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श्वेता तिवारी की बेटी पलक ने शेयर किया डेब्यू फिल्म का पोस्टर, फैंस ने दिया ऐसा रिएक्शन

श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी अपनी खूबसूरत लुक को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं. पलक को कुछ लोग इंडियन काइली जेनर के नाम से भी बुलाते हैं. पलक तिवारी के शानदार लुक पर लाखों लोग फिदा है. शायद यहीं वजह है जिससे फैंस उन्हें फिल्म में देखना चाहते हैं. वहीं पलक की भी ख्वाहिश कुछ ऐसी ही थी.

बता दें कि पलक तिवारी जल्द ही बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री करने जा रही हैं. कुछ समय पहले ही पलक ने अपनी डेब्यू फिल्म ‘रोजी’  का पोस्टर साझा किया है. बता दें कि फिल्म ‘रोजी’  के पोस्टर में पलक जबरदस्त लुक में नजर आ रही हैं. पलक का यह लुक फैंस को बहुत पसंद आ रहा है.

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कंम्पयूटर के सामने बैठी पलक तिवारी के आंखों में गुस्सा और जुनून नजर आ रहा है. इस फिल्म में पलक तिवारी के साथ विवेक ओबरॉय भी नजर आने वाले हैं. शायद यहीं वजह थी कि पलक तिवारी अपनी डेब्यू फिल्म को लेकर काफी नर्वस थीं.

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इस पोस्टर को शेयर करते हुए पलक ने लिखा है कि मुझे बहुत ज्यादा घबराहट हो रही है, इस समय मुझे खुद पर गर्व महसूस हो रहा है. मैं खुशनसीब हूं मुझे विवेक ओबरॉय के साथ स्क्रिन शेयर करने का मौका मिला.

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गौरतलब है कि पलक तिवारी फिल्म में रोजी नाम की जासूस का किरदार निभा रही हैं. यह फिल्म दिसंबर 2020 में रिलीज होने वाली है. पलक के इस पोस्टर को देखने के बाद फैंस काफी खुश नजर आ रहे हैं. पलक एक ऐसी कलाकार है जो फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले ही लाइमलाइट में हमेशा बनी रहती हैं.

 

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Sometimes the wind doesn’t cooperate with you so you gotta cooperate with the wind

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पलक तिवारी के तस्वीर पर चंद मिनटों में लाइक और कमेंट आने शुरू हो गए थें. फैंस पलक को सोशल मीडिया के जरिए ढ़ेर सारी बधाइयां दे रहे हैं. वहीं पलक को भी खुशी का ठिकाना नहीं है कि उन्होंने अपनी मंजिल की शुरुआत कर दी है.

मेरा माथा चौड़ा है, मुझे मेकअप व हेयरस्टाइल के जरीए कोई तरीका बताएं जिस से इस की ब्रौडनैस कम नजर आए?

सवाल
मेरा माथा चौड़ा है. मुझे मेकअप व हेयरस्टाइल के जरीए कोई ऐसा तरीका बताएं जिस से इस की ब्रौडनैस कम नजर आए?

जवाब
माथा चौड़ा है तो हेयर लाइन के साथसाथ डार्क कलर का फाउंडेशन लगा सकती हैं. इस से माथे की ब्रौडनैस कम होगी. हेयरस्टाइल के लिए फ्रिंज रख सकती हैं या फिर डीप साइड पार्टिंग करते हुए बालों से माथे को कवर भी कर सकती हैं. साइड बन या पफ बनाने से बचें.

Crime Story: अपनों को बनाया निशाना

सौजन्या- मनोहर कहानियां

रेलवे विभाग में वरिष्ठ अधिकारी आर.डी. बाजपेई की तैनाती दिल्ली में थी. वह केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल के सूचना अफसर के रूप में तैनात थे. जबकि उन का परिवार लखनऊ में रह रहा था. परिवार में उन की पत्नी मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा थी. उन की सरकारी कोठी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास से करीब 30 मीटर दूर थी.

29 अगस्त, 2020 की बात है. 15 वर्षीय दीपा ने घबराई सी आवाज में अपनी नानी को फोन किया, ‘‘नानी जल्दी से एंबुलैंस ले कर आ जाओ, मां और भाई को चोट लगी है.’’ नानी का घर दीपा के घर से केवल 5 किलोमीटर दूर लखनऊ के गोमतीनगर में था.

दीपा की घबराई आवाज में यह सूचना पाते ही नानी चिंतित हो गईं. वह उसी समय पति विजय मिश्रा के साथ चल पड़ीं. करीब 10 मिनट में वह विवेकानंद मार्ग स्थित कोठी नंबर 9 पर पहुंच गईं.

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वहां की हालत देख कर दोनों अवाक रह गए. कमरे में उन की 45 साल की बेटी मालिनी और 17 साल का नाती सर्वदत्त बैड पर खून में लथपथ पडे़ थे. दोनों की गोली मार कर हत्या की गई थी. सर्वदत्त को सिर पर गोली लगी थी, मालिनी को भी सिर के पास गोली लगी थी. वह करवट लेटी थीं. दीपा घबराई हुई थी और कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

नाना विजय मिश्रा ने तुरंत 112 नंबर पर डायल कर के इस की सूचना लखनऊ पुलिस को दी. इस के अलावा उन्होंने यह जानकारी दिल्ली में रह रहे अपने दामाद आरडी बाजपेई को भी दे दी. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण पुलिस आननफानन में कोठी नंबर 9 की तरफ रवाना हुई.

कोठी नंबर 9 अंगरेजों के जमाने की सरकारी कोठी है. यह रेलवे विभाग के अधिकारियोंं को ही रहने के लिए मिलती है. लालसफेद रंग में रंगी यह आलीशान कोठी दूर से ही नजर आती है. कोठी के सामने वीवीआईपी गेस्टहाउस है. बगल में लैरोटो स्कूल है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इतने सुरिक्षत इलाके में इस घटना से सभी के होश उड़ गए. वैसे भी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की हत्या एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. ऐसे में रेलवे में काम करने वाले ब्राह्मण जाति के एक बड़े अधिकारी के आवास में दिनदहाडे़ 2-2 हत्याएं होने से राजनीति गर्म हो गई.

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने योगी सरकार में ब्राह्मण उत्पीड़न का मुद्दा उठा दिया. कांग्रेस नेता पिं्रयका गांधी ने महिलाओं के असुरक्षित होने का मुद्दा उठाया, जिस से योगी सरकार सकते में आ गई थी.

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आर.डी. बाजपेई दिल्ली में रेल मंत्री पीयूष गोयल के सूचना अफसर के पद पर तैनात हैं. अपने अफसर के परिवार में हुए हादसे को संज्ञान में लेते हुए खुद पीयूष गोयल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फोन कर पूरे मामले की जानकारी ली.

कुछ ही देर में लखनऊ से ले कर दिल्ली तक हड़कंप मच गया. लखनऊ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने पूरे मामले की कमान स्वयं अपने हाथों में ले ली. लखनऊ पुलिस के सब से काबिल असफरों की टीम को इस मामले के खुलासे में लगाया दिया गया.

