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हिना खान के इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर मचाया धमाल, सभी जानना चाहते हैं जवाब

हिना खान टीवी की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हैं. इसके साथ वह सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं. हिना खान अपने सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट करती हैं वह बी टाउन में अगले दिन खबर बन जाती है. हना खान अपने सोशल मीडिया के जरिए भी अपने फैंस के साथ जुड़ी रहती हैं. आए दिन नए-नए पोस्ट सेयर करती रहती हैं.

हाल ही में हिना खान ने सोशल मीडिय पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि कई साल पहले 6 साल हम्म नहीं 7 साल पहले लोग मुझे सालों तक अच्छे से व्यवहार नहीं किए थें. मैं इस बात को सोच कर हमेशा परेशान रहती थी कि आखिर मुझमें क्या कमी है कि ऐसा मेरे साथ हो रहा है. आज इस कोटेशन ने मुझे किसी की याद दिला दी. मैं हमेशा सोच में डूबी रहती थी कि क्या मैं इतनी बुरी हूं कि लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं क्या कमी है मुझमें.

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मैं यह सोच कर टूट जाया करती थीं. मुझे समझ नहीं आता मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है. लेकिन कुछ घाव ऐसे  भी होते हैं जो शायद कभी नहीं भरते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

आगे हिना खान ने लिखा कि कोई नहीं मुझे करमा पर यकिन है. लोगों को लगता है कि वह सालों तक बुरा करते आएंगे और हम उन्हें बर्दाश्त करते रहेंगे.

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हालांकि इस पोसेट में यह खुलासा नहीं हुआ है कि हिना खान किसे टारगेट कर रही हैं. उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है.

 

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Jusstttttt

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खैर सालों पहले ये रिश्ता क्या कहलाता है के सेट पर हिना खान कि नोकझोंक करण मेहरा और शो के प्रॉड्यूसर राजन शाही के साथ हमेशा रहता था. कयास लगाया जा रहा है कि हिना अपने पोस्ट के जरिए इन्हीं दोनों में से किसी एक को टारगेट करने की कोशिश की हैं.

रित्विक धनजानी और निया शर्मा दिखे नए अवतार में, जानें क्या है मामला

सीरियल पवित्र रिश्ता  से मशहूर हुए एक्टर रित्विक धनजानी इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं. रित्विक तब सबसे ज्यादा लाइमलाइट में आ गए थें जब उन्होंने खतरों के खिलाड़ी को अचानक छोड़ दिया. रित्विक कि हाल ही में एक नई तस्वीर सामने आई है जिसमें वह निया शर्मा के साथ नजर आ रहे हैं.

दरअसल, निया शर्मा टीवी जगत की हॉटेस्ट एक्ट्रेस में से एक हैं. रित्विक और निया साथ में मस्ती करते नजर आ रहे हैं. रित्विक ने यह वीडियो को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर भी शेयर किया है.

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अगर दोनों की तस्वीर की बात की जाए तो निया शर्मा बेहद कूल अवतार में नजर आ रही हैं. वही रित्विक धानजानी कैजुअल लुक में नजर आ रहे हैं.

 

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Sharma ji naa sharmaati!!! ? @niasharma90 ???

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निया और रित्विक के इस पोस्ट को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं. रित्विक ने इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा है कि ‘शर्मा जी ना शरमाती’

बता दें रित्विक धनजानी और निया शर्मा रोहित शेट्टी के जाने माने शो खतरों के खिलाड़ी में भी हिस्सा ले चुके हैं.

 

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Because we don’t like it Neat. @rithvik_d

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वहीं खबर आ रही है कि बिग बॉस शो के मेकर्स निया शर्मा को सीजन 14 में आने के लिए ऑफर दिया है. जिसमें उन्होंने अच्छा खासा अमाउट भी ऑफर किया है.

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फिलहाल इस विषय पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. निया शर्मा ने भी इस पर कुछ खुलकर नहीं कहा है. फिलहाल वह अपना टाइम एंजॉय कर रही हैं. निया शर्मा को अपने फैमली से भी खूब लगाव वह कोई भी मौका अपने फैमली के साथ बीताने का नहीं छोड़ती हैं.

 

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The Black eyed peas feels! @rithvik_d @karanwahi @ijaybhanushali ?‍♂️? #KKKMadeInIndia

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वहीं रित्विक धनजानी कुछ समय पहले अपनी पूर्व गर्लफ्रेंड आशा नेगी के साथ ब्रेकअप को लेकर चर्चा में नजर आएं थे.

आशा और रित्विक लंबे वक्त तक रिलेशन में रहने के बाद एक-दूसरे से अलग हुए हैं.

सीरियल”प्यार की लुका छुपी ” की अदाकारा शीतल मौलिक ने क्यों कानपुरिया भाषा चुना?

हर कलाकार अपनी अभिनय यात्रा के दौरान विभिन्न शैलियों, संस्कृतियों और भाषाओं का भी पता लगाते रहते हैं. इसके पीछे उनका मकसद यह सुनिश्चित करने के लिए होता है कि वह जिस किरदार को भी निभाए, वह किरदार लोगों को वास्तविक  नजर आए और दर्शक उस किरदार के साथ रिलेट कर सकें.
 ऐसा केवल समर्पण, अनुसंधान, अभ्यास और तैयारी के माध्यम से संभव है.यह एक आसान काम नहीं है और अभिनेता इस प्रक्रिया में बहुत सारी चुनौतियों का सामना करते हैं. इसी तरह के परिदृश्य का सामना अभिनेत्री शीतल मौलिक ने किया, जो एक महाराष्ट्रियन हैं और जिन्होंने बंगाली से शादी की है. जबकि दंगल टीवी पर प्रसारित हो रहे सीरियल ” प्यार की लुका छुपी ” मैं वह कल्याणी दीदी का किरदार निभाते हुए कानपुरिया भाषा मैं बात करती हैं. इस बोली को हासिल करने के लिए उन्हें थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

 

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Unhi mein se koi sapna ladkhada gya hoga aur tum gir gaye… hilarious ??? @aparnadixit2061 @iamkrripkapursuri

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जब उनसे पूछा गया कि कानपुरिया भाषा उन्होंने कैसे सीखा, तो शीतल मौलिक ने कहा-“मेरे लिए भाषा एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन जब निर्माता के साथ मेरी पहली मुलाकात हुई, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे किसी भी चीज़ के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. यदि कोई समस्या होती है, तो वह इसका ध्यान रखेगी. केवल उसने मुझसे कहा था कि मुझे अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए.मैंने सोचा कि अगर कोई निर्माता मुझ पर इतना भरोसा कर रहा है, तो मुझे अपनी तरफ से सभी प्रयासों को सुनिश्चित करना चाहिए.
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मैंने अपनी तरफ से कल्याणी दीदी के किरदार  की तैयारी करने और उच्चारण को सीखने के लिए मैंने बहुत से लखनऊ के धारावाहिकों को देखा और जाना कि लोग कैसे बोलते हैं. टीम ने संदर्भ के रूप में कई लिंक और विडियो भी भेजे. 3-4 दिनों के लिए मैंने क्लिप सुनी और भाषा को सीखने की कोशिश की और आखिरकार ईश्वर की कृपा से और सभी के सहयोग से, मैं उच्चारण को चुनने में कामयाब रही. “

 

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Rangeen joota pehna diya hawa bhi nhi ja rhi isme ??? @maleekarghai_official

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खैर यह सच है कि अभ्यास एक आदमी को परिपूर्ण बनाता है और शीतल मौलिक ने अपनी भूमिका से यह साबित कर दिया है. कल्याणी दीदी का  चरित्र लोगों को काफी पसंद आ रहा है.

