‘कसौटी जिंदगी 2’ के आखिरी एपिसोड की शूटिंग खत्म हो चुकी है. ऐसे में कमोनिका का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस आमना शारीफ का सीरियल के आखिरी एपिसोड़ में डेथ हो जाता है. आमना शारीफ ने हाल ही में एक डांस करते हुए वीडियो शेयर किया है जिसमें वह सलमान खान की फिल्म ‘टाइगर जिंदा’ है के गाने पर डांस करती नजर आ रही हैं. ऐसे में आमना शरीफ ने डांस करते हुए वीडियो को देखकर फैंस कई तरह के कयास लगा रहे हैं .
दरअसल, इस वीडियो पर आमना शरीफ की बेस्ट फ्रेंड मॉनी राय ने कमेंट में लिखा है मेरी प्यारी. आमना शरीफ के इस कमेंट के बाद से फैंस लगातार कयास लगा रहे हैं कि आमना शरीफ जल्द ही बिग बॉस 14 में एंट्री करने वाली हैं.
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हालांकि इस विषय पर आमना शरीफ ने खुलकर कुछ कहा नहीं है वह अपनी डांस पर भी फैंस के कमेंट आने के बाद भी कोई इस तरह का रिप्लाई नहीं कि हैं. आमना शरीफ को कमोनिका के किरदार में फैंस बहुत ज्यादा पसंद करते हैं. उन्हें आमना शरीफ का नया लुक पसंद आ रहा था. वैसे तो आमना कई सारे सीरियल्स में काम कर चुकी हैं जहां उनका रोल पॉजिटीव रहता था लेकिन आमना का कोमोनिका वाला किरदार कुछ अलग था. जिसे देखकर फैंस भी पहले तो परेशान थे लेकिन धीरे-धीरे उन्हें पसंद करने लगे थें.
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अब सभी को इंतजार इस बात की है आमना कहा एंट्री लेने वाली है. कैसी होगी उनकी नई शुरुआत .
बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त हाल ही में अपनी फैमली से मिलने दुबई पहुंच गए हैं. ऐसे में संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर फोटो शेयर किया है. मान्यता ने फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि मैं भगवान को शुक्रिया अदा करना चाहती हूं इतने सुंदर परिवार के लिए , बस ऐसे ही हम एक-दूसरे के साथ रहे यही मेरी प्रर्थना है.
मान्यता के इस फोटो के बाद फैंस लगातार कमेंट कर रहे हैं तो वहीं कुछ फैंस ऐसे भी हैं जो संजय दत्त की सलामती की दुआ मांग रहे हैं.
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बता दें कि शेयर किए हुए फोटो में संजय दत्त का लुक थोड़ा अलग लग रहा है. संजय दत्त काफी समय से अपने बच्चों से मिले नहीं थें. उन्हें बहुत ज्यादा मिस कर रहे थें इसलिए वह कुछ वक्त के लिए दुबई आए हैं अपने बच्चों से मिलने के लिए.
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गौरतलब है कि संजय दत्त इन दिनों लॉग्स कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहे हैं लेकिन इसका असर वह अपने काम पर बिल्कुल भी नहीं पड़ने दे रहे हैं. संजय दत्त दुबई से लौटने के बाद अपनी अपकमिंग फिल्म की शूटिंग करेंगे फिर वह अपने इलाज के लिए रवाना होंगे.
संजय दत्त की फिलहाल अपने फैमली के साथ क्वालिटी टाइम बीता रहे हैं. संजय दत्त फैमली फोटो में भी बहुत ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं.
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बता दें कि कुछ वक्त पहले ही इस बात का खुलासा हुआ था कि संजय दत्त कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जुझ रहे हैं. वहीं उनका पूरा परिवार और उनके फैंस जल्द उनके ठीक होने के लिए कामना कर रहे हैं. संजय दत्त की बहन प्रिया दत्त कुछ वक्त तक संजय दत्त के साथ अस्पताल में थी जहां उनका ट्रीटमेंट चल रहा था.
‘अरे हमारी ‘हिडिम्बा’ के आगे तो उसकी बोलती बंद हो जाती है. आगे पीछे दुम हिलने लगता है.लगता ही नहीं कि मेरा बॉस है. ‘हिडिम्बा’ गरजी नहीं कि जनाब की सिट्टी-पिट्टी गुम…. हा, हा, हा…..’ मनोज पार्टी में अपने दोस्तों के आगे पत्नी की तारीफ कर रहा था या उसकी भारी-भरकम काया का मज़ाक उड़ा रहा था, ये बात रागिनी को समझ में नहीं आयी. वो उसकी बात पर ना तो हंस पायी और ना नाराज़ हो पायी. हां, अपने लिए ‘हिडिम्बा’ शब्द सुनकर उसके दिल को बहुत ठेस पहुंची और पार्टी में आने का सारा मज़ा ख़त्म हो गया. खाना भी उसने बेमन से खाया और घर आकर वह बाथरूम में बंद होकर काफी देर तक सुबकती रही.
मनोज अक्सर उसको इसी तरीके के उपनामों से पुकारता है. बच्चों के सामने भी कभी ‘दारासिंह की अम्मा’ कभी ‘महिषासुरमर्दनी’ कभी ‘हिप्पोपोटैमस’ कह कर आवाज़ लगता है. घर के अन्य सदस्य या पडोसी सुन रहे हैं, इसकी उसे ज़रा भी परवाह नहीं होती है. मगर आज तो पार्टी में उसने हद ही कर दी ‘हिडिम्बा’ की संज्ञा दे कर. क्या सोचते होंगें उसके दोस्त रागिनी के बारे में. पार्टी से पहले ब्यूटीपार्लर जा कर सलीके से कराया गया उसका मेकअप, नया हेयर स्टाइल और उसकी कांजीवरम की खूबसूरत नयी साड़ी पर से हट कर लोगों का ध्यान उसकी लम्बी चौड़ी काया पर चला गया. इसी लम्बाई पर रीझ कर कभी मनोज ने उससे शादी की थी.
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बच्चे होने के बाद उसका शरीर काफी भर गया तो लम्बाई के कारण वो ज़्यादा भारी-भरकम नज़र आने लगी. शादी के बाद मनोज कैसे रागिनी को प्यार से ‘रागी-रागी’ कह कर बुलाता था. अब तो ये नाम सुने जैसे अरसा बीत गया. कोई पिछले जन्म का नाम लगता है. सच पूछो तो अब मनोज उसके अपने नाम ‘रागिनी’ से भी उसे नहीं पुकारता. बस उसकी काया को इंगित करते किसी उपनाम से ही बुलाता है. घर में रागिनी ने उसकी इस हरकत का बुरा नहीं माना, हंस कर उसके मज़ाक को लिया मगर आज पार्टी में जो हुआ उससे रागिनी बहुत आहत हुई.
काजल का पति भी सबके सामने उसको ‘कोयला’ कह कर बुलाता है. हालांकि उसकी वाणी में मिठास होती है मगर ये मिठास काजल को करेले की तरह कडुवी जान पड़ती है. काजल का रंग सांवला है. माता पिता ने इसी रंग के चलते शायद उसका नाम काजल रखा होगा. हमेशा पढ़ने में अव्वल रही काजल जब सरकारी अधिकारी बनी तो उसके माँ पिता को उस पर कितना नाज़ हुआ, तारीफों से उसकी झोली हमेशा भरी रही, लेकिन शादी के बाद ससुराल में जब उसके पति अधीर ने उसका नाम ‘काजल’ को बिगाड़ कर ‘कोयला’ कर दिया तब उसका सारा ध्यान अपने काम से हट कर अपने शरीर के रंग पर केंद्रित हो गया. अब काजल का बहुत सारा वक़्त और पैसा ब्यूटीपार्लर्स में बर्बाद होता है. इतवार की पूरी छुट्टी उबटन और मसाज में बर्बाद हो जाती है. क्या जतन करे कि रंग थोड़ा साफ़ हो जाए इसी चिंता में वह घुली जाती है. हालांकि अधीर मज़ाक में उसको ‘कोयला’ कह कर बुलाता है लेकिन जब ये मजाक वो बाहरवालों के सामने करता है तो काजल भीतर से कहीं टूट जाती है. कभी खुद को कोसती है कभी भगवान् को.
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उधर अनुराधा का पति हमेशा अपने सालों का यानी अनुराधा के दोनों भाइयों का मज़ाक उड़ाता है. ‘अरे, हमारे साले साहब की ना पूछो भाई, मोहल्ले में उनकी दादागिरी की धाक है…. सूरमा पहलवान हैं दोनों …….’
अनुराधा के दोनों भाई उससे छोटे हैं. वो अपने भाइयों से बहुत प्यार करती है. बड़ी बहन नहीं बल्कि माँ के सामान लाड-प्यार करती है उनसे, मगर उसका पति हमेशा उनका मज़ाक उड़ाता है. ये बात अनुराधा को नागवार गुज़रती है. अपने पति के लिए जो प्यार और इज़्ज़त शादी के वक़्त उसके मन में थी, अब नहीं है. अब तो वह ज़रा-ज़रा से बात पर उससे लड़ बैठती है. इसकी वजह है पति द्वारा अनजाने ने उसके भाइयों को ज़लील किया जाना.
साधना की शिकायत है कि उसका पति हर वक़्त उसके शरीर का मजाक उड़ाता है और हर समय उसको मोटी-मोटी कह कर चिढ़ाता है. साधना कहती है, ‘मेरा पति हमेशा मुझे मोटी बुलाता रहता है. शुरुआत में तो मैंने इसे इग्नोर किया, लेकिन अब इसने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना शुरू कर दिया है. पति के इस तरह के कॉमेंट्स लगातार सुनाने के कारण मेरे मन में उसके लिए नकारात्मक भाव जन्म लेने लगे हैं. मैं वजन कम करने की काफी कोशिश भी कर रही हूं, लेकिन इसमें सफल नहीं हो पा रही हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?’
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साधना अपने वज़न को लेकर चिड़चिड़ी और अवसादग्रस्त रहने लगी है.
ज़्यादातर पति जब अपनी पत्नियों किसी अन्य नामों से पुकारते हैं तो इसके पीछे उनका दिल दुखाने की कोई मंशा नहीं होती है, बल्कि ऐसा वो सिर्फ मज़ाक में करते हैं. लेकिन धीरे-धीरे यह मज़ाक उनकी आदत बन जाता है और वो पत्नियों को फिर उलटे-सीधे नामों से पुकारने लगते हैं या उनके घरवालों के लिए गलत शब्दों का उच्चारण कर देते हैं. घर की चारदीवारी में तो पत्नियां इन बातों का बुरा नहीं मानतीं और हंस कर झेल लेती हैं लेकिन जब सार्वजनिक रूप से उनके साथ ये नाम चिपका दिए जाते हैं तो उनको बहुत पीड़ा पहुँचती है और उनकी अन्य तमाम खूबियां इन उपनामों के आगे फीकी पड़ जाती हैं.
आप अपने साथी को लेकर क्या कॉमेंट करते हैं, इसे लेकर बहुत सावधान रहना चाहिए. हो सकता है कि आपके लिए वो नॉर्मल या फिर मजाक में कही गई बात हो, लेकिन पार्टनर के लिए यह आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने जैसा होता है. पति और पत्नी एक-दूसरे के लिए मजबूत सपोर्ट सिस्टम होते हैं, लेकिन वहीं शब्दों के चुनाव में होने वाली लापरवाही उनके रिश्ते में कड़वाहट घोल सकती है. खासतौर से अपने साथी के शरीर को लेकर किए जाने वाले कॉमेंट्स या उसका मजाक उड़ाया जाना, उसके आत्मसम्मान को ठेंस पहुंचाता है. जाहिर सी बात है कि इस तरह की चीज को कोई भी बर्दाश्त नहीं ही कर सकेगा और आज नहीं तो कल ये रिश्ते में बड़ी दरार पैदा कर देगा. लगातार आलोचना या मज़ाक उड़ाए जाने से ऐसा लगने लगता है कि हमें कोई प्यार नहीं करता है. हमारा काम किसी को नहीं दिखता बस शरीर ही दिखता है.
काजल ने तो अपने गहरे रंग के चलते अब पति के साथ कहीं बाहर जाना ही बंद कर दिया है. यहाँ तक कि पारिवारिक शादियों वगैरा में भी वह जाने से कतराने लगी है. सिर्फ इस डर से कि कोई दूसरा उसके रंग रूप पर ध्यान दे ना दे, मगर पति सबके सामने उसको ‘कोयला’ नाम से पुकार कर सबका ध्यान उसकी ओर खींच कर रख देंगे.
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पतियों को सोचना चाहिए कि अपनी पत्नी की किसी शारीरिक खामी को हर वक़्त उजागर करते रहने से वो खामी दूर तो नहीं हो जाएगी, उलटा पत्नी के आहत होने से उनकी शादीशुदा ज़िंदगी ही गहरे संकट में फंस जाएगी. किसी का हर वक़्त मज़ाक उड़ाना ठीक भी नहीं है. इससे सामने वाले के मन में ना तो आपके प्रति प्यार रहेगा और ना इज़्ज़त. गृहस्थी की गाड़ी ठीक से चलती रहे इसके लिए ये दो बातें होनी बहुत ज़रूरी हैं मगर पति अपनी बेवकूफी से अपने लिए प्यार और इज़्ज़त दोनों गवां देते हैं. ऐसे पतियों की पत्नियां हर वक़्त इस खौफ में रहती हैं कि पता नहीं कब और किसके सामने उनका मज़ाक बन जाये. इस खौफ के चलते ही वह अपने पतियों से कटी-कटी रहने लगती हैं, उनके साथ बाहर जाने से बचती हैं, उनसे अपनी भावनाएं शेयर नहीं करतीं और धीरे-धीरे ये बातें दोनों के बीच अलगाव की दीवार बन कर खड़ी हो जाती हैं.
इस सम्बन्ध में पत्नियों को भी थोड़ा मुखर होने की ज़रूरत है. शुरू शुरू में पत्नियां ऐसी बातों का विरोध दर्ज नहीं करतीं हैं. वो पति के मज़ाक को मज़ाक के तौर पर ही लेती हैं. हंस कर टाल देती हैं. लेकिन बाद में जब यही मज़ाक उनको चुभने लगता है तब भी वे सिर्फ इग्नोर करती हैं बजाये इसके कि पति को ऐसा करने से टोकें. यदि शुरू में ही विरोध दर्ज करा दिया जाए तो पति सावधान हो जाएंगे. आगे ऐसी हरकत करने से पहले विचार करेंगे. उनको भी मज़ाक से ज़्यादा प्यारी घर की शान्ति है. ज़्यादातर पति अनजाने में ही पत्नियों का मज़ाक उड़ा देते हैं. उनको इस बात का अहसास भी नहीं होता कि पत्नी के दिल पर चुभन कितनी तीखी पड़ेगी. लेकिन पत्नियां अगर चुप रहने की बजाये खुल कर बता दें कि पति की कौन सी बात उनको अच्छी लगती है और कौन सी बुरी, तो अपनी गृहस्थी में प्यार और शान्ति बनाये रखने के लिए पति कुछ भी बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलेंगे. अपने शरीर, रंग, लम्बाई आदि को लेकर किये गए पहले कमेंट पर ही महिलाओं का अपनी राय जाहिर कर देना बेहतर है. आगे आपके बीच दूरियां ना बढ़ें किसके लिए महिलायें कुछ बातों को गाँठ बाँध लें.
अपनी फीलिंग्स जाहिर करें
अपने पति को बताएं कि उनके कहे शब्द और किए गए एक्शन कैसे आपको प्रभावित कर रहे हैं और उससे आपको कितना बुरा महसूस हो रहा है. एक बार वह चीजों को आपके नजरिए से देखेंगे, तो शायद वह ज्यादा सपोर्टिव पार्टनर बनने की कोशिश करें. यह भी हो सकता है कि वह आपका नजरिया बदलते हुए आपको इन चीजों को ज्यादा सकारात्मक तरीके से देखने में मदद करें, तब आपको लगे कि शायद आपके पति आपकी मदद की कोशिश कर रहे हैं.
खुद पर विश्वास न खोएं
आपसे जो हो सकता है, आप वो सबकुछ ट्राई कर रही हैं, लेकिन कुछ चीजें हम सबके बस के बाहर की होती हैं. इससे आपको हार मानने की जरूरत नहीं है. आपको खुद से प्यार करना, अपने आपको अप्रिशिएट करना चाहिए. इसके लिए रोज सुबह खुद को पॉजिटिव बातों के बारे में ध्यान दिलाएं. आप जब खुद से प्यार करना सीख जाएंगी, तो यह आपको सही मायने में खुशहाल जिंदगी जीने में मदद करेगा.
अपनी अच्छाइयों की तरफ आकर्षित करें
आपमें बहुत सारी अच्छाइयां हैं. उनकी तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करें. इससे ना सिर्फ आप पॉजिटिव फील करेंगी बल्कि लोग भी आपकी शारीरिक कमी से ध्यान हटा कर आपके गुणों की तारीफ़ करेंगे. आप अच्छा खाना बनाती हैं, गार्डनिंग, पेंटिंग, सिलाई कढ़ाई करती हैं तो शरीर को लेकर कुंठा पालने की जगह इन चीज़ों को सामने लाइए और प्रशंसा पाइये.
फलों में अंजीर एक लोकप्रिय फल है जो ताजा और सूखा ही खाया जाता है. इसे पका कर और मुरब्बा बना कर भी इस्तेमाल किया जाता है. पेड़ पर उगने वाला यह फल ज्यादातर उन जगहों पर पाया जाता है जहां की आबोहवा शीतोष्ण और शुष्क होती है.
भारत में यह फल कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में पाया जाता है.
दुनिया की अगर बात करें तो यह प्रमुखत: दक्षिणी और पश्चिमी अमेरिका और उत्तरी अफ्रीका के देशों में उगाया जाता है.
अंजीर के लिए गरम मौसम और सही सूरज की रोशनी चाहिए होती है. अंजीर के पेड़ बड़े और घने होते हैं. इन्हें फलनेफूलने के लिए अच्छीखासी जगह चाहिए होती है.
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उगाएं उन्नत किस्म
बाजार में तमाम तरह की अंजीर मौजूद हैं, पर इन में से कुछेक ही अपनी खूबी के लिए पहचानी जाती हैं. भारत में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख किस्में इंडियन रौक, एलींफैंट ईयर, कृष्णा, वींपिंग फिग, सफेद फिग वगैरह हैं. अगर दुनिया की बात करें तो ब्राउन टर्की, ब्रंसविक और ओसबौर्न अंजीर की कुछ प्रमुख किस्में हैं.
अंजीर अलगअलग रंग व शेड में मिलते हैं. इन का रंग बैगनी, हरा या फिर भूरा भी हो सकता है. हर तरह की अंजीर साल के अलगअलग समय पर मिलती है.
आप अपने निकटतम नर्सरी में जाएं और पूरी जानकारी हासिल करें या फिर किसी माहिर कृषि वैज्ञानिक से सलाह लें कि आप के इलाके की आबोहवा के मुताबिक कौन सी किस्म अच्छी रहेगी.
अंजीर के लिए गरम व ट्रौपिकल मौसम सब से बेहतर होता है. रेगिस्तानी आबोहवा अंजीर की अच्छी पैदावार के लिए अनुकूल मानी जाती है. इसलिए आप पाएंगे कि अंजीर की प्रमुख किस्में ज्यादातर ऐसे ही इलाकों में उगाई जाती हैं. कुछ ही किस्में ऐसी हैं जो 40 डिगरी फारेनहाइट यानी 4 डिगरी सैल्सियस से कम तापमान पर भी उगाई जाती हैं. पेड़ लगाने का सही समय आमतौर पर अंजीर वसंत मौसम के मध्य में बोई जानी चाहिए. अंजीर का एक नया पेड़ तकरीबन 2 से 3 साल में फल देना शुरू कर देता है.
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अगर मौसम की बात करें तो ये गरमियों के अंत में या फिर पतझड़ की शुरुआत में इस का पेड़ फल देता है.
इस की छंटाई भी गरमियों में कर देनी चाहिए जो कि बहुत सारे फलों के लिए असामान्य समय है.
खास देखभाल की जरूरत
अंजीर गरम तापमान के लिए अनुकूल होती है और शुरू में इस की जड़ों की खास देखभाल की जरूरत होती है इसलिए इन्हें शुरुआत में एक गमले में उगाना आसान होता है. इस तरह से इन्हें आसानी से गरम जगह पर देखा जा सकता है और इस की जड़ें भी सही रहती हैं.
हालांकि अगर माहौल अनुकूल हो तो आप इसे घर के बाहर भी उगा सकते हैं. बेहतर होगा कि आप दक्षिण की ओर ढलान वाली किसी जगह को चुनें जहां पानी का सही बंदोबस्त हो.
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ऐसे करें मिट्टी तैयार
हालांकि अंजीर के पेड़ के लिए किसी खास मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. थोड़ा सा बदलाव कर के इन्हें किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है परंतु रेतीली मिट्टी जिस का पीएच मान 7 या उस से थोड़ा कम हो (ज्यादा क्षारीय मिट्टी) बेहतर होगी.
इस में 4-8-12 या 10-20-25 के अनुपात में उर्वरक मिलाएं. खेत की तैयारी अंजीर का पौधा लगाने के लिए एक गड्ढा खोदें. गड्ढे की चौड़ाई और गहराई का ध्यान रखें जिस से कि इस की जड़ें सही तरह से इस में पनप सकें. पेड़ के तने के आधार को जमीन में दबाए रखने के लिए गड्ढे की गहराई 1-2 इंच यानी 2.5-5.1 सैंटीमीटर सही हो सकती है.
पौधे को उगाना : गमले में से पौधे को निकाल कर साइड में रखें. खेती में इस्तेमाल आने वाली कैंची से बाहरी तरफ स्थित अतिरिक्त जड़ों की काटछांट करें. ये अतिरिक्त जड़ें पौधे की बढ़वार को रोकती हैं.
अब इस पौधे को सावधानी से खोदे गए गड्ढे में रखें और जड़ों को ध्यानपूर्वक अच्छी तरह नीचे की तरफ दबा दें. साथ ही, अब इस गड्ढे को मिट्टी से भर दें.
ध्यान रहे कि आप गड्ढे को सभी तरफ से मिट्टी से भर दें.
पौधे को पानी देना : अपने पौधे को सही तरह से लगाने के लिए इस में कुछ दिन तक ध्यानपूर्वक पानी दें.
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हालांकि अंजीर के पौधे को बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है और पौधा लगाने के बाद सप्ताह में सीमित मात्रा में 1 या 2 बार पानी देना काफी होगा.
मिट्टी को बनाए रखना : अगर आप ने अंजीर का पौधा घर के बाहर लगाया है तो आप इस का विशेष ध्यान रखें. मिट्टी का ध्यान रखें. यदि खरपतवार उग रहे हों तो इसे उखाड़ दें. हर 4-5 सप्ताह पर इस में उर्वरक का छिड़काव करें.
अच्छा होगा कि मिट्टी को बनाए रखने के लिए आप पौधे के पास 4 से 6 इंच ऊंची गीली घास लगाएं जिस से आप की मिट्टी समतल बनी रहे. गरमियों में ये घास नमी को बनाए रखेगी और सर्दियों में ये आप के पौधे को ठंड व पाले से बचाएगी.
अंजीर की छंटाई : दूसरे साल में गरमियों में अपने पौधे की छंटाई करें क्योंकि पौधा लगाने के पहले साल में आप को इस की जरूरत नहीं पड़ेगी. शाखाओं की 4-5 मजबूत टहनियों तक छंटाई करें जिस से कि इन पर सही तरह से फूल लगें.
जब आप का पेड़ पूरी तरह से फलित हो जाए तो इस की हर वसंत मौसम में छंटाई करें. ऐसा करने से इस की बढ़वार तेजी से होगी.
फलों की तुड़ाई : पेड़ पर लगे अंजीर जब पक जाएं तो इन्हें तोड़ें. ध्यान रखें कि ये पेड़ से तोड़ने के बाद नहीं पकेंगे (जैसे आड़ू). एक पका हुआ अंजीर थोड़ा नरम और ऊपर गरदन की तरफ अंदर की ओर मुड़ा होगा क्योंकि अंजीर अलगअलग रंग के होते हैं. इसलिए आप के पेड़ की अंजीर का रंग निर्भर करता है कि आप ने कौन सी किस्म की अंजीर उगाया है. पेड़ से ध्यानपूर्वक अंजीर तोड़ें और इन को मसलने वगैरह से बचाएं.
फल तोड़ते समय दस्ताने जरूर पहनें, जिस से पेड़ से निकलने वाला एक तरह का रस आप के हाथों पर न लगे. यह रस आप के शरीर में खुजली पैदा कर सकता है.
मर्चेंट नेवी में सेफ्टी औफिसर के पद का 3 महीनों का कौंट्रैक्ट खत्म कर के मैं हिंदुस्तान लौटने वाला था. साइन औफ के समय जरमन स्टाफ कैप्टन ने कंधे पर आत्मीयता से हाथ रख दिया. पिछले 15 सालों से हम अलगअलग शिपिंग कंपनियों में कई बार साथ काम कर चुके थे.
‘‘आई वौंट अ फेवर फ्रौम यू, जैंटलमैन,’’ मिस्टर जेम्स बोले.
‘‘ओ श्योर, इट्स माई प्लेजर.’’
‘‘माई डौटर वौंट्स टू विजिट इंडिया. बट ड्यू टू लास्ट बिटर एक्सपीरियंस, आई डौंट वौंट टू सेंड हर अलोन.’’
‘‘डौंट वरी सर, यू सेंड हर. मी ऐंड माई औल फैमिली मैंबर्स विल टेक केयर औफ हर.’’ मैं ने उन के कड़वे अनुभव को कुरेदने की कोशिश नहीं की.
‘‘थैंक्स. आई बिलीव औन यू, बिकौज आई नो यू सिंस लौंग बैक.’’
हिंदुस्तान पहुंचने के एक हफ्ते बाद मिस्टर जेम्स की बेटी का मेल आ गया.
देहरादून एयरपोर्ट से रिसीव कर के मैं बाबरा को घर ले आया. अम्मी और मेरी छोटी बहन अर्शी ने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया.
20 वर्षीया, फोटोजैनिक चेहरे वाली बाबरा की आंखें नीली और बाल भूरे थे. जरमन मर्द और औरतें अपनी फिगर के लिए बहुत सचेत रहते हैं. बाबरा दुबलीपतली लेकिन पूरी तरह स्वस्थ थी. वह जरमन भाषा के अलावा अंगरेजी और फ्रैंच बोल सकती थी.
अम्मी को अंगरेजी नहीं आती थी, लेकिन अर्शी ने अंगरेजी में ही घर, महल्ले, शहर के आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में उसे पूरी जानकारी दे दी थी. बाबरा के रहने, खाने के जरमन तरीके की पूरी व्यवस्था की थी मैं ने.
मेरा मकान शहर की एक पौश कालोनी में था जिस में ड्यूप्लैक्स और फ्लैट्स मिला कर लगभग 50 घर थे. वाचमैन, जमादार, माली की बाकायदा व्यवस्था थी. संपन्न लोग ही हमारी कालोनी में मकान खरीद सकते थे. कालोनी में ज्यादातर उच्च पद वाले सरकारी अधिकारी और बड़े बिजनैस वाले किराएदार थे.
रात का खाना खाने के बाद मैं बाबरा के साथ कालोनी की ही सड़क पर टहलते हुए उसे भारत के ऐतिहासिक नगरों की जानकारी देने लगा. उस वक्त कालोनी के कुछ लोग भी इवनिंग वाक कर रहे थे. हम लोगों को क्रौस कर के वे आगे तो निकल जाते, लेकिन बारबार पलट कर हमें देखने लगते. उन में से एक 45 साल का व्यक्ति, जो शायद किसी सरकारी महकमे में क्लासवन औफिसर था, हमारे साथसाथ चलते हुए हमारी बातें सुनने का प्रयास करने लगा. थोड़ी दूर चल कर फिर तेजी से चहलकदमी करता अपने ग्रुप से जा मिला.
दूसरे दिन सुबह ही कालोनी की दबंग मिसेज वशिष्ठ का फोन मेरी मम्मी के मोबाइल पर आया. औपचारिक बातों में उन्होंने उलाहना दी, ‘‘आजकल आप फौरेनर्स की मेहमाननवाजी में व्यस्त हैं, इसीलिए कल मिसेज मल्होत्रा के यहां किटी पार्टी में दिखाई नहीं दीं.’’
‘‘जी, जरमनी से अनीस के दोस्त की बेटी इंडिया घूमने आई है. बस, उसी के साथ व्यस्त हो गई हूं.’’
‘‘दोस्त की बेटी, या खुद अनीस की दोस्त? बेटे की उम्र हो गई है शादी की. देशविदेश घूमता रहता है. अगर यह लड़की तैयार है तो कर दीजिए चट मंगनी पट ब्याह.’’ नौनस्टौप बोलने के बाद वे खुद ही हो…हो…कर के हंसने लगीं.
‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मम्मी इस अप्रत्याशित सवाल पर बौखला सी गईं.
‘‘है कैसे नहीं, अंगरेज लड़की के साथ घूमनाफिरना, कुछ तो मतलब रखता है. अरे, अपनी कालोनी के सेन साहब के बेटे के बारे में तो सुना ही होगा न आप ने?’’
‘‘नहींनहीं, मैं ने कुछ नहीं सुना. मुझे वक्त कहां मिलता है जो कालोनी के घरों के बारे में जानकारियां रख सकूं. किसी के निजी मामलों में दखल देने का मेरा मिजाज भी नहीं है.’’ मम्मी की आवाज में हलकी तल्खी महसूस की मैं ने.
‘‘अरे, तो हमें कौन सी पड़ी है किसी के घर में झांकने की? अब अगर सामने ही कुछ हो रहा है तो आंखें और कान तो बंद नहीं किए जा सकते न. हुआ यों था कि सेन साहब का बेटा पढ़ने के लिए अमेरिका गया था. वापसी पर वह विदेशी गिफ्ट्स के साथ एक अंगरेज लड़की भी ले आया. ये विदेशी लड़कियां हैंडसम लड़कों और उन के बैंकबैलेंस पर ही अपना ईमान खराब करती हैं. न धर्म देखती हैं न जाति. बस, लड़का मालदार हो तो चिपक जाती हैं जोंक सी. जब तक खून से पूरा पेट नहीं भर लेती हैं तब तक नहीं छोड़ती हैं ये.
‘‘सेन भाभी ने बड़ी धूमधाम से उस के साथ बेटे की मंगनी कर दी. कालोनी में, रिश्तेदारी में उन का तो मान बढ़ाती थी अंगरेजन. सगाई के बाद सेन साहब का बेटा स्टूडैंट वीजा पर दोबारा अमेरिका गया. लेकिन क्या बताएं भाभीजी, मुआ 6 महीने में ही लौट आया.’’
‘‘सेन भाभी रोरो कर बतला रही थीं, ‘अंगरेज लड़की के परिवार वाले तकरीबन रोज ही उस पर क्रिश्चियन धर्म अपना लेने के लिए दबाव डालने लगे.’ खालिस पंजाबी परिवार का बेटा भला कैसे ईसाई हो जाता. बेचारा बैरंग लौट आया. धोबी का कुत्ता बन गया- न घर का रहा न घाट का.
‘‘अब वह रोज शराब के प्यालों में अंगरेजन को भुलाने की कोशिश में बोतल पर बोतल खाली कर देता है. सेन साहब तो सदमे से आधे रह गए. बुढ़ापे में उन्हें जवान बेटे का खर्चा उठाना पड़ रहा है. इसीलिए कहती हूं, आप भी जरा आंखें और कान खुले रखना.’’ पूरी कालोनी का पुराण कंठस्थ कर के दूसरी महिलाओं को सुनाना उन के अजीब से असामाजिक व्यवहार में शामिल हो गया था.
दूसरे दिन मोटरसाइकिल पर सवार होने के लिए बाबरा मेरे साथ निकल ही रही थी कि आसपास के घरों की खिड़कियां खुलनेबंद होने लगीं. उस ने मोटरसाइकिल के दोनों तरफ पैर डाल दिए थे, उस की छोटी स्कर्ट थोड़ी और ऊंची हो गई थी.
दोपहर को वह सनबाथ लेने के लिए बिकिनी पहन कर जैसे ही छत की आरामकुरसी पर बैठी, पड़ोसियों की हमेशा सूनी पड़ी छतों पर कपड़े सुखाने और सफाई करने के बहाने आने वालों की संख्या बढ़ने लगी.
कहां फिल्मों और टीवी स्क्रीन पर दिखलाया जाने वाला गौर वर्ण का अर्धनग्न नारी शरीर और कहां साक्षात अंगरेज लड़की का आधा नंगा संगमरमरी बदन, जिस की ताब में पड़ोसियों की आंखें सिंकने लगीं. मर्दों के मुंह से तो लार टपकतेटपकते बची और खुद महिलाएं, लड़कियां नारी स्वतंत्रता आंदोलन की प्रचारक तो बन गईं लेकिन जरमन लड़की की आजादी आपत्तिजनक साबित करने लगीं. वस्तुस्थिति तो यह थी कि वे भीतर ही भीतर जरमन लड़की से ईर्ष्या कर रही थीं.
मर्चेंट नेवी जौइन करने से पहले मैं भी विदेशियों को कम कपड़ों में धूप सेंकने के तौरतरीकों को आपत्तिजनक और बेशर्मी का शगल मानता था लेकिन यूरोप महाद्वीप के बाशिंदे वहां की हाड़ कंपा देने वाली सर्दी और माइनस जीरो डिगरी से भी कम तापमान में रह कर काम करते हुए धूप की जरूरत शिद्दत से महसूस करने लगते हैं. पूरे 10 महीनों की भीषण सर्दी में रहते हुए उन के शरीर को विटामिन डी की काफी जरूरत होती है. गोरी चमड़ी को त्वचा रोग से बचाने के लिए पूरे शरीर को सूर्य की किरणों से नहलाना, विलासिता या शरीर प्रदर्शन का शौक नहीं, बल्कि शरीर की जबरदस्त मांग के कारण यह बेहद जरूरी होता है.
‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ मम्मी ने जवाब दिया.
‘‘ये लो, आप की मेहमान है और आप ने पूछा ही नहीं. कोई जवान बेटे के घर में किसी की जवान बेटी को ऐसे कैसे रख सकता है? परदेदारी भी कोई चीज है इसलाम में,’’ मिसेज सिद्दीकी की कुंठा को जबान मिल गई.
‘‘नहीं, किसी के पर्सनल मामले में सवाल पूछना तहजीब के खिलाफ है. जहां तक परदेदारी की बात है, तो बदलते जमाने के साथ अपनी सोच को भी खुला रखना चाहिए. इसलाम में गैरों से परदे का हुक्म दिया गया है, अपनों से नहीं. बाबरा तो अर्शी की तरह ही है अनीस के लिए.’’ मम्मी का टका सा जवाब सुन कर मिसेज सिद्दीकी बुरा सा मुंह बना कर बाबरा की नाप लेने लगीं.
2 दिनों बाद उन का फोन आया, ‘‘कपड़े सिल गए हैं. आप आ कर फिटिंग देख लीजिए.’’
मम्मी बाबरा को ले कर उन के घर पहुंचीं तो बाबरा ने मिसेज सिद्दीकी के सामने ही टीशर्ट उतार कर कुरता पहन लिया. मिसेज सिद्दीकी शर्म से गड़ गईं, ‘‘हाय रे, यह तो बड़ी बेशर्म और बेबाक है.’’ इतने दिनों में बाबरा हिंदुस्तानी हावभाव समझने लगी थी.
‘‘आप भी तो औरत हैं, आप से कैसी शर्म?’’ बाबरा हंस कर अंगरेजी में बोली.
‘‘फिर भी लाजशर्म तो औरत का गहना है, यों खुलेआम कपड़े उतारना, तोबातोबा. ऐसे खुलेपन पर ही तो हिंदुस्तानी मर्द मरमर जाते हैं.’’
मैं जानता था, मिसेज सिद्दीकी की दोनों बेटियां घर में सलवारकुरता पहन, हिजाब कर के बाहर निकलती थीं, लेकिन कालेज के बाथरूम में टाइट टीशर्ट और टाइट जींस पहन लेतीं और बौयफ्रैंड के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ घंटों किसी रेस्तरा में बतियातीं या पार्क में उन के कंधे पर सिर रख कर बैठी रहतीं.
बाबरा के हमारे घर आने की खबर जंगल की आग की तरह कालोनी में फैलने लगी. तभी नीलू भाई, जो एक करोड़पति बाप की बिगड़ी संतान हैं, का फोन मेरे मोबाइल पर आ गया. मैं बाबरा और अर्शी को ले कर आगरा जाने की तैयारी कर रहा था.
‘‘यार बड़े बेवफा हो, शिप से लौट आए हो, इतने दिन हो गए लेकिन कोई खबर तक नहीं की. अच्छा चलो, छोड़ो, शिकवाशिकायत. मैं अभी हाजिर होता हूं. खालाजान से कहना तुलसीअदरक वाली उन के हाथ की चाय पीने की ख्वाहिश हो रही है.’’ मैं लिहाजन चुप रह कर उन का इंतजार करने के लिए विवश था.
ड्राइंगरूम में घुसते ही उन की नजरें इधरउधर घूम कर कुछ तलाशने लगीं. सोफे पर धंसते ही उन का पहला जुमला सुनाई पड़ा, ‘‘सुना है अंगरेज लड़की साथ लाए…’’ सुनते ही मेरी कनपटी सुलगने लगी और मिलने के बहाने मेरे घर आने का मकसद भी साफ समझ में आ गया. गोश्त की महक को गिद्धों के नथुने तक पहुंचने में कितनी देर लगती है भला?
‘‘जी, मेरे सीनियर की बेटी जरमन से आई है,’’ मैं बोला.
‘‘तो हमें मिलवाओ, यार,’’ सोफे के हत्थे पर जोर से हथेली पटकते हुए लपलपाती जीभ से वे बोले. आवाजें सुन कर बाबरा खुद ही कमरे से ड्राइंगरूम में आ गई और अजनबी को सामने बैठा देख कर दोनों हाथ जोड़ दिए.
दिन की शुरुआत चायकौफी की जगह शराब से शुरू करने वाले नीलू भाई की आंखों में बाबरा को देखते ही सुरूर के लाल डोरे उतर आए. अद्वितीय जरमन सुंदरता को प्रत्यक्ष देख कर नीलू भाई कुछ पलों के लिए पलकें झपकाना भूल गए.
‘‘बाबरा, आइए बैठिए,’’ मैं उन के कुतूहल का मोहभंग कर के बोला.
‘‘यू हैव कम फर्स्ट टाइम टू इंडिया?’’
‘‘आई केम टू एशिया, बट आई वाज नौट इंटर्ड इन इंडिया. आई वाज गोइंग टू सिंगापुर, दैट टाइम. आई क्रौस्ड इंडिया बाय शिप,’’ बाबरा बड़ी सहजता से बोली.
‘‘इट मींस यू हैव कैच्ड माई यंगर ब्रदर ऐट द शिप,’’ नीलू भाई चुटकी लेते हुए बोले.
‘‘नो, नोनो, आई नेवर मीट विद हिम बिफोर. ही इज माई फादर्स कलीग, लाइक माई ऐल्डर ब्रदर.’’ बाबरा इस भद्दे मजाक को बरदाश्त नहीं कर पाई. उत्तेजना से उस का चेहरा लाल हो गया था.
‘‘ब्रदर, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे मेहमान को इंडियन फूड का जायका चखाया जाए,’’ मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए अधिकारपूर्वक वे बोले. मैं जानता था कि नीलू भाई औरतों को जूतियों की तरह बदलते हैं. उन की आंखों में उतर आई छद्मता को पढ़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा मुझे.
‘‘बाबरा का पेट कुछ गड़बड़ है.’’
‘‘कोई बात नहीं, हम इन की प्लेट में सिर्फ राइस और बनाना (केला) रख देंगे,’’ बाबरा का सान्निध्य पाने का हर संभव प्रयास करते हुए पासा फेंका उन्होंने. मैं ने प्रश्नवाचक निगाहों से बाबरा की तरफ देखा तो वह दोनों हाथ हिला कर बोली, ‘‘नोनो…नोनो, आई हैड माई लंच जस्ट नाऊ.’’
अपने औफर को बाबरा द्वारा नकारे जाने पर हताश नहीं हुए नीलू भाई क्योंकि शायद वे इस जवाब का पहले ही कयास लगा चुके थे. वे बाबरा का सान्निध्य ज्यादा से ज्यादा देर तक पाने के लिए अपना पारिवारिक इतिहास बताने लगे.
‘‘माई फादर वाज फ्रीडमफाइटर. ही वर्क्ड विद सुभाष चंद्र बोस. ही लाइक्ड हिटलर मैथोलौजी.’’
‘‘मगर हम उसे पसंद नहीं करते क्योंकि उस ने पूरी जरमनी को तबाह कर डाला था. उसी की वजह से हमारे चर्च नेस्तनाबूद हो गए. हमारी आर्थिक व्यवस्था क्षतविक्षत हो गई. उस पागल आदमी की वजह से हमारे देश के 2 टुकड़े हो गए. प्लीज आई डोंट वौंट टू लिसन ईवन हिज नेम,’’ बाबरा गुस्से से बोली.
बाबरा की तीखी आवाज ने नीलू भाई को निरुत्तर कर दिया. बाबरा सोचने लगी कि इन हिंदुस्तानियों के पास कितना फालतू वक्त होता है? 2 घंटे से बैठ कर फुजूल की बातों में वक्त जाया कर रहे हैं. टाइम की कोई कीमत ही नहीं है इन के पास. जरमनी में रोटी, कपड़ा और जीने की जद्दोजेहद में हमें सिर्फ रात में 6-7 घंटे ही बैठनेसोने के लिए वक्त मिल पाता है. इन्हीं जैसे लोगों के कारण इंडिया अभी तक विकासशील देशों की लाइन में ही खड़ा हुआ है.
अपना पत्ता साफ होते देख नीलू भाई उठ खड़े हुए, ‘‘सो, नाइस मीटिंग विद यू, यंग लेडी,’’ कह कर बाबरा की तरफ हाथ बढ़ा दिया. बाबरा ने भी छुटकारा पाने की दृष्टि से अपनी तहजीब के मुताबिक हाथ बढ़ा दिया. नीलू भाई ने उस की हथेलियों को धीरे से दबा दिया और देर तक उस का हाथ थामे हुए मुझ से मेरी अगली जौइनिंग के बारे में बेमकसद बातें करने लगे. बाबरा उन की धूर्तता को समझ गई और झटके से अपना हाथ खींच कर घर के अंदर चली गई.
‘‘शरमा गई,’’ कह कर, खिसियानी हंसी हंसते हुए नीलू भाई बाहर चले गए. माहौल बहुत ही बोझिल हो गया था, इसलिए मैं भी चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गया.
शाम को अर्शी ने बतलाया कि बाबरा ने इंटरनैट पर अपनी वापसी का टिकट बुक कर लिया. मैं ने झिझकते हुए इतनी जल्दी वापस जरमनी जाने की वजह पूछी तो वह बिफर पड़ी, ‘‘इट इज रियली स्ट्राइकिंग, आप के देश में गंगा जैसी पावन नदी है. एवरेस्ट जैसी दुनिया की सब से ऊंची चोटी है. दूर तक फैला रेगिस्तान है. आसमान छूने वाली इमारत कुतुबमीनार है. प्यार और कुर्बानी का प्रतीक ताजमहल है. गांधी, गौतम, विवेकानंद का बर्थप्लेस है यह. एशिया का सब से ज्यादा पापुलेटेड कंट्री है यह. लेकिन हकीकत में एशिया का सब से घटिया देश है.
‘‘यहां के आलसी और धूर्त लोग मुफ्त में मिली चीजों का भोग करने में ही खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. आजादी मिले आधी सदी से ज्यादा हो गए लेकिन आज भी दोतिहाई हिंदुस्तानियों को पेटभर रोटी, तनभर कपड़ा, सिर पर छत मयस्सर नहीं है. 21वीं सदी में पहुंच कर भी यहां के मर्द, औरत को बराबरी का दरजा नहीं दे सके हैं. उन की महत्तवाकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय वे उसे सिर्फ भोग की वस्तु समझते हैं. ऐंड यू नो, स्टिल इंडियंस नीड हंड्रैड ईयर्स टू कम विद द लैवल औफ यूरोपियन पीपल.’’