उत्तर प्रदेश के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. डीसीपी (उत्तरी) शालिनी ने मामले में पूछताछ शुरू की. शनिवार-रविवार को उत्तर प्रदेश में 2 दिन का लौकडाउन होने के कारण दिल्ली से लखनऊ के बीच कोई हवाई सेवा नहीं थी. इस कारण आर.डी. बाजपेई को कार से सड़क मार्ग द्वारा लखनऊ के लिए निकलना पड़ा.

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पुलिस के लिए सब से अजीब बात यह थी कि कोठी के अंदर जाने के 4 रास्ते थे. वहां आने और भागने का कोई सबूत पुलिस को नहीं दिख रहा था. घटना के समय घर में मां मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा ही मौजूद थी. उस समय दीपा बदहवास हालत में थी. घर के अंदर छानबीन से पुलिस को दीपा के बाथरूम में शीशे पर गोली चलने के निशान मिले. एक अलमारी खुली मिली. पर उस से कुछ गायब नहीं था.

बाथरूम के अंदर शीशे पर खाने वाले जैम से ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिखा था. उसी जगह पर गोली मारी गई थी, जिस से शीशा टूट गया था. वहां पास ही मेज पर .22 बोर की एक पिस्टल रखी मिली. इसे ले कर पुलिस का शक दीपा पर ही गहराने लगा.

पुलिस ने जब भी दीपा से बात करनी चाही, वह दीवार की तरफ देख कर ‘भूत…भूत…’ चिल्लाने लगती थी. दीपा ने अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब में डाल रखे थे. लग रहा था जैसे वह कुछ छिपाने का प्रयास कर रही हो. वह अंगरेजी में पुलिस को जो बता रही थी, उस का अर्थ यह था कि रेशू एक भूत है. वह कई दिनों से उस के सपने में आता है. उस ने ही कहा था कि ऐसा करो. इस के बाद उस ने पिस्टल निकाली और शीशे पर ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिख कर गोली मार दी.

पुलिस ने जब दीपा से हाथ खोलने को कहा तो वह मना करने लगी. ऐसे में उस के नाना विजय मिश्रा की मदद से हाथ खोला गया तो हाथ में कटने के निशान मिले, जिसे पट्टी से बांधा गया था. उस के हाथ पर 50 से अधिक घाव के निशान थे. इन में से कुछ निशान ताजा थे. दीपा ने बताया, ‘‘यह काम उस ने किया है, यह काम कोई बड़ा नहीं है. दुनिया भर में लाखों लोग ऐसा करते हैं.’’

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दीपा की बातों और उस के हावभाव से उस की हालत अच्छी नहीं लग रही थी. पुलिस को यह भी पता चला कि दीपा को डिप्रेशन की बीमारी है, जिस का इलाज भी चला था. ऐसे में पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ करने लगी. पुलिस ने उस से पूछना शुरू किया कि उस ने हाथ कैसे और किस चीज से काटे?

इस पर दीपा ने पुलिस को माचिस की डिब्बी में रखा ब्लेड दिखाया. इस के बाद पुलिस को दीपा पर ही अपने भाई और मां को गोली मारने का शक गहराया.

सारे सबूत दीपा की तरफ इशारा कर रहे थे. घटना के महज 4 घंटे के अंदर ही शाम के 7 बजे पुलिस ने पूरे मामले का खुलासा करते हुए दीपा को हत्या का आरोपी माना और उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

दीपा के नाबालिग होने के कारण उसे आगे की पूछताछ के लिए थाने के बजाय उस के घर में ही रखा गया. पुलिस ने दीपा को मानसिक रूप से बीमार मान कर बहुत ही संवेदनशीलता के साथ पूछताछ शुरू की. मानसिक रोग के डाक्टर और काउंसलर से भी मदद

ली गई.

शाम करीब 8 बजे दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई जब दिल्ली से लखनऊ पहुंचे तो दीपा उन से लिपट कर रोने लगी. पिता के लिए यह बेहद मुश्किल समय था. वह पत्नी और बेटे के कत्ल के आरोप में अपनी ही बेटी को देख कर कुछ भी समझ पाने की हालत में नहीं थे. दीपा के लिए उन्होंने कितने सपने संजोए थे.

वह उसे शूटिंग की दुनिया में नाम कमाते देखना चाहते थे. शूटिंग की शौकीन दीपा पदक जीतने की जगह अपने ही लोगों को निशाना बना देगी, किसी ने नहीं सोचा था.

दीपा बहुत ही काबिल निशानेबाज थी. घरपरिवार ही नहीं, शूटिंग रेंज में उसे ट्रैनिंग देने वालों को भी यकीन था कि वह निशानेबाजी में बड़ा नाम कमाएगी. निशानेबाजी मंहगा खेल है, जिस में घरपरिवार का सहयोग ही नहीं आर्थिक रूप से सक्षम होना भी जरूरी होता है. दीपा के मामले में यह अच्छी बात थी. उस के पिता रेलवे के बड़े अधिकारी थे.

बेटी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने के लिए वह हर तरह की सुविधा जुटाने में सक्षम थे. आर.डी. बाजपेई का लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गया था. वह जल्दी ही बेटी और परिवार को ले कर दिल्ली जाने वाले थे, जहां दीपा को शूटिंग की अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा मिल जाती.

लखनऊ में बेटी की अच्छी ट्रेनिंग हो सके, इस के लिए आर.डी. बाजपेई ने विवेकानंद मार्ग स्थित अपनी कोठी के पीछे 10 मीटर एयर पिस्टल की शूटिंग रेंज बनवा दी थी. दीपा केवल शूटिंग में ही अव्वल नहीं थी, उसे पेंटिंग, डांस और म्यूजिक का भी शौक था. 7वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान उस ने पेंटिग में बुक मार्क बनाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार हासिल किया था.

दीपा ने कुछ दिन शूटिंग की ट्रेनिंग दिल्ली के कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में की थी. वह अपनी मां मालिनी के ही साथ कार से दिल्ली आतीजाती थी. कभीकभी उस के पिता उसे छोड़ने आते थे.

 

दीपा ने 10 साल की उम्र से शूटिंग करना शुरू किया था. 2 से 3 माह में ही वह राज्य स्तर की निशानेबाज बन गई थी. इस के बाद उस ने महाराष्ट्र और कोलकाता में भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था. कई पदक जीते. दीपा शूटिंग में पश्चिम बंगाल की तरफ से खेलती थी. वह आसनसोल राइफल क्लब की मेंबर भी थी.

बंगाल की राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में उस ने कई पुरस्कार जीते थे. दीपा .22 की 25 मीटर स्पर्धा, 10 मीटर और 25 मीटर एयर राइफल में भी हिस्सा लेती थी. .22 की 25 मीटर स्पर्धा में जब दीपा ने राज्य स्तर पर चैंपियनशिप जीती और जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीता तो उसे अपना हथियार खरीदने का लाइसैंस मिल गया था. तभी पिता ने उस के लिए पिस्टल खरीद दी थी.

 

दीपा को अंगरेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था. कई बार वह खुद में गुमसुम सी दिखती थी. पिता के दिल्ली ट्रांसफर के समय स्कूल चल रहे थे. दीपा और उस का भाई सर्वदत्त बाजपेई स्कूल में पढ़ते थे.

दीपा कक्षा 9 में थी और भाई कक्षा 12 में. बीच सत्र में दिल्ली में बच्चों के एडमिशन में दिक्कत आ रही थी, इस कारण आर.डी. बाजपेई ने सोचा था कि जुलाई से जब सत्र शुरू होगा, पत्नी और बच्चों को अपने पास दिल्ली बुला लेंगे.

