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रोजगार चाहिए, मंदिर-मस्जिद नहीं

राहुल एक ऐंड्रौयड डैवलपर है और अमेरिका की एक कंपनी में काम करता है. कंपनी का हैड औफिस सान फ्रांसिस्को में है. उस का 3-4 बार वहां चक्कर लगता ही था, क्योंकि वह उन के अच्छे कर्मचारियों में से एक था.

बैंगलुरू में भी इस कंपनी का ब्रांच औफिस है. 4 मार्च को ही वह वहां से भारत लौटा था. 1 अप्रैल को कंपनी के सीईओ की मेल आई कि उस की टीम के सारे लोगों को जो अमेरिका में हैं, नौकरी से निकाल दिया गया है. वजह कोरोना के इस संकटग्रस्त समय में मंदी थी. अब राहुल परेशान है, क्योंकि उसे नहीं पता कि उसे भी कब नौकरी से हाथ धोना पड़े.

कोरोना वायरस महामारी के बीच लागू लौकडाउन का असर हर क्षेत्र में पड़ा है, जिस की वजह बेरोजगारी की समस्या और उस से जुड़ी आर्थिक मंदी ने युवाओं के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. उन के पास योग्यता है, अनुभव है पर नौकरी नहीं.

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प्राइवेट संस्थानों से महंगी शिक्षा प्राप्त करने के पीछे युवाओं का उद्देश्य केवल मोटे वेतन वाली नौकरियां पाना होता है, जि सके लिए वे कर्ज लेते हैं. लेकिन लौकडाउन के बाद परिस्थितियां ही बदल गईं. वे घर बैठे हैं और कर्ज चुकाना तो दूर, उस पर लगने वाला ब्याज देना भी भारी हो गया है.

बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े

कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामले किस ऊंचाई पर पहुंच कर कम होंगे, फिलहाल इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन लौकडाउन ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है, यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है.

नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बेहद भयावह हैं. रोजगार के मोरचे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रूस की आबादी जितनी हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक लौकडाउन से पहले लगभग 3.4 करोड़ लोग बेरोजगार थे, लौकडाउन के बाद नौकरी गंवाने वाले लगभग 12 करोड़ लोगों में इस संख्या को जोड़ दें तो आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंच जाता है. लेकिन इन युवाओं का आंकड़ा अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, जो पढ़ाई करने के बाद नौकरी पाने की लालसा पाले थे मगर उस से पहले ही लौकडाउन हो गया और देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई.

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उधर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि देश में 2.70 करोड़ युवा जिन की उम्र 20 से 30 साल के बीच है, वे अप्रैल महीने में बेरोजगार हो गए हैं.

बड़े शहरों में तो लौकडाउन के कारण कई कंपनियों के दफ्तर तक बंद हो गए या फिर वहां वर्क फ्रौम होम का नियम अपनाया जा रहा है.

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई) के एक आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 24% दर्ज की गई जबकि यह मार्च में 8.74% थी.

3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 27% थी.

आंकड़े बताते हैं कि देश में फिलहाल 11 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं. सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे के डाटा के मुताबिक नौकरियां गंवाने वाले लोगों में 20 से 24 साल की उम्र के युवाओं की संख्या 11% है. सीएमआईई के मुताबिक 2019-20 में देश में कुल 3.42 करोड़ युवा काम कर रहे थे जो अप्रैल में केवल 2.9 करोड़ रह गए.

इसी तरह से 25 से 29 साल की उम्र वाले 1.4 करोड़ लोगों की नौकरियां  चली गईं. 2019-20 में इस वर्ग के पास कुल रोजगार का 11.1%

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हिस्सा था लेकिन नौकरी जाने का प्रतिशत 11.5% रहा. अप्रैल में 3.3 करोड़ पुरुष और महिलाओं की नौकरियां चली गईं. इस में से 86% नौकरियां पुरुषों की गईं.

एक खबर के मुताबिक, बेरोजगारी दर भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल रही है. अप्रैल के महीने में अमेरिका में करीब 1 करोड़ लोग बेरोजगार हुए. पढ़ाई पूरी कर निकले युवा तो नौकरी पाने की बात सोच भी नहीं रहे हैं.

महंगी पढ़ाई और ऊंचे सपने

लेकिन यह तो उन युवाओं की बात है जो नौकरी कर रहे थे और लौकडाउन के कारण जिन की नौकरियां चली गईं, पर उन का क्या जिन्होंने अच्छे प्राइवेट कालेजों से पढ़ाई करने के लिए ऊंची रकम इस आशा से चुकाई थी कि वहां से निकलते ही उन्हें मोटी सैलरी वाली नौकरियां मिल जाएंगी.

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों में कई ऐसे सैक्टर में नौकरी पाने के लिए डिप्लोमा कोर्स कराने वाली संस्थाएं मौजूद हैं, जो 1 साल से ले कर 2 साल तक का कोर्स करा कर नौकरी देने का औफर करती हैं.

एमबीए, इंजीनियरिंग और कानून की महंगी पढ़ाई जहां एक तरफ ऊंचे सपने दिखाती हैं, वहीं लोन भी इसी उम्मीद से लिया जाता है कि नौकरी मिलने के बाद उसे चुकाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन उन की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब नौकरी मिलने के बजाए अचानक लौकडाउन हो जाने से वे बेरोजगारों की कतार में आ खड़े हुए और लोन पर चढ़ने वाले ब्याज को चुकाने की चिंता उन पर सवार हो गई.

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अपनी महंगी पढ़ाई उन्हें आज चुभ रही है और कहीं न कहीं उन्हें लग रहा है कि अशिक्षित होते तो कम से कम उन्हें सरकार या गैरसरकारी संगठनों से आर्थिक मदद तो मिल ही जाती.

नौकरी जाना न केवल युवाओं के लिए इस समय चिंता की बात है, बल्कि नई नौकरी तलाशना भी चुनौतीभरा काम है.

भारत में इस साल मार्च में नौकरियों  पर रखने के आंकड़ों में 18% की गिरावट आई है.

नौकरी डौट कौम के मुताबिक ट्रैवल, ऐविएशन, रिटैल और हौस्पिटैलिटी सैक्टर्स में नौकरियों पर रखने के मामलों में सब से ज्यादा 56% की गिरावट दर्ज की गई है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का जायजा लेने वाली ऐजेंसी सीएमआईई की भी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च, 2020 में भारत में बेरोजगारी दर 8.7% रही, जोकि पिछले 43 महीनों में सब से अधिक है और इस समय भारत में बेरोजगारी की दर 23% फीसदी से ऊपर पहुंच गई है.

कहां से जुटाएं धन

जयपुर में रहने वाले मयंक ने कानून की पढ़ाई करने के लिए बैंक से करीब ₹5 लाख का ऐजुकेशन लोन लिया. अच्छे अंकों से पास हो कर वह इस क्षेत्र में कदम रखने ही वाला था कि लौकडाउन हो गया और उसे घर पर ही बैठना पड़ा. अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह बैंक का कर्ज कैसे चुकाएगा, क्योंकि निकट भविष्य में लौकडाउन के खुलने के बाद भी तुरंत नौकरी मिल पाना उसे सपना ही लग रहा है. वह कोई भी काम करने को तैयार है, जिस से कुछ तो कमाई हो सके.

दिल्ली की दीपा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जब कर्ज लिया था तो उसे यकीन था कि वह नौकरी मिलते ही उसे चुकाना शुरू कर देगी. लेकिन आज वह घर में बैठी है. निराशा उस पर हावी है और अगर यही हाल रहा तो मां के गहने बेच कर उसे कर्ज चुकाना पड़ेगा.

बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले अश्विनी कुमार ने पंजाब नैशनल बैंक से करीब ₹10 लाख का लोन ले कर जयपुर के एक निजी संस्थाआन से एमबीए किया। उस ने सोचा था कि दिल्ली में अपने कैरियर की शुरुआत करेगा और मोटा वेतन ले कर सारे सपने पूरे करेगा. उस के पिता के खेत हैं. वह नहीं जानता कि आज के हालातों में उसे कब नौकरी मिलेगी और वह कैसे कर्ज चुकाएगा.

यह अजीब विडंबना है कि उच्च शिक्षित प्राप्त युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. एक तरफ तो उन के पास कमाई का कोई साधन नहीं है, दूसरी तरफ पढ़ाई के लिए लिया लोन भी उसे चुकाना ही है. बड़ीबड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी पाने का सपना तो चूरचूर हो ही चुका है, उस पर उन के पास करने को कोई काम नहीं है, क्योंकि सारे ही क्षेत्रों के हालात बुरे हैं और व्यापार से ले कर हर काम ठप्प हो चुके हैं.

सरकार लोन चुकाने के लिए बेशक कुछ मुहलत दे रही है, पर वह स्थाई समाधान नहीं है, क्योंकि नौकरी तो जरूरी है. शिक्षित युवा हताश है क्योंकि उन की डिग्रियां आज रद्दी हो गई हैं.

देश में तकनीकी शिक्षा में 70% हिस्सेदारी इंजीनि‌यरिंग कालेजों की है. बाकी 30% में एमबीए, फार्मा, आर्किटैक्चर जैसे सारे कोर्स आते हैं.

इंजीनियरिंग और एमबीए का क्रेज हमेशा से युवाओं में रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अच्छी नौकरी और बेहतर भविष्य की गारंटी यही दे सकते हैं. फिर चाहे पढ़ाई पूरी करने के लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े.

महंगी शिक्षा के कारण लोन लेना भी एक फैशन ही है. कर्ज लो और अपनी कमाई से उसे चुकाते रहो, ताकि मातापिता पर बोझ न पड़े.

अवसाद घेर रहा है

उच्च शिक्षित पीढ़ी के सामने इस समय अगर एक तरफ बेरोजगारी सिर उठाए खड़ी है तो दूसरी ओर कर्ज चुकाने की समस्या इन्हें आत्महत्या व अवसाद की ओर धकेल रही है.

गौरव ने तकरीबन 6 महीने पहले अपनी इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. ₹10 लाख कर्ज लिया इस उम्मीद से कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इंडस्ट्रियल औटोमेशन में कैरियर बना लेगा, लेकिन उस का वह सपना पूरा नहीं हुआ तो उस ने एक दुकान में मिक्सर, पंखे जैसी घरेलू चीजों को सुधारने का काम करने की नौकरी कर ली, जो इस समय बंद पड़ी है. जो लोन लिया था, उसे चुकाना तो उस ने शुरू नहीं किया है और पता भी नहीं कि वह इसे चुका भी पाएगा या नहीं.

इस समय हजारों ऐसे युवा हैं जो महंगी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरियों के लिए दरदर भटक रहे हैं.

सिविल इंजीनियरिंग से ले कर कंप्यूटर कोडिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को न केवल नौकरी की चिंता है, बल्कि लोन चुकाना भी किसी मानसिक तनाव से कम नहीं है. यह चिंता उन्हें किस ओर ले जाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर यह तो तय है कि इस कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ मंदी का दौर दोबारा लौट आया है, वरन तनाव, अवसाद, आशंका और भय भी हर चेहरे पर साफ दिख रहा है.

मगर इस कठिन समय में सरकार से उम्मीद पालना बेकार है क्योंकि उन्हें बेरोजगारों को रोजगार देने से अधिक मंदिर बनवाने की चिंता है. धर्मकर्म में उलझी सरकार से लगता नहीं कि उन्हें बेरोजगारों की फिक्र होगी.

क्या चीन तीसरे विश्व युद्ध के संकेत दे रहा है?

इन पंक्तियों के लिखे जाने के कुछ घंटे पहले सैटेलाइट तस्वीरों के जरिये पता चला है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर में एलएससी (लाइन आॅफ एक्चुअल कंट्रोल) के पास करीब 20,000 सैनिक तैनात कर दिये हैं. यही नहीं उसने लद्दाख सीमा से सटे अपने जिनसियांग प्रांत में भी 10 से 12 हजार सैनिकों की तैनाती की है. हिंदुस्तान की उसके इस मूवमेंट पर लगातार निगाह है और सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया चीनी मूवमेंट से भविष्य की कुछ खतरनाक इबारतें पढ़ रही है. इसी के मद्देनजर भारतीय सेना ने भी अपनी जबरदस्त तैयारी में लगी हुई है. भारत की तरफ से भी पूर्वी लद्दाख सीमा के समीप दो डिवीजन सेना तैनात कर दी गई है.

भारत ने पूर्वी लद्दाख सीमा के निकट टैंक और बीएमपी-2 (बोयेवाय मशीना पेखोटी-इंफैंट्री कंबाट व्हीकल – विशेष रशियन इंफैंट्री युद्धक वाहन) भी वायु सेना द्वारा वहां पहुंचा दिये गये हैं. भारत की तरफ से त्रिशूल इंफैंट्री डिवीजन यहां तैनात की गई है. इसके अलावा हिंदुस्तान की तरफ से सीमा के नजदीक तीन और बिग्रेड की तैनाती की गई है. अगर सूत्रों की मानें तो गलवान वैली से लेकर काराकोरम दर्रे तक चीन की बढ़ती हरकतों पर भारतीय सेना पल-पल पर नजर बनाये हुए है, इसे सैटेलाइट के साथ तमाम आधुनिक उपकरणों के जरिये भी माॅनिटर किया जा रहा है. सवाल है इस सबके पीछे सिद्धांत रूप से चीन का इरादा क्या है? क्या चीन तीसरे विश्व युद्ध की भूमिका रच रहा है?

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गौरतलब है कि चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब सत्ता में आये थे, तो उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और इसके सदस्यगणों से वायदा किया था कि वह चीन के प्राचीन गौरव को पुनःस्थापित करेंगे और उसे ‘ज्ञान व शक्ति से अजय राष्ट्र’ बना देंगे. दरअसल यही वह ‘चाइना ड्रीम’ है जिसकी हाल के सालों में कई बार गुपचुप तरीके से चीनी सैन्य कमांडरों ने, चीन के बुद्धिजीवियों ने और चीन के फिल्मकारों ने चर्चा की थी. इस चाइना ड्रीम के सबसे बड़े रचनाकार शी जिनपिंग हैं. इसीलिए उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ने आजीवन या लंबे समय तक के लिए सत्ता सौंप दी है. अपने इसी चाइना ड्रीम को ताकतवर संदेश में बदलने के लिए राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद शी जिनपिंग उस युद्धपोत की यात्रा पर गये थे, जो दक्षिण चाइना सी में सैन्य निर्माण के जरिये अपना नियंत्रण स्थापित करने में शामिल था. संक्षेप में बात ये है कि अब तक के अपने कार्यकाल में ने चाइन ड्रीम को कई तरीके से साकार करने की कोशिश में लगे हुए हैं. शी ने ग्लोबल टेक्नोलॉजी पर कब्जा करने के ‘चाइना 2025’ प्रोग्राम से लेकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जो योजनाएं बनायी हैं,उनका एकमात्र उद्देश्य चाइना ड्रीम को साकार करने के लिए सुनियोजित बुनियाद रखने का रहा है.

अपने इस ड्रीम को हासिल करने के लिए चीन ने ‘कैरट एंड स्टिक’ नीति अपनायी हुई है. नेपाल, पाकिस्तान, म्यंमार व श्रीलंका को इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के नाम पर वह अपने पाले में किये हुए है, भूटान डर कर उसके ‘साथ’ है, जिसका नतीजा यह है कि आज भारत के पड़ोसियों में सिर्फ बांग्लादेश व मालद्वीप ही चीन के ‘कब्जे’ में नहीं हैं. भारत को अपना पिछलग्गू बनाने के लिए उसने व्यापर व आरआईसी (रूस-इंडिया-चीन) ग्रुप का सपना बेचा यह मकसद बताते हुए कि ग्लोबल शासन के नियमों का गठन अकेले अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम को न करने दिया जाये बल्कि ऐसा वैकल्पिक ग्लोबल शासन विकसित किया जाये जिसका नेतृत्व एशिया के पास हो.

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फलस्वरूप पश्चिमी नजरिए ‘ग्लोबल नियम आधारित व्यवस्था’ के मुकाबले में ‘साझा भाग्य का समुदाय’ दृष्टिकोण देने का प्रयास किया गया, जिसके तहत आरआईसी ग्रुप अपने विविध ऐतिहासिक अनुभव व मूल्यों के बल पर एक ऐसा वैकल्पिक दृष्टिकोण विकसित करे जो ग्लोबल शासन के पश्चिम आदर्श से टकराए बिना प्रगति का मार्ग प्रशस्त करे. जिनपिंग ने अपने ‘साझा भाग्य का समुदाय’ सपने को भारत को बेचने के लिए साबरमती नदी के किनारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ झूला झूला, चीनी झील के किनारे चहलकदमी की और द्विपक्षीय समझौतों के जरिये ‘वुहान स्पिरिट’ को बनाये रखने के वायदे किये. जिसका नतीजा यह हुआ कि नई दिल्ली में भी ‘विश्व गुरु’ बनने और 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था हासिल करने के सपने देखे जाने लगे.

लेकिन देर से ही सही, नई दिल्ली को एहसास हो गया कि ‘साझा भाग्य का समुदाय’ वास्तव में सिर्फ ‘चीन का भाग्य’ या चाइना ड्रीम साकार करने का प्रयास है,जिसके असंतुलित व्यापार में भारत की भूमिका पिछलग्गू से अधिक की न होगी, इसलिए उसने बीआरआई में शामिल न होकर बीजिंग को यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि वह पिछलग्गू की भूमिका स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. नई दिल्ली ने अमेरिका से सैन्य सहयोग भी किया और क्वैड में शामिल होने का प्रयास भी. चीन को भी एहसास होने लगा कि उसकी ‘सभ्यताओं की बराबरी’ की मीठी मीठी बातें और व्यापार व सहयोग के समझौते भी भारत को पश्चिम की बांहों में जाने से रोक नहीं पा रहे हैं.

बीजिंग के लिए इस ‘विद्रोह’ को कुचलना जरूरी था, खासकर इसलिए कि चाइना ड्रीम के चलते चीन में यह कहानियां आम कर दी गई हैं कि प्राचीन समय में जब विश्व ने चीन की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया था तो हर देश अपनी औकात व स्थान को समझता था. इसलिए सम्राट को कभी कभार ही विद्रोही को ‘सबक सिखाने’ के लिए बाहर निकलना पड़ता था ताकि शांति बनी रहे, तो इस समय जो वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) पर लद्दाख, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश के पास चीन से भारत का सैन्य टकराव चल रहा है,वह हिमालय के चंद वर्ग किमी बेजान पत्थरों पर कब्जा करने को लेकर नहीं है बल्कि बीजिंग का विशाल सामरिक उद्देश्य है- भारत अपनी शक्ति की सीमाओं को स्वीकार करे और चीन का पिछलग्गू बन जाये.

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ड्रैगन ‘विद्रोही’ को ‘सबक सिखाने’ के लिए निकला है. गौरतलब है कि 1979 में चीन ने इन्हीं कारणों के चलते वियतनाम में ‘सबक सिखाने’ के लिए प्रवेश किया था, मगर उसे मुंह की खानी पड़ी थी. ड्रैगन के मंसूबे भारत में भी कामयाब नहीं होंगे. लेकिन लगता यह है कि इस बार अगर तोपों ने आग उगली तो झगड़ा केवल गलवान घाटी तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि विश्व युद्ध में तब्दील हो जायेगा क्योंकि ड्रैगन पर गुस्सा सिर्फ भारत को ही नहीं है बल्कि संसार के अधिकतर देशों को है, हां, कारण अलग अलग हो सकते हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया को चीन से कोविड-19 महामारी फैलाने के लिए नाराजगी है और दस देशों के समूह एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स इस बात को लेकर नाराज हैं कि चीन साउथ चाइना सी में समुद्री नियमों का उल्लंघन करते हुए अपना अवैध कब्जा बढ़ा रहा है.

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एहसास बीजिंग को भी है कि विभिन्न देश उसके विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं, इसलिए उसने अपने सैन्य रिजर्व बलों को एक केन्द्रीय कमांड के तहत करते हुए विश्वस्तरीय सेना विकसित करने का काम शुरू कर दिया है. कहने की बात यह है कि अगर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो एक बार फिर विश्व युद्ध की परिस्थितियां पैदा हो गई हैं. जिन्हें साकार रूप लेने से रोक पाना बहुत मुश्किल होगा.

गौधन न्याय योजना के तहत छत्तीसगढ़ सरकार खरीदेगी गाय का गोबर

भैंस के गोबर से ज्यादा गाय का गोबर भले ही बड़े ही काम का है, पर बहुत से पशुपालक गोबर के उपले बनाने से ज्यादा अहमियत नहीं देते. इसी के मद्देनजर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है.

जी हां, ऐसा पहली बार हो रहा है, जब छत्तीसगढ़ सरकार गाय के गोबर को खरीदेगी और वह भी तय कीमत के हिसाब से.

इस बात को ले कर पशुपालकों और किसानों में उत्साह है. उम्मीद है कि यह योजना 21 जुलाई, 2020 यानी हरेली त्योहार के दिन ही शुरू हो जाए.

छत्तीसगढ़ सरकार का यह फैसला एक तरफ जहां सड़कों पर आवारा घूमने वाले पशुओं की रोकथाम करेगा, वहीं इस गोबर से बनने वाली खाद से राज्य में जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, पशुपालकों को भी लाभ होगा और गांवों में रोजगार और अतिरिक्त आय के मौके भी बढ़ेंगे.

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राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि सरकार के इस फैसले से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.

जी हां, यह सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार गौधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी को अमलीजामा पहनाने में लगी है. इस योजना के तहत सरकार ने गोबर खरीदी के दाम भी तय कर दिए हैं. यह खरीदी डेढ़ रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से तय की गई है.

वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पशुओं के रखने के काम को व्यावसायिक रूप से फायदेमंद बनाने, सड़कों पर आवारा पशुओं की समस्या से निबटने और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से यह योजना काफी महत्वपूर्ण है.

पिछले दिनों मंत्रिमंडलीय उपसमिति की बैठक हुई. इस बैठक में वन मंत्री मोहम्मद अकबर, सहकारिता मंत्री डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन मंत्री डा. शिवकुमार डहरिया शामिल हुए. यह बैठक बीज भवन, रायपुर में आयोजित हुई.

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छत्तीसगढ़ राज्य में गाय के संरक्षण व सवंर्धन, वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन को बढ़ावा देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के मकसद से यह योजना तैयार की गई.

गौधन न्याय योजना के तहत शासन द्वारा निर्धारित दरों पर किसानों और पशुपालकों से गोबर की खरीदी की जाएगी. इस के जरीए बडे़ पैमाने पर वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जाएगी.

कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा कि गौठान समिति अथवा उस के द्वारा नामित समूह द्वारा घरघर जा कर गोबर को इकट्ठा यानी गोबर संग्रहण किया जाएगा. इस के लिए खरीदी कार्ड की भी व्यवस्था सुनिश्चित करने की बात कही गई है, ताकि रोजाना संग्रहित किए जाने वाले गोबर की मात्रा और भुगतान की राशि का उल्लेख कार्ड में किया जा सके.
साथ ही, समिति ने किसानों और पशुपालकों से खरीदी किए गए गोबर के एवज में पाक्षिक भुगतान किए जाने की भी अनुशंसा की.

छत्तीसगढ़ की सरकार गोबर खरीद कर किसानों के साथसाथ वन विभाग और उद्यानिकी विभाग को देगी, ताकि इस गोबर से जैविक खाद तैयार कर किसानों को मुहैया कराई जाए. इस के लिए राज्य में तकरीबन 2,200 गौठान, जहां पशुओं को रखा जा सके, बनाए जा चुके हैं. वहीं, 2800 गौठानों के बनाए जाने का अनुमान है.

गौठानों में पशुओं की संख्या और गौठान के रकबे को ध्यान में रखते हुए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए कम से कम 10 पक्के टांके बनाए जाने के निर्देश दिए.

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समिति ने गोबर संग्रहण का दायित्व गौठान समिति अथवा महिला स्वसहायता समूह को देने की बात कही.

बैठक में कृषि उत्पादन आयुक्त डा. एम. गीता ने गौधन न्याय योजना के तहत गोबर के संग्रहण से ले कर वर्मी कंपोस्ट तैयार किए जाने के संबंध में गौठान समितियों व स्वसहायता समूहों को प्रशिक्षण दिए जाने की बात कही. वहीं शहरी इलाकों में भी गोबर की खरीदी नगरीय प्रशासन विभाग और वन क्षेत्रों में वन प्रबंधन समितियों द्वारा की जाएगी.

मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने गौठानों के प्रबंधन, पशुधन के लिए चारे की व्यवस्था, शहरी इलाकों में गौठानों के बनाने के संबंध में भी अधिकारियों को जरूरी कार्यवाही के निर्देश दिए.

कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा कि वर्मी कंपोस्ट की आवश्यकता किसानों के साथसाथ उद्यानिकी, वन विभाग को बड़े पैमाने पर होती है. ऐसे में गोबर से तैयार वर्मी कंपोस्ट की खपत और उस की मार्केटिंग की चिंता सरकार को नहीं है.

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उन का यह भी कहना है कि गौठानों में पहले से ही गोबर से कंपोस्ट बनाया जा रहा है. यहां बनने वाले वर्मी कंपोस्ट को प्राथमिकता के आधार पर उसी गांव के किसानों को निर्धारित मूल्य पर दिया जाएगा.

भले ही छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू की गई गौधन न्याय योजना को अमलीजामा पहना कर गोबर खरीदने की पहल को सराहा जा रहा हो, पर यह योजना कितनी कारगर होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.
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Crime Story: फौजी की रंगीली बीवी

दीपक पट्टनदार मिलिट्री में थे. साल में 1-2 महीने की छुट्टी पर ही आ पाते थे. इसी वजह से उन की पत्नी अंजलि ने अपने कार ड्राइवर प्रशांत पाटिल से संबंध बना लिए. इतना ही नहीं, बल्कि उन के छुट्टी पर आने पर…  कर्नाटक के जिला बेलगांव के कस्बा होन्निहाल की रहने वाली अंजलि पट्टनदार का पति दीपक पट्टनदार

जब 4-5 दिनों तक घर नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता सताने लगी. उन्होंने अंजलि पट्टनदार से दीपक के बारे में पूछताछ की. क्योंकि उस दिन दीपक पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के साथ अपनी टाटा इंडिका कार से बाहर गया था.

पूछने पर अंजलि ने बताया कि 28 जनवरी को जब वह गोडचिनमलकी से पिकनिक से लौट रही थी तो रात करीब साढ़े 9 बजे दीपक ने एक जगह कार रुकवाई और यह कहते हुए कार से नीचे उतर गए तुम कि तुम लोग घर जाओ, मुझे बेलगांव में कुछ जरूरी काम है, वह जल्दी ही घर आ जाऊंगा.

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ससुराल वालों को अंजलि की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि दीपक को अगर कोई काम होता तो निपटा कर अब तक घर आ गया होता. उस का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उन्होंने अंजलि से कहा कि वह दीपक के बारे में सही जानकारी दे. ससुराल वालों के दबाव को देखते हुए अंजलि मरिहाल पुलिस थाने पहुंच गई और अपने पति दीपक पट्टनदार की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

अपनी शिकायत में अंजलि ने वहां के ड्यूटी अफसर को वही बात बताई, जो उस ने ससुराल वालों को बताई थी. उस ने कहा, ‘‘उस दिन से आज तक मेरे फौजी पति घर नहीं  लौटे. ऐसे में मैं ससुराल वालों और परिवार को क्या बताऊं. सब लोग उन के न लौटने का जिम्मेदार मुझे मान रहे हैं.’’ कहते हुए अंजलि सिसकसिसक कर रोने लगी.

बहरहाल, ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने अंजलि को सांत्वना देते हुए उस के पति दीपक की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दीपक का हुलिया और फोटो भी ले लिए और अंजलि को घर भेज दिया. पुलिस ने उसे भरोसा दिया. कि पुलिस जल्द ही दीपक पट्टनदार को ढूंढ निकालेगी.

जबकि पुलिस यह बात अच्छी तरह जानती थी कि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी पुलिस को अपना दायित्व तो निभाना ही था. मामले की गंभीरता को देखते हुए ड्यूटी अफसर ने फौजी दीपक पट्टनदार के लापता होने की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. थाना पुलिस ने लापता दीपक पट्टनदार की खोजबीन शुरू कर दी. दीपक का हुलिया और फोटो जिले के सभी पुलिस थानों को भेज दिए गए. यह 4 फरवरी, 2020 की बात थी.

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एक तरफ जहां पुलिस दीपक की तलाश में लगी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ दीपक के घर वाले अपनी जानपहचान, नातेरिश्तेदारों और उन के दोस्तों से लगातार संपर्क कर रहे थे. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी दीपक के घर वालों और पुलिस को दीपक का कोई सुराग नहीं मिला.

ऐसी स्थिति में घर वालों का विश्वास डगमगा रहा था. उन्हें यकीन हो गया था कि दीपक के अचानक गायब होने के पीछे कोई गहरा राज है, जिस का रहस्य दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के पेट में छिपा है. इस का संकेत दीपक पट्टनदार के भाई उदय पट्टनदार ने थाने के अधिकारियों को दे दिया था. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

पुलिस अधिकारियों ने दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल को कई बार थाने बुला कर पूछताछ भी की थी, लेकिन उन से दीपक के बारे में कोई सूचना नहीं मिली.

8-10 दिन और निकल जाने के बाद भी जब पुलिस दीपक के बारे में कोई पता नहीं लगा पाई तो उदय पट्टनदार और उस के घर वालों को लगने लगा कि दीपक के साथ कोई अनहोनी हुई है. जब धैर्य जवाब देने लगा तो वे लोग बेलगांव के एसपी लक्ष्मण निमबार्गी से मिले.

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उन लोगों ने कप्तान साहब को सारी कहानी सुनाई. एसपी लक्ष्मण निमबार्गी ने गुमशुदा फौजी दीपक पट्टनदार के घर वालों की बातों को बड़े ध्यान से सुना और थाना मरिहाल के थानाप्रभारी को शीघ्र से शीघ्र फौजी दीपक का पता लगाने के निर्देश दिए.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और आर्मी अफसर की गुमशुदगी से संबंधित था. थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में जांच शुरू कर दी. उन्होंने बिना किसी विलंब के इंसपेक्टर एम.वी. बड़ीगेर, वी.पी. मुकुंद, वी.एस. नाइक, आर.एस. तलेवार आदि के साथ मिल कर जांच की रूपरेखा तैयार की. सब से पहले उन्होंने केस का अध्ययन किया. इस के साथ ही साथ उन्होंने तेजतर्रार मुखबिरों को गुमशुदा दीपक पट्टनदार का सुराग लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिस में उन्हें कामयाबी भी मिली.

मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने दीपक पट्टनदार की पत्नी अंजलि का बैकग्राउंड खंगाला तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं, जिस के बाद अंजलि पर उन का शक गहरा गया.

उन्होंने अंजलि को थाने बुला कर उस से पूछताछ शुरू की तो वह पहले जैसा ही बयान दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. इतना ही नहीं, वह अपनी ससुराल पक्ष के लोगों पर कई तरह के गंभीर आरोप लगा कर उन्हें पुलिस के राडार पर खड़ा करने की कोशिश कर रही थी.

लेकिन इस बार वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई. क्योंकि पुलिस को अंजलि के चालचलन को ले कर कई तरह की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गई. पुलिस ने उस के साथ जब थोड़ी सख्ती बरती तो उस के हौसले पस्त हो गए. अपना गुनाह स्वीकार करते हुए आखिर उस ने पति दीपक पट्टनदार की हत्या की कहानी पुलिस को बता दी.

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थानाप्रभारी के पूछताछ करने पर अंजलि ने पति दीपक की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंका देने वाली थी.35 वर्षीय दीपक पट्टनदार सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस के पिता का नाम चंद्रकांत पट्टनदार था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा एक छोटा भाई उदय पट्टनदार के अलावा एक बहन थी.

दीपक की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी. समाज में प्रतिष्ठा और मानसम्मान था. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने अपनी किस्मत आजमाने के लिए इंडियन आर्मी का रुख किया तो उस का चयन हो गया. पहली पोस्टिंग के बाद जब वह अपने घर आया तो परिवार वालों ने उस की शादी अंजलि के साथ कर दी.

27 वर्षीय अंजलि के पास रूप भी था और यौवन भी. आर्मी जवान को पति के रूप में पा कर अंजलि खूब खुश थी. दीपक भी अंजलि का पूरापूरा ध्यान रखता था. उस की जरूरत की सारी चीजें घर में मौजदू रहती थीं.

इंडियन आर्मी में होने के कारण दीपक को अपने परिवार और पत्नी के साथ रहने के लिए बहुत ही कम समय मिलता था. वह साल में एकदो बार ही महीने 2 महीने के लिए घर आ पाता था. लेकिन इस से अंजलि का मन नहीं भरता था. छुट्टियों का यह समय तो पलक झपकते ही निकल जाता था.

पति दीपक के जाने के बाद अंजलि को फिर वही अकेलापन, तनहाइयां घेर लेती थीं. उस का दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए नागिन बन जाती थी. वह पूरी रात करवटें बदलबदल कर बिताती थी, जिस का फायदा अंजलि के चतुर चालाक ड्राइवर प्रशांत पाटिल ने उठाया.

ड्राइवर प्रशांत पाटिल उसी के गांव का रहने वाला था. अंजलि और प्रशांत पाटिल के बीच की दूरियां जल्द ही दूर हो गईं. अंजलि जब बनसंवर कर कहीं आनेजाने के लिए कार में बैठती थी, प्रशांत उस की सुंदरता और कपड़ों की खूबसूरती का पुल बांध देता था. मन ही मन उस के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती थी. जब वह दीपक पट्टनदार का वह नाम लेता तो अंजलि का मन विचलित हो जाता था.

एक कहावत है कि नारी मन की 2 कमजोरियां होती हैं. वह प्यार और अपनी प्रशंसा की अधिक भूखी होती है. यह बात प्रशांत अच्छी तरह से जानता था. अंजलि कभी प्रशांत पाटिल के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुसकराती तो कभी झेंप जाती थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. एक तरफ जहां दीपक पट्टनदार अंजलि से दूर था, वहीं प्रशांत पाटिल उस के करीब आता जा रहा था. अंजलि का मन आकर्षित करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था. धीरेधीरे अंजलि भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी थी.

एक रात जब अंजलि की बेचैनी बढ़ी तो उस ने प्रशांत पाटिल को फोन कर सुबह ड्यूटी पर जल्दी आने के लिए कहा. सुबह जब प्रशांत पाटिल ड्यूटी पर आया तो अंजलि प्रशांत के मनपसंद कपड़े पहन कर कार में आ बैठी. कार जब घर के कंपाउंड से बाहर निकली तो अंजलि ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा, ‘‘प्रशांत देखो आज, मैं ने तुम्हारी पसंद के कपड़े पहने हैं.’’

‘‘वही तो देख रहा हूं मालकिन, आज किस पर बिजली गिराएंगी. बताओ, कहां चलना है?’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘बिजली किस पर गिरेगी, यह मैं बाद में बताऊंगी. पहले तुम मुझे अपनी मनपसंद जगह ले कर चलो, क्योंकि मैं ने आज तुम्हारे मनपसंद कपड़े पहने हैं. आज मैं केवल तुम्हारे लिए ही तैयार हुई हूं.’’

पहले तो प्रशांत पाटिल की समझ में अंजलि की रहस्यमय बातें नहीं आईं, लेकिन जब समझ में आईं तो अंजलि के अशांत मन का तूफान आ कर शांत हो चुका था.

 

अंजलि प्रशांत के साथ पहले एक पार्क में गई. वहां अंजलि ने उसे साफसाफ बता दिया कि वह उसे कितना प्यार करती है. मालकिन का यह झुकाव देख कर प्रशांत भी फूला नहीं समा रहा था. उस के बाद अंजलि उसे एक होटल में ले गई और पतिपत्नी के नाम से 3 घंटे के लिए एक कमरा बुक किया. वहां दोनों ने अपनी सीमाओं को तोड़ दिया.

एक बार जब मर्यादा की सीमाएं टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं. ज्योति जब से ड्राइवर प्रशात के संपर्क में आई, तब से अपने घर वालों से कटीकटी सी रहने लगी थी. घर के कामों में उस की कोई रुचि नहीं रह गई थी.

उस के मन में जब भी मौजमस्ती का तूफान उठता, वह घर वालों से कोई न कोई बहाना कर ड्राइवर प्रशांत के साथ कभी बेलगांव तो कभी गोकाक के लिए निकल जाती थी. कभी पार्कों में तो कभी मौल और कभी अच्छे होटलों में जा कर वह प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर लौट आती थी.

अंजलि के बदले हुए इस रूप से घर वाले अनभिज्ञ नहीं थे. वह जल्दी ही घर वालों की नजरों में आ गई. ये लोग जब अंजलि के बाहर जाने और लौटने पर सवाल उठाते तो वह उन पर बिफर पड़ती. वह यह कह कर सब का मुंह बंद कर देती, ड्राइवर उस का और पैसा उस के पति का है. जब वह इन चीजों का प्रयोग करती है तो उन के पेट में दर्द क्यों उठता है. उस का मन जहां करेगा, वहां जाएगी. मामला नाजुक होने के कारण घर वाले तब तक खामोश रहे, जब तक दीपक घर नहीं आया.

 

29 दिसंबर, 2019 को दीपक 2 महीने की छुट्टी पर जब घर आया तो घर वालों ने उसे उस की पत्नी के विषय में सारी बातें बता कर उसे सचेत कर दिया. पहले तो दीपक को घर वालों की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ.

क्योंकि 7 साल के वैवाहिक जीवन में उसे कभी भी अंजलि के प्रति कोई शिकायत नहीं मिली थी. पूरा परिवार अंजलि के व्यवहार से खुश था. लेकिन बिना आग के धुआं तो उठता नहीं है. उसे यह बात जल्द समझ में आ गई. दीपक ने चुपचाप अंजलि पर नजर रखी तो अंजलि की बेवफाई जल्द ही उस के सामने आ गई. हालांकि अंजलि और प्रशांत अपने संबंधों के प्रति काफी सावधानी बरतते थे. लेकिन वह इस में सफल नहीं हुए. दीपक को जल्द ही महसूस होने लगा कि अंजलि का उस के प्रति अब पहले जैसा व्यवहार और लगाव नहीं है.

अंजलि के बदले हुए इस व्यवहार पर दीपक ने जब उसे आड़ेहाथों लिया तो अंजलि ने दीपक से माफी मांग कर उस समय तो मामला शांत कर दिया लेकिन अपने आप को वह समझा नहीं सकी. उस के दिल में प्रशांत पाटिल के प्रति जो लौ जल रही थी, वह बुझी नहीं थी. उस ने जब अपने मन में पति और प्रेमी की तुलना की तो उसे प्रेमी पति से ज्यादा प्यारा लगा.

लेकिन यह तभी संभव था जब पति नामक कांटा उस की जिंदगी से बाहर निकल जाता. इस विषय पर काफी मंथन के बाद अंजलि ने पतिरूपी कांटे को अपने और प्रेमी के बीच से निकाल फेंकने की एक गहरी साजिश रची.

अपनी साजिश की बात अंजलि ने जब प्रशांत को बताई तो वह खुशीखुशी अंजलि की साजिश में शामिल ही नहीं हुआ, बल्कि अपने दोस्त नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को भी योजना में शामिल कर लिया.

इस के बाद अंजलि ने पति को ज्यादा प्यार जताना शुरू कर दिया ताकि उसे शक न हो. घर का माहौल और दीपक का व्यवहार अपने अनुरूप देख कर अंजलि ने अपनी साजिश को अंतिम रूप देने के लिए पिकनिक का प्रोग्राम बनाया. पिकनिक के लिए गोडचिनमलकी फौल को चुना गया.

घटना के दिन अंजलि पति दीपक, ड्राइवर प्रशांत पाटिल और उस के 2 दोस्तों नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को साथ ले कर पिकनिक के लिए निकली.

योजना के अनुसार, ड्राइवर प्रशांत ने गोडचिनमलकी के पहले ही एक सुनसान जगह पर कार रोड की साइड में खड़ी कर दी. साथ ही उस ने शराब पीने की भी इच्छा जाहिर की. एक ही गांव और जानपहचान होने के कारण दीपक उन्हें मना नहीं कर सका. उन लोगों ने खुद तो शराब पी ही, दीपक को भी जम कर पिला दी थी.

शराब के नशे में मदहोश होने के बाद प्रशांत अपने दोनों दोस्तों की मदद से दीपक को जंगल के भीतर ले गया. जब तक काम खत्म नहीं हुआ, अंजलि कार में बैठी रही.

दीपक को जंगल के भीतर ले जाने के बाद प्रशांत पाटिल ने अपने साथ लाए चाकू से कई वार कर दीपक को मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद उस के शव के 4 टुकड़े कर जंगल में फेंक दिए.

दीपक पट्टनदार की हत्या कर उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए, जहां से मरिहाल पुलिस के हत्थे चढ़ गए. घर वालों के पूछने पर अंजलि ने वही बातें दोहरा दी थी, जो उस ने पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने के लिए बताई थीं.

मरिहाल पुलिस की गिरफ्त में आई अंजलि पट्टनदार, ड्राइवर प्रशांत पाटिल, नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने 20 फरवरी, 2020 को उन की निशानदेही पर गोडचिनमलकी के जंगलों में जा कर दीपक के अस्थिपंजर बरामद कर लिए.

जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए बेलगांव जिला अस्पताल भेज दिया गया और सभी अभियुक्तों को फौजी दीपक पट्टनदार की हत्या कर लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें हिडंलगा जिला जेल भेज दिया गया.

