रेटिंग : डेढ़ स्टार

निर्माता : कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक

निर्देशक : फारुक कबीर

कलाकार : विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय, अन्नू कपूर, शिव पंडित, अहाना कुमरा, नवाब शाह, गार्गी पटेल, मोहित चौहाण,  रिया कापड़िया, उखालाक खान, यासिर खान व अन्य

अवधि :2 घंटे 14 मिनट

ओटीटी प्लेटफॉर्म : डिजनी हॉटस्टार

2008 की आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब उसी पृष्ठभूमि में अरब देशों में भारतीय लड़कियों को नौकरी देने के नाम पर किस तरह देह व्यापार में ढकेला जाता है और कैसे एक भारतीय पुरुष काल्पनिक अरब देश नोमान जाकर अपनी पत्नी को छुड़ाकर लाता है,उसी की कहानी है एक्शन प्रधान फिल्म ‘खुदा हाफिज’ , जिसे लेकर फारुक कबीर आए हैं.इसमें सारे पुराने बॉलीवुड फिल्मी मसालों के अलावा कुछ नहीं हैं.

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कहानी:

यह कहानी है लखनऊ में रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) और उनकी पत्नी नरगिस (शिवालिका ओबेराय) की. जिनकी 2008 की आर्थिक मंदी में जनवरी माह में नौकरी चली जाती है. दोनों नौकरी की तलाश में हैं. एजेंट नदीम (विपिन शर्मा) दोनों से 5000- 5000 रुपए लेकर फॉर्म भरवाता है.नरगिस को पहले काल्पनिक अरब देश नोमान में नौकरी मिल जाती है.वह नोमान पहुंचने के बाद समीर को फोन पर रोते हुए बताती है कि उसके साथ बहुत गलत हो रहा है. इसके बाद बॉलीवुड मार्का कहानी शुरू हो जाती है. समीर पुलिस में शिकायत कर पुलिस के साथ एजेंट नदीम के पास पहुंचता है.पुलिस कह देती है कि समीर को नोमान जाकर वहां भारतीय दूतावास और नोमान पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी .समीर, नोमान पहुंचता है. पाकिस्तानी मूल का टैक्सी ड्राइवर उस्मान (अन्नू कपूर) उसकी मदद करता है. भारतीय उप राजदूत आई के मिश्र (इकलाख खान) भी मदद करते हैं. मगर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एजेंसी का एक अफसर फैज अबू मलिक (शिव पंडित) उन लोगों से मिला हुआ है ,जो नरगिस सहित दूसरी लड़कियों से देह व्यापार करवा रहा है . जबकि फैज अबू मलिक की सहायक कमांडर तमन्ना (अहाना कुमरा) उसकी मदद करती है, लेकिन वह एक मोड़ पर फैज अबू मलिक के हाथों मारी जाती है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंतत: समीर अपनी पत्नी नरगिस के साथ भारत वापस आ जाते हैं.

लेखन व निर्देशन:

अति कमजोर कहानी व पटकथा वाली यह फिल्म बॉलीवुड मसालों से भरपूर है.लेखक निर्देशक ने एक्शन व गुस्सैल विद्युत जामवाल की इमेज को अलग फ्रेम में चस्पा करते हुए समीर को आम इंसान की तरह दिखाने का असफल प्रयास करते हैं. इसी उलझन के चलते उन्होंने पूरी कहानी व फिल्म को बर्बाद कर दिया. कहानी में विद्युत जामवाल और शिवालिका के बीच रोमांस के दृश्य भी फारुक कबीर नहीं गढ़ पाए.एक सीधी सपाट कहानी में कोई रोमांच नहीं है.फिल्म कहीं भी दर्शकों को बांध का नहीं रखती.नोमान पहुंचने के बाद नरगिस के फोन से दर्शक अनुमान लगा लेता है कि आप क्या क्या होगा. पटकथा लेखन के साथ-साथ समीर के किरदार में विद्युत जामवाल का चयन निर्देशक फारुक कबीर की कमजोर कड़ी है.वह एक अच्छे इंसान  व देह व्यापार के दलालों के बीच की कथा का सही चित्रण नहीं कर पाए.एक  एक्शन स्टार के रूप में विद्युत जामवाल ने जो अपने शारीरिक बनावट की है, वह भी उन्हें आम इंसान समीर के किरदार से दूर ले जाती है.

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अभिनय:

मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट धारी तथा कलारी पट्टू में माहिर अभिनेता विद्युत जामवाल पिछले एक दशक में अपनी एक्शन इमेज को ही भुनाते हुए एक जैसा अभिनय करते जा रहे हैं. परिणामत: उनके पैर जम नहीं रहे हैं.उन्होंने अच्छी कहानी और लार्जर देन लाइफ किरदारों की तलाश पर ज्यादा जोर नहीं दिया. जबकि एक कलाकार बेहतरीन कहानी व किरदारों के बल पर ही दर्शकों के बीच हीरो बन सकता है . 15 दिन के अंतराल में ‘यारा’ के बाद ‘खुदा हाफिज’ उनकी दूसरी फिल्म है,जिसमें वह दर्शकों को बुरी तरह से निराश करते हैं. कई दृश्यों में वह काफी सहमे सहमे से नजर आते हैं.

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नरगिस के किरदार में शिवालिका ओबेराय के हिस्से करने के लिए कुछ आया ही नहीं, जिससे वह अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखा सकती .टैक्सी ड्राइवर उस्मान के किरदार में अन्नू कपूर जरूर अपने अभिनय क्षमता की अमिट छाप छोड़ते हैं.पूरी फिर उन्हीं के कंधों पर निर्भर होकर रह जाती है. शिव पंडित भी निराश करते हैं .आहना कुमरा ने ठीक-ठाक अभिनय किया है.

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