एक घड़ी औरत-भाग 3 : प्रिया अपने घर में नौकरानी क्यों रखना चाहती थी?

व्यस्तता बहुत बढ़ गई थी. आमदनी का छोटा ही सही, पर एक जरिया प्रिया को नजर आने लगा तो वह पूरे उत्साह से रंग, कूचियां और कैनवस व स्टैंड आदि खरीद लाई. पर समस्या यह थी कि वह क्याक्या करे? कंपनी में ड्रैस डिजाइन करने जाए या घर संभाले, बच्चों की देखरेख करे या पति का मन रखे? अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान दे या रोज की जरूरतों के लिए बेतहाशा दौड़ में दौड़ती रहे? प्रिया की दौड़, जो उस दिन से शुरू हुई, आज तक चल रही थी. घर और बाहर की व्यस्तता में उसे अपनी सुध नहीं रही थी. ‘‘अब हमें एक कार ले लेनी चाहिए,’’ एक दिन नरेश ने कहा.

प्रिया सुन कर चीख पड़ी, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’

‘‘क्यों भई, क्यों?’’ नरेश ने हैरानी से पूछा.

‘‘फ्लैट के कर्ज से जैसेतैसे इतने सालों में अब कहीं जा कर हम मुक्त हो पाए हैं,’’ प्रिया बोली, ‘‘कुछ दिन तो चैन की सांस लेने दो. अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं, उन की मांगें भी बढ़ती जा रही हैं. पहले होमवर्क मैं करा दिया करती थी पर अब उन के गणित व विज्ञान…बाप रे बाप… क्याक्या पढ़ाया जाने लगा है. मैं तो बच्चों के लिए ट्यूटर की बात सोच कर ही घबरा रही हूं कि इतने पैसे कहां से आएंगे. पर आप को अब कार लेने की सनक सवार हो गई.’’

‘‘अरे भई, आखिरकार इतनी बड़ी कलाकार का पति हूं. शीलाजी की कलादीर्घा में आताजाता हूं तुम्हें ले कर. लोग देखते हैं कि बड़ा फटीचर पति मिला है बेचारी को, स्कूटर पर घुमाता है. कार तक नहीं ले कर दे सका. नाक तो मेरी कटती है न,’’ नरेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘हां मां, पापा ठीक कहते हैं,’’ बच्चों ने भी नरेश के स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘अपनी कालोनी में सालभर पहले कुल 30 कारें थीं. आज गिनिए, 200 से ऊपर हैं. अब कार एक जरूरत की चीज बन गई है, जैसे टीवी, फ्रिज, गैस का चूल्हा आदि. आजकल हर किसी के पास ये सब चीजें हैं, मां.’’

‘‘पागल हुए हो तुम लोग क्या,’’ प्रिया बोली, ‘‘कहां है हर किसी के पास ये सब चीजें? क्या हमारे पास वाश्ंिग मशीन और बरतन मांजने की मशीन है? कार ख्वाब की चीज है. टीवी, कुकर, स्टील के बरतन और गैस हैं ही हमारे पास. किसी तरह तुम लोगों के सिर छिपाने के लिए हम यह निजी फ्लैट खरीद सके हैं. घर की नौकरानी रोज छुट्टी कर जाती है, काम का मुझे वक्त नहीं मिलता, पर करती हूं, यह सोच कर कि और कौन है जो करेगा. जरूरी क्या है, तुम्हीं बताओ, कार या अन्य जरूरत की चीजें?’’ ‘‘तुम कुछ भी कहो,’’ नरेश हंसे, ‘‘घर की और चीजें आएं या न आएं, बंदा रोजरोज शीलाजी या अन्य किसी के घर इस खटारा स्कूटर पर अपनी इतनी बड़ी कलाकार बीवी को ले कर नहीं जा सकता. आखिर हमारी भी कोईर् इज्जत है या नहीं?’’

उस दिन प्रिया जीवन में पहली बार नरेश पर गुस्सा हुई जब एक शाम वे लौटरी के टिकट खरीद लाए, ‘‘यह क्या तमाशा है, नरेश?’’ उस का स्वर एकदम सख्त हो गया.

‘‘लौटरी के टिकट,’’ नरेश बोले, ‘‘मुझे कार खरीदनी है, और कहीं से पैसे की कोई गुंजाइश निकलती दिखाईर् नहीं देती, इसलिए सोचता हूं…’’

‘‘अगर मुझे खोना चाहते हो तभी आज के बाद इन टिकटों को फिर खरीद कर लाना. मैं गरीबी में खुश हूं. मैं दिनरात घड़ी की तरह काम कर सकती हूं. मरखप सकती हूं, भागदौड़ करती हुई पूरी तरह खत्म हो सकती हूं, पर यह जुआ नहीं खेलने दूंगी तुम्हें इस घर में. इस से हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा, सिवा बरबादी के.’’ प्रिया का कड़ा रुख देख कर उस दिन के बाद नरेश कभी लौटरी के टिकट नहीं लाए. पर प्रिया की मुसीबतें कम नहीं हुईं. बढ़ती महंगाई, बढ़ते खर्च और जरूरतों में सामंजस्य बैठाने में प्रिया बुरी तरह थकने लगी थी. नरेश में भी अब पहले वाला उत्साह नहीं रह गया था. प्रिया के सिर में भारीपन और दर्र्द रहने लगा था. वह नरेश से अपनी थकान व दर्द की चर्चा अकसर करती पर डाक्टर को ठीक से दिखाने का समय तक दोनों में से कोई नहीं निकाल पाता था.प्रिया को अब अकसर शीलाजी व अन्य कलापे्रमियों के पास आनाजाना पड़ता, पर वह नरेश के साथ स्कूटर पर या फिर बस से ही जाती. जल्दी होने पर वे आटोरिक्शा ले लेते. और तब वह नरेश की कसमसाहट देखती, उन की नजरें देखती जो अगल बगल से हर गुजरने वाली कार को गौर से देखती रहतीं. वह सब समझती पर चुप रहती. क्या कहे? कैसे कहे? गुंजाइश कहां से निकाले?

‘‘औफिस से डेढ़ लाख रुपए तक का हमें कर्ज मिल सकता है, प्रिया,’’ नरेश ने एक रात उस से कहा, ‘‘शेष रकम हम किसी से फाइनैंस करा लेंगे.’’

‘‘और उसे ब्याज सहित हम कहां से चुकाएंगे?’’ प्रिया ने कटुता से पूछा.

‘‘फाइनैंसर की रकम तुम चुकाना और अपने दफ्तर का कर्ज मैं चुकाऊंगा पर कार ले लेने दो.’’

नरेश जिस अनुनयभरे स्वर में बोले वह प्रिया को अच्छा भी लगा पर वह भीतर ही भीतर कसमसाई भी कि खर्च तो दोनों की तनख्वाह से पूरे नहीं पड़ते, काररूपी यह सफेद हाथी और बांध लिया जाए…पर वह उस वक्त चुप रही, ठीक उस शुतुरमुर्ग की तरह जो आसन्न संकट के बावजूद अपनी सुरक्षा की गलतफहमी में बालू में सिर छिपा लेता है. पति के जाने के बाद प्रिया जल्दीजल्दी तैयार हो कर अपने दफ्तर चल दी. लेकिन आज वह निकली पूरे 5 मिनट देरी से थी. उस ने अपने कदम तेज किए कि कहीं बस न निकल जाए, बस स्टौप तक आतीआती वह बुरी तरह हांफने लगी थी.

इस आसान तरीके से बनाएं दाल पकवान दाल पकवान

दाल पकवान एक ऐसा डिश है कि आप इसे कभी भी बना सकते हैं. घर पर इसे बनाना बहुत ही ज्यादा आसान है आइए जानते हैं दाल पकवान बनाने की विधि.

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 सामग्री:

दाल के लिए 

– आधा कप चना दाल उबली हुई
– आधा चम्मच गरम मसाला पाउडर
– एक छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर
– आधा छोटा चम्मच अमचूर
– 1/4 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर
– एक छोटा चम्मच भुना जीरा पाउडर
– एक चम्मच इमली का पेस्ट
– एक चम्मच घी
– स्वादानुसार नमक
– तेल

पकवान के लिए .

– एक कप मैदा
– एक चम्मच घी
– पानी
– तेल

विधि:

दाल बनाने का तरीका: .

– गैस पर पैन में तेल गर्म करें. इसमें पानी के साथ उबली चना दाल डालें.
– फिर दाल में इमली का पेस्ट, लाल मिर्च, गरम मसाला, हल्दी, जीरा पाउडर और अमचूर डालकर मिक्स करें.
– अब इसे 5 से 7 मिनट तक धीमी आंच पर पकने दें.
– जब दाल अच्छी तरह पककर गाढ़ी हो जाए तो इसमें नमक डालकर मिक्स करें और गैस बंद कर दें.

* पकवान बनाने का तरीका:

– बर्तन में मैदा छान लें. इसमें घी डालकर दोनों हाथों से अच्छी तरह मिक्स कर लें.
– अब मैदे में थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर नर्म गूंद लें.
– इसके बाद गुंदे हुए मैदे से छोटी-छोटी लोई बनाएं.
– फिर लोई को रोटी की तरह गोल बेलें और इसे कांटे वाली चम्मच से गोद लें.
– गैस पर कड़ाही में तेल गर्म करें. इसमें पकवान डालकर मध्यम आंच पर दोनों तरफ से हल्का ब्राउन होने तक फ्राई करें.
– फिर प्लेट में किचन पेपर लगाकर इसमें पकवान निकाल लें. इसी तरह सभी पकवान तैयार कर ले.
– दाल को हरी धनिया पत्तियों से गार्निश करके पकवान के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

एक घड़ी औरत-भाग 2 : प्रिया अपने घर में नौकरानी क्यों रखना चाहती थी?

‘अगर बहुत जल्दी न हो आप को, तो मैं पास के रेस्तरां में कुछ देर बैठ कर आप से एक बात करना चाहता हूं,’ नरेश ने पास आ कर कहा.

प्रिया इनकार नहीं कर पाई. उन के साथ रेस्तरां की तरफ चल दी. वेटर को 1-1 डोसा व कौफी का और्डर दे कर नरेश प्रिया से बोले, ‘भूख लगी है, आज सुबह से वक्त नहीं मिला खाने का.’वह जानती थी कि यह सब असली बात को कहने की भूमिका है. वह चुप रही. नरेश उसे भी बहुत पसंद आए थे… काली घनी मूंछें, लंबा कद और चेहरे पर हर वक्त झलकता आत्मविश्वास…

‘टीवी में एक विज्ञापन आता है, हम कमाते क्यों हैं? खाने के लिए,’ प्रिया हंसी और बोली, ‘कितनी अजीब बात है, वहां विज्ञापन में उस बेचारे का खाना बौस खा जाता है और यहां वक्त नहीं खाने देता.’‘हां प्रिया, सचमुच वक्त ही तो हमारा सब से बड़ा बौस है,’ नरेश हंसे. फिर जब तक डोसा और कौफी आते तब तक नरेश ने पानी पी कर कहना शुरू किया, ‘अपनी बात कहने से मुझे भी कहीं देर न हो जाए, इसलिए मैं ने आज तय किया कि अपनी  बात तुम से कह ही डालूं.’ प्रिया समझ गई थी कि नरेश उस से क्या कहना चाहते हैं, पर सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही.

‘वैसे तो तुम किसी न किसी से शादी करोगी ही, प्रिया, क्या वह व्यक्ति मैं हो सकता हूं? कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. अगर तुम ने किसी और के बारे में तय कर रखा हो तो मैं सहर्ष रास्ते से हट जाऊंगा. और अगर तुम्हारे मांबाप तुम्हारी पसंद को स्वीकार कर लें तो मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का हमसफर बनाना चाहता हूं.’ प्रिया चुप रही. इसी बीच डोसा व कौफी आ गई. नरेश उस के घरपरिवार के बारे में पूछते रहे, वह बताती रही. उस ने नरेश के बारे में जो पूछा, वह नरेश ने भी बता दिया.जब नरेश के साथ वह रेस्तरां से बाहर निकली तो एक बार फिर नरेश ने उस की ओर आशाभरी नजरों से ताका, ‘तुम ने मेरे प्रस्ताव के बारे में कोईर् जवाब नहीं दिया, प्रिया?’

‘अपने मांबाप से पूछूंगी. अगर वे राजी होंगे तभी आप की बात मान सकूंगी.’

‘मैं आप की राय जानना चाहता हूं.’ सहसा एक दूरी उन के बीच आ गई.

‘क्यों एक लड़की को सबकुछ कहने के लिए विवश कर रहे हैं?’ वह लजा गई, ‘हर बात कहनी जरूरी तो नहीं होती.’‘धन्यवाद, प्रिया,’ कह कर नरेश ने स्कूटर स्टार्ट कर दिया, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’उस के बाद जैसे सबकुछ पलक झपकते हो गया. उस ने अपने घर जा कर मातापिता से बात की तो वे नाराज हुए. रिश्ते के लिए तैयार नहीं हुए. जाति बाधा बन गई. वह उदास मन से जब वापस लौटने लगी तो पिता उसे स्टेशन तक छोड़ने आए, ‘तुम् हें  वह लड़का हर तरह से ठीक लगता है?’ उन्होंने पूछा. प्रिया ने सिर्फसिर ‘हां’ में हिलाया. पिता कुछ देर सोचते रहे. जब गाड़ी चलने को हुई तो किसी तरह गले में फंसे अवरोध को साफ करते हुए बोले, ‘बिरादरी में हमारी नाक कट जाएगी और कुछ नहीं प्रिया. वैसे, तुम खुद अब समझदार हो, अपना भलाबुरा स्वयं समझ सकती हो. बाद में कहीं कोई धोखा हुआ तो हमें दोष मत देना.’

मातापिता इस शादी से खुश नहीं थे, इसलिए प्रिया ने उन से आर्थिक सहायता भी नहीं ली. नरेश ने भी अपने मातापिता से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली. दोनों ने शादी कर ली. शादी में मांबाप शामिल जरूर हुए पर अतिथि की तरह. विवाह कर घर बसाने के लिए अपनी सारी जमापूंजी खर्च करने के बाद भी दोनों को अपने मित्रोंसहेलियों से कुछ उधार लेना पड़ा था. उसे चुका कर वे निबटे ही थे कि पहला बच्चा आ गया. उस के आने से न केवल खर्चे बढ़े, कुछ समय के लिए प्रिया को अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी. जब दूसरी कंपनी में आई तो उसे पहले जैसी सुविधाएं नहीं मिलीं.

नरेश की भागदौड़ और अधिक बढ़ गई थी. घर का खर्च चलाने के लिए वे दिनरात काम में जुटे रहने लगे थे. ‘मैं ने एक फ्लैट देखा है, प्रिया’ एक दिन नरेश ने अचानक कहा, ‘नया बना है, तीसरी मंजिल पर है.’ ‘पैसा कहां से आएगा?’ प्रिया नरेश की बात से खुश नहीं हुई. जानती थी कि फ्लैट जैसी महंगी चीज की कल्पना करना सपना है. पर दूसरे बच्चे की मां बनतेबनते प्रिया ने अपनेआप को सचमुच एक नए फ्लैट में पाया, जिस की कुछ कीमत चुकाई जा चुकी थी पर अधिकांश की अधिक ब्याज पर किस्तें बनी थीं, जिन्हें दोनों अब तक लगातार चुकाते आ रहे थे.

उस की नईर् बनी सहेली ने प्रिया का परिचय एक दिन शीला से कराया, ‘नगर की कलामर्मज्ञा हैं शीलाजी,’ सहेली ने आगे कहा, ‘अपने मकान के बाहर के 2 कमरों में कलादीर्घा स्थापित की है. आजकल चित्रकारी का फैशन है. इन दिनों हर कोईर् आधुनिक बनने की होड़ में नएपुराने, प्रसिद्ध और कम जानेमाने चित्रकारों के चित्र खरीद कर अपने घरों में लगा रहे हैं. 1-1 चित्र की कीमत हजारों रुपए होती है. तू भी तो कभी चित्रकारी करती थी. अपने बनाए चित्र शीलाजी को दिखाना. शायद ये अपनी कलादीर्घा के लिए उन्हें चुन लें. और अगर इन्होंने कहीं उन की प्रदर्शनी लगा दी तो तेरा न केवल नाम होगा, बल्कि इनाम भी मिलेगा.’

प्रिया शरमा गई, ‘मुझे चित्रकारी बहुत नहीं आती. बस, ऐसे ही जो मन में आया, उलटेसीधे चित्र बना देती थी. न तो मैं ने इस के विषय में कहीं से शिक्षा ली है और न ही किसी नामी चित्रकार से इस कला की बारीकियां जानीसमझी हैं.’लेकिन वह सचमुच उस वक्त चकित रह गई जब शीलाजी ने बिना हिचक प्रिया के घर चल कर चित्रों को देखना स्वीकार कर लिया. थोड़ी ही देर में तीनों प्रिया के घर पहुंचीं.  2 सूटकेसों में पोलिथीन की बड़ीबड़ी थैलियों में ठीक से पैक कर के रखे अपने सारे चित्रों को प्रिया ने उस दिन शीलाजी के सामने पलंग पर पसार दिए. वे देर तक अपनी पैनी नजरों से उन्हें देखती रहीं, फिर बोलीं, ‘अमृता शेरगिल से प्रभावित लगतीहो तुम?’

प्रिया के लिए अमृता शेरगिल का नाम ही अनसुना था. वह हैरान सी उन की तरफ ताकती रही. ‘अब चित्रकारी करना बंद कर दिया है क्या?’ ‘हां, अब तो बस 3 चीजें याद रह गई हैं, नून, तेल और लकड़ी,’ हंसते वक्त उसे लगा जैसे वह रो पड़ेगी.

शीलाजी उस दिन उस के सारे चित्र अपने साथ ले गईं. कुछ दिनों बाद औफिस में उन का फोन आया कि वे उन चित्रों की प्रदर्शनी अमृता शेरगल और हुसैन जैसे नामी चित्रकारों के चित्रों के साथ लगाने जा रही हैं. सुन कर वह हैरान रह गई. प्रदर्शनी में वह अपनी सहेली और नरेश के साथ गई थी. तमाम दर्शकों, खरीदारों और पत्रकारों को देख कर वह पसोपेश में थी. पत्रकारों से बातचीत करने में उसे खासी कठिनाई हुई थी क्योंकि उन के सवालों के जवाब देने जैसी समझ और ज्ञान उस के पास नहीं था. जवाब शीलाजी ने ही दिए थे.

वापस लौटते वक्त शीलाजी ने नरेश से कहा, ‘आप बहुत सुखी हैं जो ऐसी हुनरमंद बीवी मिली है. देखना, एक दिन इन का देश में ही नहीं, विदेशों में भी नाम होगा. आप इन की अन्य कार्यों में मदद किया करो ताकि ये ज्यादा से ज्यादा समय चित्रकारिता के लिए दे सकें. साथ ही, यदि ये मेरे यहां आतीजाती रहें तो मैं इन्हें आधुनिक चित्रकारिता की बारीकियां बता दूंगी. किसी भी कला को निखारने के लिए उस के इतिहास की जानकारी ही काफी नहीं होती, बल्कि आधुनिक तेवर और रुझान भी जानने की जरूरत पड़ती है. नरेश के साथ उस दिन लौटते समय प्रिया कहीं खोई हुई थी. नरेश ही बोले, ‘तुम तो सचमुच छिपी रुस्तम निकलीं, प्रिया. मुझे तुम्हारा यह रूप ज्ञात ही न था. मैं तो तुम्हें सिर्फ एक कुशल डिजाइनर समझता था, पर तुम तो मनुष्य के मन को भी अपनी कल्पना के रंग में रंग कर सज्जित कर देती हो.’

ग्रामीण महिलायों ने लिखी तरक्की की कहानी : रेशम कीट पालन

बस्ती जिले के ब्लाक बनकटी के परासी गांव की कौशल्या देवी के घर का खर्च पति की कमाई से बड़ी मुश्किल से चल पाता था. इस वजह से कौशल्या को अपनी छोटीछोटी जरूरतें पूरी करने के लिए मन मसोस कर रह जाना पड़ता था. इन्हीं पारिवारिक जिम्मेदारियों और अभावों के बीच कौशल्या की जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही थी. इसी दौरान कौशल्या द्वारा लिए गए एक छोटे से फैसले ने उस की जिंदगी ही बदल दी. अब कौशल्या को घर पर ही रोजगार मिल गया है और धीरेधीरे उस की माली हालत भी सुधरने लगी.

कौशल्या के गांव में नाबार्ड बैंक की मदद से शक्ति उद्योग प्रशिक्षण संस्थान नाम की एक संस्था ग्रामीण महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनवा कर उन में बचत की आदत डलवा रही थी.

इसी संस्था के निरंकार लाल श्रीवास्तव ने कौशल्या  को रेशम कीट पालन व्यवसाय के बारे में जानकारी दी और साथ ही यह भी बताया कि इस व्यवसाय को घर पर शुरू करने के लिए रेशम विभाग जरूरी उपकरण, कीट, शहतूत की पत्तियां आदि निशुल्क मुहैया करा रहा है.

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कीटों द्वारा तैयार कोये को बेचने में भी महिलाओं को कोई परेशानी नहीं होगी, क्योंकि उन के घर से ही व्यापारी अच्छे दाम पर कोये खरीद कर ले जाएंगे. यह बात कौशल्या और उन के समूह से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं को जंच गई और यहीं से शुरू हुई इन महिलाओं के जीवन में बदलाव की कहानी.

संस्था के निरंकार लाल श्रीवास्तव ने कौशल्या और उन के समूह से जुड़ी तमाम महिलाओं को गांव में ही रेशम फार्म के प्रभारी वीरेंद्रनाथ तिवारी से मिलवाया और उन्हें रेशम कीट पालन के व्यवसाय के बारे में सलाह दी. वीरेंद्रनाथ ने महिलाओं को जरूरी फार्म भरवा कर उन्हें निशुल्क रेशम कीट पालन की जानकारी दी. कीट पालन के लिए जरूरी उपकरण जैसे रेशम कीट चाकी, रेशम कीट पालन ट्रे, सोलर लाइट, रेशम कीट पालन गृह आदि सुविधाएं भी निशुल्क मुहैया कराईं.

रेशम विभाग ने इन महिलाओं को शहतूत की पत्तियां और कीट भी फ्री मुहैया कराए. इस के बाद इन महिलाओं ने रेशम विभाग की मदद से अपने घर पर ही रेशम कीट पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया. जब पहली बार कौशल्या और दूसरी महिलाओं को रेशम कीट पालन से कोये हासिल हुए, तो रेशम विभाग ने बाहर के व्यापारियों को तैयार रेशम कोये अच्छी कीमत पर बिकवाने में मदद की.

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कौशल्या को पहली बार एक महीने में ही 14 किलोग्राम रेशम का कोया प्राप्त हुआ, जिस से उन्हें लगभग 20 हजार रुपए की कमाई हुई. इसी तरह समूह से जुड़ी दूसरी महिलाएं भी बिना लागत के इस व्यवसाय से प्रभावित हुईं. इस काम के दौरान घर के कामकाज भी प्रभावित नहीं हो रहे थे. इसलिए रेशम कीट पालन व्यवसाय से जुड़ने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई. कौशल्या और समूह की अन्य महिलाओं ने एक महीने में ही इतना पैसा कमा लिया, जितना उन के पति 4 महीने में बड़ी मुश्किल से कमाते थे.

कौशल्या की पहल से दूसरी महिलाएं भी प्रेरित : परासी गांव की महिलाओं के जीवन में रेशम कीट पालन से आए बदलाव से प्रभावित हो कर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने शक्ति उद्योग प्रशिक्षण संस्थान से दूसरे गांवों की महिलाओं को भी रेशम कीट पालन के व्यवसाय से जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी.

इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए किसी तरह के खर्च की जरूरत नहीं थी, क्योंकि सारे संसाधन रेशम विभाग निशुल्क मुहैया करा रहा था और इसे घर पर ही किया जा सकता था. इसलिए आसपास के गांवों की सैकड़ों महिलाओं ने संस्था के निरंकार लाल श्रीवास्तव से रेशम कीट पालन के व्यवसाय के बारे में जानकारी ली. उन्होंने इन सभी महिलाओं का समूह बना कर उन्हें हल्लौर नगरा गांव में  विभाग के सहयोग से रेशम कीट पालन व्यवसाय शुरू करवा दिया. इस से इन महिलाओं के घरेलू काम प्रभावित हुए बिना आमदनी का रास्ता खुल गया.

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कीट पालन व्यवसाय से जुड़ी लक्ष्मी का कहना है कि घरेलू काम निबटाने के बाद खाली समय काटना मुश्किल होता था, लेकिन अब रेशम कीट पालन के व्यवसाय से जुड़ने के बाद उन का समय कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. रेशम कीट पालन के व्यवसाय से जुड़ने के बाद अब उन्हें पैसे के लिए भी किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता और घर के पुरुषों को भी अब हाड़तोड़ मेहनत नहीं करनी पड़ती.

प्रभावती का कहना है कि अब वे घर पर ही इतना कमा लेती हैं कि उन के बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाता है और बच्चों की फीस वे अपने रेशम कीट पालन व्यवसाय से हुई कमाई से भरती हैं.

रेशम विकास विभाग बस्ती के सहायक निदेशक रामानंद मल्ल ने बताया कि रेशम विकास विभाग ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें जरूरी सुविधाएं अनुदान योजनाओं के जरीए उपलब्ध करा रहा है, जिस के तहत रेशम कीट पालकों को अच्छी किस्म के प्रतिरोधक चाकी रेशम कीट, जरूरी प्रशिक्षण, निशुल्क सिंचाई, कीट पालन ट्रे, उपकरण कीट पालन गृह अनुदान आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं. उन्होंने बताया कि कोये की अच्छी गुणवत्ता के लिए निरंतर जानकारों से सलाहमशवरा किया जाता है. इस के साथ ही महिलाओं को कोये का भी अच्छा दाम मिल जाता है. बाहर से आए व्यापारी इन महिलाओं के घरों से अच्छी कीमत पर कोया खरीदते हैं.