प्रायश्चित्त-भाग 1: जनार्दन और सावित्री का क्या रिश्ता था?

रात के 10 बजे थे. चारों ओर शांति थी. पहरेदारों की सीटी की कर्णभेदी आवाज यदाकदा दिल्ली के तिहाड़ जेल की शांति को भंग कर रही थी. सभी बेखबर सो रहे थे, पर पिछले 2 घंटे से करवटें बदलने के बावजूद सावित्री की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब भी आंखें बंद करतीं, आंखों के सामने कोर्ट का वह दृश्य और कानों में जज साहब का अंतिम फैसला सुनाई पड़ता, ‘नशा करना और नशाखोरी को बढ़ावा देना एक जुर्म है. इस से न केवल देश का वर्तमान खराब होता है बल्कि भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है. प्राप्त सुबूतों के आधार पर सांसद सावित्री को नशा माफिया को संरक्षण देने में दोषी पाए जाने के जुर्म में 10 वर्षों की कैद की सजा सुनाई जाती है.’

फैसला सुन कर एकबारगी तो मन कांप उठा था उन का, क्योंकि पिछले 2-3 सालों से जिस तरह से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर कोर्ट, कचहरी और कानून का शिकंजा कसता जा रहा है, बच निकलना मुश्किल ही लग रहा था. उन्होंने अपनी पीए जनार्दन की तरफ देखा, जो अपनी आंखें झुकाए विचारमग्न बैठे थे, शायद इस फैसले से वे भी काफी दुखी थे.

कोर्ट से निकलते समय जब मीडिया वालों ने सावित्री से पूछताछ करनी शुरू की, तब भी जनार्दन नजर नहीं आए. बहुत अजीब लगा उन्हें. इस के पूर्व 2 बार जब सावित्री पर ‘अनाज घोटाला’ व ‘शिक्षा घोटाला’ के संबंध में आरोप साबित हुए, सजा मिली, सब से पहले जनार्दन ही उन्हें सांत्वना देने पहुंचे थे, ‘डोंट वरी, मैडम. सब ठीक हो जाएगा.’ जेल जाने के पहले ही उन की अग्रिम जमानत करवा लेते और किए गए घोटालों का सारा मामला कब रफादफा हो जाता, उन्हें पता ही नहीं चलने देते. उन की इसी खासीयत के कारण तो सावित्री ने सांसद बनने के बाद जनार्दन को अपना खास आदमी बना लिया था. उन के इन एहसानों के बदले वे कभी उन्हें पैट्रोल पंप का लाइसैंस दिलवा देतीं तो कभी फार्महाउस बनाने के लिए सस्ते में कई बीघे जमीन. वैसे सच पूछा जाए तो एहसान तो जनार्दन ने किया था उन पर. उन्होंने ही सावित्री को पार्टी की सदस्यता दिलवाई थी महासचिव से मिलवा कर.

जनार्दन से मिलना भी एक संयोग ही था. बात यह थी कि उन की सहेली रजनी ने अपनी शादी की सालगिरह पर सावित्री को सपरिवार आमंत्रित किया था. पार्टी में जाने के लिए वे सब की खातिर नए और महंगे कपड़े खरीदना चाहती थीं, ताकि वहां जुटे लोगों को प्रभावित कर सकें. पर व्यवसाय से ज्यादा आमदनी न होने के कारण राजन महंगे कपड़े खरीदने में असमर्थ थे.

राजन ने समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि अभी दीवाली पर ही तो सब के नए कपड़े खरीदे गए हैं, उन्हें ही पहन कर चलते हैं पार्टी में. चूंकि बचपन की सहेली रजनी ने इतने प्यार से बुलाया था कि न चाहते हुए भी मनमसोस कर उन्हें जाना पड़ा. लेकिन नए कपड़ों के बजाय वही 4 महीने पहले खरीदे आउट औफ फैशन वाले कपड़े पहन कर. पार्टी में सब हंसहंस कर बातें कर रहे थे पर सावित्री का सारा ध्यान अपने परिवार के सस्ते कपड़ों और अपने नकली आभूषणों पर ही लगा रहा. ऐसी बात नहीं थी कि सावित्री बहुत अमीर घर की थीं, पर अमीर बनने की ख्वाइश जरूर रखती थीं. पार्टी में रजनी ने अपने एक रिश्तेदार से मिलवाया सब को. बड़े खुशमिजाज व्यक्ति लगे वे, पूरी पार्टी में सब का मन लगाते रहे थे. राजन के पूछने पर कि वे क्या करते हैं, बड़े ही बेफिक्री से कहा, ‘मैं तो समाजसेवक हूं, जनता की परेशानियों को दूर करने वाला.’ बात ज्यादा समझ नहीं आई पर घर आ कर भी सावित्री उन के बारे में ही सोचती रहीं.

अगले दिन दुकान जाते समय सावित्री भी राजन के साथ हो ली. कारण, रजनी को रात की पार्टी के लिए धन्यवाद जो कहना था. घर में फोन नहीं होने के कारण फोनबूथ पर जाना पड़ता था जो राजन की दुकान के बगल में था. दोनों सहेलियों में बातचीत के दौरान ही सावित्री को पता चला कि उस व्यक्ति का नाम जनार्दन है. बहुत पहुंच वाले शख्स हैं वे. उन्होंने अगले संडे को एक पिकनिक कार्यक्रम रखा है किसी फार्महाउस में, रजनी की सारी सहेलियों को आमंत्रित किया है पिकनिक में. सुन कर एकबारगी दिल खुश हो गया पर अपनी हैसियत देख चुप हो गई सावित्री.

रात सोते वक्त राजन से पिकनिक का जिक्र किया तो उन्होंने कहा कि देखो, इस तरह के अनजान लोगों के साथ पिकनिक मनाने और उठबैठ करने से अच्छा है कि अपनी हैसियत वाले रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ सुकून से समय गुजारा जाए. बहुत बुरा लगा था सावित्री को राजन की इस बात का, कई दिनों तक बात नहीं की गुस्से के मारे.

शनिवार को पत्नी का दुखी चेहरा देख राजन से रहा नहीं गया, कहा, ‘अगर तुम्हें खुशी मिलती है तो जाओ, पर मैं और बच्चे नहीं जाएंगे.’ बस, फिर क्या था घरखर्च के पैसे से अपने लिए एक नई साड़ी खरीदी और अगले दिन पहुंच गईं पिकनिक पर. शाम को जब घर आईं तो तीनों बेसब्री से उन का इंतजार कर रहे थे. दिन का खाना तो राजन ने किसी तरह कच्चापक्का बना लिया था पर रात का खाना सावित्री को ही बनाना था. आते ही ‘आज मैं बहुत थक गई हूं, मुझे भूख नहीं है, तुम तीनों अपना खाना बाहर से मंगवा लो,’ कह कर वे कमरे में जाने लगीं. ‘पर मम्मी, कल तो हमारा टैस्ट है, कुछ रिवीजन करवा दो’ बच्चों ने कहा तो किसी तरह उन्हें पढ़ाया और आराम करने चली गईं. रात को राजन जब सोने को आए, तब तक सावित्री की थकान उतर चुकी थी. उस ने बड़े प्यार से पति से कहा, ‘मुझे पता है, आज तुम्हें बच्चों के साथ परेशानी हुई होगी पर मैं ने भी सारा दिन मौजमस्ती में नहीं बिताया बल्कि तुम्हारे लिए एक आकर्षक प्रस्ताव ले कर आई हूं, जिस से हमसब की जिंदगी खुशहाल हो सकती है.’ फिर कहना शुरू किया, ‘आज जनार्दन से काफी देर तक बातचीत होती रही, तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे. मैं ने कह दिया बिजनैस के सिलसिले में थोड़ा व्यस्त थे, इस कारण नहीं आ सके. पूछने लगे कौन सा बिजनैस करते हैं? जब बताया कि तुम्हारी दवा की एक दुकान है तो पहले वे कुछ देर सोचते रहे, फिर कहने लगे कि मेरा एक मित्र है, जिस की दवा की फैक्टरी है. अगर वे उस के यहां की बनी दवाएं बेचने को तैयार हों तो मैं उन्हें उस दवा कंपनी की सीएनएफ दिलवा दूंगा सस्ते में. दवा भी कम दर पर उपलब्ध करवा दूंगा, इस से उन्हें मुनाफा ज्यादा होगा.’

मानसून स्पेशल: मसाला मूंगफली और बेसन का चटकारेदार स्वाद

मूंगफली खाने में सब से अच्छी होती है. लोगों को इस को हर रूप में खाना पसंद आता है. ज्यादातर नमकीनों में मूंगफली का प्रयोग किया जाता है. मूंगफली के प्रयोग से नमकीन का स्वाद बढ़ जाता है. यह सेहत के लिए भी अच्छी होती है.

मूंगफली के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए अब केवल मूंगफली को ले कर प्रयोग होने लगे हैं. इस को मूंगफली नमकीन, मसाला पीनट जैसे कई नामों से जाना जाता है. यह छोटे और बड़े हर तरह के पैकेट में मिलता है. अच्छी क्वालिटी की मूंगफली, बेसन और मसालों के प्रयोग से यह बहुत टेस्टी बन जाता है. इस को रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है.

देश में मूंगफली की खेती बडे़ पैमाने पर होती है. मूंगफली के बढ़ते प्रयोग से इस के किसानों का मुनाफा बढ़ता है. मूंगफली को ‘गरीबों का मेवा’ कहा जाता है. खासकर जाड़ों में

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इस को खाना बहुत गुणकारी होता है. मूंगफली के इन गुणों के कारण ही मिठाई से ले कर नमकीन तक में इस का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. मसाला पीनट मूंगफली नमकीन का बदला हुआ रूप है. करीबकरीब पूरे देश में यह मिलता है. ऐसे में यह किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए हितकारी है.

इसे बडे़ पैमाने पर बना कर रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है. अगर माइक्रोवेव का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं, तो मसाला लगे मूंगफली के दानों को तेल में हलका सा फ्राई कर लीजिए. ध्यान रहे कि मसाला जलने न पाए.

अगर मसाला जल गया तो इस का स्वाद अच्छा नहीं होगा. इस के साथ यह देखना भी बहुत जरूरी है कि जिस मूंगफली का प्रयोग किया जा रहा हो, उस की क्वालिटी बहुत अच्छी हो, खराब किस्म की मूंगफली के दाने स्वाद को खराब करते हैं.

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मसाला पीनट बनाने के लिए सामग्री :

मूंगफली के दाने 1 कप,

बेसन आधा कप,

नमक स्वादानुसार,

लाल मिर्च पाउडर स्वादानुसार,

आधा चम्मच गरम मसाला,

आधा चम्मच चाट मसाला,

आधा चम्मच धनिया पाउडर,

आधा छोटा चम्मच अमचूर पाउडर,

बेकिंग सोडा 2 चुटकी,

हींग 1 चुटकी और तेल

बनाने की विधि :

  • सब से पहले बेसन को किसी बड़े प्याले में डाल कर उस में नमक, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, धनिया पाउडर, अमचूर पाउडर, बेकिंग सोडा और हींग डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिए. थोड़ा अमचूर पाउडर बचा कर रख लीजिए. इस का प्रयोग बाद में करेंगे.
  • मूंगफली के दाने जिस बरतन में भरे हैं, उस में इतना पानी भर दीजिए कि मूंगफली के दाने पानी में डूब जाएं और तुरंत छलनी से छान कर पानी हटा दीजिए. ध्यान रखें कि मूंगफली के दाने सिर्फ गीले होने चाहिए.
  • मूंगफली के गीले दाने बेसन मसाला मिक्स में डाल कर मिक्स कीजिए. देख लीजिए कि बेसन मसाला मूंगफली के दाने के ऊपर अच्छी तरह कोट हो जाए.
  • अगर बेसन सूखा बचा हुआ है, तो 1-2 छोटे चम्मच पानी छिड़कते हुए डाल कर मिला दीजिए, ताकि सारा बेसन और मसाले मूंगफली के दानों पर कोट हो जाएं. अब तेल डाल कर मूंगफली के दानों में मिला दीजिए.
  • माइक्रोवेव सेफ  ट्रे ले लीजिए और मसाला मिले मूंगफली के दाने ट्रे में अलगअलग करते हुए फैला दीजिए. ट्रे को माइक्रोवेव में रखिए और अधिकतम तापमान पर 4 मिनट माइक्रोवेव में गरम कीजिए.
  • ट्रे को बाहर निकालिए और दानों को पलट दीजिए, अलगअलग कर दीजिए. ट्रे को फिर से माइक्रोवेव में रख दीजिए और 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए. ट्रे को बाहर निकालिए. मसाला पीनट बन चुके हैं.
  • मसाला पीनट में चाट मसाला डाल कर मिला दीजिए. अगर आप महसूस करें कि अभी मसाला पीनट पूरी तरह से कुरकुरे नहीं हुए हैं, तो उन्हें 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए.
  • मसाला पीनट को पूरी तरह ठंडा होने के बाद एयर टाइट कंटेनर में भर कर रख दीजिए.
  • अगर आप मसाला पीनट में तेल नहीं डालना चाहें, तो न डालें. बिना तेल के भी मसाला पीनट अच्छे बनते हैं, लेकिन तेल डालने से मसाला पीनट का रंग और स्वाद दोनों ही बढ़ जाता है.

Hyundai Grand i10 Nios: उम्मीद से कहीं ज्यादा

कार निर्माता कंपनी हुंडई अपनी Hyundai Grand i10 Nios को लेकर काफी चर्चा में है. यह कार
ग्राहकों के बीच खासी लोकप्रिय हैचबैक कार बन चुकी है.

दरअसल, आयरिश भाषा में ‘Nios’ शब्द का अर्थ ‘अधिक’ से है और इस शब्द से नए Hyundai Grand i10 Nios को अच्छी तरह समझा जा सकता है.

हर स्तिथी में यह आपके उम्मीद से कहीं ज्यादा खरी उतरती है. इसके पिछले हिस्से के बूट पर लगे स्पॉयलर की वजह से यह एक स्पोर्टी हैचबैक कार है. जिसकी वजह से कार का पिछला हिस्सा काफी आरामदेह व स्पेस वाला है.

आने वाले दिनों में हम आपको डिटेल में बताएंगे कि हुंडई ग्रैंड i10 Nios आपके लिए बेहतर और पैसा वसूल हैचबैक कार क्यों है.

पुलिस की लगातार बढ़ती बर्बरता

अमेरिका में पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए जौर्ज फ्लोयड की मौत ने कई सवाल खड़े किए थे. जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेद को उजागर कर पूरे अमेरिका को आग में झुलसा दिया था जिस का धुआं यहां भारत तक भी आया था. ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में भारतीयों ने भी सोशल मीडिया पर आवाज उठाई थी जिस से देश में रंगभेद को ले कर हर तरफ बहस छिड़ गई थी. अमेरिका में चल रहे आंदोलन का असर इतना गहरा हुआ था कि आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ व उन्हें सजा सुनाई गई. हाल ही में भारत में भी पुलिस की बर्बरता का कुछ इसी तरह का मामला सामने आया जिस ने एक बार फिर पुलिस की प्रताड़ना को उजागर किया है. तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले में जयराज और उन के बेटे बेनिक्स के साथ पुलिस हिरासत में जघन्य हिंसा हुई जिस से दोनों की मृत्यु हो गई. दोनों के साथ जो हुआ उस ने एक बार फिर पुलिस व न्यायिक प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है.

पुलिस हिरासत में हिंसा व अत्याचार का यह पहला मामला नहीं है, ऐसे अनेक मामले हैं जहां पुलिस ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ बर्बरता की सीमाएं तोड़ी हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से 2016 तक भारत में पुलिस हिरासत में 1,022 लोगों की मौत हुई लेकिन पुलिस के खिलाफ केवल 428 एफआईआर लिखवाई गईं. इन में से भी सिर्फ 5 फीसदी पुलिस वालों को ही सजा मिली. यह आंकड़ें केवल मृत्यु के हैं व बुरी तरह घायल या अपंग होने वाले व्यक्तियों की गिनती का कोई जिक्र तक नहीं हैं. पुलिस जिसे जनता का रक्षक कहा जाता है यदि वह ही भक्षक बन जाए तो जनता न्याय के लिए किस का दरवाजा खटखटाएगी? पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, बर्बरता, बलात्कार व अत्याचार का शिकार आमजन आखिर जाए तो जाए कहां?

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जयराज और बेनिक्स की निर्मम हत्या

तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले के रहने वाले पी जयराज (59) व उन का बेटे जे बेनिक्स (31) एक छोटी सी मोबाइल फोन की दुकान चलाते थे. पुलिस के अनुसार, उन दोनों ने 19 जून की रात कर्फ्यू के नियम तोड़ते हुए, कर्फ्यू के निर्धारित समय से ज्यादा देर तक अपनी दुकान खोले रखी थी. जब पुलिस उन के पास गई तो वे चिल्लाने लगे, गालीगलौज करने लगे, जब पुलिस ने उन्हें साथ चलने के लिए कहा तो वे सड़क पर विरोध में हाथपैर पटकते हुए लोटने लगे जिस के चलते उन्हें गंभीर चोटें आईं व इंटरनल ब्लीडिंग होने लगी. जबकि मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि पुलिस जो कुछ कह रही है वह सरासर झूठ है. तो फिर सचाई क्या है?

असल में हुआ यों था कि 19 जून की रात जयराज को पुलिस अपने साथ ले गई थी जिस के बाद बेनिक्स अपने दोस्त और कुछ मौके पर मौजूद लोगों के साथ स्टेशन गया था. पुलिसकर्मियों ने उन के खिलाफ धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), धारा 269 (लापरवाही से जानलेवा बीमारी के संक्रमण फैलाने की कोशिश) और 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से विमुख करने के लिए बल का उपयोग), सहित कई अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लिया.  सथनकुलम पुलिस स्टेशन में जयराज और बेनिक्स दोनों को पुलिस ने हवालात में बंद कर दिया. उन दोनों को पुलिस ने घंटों तक बुरी तरह मारापीटा, खदेड़ा, नौचा व बिना रुके लाठियां बरसाईं. उन दोनों के चेहरों को पुलिस द्वारा दीवार पर जोर से मारा गया था, घुटने फोड़े गए थे व शरीर पर मारपीट के दौरान एक भी कपड़ा नहीं था. उन के अंडरवियर तक बुरी तरह फटे व खून से सने हुए थे. मौके पर मौजूद गवाहों के अनुसार, उन दोनों को पुलिस द्वारा इतना मारा गया कि उन के कपड़े बुरी तरह फट व खून से लथपथ हो चुके थे, जिस के कारण उन के घर खून से सने कपड़े भिजवा कर तीन बार साफ कपड़ों को मंगावाया गया था.

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कुछ गवाहों का यह भी कहना है कि जयराज और बेनिक्स के यौनांग भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए थे व उन्हें सोडोमाइज्ड किया गया था अर्थात उन के गुदा को लाठियों से क्षति पहुंचाई गई थी यानी गुदा में लाठी कई बार डाली गई थी. बेनिक्स के दोस्त के अनुसार, जब बापबेटे घर आए तो उन की पैंट बुरी तरह से खून से सनी हुई. अगले दिन यानी 20 जून की सुबह पुलिस ने उन्हें घर आने दिया था जहां सुबह 7 बजे से 12 बजे तक उन दोनों ने 7-7 लुंगियां बदली थीं क्योंकि वे बारबार खून से भीग रही थीं. जब बापबेटे घर लौटे थे तो दोनों बुरी तरह घायल थे व दोनों ने ही रेक्टम में दर्द बताया था क्योंकि उस से लगातार खून निकल रहा था.

उन दोनों को घर से सथनकुलम सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टर ने स्थानीय पुलिस के आदेश पर दोनों को फिट घोषित किया था. 3 घंटों बाद उन दोनों को सथनकुलम मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाने के लिए पुलिस ने एक बार फिर कस्टडी में ले लिया. लेकिन, मजिस्ट्रेट ने उन्हें देखे बिना ही कोवलपट्टी सब जेल में रिमांड में लेने का फैसला सुना दिया जोकि नियमों के विरुद्ध था. नियमों के अनुसार मजिस्ट्रेट आरोपी को देखता है व उस के पूरी तरह फिट होने पर ही पुलिस को रिमांड के लिए आदेश देता है जबकि जयराज और बेनिक्स के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन दोनों को पुलिस द्वारा डराया और धमकाया भी गया था ताकि वे मजिस्ट्रेट को सच न बताएं.

अगले 2 दिनों तक परिवार को जयराज और बेनिक्स की कोई खबर नहीं मिली. 22 जून के दिन दोनों को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया जहां दोनों बुरी तरह खून से लथपथ थे व दोनों के शरीर से लगातार खून बह रहा था. अस्पताल में 22 जून को बेनिक्स की मृत्यु हो गई व अगले दिन 23 जून को जयराज ने भी दम तोड़ दिया. पुलिस की बर्बरता ने दो निर्दोषों को एक नगण्य गलती के लिए मौत के घाट उतार दिया.

