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मानसून स्पेशल: मसाला मूंगफली और बेसन का चटकारेदार स्वाद

मूंगफली खाने में सब से अच्छी होती है. लोगों को इस को हर रूप में खाना पसंद आता है. ज्यादातर नमकीनों में मूंगफली का प्रयोग किया जाता है. मूंगफली के प्रयोग से नमकीन का स्वाद बढ़ जाता है. यह सेहत के लिए भी अच्छी होती है.

मूंगफली के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए अब केवल मूंगफली को ले कर प्रयोग होने लगे हैं. इस को मूंगफली नमकीन, मसाला पीनट जैसे कई नामों से जाना जाता है. यह छोटे और बड़े हर तरह के पैकेट में मिलता है. अच्छी क्वालिटी की मूंगफली, बेसन और मसालों के प्रयोग से यह बहुत टेस्टी बन जाता है. इस को रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है.

देश में मूंगफली की खेती बडे़ पैमाने पर होती है. मूंगफली के बढ़ते प्रयोग से इस के किसानों का मुनाफा बढ़ता है. मूंगफली को ‘गरीबों का मेवा’ कहा जाता है. खासकर जाड़ों में

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इस को खाना बहुत गुणकारी होता है. मूंगफली के इन गुणों के कारण ही मिठाई से ले कर नमकीन तक में इस का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. मसाला पीनट मूंगफली नमकीन का बदला हुआ रूप है. करीबकरीब पूरे देश में यह मिलता है. ऐसे में यह किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए हितकारी है.

इसे बडे़ पैमाने पर बना कर रोजगार का जरीया भी बनाया जा सकता है. अगर माइक्रोवेव का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं, तो मसाला लगे मूंगफली के दानों को तेल में हलका सा फ्राई कर लीजिए. ध्यान रहे कि मसाला जलने न पाए.

अगर मसाला जल गया तो इस का स्वाद अच्छा नहीं होगा. इस के साथ यह देखना भी बहुत जरूरी है कि जिस मूंगफली का प्रयोग किया जा रहा हो, उस की क्वालिटी बहुत अच्छी हो, खराब किस्म की मूंगफली के दाने स्वाद को खराब करते हैं.

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मसाला पीनट बनाने के लिए सामग्री :

मूंगफली के दाने 1 कप,

बेसन आधा कप,

नमक स्वादानुसार,

लाल मिर्च पाउडर स्वादानुसार,

आधा चम्मच गरम मसाला,

आधा चम्मच चाट मसाला,

आधा चम्मच धनिया पाउडर,

आधा छोटा चम्मच अमचूर पाउडर,

बेकिंग सोडा 2 चुटकी,

हींग 1 चुटकी और तेल

बनाने की विधि :

  • सब से पहले बेसन को किसी बड़े प्याले में डाल कर उस में नमक, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, धनिया पाउडर, अमचूर पाउडर, बेकिंग सोडा और हींग डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिए. थोड़ा अमचूर पाउडर बचा कर रख लीजिए. इस का प्रयोग बाद में करेंगे.
  • मूंगफली के दाने जिस बरतन में भरे हैं, उस में इतना पानी भर दीजिए कि मूंगफली के दाने पानी में डूब जाएं और तुरंत छलनी से छान कर पानी हटा दीजिए. ध्यान रखें कि मूंगफली के दाने सिर्फ गीले होने चाहिए.
  • मूंगफली के गीले दाने बेसन मसाला मिक्स में डाल कर मिक्स कीजिए. देख लीजिए कि बेसन मसाला मूंगफली के दाने के ऊपर अच्छी तरह कोट हो जाए.
  • अगर बेसन सूखा बचा हुआ है, तो 1-2 छोटे चम्मच पानी छिड़कते हुए डाल कर मिला दीजिए, ताकि सारा बेसन और मसाले मूंगफली के दानों पर कोट हो जाएं. अब तेल डाल कर मूंगफली के दानों में मिला दीजिए.
  • माइक्रोवेव सेफ  ट्रे ले लीजिए और मसाला मिले मूंगफली के दाने ट्रे में अलगअलग करते हुए फैला दीजिए. ट्रे को माइक्रोवेव में रखिए और अधिकतम तापमान पर 4 मिनट माइक्रोवेव में गरम कीजिए.
  • ट्रे को बाहर निकालिए और दानों को पलट दीजिए, अलगअलग कर दीजिए. ट्रे को फिर से माइक्रोवेव में रख दीजिए और 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए. ट्रे को बाहर निकालिए. मसाला पीनट बन चुके हैं.
  • मसाला पीनट में चाट मसाला डाल कर मिला दीजिए. अगर आप महसूस करें कि अभी मसाला पीनट पूरी तरह से कुरकुरे नहीं हुए हैं, तो उन्हें 1 मिनट और माइक्रोवेव में गरम कर लीजिए.
  • मसाला पीनट को पूरी तरह ठंडा होने के बाद एयर टाइट कंटेनर में भर कर रख दीजिए.
  • अगर आप मसाला पीनट में तेल नहीं डालना चाहें, तो न डालें. बिना तेल के भी मसाला पीनट अच्छे बनते हैं, लेकिन तेल डालने से मसाला पीनट का रंग और स्वाद दोनों ही बढ़ जाता है.

Hyundai Grand i10 Nios: उम्मीद से कहीं ज्यादा

कार निर्माता कंपनी हुंडई अपनी Hyundai Grand i10 Nios को लेकर काफी चर्चा में है. यह कार
ग्राहकों के बीच खासी लोकप्रिय हैचबैक कार बन चुकी है.

दरअसल, आयरिश भाषा में ‘Nios’ शब्द का अर्थ ‘अधिक’ से है और इस शब्द से नए Hyundai Grand i10 Nios को अच्छी तरह समझा जा सकता है.

हर स्तिथी में यह आपके उम्मीद से कहीं ज्यादा खरी उतरती है. इसके पिछले हिस्से के बूट पर लगे स्पॉयलर की वजह से यह एक स्पोर्टी हैचबैक कार है. जिसकी वजह से कार का पिछला हिस्सा काफी आरामदेह व स्पेस वाला है.

आने वाले दिनों में हम आपको डिटेल में बताएंगे कि हुंडई ग्रैंड i10 Nios आपके लिए बेहतर और पैसा वसूल हैचबैक कार क्यों है.

पुलिस की लगातार बढ़ती बर्बरता

अमेरिका में पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए जौर्ज फ्लोयड की मौत ने कई सवाल खड़े किए थे. जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेद को उजागर कर पूरे अमेरिका को आग में झुलसा दिया था जिस का धुआं यहां भारत तक भी आया था. ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में भारतीयों ने भी सोशल मीडिया पर आवाज उठाई थी जिस से देश में रंगभेद को ले कर हर तरफ बहस छिड़ गई थी. अमेरिका में चल रहे आंदोलन का असर इतना गहरा हुआ था कि आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ व उन्हें सजा सुनाई गई. हाल ही में भारत में भी पुलिस की बर्बरता का कुछ इसी तरह का मामला सामने आया जिस ने एक बार फिर पुलिस की प्रताड़ना को उजागर किया है. तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले में जयराज और उन के बेटे बेनिक्स के साथ पुलिस हिरासत में जघन्य हिंसा हुई जिस से दोनों की मृत्यु हो गई. दोनों के साथ जो हुआ उस ने एक बार फिर पुलिस व न्यायिक प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है.

पुलिस हिरासत में हिंसा व अत्याचार का यह पहला मामला नहीं है, ऐसे अनेक मामले हैं जहां पुलिस ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ बर्बरता की सीमाएं तोड़ी हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से 2016 तक भारत में पुलिस हिरासत में 1,022 लोगों की मौत हुई लेकिन पुलिस के खिलाफ केवल 428 एफआईआर लिखवाई गईं. इन में से भी सिर्फ 5 फीसदी पुलिस वालों को ही सजा मिली. यह आंकड़ें केवल मृत्यु के हैं व बुरी तरह घायल या अपंग होने वाले व्यक्तियों की गिनती का कोई जिक्र तक नहीं हैं. पुलिस जिसे जनता का रक्षक कहा जाता है यदि वह ही भक्षक बन जाए तो जनता न्याय के लिए किस का दरवाजा खटखटाएगी? पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, बर्बरता, बलात्कार व अत्याचार का शिकार आमजन आखिर जाए तो जाए कहां?

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जयराज और बेनिक्स की निर्मम हत्या

तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले के रहने वाले पी जयराज (59) व उन का बेटे जे बेनिक्स (31) एक छोटी सी मोबाइल फोन की दुकान चलाते थे. पुलिस के अनुसार, उन दोनों ने 19 जून की रात कर्फ्यू के नियम तोड़ते हुए, कर्फ्यू के निर्धारित समय से ज्यादा देर तक अपनी दुकान खोले रखी थी. जब पुलिस उन के पास गई तो वे चिल्लाने लगे, गालीगलौज करने लगे, जब पुलिस ने उन्हें साथ चलने के लिए कहा तो वे सड़क पर विरोध में हाथपैर पटकते हुए लोटने लगे जिस के चलते उन्हें गंभीर चोटें आईं व इंटरनल ब्लीडिंग होने लगी. जबकि मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि पुलिस जो कुछ कह रही है वह सरासर झूठ है. तो फिर सचाई क्या है?

असल में हुआ यों था कि 19 जून की रात जयराज को पुलिस अपने साथ ले गई थी जिस के बाद बेनिक्स अपने दोस्त और कुछ मौके पर मौजूद लोगों के साथ स्टेशन गया था. पुलिसकर्मियों ने उन के खिलाफ धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), धारा 269 (लापरवाही से जानलेवा बीमारी के संक्रमण फैलाने की कोशिश) और 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से विमुख करने के लिए बल का उपयोग), सहित कई अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर लिया.  सथनकुलम पुलिस स्टेशन में जयराज और बेनिक्स दोनों को पुलिस ने हवालात में बंद कर दिया. उन दोनों को पुलिस ने घंटों तक बुरी तरह मारापीटा, खदेड़ा, नौचा व बिना रुके लाठियां बरसाईं. उन दोनों के चेहरों को पुलिस द्वारा दीवार पर जोर से मारा गया था, घुटने फोड़े गए थे व शरीर पर मारपीट के दौरान एक भी कपड़ा नहीं था. उन के अंडरवियर तक बुरी तरह फटे व खून से सने हुए थे. मौके पर मौजूद गवाहों के अनुसार, उन दोनों को पुलिस द्वारा इतना मारा गया कि उन के कपड़े बुरी तरह फट व खून से लथपथ हो चुके थे, जिस के कारण उन के घर खून से सने कपड़े भिजवा कर तीन बार साफ कपड़ों को मंगावाया गया था.

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कुछ गवाहों का यह भी कहना है कि जयराज और बेनिक्स के यौनांग भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए थे व उन्हें सोडोमाइज्ड किया गया था अर्थात उन के गुदा को लाठियों से क्षति पहुंचाई गई थी यानी गुदा में लाठी कई बार डाली गई थी. बेनिक्स के दोस्त के अनुसार, जब बापबेटे घर आए तो उन की पैंट बुरी तरह से खून से सनी हुई. अगले दिन यानी 20 जून की सुबह पुलिस ने उन्हें घर आने दिया था जहां सुबह 7 बजे से 12 बजे तक उन दोनों ने 7-7 लुंगियां बदली थीं क्योंकि वे बारबार खून से भीग रही थीं. जब बापबेटे घर लौटे थे तो दोनों बुरी तरह घायल थे व दोनों ने ही रेक्टम में दर्द बताया था क्योंकि उस से लगातार खून निकल रहा था.

उन दोनों को घर से सथनकुलम सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टर ने स्थानीय पुलिस के आदेश पर दोनों को फिट घोषित किया था. 3 घंटों बाद उन दोनों को सथनकुलम मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाने के लिए पुलिस ने एक बार फिर कस्टडी में ले लिया. लेकिन, मजिस्ट्रेट ने उन्हें देखे बिना ही कोवलपट्टी सब जेल में रिमांड में लेने का फैसला सुना दिया जोकि नियमों के विरुद्ध था. नियमों के अनुसार मजिस्ट्रेट आरोपी को देखता है व उस के पूरी तरह फिट होने पर ही पुलिस को रिमांड के लिए आदेश देता है जबकि जयराज और बेनिक्स के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन दोनों को पुलिस द्वारा डराया और धमकाया भी गया था ताकि वे मजिस्ट्रेट को सच न बताएं.

अगले 2 दिनों तक परिवार को जयराज और बेनिक्स की कोई खबर नहीं मिली. 22 जून के दिन दोनों को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया जहां दोनों बुरी तरह खून से लथपथ थे व दोनों के शरीर से लगातार खून बह रहा था. अस्पताल में 22 जून को बेनिक्स की मृत्यु हो गई व अगले दिन 23 जून को जयराज ने भी दम तोड़ दिया. पुलिस की बर्बरता ने दो निर्दोषों को एक नगण्य गलती के लिए मौत के घाट उतार दिया.

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सचाई बयां करती सीसीटीवी फूटेज

बेनिक्स की दुकान के बगल की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरा में स्पष्ट नजर आ रहा है कि पुलिस जो कह रही है व उस के द्वारा एफआईआर में जो कुछ भी लिखा गया है, वह सरासर झूठ है. सीसीटीवी में साफ नजर आ रहा है कि पुलिस पहले जयराज के पास आई जो अपनी दुकान के बाहर खड़ा था. पुलिस ने उस से दो मिनट खड़े हो कर बात की फिर वापस सड़क के दूसरी तरफ सामने जा कर खड़ी हो गई. पुलिस अपनी वैन के पास खड़ी थी और कुछ मिनटों बाद ही उन्होंने जयराज को अपने पास आवाज दे कर बुलाया. जयराज के जाने के बाद बेनिक्स दुकान से निकल कर बाहर आया और रोड के दूसरी तरफ अपने पिता को देखने के लिए गया, जिस के साथ उस के आसपास खड़े लोग भी गए. पुलिस बहस के दौरान अपने साथ जयराज को ले गई और बेनिक्स वापस आ कर अपने दोस्त के साथ बाइक पर बैठ कर स्टेशन चला गया.

पुलिस के अनुसार, उन दोनों को चोटें सड़क पर लोटने से आई थीं जबकि फूटेज में ऐसा कुछ नजर नहीं आया. पुलिस ने वहां भीड़ की बात भी कही थी जो फूटेज में नहीं दिखी. एफआईआर में दोनों को पकड़ने का समय 9 बज कर 15 मिनट बताया गया परंतु सीसीटीवी के अनुसार असल समय 8 बजे के करीब था. सीसीटीवी में यह भी स्पष्ट दिख रहा है कि सिर्फ बेनिक्स और जयराज की ही दुकान उस समय खुली हुई नहीं थी बल्कि आसपास की दुकानें भी खुली थीं, जब कि पकड़ा सिर्फ जयराज और बेनिक्स को गया.

इस की वजह क्या हो सकती थी पर एक गवाह का कहना था कि 18 जून से ही उन लोगों की दुकानों के आसपास पुलिस ने कर्फ्यू के चलते गिरफ्तारी शुरू कर दी थी और किसी ने पुलिस को कहा था कि जयराज ने पुलिस के चले जाने पर उन्हें गाली थी. यह एक वजह हो सकती है जिस के चलते पुलिस ने अगले दिन बाप बेटे दोनों को निशाने पर लिया. इंस्पेक्टर श्रीधर, सब इंस्पेक्टर बालकृष्णन और रघुगणेश इस हत्या के पीछे हैं, जिन में बालकृष्णन और रघुगणेश ने इंस्पेक्टर श्रीधर के कहने पर जयराज और बेनिक्स पर हिंसा की.

तूतुकुड़ी पुलिस द्वारा हिंसा का यह पहला मामला नहीं

जयराज और बेनिक्स की हत्या ने तूल पकड़ा तो तूतुकुड़ी पुलिस द्वारा हिंसा के और भी कच्चे चिट्ठे सामने आए. जयराज और बेनिक्स का मामला दृष्टि में आया क्योंकि उन दोनों की जानें गईं, ऐसे कई मामले हैं जहां जान बच जाने के चलते अत्याचार का मामला दब कर रह गया. दो सप्ताह पहले सथकुलम थाने में एक दर्जन लोगों को बुरी तरह मारापीटा गया था, जिन में से एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दो लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई उस का नाम महेन्द्रन था जिसे उस के भाई दुरई के साथ गिरफ्तार किया गया था. महेन्द्रन को शक के बिनाह पर एक इंवेस्टिगेशन में गिरफ्तार किया गया था व उसे बुरी तरह पीटा गया था. तीन पुलिस वालों ने महेन्द्रन को तब तक मारा जब तक कि उस की मौत नहीं हो गई, फिर बिना पोस्टमार्टम के उस के शव को उस की मां को दे दिया व धमकी दी गई कि यदि वे किसी से कुछ कहती हैं तो उन के दूसरे बेटे दुरई का भी यही हश्र किया जाएगा.

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सूत्रों के हवाले से बताया गया कि 15 दिन पहले एक नाबालिग सहित 8 लोगों को सथकुलम थाने में प्रताड़ित किया गया था. इन लोगों को 3 दिन तक पीटा गया व नाबालिग को अवैध तरीके से 2 दिन जेल में रखा गया.

हिरासत में लिए गए व्यक्ति राजासिंह ने पड़ताल कर रही न्यायिक टीम को बताया कि  सथकुलम पुलिस ने उसे बेंच पर लेटाया, उस के ऊपर कुछ पुलिसवाले बैठे व उस के मुंह और पैरों पर प्रहार करने लगे. राजासिंह के अनुसार पिटाई के बाद उसे कोवलपट्टी सब जेल में भेज दिया गया, जबकि उसे अस्पताल भेजा जाना चाहिए था.

तूतुकुड़ी एमपी कनिमोही के अनुसार, “मुझे बताया गया है कि ऐसे कई लोग हैं जिन्हें सथकुलम पुलिस द्वारा जीवनभर के लिए अपंग कर दिया गया, जो विकलांग हो गए. कितने ही लोगों की जिंदगियां खराब हो गईं क्योंकि एक पुलिसवाले को लगा कि अपनी ताकत आजमाने के लिए एक आम आदमी पर हिंसा करना कोई बड़ी बात नहीं है.”