रेशम  फार्म हल्लौर नगरा के अनुरक्षक वीरेंद्रनाथ तिवारी ने बताया कि रेशम विकास विभाग ऐसे भूमिहीन परिवारों, जिन के पास शहतूत के पौधों के रोपण के लिए जमीन नहीं है, उन परिवारों को रेशम फार्म में रोपित शहतूत के पौधों से शहतूत की पत्तियां निशुल्क मुहैया कराई जाती हैं.

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शक्ति उद्योग प्रशिक्षण संस्थान के निरंकार लाल श्रीवास्तव ने बताया कि रेशम पालन व्यवसाय से जुड़ी महिलाओं को नाबार्ड के सहयोग से गु्रप लीडर, नेतृत्व विकास प्रशिक्षण, मौलिक प्रशिक्षण के साथसाथ अन्य जरूरी जानकारियां मुहैया कराई जा रही हैं, जिस से दलित महिलाएं भी अन्य महिलाओं की तरह आत्मनिर्भर बन सकें.

कोई भी ग्रामीण महिला जो कम पढ़ीलिखी है और अपनी माली हालत सुधारना चाहती है तो वह अपने जिले में रेशम विकास विभाग से मुलाकात कर रेशम कीट पालन का काम शुरू कर सकती है. अगर आप रेशम कीट पालन व उस से जुड़ी योजनाओं के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो बस्ती जनपद के सहायक निदेशक, रेशम, रामानंद मल्ल के मोबाइल नंबर पर-9451409736 या लैंड लाइन नंबर 05542-246371, अनुरक्षक रेशम उत्पादन वीरेंद्रनाथ तिवारी के मोबाइल नंबर पर-9628757639 पर संपर्क कर सकते हैं.

लौकडाउन में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

घरेलू हिंसा के मामले पहले भी बड़ी संख्या में सामने आते रहे हैं लेकिन लौकडाउन के दौरान ये लगातार बढ़े हैं. आखिर इन औरतों की गलती क्या है जो अपने ही परिवार के बीच यह सुरक्षित नहीं हैं?

नैशनल कमीशन फौर वुमेन के नए डाटा के अनुसार, कोरोना वायरस लौकडाउन के चलते 22 मार्च से 16 अप्रैल के बीच घरेलू हिंसा की 587 शिकायतें प्राप्त की गईं जबकि यह संख्या 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच केवल 396 थी.

गौरतलब है कि लौकडाउन के चलते वैश्विक व राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर घरेलू हिंसा के मामलों में इजाफा हो रहा है. औरतें अपने घरों में अपने पति व परिवार के साथ बंद हैं. जाहिरतौर पर हर किसी के लिए घर सब से सुरक्षित स्थान नहीं है. कई औरतें असल में हिंसक लोगों के साथ घरों में बंद हैं जो अब लौकडाउन के चलते न इस स्थिति से बच पा रही हैं और न मदद तलब कर पा रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च से राष्ट्रीय लौकडाउन की घोषणा की थी जिस में वे निम्नवर्ग की परेशानियों व मुश्किलों से वाकिफ होते नहीं दिखे. उन की यह नाकामी अब घरेलू हिंसा के मामले में भी देखने को मिल रही है. उच्चवर्ग, मध्यवर्ग व निम्नवर्ग तीनों ही वर्गों की महिलाएं अपनेअपने स्तर पर घरेलू हिंसा से घिरी हुई हैं.

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जहां उपरोक्त दो वर्गों की महिलाएं मदद मांगने में सक्षम होने के कारण शिकायत दर्ज करा पा रही हैं वहीं निम्नवर्ग की महिलाएं पूरी तरह असहाय हैं जो एक कमरे के घर में वक्तबेवक्त पति की मार खाने के लिए बेबस हैं और किसी से संपर्क के साधनों से पूरी तरह नदारद हैं. बीती 21 अप्रैल को हैदराबाद पुलिस ने 28 वर्षीया महिला को घरेलू हिंसा के मामले में बचाया. कथित महिला अपने पति और ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न व मारपीट का शिकार हो रही थी. महिला ने पुलिस को हैल्पलाइन नंबर पर व्हाट्सऐप के जरिए सूचना दी जिस के बाद उसे बचाया गया. पीडि़ता, उस के पति और ससुराल वालों को काउंसलिंग के लिए भेजा गया जिस पर पुलिस का कहना है कि पति और परिवार को उन की गलती का पछतावा हुआ व मामला शांत कर दिया गया.

यह उन मामलों में से एक था जिस की सूचना पुलिस को मिली, लेकिन उन सभी मामलों का क्या, जो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं? घरेलू हिंसा के मामले में नैशनल कमीशन फौर वुमेन ने बताया कि महिलाओं द्वारा अपनी शिकायत दर्ज कराने हेतु एक निश्चित हैल्पलाइन नंबर था व डाक द्वारा भी वे शिकायत दर्ज कराने में सक्षम थीं, परंतु लौकडाउन के चलते ये दोनों ही सेवाएं बंद हैं, जो हिंसा के मामलों को चारदीवारी से बाहर न निकलने देने का एक बड़ा कारण है. हालांकि, कमीशन द्वारा ईमेल ऐड्रैस जारी किया गया जिस पर महिलाएं अपनी शिकायत भेज सकती हैं पर बात एक बार फिर वहीं आ कर रुक जाती है कि कितनी महिलाओं के पास इंटरनैट की सुविधा उपलब्ध है. क्या घरेलू हिंसा की प्रताड़ना झेल रही महिला के लिए अपने पति की मौजूदगी में ईमेल भेजना संभव होगा? भारत में महिलाओं, खासकर निम्नस्तरीय परिवारों की महिलाओं, की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं है.

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ऐसे में वे इंटरनैट कहां से लाएंगी और क्या वे ईमेल भेज पाएंगी? लौकडाउन के चलते वे किसी की मदद मांगने के लिए घर से बाहर निकल भी नहीं सकतीं. महिलाएं अकसर मारपीट की शिकायत न कर मंदिरमसजिद पहुंच जाया करती थीं इस उम्मीद में कि भगवान उन की सुनेगा, चढ़ावा चढ़ा मन्नतें मांगा करती थीं कि भगवान उन पर दृष्टि डालेगा और उन की गृहस्थी सामान्य हो जाएगी. धार्मिक किताबों में भी यही जिक्र होता है कि फलां औरत के 16 सोमवार व्रत रखने पर उस के पति ने उसे मारनापीटना बंद कर दिया और उस की गृहस्थी खुशहाल हो गई. क्या सचमुच ऐसा होता है? क्या सच में हवनकीर्तन से हिंसा दूर हो जाती है? नहीं, ऐसा नहीं होता. यह केवल एक परदा है जिस के पीछे महिला अपने घाव छिपाने की कोशिश करती है और जिस की आड़ में पंडेपुजारी अपनी जेबें भरते हैं.

लौकडाउन के दौरान मंदिरों में ताले पड़े हैं, पूजापाठ में लिप्त महिलाएं अपने भगवान को याद कर रही हैं तो न वह भगवान उन्हें बचाने आ रहा है और न पंडेपुजारी. महिलाएं कीर्तनों में बैठ अपनीअपनी व्यथा नहीं सुना पा रहीं, लेकिन आखिर उन्हें सहानुभूति की जरूरत क्या है? पति की मार खाने वाली अनेक महिलाएं उसे सहने को मजबूर हैं, हमेशा से थीं लेकिन उन्हें सांत्वना देने वाली उन की जैसी महिलाएं उन्हें ‘भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा’ का डमरू पकड़ा देती थीं जो इस लौकडाउन के चलते नहीं हो पा रहा. हकीकत से दोचार होती महिलाओं के लिए हिंसा सहना अब मुश्किल हो रहा है और पहले इस से न निकलने की गलती उन्हें अब सम झ आ रही है, लेकिन वे लाचार हैं. हिंसा के रूप अनेक, कारण एक चेन्नई की रहने वाली पार्वती बताती हैं कि उन के पति ने उन्हें 25 मार्च से ही मारनापीटना शुरू कर दिया था. पहले मारपीट से बचने के लिए वे अकसर गली से बाहर अपने ही महल्ले में रहने वाले नातेरिश्तेदारों के पास चली जाया करती थीं, लेकिन अब जब लौकडाउन के कारण गली बंद कर दी गई है तो उन के लिए ऐसा करना असंभव है.

पार्वती का पति शराबी है. वह कोई कामधंधा नहीं करता. पार्वती घरों में खाना बना कर 5,000 रुपए महीना कमाती थी, जिस से घर चलता था व पति शराब के लिए भी उन्हीं पर निर्भर करता था. कोरोना वायरस के चलते पार्वती की मालकिन ने कह दिया कि वे काम पर न आएं यानी पार्वती के घर पैसा आना भी बंद हो गया. शराब की तलब और गुस्से में पार्वती के पति ने मारपीट शुरू कर दी. उन के पास इन हालात में हिंसा सहने के अलावा रास्ता नहीं है. घरेलू हिंसा केवल मारपीट तक ही सीमित नहीं है. वैवाहिक बलात्कार और मानसिक प्रताड़ना भी एक प्रकार की हिंसा ही है जिस से अनेक महिलाएं लौकडाउन के चलते जू झ रही हैं. सामान्य दिनों में भी घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं कानून का सहारा लेने से कतराती हैं. उन्हें पतिव्रता और पति की हर आज्ञा का पालन करने की सीख दी जाती है.

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आखिर सरकार भी तो रामायण, महाभारत दिखा इसी बात का प्रचार कर रही है कि पति तुम्हें अगर गर्भवती होने पर भी जंगल में छोड़ आए तब भी तुम धर्मपत्नी होने का कर्तव्य निभाओ और उस के लौट आने पर उस के पैरों में स्वामीस्वामी कर पड़ जाओ. कैसी त्रासदी है कि घरों में बंद औरतें दिनरात हिंसक पतियों के साथ बंद हैं और उन्हें सांत्वना के नाम पर कुछ दिया भी जा रहा है तो वह है धर्म की घुट्टी. मुंबई की उच्चमध्यवर्गीय परिवार की कामकाजी महिला राखी (बदला हुआ नाम) अपनी नौकरी और घर के बीच लौकडाउन के चलते सामंजस्य बैठाने में मुश्किल महसूस कर रही है जिस के चलते वह दोनों ही चीजों के बीच पिस रही है. वह लौकडाउन में अपने पति, बच्चों व सासससुर के साथ घर में बंद है. वह कहती है, ‘‘मेरा आत्मसम्मान हर दिन कुचला जा रहा है.

किसी भी काम को ठीक से न कर पाने को ले कर मु झ से सवाल किए जाते हैं. मेरे कार्यालय और घर दोनों में ही तनाव पसरा हुआ है. मेरे पति व सासससुर मु झ पर चिल्लाते हैं, यहां तक कि मेरे बच्चे भी. घर में इस तरह लड़ाई झगड़ा होने लगा है जैसा मैं ने अपनी 10 साल की शादी में कभी महसूस किया था.’’ नैशनल कमीशन औफ वुमेन के मार्च और अप्रैल 2019 के डाटा और मार्च और अप्रैल महीने के 2020 के डाटा का आकलन करने पर दिखाई पड़ता है कि औसत शिकायत दर में भारी इजाफा हुआ है. महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, आत्मसम्मान को चोट, वैवाहिक बलात्कार और शारीरिक उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं. पितृसत्तात्मक सोच हावी नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की एक स्टडी के मुताबिक, 52 फीसदी महिलाएं और 42 फीसदी पुरुष मानते हैं कि महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा तब सही है जब वे अपनी ससुराल वालों को सम्मान नहीं देतीं या उन की इज्जत नहीं करतीं. यह घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों में से एक है. लौकडाउन के चलते घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी इसलिए हुई है क्योंकि महिलाएं अपने पतियों के साथ चारदीवारी में 24 घंटों के लिए बंद हैं. न वे अपने पति से भाग सकती हैं और न अब उन के पति उन से. घर के कामों में हाथ हर पति नहीं बंटाता, क्यों? क्योंकि भारतीय परिवारों में बचपन से एक ही बात सम झाई जाती रही है कि ये लड़कियों के काम हैं, लड़के घर के काम नहीं किया करते.

पति को हाथ हिलाने को कहनेभर से वह पत्नी पर चढ़ पड़ता है, खिन्नाए हुए पति का हाथ उठाना भी कई घरों में नई बात नहीं है. पत्नी हर समय अपने पति और सासससुर के आगेपीछे नहीं घूम सकती, लेकिन उस से उम्मीद यही लगाई जाती है कि वह ऐसा करे. उस की जबान दबी रहे और वह बस हां में हां मिलाए. किसी काम में औरत की न, उस के खिलाफ उठने वाली उंगलियों की गिनती बढ़ा देती है. जब पत्नी अपने पति या ससुराल वालों के खिलाफ कुछ बोलती है तो उसे बदले में बहुतकुछ सुनना पड़ता है. यह शहर या गांव की बात नहीं है, बल्कि परिवारों की है, उन की सोच की है और वे किस तरह घर की बेटीबहू से व्यवहार करते व व्यवहार की अपेक्षा करते हैं. यही कारण है कि हर क्षेत्र से ऐसे मामले सामने आते हैं. घरेलू हिंसा के कारण अलगअलग नजर आ सकते हैं परंतु असल में इस का कारण पितृसत्तात्मकता है. ‘स्त्री पुरुष के बराबर नहीं है’ की सोच है इस के पीछे. ‘थोड़ीबहुत मारपीट तो सामान्य है’ का राग अलापना इसी सोच की देन है. यह पितृसत्तात्मकता ही है जो आदमी के अहंकार को हवा देती है.

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हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश घरेलू हिंसा के मामलों में सब से आगे हैं जिस का सब से बड़ा कारण पितृसत्तात्मकता है, इस में कोई दोराय नहीं है. लौकडाउन के दौरान गायत्री के पति को औफिस के काम के चलते कभी भी गुस्सा आने लगता तो वह कभी खाने में कमी निकालता तो कभी ‘घर साफ नहीं है’ कह गायत्री को ताने देता. बच्चों के हमेशा घर में रहने से गायत्री के पति को और चिढ़ होती क्योंकि उसे गायत्री के साथ समय नहीं मिल पाता. वह कभी गायत्री पर चिल्लाता तो कभी बच्चों को मारतापीटता. उन के घर से हर समय चीखनेचिल्लाने की आवाजें आतीं लेकिन लोग सुन कर भी अनसुनी कर दिया करते. गायत्री अब भी शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती क्योंकि उसे लगता है कि एक न एक दिन कोई चमत्कार होगा और उस का पति सुधर जाएगा. यह केवल गायत्री की ही कहानी नहीं है, बल्कि जाने कितनी ही महिलाओं की है जो पति के हिंसक व्यवहार को हमेशा से केवल इसलिए सहती आई हैं क्योंकि उन्हें लगता है एक न एक दिन खुदबखुद उन का पति सुधार जाएगा और रोजरोज का लड़ाई झगड़ा खत्म होगा.

घरेलू हिंसा के खिलाफ कदम उठाना जरूरी वैश्विक परिपाटी पर देखें तो फ्रांस सरकार ने घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं को काउंसलिंग सैंटर्स खोलने व उन के लिए होटल में रहने की सुविधा देने का आश्वासन दिया है. वहीं, इटली में सरकार ने एक ऐप लौंच की है जिस के द्वारा लौकडाउन के चलते पीडि़ता बिना फोन मिलाए केवल उस ऐप के जरिए अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है. हालांकि, भारत में समस्या इस से कहीं ज्यादा है. भारत सरकार ने लौकडाउन के चलते इस ओर ध्यान नहीं दिया जिस के परिणाम सामने हैं. राज्य सरकारों, एनजीओ व महिला संघों द्वारा जरूरी कदम उठाने की कोशिश हो रही है. साइबराबाद पुलिस ने लौकडाउन के बाद से 500 से अधिक घरेलू हिंसा के मामले रजिस्टर किए हैं. पुलिस का कहना है कि अधिकतम मामलों में पतिपत्नी व परिवार की काउंसिलिंग कर वह सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रही है. विद्या बालन, अनुष्का शर्मा, विराट कोहली, फरहान अख्तर समेत कुछ बौलीवुड सितारों ने एक वीडियो जारी कर घरेलू हिंसा पर रोक लगाने की सलाह दी है. हालांकि, न्यूज चैनल कोरोना का कारण एक से दूसरे व्यक्ति पर थोपने से बाज आते तो शायद वे भी इस तरह की खबरोंसंदेशों को आमजन तक पहुंचा सकते थे, उन्हें चेता सकते थे. लौकडाउन लागू होने से पहले ही चेन्नई स्थित इंटरनैशनल फाउंडेशन ने सभी कौल्स लैंडलाइंस से फोन में ट्रांसफर कर लीं व व्हाट्सऐप सुविधा भी जारी की. तमिलनाडु में सुरक्षा अधिकारियों को एक जगह से दूसरी जगह जाने की इजाजत है जिस के चलते वे उन महिलाओं, जो जोखिमभरे हालात में हैं, को शैल्टर्स में ले जा रहे हैं.

कोरोना वायरस के दौरान शैल्टर में रहने का अर्थ है संक्रमण के बीच जाना. घरेलू हिंसा की पीडि़त महिला लौकडाउन के दौरान अपने मायके जाना चाहती है लेकिन जा नहीं सकती, ऐसे में शैल्टर होम में जाना कुएं से निकल खाई में गिरने जैसा होगा. क्यों नहीं घरेलू हिंसा के दोषी को शैल्टर होम भेजा जाए बजाय उस महिला के जो हिंसा का शिकार हुई है? आखिर वह क्यों अपने घर व बच्चों से दूर जाए? इन हालात में औरतों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद आगे आना होगा. एक बात जो हर औरत को सम झना बेहद जरूरी है, यह है कि मंदिर में बैठ पूजापाठ करने और यह दुआ करने से कि पति सुधर जाए और हिंसा छोड़ दे, का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि वह हिंसा करना या मारनापीटना छोड़ देगा. मंदिर के दरवाजे हाथ में चढ़ावा लिए लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं लेकिन वे किसी असहाय को सहारा नहीं देते. आप पंडित बुलवाएंगे और पंडित हवन कर आप को हिंसा से नजात दिलाएगा, यह सोचना मूर्खता के अलावा कुछ नहीं. पति को सुधारने और महिला को मारपीट से बचाने का काम पुलिस का है, लेकिन वह भी केवल बीचबचाव ही करेगी. औरतों को खुद में आत्मविश्वास पैदा करना होगा जो पूजापाठ नकारने से आएगा, उस की शरण में जाने से नहीं, एकदूसरे को आवाज उठाने के लिए प्रेरित करने से आएगा कीर्तनों में बैठ सहानुभूति देने से नहीं, हिंसा सहना बंद करने से आएगा खुद को हिंसक पति के आगे बारबार सौंपने से नहीं. लौकडाउन के चलते घरेलू हिंसा की पीडि़ता पुलिस को फोन करे. यदि आप की बेटी या सहेली आप को इस की जानकारी दे रही है तो बजाय उसे सहने की सलाह देने के, पुलिस से संपर्क करें. आप के महल्लेपड़ोस में कोई घरेलू हिंसा की शिकार महिला हो तो आप उस की मदद के लिए पुलिस को खबर दें. लेकिन, सब से ऊपर महिला को खुद के लिए आवाज उठाने की हिम्मत जुटानी होगी वरना हिंसा किसी न किसी रूप में हमेशा होती रहेगी.

मैं 20 वर्षीय युवती हूं, चेहरे व ऊपरी होंठ पर बाल हैं,वैक्स कराने के बाद दाग रहते हैं, इन्हें हटाने का उपाय बताएं?

सवाल
मैं 20 वर्षीय युवती हूं. चेहरे व ऊपरी होंठ पर बाल हैं. वैक्स कराने के बाद दाग रहते हैं. इन्हें हटाने का उपाय बताएं?

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जवाब

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अपरलिप्स व चेहरे के बालों व दागों को हटाने के लिए हलदी का गाढ़ा पेस्ट बनाएं व उस में नीबू का रस मिला कर प्रभावित स्थान पर लगाएं. सूखने दें जब पेस्ट सूख जाए तो पानी से धो लें. ऐसा 4-5 सप्ताह लगातार करें. धीरेधीरे दाग व बाल हलके हो जाएंगे.

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