डॉ श्वेता शर्मा, कंसल्टेंट क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद से हर 10 में से 7 मरीज़ों ने कहा है कि उन्होंने लॉकडाउन में आत्महत्या करने के विचारों को महसूस किया है. प्री-लॉकडाउन समय के बाद से ऐसे केसेस में बहुत ही साफ़ और तेजी से वृद्धि देखी गयी है.
पहले हर 10 में से 5 से 7 मरीज इस तरह के विचारों को महसूस करते थे. मार्च से यह लगभग 70% बढ़ा है. इसके बढ़ने का कई कारण है जैसे कि कई काम करने वाले प्रोफेशनल्स ज्यादातर अनियमित काम करने के घंटों, काम का स्ट्रेस, पर्सनल स्पेस की कमी की शिकायत करने लगे क्योकि इस समय वे अपने पार्टनर के साथ रह रहे होते हैं और वे इस समय घर से काम कर रहे होते हैं. उनमें से ज्यादातर अपने माता-पिता और परिवारों, दोस्तों से दूर शहर में रह रहे हैं. परिवार के साथ न रहने से लोगों के बीच स्ट्रेस और एंग्जाइटी का लेवल बढ़ रहा है.
ये भी पढ़ें- मुहुर्त के साये में शिक्षित भारतीय
लॉकडाउन के बाद से हमें मिले केसेस में से अधिकांश एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन वाले थे. जिसका मतलब है कि लगभग 70% केसेस एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन के थे. ऐसे अधिकांश मरीजों की उम्र 25 से 40 के बीच थी, और महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे ज्यादा प्रभावित थे. यह आंकड़ा पुरुषों में महिलाओं के मुकाबलें एंग्जाइटी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते लेवल को दर्शाता है. इनमे से लगभग आधे मरीजों को पहले कोई भी मानसिक बीमारी नही थी.
हम दवाओं, काउंसलिंग बातचीत या थेरेपी जैसे कि कोगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) से ऐसे मरीजों का इलाज करते हैं. इसके अलावा इनमे से ज्यादातर मरीज फॉर्मल इंटरेक्शन पीरियड, जैसे कि मीटिंग या टेलीकांफ्रेंसिंग, के बाद भी डाक्टरों से लगातार सम्पर्क में है. ऐसे मरीजों की मानसिक स्थिति ठीक होने में कई महीने लग सकते है.”
ये भी पढ़ें- अब तुम पहले जैसे नहीं रहे
डॉ प्रीति सिंह, सीनियर क्लिनिकल कंसल्टेंट- सायकोलॉजी और सायकोथेरेपी, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम का कहना है कि, “लॉकडाउन में हमने 300 आत्महत्या के केसेस को देखा है और इन आत्महत्याओं में ज्यादातर मरने वाले पुरुष थे. वे महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए क्योंकि इनमे से ज्यादातर परिवार के लिए रोजी- रोटी कमाने वाले अकेले सदस्य थे. गुरुग्राम जैसे मेट्रोपॉलिटिन सिटी में स्थिति सबसे खराब रही है, जहाँ नौकरी जाने से कई परिवार को बड़ा झटका लगा है क्योंकि यहाँ जीवन यापन की लागत बहुत ज्यादा हो गयी है.
भविष्य के बारें में अभी भी कुछ नही कहा जा सकता है, इसने मिलेनियम सिटी में मेंटल हेल्थ की समस्या को बढ़ा दिया है. हमारी ओपीडी में हम आत्महत्या से पीड़ित मरीजों को देख रहे हैं. ये मरीज पहले भयानक मूड स्विंग या एंग्जाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित थे, लेकिन महामारी के दौरान ये लक्षण और भी भयानक हो गए. इसलिए एक साइड में 30 मरीजों में से 5 में आत्महत्या करने का विचार था और इस 30 में से 2 महिलाएं भी थी जिन्होंने आत्महत्या करने की असफल कोशिश की थी. महामारी के कारण इकोनॉमिक और सायकोलोजिकल प्रभाव हमारी कल्पनाओं से परे है. गुरुग्राम में लॉकडाउन के दौरान कुछ युवाओं की भी मौतें हुई हैं. आत्महत्या करने वाला हर कोई मानसिक रूप से बीमार नहीं होता है. कई बार यह एक इम्पल्स (आवेग) होता है जो इस तरह के बिहैवियर को ट्रिगर करता है. हमने 16 साल के एक आत्महत्या केस को भी देखा है, जिसने फोन के इस्तेमाल के संबंध मे माता-पिता से झगड़ा करने पर आत्महत्या कर ली थी.”
कारण क्या है
सुसाइड के विचारों के कई कारण होते हैं. सबसे अधिक, आत्महत्या के विचार इस तरह की भावना के परिणाम होते हैं जब आप जीवन की किसी मुश्किल स्थिति का सामना नहीं कर सकते हैं. यदि आपके पास भविष्य के लिए कोई आशा नहीं है, तो आप यह सोच सकते हैं की आत्महत्या ही उस मुश्किल का हल हो सकते हैं. आप एक प्रकार की सुरंग दृष्टि का अनुभव कर सकते हैं, जहाँ संकट के बीच में आपको लगता है कि आत्महत्या ही एकमात्र रास्ता है.
ये भी पढ़ें- एक शिक्षिका जिसने नेता बनकर दुनिया में भारत का नाम रोशन किया
आत्महत्या के लिए एक आनुवंशिक लिंक भी हो सकता है. जो लोग आत्महत्या करते हैं या जिनके पास आत्मघाती विचार या व्यवहार होता है, उनके आत्महत्या के पारिवारिक इतिहास की संभावना अधिक होती है.
कैसे करें निवारण
1-अगर आपको इलाज की जरुरत है तो आप अपना इलाज कराएँ.
2-अगर आप अपने अन्दर पहले से ही मौजूद समस्या को ठीक नहीं कर पाते हैं आप सुसाइडल थोट्स से फिर से पीड़ित हो सकते हैं.
3-आप मेंटल हेल्थ समस्या का इलाज कराने में शर्म महसूस कर सकते हैं. लेकिन डिप्रेशन के लिए सही से इलाज कराने पर पदार्थों का गलत सेवन करने पर या अन्य अंडरलाइंग समस्या आपको जिंदगी के बारें में अच्छा महसूस करा सकती है और आपको स्वस्थ रख सकता है.
4-आप अपने लिए एक सपोर्ट नेटवर्क को बनायें.
5-आत्महत्या की भावना के बारें में बात करने में मुश्किल होगी और आपके दोस्त और परिवार के लोग यह नहीं समझ पायेंगे कि आप ऐसी भावना को क्यों महसूस कर रहे हैं. किसी भी तरह से बात करें और यह सुनिश्चित करें कि जो लोग आपकी सचमुच में परवाह करते हैं वे लोग यह जान सके कि आपके ऊपर क्या गुज़र रही है और आपको उनकी कब जरुरत है?
6-आप अपने मेडीटेशन वाले स्थानों से, सपोर्ट ग्रुप से, या दूसरी कम्युनिटी रिसोर्सेज से मदद पाने की कोशिश करें. कनेक्टेड और सपोर्टेड महसूस करने से आत्महत्या का खतरा कम हो जाता है.
ये भी पढ़ें- एकाकी महिला के लिए गाली है करवाचौथ
याद रखें सुसाइडल फीलिंग टेम्परेरी होती है. अगर आप निराश महसूस करते हैं या ज़िन्दगी को बोझ मानते हैं तो यह याद रखें कि आपका ट्रीटमेंट होने से से आपकी ज़िन्दगी के प्रति सोच बदल जाएगी और ज़िन्दगी बेहतर हो जाएगी. एक समय में एक ही स्टेप लें और ज्यादा इम्पल्सिवली (आवेग से) व्यवहार न करें.