कोरोना संक्रमण के दौरान सबसे बडा संकट स्कूल और परीक्षाओं को लेकर छाया रहा. देष भर में बहस का मुददा यह रहा कि परीक्षाओं को किस तरह से सम्पन्न कराया जाय. बडी संख्या में औनलाइन परीक्षायें संभव नहीं थी. ऐसे में ज्यादातर छात्रों को पिछले प्रदर्शन के आधार पर नम्बर देकर अगली कक्षा मे प्रमोट कर दिया गया. यहां पर यह सवाल उठने लगा कि छात्रों को प्रमोट करने से उनको कोई ज्ञान नहीं होगा. ऐसे में छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट करने से क्या लाभ होगा ? हमारे देष की षिक्षा प्रणाली ऐसी है जहां जो पढाया जा रहा और जो परीक्षा में पूछा जा रहा दोनो ही कैरियर के हिसाब से निरर्थक है. ऐसे में प्रमोट होकर आने वाले छात्र भी वैसे ही होगे जैसे परीक्षा पास करके आने वाले होते है.

कोरोना संक्रमण की शुरूआत मार्च माह से हुई. भारत में इस माह में स्कूली परिक्षाओं का समय होता है. 24 मार्च से देश में लौकडाउन षुरू हुआ. इस समय पर ज्यादातर स्कूलों में परीक्षायें हो चुकी थी. कुछ पेपर बाकी थे. कालेज और विष्वविद्यालय में परीक्षायंे अप्रैल-मई-जून में होती है. यह परीक्षायें कोविड 19 के संक्रमण में सबसे अधिक प्रभावित हुई. स्कूली बच्चों को अगली क्लास में प्रमोट करने का फैसला जल्दी हो गया पर कालेज और विष्वविद्यालय इस फैसले को लेकर लंबे समय तक उहापोह में बने रहे.

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उत्तर प्रदेश सरकार ने 48 लाख छात्रो को अगली क्लास में प्रमोट करने का फैसला किया. यह छात्र यहंा के करीब 7026 डिग्री कालेजों में पढते है. उत्तर प्रदेष में 16 राज्य विष्वविद्यालय, 1 मुक्त विश्वविधालय, 1 डीम्ड विश्वविधालय, और 27 निजी विष्वविद्यालय है. उत्तर प्रदेश सरकार के  उच्च षिक्षा विभाग द्वारा चैधरी चरण सिंहविश्वविधालय मेरठ के कुलपति प्रोफेसर एनके तनेजा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया. इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर उपमुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा ने 48 लाख छात्रों को प्रमोट करने के लिये कहा.

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