‘‘बट औल आर नौट लाइक दैट, बाबरा.’’ मैं ने ठंडी सांस भर कर बेबुनियाद सफाई देते हुए उसे समझाने की कोशिश की तो वह और आगबबूला हो गई. वह बोली, ‘‘मिस्टर अनीस, माई फादर वाज टोटली डिस्एग्री टू सेंड मी इंडिया. नोइंग औल द फैक्ट्स बाय माई फ्रैंड्स, आई वौंट टू सी एवरीथिंग बाय माई ओन आइज.’’ यह कहते हुए उस की नीली आंखों में समंदर उतर आया और वह फफक कर रो पड़ी. भरे गले से जो कुछ उस ने बताया, सुन कर मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई, शर्मिंदगी से कई फुट पैर जमीन में धंस गए.
‘‘20 साल पहले उस की इकलौती फूफी इंडिया घूमने आई थी. अल्हड़, बिंदास फूफी हिंदी न समझने और अंगरेजी न बोल सकने के कारण जरमन में ही बोलती थी.
‘‘आगरा में ताजमहल देखने जाते वक्त टैक्सी वाले ने गाड़ी गांव की तरफ मोड़ दी. अपने 2 साथियों के साथ मिल कर उस का कीमती कैमरा और पर्स छीन लिया. वह रिपोर्ट करने जब पुलिस स्टेशन पहुंची तो राहजन को पहचानने का बहाना बना कर पुलिस वालों ने उसे पुरानी कोठी में 3 दिनों तक रखा और लगभग 10 लोगों ने उस के साथ बलात्कार किया.
‘‘जरनम ऐंबैसी की मदद से वह किसी तरह विक्षिप्त हालत में हैम्बर्ग पहुंच तो गई लेकिन एड्स की घातक बीमारी ने उसे आखिरकार 5 सालों में निगल लिया. मेरे डैडी अभी तक इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं,’’ बाबरा के मुंह से यह सुन कर मेरी जबान तालू से चिपक गई. हताश, निराश मैं तीसरे दिन बाबरा को एयरपोर्ट पहुंचाने के लिए गाड़ी निकाल रहा था कि मिस्टर जेम्स का फोन आ गया, ‘‘थैंक्यू फौर सेंडिंग माई डौटर सेफली, थैंक्यू वेरी मच.’’ यह वाकई शुक्रिया था या करारा चांटा, मैं आज तक समझ नहीं पाया हूं.
बाबरा भारतीय खाने और व्यंजनों के प्रति आकर्षित रही और उन की रैसिपी के लिए भी बेहद उत्सुक व जिज्ञासु दिखलाई दी. घूमनेफिरने के बाद जितने वक्त भी घर में रहती, मम्मी के साथ किचन में ही खड़ी हो कर उन की पाकविद्या को सीखने का भरसक प्रयत्न करती रहती. हमारे साथ रह कर उस ने नमस्ते, आदाब और शुक्रिया कहना सीख लिया था. उस के जरमन लहजे में बोले गए हिंदी-उर्दू शब्द सुन कर मम्मी खुश होतीं.
3-4 दिनों तक मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, हरकी पौड़ी घूमते हुए हरिद्वार के मंदिर में रोज होने वाली हजारों दीयों की आरती को देख कर बाबरा बहुत ही अचंभित और खुश हुई.
उस दिन शाम को कौलबैल बजी तो दरवाजे पर खड़े मिस्टर व मिसेज नेगी को देख कर हैरान रह गईं मम्मी. किटी पार्टी या ईदबकरीद में बारबार बुलाने पर भी कभी उन्होंने हमारे घर का पानी तक नहीं छुआ था. स्वयं को वे उच्च कुलीन ब्राह्मण की मानसिकता के कंटीले दायरे से निकाल नहीं पाए थे.
बाबरा ड्राइंगरूम में ही बैठी थी. उन्हें देख कर नमस्ते करने के लिए उस ने दोनों हाथ जोड़ दिए और चांदनी सी मुसकराहट बिखेरती हुई उन के सामने बैठी रही. गरमी से बेहाल बाबरा ने उस वक्त स्लीवलैस, डीप गले का टौप और जांघों तक की पैंट पहन रखी थी. मिस्टर नेगी की नजर बारबार उस के गोरे चेहरे से फिसलते हुए कुछ देर तक उस के उन्नत उरोजों पर ठहर कर, खुले चिकने पेट से हो कर उस की गुलाबी जांघों पर आ कर ठहर जाती.
पूरे 1 घंटे तक मिसेज नेगी पूरी कालोनी की खबरों का चलताफिरता, सब से तेज चैनल बनी रहीं. मम्मी बारबार पहलू बदलने लगी थीं क्योंकि उन्हें रात के खाने की तैयारी करनी थी और बाबरा की डिशेज के लिए सामान लाने के लिए मुझे बाहर जाना था.
मिसेज नेगी अपने मन का अवसाद निकाल कर जब बाबरा की तरफ पलटीं तो सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘कहां से आई हो? क्या करती हो, शादी हुई या नहीं? अनीस के परिवार को कब से जानती हो?’’
जवाब देने के लिए छोटी बहन अर्शी को शिष्टाचारवश मध्यस्थता के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ कर आना पड़ा. यूरोपियन संस्कृति में व्यक्तिगत प्रश्न पूछे जाने को बेहद ही अशिष्ट माना जाता है. कभीकभी तो लोग झुंझला कर पूछने वाले के व्यक्तिगत जीवन पर नाहक दखलंदाजी की तोहमत लगा कर केस भी कर देते हैं. लेकिन सौम्य, सुसंस्कृत बाबरा अंदरअंदर खीझती हुई भी बड़ी ही शालीनता से उन के बेसिरपैर के प्रश्नों का जवाब दे रही थी.
‘‘हमारे देश का खाना कैसा लगता है?’’
‘‘इट्स फाइन, बट आई कुड नौट ईट. इट इज सो मच औयली ऐंड स्पाइसी,’’ बाबरा ने कंधे उचका कर अंगरेजी में जवाब दिया.
‘‘अपने देश में आप क्या खाती हैं?’’
‘‘वैल, वी ईट चीज, बटर, ब्रैड, मीट, एग्स, वेजीटेबल्स, फिश, बट औल थिंग्स आर बौयल्ड.’’
‘‘मीट किस का खाती हैं? हम ने सुना है, सूअर का मांस…’’ बुरा सा मुंह बना कर बोलीं मिसेज नेगी, जैसे अभी उलटी कर देंगी.
‘‘यस, औब्वियस्ली, इट कंटेन्स मोर प्रोटींस ऐंड विटामिंस,’’ बाबरा ने बड़े ही संयत ढंग से कुबूल किया.
बाबरा का जवाब सुनते ही मिसेज नेगी ने दोनों हाथों से कान पकड़ लिए. ‘‘भाभीजी, आप ऐसे लोगों को कैसे बरदाश्त कर रही हैं जो आप के मजहब में भी एतराज की गई चीजें खाते हैं,’’ कहती हुई मिसेज नेगी मुंह पर हाथ रख कर बाहर निकल गईं. पीछेपीछे मिस्टर नेगी भी कनखियों से बाबरा की सुडौल और खूबसूरत पिंडलियों को देखते हुए बाहर निकल गए.
बाबरा उन के बरताव पर हतप्रभ रह गई और विस्फारित नेत्रों से हम तीनों को बारीबारी से देखने लगी. हम निरुत्तर हो कर एकदूसरे को शर्मिंदगी से देखने लगे.
क्या बताते बाबरा को कि मिसेज नेगी जिन सूअरों का मांस खाने की बात समझ रही थीं, वे भारत में गंदी नालियों में लोटते और मैला खाते हैं. हम मिसेज नेगी को समझाते भी कैसे कि यूरोपियन जिन सूअरों का मांस खाते हैं, वे बहुत ही साफसुथरे ढंग से गेहूं और सोयाबीन खिला कर पाले जाते हैं. यही विदेशियों का सब से पसंदीदा खाना होता है और फिर हमारी दोस्ती तो इंसानी संबंधों के चलते कायम हुई. इस में खानपान की शर्तें कहां.
इसलामी बंदिशों और यूरोपियन संस्कृति की जरूरतें कभी आपस में टकरा नहीं सकतीं क्योंकि हमारा परिवार इस तंग सोच से ऊपर, बहुत ऊपर उठ कर केवल इंसानी जज्बों को सिरआंखों पर बैठाता है.
बाबरा के भारत आने पर सूरज भी शायद खुश हो कर अपनी उष्मा दिनबदिन बढ़ाता ही चला जा रहा था. एसी, कूलर, पंखे, सारी व्यवस्थाओं के बावजूद बाबरा गरमी से बेहाल थी. मम्मी उस के लिए 2 जोड़ी सूती गहरे रंग के सलवारकुरते ले आईं. कालोनी में ही बुटीक चलाती मिसेज सिद्दीकी के पास नाप दिलवाने बाबरा को ले गईं.
जरमन लड़की को इतने करीब से देखने और उस से मुखातिब होने का सुअवसर सिद्दीकी की बेटियों को जब अनजाने ही मिल गया तो वे बौरा सी गईं. खि…खि…खिखियाती हुई वे एकदूसरे को कोहनी मार कर कहने लगीं, ‘‘तू पूछ न…’’
‘‘नहीं, तू पूछ.’’ बस, इसी नोकझोंक में एक ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘इन की शादी हो गई है?’’ मम्मी ने पूछने वाली को आश्चर्य से देखा. मानो हर लड़की की जिंदगी का मकसद सिर्फ शादी करना है. इस से आगे और इस से ज्यादा वे सोच भी नहीं सकतीं क्योंकि सदियों से शायद उन्हें जन्मघुट्टी के साथ यही पिलाया जाता है, ‘तुम्हें दूसरे के घर जाना है. सलीका, तरीका, खाना बनाना, सीनापिरोना, उठनेबैठने का कायदा सीख लो. तुम्हारी जिंदगी का फसाना सिर्फ शादी, बच्चे, शौहर की गालियां, लातघूंसे और घुटघुट के तिलतिल मरने के बाद ही खत्म होगा.’
पौष्टिक खाना स्वस्थ जीवनशैली का अहम हिस्सा होता है. भोजन की अस्वास्थ्यकर आदतों का असर मोटापा, शुगर, हाई ब्लडप्रैशर और दूसरी पुरानी बीमारियों पर पड़ता है. भोजन के स्मार्ट चयन से खुद को इन स्वास्थ्य समस्याओं से बचाया जा सकता है. जब पौष्टिक भोजन को आधार बना कर विचार किया जाता है तो स्वस्थ आहार बनाना मुश्किल काम नहीं है. पौष्टिक खाना तैयार करने का पहला कदम है स्वस्थ सामग्री का चयन.
भोजन को स्वास्थ्यकर बनाने के यों तो कई तरीके हैं लेकिन यहां आप कुछ मुख्य तरीकों से रूबरू होइए-
1.फैट कम करें : भोजन तैयार करने के लिए सामग्री को फ्राई करने के बजाय भूनना, बेक करना या ग्रिल करना चाहिए. डीपफ्राई करने के बजाय अच्छे नौनस्टिक पैन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए. मक्खन, घी और क्रीम जैसे संतृप्त वसा की जगह जैतून का तेल, कैनोला तेल जैसे पौली और मोनो असंतृप्त वसा का इस्तेमाल करें. जितना रैसिपी में लिखा है उस से कम का इस्तेमाल करें. यदि आप का व्यंजन सूख रहा है तो तेल नहीं, थोड़ा पानी डालें. तेल छोड़ने से भोजन में से प्रति चम्मच (टी स्पून) 45 कैलोरी कम हो जाती है. अपनी रसोई को कम वसा युक्त भोजन से लैस करें, जैसे स्टीमर अतिरिक्त वसा के बिना सब्जियों के स्वाद और पोषक तत्त्वों को बरकरार रखने में मदद करता है. नौनस्टिक बरतन भी वसा को कम करने में मदद करते हैं. माइक्रोवेव बिना वसा के जल्दी खाना पकाने का अच्छा जरिया है.
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2.नमक कम करें : नमक के बहुत ज्यादा इस्तेमाल को बढ़ावा न दें. नमक को कालीमिर्च, नीबू का रस, सिरका, औषधि (हर्ब्स) जैसी सीजनिंग चीजों के साथ बदलें. इस से नमक के सेवन को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी.
3.साबुत अनाज चुनें : साबुत अनाज फाइबर, विटामिन बी और जिंक, लौह, मैग्नीशियम, मैग्नीज जैसे कई खनिजों के अच्छे स्रोत हैं. सो, साबुत अनाज के साथ व्यंजन बनाने से स्वस्थ आहार तैयार होगा.
4.सब्जियों को बहुत ज्यादा न पकाएं : हरी पत्तेदार सब्जियों को नीबू या इमली जैसे एसिड के साथ नहीं पकाना चाहिए. भोजन को तेज आंच के बजाय धीमी आंच पर पकाना चाहिए. धीमी आंच पर पकाने से उस में पोषक तत्त्व बने रहते हैं.
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5.फाइबर बढ़ाएं : मौसमी सब्जियों के सलाद के इस्तेमाल को बढ़ावा दें. यह पोषण के साथ अच्छा स्वाद भी देता है. रैसिपी में फाइबर की सामग्री को बढ़ाने के लिए चावल, पास्ता और रोटी के ब्राउन विकल्पों का इस्तेमाल करें, जो लंबे समय तक भरपेट महसूस करने में मदद करते हैं.
6.पनीर और मेयोनीज : सलाद में मेयोनीज की जगह दही का इस्तेमाल करें. पनीर चीज के टुकड़े करने के बजाय कसें. ऐसा करने से यह ज्यादा आसानी से पकवान पर फैलता है और इस का इस्स्ेमाल कम मात्रा में किया जा सकता है.
7.मांस : यदि आप कीमा मांस ब्राउन पका रहे हैं तो उस में दूसरी चीजों को मिलाने से पहले चरबी को पूरी तरह से हटा दें. इसे फ्राइ करने के बजाय बेक करें, ग्रिल करें, माइक्रोवेव में पकाएं या भूनें.
8.अंडे के सफेद भाग का प्रयोग करें : किसी भी रैसिपी में एक अंडे के स्थान पर 2 अंडों के सफेद भाग का इस्तेमाल करें, यह ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक होता है.
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9.बड़े टुकड़े करें और तुरंत पकाएं : सब्जियों को छोटे टुकड़ों में काटने और खाना पकाने से पहले उन्हें हवा में फैलाने से विटामिन, खासतौर से विटामिन बी और सी का नुकसान हो सकता है. इसलिए जरूरी पोषक तत्त्वों के नुकसान को रोकने के लिए इन्हें बड़े हिस्सों में काटें और तुरंत पका लें.
10.बारबार गरम न करें : तेल और वसा को बारबार गरम नहीं करना चाहिए. बारबार गरम करने से तेल में ट्रांसफैटी एसिड और कुछ जहरीले पदार्थ बन जाते हैं.
इस प्रकार, स्वस्थ भोजन पकाना अच्छी स्वस्थ सामग्री के साथ शुरू होता है जिसे हम भोजन करने के लिए चुनते हैं. आशा करते हैं कि आप स्वस्थ भोजन तैयार करेेंगे और स्वस्थ रहेंगे.
:तनु अरोरा, क्लिनिकल न्यूटी्रशियन, आकाश हैल्थकेयर सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल