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हुंडई की इस गाड़ी के इंटीरियर ने मार्केट में मचाई धूम

कार निमर्ता कंपनी हुंडई ग्राहकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए समय-समय पर गाड़ियों के फीचर्स में बदलाव करती रही है. इस बार हुंडई वरना के इंटीरियर ने ग्राहकों का दिल जीत लिया है. नई वरना में कार कनेक्टेड ब्लूलिंक दिया गया है.

वहीं 20.32-सेमी-एवीएनटी टचस्क्रीन है जिसके जरिए सभी इन्फोटेनमेंट फंक्शन को चलाना काफी आसान हो गया है.

वहीं नए डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर से ड्राइविंग भी काफी आसान हो गई है, क्योंकि इसमें इंस्ट्ररक्शन की जानकारी को आसानी से पढ़ा भी जा सकता है. यानी नई वरना टेक्नोलोजी के मामले में #BetterThanTheRest है.

 

महेंद्र सिंह धौनी के बाद क्या होगा भारतीय क्रिकेट का

भारत में 15 अगस्त को आजादी का दिन माना जाता है, शायद इसीलिए क्रिकेट के ‘कैप्टन कूल’ महेंद्र सिंह धौनी ने इसे अपना ‘रिटायरमैंट डे’ बना कर खुद को इस खेल से ही आजाद कर दिया. जैसा कि उन का स्टाइल है, सब को चौंकाते हुए उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा, ‘आप लोगों के प्यार और सहयोग के लिए धन्यवाद. शाम 7.29 बजे से मुझे रिटायर समझा जाए.’

हालांकि अगले इंडियन प्रीमियर लीग में महेंद्र सिंह धौनी चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से मैदान में क्रिकेट खेलते दिखेंगे, पर अगर उन के शुरुआती दिनों की बात करें, तब शायद किसी को यकीन भी नहीं था कि रांची का यह लड़का क्रिकेट की रेस का इतना तेज घोड़ा निकलेगा. यही वजह है कि वे भारतीय क्रिकेट के सब से कामयाब कप्तान रहे.

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वर्ल्ड क्रिकेट में भी महेंद्र सिंह धौनी एकलौते ऐसे कप्तान रहे हैं, जिन्होंने साल 2007 में आईसीसी का वर्ल्ड टी20, साल 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप और साल 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीत कर नया इतिहास बनाया.

महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी में ही भारतीय टीम साल 2009 में टैस्ट क्रिकेट में नंबर वन बनी थी. उन्होंने अपनी शानदार कप्तानी की बदौलत भारत को घरेलू मैदानों पर 21 टैस्ट मैचों में जीत दिलाई थी, जो किसी भी भारतीय कप्तान का सब से बेहतर रिकौर्ड है.

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निजी जिंदगी में फर्राटा मोटरसाइकिलों के शौकीन महेंद्र सिंह धौनी ने क्रिकेट भी तेज रफ्तार से खेला. विकेटकीपर से ले कर मैच फिनिशर का रोल उन्होंने बड़े उम्दा तरीके से निभाया. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का और टीम का तालमेल सही नहीं बैठ रहा था. काफी समय से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि उन का पहले जैसा जलवा नहीं रहा है. वे बतौर बल्लेबाज मैदान पर सुस्त दिखने लगे हैं, जबकि वे अभी भी पूरी तरह फिट नजर आ रहे थे. यही वजह है कि उन के इस संन्यास पर उन के कोच रह चुके चंचल भट्टाचार्य ने कहा कि यह चौंकाने वाला फैसला है.

कोच की बात में दम है, क्योंकि फिलहाल तो भारतीय क्रिकेट टीम में महेंद्र सिंह धौनी की टक्कर कोई विकेटकीपर नहीं दिखाई दे रहा है. ऋषभ पंत और केएल राहुल में टक्कर है, पर ये दोनों ही फिलहाल उस लैवल के नहीं दिखाई दे रहे हैं, जो लैवल धौनी ने इतने सालों में सैट कर दिए हैं. दिनेश कार्तिक को भी बतौर विकेटकीपर जगह बनाने में बड़ी मेहनत करनी होगी.

इस के अलावा महेंद्र सिंह धौनी ने बतौर कप्तान और विकेटकीपर विपक्षी टीमों पर इतना जबरदस्त दबाव बना कर रखा था कि भारतीय टीम उन पर मनोवैज्ञानिक रूप से हावी रहती थी. खेल को ले कर उन्होंने इतने ज्यादा प्रयोग कर दिए थे और नए टैलेंट पर इतना ज्यादा भरोसा जता दिया था कि धीरेधीरे टीम बहुत मजबूत हो गई थी.

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याद रहे कि महेंद्र सिंह धौनी ने अपना पिछला मैच वर्ल्ड कप 2019 में न्यूजीलैंड के खिलाफ सैमीफाइनल खेला था. भारत यह मैच 18 रन से हार गया था. इस के बाद 27 नवंबर 2019 को मुंबई के एक कार्यक्रम में उन्होंने क्रिकेट में वापसी के सवाल पर मीडिया से कहा था कि इस बारे में उन से जनवरी, 2020 तक कुछ न पूछा जाए.

अब जबकि वे क्रिकेट को अलविदा कर चुके हैं तो यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि बतौर कप्तान विराट कोहली उन के बिना टीम को कैसे हैंडल करेंगे, जबकि पहले तो मैदान पर हर छोटी से छोटी समस्या पर वे ‘मही’ का मुंह ताकते थे?

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विराट कोहली ने ‘कैप्टन कूल’ खोया है. डीआरएस (डिसीजन रिव्यू सिस्टम) लेने में धौनी जैसा कोई नहीं था. आकाश चोपड़ा तो इसे ‘धौनी रिव्यू सिस्टम’ बोलते थे. इस के अलावा फंसे हुए मैच को अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से अपनी तरफ मोड़ने की कला भी धौनी को बखूबी आती थी. अब टीम में उन की जगह बल्लेबाजी करने वाला कोई मजबूत चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है. ईशान किशन, संजू सैमसंग अभी उतने नहीं मंजे हैं कि मैच फिनिशर का भार अपने कंधे पर ले सकें.