पुलिस हिरासत में अत्याचार के अन्य मामले

किसी अपराध के होने पर जब पुलिस अपराधियों को पकड़ कर लाती है तो उन से गुनाह कुबूल करवाने के लिए वह उन के साथ थर्ड डिग्री टोर्चर करती है. खुद लोग भी किसी अपराधी के गिरफ्तार होने पर न्यायिक प्रक्रिया को बढ़ाने और गुनाह मनवाने के लिए व्यक्ति को मार डालने तक की बातें करते हैं. ज्यादातर बलात्कार के मामलों में देखने में आता है कि जनता द्वारा मांग की जाती है कि अपराधी को सड़क पर फांसी दी जाए या जला दिया जाए. न्यायालय में सजा सुनाए जाने से पहले व गुनाह साबित होने से पहले ऐसी बातें की जाती हैं. क्या यह पुलिस को बर्बरता के लिए उकसाने जैसा नहीं है? खुद पुलिस को लगता है कि मामले को सुलझाने के लिए एड़ीचोटी का दम लगा सुलझाया जाए जिस के लिए अगर व्यक्ति को बुरी तरह प्रातड़ित भी करना पड़े तो ठीक है. पुलिस का यही रवैया कस्टोडियल डेथ्स का बड़ा कारण है.

एनसीआरबी के 2017 के डाटा के अनुसार, तकरीबन 100 लोगों की मौत हवालात में हुई थी. इन में से 58 लोग रिमांड में नहीं थे बल्कि गिरफ्तार किए गए थे और कोर्ट के सामने पेशी के लिए ले जाए जाने बाकी थे व 42 ऐसे थे जो पुलिस या न्यायिक रिमांड में थे.

2017 में कस्टोडियल मौतों से संबन्धित 60 मामलों में, 33 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया, 27 के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई, 4 को दोषमुक्त करार कर बरी कर दिया गया और किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया.

6 नवंबर, 2017 को अंकित कोठाले (26) और उस के दोस्त अमोल भंडारे (23) को महाराष्ट्र के सांगली डिस्ट्रिक्ट पुलिस ने हिरासत में लिया था. हिरसात में लिए जाने के बाद दोनों को पुलिस ने प्रताड़ित किया जिस के बाद अंकित बेहोश हो गया व शरीर पर आए ढेरों घावों के चलते पुलिस स्टेशन में ही उस की मौत हो गई. पुलिस कर्मचारी द्वारा डाक्टर को अंकित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में झूठ लिखने को भी कहा गया था जिस से यह सामने न आ सके कि घायल होने के चलते अंकित की जान गई. राज्य सरकार द्वारा मामले में 7 पुलिस कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया व डिस्ट्रिक्ट पुलिस सुप्रीटेंडेंट और डिप्टी सुप्रीटेंडेंट का तबादला कर दिया गया था, लेकिन, किसी को सजा नहीं मिली.

27 अक्टूबर, 2019 के दिन सुबह 11 बजे विजय सिंह नामक 26 वर्षीय लड़के को मुंबई के वडाला ट्रक टर्मिनल पुलिस स्टेशन में गिरफ्तार किया गया था. विजय पर एक कपल द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी. कपल का कहना था कि वे दोनों जब साथ बैठे थे तो विजय अपनी बाइक पर बैठ उन के मुंह पर हेडलाइट मार उन्हें परेशान कर रहा था. पुलिस ने विजय को हिरासत में ले लिया जिस के बाद उसे बुरी तरह पीटा गया और जब वह छाती में दर्द की शिकायत करने लगा तो पुलिस उसे अस्पताल नहीं ले गई और स्टेशन में ही उस ने दम तोड़ दिया. विजय ने दर्द से कराहते हुए रात 11:30 बजे अस्पताल जाने की मांग की थी लेकिन उसे रात 2 बजे तक बेंच पर बैठाए रखा गया. बाद में जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो डाक्टर ने उसे मृत करार दे दिया. इस मामले में 5 पुलिस कर्मचारी जिन में सब इंस्पेक्टर संदीप कदम, असिस्टेंट इंस्पेक्टर सलीम खान, तीन कौन्स्टेबल थे, को सस्पैंड किया गया.

तेलंगाना के पेलापड्डी जिले में 24 मई 2020 को तीन व्यक्तियों को जंगली जानवरों के शिकार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. तीनों को पुलिस ने मारापीटा जिस के बाद 26 मई के दिन श्रीलम नाम के व्यक्ति ने टोयलेट जाने के बहाने पुलिस स्टेशन में ही फांसी लगा ली. पुलिस का डर या हिंसा के चलते वह व्यक्ति सुसाइड करने पर मजबूर हो गया.

यह केवल चंद मामलें हैं जिन में पुलिस हिरासत में लोगों की मृत्यु हुई, अनेक ऐसे मामले भी हैं जहां व्यक्ति बुरी तरह घायल हुए व पुलिस के खिलाफ किसी तरह की न कोई शिकायत दर्ज हुई न कार्यवाही हुई.

आखिर पुलिस की बर्बरता का हल क्या है?

पुलिस की बर्बरता इस हद तक सामान्य हो चुकी है कि यह हमारी मुख्यधारा से जुड़ चुकी है चाहे वह सिनेमा हो या असल जिंदगी. परदे पर जब हम किसी हीरो को पुलिस वाले के रूप में देखते हैं तो उस के द्वारा चाहे कितनी ही बुरी तरह विलेन का शोषण हो, हम उस पर तालियां पीटते हैं. हवालात में होने वाली हिंसा इतनी आम हो चुकी है कि हम इस के प्रति पूर्ण रूप से असंवेदनशील हो चुके हैं और हमारी संवेदना तभी जागती है जब जयराज और बेनिक्स के प्रति हुई हिंसा जैसे जघन्य मामले हमारे सामने आते हैं.

डीके बासु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य क्षेत्र, जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य क्षेत्र व सहेली बनाम दिल्ली पुलिस कमिश्नर, कुछ ऐसे मामले हैं जहां पुलिस की बर्बरता आने हदें पार कर दी थीं. सहेली बनाम दिल्ली पुलिस कमिशनर का ऐसा ही मामला था जहां मां के पीटे जाने पर उस का 9 वर्षीय बेटा बीच में आ गया और उस की मौत हो गई. कहना मुश्किल था कि वह अपनी मां से पुलिस के डर से खुद को बचाने के लिए चिपटा था या अपनी मां को बचाने के लिए.

मामलों की जांच तेजी से करने के चलते पुलिस बर्बरता पर उतर आती है. ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सीसीटीवी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां अकसर पुलिस गुनाह मनवाने के लिए लोगों पर शक्ति का प्रयोग करती है. पुलिस का डर समाज में इतना व्याप्त है कि हाथ पैर तुड़वा लेने पर भी वे पुलिस के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं. जयराज और बेनिक्स मध्यवर्गीय थे, पढ़ा लिखा परिवार था इसलिए उन के साथ हुई जघन्य हिंसा सामने आई, लेकिन यही कोई निम्नवर्गीय परिवार होता तो पुलिस के डर से शायद सामने न आता.

सवाल उठता है कि आखिर पुलिस की बर्बरता के लिए अधिकारियों को केवल सस्पेंड करने भर से क्या होगा? एनसीआरबी डाटा के अनुसार, 2016 में हिरासत में मरने वालों की संख्या जहां 92 थी वहीं 2017 में वह 9 फीसदी बढ़ कर 100 हो गई. 37 मामले ऐसे थे जहां हिरासत में 37 लोगों ने सुसाइड किया, 28 लोगों की मौत हिरासत के पश्चात बीमार होने या अस्पताल में ले जाने के बाद हुई, पुलिस की मारपीट के दौरान 5 लोगों ने दम तोड़ दिया व 22 मौतों का कोई सटीक जवाब नहीं है. क्या यह आंकड़ें पुलिस को जवाबदेह नहीं बनाते? क्या इन्हें नजरंदाज किया जाना चाहिए?

जयराज और बेनिक्स के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय का कहना है कि जयराज और बेनिक्स के साथ पुलिस की बर्बरता होने के पूरे साक्ष्य मौजूद हैं. मामले में अबतक मौजूद तीनों पुलिस वालों को सस्पेंड किया जा चुका है और मजिस्ट्रेट की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. पीड़ित पितापुत्र के परिवार ने पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का आरोप लगाया है व न्याय की मांग की है. जायज भी है, यदि सामान्य व्यक्ति के लिए हत्या की सजा फांसी या उम्रकेद है तो पुलिस के लिए केवल सस्पेंड कर के छोड़ देना कहां का न्याय है? क्या उन्हें अपराध करने की छूट है? क्या वे अपने मनमुताबिक निर्दोष व्यक्ति को खाकी वर्दी के दमखम पर जान से मार सकते हैं? पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार जयराज और बेनिक्स का गुनाह इतना भर था कि उन्होंने कर्फ्यू के कुछ मिनटों बाद तक अपनी दुकान खोले रखी. क्या इस अपराध के लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा मिलनी चाहिए थी?

लौकडाउन के दौरान भारत के कई हिस्सों से पुलिस द्वारा सड़कों पर घूम रहे लोगों को मारेपीटे जाने वाले कई विडियो सामने आए थे, कई मामलों में लोगों को गंभीर चोटें भी आई थीं. इस से कुछ दिन पहले सीएए और एनआरसी के विरोध के चलते जामिया मिलिया इसलामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्रों पर पुलिस की भरसक हिंसा देखने को मिली थी. परंतु, किसी न किसी बहाने से इन हिंसाओं को ढंकने की या सही ठहराने की कोशिश की गई. लेकिन, यह सही नहीं है.

जयराज और बेनिक्स घर के कमाऊ व्यक्ति थे, तमिलनाडू राज्य सरकार द्वारा उन के परिवार को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी. विपक्षी पार्टी डीएमके द्वारा 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी गई है. परंतु यह मदद कभी भी जयराज और बेनिक्स की जान की कीमत नहीं चुका पाएगी.

  गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति के कानूनी अधिकार

पुलिस को गिरफ्तार करने की विस्तृत शक्तियां देने के साथ आपराधिक संहिता में गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को भी कुछ अधिकार दिए गए हैं. विभिन्न मामलों में पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के समय सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है जिस के लिए आपराधिक संहिता में निम्न कुछ नियम हैं जो व्यक्ति को पुलिस की ज्यादती से बचा सकते हैं:

 

  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 (1) के अनुसार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को सूचना व जानकारी का मौलिक अधिकार प्राप्त है, जिस के चलते वह पुलिस से यह पूछ सकता है कि किस गुनाह के आधार पर उसे गिरफ्तार किया जा रहा है. यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति को बताए कि उसे किस जुर्म में गिरफ्तार किया जा रहा है. पुलिस का यह बताना भी आवश्यक है कि अपराध के लिए व्यक्ति जमानती है या गैरजमानती.

 

  • गैर-संज्ञेय अपराधों के संबंध में पुलिस का वारंट के आधार पर गिरफ्तार करना जरूरी है. साथ ही गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को वारेंट दिखाना चाहिए. इसलिए, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 75 के अंतर्गत, व्यक्ति को वारेंट यह जांचने के लिए दिया जाता है कि वह सही है या नहीं, यानी वारेंट में आवश्यक विवरण शामिल हैं या नहीं, वारेंट लिखित में है या नहीं, वारेंट पीठासीन द्वारा हस्ताक्षरित है या नहीं, कोर्ट की सील के साथ उस में नाम, पताव अपराध सही है या नहीं. यदि कुछ भी छूट जाता है तो वारेंट को निरर्थक माना जाएगा.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 56 मजिस्ट्रेट के सामने आपराधिक की पेशी के बारे में बताती है. बिना वारेंट के यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो बिना किसी निलंबन व देरी के गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट या थाना प्रभारी अधिकारी के समक्ष पेशी के लिए ले जाया जाना चाहिए.

 

  • गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 57 में कहा गया है कि पुलिस ऐसे व्यक्ति को लंबी अवधि के लिए हिरासत में नहीं रख सकती जिसे बिना वारेंट गिरफ्तार किया गया हो. यह अवधि धारा 167 के तहत किसी भी हालत में मैजिस्ट्रेट के विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से मैजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय 24 घंटे से ज्यादा नहीं होगी.

 

  • इस के अलावा, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41डी और 303 में कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपने वकील के साथ बैठने का अधिकार है.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 50 गिरफ्तारी के बारे में व्यक्ति के परिवार, दोस्त या रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना देने का अधिकार देती है.

 

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 54 गिरफ्तार हुए व्यक्ति को, चाहे वह महिला हो या पुरुष, चिकित्सा सहायता प्राप्त करने का अधिकार देती है. साथ ही, धारा 55ए में कहा गया है कि हिरासत में रखने वाला अभियुक्त गिरफ्तार हुए व्यक्ति के स्वास्थ्य व सुरक्षा का ख्याल रखे.

 

  • आखिर में, अनुछेद 20 (3) व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि पुलिस की जोर जबर्दस्ती से अपराध कुबूल कराने की कोशिश के बीच व्यक्ति चुप रह सकता है.

टीवी में एंट्री नहीं करेंगी ईशा देओल, कहीं ये बात

कोरोनावायरस और लॉकडाउन के बाद अब जब न ए एपिसोड की शूटिंग शुरू हुई है, तू तमाम  टीवी सीरियलों की कहानी और कलाकारों को बदल दिया गया है. धार्मिक सीरियल जग जननी मा वैष्णो देवी मैं तमाम कोशिशों के बाद अब परिधि शर्मा को मां वैष्णो देवी के किरदार के लिए चुना गया है. निर्माता और चैनल लंबे समय से वैष्णो देवी की मां का किरदार निभाने के लिए कलाकार की तलाश में थे.

लॉकडाउन शुरू होने पर खबर आई थी कि मां वैष्णो देवी की मां का किरदार अभिनेत्री तोरल रासपुत्र निभाएंगी. लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र सरकार ने दिशा निर्देश जारी कर सीरियलों की शूटिंग का रास्ता साफ किया, वैसे ही तोरल रासपुत्रा ने सुरक्षा कारणों से इस सीरियल में अभिनय करने से साफ साफ मना कर दिया. उसके बाद निर्माताओं ने पुनः नए कलाकार की तलाश तेज कर दी थी.

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पिछले एक सप्ताह से फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में चर्चा गर्म थी कि हेमा मालिनी की बेटी और अभिनेत्री ईशा देओल को सीरियल जग जननी मां वैष्णो देवी मैं वैष्णो देवी की मां का किरदार निभाने के लिए चुना गया है और वह बहुत जल्द इस सीरियल की शूटिंग शुरू करेंगी.

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मगर अब खुद ईशा देओल ने अपनी तरफ से आगे बढ़कर इन खबरों का पूरी तरह से खंडन किया है. ईशा देओल ने कहा है कि  अखबारों में छप रही यह खबर पूरी तरह से निराधार है कि मैं किसी सीरियल में अभिनय करने जा रही हूं. हकीकत में छोटे पर्दे पर नहीं काम कर रही हूं और नहीं किसी सीरियल में मैं अपने करते हुए नजर आने वाली हूं. हकीकत यह भी है कि अभी तक किसी भी सीरियल के निर्माता ने भी मुझसे अपने सीरियल में अभिनय करने के लिए संपर्क नहीं किया है. मेरी समझ में नहीं  आ रहा है कि कि बिना सच को जाने किसने यह झूठी खबर फैलाई और लोग गलत खबर क्यों छाप रहे हैं.

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ईशा देओल की प्रवक्ता का दावा है कि ईशा देओल इस वक्त कुछ फिल्मों और वेब सीरीज की पटकथा पढ़ रही हैं. तथा निकट भविष्य में वह बताने वाली हैं कि किस फिल्म या वेब सीरीज में वह अभिनय करने जा रही है.

1 साल बाद ‘इश्क सुभान अल्लाह’ में नजर आएंगी असली ‘जारा’, ऐसा होगा रोल

कोरोना महामारी ने बहुत कुछ बदला है.लोगों की जीवन शैली व उनकी सोच में भी बदलाव किया है.जिसका असर हर क्षेत्र पर नजर आ रहा है,इससे टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है .लाॅकडाउन में थोड़ी छूट मिलने के बाद महाराष् ट् सरकार के दिशा निर्देशों अनुसार टीवी सीरियल की शूटिंग शुरू हुई है,पर इनकी कहानियों में काफी बदलाव नजर आने वाले हैं. टीवी चैैनलों और निर्माताओं ने अपने सीरियल को पुनः लोकप्रिय बनाने की बात ध्यान में रखकर ही यह सारे बदलाव किए हैं.परिणामतः चैनल व निर्माता उन किरदारो व उन कलाकारों को एक बार फिर कहानी में प्रमुखता दे रहे हैं,जो कभी दर्शकों की पसंद बन गए थे,पर कुछ समय से वह सीरियल से गायब हो गए थे.इसी के चलते  अब जीटीवी ने  13 जुलाई से पुनः नए एपीसोडों के साथ प्रसारित होने वाले  सीरियल ‘‘इश्क सुभान अल्लाह’’में मौलिक जारा सिद्दीकी का किरदार निभाने वाली अदाकारा ईशा सिंह की वापसी करा रहा है.कहने का अर्थ यह कि पिछले एक वर्ष से इस सीरियल से गायब रही ईशा सिंह अब पुनः जारा सिद्दिकी का किरदार निभाते हुए नजर आने वाली हैं.

‘‘इश्क सुभान अल्लाह’’ का पहला सीजन एक दिल दहला देने वाले मोड़ पर जाकर खत्म हुआ था.जब जारा (ईशा सिंह) की कार एक पहाड़ से नीचे गिर गई थी और उसे मृत मान लिया गया था.दर्शकों को उम्मीद थी कि कुछ ऐसा चमत्कार होगा, जिससे कबीर(अदनान खान) और जारा दोबारा मिल जाएंगे.और अब ‘लाॅक डाउन’’खत्म होने के बाद वैसा ही होने जा रहा है. इस बार नई कहानी के अनुसार प्यार में उदास कबीर और नई जारा के बीच कई उतार-चढ़ाव शामिल किए गए हैं.अब ईशा सिंह नाटकीय तरीके से नए अवतार में वापसी करेंगी,जिसे देखकर सब हैरान रह जाएंगे…

 

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I’ll do date night wherever as long as we’re together ? #IshqSubhanAllah #Zabir

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इस बार जारा यानी ईशा सिंह  एक संगीत चिकित्सक के रूप में नजर आएंगी.जिनका मानना है कि संगीत में असध्याय रोंगों के भी उपचार की असाधारण शक्ति होती है.संगीत बड़े से बड़े अवसाद को भी ठीक कर सकता है.वह कबीर की इस सोच पर सवाल उठाती है,जिसके अनुसार संगीत को हराम माना जाता है.वह कबीर की रूढ़ीवादी विचारधारा को चुनौती देने के साथ ही इस बात से भी इंकार करती है कि वही उसकी जिंदगी की असली जारा है.

 

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Khuda jo kuch karta hai, ache ke liye karta hai. #IshqSubhanAllah #Zara

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इस संबंध में ईशा सिंह कहती हैं-‘‘मैंने कुछ निजी कारणों से इस सीरियल को अलविदा कहा था.लेकिन कहीं ना कहीं मेरा दिल मुझसे कहता था कि यह सीरियल तो मेरा अपना है.अब जारा के किरदार में वापसी करके मुझे बेहद खुशी हो रही है.मेरे लिए तो यह घर वापसी है.क्योंकि ‘इश्क सुभान अल्लाह’’जी टीवी पर मेरा दूसरा सीरियल है.इसके सारे कलाकार और क्रू मेरे लिए परिवार की तरह थे.इन सभी लोगों और मेरे सह कलाकार अदनान खान के साथ मेरा करीबी नाता रहा है.हमारे बीच काफी सहज इक्वेशन रहे.मुझे यकीन है कि दर्शक एक बार फिर जारा-कबीर और उनके अटूट प्यार से जुड़कर उत्साहित होंगे.जब मैंने इस सीरियल को अलविदा कहा था,तब मेरे दिल में बहुत सारी यादें थीं.अब मैं कुछ नई यादें बनाने के लिए एक बार फिर इसमें वापस आ रही हूं.‘‘

लेडी डौक्टर कहां है- भाग 1: समर की मां ने डॉक्टर से क्या कहा?

सुबह से ही मीरा बहुत घबराहट महसूस कर रही थी. शरीर में भी भारीपन था और मन तो खैर… न जाने कब से उस के ऊपर अपराधबोध के बोझ लदे हुए हैं. काम छोड़ कर आराम करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. बवाल मच जाएगा घर में. सब की दिनचर्या में अस्तव्यस्तता फैल जाएगी. वैसे भी कोरोना के चलते घर में माहौल हर समय गंभीर रहता है. सासससुर घर में हर समय पड़े रहने से खीझ चुके हैं तो वहीं देवर औनलाइन क्लासेस से परेशान है. घर में तंगी न हो, इसलिए पति समर को औफिस जाना पड़ता है जिस से उन का मूड हमेशा ही खराब रहता है. कुछ नहीं बदला है तो वह है मीरा और उस के काम. अगर वह समय से काम नहीं करेगी तो सासुमां को अपने लड्डू गोपाल की सेवा को बीच में छोड़ना पड़ेगा, पति समर औफिस जाने के लिए लेट हो जाएंगे, देवर रोहन बिना कुछ खाए पढ़ने बैठ जाएगा और ससुरजी शोर मचाएंगे कि हर आधे घंटे में उन्हें चाय कौन देगा. इसलिए उसे बीमार पड़ने या आराम करने का हक नहीं है इस हालत में भी. शुक्र है कि जेठ दूसरे शहर में रहते हैं अपने परिवार के साथ, वरना उन के बच्चों के भी नखरे उठाने पड़ते.

पेट में तेज दर्द उठा. इतनी भयानक पीड़ा, पर अभी तो मात्र 7 महीने ही हुए हैं. यह लेबरपेन तो नहीं हो सकता, शायद थकान से हो रहा हो. उलटी का एक गोला अंदर बनने लगा तो वह बाथरूम की ओर भागी. सुबह चाय के साथ सिर्फ एक बिस्कुट खाया था, सो, वही निकल गया. डाक्टर ने सख्त हिदायत दी थी कि तुम्हारा शरीर इतना कमजोर है कि उसे ताकत के लिए पौष्टिक भोजन की जरूरत है. हर एक घंटे बाद उस के लिए कुछ खाते रहना आवश्यक है, खासकर सुबह बिस्तर से उठते ही एक सेब तो वह खा ही ले. इस से उलटियां नहीं होंगी. डाक्टर के निर्देश और हिदायतें केवल उस के परचे तक ही सीमित हैं. घर में न तो उस की बातों को कोई मानता है और न ही उसे अपने ऊपर ध्यान देने का समय मिल पाता है. डाक्टर ने तो यह भी कहा था कि कोरोना का संक्रमण उस के और उस के होने वाले बच्चे के लिए घातक हो सकता है, जितनी ज्यादा हो सके उतनी कोशिश करे कि उसे अस्पताल न आना पड़े. लेकिन, यहां तो बाहर से जो कुछ आता उसे सैनिटाइज करने का काम भी मीरा के हिस्से था.

इतनी पढ़ीलिखी तो वह भी है कि प्रैग्नेंसी में कैसे केयर रखनी चाहिए, इस की जानकारी रखती है. पर वह कुछ करना भी चाहे तो सासुमां फट से ताना मारती हैं, “पता नहीं इतनी नाजुक क्यों है, मैं ने भी बच्चे पैदा किए हैं, वे भी बेटे, और तू है कि लड़कियों को कोख में रखने पर भी इतनी मरियल सी रहती है.”

वह अकसर सोचती है सासुमां का इतनी पूजा और भक्ति का क्या फायदा जब उन के अंदर सहनशीलता का एक कण तक नहीं. हर समय गुस्से से उबलती रहती हैं. उन की बात न मानो तो चिल्लाने लगती हैं. वह मानती है कि दूसरों के दर्द समझो और जितना हो सके, दूसरों के काम आ सको, वही सच्ची पूजा. इस बात से भी उन्हें बहुत आपत्ति है.

“न जाने कैसी कुमति बहू मिली है. अरी, कभी भगवान के सामने खड़े हो कर हाथ भी जोड़ लिया कर. हे राम, न जाने क्या अनिष्ट हो इस की वजह से,” वे आरती करती जातीं और यह भी बोलती जातीं. उसे उन पर हंसी आती और दया भी. बहू को बेटी कैसे समझ सकते हैं ऐसे लोग, जिन के अंदर ममता का सोता बहता ही नहीं है. विडंबना तो देखो, एक औरत हो कर भी दूसरी औरत की पीड़ा नहीं समझतीं.

“सत्यानाश, दूध उबल कर गिर रहा है. सुबहसुबह कैसा अपशकुन करने पर तुली है, मीरा,” सासुमां की कठोर और तीव्र आवाज पूरे घर में गूंज गई.

“वह मां… उलटी आ गई थी,” सहमे स्वर में मीरा ने कहा. वह जल्दीजल्दी गैस साफ करने लगी. “पेट में भी दर्द हो रहा है, और काफी थकान महसूस कर रही हूं,” थोड़ी हिम्मत कर उस ने कह ही दिया.

“पेट में दर्द हो रहा है तो थोड़ी अजवायन निगल जा पानी के साथ. हो सकता है गैस बन गई हो पेट में. अभी तो 2 महीने बाकी हैं, और हां, खयाल रख अपनी कोख में पल रहे बच्चे का. जांच से पता लग ही गया है कि इस बार लड़का है. पता चले जांच के लिए अस्पताल ले कर गए और वहां से कोरोना ले आई. अपने साथसाथ पूरे घर को ले कर डूबेगी. अच्छा, ऐसा कर नाश्ता कर ले. रसोई का सारा काम तो निबट ही चुका है,” सासुमां ऐसे बोलीं मानो कोई एहसान कर रही हों.

साढ़े 11 बज चुके थे, और भूख तो उसे भी सता रही थी. शायद न खाने से गैस बन गई हो, मीरा ने सोचा.

नाश्ता कर, कमरे में आ कर लेट गई मीरा. दर्द अभी भी हो रहा था. पेट से होतेहोते नीचे तक पहुंच रहा था. अजीब सी ऐंठन और बेचैनी थी. सोने की कोशिश करने लगी, पर सोच के ऊपर तो अनगिनत परछाइयां मंडरा रही थीं. क्या होगा जब घर में सब को पता लगेगा कि इस बार भी उस की कोख में लड़की ही है. डाक्टर से अनुरोध कर उस ने ही उन से यह झूठ बोलने को कहा था. हालांकि लड़का है या लड़की, इस की जांच कराना अवैधानिक है, पर फिर भी सबकुछ होता है. छोटे क्लीनिकों में पैसे खिला कर और अपनी जानपहचान निकाल कर समर ने इस का बंदोबस्त कर लिया था. 2 लड़कियों को गर्भ में आते ही मारने का अपराधबोध एक बोझ की तरह उस के सीने से लिपटा रहता है. कितना मना किया था उस ने, रोई थी, गिड़गिड़ाई थी, पर न समर माना था और न ही सासुमां ने उस की बात सुनी थी.

ब्रेकअप से निखरता है व्यक्तित्व

ख्यात फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर ने उनके चाहने वालों को बहुत आहत किया. यकीन ही नहीं हुआ कि जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाला कलाकार अचानक जिंदगी से इतना रुष्ट कैसे हो गया. सुशांत की मौत के पीछे की वजहों को अभी खंगाला जा रहा है. कोई इसके पीछे फिल्म इंडस्ट्री की प्रतिस्पर्धा को कारण मान रहा है, तो कोई अभिनेत्री अंकिता लोखंडे से उनके ब्रेकअप और उन्हें ना भूल पाने को वजह मान रहा है. हालांकि इस बात में ज़्यादा दम नहीं है क्योंकि ब्रेकअप आज के युवाओं के बीच बहुत कॉमन सी बात हो गयी है. पार्टनर से ब्रेकअप के बाद आत्महत्या जैसा कदम उठाने की घटनाएं बहुत कम सुनाई देती हैं, ज़्यादातर लोग तो ब्रेकअप के बाद ये कहते सुने जाते हैं कि उनको रोज़ रोज़ की खिचखिच से आज़ादी मिल गयी.