इसी बीच कोविड 19 का संकट पूरे विश्व में छा गया. लौकडाउन हो जाने पर स्कूलकालेज बंद हो गए. दीपा भी अकेली पड़ गई थी. वैसे भी दीपा दोस्त कम बनाती थी. वह अपने आप में ही मस्त रहती थी. जैसेजैसे लौकडाउन खुल रहा था, घर में इस बात की खुशी थी कि जल्द ही सभी दिल्ली चले जाएंगे.

घर में दिल्ली शिफ्ट होने की तैयारियां चल रही थीं. यह सोच रहा था. पर समय का चक्र किसी दूसरी दिशा में ही घूम रहा था, जिस का अंदाजा किसी को नहीं था. समय का तूफान अपनी गति से चल रहा था.

घर में सभी लोग अपनेअपने सामान की पैकिंग करने लगे थे. दीपा ने भी अपने दोस्तों से अपने सामान की पैकिंग में मदद करने के लिए कहा था. 29 अगस्त, 2020 शनिवार को दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई का जन्मदिन था. रात को ही परिवार ने फोन से बात कर के उन्हें बधाई दी थी.

पत्नी मालिनी और दोनों बच्चों ने भी जन्मदिन की बधाई दी. आपस में तय हुआ कि आर.डी. बाजपेई शाम को दिल्ली में अपने जन्मदिन का केक काटेंगे और लखनऊ से घरपरिवार के लोग ‘हैप्पी बर्थडे’ का गीत गाएंगे. वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए बर्थडे पार्टी का पूरी थीम तैयार हो चुकी थी.

29 अगस्त की सुबह 9 बजे मालिनी ने अपनी बेटी दीपा और बेटे सर्वदत्त के साथ नाश्ता किया. इस के बाद दीपा अपने कमरे में चली गई. मालिनी और सर्वदत्त भी एक कमरे में ही बिस्तर पर सो गए. उस दिन शाम को बर्थडे पार्टी मनानी थी, लेकिन पार्टी मनाने की जगह दोनों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे जा रहे थे.

हत्या का आरोप बेटी पर ही लगा, कोठी नंबर 9 में खुशियों की जगह मातम पसर गया. आर.डी. बाजपेई के लिए यह मुश्किल हो गया कि वह पत्नी और बेटे को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करें या बेटी को बचाने के लिए.

 

आर.डी. बाजपेई व्यवहारकुशल और खुशदिल अफसरों में माने जाते हैं. वह उत्तर मध्य रेलवे जोन में सीपीआरओ के पद पर भी रह चुके हैं. बाजपेई 1998 बैच के आईआरटीएस अफसर हैं. आगरा, मालदा, आसनसोल जगहों पर उन्होंने उच्च पदों पर काम किया. वह उत्तर रेलवे लखनऊ में सीनियर डीसीएम भी रहे. लखनऊ में ट्रै्रनिंग सेंटर के बाद वह रेलवे बोर्ड दिल्ली में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (इनफारमेशन) के पद पर काम कर रहे थे. उन की लोकप्रियता पूरे विभाग में थी.

आर.डी. बाजपेई ने अपनी छवि के अनुकूल नाजुक हालत में भी बेहद समझदारी भरा फैसला लेते हुए बेटी का साथ देना स्वीकार किया. बेटी को दोष देने की जगह वह उस के डिप्रेशन को ही गुनहगार मान रहे थे. 30 अगस्त को जब पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने मालिनी और बेटे सर्वदत्त का शव अंतिम क्रिया के लिए उन्हें सौंपा तो कलेजे पर पत्थर रख कर उन्होंने उन का दाहसंस्कार किया.

इस के बाद भी वह बेटी को हत्यारा मानने को तैयार नहीं थे. लखनऊ पुलिस में आर.डी. बाजेपई ने अपनी पत्नी और बेटे की हत्या के लिए अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.

उधर पुलिस ने दीपा को हत्या का आरोपी मान कर उसे इलाज के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज में भरती कराया. यहां से डाक्टरों की राय पर उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया.

पुलिस का दावा है कि दीपा मानसिक रूप से बीमार थी. उस का पहले इलाज भी चला था. लौकडाउन के समय उस ने भूतप्रेतों और अंधविश्वास के उपन्यास पढ़े, जिस से उस के मन में भूत की कहानियों ने घर बना लिया था, उसे लगता था कि उस के सपने में भूत आता है. वह जैसा कहता है, वह वैसा ही करती थी.

 

भूतप्रेत की कहानियां बच्चों के मन पर किस तरह से असर डालती हैं, लखनऊ का डबल मर्डर इस की मिसाल है. दीपा को लगता था कि रेशू नाम का भूत उस के सपने में आ कर उसे गाइड करता है. अपनी मां और भाई की हत्या के बाद भी दीपा कह रही थी कि ‘रेशू केम….एंड गाइड मी’.

रेशू तो नहीं आया पर दीपा अपना सुनहरा भविष्य और अपनी मांभाई को हमेशा के लिए खो बैठी है. इस घटना से पता चलता है कि भूतप्रेत की बात करना और उन की उपस्थिति को मानना एक तरह से मानसिक बीमारी है.

जब दीपा ने खुद अपने हाथ की नस काटनी शुरू की थी मानसिक बीमारी की वह खतरनाक अवस्था थी. उस समय अगर दीपा का उचित इलाज कराया गया होता तो अंत इतना खतरनाक नहीं होता.    द्य

—कहानी में नाबालिग दीपा की पहचान छिपाने के कारण उस का नाम बदला हुआ है.

Nutrition Special: कैंसर से लड़ने में मदद करती हैं किचन की ये 6 चीजें

आज विश्व के सामने कैंसर एक बड़ी चुनौती बन गया है. इसका इलाज इतना महंगा है कि एक बड़ी आबादी इसके इलाज का खर्चा भी नहीं उठा पाती. ऐसे में हम आपको कुछ जरूरी टिप्स बताने वाले हैं जिसको अपनी लाइफस्टाइल में शामिल कर आप इस जानलेवा बीमारी के खतरे को कम कर सकेंगे. तो आइए शुरू करें.

1.ब्रोकली

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ब्रोकली खाने से कैंसर का खतरा कम होता है. अगर सप्ताह में तीन बार इसका सेवन किया जाए तो माउथ कैंसर, लीवर कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर जैसी परेशानियों को कम किया जा सकता है. आम तौर पर इसे सब्जी या सूप के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. पर इसे उबाल कर हल्का नमक मिला कर खाना भी काफी फायदेमंद होता है.

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2.अदरक

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कैंसर से बचाव करने में अदरक काफी असरदार है. अदरक शरीर में मौजूद टौक्सिंस को दूर करने का काम करता है. इसके सेवन से स्किन, ब्रेस्ट कैंसर की कम होता है.

3.लहसुन

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लहसुन में ऐसे कई तत्व पाए जाते हैं जो आपको कैंसर से सुरक्षित रखते हैं. रोजाना एक या दो लहसुन खाने से कैंसर का खतरा कम हो जाता है.