बल्लेबाजी में रोहित शर्मा और विराट कोहली के बाद कोई दिग्गज नहीं दिखाई दे रहा है. लिहाजा, अब भारतीय टीम को गंभीरता से सोचना होगा और इस बात पर गौर करना होगा कि महेंद्र सिंह धौनी जैसा हरफनमौला खिलाड़ी कैसे पैदा किया जाए, वरना विराट कोहली ऐंड टीम को आने वाले समय में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

पकङौआ शादी: ब्याही महिलाओं की दर्दभरी दास्तान

खगङिया, बिहार के एक गांव की रहने वाली रजनी पिछले 10 सालों से वाराणसी में रह रही हैं. उन के 2 बच्चे हैं. पति वहीं सरकारी कर्मचारी हैं. बच्चों और पति के साथ रजनी बेहद खुश हैं पर शादी के दिनों को वे याद नहीं करना चाहतीं.

कहते हैं, किसी भी लङकी के लिए शादी के दिनों की मीठी यादों को वह ताउम्र सहेज कर रखना चाहती है. अलबमों में तसवीरों को सालों बाद देख कर वह रोमांचित होती है. रजनी आज भले अपने ससुराल में खुश हैं मगर शादी की बात पर ही वे सिहर उठती हैं.

दरअसल, जब वे 19 साल की थीं तो एक लङके के साथ उन की जबरन शादी करा दी गई थी. इस के 4-5 सालों तक वे दुलहन बन कर तो थीं पर पति और ससुराल वाले उन्हें  अपनाने को तैयार नहीं थे.

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बेटी की खातिर जमीन बेच दी

ससुराल के लोगों और खासकर पति पर कुछ लोगों का दबाव पङा और खुद लङकी के पिता जब बारबार हाथपैर जोङने लगे तब कहीं जा कर वे लङकी को अपनाने को तैयार हुए मगर तब जब उन्होंने दहेज में मोटी रकम और एक मोटरसाइकिल न ले ली.

लङकी के पिता किसान थे और 2-3 बीघे जमीन से खेती कर घर चलाते थे पर बेटी की खातिर उन्हें 2 बीघा जमीन तक बेचनी पङी.

मगर मधुबनी की रहने वाली पूजा इन की तरह ‘खुशनसीब’ नहीं निकलीं. पूजा की शादी भी 5-7 साल पहले एक लङके के साथ करा दी गई थी मगर उन्हें न तो पति ने स्वीकार किया न ही ससुराल वालों ने.

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वह आज भी मांग में सिंदूर लगाए घर में बैठी हैं और पति का इंतजार कर रही हैं.

यह कैसी शादी

इस शादी को ले कर तब मधुबनी के एक गांव में काफी बवाल मचा था. लङका तब कालेज की पढ़ाई कर रहा था और पटना से गांव आ रहा था. तभी रास्ते में कुछ लोगों ने उसे बंदूक की नोक पर उठा लिया. वह कुछ समझ पाता इस से पहले उसे एक लङकी की मांग में सिंदूर भरने बोला गया.

वहां 15-20 लोग थे. महिलाएं मंगलगीत गा रही थीं, फोटोग्राफर धङाधङ फोटो खिंच रहा था.

वह शादी करने से मना करने लगा तो उसे फिर से धमकियाने लगे. एक ने 2-4 थप्पड़ जङ भी दिए. मजबूरन उस ने शादी कर ली. इस का वीडियो भी बनाया गया ताकि यह सुबूत रहे कि लङके ने खुद अपनी मरजी से शादी की है.

उधर उस के घर वालों को पता चला तो वे पुलिस को साथ में ले कर चले आए. लङके को वापस घर ले आए. लङके को गुस्सा है कि उस की शादी बिना उस की रजामंदी के करा दी गई थी और उसे मारापीटा भी गया था.

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इधर लौकडाउन उधर अपहरण

देशभर में लागू लौकडाउन के बीच बिहार के वैशाली जिले में एक लड़के का अपहरण कर शादी कराए जाने की चर्चा खूब हुई थी.

बिहार के वैशाली में लड़का अपने पिता के साथ अस्‍पताल जा रहा था. तभी रास्‍ते में उस का अपहरण कर लिया गया. सिर्फ आधे घंटे में उस की शादी करा दी गई और उस के बाद वीडियो वायरल कर दिया गया.

पीड़‍ित के पिता ने वैशाली के जंदाहा थाने में एफआईआर दर्ज कराई तो मामले ने तूल पकङ लिया.

मामला मार्च महीने का है. महनार थाना क्षेत्र के नौरंगपुर निवासी मुसाफिर राय अपने बेटे अमित के साथ अस्‍पताल जा रहे थे. दोनों पैदल ही थे. जंदाहा अस्‍पताल के पास एक बोलेरो गाड़ी में सवार बदमाश आए और बापबेटे का अपहरण कर लिया. दोनों को हलई ओपी के बरूना रसलपुर ले जाया गया.

एफआईआर के मुताबिक, अपहरण करने वालों में महनार निवासी मनीष और उदय, हलई निवासी विनोद राय, नवल राय समेत कई अन्य शामिल थे.

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अमित की शादी हलई में रहने वाली एक लड़की से जबरन कराई गई. सिर्फ आधे घंटे में हुई इस शादी के दौरान लड़के का पिता वहां से किसी तरह भाग निकला. शादी के बाद लड़की को लड़के के दरवाजे पर बोलेरो गाड़ी में ला कर रख दिया गया और लड़की को न अपनाने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी गई. इस घटना के बाद से पूरे गांव में तनाव का माहौल पैदा हो गया.

चलन पुराना है

दरअसल, बिहार में ‘पकड़ौआ विवाह’ का चलन काफी पुराना है इन लोगों की शादियां पकड़ौआ विवाह के तहत ही कराई गई थी. इस शादी में न तो लड़के की सहमति ली जाती है और न ही लड़की की.

शादी भी अजीबोगरीब तरीके से कराई जाती है. जिस लङके के साथ लङकी की शादी करानी होती है उस का पहले अपहरण कर लिया जाता है फिर रीतिरिवाज के साथ लड़की से विवाह करवा दिया जाता है. इस में दूल्हा और दुलहन बने लड़का और लड़की की मरजी की कोई अहमियत नहीं रहती.

बिहार में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की गृह विज्ञान की एसोसिएट प्रोफैसर डा. बंदना कुमारी कहती हैं,”बिहार में आज भी एक गरीब घर की लङकी की शादी उस के मातापिता की बङी जिम्मेदारी तो होती ही है, समाज में व्याप्त दकियानुसी परंपराओं, दहेज आदि की समस्याओं के चलते वे अपनी बेटियों की शादी नहीं करा पाते. दूसरी तरफ उन पर इतना अधिक सामाजिक दबाव रहता है कि लड़की के परिवार वाले इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे जल्द से जल्द अपनी जाति में बेटी की शादी कर दें.
जबरन शादी जिसे इधर पकङौआ शादी कहते हैं, समाज की सङीगली सोच का ही परिणाम है.

बंदना कहती हैं,”लङकी के मातापिता  तो अपनी लड़कियों का विवाह इस तरह से कर के अपने सिर से बोझ उतार लेते हैं, लेकिन इस विवाह का दुष्परिणाम लड़की को जीवनभर उठाना पङता है. समाजिक दबाव के बाद अगर लङके के मातापिता को लङकी पर तरस आ भी जाए और वह लङकी को अपने घर ले भी आएं तब भी उसे पूरी जिंदगी ताने सुनसुन कर गुजारनी होती है. परिवार में उस की कोई अहमियत नहीं रहती. वह सिर्फ हाङमांस का पुतला भर होती है जो ससुराल में कभी सिर उठा कर नहीं जी पाती.

“यह पूरी तरह से गलत परंपरा है और जब तक इस समाज से दहेज और गलत परंपराएं खत्म नहीं होतीं इस चलन खत्म नहीं होगा. कानून से ज्यादा समाज के लोगों को इस गलत परंपरा को खत्म करने के लिए आगे आना पङेगा.”

यह कैसी सोच

आमतौर पर ‘पकड़ौवा शादी’ के ज्यादातर मामले ग्रामीण इलाकों से आते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लड़कियों की जिंदगी शादी, बच्चे और गृहस्थी के इर्दगिर्द सिमटी रहती है. उसे यह बचपन से ही बताया जाता है कि लङकियों का जन्म अभागे घरों में होती हैं और इसलिए उन्हें आजन्म पति और घर वालों की सेवा करनी चाहिए. उन्हें शुरू से ही धर्म का भय दिखाया जाता है, ऊंचनीच के नाम पर गलत भावनाएं भरी जाती हैं. आश्चर्य तो यह भी कि  लड़की के अभिभावक भी लड़कियों का विवाह कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं.

बिहार के कटिहार जिले के समाजसेवी हेमंत कुमार कहते हैं,”पकड़ौआ शादी का सब से बड़ा कारण समाज में व्याप्त दहेजप्रथा और लड़कियों में अशिक्षा भी है. दूसरा, समाज का एक बड़ा तबका आज भी बेटियों को बोझ समझता है. इन तबकों के अभिभावकों को लगता है कि बेटियां पराए घर की होती हैं और जैसे भी हो शादी करा कर इन्हें ससुराल भेज दो.

“पकङौआ विवाह समाज में व्याप्त एक दकियानुसी परंपरा है जिस का दंश शादी के बाद बेटियां पूरी जिंदगी झेलती रहती हैं.”

फलताफूलता व्यवसाय

यों बिहार में इस का चलन 80 के दौर में जोर पकङा जो धीरेधीरे पूरे बिहार में फैल गया. बजाप्ते यह अपराधी गैंगों का एक व्यवसाय ही बन गया.
ऐसे लङके जो शहरों में पढ़ाई कर रहे होते, घरपरिवार से थोङा ठीकठाक रहता उस पर ऐसे अपराधियों की नजर रहती थी. मौका देखते ही लड़कों को उठा लिया जाता था और फिर उन की शादी करा दी जाती थी.

जो लङका इस शादी को नहीं मान्यता देता था उन्हें समाजिक दबाव पङने लगता था. महिलाएं उसे ऊंचनीच का फर्क समझाने लग जातीं, धर्मअधर्म का पाठ पढ़ाया जाने लगता. इतना ही नहीं शादी कराई गई लङकी के घर वाले उस के ससुराल में धरने तक पर बैठ जाते. मजबूरन लङके वाले लङकी को अपनाने को तैयार हो जाते. इस दौरान लङके के परिवार वाले मोटा दहेज भी वसूल करते थे. जो दहेज नहीं दे पाते उन की बेटी मांग में सिंदूर लगाए यों ही पूरी जिंदगी गुजार देती. आज भी हजारों ऐसी लङकियां हैं जिन की शादियां तो हो गई हैं पर लङके वालों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है.

चौंकाने वाली रिपोर्ट

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2015 की एक रिपोर्ट चौंकाने वाली थी. इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 में 18 साल से अधिक उम्र के लड़कों का अपहरण देश में सब से अधिक हुआ था. इस साल 1,096 लड़कों का अपहरण हुआ था. 2016 में 3000 और 2017 में लगभग 3,400 युवकों का अपहरण हुआ था.

क्या कहता है कानून

पकङौआ शादी से चूंकि महिलाओं की जिंदगी ही बरबाद होती है, इसलिए कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है. ऐसे लोगों पर कानूनी काररवाई की जाती है.

2017 में एक ऐसी ही शादी बोकारो के एक इंजीनियर के साथ हुई थी. बाद में उन्होंने पटना हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई. न्यायालय ने उन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इस शादी को गैरकानूनी बताया और इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी.

मगर कानून की सख्ती के बाद भी आज भी यह शादी समाज में धड़ल्ले से की जा रही है, तो जरूरी है कि इस में समाज को ही आगे आना होगा.

आज की बेटियां बोझ नहीं होतीं और कई मामलों में तो वे बेटों से भी आगे होती हैं. समाज की इस सङीगली सोच और इस दकियानुसी परंपरा को खत्म करने की जरूरत है.

पार्थ समथान के बाद एरिका फर्नाडिस ने भी ‘कसौटी जिंदगी 2’ को अलविदा कहने का फैसला लिया!

कसौटी जिंदगी 2 सीरीयल में फिर से एक नया मोड़ आने वाला है. इस सीरियल कि शूटिंग शुरू होते ही सबसे पहले इस सीरियल के लीड एक्टर पार्थ समथान का कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आ गया. इसके बाद से पार्थ ने खुद को क्वारंटाइन किया जब ठीक होकर वह वापस लौटें तो उन्होंने कुछ अलग ही फैसला सुनाया. जिससे इस शो के प्रॉड्यूसर समेत सभी कलाकार चौक गए.

इसके कुछ समय बाद ही एक ओर चौकाने वाला फैसला सभी के सामने आया है. कहा जा रहा है कि पार्थ ही नही बल्कि इस शो की लीड एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस भी इस शो को अलविदा कहने का प्लान बना लिया है. यह फैसला उन्होंने अपने परिवार को देखते हुए लिया है.

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वह अपने परिवार को देखते हुए इस बात से फैसला लिया, दरअसल एरिका फर्नाडिस के पापा को 4 बार हार्ट अटैक आ चुका है. इसलिए वह अपने पापा को ध्यान में रखते हुए इस फैसले की तरह आगे बढ़ रही हैं. एरिका कुछ समय पहले से अपनी फैमली से अलग रह रही थी ताकी उनकी वजह से उनके फैमली को किसी तरह के दिक्कत का सामना न करना पड़े.

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हालांकि इस चीज का अभी तक शो के निर्माता ने इस विषय पर कुछ नहीं कहा है. सभी को इस फैसले के  आधिकारिक ऐलान का इंतजार है. हालांकि कसौटी जिंदगी 2 देखने वाले फैंस इस खबर से मायूस हैं.

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सभी को इस सीरियल में पार्थ समथान और एरिका फर्नाडिस की जोड़ी काफी पसंद आती थी. इस कपल को दर्शकों से ढ़ेंर सारा प्यार मिल चुका है.

सुशांत कि बहन ने ऐसे दिया रिया चक्रवर्ती के आरोपों का जवाब, शेयर किया भाई का ये VIDEO

भले ही सुशांत सिंह राजपूत को गए आज दो महीने हो गए हो लेकिन वह बिना किसी से कुछ कहे चले गए इस बात की कमी हर किसी को खलती है. सुशांत के मौत का मामला हर दिन बढ़ता ही जा रहा है. इस मामले में सुशांत के घर वाले अपने जिद्द पर है तो वहीं सुशांत कि कथित गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती भी कहीं से पीछे नहीं हट रही हैं. सुशांत के घर वालों इस ठान लिया है कि वह अपने भाई को न्याय दिलाकर रहेंगे.

  सुशांत सिंह की बहनों के ऊपर कुछ दिन पहले रिया चक्रवर्ती ने आरोप लगाए थे कि सुशांत के संबंध उनकी बहनों के साथ अच्छे नहीं थे. वह घर में किसी से बात करना पसंद नहीं करते थें. वहीं रिया ने यह भी कहा है कि सुशांत के संबंध उनके पापा के साथ भी अच्छे नहीं थे.

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 रिया चक्रवर्ती का करारा जवाब देते हुए सुशांत कि बहन ने अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह अपनी बहनों के साथ मस्ती करते नजर आ रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत अपनी बहनों के साथ इस वीडियो में बेहद खुश नजर आ रहे हैं. इस पोस्ट को शेयर करते हुए सुशांत की बहन ने लिखा है काश हम पहले की तरह मिल पाते और मस्ती कर पाते जिंदगी एकदम बदरंग हो गई है.

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 वहीं इन सभी बातों को सुनने के बाद से सुशांत के घर वालों ने भी ठान लिया है कि वह अपने भाई को न्याय दिलाकर मानेंगे. इस मामले में सुशांत के फैंस भी किसी से कम नहीं हैं. वह भी लगातार सीबीआई की जांच की मांग कर रहे हैं. सुशांत के मौत के बाद से पूरा बिहार और सुशांत के फैंस लगातार सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

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 वहीं ईडी लगातार रिया चक्रवर्ती से पूछताछ कर रही है तो वही रिया के भाई शोविक चक्रवर्ती से भी कुछ दिनों पहले पूछताछ हुई है. रिया के फोन भी जब्त कर लिए गए हैं.

 

“खुदा हाफिज : जानें क्या है इस फिल्म में खास

रेटिंग : डेढ़ स्टार

निर्माता : कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक

निर्देशक : फारुक कबीर

कलाकार : विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय, अन्नू कपूर, शिव पंडित, अहाना कुमरा, नवाब शाह, गार्गी पटेल, मोहित चौहाण,  रिया कापड़िया, उखालाक खान, यासिर खान व अन्य

अवधि :2 घंटे 14 मिनट

ओटीटी प्लेटफॉर्म : डिजनी हॉटस्टार

2008 की आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब उसी पृष्ठभूमि में अरब देशों में भारतीय लड़कियों को नौकरी देने के नाम पर किस तरह देह व्यापार में ढकेला जाता है और कैसे एक भारतीय पुरुष काल्पनिक अरब देश नोमान जाकर अपनी पत्नी को छुड़ाकर लाता है,उसी की कहानी है एक्शन प्रधान फिल्म ‘खुदा हाफिज’ , जिसे लेकर फारुक कबीर आए हैं.इसमें सारे पुराने बॉलीवुड फिल्मी मसालों के अलावा कुछ नहीं हैं.

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कहानी:

यह कहानी है लखनऊ में रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) और उनकी पत्नी नरगिस (शिवालिका ओबेराय) की. जिनकी 2008 की आर्थिक मंदी में जनवरी माह में नौकरी चली जाती है. दोनों नौकरी की तलाश में हैं. एजेंट नदीम (विपिन शर्मा) दोनों से 5000- 5000 रुपए लेकर फॉर्म भरवाता है.नरगिस को पहले काल्पनिक अरब देश नोमान में नौकरी मिल जाती है.वह नोमान पहुंचने के बाद समीर को फोन पर रोते हुए बताती है कि उसके साथ बहुत गलत हो रहा है. इसके बाद बॉलीवुड मार्का कहानी शुरू हो जाती है. समीर पुलिस में शिकायत कर पुलिस के साथ एजेंट नदीम के पास पहुंचता है.पुलिस कह देती है कि समीर को नोमान जाकर वहां भारतीय दूतावास और नोमान पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी .समीर, नोमान पहुंचता है. पाकिस्तानी मूल का टैक्सी ड्राइवर उस्मान (अन्नू कपूर) उसकी मदद करता है. भारतीय उप राजदूत आई के मिश्र (इकलाख खान) भी मदद करते हैं. मगर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एजेंसी का एक अफसर फैज अबू मलिक (शिव पंडित) उन लोगों से मिला हुआ है ,जो नरगिस सहित दूसरी लड़कियों से देह व्यापार करवा रहा है . जबकि फैज अबू मलिक की सहायक कमांडर तमन्ना (अहाना कुमरा) उसकी मदद करती है, लेकिन वह एक मोड़ पर फैज अबू मलिक के हाथों मारी जाती है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंतत: समीर अपनी पत्नी नरगिस के साथ भारत वापस आ जाते हैं.

लेखन व निर्देशन:

अति कमजोर कहानी व पटकथा वाली यह फिल्म बॉलीवुड मसालों से भरपूर है.लेखक निर्देशक ने एक्शन व गुस्सैल विद्युत जामवाल की इमेज को अलग फ्रेम में चस्पा करते हुए समीर को आम इंसान की तरह दिखाने का असफल प्रयास करते हैं. इसी उलझन के चलते उन्होंने पूरी कहानी व फिल्म को बर्बाद कर दिया. कहानी में विद्युत जामवाल और शिवालिका के बीच रोमांस के दृश्य भी फारुक कबीर नहीं गढ़ पाए.एक सीधी सपाट कहानी में कोई रोमांच नहीं है.फिल्म कहीं भी दर्शकों को बांध का नहीं रखती.नोमान पहुंचने के बाद नरगिस के फोन से दर्शक अनुमान लगा लेता है कि आप क्या क्या होगा. पटकथा लेखन के साथ-साथ समीर के किरदार में विद्युत जामवाल का चयन निर्देशक फारुक कबीर की कमजोर कड़ी है.वह एक अच्छे इंसान  व देह व्यापार के दलालों के बीच की कथा का सही चित्रण नहीं कर पाए.एक  एक्शन स्टार के रूप में विद्युत जामवाल ने जो अपने शारीरिक बनावट की है, वह भी उन्हें आम इंसान समीर के किरदार से दूर ले जाती है.

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अभिनय:

मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट धारी तथा कलारी पट्टू में माहिर अभिनेता विद्युत जामवाल पिछले एक दशक में अपनी एक्शन इमेज को ही भुनाते हुए एक जैसा अभिनय करते जा रहे हैं. परिणामत: उनके पैर जम नहीं रहे हैं.उन्होंने अच्छी कहानी और लार्जर देन लाइफ किरदारों की तलाश पर ज्यादा जोर नहीं दिया. जबकि एक कलाकार बेहतरीन कहानी व किरदारों के बल पर ही दर्शकों के बीच हीरो बन सकता है . 15 दिन के अंतराल में ‘यारा’ के बाद ‘खुदा हाफिज’ उनकी दूसरी फिल्म है,जिसमें वह दर्शकों को बुरी तरह से निराश करते हैं. कई दृश्यों में वह काफी सहमे सहमे से नजर आते हैं.

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नरगिस के किरदार में शिवालिका ओबेराय के हिस्से करने के लिए कुछ आया ही नहीं, जिससे वह अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखा सकती .टैक्सी ड्राइवर उस्मान के किरदार में अन्नू कपूर जरूर अपने अभिनय क्षमता की अमिट छाप छोड़ते हैं.पूरी फिर उन्हीं के कंधों पर निर्भर होकर रह जाती है. शिव पंडित भी निराश करते हैं .आहना कुमरा ने ठीक-ठाक अभिनय किया है.

चीन में अभी भी हैं भारतीय स्टूडैंट्स

भारत और चीन के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए यह सवाल उठने लगा है कि चीन में पढ़ रहे भारतीय स्टूडैंट्स का क्या होगा. क्या शिक्षा की राह में रुकावट पैदा हो जाएगी? भारतीय स्टूडैंट्स का भारत से बाहर पढ़ाई करने के लिए जाना एक दशक से अत्यधिक चलन में है. अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया व चीन में ज्यादातर भारतीय स्टूडैंट्स पढ़ाई करने जाते हैं. मिनिस्ट्री औफ ह्यूमन रिसोर्स डैवलपमैंट अर्थात एमएचआरडी के औफिशियल डाटा के अनुसार, चीन में भारत के लगभग 23,000 स्टूडैंट्स पढ़ाई कर रहे हैं जिन में 21,000 मैडिकल स्टूडैंट्स हैं. चीन के वुहान से फैले नोवल कोरोना वायरस के बाद चीन से कई स्टूडैंट्स वापस भारत लौटे, परंतु अब भी कई भारतीय स्टूडैंट्स चीन में ही हैं और जो वापस भारत लौट आए हैं. उन्हें अपनी डिग्री की पढ़ाई पूरी करने के लिए चीन वापस लौटना होगा.

गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच जो झड़प चल रही है उस के मद्देनजर भारत ने चीन के ऐप तो बैन कर दिए, पर क्या भारत स्टूडैंट्स को चीन में पढ़ने से रोक पाएगा? हालांकि, कोरोना वायरस के कारण कई स्टूडैंट्स का यह कहना है कि वे अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे देशों के बारे में सोच सकते हैं लेकिन उन स्टूडैंट्स, जो पहले ही चीन में पढ़ रहे हैं, का कहना है कि चीन और भारत के लद्दाख मसले के बावजूद वे अपनी पढ़ाई चीन से पूरी करेंगे. बहरहाल, इस समय भारतीय स्टूडैंट्स, जो चीन में मैडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, भारत की लाइसैंसिंग एग्जाम में एलिजिबिलिटी में हुए बदलाव को ले कर विरोध प्रकट कर रहे हैं. नैशनल बोर्ड औफ एग्जामिनेशन यानी एनबीई ने विदेशी मैडिकल ग्रैजुएट एग्जाम (एफएमजीई) की एलिजिबिलिटी को ले कर नियमों में बड़ा बदलाव किया है. एफएमजीई लाइसैंस एग्जामिनेशन भारतीय मैडिकल स्टूडैंट्स जिन्होंने विदेश से पढ़ाई की है, को देना होगा, जिसे पास करने के बाद ही वे भारत में मैडिसिन प्रैक्टिस कर सकते हैं अथवा डाक्टर के रूप में कार्यरत हो सकते हैं.

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यह एग्जाम मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया यानी एमसीआई के लिए स्क्रीनिंग एग्जाम है जो साल में 2 बार जून और दिसंबर में होता है. चीन में एमबीबीएस की डिग्री पाने के लिए स्टूडैंट्स को 5 साल पढ़ाई और एक साल इंटर्नशिप करनी पड़ती है. 5 साल पढ़ाई पूरी करने के बाद स्टूडैंट्स को प्रौविजनल सर्टिफिकेट मिलता है. पहले इस सर्टिफिकेट से ये स्टूडैंट्स भारत में होने वाले एफएमजीई एग्जाम में बैठ सकते थे लेकिन अब डिग्री को अनिवार्य घोषित कर दिया गया है. यह बदलाव उन स्टूडैंट्स के लिए चिंता का बड़ा विषय है जिन्होंने चीन में अपनी 5 साल की पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन एक साल की इंटर्नशिप पूरी नहीं कर पाए. चीन कोरोना वायरस का केंद्र था जिस के चलते यूनिवर्सिटी समय से पहले बंद हो गईं व अनेक स्टूडैंट्स वापस भारत लौट आए.

भारत में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ने से ये स्टूडैंट्स लाइसैंस एग्जाम की तैयारी करने लगे थे लेकिन अब नियम बदले जाने से वे इस एग्जाम को दे ही नहीं सकते हैं. वे कब चीन लौटेंगे और अपनी इंटर्नशिप पूरी करेंगे, उन्हें नहीं पता और तब तक न वे एग्जाम दे पाएंगे और न डाक्टर के रूप में कार्यरत हो पाएंगे. विद्यार्थियों को आकर्षित करता चीन चीन में 2018 में 196 देशों व क्षेत्रों के तकरीबन 4,92,185 विदेशी स्टूडैंट्स 1,004 उच्च शैक्षिक संस्थानों में पढ़ाई कर रहे थे. इस सूची में भारत चौथे नंबर पर था जिस के 23,198 स्टूडैंट्स चीन में पढ़ रहे थे. वहीं, पहले स्थान पर साउथ कोरिया 50,600 स्टूडैंट्स के साथ, दूसरे पर थाईलैंड 28,608 स्टूडैंट्स के साथ व तीसरे स्थान पर 28,023 स्टूडैंट्स के साथ पाकिस्तान था. भारतीय स्टूडैंट्स के पढ़ाई, खासकर मैडिकल की पढ़ाई, के लिए चीन जाने ने लगभग 10-12 सालों पहले रफ्तार पकड़ी. खासकर साउथ इंडिया से मातापिता अपने बच्चों को चीन भेजने लगे. इस का सब से बड़ा कारण यह है कि भारत में गिनेचुने मैडिकल कालेज हैं जिन में नाममात्र की सीटें हैं. लाखों में से चंद हजार स्टूडैंट्स को ही इन सरकारी मैडिकल कालेज में दाखिला मिल पाता है.

प्राइवेट कालेज में स्टूडैंट्स आसानी से जा तो सकते हैं लेकिन उन की फीस आसमान छूती हुई है और 10 लाख रुपए प्रतिवर्ष से ज्यादा है. वहीं, इन विद्यार्थियों को विदेशों के सरकारी कालेजों में आसानी से दाखिला मिल जाता है और खर्च भी कई गुना कम आता है. मैडिकल स्टूडैंट्स चीन, रूस और बंगलादेश की तरफ आकर्षित होते हैं. संस्कृति और सभ्यता को देखते हुए स्टूडैंट्स चीन को एक अच्छा औप्शन मानते हैं. चीन रूस के मुकाबले भारत से पास भी है. इन विदेशी मैडिकल कालेजों में भी नैशनल एलिजिबिलिटी एंट्रैंस टैस्ट यानी नीट के अंक काउंट होते हैं. जहां भारतीय मैडिकल कालेज नीट के 720 में से तकरीबन 600 अंक मांगते हैं वहीं चीनी कालेज 400 या उस से कम अंक वाले स्टूडैंट्स को भी एड्मिशन दे देते हैं. बात स्पष्ट है कि जिस के पास भी पैसा है वह चीन में मैडिकल की पढ़ाई के लिए जा सकता है. चीन में उस का कुल खर्च भारत में खरीदी हुई सीट के मुकाबले कम ही होता है. साथ ही, विदेश से पढ़ाई कर के लौटे व्यक्ति को भारत में उच्च नजरों से देखा जाता है, इस में दोराय नहीं है. एमसीआई एग्जाम के जरिए विदेश से पढ़ाई किए हुए स्टूडैंट्स आसानी से भारत में मैडिसिन प्रैक्टिस कर सकते हैं जिस कारण उस ने किस संस्थान से अपनी एमबीबीएस की डिग्री ली है, अत्यधिक माने नहीं रखता. अन्य पाठ्यक्रम, जैसे लैंग्वेज कोर्सेस, के लिए कुछ ही विद्यार्थी चीन जाते हैं.

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विद्यार्थियों की कुल संख्या में से 90-95 फीसदी विद्यार्थी एमबीबीएस की डिग्री के लिए चीन जाते हैं, बाकी अन्य किसी कोर्स के लिए. भारत लैंग्वेज स्टडीज के लिए विद्यार्थियों को चीन भेजता है व दोनों देशों के बीच स्कौलरशिप भी चलती है. यह भी एक कारण है कि चीन में भारतीय स्टूडैंट्स की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. भारत अपने विद्यार्थियों को रोकने में असमर्थ क्यों? गौर करने पर एक बात जो ध्यान में बारबार आती है वह यह है कि आखिर भारत अपने विद्यार्थियों को भारत में ही शिक्षा के पर्याप्त अवसर क्यों नहीं प्रदान करता? चीन में पढ़ रहे विद्यार्थियों से चीन को प्रतिवर्ष तकरीबन 7 हजार करोड़ रुपए का फायदा हो रहा है. यह पैसा भारत में भी तो रह सकता है. यदि इतनी बड़ी रकम भारत में ही रहे तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में कारगर हो सकती है. इंडियन एजुकेशन पौलिसी मेकर्स का मानना है कि यदि किसी स्टूडैंट के अंक उच्चतम हैं तभी वह डाक्टर बन सकता है व अन्य को या तो अपना सपना त्याग देना चाहिए या प्राइवेट सीट खरीद कर पढ़ाई पूरी करनी चाहिए. लाखों में से हजारों को ही एडमिशन मिलता है. बाकी स्टूडैंट्स का एकदम से डाक्टर बनने का सपना बदल लेना आसान नहीं होता, वह भी तब जब वे विदेश जा कर पढ़ाई करने की क्षमता रखते हों. भारत से विपरीत चीन इन स्टूडैंट्स को साधारण रकम व कम अंकों में एमबीबीएस की डिग्री प्रदान कर रहा है.

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जब इन स्टूडैंट्स को चीन से डिग्री ले कर भी भारत में नौकरी मिल रही है तो भारतीय पौलिसी मेकर्स इस डिमांड और सप्लाई के लौजिक को क्यों नहीं सम झ रहे? कोरोना वायरस महामारी और गलवान घाटी का संघर्ष एक अच्छा मौका है भारत के लिए यह सोचने का कि किस तरह वह अपने विद्यार्थियों को भारत में ही रोक सके. मैडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में यदि सीटें और बढ़ा दी जाएं या मापदंड कुछ कम रखे जाएं, नए संस्थान खड़े किए जाएं तो ये विद्यार्थी भारत से ही अपनी शिक्षा पूरी कर सकते हैं. ये कमा भारत में रहे हैं लेकिन इन की शिक्षा का खर्च दूसरे देशों का खजाना भर रहा है जिसे भारत में ही रखा जा सकता है. यह एक विचारणीय मुद्दा है जिस पर विचार होना चाहिए बजाय राम मंदिर जैसे मुद्दों के. चाहे किसी महापुरुष की प्रतिमा हो या कोई दैव्य मंदिर, यदि भारत यही श्रम व रकम मैडिकल संस्थानों में लगाए तो शायद भारत की अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की स्थिति में सुधार हो सकता है. पर अफसोस, स्टूडैंट्स के लिए र्प्याप्त शैक्षिक संस्थान न होने के बावजूद भारत सरकार का ध्यान प्रतिमाओं को बनाने में है.

हाथ से खाना खाने के हैं कई फायदे, पढ़ें पूरी खबर

हमारे देश में ज्यादातर लोग हाथ से खाना खाना पसंद करते हैं. कम उम्र से ही हमें खाने के सही तरीकों में हाथ से खाने की बात भी बताई जाती है. पर क्या आपको पता है कि इसके पीछे विज्ञान क्या है? कई जानकार बताते हैं कि हम सब पांच तत्वों से बने हैं, जिन्हे जीवन ऊर्जा भी कहते हैं. ये पांचों तत्व हमारे हाथ में मौजूद हैं. इनमे से किसी भी एक तत्व का असंतुलन बीमारी का कारण बन सकता है. हाथ से खाना खाने से शरीर में निरोग रखने की क्षमता विकसित होती है. इसलिए जब हम खाना खाते हैं तो इन सारे तत्वों को एक जुट करते हैं, जिससे भोजन ज्यादा ऊर्जादायक बन जाता है और यह स्वास्थ्यप्रद बनकर हमारी उर्जा को संतुलित रखता है.

benefits of eating with hand

1.होता है पाचन में सुधार

छुअन हमारे शरीर का सबसे प्रभावशाली अनुभव होता है. जब हम हाथों से खाना खाते हैं तो हमारा मस्तिष्क हमारे पेट को यह संकेत देता है कि हम खाना खाने वाले हैं. इससे हमारा पेट इस भोजन को पचाने के लिए तैयार हो जाता है. इससे पाचन क्रिया अच्छी होती है. इससे खाने में ध्यान लगता है.

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2.माइडफुल ईटिंग

जब हम खाना खाते हैं तो हमें पता चलता है कि ये अब हमारे मुंह में जाने वाला है. इसे माइंडफुल इटिंग भी कहते है. ये चम्मच और कांटे से खाना खाने से ज्यादा स्वास्थयप्रद है. माइंडफुल ईटिंग के कई फायदें हैं, इसका सबसे जरूरी फायदा है कि इससे खाने के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं. इससे पाचन क्रिया सुधरती है.