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सचाई बयां करती सीसीटीवी फूटेज

बेनिक्स की दुकान के बगल की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरा में स्पष्ट नजर आ रहा है कि पुलिस जो कह रही है व उस के द्वारा एफआईआर में जो कुछ भी लिखा गया है, वह सरासर झूठ है. सीसीटीवी में साफ नजर आ रहा है कि पुलिस पहले जयराज के पास आई जो अपनी दुकान के बाहर खड़ा था. पुलिस ने उस से दो मिनट खड़े हो कर बात की फिर वापस सड़क के दूसरी तरफ सामने जा कर खड़ी हो गई. पुलिस अपनी वैन के पास खड़ी थी और कुछ मिनटों बाद ही उन्होंने जयराज को अपने पास आवाज दे कर बुलाया. जयराज के जाने के बाद बेनिक्स दुकान से निकल कर बाहर आया और रोड के दूसरी तरफ अपने पिता को देखने के लिए गया, जिस के साथ उस के आसपास खड़े लोग भी गए. पुलिस बहस के दौरान अपने साथ जयराज को ले गई और बेनिक्स वापस आ कर अपने दोस्त के साथ बाइक पर बैठ कर स्टेशन चला गया.

पुलिस के अनुसार, उन दोनों को चोटें सड़क पर लोटने से आई थीं जबकि फूटेज में ऐसा कुछ नजर नहीं आया. पुलिस ने वहां भीड़ की बात भी कही थी जो फूटेज में नहीं दिखी. एफआईआर में दोनों को पकड़ने का समय 9 बज कर 15 मिनट बताया गया परंतु सीसीटीवी के अनुसार असल समय 8 बजे के करीब था. सीसीटीवी में यह भी स्पष्ट दिख रहा है कि सिर्फ बेनिक्स और जयराज की ही दुकान उस समय खुली हुई नहीं थी बल्कि आसपास की दुकानें भी खुली थीं, जब कि पकड़ा सिर्फ जयराज और बेनिक्स को गया.

इस की वजह क्या हो सकती थी पर एक गवाह का कहना था कि 18 जून से ही उन लोगों की दुकानों के आसपास पुलिस ने कर्फ्यू के चलते गिरफ्तारी शुरू कर दी थी और किसी ने पुलिस को कहा था कि जयराज ने पुलिस के चले जाने पर उन्हें गाली थी. यह एक वजह हो सकती है जिस के चलते पुलिस ने अगले दिन बाप बेटे दोनों को निशाने पर लिया. इंस्पेक्टर श्रीधर, सब इंस्पेक्टर बालकृष्णन और रघुगणेश इस हत्या के पीछे हैं, जिन में बालकृष्णन और रघुगणेश ने इंस्पेक्टर श्रीधर के कहने पर जयराज और बेनिक्स पर हिंसा की.

तूतुकुड़ी पुलिस द्वारा हिंसा का यह पहला मामला नहीं

जयराज और बेनिक्स की हत्या ने तूल पकड़ा तो तूतुकुड़ी पुलिस द्वारा हिंसा के और भी कच्चे चिट्ठे सामने आए. जयराज और बेनिक्स का मामला दृष्टि में आया क्योंकि उन दोनों की जानें गईं, ऐसे कई मामले हैं जहां जान बच जाने के चलते अत्याचार का मामला दब कर रह गया. दो सप्ताह पहले सथकुलम थाने में एक दर्जन लोगों को बुरी तरह मारापीटा गया था, जिन में से एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दो लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई उस का नाम महेन्द्रन था जिसे उस के भाई दुरई के साथ गिरफ्तार किया गया था. महेन्द्रन को शक के बिनाह पर एक इंवेस्टिगेशन में गिरफ्तार किया गया था व उसे बुरी तरह पीटा गया था. तीन पुलिस वालों ने महेन्द्रन को तब तक मारा जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई, फिर बिना पोस्टमार्टम के उस के शव को उस की मां को दे दिया व धमकी दी गई कि यदि वे किसी से कुछ कहती हैं तो उन के दूसरे बेटे दुरई का भी यही हश्र किया जाएगा.

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सूत्रों के हवाले से बताया गया कि 15 दिन पहले एक नाबालिग सहित 8 लोगों को सथकुलम थाने में प्रताड़ित किया गया था. इन लोगों को 3 दिन तक पीटा गया व नाबालिग को अवैध तरीके से 2 दिन जेल में रखा गया.

हिरासत में लिए गए व्यक्ति राजासिंह ने पड़ताल कर रही न्यायिक टीम को बताया कि  सथकुलम पुलिस ने उसे बेंच पर लेटाया, उस के ऊपर कुछ पुलिसवाले बैठे व उस के मुंह और पैरों पर प्रहार करने लगे. राजासिंह के अनुसार पिटाई के बाद उसे कोवलपट्टी सब जेल में भेज दिया गया, जबकि उसे अस्पताल भेजा जाना चाहिए था.

तूतुकुड़ी एमपी कनिमोही के अनुसार, “मुझे बताया गया है कि ऐसे कई लोग हैं जिन्हें सथकुलम पुलिस द्वारा जीवनभर के लिए अपंग कर दिया गया, जो विकलांग हो गए. कितने ही लोगों की जिंदगियां खराब हो गईं क्योंकि एक पुलिसवाले को लगा कि अपनी ताकत आजमाने के लिए एक आम आदमी पर हिंसा करना कोई बड़ी बात नहीं है.”

पुलिस हिरासत में अत्याचार के अन्य मामले

किसी अपराध के होने पर जब पुलिस अपराधियों को पकड़ कर लाती है तो उन से गुनाह कुबूल करवाने के लिए वह उन के साथ थर्ड डिग्री टोर्चर करती है. खुद लोग भी किसी अपराधी के गिरफ्तार होने पर न्यायिक प्रक्रिया को बढ़ाने और गुनाह मनवाने के लिए व्यक्ति को मार डालने तक की बातें करते हैं. ज्यादातर बलात्कार के मामलों में देखने में आता है कि जनता द्वारा मांग की जाती है कि अपराधी को सड़क पर फांसी दी जाए या जला दिया जाए. न्यायालय में सजा सुनाए जाने से पहले व गुनाह साबित होने से पहले ऐसी बातें की जाती हैं. क्या यह पुलिस को बर्बरता के लिए उकसाने जैसा नहीं है? खुद पुलिस को लगता है कि मामले को सुलझाने के लिए एड़ीचोटी का दम लगा सुलझाया जाए जिस के लिए अगर व्यक्ति को बुरी तरह प्रातड़ित भी करना पड़े तो ठीक है. पुलिस का यही रवैया कस्टोडियल डेथ्स का बड़ा कारण है.

एनसीआरबी के 2017 के डाटा के अनुसार, तकरीबन 100 लोगों की मौत हवालात में हुई थी. इन में से 58 लोग रिमांड में नहीं थे बल्कि गिरफ्तार किए गए थे और कोर्ट के सामने पेशी के लिए ले जाए जाने बाकी थे व 42 ऐसे थे जो पुलिस या न्यायिक रिमांड में थे.

2017 में कस्टोडियल मौतों से संबन्धित 60 मामलों में, 33 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया, 27 के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई, 4 को दोषमुक्त करार कर बरी कर दिया गया और किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया.

6 नवंबर, 2017 को अंकित कोठाले (26) और उस के दोस्त अमोल भंडारे (23) को महाराष्ट्र के सांगली डिस्ट्रिक्ट पुलिस ने हिरासत में लिया था. हिरसात में लिए जाने के बाद दोनों को पुलिस ने प्रताड़ित किया जिस के बाद अंकित बेहोश हो गया व शरीर पर आए ढेरों घावों के चलते पुलिस स्टेशन में ही उस की मौत हो गई. पुलिस कर्मचारी द्वारा डाक्टर को अंकित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में झूठ लिखने को भी कहा गया था जिस से यह सामने न आ सके कि घायल होने के चलते अंकित की जान गई. राज्य सरकार द्वारा मामले में 7 पुलिस कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया व डिस्ट्रिक्ट पुलिस सुप्रीटेंडेंट और डिप्टी सुप्रीटेंडेंट का तबादला कर दिया गया था, लेकिन, किसी को सजा नहीं मिली.

27 अक्टूबर, 2019 के दिन सुबह 11 बजे विजय सिंह नामक 26 वर्षीय लड़के को मुंबई के वडाला ट्रक टर्मिनल पुलिस स्टेशन में गिरफ्तार किया गया था. विजय पर एक कपल द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी. कपल का कहना था कि वे दोनों जब साथ बैठे थे तो विजय अपनी बाइक पर बैठ उन के मुंह पर हेडलाइट मार उन्हें परेशान कर रहा था. पुलिस ने विजय को हिरासत में ले लिया जिस के बाद उसे बुरी तरह पीटा गया और जब वह छाती में दर्द की शिकायत करने लगा तो पुलिस उसे अस्पताल नहीं ले गई और स्टेशन में ही उस ने दम तोड़ दिया. विजय ने दर्द से कराहते हुए रात 11:30 बजे अस्पताल जाने की मांग की थी लेकिन उसे रात 2 बजे तक बेंच पर बैठाए रखा गया. बाद में जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो डाक्टर ने उसे मृत करार दे दिया. इस मामले में 5 पुलिस कर्मचारी जिन में सब इंस्पेक्टर संदीप कदम, असिस्टेंट इंस्पेक्टर सलीम खान, तीन कौन्स्टेबल थे, को सस्पैंड किया गया.

तेलंगाना के पेलापड्डी जिले में 24 मई 2020 को तीन व्यक्तियों को जंगली जानवरों के शिकार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. तीनों को पुलिस ने मारापीटा जिस के बाद 26 मई के दिन श्रीलम नाम के व्यक्ति ने टोयलेट जाने के बहाने पुलिस स्टेशन में ही फांसी लगा ली. पुलिस का डर या हिंसा के चलते वह व्यक्ति सुसाइड करने पर मजबूर हो गया.

यह केवल चंद मामलें हैं जिन में पुलिस हिरासत में लोगों की मृत्यु हुई, अनेक ऐसे मामले भी हैं जहां व्यक्ति बुरी तरह घायल हुए व पुलिस के खिलाफ किसी तरह की न कोई शिकायत दर्ज हुई न कार्यवाही हुई.

आखिर पुलिस की बर्बरता का हल क्या है?

पुलिस की बर्बरता इस हद तक सामान्य हो चुकी है कि यह हमारी मुख्यधारा से जुड़ चुकी है चाहे वह सिनेमा हो या असल जिंदगी. परदे पर जब हम किसी हीरो को पुलिस वाले के रूप में देखते हैं तो उस के द्वारा चाहे कितनी ही बुरी तरह विलेन का शोषण हो, हम उस पर तालियां पीटते हैं. हवालात में होने वाली हिंसा इतनी आम हो चुकी है कि हम इस के प्रति पूर्ण रूप से असंवेदनशील हो चुके हैं और हमारी संवेदना तभी जागती है जब जयराज और बेनिक्स के प्रति हुई हिंसा जैसे जघन्य मामले हमारे सामने आते हैं.

डीके बासु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य क्षेत्र, जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य क्षेत्र व सहेली बनाम दिल्ली पुलिस कमिश्नर, कुछ ऐसे मामले हैं जहां पुलिस की बर्बरता आने हदें पार कर दी थीं. सहेली बनाम दिल्ली पुलिस कमिशनर का ऐसा ही मामला था जहां मां के पीटे जाने पर उस का 9 वर्षीय बेटा बीच में आ गया और उस की मौत हो गई. कहना मुश्किल था कि वह अपनी मां से पुलिस के डर से खुद को बचाने के लिए चिपटा था या अपनी मां को बचाने के लिए.

मामलों की जांच तेजी से करने के चलते पुलिस बर्बरता पर उतर आती है. ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सीसीटीवी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां अकसर पुलिस गुनाह मनवाने के लिए लोगों पर शक्ति का प्रयोग करती है. पुलिस का डर समाज में इतना व्याप्त है कि हाथ पैर तुड़वा लेने पर भी वे पुलिस के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं. जयराज और बेनिक्स मध्यवर्गीय थे, पढ़ा लिखा परिवार था इसलिए उन के साथ हुई जघन्य हिंसा सामने आई, लेकिन यही कोई निम्नवर्गीय परिवार होता तो पुलिस के डर से शायद सामने न आता.

सवाल उठता है कि आखिर पुलिस की बर्बरता के लिए अधिकारियों को केवल सस्पेंड करने भर से क्या होगा? एनसीआरबी डाटा के अनुसार, 2016 में हिरासत में मरने वालों की संख्या जहां 92 थी वहीं 2017 में वह 9 फीसदी बढ़ कर 100 हो गई. 37 मामले ऐसे थे जहां हिरासत में 37 लोगों ने सुसाइड किया, 28 लोगों की मौत हिरासत के पश्चात बीमार होने या अस्पताल में ले जाने के बाद हुई, पुलिस की मारपीट के दौरान 5 लोगों ने दम तोड़ दिया व 22 मौतों का कोई सटीक जवाब नहीं है. क्या यह आंकड़ें पुलिस को जवाबदेह नहीं बनाते? क्या इन्हें नजरंदाज किया जाना चाहिए?

जयराज और बेनिक्स के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय का कहना है कि जयराज और बेनिक्स के साथ पुलिस की बर्बरता होने के पूरे साक्ष्य मौजूद हैं. मामले में अबतक मौजूद तीनों पुलिस वालों को सस्पेंड किया जा चुका है और मजिस्ट्रेट की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. पीड़ित पितापुत्र के परिवार ने पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का आरोप लगाया है व न्याय की मांग की है. जायज भी है, यदि सामान्य व्यक्ति के लिए हत्या की सजा फांसी या उम्रकेद है तो पुलिस के लिए केवल सस्पेंड कर के छोड़ देना कहां का न्याय है? क्या उन्हें अपराध करने की छूट है? क्या वे अपने मनमुताबिक निर्दोष व्यक्ति को खाकी वर्दी के दमखम पर जान से मार सकते हैं? पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार जयराज और बेनिक्स का गुनाह इतना भर था कि उन्होंने कर्फ्यू के कुछ मिनटों बाद तक अपनी दुकान खोले रखी. क्या इस अपराध के लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा मिलनी चाहिए थी?

लौकडाउन के दौरान भारत के कई हिस्सों से पुलिस द्वारा सड़कों पर घूम रहे लोगों को मारेपीटे जाने वाले कई विडियो सामने आए थे, कई मामलों में लोगों को गंभीर चोटें भी आई थीं. इस से कुछ दिन पहले सीएए और एनआरसी के विरोध के चलते जामिया मिलिया इसलामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों पर पुलिस की भरसक हिंसा देखने को मिली थी. परंतु, किसी न किसी बहाने से इन हिंसाओं को ढंकने की या सही ठहराने की कोशिश की गई. लेकिन, यह सही नहीं है.

जयराज और बेनिक्स घर के कमाऊ व्यक्ति थे, तमिलनाडू राज्य सरकार द्वारा उन के परिवार को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी. विपक्षी पार्टी डीएमके द्वारा 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी गई है. परंतु यह मदद कभी भी जयराज और बेनिक्स की जान की कीमत नहीं चुका पाएगी.

  गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति के कानूनी अधिकार

पुलिस को गिरफ्तार करने की विस्तृत शक्तियां देने के साथ आपराधिक संहिता में गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को भी कुछ अधिकार दिए गए हैं. विभिन्न मामलों में पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के समय सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है जिस के लिए आपराधिक संहिता में निम्न कुछ नियम हैं जो व्यक्ति को पुलिस की ज्यादती से बचा सकते हैं:

 

  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 (1) के अनुसार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को सूचना व जानकारी का मौलिक अधिकार प्राप्त है, जिस के चलते वह पुलिस से यह पूछ सकता है कि किस गुनाह के आधार पर उसे गिरफ्तार किया जा रहा है. यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति को बताए कि उसे किस जुर्म में गिरफ्तार किया जा रहा है. पुलिस का यह बताना भी आवश्यक है कि अपराध के लिए व्यक्ति जमानती है या गैरजमानती.

 

  • गैर-संज्ञेय अपराधों के संबंध में पुलिस का वारंट के आधार पर गिरफ्तार करना जरूरी है. साथ ही गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को वारेंट दिखाना चाहिए. इसलिए, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 75 के अंतर्गत, व्यक्ति को वारेंट यह जांचने के लिए दिया जाता है कि वह सही है या नहीं, यानी वारेंट में आवश्यक विवरण शामिल हैं या नहीं, वारेंट लिखित में है या नहीं, वारेंट पीठासीन द्वारा हस्ताक्षरित है या नहीं, कोर्ट की सील के साथ उस में नाम, पताव अपराध सही है या नहीं. यदि कुछ भी छूट जाता है तो वारेंट को निरर्थक माना जाएगा.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 56 मजिस्ट्रेट के सामने आपराधिक की पेशी के बारे में बताती है. बिना वारेंट के यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो बिना किसी निलंबन व देरी के गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट या थाना प्रभारी अधिकारी के समक्ष पेशी के लिए ले जाया जाना चाहिए.

 

  • गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 57 में कहा गया है कि पुलिस ऐसे व्यक्ति को लंबी अवधि के लिए हिरासत में नहीं रख सकती जिसे बिना वारेंट गिरफ्तार किया गया हो. यह अवधि धारा 167 के तहत किसी भी हालत में मैजिस्ट्रेट के विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मैजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय 24 घंटे से ज्यादा नहीं होगी.

 

  • इस के अलावा, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41डी और 303 में कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपने वकील के साथ बैठने का अधिकार है.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 50 गिरफ्तारी के बारे में व्यक्ति के परिवार, दोस्त या रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना देने का अधिकार देती है.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 54 गिरफ्तार हुए व्यक्ति को, चाहे वह महिला हो या पुरुष, चिकित्सा सहायता प्राप्त करने का अधिकार देती है. साथ ही, धारा 55ए में कहा गया है कि हिरासत में रखने वाला अभियुक्त गिरफ्तार हुए व्यक्ति के स्वास्थ्य व सुरक्षा का ख्याल रखे.

 

  • आखिर में, अनुछेद 20 (3) व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि पुलिस की जोर जबर्दस्ती से अपराध कुबूल कराने की कोशिश के बीच व्यक्ति चुप रह सकता है.

टीवी में एंट्री नहीं करेंगी ईशा देओल, कहीं ये बात

कोरोनावायरस और लॉकडाउन के बाद अब जब न ए एपिसोड की शूटिंग शुरू हुई है, तू तमाम  टीवी सीरियलों की कहानी और कलाकारों को बदल दिया गया है. धार्मिक सीरियल जग जननी मा वैष्णो देवी मैं तमाम कोशिशों के बाद अब परिधि शर्मा को मां वैष्णो देवी के किरदार के लिए चुना गया है. निर्माता और चैनल लंबे समय से वैष्णो देवी की मां का किरदार निभाने के लिए कलाकार की तलाश में थे.

लॉकडाउन शुरू होने पर खबर आई थी कि मां वैष्णो देवी की मां का किरदार अभिनेत्री तोरल रासपुत्र निभाएंगी. लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र सरकार ने दिशा निर्देश जारी कर सीरियलों की शूटिंग का रास्ता साफ किया, वैसे ही तोरल रासपुत्रा ने सुरक्षा कारणों से इस सीरियल में अभिनय करने से साफ साफ मना कर दिया. उसके बाद निर्माताओं ने पुनः नए कलाकार की तलाश तेज कर दी थी.

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पिछले एक सप्ताह से फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में चर्चा गर्म थी कि हेमा मालिनी की बेटी और अभिनेत्री ईशा देओल को सीरियल जग जननी मां वैष्णो देवी मैं वैष्णो देवी की मां का किरदार निभाने के लिए चुना गया है और वह बहुत जल्द इस सीरियल की शूटिंग शुरू करेंगी.

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मगर अब खुद ईशा देओल ने अपनी तरफ से आगे बढ़कर इन खबरों का पूरी तरह से खंडन किया है. ईशा देओल ने कहा है कि  अखबारों में छप रही यह खबर पूरी तरह से निराधार है कि मैं किसी सीरियल में अभिनय करने जा रही हूं. हकीकत में छोटे पर्दे पर नहीं काम कर रही हूं और नहीं किसी सीरियल में मैं अपने करते हुए नजर आने वाली हूं. हकीकत यह भी है कि अभी तक किसी भी सीरियल के निर्माता ने भी मुझसे अपने सीरियल में अभिनय करने के लिए संपर्क नहीं किया है. मेरी समझ में नहीं  आ रहा है कि कि बिना सच को जाने किसने यह झूठी खबर फैलाई और लोग गलत खबर क्यों छाप रहे हैं.

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ईशा देओल की प्रवक्ता का दावा है कि ईशा देओल इस वक्त कुछ फिल्मों और वेब सीरीज की पटकथा पढ़ रही हैं. तथा निकट भविष्य में वह बताने वाली हैं कि किस फिल्म या वेब सीरीज में वह अभिनय करने जा रही है.

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