दरअसल ब्रेकअप होता ही इस वजह से हैं क्योंकि दो लोगों की चाहतें, इच्छाएं, महत्वकांक्षाएं, विचार, आदतें, ज़िंदगी के लक्ष्य एक दूसरे से नहीं मिलते. खूबसूरती, रूतबा और अंदाज़ देख कर शुरू होने वाला प्रेम तब बदबू मारने लगता है जब समय गुजरने के साथ दोनों के विचार और आदतें एक दूसरे पर खुलने शुरू होते हैं. तब लगता है कि जिसे हम पार्टनर बना कर जीवन भर साथ रहने का सपना पाल रहे हैं वो तो हमारे जैसा है ही नहीं, और ना ही उसके विचार और आदतें हमसे मिलती हैं. तो ऐसा व्यक्ति जल्दी ही बोझ या एक अजनबी जैसा महसूस होने लगता है और यहीं से शुरू होता है झगड़ा और फिर मुक्ति पाने का ख्याल.

शिक्षा का बदलता ढांचा जैसे परीक्षा, वैसे प्रमोशन

ब्रेकअप कर लेना कोई पाप नहीं है. ये एक समझदारी वाला फैसला ही है. जिस व्यक्ति से आपके विचार, आदतें, जीवन के लक्ष्य मेल नहीं खा रहे हैं उसके साथ पूरा जीवन बिताने की सज़ा खुद को देना तो बेवकूफी ही कही जाएगी. उसके लिए खुद को बदलते रहो, या उसको अपने मुताबिक़ बदलने के लिए कहते रहो. ना बदले तो शिकायतें करो, लड़ाई-झगडे करो, मार पीट करो, और इसमें पूरी जिंदगी समाप्त कर दो, इससे तो बेहतर है उससे अलग हो कर अपने मनमुताबिक नए पार्टनर का चुनाव करो.
अधिकाँश लोगों का मानना है कि एक या दो ब्रेकअप के बाद जो पार्टनर स्थायी रूप से जिंदगी में आता है, वो पहले वालों के मुकाबले बहुत प्यारा और करीबी जान पड़ता है. बिलकुल अपने जैसा लगता है. ब्रेकअप के बाद ज़्यादातर लोगों को पहले के मुकाबले बेहतर जीवनसाथी मिल जाता है.

रुचिका आज मनोज के बेटे की माँ बन गयी है. मनोज के साथ उसे ज़िंदगी बहुत खूबसूरत लगती है. मनोज कितना अपना लगता है, बिलकुल उसी की तरह सोचता है. रुचिका उसमे कुछ भी बदलाव नहीं चाहती है. जबकि यही रुचिका जब अमर के साथ रिलेशनशिप में थी तो अमर में कितना कुछ बदलना चाहती थी. चाहती थी कि वो उसकी तरह सोचे, उसकी पसंद के अनुरूप रहे, जैसे वो चाहती है वैसा ही ड्रेसअप हो. कितना झींकती थी वो अमर के साथ. आये दिन किसी ना किसी बात पर उनका झगड़ा होता था. रूठने मनाने में कितना वक़्त जाया होता था. कभी कभी तो रुचिका भीतर से टूटी रहती थी मगर उसके मनाने-रिझाने पर होंठों पर झूठी मुस्कान चिपका लेती थी. बाद में तो वो उससे इतना उकता गयी थी कि उसके आगे खुश होने की एक्टिंग भी नहीं कर पाती थी. रुचिका की भी कई बातें अमर को पसंद नहीं थीं. वो चाहता था रुचिका उसके मुताबिक रहे. अपने में बदलाव लाये. एक पार्टी में जब पहली बार दोनों एक दूसरे की खूबसूरती पर मोहित होकर एक दूसरे के निकट आये थे, तब अंदाज़ा नहीं था कि विचारों और आदतों का फर्क उन्हें एक दिन एक दूसरे से मारपीट पर उतारू कर देगा. रुचिका अमर के साथ रिश्ते में बहुत अवसादग्रस्त हो गयी थी, उसके चेहरे पा झाइयां पड़ गयी थीं, हर वक़्त थकी थकी सी रहती थी, चिड़चिड़ी हो गयी थी, अपनी हॉबियों और खूबियों से भी दूर चली गयी थी, हर वक़्त जकड़न महसूस करती थी, लगता था जैसे कैद में हो. अमर से ब्रेकअप के बाद उसने जो आज़ादी महसूस की उससे ना सिर्फ उसका रंगरूप चमका बल्कि दो साल अमर के साथ बिताने के बाद ज़िंदगी का जो अनुभव उसको हुआ, उसने आदमी पहचानने की उसकी समझ को भी बढ़ा दिया था.

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ब्रेकअप के बाद बहुतेरे लड़कों से उसकी दोस्ती हुई, मगर जीवनसाथी के रूप में उसने मनोज को चुना. ये ब्रेकअप से मिले अनुभव का तोहफा था. ज़्यादातर लोग मानते हैं कि ब्रेकअप के बाद जो दूसरा व्यक्ति जीवन में आता है वो पहले के मुकाबले बहुत बेहतर साबित होता है. उसके साथ ज़िंदगी बहुत आसान और खुशहाल होती है. पहले या दूसरे रिलेशनशिप में दिल टूटना आम बात है. अधिकतर लोगों को अपने जीवन में इस बात का सामना जरूर करना पड़ता है. लेकिन देखने में आया है कि ब्रेकअप के बाद लोग अपनी लाइफ को एक अलग ऊंचाईयों तक ले जाते हैं. ये इस वजह से भी होता है क्योंकि ब्रेकअप के बाद वो छूटे हुए साथी को ये दिखा देना चाहते हैं कि उनके अंदर कितनी क़ाबलियत है और वो खुद के दम पर क्या कुछ हासिल कर सकते हैं. ज़्यादातर लोग ब्रेकअप के बाद बीते समय और साथी को भुलाने के लिए अपने करियर और हॉबीज़ पर बहुत ज़्यादा ध्यान देने लगते हैं और इसका उनको बहुत अच्छा परिणाम हासिल होता है. ये सच है कि ब्रेकअप के दुःख से उबरने में कुछ समय लगता है. पछतावा भी होता है कि ज़िंदगी का इतना समय गलत इंसान के साथ बिता दिया. लड़कों के मुकाबले लड़कियों को पुरानी यादों से निकलने में कुछ ज़्यादा वक़्त लगता है पर एक बार इस दुःख से उबरने के बाद अच्छी फीलिंग और जीवन के प्रति ज़्यादा ललक पैदा होती है. ब्रेकअप के बाद युवाओं की पर्सनालिटी में गज़ब का बदलाव आता है, इसकी कुछ वजहें हैं.

शॉपिंग में समय बिताना

लड़कियों को तो शॉपिंग करना हमेशा ही बहुत भाता है, मगर ब्रेकअप के बाद ये शौक चार गुना बढ़ जाता है. देखने में आया है कि लड़के भी ब्रेकअप के बाद अच्छी खासी शॉपिंग करते हैं. ब्रेकअप से उपजे गुस्से, तनाव और दुःख से उबरने के लिए जब युवा शॉपिंग करते हैं तो अच्छी ड्रेसेस, अच्छी एसेसरीज़ लेते हैं जो उनकी शख्सियत को पहले से कहीं ज़्यादा आकर्षक बनाती है.
दरअसल ब्रेकअप के बाद उनको महसूस होता रहता है कि पुराना साथी कहीं ना कहीं उनको फॉलो कर रही/रहा है, तो उसको क्यों ये शो किया जाए कि उससे बिछड़ कर हम देवदास हो गए. इस फीलिंग को लेकर वो शॉपिंग करते हैं और हमेशा अच्छे से अच्छा दिखने की कोशिश करते हैं. ये ब्रेकअप का सकारात्मक पहलू है जो नए साथी की तलाश में बहुत मददगार साबित होता है.

मेकऑवर

ब्रेकअप के बाद लड़कियां अपने आपको संवारने पर ज्यादा ध्यान देने लगती हैं. वो ब्यूटी पार्लर जाती हैं, सजती संवारती हैं. सलून जाकर अपने बालों को नए फैशन के हिसाब से कटवाती-रंगवाती हैं. अपने पुराने लुक को बदलती हैं. यानी पहले से कहीं ज़्यादा खूबसूरत दिखने की कोशिश करती हैं. कभी कभी ये सब इसलिए ताकि वो अपने एक्स को जला सकें और ये भी जता सकें कि उनसे दूर होकर वो काफी खुश हैं. और कभी कभी जुदाई के दर्द से निकलने के लिए वो मेकओवर का रास्ता चुनती हैं. ये मेकओवर उनको दुःख से उबारने में खासा मदद करता है.

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हॉबीज़ से जुड़ाव

रिलेशनशिप में रहते हुए हम अपनी बहुत सारी हॉबीज़ को पूरा नहीं कर पाते और उनसे दूर हो जाते हैं, लेकिन देखा जाता है कि ब्रेकअप के बाद हम उन चाहतों के प्रति फिर उत्सुक हो जाते हैं. जैसे किसी को गाने या पेंटिंग का शौक हो तो ब्रेकअप के बाद वो फिर उसमे रम जाता है. ऐसा करने पर हम खुद के करीब आते हैं, अच्छा फील करते हैं और आज़ादी महसूस करते हैं. ये हमारे दिल-दिमाग को राहत देता है और जीवन में सकारात्मकता पैदा करता है.

वजह को तलाशना

ब्रेकअप होने के बाद लड़के-लड़कियां ब्रेकअप होने की वजह को तलाशने लगते हैं. वे इस बात को जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर उनके साथी ने उनके साथ ब्रेकअप क्यों किया. वजह ज्ञात होना अच्छा होता है क्योंकि फिर वही गलतियां अगले साथी के साथ दोहराने की सम्भावनाये कम हो जाती हैं.

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अच्छा साथी ढूंढना

ब्रेकअप के बाद समझ में आता है कि हमें सचमुच में कैसे साथी के साथ जीवन गुज़ारना है. जब अगला साथी हम तलाश करते हैं तो हमारा ध्यान सिर्फ उसके लुक पर नहीं होता, बल्कि हम और भी बहुत सारी चींजों को ध्यान में रख कर उसको अपने जीवनसाथी के रूप में पहले जज करते हैं और फिर प्यार का इज़हार करते हैं. मसलन अगर किसी का ब्रेकअप इस वजह से हुआ है कि उसका एक्स कमाता नहीं था या उसके पास कोई बैंक बैलेंस नहीं था तो अगला साथी हम निश्चित रूप से ऐसा चुनेंगे जो अच्छी नौकरी या बिज़नेस में हो और जिसका बैंक बैलेंस ठीक हो. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि ब्रेकअप से निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ब्रेकअप हमें ज़्यादा अनुभवी और जीवन के प्रति गंभीर बनाता है. ब्रेकअप के बाद जो मिलता है वो पहले से ज़्यादा अच्छा होता है.

खाने में शामिल करें फाइबर, होंगे ये फायदे

खाने में फाइबर न सिर्फ बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है बल्कि कई बड़ी बीमारियों से दूरी बनाए रखने में भी इस की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन जंक फूड के शौकीनों को अपनी अनियमित खानपान की आदत के चलते इस जरूरी तत्त्व से महरूम रहना पड़ता है. नतीजा, पाचनतंत्र में गड़बड़ी और ढेर सारी बीमारियां. क्या है उपाय, बता रही हैं सुमन बाजपेयी.

त्योहारों के खुशनुमा माहौल में प्रसन्नचित्त मन उल्लास से भर जाता है. गृहिणियां पूरे जोश के साथ साजसजावट और खानेपीने की तैयारियों में जुट जाती हैं. वैसे भी त्योहार का हर्षोल्लास बिना पकवानों के अधूरा है. अत: तरहतरह के व्यंजन बनाए, खाए जाते हैं. लेकिन स्वाद के साथसाथ सेहत का ध्यान रखना, यह आप की समझदारी है. स्वस्थ रहेंगे तभी तो त्योहारों का पूरा मजा ले सकेंगे.

व्यस्त लाइफस्टाइल के इस दौर में ज्यादातर लोग जंक फूड पर निर्भर हैं जिस के चलते खाने में फाइबरयुक्त भोजन लगातार नजरअंदाज हो जाता है और इस की कमी से खाना ठीक से डाइजैस्ट न हो पाने की वजह से कब्ज की समस्या हर उम्र के लोगों में देखने को मिलती है. पाचन क्रिया में गड़बड़ी तब होती है जब आप अपने आहार में फाइबरयुक्त या रेशेदार पदार्थ नहीं लेते हैं. पिज्जा, छोलेभठूरे, बर्गर, नूडल्स आदि, जो टैस्टी लगने के कारण आज हर वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय हो चुके हैं, उन में फाइबर बिलकुल भी नहीं होता. उन्हें पचने में समय लगता है या वे आंतों में ही चिपक कर पाचनतंत्र को खराब कर देते

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आनेवाले त्योहारों पर व्यंजन बनाते समय उन में थोड़ा सा ट्विस्ट देते हुए उन्हें पौष्टिक बनाएं यानी कि फाइबरयुक्त पदार्थों का इस्तेमाल करते हुए पकवान बनाएं, जो स्वाद में लाजवाब होते हैं और आप की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाते.

फाइबरयुक्त भोजन के फायदे

अनाज, फल, पत्तेदार सब्जियों व फूड प्रोडक्ट्स के उस हिस्से को फाइबर कहते हैं जो बिना पचे व अवशोषित हुए ही आंत के जरिए बाहर निकल जाता है, जिस से पेट व आंत की सफाई भी आसानी से हो जाती है. न चिपकने वाला फाइबर भरपूर मात्रा में लेने से कई तरह की दूसरी पाचन संबंधी गंभीर समस्याएं भी दूर हो जाती हैं.

पेट की खराबी व कब्ज में आंत की अंदरूनी सतह क्षतिग्रस्त हो जाती है और छोटीछोटी थैलियां सी बन जाती हैं. रेशेयुक्त भोजन करने से मल मुलायम हो कर आसानी से बाहर निकल जाता है. इस तरह फाइबर की अधिक मात्रा आंत के आसपास पड़ने वाले दबावों को रोकने में मदद करती है. रेशेदार पदार्थ पाइल्स रोग से भी बचाते हैं, पेट में गैस नहीं बनती और पाचनतंत्र ठीक रहता है व शरीर को पर्याप्त ऊर्जा मिलती रहती है. फाइबर शरीर में बुरे कोलैस्ट्रौल को बढ़ने से रोकता भी है.

भोजन में फाइबर का होना उतना ही आवश्यक है जितना कि प्रोटीन, विटामिन या मिनरल्स. फाइबर एक महत्त्वपूर्ण ऐंटीऔक्सीडैंट भी है. जिन भोज्य पदार्थों में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है उन में लो कैलोरी होती है और वे जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और ऐंटीऔक्सीडैंट्स के अच्छे स्रोत होते हैं जैसे कि औरेंज में फाइबर, विटामिन सी और ऐंटीऔक्सीडैंट प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो वजन घटाने में मदद करते हैं. सेब, ब्रोकली, खीरा, गाजर, ओट (जई), जौ और गेहूं में भी फाइबर बहुत होता है.

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बीमारियों से बचाव

डायटीशियन डा. शिखा शर्मा के अनुसार, ‘‘फाइबर एक ऐसा न्यूट्रिएंट है जिस की महत्ता के बारे में अधिकतम लोग जानते हैं, पर फिर भी अपने भोजन में शामिल करने की बात आते ही उसे नजरअंदाज कर जाते हैं. फाइबर एक इनडाइजेटेबल पदार्थ होता है जो पौधों की बाहरी

परतों में पाया जाता है. फाइबर एक विशेष तरह का कार्बोहाइड्रेट होता है जो मानव के पाचनतंत्र से बिना बदले, बिना टूटे न्यूट्रिएंट्स में बदलता हुआ गुजरता है. फाइबर का खास काम होता है पाचनतंत्र को हैल्दी रखना. इस से शरीर से मल व टौक्ंिसस तेजी से बाहर निकलने में मदद मिलती है. ऐसा न होने पर कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.’’

तरहतरह के फाइबर

यह 2 तरह के होते हैं. डा. शिखा के मुताबिक, ‘‘एक सोल्यूबल फाइबर जो पानी में घुल सकता है. इस प्रकार का फाइबर खट्टे फलों, बींस, ओट, जौ, सूखी फलियों, दालों, मटर, सोयामिल्क और सोया उत्पादों में पाया जाता है. यह घुलनशील फाइबर रक्त के कोलैस्ट्रौल स्तर को कम करने के साथसाथ रक्त के शर्करा स्तर को भी कम करता है. दूसरे प्रकार का फाइबर होता है इनसोल्यूबल, जो पानी में घुलनशील नहीं होता है. इस तरह के फाइबर साबुत अनाजों, आटा, आटे की भूसी, चावल की भूसी, फलों व सब्जियों के छिलकों, सूखे मेवों,बीजों में पाया जाता है. इस तरह के फाइबर के सेवन से कब्ज की शिकायत दूर होती है और डाइजैस्टिव ट्रैक हैल्दी बना रहता है.’’

हड्डियां मजबूत

आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि फाइबर से केवल दिल ही मजबूत नहीं होता है, हड्डियों में भी इस के सेवन से मजबूती आती है. आर्थ्राइटिस फाउंडेशन औफ इंडिया के क्लीनिकल अध्ययनों के अनुसार जिन लोगों के खाने में फाइबर की मात्रा बेहतर रही है उन में कम फाइबर लेने वालों की अपेक्षा जोड़ों की समस्या कम देखी गई. 1 महीने में शरीर को कम से कम 700 ग्राम फाइबर की आवश्यकता होती है.

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कितनी मात्रा में लें

डा. शिखा के अनुसार 50 वर्ष से अधिक की महिला को 1 दिन में 21 ग्राम और पुरुषों को 30 ग्राम फाइबर, वहीं 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को 25 ग्राम व पुरुषों को 38 ग्राम फाइबर लेना चाहिए, अन्यथा कब्ज हो सकती है.

नहीं लगती बारबार भूख

हाई फाइबर डाइट से पेट जल्दी भर जाता है और भूख पर भी नियंत्रण रहता है, अत्यधिक फाइबरयुक्त भोजन को चबाने में अधिक समय लगता है, यानी आप धीरेधीरे खाना खाएंगे. इस तरह खाने की मात्रा में कमी हो जाएगी और आप कैलोरी भी अधिक मात्रा में नहीं लेंगे. फाइबरयुक्त पदार्थ का सेवन करने से रक्त प्रवाह में शर्करा का स्राव भी धीमी गति से होता है जिस से चीनी की मात्रा नियंत्रित रहने से बारबार भूख नहीं लगती है और आप हर समय खाने से बच जाते हैं.

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अगर निर्धारित मात्रा से अधिक फाइबर का सेवन किया जाता है तो उस का गलत प्रभाव पड़ सकता है. अत्यधिक फाइबर का सेवन करने से जरूरी मिनरल्स जैसे जिंक, कैल्शियम व आयरन की कमी हो सकती है. ये खनिज फाइबर को कई बार जकड़ लेते हैं जिस की वजह से वे शरीर से खनिजों को रक्त प्रवाह में जाने दिए बिना निकल जाते हैं.

लेडी डौक्टर कहां है- भाग 3: समर की मां ने डॉक्टर से क्या कहा?

मारेमारे वे लोग तीसरे अस्पताल पहुंचे जहां किसी तरह मीरा को अस्पताल में भरती कर लिया गया. मशीन लगा कर डाक्टर ने टेस्ट किया. बच्चे की सांस चल रही थी, पर वह रिस्पौंड नहीं कर रहा था.

“तुरंत सिजेरियन करना होगा, वी कांट टेक चांस, इट्स ए प्रीमेच्योर डिलीवरी, इसलिए हो सकता है थोड़ी कौंप्लीकेटेड हो, वैसे भी, इन की मेडिकल हिस्ट्री बता रही है कि पहले 2 अबौर्शन कराए हैं आप ने,” डा. मजूमदार, जो उस समय ड्यूटी पर थे, सारी रिपोर्ट्स ध्यान से पढ़ रहे थे. हैरानी थी उन के चेहरे पर.

समर ने दबी आवाज में वहां खड़ी सिस्टर से पूछा, “कोई लेडी डाक्टर नहीं है क्या इस समय? गाइनी तो लेडी डाक्टर को ही होना चाहिए. डिलीवरी वही तो करवा सकती है. अब तक तो चेकअप लेडी डाक्टर ही करती आई है. क्या कोई लेडी डाक्टर नहीं आ सकती क्या?”

““आप का दिमाग ठिकाने तो है? कैसी बातें कर रहे हैं आप. क्या आप ने आसपास का हाल देखा है, लोग भरती होने के लिए यहांवहां भटक रहे हैं, कोरोना से पीड़ित तड़प रहे हैं. और एक तरफ आप हैं जो लेडी डाक्टर की मांग कर रहे हैं, जरा सोचसमझ कर तो बात कीजिए,”” पास खड़ी नर्स ने कहा.

यह सुन समर के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव झलकने लगे. वह असमंजस में पड़ गया. पास खड़े उस के पिता ने कहा, ““बेटा, इतनी मुश्किल से बहू को अस्पताल में बैड मिला है, बनीबनाई बात मत बिगाड़ो.”

मीरा की हालत बिगड़ रही थी, जिसे देख डाक्टर जल्दीजल्दी उस की रिपोर्ट देखने लगे.

“कोई प्रौब्लम थी जो वन मंथ की प्रेगनेंसी में ही दोनों बार अबौर्शन कराया गया?” डा. मजूमदार ने समर से पूछा.

“असल में बोथ वेयर गर्ल्स,” हिचकिचाहट का गोला जैसे समर के गले में फंस गया था. सच बताना और उस का सामना करना दोनों ही मुश्किल होते हैं. समर तो डा. मजूमदार को उस का चेकअप करते देख वैसे ही झल्ला रहा था. एक पुरुष जो थे वह. पर इस समय वह मजबूर था, इसलिए इस बारे में कोई शोर नहीं मचाया.

“व्हाट रबिश,” आवाज की तेजी से सकपका गए समर. 40 वर्ष के होंगे डा. मजूमदार, सांवली रंगत, आंखों पर चौकोर आकार का चश्मा, मुंह पर प्रौपर मास्क व शील्ड, और ब्लूट्राउजर व व्हाइट शर्ट के ऊपर डाक्टर वाला कोट पहना हुआ था उन्होंने. बंगाली होते हुए भी हिंदी का उच्चारण एकदम स्पष्ट व सधा हुआ था. बालों में एकदो सफेद बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. अकसर लोगों को कहते सुना है मीरा ने कि अगर डाक्टर स्मार्ट और वेलड्रेस्ड हो तो आधी बीमारी उसे देखते ही गायब हो जाती है. यह सोच ऐसे माहौल और ऐसी हालत में भी उस के होंठों पर मुसकान थिरकी, पर मुंह पर मास्क लगे होने से किसी को दिखाई नहीं पड़ा.

“सिस्टर, औपरेशन की तैयारी करो. इन्हें अभी लेबररूम में ले जाओ और ड्रिप लगा दो. शी इज वैरी वीक एंड एनीमिक औल्सो.”

सिस्टर को हिदायत देने के बाद वे समर से बोले, “हालांकि, अभी इन बातों का टाइम नहीं है, बट आई एम शौक्ड कि आप जैसे पढ़ेलिखे लोग अभी भी लड़कालड़की में अंतर करते हैं. शादी करने के लिए आप को लड़की चाहिए, घर संभालने के लिए लड़की चाहिए और बच्चे पैदा करने के लिए. वहीं, वंश चलाने के लिए, बेटा पैदा करने के लिए भी लड़की चाहिए तो उन्हें मारते क्यों हो? जो कोख जन्म देती है, उसी की कोख में मर्डर भी कर देते हो. बहुत दुखद बात है. आई एम सरप्राइज्ड एंड शौक्ड बोथ, मिस्टर समर. इस से भी बढ़ कर वर्तमान में लोगों की हालत देखते हुए आप को अपनी पत्नी के कोरोना संक्रमित होने या बच्चे के संक्रमित होने का डर नहीं है, बल्कि इस बात की फिक्र है कि लेडी डाक्टर है या नहीं, पेट में लड़का है या नहीं.”

समर जैसे कुछ समझ नहीं रहा था या समझना नहीं चाहता था. उसे विचारशून्य सा खड़ा देख सासुमां बोलीं, “डाक्टर साहब, इस का औपरेशन तो लेडी डाक्टर से ही कराएंगे, आप उन्हें ही बुला दो. कोई तो होगी इस समय ड्यूटी पर.”

“इस समय लेडी डाक्टर कोई नहीं है, और इंतजार करने का हमारे पास समय नहीं है. आप को तो शुक्र मनाना चाहिए कि आप की बहू को ट्रीट करने के लिए कोई है. दूसरा अस्पताल ढूंढने की कोशिश या लेडी डाक्टर का वेट करने के चलते आप मांबच्चे दोनों की जान को अगर खतरे में डालना चाहते हैं तो चौयस इज योअर, पर मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता. और मांजी, अगर आप इसी तरह लड़कियों को मारती रहेंगी तो लेडी डाक्टर कैसे होंगी? डाक्टर ही क्या, किसी भी पेशे में कोई महिला होगी ही नहीं. इट्स शेमफुल. आई डोंट अंडरस्टेंड कि एक तरफ तो आप ने बेटी को पैदा होने से पहले ही मार दिया और दूसरी ओर लेडी डाक्टर से ही डिलीवरी करवाना चाहती हैं,” डा. मजूमदार का चेहरा सख्त हो गया था.

“पर डाक्टर साहब, सुनिए तो, थोड़ी देर रुक सकें तो रुक जाएं. हो सकता है किसी लेडी डाक्टर की ड्यूटी हो. हमें तो लेडी डाक्टर से ही बहू का औपरेशन करवाना है. क्या गजब हो रहा है समर, यह…तू कुछ कह क्यों नहीं रहा और आप क्यों चुप खड़े हैं?” सासुमां कभी अपने बेटे को तो कभी अपने पति की ओर देखते हुए बड़बड़ाए जा रही थीं.

वहां मौजूद डाक्टर और नर्स समर और उस की मां के इस नाटक को देख हतप्रभ थे. देश में लोगों को यह नहीं पता कि कोरोना के कारण वे कल सुबह का सूरज देखेंगे भी या नहीं, और एक यह मांबेटे हैं जिन्हें लेडी डाक्टर का राग अलापने से फुरसत नहीं.

मीरा यह सब सुन रही थी और अंदर ही अंदर टूट रही थी, पर उसे टूटना नहीं था बल

Crime Story: बुरे फंसे यार

सौजन्य-मनोहर कहानियां

जैकब और ब्राउन ने योजना तो बहुत अच्छी बनाई थी. अपनी योजना का पहला चरण दोनों ने बखूबी पूरा भी कर लिया, लेकिन दूसरे चरण में पुलिस ने उन्हें धर लिया. सुकून की बात यह थी कि पुलिस ने उन्हें उस अपराध के लिए नहीं पकड़ा था, बल्कि उन्हें सिक्का चोर..

प्रस्तुति: शकी  जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं

जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

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इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

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‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

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‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

 

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

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इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

 

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं

हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

 

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

 

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

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