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4.ब्लू बेरी

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कैंसर में काफी प्रभावशाली होता है ब्लू बैरी. ये स्किन, लीवर और ब्रेस्ट कैंसर से हमें सुरक्षित रखने में मददगार है. इसका जूस कैंसर में सबसे अधिक प्रभावशाली होता है.

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5.ग्रीन टी

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ग्रीन टी पीने से कैंसर का खतरा कम होता है. ये हमें ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से सुरक्षित रखने में बेहद मददगार होती है. नियमित रूप से इसका सेवन कर के कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.

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6.टमाटर

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टमाटर में पाए जाने वाला एंटी औक्सिडेंट बौडी के इम्यून को मजबूत करने  का काम करते हैं. टमाटर विटामिन ए, सी और ई का प्रमुख स्रोत है. इसके साथ ही ये ब्रेस्ट कैंसर से भी बचाव का अच्छा उपाय है. टमाटर का जूस पीने या फिर इसे सलाद के रूप में लेना फायदेमंद होता है.

 

अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए-भाग 6

आप की गाय चाहे कितना भी दूध दे रही हो, अगर आप ने उस का भरणपोषण उत्तम रखा है तो वह जल्दी ही हीट में आ जाएगी. मगर आप को 2 महीने इंतजार करना है और जैसे ही दुग्धकाल का तीसरा महीना शुरू होगा, तो गाय के दोबारा हीट में आते ही उसे किसी अच्छे सांड़ के वीर्य से गाभिन करवा देना है.

यही वह समय है, जब गाय पीक प्रोडक्शन पर भी होगी. इस के बाद उस का उत्पादन कम होता चला जाएगा. गाभिन होने के पहले 6 महीने तक उसे किसी विशेष अतिरिक्त पोषण की जरूरत नहीं होगी. केवल दूध के उत्पादन के आधार पर ही उसे पोषण उपलब्ध करवाना होगा. मगर जैसे ही 7 महीना लगेगा, तो उसे उस समय के दूध के उत्पादन और गर्भ की बढ़वार के लिए भी पोषण उपलब्ध करवाना होगा.

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अब बात करते हैं 5 लिटर दूध उत्पादन वाली 6 महीने की गर्भवती गाय के पोषण की, जिस का 7वां महीना शुरू हो चुका है. हम हरा चारा, सूखा चारा और रातिब मिश्रण की उपलब्धता की उन्हीं तीनों स्थितियों में पोषण की बात करेंगे, जब :

1. आप के पास हरा चारा बहुत कम है और जो हरा चारा उपलब्ध है, वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

2. आप के पास गैरदलहनी हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

3. आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है.

स्थिति 1 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली 6 महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा,

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6 किलोग्राम भूसा और 6 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 57 रुपए प्रति लिटर होगी.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

स्थिति 2 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध वाली 6 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 24 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 2 किलोग्राम भूसा और 3.5 किलोग्राम झ्र16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 48 रुपए प्रति लिटर होगी.

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स्थिति 3 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली 6 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 15 किलोग्राम दलहनी हरा चारा,

10 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6 किलोग्राम भूसा और 1 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण और 50 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण की जरूरतें पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 42 रुपए प्रति लिटर होगी.

इस समय चूंकि गर्भ की बढ़वार भी हो रही?है, इसलिए तीसरी स्थिति में भी रातिब की कुछ मात्रा देना जरूरी होता है. जैसेजैसे गर्भ की बढ़वार होगी, तो पेट में जगह कम होते जाने से चारा खाने की क्षमता कम होती जाएगी, इसलिए रातिब की मात्रा धीरेधीरे बढ़ानी होगी. अगले महीने रातिब की मात्रा और बढ़ जाएगी और हरे चारे और भूसे की मात्रा पहले के मुकाबले कम हो जाएगी.

10 लिटर दूध देने वाली 6 माह की गर्भवती गाय के पोषण की 7 महीना शुरू हो चुका है. हम हरा चारा, सूखा चारा और रातिब मिश्रण की उपलब्धता की उन्हीं तीनों स्थितियों में पोषण की बात करेंगे, जब :

1. आप के पास हरा चारा बहुत कम है और जो हरा चारा उपलब्ध है, वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

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2.  आप के पास हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

3. आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्ता मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है.

स्थिति 1 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध देने वाली 6 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 10 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 4 किलोग्राम भूसा और 8.5 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 37 रुपए प्रति लिटर होगी.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला तकरीबन 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर

40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

स्थिति 2 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध वाली 6 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 10 किलोग्राम दलहनी चारा,

19 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 3 किलोग्राम भूसा और 4.5 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 31 रुपए प्रति लिटर होगी.

स्थिति 3 : इस स्थिति में 10 लिटर दूध देने वाली 6 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 22 किलोग्राम दलहनी हरा चारा, 22 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 3 किलोग्राम भूसा और 1 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण और 50 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण जरूरतें पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 27 रुपए प्रति लिटर होगी.

इस समय चूंकि गर्भ की बढ़वार भी हो रही?है, इसलिए तीसरी स्थिति में भी रातिब देना जरूरी होता है. जैसेजैसे गर्भ की बढ़वार होगी, तो पेट में जगह कम होते जाने से चारा खाने की क्षमता कम होती जाएगी, इसलिए रातिब की मात्रा धीरेधीरे बढ़ानी होगी. अगले महीने रातिब की मात्रा और बढ़ जाएगी और हरे चारे और भूसे की मात्रा पहले के मुकाबले कम हो जाएगी.

5 लिटर दूध देने वाली 7 माह की गर्भवती गाय के पोषण की

8वां महीना शुरू हो चुका है. हम हरा चारा, सूखा चारा और रातिब मिश्रण की उपलब्धता की उन्हीं तीनों स्थितियों में पोषण की बात करेंगे, जब :

  1. आप के पास हरा चारा बहुत कम है और जो हरा चारा उपलब्ध है, वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है.

2. आप के पास हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी.

3. आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्ता मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं हैं.

स्थिति 1 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली 7 महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा,

6 किलोग्राम भूसा और 6 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा अधिक है, इसलिए यह अधिक महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत अधिक होगी. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर लगभग 58 रुपए प्रति लिटर होगी.

16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला तकरीबन 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर

40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को भलीभांति मिलाने की जरूरत होगी.

स्थिति 2 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध वाली 7 महीने महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 5 किलोग्राम दलहनी चारा,

8.5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 5 किलोग्राम भूसा और 4.5 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन53 रुपए प्रति लिटर होगी.

स्थिति 3 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली 7 महीने का गर्भकाल पूरा कर चुकी गाय को 10 किलोग्राम दलहनी हरा चारा,

7 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6 किलोग्राम भूसा और 3 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण और 50 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन देने से भी सभी पोषण जरूरतें पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 49 रुपए प्रति लिटर होगी.

इस समय चूंकि गर्भ की बढ़वार तेजी से हो रही?है, इसलिए तीसरी स्थिति में भी रातिब को देना जरूरी होता है. जैसेजैसे गर्भ की बढ़वार होगी, तो पेट में जगह कम होते जाने से चारा खाने की क्षमता कम होती जाएगी, इसलिए रातिब की मात्रा धीरेधीरे बढ़ानी होगी. अगले महीने इसे ड्राई करना होगा, ताकि बढ़ते हुए गर्भ को ठीक से पोषण मिल सके और गाय के ऊपर दूध देने के लिए पोषक तत्त्वों का गैरजरूरी बोझ न पड़े.