इसका सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह भी है कि इससे खाने के पोषक तत्व बढ़ जाते हैं जिससे पाचन क्रिया सुधरती है और आप स्वस्थ रहते हैं.

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benefits of eating with hand

3.तो जलेगी नहीं आपकी जीभ

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हाथ से खाना खाने के तमाम फायदों में एक फायदा ये भी है कि इससे आपकी जीभ नहीं जलेगी. जब आप खाने को अपने हाथ से उठाते हैं तो आपको पता चलता है कि जो खाना आप खाने वाले हैं वो कितना गर्म है. यदि खाना ज्यादा गर्म है तो आपको पता चलता है और आप उसे फूंक कर खाते हैं. इस तरह आपकी जीभ भी नहीं जलती है.

वेजिटेबल पफ : इसे नहीं खाया तो फिर क्या खाया

घर पर अगर आप भी बनाना चाहते हैं सबसे कम समय में आसान नाश्ता तो वेजिटेबल पफ से बेहतर ऑप्शन कुछ और नहीं हो सकता है.

 

सामग्री:

1 पेकेट रेडीमेड पफ पेस्ट्री शीट

2 टेबलस्पून तेल

1/2 टीस्पून जीरा

1 मध्यम प्याज, बारीक कटा हुआ (लगभग 1/2 कप)

1 छोटा उबला हुआ आलू, कटा हुआ (लगभग 1/2 कप)

1/3 कप कटा हुआ गाजर

1/3 कप हरे मटर (ताजे या फ्रोजन)

1/3 कप कटी हुई हरी बीन्स, वैकल्पिक

चुटकीभर चाट मसाला पाउडर

1/3 टीस्पून आमचूर पाउडर या 1/2 टीस्पून नींबू का रस

1/2 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर

चुटकीभर हल्दी पाउडर

चुटकीभर गरम मसाला पाउडर, वैकल्पिक

1 टीस्पून धनिया – जीरा पाउडर

नमक – स्वाद अनुसार

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भरावन के लिये:

  • एक कडाई/पैन में 2 टेबलस्पून तेल को मध्यम आंच पर गरम करें. उसमें 1/2 टीस्पून जीरा डालें; जब वे सुनहरा हो जाये तब उसमें 1/2 कप बारीक कटे हुए प्याज डालें. प्याज को पारदर्शी होने तक भून लें.
  • उसमें 1/3 कप कटे हुए गाजर, 1/3 कप हरे मटर, 1/3 कप कटी हुई हरी बीन्स और चुटकी भर नमक डालें.
  • सब्जियों को थोडी नरम होने तक मध्यम आंच पर पकाये. इसमें 3-4 मिनट का समय लगेगा.
  • उसमें 1/2 कप कटे और उबले हुए आलू डालें.
  • अच्छे से मिला लें और 1 मिनट के लिये पकने दें.
  • उसमें चुटकीभर चाट मसाला पाउडर, 1/3 टीस्पून आमचूर पाउडर, 1/2 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर, चुटकीभर हल्दी पाउडर, चुटकीभर गरम मसाला पाउडर और 1 टीस्पून धनिया–जीरा पाउडर डालें. मसालो को चख लें और जरुरत लगे तो नमक डालें.
  • अच्छे से मिला लें और एक मिनट के लिये पकने दें. गेस बंध कर दें. वेज पफ के लिये मसालेदार भराई तैयार है. उसे कमरे के तापमान पर ठंडा होने दें.

 विधि

  • पेस्ट्री शीट को कमरे के तापमान पर डीफ्रोस्ट कर लें. ओवन को 10 मिनट के लिये प्रि-हिट कर लें.
  • डीफ्रोस्ट की हुई शीट को 3-4 इंच के चौकोर टूकडो में काट लें.
  • हर चौकोर टूकडे के आधे हिस्से के बीच में 1-2 टेबलस्पून भराई रखें. किनारो को गीले ब्रश या उंगलियों से हल्का गीला कर लें.
  • हर एक को मोडकर तिकोनाकार बना लें. चौकोर बनाने के लिये आप उसके उपर दूसरा चौकोर टूकडा रखकर बंध कर सकते है. किनारो को हाथ से या फोर्क से दबा दें.
  • कच्चे पफ को सीधे बेकिंग ट्रे के उपर या एल्युमिनियम फोयल/बटर पेपर लगी हुई बेकिंग ट्रे के उपर रख दें. बेकिंग ट्रे को प्रि-हिटेड ओवन में मिडल रेक में रखें और 20 मिनट के लिये या उपर की सतह सुनहरी और कुरकुरी होने तक बेक करे. बेकिंग ट्रे को ओवन में से निकाल लें.
  • चपटे चम्मच से पफ को कुलिंग रेक के उपर ध्यान से रखें. वेज पफ को 10 मिनट के लिये ठंडा होने दें. पफ को टोमेटो केचप या हरी चटनी या गरम चाय के साथ परोसें

नई हुंडई वरना का शानदार लुक आपको हैरान कर देगा

नई हुंडई वरना कार ग्राहकों को काफी लुभा रही है. कंपनी ने पुराने मौडल की जहग इस गाड़ी को ज्यादा बोल्डएडवांस्ड, अट्रैक्टिव और परफॉर्मेंस अवतार में उतारा है.

नई हुंडई वरना अब डुअल-टोन डायमंड-कट अलॉय व्हील 16-इंच रबर में मिलेगी. वहीं इसके बाहरी लुक को कंपनी ने काफी लग्जरी लुक दिया है. साथ ही कार को नए रियर बंपर के साथ अपडेट भी किया है.

वरना पहली ऐसी ऐसी कार है जो लुक के मामले से पहले से ही अट्रैक्टिव है. इसे और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए ट्विन टिप मफलर का इस्तेमाल किया है. यानी इसकी डिजाइन ऐसी है जो आपको हैरान कर सकती है. तो अब आपको कोई और कार देखने की जरूरत नहीं हैक्योंकि Hyundai Verna #BetterThanTheRest है.

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