भारत और चीन के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए यह सवाल उठने लगा है कि चीन में पढ़ रहे भारतीय स्टूडैंट्स का क्या होगा. क्या शिक्षा की राह में रुकावट पैदा हो जाएगी? भारतीय स्टूडैंट्स का भारत से बाहर पढ़ाई करने के लिए जाना एक दशक से अत्यधिक चलन में है. अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया व चीन में ज्यादातर भारतीय स्टूडैंट्स पढ़ाई करने जाते हैं. मिनिस्ट्री औफ ह्यूमन रिसोर्स डैवलपमैंट अर्थात एमएचआरडी के औफिशियल डाटा के अनुसार, चीन में भारत के लगभग 23,000 स्टूडैंट्स पढ़ाई कर रहे हैं जिन में 21,000 मैडिकल स्टूडैंट्स हैं. चीन के वुहान से फैले नोवल कोरोना वायरस के बाद चीन से कई स्टूडैंट्स वापस भारत लौटे, परंतु अब भी कई भारतीय स्टूडैंट्स चीन में ही हैं और जो वापस भारत लौट आए हैं. उन्हें अपनी डिग्री की पढ़ाई पूरी करने के लिए चीन वापस लौटना होगा.

गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच जो झड़प चल रही है उस के मद्देनजर भारत ने चीन के ऐप तो बैन कर दिए, पर क्या भारत स्टूडैंट्स को चीन में पढ़ने से रोक पाएगा? हालांकि, कोरोना वायरस के कारण कई स्टूडैंट्स का यह कहना है कि वे अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे देशों के बारे में सोच सकते हैं लेकिन उन स्टूडैंट्स, जो पहले ही चीन में पढ़ रहे हैं, का कहना है कि चीन और भारत के लद्दाख मसले के बावजूद वे अपनी पढ़ाई चीन से पूरी करेंगे. बहरहाल, इस समय भारतीय स्टूडैंट्स, जो चीन में मैडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, भारत की लाइसैंसिंग एग्जाम में एलिजिबिलिटी में हुए बदलाव को ले कर विरोध प्रकट कर रहे हैं. नैशनल बोर्ड औफ एग्जामिनेशन यानी एनबीई ने विदेशी मैडिकल ग्रैजुएट एग्जाम (एफएमजीई) की एलिजिबिलिटी को ले कर नियमों में बड़ा बदलाव किया है. एफएमजीई लाइसैंस एग्जामिनेशन भारतीय मैडिकल स्टूडैंट्स जिन्होंने विदेश से पढ़ाई की है, को देना होगा, जिसे पास करने के बाद ही वे भारत में मैडिसिन प्रैक्टिस कर सकते हैं अथवा डाक्टर के रूप में कार्यरत हो सकते हैं.

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