इच्छा जताई.शिनाख्त हेतु युवती के शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया था. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह दिलीप गुप्ता व उन के घर वालों को पोस्टमार्टम हाउस ले गए. युवती का अधजला शरीर सामने आया तो घर वाले चीख पड़े.
थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने उन्हें सांत्वना दे कर लाश की पहचान कराई. परिवार के लोगों ने चेहरे से शिनाख्त करने में असमर्थता जताई. फिर उस के कपड़ों और पहनावे से अंदाजा लगाया.

पैरों की नेल पौलिश, कान में सोने की बाली, जूड़ा बांधने का तरीका, नाक में छोटी नथुनी, जींस के कपड़े और जूतों से मातापिता ने लाश पहचान ली. मृतका उन की बेटी वंशिका ही थी.अनिल कुमार सिंह मृतका के पिता दिलीप गुप्ता और मां रजनी गुप्ता को थाना हरचंदपुर ले आए. सब से पहले उन्होंने लाश की शिनाख्त हो जाने की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी. सूचना पाते ही वह थाने आ गए. उन्होंने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से विस्तृत पूछताछ की.दिलीप गुप्ता ने बताया कि उन्हें एक रिश्तेदार अतुल गुप्ता पर शक है, जो उन की बेटी वंशिका को परेशान करता था. कुछ दिन पहले उस ने वंशिका के कालेज में उस के साथ मारपीट भी की थी, साथ ही धमकी भी दी थी. यह मामला तूल पकड़ता, इस के पहले ही अतुल व उस के घर वालों ने माफी मांग कर मामले को रफादफा कर दिया था.

अतुल उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के शिवरतनगंज थाने के अहोरवा भवानी का रहने वाला था. वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी पारसनाथ का बेटा है. शक है कि रंजिशन अतुल गुप्ता ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर वंशिका की हत्या की है.दिलीप गुप्ता ने दूसरा शक वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव पर जताया. उन्होंने बताया कि वंशिका उस के साथ खूब हिलीमिली थी. कल भी वह वंशिका के साथ ही कालेज गई थी. उस ने ही कल उस के मोबाइल पर वंशिका के अपहरण का मैसेज भेजा था. फिर उस ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था. अंजलि श्रीवास्तव बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.

3 फरवरी की सुबह लोगों ने अखबारों में बीएससी की छात्रा वंशिका को पैट्रोल छिड़क कर जिंदा जलाने की खबर अखबारों में पढ़ी तो बछरावां की जनता सड़कों पर उतर आई. सामाजिक संगठन, कालेज की छात्राएं, स्कूल छात्राएं और व्यापारी घटना के विरोध में धरनाप्रदर्शन करने लगे.मासूम बच्चों ने जहां रैली निकाल कर वंशिका के लिए न्याय की गुहार लगाई, जबकि कालेज की छात्राओं ने वंशिका के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. सामाजिक संगठन की महिलाओं ने भी सड़क पर जोरदार प्रदर्शन किया.
बछरावां की जनता और व्यापारियों ने तो राष्ट्रीय राजमार्ग-30 को जाम कर दिया. लोग सड़क पर लेट कर प्रदर्शन करने लगे. लोगों को सरकार और पुलिस पर गुस्सा था. वे नारे लगा रहे थे, ‘बिटिया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं. पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद मुर्दाबाद.’ वे लोग जल्द से जल्द हत्यारों को गिरफ्तार कर के उन्हें फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे.

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जाम तथा बड़े प्रदर्शन से पुलिस के हाथपांव फूल गए. इंसपेक्टर पंकज तिवारी भारीभरकम फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने उग्र प्रदर्शन की जानकारी एसपी स्वप्निल ममगाई को दी तो वह मौके पर आ गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाने का प्रयास किया. उन्होंने आश्वासन दिया कि हत्या से जुड़े कुछ लोगों के नाम सामने आए हैं. हत्या का जल्द खुलासा होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट या रेप की पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन की बात पर भरोसा नहीं किया.

लगभग 3 घंटे की जद्दोजेहद के बाद क्षेत्रीय भाजपा विधायक रामनरेश रावत को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को समझाया कि सरकार की ओर से मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी. साथ ही यह भी कि वंशिका के कातिल जल्द पकड़े जाएंगे. विधायक के आश्वासन पर प्रदर्शन समाप्त हो गया.चूंकि वंशिका हत्याकांड ने पुलिसप्रशासन की नींद हराम कर दी थी, इसलिए एसपी स्वप्निल ममगाई ने मामले को गंभीरता और चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने वंशिका हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया.इस टीम में थाना हरचंदपुर इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह, थाना बछरावां इंसपेक्टर पंकज तिवारी, थाना शिवगढ़ इंसपेक्टर राकेश सिंह, महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी, सीओ (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (महराजगंज) राघवेंद्र चतुर्वेदी और सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास को शामिल किया गया. पुलिस टीम की कमान एएसपी नित्यानंद राय को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर सर्विलांस टीम के आरक्षी रामनिवास ने पहली फरवरी को घटनास्थल पर सक्रिय 2 नंबरों को संदिग्ध पाया. इन नंबरों की जानकारी जुटाई गई तो इन में एक नंबर अतुल गुप्ता का था और दूसरा ललित गुप्ता का. दोनों अमेठी के कस्बा अहोरवा भवानी, थाना शिवरतनगंज के रहने वाले थे.
अतुल गुप्ता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि घटना वाले दिन अतुल एक नंबर पर कई घंटे संपर्क में रहा. इस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो वह नंबर अंजलि श्रीवास्तव, शांतिनगर, बछरावां (रायबरेली) के नाम था.पुलिस टीम ने अंजलि श्रीवास्तव और अतुल के संबंध में मृतका के पिता दिलीप गुप्ता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अंजलि श्रीवास्तव उन की बेटी की फ्रैंड है और अतुल गुप्ता उन का रिश्तेदार. अतुल बेटी को परेशान करता था और अंजलि भी विश्वसनीय नहीं है. उन दोनों पर उन्हें शक है.

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अंजलि और अतुल पुलिस की रडार पर आए तो पुलिस टीम ने दोनों को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाना हरचंदपुर ले आई. पुलिस टीम में शामिल महिला थानाप्रभारी संतोष कुमारी अंजलि श्रीवास्तव  को पूछताछ वाले कमरे में ले गईं और बोली, ‘‘अंजलि, सचसच बताओ, वंशिका को किस ने जला कर मारा. मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम्हें सब मालूम है.’’
‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम. कालेज में वह मिली जरूरी थी, पर उस का अपहरण किस ने किया या उसे किस ने जला कर मारा, मुझे पता नहीं.’’
‘‘चालाक मत बनो अंजलि, अतुल के मोबाइल से यह बात पता चल गई है कि तुम उस के संपर्क में थी और तुम्हें सब पता है.’’
यह सुन कर अजलि का चेहरा फक पड़ गया. वह सिर झुका कर बोली, ‘‘मैडम, मैं अतुल के संपर्क में जरूर रही, पर जो किया अतुल ने किया. वह वंशिका की मांग में सिंदूर भरने के बहाने उसे कार में बिठा कर ले गया था.’’
अंजलि के टूटने के बाद अब बारी अतुल की थी. पुलिस टीम अतुल को पूछताछ कक्ष में ले गई. उस से पूछा गया, ‘‘अतुल, तुम ने वंशिका की हत्या क्यों की? तुम्हारे साथ और कौन था? वैसे तो अंजलि ने सब कुछ बता दिया है, लेकिन हम तुम्हारे मुंह से जानना चाहते हैं.’’
पहले तो अतुल गुप्ता अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से मुकरता रहा, लेकिन पुलिस टीम ने जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

अतुल ने बताया कि वंशिका उस पर शादी करने का दबाव बना रही थी, जबकि उस की शादी 25 फरवरी, 2020 को किसी दूसरी लड़की से होनी तय हो गई थी. वंशिका जब उसे समाज में बदनाम करने तथा जिंदगी तबाह करने की धमकी देने लगी तो उस ने वंशिका की हत्या की योजना बनाई.
इस योजना में उस ने वंशिका की खास सहेली अंजलि श्रीवास्तव व अपने चचेरे भाई ललित गुप्ता, ममेरे भाई कृष्णचंद गुप्ता उर्फ धीरू को भी शामिल कर लिया. धीरू महाराजगंज थाने के गांव डेपार मऊ का रहने वाला है.

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4 फरवरी की रात पुलिस टीम ने अहोरवा भवानी स्थित ललित गुप्ता के घर छापा मारा. पुलिस को देख कर ललित कंबल ओढ़ कर तख्त के नीचे छिप गया लेकिन वह पुलिस की निगाह से नहीं बच सका.
ललित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने सुबह 4 बजे महाराजगंज थाने के गांव डेपारमऊ में धीरू के घर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. धीरू के न मिलने पर पुलिस टीम थाना हरचंदपुर लौट आई. थाने में ललित ने अतुल को हवालात में देखा तो उस का चेहरा मुरझा गया.
पूछताछ में ललित ने पहले तो गुनाह से इनकार किया, लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया. उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. धीरू को पुलिस काफी प्रयास के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पाई.

अभियुक्त अतुल गुप्ता और ललित गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस टीम ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस पर झांसा दे कर वंशिका को ले जाया गया था. यह कार दुर्गेश के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अतुल का रिश्तेदार था. वह घूमने जाने का बहाना कर कार लाया था.
पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल रस्सी, पैट्रोल की 5 लीटर की खाली कैन, क्लोरोफार्म की खाली शीशी व सिंदूर की डब्बी भी कार से बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पास से 4 मोबाइल फोन भी बरामद किए.
पुलिस टीम ने वंशिका गुप्ता हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. यह खबर मिलते ही एसपी स्वप्निल ममगाई व एएसपी नित्यानंद राय थाना हरचंदपुर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ की फिर खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई, साथ ही टीम को 25 हजार रुपया पुरस्कार देने की घोषणा की.
इस के बाद एसपी स्वप्निल ममगाई ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा किया.
चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए थाना हरचंदपुर प्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार सिंह ने मृतका के पिता दिलीप गुप्ता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी तथा 34 के तहत अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता, कृष्णचंद उर्फ धीरू गुप्ता और अंजलि श्रीवास्तव के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. इन में अतुल, ललित तथा अंजलि श्रीवास्तव को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में एक दिलजले प्रेमी की हैवानियत की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 50 किलोमीटर दूर लखनऊ-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर है कस्बा बछरावां. यह रायबरेली जिले का औद्योगिक कस्बा है.
इसी बछरावां कस्बे के सब्जीमंडी में दिलीप कुमार गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी रजनी गुप्ता के अलावा 4 संतानों में से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इन में वंशिका सब से बड़ी थी. दिलीप की पान की दुकान है. दुकान से होने वाली आय से ही परिवार का भरणपोषण करते थे. समाज में उन की अच्छी पैठ थी.

दिलीप गुप्ता की बेटी वंशिका अपने अन्य भाईबहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह दिखने में सुंदर थी. उस का दूधिया गोरा रंग, नैननक्श, इकहरा बदन और लंबा कद सभी को आकर्षित करता था. उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से उसे सभी पसंद करते थे.
दिलीप गुप्ता व उन की पत्नी रजनी, वंशिका को बहुत चाहते थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही अच्छी नहीं थी, लेकिन वह वंशिका की हर फरमाइश पूरी करते थे. वंशिका ने भी अपने मांबाप को कभी निराश नहीं किया था. वह पढ़ने में मेधावी थी.
इंटर की परीक्षा पास करने के बाद मांबाप की इजाजत के बाद वंशिका ने बछरावां से 15 किलोमीटर दूर महावीर सिंह महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश ले लिया था. आवागमन के साधन होने की वजह से वंशिका को महाविद्यालय पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के साथ कस्बे की अनेक लड़कियां पढ़ने जाती थीं.

वंशिका गुप्ता की वैसे तो कई फ्रैंड थीं, लेकिन उसी की क्लास में पढ़ने वाली अंजलि श्रीवास्तव ज्यादा घनिष्ठ थी. अंजलि बछरावां कस्बे के शांतिनगर मोहल्ले में अपनी मां व छोटी बहन के साथ किराए के मकान में रहती थी, उस के पिता जयपुर में नौकरी करते थे.
वंशिका व अंजलि हमउम्र थीं. दोनों घर से ले कर पढ़ाईलिखाई तक की बातें एकदूसरे से शेयर करती थीं. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.
वंशिका ने बीएससी की प्रथम वर्ष की परीक्षा पास कर के द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. वह प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करना चाहती थी, सो वह खूब मना लगा कर पढ़ने लगी. उस ने कालेज जाना कम कर दिया था और घर में ही पढ़ाई करने लगी थी. उस ने कस्बे के कोचिंग में पढ़ना भी शुरू कर दिया था.
उन्हीं दिनों एक शादी समारोह में वंशिका की मुलाकात अतुल गुप्ता से हुई. वंशिका अपने मातापिता के साथ अमेठी के थाना शिवरतनगंज क्षेत्र के कस्बा अहोरवां भवानी निवासी रिश्तेदार के घर शदी में आई थी. अतुल गुप्ता भी शादी में आया था. वह अहोरवां भवानी का ही रहने वाला था. वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था.
अतुल गुप्ता की नजर वंशिका पर पड़ी तो वह पहली ही नजर में उस के दिल में उतर गई. वह उस से बात करना चाहता था. जब उसे मौका मिला तो वह वंशिका की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘आप अहोरवां भवानी की तो नहीं हैं, कहीं बाहर से आई हैं क्या?’’
‘‘मैं बछरावां की रहने वाली हूं. नाम है वंशिका. मैं अपने मातापिता के साथ शादी में शामिल होने आई हूं.’’ जब अतुल ने वंशिका का परिचय पूछा तो औपचारिक रूप से उस ने भी पूछ लिया, ‘‘आप ने तो मेरा परिचय जान लिया, लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’
अतुल गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं अहोरवां भवानी का ही रहने वाला हूं. नाम है अतुल गुप्ता. पिता का नाम पारसनाथ गुप्ता. कपड़े के व्यवसायी हैं. मैं भी दुकान पर बैठता हूं.’’

ऐसी ही हलकीफुलकी बातों के बीच अतुल और वंशिका का परिचय हुआ, जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में अतुल वंशिका के मोबाइल पर फोन कर के उस से बातें करने लगा. वंशिका को भी अतुल का स्वभाव अच्छा लगा, वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.
अतुल गुप्ता ने इन नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाया. वह वंशिका के कालेज पहुंचने लगा. कभीकभी वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए बाहर भी ले जाने लगा. दोनों घूमने जाते तो अच्छे दोस्तों की तरह खुल कर दिल की बातें करते. कुछ ही मुलाकातों में वंशिका को लगने लगा कि अतुल ही उस का भावी जीवनसाथी बनेगा. परिणामस्वरूप दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई.
अब तक वंशिका बीएससी द्वितीय वर्ष की परीक्षा पास कर अंतिम वर्ष में पहुंच गई थी. एक दिन वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव ने उसे किसी युवक के साथ हंसतेबतियाते देखा तो बाद में उस ने पूछा, ‘‘वंशिका, वह लड़का कौन था, जिस से तुम हंसहंस कर बातें कर रही थी?’’

वंशिका हौले से मुरा कर बोली, ‘‘अंजलि, तू मेरी सब से अच्छी फ्रैंड है. तुझ से मैं कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस का नाम अतुल गुप्ता है, धनाढ्य कपड़ा व्यापारी का बेटा है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. मुझे लगता है अतुल ही मेरा भावी जीवनसाथी होगा.’’
बाद में वंशिका ने अतुल गुप्ता से अंजलि का भी परिचय करा दिया. अंजलि दोनों के प्यार की राजदार बनी तो वह उन दोनों का सहयोग करने लगी. वंशिका और अतुल का प्यार दिन पर दिन बढ़ने लगा. वंशिका को अतुल से बात किए बिना सकून नहीं मिलता था. अतुल का भी यही हाल था.
वंशिका के मातापिता को जब दोनों के बढ़ते प्यार की जानकारी हुई तो उन्हें ताज्जुब हुआ कि वंशिका ने इस बारे में उन्हें बताया क्यों नहीं. पूछने पर वंशिका ने साफ कह दिया कि वह अतुल से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी.
दिलीप गुप्ता ने बेटी को समझाया, ‘‘बेटी, ठीक है कि अतुल अच्छा लड़का है. हमारा दूर का रिश्तेदार भी है. लेकिन हमारी और उन लोगों की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर है. मेरी पान की छोटी सी दुकान है और वह धनाढ्य कपड़ा व्यवसायी. मुझे डर है कि कहीं वह तुम्हें मंझधार में न छोड़ दे.’’ रजनी ने भी वंशिका को समझाया, लेकिन अतुल के प्यार में अंधी हो चुकी वंशिका को मांबाप की बात समझ में नहीं आई.
दूसरी ओर पारसनाथ गुप्ता को जब पता चला कि उन का बेटा अतुल बछरावां के साधारण पान विक्रेता दिलीप गुप्ता की बेटी के प्यार में है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘बेटा, रिश्ता बराबरी का अच्छा होता है. तुम्हारी और उस की हैसियत में बड़ा अंतर है. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है. तुम उसे भूल जाओ, इसी में सब की भलाई है.’’

अतुल ने पिता की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उसे लगा कि वह ठीक कह रहे हैं. अत: उस ने वंशिका से दोस्ती खत्म करने का निश्चय कर लिया और उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वंशिका जब भी फोन करती तो वह रिसीव नहीं करता था. बारबार फोन करने पर वह रिसीव करता और वंशिका उलाहना देती तो वह कोई न कोई बहाना बना देता.
पारसनाथ गुप्ता ने अतुल में परिवर्तन पाया तो उन्होंने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया. 25 फरवरी, 2020 की शादी की तारीख भी तय कर दी गई. अतुल ने इस रिश्ते का कोई विरोध नहीं किया बल्कि मौन स्वीकृति दे दी.
नवंबर, 2019 में वंशिका को पता चला कि अतुल के मांबाप ने उस की शादी तय कर दी है और 25 फरवरी की शादी की तारीख भी तय हो गई है. यह पता चलते ही वंशिका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे अपना सपना टूटता नजर आया तो उस ने अतुल से मुलाकात की और पूछा, ‘‘अतुल, जो बात मैं ने सुनी है, क्या वह सच है?’’
‘‘हां वंशिका, तुम ने जो सुना, वह सच है. मातापिता ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है.’’
‘‘तुम पागल हो गए हो क्या?’’ उस की बात सुन कर वंशिका तीखे स्वर में बोली, ‘‘अगर यह सच है तो फिर मेरे साथ घंटों प्यार भी बातें करना, दिनदिन भर मेरे साथ घूमनाफिरना क्या था?’’
‘‘वह दोस्ती थी. तुम चाहो तो यह दोस्ती मेरी शादी के बाद भी जारी रख सकती है.’’
‘‘अतुल, तुम्हारे लिए यह दोस्ती भर होगी, मैं तो तुम से प्यार करती हूं. मैं शादी करूंगी तो सिर्फ तुम से वरना जिंदगी भर कुंवारी बैठी रहूंगी. तुम भी कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं तुम्हें समाज में बदनाम कर दूंगी. झूठे मामलों में फंसा दूंगी, समझे.’’

अतुल ने वंशिका से उलझना ठीक नहीं समझा. वह घर वापस आ गया. इस के बाद वह वंशिका की धमकी से परेशान रहने लगा. दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं और उन का प्यार नफरत में बदलने लगा.
जनवरी, 2020 में पहले हफ्ते में एक रोज वंशिका ने अतुल को फोन कर धमकी दी कि अगर उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया तो वह उसे भी दूल्हा नहीं बनने देगी, शादी में हंगामा कर शादी तुड़वा देगी.
उस रोज अतुल पहले से ही तनाव में था. गुस्से में वह वंशिका के कालेज पहुंचा. वहां वादविवाद हुआ तो उस ने वंशिका के गाल पर 2 थप्पड़ जड़ दिए. कालेज में सार्वजनिक अपमान से वंशिका तिलमिला उठी. उस ने घर आ कर यह जानकारी मांबाप को दी. दिलीप गुप्ता इस बारे में बात करने अतुल के घर पहुंचे और उस के पिता पारसनाथ गुप्ता से बेटी को प्रताडि़त करने की शिकायत की.
बेटे की गलती पर पारसनाथ गुप्ता ने दिलीप के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांग ली. उन्होंने अतुल को भी माफी मांगने पर विवश कर दिया. इस के बाद मामला रफादफा हो गया.

अतुल ने माफी मांग कर मामला रफादफा जरूर कर दिया था, लेकिन उस का तनाव कम नहीं हुआ था. वह जानता था कि वंशिका को समझाना आसान नहीं है. इसलिए वह वंशिका से निजात पाने की सोचने लगा. पिता द्वारा हाथ जोड़ कर माफी मांगना भी उस के क्रोध को बढ़ा रहा था.
अतुल की अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई कृष्णचंद उर्फ धीरू से खूब पटती थी. अतुल ने जब यह बात उन्हें बताई तो तीनों ने मिल कर खूब सोचा कि वंशिका से कैसे पीछा छुड़ाया जाए. अंतत: तय हुआ कि वंशिका को ही मिटा दिया जाए.
इस के बाद तीनों ने मिल कर वंशिका की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में वंशिका की सहेली अंजलि श्रीवास्तव को भी आर्थिक प्रलोभन दे कर शामिल किया गया. अंजलि को वंशिका की सुरागरसी का काम सौंपा गया ताकि वह उस की गतिविधियों की जानकारी देती रहे.
पहली फरवरी, 2020 की सुबह 9 बजे अंजलि श्रीवास्तव ने अतुल को मैसेज किया कि वंशिका और वह महावीर सिंह महाविद्यालय जा रही हैं. वहीं से वह वंशिका को ले कर गंगागंज आएगी. वह वहीं आ जाए.

अंजलि का मैसेज मिलते ही अतुल सक्रिय हो गया. वह घूमने जाने का बहाना कर अपने रिश्तेदार दुर्गेश की कार ले आया. फिर वह अपने चचेरे भाई ललित तथा ममेरे भाई धीरू के साथ अहोरा भवानी से कार से निकल पड़ा.
इन लोगों ने मैडिकल स्टोर से क्लोरोफार्म की शीशी तथा बाजार से रस्सी व सिंदूर की डब्बी खरीदी, साथ ही रतापुर स्थित पैट्रोलपंप से कैन में 5 लीटर पैट्रोल भरवा लिया. उस के बाद तीनों गंगागंज आ गए. वहां तीनों वंशिका और अंजलि का इंतजार करने लगे.
दूसरी ओर वंशिका और अंजलि बछरावां से सुबह 10 बजे निकलीं और 11 बजे कालेज पहुंचीं. दोनों एक घंटा कालेज में रुकीं. दोनों 12 बजे कालेज से निकलीं. अंजलि घूमने के बहाने वंशिका को गंगागंज ले आई.
इस बीच अंजलि फोन पर अतुल के संपर्क में रही और मैसेज भेजती रही. गंगागंज पहुंचने पर अंजलि ने अतुल को मैसेज किया तो वह उस के बताए होटल पर पहुंच गया. उस समय दोनों समोसा खा रही थीं.
अतुल को देख कर अंजलि बोली, ‘‘वंशिका, वह देखो अतुल कार में बैठा है. चलो उस से मिल लेते हैं.’’
वंशिका ने पहले तो मना किया फिर अंजलि के समझाने पर वह कार के पास जा पहुंची. वंशिका पहुंची तो अतुल बोला, ‘‘वंशिका, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं चाहता हूं कि आज ही तुम्हारी मांग भरूं. देखो, सिंदूर की डब्बी भी साथ लाया हूं. तुम मेरे साथ मंदिर चलो.’’

अतुल की बात पर वंशिका को विश्वास तो नहीं हुआ लेकिन सिंदूर देख कर उस का प्यार उमड़ पड़ा और वह उस की कार में बैठ गई. वंशिका के बैठते ही कार चल पड़ी. कार को ललित चला रहा था और वंशिका अतुल तथा धीरू पीछे की सीट पर बैठे थे.
छलिया प्रेमी के खतरनाक इरादों से अनजान वंशिका जैसे ही अतुल के सीने से लगी, तभी उस की हैवानियत शुरू हो गई. उस ने क्लोरोफार्म की शीशी निकाली और वंशिका को सुंघा दी.
कुछ क्षण बाद ही वंशिका बेहोश हो गई. इस के बाद अतुल और धीरू ने मिल कर वंशिका के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. ललित ने गंगागंज से लगभग 3 किलोमीटर दूर शेरागांव के पास गोपाल ढाबे के पीछे सुनसान जगह पर कार रोकी.
सामने यूकेलिप्टस का बाग था. अतुल और धीरू हाथपैर बंधी बेहोश वंशिका को कार से उठा कर बाग में ले गए और पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया. बेहोशी के कारण वंशिका चिल्ला भी न सकी. घटना को अंजाम देने के बाद तीनों फरार हो गए. वंशिका की सहेली अंजलि गंगागंज से ही वापस अपने घर चली गई थी.
शाम 4 बजे के लगभग शेरागांव के लोगों ने बाग में अधजली लाश देखी तो थाना हरचंदपुर को सूचना दी.
सूचना पाते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह पहुंचे तो युवती की अधजली लाश देख कर उन की रूह कांप उठी. सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी नित्यानंद राय तथा सीओ गोपीनाथ सोनी भी घटनास्थल पर गए. शव की शिनाख्त न हो पाने पर शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.
दूसरे रोज पोस्टमार्टम हाउस में बछरावां निवासी पान विक्रेता दिलीप गुप्ता ने शव की पहचान अपनी 21 वर्षीया बेटी वंशिका के रूप में कर दी. उस के बाद तो हड़कंप मच गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो प्यार के प्रतिशोध में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.
6 फरवरी, 2020 को थाना हरचंदपुर पुलिस ने अभियुक्त अतुल गुप्ता, ललित गुप्ता तथा दगाबाज सहेली अंजलि श्रीवास्तव को रायबरेली की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्रेन स्ट्रोक: युवा हो जाएं अलर्ट

एवरस्मार्ट युवा पीढ़ी अब हो ही जाए एवरस्मार्ट. दौर स्मार्टनेस का ही है. समाज में एक ओवरस्मार्ट (…) चहलकदमी कर रहा है. चूक हुई, दुर्घटना घटी. युवा भी सुरक्षित नहीं हैं. युवा भी उस के निशाने पर हैं.

दरअसल, आमतौर पर युवाओं और स्वस्थ लोगों में स्ट्रोक का ख़तरा कम होता है, लेकिन नोवल कोरोना वायरस ने युवाओं में स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ा दिया है. सब से ज़्यादा ख़तरनाक बात यह है कि उन युवाओं पर भी स्ट्रोक का असर हो सकता है जिन में नोवल कोरोना वायरस से उभरी कोविड-19 बीमारी के लक्षण दिखाई भी न दें जबकि वे संक्रमित हों.

स्ट्रोक है क्या :

बहुत सारे लोग स्ट्रोक शब्द से भले ही वाकिफ न हों, लेकिन फालिज़ यानी लकवा के बारे में जानते होंगे. लकवा की स्थिति में शरीर का कोई हिस्सा या अंग काम करना बंद कर देता है. यह लकवा मारना ही स्ट्रोक कहलाता है. इसे पक्षाघात या पैरालिसिस या ब्रेनअटैक भी कहते हैं. दुनिया में करीब 85 फीसदी लोगों में दिमाग की खून की नली के अवरुद्ध होने यानी ब्लड क्लौटिंग होने पर व करीब 15 फीसदी में दिमाग में खून की नस फटने से लकवा होता है.

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जान लें कि फ़ालिज यानी लकवे में किसी की पूरी बौडी फ़ालिज का शिकार हो जाती है तो किसी की आधी बौडी इस की चपेट में आती है. कुछ लोगों के जिस्म के किसी विशेष अंग को फ़ालिज हो जाता है. फालिज़ होने की वजह साफ है. फालिज़ के चलते जिस्म का निचला हिस्सा यानी कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है. कभीकभी व्यक्ति के पैर और पैरों की उंगलियां भी काम करना बंद कर देती हैं.

स्ट्रोक से जिस्म और दिमाग दोनों पर असर पड़ता है. पूरा जिस्म दिमाग के इशारों पर ही चलता है. सो, अगर दिमाग पर ही आघात लगे, तो जिस्म भी काम नहीं कर पाता. यों समझिए कि स्ट्रोक एक इमर्जेंसी कंडीशन है.

स्ट्रोक और हैमरेज का फर्क समझें :

न्यूरो सर्जन डा. अरुण सिंह का कहना है, “आमतौर पर लोग ब्रेन स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज को ले कर कन्फ्यूज्ड रहते हैं. दरअसल, ब्रेन की कोई नस फट जाती है तो उसे ब्रेन हैमरेज कहा जाता है. ब्रेन हैमरेज, हालांकि, ब्रेन स्ट्रोक का हिस्सा है. लेकिन, ब्रेन स्ट्रोक के तहत ब्लड क्लौटिंग यानी खून की नली का अवरुद्ध होना और हैमरेज यानी नस फटना दोनों आते हैं.

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युवा संक्रमितों पर फालिज़ अटैक :

अमेरिका के थौमस जेफरसन विश्वविद्यालय में हुए शोध में यह बात सामने आई है कि कोरोना वायरस के ज़रिए युवाओं में स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ गया है. थौमस जेफरसन विश्वविद्यालय में कोविड-19 के ऐसे रोगियों पर 20 मार्च से 10 अप्रैल तक शोध किया गया जिन पर फालिज का हमला हुआ था और वह हमला असाधारण था. शोध में यह बात सामने आई है कि 30, 40 और 50 वर्ष की आयु के कोरोना संक्रमितों पर फालिज का हमला ज़्यादा हुआ था, जबकि इस तरह का हमला आमतौर पर 70 से 80 वर्ष की आयु के लोगों में ज़्यादा देखने को मिलता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने शुरुआती तौर पर 14 रोगियों पर शोध किया और ऐसे लक्षण पाए जो बहुत ही चिंताजनक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह भी हो सकता है कि युवाओं को यह पता ही न चले कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं जबकि उन के ख़ून में क्लोट्स और फालिज का ख़तरा हो सकता है.

रोगियों को नहीं पता, उन्हें रोग है :

इस शोध में शामिल किए गए 50 प्रतिशत रोगियों को यह पता ही नहीं था कि वे कोरोना वायरस का शिकार हैं, जबकि अन्य लोगों का दूसरी बीमारियों का इलाज हो रहा था और उन पर फालिज का हमला हो गया. शोध में यह भी कहा गया है कि अगर फालिज के लक्षण वाले रोगी कोरोना वायरस से संक्रमित होने के डर से अस्पताल जाने से बचेंगे तो उन के देर करने से उन की जान जा सकती है. यह बात भी शोध में सामने आई है कि कोविड-19 के बाद फालिज का शिकार होने वाले लोगों की मृत्युदर 42.8 फीसदी है जबकि आमतौर पर फालिज से मरने वालों की दर 5 से 10 फीसदी ही होती है.

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मोटे युवा भी टारगेट पर :

अमेरिका में कोरोना के सर्वाधिक संक्रमण के बीच वहां स्थित जौन हौपकिन्स यूनिवर्सिटी का एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन सामने आया है. इस में दावा किया गया है कि युवा आबादी में कोरोना के संक्रमण की एक प्रमुख वजह मोटापा भी है. अमेरिका में कई लाख कोरोना संक्रमण मामले सामने आ चुके हैं जिन में बड़ी तादाद में युवा आबादी भी ग्रस्त है.

लांसेट पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया है कि 265 मरीजों पर अध्ययन करने के बाद यह नतीजा निकाला गया है. ये मरीज जौन हौपकिन्स अस्पताल के अलावा यूनिवर्सिटी औफ न्यूयौर्क,  यूनिवर्सिटी औफ वाशिंगटन, फ्लोरिडा हेल्थ आदि से संबद्ध अस्पतालों में कोविड उपचार के लिए भरती थे.

जौन हौपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इन मरीजों के बौडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के आधार पर कोरोना संक्रमण की आशंकाओं का अध्ययन किया. इन में से सिर्फ 25 फीसदी युवा ही ऐसे थे जिन का बीएमआई कंट्रोल में था, बाकी लोग मोटापे से ग्रस्त थे.

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह बात पहले भी सामने आई थी कि मोटापे से ग्रस्त लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आ सकते हैं लेकिन ताज़ा खतरा पहले जताई गई आशंका से कहीं खतरनाक है.

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एक अन्य अध्ययन के मुताबिक बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों को कोविड-19 से गंभीर जटिलताओं का पूर्व के अनुमान से कहीं ज्यादा खतरा है. अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय के इस अध्ययन के सह लेखक लौरेंस क्लेनमेन ने कहा, “यह विचार कि कोविड-19 बीमारी युवाओं को बख्श दे रही है, गलत है.”

इस प्रकार, यह साफ़ है कि कोरोना फेमिली का यह नया वायरस नोवल कोरोना पहले आए वायरसों से ओवरस्मार्ट है. यह तरहतरह से अपने टारगेट पर अटैक कर रहा है. ऐसे में युवाओं, जो अपनेआप को मजबूत इम्यूनिटी वाला मानते हुए सुरक्षित समझते हैं, को खासतौर पर एलर्ट होना है ताकि वे अपनी स्मार्टनेस से इस ‘ओवरस्मार्ट’ को मात दे सकें.

अजनबी-भाग 4 : बार-बार अवधेश की मां सफर में क्यों डरी हुई थी?

‘‘अंकल, और क्याक्या करते हैं आप?’’ नीति ने पूछा.

‘‘मेरी एक ‘बिहूटोली’ है, बिहू के समय वह घरघर जाती है, गाने गाती है, ‘बिहू’ करती है. पिछले साल फर्स्ट प्राइज भी जीता था हमारी बिहूटोली ने,’’ बड़े उत्साह से वर्णन कर रहा था वह इस बात से अनभिज्ञ कि मैं भीतर ही भीतर क्रोध से धधक रही हूं. अपने क्रोध को दबाते हुए तल्खी भरे स्वर से मैं ने पूछा, ‘‘नाचतेगाते ही हो या कुछ कामधाम भी करते हो?’’

‘‘हां दीदीजी, मैं ने इसी बरस पौलिटैक्निक की परीक्षा पास की है,’’ वह बड़ी विनम्रतापूर्वक बोला.

‘‘और तुम्हारा वह मुकुटनाथ?’’

‘‘दीदीजी, वह चाय की फैक्टरी में काम करता है, त्योहारों में ‘भाओना’ में काम करता है,’’ मेरी कड़वाहट को भांपते हुए वह धीरेधीरे सौम्यता से उत्तर दे रहा था.

‘‘भाओना क्या होता है?’’ नीति ने उत्सुकतापूर्वक पूछा.

‘‘धार्मिक नाटक होता है…’’

नीति बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘हांहां अंकल, हमारे होम टाउन में भी होती है ‘रामलीला,’ मैं ने भी देखी है.’’

यहां के लोगों के कलाप्रेमी होने के विषय में मैं जानती थी, किंतु इस वक्त संगीतवंगीत, कलावला सब व्यर्थ की चीजें जान पड़ रही थीं. एक मन हुआ कि उस का गला पकड़ कर चीखचीख कर पूछूं, ‘कहां है मेरा बच्चा? कहां ले गया तुम्हारा साथी उसे?’ क्रोध से जन्मे पागल पशु की नकेल मैं भीतर कस के पकड़े थी. किंतु रहरह कर मेरे स्वर की तल्खी बढ़ जाती.

पूरे 25 मिनट हो गए थे अवधेश को गए. खैर, मेरा संयत रहना ठीक रहा. सामने से अवधेश आ रहा था मुकुटनाथ के साथ. आंखें छलछलाने को हो गईं. फिर संयत किया स्वयं को, कैसे पब्लिक में हम सभ्य समाज के सदस्य अपने इमोशंस को दिखाएं. लोग क्या सोचेंगे, यह फिक्र पहले हो जाती है.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी, अवधेश?’’ भारी सा था मेरा गला.

‘‘कहां मां, देर तो नहीं हुई, यह तो मुकुट दादा शौर्टकट से ले गए वरना और समय लग जाता. हां, पापा से बात हो गई. इसलिए अब आप रिलैक्स हो जाइए. ओ के.’’

‘‘ठीक है, बेटे,’’ मन ही मन सोच रही थी मुकुटदादा, यह कैसे? फिर उस से कहा, ‘‘तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद, मुकुटनाथ.’’

‘‘अरे दीदीजी, धन्यवाद किसलिए,’’ शरमा कर बोला वह.

धीरेधीरे उन से बातों की शृंखला जो जुड़ी तो जुड़ती चली गई. दोनों बच्चे उन से घुलमिल गए थे.

उन दोनों युवकों के प्रति मेरे मन में जो कलुषता आ गई थी उसे साफ करने का प्रयास कर रही थी मैं. सच, हम पढ़ेलिखे शहरी लोग महानगरों के कंक्रीट जंगलों में रहतेरहते वैसे ही बन जाते हैं, कंक्रीट जैसे सख्त. किंतु वहां हुए कुछ कटु अनुभव हमें विवश कर देते हैं सरलता छोड़ वक्र हो जाने पर.

निस्वार्थ जैसा शब्द तो महानगरों में अपना अस्तित्व कब का खो चुका था. किसी को निस्वार्थ भाव से या उदारता दिखाते कुछ कार्य करता देख लोग उस की प्रशंसा की जगह उस पर संदेह ही करते हैं. ‘यह कुछ जरूरत से ज्यादा अच्छा बनने की कोशिश कर रहा है, आखिर क्यों? जरूर अपना कोई उल्लू सीधा करना होगा. छोटे गांवों और कसबों में यह निश्छलता अब भी है,’ ये सब सोचते हुए स्वयं पर ग्लानि हो आई.

अब हम और हम से 4 बैंच छोड़ कर एक और परिवार रात को आने वाली इंटरसिटी की प्रतीक्षा कर रहा था. अभी डेढ़ घंटा और बाकी था. प्लेटफौर्म पर डिब्रूगढ़ की ओर जाने वाली गाड़ी आ गई थी. यहां से कोई नहीं चढ़ा. 15 मिनट बाद वह चली गई.

बच्चे टुनटुन और मुकुटनाथ के साथ मिल कर मशीन पर आनेजाने वालों को देख कर अपना मनोरंजन कर रहे थे. सामने से एक स्मार्ट युवक आ रहा था मशीन की ओर. नीति की धीमी आवाज में ‘रनिंग कमैंट्री’ शुरू हो गई. टुनटुन भी साथ दे रहा था.

‘‘हां तो दादा, बैग नीचे रखा?’’

‘‘हां, रखा.’’

‘‘मशीन पर चढ़ा?’’

‘‘हां जी, चढ़ गया.’’

‘‘चरखी रुकी?’’

‘‘बिलकुल नीति बेबी.’’

‘‘सिक्का डाला.’’

‘‘हां, डाल रहा है.’’

‘‘बस, अब यह फंसा…अब देखो क्या होता है?’’

टोकन न आने के कारण मशीन  पर चढ़ा युवक बेचैन हो रहा था. ऊपर खड़ेखड़े ही उस ने जोरों से लैफ्टराइट करना शुरू कर दिया कि शायद झटके से कहीं फंसा हुआ टोकन नीचे आ जाए.

कुछ समय बाद बेहद खीज गया वह और मशीन को दाएंबाएं ढोलक की तरह बजाने लगा. अचानक गश्त करते एक सिपाही को देख मशीन से उतर गया. ज्यों ही सिपाही आगे गया, एक भरपूर किक मशीन को रसीद कर दी उस ने. चारों ओर घूम के भी देखा, कहीं कोई साक्ष्य तो नहीं उस के शौर्य का. तुरंत हम ने मुंह घुमा लिए. हंसी से लोटपोट हुए जा रहे थे हम सभी. ऐसे ही कितने आए, कितने गए. मशीन सभी के सिक्के लीलती रही. किसी को कृतार्थ नहीं किया उस ने हंसतेहसंते समय कैसे निकल गया, पता ही नहीं चला. कहां थी मैं, इस अनजान सुनसान प्लेटफौर्म पर, रात के 11 बजे, अनजाने लोग अनजानी जगह. फिर भी घबराहट नहीं, कोई डर नहीं.

‘‘दीदीजी, आप की इंटरसिटी लग गई, देखिए,’’ टुनटुन ने कहा, ‘‘अब आप का सामान गाड़ी में रख देते हैं.’’

‘‘अरे, हम रख लेंगे, आप रहने दीजिए,’’ औपचारिकतावश मैं ने कहा.

बगल में मुकुटनाथ अपनी बोरी को खोल कर उस में से कुछ निकाल रहा था. मेरे पास आया और 2 खाकी भूरे से कागज के बडे़बड़े पैकेट मेरी ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘दीदीजी, यह चायपत्ती है, जहां मैं काम करता हूं न उसी फैक्टरी की. आप को अच्छी लगेगी, ले लीजिए.’’

‘‘अरे नहींनहीं, मुझे नहीं चाहिए,’’ मैं ने पीछे होते हुए कहा.

‘‘ले लीजिए न, दीदीजी,’’ उस ने अनुनय की.

मैं अब मना नहीं कर सकी और पैसे निकालने के लिए पर्स खोलने लगी.

‘‘अरे दीदीजी, नहींनहीं,’’ हाथ जोड़ कर उस ने कहा, ‘‘अपनी दीदीजी से हम पैसा कैसे ले सकते हैं,’’ और तेजी से हमारा सामान उठा कर चल दिया.

टुनटुन और मुकुटनाथ दोनों ने हमारी  सीट के नीचे हमारा सारा सामान सैट कर दिया था. गाड़ी छूटने का समय हो चला था. टुनटुन नीचे उतरा और 2 मिनट बाद फिर हमारे पास आया. पानी की 2 बोतलें और बिस्कुट के पैकेट ले कर. नीति को थमाते हुए वह बोला, ‘‘रात को बच्चों को प्यास लगेगी, दीदीजी, और अब तो रात बहुत हो गई है, कोई पानी वाला, चाय वाला इस समय गाड़ी में नहीं मिलेगा.’’

‘‘ठीक है भैया, अब तुम लोग जाओ,’’ मैं ने कहा.

गाड़ी सरकने लगी थी. ‘नहींनहीं, अंकल’, सुन कर बच्चों की ओर देखा तो पाया मुकुटनाथ दोनों की हथेलियों पर 10-10 रुपए का नोट रख रहा था, ‘‘टौफी खाना, बाबू, ठीक है,’’ उन के सिरों पर हाथ रख कर वह जाने लगा.

‘‘अरे, यह क्या,’’ मैं कुछ और कहती इस से पहले वे नीचे उतर चुके थे.

दोनों बच्चे भावविभोर थे. उन 10-10 रुपए की ‘फेस वैल्यू’ चाहे जो भी हो, इस क्षण में वे नोट नीति व अवधेश के लिए अमूल्य थे. दोनों नीचे खड़े हुए बच्चों को हाथ हिला कर बाय कर रहे थे. ट्रेन धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी. मैं ने पाया कि हाथ हिलातेहिलाते दूसरे हाथ से अपनी आंखें भी पोंछ रहे थे. ‘हैं, इतना स्नेह’ मैं विश्वास नहीं कर पा रही थी. अपने बच्चों की आंखों में भी उदासी साफ देख पा रही थी मैं. बात बदलने के उद्देश्य से बेटे से पूछा, ‘‘इन लोगों की ट्रेन कितने बजे की है, मैं ने तो पूछा भी नहीं?’’

भारी स्वर में अवधेश बोला, ‘‘मां, उन को तो डिब्रूगढ़ की ट्रेन पकड़नी थी जो हम से काफी पहले आ गई थी, लेकिन उन्होंने मिस कर दिया उसे.’’

मैं हैरान थी. ‘‘पर क्यों?’’

‘‘हमारे लिए मां. जब मैं फोन करने उन के साथ गया था तो उन्हें बताया था कि हम पहली बार यहां आए हैं. शायद उन्होंने भांप लिया था कि आप नई जगह पर अकेले घबरा रही हैं. मुकुटदादा ने बोला कि आप सब को ट्रेन में बिठा कर वे स्टेशन के बाहर से डिब्रूगढ़ की बस पकड़ लेंगे. सच, मां, यकीन नहीं होता, इतने अच्छे लोग भी होते हैं.’’

अवाक् थी मैं. आंखें धुंधला गईं. कब मैं उन की ‘दीदीजी’ बन गई थी, पता ही नहीं चला. कैसे बन गए थे वे मेरे आत्मीय, मेरे अपने से अजनबी.

अजनबी-भाग 3 : बार-बार अवधेश की मां सफर में क्यों डरी हुई थी?

पास बैठे युवकों में से एक ने शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘की होल दादा?’’ यानी क्या हुआ भाईसाहब. सज्जन ने आग्नेय नेत्रों से पीछे पलट कर देखा पर बोले कुछ नहीं. कुछ समय और गुजरा. टोकन को बाहर न आना था, न आया. दोनों युवक मुंह दबा कर हंस रहे थे. हम तीनों मांबच्चों को कुछ समझ नहीं आया कि हो क्या रहा है.

सिक्का व्यर्थ ही खो देने का दुख था, अपना वजन न देख पाने की हताशा या फिर आसपास के लोगों के उपहास का केंद्र बन जाने की खिसियाहट, इन में से जाने कौन सी भावना के चलते उन्होंने मशीन को भरपूर मुक्का और लात जड़ दी और तेजी से अपना सामान उठा चलते बने. अब की बार दोनों युवकों के साथ नीति व अवधेश भी जोर से हंस पड़े.

एक युवक मेरी ओर देखते हुए बोला, ‘‘बाइडो.’’ तभी दूसरे ने उसे हिंदी में बोलने को कहा.

‘‘दीदीजी, यह मशीन मैं 4 बरस से देख रहा हूं,’’ सिक्का लहराते हुए उस ने कहा.

दूसरा बोला, ‘‘हां दीदीजी, हर महीने काम के सिलसिले में 4-5 बार यहां से आनाजाना होता है, पर हम ने इस को काम करते कभी नहीं देखा. लोग सिक्का डालडाल कर इस में दुखी होते रहते हैं.’’

दूसरे युवक की हिंदी पहले युवक से अच्छी थी. दोनों ही हंसहंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे.

भय कुछ कम होने लगा. मैं ने उन के नाम पूछे.

‘‘मुकुटनाथ,’’ पहले ने कहा.

‘‘और मेरा, टुनटुन हाटीकाकोटी,’’ दूसरा बेला.

हम तीनों ही हंस पड़े. नीति ने पूछा, ‘‘अंकल, आप तो इतने स्लिम हो फिर टुनटुन नाम क्यों रखा गया आप का?’’

वह समझा नहीं. तब मैं ने बताया कि टुनटुन नाम की एक बहुत मोटी हास्य अभिनेत्री थी, और ‘टुनटुन’ शब्द मोटापे व मसखरेपन का पर्याय ही था हमारे लिए. यह जान कर वह भी मुसकरा दिया.

मैं ने गौर किया, अवधेश थोड़ा सजग हो सीधा बैठ गया था. इतनी जल्दी वह किसी अजनबी से घुलतामिलता नहीं था, शायद अपने पापा की हिदायतें उसे याद हो आई थीं, ‘स्टेशन पर किसी अजनबी से बहुत बात मत करना, एक जगह बैठे रहना, सामान को ध्यान से रखना, कोई पूछे तो कहना कि हम यहीं के हैं. यह पूछने का साहस हम ने कभी नहीं किया कि हमारी शक्लें, बोलीभाषा क्या हमारा परिचय नहीं दे देतीं? आजकल मीठीमीठी बातें कर के लोग दोस्त बन जाते हैं और मौका पाते ही चोरी कर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं. सीधेसादे लोगों को वे दूर से ही पहचान लेते हैं.

प्रकाशजी के लिए सारी दुनिया में हम से अधिक सीधासादा (कहना शायद वे बेवकूफ चाहते थे पर कह नहीं पाते थे) और कोई न था और हर व्यक्ति बस हमें ठग लेने की प्रतीक्षा में ही बैठा था. खीज तो बहुत होती थी पर मैं इन सब से…पर एक पति और पिता होने के नाते उन का यह अति सुरक्षात्मक रवैया मैं अच्छी तरह समझती भी थी.

एक और हिदायत याद हो आई, ‘स्टेशन पर पहुंचते ही फोन कर देना, मैं इंतजार करूंगा.’

‘ओह, यहां पहुंचे हुए तो डेढ़ घंटा बीत चुका है, वहां वे प्रतीक्षा कर रहे होंगे,’ मैं ने अवधेश को याद दिलाया. इधरउधर नजर दौड़ाई कोई पीसीओ नजर नहीं आया, मोबाइल की बैटरी दिन में ‘डाउन’ हो चुकी थी. दोनों बच्चे चुप हो गए. अपने पापा के स्वभाव को जानते थे. समय पर काम नहीं हुआ तो पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता था.

मुकुटनाथ हमें अचानक यों चुप देख कर बोला, ‘‘क्या हुआ, दीदीजी? आप परेशान लग रही हैं.’’

‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, बस घर पर फोन करना था पर कोई बूथ नजर नहीं आ रहा,’’ मैं ने कहा.

‘‘एक टैलीफोन बूथ है तो, किंतु दूर है, स्टेशन के बाहर.’’

पति के क्रोध का कुछ ऐसा डर था कि आव देखा न ताव, पर्स से पैसे निकाले और अवधेश को मुकुटनाथ के साथ भेज दिया. चैन की एक लंबी सांस ली मैं ने. सच, कितनी अच्छाइयां थीं प्रकाशजी में. एक बहुत ही परिश्रमी और सैल्फमेड व्यक्ति थे, कोई दुर्व्यसन नहीं, चरित्रवान और बहुत ही और्गेनाइज्ड… किंतु उन का शौर्ट टैंपर्ड होना, बातबेबात कहीं पर भी चिल्ला देना, सभी अच्छाइयों को धूमिल बना जाता था. बच्चे भी उन से डरते थे.

तकरीबन 10 मिनट गुजर चुके थे अवधेश को मुकुटनाथ के साथ गए. अचानक जैसे मैं नींद से जागी, ‘यह मैं ने क्या किया? बच्चे को एक अजनबी के साथ भेज दिया. अभी कुछ समय पहले जो मुझे संदेहास्पद लग रहे थे उन के साथ?’ कलेजा मुंह को आने का अनुभव उसी क्षण हुआ मुझे. ‘कहीं अवधेश को अपने साथ तो नहीं भगा ले गया वह?’ कल्पना के घोड़े फिर से दौड़ने को तत्पर थे. ‘क्या अवधेश को किडनैप कर लिया है उन्होंने? फिरौती मांगेंगे या कहीं अपने उग्रवादी संगठन में जबरन भरती कर लेंगे. मेरा बच्चा उस संगठन की यूनिफौर्म पहने, माथे पर काली पट्टी और हाथ में स्टेनगन लिए नजर आ रहा था मुझे.’

‘‘मां, कहां खो गईं आप?’’ नीति मेरा कंधा झकझोर रही थी, ‘‘आप का चेहरा अचानक पीला क्यों पड़ गया? तबीयत ठीक है?’’

वह क्या समझती कि कैसा झंझावात चल रहा था भीतर, ‘‘कहां जाऊं, क्या करूं, क्या शोर मचाऊं, कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या मैं भी बाहर जा कर देखूं?’’ पर नीति को एक अन्य अजनबी के साथ छोड़ कर जाने का दुस्साहस नहीं हुआ. यह बेवकूफी मैं ने कैसे कर दी, कोस रही थी स्वयं को मैं.

बाहर से शांत रहने का असफल प्रयास करती मैं देख रही थी, नीति कैसे टुनटुन नाम के उस युवक के साथ खिलखिला रही थी, मशीन पर आनेजाने वालों और उन की प्रतिक्रियाओं पर. उस क्षण उस का वह खिलखिलाना मुझे बेहद अखर रहा था. मन किया कि डांट कर चुप करा दूं. किंतु छठी इंद्रिय संयत रहने को कह रही थी. नीति को बता रहा था टुनटुन कि वह बच्चों को तबला बजाना सिखाता है. और उस का अपना एक म्यूजिकल ग्रुप भी है जो पार्टियों में या अन्य समारोहों में जाता है.

अजनबी-भाग 2 : बार-बार अवधेश की मां सफर में क्यों डरी हुई थी?

कुछ ही देर में वहां 2 युवक आए, कुछ क्षण चारों ओर देखा, फिर हमारी बैंच के समीप ही अपना सामान रखने लगे. एक दृष्टि उन पर डाली. गौरवर्ण, छोटीछोटी आंखें और गोल व भरा सा चेहरा…वहां के स्थानीय लोग लग रहे थे. सामान के नाम पर 2 बड़े बोरे थे जिन का मुंह लाल रंग की प्लास्टिक की डोरी से बंधा था. एक बक्सा स्टील का, पुराने समय की याद दिलाता सा. एक सरसरी नजर उन्होंने हम पर डाली, आंखों ही आंखों में इशारों से कुछ बातचीत की, और दोनों बोरे ठीक हमारी बैंच के पीछे सटा कर लगा दिए. बक्से को अवधेश की ओर रख कर तेजी से वे दोनों वहां से चले गए.

वे दोनों कुछ संदिग्ध लगे. मेरा मन किसी बुरी आशंका से डरने लगा, ‘अब क्या होगा,’ सोचतेसोचते कब मेरी कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे, पता नहीं. क्या होगा इन बोरों में? कहीं बम तो नहीं? दोनों पक्के बदमाश लग रहे थे. सामान छोड़ कर कोई यों ही नहीं चला जाता. पक्का, इस में बम ही है. बस, अब धमाका होगा. घबराहट में हाथपांव शिथिल  हो रहे थे. बस दौड़ रहे थे तो मेरी कल्पना के बेलगाम घोड़े. कल सुबह के समाचारपत्रों की हैडलाइंस मुझे आज, इसी क्षण दिखाई दे रही थीं… ‘सिमलगुड़ी रेलवे स्टेशन पर कल रात हुए तेज बम धमाकों में कई लोग घायल, कुछ की स्थिति गंभीर.’ हताहतों की सूची में अपना नाम सब से ऊपर दिख रहा था. प्रकाशजी का गमगीन चेहरा, रोतेबिलखते रिश्तेदार और न जाने क्याक्या. पिछले 10 सैकंड में आने वाले 24 घंटों को दिखा दिया था मेरी कल्पना ने.

‘‘मां, देखो, वेइंग मशीन,’’ नीति की आवाज मुझे विचारों की दुनिया से बाहर खींच लाई. कहां थी मैं? मानो ‘टाइम मशीन’ में बैठी आने वाले समय को देख रही थी और यहां दोनों बच्चे बड़े ही कौतूहल से इस छोटे से स्टेशन का निरीक्षण कर रहे थे. कुछ आश्वस्त हुई मैं. घबराहट भी कम हो गई. कुछ उत्तर दे पाती नीति को, उस से पहले ही अवधेश बोला, ‘‘कभी देखी नहीं है क्या? हर स्टेशन पर तो होती हैं ये. वैसे भी अब तो ये आउटडेटेड हो चुकी हैं. इलैक्ट्रौनिक स्केल्स आ जाने से अब इन्हें कोई यूज नहीं करता.’’

सच ही तो कहा उस ने. हर रेलवे स्टेशन पर लालपीलीनीली जलतीबुझती बत्तियों वाली बड़ीबड़ी वजन नापने की मशीनें होती ही हैं. मानो उन के बिना स्टेशन की तसवीर ही अधूरी है. फिर भी किसी फिल्म के चरित्र कलाकार की भांति वे पार्श्व में ही रह जाती हैं, आकर्षण का केंद्र नहीं बन पातीं. किंतु जब हम छोटे बच्चे थे, हमारे लिए ये अवश्य आकर्षण का केंद्र होती थीं. कितनी ही बार पापा से 1 रुपए का सिक्का ले कर मशीन पर अपना वजन मापा करते थे. वजन से अधिक हम बच्चों को लुभाते थे टोकन के पीछे लिखे छोटेछोटे संदेश ‘अचानक धन लाभ होगा’, ‘परिश्रम करें सफलता मिलेगी’, ‘कटु वचनों से परहेज करें’ आदिआदि.

ऐसा ही एक संदेश मुझे आज भी याद है, ‘बुरी संगति छोड़ दें, अप्रत्याशित सफलता मिलेगी.’ मेरा बालमन कई दिनों तक इसी ऊहापोह में रहा कि मेरी कौन सी सहेली अच्छी नहीं है जिस का साथ छोड़ देने से मुझे अप्रत्याशित सफलता मिलेगी, 10वीं की बोर्ड की परीक्षा जो आने वाली थी. खैर, मेरी हर सखी मुझे अतिप्रिय थी. और यदि बुरी होती भी तो मित्रता के मूल्य पर मुझे सफलता की चाह नहीं थी. काफी ‘इमोशनल फूल’ थी मैं या हूं. शायद, इस बार टाइममशीन के ‘पास्ट मोड’ में चली गई थी मैं.

‘‘मां, आप के पास टू रुपीज का कौइन है?’’ नीति की खिचड़ी भाषा ने तेजी से मेरी तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कितनी बार कहा है नीति, तुम्हारी इस खिचड़ी भाषा से मुझे बड़ी कोफ्त होती है. अरे, हिंदी बोल रही हो तो ठीक से तो बोलो,’’ मैं झुंझला रही थी, ‘‘पता नहीं, यह आज की पीढ़ी अपनी भाषा तक ठीक से नहीं बोलती,’’ अवधेश मेरी झुंझलाहट पढ़ पा रहा था, बोला, ‘‘अरे मां, आजकल यही हिंगलिश चलती है, आप की जैसी भाषा सुन कर तो लोग ताकते ही रह जाते हैं, कुछ समझ नहीं आता उन्हें. आप भी थोड़ा मौडर्न लिंगो क्यों यूज नहीं करतीं?’’ और दोनों भाईबहन ठहाका मार कर हंसने लगे. मन कुछ हलका सा हो गया.

‘‘अच्छा बाबा, मुझे माफ करो तुम दोनों. मैं ठीक हूं अपने …’’

मेरे वाक्य पूरा करने से पहले ही दोनों एकसाथ बोले, ‘‘प्राचीन काल में,’’ और फिर हंसने लगे.

तभी मैं ने देखा वे दोनों युवक वापस आ रहे थे. हमारे समीप ही वे दोनों अपने सामान पर पांव फैला कर बैठ गए. उन को एकदम अनदेखा करते हुए हम चुपचाप इधरउधर देखने लगे. खैर, कुछ देर सब शांत रहा. फिर वे दोनों अपनी भाषा में वार्त्तालाप करने लगे. एक बात थी, उन की भाषा, बोली, उन का मद्धिम स्वर, सब बड़े ही मीठे थे. मैं चुपचाप समझने का प्रयास करती रही. शायद, उन का ‘प्लान’ समझ आ जाए पर कुछ पल्ले नहीं पड़ा. आसपास देखा तो स्टेशन पर कम ही लोग थे. गुवाहाटी के लिए खड़ी ट्रेन में अधिकांश लोग यहीं से चढ़े थे. ट्रेन चली गई. एक अजीब सी नीरवता पसर गई थी.

सामने सीढि़यों से उतरते हुए एक सज्जन, कंधे पर टंगा बैग और हाथ में एक बंधा हुआ बोरा लिए इस ओर ही आ रहे थे. 2 बंधे बोरे मेरे पास ही पड़े थे. ‘शायद बोरों में ही सामान भर कर ले जाते हैं ये लोग,’ मैं ने सोचा. तभी वे रुके, जेब से कुछ निकाला और तेजी से हमारी ओर बढ़ने लगे. मैं सतर्क हो गई. पर मेरा संदेह निर्मूल था. वे तो हाथ में एक सिक्का लिए, बड़े ही उत्साह से वजन मापने की मशीन की ओर जा रहे थे. अपना बैग, बोरा नीचे रख धीमे से वे मशीन पर खड़े हो गए. जलतीबुझती बत्तियों के साथ जैसे ही लालसफेद चकरी रुकी वैसे ही उन्होंने सिक्का अंदर डाल दिया जिस की गिरने की आवाज हम ने भी सुनी. अब वे सज्जन बड़ी ही आशा व उत्साह से मशीन के उस भाग को अपलक निहार रहे थे जहां से वजन का टोकन बाहर आता है. 15-20 सैकंड गुजर गए किंतु कुछ नहीं निकला.

खेतों में सड़ रही किसानों की सब्जियां

महामारी बने कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लौकडाउन ने सभी को प्रभावित किया है, लेकिन जिस के कंधे पर घरों में बैठे लोगों के पेट भरने का दारोमदार है, उन की सरकार से छूट मिलने के बाद भी हालत खराब होती जा रही है. इस में जिन पर सब से ज्यादा असर पड़ रहा है, वे हैं सब्जी किसान.

चूंकि तैयार सब्जियों को ज्यादा दिन स्टोर कर के नहीं रखा जा सकता है, ऐसे में मांग घटने के चलते इन सब्जी किसानों की तैयार फसल खेतों में ही सड़ जा रही है. ऐसे में

किसानों की हालत माली रूप से खराब होती जा रही है.

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वाहनों की होती धरपकड़

लौकडाउन ने रोड पर चलने के लिए कई तरह के वाहनों पर रोक लगा रखी है. इस का असर ट्रांसपोर्ट के वाहनों पर भी पड़ा है. ट्रांसपोर्टर वाहन जब्त किए जाने के डर के चलते अपने वाहन बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं, जिस से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में एक से दूसरे जिलों की मंडियों में सब्जियों की आवाजाही कम हो गई है. जो किसान अपने वाहनों से सब्जियां ले कर मंडियों में पहुंचा रहे हैं, वे भी लौकडाउन के चलते बाहर नहीं जा पा रहे हैं, जिस से किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.

तय कीमतों से भी कम दाम

पर बिक रही हैं सब्जियां

सरकारों ने लौकडाउन के चलते जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक लगाने के लिए आवश्यक खाद्य वस्तुओं और सब्जियों के फुटकर व थोक दाम तय कर रखे हैं, जिस से कोई भी दुकानदार सरकार द्वारा तय किए गए इस दाम से ज्यादा मूल्य नहीं ले सकता है. लेकिन सब्जी के मामले में यह एकदम उलट हो गया है. सब्जियां सरकार द्वारा तय मूल्य से भी कम दाम पर बिक रही हैं. जिन किसानों ने सब्जियों की खेती कर रखी है, मांग कम होने के चलते उन की तैयार फसल खेतों में सड़ जा रही है. ऐसे में सब्जी किसान अपनी तैयार फसल को औनेपौने दाम पर बेचने को मजबूर हो रहे हैं.

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कई किसान उत्पादन ज्यादा होने और मांग कम होने के चलते अपनी तैयार सब्जियां तोड़ कर फेंक दे रहे हैं या मुफ्त में बांट रहे हैं. ऐसे में खेती में लगाई गई उन की लागत तक निकालना मुश्किल हो गया है.

बस्ती जनपद के ब्लौक बहादुरपुर के गांव नारायणपुर के 24 साला युवा किसान अनुराग पांडेय ने बताया कि उन्होंने लौकी, खीरा, नेनुआ, कद्दू व प्याज की फसलें लगा रखी हैं, जिस से हर 2 दिन पर 4 से 5 क्विंटल उपज मिल रही है. लेकिन आवाजाही पर रोक लगने के चलते मंडियों तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कई बार तो पुलिस वाले अभद्रता से पेश आने लगते हैं.

ऐसे में जो फसल खेत से लोकल आढ़ती खरीद कर ले जा रहे हैं, वे बेहद ही कम मूल्य पर खरीद रहे हैं. ऐसे में फुटकर में भी ये सब्जियां कम दाम पर बिक रही हैं.

अनुराग ने बताया कि उन के खेतों में जो सब्जियां तैयार हैं, उस की 10 फीसदी भी नहीं बिक पा रही हैं. ऐसे में लागत निकालना तक मुश्किल हो गया है.

इसी गांव के रहने वाले कौशलेंद्र पांडेय ने भी केला, शिमला मिर्च, लौकी, खीरा, कद्दू, नेनुआ और तोरई की फसल लगा रखी है. लेकिन खेतों में तैयार होने वाली फसल का मुश्किल से 10-15 फीसदी ही बिक पा रहा है, बाकी फसल वे या तो मुफ्त में बांट दे रहे हैं या फिर खेतों में ही खराब हो जा रही है.

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प्रशासन उठाए उचित कदम

लौकडाउन के और आगे खिसकने की आशंकाओं के बीच सब्जियों की खेती से जुड़े किसानों का कहना है कि जब किसानों को खेती के कामों में लौकडाउन के बीच आनेजाने में सहूलियत दिए जाने की घोषणा की गई है, तो जिलों के स्थानीय प्रशासन को भी उस सहूलियत को दिए जाने में आगे आना चाहिए.

इस के लिए प्रशासन को सब्जियों की ढुलाई में लगे ट्रांसपोर्ट वाहनों के एक जिले से दूसरे जिलों में आनेजाने में छूट दिए जाने की जरूरत है, नहीं तो किसान सब्जियों में घाटे के चलते खेतीबारी से किनारा कर सकते है, जिस से लोगों की सब्जियों की रोजमर्रा की जरूरतों पर भी असर पड़ सकता है.

आत्मनिर्भरता का ड्रामा

प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भर होने का मतलब यह नहीं है कि देश अपनी जरूरतों को खुद पूरा करे. यह बात तो वे कई साल पहले ‘मेक इन इंडिया’ के नारे से कह चुके हैं. पर उस का अर्थ सिर्फ इतना निकला कि पार्टीभक्तों को कुछ दिन हल्ला मचाने का मौका मिला. देश लगातार विदेशी सामान खरीदने में लगा रहा.
प्रधानमंत्री के लिए बढि़या हवाई जहाज खरीदे गए हैं. सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति तक चीन से खरीदी गई है. भक्तों ने विदेशी सैमसंग, ओप्पो, आईफोन पर ‘मेक इन इंडिया’ के नारे को जम कर फौरवर्ड किया.

आत्मनिर्भर का मतलब है कि सरकार को अब कुछ करना नहीं है और जनता को अपना खयाल खुद रखना होगा. विदेशों में पढ़ रहे युवाओं की गिनती बताने के लिए काफी है कि कितनों को देश की आत्मनिर्भर शिक्षा पर कितना भरोसा है. चीन में 45 हजार युवा डाक्टरी पढ़ रहे हैं क्योंकि हमारे यहां आत्मनिर्भर बनाने वाले मैडिकल कालेज नहीं हैं. 30-31 जनवरी को वुहान, चीन से लौटने वाले 500 युवाओं ने पहले ही पोल खोल दी है कि आत्मनिर्भरता का तो पूरा ड्रामा सिर्फ सरकारी निकम्मेपन को दिखाता है.

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आत्मनिर्भर नारों से नहीं, मेहनत से बना जाता है और जो आदर हम मेहनतकश लोगों को देते हैं वह देश की सड़कों पर दिख पड़ा है. हमारी सरकार मजदूरों को उन के घरों तक वापस ले जाने से कतरा रही है. वह चाह रही है कि या तो वे बंद फैक्ट्रियों के दरवाजों पर मरखप जाएं या सड़कों पर मरें आत्मनिर्भर हो कर सरकार से बिना कुछ मांगे.

सरकार ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि उस के वश में अब कुछ नहीं क्योंकि 12 मई और उस के बाद 5 दिनों तक जो बयान वित्त मंत्री ने दिए वे आश्वासन नहीं, खोखले भाषण थे. कहने को हर औद्योगिक क्षेत्र निजी सैक्टर के लिए खोल दिया गया है पर उस के लिए तो पूंजी चाहिए जो न बैंकों के पास है, न सरकार के. देश की अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत घट गई, क्योंकि फेफड़े के रोग से जान बचाने के लिए सरकार ने पेट को खाली कर दिया है. देश में भयंकर बेकारी होने वाली है. वेतन आधेतिहाई रह जाएंगे. देशी उद्योग ऐसे में कैसे लग सकते हैं. आत्मनिर्भरता की ओर नहीं, हम लोग आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं.

अपनी ओर से सरकार विदेशियों के लिए लाल गलीचे बिछा रही है कि वे आएं, जहां मरजी जितनी मरजी जमीनें खरीदें, बिना अनुमति के जो चाहे काम शुरू करें. क्या इसे आत्मनिर्भरता कहा जाता है? यह तो परनिर्भरता का पक्का सुबूत है. देश का युवा, जो घटिया पढ़ाई, घटती नौकरियों से परेशान था, अब और अधर में लटकता रहेगा. उसे कोविड की मार उन वृद्धों से ज्यादा पड़ेगी जिन्हें बचाने की सलाह हर रोज दी जा रही है. कोविड और सरकार मिल कर युवाओं के 20 साल खा जाएंगे. उन की जवानी, कैरियर, प्रेम, विवाह, बच्चे सब कुरबान हो सकते हैं.

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युवाओं के लिए अगले कुछ वर्ष काफी तनाव के हो सकते हैं. मोदी सरकार वादे बड़ेबड़े करेगी पर देगी चुल्लूभर. जो वादों पर भरोसा करेंगे वे डिप्रैशन तक में जा सकते हैं. सरकार ने कहा है कि वह 20 लाख करोड़ रुपए का स्टीमुलस दे रही है पर, हवन करने या मंदिर में रखे दानपात्र में डालने की जो परंपराएं डाली गई हैं उसी तर्ज पर यह अनुदान है, इस से ज्यादा नहीं. युवाओं को न नौकरियां मिलने वाली हैं, न आजादी. उन्हें बस हिंदूमुसलिम विवाद और फाइव ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के वादों व नारों से काम चलाना पड़ेगा. सो, तैयारी कर लें. अगले कुछ महीने नहीं, कुछ साल ऐसा ही चल सकता है.

वैसे, देश आत्मनिर्भर बने या नहीं, हर युवा को अब अपने पैरों पर खड़े हो कर जीना सीखना होगा क्योंकि मांबाप के पास पैसे ही नहीं बचे हैं. अब हर तरह का काम करने को तैयार रहना होगा जैसे उन के दादापरदादाओं ने किया था. अब मौल कल्चर और एमएनसी की नौकरी के सपने टूटते नजर आ रहे हैं.

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युवा शादियों पर कोरोना इफैक्ट
के बाद युवाओं को शादी के बारे में सोच भी चेंज करनी होगी. अब हो सकता है कि पुराने तरीके यानी ‘एक बार देखा, हां की और शादी कर ली’ के फार्मूले पर लौटना होगा. क्यों भई? शादी का कोरोना से क्या लेनादेना? यह जवाब देना आसान है. अब महीनों तक ठसाठस भरे कौफीहाउस, रैस्तरां, ढाबे नहीं दिखेंगे. सिनेमाहौल नहीं होंगे. शहर से बाहर के लड़केलड़कियों के झुंड घूमते नजर नहीं आएंगे.

युवाओं से घरों में रहने को कहा जाएगा. बहुत सी पढ़ाई औनलाइन होगी. वैसी भी, जब नौकरियां ही कम होंगी तो पढ़ने की जल्दबाजी किसे होगी. जेब में पैसा नहीं होगा तो कौफी की चुस्कियां कहां होंगी. अब तो साथ पढ़ने वाले से मुफ्त का सैक्स भी नहीं मिलेगा. शादी की तड़प बढ़ेगी और मातापिता के जुटाए रिश्तों को ही सिरआंखों पर रखना होगा.

प्रेमीप्रेमिका हों या मंगेतर, अब प्रेमालाप सिर्फ औनलाइन, फोन, टिकटौक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप पर होगा और वह भी दस लोगों के बीच. प्राइवेसी कम होगी, क्योंकि बाहर बैंचों पर छिपना आसान नहीं होगा.

घर वालों द्वारा लाए रिश्ते या बिलकुल आसपड़ोस के ही रिश्ते अब बचेंगे जहां ज्यादा मीनमेख न हो, ज्यादा ब्रेकअप न हों. कोरोना का खूंखार दौर कभी भी फिर उभर सकता है, इसलिए मायका और ससुराल एक ही शहरकसबे में होगा तो सब से ज्यादा सुरक्षित होगा. चेतन भगत के टू स्टेट्स वाले मामले जैसा प्रेम हो जाए तो बड़ी बात नहीं, क्योंकि लोग दूसरे राज्यों में जाने में हिचकिचाएंगे. ट्रेन और प्लेन में दूरी बनाए रखने के लिए टिकट वैसे भी महंगे हो जाएंगे.

यह कोई भयावह स्थिति नहीं है. प्रेम की खातिर एकदूसरे को पटाने, पुचकारने, प्रेम के इजहार करने में जो समय लगता था, वह बचेगा. जो मिल जाए उस से शादी कर लो, किस्सा खत्म. फिर काम पर चलो, चाहे वर्क फ्रौम होम हो या किसी सुनसान से दफ्तर में दूरदूर रह कर, बारबार हाथ धो कर.

गर्मियों में एलर्जी से कैसे बचे ?

गर्मियों की दस्तक ही लोगो को परेशानियो का सामना करने पर मजबूर कर देतीहै।क्योंकि गर्मी तो आती ही है,लेकिन कई रोगों को भी अपने साथ लाती है। गर्मियों में एलर्जी, डायरिया और घबराहट होना जैसी बीमारिया आम बात हो जाती है। गर्मियों में धूप की तपिश ,पसीना,उमस  आदि से होने वाली एलर्जी काफीपरेशान करती है . डाक्टरों का कहना है कि यह आम बातहै, इसे इतनी बडी परेशानी समझ कर परेशान न हों. परंतु ध्यान अवश्य रखें, लापरवाही न करें. साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। खास तौर पर जिन्हें बाहर धूप में अधिक समय तक काम करना पड़ता है, उन्हें कई तरह की एलर्जी का सामना करना पड़ सकता है. जैसेआंख में पानी आना,जलन महसूस करना ,आंख का लालहोजाना, (कंजक्टिवाइटिसभीहो सकताहै)जुकाम होना ,डायरियाहोनायेभी एक आम तरह की गर्मियों में होने वाली एलर्जी है.  जो बाहर खाने पीने से तो होती ही है, अधिक गर्मी के कारण कभी-कभीघर के खाने से भी बदहजमी हो सकती है . बाहर रह  कर  घर की तरह साफ खाना पीना नहीं हो पाता है। गर्मियों में लोग अक्सर तरावट के लिए  बाहर गन्ने का रस पीते है, जो तमाम मख्कियों से घिरा होता है। मक्खियों की वजह से हानिकारक (इन्फेक्शन) हो जाता है जिसकी वजह से डायरिया भी हो सकता है. तो विशेष तौर पर बाहर  खाते- पीते समय साफ सफाई का अवश्य ध्यान रखना होगा. बाहर के खाने में घी, तेल, पीने का पानी पर विशेष ध्यान देना होगा . कारण थोड़ी सी बचत या लापरवाही  के चक्कर में तमाम परेशानियां झेलनी पड़ सकती है.

 शरीर के विभिन्न अंगों को कैसे बचाये एलर्जी से 

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* आंखों को एलर्जी से कैसे बचाए :धूप में अधिक समय तक रहने से आपके सर में दर्द हो सकता है, इसलिए  आंखों पर काला चश्मा लगा कर रखें ,जिससे बाहर लू चलने पर धूल मिट्टी,पसीने का सीधा असर आंखों पर न पड़े. वरना इन्हीं कारणों से आंख में एलर्जी हो सकती है.

गर्मियों में सदा अपने आँखों मे गुलाब जल का प्रयोग करे, जिससे आँखों को गर्मी से राहत मिलेगी .कही बहार से आने के बाद आँखों को साफ़ पानी से धोएं.

* नाम को  एलर्जी से कैसे बचे :-  नाक में एलर्जी हो गई है या छींकें आ रही हैं तो अदरक, लौंग, दालचीनी मिलाकर काढ़ा बना लें और इसे पी लें। ऐसा दिन में कम से दो बार करें फायदा मिलेगा. तुलसी, अदरक, लौंग, कालीमिर्च आदि मिलाकर बनाई गई चाय पीने से भी आराम मिलता है.

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* स्किन की एलर्जी से कैसे बचाए :-   त्वचा पर हल्का गर्म नारियल तेल लगाएं और रातभर लगा रहने दें. नारियल तेल भी एंटी बैक्टीरियल होता है, ऐसा करने से आपको स्किन एलर्जी से राहत मिलेगी. जब भी आपको त्वचा पर कोई एलर्जी महसूस हो, तो आप ठंडे पानी से नहा लिजीए। इससे भी आपको राहत महसूस होगी. एलर्जी वाली जगह पर रूई से नींबू का रस लगाएं, कुछ देर के लिए इसे ऐसे ही रहने दें, फिर धो लें.

 

 

इन बातों का विशेष ध्यान रखें

 

-जिन चीजों से एलर्जी हो उससे बचाव करें.

-जिन खाद्य पदार्थों से एलर्जी है उन्हें न खाएं.

-एकदम गरम से ठंडे और ठंडे से गरम वातावरण में ना जाएं.

– घर के आस-पास गंदगी ना होने दें.

-घर में अधिक से अधिक खुली और ताजा हवा आने दें.

रहें.

-जानवरों से दूर रहें.

– मांस हारी खाने के सेवन से बचे .

-घर में मकड़ी का जाला न लगने दें.

-धूल-मिट्टी से बचें.

-फेस पर मास्क का उपयोग करें.

Hyundai #AllRoundAura: हर तरह से शानदार है Interior

एक अच्छी डिजाइन वाली कार तभी पूरी होती है, जब उसका इंटिरियर भी उसके बाहर के लुक जितना ही आकर्षक हो. हुंडई Aura इस मामले में बिलकुल खड़ी उतरती है. इसका इंटिरियर भी इसके एक्सटिरियर जितना ही शानदार और आकर्षक है. गाड़ी में अंदर जाते ही इसका 20.25 सेमी का इंफोटेनमेंट आपका ध्यान आकर्षित करता है. यही इंफोटेनमेंट सिस्टम आपकी Aura के ऑडियो से लेकर उसके सैटेलाइट नेविगेशन तक हर चीज को आपकी नजरों के सामने दिखाता है. इसका मल्टी-फंक्शन स्टीयरिंग व्हील से आप इसके सभी जरूरी फंक्शन को आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं, वो भी बिना हैंडल से हाथ हाटाए.

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हुंडई औरा का इंटीरियर बेहद फंक्शनल है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह स्टाइलिश नहीं दिखता.

बस एक नजर तस्वीर पर डालें और आप देख पाएंगे कि एसी वेंट्स से लेकर सीट फैब्रिक तक, Aura के अंदर सब कुछ जानबूझकर ऐसा चुना गया है, जो इसके इंटीरियर को खास बनाता है #AllRoundAura.

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