महामारी कोरोना के दौर में लोगों के रहनसहन और खानपान की आदतों में न केवल बदलाव आया है, बल्कि लोग खुद की सेहत को ले कर बेहद सजग रहने लगे हैं. ऐसे में लोगों का खाने में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता वाली सागसब्जियों की तरफ ज्यादा ?ाकाव देखने को मिल रहा है.

पोषक तत्त्वों की प्रचुरता के नजरिए से भिंडी एक ऐसी सब्जी है, जिसे आम से खास लोग अपने खाने में पसंद करते हैं. भिंडी में सेहत को फायदा पहुंचाने वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस के अलावा विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, थाइमिन और रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है, इसलिए इस के खाने में उपयोग के चलते शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत में इजाफा होता है.

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अगर देश में भिंडी को खेती के नजरिए से देखा जाए तो अभी तक देश के ज्यादातर भूभाग पर भिंडी की हरे किस्म की खेती की जाती रही है. लेकिन वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने भिंडी की ऐसी किस्म ईजाद की है, जिस का रंग भिंडी की दूसरी किस्मों से हट कर बैगनी और लाल रंग का है.

इसे ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों में डा. बिजेंद्र, डा. एसके सानवाल और डा. जीपी मिश्रा के साथ तकनीकी सहायक सुभाष चंद्र का नाम शामिल है. इसे ईजाद करने वाले संस्थान ने इस किस्म का नाम ‘काशी लालिमा’ रखा है.

इस भिंडी को विकसित करने के लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा साल 1995-96 से लगातार शोध किया जा रहा था, जिस में 24 सालों की कड़ी मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने कामयाबी पाई.

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इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार, भिंडी की इस किस्म के बैगनीलाल होने के कारण इस में पाया जाने वाला एंथोसायनिन तत्त्व की उपलब्धता है, जिस के चलते इस किस्म का रंग लाल होता है.

कोरोना के चलते लोगों में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता वाली सब्जियों की मांग बढ़ी है. ऐसे में भिंडी की काशी लालिमा प्रजाति की खेती कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हरी भिंडी के मुकाबले लाल भिंडी में अधिक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं, जो लोगों की सेहत को दुरुस्त रखने में सहायक माने जा रहे हैं.

भिंडी की इस किस्म में एंटीऔक्सिडैंट, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारियों के लिए कारगर है. इस के अलावा इस में विटामिन बी-9 पाया जाता है, जो जैनेस्टिक डिसऔर्डर को दूर करता है.

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विशेषज्ञों के अनुसार, भिंडी की बैगनीलाल किस्म गर्भवती महिलाओं के लिए भी फायदेमंद मानी जा रही है, क्योंकि महिलाओं के गर्भ में जो शिशु पलता है, उस के मस्तिष्क के विकास के लिए इसे बहुत उपयोगी माना जा रहा है. गर्भवती महिलाओं में यह लाल भिंडी फोलिक एसिड की कमी को दूर करती है.

विदेशों से होता था आयात

लाल भिंडी की खेती अभी तक पश्चिमी देशों में ही होती थी और वहीं से यह आयात हो कर आती थी, लेकिन देश में लाल भिंडी की किस्म विकसित हो जाने से व्यापक स्तर पर इस की खेती किए जाने की संभावनाएं जगी हैं, क्योंकि भारतीय बाजार में लाल भिंडी की भारी मांग है और यह 150 रुपए से ले कर 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक के रेट में बिकती है. ऐसे में लाल भिंडी की खेती कर किसान भी ज्यादा मुनाफा ले सकेंगे.

खेत की तैयारी

‘काशी लालिमा’ को भिंडी की दूसरी किस्मों की तरह ही अच्छी जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है. इस के बीजों को खेत में बोने के पहले खेत की 2-3 बार जुताई कर भुरभुरी कर और पाटा चला कर समतल कर लेना चाहिए.

बीज की मात्रा व बोआई का तरीका

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, गरमियों में 12-14 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बरसात के मौसम की फसल के लिए 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की जरूरत पड़ती है.

भिंडी की इस लाल किस्म के बीज की बोआई सीधी लाइन में की जाती है. भिंडी के बीजों को बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए.

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गरमियों में बोई जाने वाली भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे के बीच की दूरी में 20 सैंटीमीटर का अंतर रखा जाता है, जबकि वर्षाकाल में कतार से कतार की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 सैंटीमीटर रखा जाना उचित होता है. बीज की 2 से 3 सैंटीमीटर गहरी बोआई करनी चाहिए. बोआई के पहले भिंडी के बीज उपचारित कर लेने चाहिए.

बोआई का समय

भिंडी की ‘काशी लालिमा’ प्रजाति भी सामान्य भिंडी की किस्मों की तरह बोई जा सकती है. इसे विकसित करने वाले संस्थान की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार ग्रीष्मकालीन भिंडी की बोआई फरवरीमार्च में और वर्षाकालीन भिंडी की बोआई जूनजुलाई में की जाती है.

उर्वरक की संस्तुत मात्रा

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, ‘काशी लालिमा’ की फसल में अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद के अलावा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटैशियम की दर से मिट्टी में देना चाहिए.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के पहले भूमि में देनी चाहिए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा को 2 भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए.

सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण

फसल की बोआई के बाद पहली सिंचाई फरवरीमार्च में 10-12 दिन के अंतराल पर और  अप्रैल में 7-8 दिन के अंतराल पर करते रहें. मईजून में जब ज्यादा गरमी पड़ने लगे तो4-5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. बरसात के सीजन में अगर अच्छी बरसात हो रही है, तो सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है.

फसल में खरपतवार न निकलने पाएं, इस का खास खयाल रखें क्योंकि इस से उत्पादन प्रभावित होता है. ऐसे में फसल में नियमित रूप से निराईगुड़ाई कर खेत से खरपतवार को नष्ट करते रहें. ज्यादा खरपतवार की दशा में खरपतवार नियंत्रक रसायनों का प्रयोग भी किया जा सकता है.

उत्पादकता और लाभ

वाराणसी में स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, भिंडी की ‘काशी लालिमा’ किस्म 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है. भिंडी की इस किस्म की लंबाई 11-14 सैंटीमीटर और व्यास 1.5 और 1.6 सैंटीमीटर होता है. किसानों के लिए भिंडी की काशी लालिमा किस्म को इसलिए फायदेमंद माना जा रहा है, क्योंकि इस में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता के चलते इस का बाजार रेट भिंडी की आम किस्मों से ज्यादा मिलता  है.

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