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एक घड़ी औरत-भाग 1 : प्रिया अपने घर में नौकरानी क्यों रखना चाहती थी?

आतंकित और हड़बड़ाई प्रिया  ने तकिए के नीचे से टौर्च निकाल कर सामने की दीवार पर रोशनी फेंकी. दीवार की इलैक्ट्रौनिक घड़ी में रेडियम नहीं था, इसलिए आंख खुलने पर पता नहीं चलता था कि कितने बज गए हैं. अलार्म घड़ी खराब हो गई थी, इसलिए उसे दीवार घड़ी का ही सहारा लेना पड़ता था. ‘फुरसत मिलते ही वह सब से पहले अलार्म घड़ी की मरम्मत करवाएगी. उस के बिना उस का काम नहीं चलने का,’ उस ने मन ही मन सोचा. एक क्षण को उसे लगा कि वह औरत नहीं रह गई है, घड़ी बन गई है. हर वक्त घड़ी की सूई की तरह टिकटिक चलने वाली औरत. उस ने कभी यह कल्पना तक नहीं की थी कि जिंदगी ऐसे जीनी पड़ेगी. पर मजबूरी थी. वह जी रही थी. न जिए तो क्या करे? कहां जाए? किस से शिकायत करे? इस जीवन का चुनाव भी तो खुद उसी ने किया था.

उस ने अपनेआप से कहा कि 6 बज चुके हैं, अब उठ जाना चाहिए. शरीर में थकान वैसी ही थी, सिर में अभी भी वैसा ही तनाव और हलका दर्द मौजूद था, जैसा सोते समय था. वह टौर्च ज्यादा देर नहीं जलाती थी. पति के जाग जाने का डर रहता था. पलंग से उठती और उतरती भी बहुत सावधानी से थी ताकि नरेश की नींद में खलल न पड़े. बच्चे बगल के कमरे में सोए हुए होते थे.जब से अलार्म घड़ी बिगड़ी थी, वह रोज रात को आतंकित ही सोती थी. उसे यह डर सहज नहीं होने देता था कि कहीं सुबह आंख देर से न खुले, बच्चों को स्कूल के लिए देर न हो जाए. स्कूल की बस सड़क के मोड़ पर सुबह 7 बजे आ जाती थी. उस  से पहले उसे बच्चों को तैयार कर वहां पहुंचाना पड़ता था. फिर आ कर वह जल्दीजल्दी पानी भरती थी. अगर पानी 5 मिनट भी ज्यादा देर से आता था तो वह जल्दी से नहा लेती ताकि बरतनों का पानी उसे अपने ऊपर न खर्च करना पड़े. सुबह वह दैनिक क्रियाओं से भी निश्ंिचत हो कर नहीं निबट पाती. बच्चों को जल्दीजल्दी टिफिन तैयार कर के देने पड़ते. कभी वे आलू के भरवां परांठों की मांग करते तो कभी पूरियों के साथ तली हुई आलू की सब्जी की. कभी उसे ब्रैड के मसालाभरे रोल बना कर देने पड़ते तो कभी समय कम होने पर टमाटर व दूसरी चीजें भर कर सैंडविच. हाथ बिलकुल मशीन की तरह काम करते. उसे अपनी सुधबुध तक नहीं रहती थी.

एक दिन में शायद प्रिया रोज दसियों बार झल्ला कर अपनेआप से कहती कि इस शहर में सबकुछ मिल सकता है पर एक ढंग की नौकरानी नहीं मिल सकती. हर दूसरे दिन रानीजी छुट्टी पर चली जाती हैं. कुछ कहो तो काम छोड़ देने की धमकी कि किसी और से करा लीजिए बहूजी अपने काम. उस की तनख्वाह में से एक पैसा काट नहीं सकते, काटा नहीं कि दूसरे दिन से काम पर न आना तय. सो, कौन कहता है देश में गरीबी है? शोषण है? शोषण तो ये लोग हम मजबूर लोगों का करते हैं. गरीब और विवश तो हम हैं. ये सब तो मस्त लोग हैं.

‘कल भी नहीं आई थी वह. आज भी अभी तक नहीं आई है. पता नहीं अब आएगी भी या मुझे खुद ही झाड़ूपोंछा करना पड़ेगा. इन रानी साहिबाओं पर रुपए लुटाओ, खानेपीने की चीजें देते रहो, जो मांगें वह बिना बहस के उन्हें दे दो. ऊपर से हर दूसरे दिन नागा, क्या मुसीबत है मेरी जान को…’ प्रिया झल्ला कर सोचती जा रही थी और जल्दीजल्दी काम निबटाने में लगी हुई थी. ‘अब महाशय को जगा देना चाहिए,’ सोच कर प्रिया रसोई से कमरे में आई और फिर सोए पति को जगाया, ‘‘उठिए, औफिस को देर करेंगे आप. 9 बजे की बस न मिली तो पूरे 45 मिनट देर होे जाएगी आप को.’’

‘‘अखबार आ गया?’’

‘महाशय उठेंगे बाद में, पहले अखबार चाहिए,’ बड़बड़ाती प्रिया बालकनी की तरफ चल दी जहां रबरबैंड में बंधा अखबार पड़ा होता है क्योंकि अखबार वाले के पास भी इतना समय नहीं होता कि वह सीढि़यां चढ़, दरवाजे के नीचे पेपर खिसकाए.

ट्रे में 2 कप चाय लिए प्रिया पति के पास आ कर बैठ गई. फिर उस ने एक कप उन की ओर बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘अखबार में ऐसा क्या होता है जो आप…’’

‘‘दुनिया…’’ नरेश मुसकराए, ‘‘अखबार से हर रोज एक नईर् दुनिया हमारे सामने खुल जाती है…’’

चाय समाप्त कर प्रिया जल्दीजल्दी बिस्तर ठीक करने लगी. फिर मैले कपड़े ढूंढ़ कर एकत्र कर उन्हें दरवाजे के पीछे टंगे झोले में यह सोच कर डाला कि समय मिलने पर इन्हें धोएगी, पर समय, वह ही तो नहीं है उस के पास.हफ्तेभर कपड़े धोना टलता रहता कि शायद इतवार को वक्त मिले और पानी कुछ ज्यादा देर तक आए तो वह उन्हें धो डालेगी पर इतवार तो रोज से भी ज्यादा व्यस्त दिन…बच्चे टीवी से चिपके रहेंगे, पति महाशय आराम से लेटेलेटे टैलीविजन पररं गोली देखते रहेंगे.

‘‘इस मरी रंगोली में आप को क्या मजा आता है?’’ प्रिया झल्ला कर कभीकभी पूछ लेती.

‘‘बंदरिया क्या जाने अदरक का स्वाद? जो गीतसंगीत पुरानी फिल्मों के गानों में सुनने को मिलता है, वह भला आजकल के ड्रिल और पीटी करते कमर, गरदन व टांगे तोड़ने वाले गानों में कहां जनाब.’’ प्रिया का मन किया कि कहे, बंदरिया तो अदरक का स्वाद खूब जान ले अगर उस के पास आप की तरह फुरसत हो. सब को आटेदाल का भाव पता चल जाए अगर वह घड़ी की सूई की तरह एक पांव पर नाचती हुई काम न करे. 2 महीने पहले वह बरसात में भीग गई थी. वायरल बुखार आ गया था तो घरभर जैसे मुसीबत में फंस गया था. पति महाशय ही नहीं झल्लाने लगे थे बल्कि बच्चे भी परेशान हो उठे थे कि आप कब ठीक होंगी, मां. हमारा बहुत नुकसान हो रहा है आप के बीमार होने से.

‘‘सुनिए, आज इतवार है और मुझे सिलाई के कारीगरों के पास जाना है. तैयार हो कर जल्दी से स्कूटर निकालिए, जल्दी काम निबट जाएगा, बच्चे घर पर ही रहेंगे.’’

‘‘फिर शाम को कहोगी, हमें आर्ट गैलरी पहुंचाइए, शीलाजी से बात करनी है.’’

सुन कर सचमुच प्रिया चौंकी, ‘‘बाप रे, अच्छी याद दिलाई. मैं तो भूल ही गई थी यह.’’

नरेश से प्रिया की मुलाकात अचानक ही हुई थी. नगर के प्रसिद्ध फैशन डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट से प्रिया को डिगरी मिलते ही एक कंपनी में नौकरी मिल गई. दिल लगा कर काम करने के कारण वह विदेश जाने वाले सिलेसिलाए कपड़ों की मुख्य डिजाइनर बन गई. नरेश अपनी किसी एक्सपोर्टइंपोर्ट की कंपनी का प्रतिनिधि बन कर उस कंपनी में एक बड़ा और्डर देने आए तो मैनेजर ने उन्हें प्रिया के पास भेज दिया. नरेश से प्रिया की वह पहली मुलाकात थी. देर तक दोनों उपयुक्त नमूनों आदि पर बातचीत करते रहे. अंत में सौदा तय हो गया तो वह नरेश को ले कर मैनेजर के कक्ष में गई. फिर जब वह नरेश को बाहर तक छोड़ने आईर् तो नरेश बोले, ‘आप बहुत होशियार हैं, एक प्रकार से यह पूरी कंपनी आप ही चला रही हैं.’

‘धन्यवाद जनाब,’ प्रिया ने जवाब दिया. प्रशंसा से भला कौन खुश नहीं होता.

बाद में किसी न किसी बहाने नरेश औफिस में आते रहे. प्रिया को बहुत जल्दी एहसास हो गया कि महाशय के दिल में कुछ और है. एक दिन वह शाम को औफिस से बाहर निकल रही थी कि नरेश अपने स्कूटर पर आते नजर आए. पहले तो वह मुसकरा दी पर दूसरे ही क्षण वह सावधान हो गई कि अजनबी आदमी से यों सरेराह हंसतेमुसकराते मिलना ठीक नहीं है.

हुंडई की इस नई गाड़ी की मार्केट में जबरदस्त डिमांड  

नए अवतार में हुंडई वरना को और ज्यादा अट्रैक्टिव बनाने के लिए कार के सेंटर कंसोल में सुविधाजनक वायरलेस चार्जर दिया गया है. वहीं म्यूजिक के लिए छह स्पीकर वाला Arkamys premium sound system फिट किया गया है.

जो आपके फेवरेट सांग सुनने के एक्सपीरियंस को दोगुना इंट्रेस्टिंग बना देगा. जिसकी आवाज सिर्फ एक कोने में नहीं ब्लकि पूरे कार में गूंजेगी. वैसे भी अगर कार में बढ़िया म्यूजिकत सिस्टेम न हो तो ड्राइव बोरिंग हो जाती है.

यानी हुंडई की वरना आपको प्रीमीयर कार का एहसास देती है. इसलिए तो यह #BetterThanTheRest है.

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कोरोना वैक्सीन  कब तक ?

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और लगातार हो रही मौतों के बीच दुनिया उन डाक्टर्स, रिसर्चर्स और वैज्ञानिकों की ओर बड़ी उम्मीदों से ताक रही है जो इस का इलाज ढूंढ़ने की कोशिशों में रातदिन एक किए हुए हैं. इस वक्त दुनिया को इंतजार है तो, बस, कोरोना के वैक्सीन का, जो मौत के ब्लैकहोल में तेजी से जाती जिंदगियों को बचा ले. सब की निगाहें इसी ओर लगी हैं कि कब कोविड-19 को खत्म करने वाली वैक्सीन बनेगी और स्थितियां सामान्य होने की ओर लौटेंगीं.

दुनिया के लगभग सभी देश कोरोना

वैक्सीन बनाने की जद्दोजेहद में लगे हुए हैं. दुनियाभर में 200 से ज्यादा संस्थानों में वैक्सीन पर शोध जारी है, जिन में से 21 से ज्यादा वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल की स्टेज में हैं. भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन और रूस समेत कई देशों को वैक्सीन के ट्रायल में सफलता मिलती दिख भी रही है. इस बीच, ब्रिटेन की औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका से बड़ी खबर आई है. वहां बनाई गई वैक्सीन अपने पहले और दूसरे फेज के ह्यूमन ट्रायल में काफी असरकारक साबित हुई है और अब वहां तीसरे फेज का ट्रायल शुरू हो गया है.

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी कोरोना वैक्सीन के लिए जारी अपने परीक्षणों में दुनिया की तमाम रिसर्च और प्रयोगों में आगे चल रही हैं. बता दें कि औक्सफोर्ड ने वैश्विक स्तर पर  वैक्सीन के उत्पादन के लिए दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ सा झेदारी की है और कंपनी पहले राउंड में ही 2 अरब खुराक बनाने की प्रतिबद्धता जता चुकी है.

गौरतलब है कि औक्सफोर्ड ने कोरोना वायरस की वैक्सीन ष्टद्ध्नस्रहृ3१ ठ्ठष्टशङ्क-१९ का मानव परीक्षण 4 महीने पहले शुरू किया था. ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने पहली बार अप्रैल में एक हजार लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण शुरू किया था. डाक्टर्स का कहना है कि जिन लोगों को यह वैक्सीन लगाई गई थी, उन में सुरक्षात्मक प्रतिरोधक प्रतिक्रिया के उत्पन्न होने से वैक्सीन की सफलता की दिशा में बड़ी उम्मीद उभरी है.

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अच्छे परिणाम की उम्मीद

वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल में सफल होने की खबर जुलाई के तीसरे सोमवार को आई, जिस से चिकित्सीय जगत में खासा उत्साह है. अब इस के तीसरे चरण में बड़े पैमाने पर ह्यूमन ट्रायल की तैयारी है, जिस में ब्रिटेन के अलावा ब्राजील, अमेरिका और भारत में भी ह्यूमन ट्रायल शुरू किया जाएगा.

मैडिकल जर्नल ‘लांसेट’ में औक्सफोर्ड में बनने वाली कोरोना वैक्सीन के पहले और दूसरे ट्रायल के परिणाम प्रकाशित किए गए हैं. इस में कहा गया है कि वैक्सीन के ट्रायल के दौरान अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और यह किसी भी गंभीर साइड इफैक्ट का संकेत नहीं दे रही है. वैक्सीन से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में एंटीबौडीज और टी-सैल्स बन रहे हैं, जो कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर हैं.

मैडिकल जर्नल के अनुसार, अप्रैल और मई में ब्रिटेन के 5 अस्पतालों में 18 से 55 वर्ष की आयु के एक हजार स्वस्थ वयस्कों को कोरोना वायरस से संक्रमित करने के बाद वैक्सीन की खुराक दी गई थी. वैक्सीन की वजह से कोई गंभीर साइड इफैक्ट इन वौलंटियर्स में नजर नहीं आया और इस की 2 खुराक प्राप्त करने वाले लोगों में अच्छी प्रतिक्रिया देखने को मिली. उन के शरीर में इस रोग से लड़ने के लिए एंटीबौडी और टी-सैल्स का निर्माण होने लगा.

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लांसेट जर्नल लिखता है कि वैज्ञानिकों ने वैक्सीन के ट्रायल में पाया कि वैक्सीन ने लोगों में दोहरी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न की है. इस तरह के शुरुआती परीक्षणों को आमतौर पर केवल सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है, लेकिन इस मामले में विशेषज्ञ यह भी देखना चाह रहे थे कि इस की किस तरह की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होगी.

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जेनर इंस्टिट्यूट के निदेशक डा. एड्रियन हिल के मुताबिक, ‘‘हम लगभग हर वौलंटियर में अच्छी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देख रहे हैं. यह वैक्सीन प्रतिरक्षा प्रणाली के दोनों पक्षों को मजबूत कर देती है.’’

डा. एड्रियन हिल लिखते हैं कि इस वैक्सीन से शरीर की टी-कोशिकाओं में एक प्रतिक्रिया होती है जो कोरोना वायरस से लड़ने में मदद करती है. देखा गया है कि वैक्सीन लगाने के बाद रोगी के शरीर में एंटीबौडी और सफेद रक्त कणिकाओं (डब्लूबीसी) का निर्माण हुआ जो कोरोना वायरस से लड़ने में प्रभावी साबित हुई हैं. वैक्सीन ट्रायल के ये परिणाम काफी आशाजनक हैं.

वैक्सीन की प्रभावशीलता का निर्धारण वैज्ञानिक कितनी जल्दी कर पाते हैं, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां कितना अधिक परीक्षण होता है. डा. हिल ने अनुमान लगाया है कि उन के पास यह सुनिश्चित करने के लिए इस वर्ष के अंत तक पर्याप्त डाटा हो सकता है कि क्या वैक्सीन को सामूहिक टीकाकरण अभियानों के लिए अपनाया जाना चाहिए. डा. हिल का कहना है कि औक्सफोर्ड की वैक्सीन बीमारी और उस के प्रसार को कम करने के लिए बनाई गई है.

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उल्लेखनीय है कि औक्सफोर्ड में बनाई जा रही कोरोना वैक्सीन को चिंपांजियों में सामान्य सर्दीजुकाम का कारण बनने वाले वायरस में जेनेटिक बदलाव ला कर तैयार किया गया है. इसे वैज्ञानिक भाषा में वायरल वैक्टर कहते हैं. इस में इस तरह बदलाव लाया गया है कि यह लोगों को संक्रमित न कर सके और कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता पैदा कर सके.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन ने इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के उत्साहजनक परिणामों को देखते हुए वैज्ञानिकों को बधाई दी है और कहा है कि यह बहुत सुखद व सकारात्मक समाचार है. बकौल बोरिस, ‘‘औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के हमारे कुशल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को बहुत बधाई. हम अभी अंतिम पड़ाव पर नहीं पहुंचे हैं और आगे के ट्रायल बहुत अहम होंगे. लेकिन, यह सफलता सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है.’’

भारत से ब्रिटेन का करार

ब्रिटेन की औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही कोरोना वैक्सीन के 2 चरणों के ट्रायल कामयाब होने के बाद ही वहां की एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी ने इस के उत्पादन की तैयारी शुरू कर दी है. तीसरे चरण के सफल होते ही वैक्सीन की बड़ी खेप बाजार में लाने की तैयारी है. औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने 60 से ज्यादा देशों के अलावा भारत से भी वैक्सीन के निर्माण व आपूर्ति के लिए करार किया है.

भारत में पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया के साथ यह सम झौता हुआ है. गौरतलब है भारतीय कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया दुनिया की अग्रणी वैक्सीन निर्माता कंपनियों में से एक है. जो सम झौता हुआ है उस के मुताबिक सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया औक्सफोर्ड से वैक्सीन निर्माण की पूरी तकनीक हासिल कर के वैक्सीन का उत्पादन भारत में ही करेगी.

कोरोना वैक्सीन के उत्पादन के लिए सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया ने 200 मिलियन डौलर खर्च करने का लक्ष्य रखा है. इतनी बड़ी रकम के निवेश पर सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला का कहना है, ‘‘हालांकि परीक्षणों में अगर गड़बड़ी होती है या रैग्युलेटरी अप्रूवल में समस्या आती है तो हमें 200 मिलियन डौलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है मगर हम ने यह निर्णय लिया कि हमें इस कठिन समय में मानवहित में कदम उठाना ही चाहिए और जोखिम लेना चाहिए. यह कारोबारी फैसला जोखिमभरा तो है लेकिन इस की जरूरत को देखते हुए हम ने यह फैसला किया है.’’

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औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन की तकनीकी जानकारी भारत में नवंबर तक आने की उम्मीद है. उस के बाद कुछ अन्य ट्रायल्स के बाद इस का उत्पादन शुरू हो जाएगा. भारत में उत्पादित इस वैक्सीन को ‘कोविशील्ड’ के नाम से जाना जाएगा. भारत में इस की लौंचिंग से पहले वैक्सीन का बड़े पैमाने पर ह्यूमन ट्रायल भी किया जाएगा.

सीईओ अदार पूनावाला के मुताबिक, भारत में सभी लोगों को कोविशील्ड टीका लगाने में 2 साल तक का समय लग सकता है. कंपनी भारत में अगस्त में तीसरे चरण के ट्रायल के लिए आश्वस्त है. तीसरे चरण के ट्रायल को पूरा होने में दो से ढाई महीने का वक्त लगेगा और यह नवंबर तक पूरा हो जाएगा. सीरम इंस्टिट्यूट में निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन का आधा स्टौक भारत के लिए होगा और आधा दूसरे देशों को निर्यात किया जाएगा.

कंपनी के सीईओ पूनावाला ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक महीने लगभग 60 मिलियन शीशियों में से भारत को 30 मिलियन मिलेंगी. इस वैक्सीन की कीमत प्रति शीशी एक हजार रुपए हो सकती है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि देश में सरकार ही वैक्सीन खरीद कर लोगों को टीकाकरण अभियान के जरिए निशुल्क उपलब्ध कराएगी. पूनावाला उम्मीद करते हैं कि कोरोना के टीके 2021 की पहली तिमाही तक बड़ी संख्या में भारत के लोगों तक पहुंच जाएंगे. उन का कहना है कि अभी यह बहुत सस्ती कीमत पर दिया जाएगा. वास्तव में महामारी खत्म होने के बाद कंपनी अधिक लाभ कमाने की दिशा में सोचेगी. कंपनी एक अधिक कमर्शियल प्राइस पर विचार कर रही है जिस पर यह वैक्सीन बाजार में उपलब्ध हो सकती है.

अदार पूनावाला का कहना है कि भारतीय औषधि महानियंत्रक से उत्पादन की आवश्यक अनुमति हासिल करने के बाद 5 हजार स्वयंसेवकों पर अगस्त के अंत में वैक्सीन का परीक्षण शुरू होगा और सबकुछ ठीक रहा, तो कंपनी अगले साल जून के करीब कोविशील्ड वैक्सीन को बाजार में ले आएगी.

भारतीय औषधि महानियंत्रक से उत्पादन की अनुमति मिलने के बाद एक महीने में भारत के अस्पतालों में भरती मरीजों पर वास्तविक परीक्षण शुरू करने की उम्मीद पूनावाला जताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमें मुंबई और पुणे के बीच बहुत सारे अस्पताल मिले हैं, जहां ट्रायल शुरू किए जाएंगे, क्योंकि यह ऐसी जगह है जहां मामले और जनसंख्या सब से अधिक है. भरती और बीमारी के लिहाज से यह परीक्षण के लिए एकदम सही है और परीक्षणों का आकार बाद में सांख्यिकीविद निर्धारित करेंगे. लेकिन ट्रायल में लगभग कुछ हजार रोगी, शायद 5 हजार के आसपास ही शामिल होंगे.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक टीकाकरण शुरू नहीं होता है तब तक इस महामारी के खतरे की आशंका बरकरार रहेगी और इस से बचने के सभी उपाय पूर्ववत जारी रखने होंगे, जिस में सोशल डिस्टैंसिंग, हाथ धोना और मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य है.’’

औक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका के 2 चरणों के ट्रायल के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि कोविड-19 वैक्सीन की केवल 2 या 3 खुराक की आवश्यकता मरीजों में होगी, जैसे कि खसरा और अन्य बीमारियों के लिए होता है. यह शरीर के भीतर मजबूत इम्युनिटी तैयार करने में भी काफी कारगर दिखती है.

भारत में वैक्सीन की कितनी खुराक की आवश्यकता लोगों को होगी? इस सवाल के जवाब में अदार पूनावाला का कहना है कि पहले और दूसरे चरण के परीक्षणों से पता चला है कि जिन्होंने एंटीबौडी की एक खुराक ली, उन पर लगभग 28 दिनों तक और जिन्होंने दोहरी खुराक ली है उन पर 2 महीने तक असर रहता है.

अधिकांश टीकों की 2 से 3 खुराक देने की जरूरत होती है. इस में पहली खुराक प्राइमर है जहां आप 50-60 फीसदी सुरक्षित होते हैं और दूसरी खुराक आप को 70-80 फीसदी सुरक्षा प्रदान करती है. हम ऐसा अन्य सभी टीकों में देखते हैं.

अब कोविड-19 में भी इसी तरह की परिस्थितियां होने जा रही हैं. चूंकि सभी मनुष्य अलगअलग हैं, कुछ लोग केवल एक शौट (एक बार के टीके) के साथ बहुत अच्छी तरह से प्रतिक्रिया दे सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि दूसरे लोग अगले शौट (अगली बार टीका लगने के) के बाद बेहतर प्रदर्शन करें. वहीं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ एक बार टीका लगाने पर पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और उन्हें उस न्यूनतम स्तर की सुरक्षा के लिए दूसरी या तीसरी बार भी टीका लगाने की आवश्यकता होती है.

वे कहते हैं, ‘‘हम ने अध्ययन में पाया कि 90 फीसदी (जो बहुत अधिक है) लोगों में एक ही बार टीका लगाए जाने पर काफी अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है. केवल बचे हुए 10 प्रतिशत हैं जिन्हें दूसरी बार टीका लगाने की आवश्यकता पड़ी. यह पूरी तसवीर को देखते हुए बहुत अच्छा आंकड़ा है. हालांकि, इस नतीजे पर पूरी तरह मुहर तब लगेगी जब तीसरे चरण के नतीजे भी हमारे सामने होंगे.’’

पूनावाला कहते हैं कि एक बार टीका लगवाने के बाद 2-3 महीनों तक प्रतीक्षा करने और यह देखने की आवश्यकता है कि क्या मरीज फिर संक्रमित हो रहा है या नहीं. यही प्रमाण है वैक्सीन की सफलता का और नवंबर तक इसे स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.

वैक्सीन के दुष्प्रभाव पर चर्चा करते हुए पूनावाला ने कहा कि जिस प्रकार अन्य टीकों के साइड इफैक्ट होते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द या सूजन, वैसे ही थोड़ा साइड इफैक्ट कोरोना के टीके का भी नजर आएगा जो कि कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘मु झे पूरा यकीन है कि सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं होगा.’’

कोरोना वैक्सीन की उत्पादन प्रक्रिया में अदार पूनावाला किसी भी तरीके की जल्दबाजी से बचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि सीरम इंस्टिट्यूट औफ इंडिया वैक्सीन बनाने की दौड़ में तो है मगर वह खुद को पहला साबित करने वाली किसी भी होड़ से खुद को दूर रखना चाहती है. परीक्षण और उत्पादन में किसी भी तरह की जल्दबाजी से बचना होगा. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम जल्दबाजी न करें ताकि हम सब से अच्छा टीका बना सकें. सब से सुरक्षित जो मानवजाति को सब से लंबी अवधि की सुरक्षा प्रदान करे ताकि एक बार वैक्सीन लगवाने के बाद फिर संक्रमण का खतरा उत्पन्न न हो.

पूनावाला कहते हैं, ‘‘सीरम इंस्टिट्यूट ने ब्रिटेन की औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अलावा भी 5 अन्य उम्मीदवारों पर  दांव लगाया है. लगभग हर 2 महीने में हम एक नया कोविड टीका लौंच करने की योजना बना रहे हैं. पहले औक्सफोर्ड उत्पाद के साथ शुरू कर रहे हैं क्योंकि यह परीक्षण में सफल भी है. लेकिन हम सिर्फ उन्हीं की वैक्सीन तकनीक पर निर्भर नहीं हैं. मु झे यकीन है कि हम ने जो अन्य 5 चुने हैं उन में से एक से अधिक वैक्सीन सफल रहेंगी.’’

उम्मीद की जा रही है कि भारत में दिसंबर 2020 और 2021 की पहली तिमाही के बीच कोरोना का टीका लौंच कर दिया जाएगा. देश के सभी हिस्सों तक पहुंचाने में कुछ समय लगेगा क्योंकि जो कंपनी टीके का उत्पादन करती है वह पहले खुद इस का परीक्षण करती है और फिर यह सीडीआई को जाता है जो कसौली में राष्ट्रीय रिलीज है और उस के बाद केवल एक बैच को जनता के लिए जारी किया जा सकता है.

आमतौर पर किसी वैक्सीन को अप्रूव करने से पहले उस पर और रिसर्च की जाती है. वैक्सीन अप्रूव होने के बाद भी कुछ वर्षों तक उस के असर पर नजर रखी जाती है. मगर कोरोना वायरस जिस तीव्र गति से प्रसार पा रहा है उस को देखते हुए सबकुछ बहुत जल्दी किए जाने की जरूरत सम झी जा रही है. इस वजह से कुछ स्टैप्स छोड़े भी जा सकते हैं. कोरोना के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए सभी प्रक्रियाएं तेजी से पूरी की जा रही हैं. वैक्सीन की पहली कुछ मिलियन खुराकें हैल्थकेयर कर्मचारियों, डाक्टरों और अधिक खतरे में काम करने वाले लोगों के लिए उपलब्ध करवाने का लक्ष्य है.

दुनियाभर में बन रही हैं वैक्सीन

कोरोना वैक्सीन के डैवलपमैंट और ट्रायल में भले ही ब्रिटेन की औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की चर्चा सब से ज्यादा हो, लेकिन चीन वह मुल्क है जिस ने कई वैक्सीन कैंडिडेट्स को अलगअलग देशों में ट्रायल पर रखा है. दुनिया की टौप 20 कोविड-19 वैक्सीनों में से 8 चीन की हैं. वहां की 3 वैक्सीन ट्रायल के आखिरी स्टेज में हैं. जरमनी अभी अपनी वैक्सीन डैवलप करने के सैकंड स्टेज में है जबकि आस्ट्रेलियाई कंपनियां पहले स्टेज में हैं. मलयेशिया में कोरोना वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल शुरू हो चुका है.

बंगलादेश मैडिकल रिसर्च काउंसिल ने एक चीनी कंपनी की बनाई कोविड वैक्सीन को फेज 3 ट्रायल की मंजूरी दे दी है. यह ट्रायल वहां के 7 अस्पतालों में इस महीने शुरू हो गया है. बंगलादेश के 4,200 हैल्थ वर्कर्स पर चीनी कंपनी सिनोवैक रिसर्च एंड डैवलपमैंट कंपनी लिमिटेड द्वारा बनाई वैक्सीन का ट्रायल होगा. इस का फेज 1 और 2 ट्रायल चीन में हो चुका है.

रूस की वैक्सीन के ट्रायल में बाजी मारने की रिपोर्ट पिछले दिनों आई थी. अब वहां के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि वे थर्ड फेज क्लीनिकल ट्रायल से पहले ही जनता को वैक्सीन उपलब्ध करा सकते हैं. रूस की 2 तरह की वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल 3 अगस्त से रूस के साथसाथ यूएई में भी शुरू हो गया है. रूस ने दावा किया है कि उस ने कोरोना वायरस की एक वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल पूरा कर लिया है. कहा जा रहा है कि वहां के अरबपतियों ने अप्रैल महीने में ही कोरोना का टीका लगवा लिया था. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के अरबपतियों और राजनेताओं को कोरोना वायरस की प्रायोगिक वैक्सीन को अप्रैल में ही दे दिया गया था.

उधर यूनाइटेड किंगडम ने औक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका कंपनी के अलावा भी कई अलगअलग फार्मा कंपनियों से डील कर 9 करोड़ वैक्सीन डोज का इंतजाम कर लिया है. वैक्सीन जब भी बाजार में आएगी, ब्रिटेन को सब से पहले 9  करोड़ डोज मिल जाएंगी. इन में से 3 करोड़ डोज जरमनी की कंपनी बायो एन टैक और न्यूयौर्क स्थित अमेरिकी बहुराष्ट्रीय दवा निगम फाइजर देंगी. यह वैक्सीन अभी फेज 2 ट्रायल में है. वल्नेवा एसआई बायोटेक कंपनी, जिस का मुख्यालय फ्रांस में है, से भी 6 करोड़ डोज का टाईअप यूके ने किया है, जिसे बढ़ा कर 10 करोड़ भी किया जा सकता है.

अमेरिकी बायोटेक कंपनी मौडर्ना की कोविड-19 वैक्सीन ट्रायल के अंतिम दौर में है. हालिया स्टडी में वैक्सीन ने क्लीनिकल ट्रायल में अच्छे नतीजे दिए हैं. पहले फेज में सभी 45 वौलंटियर्स के शरीर में एंटीबौडी बनीं. फेज 3 ट्रायल में 30 हजार वौलंटियर शामिल होंगे. आधे को वैक्सीन की 100 माइक्रोग्राम डोज दी जाएगी, जबकि बाकी को प्लेसीबो. कहा जा रहा है कि मौडर्ना की वैक्सीन दुनिया की सब से ऐडवांस्ड वैक्सीन में शामिल है.

ट्रायल फेज में देसी वैक्सीन

भारत में बनी पहली कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ का ह्यूमन ट्रायल दिल्ली स्थित एम्स में शुरू हो चुका है. यहां ट्रायल की जिम्मेदारी पिं्रसिपल इनवेस्टिगेटर डा. संजय राय संभाल रहे हैं. एम्स देश की उन 12 जगहों में से एक है जहां ‘कोवैक्सीन’ का ट्रायल हो रहा है. यहां का सैंपल साइज पूरे देश में सब से बड़ा है, इसलिए यहां के नतीजे पूरी रिसर्च की दिशा तय करेंगे. एम्स पटना और रोहतक पीजीआई में वैक्सीन का ट्रायल पहले ही चल रहा है. गोवा में भी ट्रायल की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.

उल्लेखनीय है कि आईसीएमआर और भारत बायोटेक ने मिल कर ‘कोवैक्सीन’ को बनाया है. पहले 5 वौलेंटियर्स के साथ ट्रायल शुरू हो चुका है और कुछ दिनों बाद अन्य 5 का वैक्सीनेशन होगा. कुल 10 मरीजों पर वैक्सीनेशन के बाद इन की सुरक्षा की समीक्षा होगी. उस के बाद ही इस ट्रायल को आगे बढ़ाया जाएगा. एम्स में वैक्सीनेशन एरिया इमरजैंसी के पास बनाया गया है, ताकि वैक्सीन का तत्काल कोई रिऐक्शन हो तो वौलंटियर्स को तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जा सके. यह वैक्सीन 2 डोज में दी जाएगी. इस की पहली डोज 24 जुलाई को दी गई है और अगली 14 दिन बाद दी जाएगी.

एम्स ने वैक्सीन के फेज-1 के ट्रायल में 100 लोगों को शामिल किया है. पहले 10 लोगों की वैक्सीनेशन रिपोर्ट वैक्सीनेशन की निगरानी कर रही एथिक्स कमेटी को भेजी जाएगी. कमेटी के रिव्यू के बाद वैक्सीनेशन प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जाएगा. वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन का काम भी साथसाथ चल रहा है. अब तक 3,500 लोग रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं. सभी को अलगअलग तारीखों पर एम्स बुलाया जा रहा है और स्क्रीनिंग के लिए सैंपल लिए जा रहे हैं.

डैंग लैब को मिली जिम्मेदारी

आईसीएमआर और भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई कोविड वैक्सीन के ट्रायल में शामिल होने वाले वौलंटियर्स के स्क्रीनिंग यानी लैब जांच की जिम्मेदारी डैंग लैब को दी गई है. यह एक प्राइवेट लैब है. स्क्रीनिंग में 50 तरह की जांचें हो रही हैं. कोविड के अलावा डायबिटीज, हाइपरटैंशन, किडनी, लिवर, हार्ट फंक्शन सहित लगभग 50 तरह के पैरामीटर्स की जांच में खरा उतरने वाले लोगों को ही ट्रायल में शामिल किया जा रहा है.

कोवैक्सीन को हैदराबाद की भारत बायोटैक ने इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नैशनल इंस्टिट्यूट औफ वायरोलौजी (एनआईवी) के साथ मिल कर बनाया है. वैक्सीन का कोडनेम क्चक्चङ्क152 है. कोवैक्सीन एक ‘इनऐक्टिवेटेड’ वैक्सीन है. यह उन कोरोना वायरस के पार्टिकल्स से बनी है जिन्हें मार दिया गया था ताकि वे इन्फैक्ट न कर पाएं. इस की डोज से शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबौडीज बनती हैं.

कोवैक्सीन को फेज 1 और फेज 2 ट्रायल के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल औफ इंडिया से मंजूरी मिल चुकी है. पहले फेज में कुल 375 लोगों पर ट्रायल होगा जबकि दूसरे में 750 पर. इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च ने ट्रायल के लिए उन्हीं इंस्टिट्यूट्स को चुना है जहां पर क्लिनिकल फार्माकौलोजी विंग है और ह्यूमन ट्रायल में एक्सपीरियंस हैल्थकेयर प्रोफैशनल्स हैं.

ट्रायल की सारी डिटेल्स इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च को भेजी जाएंगी. वहीं पर डेटा को एनेलाइज किया जाएगा. वैक्सीन की 2 डोज – पहली पहले दिन और दूसरी 14वें दिन – दी जाएंगी. ट्रायल में ‘डबल ब्लाइंड’ तकनीक का भी इस्तेमाल होगा जिस में न तो वौलंटियर, न ही रिसर्चर्स को पता रहेगा कि किसे वैक्सीन दी जा रही है और किसे प्लेसीबो.

क्या है प्लेसीबो

प्लेसीबो एक तरह की चिकित्सा पद्धति है. इस का सब से पहले औषधीय प्रयोग 18वीं शताब्दी में हुआ था. इस को आसान भाषा में यों सम झा जा सकता है कि इस पद्धति में इलाज के लिए कोई दवा नहीं दी जाती, बल्कि दवा का एहसास मात्र होता है. यानी, एक तरह के यकीन पर आधारित उपचार है.

दरअसल, इस उपचार पद्धति में रोगी को कुछ टेबलेट और कैप्सूल दिए जाते हैं लेकिन उस में असल में कोई दवा नहीं होती है. एक तरह से आप इसे ऐसे सम झ सकते हैं कि हम ज्यादातर समय बीमार नहीं होते हैं बल्कि हमें बीमारी का भ्रम होता है. इस पद्धति में इस भ्रम का ही इलाज किया जाता है. आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में ऐसी गोलियां सफलतापूर्वक उपयोग की जा रही हैं.

यह हैरत की बात है कि कैसे बिना दवा के रोगी ठीक हो जाता है या उसे लाभ पहुंचता है. यानी, इस पद्धति में यह भी माना जाता है कि अपने मन के विश्वास से भी किसी बीमारी से लड़ा जा सकता है.

इस को एक उदाहरण से सम झा जा सकता है. हम सब जानते हैं कि बदलते मौसम में होने वाला सर्दीजुकाम 3-4 दिन में ठीक हो जाता है और इस में दवा की जरूरत नहीं होती है. लेकिन इस के बावजूद अधिकांश लोग दवा लेते हैं और इन दवाओं के साइड इफैक्ट्स का खतरा  झेलते हैं. लेकिन प्लेसीबो पद्धति में डाक्टर, दरअसल, कोई दवा नहीं देता है बल्कि ऐसी गोली और कैप्सूल देता है जिस में कोई दवा नहीं होती है, लेकिन रोगी को लगता है कि वह दवा खा रहा है और उस के बाद वह खुदबखुद 3-4 दिनों में ठीक हो जाता है और उस को लगता है कि वह दवा से ठीक हुआ है. हालांकि इस पद्धति का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है फिर भी कोरोना के इलाज में इस पद्धति को भी शामिल किया जा रहा है.

टी-सैल्स हैं पक्के लड़ाके

कोरोना के खिलाफ इम्युनिटी की गारंटी रोग प्रतिरोधक क्षमता या एंटीबौडी नहीं, बल्कि टी-सैल्स हैं. कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में एंटीबौडी शब्द बहुत प्रचलित हुआ है. अब तक माना जाता रहा है कि शरीर में एंटीबौडी होने का मतलब है ‘कोरोना प्रूफ’ होना. लेकिन नई रिसर्च बताती हैं कि एंटीबौडी नहीं, बल्कि शरीर में टी-सैल्स की मौजूदगी ‘कोरोना प्रूफ’ की गारंटी है.

कोरोना वायरस वैक्सीन डेटा में कोरोना के प्रति इम्युनिटी के लिहाज से टी-सैल्स को काफी अहम पाया गया है. एस्ट्राजेनेका, फाइजर और उस के पार्टनर बायो एनटैक एसई के साथसाथ चीन के कैनसिनो बायोलौजिक्स की बनाई गई कोरोना वैक्सीन से जुड़े डेटा में एंडीबौडीज के बजाय टी-सैल्स की मौजूदगी को इम्युनिटी के लिहाज से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है. रिपोर्ट की मानें, तो शरीर में यदि टी-सैल्स सक्रिय हैं तो यह काफी लंबे वक्त के लिए इम्युनिटी की गारंटी है. टी-सैल्स को टी-लिम्फोसाइट भी कहा जाता है. यह ल्यूकोसाइट यानी सफेद रक्त कणिकाओं का एक प्रकार है जो हमारे इम्यून सिस्टम का बहुत ही अहम हिस्सा है. टी-सैल्स संक्रमित कोशिकाओं पर सीधे वार कर उन्हें खत्म करते हैं और दूसरे इम्यून सैल्स को सक्रिय कर देते हैं. इन्हें कोरोना संक्रमण के खिलाफ एंटीबौडी से ज्यादा भरोसेमंद माना जा रहा है.

क्यों एंटीबौडीज से ज्यादा भरोसेमंद हैं टी-सैल्स?

कोरोना को ले कर हो रही रिसर्च में खुलासा हुआ है कि एंटीबौडीज लंबे वक्त तक सक्रिय नहीं रह पाती हैं और तेजी से उन की संख्या भी घट जाती है. दूसरी तरफ टी-सैल्स संक्रमित कोशिका को पूरी तरह खत्म कर देते हैं. उन्हें कई दशकों तक पुरानी बीमारी याद रहती है और जब कभी शरीर पर उस तरह का हमला दोबारा होता है तो वे उसी तरह रिस्पौंस करते हैं जैसे पहली बार किया था. कोरोना वायरस के ही एक प्रकार सार्स के प्रति वर्ष 2003 में जिन लोगों में टी-सैल्स रिस्पौंस पैदा हुआ था, वे उस बीमारी के 17 वर्षों बाद भी सक्रिय हैं यानी वे लोग फिर से सार्स से संक्रमित नहीं होंगे.

गौरतलब है कि कोरोना वायरस मरीजों पर अलगअलग तरह से हमला कर रहा है. किसी को बहुत हलका संक्रमण हो रहा है, तो किसी को बहुत ही गंभीर संक्रमण हो रहा है. यहां तक कि तमाम मरीजों की मौत तक हो रही है. हो सकता है कि इस की वजह कुछ मरीजों के शरीर में पहले से टी-सैल्स की मौजूदगी हो. हालांकि, इसे तय करने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत है.

दुनिया की नजर भारत पर

भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन की दुनिया में सब से बड़े मैन्युफैक्चरर्स में होती है. देश में वैक्सीन बनाने वाली आधा दर्जन से ज्यादा बड़ी कंपनियां हैं. इस के अलावा कई छोटी कंपनियां भी वैक्सीन बनाती हैं. ये कंपनियां पोलियो, मैनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी, मीजल्स, मंप्स और रूबेला समेत दूसरी बीमारियों के लिए वैक्सीन बनाती हैं. ऐसे में कोरोना वैक्सीन के लिए भी दुनिया भारत की ओर काफी आशाभरी नजरों से देख रही है. कोरोना वैक्सीन पर देश की 7 कंपनियां काम कर रही हैं. घरेलू फार्मा कंपनियों की बात की जाए, तो भारत बायोटैक, सीरम इंस्टिट्यूट, जायडस कैडिला, पैनेशिया बायोटैक, इंडियन इम्यूनोलौजिक्स, मायनवैक्स और बायोलौजिकल ई कोविड-19 का टीका तैयार करने का प्रयास कर रही है.

कोवैक्सीन, भारत बायोटैक : इस का निर्माण कंपनी के हैदराबाद के कारखाने में किया जा रहा है. इस का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है. पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षण की अनुमति मिली है.

एस्ट्रजेनेका, सीरम इंस्टिट्यूट वैक्सीन : फिलहाल कंपनी एस्ट्रजेनेका और औक्सफोर्ड वैक्सीन पर काम कर रही है. कंपनी की अगस्त 2020 में भारत में मानव परीक्षण शुरू करने की योजना है. इस का तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण शुरू होने वाला है.

जाइकोव-डी, जायडस कैडिला वैक्सीन : परीक्षण के दौरान टीका प्रभावी साबित होता है, तो टीका बाजार में उतारने में 7 माह लगेंगे. कंपनी अध्ययन के नतीजों के आधार पर काम करेगी. कंपनी को क्लीनिकल परीक्षण 7 माह में पूरा करने की उम्मीद है.

पैनेशिया बायोटैक वैक्सीन : टीका विकसित करने के लिए अमेरिका की रेफैना के साथ करार किया है. कंपनी की आयरलैंड में एक संयुक्त उद्यम स्थापित करने की योजना है. 4 करोड़ से अधिक खुराक अगले साल तक आपूर्ति की जा सकेंगी. प्री क्लीनिकल ट्रायल जारी है.

इंडियन इम्यूनोलौजिक्स वैक्सीन :  टीका विकसित करने के लिए आस्ट्रेलिया के साथ करार किया है. कंपनी आस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर रिसर्च करेगी. अभी प्री क्लीनिकल ट्रायल जारी है.

मायनवैक्स वैक्सीन : 18 माह में टीका विकसित करने की कंपनी की योजना है. कंपनी की 2 दर्जन टीमें टीका विकसित करने की दिशा में काम कर रही हैं. कंपनी ने 15 करोड़ रुपए की राशि के लिए बीआईआरएसी को अर्जी दी है. फिलहाल प्री क्लीनिकल ट्रायल जारी है.

बायोलौजिकल ई वैक्सीन : अभी प्री क्लीनिकल ट्रायल ही जारी है. 

कोरोना वायरस वैक्सीन  के बारे में आइए जानते हैं सीएमएएओ और हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया के अध्यक्ष व इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डा. के के अग्रवाल से कुछ जरूरी बातें.

 वैक्सीन क्या होती है?

वैक्सीन ऐसी दवा है जो शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाती है और बीमारी से बचाव करती है. यह वास्तव में मृत अथवा निष्क्रिय जीवाणुओं या विषाणुओं का सस्पैंशन होता है. वैक्सीन जीवाणु या विषाणु के शरीर का उपयोग कर के बनाया गया द्रव्य है जिस के प्रयोग से शरीर की किसी रोग विशेष से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है.

 यह शरीर में कैसे काम करती है?

वैक्सीन लगाने के बाद रोग उत्पन्न करने में असमर्थ मृत जीवाणु और शरीर में एक प्रकार की लड़ाई होती है जिस के कारण शरीर में टी लिम्फोसाइट्स और एंटीबौडीज बन जाती हैं. ये मैमोरी के रूप में शरीर में स्टोर होती हैं. जब वह जीवाणु शरीर पर हमला करता है तो यह स्टोर्ड मैमोरी जीवित जीवाणुओं की आक्रामक शक्ति को निर्बल कर उन्हें निष्क्रिय कर देती है जिस से उन में रोग करने की क्षमता तो नहीं रहती, किंतु एंटीबौडीज बनाने की शक्ति बनी रहती है. कितने चरण में यह तय हो जाता है कि अब इसे बाजार में उतार देना चाहिए?

पहले चरण में कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन का जेनेटिक कोड पहचाना जाता है.  दूसरे चरण में चिंपैंजी के एडीनोवायरस को जेनेटिकली मोडिफाई कर के स्पाइक प्रोटीन बनाए जाते हैं.

शरीर में जाने के बाद यह प्रोटीन कोरोना की एंटीबौडीज बनाने लगता है. तीसरे चरण में मनुष्य पर ट्रायल किया जाता है. तीसरे चरण के फेज ट्रायल में लगभग

3 हजार लोगों पर वैक्सीन ट्राई की जाती है. यदि एंटीबौडीज बनती हैं तो सफल ट्रायल माना जाएगा. उस के बाद ही वैक्सीन बाजार में आएगी.

क्या यह 100 फीसदी कारगर होगी?

कोई भी वैक्सीन सौ फीसदी कारगर नहीं होती. यदि 70 फीसदी लोगों में एंटीबौडीज बन जाती हैं तो ट्रायल कारगर है और 30 फीसदी लोगों से कम में बनती हैं तो फेलियर है. यह वैक्सीन तत्काल कौंप्लिकेशंस से तो बचाएगी पर डिलेड कौंप्लिकेशंस से बचाएगी या नहीं, यह बाद में पता चलेगा. जैसे पोलियो की वैक्सीन सौ फीसदी कारगर नहीं है, फिर भी देश से पोलियो खत्म हो गया.

 वैक्सीन कैसे वायरस को टारगेट करती है?

जैसे किसी भी आपातकाल के लिए मौकड्रिल की जाती है वैसे ही वैक्सीन वायरस को स्टोर्ड मैमोरो से खत्म करेगी.

 इस के साइड इफैक्ट्स क्या हैं?

वैक्सीन के बाद कुछ लोगों में साइड इफैक्ट्स देखने को मिलते हैं, जैसे बुखार, सिरदर्द और लोकल साइड इफैक्ट – इंजैक्शन वाली जगह पर सूजन, जलन या लाली. अधिकतर ये खुद ही ठीक हो जाते हैं.

 इस का स्ट्रक्चर कैसा होता है ?

यह लाइव एटीनुऐटिड वैक्सीन है.

यह यूनिवर्सल होगा या भौगोलिक स्थिति के हिसाब से फर्क होगा?

मेरे ख्याल से यह अर्थव्यवस्था के हिसाब से होगा और अमीर लोग गरीबों की वैक्सीन का खर्च वहन करेंगे.

सब से पहले वैक्सीन किस वर्ग को दी जाएगी?

मेरा मानना है सब से पहले वैक्सीन हाई रिस्क वर्ग को दी जाएगी.

 

 

 

जब अभिनेता राहुल शर्मा सीरियल”प्यार की लुका छुपी” के सेट पर बने स्टंट निर्देशक

टेलीविजन धारावाहिकों की शूटिंग शुरू हुए कई हफ्ते बीत चुके हैं और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण कुछ महीनों के अंतराल के बाद अपने दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए अभिनेता शूटिंग पर वापस आ रहे हैं. सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन करके शूटिंग की  जा रही है. इसी वजह से सेट पर सीमित संख्या में लोगों को काम करने कीअनुमति दी जाती है.अभिनेता भी खुद अपने बाल और मेकअप करने के लिए सहमत हुए हैं.

” दंगल “टीवी चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल ” प्यार की लुका छुपी” में सार्थक की भूमिका निभा रहे अभिनेता राहुल शर्मा को हाल ही में अतिरिक्त जिम्मेदारी निभाते हुए पाया गया.जी हां इस सीरियल के सेट पर व एक्शन डायरेक्टर के रूप में भी काम करते हुए नजर आए. राहुल शर्मा ने सृष्टि का किरदार निभा रही अभिनेत्री अपर्णा दीक्षित के कार एक्सीडेंट के दृश्य को निर्देशित किया. लॉकडाउन में अपने लिए खाना पकाने और लेखन का कौशल करने के बाद राहुल ने यह एक नया कारनामा अंजाम दिया.

 

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Unhi mein se koi sapna ladkhada gya hoga aur tum gir gaye… hilarious ??? @aparnadixit2061 @iamkrripkapursuri

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खुद राहुल शर्मा कहते हैं- “कोविड की स्थिति के कारण, सेट पर सीमित संख्या में लोगों को अनुमति दी जाती है.इसलिए, मैंने और मेरे निर्देशक ने पूरे दुर्घटना क्रम को अपने दम पर शूट करने के बारे में सोचा. यह दृश्य इतना तीव्र हो गया कि अपर्णा लगभग फफक कर रो पड़ी. वह बहुत डरी हुई थी. हमने क्लच प्लेट और टायरों को भी जलाकर बर्बाद कर दिया. यह एक उत्तेजित करने वाला अनुभव था.”

 

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Rangeen joota pehna diya hawa bhi nhi ja rhi isme ??? @maleekarghai_official

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इस तरह के दृश्य को फिल्माने में कई सावधानियां और कैमरा तकनीक की जरूरत होती है. राहुल आगे कहते हैं- ”सुरक्षा का इसमें बेहद महत्व था, हमने सुनिश्चित किया कि हमारे प्रयास बहुत जोखिम भरे न हों और साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी सावधानियां अपनी सिफारिशों के अनुसार हों. निर्देशक मेरी ड्राइविंग को लेकर आश्वस्त थे और जैसा कि मैंने अतीत में काफी एक्शन दृश्य किए हैं, तो मुझे इस बात की समझ थी कि इस दृश्य को कैसे फिल्माया जा सकता है. हमने अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया और इसे यथासंभव वास्तविक बनाने की कोशिश की.”

पंडित जसराज का हृदयाघात  से अमेरिका के न्यूजर्सी में निधन

शास्त्रीय संगीत के महान गायक पंडित जसराज का नब्बे वर्ष की उम्र में अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित उनके अपने घर में सोमवार 17 अगस्त को स्थानीय समय के अनुसार सुबह 5:15 बजे हार्ट अटैक से देहांत हो गया.मेवाती घराने के पंडित जसराज पद्माश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण सहित तमाम पुरस्कारों/ उपाधियों से नवाजे जा चुके थे.उनका अंतिम संस्कार कहां किया जाएगा ,यह तय नहीं है .सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय तथा केंद्र सरकार सोच रही है कि पंडित जसराज का पार्थिव शरीर अमेरिका से भारत लाया जाए और भारत में पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार संपन्न हो. पंडित जसराज के निधन की खबर लोगों को उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने ही सबसे पहले समाचार एजेंसी पीटीआई के माध्यम से बताई थी.

28 जनवरी 1930 को हिसार, हरियाणा जन्मे पंडित जसराज का 80 वर्ष का संगीत कैरियर रहा.उन्होंने शास्त्रीय और सेमी क्लासिक गायन के क्षेत्र में जो मुकाम बनाया था, वह  बिरले गायकों के हिस्से आया है .पंडित जसराज ने भारत के अलावा कनाडा और अमेरिका में भी लोगों को संगीत की शिक्षा दी.पंडित जसराज ने सप्त ऋषि चक्रवर्ती, संजीव अभय शंकर, कलारामनाथ, तृप्ति मुखर्जी, सुमन घोष, शशांक सुब्रमण्यम, अनुराधा पोडवाल, साधना सरगम और रमेश नारायण को भी संगीत की शिक्षा दीपंडित जसराज ने ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत’ के मुंबई के अलावा केरल, न्यूजर्सी, अटलांटा, टाम्पा,  वान कुबेर,  टोरंटो, पित्तस वर्ग  में स्कूल खोलें. 90 वर्ष की उम्र में भी वह कुछ अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को ‘स्काइप’ के माध्यम से संगीत की शिक्षा दे रहे थे.

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पंडित जसराज के पिता पंडित मोतीराम ने ही उन्हें संगीत की तरफ मुड़ने के लिए उकसाया था. फिर उन्होंने अपने बड़े भाई प्रताप नारायण और मणीराम के साथ स्टेज पर कंसर्ट करते हुए कैरियर शुरू किया था. पंडित जसराज के पिता हैदराबाद नवाब मीर उस्मान अली खान (हैदराबाद के निजाम) के यहां दरबारी म्यूजीशियन थे.फिर यह परिवार अहमदाबाद आ गया था.

पर 1946 में पंडित जसराज ने कोलकाता में रेडियो पर गाना शुरू किया था. कोलकाता में रहते हुए उन्होंने उस्ताद अमीर खान, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान और पंडित ओमकार नाथ ठाकुर की गायकी को भी सुना.

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1962 में पंडित जसराज ने मशहूर फिल्मकार व्ही शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से विवाह रचाया था. 1963 से उन्होंने मुंबई में रहना शुरू किया.उनके बेटे शारंगदेव पंडित तथा बेटी दुर्गा जसराज हैं. मधुरा जसराज  ने 2009 में एक फिल्म “संगीत मार्तंड पंडित जसराज” का निर्माण किया था. मधुरा जसराज ने 2010 में मराठी भाषा की फिल्म “आई तुझ्या आशीर्वाद” का निर्देशन किया था, जिसमें लता मंगेशकर के साथ पंडित जसराज ने मराठी भाषा का गीत गाया था. इससे पहले पंडित जसराज ने फिल्म “लड़की सह्याद्रि थी” में भीमसेन जोशी के साथ डुएट गया था. उन्होंने विक्रम भट्ट की फिल्म ‘1920’ सहित कुछ अन्य फिल्मों के लिए भी गाया.

पंडित जसराज के निधन की खबर से संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गयी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंड, गायिका आशा भोसले, मशहूर सरोद वादक अमजद अली खान, संगीतकार ए आर रहमान, अनु कपूर गायक व संगीतकार शंकर महादेवन, विशाल डडलानी सहित तमाम हस्तियों ने शोक व्यक्त किया. कई राजनेताओं ने भी शोक व्यक्त किया.

पंडित जसराज ने 4 दिन पहले ही हालिया रिलीज़ हुई वेब सीरीज ” बंदिश बैंडिट्स”  की तारीफ की थी ,जिसका एक वीडियो वेब सीरीज के संगीतकार अक्षत पारिख ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर किया है. अक्षत पारिख द्वारा शेयर किए गए इस वीडियो में पंडित जसराज उनकी वेब सीरीज़ की तारीफ करते हुए कह रहे हैं कि- ‘भगवान ने तुम्हारे जरिए अच्छा काम करवाया है. मुझे बहुत आनंद आया. मैं ये ‘बंदिश बैंडिट्स’ के लिए बोल रहा हूं.’

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इस वीडियो को अक्षत ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर करते हुए लिखा- ‘पद्मविभूषण पंडित जसराज जी की तरफ से ये आशीर्वाद मेरे और ‘बंदिश बैंडिट्स’ की पूरी टीम के लिए है. संगीत के इतने बड़े दिग्गज की तरफ से तारीफ सुनकर मैं बहुत आभारी हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद गुरुजी. दंडवत प्रणाम.’

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गत वर्ष मंगल और बृहस्पति के बीच एक छोटा प्लैनेट पाया गया था, जिसका नाम पंडित जसराज रखा गया था. उस वक्त पंडित जसराज ने कहा था -“यह तो मेरे सपने से परे है।.यह ईश्वर की अनुकंपा है संगीत तो प्यार और एकता का संदेश फैलाता है.”

पाले से कैसे करें फसलों की सुरक्षा

सर्दी का मौसम शुरू होते ही हर किसी के सामने ठंड एक समस्या बन कर खड़ी हो जाती है. जब सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है, उस समय किसानों को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगती है, क्योंकि कड़क सर्दी के कारण फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इस से रबी फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है.

किसान चाहता है कि वह पाले से किसी भी तरह अपनी आलू, अरहर, चना, सरसों, तोरिया, उद्यान की फसलें गेहूं, जौ वगैरह को बचाने की कोशिश करता है. रबी फसलों को पाले से कैसे बचाएं, काफी गंभीर मुद्दा है.

हमारे देश की आबादी 106 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है. बढ़ती आबादी के लिए उत्पादन बढ़ाना बेहद जरूरी है. साल 2003-04 में देश में खाद्यान्न उत्पादन 21.3 करोड़ टन हुआ था, जिस की तुलना में साल 2004-05 में फसल उत्पादन में कमी आई.

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उत्पादन में आई इस कमी की मुख्य वजह है, सूखा और सर्दी में पाला. कृषि की सकल घरेलू उत्पाद में 22 फीसदी की हिस्सेदारी है. दुर्भाग्यवश कृषि में विकास दर 10वीं पंचवर्षीय योजना के पहले 3 सालों में महज 1.5 फीसदी रह गई है, जबकि हमें 4 फीसदी सालाना विकास दर हासिल करने का लक्ष्य बनाना होगा.

उत्पादन बढ़वार के लिए जरूरी है सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और बेहतर फसल प्रबंधन में रबी फसलों के लिए पाले से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के उपाय अपनाना है.

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पाला पड़ने के लक्षण

अकसर पाला पड़ने की संभावना 1 जनवरी से 10 जनवरी तक ज्यादा रहती है. जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान कम हो जाए, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. दिन के समय सूरज की गरमी से धरती गरम हो जाती है और जमीन से यह गरमी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है, इसलिए रात में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि जमीन को गरमी तो मिलती है नहीं, और इस में मौजूद गरमी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है और तापमान कई बार 0 डिगरी सैल्सियस या इस से भी कम हो जाता है. ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं. इस अवस्था को हम पाला कहते हैं.

पाला 2 प्रकार का

  1. काला पाला : यह उस अवस्था को कहते हैं, जब जमीन के पास हवा का तापमान बिना पानी के जमे 0 डिगरी सैल्सियस से कम हो जाता है. वायुमंडल में नमी इतनी कम हो जाती है कि ओस का बनना रुक जाता है, जो पानी के जमने को रोकता है.
  2. सफेद पाला : जब वायुमंडल में तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से कम हो जाता है. साथ ही, वायुमंडल में नमी ज्यादा होने की वजह से ओस बर्फ के रूप में बदल जाती है. पाले की यह अवस्था सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. अगर पाला ज्यादा देर तक रहे, तो पौधे मर भी सकते हैं.

पौधों को कैसे नुकसान पहुंचाता है पाला

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पाले से प्रभावित पौधों की कोशिकाओं में मौजूद पानी सब से पहले अंतरकोशिकीय स्थान पर जमा हो जाता है. इस तरह कोशिकाओं में निजर्लीकरण की अवस्था बन जाती है, वहीं दूसरी ओर अंतरकोशिकीय स्थान में जमा पानी जम कर ठोस रूप में बदल जाता है, जिस से इस का आयतन बढ़ने से आसपास की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है. यह दबाव ज्यादा होने पर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. इस प्रकार कोमल टहनियां पाले से खराब हो जाती हैं.

पाले से पौधों की हिफाजत

जब वायुमंडल का तापमान 4 डिगरी सैल्सियस से कम और 0 डिगरी सैल्सियस तक पहुंच जाता है तो पाला पड़ता है, इसलिए पाले से बचाने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को 0 डिगरी सैल्सियस से ऊपर बनाए रखना जरूरी हो जाता है.

ऐसा करने के लिए कुछ उपाय सुझाए गए हैं, जिन्हें अपना कर किसान ज्यादा फायदा उठा सकेंगे :

खेतों की सिंचाई कर के

जब भी पाला पड़ने की संभावना हो या मौसम विभाग द्वारा पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए, जिस से तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है. यह सिंचाई फव्वारा विधि द्वारा की जाती है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि सुबह 4 बजे तक अगर फव्वारे चला कर बंद कर देते हैं, तो सूरज निकलने से पहले फसल पर बूंदों के रूप में मौजूद पानी जम जाता है और फायदे की अपेक्षा नुकसान ज्यादाहो जाता है, इसलिए स्प्रिंकलर को सुबह सूरज निकलने तक लगातार चला

कर पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.

गंधक के तेजाब का छिड़काव कर के

बारानी फसल में जब पाला पड़ने की संभावना हो तो पाले की संभावना वाले दिन फसल पर गंधक के तेजाब का 0.1 फीसदी का छिड़काव करें.

इस तरह तेजाब के स्प्रे से फसल के आसपास के वातावरण में तापमान बढ़ जाता है और तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता है, जिस से पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.

पौधे को ढक कर

पाले से सब से ज्यादा नुकसान नर्सरी में होता है. नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की पन्नी से ढकने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिगरी सैल्सियस बढ़ जाता है, जिस से सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता और पौधे पाले से बच जाते हैं, लेकिन यह कुछ महंगी तकनीक है.

गांव में पुआल का इस्तेमाल पौधों को ढकने के लिए किया जा सकता है. पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिणपूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे.

पुआल का प्रयोग दिसंबर से फरवरी माह तक करें. मार्च का महीना आते ही इसे हटा दें.

वहीं नर्सरी पर छप्पर डाल कर भी पौधों को फील्ड में ट्रांसप्लांट करने पर पौधों के थावलों के चारों ओर कड़बी या मूंज की टाटी बांध कर भी पाले से बचाया जा सकता है.

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वायुरोधक द्वारा

पाले से बचाव के लिए खेत के चारों ओर मेंड़ पर पेड़ या झाडि़यों की बाढ़ लगा दी जाती है, जिस से शीतलहर द्वारा होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.

अगर खेत के चारों ओर मेंड़ के पेड़ों की कतार लगाना संभव न हो, तो कम से कम उत्तरपश्चिम दिशा में जरूर पेड़ की कतार लगानी चाहिए, जो अधिकतर इसी दिशा में आने वाली शीतलहर को रोकने का काम करेगी.

पेड़ों की कतार की ऊंचाई जितनी अधिक होगी, शीतलहर से सुरक्षा उसी के अनुपात में बढ़ती जाती है. पेड़ की ऊंचाई के चौगुनी दूरी तक जिधर से शीतलहर आ रही है और पेड़ की ऊंचाई के 25-30 गुना दूरी तक जिधर शीतलहर की हवा जा रही है, फसल सुरक्षित रहती है.

प्लास्टिक की क्लोच का प्रयोग कर

पपीता व आम के छोटे पेड़ को प्लास्टिक से बनी क्लोच से बचाया जा सकता है. इस तरह का प्रयोग हमारे देश में प्रचलित नहीं है, परंतु हम खुद ही प्लास्टिक की क्लोच बना कर इस का प्रयोग पौधों को पाले से बचाने के लिए कर सकते हैं. क्लोच से पौधों को ढकने पर अंदर का तापमान तो बढ़ता ही है, साथ में पौधे की बढ़वार में भी मदद करता है.

इस प्रकार हम फसल, नर्सरी और छोटे फल पेड़ों को पाले से होने वाले नुकसान से बहुत ही आसान और कम खर्चीले तरीकों द्वारा बचा सकते हैं. विदेशों में महंगे पौधों को बचाने के लिए हीटर का प्रयोग भी किया जाता है, लेकिन हमारे देश में अभी यह मुमकिन नहीं है.

हमें भरोसा है कि फसल की बढ़वार व पैदावार बढ़ाने के लिए अगर किसान ऊपर बताए गए इन तरीकों को अपनाते हैं, तो निश्चित ही रबी की फसलों में पाले के चलते होने वाले नुकसान को काफी हद तक बचाने में कामयाब हो सकते हैं.

ककोरा से बनाएं स्वादिष्ट सब्जी और अचार

मानसून के आते ही बाजार में हरे रंग की ओवल शेप और नरम कांटे के छिलकों वाली एक सब्जी दिखने लगती है जिसे ककोरा कहा जाता है. विभिन्न स्थानीय भाषाओं में इसे ककोड़ा, कंटोला, मीठा करेला, केकरोल, और करटोली जैसे नामों से पुकारा जाता है. करेला प्रजाति की होने के बाद भी यह स्वाद में कड़वी नहीं होती. यह एक औषधीय सब्जी है जो केवल मानसून के दिनों में ही मिलती है. इसकी सब्जी अत्यधिक स्वादिष्ट होने के साथ साथ इम्यूनिटी बूस्टर भी होती है क्योंकि इसमें आयरन, फाइबर, विटामिन्स और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. आइये इसे खाने से होने वाले फायदों के बारे में जानते हैं


-ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है
ककोरा की 100 ग्राम सब्जी में मात्र 17 कैलोरी होती है जिससे शरीर का कोलेस्ट्रॉल और वजन नहीं बढ़ता,साथ ही इसमें निहित मोमोरडीसन तत्व और फाइबर की अधिक मात्रा शरीर के लिए रामबाण का कार्य करती है.
-डायबिटीज को कंट्रोल करता है
ककोरा में फाइटो और केरेटिन नामक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं जो शकर को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं.
-आंखों के लिए लाभकारी
ककोरा में बहुतायत में निहित विटामिन ए आंखों से संबंधित परेशानियों को दूर करने के साथ साथ आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी सहायक होता है.

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-गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद
ककोरा में विटामिन बी, सी और आयरन भरपूर मात्रा में होता है जो गर्भवती में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है.
ककोरा को सब्जी, अचार के अलावा सुखाकर बनाये गए चूर्ण के रूप में भी खाया जाता है. इसकी सब्जी और अचार अत्यधिक स्वादिष्ट होती है. आइये जानते हैं कि इसकी सब्जी और अचार कैसे बनाते हैं-
ककोरा की स्वादिष्ट सब्जी
4 लोगों के लिए
बनने में लगने वाला समय 15 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
ककोरा 250 ग्राम
तेल 2 टीस्पून
हींग 1 पिंच
जीरा 1/4टीस्पून
प्याज 1
लहसुन 4 कली
हरी मिर्च 4
किसा अदरक 1 छोटी गांठ
हल्दी पाउडर 1/4 चम्मच
लाल मिर्च पाउडर 1/2 टीस्पून
गरम मसाला पाउडर 1/4टीस्पून
नमक स्वादानुसार
नीबू का रस 2 टीस्पून
कटा हरा धनिया 1 टीस्पून

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विधि
1-ककोरा को धोकर छिलका सहित लम्बाई में काट लें.
2-प्याज, हरी मिर्च और लहसुन को भी बारीक काट ले.
३-गरम तेल में जीरा और हींग डालकर प्याज,लहसुन, हरी मिर्च और अदरक को मंदी आंच पर भूनें.
4-अब हल्दी, ककोरा और नमक डालकर ढक दें.
5-3 मिनट बाद अच्छी तरह चलाकर आधा कप पानी और सभी मसाले डालकर धीमी आंच पर ही 5 मिनट तक पकाएं.
6-जब ककोरा गल जाए तो खोलकर तेज आंच पर 2 मिनट तक रोस्ट करके गैस बंद कर दें.
7-नींबू का रस और हरा धनिया डालकर पराँठा या रोटी के साथ सर्व करें.

ककोरा का स्वादिष्ट अचार
8 लोंगो के लिए
बनने में लगने वाला समय 15 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
ककोरा 500 ग्राम
सरसों का तेल 250 ग्राम
हल्दी पाउडर 1 टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर 1/2 टीस्पून
साबुत लाल मिर्च 4
हींग 1/4 टीस्पून
राई की दाल 1 टेबल स्पून
सरसों की दाल 1 टेबल स्पून
दरदरी सौंफ 1 टीस्पून
अमचूर पाउडर 1 टेबल स्पून
सादा नमक 1 टीस्पून
कलौंजी 1/4 टीस्पून
मैथीदाना 1/4 टीस्पून
सफेद वेनेगर 1 टीस्पून

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विधि
1-गर्म तेल में ककोरा को डालकर तेज आंच पर चलाते हुए 5 मिनट अथवा ककोरा के हल्का नरम होने तक भूनें.
2-अब गैस बंद करके मैथीदाना, कलौंजी, हींग, राई, सरसों की दाल व सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलाएं.
3-ठंडा होने पर वेनेगर मिलाएं.
4-एयरटाइट जार में भरकर और दो दिन बाद प्रयोग करें.

आपके बच्चे के ‘पहले हजार दिनों’ को मजबूत करने के लिए जरूरी है स्तनपान

गभार्वस्था और जन्म के बाद के पहले 1000 दिन नवजात शिशु के शुरुआती जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है. आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों के मस्तिष्क विकास में भारी नुकसान हो सकता है, ऐसे में आपके बच्चे के ‘पहले हजार दिनों’ को मजबूत करने के लिए जरूरी है स्तनपान इस बारे में बता रहीं हैं, बाल चिकित्सा विभाग, बीएलके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की लैक्टेशन कंसल्टेंट, डॉ शाची बवेजा.

किसी भी बच्चे के लिए ʺपहला हजार दिनʺ मां के गर्भधारण करने से लेकर बच्चे के दूसरे जन्म दिन तक का समय होता है. इसमें गर्भावस्था का समय और बच्चे के जीवन के पहले दो साल शामिल होते हैं.

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बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमता मजबूत

इस अवधि में शरीर और मस्तिष्क दोनों का तेजी से विकास होता है. यह समय काफी महत्वपूर्ण और बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमता को मजबूत करने वाला होता है, लेकिन साथ ही यह बहुत ही संवेदनशील समय भी होता है क्योंकि अगर चीजों को ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता है, तो इससे दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं. यह अवधि हमें बच्चों को अधिक स्वस्थ बनाने और एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करने का अनूठा अवसर प्रदान करती है.

पोषण की भूमिका

इसके कई पहलू हैं, और इसमें पोषण की विशेष भूमिका है. इसलिए, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान किसी महिला का पोषण और पहले 2 वर्षों में बच्चे का पोषण बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति को निर्धारित करता है, और अगर हम इसके व्यापक प्रभाव की बात करें तो यह राष्ट्र के विकास और समृद्धि को भी निर्धारित करता है.

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इस प्रकार हर राष्ट्र के लिए एक बहुत ही स्मार्ट निवेश महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण में निवेश होगा (विशेषकर गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान), साथ ही स्तनपान को बढ़ावा देने, सुरक्षा प्रदान करने और समर्थन प्रदान करने और बच्चों को सही पूरक आहार देने के तरीकों के बारे में जानकारी प्रदान करना भी जरूरी है.

पोषण सुधार में निवेश

दुनिया भर के आंकडों से पता चलता है कि माताओं और बच्चों के पोषण में सुधार के लिए किया गया प्रत्येक एक डॉलर का निवेश 35 डॉलर का रिटर्न देता है. हमें माता और बच्चे के पोषण में निवेश करने की जरूरत है. हमारे शरीर के विकास, वृद्धि और प्रतिरक्षा के लिए शरीर को अच्छे पोषण की जरूरत होती है.

मां का दूध है अच्छा पोषण

एक बच्चे के लिए उसके जीवन के पहले 6 महीने में अच्छा पोषण उसकी अपनी माँ के दूध से ही मिलता है किसी और चीज से नहीं. इसके पीछे एक बहुत ही सरल तर्क है, कि माँ के दूध में बच्चे के 6 महीने तक के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं.

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बच्चे को प्रतिरक्षा प्रदान करें

एक नवजात शिशु को अपनी खुद की प्रतिरक्षा विकसित करनी होती है (वे कुछ प्रतिरक्षा के साथ पैदा होते हैं, जो वे गर्भावस्था के दौरान और बाद में माता से त्वचा से त्वचा के संपर्क में आने पर प्राप्त करते हैं), इसलिए जब तक बच्चा प्रतिरक्षा के अच्छे स्तर को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक माँ का दूध बच्चे को प्रतिरक्षा प्रदान करता है (और यह तब तक प्रदान करना जारी रखता है जब तक बच्चा स्तनपान जारी रखता है). स्तनपान न केवल तेजी से बढ़ते मस्तिष्क और शरीर के लिए उचित पोषण प्रदान करता है, बल्कि यह बच्चे को प्रतिरक्षा भी प्रदान करता है और इसके बारे में सबसे जादुई बात यह है कि यह प्रतिरक्षा गतिशील है, अर्थात बिना किसी अतिरिक्त खर्च के यह बच्चे की आवश्यकता के आधार पर बदलता है.

प्रकृति ने एक सुंदर, परिष्कृत और उच्च तकनीक प्रणाली बनाई है. इसलिए, जब माता को कोई संक्रमण होता है, तो वह अपने दूध में उस संक्रमण के खिलाफ एक पदार्थ (एंटीबॉडी) स्रावित करती है जो उस संक्रमण से उसे सुरक्षा प्रदान करता है. यही नहीं, यदि उसके बच्चे में कोई संक्रमण होता है, तो बच्चे की लार माँ के स्तनों के साथ संवाद करती है और माँ के स्तन स्तन दूध में सुरक्षात्मक पदार्थ (एंटीबॉडी) का उत्पादन शुरू कर देते हैं जो शिशुओं को उस संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं.

स्तनपान 2 वर्ष की आयु तक

बच्चे के 6 माह के होने के बाद, बच्चे की आहार की आवश्यकता बढ़ जाती है और बच्चे के आहार में पूरक आहार को भी शामिल किया जाता है, साथ ही स्तनपान भी जारी रखा जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का सुझाव है कि बच्चे को कम से कम 2 वर्ष की आयु तक स्तनपान (उचित पूरक खाद्य पदार्थों के साथ) कराया जाना चाहिए .

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कोविड पॉजिटिव से प्रभावित माएं

कोविड-19 महामारी के इस समय में यह बहुत अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है. शोध हमें बताते हैं कि कोरोनो वायरस स्तन दूध के माध्यम से संचारित नहीं होते हैं और कोविड पॉजिटिव माताएं अपने स्तन दूध में सुरक्षात्मक एंटीबॉडी का स्राव करती हैं !! लेकिन अफसोस की बात है कि देश भर से आने वाले आंकड़ों में हमारे स्तनपान दर में गिरावट देखी जा सकती है और इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं, मिथक और डर जिसका संबंध कोरोना वायरस संक्रमण और तैयारियों की कमी से है.

अच्छी खबर यह है कि इसका इलाज संभव है. हम सभी को मां के कोविड से प्रभावित होने के बावजूद, माँ से बच्चे का तुरंत त्वचा से त्वचा संपर्क और स्तनपान के बारे में सार्वभौमिक (डब्ल्युएचओ, यूनिसेफ, बीपीएनआई, एसोसिएशन ऑफ लैक्टेशन प्रोफेशनल्स इंडिया, आईएलसीए, सीडीसी) सिफारिशों के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है.

स्तनपान की जानकारी

इसमें सरकार और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की भूमिका है, लेकिन हम सभी इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. उन्हें गर्भावस्था में अपना ध्यान रखने, स्तनपान के महत्व के बारे में पढकर या ʺस्तनपान तैयारी कक्षाओंʺ में भाग लेकर स्तनपान के बारे में जानकारी प्राप्त करने या स्तनपान के बारे में अपने डॉक्टर से बात करने की आवश्यकता है. यदि वे स्तनपान में किसी भी चुनौती का सामना करती हैं तो वे जल्द से जल्द एक कुशल ʺलैक्टेशन प्रोफेशनलʺ की मदद लें.

यदि हम संक्षेप में कहें तो स्तनपान करने वाले बच्चे और माताएं स्वस्थ रहते हैं और उनकी प्रतिरक्षा की स्थिति बेहतर होती है. स्तनपान सुरक्षात्मक और अनुशंसित है, भले ही मां कोविड पॉजिटिव हो. कोविड-19  जैसी बीमारी की महामारियों से लड़ने के लिए हमें अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत और अभेद्य बनाए रखने के लिए रणनीति तैयार करनी है. हमें जानकारी हासिल करने, शुरुआती दिनों से ही अपनी प्रतिरक्षा को मजबूत करने और एक स्वस्थ समाज के लिए कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है.

लॉकडाउन से ऊब रहे हैं बच्चे

इंद्रापुरम गाज़ियाबाद निवासी विकास सक्सेना कहते हैं, ‘हम जिस बिल्डिंग में रहते हैं उसमें हमारा फ्लैट सातवीं मंजिल पर है. मेरा 11 साल का बेटा पांच महीने से घर में कैद है. टीवी देखने और ऑनलाइन क्लासेज के अलावा वह सारा समय खिड़की पर बैठ कर नीचे पार्क में देखता रहता था, जहाँ वह लॉक डाउन से पहले तक हर दिन अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलता था. लॉक डाउन में घर या ऑफिस के काम से मैं दिन में दो-तीन बार बाहर जाता हूँ. वाइफ भी घर का सामान वगैरा लेने के लिए निकलती है, मगर बेटा घर में ही रहता है. कोरोना के डर से इन पांच महीनों में हमें उसको एक बार भी बाहर नहीं जाने दिया और हमें पता ही नहीं चला कि कब उसका मन घर में बंद रहते रहते घुटना शुरू हो गया. वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगा. पिछले महीने उसने नीचे पार्क में जाने की ज़िद की तो हमने बीमारी लगने का डर दिखा कर मना कर दिया. फिर उसने कई बार बाहर जाने की ज़िद की और हर बार उसको मना कर दिया गया. पिछले हफ्ते वह अपनी माँ से लड़ा कि नीचे पार्क में और सड़क पर कितने बच्चे खेलते हैं उनको तो कुछ नहीं होता, बस आप लोग मुझे ही नहीं जाने देते. उसके बाद उसने खाना-पीना छोड़ दिया.

हमने सोचा नाराज़ है. समझाने पर ठीक हो जाएगा मगर अचानक उस दिन अपना लकड़ी का बैट उठा कर उसने खिड़की का शीशा, अलमारी का शीशा और ड्रेसिंग टेबल सब तोड़नी शुरू कर दी. बिलकुल पागलों जैसी हरकत करने लगा. उसको काबू करने में हम दोनों को पसीने छूट गया. मैंने बड़ी ज़ोर का तमाचा भी रसीद दिया उसको. हमारा इकलौता बेटा है. बड़ी तकलीफ हुई मगर उसको काबू करने का कोई और रास्ता नज़र नहीं आया. बहुत समझाया-बुझाया. बाहर ले कर चलने का वादा किया. लेकर भी गए. मगर उस दिन से वह बहुत गुमसुम सा हो गया है. उसके मन में क्या चल रहा है हमें कुछ भी पता नहीं चल रहा है. हम उसको कई बार बाहर ले कर गए हैं, मगर उसकी उदासी दूर नहीं हो रही है. इस कोरोना ने मेरे बच्चे को मेंटली डिस्टर्ब कर दिया है. अब हम उसके लिए कोई अच्छा साइकैट्रिस्ट ढूंढ रहे हैं.’

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कोविड-19 महामारी से पूरी दुनिया प्रभावित हैं. इस वर्ष के शुरुआत से ही महामारी के डर ने इंसान को प्रभावित करना शुरू कर दिया था. फरवरी-मार्च में इसके आतंक से दुनिया कांपने लगी. फरवरी के मध्य में इटली में हो रही मौतें वीभत्स आंकड़े दिखाने लगी, तब लोगों का डर चरम पर पहुंच गया. मार्च के शुरुआती समय में ही भारत के स्कूल-कॉलेज बंद होने शुरू हो गए थे. मार्च के मध्य तक लोगों में संक्रमण का भय बढ़ता ही चला गया. 22 मार्च से लॉक डाउन हो गया और बच्चों और बूढ़ों के तो घर से बाहर निकलने पर पूरी तरह रोक लग गयी. महामारी ने बच्चों और किशोरों को विशेष रूप से प्रभावित किया. करीब पांच महीने से बच्चे घर में कैद हैं. इससे उनके खेलने कूदने वाला बाल-मन छटपटा रहा है. वह खुद को कैदी की तरह समझने लगे हैं. खासतौर पर उन घरों के बच्चे ज़्यादा परेशानी महसूस कर रहे हैं जो अपने घरों में बंद खिड़की या बालकनी से अपने आसपास स्लम एरिया के बच्चों को मज़े से सड़कों पर बिना मास्क के घूमते और खेलते देखते हैं. वो अपने पेरेंट्स से पूछते हैं कि जब उसको कुछ नहीं हो रहा तो मुझे क्यों हो जाएगा?

कोरोना महामारी बच्चों और किशोरों के लिए बहुत कठिन समय लेकर आया है. लॉकडाउन की वजह से बच्चों का विकास और व्यवहार बुरी तरह प्रभावित हुआ है. उनके नियमित स्कूल शेड्यूल में व्यवधान के कारण बच्चों और उनके माता-पिता दोनों के लिए कई चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं. ये समस्याएं कोई क्षेत्रीय समस्या नहीं हैं, पूरी दुनिया एक समान इन कठिनाइयों को झेल रही है. ब्रिटेन में हुए हालिया शोध में यह खुलासा हुआ है. यूके के तीन संगठनों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में पाया गया है कि कुछ अभिभावक लॉकडाउन के दौरान बच्चों की निगरानी और देखभाल से बहुत परेशान हैं. अभिभावक यह भी महसूस कर रहे हैं कि इन पांच महीनों में बच्चों के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया है. वे ज्यादा चिड़चिड़े, आक्रामक और ज्यादा रोते हुए नजर आ रहे हैं. यह शोध बेस्ट बीगनिंग, होम-स्टार्ट यूके और पेरेंट- इंफैंट फाउंडेशन ने मिलकर किया.

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सर्वे का कहना है कि इन बच्चों पर कोविड-19 का असर गंभीर और लंबे समय तक मौजूद रहने वाला हो सकता है. महामारी के कारण देखभाल करने वाले और बच्चे दोनों ही प्रभावित हुए हैं. सर्वे में शामिल हुए 34 प्रतिशत लोगों का मानना है कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनके साथ उनके बच्चे का व्यवहार बदल गया है. लगभग आधे माता-पिता (47 प्रतिशत) ने कहा कि उनका बच्चा अधिक चिड़चिड़ा हो गया है. एक चौथाई (26 प्रतिशत) ने अपने बच्चे के सामान्य से अधिक रोने की सूचना दी.

एक मां ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनकी घबराहट बढ़ गई थी और उनको पैनिक अटैक आ रहे थे. उनकी हालत देखकर उनका बच्चा भी चिड़चिड़ा हो गया और ज्यादा रोने लगा. वहीं, कुछ माताओं ने कहा कि उनके बच्चे लॉकडाउन के दौरान ज्यादा आक्रामक हो गए और इस वजह से उनको डाट और मार का सामना करना पड़ा, जिसका नतीजा यह हुआ कि वह हमेशा उदास रहने लगे.

एक पिता कहते हैं कि डेढ़ घंटे ऑनलाइन पढ़ाई के बाद उनका बेटा टीवी देखता रहता है. जिसका नतीजा ये है कि उसको सिरदर्द की शिकायत हो गयी है और उसका वज़न काफी बढ़ गया है. इसके साथ ही वह अब अपने पेरेंट्स से उस तरह हँसता-बोलता नहीं है जैसा पहले करता था. वह हर वक़्त उदास सा और अपने में गुमसुम नज़र आता है. टीवी देखते वक़्त उसको कुछ ना कुछ खाने को चाहिए. ना मिलने पर वह गुस्सा दिखाता है.

सर्वे रिपोर्ट कहती है कि बच्चे लॉकडाउन में सबसे नहीं मिल पाने के कारण चिड़चिड़े हो गए हैं. अभिभावकों को चिंता सता रही है कि लॉकडाउन के कारण बच्चों पर पड़े दुष्प्रभाव का बाद की जिंदगी में कितना बुरा असर होगा. घर में नजरबंद होने से बच्चों की गतिविधियों में महत्वपूर्ण गिरावट आई है. खेल के मैदान बंद है, तैराकी के लिए तरणताल बंद है, संगीत और नृत्य कक्षाएं बंद हैं, और इसी प्रकार के सामूहिक गतिविधि वाले कार्यक्रम बंद है जिससे बच्चों की शारीरिक गतिविधियां न्यनतम हो गयीं है. इससे बच्चों में शारीरिक सुस्ती, अत्यधिक वजन बढ़ना और नींद की समस्याओं का जोखिम पैदा हो गया है.

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छोटे बच्चों में विघटनकारी व्यवहार, चिड़चिड़ापन, नींद की गड़बड़ी, इत्यादि लक्षण आ रहे हैं क्यूंकि वो उस अज्ञात बीमारी के बारे में चिंता करते रहते हैं जिसे उनका छोटा दिमाग समझ नहीं सकता. थोड़े बड़े बच्चे और किशोर एक नई ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से स्कूल की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इस नयी प्रणाली को आत्मसात करने में उनको तनाव का सामना करना पड़ रहा है. बच्चे अपने दोस्तों से मिलने में अक्षम हैं, जिसकी वजह से वो आपसी बातों को खुल कर साझा नहीं कर पा रहे. इसके ऊपर इस बीमारी से संक्रमित होने का डर या संक्रमण से बचाव की चिंता में डूबे अपने प्रियजनों को देख कर बच्चो में भी चिंता, अवसाद, नींद की समस्या, इत्यादि लक्षण पैदा हो रहे हैं.

कामकाजी या घर में रहने वाले माता-पिता भी अपने काम की उम्मीदों, घर के काम और साथ ही अपने बच्चों की ई-लर्निंग की अतिरिक्त जिम्मेदारियों को निभाने के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. बढ़ती बेरोजगारी और अपने परिवारों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करने के कारण परिवारों पर वित्तीय तनाव सर्वोपरि है. यह सब परिवारों के लिए तनाव और अवसाद को बढ़ा रहा है. जो बच्चा पहले दिन भर स्कूल में होता था वह परिवार के बड़ों के बीच आपसी मनमुटाव, लड़ाई-झगड़ा कम ही देखता था मगर लॉक डाउन में वह पूरे समय घर पर ही है लिहाज़ा घर में घटने वाली घटनाओं का भी साक्षी बन रहा है, जो उसके कोमल मन पर बुरा असर डाल रही हैं. कहीं माता-पिता की आपसी टकराहट देख रहा है, कहीं सास-बहु की नोकझोंक तो कहीं बड़े भाई बहनों की लड़ाई से उसका सामना हो रहा है. इन तकलीफों को वो अपने दोस्तों के साथ शेयर भी नहीं कर पा रहा है. यह घुटन उसको मानसिक बीमारियों की ओर धकेल रही है.

बच्चे के व्यवहार में होने वाले बदलाव को नज़रअंदाज़ ना करें           

कोरोना महामारी और लॉक डाउन की वजह से बच्चों के जीवन में आ रहे बदलाव को समझने की कोशिश करें. इन्हें नज़रअंदाज़ करना बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. बच्चे को इस महामारी के खतरों से आगाह करवाना बहुत ज़रूरी है. साथ ही अपने बच्चे को यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त ज्ञान दें कि वे सुरक्षित तरीकों को अपनाते हुए खुद को स्वस्थ रखने में सक्षम हो. उन्हें आश्वस्त करने के लिए यह भी आवश्यक है कि आप उन्हें यह भरोसा दिलाएं की आप उनकी देखभाल करने के लिए वहां हैं. अगर बच्चे इस अनिश्चित समय के दौरान स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे तो वो चिड़चिड़े होने के साथ साथ मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो जायेंगे. यदि माता-पिता महसूस करते हैं कि उनके बच्चे इस लॉकडाउन स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम नहीं हैं, चिंतित होने के बजाय मनोचिकित्सक या विशेषज्ञ से बात करें और उनसे सहायता प्राप्त करें.

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कठिन समय होने के बावजूद यह माता-पिता के लिए एक स्मरणीय पल है कि वे अपने बच्चों के साथ बहुत समय बिता रहे हैं, जो कि वे साधारणतः अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण नहीं बिता पाते हैं. बच्चों के लिए एक दिनचर्या तय करें और उसका पालन करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें. प्रतिदिन स्नान, घर की स्वच्छता बनाए रखना, अच्छे कपड़े पहन कर तैयार होना, इत्यादि सभी परिवार के सदस्यों की दिनचर्या में होना चाहिए. ऐसे समय के दौरान, जब बच्चे दोस्तों के साथ घुल-मिल या खेल-कूद नहीं सकते, शाम को उनके लिए कुछ शारीरिक गतिविधियों की योजना बनानी चाहिए, जिसका पालन करने से बच्चों की शारीरिक गतिविधियां चलती रहेंगी और उन्हें पर्याप्त थकान होगी, जिससे बिस्तर पर जाते ही उन्हें रात में आराम की नींद आएगी.

दिनचर्या को बनाए रखना, स्वस्थ भोजन करना, समय पर सोना और पर्याप्त सोना मूल बातें हैं. इसके साथ एक परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ टहलना चाहिए, चाहे वह घर का छत ही क्यों न हो. वर्तमान में जीने और साकारत्मक मानसिक गतिविधियों में रहने से खुद की और बच्चों की इस आपदा से लड़ने की मानसिक क्षमता विकसित होगी. सप्ताहांत पर बोर्ड गेम खेलें और खाली समय में उन्हें कला और शिल्प सीखने का अवसर दें.

भले ही लोग इन दिनों एक-दूसरे से नहीं मिल पा रहे हों, लेकिन जुड़े रहने के अन्य तरीके हैं. बच्चों से कहें कि वे अपने दोस्तों को अक्सर फोन करें, वीडियो चैट करें और अपनी सोच और विचारों का आदान-प्रदान करें. अगर ऑनलाइन लर्निंग का हर पहलू आपके लिए काम नहीं कर रहा है तो स्कूलों और शिक्षकों से भी बात करें. सक्रिय रहें और पर्याप्त रात्रि विश्राम करना सुनिश्चित करें.

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