बेटा- भाग 1 : कैसे एक हंसता हुआ घर उदासी और मातम के दलदल में फंस गया

‘सिया, सिया, जल्दी आओ. देखो, तुम्हारे पापा कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. जाने क्या हो गया.’’

सिया और समीर दोनों अपने कमरे से भागते हुए आए.

सिया ने ‘पापा, पापा’ पुकार कर उन का हाथ उठाया. उसे उन का हाथ बेजान लगा.

समीर ने डाक्टर को फोन किया.

सुजाता फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘मम्मी, पापा को कुछ नहीं हुआ. आप रोइए मत, प्लीज, वरना मुझे भी रोना आने लगेगा.’’

डा. अनुराग समीर के मित्र थे, इसलिए तुरंत आ गए थे. उन्होंने आंख की पुतली देखी और ‘ही इज नो मोर’ कह कर कमरे से बाहर चले गए.

सिया मां से चिपट कर सिसकने लगी. जब कुछ देर वह रो चुकी तो समीर बोले, ‘‘सिया, अपने को संभालो.’’

समीर भी घबराए हुए थे. दीप की हरकतों से परेशान हो कर सिया मम्मीपापा को अपने साथ ले आई थी. अभी महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि पापा सब लोगों को छोड़ कर चले गए.

‘‘मम्मी, पापा शाम को तो एकदम ठीक थे. क्या आप से कुछ कहासुनी हुई थी?’’

‘‘नहीं, बेटी.’’

मम्मी को असमंजस में देख उस का शक पक्का हो गया था कि वे उस से कुछ छिपा रही हैं.

‘‘सच बताओ, मम्मी, रात में क्या हुआ था?’’

वे सिसकते हुए बोलीं, ‘‘दीप का फोन आया था. उस ने पापा के जाली दस्तखत बना कर मकान का सौदा तय कर लिया है और बयाना भी ले लिया है. इसी बात पर पापा नाराज हो उठे थे. जौइंट अकाउंट होने के कारण वह बैंक से रुपए पहले ही निकाल चुका था. 2 दिन पहले श्याम चाचा का भी फोन आया था. घर पर किसी लड़की को ले कर आया था उस के कारण उन से भी उस ने खूब गालीगलौज और हाथापाई की.

‘‘इसी बात को ले कर बापबेटे के बीच जोरजोर से बहस होती रही थी. मैं ने इन्हें सम झाने का प्रयास किया तो मु झे डांट दिया. फिर आधी रात में उठ कर कोई दवा खा कर बोले, ‘ऐसी औलाद से बिना औलाद होते तो ज्यादा सुखी होते.’’’

‘‘मम्मी, इतनी बात हो गई और आप ने मु झे कुछ भी नहीं बताया.’’

‘‘बेटा, तुम लोग रात में देर से थकेमांदे आए थे. यह सब तो मैं, जब से दीप जवान हुआ है तब से देखसुन रही हूं. मु झे क्या मालूम कि यह बात आज इन के दिल में ऐसी चुभ जाएगी.’’

समीर मम्मी और सिया से बोले, ‘‘बताओ, कहांकहां फोन करना है. मैं ने दिया और श्याम चाचा को फोन कर दिया है. कह दिया है आप जिन्हें ठीक सम िझए उन्हें सूचना दे दीजिए. आप के आने के बाद ही कुछ होगा.’’

समीर के मित्र और पड़ोसी एकत्र हो गए थे. उन सब की सहायता से शव को बरामदे में रख कर सब वहीं खड़े हो गए.

समीर ने बताया कि श्याम चाचा, दिया और सुचित्रा बूआ के आने में लगभग 5 घंटे लग जाएंगे, इसलिए उन लोगों के आने के बाद ही कुछ होगा. यह सुनते ही सब लोग तितरबितर हो गए.

वहां पर सिया, समीर और सुजाता ही रह गए. सुजाता की आंखों के सामने दीप के बचपन की बातें चलचित्र की तरह चलने लगीं.

सिया और दिया के बाद दीप के पैदा होने पर घर में खुशियां छा गई थीं. अम्मा, सोम और श्याम भैया को बेटे की खबर सुनते ही मानो कारूं का खजाना मिल गया था. परिवार में पहला बेटा था, इसलिए अतिरिक्त लाड़प्यार का हकदार था. सीमित आमदनी होने के कारण बेटियों की जरूरतों पर कटौती शुरू हो गई. ढाईतीन साल का दीप अपने मन का न होने पर तब तक रोता जब तक उस की जिद पूरी न हो जाती.

सोम ने दोनों बेटियों को तो सरकारी हिंदी स्कूलों में पढ़ाया था. चूंकि कौन्वैंट स्कूल महंगे होते थे इसलिए उन का बहाना होता था कि वहां पढ़ कर बच्चे बिगड़ जाते हैं. सिया, दिया दोनों मेहनती थीं. हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आतीं. इसलिए दोनों पढ़लिख कर डिगरी कालेज में लैक्चरर बन गईं.

परंतु जब दीप के ऐडमिशन का समय आया तो सोम ने उस का नाम कौन्वैंट स्कूल में 10 हजार रुपए डोनेशन दे कर लिखवाया था. सिया उस से 8 साल बड़ी थी, इसलिए उस से थोड़ा दबता था लेकिन दिया से तो उस की एक पल भी नहीं बनती थी.

दिया और दीप की आपसी मारपीट से परेशान हो कर मैं अकसर रो पड़ती थी. दोनों की गुत्थमगुत्था से खीज कर अकसर कहती, ‘ऐसा लगता है कि घर छोड़ कर कहीं चली जाऊं. लेकिन मेरा तो ठिकाना भी कहीं नहीं है.’

एक बार दोनों एक पैंसिल के लिए लड़ रहे थे. दीप ने दिया को गंदी सी गाली दी. सुनते ही मैं ने उसे एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया था तो वह मुझ से ही चिपट गया और मेरी बांह में दांत गड़ा दिए थे. आज भी उस जख्म का निशान मेरी बांह पर बना हुआ है. जैसे ही दर्द से बिलबिला कर मैं ने उसे हलका सा धक्का दिया, वह जानबू झ कर मुंह के बल गिर पड़ा. होंठ में दांत चुभ जाने के कारण उस के खून छलक आया था. वह मुंह फाड़ कर जोरजोर से चिल्लाने लगा. अम्माजी खून देखते ही मुझ पर गरम हो उठी थीं.

‘मां हो कि दुश्मन, ऐसे धक्का दिया जाता है,’ वे दीप के आंसू पोंछ कर बोलीं, ‘मेरा राजकुमार है. अभी तुम्हारे लिए पैंसिल का पूरा डब्बा मंगवा कर दूंगी. तुम इस कलूटी को एक भी मत देना.’

अम्माजी दिया को लाड़ से कलूटी ही कहती थीं.

फिर दीप के कान में फुसफुसा कर बोलीं, ‘मेरे साथ आओ, मैं ने तुम्हारे लिए लड्डू छिपा कर रख रखे हैं,’ रोना तो महज उस का नाटक था.

मैं आंखों में आंसू भर कर रह गई थी. दीप ने एक लड्डू मुंह में रखा, दूसरा हाथ में और घर से फुर्र हो गया.

सोम बहुत गरममिजाज और कायदेकानून वाले थे. लेकिन बेटे की मोहममता में सारे कायदेकानून भूल जाते थे.

बेटा- भाग 2 : कैसे एक हंसता हुआ घर उदासी और मातम के दलदल में फंस गया

मैं सुबह से रात तक घर का काम करतीकरती थक जाती. मुंह अंधेरे ही उठ कर तीनों बच्चों का टिफिन पैक कर देती. खाना, कपड़ा, बरतन करतेकरते थक कर निढाल हो जाती थी.

तीनों बच्चों का दूध बना कर मेज पर रख देती थी. दीप चीखता हुआ कहता, ‘मु झे नहीं पीना सादा दूध, बौर्नविटा डालो तभी पीऊंगा.’

‘बौर्नविटा खत्म हो गया है, इसलिए चुपचाप दूध पियो, टिफिन बैग में रखो और स्कूल जाओ. वैन वाला कब से हौर्न बजा रहा है.’

मैं ने गिलास उठा कर दीप के मुंह में लगाने का प्रयास किया. आधा गिलास दूध देखते ही उस ने मेरे हाथ को  झटक दिया. हाथ से गिलास छूट कर दूध जमीन पर फैल गया. मैं चिल्ला कर बोली, ‘बहुत बदतमीज हो गया है. सिया, दिया को जितना देती हूं, चुपचाप पी कर चली जाती हैं. ये नालायक हर समय कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देता है.’

सोम कमरे से भागते हुए आए, डांटते हुए बोले, ‘तुम्हारा कोई भी काम ढंग से नहीं होता. जब तुम्हें पता है कि वह गिलास भर कर दूध पीता है तो तुम ने उसे चिढ़ाने के लिए जानबू झ कर आधा गिलास दूध क्यों दिया?’

‘मेरे लिए तो तीनों बच्चे बराबर हैं. मैं तो तीनों को एक सा खिलाऊंगी, पहनाऊंगी. मेरे लिए बेटाबेटी दोनों एक समान हैं,’ मैं ने जवाब दिया.

‘ज्यादा जबान मत चलाओ. सिया, दिया एक दिन दूध नहीं पिएंगी तो मर थोड़े ही जाएंगी,’ अम्माजी ने सोम के सुर में सुर मिलाया.

सिया दीप को बुलाने के लिए बाहर से आई थी. दादी और पापा की सारी बातें उस ने सुन ली थीं. 14 वर्ष की सिया सम झदार हो चुकी थी. उस दिन के बाद से उस ने दूध को हाथ भी नहीं लगाया. दिया दीप को जिद करते देख खुद भी वैसा ही करने लग जाती थी.

एक दिन दीप टिफिन मेज पर पटक कर बोला, ‘मैं आज से टिफिन नहीं ले जाऊंगा. सब बच्चे पकौड़े, इडली, पुलाव और जाने क्याक्या ले कर आते हैं परंतु तुम तो परांठे के सिवा कुछ बनाना ही नहीं जानतीं.’

मैं चिढ़ते हुए बोली, ‘सुबह इतने सारे काम होते हैं. छप्पन भोग बनाना मेरे वश का नहीं है. अपने बाप से कहो, नौकरानी रख लें, वही रचरच कर बनातीखिलाती रहेगी.’

दीप ने टिफिन गुस्से से जमीन पर फेंक दिया, ‘मु झे नहीं ले जाना यह सड़ा परांठा.’

मैं चीख कर बोली, ‘खाना फेंक रहे हो. 2-4 दिन भूखे रहोगे तो सब सम झ में आ जाएगा.’

सोम दौड़ेदौड़े आए. दीप का हाथ पकड़ कर बाहर ले गए. उन्होंने निश्चय ही उस की मुट्ठी में रुपए रख दिए होंगे. वह हंसताखिलखिलाता साइकिल पर चढ़ कर स्कूल चला गया.

अंदर आते ही सोम बोले, ‘तुम भी कम थोड़े ही हो, जब तुम्हें पता है कि वह परांठा नहीं पसंद करता है तो कुछ और बना दो लेकिन तुम कुत्ते की दुम की तरह हो. चाहे कितनी सीधी करो, टेढ़ी की टेढ़ी रहती है.’

‘आप मत चिल्लाइए, उस को बिगाड़ने में आप ही ज्यादा जिम्मेदार हैं. आप ने उसे रुपए क्यों दिए?’

‘वह भूखा रहता कि नहीं?’

‘तो क्या हुआ? एकाध दिन भूखा रहता तो दिमाग ठिकाने आ जाता. आप खुद खाने की प्लेट फेंकते हो, वही उस ने भी सीख लिया है.’

‘चुप रहो, ज्यादा चबड़चबड़ मत करो.’

मैं रोतेरोते किचन से चली आई. यह सब तो रोज का काम हो गया था.

दीप 9वीं कक्षा में आ गया था. उस की दोस्ती कक्षा के रईस, आवारा टाइप लड़कों से थी न कि पढ़ने में होशियार बच्चों से. एक दिन वह बोला, ‘पापा, यश मैथ्स की कोचिंग कर रहा है. मुझे भी कोचिंग जौइन करनी है.’

सोम दीप की किसी बात के लिए मना करना नहीं जानते थे. वे उस की हर फरमाइश पूरी करते.

‘पापा, आशू हमेशा ब्रैंडेड शर्ट ही पहनता है. मेरे पास तो एक भी नहीं है.’

अगले दिन ही सोम औफिस से लौटते हुए ब्रैंडेड शर्ट ले कर आए थे. शर्ट देख कर वह खुशी से सोम से चिपट कर बोला, ‘मेरे अच्छे पापा, आप बहुत अच्छे हैं.’

उसे सोम के ओवरटाइम की कोई फिक्र नहीं थी.

उसी साल सिया की शादी हो गई थी. दीप आजाद हो गया था. दिया से तो उस की अधिकतर बोलचाल ही बंद रहती थी.

सोम का प्रमोशन हो कर मंगलोर पोस्टिंग हो गई थी. वे दिया और दीप की पढ़ाई के कारण उन्हें श्याम भैया की देखरेख में यहीं छोड़ कर चले गए थे.

दीप घर से बाहर ज्यादा रहता, ‘मैं ट्यूशन पढ़ने जा रहा हूं,’ कह कर वह घंटों के लिए गायब हो जाता. उस पर डांटफटकार का कोई असर नहीं था. 2-3 महीने में सोम आते तो मैं मां होने के नाते शिकायतों का पुलिंदा खोल कर उन्हें सुनाने की कोशिश करती जिसे सोम ध्यान से सुनते भी नहीं थे.

हंस कर लाड़ से इतराते हुए दीप से कहते, ‘क्यों भई दीप, अपनी मम्मी का कहा माना करो. इन्हें परेशान मत किया करो. ये तुम्हारी ढेरों शिकायतें करती रहती हैं. हां, तुम्हारी इस वर्ष बोर्ड की परीक्षा है. तुम्हारी तैयारी कैसी चल रही है?’

बेटा- भाग 4 : कैसे एक हंसता हुआ घर उदासी और मातम के दलदल में फंस गया

वे मन ही मन बेटे के भविष्य को ले कर निराश हो गए थे. एक ओर मेरी बीमारी और दूसरी ओर बेरोजगार बेटा. इसी बीच दिया की शादी भी आ गई थी. शादी में होने वाले खर्च को देख कर एक दिन दीप बोला, ‘फंड के सारे रुपए पापा दिया की शादी में खर्च कर दे रहे हैं, तो मेरे लिए क्या बचेगा?’

बेटे की यह बात सुनते ही मैं सकते में आ गई थी, यदि सोम को बेटे की यह बात पता चलेगी तो उन्हें कितना दुख होगा.

दीप के दोस्त अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त हो गए थे. स्वयं दीप अपनी बेरोजगारी से तंग आ चुका था. न तो वह समय से नहाता था, न खाता था, चुपचाप अपने कमरे में लेटा हुआ टकटकी लगा कर छत को निहारता रहता.

हंसताखिलखिलाता हुआ घर उदासी और मनहूसियत के बादल के पीछे छिप सा गया था. सोम और उन के लाड़ले के बीच आपस में बोलचाल लगभग बंद सी हो गई थी.

तभी एक दिन दीप सोम से आ कर बोला, ‘पापा, यदि आप घर गिरवी रख कर कुछ रुपयों का इंतजाम कर दें तो मु झे नौकरी जरूर मिल जाएगी. एक एजेंट से मेरी बात हुई है, उस ने मु झे बताया है कि 3 लाख रुपए लगेंगे, उस के एवज में स्थायी नौकरी दिलवाने का वादा किया है.’

‘देखो दीप, तुम किसी ठग के चक्कर में मत पड़ना. कुछ धोखेबाज लोगों का यही धंधा है कि वे जवान लड़कों को बहलाफुसला कर उन्हें बड़ेबड़े ख्वाब दिखा कर अपना उल्लू सीधा करते हैं.’

दीप क्रोधित हो कर चिल्ला उठा था, ‘पापा, आप तो मेरा जीवन बरबाद कर के छोडि़एगा. आप मेरे बाप हैं कि दुश्मन.’

यह सुन कर मैं चुप नहीं रह पाई और बोल पड़ी, ‘दीप, पापा से इस तरह बात करते हो.’

‘बुढि़या, तुम तो चुप ही रहो. खांसखांस कर जीना हराम कर रखा है.’

सोम ने तमक कर हाथ उठा लिया था. मैं ने  झट से उन का हाथ पकड़ लिया था, ‘यह क्या कर रहे हो?’

‘मारो, मारो, और क्या कर सकते हो. तुम दोनों ने मेरे लिए किया ही क्या है? न तो अच्छे स्कूल में पढ़ाया. न डोनेशन दे कर इंजीनियर बनाया. कौमर्स में ऐडमिशन करवा के कहीं का नहीं छोड़ा. बस, पैदा कर के छोड़ दिया. मेरी बेकारी के लिए तुम ही जिम्मेदार हो. तुम यह घर और बुढि़या तुम अपने जेवर ले कर चाटो. मु झे बेकार देख कर तुम बहुत खुश हो रही होगी न. एक दिन रेल की पटरी पर जा कर सो जाऊंगा तो घी के दीपक जलाना.’

सोम और मेरे लिए यह सब अप्रत्याशित था. रोंआसी आवाज में सोम बोले थे, ‘दीप, इतने नाराज न हो, बेटा. मैं अपने औफिस में तुम्हारी नौकरी की जुगाड़ में जीजान से लगा हुआ हूं. बड़े साहब से बात भी हो गई है. उन्होंने कहा है कि अभी अस्थायी पद होगा. यदि ठीक से काम करेगा तो स्थायी कर दिया जाएगा.’

‘रहने दो एहसान करने को. खबरदार, जो मेरे लिए किसी से बात की. मैं घर छोड़ कर कहीं चला जाऊंगा. दोनों चैन से रहना.’

बेटा- भाग 3 : कैसे एक हंसता हुआ घर उदासी और मातम के दलदल में फंस गया

‘फर्स्ट क्लास, पापा. मेरे तो सारे सब्जैक्ट्स तैयार हैं. रिवीजन चल रहा है.’

मेरी बातों से ज्यादा उन्हें बेटे की बातों पर विश्वास था. सोम निश्ंिचत थे कि उन की बीवी को तो हमेशा बड़बड़ करने की आदत है.

दीप का हाईस्कूल का रिजल्ट निकलने वाला था. सोम छुट्टी ले कर मंगलोर से आ गए थे. सोम बेटे से लडि़याते हुए बोले थे, ‘दीप, तुम्हारे 80 प्रतिशत अंक तो आ ही जाएंगे.’

दीप बोला था, ‘श्योर, पापा.’

‘भई, फिर तुम क्या इनाम लोगे?’

मेरा मन नहीं माना था, बीच में ही बोल पड़ी थी, ‘सिया ने जब पूरे कालेज में टौप किया था तो आप ने कभी नहीं पूछा था.’

‘अरे, वह तो बेटी थी. यह तो मेरा बेटा है, मेरा नाम रोशन करेगा.’

‘पापा, मुझे अपने दोस्तों को तो होटल में पार्टी देनी पड़ेगी.’

‘देना, जरूर देना. अपना मन मत छोटा करना. मु झे पहले से बता देना कि कितने रुपए चाहिए.’

दीप का रिजल्ट इंटरनैट पर देखा गया. उस के 51 प्रतिशत अंक देख कर सोम ने आव देखा न ताव, उस पर थप्पड़ों की बरसात कर दी थी. बेटे को बचाने के चक्कर में 1-2 हाथ मेरे भी लग गए थे.

घर में मातम का माहौल था, परंतु दीप पर कोई असर नहीं था. वह ढीठ की तरह कह रहा था, ‘मेरे तो सारे पेपर अच्छे हुए थे, जाने कैसे इतने कम अंक आए हैं. जरूर कहीं गड़बड़ है. मैं स्क्रूटनी करवाऊंगा.’

सोम को बहुत बड़ा सदमा लगा था. शर्म के कारण वे 2-3 दिन घर से बाहर नहीं निकले. वे सम झ नहीं पा रहे थे कि दीप को सही रास्ते पर कैसे लाएं.

तमाम दौड़धूप कर के सोम ने दीप का ऐडमिशन कौमर्स में करवाया. बेटे को अपने पास बिठा कर प्यार से खूब सम झाया, ‘बेटा दीप, मेरे पास कोई दौलत नहीं रखी है कि मैं तुम्हें कोई दुकान या व्यापार करवा सकूं. तुम्हें मेहनत से पढ़ना होगा क्योंकि तुम्हें पढ़लिख कर भविष्य में आईएएस औफिसर बनना है.’

‘जी पापा, मैं अब मन लगा कर पढ़ाई करूंगा.’ आंखों में आंसू भर कर सोम मंगलोर चले गए.

दीप फिर पुराने रवैए पर लौट आया था. कोचिंग के बहाने वह दिनभर घर से गायब रहता. जब घर में रहता तो या तो मोबाइल पर बातें करता या इयरफोन कानों में लगा कर गाने सुनता.

श्याम भैया ने एक दिन डांटते हुए कहा, ‘दीप बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो. इस वर्ष तुम्हारी इंटर की बोर्ड परीक्षा है. हाईस्कूल की तरह इस बार रिजल्ट खराब न हो.’

दीप बिगड़ कर बोला, ‘चाचा, मैं अपना भलाबुरा सम झता हूं. आप को उपदेश देने की जरूरत नहीं है.’

श्याम भैया ने उस दिन के बाद से दीप की हरकतों की ओर से अपनी आंखें बंद कर लीं. दीप की शामें दोस्तों के साथ रैस्टोरैंट में पिज्जाबर्गर खाए बिना नहीं बीतती थीं. सब बीयर पार्टी का भी लुत्फ उठाते थे. खर्चे से बचाए हुए जो रुपए अलमारी के कोनों में मैं छिपाए रखती थी, आसानी से उन पर वह हाथ साफ करता रहता. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ती जा रही थी. मैं परेशान रहती. परंतु यदि भूल से भी दीप से कुछ कहती तो वह मुझ से लड़ने पर उतारू हो जाता था. मैं मन ही मन घुटती रहती. मेरे दिल के दर्द को कोई सुनने वाला नहीं था. दिनबदिन मैं सूख कर कांटा होती जा रही थी.

एक दिन श्याम भैया मुझे डाक्टर के पास ले कर गए तो डाक्टर ने तमाम टैस्ट कर डाले. ईसीजी करने के बाद उन्होंने दिल की बीमारी बताई. डाक्टर ने ढेर सारी दवाएं और पूरी तरह आराम करने की सलाह दी.

सोम मेरी बीमारी की खबर सुन कर भागे चले आए. मेरी हालत देख उन की आंखों में आंसू आ गए थे. दीप पक्का नाटकबाज था. जब तक सोम थे, उन के सामने कौपीकिताब खोल कर बैठा रहता. सोम का और मेरा भी काम में हाथ बंटाता. मेरी देखभाल भी करता. सोम को लगा कि मेरी बीमारी के कारण वह सुधर गया है.

डाक्टर की दवाओं और सोम की देखभाल से मेरा स्वास्थ्य जल्दी ही सुधरने लगा. सोम ने इन दिनों महसूस किया कि श्याम भी दीप से नाराज और खिंचेखिंचे से रहते थे परंतु पुत्र के मोह में उन्हें श्याम ही गलत लगे थे.

एक दिन मैं दीप पर  झुं झला रही थी तो श्याम भैया भी उस की हां में हां मिला कर कुछ बोलने लगे. सोम को यह अच्छा नहीं लगा. इसलिए बीच में बात काटते हुए मेरी ओर इशारा कर के बोले, ‘तुम लोग सम झते क्यों नहीं हो? वह जवान हो गया है. अपना भलाबुरा खुद सम झता है. हर समय टोकाटाकी करना अच्छा नहीं होता,’ फिर श्याम भैया की ओर मुखातिब हो कर बोले थे, ‘श्याम, तुम्हें भी सम झना चाहिए कि यही उस के खानेखेलने की उम्र है. फिर तो आगे चल कर जिम्मेदारियों में पड़ जाएगा.’

मैं थोड़ी नाराज हो कर बोली थी, ‘आप की आंखों पर बेटे के मोह की पट्टी बंधी हुई है. आप सम झते क्यों नहीं हैं? आप का बेटा बिगड़ गया है. उस के लक्षण अच्छे नहीं हैं. उस का संगसाथ अच्छे लड़कों का नहीं है.’

सोम मुझ पर चिल्ला पड़े थे, ‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. हर समय ऊटपटांग बातें करना तुम्हारा काम है.’

मैं भी नाराज हो कर जोर से बोली थी, ‘आप ने तो कसम खा रखी है, मेरी बात न मानने की. मैं तो दिल की मरीज हूं, मर जाऊंगी. आप ही बुढ़ापे में सिर पर हाथ रख कर रोएंगे. तब मु झे और मेरी बातों को याद करेंगे.’

सोम की छुट्टियां समाप्त हो गई थीं. वे चले गए थे. ट्रांसफर करवाने की कोशिश में लगे हुए थे. सोम के जाते ही दीप अपने असली रंग में आ गया. एक दिन उस ने अलमारी से घर खर्च के रखे हुए 2 हजार रुपए निकाल लिए.

मैं ने घर में शोर मचा दिया. मैं ने दिया से, फिर दीप से भी रुपयों के बारे में पूछा. दीप ने हड़बड़ाहट में नौकरानी गुडि़या का नाम ले लिया.

सुबह का समय था, इसलिए श्याम भैया भी घर पर ही थे. उन्होंने दीप से पूछा, ‘तुम ने उसे रुपए निकालते हुए देखा था?’

‘हां, वह अलमारी के पास खड़ी हो कर अपने कुरते के अंदर कुछ छिपा रही थी.’

गुडि़या कसमें खाती रही कि उस ने रुपए नहीं लिए हैं लेकिन श्याम भैया पर क्रोध का जनून सवार था. उन्होंने उस की तलाशी ले कर बेइज्जती भी की. उस को 1-2 थप्पड़ भी जड़ दिए. पुलिस में शिकायत करने की धमकी भी दी. लेकिन रुपए उस ने लिए हों तब तो मिलें. काम करने वाली से जरूर मैं हाथ धो बैठी थी. इस बीच दीप कब छूमंतर हो गया, कोई नहीं देख पाया.

गुडि़या की अम्मा ने महल्ले में बदनामी और कर दी थी. वह चिल्लाचिल्ला कर कहती फिर रही थी, ‘बड़े लोग होंगे अपने घर के. मेरी भी कोई इज्जत है. मेहनत कर के पेट भरते हैं. दीप बाबू बिलकुल आवारा हैं. उन्होंने ही रुपए चुराए हैं. वे हमारी गुडि़या को छेड़ रहे थे, उस के शोर मचाने पर उन्होंने उस से बदला लेने के लिए उस पर चोरी का इलजाम लगा दिया. दीप तो पक्का चोर है.’

श्याम भैया तो महल्ले में किसी से आंख भी नहीं मिला पा रहे थे. मैं भी शर्म से पानीपानी हो गई थी. बेटे की नीच हरकतों के कारण मैं ज्यादातर बीमार और अकेली रहने लगी थी.

श्याम भैया ने दीप की नित्य नईनई करतूतों से परेशान हो कर आंगन के बीच में दीवार खड़ी करवा कर सोम से सारे संबंध तोड़ लिए थे. देवरदेवरानी से नाता टूटने का सदमा  झेलना मुझे बहुत भारी पड़ रहा था. घर के सारे काम मुझे अकेले ही करने पड़ते थे. अकसर मैं हांफती हुई पलंग पर लेट जाती थी. अंदर ही अंदर दिनभर घुटती रहती थी.

दीप गिरतेपड़ते बीकौम पास कर चुका था. दोस्तयारों के साथ यहांवहां घूमताफिरता और बातें लंबीलंबी करता. सोम बेटे की नौकरी के लिए फार्म भरवाते रहते, परंतु सफलता कहीं नहीं मिलती थी. वे दीप की नौकरी के लिए यहांवहां भागते रहते, सिफारिश के लिए लोगों के हाथपैर जोड़ते रहते. निराश हो कर अपने फंड के पैसे से दीप के लिए एक छोटी सी मोबाइल की दुकान भी खुलवाई. लेकिन दीप के लिए वह उस के स्टैंडर्ड की नहीं थी. 8-10 दिन से ज्यादा उस पर वह नहीं बैठा. फलस्वरूप सोम के पैसे बरबाद हो गए.

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