फसल उत्पादन और उत्पाद की क्वालिटी बढ़ाने के लिए मिट्टी पर कैमिकल खादों का लगातार अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है. जीवांश वाली खादों, जैसे फार्म यार्ड मैन्योर यानी गोबर की खाद, कंपोस्ट व हरी खादों का इस्तेमाल न के बराबर हो रहा है. इस का नतीजा यह है कि खेतों की पैदावारी कूवत लगातार घट रही है.
कैमिकल खादों के इस्तेमाल से पोषक तत्त्वों की कमी तो पूरी हो जाती है, लेकिन मिट्टी के भौतिक व जैविक गुणों का खात्मा हो जाता है. इस के चलते खेत बंजर बनते जा रहे हैं.
हमारे देश में ज्यादातर गोबर को उपले या कंडे यानी ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर के खत्म किया जाता है. गोबर की बाकी बची मात्रा, जो खाद के रूप में इस्तेमाल की जाती है, उस के ज्यादातर पोषक तत्त्व लीचिंग की क्रिया से खत्म हो जाते हैं.
ये भी पढ़ें- गेहूं की खेती में कीटों व रोगों से बचाव
कार्बनिक पदार्थ को मिट्टी में बढ़ाने के लिए ज्यादातर किसान कंपोस्ट खाद को तैयार करने की विधियों से अनजान हैं. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए खलियों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन हमारे देश में फसलों के लिए पोषक तत्त्वों की आपूर्ति खलियों से करना नामुमकिन है, क्योंकि इन का इस्तेमाल पशुओं के भोजन के लिए भी किया जाता है.
सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्त्वों को सही मात्रा में पहुंचाने और मिट्टी के भौतिक व जैविक गुणों को सुधारने के लिए कैमिकल खादों के साथसाथ जीवांश खादों व जैविक खादों, जैसे राइजोबियम, अजोला, नील हरित शैवाल, एजेटोबैक्टर, माइकोराइजा वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए.